UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द
छन्द का अर्थ एवं परिभाषा
‘छन्द’ शब्द की उत्पत्ति ‘छिदि’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है- ढकना अथवा आच्छादित करना। छन्द उस पद-रचना को कहते हैं, जिसमें अक्षर, अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रा, मात्रा की गणना के साथ-साथ यति (विराम) एवं गति से सम्बद्ध नियमों का पालन किया गया हो।
छन्द के अंग अथवा तत्त्व
छन्दबद्ध काव्य को समझने अथवा रचने के लिए छन्द के निम्नलिखित अंगों का ज्ञान होना आवश्यक है।
1. चरण
चरण या पाद छन्द की उस इकाई का नाम है, जिसमें अनेक छोटी-बड़ी ध्वनियों को सन्तुलित रूप से प्रदर्शित किया जाता है। साधारणतः छन्द के चार चरण होते हैं—पहले तथा तीसरे चरण को ‘विषम’ तथा दूसरे और चौथे चरण को ‘सम’ चरण कहते हैं।
2. मात्रा और वर्ण
किसी ध्वनि के उच्चारण में जो समय लगता है, उसकी सबसे छोटी इकाई को मात्रा कहते हैं। छन्दशास्त्र में दो से अधिक मात्राएँ किसी वर्ण की नहीं होती। मात्राएँ स्वरों की होती है, व्यंजनों की नहीं। यही कारण है कि मात्राएँ गिनते समय व्यंजनों पर ध्यान नहीं दिया जाता। वर्ण का अर्थ अक्षर से हैं, इसके दो भेद होते हैं।
(क) ह्रस्व वर्ण (लघु)
जिन वर्गों के उधारण में कम समय लगता है, उन्हें ह्रस्व वर्ण कहते हैं। छन्दशास्त्र में इन्हें लघु कहा जाता है। इनकी ‘एक’ मात्रा मानी गई है तथा इनका चिह्न ” है। ‘ अ, इ, उ तथा ऋ लघु वर्ण हैं।
लघु के नियम
- ह्रस्व स्वर से युक्त व्यंजन लघु वर्ण कहलाता है।
- यदि लघु स्वर में स्वर के ऊपर चन्द्रबिन्दु है तो उसे लघु ही माना जाएगा। उदाहरण-सँग, हँसना आदि।
- छन्दों में कहीं-कहीं हलन्त (,) आ जाने पर लघु हीं माना जाता है।
- हस्व स्वर के साथ संयुक्त स्वर हो तो भी लघु ही माना जाता है। कभी-कभी उच्चारण की सुविधा के लिए भी गुरु को लघु ही मान लिया जाता है।
- संयुक्त वर्ण से पूर्व हस्व पर जोर न पड़े तो वह भी लघु मान लिया जाता है।
(ख) दीर्घ वर्ण (गुरु)
जिन वर्गों के उच्चारण में हस्व वर्ण से दोगुना समय लगता है, उन्हें दीर्घ वर्ण कहते हैं। इन्हें गुरु भी कहा जाता है। इनकी दो मात्राएँ होती हैं तथा इनको चिह्न ‘ऽ’ है।
आ, ई, ऊ, ओ, औं आदि दीर्घ वर्ण हैं।
गुरु के नियम
- दीर्घ स्वर और उससे युक्त व्यंजन गुरु माने जाते हैं।
- यदि हस्त स्वर के बाद विसर्ग (:) आ जाए, तो वह गुरु माना जाता है; जैसे प्रातः आदि।।
- अनुस्वार (∸) वाले सभी स्वर एवं सभी व्यंजन भी गुरु माने जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर अन्तिम हस्व स्वर को गुरु मान लिया जाता है।
- संयुक्त अक्षर या उसके ऊपर अनुस्वार हो तो भी ह्रस्व स्वर गुरु माना जाता है।
3. यति
छन्द पदते समय उच्चारण की सुविधा के लिए तथा लय को ठीक रखने के लिए कहीं-कहीं विराम लेना पड़ता है। इसी विराम या ठहराव को यति कहते हैं।
4. गति
छन्द पढ़ने की लय को गति कहते हैं। हिन्दी में छन्दों में गति प्रायः अभ्यास और नाद के नियमों पर ही निर्भर हैं।
5. तुक
छन्द के चरणों के अन्त में समान वर्गों की आवृत्ति को तुक कहते हैं।
6. संख्या, क्रम तथा गण
छन्द में मात्राओं और वर्गों की गिनती को संख्या कहते हैं तथा छन्द में लघु वर्ण और गुरु वर्ण की व्यवस्था को क्रम कहते हैं। तीन वर्षों के समूह को ‘गण’ कहते हैं। गणों का प्रयोग वर्णिक (वृत्त) में लघु-गुरु के क्रम को बनाए रखने के लिए होता है। इनकी संख्या आठ निश्चित की गई हैं। इनके लक्षण और स्वरूप की तालिका निम्न है ।
गण | लक्षण | रूप | उदाहरण | |
1. | मगण | सर्व गुरु | ऽऽऽ | नानाजी |
2. | यगण | आदि लघु, बाद में दो गुरु | |ऽऽ | सवेरा |
