UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 24 Social Welfare in India (समाज में समाज-कल्याण)
UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 24 Social Welfare in India (समाज में समाज-कल्याण)
विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1
समाज-कल्याण से आप क्या समझते हैं? सिद्ध कीजिए कि समाज-कल्याण हेतु भारत में नियोजन आवश्यक है।
या
भारत में समाज-कल्याण कार्यक्रम पर एक लेख लिखिए। [2011, 13]
या
समाज कल्याण की कोई दो परिभाषाएँ लिखिए। [2010]
समाज कल्याण को परिभाषित कीजिए और भारत में श्रम कल्याण कार्यक्रम की विवेचना कीजिए। [2013]
उत्तर:
समाज-कल्याण का अर्थ एवं परिभाषाएँ
भारत में समाज-कल्याण की अवधारणा का विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से हुआ है। समाज-कल्याण; समाज सेवा, सामाजिक न्याय और सामाजिक सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। इस प्रकार वे कार्य जो पिछड़े तथा निम्नतम वर्ग के लोगों को सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं, समाज-कल्याण के रूप में जाने जाते हैं। विभिन्न विद्वानों ने समाज-कल्याण को निम्नवत् परिभाषित किया है
- योजना आयोग के अनुसार, “समाज-कल्याण कार्यक्रम का तात्पर्य समाज के अनेक पीड़ित वर्गों के कल्याण और राष्ट्रीय विकास के आधारभूत पक्षों पर बल देने से है।”
- फ्राइडलैण्डर के अनुसार, “समाज-कल्याण सामाजिक सेवाओं की वह संगठित व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य व्यक्तियों और समूहों को जीवन व स्वास्थ्य का सन्तोषजनक स्तर प्रदान करना होता है।”
- कैसिडी के अनुसार, “वे सभी संगठित कार्य एवं शक्ति जो मानव के उद्धार के लिए किये जाते हैं, समाज-कल्याण की श्रेणी में आते हैं।’
वास्तव में, राज्य द्वारा निम्न वर्गों तथा असहाय व्यक्तियों के लिए सम्पन्न की गयी समस्त सेवाएँ ही समाज-कल्याण हैं।
क्या समाज-कल्याण के लिए नियोजन आवश्यक है?
भारत एक विशाल देश है, जिसकी आर्थिक एवं सामाजिक समस्याएँ भी विशाल हैं। यहाँ की लगभग 35.97 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करती है। यहाँ गरीबी, बेकारी, भिक्षावृत्ति, अस्पृश्यता, राष्ट्रीय एकीकरण का अभाव, भाषावाद, साम्प्रदायिकता, औद्योगिक तनाव, अस्वास्थ्य, अशिक्षा, अपराध, बाल-अपराध एवं आर्थिक पिछड़ेपन आदि समस्याएँ व्याप्त हैं। इन समस्याओं से मुक्ति पाने, आर्थिक विषमता को दूर करने, सामाजिक तनावों से छुटकारा पाने एवं सांस्कृतिक पिछड़ेपन पर काबू पाने, गाँवों का पुनर्निर्माण करने एवं समाज-कल्याण हेतु भारत में नियोजन आवश्यक है।
भारत में विभिन्न क्षेत्रों में नियोजन की आवश्यकता एवं महत्त्व को हम इस प्रकार प्रकट कर सकते हैं
1. कृषि क्षेत्र में भारत एक कृषि – प्रधान देश है, परन्तु फिर भी यह कृषि के क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ है, क्योंकि यहाँ का कृषक कृषि के लिए उन्नत औजारों, बीजों, खादों एवं वैज्ञानिक साधनों से परिचित नहीं है। कृषि के विकास एवं उपज बढ़ाने के लिए आवश्यक है। कि नियोजन का सहारा लिया जाए।
2. औद्योगिक क्षेत्र में – औद्योगिक क्षेत्र में भी भारत अन्य देशों की तुलना में पर्याप्त पिछड़ा हुआ है। पूँजी, साहस और वैज्ञानिक ज्ञान के अभाव के कारण भारत में पर्याप्त औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है। दूसरी ओर औद्योगीकरण ने भारत में अनेक समस्याओं; जैसे औद्योगिक तनाव, वर्ग-संघर्ष, आर्थिक विषमता, गन्दी बस्तियाँ, बेकारी, निर्धनता, पर्यावरणप्रदूषण, औद्योगिक असुरक्षा, श्रमिकों, स्त्रियों व बच्चों का शोषण आदि को जन्म दिया है। इन समस्याओं का निवारण सामाजिक-आर्थिक नियोजन द्वारा ही सम्भव है।
3. स्वार्थ-समूहों पर नियन्त्रण – आधुनिक भारत में अनेक शक्तिशाली स्वार्थ-समूह विकसित हो गये हैं, जो केवल अपने ही हितों की पूर्ति में लगे हुए हैं। इन साधनसम्पन्न समूहों के साथ पिछड़े हुए वर्ग के लोग प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में नहीं हैं। इससे सामान्यजन एवं पिछड़े वर्गों का शोषण होता है। राज्य द्वारा संचालित नियोजन में शोषण की सम्भावना समाप्त हो जाती है और स्वार्थ-समूहों पर नियन्त्रण स्थापित हो जाता है।
4. ग्रामीण पुनर्निर्माण में उपयोगी – नियोजन द्वारा ग्रामों का विकास, उत्थान और पुनर्निर्माण कर ग्रामीणों के जीवन को समृद्ध और सुखी बनाया जा सकता है।
