UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi नाटक Chapter 3 गरुड़ध्वज

By | June 2, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi नाटक Chapter 3 गरुड़ध्वज

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi नाटक Chapter 3 गरुड़ध्वज

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
‘गरुड़ध्वज’ नाटक का कथानक संक्षेप में लिखिए। (2016)
अथवा
‘गरुड़वज़’ नाटक की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए। (2016)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के कथानक पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘गरुड़ध्वज़”नाटक के प्रथम अंक की कथा का सार अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
किसी एक अंक की कथा पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए। (2017, 10)
उत्तर:
प, लमीनारायण मिश्र द्वारा रचित नाटक ‘गरुड़ध्वज’ के प्रथम अंक की कहानी का प्रारम्भ विदिशा में कुछ प्रहरियों के वार्तालाप से होता है। पुष्कर नामक सैनिक, सेनापति विक्रममित्र को महाराज शब्द से सम्बोधित करता है, तब नागसेन उसकी भूल की ओर संकेत करता है। वस्तुतः विक्रममित्र स्वयं को सेनापति के रूप में ही देखते हैं और शासन का प्रबन्ध करते हैं। विदिशा शृंगवंशीय विक्रममित्र की राजधानी है, जिसके वह योग्य शासक हैं। उन्होंने अपने साम्राज्य में सर्वत्र सुख-शान्ति स्थापित की हुई है और वृहद्रथ को मारकर तथा गरुड़ध्वज की शपथ लेकर राज-काज सँभाला है।

काशीराज की पुत्री वासन्ती मलयराज की पुत्री मलयवती को बताती है कि उसके पिता उसे किसी वृद्ध यवन को सौंपना चाहते थे, तब सेनापति विक्रममित्र ने ही उसका उद्धार किया था। वासन्ती एकमोर नामक युवक से प्रेम करती हैं और वह आत्महत्या करना चाहती है, लेकिन विक्रममित्र की सतर्कता के कारण वह इसमें सफल नहीं हो पाती।

श्रेष्ठ कवि एवं योद्धा कालिदास विक्रममित्र को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा के कारण भीष्म पितामह’ कहकर सम्बोधित करते हैं और इस प्रसंग में एक कथा सुनाते हैं। 87 वर्ष की अवस्था हो जाने के कारण विक्रममित्र वृद्ध हो गए हैं। वे वासन्ती और एकमोर को महल में भेज देते हैं। मलयवती के कहने पर पुष्कर को इस शर्त पर क्षमादान मिल जाता है कि उसे राज्य की ओर से युद्ध लड़ना होगा। उसी समय साकेत से एक यवन-श्रेष्ठि की कन्या कौमुदी का सेनानी देवभूति द्वारा अपहरण किए जाने तथा उसे लेकर काशी चले जाने की सूचना मिलती है। सेनापति विक्रममित्र कालिदास को काशी पर आक्रमण करने के लिए भेजते हैं और यहीं पर प्रथम अंक समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 2.
‘गरुड़ध्वज’ के द्वितीय अंक का कथा सार लिखिए। (2017, 14, 12, 11, 10)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के दूसरे सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए। (2018)
उत्तर:
नाटक का द्वितीय अंक राष्ट्रहित में धर्म-स्थापना के संघर्ष का है। इसमें विक्रममित्र की दृढ़ता एवं वीरता का परिचय मिलता है, साथ ही उनके कुशल नीतिज्ञ एवं एक अच्छे मनुष्य होने का भी बोध होता है।

इसमें मान्धाता सेनापति विक्रममित्र को अतिलिक के मन्त्री हलोघर के आगमन की सूचना देता है। कुरु प्रदेश के पश्चिम में तक्षशिला राजधानी वाला यवन प्रदेश का शासक शृंगवंश से भयभीत रहता है। उसका मन्त्री हलधर भारतीय संस्कृति में आस्था रखता था

