UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 5 महादेवी वर्मा
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 5 महादेवी वर्मा
कवयित्री का साहित्यिक परिचय और कृतिया
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा के जीवन-परिचय एवं कृतियों (साहित्यिक योगदान) पर प्रकाश डालिए। [2009, 10, 11]
था
महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय दीजिए एवं उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। [2012, 13, 14, 16, 17, 18]
उत्तर
जीवन-परिचय–महादेवी वर्मा का जन्म फखाबाद के एक शिक्षित कायस्थ परिवार में सन् 1907 ई०( संवत् 1963 वि०) में होलिका दहन के दिन हुआ था। इनके पिता श्री गोविन्दप्रसाद वर्मा, भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। इनकी माता हेमरानी परम विदुषी धार्मिक महिला थीं एवं नाना ब्रजभाषा के एक अच्छे कवि थे। महादेवी जी पर इन सभी का प्रभाव पड़ा और अन्ततः वे एक प्रसिद्ध कवयित्री, प्रकृति एवं परमात्मा की निष्ठावान् उपासिका और सफल प्रधानाचार्या के रूप में प्रतिष्ठित हुईं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। संस्कृत से एम० ए० उत्तीर्ण करने के बाद ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या हो गयीं। इनका विवाह 9 वर्ष की अल्पायु में ही हो गया था। इनके पति श्री रूपनारायण सिंह एक डॉक्टर थे, परन्तु इनका दाम्पत्य जीवन सफल नहीं था। विवाहोपरान्त ही इन्होंने एफ०ए०, बी०ए० और एम०ए० परीक्षाएँ सम्मानसहित उत्तीर्ण कीं। महादेवी जी ने घर पर ही चित्रकला तथा संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की।
इन्होंने नारी-स्वातन्त्र्य के लिए संघर्ष किया, परन्तु अपने अधिकारों की रक्षा के लिए नारियों का शिक्षित होना भी आवश्यक बताया। कुछ वर्षों तक ये उत्तर प्रदेश विधान-परिषद् की मनोनीत सदस्या भी रहीं। भारत के राष्ट्रपति से इन्होंने ‘पद्मभूषण’ की उपाधि प्राप्त की। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से इन्हें ‘सेकसरिया पुरस्कार’ तथा ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ मिला। मई 1983 ई० में ‘भारत-भारती’ तथा नवम्बर 1983 ई० में यामा पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से इन्हें सम्मानित किया गया। 11 सितम्बर, 1987 ई० (संवत् 2044 वि०) को इस महान् लेखिका का स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक सेवाएँ–श्रीमती महादेवी वर्मा का मुख्य रचना क्षेत्र काव्य है। इनकी गणना छायावादी कवियों की वृहत् चतुष्टयी (प्रसाद, पन्त, निराला और महादेवी) में होती है। इनके काव्य में वेदना की प्रधानता है। काव्य के अतिरिक्त इनकी बहुत-सी श्रेष्ठ गद्य-रचनाएँ भी हैं। इन्होंने प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना करके साहित्यकारों का मार्गदर्शन भी किया। ‘चाँद’ पत्रिका का सम्पादन करके इन्होंने नारी को अपनी स्वतन्त्रता और अधिकारों के प्रति सजग किया है।
महादेवी वर्मा जी के जीवन पर महात्मा गाँधी का तथा कला-साहित्य साधना पर कवीन्द्र रवीन्द्र का प्रभाव पड़ा। इनका हृदय अत्यन्त करुणापूर्ण, संवेदनायुक्त एवं भावुक था। इसलिए इनके साहित्य में भी वेदना की गहरी टीस है।
रचनाएँ-महादेवी जी का प्रमुख कृतित्व इस प्रकार है-
- नीहार-यह इनका प्रथम प्रकाशित काव्य-संग्रह है।
- रश्मि-इसमें आत्मा-परमात्मा विषयक आध्यात्मिक गीत हैं।
- नीरजा-इस संग्रह के गीतों में इनकी जीवन-दृष्टि का विकसित रूप दृष्टिगोचर होता है।
- सान्ध्यगीत-इसमें इनके श्रृंगारपरक गीतों को संकलित किया गया है।
- दीपशिखा-इसमें इनके रहस्य-भावना-प्रधान गीतों का संग्रह है।
- यामा-यह महादेवी जी के भाव-प्रधान गीतों का संग्रह है।
इसके अतिरिक्त ‘सन्धिनी’, ‘आधुनिक कवि’ तथा ‘सप्तपर्णा’ इनके अन्य काव्य-संग्रह हैं। ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ इनकी महत्त्वपूर्ण गद्य रचनाएँ हैं।
साहित्य में स्थान–निष्कर्ष रूप में महादेवी जी वर्तमान हिन्दी-कविता की सर्वश्रेष्ठ गीतकार हैं। इनके भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही अतीव पुष्ट हैं। अपने साहित्यिक व्यक्तित्व एवं अद्वितीय कृतित्व के आधार पर, हिन्दी साहित्याकाश में महादेवी जी का गरिमामय पद ध्रुव तारे की भाँति अटल है।
‘पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोचर
गीत 1
प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
प्रश्न 1.
