UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवण कुमार
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवण कुमार
कथावस्तु पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1.
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाएँ लिखिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए। (2016)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। (2018, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (2018, 16, 14, 19)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक) संक्षेप में लिखिए। (2018, 16, 15, 13, 11)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में वर्णित बाणविद्ध श्रवण कुमार के करुण विलाप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में नौ सर्ग हैं। खण्डकाव्य की सर्गानुसार संक्षिप्त कथावस्तु इस प्रकार है।
प्रथम सर्ग : अयोध्या (2011)
अयोध्या के गौरवशाली इतिहास में अनेक महान् राजाओं की गौरवगाथा छिपी हुई है। अनेक राजाओं; जैसे-पृथु, इक्ष्वाकु, ध्रुव, सगर, दिलीप, रघु ने अयोध्या को प्रसिद्धि एवं प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचाया। इसी अयोध्या में सत्यवादी हरिश्चन्द्र और गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले राजा भगीरथ ने शासन किया।
राजा रघु के नाम पर ही इस कुल का नाम रघुवंश पड़ा। महाराज दशरथ राजा अज के पुत्र थे। अयोध्या के प्रतापी शासक राजा दशरथ के राज्य में सर्वत्र शान्ति थी। चारों ओर कला-कौशल, उपासना-संयम तथा धर्मसाधना का साम्राज्य था। सभी वर्ग सन्तुष्ट थे। महाराज दशरथ स्वयं एक महान् धनुर्धर थे, जो शब्दभेदी बाण चलाने में सिद्धहस्त थे।
द्वितीय सर्ग : आश्रम (2014, 11)
सरयू नदी के तट पर एक आश्रम था, जहाँ श्रवण कुमार अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता के साथ सुख एवं शान्तिपूर्वक निवास करता था। वह अत्यन्त आज्ञाकारी एवं अपने माता-पिता का भक्त था।
तृतीय सर्ग : आखेट
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आखेट सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए। (2018)
एक दिन गोधूलि बेला में राजा दशरथ विश्राम कर रहे थे, तभी उनके मन में आखेट की इच्छा जाग्रत हुई। उन्होंने अपने सारथी को बुलावा भेजा।
रात्रि में सोते समय राजा ने एक विचित्र स्वप्न देखा कि एक हिरन का बच्चा उनके बाण से मर गया और हिरनी खड़ी आँसू बहा रही है। राजा सूर्योदय से बहुत पहले जगंकर आखेट हेतु वन की ओर प्रस्थान कर देते हैं।
दूसरी ओर श्रवण कुमार माता-पिता की आज्ञा से जल लेने के लिए नदी के तट पर जाता है। जल में पात्र डूबने की ध्वनि को किसी हिंसक पशु की ध्वनि समझकर दशरथ शब्दभेदी बाण चला देते हैं। यह बाण सीधे श्रवण कुमार को जाकर लगता है, वह चीत्कार कर उठता है। श्रवण कुमार की चीत्कार सुन राजा दशरथ चिन्तित हो उठते हैं।
चतुर्थ सर्ग: श्रवण
राजा दशरथ के बाण से घायल श्रवण कुमार को यह समझ में नहीं आता है कि उसे किसने बाण मारा? वह अपने अन्धे माता-पिता की चिन्ता में व्याकुल है कि अब उसके माता-पिता की देखभाल कौन करेगा? वह बड़े दुःखी मन से राजा से कहता है कि उन्होंने एक नहीं, अपितु एक साथ तीन प्राणियों की हत्या कर दी है। उसने राजा से अपने माता-पिता को जल पिलाने का आग्रह किया। इतना कहते ही उसकी मृत्यु हो गई। राजा दशरथ अत्यन्तै दुःखी हुए और स्वयं जल लेकर श्रवण कुमार के माता-पिता के पास गए।
पंचम सर्ग : दशरथ (2012, 10)
राजा दशरथ दुःख एवं चिन्ता में भरकर सिर झुकाए आश्रम की ओर जा रहे थे। वे अत्यन्त आत्मग्लानि एवं अपराध भावना से भरे हुए थे। पश्चाताप, आशंका और भय से भरकर वे आश्रम पहुँच जाते हैं।