वह राज्य की सीमा को वार्ता द्वारा सुरक्षित करना चाहता है। विक्रममित्र देवभूति को पकड़ने के लिए कालिदास को काशी भेजने के बाद बताते हैं कि कालिदास का वास्तविक नाम मेघरुद्र था, जो 10 वर्ष की आयु में ही बौद्ध भिक्षुक बन गया था। उन्होंने उसे विदिशा के महल में रखा और उसका नया नाम कालिदास रख दिया। काशी का घेरा डालकर कालिदास काशीराज के दरबार के बौद्ध आचार्यों को अपनी विद्वत्ता से प्रभावित कर लेते हैं तथा देवभूति एवं काशीराज को बन्दी बनाकर विदिशा ले आते हैं। विक्रममित्र एवं हलधर के बीच सन्धि वार्ता होती है, जिसमे हलधर विक्रममित्र की सारी शर्ते स्वीकार कर लेता है तथा अतिलिक द्वारा भेजी गई मॅट विक्रममित्र को देता हैं। भेट में स्वर्ण निर्मित एवं रत्नजड़ित गरुड़ध्वज भी हैं। वह विदिशा में एक शान्ति स्तम्भ का निर्माण करवाता है। इसी समय कालिदास के आगमन पर वासन्ती उसका स्वागत करती है तथा वीणों पर पड़ी पुष्पमाला कालिदास के गले में डाल देती है। इसी समय द्वितीय अंक का समापन हो जाता है।

प्रश्न 3.
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के तृतीय अंक की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। (2016)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के तृतीय अंक की कथा संक्षेप में लिखिए। (2014, 11)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के तृतीय अंक की कथा अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। (2018)
उत्तर:
नाटक के तृतीय अंक की कथा अवन्ति में घटित होती है। गर्दभिल्ल के वंशज महेन्द्रादित्य के पुत्र कुमार विषमशील के नेतृत्व में अनेक चोरों ने शकों के हाथों से मालवा को मुक्त कराया। अवन्ति में महाकाल के मन्दिर पर गरुध्वज फहरा रहा है तथा मन्दिर का पुजारी वासन्ती एवं मलयवती को बताता है कि युद्ध की सभी योजनाएं इसी मन्दिर में बनी हैं। राजमाता से विषमशील के लिए चिन्तित न होने को कहा जाता है, क्योंकि सेना का संचालन स्वयं कालिदास एवं मान्धाता कर रहे हैं। काशीराज अपनी पुत्री वासन्ती का विवाह कालिदास से करना चाहते हैं, जिसे विक्रममित्र स्वीकार कर लेते हैं। विषमशील का राज्याभिषेक किया जाता है और कालिदास को मन्त्रीपद सौंपा जाता है। राजमाता जैनाचार्यों को क्षमा-दान देती हैं और जैनाचार्य अवन्ति का पुनर्निर्माण करते हैं।

कालिदास की मन्त्रणा से विषमशील का नाम आचार्य विक्रममित्र के नाम के पूर्व अंश ‘विक्रम’ तथा पिता महेन्द्रादित्य के नाम के पश्च अंश ‘आदित्य’ को मिलाकर विमादित्य’ रखा जाता है। विक्रममित्र काशी एवं विदिशा राज्यों का भार भी विक्रमादित्य को सौंप कर स्वयं संन्यासी बन जाते हैं। कालिदास अपने स्वामी ‘विक्रमादित्य’ के नाम पर उसी दिन से ‘विक्रम संवत्’ का प्रवर्तन करते हैं। नाटक की कथा यहीं पर समाप्त हो जाती हैं।

प्रश्न 4.
‘गरुड़ध्वज’ नाटक राष्ट्र की एकता और संस्कृति का संदेश अपनी घटनाओं में अभिव्यक्त करता है। इस कथन को सोदाहरण सिद्ध कीजिए। (2018)
अथवा
‘राष्ट्रीय एकता और समरसता की दृष्टि से गरुड़ध्वाज नाटक सफल है। स्पष्ट कीजिए। (2018)
अथवा
‘गरुड़ध्वज़ नाटक राष्ट्रीय एकता एवं संस्कृति का संदेश देता है।’ इस कथना के आधार पर इस नाटक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
गरुड़ध्वज़’ नाटक के कथानक में न्याय और राष्ट्रीय एकता पर विचार व्यक्त कीजिए। (2015)
अथवा
‘गरुड़ध्वज़’ नाटक के शीर्षक की सार्थकता को स्पष्ट कीजिए। (2013)
अथवा
‘गरुड़ध्वज़’ नाटक में ‘राष्ट्र की एकता और संस्कृति की गरिमा’ का सन्देश है। नाटक की इस विशेषता पर प्रकाश डालिए। (2014)
उत्तर:
पण्डित लक्ष्मीनारायण मिश्र द्वारा रचित नाटक ‘गरुड़ध्वज’ में ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के भारतीय इतिहास के युग के एक महत्त्वपूर्ण स्वरूप को चित्रित किया गया है, जो भारत की राष्ट्रीय एकता और प्राचीन संस्कृति को प्रस्तुत करता है। इसमें तत्कालीन न्यायिक-व्यवस्था के स्वरूप को भी दर्शाया गया है।

