UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 24 Achievement and Achievement Tests (उपलब्धि तथा उपलब्धि परीक्षण)

By | June 1, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 24 Achievement and Achievement Tests (उपलब्धि तथा उपलब्धि परीक्षण)

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 24 Achievement and Achievement Tests (उपलब्धि तथा उपलब्धि परीक्षण)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
उपलब्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं ? निबन्धात्मक परीक्षण के गुण-दोषों का उल्लेख कीजिए। [2014, 15]
या
निबन्धात्मक परीक्षण के गुण और दोषों की विवेचना कीजिए। [2013]
या
निबन्धात्मक परीक्षणों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? इनके गुण-दोषों पर प्रकाश डालिए। [2014]
या
निबन्धात्मक परीक्षण के दोषों को बताइए। [2008, 12]
उत्तर :
उपलब्धि परीक्षण
प्रत्येक विद्यालय में विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने के लिए जाते हैं। एक निश्चित समय में विद्यार्थियों ने कितना ज्ञान अर्जित किया तथा जीवन की परिस्थितियों में उसे कहाँ तक हस्तान्तरित किया आदि की जाँच उपलब्धि परीक्षण द्वारा की जाती है। अध्यापक उपलब्धि परीक्षाओं द्वारा समय-समय पर यह जानने का प्रयास करता है कि कक्षा में प्रदान किया जाने वाला ज्ञान विद्यार्थियों ने किस सीमा तक ग्रहण कर लिया है।

विभिन्न विद्वानों ने उपलब्धि परीक्षणों की परिभाषाएँ निम्नलिखित शब्दों में दी हैं

  1. हेनरी चौनसी (Henry Chauncy) के अनुसार, “प्रत्येक उपलब्धि परीक्षा में छात्रों को किसी-न-किसी रूप में अपने प्राप्त ज्ञान का इस प्रकार प्रदर्शन करना पड़ता है, जिससे उसका अवलोकन और मूल्यांकन किया जा सके।”
  2.  गैरीसन (Garrison) के अनुसार, “उपलब्धि परीक्षा बालक की वर्तमान योग्यता या किसी विशिष्ट विषय के क्षेत्र में उसके ज्ञानार्जन की सीमा का मापन करती है।”
  3. फ्रीमैन (Freeman) के अनुसार, “एक उपलब्धि परीक्षा वह है जिसका निर्माण ज्ञान समूह में कौशल के मापन के लिए किया जाता है।”

निबन्धात्मक परीक्षण
आजकल हमारे देश में निबन्धात्मक परीक्षाओं का अधिक प्रचलन है। ये परीक्षाएँ एक प्रकार से राष्ट्रीय शिक्षा का अंग हो गयी हैं। इनमें छात्रों को कुछ प्रश्न दिये जाते हैं और छात्र उनके उत्तर लिखित रूप में देते हैं। उत्तर देने का समय निर्धारित होता है। यह परीक्षा की परम्परागत प्रणाली है।

गुण :
निबन्धात्मक परीक्षाओं के निम्नलिखित गुण हैं।

  1. इन परीक्षाओं का आयोजन सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
  2. इन परीक्षाओं के प्रश्नों को सुगमता से तैयार किया जा सकता है।
  3. यह विधि समस्त विषयों के लिए उपयोगी है।
  4. इसमें बालक को पूर्ण अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता रहती है।
  5. यह प्रणाली बालकों के लिए भी सुगम होती है, क्योंकि प्रश्न-पत्र समझने में उन्हें विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  6. छात्रों की तर्क, विचार संगठन तथा चिजन शक्ति का ज्ञान कराने में ये परीक्षाएँ विशेष सहायक होती हैं।
  7. यह प्रणाली छात्रों को परिश्रम करने के लिए प्रेरित करती है।
  8. यह प्रणाली बालकों के अर्जित ज्ञान का वास्तविक मूल्यांकन करती है।

