UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi विभक्ति
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi विभक्ति
परिभाषा
हिन्दी भाषा में कारकों में लगने वाले चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। संस्कृत भाषा में इसके स्थान पर विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है। विभक्तियों की कुल संख्या सात है।
विभिक्त के भेद
विभक्ति दो प्रकार की होती है
1. कारक विभक्ति जो विभक्ति हिन्दी के वाक्य में प्रयोग किए गए कारकों के चिह्नों के अनुसार लगती हैं, उसे कारक विभवित कहते हैं, जैसे-सा लतां पश्यति/वह लता को देखती हैं। इस वाक्य में ‘वह’ देखने वाली है। अतः ‘वह’ का प्रयोग कर्ता कारक एकवचन में ‘सा’ हुआ। इस वाक्य का दूसरा शब्द ‘लता को’ है। यहाँ कारक का चिह्न को ।। ‘को’ यह चिह्न कर्म कारक का है। इसमें द्वितीया विभक्ति है। अतः ‘लता’ शब्द का द्वितीया विभक्ति एकवचन में लताशब्द प्रयोग किया गया है। यही कारक विभक्ति होती हैं।
2. उपपद विभक्ति ‘उपपद’ यह शब्द दो शब्दों उप + पद के मेल से बना है। ‘उप’ का अर्थ ‘योग’ अथवा ‘पास’ होता है और पद का अर्थ शब्द होता है। इस प्रकार जो विभक्ति कारक के चिह्न के अनुसार न लगकर किसी शब्द या धातु के योग में प्रयोग होती है, उसे ‘उपपद’ विभक्ति कहते हैं; जैसे-पुत्र माता के साथ जाता है। पुत्रः मात्रा सह गच्छति।
इस वाक्य में कारक के चिह्न को देखा जाए तो का, के, की षष्ठी विभक्ति के चिह्न हैं। इस आधार पर इस वाक्य के ‘माता’ शब्द में षष्ठी विभक्ति लगक ‘मातः’ रूप होना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि संस्कृत में ‘के साथ ‘सह’ शब्द का प्रयोग किया जाता है और ‘उपपद’ विभक्ति के नियम के अनुसार ‘सह’ शब्द के योग में जिसके साथ कोई क्रिया की जाती है (जाने की, पढ्ने आदि की) उसमें तृतीया विभक्ति होती है। अतः ‘माता’ में ‘सह’ शब्द के साथ तृतीया विभक्ति होकर ‘मात्रा’ रूप बना। यही ‘उपपद’ विभक्ति है।
1. प्रथमा विभक्ति
(सूत्र-प्रातिपदिकार्थ-लिङ्ग-परिमाण-वचनमात्रे प्रथमा) प्रातिपदिकार्थमात्र में, लिंगमात्र की अधिकता में, परिमाणमात्र (मापमात्र) में तथा वचनमात्र (संख्यामात्र) में प्रथमा विभूति होती है। प्रातिपदिकार्थ से सम्बोधन अर्थ की अधिकता में भी प्रथमा विभयित होती हैं।
उदाहरण
प्रातिपदिकार्थमात्र उच्चैः (ऊँचा), नीचैः (नीचा), कृष्णः (कृष्ण), श्री (लक्ष्मी), ज्ञानम् (ज्ञान, जानना।।
लिंगमात्र तटः, तटी, तटम्।।
परिमाणमात्र द्रोणो व्रीहिः (द्रोण परिमाण से मापा हुआ धन)।
संख्यामात्र एक, द्वौ बहवः।
सम्बोधन में हे राम! हे अर्जुन!