5. समाज-कल्याण में सहायक – नियोजन के द्वारा ही समाज कल्याण सम्भव है। यहाँ अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों से सम्बन्धित अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याएँ पायी जाती हैं। इनकी प्रगति और अभावों से मुक्ति नियोजन द्वारा ही सम्भव है। इनके अलावा यहाँ मातृत्व एवं शिशु-कल्याण, श्रम-कल्याण, शारीरिक और मानसिक दृष्टि से असमर्थ लोगों के कल्याण, परिवार नियोजन तथा शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने की नितान्त आवश्यकता है। इन सबके लिए सामाजिक नियोजन अत्यन्त आवश्यक है।
6. सामाजिक क्षेत्र में – भारत में जातिवाद और अस्पृश्यता से सम्बन्धित अनेक समस्याएँ पायी जाती हैं। यहाँ अपराध, बाल-अपराध, श्वेतवसन अपराध, आत्महत्या, वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भाषावाद, जनसंख्या वृद्धि, बेकारी, निर्धनता, युवा असन्तोष, मद्यपान एवं भ्रष्टाचार की समस्या व्याप्त है। यहाँ वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विघटन की दर बढ़ती जा रही है। इन सभी समस्याओं को सुलझाने और समाज का पुनर्गठन करने के लिए सामाजिक नियोजन आवश्यक है।
7. राष्ट्रीय एकीकरण के लिए – भारत एक विभिन्नता युक्त समाज है। इसमें विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों, प्रजातियों, जातियों एवं संस्कृतियों के लोग निवास करते हैं। उन्हें एकता के सूत्र में बाँधने और राष्ट्रीय एकीकरण के लिए सामाजिक नियोजन आवश्यक है।
8. श्रम कल्याण – हमारे देश में श्रमिकों की दशा अत्यन्त शोचनीय रही है। पूँजीपतियों ने अपने लाभ के लिए उनका अत्यधिक शोषण क्या है। उनसे काम अधिक लिया जाता था और वेतन कम दिया जाता था। भारत सरकार ने श्रमिकों की दशा सुधारने के लिए निम्नलिखित अधिनियम पारित किए
- फैक्ट्री अधिनियम, 1948 (संशोधित 1987),
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948,
- खाना अधिनियम, 1952,
- चाय बागान श्रमिक अधिनियम, 1961,
- मोटर यातायात कर्मचारी अधिनियम, 1961,
- बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 तथा
- वेतन भुगतान (संशोधन) अधिनियम, 2000
भारत में बाल श्रमिकों की समस्या सुलझाने हेतु प्रभावशाली नीति अपनाई गई है। बाल श्रम (निषेध और नियमन) अधिनियम, 1986′ में जोखिम भरे व्यवसायों में बच्चों के काम करने की मनाही के अलावा, कुछ अन्य क्षेत्रों में उनको काम देने से सम्बन्धित नियम बनाए गए हैं। 1987 ई० में बाल श्रमिकों के बारे में एक राष्ट्रीय नीति बनाई गई है जिसमें देश के आर्थिक विकास, सामाजिक एकजुटता तथा राजनीतिक स्थिरता के लिए बच्चों का शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक विकास सुनिश्चित करने हेतु अनेक कदम उठाए गए हैं।
महिला श्रमिकों के हितों की रक्षा हेतु भी अनेक उपाय अपनाए गए हैं। श्रम मन्त्रालय में महिला श्रम प्रकोष्ठ’ नाम का एक अलग सेल बनाया गया है। प्रसूति लाभ अधिनियम, 1961′ तथा ‘समान मजदूरी अधिनियम, 1976′ पारित किए गए हैं। बंधुआ मजदूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 द्वारा बंधुआ मजदूरों के ऋणों को समाप्त कर दिया गया है तथा उनके पुनर्वास हेतु केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा आर्थिक सहायता दी जा रही है। असंगठित क्षेत्र में मजदूरों के हितों की रक्षा हेतु भी अनेक उपाय किए गए हैं। खानों में सुरक्षा हेतु ‘खान अधिनियम, 1952′ पारित किया गया है। औद्योगिक झगड़ों के निवारण हेतु औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947’ पारित किया गया है। 24 दिसम्बर, 1966 को ‘राष्ट्रीय श्रम आयोग गठित किया गया था जिसने संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों में श्रम समस्याओं के समाधान हेतु जो महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए थे उन्हें लागू किया गया है।
उपर्युक्त क्षेत्रों के अतिरिक्त धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त रूढ़िवादिता और अन्धविश्वासों को समाप्त करने, अपाहिजों व विकलांगों की रक्षा करने एवं अनाथों व भिखारियों को संरक्षण देने के लिए भी सामाजिक नियोजन आवश्यक है। इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने नियोजन का महत्त्व स्वीकार किया और 1951 ई० से देश में पंचवर्षीय योजनाएँ प्रारम्भ कीं। अब तक दस पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं तथा ग्यारहवीं योजना, 2007 ई० से प्रारम्भ हो चुकी है।
प्रश्न 2
भारत में विभिन्न समाज-कल्याण कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 11]
या
‘बाल-कल्याण के लिए भारत सरकार द्वारा किये गये कार्यों पर एक लघु निबन्ध लिखिए। भारत में महिला-कल्याण पर एक निबन्ध लिखिए। [2016]
या
स्वतन्त्र भारत में समाज-कल्याण के लिए किये गये विभिन्न उपायों की समीक्षा कीजिए। [2008]
उत्तर:
