UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 26 Problems of Scheduled Castes and Tribes (अनुसूचित जातियों और जनजातियों की समस्याएँ)
UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 26 Problems of Scheduled Castes and Tribes (अनुसूचित जातियों और जनजातियों की समस्याएँ)
विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1
अनुसूचित जाति से क्या आशय है ? इनकी समस्याओं का उल्लेख करते हुए भारत सरकार द्वारा किये गये निराकरण के प्रयास बताइए। [2010, 15]
या
भारत में अनुसूचित जातियों की दशाओं का वर्णन कीजिए। [2016]
या
अनुसूचित जातियों की प्रमुख समस्याओं को स्पष्ट कीजिए। [2007, 08, 09, 10, 11, 12, 13]
या
अनुसूचित जातियों की प्रगति के लिए चार सुझाव दीजिए। [2011]
या
भारत में अनुसूचित जनजातियों को समस्याओं की व्याख्या कीजिए। [2015]
या
भारत में अनुसूचित जातियों की स्थिति सुधारने के प्रमुख उपायों को लिखिए। [2010, 11]
या
अनुसूचित जातियों की प्रमुख समस्याओं के उन्मूलन के लिए किए गये प्रयासों को बताइए। [2011, 12]
या
अनुसूचित जनजातियों के विकास सम्बन्धी कार्यक्रमों का मूल्यांकन कीजिए। भारत में अनुसूचित जातियों की मुख्य समस्याएँ बताइए। [2014]
या
भारत में अनुसूचित जातियों की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं? स्पष्ट कीजिए। [2015, 16]
या
अनुसूचित जातियों की प्रगति के लिए प्रमुख उपायों का सुझाव दें। [2015, 16]
या
जनजातियों की समस्याओं को दूर करने के महत्त्वपूर्ण उपायों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
भारत में अनुसूचित जनजातियों की प्रमुख समस्याओं का विवेचन कीजिए। [2016]
उत्तर:
अनुसूचित जाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ
भारत अनेक धर्मों और जातियों का देश है। समाज में व्याप्त विसंगतियों के कारण यहाँ की कुछ जातियाँ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में पिछड़ गयीं। इन जातियों की नियोग्यताओं के कारण इन्हें अछूत या अस्पृश्य कहा गया। 2011 ई० की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियाँ राष्ट्र की कुल जनसंख्या का लगभग एक-चौथाई भाग थीं। आर्थिक-धार्मिक नियोग्यताएँ लाद देने के कारण अनुसूचित जातियाँ राष्ट्र की मुख्य धारा से कट गयीं। सुख-सुविधाओं से वंचित रह जाने के कारण ये जातियाँ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में पिछड़ गयीं। इन्हें समाज से बहिष्कृत कर दूर एक कोने में रहने के लिए बाध्य कर दिया गया। भारतीय संविधान में इन पिछड़ी और दुर्बल जातियों को सूचीबद्ध किया गया तथा इन्हें अनुसूचित जाति कहकर सम्बोधित किया गया। अनुसूचित जाति को विभिन्न विद्वानों ने निम्नवत् परिभाषित किया है|
डॉ० जी० एस० घुरिये के अनुसार, “मैं अनुसूचित जातियों को उस समूह के रूप में परिभाषित कर सकता हूँ जिनका नाम इस समय अनुसूचित जातियों के अन्तर्गत आदेशित है।”
डॉ० डी० एन० मजूमदार के अनुसार, “वे सभी समूह जो अनेक सामाजिक एवं राजनीतिक निर्योग्यताओं से पीड़ित हैं तथा जिनके प्रति इन निर्योग्यताओं को समाज की उच्च जातियों ने परम्परागत तौर पर लागू किया था, अस्पृश्य जातियाँ कही जा सकती हैं।”
“संविधान की धारा 341 और 342 में सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से जिन जातियों को सूचीबद्ध करके राष्ट्रपति द्वारा विज्ञप्ति जारी करके अनुसूचित घोषित किया है, अनुसूचित जातियाँ कहलाती हैं।”
संविधान की पाँचवीं अनुसूची में विशेष कार्यक्रम के लिए जिन जातियों का चुनाव किया गया है, उन्हें अनुसूचित जाति कहा जाता है। भारतीय संविधान में उत्तर प्रदेश की 66 जातियों को सूचीबद्ध करके अनुसूचित जाति घोषित किया गया है। इनमें घुसिया, जाटव, वाल्मीकि, धोबी, पासी और खटीक मुख्य हैं।
अनुसूचित जातियों की समस्याएँ