दोष :
निबन्धात्मक परीक्षाओं में निम्नांकित दोष भी हैं

  1. निबन्धात्मक परीक्षाएँ केवल पुस्तकीय ज्ञान का मूल्यांकन करती हैं। इनके द्वारा छात्र की विभिन्न क्षमताओं का मूल्यांकन नहीं हो पाता।।
  2. इस परीक्षा में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम के समस्त भागों में प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं। जो भाग शेष रहता है, उसका मूल्यांकन नहीं हो पाता।
  3. इस परीक्षा का प्रमुख दोष यह है कि छात्र अनुमान के आधार पर ही परीक्षा की तैयारी करते हैं। इस प्रकार कम परिश्रम करके उन्हें सफलता मिल जाती है।
  4. निबन्धात्मक परीक्षा में मूल्यांकन कठिनता से होता है। मूल्यांकन के लिए प्रत्येक प्रश्न के उत्तर को। पढ़ना आवश्यक है, परन्तु यह एक कठिन कार्य है।
  5. इनमें आत्मनिष्ठता का प्रभाव रहता है। छात्रों द्वारा दिये गये प्रश्नों के उत्तरों का मूल्यांकन करते समय परीक्षक के विचारों, अभिवृत्ति तथा मानसिक स्तर का भी प्रभाव पड़ता है। एक उत्तर-पुस्तिका की। यदि विभिन्न परीक्षकों से जाँच कराई जाए, तो विभिन्न परिणाम देखने में आएँगे। एक उत्तर में यदि एक । अध्यापक आठ अंक देता है, तो उसी उत्तर में दूसरा अध्यापक तीन अंक भी प्रदान कर सकता है।
  6. निबन्धात्मक परीक्षाएँ विश्वसनीय नहीं होतीं। यदि एक ही उत्तर-पुस्तिका को एक ही अध्यापक जाँचने के कुछ काला पश्चात् पुनः जाँचे तो दोनों बार के अंकों में पर्याप्त अन्तर मिलती है।
  7. इस परीक्षा के परिणामों के आधार पर छात्र के विषय में निश्चित रूप से कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। इस परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाला छात्र आवश्यक नहीं कि व्यावहारिक जीवन में भी सफलता प्राप्त करे, क्योंकि इस परीक्षा में अंक प्राप्ति रटने की शक्ति, लेखी शक्ति तथा संयोग पर बहुत कुछ निर्भर करती है।
  8. यह परीक्षा प्रणाली छात्रों के स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव डालती है। छात्र वर्ष-भर तो कुछ पढ़ते-लिखते नहीं हैं, परन्तु परीक्षा के निकट आने पर दिन-रात पढ़कर परीक्षा पास करने का प्रयास करते हैं। फलतः उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 2
वस्तुनिष्ठ परीक्षण से आप क्या समझते हैं ? वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के प्रकारों एवं गुण-दोषों का उल्लेख कीजिए। [2007, 12]
या
वस्तुनिष्ठ परीक्षण से आप क्या समझते हैं ? इस परीक्षण के गुणों का उल्लेख कीजिए। [2007, 13]
या
वस्तुनिष्ठ परीक्षा-प्रणाली के दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
वस्तुनिष्ठ परीक्षण
निबन्धात्मक परीक्षण के दोषों को दूर करने के लिए शिक्षाशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों ने वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का प्रतिपादन किया। सर्वप्रथम 1854 ई० में होरेसमेन (Horaceman) ने वस्तुनिष्ठ परीक्षण का निर्माण किया। वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में प्रश्नों का स्वरूप ऐसा होता है कि उनका उत्तर पूर्ण रूप से निश्चित होता है। इन प्रश्नों के उत्तर में सम्बन्धित व्यक्ति की रुचि, पसन्द या दृष्टिकोण का कोई महत्त्व नहीं होता। वस्तुनिष्ठ प्रश्न का उत्तर प्रत्येक उत्तरदाता के लिए एक ही होता है।

गुड (Good) ने वस्तुनिष्ठ परीक्षण को स्पष्ट करते हुए कहा :
“वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रायः सत्य-असत्य उत्तर, बहुसंख्यक चुनाव, मिलान या पूरक प्रश्नों पर आधारित होती है, जिनको शुद्ध उत्तरों की सहायता से अंकन किया जाता है। यदि कोई उत्तर तालिका के विपरीत होता है, तो उसे अशुद्ध माना जाता है।” वर्तमान परीक्षा में वस्तुनिष्ठ परीक्षणों को अत्यधिक महत्त्व दिया जा रहा है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के प्रकार
वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं

1. सत्य-असत्य परीक्षण :
इन परीक्षणों में ‘सत्य’ या ‘असत्य में छात्र उत्तर देते हैं।
निर्देश :
निम्नलिखित कथन यदि शुद्ध हों तो सत्य’ और अशुद्ध हों तो ‘असत्य’ को रेखांकित कीजिए-

  1. बाबर का जन्म 1525 में हुआ था। सत्य/असत्य
  2. कार्बन डाइऑक्साइड जलने में सहायक नहीं है। सत्य/असत्य
  3. ऑक्सीजन जीवधारियों के लिए अनिवार्य है। सत्य/असत्य
  4. रामचरितमानस की रचना तुलसीदास ने की थी। सत्य/असत्य

2. सरल पुनः स्मरण परीक्षण :
इन प्रश्नों का उत्तर छात्र स्वयं स्मरण करके लिखता है।
निर्देश :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर उनके समक्ष कोष्ठकों में लिखो

  1. प्लासी का युद्ध कब हुआ था ? ( )
  2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन किसने चलाया था? ( )
  3. महाभारत ग्रन्थ की रचना किसने की थी ? ( )
  4. उत्तर प्रदेश का वर्तमान राज्यपाल कौन है ? ( )

3. पूरक परीक्षण :
इस परीक्षण में छात्र वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करते हैं।
निर्देश :
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. भारत के प्रधानमन्त्री की नियुक्ति ………….. करता है।
  2. मुख्यमन्त्री विधानसभा के ………….. का नेता होता है।
  3. मूल अधिकारों की रक्षा …………..करता है।
  4. राज्य व्यवस्थापिका के उच्च सदन को …………..कहते हैं।
  5. ‘कामायनी’ की रचना ………….. ने की थी।

4. बहुसंख्यक चुनाव या बहुविकल्पीय परीक्षण :
इस परीक्षण में छात्रों को दिये हुए अनेक उत्तरों में से ठीक उत्तर का चुनाव करना पड़ता है।
निर्देश :
सही कथन के सामने कोष्ठक में सही का चिह्न लगाओराज्य के प्रशासन का वास्तविक प्रधान

  1. राष्ट्रपति होता है।
  2. प्रधानमन्त्री होता है।
  3. राज्यपाल होता है।
  4. मुख्यमन्त्री होता है।

5. मिलान परीक्षण :
इस परीक्षण में छात्रों को दो पदों में मिलान करके कोष्ठक में सही पद लिखना पड़ता है।
निर्देश :
नीचे कुछ घटनाओं का उल्लेख किया जा रहा है। उनके सामने अव्यवस्थित रूप में उनसे सम्बन्धित तिथियाँ दी हुई हैं। प्रत्येक कोष्ठक में सम्बन्धित सही तिथि लिखो
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वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के गुण
वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं|

1. विश्वसनीयता :
वस्तुनिष्ठ परीक्षण का सबसे बड़ा गुण उसकी विश्वसनीयता (Reliability) है। इसमें ही परीक्षण में विभिन्न समय में प्राप्त अंकों की समानता रहती है, अर्थात् एक उत्तर को कितनी ही बार जाँचा जाए, उसमें  अन्तर की सम्भावना नहीं रहती।

2. वस्तुनिष्ठता :
यह परीक्षण वस्तुनिष्ठ होता है। इसमें परीक्षण के मूल्यांकन पर परीक्षक की मानसिक स्थिति, रुचि, अभिवृत्ति तथा छात्रों के सुलेख का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसका मूल कारण। प्रश्नों के उत्तरों का निश्चित तथा छोटा होना है।

3. वैधता :
वस्तुनिष्ठ परीक्षण का अन्य गुण है-उसकी वैधता (Validity)। ये परीक्षण उसी निर्धारित योग्यता का मापन करते हैं, जिसके लिए इनका निर्माण किया जाता है।

4. उपयोगिता :
इन परीक्षणों के परिणामों के आधार पर छात्रों को शैक्षणिक तथा व्यावसायिक निर्देशन दिया जा सकता है।

5. विभेदीकरण :
ये परीक्षण प्रतिभाशाली और मन्दबुद्धि बालकों के मध्य भेद को स्पष्ट कर देते हैं।

6. व्यापकता :
इन परीक्षणों में पाठ्यक्रम के अन्तर्गत पढ़ाये जाने वाले समस्त प्रकरणों को शामिल किया जा सकता है। इस प्रकार बालकों द्वारा किये गए सम्पूर्ण अर्जित ज्ञान का मापन सम्भव हो जाता है।