समाज-कल्याण जनसंख्या के दुर्बल एवं पीड़ित वर्ग के लाभ के लिए किया जाने वाला कार्य है। इसके अन्तर्गत स्त्रियों, बच्चों, अपंगों, मानसिक रूप से विकारयुक्त एवं सामाजिक रूप से पीड़ित व्यक्तियों के कल्याण के लिए की जाने वाली सेवाओं का विशेष रूप से समावेश होता है। भारत में विभिन्न समाज-कल्याण कार्यक्रमों का विवरण नीचे प्रस्तुत है
1. अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के कल्याण के कार्यक्रम – सरकार द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग का गठन करके इन वर्गों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया गया है। सफाई कर्मचारियों के हितों और अधिकारों के संरक्षण तथा प्रोत्साहन के लिए राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग अधिनियम, 1993 के अन्तर्गत एक आयोग का गठन किया गया। छुआछूत की कुप्रथा को रोकने के लिए 1955 ई० में बने कानून के दायरे को बढ़ाया गया है। कानून में संशोधन करके इसे नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 का नाम दिया गया। इसी प्रकार अनुसूचित जाति तथा जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, 30 जनवरी, 1990 से लागू किया गया है। इन वर्गों के परिवारों के बच्चों को पढ़ाई के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है। मेडिकल और इन्जीनियरी डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों को पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए ‘बुक बैंक’ कार्यक्रम शुरू किया गया है।
इन वर्गों के छात्रों को परीक्षा-पूर्व प्रशिक्षण देने के कार्यक्रम पर छठी योजना से ही अमल शुरू हो गया है जिससे छात्र विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रतिस्पर्धाओं; जैसे – सिविल सेवा, बैंकिंग भर्ती परीक्षाओं और रेलवे बोर्ड आदि की परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर सकें। इन बालकों के लिए छात्रावासों की योजना का मुख्य उद्देश्य मिडिल, हाईस्कूल और सेकण्ड्री स्कूलों, कॉलेजों तथा विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को होस्टल की सुविधा प्रदान कराना है।
2. विकलांगों के कल्याणार्थ कार्यक्रम – एक अनुमान के अनुसार भारतीय जनसंख्या का 4 से 5 प्रतिशत भाग किसी-न-किसी प्रकार की विकलांगता से ग्रस्त है। विकलांग व्यक्ति को समान अवसर, अधिकारों की रक्षा और पूर्ण सहभागिता अधिनियम, 1995 नामक व्यापक कानून को फरवरी, 1996 ई० में लागू किया गया। इस कानून के तहत केन्द्र और राज्य-स्तर पर विकलांगों के पुनर्वास को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम; जैसे – शिक्षा, रोजगार और व्यावसायिक प्रशिक्षण, बाधारहित परिवेश का निर्माण, विकलांगों के लिए पुनर्वास सेवाओं का प्रावधान, संस्थागत सेवाएँ और बेरोजगार भत्ता तथा शिकायतों का निदान जैसे सहायक सामाजिक सुरक्षा के उपाय करना आदि बातों पर ध्यान दिया गया है। विकलांगों के लिए स्वैच्छिक कार्य योजना पर भी अमल किया जा रहा है। इस योजना के अन्तर्गत गैर-सरकारी संगठनों को विकलांग लोगों के कल्याण; जैसे – विशेष स्कूल खोलने व व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र चलाने के लिए सहायता दी जाती है।
3. बाल-कल्याण कार्यक्रम – बालकों के कल्याण के लिए एवं बाल-श्रमिकों के शोषण को रोकने के लिए कानूनी एवं अन्य कल्याणकारी कार्य किये गये हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में दिसम्बर, 2000 ई० में 10 करोड़ बाल-श्रमिक थे। कारखाना अधिनियम, 1948 में यह प्रावधान है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी कारखाने में ऐसे कार्य पर नहीं लगाया जा सकता, जिससे उनका स्वास्थ्य खराब हो सकता हो। भारतीय खान अधिनियम, 1952 के अनुसार 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खानों में काम पर नहीं लगाया जा सकता। वर्ष 1975-76 में समन्वित बाल-विकास सेवाएँ (I.C.D.S.) प्रारम्भ की गयीं। इनके उद्देश्य हैं
- पूरक पोषाहार,
- टीके लगाना,
- स्वास्थ्य की जाँच,
- रोगी बच्चों को अस्पताल भेजना,
- स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा तथा
- माताओं को पोषाहार एवं स्वास्थ्य की समुचित शिक्षा देना।
इस योजना का लाभ 31 मार्च, 2001 तक लगभग 2.5 करोड़ बच्चों एवं 50 लाख माताओं ने उठाया है। सन् 1979 में भारत में ‘राष्ट्रीय बाल-कोष’ की स्थापना की गयी, जिसका उद्देश्य बाल-कल्याण सम्बन्धी साधनों में वृद्धि करना था। सन् 1979 से ही बाल-कल्याण के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने वाले व्यक्ति को प्रशंसा – पत्र एवं 50,000 तथा संस्था को प्रशंसा – पत्र एवं ₹ 2 लाख के राष्ट्रीय पुरस्कार देने की व्यवस्था की गयी है।