भारत की अनुसूचित जातियाँ अनेक समस्याओं और कठिनाइयों से ग्रसित हैं। ये समस्याएँ इनके विकास-मार्ग की प्रमुख बाधाएँ हैं। अनुसूचित जातियों की मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं
1. अस्पृश्यता की समस्या – भारत में अनुसूचित जातियों के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या अस्पृश्यता की रही है। उच्च जाति के व्यक्ति कुछ व्यवसायों; जैसे-चमड़े का काम, सफाई का काम, कपड़े धोने का काम आदि करने वाले व्यक्तियों को अपवित्र मानते थे। उनके साथ भोजन-पानी का सम्बन्ध नहीं रखते थे। इन्हें लोग अछूत कहते थे। अनुसूचित जाति अर्थात् नीची जाति की छाया पड़ना तक बुरा माना जाता था। पूजा-पाठ के स्थानों पर इनके जाने पर प्रतिबन्ध था, कहीं-कहीं पर तो अन्तिम-संस्कार के लिए भी इनका स्थान अलग निर्धारित किया जाता था। अत: अनुसूचित जातियों को अस्पृश्यता की समस्या का सामना करना पड़ता था।
2. निर्धनता की समस्या – अनुसूचित जाति के लोग आर्थिक दृष्टि से बहुत अधिक पिछड़ी स्थिति में रहे हैं। इनके पास स्वयं के साधन (खेती, व्यापार आदि) नहीं थे। अत: अधिकांशतः। इन्हें किसानों के यहाँ अथवा अन्य स्थानों पर मजदूरी करनी पड़ती थी। कृषि-क्षेत्र में इन्हें फसल का बहुत ही कम भाग मिल पाता था तथा मजदूरी भी नाम-मात्र की मिल पाती थी। आज भी अनुसूचित जाति के लोग निर्धनता की रेखा के नीचे अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। निर्धनता के कारण अनुसूचित जाति के सदस्य ऋणों के भार से दब गये हैं। निर्धनता इनके लिए एक अभिशाप बनी हुई है।
3. अशिक्षा की समस्या – अनुसूचित जाति के लोग अज्ञानी व अशिक्षित हैं। सामान्य जनसंख्या के अनुपात में इनमें साक्षरता भी आधी है। परिवार के छोटे-छोटे बच्चों को ही काम पर लगा दिया जाता है, वे स्कूल से दूर रहते हैं और यदि स्कूल जाते भी हैं तो उनमें से आधे प्राथमिक स्तर पर ही रुक जाते हैं। अशिक्षा और अज्ञानता सभी बुराइयों का आधार होती है। इस कारण अनुसूचित जाति के लोगों में अनेक प्रकार की बुराइयों ने घर बना लिया है। अशिक्षा इनके विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है।।
4. ऋणग्रस्तता की समस्या – अनुसूचित जाति के लोग निर्धन हैं, इसलिए ऋणग्रस्तता से पीड़ित हैं। ऋणग्रस्तता के कारण ये जिस किसान के यहाँ एक बार काम पर लग जाते हैं, पूरे जीवन वहीं पर बन्धक बने रहते हैं तथा जीवन भर ऋण-मुक्त नहीं हो पाते हैं। ऋण चुकाने का काम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है, परन्तु उन्हें ऋण से मुक्ति ही नहीं मिल पाती। ऋणों से छुटकारा न मिल पाना इनकी नियति बन जाती है।
5. रहन-सहन का स्तर नीचा – अनुसूचित जाति के लोगों का जीवन-स्तर निम्न है। वे आधा पेट खाकर व अर्द्ध-नग्न रहकर जीवन व्यतीत करते हैं। निर्धनता और बेरोजगारी इनके रहनसहन के नीचे स्तर के लिए उत्तरदायी हैं।
6. आवास की समस्या – अनुसूचित जाति के निवास स्थान भी बहुत ही शोचनीय दशा में हैं। ये लोग गाँव के सबसे गन्दे और खराब भागों में ऐसी झोंपड़ियों में रहते हैं जहाँ सफाई का नामोनिशान नहीं होता। बरसात में ये झोंपड़े चूने लगते हैं। कच्चा फर्श और वर्षा का जल मिलकर इनके जीवन को नारकीय बना देता है। धन के अभाव में ये लोग कच्ची मिट्टी के घास-फूस के ढके आवास ही बना पाते हैं।
7. शोषण की समस्या – अनुसूचित जाति के लोगों को बेगार करनी पड़ती है। उच्च जाति के लोग उन्हें बिना मजदूरी दिये अनेक प्रकार के कार्य कराते हैं, इन लोगों के पास ऋण लेते समय गिरवी रखने के लिए भी कुछ नहीं होता। इसलिए वे ऋण के बदले में अपने परिवार के स्त्री तथा बच्चों की स्वतन्त्रता को गिरवी रख देते हैं। यह दोसती पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। शोषण इनके जीवन को अभावमय और खोखला बना देता है। शोषण की समस्या के कारण इनका जीवन दुःखपूर्ण हो जाता है।