7. मूल्यांकन में सुविधा :
वस्तुनिष्ठ परीक्षण का मूल्यांकन बहुत सुविधाजनक ढंग से हो जाता है, क्योंकि उत्तर निश्चित और छोटे होते हैं। दूसरे, इस प्रणाली में अंकन, उत्तर की तालिका की सहायता से किया जा सकता है।

8. ज्ञान की यथार्थता का परीक्षण :
निबन्धात्मक परीक्षण में छात्र प्रभावशाली भाषा का प्रयोग करके अपने ज्ञान की कमी को भी छिपा जाता है, परन्तु वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में ऐसा सम्भव नहीं है, क्योंकि छात्रों को अति संक्षिप्त उत्तर देने पड़ते हैं। अतः वे अपनी अज्ञानता को भाषा के आडम्बर में नहीं छिपा सकते। इस प्रकार इन परीक्षणों में छात्रों के ज्ञान की यथार्थ जाँच की जाती है।

9. धन की बचत :
इन परीक्षणों में छात्रों को कम लिखना पड़ता है। प्रायः दो या तीन पृष्ठों की पुस्तिकाएँ पर्याप्त होती हैं। इस प्रकार धन की काफी बचत हो जाती है।

10. समय की बचत :
इस प्रणाली में छात्रों व अध्यापक दोनों के समय की बचत होती है, क्योंकि छात्रों को कम लिखना पड़ता है और अध्यापक को कम जाँचना पड़ता है।

11. रटने की प्रवृत्ति का अन्त :
इस प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह रटने की प्रवृत्ति का अन्त कर देती है। इसमें प्रश्नों के उत्तरों को रटने से काम नहीं चलता। विषय-वस्तु को ध्यान से पढ़ना आवश्यक हो जाता है।

12. छात्रों का सन्तोष :
निबन्धात्मक परीक्षण से छात्रों को सन्तोष नहीं मिलती, क्योंकि छात्रों का मूल्यांकन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता और उन्हें ठीक प्रकार से अंक नहीं मिलते। परन्तु वस्तुनिष्ठ परीक्षण में छात्रों को ठीक अंक मिलते हैं, जिनसे उनको पूर्ण सन्तोष मिलता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के दोष
वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में कुछ दोष भी पाये जाते हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है

1.निर्माण में कठिनाई :
वस्तुनिष्ठ परीक्षण का निर्माण निबन्धात्मक परीक्षण की तुलना में अधिक कठिनाई से होता है। छोटे-छोटे प्रश्नों के निर्माण में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं।

2. अपूर्ण सूचना :
इन परीक्षणों से छात्रों के ज्ञान की अपूर्ण सूचना प्राप्त होती है, क्योंकि छोटे-छोटे उत्तरों द्वारा पूर्ण ज्ञान की जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकती।

3. आलोचनात्मक तथ्यों व समस्याओं की उपेक्षा :
इन परीक्षणों का सबसे बड़ा दोष यह है। कि इनमें आलोचनात्मक तथ्यों तथा विभिन्न समस्याओं की पूर्ण उपेक्षा की जाती है। वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के प्रश्नों के उत्तर पूर्णतया निश्चित होते हैं। अत: उनमें आलोचना तथा समस्या समाधान का कोई स्थान नहीं होता, परन्तु राजनीति, इतिहास, साहित्य आदि का अध्ययन बिना आलोचना तथा समस्या विवेचन के पूर्ण नहीं हो सकता।

4. उच्च मानसिक योग्यताओं को मापन असम्भव :
इन परीक्षणों के द्वारा छात्रों की चिन्तन, मनन तथा तर्क शक्ति की जाँच सम्भव नहीं है। इस प्रकार उनकी उच्च मानसिक योग्यताओं का मापन सम्भव नहीं हो पाता।

5. केवल तथ्यात्मक ज्ञान की जाँच :
इन परीक्षणों द्वारा केवल तथ्यात्मक ज्ञान का पता चलता है। शेष क्षमताओं का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।

6. भाव प्रकाशन की अवरुद्धता :
इन परीक्षणों में छात्रों की भाव प्रकाशन की शक्ति को विकसित होने का अवसर नहीं मिलता, क्योंकि वे अति संक्षिप्त उत्तर देते हैं।