3. | रंगण | आदि-अन्त में गुरु, मध्य में लघु प्रथम दो लघु | ऽ|ऽ | केतकी |
4. | सगण | प्रथम दो लघु, अन्त में गुरु | ||ऽ | रचना |
5. | तगण | प्रथम दो गुरु, अन्त में लघु | ऽऽ| | आकार |
6. | जगण | आदि-अन्त में लघु, मध्य में गुरु | |ऽ| | नरेश |
7. | भगण | प्रथम गुरु, बाद में दो लघु | ऽ|| | गायक |
8. | भगण | सर्व लघु | ||| | कमल |
छन्द के भेद
सामान्यतः वर्ण और मात्रा के आधार पर छन्दों के निम्न चार भेद हैं।
1. मात्रिक छन्द
यह छन्द मात्रा की गणना पर आधारित होता है, इसीलिए इसे मात्रिक छन्द कहा जाता है। जिन छन्दों में मात्राओं की समानता के नियम का पालन किया जाता हैं, किन्तु वणों की समानता पर ध्यान नहीं दिया जाता, उन्हें मात्रिक छन्द कहा जाता है। दोहा, रोला, सोरठा, चौपाई, हरिगीतिका, छप्पय आदि प्रमुख मात्रिक
2. वर्णिक छन्द
जिन छन्दों में केवल वर्गों की संख्या और नियमों का पालन किया जाता है, वे वर्णिक छन्द कहलाते हैं। पनामारी, रूपघनाक्षरी, देवघनाक्षरी, मुक्तक, दण्डक आदि वर्णिक छन्द हैं।
3. उभय छन्द
जिन छन्दों में मात्रा और वर्ण दोनों की समानता एक-साथ पाई जाती है, उन्हें उभय छन्द कहते हैं।
4. मुक्तक छन्द
इन छन्दों को स्वछन्द छन्द भी कहा जाता है, इनमें मात्रा और वर्गों की संख्या निश्थित नहीं होती। भावों के अनुकूल यति-विधान, चरणों की अनियमितता, असमान गति आदि भुक्तक छन्दों की विशेषताएँ हैं। ये अपनी स्वेच्छाचारिता का भरपूर परिचय देते हैं।
प्रमुख मात्रिक छन्द
मात्रिक छन्दों में केवल मात्राओं पर ध्यान दिया जाता है। मात्रिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं-
- सम्
- असम
- विषम्।
प्रमुख मात्रिक छन्दों का वर्णन नीचे किया जा रहा है।
1. चौपाई (2018, 17, 16, 15, 14, 13, 12)
परिभाषा चार चरण वाले इस सम मात्रिक छन्द के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अन्त में जगण (|ऽ|) अथवा तगण (ऽऽ|) नहीं होता है। प्रथम तथा द्वितीय चरणों में ‘तुक’ समान होती है।
स्पष्टीकरण
इस उदाहरण में चार चरण हैं। प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ तथा अन्त में दो गुरु वर्ण हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में यति है। अतः यह चौपाई छन्द का उदाहरण है।
2. दोहो (2018, 17, 16, 14, 13, 12, 10)
परिभाषा दोहा अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इस छन्द के प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11.11 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अन्त में गुरु-लघु आते हैं।
स्पष्टीकरण
इस उदाहरण में चार चरण हैं। पहले (कागा काको धन हरै) और तीसरे (मीठे बचन सुनाय कर) चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे (कोयल काको देय) एवं चौथे (जग अपनो कर लेय) चरणों में 11-11 मात्राएँ हैं। सम चरणों के अन्त के वर्ण गुरु और लघु हैं। अतः यह दोहा छन्द को उदाहरण हैं।
3. सोरठा (2018, 17, 16, 14, 13, 12)
परिभाषा दो का उल्टा रूप सोरठा कहलाता है। यह एक अर्बसम छन्द है अर्थात् इसके पहले तीसरे तथा दूसरे-चौथे चरणों में मात्राओं की संख्या समान रहती है। इसके विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11 और सम चरणों (दूसरे और चौथे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक विषम चरणों में ही होता है तथा सम चरणों के अन्त में जगण (|ऽ|) का निषेध होता है।
स्पष्टीकरण
इस उदाहरण के पहले चरण (मूक होई वाचाल) और तीसरे चरण (जासु कृपा सु । दयाल) में 11-11 मात्राएँ हैं तथा दूसरे (पंगु चदै गिरिवर गहन) और चौथे चरण (द्रव सकल कलिमल दहन) में 13-13 मात्राएँ हैं। विषम चरण में तुक है तथा सम् चरण के अन्त में जगण (|ऽ|) नहीं है। अतः यह सोरठा छन्द का उदाहरण है।
