UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi नाटक Chapter 2 आन का मान

By | June 1, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi नाटक Chapter 2 आन का मान

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi नाटक Chapter 2 आन का मान

 

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi नाटक Chapter 2 आन का मान (हरिकृष्ण प्रेमी)

प्रश्न 1
‘आन का मान’ नाटक की कथावस्तु (सारांश अथवा कथानक) संक्षेप में लिखिए। [2010, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘आन का मान’ नाटक का कथासार अपने शब्दों में लिखिए। [2016]
या
‘आन का मान’ नाटक के मार्मिक स्थलों का वर्णन कीजिए। [2009]
या
‘आन का मान’ नाटक के प्रथम अंक की कथा (सारांश) संक्षेप में लिखिए। [2010, 11, 13, 14, 15, 16, 17]
या
‘आन का मान’ नाटक के द्वितीय अंक की कथा का सार अपने शब्दों में लिखिए। (2015)
या
‘आन का मान’ नाटक के तीसरे अंक की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। [2015, 16, 18]
उत्तर

‘आन का मान’ नाटक का सारांश

प्रथम अंक-श्री हरिकृष्ण प्रेमी कृत ‘आन का मान’ नाटक का आरम्भ रेगिस्तान के एक मैदान से हुआ है। यह काल भारत में औरंगजेब की सत्ता का है। इस समय जोधपुर में महाराजा जसवन्त सिंह का राज्य था। वीर दुर्गादास उन्हीं के कर्तव्यनिष्ठ सेवक हैं जो कि महाराजा की मृत्यु के उपरान्त उनके अवयस्क पुत्र अजीत के संरक्षक बनते हैं। नाटक का कथानक दुर्गादास के चारों ओर घूमता है। अकबर द्वितीय के पुत्र बुलन्द अख्तर और पुत्री सफीयतुन्निसा हैं। दोनों भाई-बहन औरंगजेब की राष्ट्र-विरोधी नीतियों का विरोध करते हैं। उनकी बातों से यह भी आभास होता है कि अकबर द्वितीय ने औरंगजेब के अत्याचारों के विरोध में वीर दुर्गादास से मित्रता कर ली थी। दुर्गादास ने अकबर द्वितीय को बादशाह घोषित कर दिया था, परन्तु औरंगजेब की एक चालवश उसे ईरान भाग जाना पड़ा।

सफीयत और बुलन्द दुर्गादास के पास ही रह जाते हैं। अजीतसिंह युवक होकर जोधपुर का शासन सँभाल लेता है। अजीतसिंह सफीयत से प्रेम करता है। सफीयत जानती है कि हिन्दू युवक और मुसलमान युवती का विवाह कठिन होगा। दुर्गादास भी अजीत को राजपूत धर्म की मर्यादा का ध्यान दिलाता है-”मान रखना राजपूत की आन होती है और इस आन का मान रखना उसके जीवन का व्रत होता

द्वितीय अंक-इस नाटक के सर्वाधिक मार्मिक स्थलों से सम्बन्धित कथा दूसरे अंक की कथा है। कथा का प्रारम्भ भीमनदी के तट पर स्थित ब्रह्मपुरी से प्रारम्भ होता है। औरंगजेब ने इस नगरी का नाम ‘इस्लामपुरी’ रख दिया है। औरंगजेब की भी दो पुत्रियाँ हैं-मेहरुन्निसा तथा जीनतुन्निसा। मेहरुन्निसा औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर किये जा रहे अत्याचारों का विरोध करती है। जीनत पिता की समर्थक है। औरंगजेब अपनी पुत्रियों की बात सुनता है तथा मेहरुन्निसा द्वारा बताये गये अत्याचारों के लिए पश्चात्ताप करता है। औरंगजेब अपने पुत्रों को जनता के साथ उदार व्यवहार करने के लिए कहता है। औरंगजेब अपने अन्तिम समय में अपनी वसीयत करता है कि उसका अन्तिम संस्कार सादगी से किया जाए। इस समय ईश्वरदास; दुर्गादास को बन्दी बनाकर औरंगजेब के पास लाता है। औरंगजेब अपने पौत्र-पौत्री बुलन्द तथा सफीयत को पाने के लिए दुर्गादास से सौदेबाजी करता है, परन्तु दुर्गादास इसके लिए तैयार नहीं होते।