राष्ट्रीय एकता और भारतीय संस्कृति प्रस्तुत नाटक में मगध, साकेत, अवन्ति एवं मलय देश के एकीकरण की घटना वस्तुत: सुदृढ़ भारत राष्ट्र के निर्माण, उसकी एकता एवं अखण्डता का प्रतीक है। नाटक में प्रस्तुत किए गए विक्रममित्र एवं विषमशील के चरित्र सशक्त भारत के निर्माता एवं राष्ट्रीय एकता व अखण्डता के सन्देशवाहक हैं। नाटककार ने इसमें धार्मिक संकीर्णता एवं स्वार्थपूर्ण भावनाओं के कारण अध:पतन की ओर जा रही देश की स्थिति की ओर ध्यान आकृष्ट किया है तथा इसके माध्यम से वह राष्ट्र की एकता को सुदृढ़ करने का सन्देश भी देता है। नाटक के नायक विक्रममित्र वैदिक संस्कृति एवं भागवत् धर्म के उन्नायक हैं। विष्णु भगवान का उपासक होने के कारण उनका राजचिह्न गरुड़ध्वज है, जो उनके लिए सर्वाधिक पवित्र एवं पूज्य है। वह सर्वत्र सनातन भागवत् धर्म की ध्वजा फहरते देखना चाहते हैं। इस दृष्टि से नाटक का शीर्षक ‘गरुड़ध्वज’ भी पूर्णतः सार्थक सिद्ध होता है।

न्यायिक-व्यवस्था प्राचीन भारत की न्यायिक व्यवस्था अपनी निष्पक्षता के लिए प्रसिद्ध ही है। अपने परिजनों एवं मित्रों को भी किसी अपराध के लिए समान रूप से कठोर दण्ड दिया जाता था। नाटक के प्रथम अंक की घटना इसका उत्तम उदाहरण है, जिसमें शुगवंश के कुमार सेनानी देवभूति द्वारा श्रेष्ठ अमोघ की कन्या कौमुदी का अपहरण विवाह-मण्डप से कर लिए जाने के समाचार से विक्रममित्र अत्यन्त दुःखी हो जाते हैं तथा अपने सैनिकों को तुरन्त काशी का घेरा डालने एवं देवभूति को पकड़ने का आदेश देते हैं। कालिदास के नेतृत्व में भेजी गई सेना उसे बन्दी बनाकर विक्रममित्र के सामने प्रस्तुत कर देती हैं। आंग साम्राज्य में ही शासक हे देवभूति के प्रति किया गया व्यवहार तत्कालीन निष्पक्ष एवं सुदृढ़ न्यायिक-व्यवस्था को स्पष्ट प्रमाण है।

प्रश्न 5.
‘गरुड़ध्वज़’ नाटक एक ऐतिहासिक नाटक है। समीक्षा कीजिए। (2016)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक एक ऐतिहासिक नाटक है। कथन की समीक्षा कीजिए। (2016)
अथवा
‘गरुड़ध्वज़’ नाटक के कथानक में ऐतिहासिकता एवं काल्पनिकता का अद्भुत सामंजस्य है। स्पष्ट कीजिए। (2016)
अथवा
‘नाट्यकला की दृष्टि से ‘गरुड़ध्वज’ की समीक्षा कीजिए। अथना ‘गरुड़ध्वज’ नाटक की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2018, 17, 14, 12)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की कथावस्तु को संक्षेप में लिखिए। (2014, 13, 12, 11, 10)
उत्तर:
नाट्यकला की दृष्टि से पण्डित लक्ष्मीनारायण मिश्र की रचना ‘गरुड़ध्वज’ एक उत्कृष्ट कोटि की रचना है, जिसका तात्विक विवेचन निम्नलिखित है।