सन् 1970-71 से 3 से 6 वर्ष की आयु के बालकों को पौष्टिक आहार देने के लिए पोषण कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। जनवरी, 1986 में स्कूल जाने योग्य से पूर्व के बच्चों एवं भावी माताओं के लिए गेहूँ पर आधारित सहायक पोषण कार्यक्रम प्रारम्भ किया। छोड़े हुए, उपेक्षित, अवांछित और अनाथ बच्चों को संरक्षण प्रदान करने के लिए संरक्षण एवं पोषण गृह स्थापित किये गये। गन्दी बस्तियों में रहने वाले श्रमिकों एवं पिछड़े वर्ग के बच्चों को आर्थिक सहायता देने के लिए अवकाश शिविर लगाये गये। बाल-कल्याण के क्षेत्र में लगे कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की गयी। बाल-कल्याण के महत्त्व को ध्यान में रखकर बालकों के लिए राष्ट्रीय नीति तय की गयी। 1974 ई० में ‘राष्ट्रीय बाल बोर्ड’ को गठन किया गया। बालकों के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए ही सारे विश्व में 1979 का वर्ष ‘बाल-वर्ष’ के रूप में मनाया गया, जिसमें असहाय, श्रमिक और कमजोर वर्गों के बालकों के कल्याण के लिए अनेक कार्य किये गये।
4. महिला कल्याणार्थ कार्यक्रम – सन् 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल जनसंख्या 121.02 करोड़ है, जिसमें से 58.65 करोड़ महिलाएँ हैं। समाज के इतने बड़े भाग की उपेक्षा कर भारत प्रगति नहीं कर सकता। महिलाओं के कल्याण हेतु देश में कई कार्य किये गये हैं। स्त्रियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करने की दृष्टि से 1979 ई० में समान वेतन अधिनियम पारित किया गया। इसके द्वारा पुरुषों और महिलाओं के लिए समान वेतन की व्यवस्था की गयी। 1961 ई० में दहेज निरोधक अधिनियम पारित किया गया, जिसमें 1986 ई० में संशोधन कर उसे और अधिक कठोर बना दिया गया। 1955 ई० में हिन्दू विवाह अधिनियम पारित कर स्त्रियों को भी विवाह-विच्छेद सम्बन्धी सुविधा प्रदान की गयी। 1961 एवं 1976 ई० में मातृत्व हित लाभ अधिनियम बनाये गये। 15 से 45 वर्ष की आयु समूह की महिलाओं के लिए वर्ष 1975-76 से ही प्रकार्यात्मक साक्षरता का कार्यक्रम चल रहा है, जिसमें महिलाओं को स्वच्छता एवं स्वास्थ्य, भोजन तथा पोषक तत्त्वों, गृह-प्रबन्ध तथा शिशु देख-रेख, शिक्षा तथा व्यवसाय के सन्दर्भ में अनौपचारिक शिक्षा प्रदान की जाती है।
ग्रामीण महिलाओं के कल्याण के लिए गाँवों में महिला मण्डल बनाये गये हैं। नगरों में कार्यशील महिलाओं को आवास सुविधा देने के लिए हॉस्टल खोले गये हैं। वर्तमान में देश में 841 हॉस्टल हैं जिससे 59,500 कार्यशील महिलाएँ लाभान्वित हुई हैं। 1975 ई० में सारे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष मनाया गया। भारत में भी इस वर्ष महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक कल्याण हेतु अनेक कदम उठाये गये। 8 मार्च, 1992 को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। महिलाओं को उत्तम रोजगार सेवाएँ उपलब्ध कराने की दृष्टि से वर्ष 1986-87 में महिला विकास निगम’ (WDC) स्थापित किये गये। जनवरी, 1992 ई० में एक राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया गया जिससे महिलाओं पर सामाजिक-आर्थिक रूप से हो रहे अन्याय एवं अत्याचारों से लड़ा जा सके। 2 अक्टूबर, 1993 से महिला समृद्धि योजना प्रारम्भ की गयी है। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएँ डाकघर में ₹300 जमा करा सकती हैं। एक वर्ष तक ये रुपये जमा रहने पर सरकार उन्हें ₹75 अपनी ओर से अंशदान देगी।
5. वृद्धावस्था कल्याणार्थ कार्यक्रम – 1981 ई० में 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की संख्या 4 करोड़ 45 लाख (6.2%) थी, जो 1991 ई० में 5 करोड़ 42 लाख (6.5%) तथा 2001 ई० में बढ़कर 7.6% हो गयी है। कल्याण मन्त्रालय ने वृद्धों की देखभाल, आवास, चिकित्सा आदि के लिए एक नयी योजना आरम्भ की है। संशोधित योजना को ‘वृद्ध व्यक्तियों के लिए समन्वित कार्यक्रम’ नाम दिया गया है। इस संशोधित योजना के अन्तर्गत परियोजना पर आने वाले खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा भारत सरकार वहन करेगी और शेष खर्च सम्बन्धित संगठन/संस्थान वहन करेगा। इस योजना के अन्तर्गत 331 वृद्धाश्रमों, 436 देखभाल के केन्द्रों
और 74 चल मेडिकेयर इकाइयों की स्थापना हेतु सहायता प्रदान की गयी है।
प्रश्न 3
नीति आयोग की संरचना का विवरण देते हुए इसके उद्देश्य एवं कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
नीति आयोग