4. रोला (2018, 15, 14, 13, 12, 10, 04)
परिभाषा यह एक सम मात्रिक छन्द है अर्थात् इसके प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या समान रहती हैं। चार चरणों वाले इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। तथा ग्यारह (11) और तेरह (13) मात्राओं पर यति होती है।
स्पष्टीकरण
इस उदाहरण में चार चरण हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस (24) मात्राएँ हैं। ग्यारह (11) और तेरह (13) मात्राओं पर यति है। अतः यह रोला छन्द का उदाहरण है।
5. कुण्डलिया (2018, 17, 14, 13)
परिभाषा यह विषम मात्रिक एवं संयुक्त छन्द हैं। इस छन्द का निर्माण दोहा और रोला के संयोग से होता है। इसमें 6 चरण होते हैं। आरम्भ में दोहा और पश्चात् में दो छन्द रोला के होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
स्पष्टीकरण
छ; चरणों वाले इस उदाहरण के प्रत्येक चरण में चौबीस (24) माएँ हैं। इसका प्रथम चरण (कोई संगी”) दोहे में प्रथम एवं द्वितीय चरण को मिलाकर रचा गया है और इसके द्वितीय चरण (पथी लेहु ”) की रचना दोहे में तृतीय व चतुर्थ चरण के सम्मिश्रण से हुई है। इसके अन्य चरणों की रचना रोला के चरणों को मिला कर की गई है। इसमें यतियों की व्यवस्था दोहे एवं रोले के अनुसार ही है। अतः यह कुण्डलिया छन्द का उदाहरण है।
6. हरिगीतिका (2018, 17, 14, 13, 12)
परिभाषा इस सम मात्रिक छन्द के प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं तथा 16 और 12 मात्रा पर यति होती है। अन्त में लघु-गुरु का प्रयोग ही अधिक प्रचलित है।
स्पष्टीकरण
यहाँ प्रत्येक चरण 28 मात्राओं वाला है, जिसमें 16 मात्रा पर यति है। अतः यह उदाहरण हरिगीतिका छन्द का है।
7. बरवै (2018, 17, 16, 15, 14, 11, 10)
परिभाषा इस असम मात्रिक छन्द में कुल 38 मात्राओं वाले चार चरण होते हैं। इसके प्रथम और तृतीय चरणों में 12 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में 7 मात्राएँ होती हैं।
सम अर्थात् द्वितीय और चतुर्थ चरण में जगण (|ऽ|) अथवा तगण (ऽऽ|) के प्रयोग से कविता सरल हो जाती है। यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती हैं।
स्पष्टीकरण
यहाँ प्रथम एवं तृतीय चरण 12.12 तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण 7-7 मात्राओं के हैं। तथा सम चरणों के अन्त में जगण (|ऽ|) है। अतः यह बरवै छन्द का उदाहरण है।
प्रमुख वर्णिक छन्द (वर्णवृत्त)
वर्णिक छन्दों की रचना का आधार वर्गों की गणना होती है।
इसके तीन मुख्य भेद होते हैं-
- सम
- असम
- विषम
प्रमुख वर्णिक छन्दों का उल्लेख नीचे किया जा रहा है।
1. इन्द्रवज्रो (2018, 17, 16, 15, 14, 13, 12)
परिभाषा यह राम वर्णवृत्त अर्थात् सम वर्णिक छन्द है। चार चरण वाले इस छन्द के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण (अक्षर) होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 2 तगण, 1 जगण तथा 2 गुरु होते हैं। 11वें वर्ण पर यति होती है।
स्पष्टीकरण
इस उदाहरण में 11-11 वर्गों वाले 4 चरण हैं तथा प्रत्येक चरण के 11वें वर्ण पर यति है। इसके प्रत्येक चरण में दो जगण, एक तगण एवं अन्त में दो गुरु हैं। अतः यह इन्द्रवज्रा छन्द का उदाहरण है।
2. उपेन्द्रवज्रा (2018, 17, 16, 14, 13, 10)
परिभाषा इस सम वर्णिक छन्द के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 2 जगण, 1 तगण तथा 2 गुरु होते हैं। 11वें वर्ण पर यति होती हैं।
स्पष्टीकरण
इस पद्य के प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण और दो गुरु के क्रम से 11 वर्ण है; अतः यह ‘उपेन्द्रवज्रा’ छन्द है।
3. मालिनी (2016, 13)