8. बेरोजगारी की समस्या – अनुसूचित जाति के सामने बेकारी और अर्द्ध-बेकारी की समस्या भी गम्भीर है। रोजगार के अभाव में अनुसूचित जाति के लोग अपना गाँव छोड़कर अपने परिवार के सदस्यों के साथ नगरीय क्षेत्रों की ओर पलायन कर जाते हैं, जिसके कारण उनके बच्चों की शिक्षा नहीं हो पाती तथा उनका चारित्रिक व नैतिक पतन भी होता है। बेरोजगारी के कारण निर्धनता का जन्म होता है, जो उनके जीवन में विष घोल देती है।
भारत सरकार द्वारा निराकरण (विकास) के लिए किये गये प्रयत्न (सुविधाएँ)
सरकार द्वारा अनुसूचित जाति व जनजाति की समस्याओं का निराकरण कर उन्हें सामान्य सामाजिक स्तर तक लाने के लिए अनेक प्रयत्न किये जा रहे हैं, जो निम्नवत् हैं
1. लोकसभा व विधानमण्डलों में स्थान आरक्षित – अनुसूचित जातियों के लिए लोकसभा में 545 सीटों में से 79 सीटें और 41 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। विधानसभाओं में भी अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित हैं।
2. सरकारी सेवाओं में स्थान सुरक्षित – सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जातियों के लिए 15 प्रतिशत स्थान सुरक्षित रखे गये हैं।
3. पंचायतों में आरक्षण की व्यवस्था – अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों के लिए जनसंख्या के अनुपात में तीनों स्तरों की पंचायतों (अर्थात् ग्राम-पंचायतों, क्षेत्र-समितियों तथा जिला परिषदों) में आरक्षण की व्यवस्था की गयी है, जिससे सामाजिक न्याय का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
4. अनुसूचित जातियों के लिए अस्पृश्यता निवारण सम्बन्धी कानून – संविधान में भी अस्पृश्यता को अपराध घोषित किया गया है। अस्पृश्यता अपराध अधिनियम, 1955 को और अधिक प्रभावशाली बनाने एवं दण्ड-व्यवस्था कठोर करने के लिए इसमें संशोधन कर 19 नवम्बर, 1976 से इसका नाम नागरिक अधिकार सुरक्षा अधिनियम, 1955 कर दिया गया है। इस अधिनियम के अनुसार किसी भी प्रकार से अस्पृश्यता के बारे में प्रचार करना या ऐतिहासिक व धार्मिक आधार पर अस्पृश्यता को व्यवहार में लाना अपराध माना जाएगा। इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर जेल और दण्ड दोनों का प्रावधान है।
5. शैक्षिक कार्यक्रम – अनुसूचित जाति/जनजातियों के छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा, छात्रवृत्ति तथा पुस्तकीय सहायता दी जाती है। इन जातियों के छात्र-छात्राओं के लिए छात्रावासों की व्यवस्था के अतिरिक्त इनके लिए नि:शुल्क प्रशिक्षण की भी व्यवस्था है। मेडिकल कॉलेजों, इन्जीनियरिंग कॉलेजों व अन्य प्राविधिक शिक्षण-संस्थानों में अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के छात्रों के लिए स्थान सुरक्षित हैं।
6. आर्थिक उत्थान योजना – अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के आर्थिक उत्थान और कुटीर उद्योगों व कृषि आदि के लिए सरकार द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। अनुसूचित जनजाति के बहुलता वाले क्षेत्रों में विशेष विकास खण्ड खोले जा रहे हैं, जहाँ सामान्य से दोगुनी धनराशि विकास कार्यों के लिए व्यय की जाती है। मेडिकल, इन्जीनियरिंग तथा कानून के स्नातकों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु निजी व्यवसाय करने के लिए राज्य द्वारा आर्थिक अनुदान प्रदान किया जाता है। भारत सरकार ने कुछ ऐसे आर्थिक कार्यक्रम प्रारम्भ भी किये हैं जिनका उद्देश्य अनुसूचित जातियों के लिए विशेष ऋण की सुविधा उपलब्ध कराना है।