घष्ठ सर्ग : सन्देश (मार्मिक प्रसंग) (2013)
श्रवण के माता-पिता अपने आश्रम में पुत्र के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। वे इस बात से आशंकित थे कि अभी तक उनका पुत्र लौटकर क्यों नहीं आया? उसी समय उन्होंने किसी के आने की आहट सुनी। वे राजा दशरथ को श्रवण कुमार ही समझ रहे थे।
जब राजा ने उन्हें जल लेने के लिए कहा, तो उनका भ्रम दूर हुआ। राजा दशरथ ने उन्हें अपना परिचय दिया और जल लाने का कारण बताया। श्रवण की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके वृद्ध माता-पिता अत्यन्त व्याकुल हो उठे।
सप्तम सर्ग : अभिशाप (2017, 14, 13, 12)
सप्तम सर्ग में ऋषि दम्पति के करुण विलाप का चित्रण है। वे आंसू बहाते हुए, विलाप करते हुए नदी के तट पर पहुंचे और विलाप करते-करते अचेत हो जाते हैं। अचेत होते ही राजा दशरथ से कहते हैं कि यद्यपि यह अपराध तुमसे अनजाने में हुआ है, पर इसका दण्ड तो तुम्हें भुगतना ही होगा। वह श्राप देते हैं कि जिस प्रकार पुत्र-शोक में मैं प्राण त्याग रहा हूँ, उसी प्रकार एक दिन तुम भी अपने पुत्र वियोग में प्राण त्याग दोगे।
अष्टम सर्ग : निर्वाण (2014)
श्रवण कुमार के माता पिता द्वारा दिए गए श्राप को सुनकर राजा अत्यन्त दु:खी होते हैं। श्रवण के माता-पिता भी जब रो-रोकर शान्त होते हैं तो उन्हें आप देने का दुःख होता है। अब पिता को आत्मबोध होता है और वे सोचते हैं कि यह तो नियति का विधान था। तभी श्रवण कुमार अपने दिव्य रूप में प्रकट हुआ और उसने अपने माता-पिता को सांत्वना दी। पुत्र शोक में व्याकुल माता पिता भी अपने प्राण त्याग देते हैं।
नवम सर्ग : उपसंहार
राजा दशरथ दुःखी मन से अयोध्या लौट आते हैं। वे इस घटना का वर्णन किसी से नहीं करते हैं, परन्तु राम जब वन को जाने लगते हैं, तो उन्हें उस श्राप का स्मरण हो आता है और वह यह बात अपनी रानियों को बताते हैं।
प्रश्न 2.
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की सामान्य विशेषताओं को लिखिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य एक सफल खण्डकाव्य है। खण्डकाव्य की विशेषताओं के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार के काव्य सौष्ठव (काव्य सौन्दर्य) पर प्रकाश डालिए। (2010)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ एक भावप्रधान (मर्मस्पर्शी, हृदयस्पर्शी घटना की मार्मिकता से पूर्ण) खण्डकाव्य है। सतर्क सोदाहरण प्रमाणित कीजिए। (2013, 11, 10)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताओं को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ उद्घाटित कीजिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ लिखिए। (2017, 14)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में “करुणा और प्रेम की विह्वल मन्दाकिनी प्रवाहित होती है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। (2010)
अथवा
सिद्ध कीजिए कि ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में करुण रस की प्रधानता है।
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य एक पौराणिक कथानक पर आधारित है। कवि ने इसमें अपनी काव्यात्मक प्रतिभा का प्रयोग अत्यन्त कुशलता से किया है। यह खण्डकाव्य भावपक्षीय एवं कलापक्षीय दोनों दृष्टियों से उत्तम विशेषताओं को धारण किए हुए है, जिनका विवेचन इस प्रकार है।
भावपक्षीय विशेषताएँ श्रवण कुमार खण्डकाव्य की भावपक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