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना !
जाग तुझको दूर जाना !
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जाग या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफान बोले ! पर तुझे है नाश-पथ पर, चिह्न अपने छोड़ आना !
जाग तुझको दूर जाना !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवयित्री ने पथिक को क्या प्रेरणा दी है?
(iv) मार्ग में आने वाली अनेकानेक कठिनाइयों के बावजूद भी पथिक को विनाश और विध्वंश के बीच क्या छोड़ जाना है?
(v) ‘हिमगिरि’ शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित सान्ध्यगीत नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 1′ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम– गीत 1
कवयित्री का नाम-महादेवी वर्मा।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं कि हे पथिक! तुम्हारी सदा सचेत रहने वाली आँखों में यह खुमारी कैसी है और तुम्हारी वेशभूषा इतनी अस्त-व्यस्त क्यों हो रही है? ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तुम अपने घर पर ही विश्राम कर रहे हो। सम्भवतः तुम यह भूल गये हो कि तुम्हें लम्बी यात्रा पर जाना है। इसीलिए तुम जाग जाओ, क्योंकि तुम्हारा प्राप्य या लक्ष्य बहुत दूर है। इसीलिए तुम्हें आलस्य में पड़े न रहकर तुरन्त निकल जाना चाहिए। आशय यह है कि साधक को साधना-मार्ग में अनेक कठिनाइयों-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जो साधक इनसे घबराकर या हताश होकर बैठ जाता है, वह अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुँच पाता। इसलिए साधक को आगे बढ़ते रहने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
(iii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवयित्री ने पथिक को निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाने की प्रेरणा दी है।
(iv) मार्ग में आने वाली अनेकानेक कठिनाइयों के बावजूद भी पथिक को विनाश और विध्वंस के बीच नव-निर्माण के चित्र छोड़ जाना है।
(v) ‘हिमगिरि’ शब्द के दो पर्यायवाची हैं–हिमालय, गिरिराज।
प्रश्न 2.
कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी !
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना !
जाग तुझको दूर जाना !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) इस पद्यांश से कवयित्री का आशय स्पष्ट कीजिए।
(iv) किसकी राख अमर दीपक की भाग बनकर अमर हो जाती है?
(v) ‘क्षणिक’ शब्द से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित सान्ध्यगीत नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 1′ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- गीत 1
कवयित्री का नाम-महादेवी वर्मा।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवयित्री का कहना है कि यदि किसी के हृदय में अज्ञात प्रियतम के प्रति सच्चा प्रेम है तथा उसके हृदय में अपने प्रियतम से मिलने की एकनिष्ठ छटपटाहट विद्यमान है तो इस स्थिति में उसको मिलने वाली हार भी जीत ही मानी जाएगी। भाव यह है कि प्रेम की सफलता इसी में है कि हम एकनिष्ठ भाव से अपने प्रेम को प्रदर्शित करते रहें, चाहे हमारा अपने प्रियतम से मिलन हो या न हो। आशय यह है कि जीवात्मा अविनाशी परमात्मा पर अपने को मिटाकर भी अक्षय पुण्य एवं गौरव की अधिकारिणी बनती है।
(iii) इस पद्यांश से कवयित्री का आशय है कि साधना के कष्टों से घबराकर साधक को हार नहीं माननी चाहिए। साधना-पथ पर मिली असफलता भी गौरव का ही कारण बनती है।।
(iv) पतंगा दीपक पर जलकर राख बन जाता है। उसकी राख अमर दीपक का भाग बनकर अमर हो जाती
(v) क्षणिक = क्षण + इक।
गीत 2
प्रश्न 1.