परिभाषा यह सम वर्णवृत्त है। इसमें 15 वर्षों वाले प्रत्येक चरण में दो नगण, एक मगण तथा दो यगण क्रम से रहते हैं। यति 8 एवं 7 वर्गों पर होती है।
4. वसन्ततिलका (2018, 16, 13, 12)
परिभाषा यह सम पर्णिक छन्द अर्थात् सम वर्णवृत्त है। इसके 14 वर्णों वाले प्रत्येक चरण में एक तगण (ऽऽ|), एक भगण (ऽ||), दो जगण (|ऽ|) सहित अन्त में दो गुरु ‘ होते हैं।
स्पष्टीकरण
यहाँ 14 वर्णों वाले प्रत्येक चरण में क्रम से 1 तगण,1 भगण, 2 जगण सहित 2 गुरु का विधान किया गया है। अतः यह वसन्ततिलका छन्द का उदाहरण है।
5. सवैया (2017, 16, 14, 13, 12)
परिभाषा इस सम वर्णवृत्त के प्रत्येक चरण में 22 से लेकर 26 तक वर्ण (अक्षर) होते हैं। सवैया छन्द के कई भेद हैं; जैसे—मत्तगयन्द, सुन्दरी, सुमुखी, मनहर इत्यादि।
(क) मत्तगयन्द (सवैया) यह सम वर्णवृत्त है। इसके 23 वर्गों वाले प्रत्येक चरण में 7 भगण तथा 2 गुरु क्रम से रहते हैं।
स्पष्टीकरण
यहाँ प्रत्येक चरण में 23 वर्ण हैं तथा चरण का प्रारम्भ 7 भगण एवं अन्त 2 गुरु से हुआ है। अत: यह मत्तगयन्द छन्द का उदाहरण हैं।
(ख) सुन्दरी (सवैया) यह सम वर्णवृत्त है। इसका प्रत्येक चरण 25 वर्ण (अक्षर) वाला होता है। प्रत्येक चरण में 8 सगण तथा एक गुरु वर्ण क्रम से रहते हैं।
स्पष्टीकरण
इस उदाहरण का प्रत्येक चरण 25 वणों वाला है। यहाँ सभी चरणों के प्रारम्भ में 8 सगण तथा अन्त में 1 गुरु के होने से यह सुन्दरी संवैया का उदाहरण है।
(ग) मनहर या मनहरण (सवैया) इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण (अक्षर) होते हैं। इस प्रकार मनहर छन्द में सवैया के वर्षों की अधिकतम निर्धारित संख्या 26 से अधिक होने के कारण इसे दण्डक छन्द या दण्डक वृत्त कहा जाता है। मनहर को कवित्त भी कहते हैं। इसमें 16-16 अथवा 8-8-8-7 वर्षों पर यति होती हैं तथा अन्त में एक गुरु वर्ण रहता है।
स्पष्टीकरण यहाँ प्रत्येक चरण में 31 वर्ण हैं तथा सभी चरणों में 8-8-8-7 वर्षों पर यति है। अतः यह मनहर छन्द का उदाहरण हैं।
(घ) सुमुखि (सवैया) इसमें सात जगण तथा लघु-गुरु से छन्द की सृष्टि होती है। यति 11वें और 12वें वर्गों पर होती है। मदिरा संवैया के प्रारम्भ में एक लघु वर्ण जोड़ देने से सुमुखी सवैया की रचना होती है। संवैये का यह रूप जगण (|ऽ|) अर्थात् लघु गुरु लघु की आवृत्ति के आधार पर चलता है।
स्पष्टीकरण
उपर्युक्त उदाहरण में सात जगण के पश्चात् लघु-गुरु का विधान है। अतः सात जगण + लघु + गुरु होने से यहाँ सुमुखि छन्द है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जिस छन्द में चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं, वह कहलाता है। (2010)
अथवा
यह सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण और तगण के प्रयोग का निषेध है। इस छन्द का नाम है (2010)
(क) दोहा
(ख) सोरठा
(ग) रोला
(घ) चौपाई
उत्तर:
(घ) चौपाई
प्रश्न 2.
चौपाई छन्द में कितने चरण होते हैं? सही विकल्प चुनकर लिखिए।
(क) दो
(ख) चार
(ग) छः
(घ) आठ
उत्तर:
ख) चार
प्रश्न 3.
“प्रिय पति वह मेरा, प्राण प्यारा कहाँ है।
दुःख-जलधि निमग्ना का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं देख कर जी सकी हैं।
वह हृदय हमारा, नेत्र तारा कहाँ है।”
उपर्युक्त पद्य में कौन-सा छन्द है? (2011)
(क) सवैया
(ख) सोरठा
(ग) मालिनी
(घ) रोला
उत्तर:
(ग) मालिनी
प्रश्न 4.
हरिगीतिका छन्द में प्रत्येक चरण में मात्राएँ होती हैं (2011)
(क) 24
(ख) 28
(ग) 26
(घ) 22
उत्तर:
(ख) 28
प्रश्न 5.
“नव उज्ज्वल जले-धार, हीर हीरक सी सोहति।
बिच-बिच छहरति बूंद, मध्य मुक्तामनि मोहति।।”
इसमें प्रयुक्त छन्द का नाम है। (2011)
(क) दोहा
(ख) चौपाई
(ग) सोरठा
(घ) बरवै
उत्तर:
(ग) सोरठा
प्रश्न 6.