‘गरुड़ध्वज’ नाटक की कथावस्तु ऐतिहासिक है, जिसमें इंसा से एक शताब्दी पूर्व के प्राचीन भारत का सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक परिवेश चित्रित किया गया है। प्रथम अंक में विक्रममित्र के चरित्र, काशीराज का अनैतिक चरित्र तथा वासन्ती की असन्तुलित मानसिक दशा के साथ ही समाज में बौद्ध भिशुओं द्वारा किए जा रहे अनाचार का चित्रण किया गया हैं। इसमें विदेशियों के आक्रमण तथा बौद्ध धर्मावलम्बियों द्वारा राष्ट्रहित को तिलांजलि देकर उनकी सहायता किए जाने को वर्णित एवं चित्रित किया गया है।

दूसरे अंक में राष्ट्रहित में किए जाने वाले धर्म की स्थापना से सम्बन्धित संघर्ष को दर्शाया गया है। तीसरे अंक के अन्तर्गत युद्ध में विदेशियों की पराजय, कालकाचार्य एवं काशीराज का पश्चाताप, विक्रममित्र की उदारता तथा आक्रमणकारी हूणों की क्रूर जातिगत प्रकृति को चित्रित किया गया है। इस नाटक का कथानक राज्य के संचालन, धर्म, अहिंसा एवं हिंसा के वास्तविक स्वरूप पर प्रकाश डालता है। नाटक में वर्णित घटनाओं को तत्कालीन समय की समस्याओं से जोड़ने के लिए नाटककार ने नाटक में काल्पनिकता का सुन्दर प्रयोग किया है। उसने धार्मिक संकीर्णता व कट्टरता को त्यागकर उदार व्यक्तित्व का निर्माण करके, देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने, राष्ट्रीय एकता को बनाने व महिलाओं का सम्मान करने इत्यादि उद्देश्यों को ऐतिहासिक पात्रों के संवादों में अपनी कल्पनाशक्ति का प्रयोग करके उनसे कहलवाया है, जिसने नाटक की रोचकता के स्तर में वृद्धि कर दी है और नाटक को बोझिल होने से बचाया है।

देशकाल और वातावरण

प्रस्तुत नाटक में देशकाल एवं वातावरण के तत्त्व का निर्वाह समुचित ढंग से हुआ है। ईसा पूर्व की सांस्कृतिक, धार्मिक एवं राजनीतिक हलचलों का सुन्दर एवं उचित प्रस्तुतीकरण नाटक में हुआ है। नाटककार ने तत्कालीन सामाजिक वातावरण का चित्रण बड़े ही जीवन्त ढंग से किया है। लगता है जैसे तत्कालीन समाज आँखों के सामने जी उठा है। तत्कालीन समाज में राजमहल, युद्ध भूमि, पूजागृह, सभामण्डल आदि का वातावरण अत्यन्त कुशलता के साथ चित्रित हुआ है। नाम, स्थान एवं वेशभूषा के अन्तर्गत भी देशकाल एवं वातावरण का सुन्दर सामंजस्य देखने को मिलता है। उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर सारांश स्वरूप कहा जा सकता है कि नाटक में ऐतिहासिक तथ्यों का व घटनाओं का भली-भाँति उपयोग किया है, जिनके कारण इसे ऐतिहासिक नाटकों की श्रेणी में सहजता से रखा जा सकता है। साथ ही नाटककार द्वारा काल्पनिकता का प्रयोग करने से नाटक में रोचकता उत्पन्न हुई है।

प्रश्न 6.
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की रचना नाटककार ने किन उद्देश्यों से प्रेरित होकर की है? (2014, 13, 12, 11, 10)
उत्तर:
ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के भारतीय इतिहास पर आधारित नाटक ‘गरुड़ध्वज’ में आदियुग या प्राचीन भारत के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्वरूप को उजागर करने का प्रयास किया गया है। इसमें धार्मिक संकीर्णताओं एवं स्वार्थों के कारण विघटित होने वाले देश की एकता एवं नैतिक पतन की ओर नाटककार ने ध्यान आकृष्ट किया है। इसके अतिरिक्त, वह राष्ट्र को एकता के सूत्र में भी बाँधने का सन्देश भी देता है। इस नाटक के निम्नलिखित उद्देश्य है—