7. स्वास्थ्य, आवास एवं रहन – सहन के उत्थान की योजनाएँ – अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की दीन दशा के कारण सरकार द्वारा इन्हें भूमि और अंनुदान प्रदान किया जाता है। भूमिहीन श्रमिकों को नि:शुल्क कानूनी सहायता भी दी जाती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 1993 में निर्णय लिया था कि अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्रों में 47 और अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में 5 राजकीय होम्योपैथिक चिकित्सालय स्थापित किये जाएँगे। अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों की जमीन जिलाधिकारी के पूर्वानुमोदन के बिना गैरअनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य को हस्तान्तरित करने सम्बन्धी नियम का कड़ाई के साथ पालन कराया जाएगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में निर्बल वर्ग आवास-निर्माण तथा इन्दिरा आवास निर्माण और मलिन बस्ती सुधार कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। यही नहीं, भूमिहीनों को सीलिंग भूमि का आवंटन किया जा रहा है। एकीकृत ग्राम्य विकास कार्यक्रम, जवाहर रोजगार योजना, लघु औद्योगिक इकाइयों की स्थापना, समस्याग्रस्त ग्रामों में पेयजल व्यवस्था, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना के माध्यम से अनुसूचित जाति-जनजाति के स्वास्थ्य, रहन-सहन एवं आवास आदि के उत्थान के लिए सरकार द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं।
8. अन्य उपाय – अनुसूचित जाति में सामाजिक चेतना जाग्रत करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं। विभिन्न उत्सवों पर सामूहिक भोज, सांस्कृतिक कार्यक्रमों व प्रचार के अन्य माध्यमों द्वारा समानता का सन्देश पहुँचाया जा रहा है। राष्ट्रीय पर्वो को सामूहिक रूप से मनाने, सार्वजनिक खान-पान तथा अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देकर अनुसूचित जातियों की समस्याओं का निराकरण किया जा रहा है।
प्रश्न 2
भारत में जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए। [2016]
या
भारतीय जनजातियों की मुख्य समस्याएँ क्या हैं? उनके निवारण के सुझाव दीजिए। [2014]
या
अनुसूचित जनजातियों की मुख्य आर्थिक समस्याएँ बताइए। [2007]
या
जनजातियों की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिए। [2013, 15]
या
अनुसूचित जनजातियों की चार मुख्य समस्याएँ लिखिए। [2015]
उत्तर:
जनजातीय नर – नारी भारतीय समाज के अभिन्न अंग हैं। भारत की जनजातियों की समस्याएँ बहुत ही जटिल और विस्तृत हैं, क्योंकि आधुनिक विज्ञान और प्रगति से दूर रहने के कारण ये भारतीय समाज के पिछड़े हुए वर्ग हैं। भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में जनजातियों को उल्लेख है। उन्हें अनुसूचित जनजातियाँ कहा गया है। भारतीय जनजातियों की समस्याएँ निम्नवत् हैं
(अ) सांस्कृतिक समस्याएँ – भारतीय जनजातियाँ बाहरी संस्कृतियों के सम्पर्क में आती जा रही हैं, जिसके कारण जनजातियों के जीवन में अनेक गम्भीर सांस्कृतिक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं और उनकी सभ्यता के सामने एक गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो गयी है। मुख्य सांस्कृतिक समस्याएँ निम्नलिखित हैं
1. भाषा सम्बन्धी समस्या – भारतीय जनजातियाँ बाहरी संस्कृतियों के सम्पर्क में आ रही हैं, जिसके कारण दो भाषावाद’ की समस्या उत्पन्न हो गयी है। अब जनजाति के लोग अपनी भाषा बोलने के साथ-साथ सम्पर्क भाषा भी बोलने लगे हैं। कुछ लोग तो अपनी भाषा के प्रति इतने उदासीन हो गये हैं कि वे अपनी भाषा को भूलते जा रहे हैं। इससे विभिन्न जनजातियों के लोगों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान में बाधा उपस्थित हो रही है। इस बाधा के उत्पन्न होने से जनजातियों में सामुदायिक भावना में कमी आती जा रही है तथा सांस्कृतिक मूल्यों और आदतों का पतन होता जा रहा है।
2. जनजाति के लोगों में सांस्कृतिक विभेद, तनाव और दूरी की समस्या – जनजाति के कुछ लोग ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई बन गये हैं तथा कुछ लोगों ने हिन्दुओं की जाति-प्रथा को अपना लिया है, परन्तु ऐसा सभी लोगों ने नहीं किया है, जिसके कारण जनजाति के लोगों में आपसी सांस्कृतिक विभेद, तनाव और सामाजिक दूरी या विरोध उत्पन्न हुआ है। अन्य संस्कृति को अपनाने वाले व्यक्ति अपने जातीय समूह और संस्कृति से दूर होते गये, साथ-ही-साथ वे उस संस्कृति को भी पूरी तरह नहीं अपना पाये जिस संस्कृति को उन्होंने ग्रहण किया था।