यह सम मात्रिक छन्द है। यह चार चरण में लिखा जाता है। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 11वीं और 13वीं मात्राओं पर यति रहती है। वहाँ छन्द होता है। (2010)
(क) रोला
(ख) कुण्डलिया
(ग) इन्द्रवज्रा
(घ) बरवै
उत्तर:
(क) रोला
प्रश्न 7.
“सुनत सुमंगल बैन, मन प्रमोद सनपुलक भर।
सरद सरोरुह नैन, तुलसी भरे सनेह जल।।”
इसमें छन्द है।
(क) दोहा
(ख) रोला
(ग) बरवै
(घ) सोरठा
उत्तर:
(घ) सोरठा
प्रश्न 8.
“नील सरोरुह स्याम, सरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम, सदा छीरसागर संयन।।”
इसमें छन्द है।
(क) चौपाई
(ख) सोरठा
(ग) सवैया
(घ) बरवै
उत्तर:
(ख) सोरठा
प्रश्न 9.
“मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाईं परै श्याम हरित-दुति होय।।”
इस पद में छन्द है।
(क) चौपाई
(ख) सोरठा
(ग) दोहा
(घ) बरवै
उत्तर:
(ग) दोहा
प्रश्न 10.
“मैं लखि नारी ज्ञानु, करि राख्यौ निरधारु यह।
वहई रोग-निदानु, वहै बैदु, औषधी वहै।।
उपर्युक्त पद्य में कौन-सा छन्द है?
(क) दोहा
(ख) रोला
(ग) उपेन्द्रवज्रा
(घ) सोरठा
उत्तर:
(घ) सोरठा
प्रश्न 11.
बरवै छन्द में कुल मात्राएँ होती हैं। (2010)
(क) 48
(ख) 44
(ग) 38
(घ) 32
उत्तर:
(ग) 38
प्रश्न 12.
“अवधि शिला का उर पर, था गुरु भार।
तिल-तिल काट रही थी, दृग जल-धार।।”
इसमें प्रयुक्त छन्द है। (2010)
(क) सोरठा
(ख) दोहा
(ग) रोला
(घ) बरवै
उत्तर:
(घ) बरवै
प्रश्न 13.
सोरठा छन्द की प्रत्येक पंक्ति में कुल मात्राएँ होती हैं।
(क) 16
(ख) 24
(ग) 32
(घ) 64
उत्तर:
(ख) 24
प्रश्न 14.
“सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु, जसु अपजसु बिधि हाथ।।”
इस पद्य में छन्द है। (2010)
(क) चौपाई
(ख) सोरठा
(ग) दोहा
(घ) सवैया
उत्तर:
(ग) दोहा
प्रश्न 15.
सिय मुख शरद कमल जिमि, किमि कहिजाय।
निसि मलीन वह, निसि दिन, यह बिगसाय।।
पद में प्रयुक्त छन्द का नाम हैं।
(क) दोहा
(ख) सोरठा
(ग) बरवै
(घ) चौपाई
उत्तर:
(ग) बरवै
प्रश्न 16.
ऋषिहिं देखि हरषै हियो, राम देखि कुम्हलाई।
धनुष देखि इरपै महा, चिन्ता चित्त डोलाइ।।।
इसमें प्रयुक्त छन्द है।
(क) सोरठा
(ख) चौपाई
(ग) बरवै
(घ) दोहा
उत्तर:
(घ) दोहा
प्रश्न 17.
यगण का सही सूत्र है।
(क) ||ऽ
(ख) |||
(ग) ऽऽ|
(घ) |ऽऽ
उत्तर:
(घ) |ऽऽ
प्रश्न 18.
“कागद पर लिखत न बनत, कहत सन्देसु लेजात।
कहिहै सब तेरो हियौ, मेरे हिय की बात।।”
इसमें प्रयुक्त छन्द का नाम है।
(क) मालिनी
(ख) सवैया
(ग) बरवै
(घ) दोहा
उत्तर:
(घ) दोहा
प्रश्न 19.
“जो न होत जग जनम भरत को।
सकल धरम धुर धरनि धरत को।।”
उपरोक्त पंक्तियाँ किस छन्द में हैं? (2010)
(क) बरवै
(ख) सवैया
(ग) कुण्डलिया
(घ) चौपाई
उत्तर:
(घ) चौपाई
प्रश्न 20.
रोला छन्द में कितनी मात्राएँ होती हैं? (2010)
अथवा
‘रोला’ छन्द के एक (प्रत्येक चरण में कुल कितनी मात्राएँ होती हैं? (2011, 10)
(क) 28
(ख) 24
(ग) 16
(घ) 19
उत्तर:
(ख) 24
प्रश्न 21.
कुण्डलिया के प्रत्येक चरण में मात्राएँ होती हैं।
(क) 22
(ख) 24
(ग) 26
(घ) 20
उत्तर:
(ख) 24
प्रश्न 22.