  1. नाटककार धार्मिक संकीर्णता एवं कट्टरता से बाहर निकलकर जन-कल्याण की ओर उन्मुख होता है।
  2. नाटककार स्पष्ट सन्देश देना चाहता है कि देश की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
  3. नाटक का मूल स्वर धार्मिक भावना की उदारता में निहित है।
  4. राष्ट्रीय एकता एवं जनवादी विचारधारा का समर्थन किया गया है।
  5. नारी के शील एवं सम्मान की रक्षा के लिए प्रेरणा दी गई है।
  6. नाटक में स्वस्थ गणराज्य की स्थापना पर बल दिया गया है।
  7. राष्ट्रहित हेतु एवं अत्याचारों का विरोध करने के उद्देश्य से शस्त्रों के प्रयोग को उचित ठहराया गया है।

प्रश्न 7.
‘गरुड़ध्वज’ की अभिनेयता या रंगमंचीयता पर प्रकाश डालिए। (2012, 11)
उत्तर:
‘गरुड़ध्वज’ नाटक में कुल तीन अंक हैं, जिन्हें सुगमतापूर्वक मंच पर अभिनीत किया जा सकता है। इसमें पात्रों एवं चरित्रों की वेशभूषा का प्रबन्ध भी सहज है, जिसके कारण किसी प्रकार की कठिनाई या समस्या का सामना नहीं करना पड़ता हैं। प्रस्तुत नाटक की रंगमंचीयता के सम्बन्ध में सारी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं, लेकिन एक समस्या नाटक की भाषा की दुरूहता एवं इसके पात्रों के कठिन नामों को लेकर हैं, जो कहीं-कहीं सफल संवाद सम्प्रेषण में कठिनाई उत्पन्न करती हैं, लेकिन नाटक की ऐतिहासिकता को ध्यान में रखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रामाणिकता को बनाए रखने तथा, देशकाल एवं वातावरण के. सजीव चित्रण के लिए ऐसा करना आवश्यक था।

प्रश्न 8.
संवाद योजना (कथोपकथन) की दृष्टि से ‘गरुड़ध्वज़’ नाटक की विवेचना कीजिए। (2011, 10)
उत्तर:
किसी भी नाटक का सबसे सबल तत्त्व उसकी संवाद योजना होती है। संवादों के द्वारा ही पात्रों का चरित्र चित्रण किया जाता है। इस दृष्टि से नाटककार ने संवादों का उचित प्रयोग किया है। प्रस्तुत नाटक के संवाद सुन्दर, सरल, संक्षिप्त तथा पात्रों के चरित्र एवं व्यक्तित्व के अनुकूल हैं। प्रायः सभी संवाद सम्बन्धित पात्रों के मनोभावों को प्रकट करने में सफल रहे हैं। इसमें । तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप संवादों की रचना की गई है। संक्षिप्त संवाद अत्यधिक प्रभावशाली बन पड़े हैं।

जैसे–
वासन्ती— ………. नहीं ………. नहीं, बस दो शब्द पूछूगी कवि! लौट आओ ……….
कालिदास–(विस्मय से) क्या है राजकुमारी?
वासन्ती–यहाँ आइए! आज मैं कुमार कार्तिकेय का स्वागत करूगी। उनका वाहन मोर भी यहीं है।
संवादों में कहीं-कहीं हास्य, व्यंग्य, विनोद तथा संगीतात्मकता का पुट भी मिलता है।

प्रश्न 9.
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की भाषा-शैली की दृष्टि से समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
लक्ष्मीनारायण मिश्र द्वारा रचित नाटक ‘गरुड़ध्वज’ की भाषा सुगम, सहज एवं सुपरिचित है। हालाँकि इसकी भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है, लेकिन पाठक की। सुबोधता का लेखक ने पर्याप्त ध्यान रखा है। सुबोध एवं सहज शैली में लिखे गए इस नाटक में मुहावरों एवं लोकोक्तियों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है। भाषा में । कहीं-कहीं क्लिष्टता हैं, लेकिन वह ऐतिहासिकता को देखते हुए उचित प्रतीत होता है। नाटक की भाषा की स्वाभाविकता पाठकों को अत्यधिक आकर्षित करती है; जैसे-“उसके भीतर जो देवी अंश था, उसी ने उसे कालिदास बना दिया। उसकी । शिक्षा और संस्कार में मैं प्रयोजन मात्र बना था। उसका पालन मैंने ठीक इसी तरह। किया, जैसे यह मेरे अंश का ही नहीं, मेरे इस शरीर का हो।’