3. युवा-गृहों का नष्ट होना-जनजातियों की अपनी संस्थाएँ व युवा – गृह, जो कि जनजातीय सामाजिक जीवन के प्राण थे, धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे हैं; क्योंकि जनजातीय लोग ईसाई तथा हिन्दू लोगों के सम्पर्क में आते जा रहे हैं, जिससे युवा-गृह’ नष्ट होते जा रहे हैं।
4. जनजातीय ललित कलाओं का ह्रास – ओज जैसे-जैसे जनजातियों के लोग बाहरी संस्कृतियों के प्रभाव में आते जा रहे हैं, उससे जनजातीय ललित कलाओं का ह्रास होता जा रहा है। नृत्य, संगीत, ललित कलाएँ, कलाएँ. वे लकड़ी पर नक्काशी आदि का काम दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। जनजातियों के लोग अब इन ललित कलाओं के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं।
(ब) धार्मिक समस्याएँ – जनजातियों के लोगों पर ईसाई धर्म व हिन्दू धर्म का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। राजस्थान के भील लोगों ने हिन्दू धर्म के प्रभाव के कारण एक आन्दोलन चलायो, जिसका नाम था ‘भगत आन्दोलन’ और इस आन्दोलन ने भीलों को भगृत तथा अभगत दो वर्गों में विभाजित कर दिया। इसी प्रकार बिहार और असम की जनजातियाँ ईसाई धर्म से प्रभावित हुईं, जिसके परिणामस्वरूप एक ही समूह में नहीं, वरन् एक ही परिवार में धार्मिक भेद-भाव दिखाई पड़ने लगा। आज जनजातीय लोगों में धार्मिक समस्या ने विकट रूप धारण कर लिया है, क्योंकि नये धार्मिक दृष्टिकोण के कारण सामुदायिक एकता और संगठन टूटने लगे हैं और परिवारिक तनाव, भेद-भाव व लड़ाई-झगड़े बढ़ते जा रहे हैं। इसी के साथ-साथ जनजाति के लोग अपनी अनेक आर्थिक व सामाजिक समस्याओं का समाधान अपने धर्म के द्वारा कर लेते थे, परन्तु नये धर्मों के नये विश्वास और नये संस्कारों ने उन पुरानी मान्यताओं को भी समाप्त कर दिया है, जिसके कारण जनजातियों में असन्तोष की भावना व्याप्त होती जा रही है।
(स) सामाजिक समस्याएँ – जनजातियाँ सभ्य समाज के सम्पर्क में आती जा रही हैं, जिनके कारण उनके सम्मुख अनेक सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं, जो निम्नलिखिते हैं
1. कन्या-मूल्य – हिन्दुओं के प्रभाव में आने के कारण जनजातियों में कन्या-मूल्य रुपये के रूप में माँगा जाने लगा है। दिन-प्रतिदिन यह मूल्य अधिक तीव्रता के साथ बढ़ता जा रहा है, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि सामान्य स्थिति के पुरुषों के लिए विवाह करना कठिन हो गया है। इस कारण जनजातीय समाज में ‘कन्या-हरण’ की समस्या बढ़ती जा रही है।
2. बाल-विवाह – जनजातीय समाज में बाल-विवाह की समस्या भी उग्र रूप धारण करती जा रही है। जिस समय से जनजाति के लोग हिन्दुओं के सम्पर्क में आये हैं, तभी से बाल-विवाह की प्रथा भी बढ़ी है।
3. वैवाहिक नैतिकता का पतन – जैसे- जैसे जनजातियों के लोग सभ्य समाज के सम्पर्क में
आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे विवाह-पूर्व और विवाह के पश्चात् बाहर यौन सम्बन्ध बढ़ते जा रहे हैं, जिससे विवाह-विच्छेद की संख्या भी बढ़ रही है।
4. वेश्यावृत्ति, गुप्त रोग आदि – जनजातीय समाज में वेश्यावृत्ति, गुप्त रोग आदि से सम्बन्धित सामाजिक समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। जनजातीय लोगों की निर्धनता से लाभ उठाकर विदेशी व्यापारी, ठेकेदार, एजेण्ट आदि रुपयों का लोभ दिखाकर उनकी स्त्रियों के साथ अनुचित यौन-सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं। इन्हीं औद्योगिक केन्द्रों में काम करने वाले जनजातीय श्रमिक वेश्यागमन आदि में फंस जाते हैं और गुप्त रोगों के शिकार हो जाते हैं।