2. द्वितीय विभक्ति
(सूत्र-अमितः परितः समय निकषा-हा-प्रतियोगेऽपि) अभितः (चारों ओर), परितः | (सब और), निकषा (समीप), हा, प्रति (और, तरफ) के साथ द्वितीया विभक्ति होती है।। उदाहरण
मंजरी विद्यालयं प्रति याति। (2018)
विद्यालयं परितः क्षेत्राणि सन्ति। (2018)
गृहं परितः उद्यानम् अस्ति। (2018)
मम ग्रामम् निकषा नदी वहति (2017)
बिलग्रामं निकषा गंगा प्रवहति (2016)
विद्यालयम् परितः (2016)
ग्रामम् परितः क्षेत्राणि सन्ति (2016)
कार्यालयम् अभितः भवनानि सन्ति (2016)
ग्रामम् अमितः वृक्षा सन्ति (2016)
विद्यालयं निकषा जलाशयः अस्ति। (2017, 16, 13, 12, 10)
ग्रामम् समया नदी अस्ति। (2013, 10)
गुरु शिष्यान् प्रति कृपालु अस्ति। (2014, 10)
ग्रामं परितः उपवनानि सन्ति। (2014, 10)
नदी अभितः क्षेत्राणि सन्ति। (2014)
विद्यालयं उभयतः हरिताः वृक्षाः सन्ति। (2011, 10)
ग्रामं अभितः वृक्षाः सन्ति। (2014, 12, 11)
हा ! कृष्णाभक्तम्।
ग्रामं निकषा नदी वहति। (2018, 10)
ग्रामं निकषा वाटिका अस्ति। (2010)
पुष्पं परितः भ्रमराः सन्ति।
वणिक धनं प्रति आसक्तः अस्ति।
माधवी विद्यालयं प्रति याति।
कूपं परितः जनाः तिष्ठन्ति। (2012)
बुभुक्षितं न प्रति भाति किञ्चित्।
नदीं समया पशवः सन्ति।
विद्यालयं परितः वनम् अस्ति। (2011)
विद्यालयं परितः उद्यान्नमस्ति। (2018, 13, 10)
आश्रमम् अभितः वनम् अस्ति। (2011)
लंकाम् निकषा।
हा! दुष्टम्। (2012)
तडागम् परितः वृक्षाः सन्ति।
राधा नगरं प्रति गछति। (2011)
सीता भवनं प्रति गच्छति।
कृष्णं परितः गावः सन्ति। (2013)
मन्दिरम् निकषा वाटिका अस्ति।
साण्डी दुर्गम् अमितः परिखा अस्ति।
हा! शठम्।। हा! हा! गताः किल वनम्।
शिक्षकः कक्षाम् प्रति गच्छति। (2015)
3. तृतीया विभक्ति
(सूत्र 1 येनाङ्गविकारः) शरीर के अंगों में विकृति दिखाई पड़ने पर विकृत अंग के वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।
उदाहरण
इयं बालिका पार्दन खजः अस्ति। (2018)
सः कर्णेन बधिरः अस्ति। (2018)
सुशीलाः कर्णाभ्याम् बधिशः अस्ति। (2018)
भिक्षुकः कर्णेन बधिरः अस्ति। (2018)
उपाध्यायः छात्रैः समं स्नाति। (2018)
मोहनः कर्णाश्याम बधिरः अस्ति (2017)
सः पार्दन खः (2016)
दिलीपः शिरसा खल्वाटः (2016)
अक्ष्णा काणः (2016)
नेत्रेण काण: (2016)
सः पादेन खञ्जः अस्ति। (2018, 16, 15)
भिक्षुकः पादेन खजः अस्ति। (2017, 16, 15)
भिक्षुकः नेत्रेण काणः अस्ति। (2014)
सः शिरसा खल्वाटः अस्ति। (2018, 14, 13, 12, 10)
सुरेशः शिरसा खल्वार्टः अस्ति। (2015)
मन्थरा कट्या कुब्ज़ा आसीत्। (2013)
दिनेशः पादेन खजः अस्ति। (2013, 12, 11, 10)
देवदतः अक्ष्णाः काणः। (204, 13, 10)