पात्र एवं चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 10.
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के नायक की चारित्रिक विशेषताओं को संक्षेप में लिखिए। (2018)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के आधार पर विक्रममित्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के प्रमुख पात्र के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2016)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के मुख्य पात्र का चरित्रांकन/चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 16)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के प्रमुख पुरुष पात्र (नायक) विक्रममित्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2014, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2017)
उत्तर:
ऐतिहासिक नाटक ‘गरुड़ध्वज’ के नायक तेजस्वी व्यक्तित्व वाले आचार्य विक्रममित्र हैं। नाटक में उनकी आयु 87 वर्ष दर्शायी गई है। उनके चरित्र एवं व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ है-

  1. तेजस्वी एवं ओजस्वी व्यक्तित्व आचार्य विक्रममित्र के तेजस्वी एवं ओजस्वी व्यक्तित्व के कारण ही मन्त्री हलोधर विक्रममित्र से आतंकित दिखाई देता है।
  2. अनुशासनप्रियता स्वयं अनुशासित जीवन जीने वाले विक्रममित्र अन्य लोगों को भी अनुशासित रखने के पक्ष में है। इसी अनुशासन का डर पुष्कर में उनके द्वारा ‘महाराज’ शब्द का प्रयोग करने के समय दिखाई देता है।
  3. देशभक्ति महान् देशभक्त विक्रममित्र का सम्पूर्ण जीवन राष्ट्रीय गौरव को बनाए रखने के लिए समर्पित था। वे राष्ट्रहित के लिए शास्त्र एवं शस्त्र दोनों का प्रयोग करते हैं। देशभक्ति की भावना के कारण ही उन्होंने अनेक राज्यों को संगठित किया।
  4. भागवत् धर्म के उन्नायक विक्रममित्र भागवत् धर्म के अनुयायी थे तथा जीवनभर उसके प्रति समर्पित रहे। इसी कारण उन्हें पूजा-पाठ एवं यज्ञ-अनुष्ठान विशेष रूप से प्रिय थे।
  5. दृढ़प्रतिज्ञ विक्रममित्र एक दृढ़प्रतिज्ञ शासक थे। भीष्म पितामह के समान आजीवन ब्रह्मचारी रहने की अपनी प्रतिज्ञा को उन्होंने दृढ़ता के साथ पूरा किया।
  6. न्यायप्रियता विक्रममित्र एक न्यायप्रिय शासक हैं, जो न्याय के सामने सभी को समान समझते हैं, चाहे वह शुगवंश से जुड़ा हुआ देवभूति ही क्यों न हो? वे न्याय के सम्बन्ध में किसी भी तरह का पक्षपात नहीं होने देते।
  7. विनम्रता एवं उदारता विक्रममित्र एक अनुशासनप्रिय एवं दृढ़ प्रकृति के शासक होने के साथ-साथ विनम्र एवं उदार व्यक्ति भी हैं। वे अपनी विनम्रता एवं उदारता का अनेक जगह प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
  8. जनसेवक विक्रममित्र स्वयं को सत्ता का अधिकारी या सत्तासम्पन्न शासक न मानकर जनसेवक ही समझते हैं। यही कारण है कि वह ‘महाराज’ कहलाना पसन्द नहीं करते तथा स्वयं को सेनापति के सम्बोधन में ज्यादा सन्तुष्टि पाते हैं।