तृतीय अंक-नाटक के तीसरे और अन्तिम अंक में अजीतसिंह पुनः सफीयत से जीवन-साथी बनने का निवेदन करता है, परन्तु सफीयत अजीत को लोकहित के लिए स्वहित का त्याग करने का परामर्श देती है। वह कहती है-”महाराज ! प्रेम केवल भोग की ही माँग नहीं करता, वह त्याग और बलिदान भी चाहता है।” बुलन्द तथा दुर्गादास के विरोध की अजीत परवाह नहीं करता तथा सफीयत को अपने साथ चलने के लिए कहता है। दुर्गादास पालकी में सफीयत को ले जाना चाहते हैं। अजीत नाराज होकर पालकी को रोककर कहते हैं-“दुर्गादास जी ! मारवाड़ में आप रहेंगे या मैं रहूँगा” दुर्गादास मातृभूमि को अन्तिम प्रणाम करके चले जाते हैं। नाटक की कथा यहीं समाप्त हो जाती है।

उपर्युक्त कथा, कथा-संघटन की दृष्टि से सुगठित और व्यवस्थित है। ऐतिहासिक घटना को कल्पना के सतरंगी रंगों में रँगकर रोचक और प्रभावपूर्ण बना दिया गया है। प्रथम अंक में कथा की प्रस्तावना या आरम्भ है। द्वितीय अंक में अजीत व दुर्गादास के टकराव के समय विकास की अवस्था के उपरान्त कथा अपनी चरमसीमा पर आ जाती है। राज्य-निष्कासन के आदेश और सफीयत के पालकी में बैठने के साथ ही कथा को उतार आ जाता है। सफीयत की विदा के साथ ही कथानक समाप्त हो जाता है। राज्य-निष्कासन को हँसकर स्वीकार कर ‘आन का मान रखने वाले दुर्गादास से सम्बन्धित यह कथा अत्यन्त संक्षिप्त है।

प्रश्न 2
‘आन का मान’ के आधार पर वीर दुर्गादास का चरित्र-चित्रण कीजिए अथवा चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘आन का मान’ नाटक के प्रमुख पात्र (नायक) को चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
“दुर्गादास का चरित्र ‘आन का मान’ नाटक को प्राणतत्त्व है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए। [2009]
या
‘आन का मान’ नाटक के आधार पर उस प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए जिसने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया हो। (2015)
उत्तर
दुर्गादास का चरित्र-चित्रण श्री हरिकृष्ण प्रेमी कृत ‘आन का मान’ नाटक के नायक वीर दुर्गादास राठौर हैं। दुर्गादास उच्च मानवीय गुणों से युक्त वीर पुरुष हैं। नाटक का सम्पूर्ण घटनाक्रम इनके चारों ओर ही घूमता है। इनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) मानवतावादी दृष्टिकोण-दुर्गादास एक सच्चा व उच्च श्रेणी का मानव है। वह ऐसे किसी भी सिद्धान्त को आदर्श नहीं मानता, जो मानवता के विरुद्ध हो। औरंगजेब के बेटे को मुसलमान होते हुए भी वह अपना मित्र बनाता है। प्राणों की बाजी लगाकर वह अकबर द्वितीय की बेटी सफीयत की रक्षा करता है। दुर्गादास कहता है-”मानवता का मानव के साथ जो नाता है, वह स्वार्थ का नाता नहीं, शाहजादा हुजूर!”
(2) हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति का समन्वयवादी–दुर्गादास धार्मिक भेदभाव को नहीं मानता है। वह हिन्दू और मुस्लिम एकता का प्रबल पोषक है। वह इन संस्कृतियों की पारस्परिक भेदभाव की दीवार को तोड़ना चाहता है। उसकी दृष्टि में मानवता ही श्रेष्ठ धर्म है। वह कहता है-“न केवल मुसलमान ही भारत हैं, और न केवल हिन्दू ही। दोनों को यहीं जीना है, यहीं मरना है।”
(3) आन का पक्का राजपूत–दुर्गादास अपने वचनों के प्रति निष्ठावान है। उसका मत है-”मान रखना राजपूत की आन होती है और इस आन का मान रखना उसके जीवन का व्रत होता है।”
(4) सत्य, न्याय व देश का प्रेमी-दुर्गादास सत्य का प्रतीक है, न्याय में विश्वास रखता है तथा सच्चा देशभक्त है। वह कहता है-”राजपूतों की तलवार सदा सत्य, न्याय, स्वाभिमान और स्वदेश की रक्षक होकर रही है।”
(5) स्वामिभक्त और निश्छल-वह स्वामिभक्त और निश्छल है। अपने गुणों को दाँव पर लगाकर वह कुँवर अजीतसिंह की रक्षा करता है तथा उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचा देता है। कासिम उसके विषय में कहता है-“संसार भर में हाथ में दीपक लेकर घूम आएँगे, तब भी दुर्गादास जैसा शुभचिन्तक, वीर, स्वामिभक्त और निश्छल व्यक्ति न पाएँगे।”
(6) कर्त्तव्यपरायण–दुर्गादास कर्तव्यपरायण व्यक्ति है। वह सदैव अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देता है। औरंगजेब भी वीर दुर्गादास के कर्तव्यपरायण होने की बात ईश्वरदास से कहता है।
(7) सच्चा मित्र-वीरवर दुर्गादास एक सच्चा मित्र है। औरंगजेब का पुत्र अकबर द्वितीय उसका मित्र है। वह मित्रता का ईमानदारी व सच्चाई के साथ पालन करता है। अकबर द्वितीय के सभी साथी उसका साथ छोड़ देते हैं, परन्तु दुर्गादास सच्चे मित्र की तरह उसका साथ देता है। वह अकबर द्वितीय को औरंगजेब के हाथों से बचाने के लिए उसे ईरान भेज देता है।
(8) राष्ट्रीयता-दुर्गादास के हृदय में राष्ट्रीयता कूट-कूटकर भरी है। वह भारत को न मुसलमानों का देश मानता है, न हिन्दुओं का। वह हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की खाई को पाटकर नये समाज का निर्माण करना चाहता है।
(9) सुशासन का समर्थक–दुर्गादास सदैव अच्छे शासन एवं सुव्यवस्था का समर्थक रहा है। वह कहता है-”सुशासन को प्रजा; राजा का प्यार और भगवान का वरदान मानती है।”