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला !
घेर ले छाया अमा बन,
आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन !
और होंगे नयन सूखे, तिल बुझे औ’ पलक रूखे,
आर्द्र चितवन में यहाँ
शत विद्युतों में दीप खेला !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कवयित्री को साधना-पथ पर आगे बढ़ने से कौन नहीं रोक सकता?
(iv) कवयित्री के साधनारूपी दीपक पर किनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता?
(v) ‘प्राण’ तथा ‘अश्रु’ शब्दों के वचन बताइए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘दीपशिखा’ नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 2’ नामक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- गीत 2
कवयित्री का नाम–महादेवी वर्मा।
(ii) महादेवी जी कह रही हैं कि लक्ष्य-पथ पर यदि कोई साथ न भी चले, अकेला ही चलना पड़े, तब भी वे निरन्तर आगे बढ़ती रहेंगी और अपरिचित मार्ग के समस्त संकटों को सहर्ष झेलकर अज्ञात प्रियतम के पास पहुँच जाएँगी। ऐसा उनका दृढ़विश्वास है।
(iii) कवयित्री को मार्ग में आने वाली बाधाएँ साधना-पथ पर आगे बढ़ने से नहीं रोक सकतीं।
(iv) कवयित्री के साधनारूपी दीपक पर घनघोर वर्षा और कौंधती बिजलियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(v) ‘प्राण’ तथा ‘अश्रु’ सदा बहुवचन में रहने वाले शब्द हैं।
गीत 3
प्रश्न 1.
मैं नीर भरी दुख की बदली !
स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसो,
क्रन्दन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते
पलकों में निर्झरिणी मचली ।।
मेरा पग पग संगीत-भरा,
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा,
नभ के नव रँग बुनते दुकूल,
छाया में मलय-बयार पली !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने स्वयं को क्या बताया है?
(iv) कवयित्री के निरन्तर रुदन का क्या कारण है?
(v) कवयित्री आकाश से अपने हृदय की समानता करते हुए क्या कहती है?
उत्तर
(i) यह पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘सान्ध्य-गीत’ नामक काव्य-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 3’ शीर्षक कविता से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- गीत 3
कवयित्री का नाम–महादेवी वर्मा।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवयित्री महादेवी वर्मा का कहना है कि मैं नीर-भरी दु:ख की बदली हूँ; अर्थात् मेरा जीवन दु:ख की बदलियों से घिरा हुआ है। जिस प्रकार बदली आकाश में रहती है; किन्तु दूर-दूर तक फैले हुए आकाश का कोई भी कोना उसका स्थायी निवास नहीं होता, वह तो इधर-उधर भ्रमण करती रहती है। उसी प्रकार इस विस्तृत संसार में भी ‘मेरा’ कहने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। मेरा तो इतना ही परिचय और इतना ही इतिहास है कि मैं कल आई थी और आज जा रही हूँ। कवयित्री का आशय यह है कि मानव-जीवन क्षणिक है; अर्थात् जो आज है, वह कल नहीं होगा। समग्र मानव-जीवन का मात्र इतना ही परिचय है और इतना ही इतिहास है।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने स्वयं को दुःख की बदली बताया है।
(iv) प्रीतम से मिलने की व्याकुलता कवयित्री के निरन्तर रुदन का कारण है।
(v) कवयित्री आकाश से अपने हृदय की समानता करते हुए कहती हैं कि जिस प्रकार आकाश बहुरंगी मेघरूपी दुपट्टे से सुशोभित है उसी प्रकार मेरा हृदय भी बहुरंगी नाना अभिलाषाओं से राँगा हुआ है।
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