प्रश्न 11.
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के आधार पर वासन्ती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2017)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की नायिका का चरित्रांकन /चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
नाटक गरुड़ध्वज के आधार पर वासन्ती का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 16, 15, 14, 13, 12)
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के प्रमुख स्त्री पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2014, 13, 10)
उत्तर:
ऐतिहासिक नाटक ‘गरुड़ध्वज’ की प्रमुख नारी पात्र वासन्ती है। अतः इसे ही नाटक की नायिका माना जा सकता है। वासन्ती के पिता द्वारा वृद्ध यवन से उसका विवाह कराए जाने के विरोध में विक्रममित्र वासन्ती को विदिशा के महल ले आते हैं तथा उसे सम्मान के साथ सुरक्षा प्रदान करते हैं। बाद में, वासन्ती कालिदास की प्रेमिका के रूप में प्रस्तुत होती है, जिसके चरित्र की उल्लेखनीय विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. धार्मिक संकीर्णता की शिकार नाटक के कथानक के काल में भारत में एक विशेष प्रकार की धार्मिक संकीर्णता मौजूद थी, जिसकी शिकार वासन्ती भी होती हैं। उसके व्यक्तित्व में एक अवसाद के साथ-साथ ओज का गुण भी। मौजूद रहता है।
  2. विशाल एवं उदार हृदयी वासन्ती का हृदय अत्यन्त विशाल एवं उदार है, जिसके कारण वह मानव-मात्र के प्रति ही नहीं, अपितु जीव मात्र के प्रति भी अत्यन्त स्नेह एवं सहानुभूति रखती है। उसमें बड़े-छोटे, अपने पराए सभी के लिए समान रूप से प्रेमभाव भरा हुआ है।
  3. आत्मग्लानि से विक्षुब्ध वह आत्मग्लानि से विक्षुब्ध होकर अपने जीवन से छुटकारा पाना चाहती है। इसी क्रम में वह आत्महत्या का प्रयास भी करती है, | परन्तु विक्रममित्र के कारण उसका यह प्रयास असफल हो जाता है।
  4. स्वाभिमानी वासन्ती अनेक विषम परिस्थितियों के पश्चात् भी अपना स्वाभिमान नहीं खोती। वह किसी भी ऐसे राजकुमार के साथ विवाह करने को राजी नहीं है, जो विक्रममित्र के दबाव के कारण ऐसा करने के लिए विवश हो।
  5. सहदयी एवं विनोदप्रिय वासन्ती निराश एवं विक्षुब्ध होने के पश्चात् भी सहृदयी एवं विनोदप्रिय नजर आती है। वह कालिदास के काव्य-रस का पूरा आनन्द उठाती है।
  6. आदर्श प्रेमिका वासन्ती एक सहृदया, सुन्दर एवं आदर्श प्रेमिका सिद्ध होती हैं। वह निष्कलंक एवं पवित्र है। वह अपने उज्वल चरित्र एवं शुद्ध विशाल हृदय के साथ कालिदास को प्रेम करती हैं।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि वासन्ती एक आदर्श नारी पात्र एवं नाटक की। नायिका है, जिसका चरित्र अनेक आधुनिक स्त्रियों के लिए भी अनुकरणीय है।

प्रश्न 12.
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के आधार पर नायिका ‘मलयवती’ का चरित्रांकन कीजिए।
उत्तर:
प, लक्ष्मीनारायण लाल द्वारा रचित ‘गरुड़ध्वज’ नाटक के नारी पात्रों में मलयवती एक प्रमुख महिला पात्र है। इसका चरित्र अत्यधिक आकर्षक, सरल एवं विनोदप्रिय है। मलयवती के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. रूपवती मलयवती मलय देश की राजकुमारी है। वह अत्यधिक रूपवती हैं एवं उसका व्यक्तित्व सरल, सहज एवं आकर्षक है। उसके रूप-सौन्दर्य को देखकर ही कुमार विषमशील विदिशा के राजप्रसाद के उपवन में उसके सौन्दर्य पर मुग्ध हो गए थे।
  2. आदर्श प्रेमिका मलयवती एक आदर्श प्रेमिका है। कुमार विषमशील के प्रति उसके हदय में अत्यधिक प्रेम है। वह उसका मन से वरण करने के उपरान्त एकनिष्ठ भाव से उसके प्रति आसक्त है। उसके प्रति उसका प्रेम सच्चा है, उसे स्वयं पर पूर्ण विश्वास है कि वह उसे प्राप्त कर लेगी। कुमार विषमशील को प्राप्त करने की अपनी दृढ़ इच्छा प्रकट करते हुए वह कहती है “तब मुझे अपने आप में पूर्ण विश्वास है। मैं उन्हें अपनी तपस्या से खोजेंगी…. निर्विकार शंकर प्राप्त हो गए और वे प्राप्त न होंगे।”
  3. विनोदप्रिय स्वभाव राजकुमारी मलयवती प्रसन्नचित्त एवं विनोदी स्वभाव की है। वह अपनी प्रिय सखी वासन्ती से अनेक अवसरों पर हास-परिहास करती है। राजभृत्य द्वारा उसे महाकवि के द्वारा कही गई बातों के बारे में बताने पर वह महाकवि पर व्यंग्य करते हुए कहती हैं क्यों महाकवि को यह सूझी है? इस पृथ्वी की सभी कुमारियाँ कुमार हो जाएँ तब तो अच्छी रही। कह देना महाकवि से इस तरह की उलट-फेर में कुमारों को कुमारियाँ होना होगा और महाकवि भी कहीं उस चक्र में न आ जाएँ।”
  4.  ललित कलाओं में रुचि मलयवती की संगीत, चित्रकला इत्यादि ललित कलाओं में रुचि है। वह ललित कलाओं को सीखने व उनमें निपुण होने के लिए विदिशा जाती है। जहाँ वह मलय देश की चित्रकला व संगीत कला को भी सीखती है।