योजना आयोग के स्थान पर बनाए गए नए संस्थान नीति आयोग के गठन की घोषणा केन्द्र सरकार ने 1 जनवरी, 2015 को की थी। प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता वाला यह आयोग केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारों के लिए भी नीति निर्माण करने वाले संस्थान की भूमिका निभाएगा। यह थिंक टैंक की तर्ज पर काम करेगा। यह आयोग की एक संचालन परिषद् होगी। इसमें सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री और संघ-शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल सदस्य होंगे। परिषद् केन्द्र व राज्यों के साथ मिलकर सहकारी संघवाद का एक राष्ट्रीय एजेंडा तैयार करेगी।
- संरचना इसकी संरचना निम्न प्रकार है
- अध्यक्ष – भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी
- गवर्निंग काउन्सिल – राज्यों के मुख्यमन्त्री एवं केन्द्र-शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल
- उपाध्यक्ष – अरविन्द वनगढ़िया
- पदेन सदस्य – राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुरेश प्रभु
- विशेष आमन्त्रित – नितिन गडकरी, थावरचन्द गहलोत, स्मृति ईरानी
- पूर्णकालिक सदस्य – विवेक देवराय, डॉ० वी०के० सारस्वत
- मुख्य कार्यकारी अधिकारी – अमिताभ कान्त
नीति आयोग के उद्देश्य एवं कार्यनीति
आयोग के उद्देश्य एवं कार्य निम्नलिखित हैं
- सरकारी नीति निर्माण के लिए थिंक टैंक।
- दूसरे देशों से अच्छी पद्धतियों का पता लगाना, देशी-विदेशी निकायों से उनके तरीकों का – उपयोग भारत में करने के लिए साझेदारी करना।
- सहकारी संघवाद : राज्य सरकारों यहाँ तक कि गाँवों को भी योजना बनाने में शामिल करना।
- सतत विकास : पर्यावरण की दृष्टि से जीरो डिफेक्ट-जीरो इफेक्ट उत्पादन मंत्र।
- शहरी विकास : शहर निवास योग्य रहें और सभी को आर्थिक अवसर मिल सकें, यह सुनिश्चित करना।
- सहयोगात्मक विकास : निजी क्षेत्र और नागरिकों की सहायता से।
- समावेशी विकास या अंत्योदय। विकास का लाभ एससी, एसटी और महिलाएँ भी ले सकें,यह सुनिश्चित करना।
- गरिमा और आत्मसम्मान सुनिश्चित करने के लिए गरीबी उन्मूलन।
- कमजोर वर्ग के लिए और अधिक रोजगार पैदा करने के लिए 5 करोड़ लघु उद्यमों पर फोकस करना।
- निगरानी और प्रतिपुष्टि। यदि आवश्यक हो तो बीच का रास्ता निकालना।
- जनसांख्यिकीय भिन्नता और सामाजिक पूँजी का लाभ लेने के लिए नीति बनाना।
- क्षेत्रीय परिषदें राज्यों के एक समूह के लिए विशिष्ट मुद्दों को उठाएँगी। उदाहरण के लिए सूखा, वामपंथी अतिवाद, जनजाति कल्याण इत्यादि।
- भारत के विकास के लिए, एनआरआई की भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक सुदृढ़ता से अधिकतम लाभ प्राप्त करना।
- सोशल मीडिया और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी माध्यमों का प्रयोग कर पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन सुनिश्चित करना।
- अन्तर विभागीय विवादों को हल करने में सहायक।।
लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)
प्रश्न 1
नियोजन कितने प्रकार का होता है ? आर्थिक नियोजन व सामाजिक नियोजन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
नियोजन सामान्यत: दो प्रकार का होता है – प्रथम, आर्थिक नियोजन तथा द्वितीय, सामाजिक नियोजन। आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत आर्थिक उद्देश्यों; जैसे – कृषि, उद्योग-धन्धे, खनिज-पदार्थ, व्यापार, यातायात, संचार, रोजगार तथा प्रति व्यक्ति अधिकतम आय आदि लक्ष्यों की पूर्ति पर ध्यान दिया जाता है। सामाजिक नियोजन के अन्तर्गत आने वाले उद्देश्यों में शराबबन्दी, मातृत्व एवं शिशुकल्याण, श्रम-कल्याण, अपाहिजों एवं विकलांगों का कल्याण, स्वास्थ्य एवं शिक्षा में सुधार, पिछड़ी जातियों एवं जनजातियों को कल्याण, सामाजिक कुरीतियों एवं समस्याओं का निवारण आदि प्रमुख हैं। सामाजिक नियोजन एक ऐसी व्यापक अवधारणा है, जिसमें आर्थिक नियोजन भी सम्मिलित है। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि सामाजिक नियोजन एक ऐसा प्रयत्न या पद्धति है जिसके द्वारा समाज को इस प्रकार संगठित किया जाता है कि सामाजिक न्याय, समानता, स्वतन्त्रता एवं बन्धुत्व में वृद्धि हो सके और साथ ही सामाजिक स्वास्थ्य को एक स्वचालित गति मिल सके।
प्रश्न 2
सरकारी नौकरियों, विधानमण्डलों एवं पंचायतों में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के प्रतिनिधित्व के विषय में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं, पंचायतों एवं स्थानीय निकायों में स्थान सुरक्षित किये गये हैं। पहले यह व्यवस्था 20 वर्ष के लिए थी, जिसे 10-10 वर्षों के लिए चार बार बढ़ाकर जनवरी, 2010 ई० तक कर दिया गया है। इस समय लोकसभा के 543 स्थानों में 79 अनुसूचित जातियों के लिए तथा 42 अनुसूचित जनजातियों के लिए और राज्यों की विधानसभाओं के 4,041 स्थानों में से 547 स्थान अनुसूचित जातियों के लिए तथा 315 अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित रखे गये हैं।
सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व – खुली प्रतियोगिता द्वारा अखिल भारतीय आधार पर की जाने वाली नियुक्तियों में 15 प्रतिशत तथा अन्य नियुक्तियों में 16.66 प्रतिशत स्थान. अनुसूचित जातियों, 7.5 प्रतिशत स्थान अनुसूचित जनजातियों तथा 27 प्रतिशत स्थान पिछड़े वर्गों के लिए सुरक्षित किये गये हैं एवं नौकरी के लिए योग्यता एवं आयु-सीमा में भी छूट दी गयी है।
प्रश्न 3
प्रौढ शिक्षा कार्यक्रम के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पहले तक देश में साक्षरता का प्रतिशत केवल 7 था। स्वतन्त्रता प्राप्त करने के पश्चात् प्रौढ़ लोगों को साक्षर बनाने की ओर विशेष ध्यान दिया गया। सबसे पहले सन् 1951 में दिल्ली के निकट 60 गाँवों में समाज-शिक्षा केन्द्र प्रारम्भ किये गये। इनमें रात्रि-कक्षाएँ चालु की गयीं। पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के पहले तक प्रौढ़ शिक्षा की सामाजिक चेतना की दृष्टि से विशेष महत्त्व होते हुए भी इसे ग्रामीणों तक नहीं पहुँचाया जा सका। छठी पंचवर्षीय योजना में सामाजिक नियोजन के एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम के रूप में प्रौढ़ शिक्षा के महत्त्व को स्वीकार किया गया। सातवीं योजना में 15 से 35 वर्ष आयु समूह के 9 करोड़ और आठवीं योजना में 10.6 करोड़ लोगों को साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा गया। जनवरी, 1991 ई० में शीघ्र और मूल्यांकन अध्ययनों में तकनीकी और शैक्षिक सहायता में वृद्धि करने के लिए राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा संस्थान की स्थापना की गयी।
प्रश्न 4
बारहवीं पंचवर्षीय योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) – भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के निर्माण की दिशा का मार्ग अक्टूबर 2011 में उस समय प्रशस्त हो गया जब इस योजना के दृष्टि पत्र (दृष्टिकोण पत्र/दिशा पत्र/Approach Paper) को राष्ट्रीय विकास परिषद् (NDC) ने स्वीकृति प्रदान कर दी। 1 अप्रैल, 2012 से प्रारम्भ हो चुकी इस पंचवर्षीय योजना के दृष्टि पत्र को योजना आयोग की 20 अगस्त, 2011 की बैठक में स्वीकार कर लिया था तथा केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् ने इसका अनुमोदन 15 सितम्बर, 2011 की अपनी बैठक में किया था। प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय विकास परिषद् की नई दिल्ली में 22 अक्टूबर, 2011 को सम्पन्न हुई इस 56वीं बैठक में दिशा पत्र को कुछेक शर्तों के साथ स्वीकार किया गया। राज्यों द्वारा सुझाए गए कुछ संशोधनों का समायोजन योजना दस्तावेज तैयार करते समय योजना आयोग द्वारा किया जायेगा।
12वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 9 प्रतिशत है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में राज्यों के सहयोग की अपेक्षा प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने की है। इसे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कृषि, उद्योग व सेवाओं के क्षेत्र में क्रमशः 4.0 प्रतिशत, 9.6 प्रतिशत व 10.0 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि प्राप्त करने के लक्ष्य तय किये गये हैं। इनके लिए निवेश देर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की 38.7 प्रतिशत प्राप्त करनी होगी। बचत की दर जीडीपी के 36.2 प्रतिशत प्राप्त करने का लक्ष्य दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है। समाप्त हुई 11वीं पंचवर्षीय योजना में निवेश की दर 36.4 प्रतिशत तथा बचत की दर 34.0 प्रतिशत रहने का अनुमान था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) में औसत वार्षिक वृद्धि लगभग 6.0 प्रतिशत अनुमानित था, जो 12वीं पंचवर्षीय योजना में 4.5 – 5.0 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य है। योजनावधि में केन्द्र सरकार का औसत वार्षिक राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.25 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य इस योजना के दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है।
प्रश्न 5
नियोजन को परिभाषित कीजिए और संक्षिप्त रूप में अपना निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर:
नियोजन की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
प्रो० हैरिस के अनुसार, “नियोजन मुख्य रूप से उपलब्ध साधनों के संगठन और उपयोग की ऐसी पद्धति है, जिसके द्वारा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके।”