राजकुमारः कर्णेन वधिरः। (2012, 11, 10)
मोहनः शिरसा खल्वाटोऽस्ति। (2012)
गिरिधरः कर्णेन वधिरः अस्ति। (2012)
अयं छात्र पादेन खञ्जः अस्ति।
सुरेशः पृष्ठेन कुब्जः अस्ति।
सा वृद्धा कर्णाभ्याम् बघिरा अस्ति।
रमेशः नेत्रेण काणः।। (2013, 12, 11, 10)
कट्या वक्रः (2016)
(सूत्र 2 सहयुक्तेऽप्रधाने) सह, साकम्, सार्धम्, समम् के साथ वाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती हैं।
उदाहरण
छात्रा; अध्यापकैन सह क्रीडन्ति (2016)
अहमपि त्वया साधं यास्यामि (2016)
रामेण सह सीता वनं अगच्छत्। (2015)
माता पुत्रेण साकं श्वः आगमिष्यति। (2014, 12, 11)
सः बालिकाभिः सह कन्दुकं क्रीडति। (2010)
गुरुणा सह शिष्यः अपि आगच्छति। (2013, 12)
सः पुत्रेण सह आगतः। (2011)
रामेण सह मोहनः गच्छति। (2014)
रामः लक्ष्मणेन सह वनम् अगच्छत्। (2012)
पित्रा सह पुत्रः गच्छति। (2014)
पुत्रेण सह पिता गच्छति। (2013, 12, 11)
बालिकाभिः सह जननी गृहं गच्छति। (2010)
सः मया सह कदापि न गच्छति।
पुत्री मात्रा सह आपणं गच्छति। (2010)
हरिणा सह राधा नृत्यति। (2013)
शिक्षकैः समम्।
लक्ष्मणोऽपि रामेण सह वनम् गतवान्।
(सूत्र 3 प्रकृत्यादिभ्य उपसंख्यानम्) प्रकृति (स्वभाव) आदि क्रिया-विशेषण शब्दों में तृतीया वि-भक्ति होती है। उदाहरण-
अस्माकं प्रधानाचार्यः प्रकृत्या सज्जनः अस्ति। (2011)
देवदत्तः जलैन मुखं प्रक्षालयति। (2011)
प्रकृत्या साधुः।
4. चतुर्थी विभक्ति
(सूत्र-नमः स्वरितस्वाहास्वधाऽलंवषयोगाच्य) नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट् शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
उदाहरण
खलाः सदा सज्जनेभ्यः असूयन्ति। (2018)
विष्णवे नमः। (2018)
प्रजाभ्य स्वस्ति। (2018)
हनुमते नमः सीतायै नमः (2017, 16)
श्री गुरवे नमः कृष्णाय नमः (2016)
दानार्थे चतुर्थी (2016)
माता पुत्राय फलानि यच्छन्ति (2016)
श्री गणेशाय नमः। (2018, 15, 14, 13, 11, 10)
इन्द्राय वषट्। (2013, 10)
आग्नये स्वाहा। (2014, 12, 10)
रामाय नमः। (2014, 12, 11, 10)
कृष्णाय नमः। (2016, 14, 12, 11, 10)
गुरुवे नमः। (2017, 16, 12)
पितृभ्यः स्वधा। (2013, 11)
प्रजाभ्यः स्वस्ति। (2013, 12, 11)
दैत्येभ्यः हरिः अलम्।
स्वस्ति तुम्यम्। (2012)
नमो भगवते वासुदेवाय। (2013, 12, 10)
इन्द्राय स्वाहा। (2013, 12, 11)
तस्मै श्रीगुरुवे नमः। (2012)
देवेभ्यः स्वाहा।
राधावल्लभाय नमः। (2011)
पुत्राय स्वस्ति। (2013)
अलं मल्लो मल्लाया
सूर्याय स्वाहा।
स्वस्ति भवते।
गुरुभ्यः नमः। (2011)
हनुमते नमः। (2014)
दुर्गादेव्यै नमः।
नमः शिवाय।
वाह्मणाय नमः।
नाः व्यासाय।