जिस छन्द में चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में तगण, भगण, दो जगण और दो गुरु होते हैं, वहाँ छ्न्द होता है
(क) इन्द्रवज्रा
(ख) मालिनी
(ग) वसन्ततिलका
(घ) मत्तगयन्द सवैया
उत्तर:
(ग) वसन्ततिलको
प्रश्न 23.
चम्पक हरवा अँग मिलि, अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरे, जब कॅमिलाय।।
उपरोक्त पद्य में कौन-सा छन्द है? (2011)
(क) दोहा
(ख) बरवै
(ग) सोरठा
(घ) रोला
उत्तर:
(ख) बरवै
प्रश्न 24.
जिस छन्द में प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं, वह कहलाता है?
(क) दोहा
(ख) सोरठा
(ग) रोला
(घ) इन्द्रवज्रा
उत्तर:
(ख) सोरठा
प्रश्न 25.
“बिनु पग चले सुने बिनु काना। कर बिनु कर्म करे विधि नाना।।
तनु बिनु परस नयन बिनु देखा। गहे घ्राण बिनु बास असेखा।।”
उपरोक्त पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? (2011)
(क) बरवै
(ख) चौपाई
(ग) हरिगीतिका
(घ) वसन्ततिलका
उत्तर:
(ख) चौपाई
प्रश्न 26.
“सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे।
बिहँसे करुणा ऐन, चिरौ जानकी लखन तन।।”
उपरोक्त पद्य में कौन-सा छन्द है?
(क) दोहा
(ख) रोला
(ग) सोरठा
(घ) बरवै
उत्तर:
(ग) सोरठा
प्रश्न 27.
“कातिक सरद चन्द उजियारी जग सीतल हाँ विरहै जारी।”
उक्त पंक्ति में प्रयुक्त छन्द का नाम है। (2010)
(क) दोहा
(ख) रोला
(ग) चौपाई
(घ) सोरठा
उत्तर:
(ग) चौपाई
प्रश्न 28.
“मैं जो नया ग्रन्थ विलौकता हैं, भाता मुझे सो नव मित्र-सा है।
देखें उसे मैं नित नेम से ही, मानो मिला मित्र मुझे पुराना।।”
उपरोक्त पद्य में कौन-सा न्द है? (2010)
(क) उपेन्द्रवज्रा
ख) संवैया
(ग) वसन्ततिलका
(घ) इन्द्रवज्रा
उत्तर:
(घ) इन्द्रवज्रा
प्रश्न 29.
“भू में रमी शरद की कमनीयता थी।
नीला अनन्त नभ निर्मल हो गया था।
थी छा गई कंकुभ में, अमिता सिताभा।
उत्फुल-सी प्रकृति थी, प्रतिभात होती।।”
उपर्युक्त पद्यांश में कौन-सा छन्द है? (2011)
(क) मालिनी
(ख) इन्द्रवज्रा
(ग) वसन्ततिलका
(घ) उपेन्द्रवज्रा
उत्तर:
(ग) वसन्ततिलका।
प्रश्न 30.
“सुख शान्ति रहे सब ओर सदा, अविवेक तथा अघ पास न आवै।
गुणशील तथा बल बुद्धि बढ़े, हठ बैर विरोध घटै मिटि जावै।
कहे मंगल दारिद दूर भगे, जग में अति मोद सदा सरसावै।।
कवि पण्डित शूरन वीरन से, विलसे यह देश सदा सुख पावै।।”
उपरोक्त पद्य में कौन-सा छन्द है? (2011, 10)
(क) सुन्दरी
(ख) मत्तगयन्द
(ग) कवित्त मनहर
(घ) कुण्डलिया
उत्तर:
(क) सुन्दरी
प्रश्न 31.
आदि में एक दोहा जोड़कर और बाद में एक रोला जोड़कर कौन-सा छन्द बनता है?
अथवा
रोला छन्द के प्रारम्भ में एक दोहा जोड़ने पर जो छन्द बन जाता है, उसका नाम लिखिए (2008)
(क) हरिगीतिका
(ख) कुण्डलिया
(ग) बरवै।
(घ) वसन्ततिलका
उत्तर:
(ख) कुण्डलिया
प्रश्न 32.
“सकल मलिन मन दीन दुखारी। देखी सासु आन अनुसारी।” उपरोक्त पद में कौन-सा छन्द है? (2011)
(क) रोला
(ख) सोरठा
(ग) दोहा
(घ) चौपाई
उत्तर:
(घ) चौपाई
प्रश्न 33.
चौपाई छन्द में कुल मात्राएँ होती हैं। (2007)
(क) 15
(ख) 16
(ग) 64
(घ) 32
उत्तर:
(ग) 64
प्रश्न 34.
दोहा छन्द में कुल मात्राएँ होती हैं। (2007)
(क) 24
(ख) 48
(ग) 38
(घ) 32
उत्तर:
(ख) 48
प्रश्न 35.
इन्द्रवज्रा के प्रत्येक चरण में कुल वर्ण होते हैं। (2007)
(क) 10
(ख) 12
(ग) 11
(घ) 14
उत्तर:
(ग) 11
प्रश्न 36.