भारत सरकार के योजना आयोग के अनुसार, “नियोजन वास्तव में सुनिश्चित सामाजिक लक्ष्यों की दृष्टि से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए साधनों को संगठित करने एवं उपयोग में लाने की पद्धति है।”
इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि नियोजन में सर्वप्रथम हम अपने उद्देश्य या लक्ष्य तय करते हैं। और उन्हें प्राप्त करने के लिए उपलब्ध साधनों का अधिकाधिक उपयोग करते हैं। नियोजन एक ऐसा प्रयास है जिसमें सीमित साधनों का इस प्रकार विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग किया जाता है कि अधिकतम लाभ की प्राप्ति और इच्छित लक्ष्यों की पूर्ति हो सके।
प्रश्न 6:
भारत में समाज-कल्याण सम्बन्धी प्रमुख कार्यक्रमों को इंगित कीजिए।
या
भारत सरकार द्वारा किए गए दो समाज कल्याण कार्य लिखिए। [2011, 14, 16]
उत्तर:
भारत में समाज कल्याण सम्बन्धी प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित हैं।
- बाल कल्याण और मातृत्व संरक्षण सम्बन्धी कार्यक्रम।
- ग्रामीण विकास सम्बन्धी कार्यक्रम।
- समाज शिक्षा या प्रौढ़ शिक्षा का प्रसार।
- समाज कल्याण संस्थाओं की स्थापना।
- मद्य-निषेध।
- स्त्रियों के अनैतिक व्यापार पर रोक।
- किशोर अपराधियों का सुधार।
- भिक्षावृत्ति का उन्तमूलन।
- श्रम कल्याण।
प्रश्न 7
कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के प्रावधानों के बारे में बताइए।
उत्तर:
कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत उन कारखानों, होटलों, रेस्टोरेण्टों, दुकानों, सिनेमाघरों आदि में जहाँ 20 या इससे अधिक काम करने वाले श्रमिक हों, के बीमार पड़ने, प्रसूति, चोट लग जाने आदि की अवस्था में इलाज का प्रबन्ध करने, नकद भत्ता देने अथवा चोट से मृत्यु हो जाने पर आश्रितों को पेंशन देने आदि की व्यवस्था की गयी है। पूरे देश में स्त्री और पुरुष कर्मचारियों को समान वेतन देने के लिए फरवरी 1979 ई० में “समान पारिश्रमिक अधिनियम’ भी बनाया गया। बोनस अधिनियम के अनुसार बैंक, रेल एवं कारखाना श्रमिकों को 8.33 प्रतिशत बोनस देने का प्रावधान किया गया है। ठेका मजदूरी अधिनियम, 1970 कुछ संस्थाओं में ठेकी मजदूरी व्यवस्था का नियमन करता है। मजदूरी की अदायगी न होने पर मालिक को जिम्मेदार माना जाता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
प्रश्न 1
समाज-कल्याण की कोई दो विशेषताएँ लिखिए। [2011, 15]
उत्तर:
समाज-कल्याण की दो विशेषताएँ निम्नवत् हैं
- यह पिछड़े हुए वर्गों को अधिक-से-अधिक सुविधाएँ प्रदान करने में सहायता देती है।
- यह वृद्ध लोगों के सहायतार्थ अनेक कार्यक्रम चलाता है।
प्रश्न 2
समाज-कल्याण की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। [2009, 10, 11]
उत्तर:
आमतौर पर हम ‘सामाजिक कल्याण’ को ‘सामाजिक सुरक्षा’, ‘समाज सेवा’ आदि के नाम से भी सम्बोधित करते हैं। वास्तव में समाज-कल्याण के अन्तर्गत वे सभी प्रयत्न शमिल हैं। जिनका उद्देश्य सम्पूर्ण सामाजिक संरचना का कल्याण करना है तथा पिछड़े हुए वर्गों को अधिकसे-अधिक सुविधाएँ प्रदान करना है।
प्रश्न 3:
वृद्धावस्था कल्याण कार्यक्रम के बारे में बताइए।
उत्तर:
वृद्धावस्था कल्याणार्थ कार्यक्रम 1981 ई० में 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की संख्या 4 करोड़ 45 लाख (6.2%) थी जो 1991 ई० में 5 करोड़ 42 लाख (6.5%) तथा 2001 ई० में बढ़कर 7.6% हो गयी। कल्याण मन्त्रालय ने वृद्धों की देखभाल, आवास, चिकित्सा आदि के लिए एक नयी योजना आरम्भ की है। संशोधित योजना को ‘वृद्ध व्यक्तियों के लिए समन्वित कार्यक्रम नाम दिया गया है। इस संशोधित योजना के अन्तर्गत परियोजना पर आने वाले खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा भारत सरकार वहन करेगी और शेष खर्च सम्बन्धित संगठन/संस्थान वहन करेगा। इस योजना के अन्तर्गत 331 वृद्धाश्रमों, 436 दिन में देखभाल के केन्द्रों और 74 चल मेडिकेयर इकाइयों की स्थापना हेतु सहायता प्रदान की गयी है।
प्रश्न 4
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के चार उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के चार प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
- विकास दर का लक्ष्य 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष प्राप्त करना।
- 5.8 करोड़ नये रोजगार के अवसर पैदा करना।
- गरीबों की संख्या में 10 प्रतिशत की कमी लाना।।
- वर्ष 2010 तक प्रारम्भिक शिक्षा का शत-प्रतिशत विस्तार करना।
प्रश्न 5
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत में समाज-कल्याण एवं सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ क्यों बनायी गयीं?