इस प्रकार वीर दुर्गादास उच्च आदर्शों वाला मानव है। वह स्वामिभक्त, कर्तव्यपरायण, मानवता में विश्वास रखने वाला, सच्चा मित्र तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता का समर्थक है। उसके ये सभी मानवीय गुण उसके उदात्त चरित्र के प्रमाण हैं। वही इस नाटक का नायक अर्थात् प्रमुख पात्र है।

प्रश्न 3
‘आन का मान’ नाटक के आधार पर औरंगजेब का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2010, 14, 15, 16, 17]
या
‘आन का मान’ नाटक के किसी एक पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2013)
उत्तर
औरंगजेब का चरित्र-चित्रण श्री हरिकृष्ण प्रेमी कृत ‘आन का मान’ नाटक में औरंगजेब; वीर दुर्गादास का प्रतिद्वन्द्वी है तथा उसे खलनायक के रूप में चित्रित किया गया है। वह पूरे भारत पर एकछत्र राज्य की कामना करने वाला मुगल सम्राट् है। वह जीवन भर हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के अस्तित्व को खत्म करने के लिए कुचक्र रचता रहता है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) कट्टर धार्मिक और संकीर्ण हृदय व्यक्ति—औरंगजेब संकीर्ण हृदय वाला कट्टर सुन्नीमुसलमान है। इस्लाम के आगे सभी धर्म उसकी दृष्टि में हेय हैं। मानव-मात्र के लिए वह इस्लाम को ही श्रेयस्कर मानता है। वह जोधपुर के कुमार अजीतसिंह को भी मुसलमान बनाना चाहता है।
(2) नृशंस और निर्दयी-औरंगजेब सत्ता-प्राप्ति के लिए सब-कुछ करने को तैयार हो जाता है। वह अपने भाई दारा और शुजा की हत्या तक कर देता है तथा अपने पिता शाहजहाँ, पुत्र कामबख्श और पुत्री जेबुन्निसा को बन्दी बना लेता है। उसे किसी पर भी दया नहीं आती।
(3) सादा जीवन-औरंगजेब विलासिता से दूर रहकर सादा जीवन व्यतीत करने को पक्षपाती है। वह अपना निजी व्यय सरकारी खजाने से नहीं, वरन् टोपी सिलकर और कुरान की आयतें लिखकर उनकी बिक्री से प्राप्त आय से चलाता है।
(4) आत्मग्लानि से युक्त-औरंगजेब को अपने द्वारा किये गये नृशंस कार्यों के प्रति वृद्धावस्था में ग्लानि होती है। उन्हें सोचकर वह दु:खी होता है। अपनी वसीयत में वह अपने पुत्रों से स्वयं को क्षमा करने की बात लिखता है तथा पुत्र-स्नेह से विह्वल होकर वह अपने पुत्र अकबर द्वितीय को छाती से लगाने के लिए आतुर हो जाता है। मेहरुन्निसा से वह कहता है कि “औरंगजेब बातों के जहर से मरने वाला नहीं है।” मेहर के दण्ड देने की बात सुनकर वह कहता है—“हाथ थक गये हैं बेटी! सिर काटते-काटते।”
(5) स्नेहसिक्त पिता-औरंगजेब जवानी में अपने पिता और सन्तान दोनों के प्रति क्रूरता का व्यवहार करता है, किन्तु बुढ़ापे में आकर उसके हृदय में वात्सल्य का संचार होता है। वह अपने पुत्र अकबर द्वितीय, जो ईरान चला गया है, को हृदय से लगाने के लिए बेचैन है तथा अन्य स्वजनों से मिलने के लिए भी व्याकुल है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि औरंगजेब एक कठोर शासक के रूप में चित्रित किया गया है। अन्तिम समय में उसके चरित्र में परिवर्तन आता है और वह दयालु एवं स्नेही व्यक्ति के रूप में बदल जाता है।