7. अनुमान को प्रोत्साहन :
इस प्रकार के परीक्षणों से छात्रों में अनुमान लगाने की प्रवृत्ति का विकास होता है। वे विचार तथा बुद्धि का प्रयोग न करके केवल अनुमान से ही ‘सत्य’ या ‘अंसत्य’ पर चिह्न लगा देते हैं।

8. भाषा व शैली की उपेक्षा :
इन परीक्षणों में भाषा व शैली की पूर्ण उपेक्षा की जाती है। अत: छात्रों की भाषा व शैली का उचित दिशा में विकास नहीं हो पाता।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
उपलब्धि परीक्षणों के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। [2012, 13]
उत्तर :
उपलब्धि परीक्षण के निम्नांकित उद्देश्य हैं।

  1. छात्रों की क्षमताओं तथा योग्यताओं का ज्ञान कराना।
  2. यह पता लगाना कि बालकों ने अर्जित ज्ञान को किस सीमा तक आत्मसात् किया है।
  3. बालकों को अर्जित ज्ञान को उचित ढंग से अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित करना।।
  4. बालकों की उपलब्धि के सामान्य स्तर का निर्धारण करना।
  5. ज्ञानार्जन के क्षेत्र में बालकों की वास्तविक स्थिति का पता लगाना।
  6. बालकों के ज्ञान की सीमा का मापन करना।
  7. यह ज्ञात करना कि बालक पाठ्यक्रम के लक्ष्यों या उद्देश्यों की ओर अग्रसर हो रहे हैं या नहीं।
  8. यह पता लगाना कि अध्यापक का शिक्षण किस सीमा तक सफल रहा है।
  9. प्रशिक्षण के परिणामों का मूल्यांकन करना।

प्रश्न 2
बुद्धि परीक्षण तथा उपलब्धि परीक्षण में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2007, 10, 13, 15]
उत्तर :
बुद्धि परीक्षण तथा उपलब्धि परीक्षण में निम्नलिखित अन्तर हैं
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प्रश्न 3
वस्तुनिष्ठ परीक्षण और निबन्धात्मक परीक्षण में अन्तर बताइए। [2014, 15]
उत्तर :
वस्तुनिष्ठ परीक्षण में तथ्यों पर आधारित उत्तर दिये जाते हैं। इसमें उत्तरदाता की रुचि, पसन्द या दृष्टिकोण का कोई स्थान नहीं होता। इससे भिन्न निबन्धात्मक के परीक्षण में उत्तरदाता के दृष्टिकोण, पसन्द, रुचि एवं शैली आदि को समुचित महत्त्व दिया जाता है। वस्तुनिष्ठ परीक्षण में अति संक्षिप्त तथा निश्चित उत्तर देना होता है, जबकि निबन्धात्मक परीक्षण में विस्तृत उत्तर देने को प्रावधान होता है। वस्तुनिष्ठ परीक्षण में मूल्यांकन सरल तथा निष्पक्ष होता है, जबकि निबन्धात्मक परीक्षण में मूल्यांकन कठिन होता है तथा इसमें पक्षपात की पर्याप्त सम्भावना होती है। इसमें परीक्षणकर्ता के व्यक्तिगत दृष्टिकोण का भी महत्त्व होता है।

प्रश्न 4
निबन्धात्मक परीक्षण से क्या आशय है?
उत्तर :
वर्तमान औपचारिक शिक्षा :
प्रणाली के अन्तर्गत ज्ञानार्जन के लिए मुख्य रूप से निबन्धात्मक परीक्षणों को अपनाया जाता है। निबन्धात्मक परीक्षण निश्चित रूप से लिखित परीक्षा के रूप में आयोजित किये जाते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत किसी भी विषय के निर्धारित पाठ्यक्रम से सम्बन्धित कुछ प्रश्नों को एक प्रश्न-पत्र के रूप में एकत्र कर लिया जाता है तथा उनमें से कुछ प्रश्नों का विस्तृत उत्तर लिखित रूप में एक निर्धारित समयावधि में देना होता है।