- अन्तर्मुखी भावों की अभिव्यक्ति श्रवण कुमार खण्डकाव्य में मार्मिक स्थलों की कुशल अभिव्यक्ति की गई है। स्वप्न देखते समय, श्रवण कुमार को तीर से मरते देखकर, अभिशाप सर्ग में दशरथ का पश्चाताप एवं दु:ख प्रकट हुआ है। तीर लगने के बाद श्रवण कुमार की मन:स्थिति का चित्रण कवि ने बड़ी कुशलता से किया हैं। कवि ने मन:विश्लेषण को स्वाभाविक अभिव्यक्ति देने का प्रयत्न किया है।
- भारतीय संस्कृति का गौरव गान प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि ने भारतीय संस्कृति का गौरवगान किया है। मानव के आदर्शों एवं प्राचीन स्वरूप के गौरव का दर्शन कराना ही इस खण्डकाव्य का मूल उद्देश्य है। इसकी अभिव्यक्ति में कवि ने अपनी पूर्ण प्रतिभा का परिचय दिया हैं।
- रस योजना इस खण्डकाव्य का प्रमुख रस करुण है। करुण रस का सहज स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। कवि ने रस योजना में अपनी प्रतिभा का सफल प्रयोग किया हैं। “निर्मम एक बाण ने उनसे, छीन लिया उनका वात्सल्या”
कलापक्षीय विशेषताएँ ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कलापक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
- भाषा-शैली प्रस्तुत खण्डकाव्य की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक खड़ी बोली है। इसमें तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। पारिभाषिक और समसामयिक शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। इसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी दर्शनीय है। शैली की दृष्टि से इतिवृत्तात्मक, चित्रात्मक, आलंकारिक, छायावादी आदि शैलियों के दर्शन होते हैं। विभिन्न शैलियों का कुशल प्रयोग तो हुआ ही है, साथ ही अभिव्यंजना शक्ति के पूर्ण स्वरूप के दर्शन भी होते हैं। (2011, 10)
- अलंकार योजना प्रस्तुत खण्डकाव्य में उपमान-विधान के लिए विस्तृत भावभूमि का चयन किया गया है। श्लेष, यमक, वक्रोक्ति, चीप्सा, पुनरुक्ति, विरोधाभास, अनुप्रास आदि शब्दालंकारों के साथ ही उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रतीप, व्यतिरेक, उदाहरण, सन्देह, यथासंख्य, परिसंख्या आदि अलंकारों का प्रयोग भी किया गया है।
- छन्द योजना प्रधान छन्द ‘वीर’ है। 16, 15 पर यति तथा अन्त में गुरु, लघु का प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं 30 मात्रा वाले छन्द भी आ गए हैं। ऐसे मात्र 3 छन्द हैं और छन्द के दृष्टिकोण से यह सामान्य बात है। अन्तिम तीन छन्दों में ताटक और लावनी छन्दों का भी प्रयोग हुआ है।
- उद्देश्य डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित प्रस्तुत खण्डकाव्य का उद्देश्य यह है कि पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंगी युवा पीढ़ी जीवन मूल्यों से दूर न हो, बच्चे अपने कर्तव्यों से विमुख न हों, अपितु वे बड़ों का यथोचित सम्मान करे। आज युवा पीढ़ी में अनैतिकता, उद्दण्डता और अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है, वह अपने गुरुजनों और माता-पिता के प्रति श्रद्धारहित होती जा रही है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि युवा वर्ग में त्याग, सहिष्णुता, दया, परोपकार, क्षमाशीलता, उच्च संस्कार, भावात्मकता, एकता आदि नैतिक आदशों एवं जीवन मूल्यों की प्राण-प्रतिष्ठा की जाए।
कवि ने इस खण्डकाव्य के माध्यम से युवा वर्ग को श्रवण कुमार की भाँति बनने की प्रेरणा दी है। उनकी भाँति वह भी अपने जीवन में, अपने आचरण में इन आदर्शों को उतार सके और गर्व से यह कह सके कि ‘मुझे बाणों की चिन्ता नहीं सता रही है, मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है, लेकिन मुझे अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता की चिन्ता है कि मेरे बाद उनका क्या होगा?
प्रश्न 3.