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाएँ – प्रत्येक राष्ट्र योजनाबद्ध प्रयत्नों के द्वारा एक निश्चित अवधि में कुछ सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करना, अपनी समस्याओं एवं अभावों से मुक्ति पाना चाहता है। ऐसा करने के लिए वह नियोजन या आयोजन का सहारा लेता है। जार शासन से मुक्त होने के बाद रूस ने अपने देश में सन् 1928 से पंचवर्षीय योजनाएँ आरम्भ कीं और उसे देश के सर्वांगीण विकास में आशातीत सफलता प्राप्त हुई। रूस से प्रेरित होकर भारत में भी पंचवर्षीय योजनाएँ बनायी गयीं।
निश्चित उत्तीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
नियोजन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
नियोजन वास्तव में सुनिश्चित सामाजिक लक्ष्यों की दृष्टि से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए साधनों को संगठित करने एवं उपयोग में लाने की पद्धति है।
प्रश्न 2
भारत में सामाजिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है? [2013]
उत्तर:
भारत में सामाजिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य देश का सर्वांगीण विकास करना है।
प्रश्न 3
केन्द्रीय समाज-कल्याण बोर्ड की स्थापना कब और किसकी अध्यक्षता में हुई थी ?
उत्तर:
केन्द्रीय समाज-कल्याण बोर्ड की स्थापना 1953 ई० में दुर्गाबाई देशमुख की अध्यक्षता में हुई थी।
प्रश्न 4
महिला विकास निगम की स्थापना कब और किस उद्देश्य से की गयी थी ?
उत्तर:
महिलाओं को उत्तम रोजगार सेवाएँ उपलब्ध कराने की दृष्टि से वर्ष 1986-87 में महिला विकास निगम की स्थापना की गयी थी।
प्रश्न 5
राष्ट्रीय विकलांग कोष की स्थापना किस उद्देश्य से और कब की गयी थी ?
उत्तर:
राष्ट्रीय विकलांग कोष की स्थापना विकलांगों के कल्याण के लिए वर्ष 1983-84 में की गयी थी।
प्रश्न 6
स्वतन्त्र भारत में कारखाना अधिनियम कब बना ?
उत्तर:
स्वतन्त्र भारत में कारखाना अधिनियम 1948 ई० में बना।
प्रश्न 7
राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन कब किया गया ?
उत्तर:
राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन जनवरी, 1992 ई० में किया गया।
प्रश्न 8
‘गरीबी हटाओ’ नारा कौन-सी पंचवर्षीय योजना में दिया गया था ? [2015]
उत्तर:
गरीबी हटाओ’ नारा पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में दिया गया था।
प्रश्न 9
बारहवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल बताइए।
उत्तर:
2012 – 2017
प्रश्न 10
दसवीं पंचवर्षीय योजना कब प्रारम्भ हुई ?
उत्तर:
दसवीं पंचवर्षीय योजना सन् 2002 में प्रारम्भ हुई।
प्रश्न 11
योजना आयोग का नया नाम क्या है? [2016]
उत्तर:
नीति आयोग।
प्रश्न 12
नीति आयोग का अध्यक्ष कौन होता है ?
उत्तर:
नीति आयोग का अध्यक्ष भारत का प्रधानमन्त्री होता है।
प्रश्न 13
नीति आयोग का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान।।
प्रश्न 14
नीति आयोग की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
1 जनवरी, 2015 को नीति आयोग की स्थापना हुई।
प्रश्न 15
नीति आयोग की गवर्निग काउन्सिल के सदस्य कौन होते हैं?
उत्तर:
नीति आयोग की गवर्निग काउन्सिल के सदस्यों में राज्यों के मुख्यमन्त्री एवं केन्द्र-शासित प्रदेशों के राज्यपाल शामिल होते हैं।
प्रश्न 16
भारत सरकार द्वारा किए गए दो समाज कल्याण कार्यों को लिखिए। [2016]
उत्तर:
(1) समाज कल्याण संस्थाओं की स्थापना तथा
(2) प्रौढ़ शिक्षा का प्रसार।
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
भारत में योजना आयोग की स्थापना किस वर्ष हुई थी? [2009, 13, 14, 15]
या
योजना आयोग की स्थापना कब हुई ?
(क) 1987 ई० में
(ख) 1989 ई० में
(ग) 1995 ई० में
(घ) 1950 ई० में
प्रश्न 2
पहली पंचवर्षीय योजना कब आरम्भ हुई थी?
(क) 1951 ई० में
(ख) 1952 ई० में
(ग) 1953 ई० में
(घ) 1954 ई० में
प्रश्न 3
योजना आयोग के प्रथम अध्यक्ष थे [2011, 14]
(क) इन्दिरा गांधी
(ख) मोतीलाल नेहरू
(ग) राजीव गांधी
(घ) जवाहरलाल नेहरू
प्रश्न 4
12वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल है
(क) 2007-12,
(ख) 2009-14
(ग) 2012-17
(घ) 2017-2022
प्रश्न 5
योजना आयोग को बन्द करने की घोषणा कब की गई?
(क) 15 जुलाई, 2013 को
(ख) 15 अगस्त, 2014 को
(ग) 5 सितम्बर, 2015 को
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 6
योजना आयोग का नया नाम क्या है? [2016]
(क) भारतीय योजना आयोग
(ख) योजना आयोग
(ग) नीति आयोग
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
1. (घ) 1950 ई० में,
2. (क) 1951 ई० में,
3. (घ) जवाहरलाल नेहरू,
4. (ग) 2012-17,
5. (ख) 15 अगस्त, 2014 को,
6. (ग) नीति आयोग।
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