परीक्षणकर्ता उत्तर :
पुस्तिका को पढ़कर छात्र/छात्रा के ज्ञानार्जन स्तर का मूल्यांकन कर लेता है तथा अंक प्रदान कर देता है। इस परीक्षण के भी कुछ गुण-दोष हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि यह परीक्षण-प्रणाली एक व्यक्तिनिष्ठ परीक्षण प्रणाली है तथा इसके माध्यम से छात्र/छात्रा के सम्पूर्ण ज्ञानार्जन का सही तथा तटस्थ मूल्यांकन नहीं हो पाता।

प्रश्न 5
निबन्धात्मक परीक्षण प्रणाली में सुधार के लिए कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर :
निबन्धात्मक परीक्षा के दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझावों को अपनाया जा सकता है

  1. प्रश्नों का निर्माण सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर किया जाए।
  2. परीक्षा प्रश्न-पत्र में पहले सरल और बाद में कठिन प्रश्न रखे जाएँ।
  3. समस्त प्रश्न अनिवार्य हों।
  4. परीक्षण को शिक्षण प्रक्रिया का साधन माना जाए, साध्य नहीं।
  5. निबन्धात्मक प्रश्नों के साथ वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को भी रखा जाए।
  6. मौखिक परीक्षा को भी स्थान दिया जाए।
  7. परीक्षाओं द्वारा यह जानने का प्रयास न किया जाए कि छात्र कितना नहीं जानता, वरन् यह जानने का प्रयास किया जाए कि छात्र कितना जानता है।
  8. परीक्षकों का यह स्पष्ट उद्देश्य होना चाहिए कि वे किस बात की परीक्षा लेना चाहते हैं।
  9. अंक प्रदान करने के स्थान पर श्रेणियों का प्रयोग किया जाए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
उपलब्धि-लब्धि से क्या आशय है?
उत्तर :
बौद्धिक परीक्षणों के आधार पर बौद्धिक योग्यता की गणना करने के लिए बुद्धि-लब्धि की अवधारणा विकसित की गयी थी तथा इसी अवधारणा के समानान्तर एक अन्य अवधारणा निर्धारित की गई, जिसे ज्ञान-लब्धि या उपलब्धि-लब्धि के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 2
विद्यालयों में उपलब्धि परीक्षण का क्या उपयोग है?
उत्तर :
विद्यालय शिक्षा के औपचारिक अभिकरण हैं। विद्यालयों में योजनाबद्ध ढंग से नियमित रूप से शिक्षण-कार्य होता है। छात्रों द्वारा ग्रहण की गयी शिक्षा के मूल्यांकन के लिए निर्धारित परीक्षणों को ही उपलब्धि परीक्षण कहते हैं। उपलब्धि परीक्षण से छात्रों द्वारा अर्जित ज्ञान एवं योग्यता का तटस्थ मूल्यांकन किया जाता है। छात्रों को अगली कक्षा में भेजने के लिए तथा शैक्षिक योग्यता का प्रमाण-पत्र प्रदान करने के लिए उपलब्धि परीक्षण ही सर्वाधिक आवश्यक एवं उपयोगी होता है।

प्रश्न 3
उपलब्धि परीक्षणों के मुख्य प्रकारों का उल्लेख कीजिए। [2014, 15]
उत्तर :
डगलस (Douglas) तथा हालैंड (Holland) ने उपलब्धि परीक्षाओं का विभाजन निम्नवत् किया है

    1. प्रामाणिक परीक्षण (Standardized Tests)।
    2. शिक्षक निर्मित परीक्षण (Teacher Made Tests)।
      • आत्मनिष्ठ परीक्षण (Subjective Tests)।
      • वस्तुनिष्ठ परीक्षण (Objective Tests)।
        • सौखिक परीक्षण (Objective Tests)।
        • र्निबन्धात्मक परीक्षण (Essay Type Tests)।

प्रश्न 4
मौखिक परीक्षण से क्या आशय है?
उत्तर :
उपलब्धि या ज्ञानार्जन परीक्षण का प्राचीनतम तथा सर्वाधिक लोकप्रिय स्वरूप मौखिक परीक्षण रही है। इस प्रकार के परीक्षण के अन्तर्गत परीक्षणकर्ता अर्थात् शिक्षक या अध्यापक द्वारा छात्र/छात्रा से विषय से सम्बन्धित कुछ प्रश्न आमने-सामने बैठकर पूछे जाते हैं। छात्र/छात्रा द्वारा दिए । गए उत्तरों की शुद्धता/अशुद्धता या ठीक/गलत के आधार पर उसके ज्ञान का समुचित मूल्यांकन कर लिया जाता है।