श्रवण कुमार खण्डकाव्य के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए। (2016)
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का प्रमुख पात्र श्रवण कुमार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस प्रमुख पात्र की चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डालना ही कवि को प्रमुख उद्देश्य हैं। खण्डकाव्य का मुख्य उद्देश्य होने के कारण इसका शीर्षक ‘श्रवण कुमार’ रखा गया है, जो कथनानुसार पूर्णतः उपयुक्त प्रतीत होता है। ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व मार्मिक प्रसंग दशरथ का श्रवण कुमार के पिता द्वारा शापित होना है, परन्तु इस प्रसंग की अभिव्यक्ति का भाव श्रवण कुमार के व्यक्तित्व से ही मद्ध है। खण्डकाव्य की कथावस्तु के अनुसार दशरथ का चरित्र सक्रियता की दृष्टि से सर्वाधिक है, परन्तु दशरथ के चरित्र के माध्यम से भी श्रवण कुमार के चरित्र की विशेषताएँ ही प्रकाशित हुई हैं। अत: इस खण्डकाव्य का मुख्य पात्र श्रवण कुमार ही है और ‘श्रवण कुमार’ शीर्षक उपयुक्त है।
चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 4.
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रवण कुमार का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक का चरित्रांकन/ चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र (नायक) का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के श्रवण कुमार की मातृ-पितृभक्ति पर प्रकाश डालिए। (2017, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के नायक की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। (2016)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रवण कुमार की चरित्रगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2016)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के नायक श्रवण कुमार का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2015, 14, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2012)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में श्रवण किन आदर्शों का प्रतीक है? (2010)
अथवा
“चरित्र ही व्यक्ति को महान् बनाता है।” इस कथन के सन्दर्भ में श्रवण कुमार के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए। (2011)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के वर्ण्य-विषय की वर्तमान सन्दर्भो में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिए। (2013)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ का चरित्र-चित्रण करते हुए यह बताइए कि वह भारतीय संस्कृति के किन आदर्शों का प्रतीक है? (2011)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ में वर्णित आदर्श चरित्र से आज के परिप्रेक्ष्य में क्या शिक्षा मिलती है? (2010)
अथवा
श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के प्रमुख नायक/पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2018, 14)
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का नायक ऋषि पुत्र श्रवण कुमार हैं। वह सरयू के तट पर अपने अन्धे माता-पिता के साथ एक आश्रम में रहता है। कवि ने श्रवण कुमार के चरित्र को बड़ी कुशलतापूर्वक चित्रित किया है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
- मातृ-पितृभक्त श्रवण कुमार एक आदर्श मातृ-पितृभक्त पुत्र है। वह हमेशा अपने माता-पिता की सेवा करता है। वह अपने माता-पिता का एकमात्र सहारा है। वह उन्हें काँवड़ में बिठाकर विभिन्न तीर्थस्थानों की यात्राएँ कराता है। मृत्यु के समीप पहुंचने पर भी उसे केवल अपने माता-पिता को ही चिन्ता सताती है।
- सत्यवादी श्रवण कुमार सत्यवादी है। जब राजा दशरथ ब्राह्मण की सम्भावना प्रकट करते हैं, तो वह उन्हें साफ-साफ बता देता है कि वह ब्रह्म कुमार नहीं है। उसके पिता वैश्य और माता शूद्र हैं।
- क्षमाशील श्रवण कुमार स्वभाव से ही बड़ा सरल है। उसके मन में किसी के प्रति ईष्र्या या द्वेष का भाव नहीं है। दशरथ द्वारा छोड़े गए बाण से आहत होने पर भी उसके मन में किसी प्रकार का क्रोध उत्पन्न नहीं होता है, इसके विपरीत वह उनका सम्मान ही करता है।
- भाग्यवादी श्रवण कुमार भाग्य पर विश्वास करता है अर्थात् जो भाग्य में होता है, वही मनुष्य को प्राप्त होता है। मनुष्य को भाग्य के अनुसार ही फल मिलता है। उसे कोई टाल नहीं सकता, यही जीवन का अटल सत्य है। दशरथ द्वारा बाण लगने में वह उन्हें कोई दोष नहीं देता इसे वह भाग्य का ही खेल मानता है।
- आत्मसन्तोषी श्रवण कुमार आत्मसन्तोषी है। उसे भोग व ऐश्वर्य की कोई कामना नहीं है। उसके मन में किसी वस्तु के प्रति कोई लोभ व लालच नहीं है। वह सन्तोषी जीव हैं। उसके मन में किसी को पीड़ा पहुँचाने का भाव ही जाग्रत नहीं होता-
वन्य पदार्थों से ही होता,
रहता, मम जीवन-निर्वाह।
ऋषि हूँ, नहीं किसी को पीड़ा,
पहुँचाने की उर में चाह।।” - भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी वह भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी है। वह माता पिता, गुरु और अतिथि को ईश्वर मानकर उनकी पूजा करता है। अतः कहा जा सकता है कि श्रवण कुमार के चरित्र में सभी उच्च आदर्श विद्यमान हैं। वह मातृ-पितृभक्त है, तो साथ ही क्षमाशील, उदार, सन्तोषी और भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी भी है। वह खण्डकाव्य का नायक है।
प्रश्न 5.