वसन्ततिलका छन्द के एक चरण में कुल कितने वर्ण होते हैं? (2011)
(क) 16
(ख) 18
(ग) 28
(घ) 14
उत्तर:
(घ) 14
प्रश्न 37.
जहाँ पहले और तीसरे चरण में 12-12 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 7-7 मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में लघु होता है, वहाँ छन्द होता है।
(क) कुण्डलिया
(ख) बरवै
(ग) इन्द्रवज्रा,
(घ) सवैया
(घ) 32
उत्तर:
(ख) बरवै
प्रश्न 38.
जिस छन्द में प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण, तगण, जगण और दो गुरु वर्ण के क्रम से होते हैं, वह कहलाता है।
अथवा
इस छन्द में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण होते हैं। वर्गों में जगण, तगण, जगण और गुरु-गुरु का क्रम होता है। चरण के अन्त में यति होती है। इस छन्द का नाम है। (2008)
(क) इन्द्रवज्रा
(ख) उपेन्द्रवज्रा
(ग) सवैया
(घ) वसन्ततिलका
उत्तर:
(ख) उपेन्द्रवज्रा
प्रश्न 39.
“राधा नागरि सोइ, मेरी भवबाधा हौं।
श्याम हरित दुति होड़, जा तन की झाई परै।।”
इस पद में छन्द है (2008)
(क) चौपाई
(ख) सोरठा
(ग) दोहा
(घ) इन्द्रवज्रा
उत्तर:
(ख) सोरठा
प्रश्न 40.
माटी कहे कुम्हार से तु क्यों रौंदे मोय।।
एक दिन ऐसा होयगा, मैं दूंगी तोय।।
इसमें छन्द है।
(क) सरोठा
(ख) चौपाई
(ग) दोहा
(घ) इन्द्रवज्रा
उत्तर:
(ग) दोहा
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए ।
कुन्द इन्दु सम देह, उमा रमण करुणा अयन।
जाहि दीन पर नेह, बुद्धि राशि शुभ गुण सदन।।। (2016)
उत्तर:
यहाँ अर्द्ध सम छन्द सोरठा है। सोरठा के विषम चरणों (प्रथम एवं तृतीय) में 11.11 और सम चरणों (द्वितीय एवं चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक विषम चरणों में होता है, जबकि विषम चरणों के अंत में जगण (|ऽ|) का निषेध रहता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
“मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झांई परे, श्याम हरित दुति होय।।” (2014)
उत्तर:
यहाँ अर्द्ध सम मात्रिक दोहा छन्द है।। दोहा छन्द के प्रथम एवं तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके सम चरणों के अन्त में गुरु-लघु आते हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? सप्रमाण स्पष्ट कीजिए
“देवी पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होहि सुखारे।।” (2012)
उत्तर:
यहाँ सम मात्रिक चौपाई छन्द हैं, क्योंकि इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ और अन्त में दो गुरु वर्ण हैं। साथ ही चरण के अन्त में जगण (15) एवं तगण (55) नहीं हैं।’
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? सप्रमाण स्पष्ट कीजिए।
सुनत सुमंगल बैन, मन प्रमोद तन पुलक भर।।
सरद सरोरुह नैन, तुलसी भरे सनेह जल।। (2016, 15, 14, 12, 09)
उत्तर:
यह अर्द्ध सम मात्रिक छन्द हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 11 (ग्यारह) दूसरे और चौथे चरण में 13 (तेरह) मात्राएँ हैं। इसमें चार चरण हैं। सोरठा छन्द है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
खग वृंद सोता है अतः कल, कल नहीं होता वहाँ।
बस मन्द मारुत का गमन ही, मौन है खोता जहाँ।।
इस भौति धीरे से परस्पर, कह सजगता की कथा।।
यों दीखते हैं वृक्ष ये हों, विश्व के प्रहरी यथा।।।
उत्तर:
यह सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसमें प्रत्येक चरण में 16 और 12 पर यति होती है। इसके प्रत्येक चरण के अन्त में रगण (IऽI) आता हैं। इस आधार पर इन पंक्तियों में हरिगीतिका छन्द है।।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? सप्रमाण स्पष्ट कीजिए।
कृतघन कतहुँ न मानहीं, कोटि करौ जो कोय।
सरबस आगे राखिए, तऊ न अपनो होय।।।
तऊ न अपनो होय, भले की भली न मौने।।
काम काठि चुप रहे, फेरि तिहि नहिं पहचानै।।
कह ‘गिरिधर कविराय’ रहत नित ही निर्भय मन।
मित्र शुत्र ना एक, दाम के लालच कृतघन।।
उत्तर:
यह एक विषम मात्रिक छन्द हैं। इसमें छः चरण होते हैं। एक दोहे और एक रोले के योग से बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। प्रथम चरण के प्रथम शब्द की अन्तिम चरण के अन्तिम शब्द के रूप में तथा द्वितीय चरण के अन्तिम अर्द्ध-चरण की तृतीय चरण के प्रारम्भिक अर्द्धचरण के रूप में आवृत्ति होती है। अत: यह कुण्डलिया छन्द हैं।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है। उसका लक्षण लिखिए।