यह सत्य है कि यह एक प्रत्यक्ष परीक्षण है तथा इस परीक्षण के अन्तर्गत परीक्षणकर्ता से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के साथ-ही-साथ कुछ अन्य उपायों द्वारा भी परीक्षादाता के ज्ञान का अनुमान लगा सकता है। परन्तु इस परीक्षण के कुछ दोष भी हैं; यथा-छात्र/छात्रा का घबरा जाना या भयभीत हो जाना, वाणी-दोष या आत्म-विश्वास की कमी के कारण सही उत्तर न दे पानी।

प्रश्न 5
क्रियात्मक परीक्षण से क्या आशय है? [2014, 15]
उत्तर :
छात्र-छात्राओं के उपलब्धि परीक्षण के लिए क्रियात्मक परीक्षणों को भी अपनाया जाता है। इन परीक्षणों के अन्तर्गत विषय से सम्बन्धित कुछ कार्यों को यथार्थ रूप से करवाया जाता है तथा परीक्षमादाता द्वारा किए गए कार्यों को देखकर उनके ज्ञानार्जन का समुचित मूल्यांकन कर लिया जाता है। सामान्य रूप से क्रियात्मक परीक्षणों के अन्तर्गत विषय से सम्बन्धित कुछ प्रश्न मौखिक रूप से भी पूछे जाते हैं। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि सभी विषयों में क्रियात्मक परीक्षणों को सफलतापूर्वक आयोजन नहीं किया जा सकता। केवल प्रयोगात्मक विषयों का परीक्षण ही क्रियात्मक परीक्षण के माध्यम से किया जा सकता है। शुद्ध सैद्धान्तिक विषयों का परीक्षण इस आधार पर नहीं किया जा सकता।

प्रग 6
वस्तुनिष्ठ परीक्षण से क्या आशय है?
उत्तर :
निबन्धात्मक परीक्षण-प्रणाली के दोषों के निवारण के लिए वस्तुनिष्ठ परीक्षण को प्रारम्भ किया गया है। इस परीक्षण के अन्तर्गत ज्ञानार्जन के मूल्यांकन के लिए विषय से सम्बन्धित अनेक ऐसे प्रश्नों को संकलित किया जाता है जिनका एक ही शुद्ध उत्तर होता है। इन प्रश्नों में उत्तरदाता की रुचि, पसन्द, इच्छा या दृष्टिकोण का कोई महत्त्व नहीं होता। वस्तुनिष्ठ परीक्षण एक तटस्थ परीक्षण-प्रणाली है। इसमें पक्षपात या पूर्वाग्रह के लिए कोई गुंजाइश नहीं होती। लेकिन इस परीक्षण के भी कुछ दोष एवं सीमाएँ हैं जैसे कि भाषा-शैली तथा लेखन-क्षमता का मूल्यांकन करना सम्भव नहीं है।

प्रश्न 7
निबन्धात्मक परीक्षण (परीक्षाओं) के कोई पाँच गुण लिखिए। या निबन्धात्मक परीक्षण के क्या लाभ हैं। [2011]
उत्तर :
निबन्धात्मक परीक्षाओं के पाँच गुण निम्नलिखित हैं

  1. इन परीक्षाओं का आयोजन सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
  2. इन परीक्षाओं के प्रश्नों को सुगमता से तैयार किया जा सकता है।
  3. यह विधि समस्त विषयों के लिए उपयोगी है।
  4. इसमें बालक को पूर्ण अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता रहती है।
  5. यह प्रणाली बालकों के लिए भी सुगम होती है, क्योंकि प्रश्न-पत्र समझने में उन्हें विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं पड़ती।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
उपलब्धि परीक्षण से क्या आशय है? (2015)
उत्तर :
छात्रों द्वारा किए गए ज्ञानार्जन के मूल्यांकन के लिए निर्धारित किए गए परीक्षणों को उपलब्धि परीक्षण कही जाती है।

प्रश्न 2
विद्यालय में उपलब्धि परीक्षण का प्रमुख उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर :
विद्यालय में उपलब्धि परीक्षण का प्रमुख उद्देश्य छात्र को अगली कक्षा में भेजने का निर्णय लेना होता है।