‘श्रवण कुमार’ के आधार पर महाराज दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17, 14, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर दशरथ की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2009)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के ‘अभिशाप’ सर्ग के आधार पर राजा दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2010)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ के पंचम और सप्तम् सर्गों में दशरथ के अन्तर्द्वन्द्र (मनोभावों) पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
“दशरथ का अन्तर्द्वन्द्र श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की अनुपम निधि है।” इस उक्ति के आलोक में दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2011)
उत्तर:
हों, शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में दशरथ का चरित्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। वह एक योग्य शासक एवं आखेट प्रेमी हैं। वह रघुवंशी राजा अज के पुत्र हैं। सम्पूर्ण खण्डकाव्य में वह आद्यन्त विद्यमान हैं। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं।
- योग्य शासक राजा दशरथ एक योग्य शासक हैं। वह अपनी प्रजा की देखभाल पुत्रवत रूप में करते हैं। उनके राज्य में प्रजा अत्यन्त सुखी है। चोरी का नामोनिशान नहीं है। उनके शासन में चारों ओर सुख-समृद्धि का बोलबाला है। वह विद्वानों का यथोचित सत्कार करते हैं।
- उच्चकुल में उत्पन्न राजा दशरथ का जन्म उच्च कुल में हुआ था। पृथु, त्रिशंकु, सगर, दिलीप, रघु, हरिश्चन्द्र और अज जैसे महान् राजा इनके पूर्वज थे।
- आखेट प्रेमी राजा दशरथ आखेट प्रेमी हैं, इसलिए सावन के महीने में अब चारों ओर हरियाली छा जाती है, तब उन्होंने शिकार करने का निश्चय किया। वे शब्दभेदी बाण चलाने में अत्यन्त कुशल हैं।
- अन्तर्द्वन्द्व से परिपूर्ण शब्दभेदी बाण से जब श्रवण कुमार की मृत्यु हो जाती है, तो वह सोचते हैं कि मैंने यह पाप कर्म क्यों कर डाला? यदि मैं थोड़ी देर और सोया रहता या रथ का पहिया टूट जाता या और कोई रुकावट आ जाती, तो मैं इस पाप से बच जाता। उन्हें लगता है कि मैं अब श्रवण कुमार के अन्धे माता-पिता को कैसे समझाऊँगा, कैसे उन्हें तसल्ली दूंगा? दुःख तो इस बात का है कि अब युगों-युगों तक उनके साथ यह पाप कथा चलती रहेगी।
- उदार वे अत्यन्त उदार हैं। श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा दिए गए श्राप को वह चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं। किसी अन्य को वह इस बारे में बताते नहीं हैं, पर मन ही मन यह पीड़ा उन्हें खटकती रहती हैं।
- विनम्र एवं दयालु वह अत्यन्त विनम्र एवं दयालु हैं। अहंकार उनमें लेशमात्र भी नहीं है। वे किसी का दुःख नहीं देख सकते। श्रवण कुमार को जब उनका बाण लगता है, तो वे अत्यन्त चिन्तित हो उठते हैं। वह आत्मग्लानि से भर उठते हैं और उनके माता-पिता के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लेते हैं। इस तरह, राजा दशरथ का चरित्र महान् गुणों से परिपूर्ण है। प्रायश्चित और आत्मग्लानि की अग्नि में तपकर वे शुद्ध हो जाते हैं।
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