UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 6 नृपतिदिलीप:

By | June 2, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 6 नृपतिदिलीप:

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 6 नृपतिदिलीप:

गद्यांशों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

श्लोक 1
रेखामात्रमपि क्षुण्णादामनोवर्मनः परम्।
न व्यतीयुः प्रजास्तस्य नियन्तुमिवृत्तयः।।। (2013, 11)
सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘भूपतिर्दलीपः नामक पाठ से उद्धृत हैं।
अनुवाद उनकी (राजा दिलीप की) प्रजा ने मनु द्वारा निर्दिष्ट (प्रचलित उत्तम) मार्ग का (उसी प्रकार) रेखामात्र भी उल्लंघन नहीं किया, जैसे कुशल (रथ) सारथी पहिये को मार्ग से रेखामात्र भी विचलित नहीं करते। यह कहने का आशय यह है कि राजा दिलीप के शासनकाल में प्रजा परम्परा का पालन करने वाली, अनुशासित एवं मनु के बताए मार्ग अर्थात् सुमार्ग का अनुकरण करने वाली थी।

श्लोक 2
आकारसदृशप्रज्ञः प्रज्ञया सदृशागमः।।
आगमैः सदृशारम्भ आरम्भुसदृशोदयः ।।
प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलिमगृहीत्।
सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रसं रविः।। (2018, 16, 14, 13, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद सुन्दर दिखने वाले राजा दिलीप अपनी आकृति के अनुरूप बुद्धिमान, बुद्धि के अनुरूप शास्त्रों के ज्ञाता, शास्त्रानुकूल शुभ कार्य प्रारम्भ करने वाले और उसका उचित परिणाम पाने वाले थे। वे (राजा दिलीप) प्रजा के कल्याणार्थ ही उनसे कर ग्रहण करते थे; जैसे—सूर्य सहस्रगुणा जल प्रदान करने के लिए पृथ्वी से जल ग्रहण करता है।

श्लोक 3
ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघाविपर्ययः।
गुणा गुणानुबन्धित्वात् तस्य सप्रसवा इव।। (2015)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद (उनमें) ज्ञान रहने पर मौन रहना, शक्ति रहने पर क्षमा करना तथा बिना प्रशंसा के त्याग (दान) करना-जैसे विरोधी गुणों के साथ-साथ रहने के कारण उनके ये गुण एक साथ जन्में प्रतीत होते थे।

श्लोक 4
अनाकृष्टस्य विषयैर्विद्यानां पारदृश्वनः।
तस्य धर्मरतेरासीद् वृद्धत्वं जरसा विना।। (2017)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद भौतिक जगत् की वस्तुओं के प्रति अनासक्त रहने वाले, सभी विधाओं में दक्ष तथा धर्म प्रेमी उस नृप दिलीप का वृद्ध अवस्था न होने पर भी बुढापा ही था।

श्लोक 5
प्रजानां विनयाधानाद् रक्षणाद् भरणादपि।
स पिता पितरस्तासां केवलं जन्महेतवः।। (2017)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद प्रजा में विनय को स्थापित करने के कारण, रक्षा करने के कारण। और भरण-पोषण करने के कारण वह (नृप दिलीप) उन प्रजजनों का पिता था। उनके पिता तो केवल जन्म का कारण थे।

श्लोक 6
दुदह गां स यज्ञाय शस्याय मघवा दिवम्।
सम्पद्विनिमयेनोभौ दधतुर्भुवनद्वयम्।।
द्वेष्योऽपि सम्मत: शिष्टस्तस्यार्तस्य यथौषधम्।
त्याज्यो दुष्टः प्रियोप्सासीदगुलीवोरगक्षता।।
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद वे (राजा दिलीप) यज्ञ करने के लिए पृथ्वी का दोहन करते थे और इन्द्र अन्न के लिए स्वर्ग का। ये दोनों सम्पत्तियों के आपसी लेन-देन से दोनों लोकों का भरण-पोषण करते थे। उन्हें सज्जन शत्रु भी उसी प्रकार स्वीकार्य था जैसे रोगी को औषधि तथा दुष्ट प्रियजन भी उसी प्रकार त्याज्य था जैसे सर्प से इसी हुई अँगुली।

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न-पत्र में संस्कृत दिग्दर्शिका के पाठों (गद्य व पद्य) में से चार अतिलघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित है।

प्रश्न 1.
मनीषिणां माननीयः कः आसीत्? (2014, 11)
उत्तर:
मनीषिणां माननीयः वैवस्वतः मनुः आसीत्।

प्रश्न 2.
दिलीपः कस्य अन्वये प्रसूतः? (2011)
उत्तर:
दिलीपः वैवस्वतमनोः अन्वये प्रसूतः

प्रश्न 3.
दिलीप: किमर्थं बलिमगृहीत्? (2016, 14, 12)
उत्तर:
दिलीपः प्रजाना भूत्यर्थम् एवं बलिमगृहीत्।

प्रश्न 4.
दिलीपः कस्य प्रदेशस्य राजा आसीत्? (2014, 12)
अथवा
दिलीप: कां शशासैक? (2014)
उत्तर:
दिलीप: वेलावप्रवलयां परिखीकृतसागराम् उर्वी शशासैक।

प्रश्न 5.
दिलीप के गुणाः सन्ति? (2017)
उत्तर:
नृपः दिलीपे, वीरता, नीति नैपुण्यं, धैर्य, इत्यादयः गुणाः सन्ति।

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