(द) आर्थिक समस्याएँ – आज भारत की जनजातियों में सबसे गम्भीर आर्थिक समस्या है, क्योंकि उनके पास पेटभर भोजन, तन ढकने के लिए वस्त्र और रहने के लिए अपना मकान नहीं है। कुछ प्रमुख आर्थिक समस्याएँ निम्नलिखित हैं
1. स्थानान्तरित खेती सम्बन्धी समस्या – जनजातीय व्यक्ति प्राचीन ढंग की खेती करते हैं, ‘ जिसे स्थानान्तरित खेती कहते हैं। इस प्रकार की खेती से किसी प्रकार की लाभप्रद आय उन्हें प्राप्त नहीं होती है। इस प्रकार की खेती से केवल भूमि का दुरुपयोग ही होता है। अत: खेती में अच्छी पैदावार नहीं होती है, जिससे वे खेती करना छोड़ देते हैं और भूखे मरने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
2. भूमि-व्यवस्था सम्बन्धी समस्या – पहले जनजातियों का भूमि पर एकाधिकार था, वे मनमाने ढंग से उसका उपयोग करते थे। अब भूमि सम्बन्धी नये कानून आ गये हैं, अब वे मनमाने ढंग से जंगल काटकर स्थानान्तरित खेती नहीं कर सकते।
3. वनों से सम्बन्धित समस्याएँ – पहले जनजातियों को वनों से पूर्ण एकाधिकार प्राप्त था। वे जंगल की वस्तुओं, पशु, वृक्ष आदि का उपयोग स्वेच्छापूर्वक करते थे, परन्तु अब ये सब वस्तुएँ सरकारी नियन्त्रण में हैं।
4. अर्थव्यवस्था सम्बन्धी समस्याएँ – जनजाति के लोग अब मुद्रा-रहित अर्थव्यवस्था से मुद्रा-युक्त अर्थव्यवस्था में आ रहे हैं; अत: उनके सम्मुख नयी-नयी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
5. ऋणग्रस्तता की समस्या – सेठ, साहूकार, महाजन उनकी अशिक्षा, अज्ञानता तथा निर्धनता का लाभ उठाकर उन्हें ऊँची ब्याज दर पर ऋण देते हैं, जिससे वे सदैव ऋणी ही बने रहते हैं।
6. औद्योगिक श्रमिक समस्याएँ – चाय बागानों, खानों और कारखानों में काम करने वाले जनजातीय श्रमिकों की दशा अत्यन्त दयनीय है। उन्हें उनके कार्य के बदले में उचित मजदूरी नहीं मिलती है, उनके पास रहने के लिए मकान नहीं हैं, काम करने की स्थिति एवं वातावरण भी ठीक नहीं है। जनजाति के श्रमिकों को अपने अधिकारों के विषय में भी ज्ञान नहीं है, वे पशुओं की भाँति कार्य करते हैं और उनके साथ पशुओं जैसा ही व्यवहार होता है।
(य) स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ – जनजाति के लोगों के सम्मुख स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक. समस्याएँ हैं, जो निम्नवत् हैं
1. खान-पान – निर्धनता के कारण जनजाति के लोगों को सन्तुलित व पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है। वे शराब आदि मादक पदार्थों का सेवन करते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ता है।
2. वस्त्र – जनजाति के लोग अब नंगे (वस्त्रहीन) न रहकर वस्त्र धारण करने लगे हैं, परन्तु निर्धनता के कारण उनके पास पर्याप्त वस्त्र उपलब्ध नहीं होते हैं। वस्त्रों के अभाव में वे लगातार एक ही वस्त्र को धारण किये रहते हैं, जिससे अनेक प्रकार के चर्म रोग आदि हो जाते हैं तथा वे बीमार भी हो जाते हैं।
3. रोग व चिकित्सा का अभाव – अनुसूचित जनजाति के लोग हैजा, चेचक, तपेदिक आदि अनेक प्रकार के भयंकर रोगों से ग्रस्त रहते हैं। इसके अतिरिक्त चाय बागानों व खानों में काम करने वाले स्त्री-पुरुष श्रमिकों में व्यभिचार बढ़ता जा रहा है। वे अनेक प्रकार के गुप्त रोगों से ग्रस्त होते जा रहे हैं। निर्धनता व चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में जनजाति के लोगों के सम्मुख स्वास्थ्य सम्बन्धी गम्भीर समस्याएँ हैं।
4. शिक्षा सम्बन्धी समस्याएँ – जनजातियाँ आज भी अशिक्षा तथा अज्ञानता के वातावरण में रह रही हैं। कुछ लोग ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में आकर अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। अशिक्षा समस्त समस्याओं का आधार है। अशिक्षा के कारण ही जनजातीय समाज में आज भी अनेक प्रकार के अन्धविश्वास पनप रहे हैं। (निवारण के सुझाव-इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 4 का उत्तर देखें।