प्रश्न 3
उपलब्धि परीक्षण के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
उपलब्धि परीक्षण के मुख्य प्रकार हैं-मौखिक परीक्षण, क्रियात्मक परीक्षण, निबन्धात्मक परीक्षण तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षण।

इन 4
कौन-सा परीक्षण उपलब्धि-परीक्षण का प्राचीनतम प्रकार है?
उत्तर :
मौखिक परीक्षण उपलब्धि-परीक्षण का प्राचीनतम प्रकार है।

प्रश्न 5
किस परीक्षा-प्रणाली में विद्यार्थी प्रश्नों का उत्तर निबन्ध के रूप में देते हैं?
उत्तर :
निबन्धात्मक परीक्षण के अन्तर्गत विद्यार्थी प्रश्नों के उत्तर निबन्ध के रूप में देते हैं।

प्रथम 6
निम्न सूत्र से क्या निकालते हैं। [2009]
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उत्तर :
इस सूत्र से शिक्षा-लब्धि ज्ञात करते हैं।

प्रश्न 7
विश्वसनीयता और वैधता किस प्रकार के परीक्षण की मुख्य विशेषताएँ हैं ?
उत्तर :
विश्वसनीयता और वैधता वस्तुनिष्ठ परीक्षणों की मुख्य विशेषताएँ हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गए विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1
कक्षा-शिक्षण के परिणामस्वरूप किए गए ज्ञानार्जन का मूल्यांकन किया जाता है
(क) बुद्धि परीक्षण द्वारा
(ख) अभिरुचि परीक्षण द्वारा
(ग) उपलब्धि परीक्षण द्वारा
(घ) बिना किसी परीक्षण द्वारा
उत्तर :
(ग) उपलब्धि परीक्षण द्वारा

प्रश्न 2
ज्ञान आयु (A.A.)
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उत्तर :
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प्रश्न 3
निबन्धात्मक परीक्षण का गुण है।
(क) विचारों को प्रस्तुत करने की छूट
(ख) प्रश्न-पत्र का सरलता से निर्माण सम्भव
(ग) समग्र विधि को अपनाया जाता है।
(घ) ये सभी
उत्तर :
(घ) ये सभी

प्रश्न 4
निबन्धात्मक परीक्षण का दोष है।
(क) यान्त्रिक प्रणाली
(ख) संयोग पर निर्भरता
(ग) दोषपूर्ण मूल्यांकन पद्धति
(घ) ये सभी
उत्तर :
(घ) ये सभी

प्रश्न 5
वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का गुण है।
(क) छात्र सन्तुष्ट रहते हैं
(ख) विश्वसनीयता
(ग) समय की बचत
(घ) रटने को प्राथमिकता
उत्तर :
(ख) विश्वसनीयता

प्रश्न 6
वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का गुण नहीं है।
(क) कम लिखना-पढ़ना
(ख) विषय को सम्पूर्ण ज्ञान आवश्यकता है।
(ग) अपनी रुचि एवं दृष्टिकोण से उत्तर देना।
(घ) सुलेख का कोई महत्त्व नहीं
उत्तर :
(ग) अपनी रुचि एवं दृष्टिकोण से उत्तर देना

प्रश्न 7
वस्तुनिष्ठ परीक्षण से हम माप कर सकते हैं। [2015]
(क) उपलब्धि की
(ख) विचार करने की प्रक्रिया की
(ग) तर्कशक्ति की
(घ) लेखन कौशल की
उत्तर :
(ग) तर्कशक्ति की

प्रश्न 8
“उपलब्धि-परीक्षा, बालक की वर्तमान योग्यता अथवा किसी विशिष्ट विषय के क्षेत्र में उसके ज्ञान की सीमा को मापन करती है। यह परिभाषा है
(क) थॉर्नडाइक की
(ख) टरमन की
(ग) गैरीसन की
(घ) बिने की
उत्तर :
(ग) गैरीसन की।

प्रश्न 9
जिस परीक्षा में छात्रों को उत्तर विस्तृत रूप से लिखकर देने पड़ते हैं, उस परीक्षा को कहते हैं
(क) वस्तुनिष्ठ परीक्षा
(ख) मौखिक परीक्षा
(ग) निबन्धात्मक परीक्षा
(घ) प्रयोगात्मक परीक्षा
उत्तर :
(ग) निबन्धात्मक परीक्षा

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