गणपतये स्वाहा। (2012, 11)
दुग्धं बालकाय अस्ति।
तस्मै स्वधा।
हरये नमः।
5. पञ्चमी विभक्ति
(सूत्र ध्रुवमपायेऽपादानम्) किसी वस्तु का ध्रुव (निश्चित) वस्तु से स्थायी अलगाव अपादान कहलाता है। ‘अपादाने पञ्चमी’ सूत्रानुसार अपादान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
उदाहरण
सः कूपात जलम आनयति। (2018)
सः अद्य सौपानात् अपतत्। (2018)
वृक्षात् फलानि पतन्ति। (2014)
वृक्षात् फलं पतति।। (2014)
वृक्षात् पतितं फलं आनेय।
दिनेशः विद्यालयात् आगच्छति।
6. षष्ठी विभक्ति
(सूत्र षष्ठी शेषे) कारक एवं प्रातिपदिकार्थ से भिन्न स्वस्यामिभाव आदि सम्बन्ध ‘शेष’ होने पर धष्ठी विभक्ति होती हैं।
उदाहरण
कवीनां कालिदासः श्रेष्ठ (2018)
सुग्रीवः रामस्य सखा आसीत्। (2016)
रामायणस्य कथा (2016)
रामस्य गृहं अस्ति। (2015)
कृष्णस्य पिता वासुदेवः। (2014, 11)
सुदामा कृष्णस्य मित्रं आसीत्। (2013)
छात्रस्य पुस्तकम् अस्ति।। (2014)
सुवर्णस्य आभूषणम् बहुमूल्यम् अस्ति। (2015)
सुग्रीवस्य भ्राता बालिः आसीत्। (2010)
गङ्गायाः उदकम् ।। (2013)
राज्ञः पुत्रः।।
7. सप्तमी विभक्ति/घष्ठी विभक्ति
(सूत्र 1 यतश्च निर्धारणम्) किसी वस्तु की अपने समुदाय से किसी विशेषण द्वारा कोई विशिष्टता दिखाई जाने पर समुदायवाचक शब्द में घष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है।
उदाहरण
छत्रेषु रामः श्रेष्ठः।। (2018)
छात्रासु मंजरी श्रेष्ठा (2016)
नगरेषु प्रयागः श्रेष्ठ अस्ति। (2016)
छात्रेषु रामः श्रेष्ठतम्ः अस्ति।
छात्रेषु आशीष श्रेष्ठः।
बालकेषु अरविन्दः श्रेष्ठः।। (2014, 13, 12, 11, 10)
छात्रासु रत्ना श्रेष्ठा। (2010)
पुस्तकेषु गीता श्रेष्ठा। (2017)
कविषु कालिदासः श्रेष्ठः।
काव्येषु नाटकं रम्यम्। (2014, 12)
गवां वा कृष्णा बहुक्षीरा। (2014, 12)
रित्सु गङ्गा श्रेष्ठा। (2011)
बालिकासु लता श्रेष्ठा। (2014)
छात्रेषु मोहनः बुद्धिमान् अस्ति। (2011)
ललिताः बालिकानां श्रेष्ठा अस्ति। (2012)
गवां कपिला श्रेष्ठा। (2011)
छात्राणां कृष्णः पटुः।
छात्रेषु अनिलः श्रेष्ठः।
छात्रेषु अरविन्दः श्रेष्ठः। (2017)
छात्राणां वा मैत्रः पटुः। (2010)
रामः सर्वेषां श्रेष्ठः।
दिलीपः नरेषु श्रेष्ठः आसीत्।
अश्वेषु श्वेतः श्रेष्ठः।
(सूत्र 2 सप्तम्यधिकरणे च) अधिकरण (कारक) में सप्तमी विभक्ति होती है।
उदाहरण
पात्रे जलम् अस्ति। (2014)
बहविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित में रेखांकित पदों में विभक्ति चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
अहं गृहं गच्छामि।।
(क) प्रथमा
(ख) तृतीया
(ग) चतुर्थी
(घ) द्वितीया
प्रश्न2.