प्रश्न 3
भारत में अल्पसंख्यकों अर्थात् अल्पसंख्यक वर्गों की कुछ समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत एक विभिन्नताओं वाला देश है। इस देश में विभिन्न प्रकार की भूमि, विभिन्न प्रकार की जलवायु, विभिन्न धर्म, विभिन्न जातियाँ, विभिन्न भाषाएँ एवं विभिन्न प्रकार के रीतिरिवाज पाये जाते हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि यहाँ के लोग विभिन्न आधारों पर अनेक समूहों में विभाजित रहते हैं। यह विभाजन धर्म, सम्प्रदाय, जाति, व्यवसाय, आयु, लिंग, शिक्षा आदि किसी भी आधार पर हो सकता है। इन सभी समूहों की सदस्य संख्या समान नहीं है। किसी समूह में अधिक लोग रहते हैं और किसी में सदस्यों की संख्या बहुत कम होती है।
इस प्रकार किसी विशेष आधार पर बने सामाजिक समूहों में, जिनकी संख्या अपेक्षाकृत कम होती है, उन्हें हम अल्पसंख्यक समूह अथवा अल्पसंख्यक (Minorities) कहते हैं। भारत में मुसलमान, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध, जैन, पारसी आदि धर्मावलम्बियों तथा जनजातियों को अल्पसंख्यकों की श्रेणी में रखा जाता है। भारतीय समाज में पाया जाने वाला सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह मुस्लिम है। दूसरा प्रमुख अल्पसंख्यक सम्प्रदाय ईसाइयों का है। सिक्खों का भी अल्पसंख्यक वर्गों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके अतिरिक्त बौद्ध, जैन, पारसी एवं जनजातियाँ अन्य अल्पसंख्यक समूह हैं।
अल्पसंख्यकों की समस्या
भारत में रहने वाले अल्पसंख्यक समूहों की अनेक समस्याएँ हैं। यद्यपि संविधान द्वारा अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार दिया गया है, किन्तु संविधान में तथा प्रचलित कानूनों में उपलब्ध संरक्षणों के बावजूद भी अल्पसंख्यकों में यह भावना बनी हुई है कि उनके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता। यहाँ हम भारत के प्रमुख अल्पसंख्यकों की कुछ प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालेंगे
1. मुसलमानों की समस्याएँ – समकालीन भारत में मुसलमानों की कुछ प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं
- यद्यपि संविधान में कहा गया है कि धार्मिक आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता, किन्तु सामान्य मुसलमान स्वयं को मानसिक दृष्टि से असुरक्षित समझता है।
- मुस्लिम समुदाय का अधिकांश भाग अपने रूढ़िवादी विचारों के कारण अशिक्षित रह गया है जिसके कारण उन्हें विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अशिक्षी एवं रूढ़िवादिता के कारण उन्हें आर्थिक विकास के पूर्ण अवसर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। आमतौर पर वे परम्परागत व्यवसायों को ही अपनाते हैं तथा सरकारी नौकरियों व श्वेतवसन व्यवसायों में नहीं जा पाते।।
- मुस्लिम समाज सांस्कृतिक दृष्टि से भी स्वयं को बहुसंख्यक वर्गों से भिन्न समझता है। उनकी यह भावना पृथकता के भाव को प्रोत्साहित करती है।
- स्वाधीन भारत का मुस्लिम सम्प्रदाय राजनीतिक दृष्टि से दिशाहीन प्रतीत होता है। योग्य मुस्लिम नेतृत्व का अभाव दिखायी देता है। जिन नेताओं ने स्वयं को राजनीतिक मंच पर प्रतिष्ठित किया है, वे कठिनता से ही मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।
2. ईसाइयों की समस्याएँ – ईसाइयों की कुछ प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं
- ईसाइयों का रहन-सहन, मौज-मस्ती को होता है। यह प्रवृत्ति उनमें ऋणग्रस्तता को जन्म देती है।
- यद्यपि ईसाई लोग स्वयं को अंग्रेजों से सम्बन्धित मानते हैं, किन्तु वे किसी निश्चित जीवन शैली (अंग्रेजी अथवा भारतीय) को नहीं अपना पाते। एक से उनका लगाव नहीं है, तो दूसरा उनके लिए सम्भव नहीं है।