अवधि शिला का इर पर, था गुरु भार।
तिल तिल काट रही थी, दृग जल धार।।
उत्तर:
यह अर्थ सम मात्रिक बरवै छन्द है। इसके पहले और तीसरे चरणों में 12-12 मात्राएँ होती हैं, दूसरे और चौथे चरणों में 7-7 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अन्त में जगण (|ऽ|) आवश्यक होता है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
थे दीखते परमवृद्ध नितान्त रोगी,
या थी नवागत वधू गृह में दिखाती।
कोई न और इनको तज़ के कहीं था,
सूने सभी सदन गोकुल के हुए थे।।। (2016, 13, 12)
उत्तर:
यह समवृर्णवृत्त वसन्ततिलका नामक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते हैं और प्रत्येक चरण में एक तगण (ऽऽ|), एक भगण (ऽ||), दो जगण (|ऽ|) और अन्त में दो गुरु होते हैं। इसमें 8, 6 वर्षों पर यति होती है।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
भागीरथी रूप अनूपकारी, चन्द्राननी लोचन कंजधारी।
वाणी बखानी सुख तत्व सोध्यौ, रामानुजै आनि प्रबोध बोध्यौ। (2016, 15, 14, 13, 12)
उत्तर:
यह समवर्णवृत्त इन्द्रवज्रा छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में दो तगण (ऽऽ|), एक जगण (|ऽ|) और दो गुरु होते हैं। इस प्रकार इसके प्रत्येक चरण में कुल 11 वर्ण होते हैं।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण भी लिखिए।
बंदऊँ गुरु पद पदुम पागा, सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।
अमिय मूरिमय चूरन चारु, समन सकल भव रुज परिमारु।।
उत्तर:
यह सम मात्रिक छन्द चौपाई है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण (|ऽ|) और तगण (ऽऽ|) के प्रयोग का निषेध होता है अर्थात् चरण के अन्त में गुरु (ऽ) लघु (|) नहीं होने चाहिए। दो गुरु (ऽऽ), दो लघु (||), लघु-गुरु (|ऽ) हो सकते हैं।
प्रश्न 11.
यति का प्रयोग कहाँ किया जाता है?
उत्तर:
कभी कभी छन्द का पाठ करते समय, कहीं-कहीं क्षण भर को रुकना पड़ता है, उसे यति कहते हैं।
प्रश्न 12.
गण किसे कहते हैं? गण कितने हैं?
उत्तर:
लघु-गुरु क्रम से तीन वर्षों के समुदाय को गण कहते हैं। गणों की संख्या आठ है।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण भी लिखिए। (2014, 13, 12, 11, 10)
नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन।।
करउ सो मम उर धाम, सदा छीर सागर सयन।।
उत्तर:
यह अर्द्ध सम मात्रिक छन्द सोरठा है। इसके प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। पहले और तीसरे चरण के अन्त में गुरु-लघु आते हैं और कहीं-कहीं तुक भी मिलती है। यह दोहा छन्द का उल्टा होता है।
प्रश्न 14.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
लसत मंजु मुनि मण्डली, मध्य सीय रघुचन्दु।
ग्यान सभा जनु तनु धरें, भगति सच्चिदानन्दु।।
उत्तर:
यह अर्द्ध सम मात्रिक छन्द दोहा है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ, दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरणों के शुरू में जगण (|ऽ|) नहीं होना चाहिए। सम चरणों के अन्त में गुरु (ऽ) और लघु (|) नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 15.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा ऊन्द है? उसका लक्षण भी लिखिए।
प्रिय पति वह मेरा प्राण-प्यारा कहाँ है?
दुःख-जलनिधि-डूबी का सहारा कहाँ है?
लख मुख जिसका मैं आज लौ जी सकी हैं।
वह हृदय हमारा नेत्र-तारा कहाँ है?
उत्तर:
यह समवर्णवृत्त मालिनी छन्द है। इसमें 15 वर्ण होते हैं और इसके . प्रत्येक चरण में नगण (|||), मगण (ऽऽऽ), यगण (|ऽऽ) होते हैं और 8-7 वर्गों पर यति होती है।
प्रश्न 16.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
चले बली पावन पादुका लै,
प्रदक्षिणा राम सियाहु को है।
गए ते नन्दीपुर बास कीन्हों,
सबन्धु श्रीरामहिं चित्त दीन्हों।।
उत्तर:
यह समवर्ण-वृत्त छन्द उपेन्द्रवज्रा है। इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं और वे जगण (|ऽ|), तगण (ऽऽ|), जगण और दो गुरु के क्रम से होते हैं।
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