वृक्षात पत्राणि पतन्ति।
(क) तृतीया
(ख) पञ्चमी
(ग) द्वितीया
(घ) चतुर्थी
प्रश्न 3.
व्याधः मृगं शरेण अघ्नत्।।
(क) द्वितीया
(ख) सप्तमी
(ग) चतुर्थी
(घ) तृतीया
प्रश्न 4.
बालकाय मोदकं देहि।।
(क) तृतीया
(ख) चतुर्थी
(ग) पञ्चमी
(घ) षष्ठी
प्रश्न 5.
सः हस्तेन पत्रं लिखति।।
(क) तृतीया
(ख) द्वितीया
(ग) चतुर्थी।
(घ) पञ्चमी
प्रश्न 6.
बालिका उद्यानात पुष्पाणि आनयति।
(क) षष्ठी
(ख) सप्तमी
(ग) चतुर्थी
(घ) पञ्चमी
प्रश्न 7.
रामः पुस्तकं पठति।
(क) प्रथमा
(ख) तृतीया
(ग) षष्ठी
(घ) सप्तमी
प्रश्न 8.
इयं रामस्य पुस्तकम् अस्ति।
(क) पञ्चमी
(ख) षष्ठी
(ग) सप्तमी
(घ) पञ्चमी
प्रश्न 9.
अयोध्यायाः नृप दशरथः आसीत्।
(क) तृतीया
(ख) पञ्चमी
(ग) षष्ठीं
(घ) सप्तमी
प्रश्न 10.
पुस्तकं काष्ठपटले अस्ति।
(क) द्वितीया
(ख) तृतीया
(ग) सप्तमी
(घ) षष्ठी
प्रश्न 11.
रमायाः भ्राता विनयः तत्र अस्ति।
(क) पञ्चमी
(ख) षष्ठी
(ग) सप्तमी
(घ) चतुर्थी
प्रश्न 12.
शिशवे मोदकं रोचते।।
(क) चतुर्थी
(ख) द्वितीया
(ग) तृतीया
(घ) पञ्चमी
प्रश्न 13.
वृक्षे चटकाः सन्ति
(क) षष्ठी
(ख) पञ्चमी
(ग) चतुर्थी
(घ) सप्तमी
प्रश्न 14.
मोहनः आपणात् फलानि आनयति।
(क) द्वितीया
(ख) तृतीया
(ग) पञ्चमी
(घ) षष्ठी
प्रश्न 15.
विद्यालयं परितः वृक्षाः सन्ति।
(क) द्वितीया
(ख) तृतीया
(ग) पञ्चमी
(घ) षष्ठी
प्रश्न 16.
बालकाः कन्दुकेन क्रीडन्ति।
(क) प्रथमा
(ख) तृतीया
(ग) द्वितीया
(घ) षष्ठी
प्रश्न 17.
मनोहरः अक्ष्णा काणः अस्ति।
(क) तृतीया
(ख) पञ्चमी
(ग) द्वितीया
(घ) चतुर्थी
प्रश्न 18.
रजकः गदर्भ दण्डेन ताडयति।
(क) द्वितीया
(ख) पञ्चमी
(ग) तृतीया
(घ) षष्ठी
प्रश्न 19.
त्वं कस्मिन् विद्यालये पठसि?
(क) सप्तमी
(ख) पञ्चमी
(ग) षष्ठी
(घ) चतुर्थी
प्रश्न 20.
महिला कूपात जलम् आनयति।
(क) तृतीया
(ख) द्वितीया
(ग) पञ्चमी
(घ) षष्ठी
उत्तर
1. (घ), 2. (ख), 3. (घ), 4. (ख), 5. (क), 6. (घ), 7. (क), 8. (ख), 9. (ग), 10. (ग) , 11. (ख), 12. (क), 13. (घ), 14. (ग), 15. (क), 16. (ख), 17. (क), 18, (ग), 19. (क), 20. (ग)
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