प्रश्न 4
सफीयतुन्निसा का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2013, 14] ‘आन का मान’ नाटक के प्रमुख नारी-पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक की नायिका के चरित्र की विशेषताएँ बताइए। [2013,17]
या
‘आन का मान’ नाटक के आधार पर स्त्री पात्र ‘सफीयतुन्निसा’ का चरित्रांकन कीजिए। [2015]
उत्तर
सफीयतुन्निसा का चरित्र-चित्रण | सफीयतुन्निसा; श्री हरिकृष्ण प्रेमी द्वारा रचित ‘आन का मान’ नाटक की प्रमुख नारी-पात्र है। वह औरंगजेब के पुत्र अकबर द्वितीय की पुत्री है। अकबर द्वितीय अपने पिता की राष्ट्रविरोधी नीतियों का विरोधी है। दुर्गादास राठौर द्वारा उसे ही सम्राट् घोषित कर दिया जाता है, परन्तु औरंगजेब की एक चाल से उसे ईरान भागना पड़ता है। इस स्थिति में दुर्गादास ही उसके पुत्र बुलन्द अख्तर और सफीयतुन्निसा का पालन-पोषण करता है। सफीयतुन्निसा का चरित्र-चित्रण निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर किया जा सकता है

(1) अत्यन्त रूपवती–सफीयतुन्निसी की आयु 17 वर्ष है और वह अत्यन्त आकर्षक रूप वाली है। नाटक के सभी पात्र उसके रूप-सौन्दर्य पर मुग्ध हैं।
(2) वाक्-पटु-सफीयतुन्निसा विभिन्न परिस्थितियों में अपनी वाक्-पटुता का प्रभावपूर्ण प्रदर्शन करती है। उसके व्यंग्यपूर्ण कथन तर्क पर आधारित और मर्मभेदी हैं।
(3) संगीत में रुचि-वह एक उच्चकोटि की संगीत-साधिका है। उसका मधुर स्वर सहज ही दूसरों का हृदय जीत लेता है।
(4) त्याग एवं देशप्रेम की भावना-उसमें त्याग एवं बलिदान की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। राष्ट्रहित में वह अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तत्पर दिखाई देती है।
(5) कर्तव्यनिष्ठ-सफीयतुन्निसा देश के प्रति अपनी अनुकरणीय कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देती है। राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करने के उद्देश्य से ही वह अपने भाई के हाथ में राखी बाँधकर उसे युद्धभूमि में प्राणोत्सर्ग के लिए भेज देती है।
(6) शान्तिप्रिय एवं हिंसा-विरोधी–सफीयत की कामना है कि उसके देश में सर्वत्र शान्ति को वातावरण रहे तथा सभी देशवासी सुखी और समृद्ध हों। किसी भी प्रकार के हिंसापूर्ण कार्यों का वह प्रबल विरोध करती है।
(7) आदर्श प्रेमिका-सफीयत जोधपुर के युवा शासक अजीतसिंह से सच्चा प्रेम करती है, किन्तु प्रेम की उद्वेगपूर्ण स्थिति में भी वह अपना सन्तुलन बनाये रखती है। वह अजीतसिंह को भी धीरज बँधाती है। और उसे लोकहित के लिए आत्महित का त्याग करने की सलाह देती हुई कहती है-”महाराज ! प्रेम केवल भोग की ही माँग नहीं करता, वह त्याग और बलिदान भी चाहता है।”

इस प्रकार सफीयतुन्निसा ‘आन का मान’ नाटक की एक आदर्श नारी-पात्र है। नाटक में उसके चरित्र को विशेष रूप से इस दृष्टि से उभारा गया है कि वह अजीतसिंह से प्रेम करते हुए भी राज्य व अजीतसिंह के कल्याणार्थ अपने विवाह के लिए तैयार नहीं होती।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi नाटक Chapter 2 आन का मान (हरिकृष्ण प्रेमी) help you.

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