स्पष्टतः मलयवती के चरित्र एवं व्यक्तित्व में सद्गुणों का समावेश है। अपने इन्हीं गुणों एवं स्वभाव के कारण मलयवती की एक आदर्श राजकुमारी के रूप में छवि मिलती है। मलयवती का सरल, सहज और आकर्षक व्यक्तित्व उसे और अधिक आकर्षक बनाता है।

प्रश्न 13.
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के आधार पर ‘काशिराज’ की चारित्रिक विशेषताएँ उद्घाटित कीजिए।
उत्तर:
‘आन का मान’ नाटक के पुरुष पात्रों में ‘काशिराज’ काशी प्रदेश का राजा है, जो स्वार्थी व अवसरवादी है। काशिराज की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. कायर काशिराज भवनों के साथ युद्ध न करके सन्धि प्रस्ताव में अपनी पुत्री को मेनेन्द्र के पुत्र को दान में दे देता है, जिसकी आयु पचास वर्ष की थी।
  2. स्वार्थी व अवसरवादी काशिराज कालिदास द्वारा बन्दी बनाकर विक्रममित्र के पास विदिशा लाया गया। जहाँ उसने अपनी पुत्री के साथसाथ कालिदास को भी माँग लिया। वह जनता था कि विक्रममित्र कालिदास के पुत्र वात्सल्य रखते हैं। फिर भी उसने अवसर का लाभ उठाया।
  3. आत्मग्लानि वह वासन्ती के समक्ष पश्चाताप करता है और कहता है। युद्ध क्या कर सकेंगा अब … जब असकी अवस्था थी, तब तो मैं भिक्षु मण्डली में धर्मालाप करता रहा। इस देश के सभी माण्डलीक और गुण मुख्य आज युद्ध में हैं, मैं ही तो ऐसा हूँ जो इस कर्तव्य से वंचित हूँ। मैं बड़ा अभागा हूँ, किन्तु तुम्हारे आँसू इस हृदय को छेद देंगे … हाय।”
  4. विलापी तथा देश प्रेमी काशिराज अपने देश व मातृ भूमि के लिए अत्यन्त चिन्तित हैं, जिस पर किसी समय बौद्धों का आधिपत्य था, आज उस भूमि पर भवनों का अधिकार है, जिसके लिए वह विलाप करता हुआ कहता है कि “मातृ भूमि और जातीय गौरव के प्रति निष्ठा बौद्धों में नहीं होती वत्स। वे किसी भी संकीर्ण घेरे में रहना नहीं चाहते … इस देश और जाति के जितने भी बन्न थे, एक-एक करके सभी काटते गए।” वह अपने देश को बचाने के लिए अपनी जन्म भूमि तथा कन्या (घासन्ती) को भी विदेशी को देने से पीछे नहीं हटता।।

निष्कर्षस्वरूप कहा जा सकता हैं कि काशिराज स्वार्थी कायर राजा होने के साथ साथ उसमें अपने देश के प्रति प्रेम च देशभक्ति जैसे गुण भी निहित हैं।

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