- चूंकि ईसाइयों में विवाह-विच्छेद (Divorce) एक आम-बात है, इसलिए इसका बुरा प्रभाव स्त्रियों की स्थिति और आश्रितों पर पड़ता है।
3. सिक्खों की समस्याएँ – सिक्खों की प्रमुख समस्याएँ निम्न प्रकार हैं
- सिक्खों का एक वर्ग अधिक सम्पन्न है, तो दूसरा वर्ग दरिद्र भी है।
- सिक्खों के साथ भारत के अन्य भागों के लोग अन्त:क्रिया के पक्ष में नहीं हैं।
- सिक्खों के एक वर्ग द्वारा धर्म को राजनीति से जोड़ने का प्रयत्न किया गया है। अतः
उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती धर्म को राजनीति से पृथक् करने की है।
प्रश्न 4
भारत में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के विकास के लिए सामाजिक चेतना संवैधानिक आरक्षण से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अनुसूचित जातियाँ तथा जनजातियाँ भारत के एक विशाल वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। समाज के इतने बड़े वर्ग की उपेक्षा करके उन्हें मानवोचित अधिकारों से वंचित रखकर, दीन-हीन और दासों के समान जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य करके सामाजिक प्रगति और राष्ट्र को समृद्ध एवं वैभवशाली बनाने की कल्पना नहीं की जा सकती।
यद्यपि शासकीय स्तर पर इन जातियों व जनजातियों के उत्थान के लिए आरक्षण जैसे कदम उठाये जा रहे हैं, तथापि आवश्यकता इस बात की है कि इनकी समस्याओं के प्रति जनसाधारण को जाग्रत किया जाए।
अनुसूचित जातियों व जनजातियों के विकास हेतु यह आवश्यक है कि अधिकांश हिन्दुओं के हृदय परिवर्तित हों। हमें सही रूप से इनकी वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करना चाहिए तथा निष्कर्ष निकालना चाहिए कि हमने तथा हमारे पूर्वजों ने क्यों इनके प्रति अन्यायपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया? हमें इनके प्रति पाली गयी सभी भ्रान्तियों से अपने-आप को मुक्त करना चाहिए। यह एक वास्तविकता है कि इनके प्रति अस्पृश्यता का भाव रखने का सम्बन्ध हिन्दू धर्म के मौलिक ग्रन्थों से नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे भी हमारी तरह इन्सान हैं तथा केवल शोर मचाने, नारे लगाने, हरिजन दिवस मनाने तथा आरक्षण से इनका विकास नहीं हो सकता। इनके विकास के लिए जनसाधारण में इनके प्रति न्यायपूर्ण एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार होना अति आवश्यक है।
विश्लेषकों का कहना है कि अनुसूचित जाति व जनजातियों की समस्याएँ प्रमुखतः आर्थिक व सामाजिक हैं। यदि इन्हें गन्दे पेशों से मुक्त होने का अवसर दिया जाए, इनके लिए विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएँ, सवर्णो की बस्तियों में मकान बनाने और रहने की सुविधा दी जाए तो सवर्णो तथा इन जातियों के बीच भेदभाव को कम किया जा सकता है। यह दृष्टिकोण भी इनके विकास में सहायक सिद्ध होगा। जनसाधारण का इनके प्रति समझदारी तथा प्रेम से भरा व्यवहार इन लोगों में सामाजिक सुरक्षा की भावना का विकास करेगा जिससे इनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा तथा जागृति आएगी।
लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)
प्रश्न 1:
राष्ट्रीय जीवन में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के योगदान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
‘भारतीय जनजातीय जीवन का बदलता दृश्य पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।[2010]
या
राष्ट्रीय जीवन में जनजातियों के योगदान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों का राष्ट्रीय जीवन में योगदान निम्नलिखित रूपों में दर्शाया जा सकता है
1. भारतीय राजनीति में प्रभावक भूमिका – संसद और राज्य विधानमण्डलों में अनुसूचित जनजातियों की सदस्य संख्या, विभिन्न चुनावों में उनकी सक्रिय भागीदारी तथा उच्च राजनीतिक पदों पर उनकी नियुक्ति से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि देश के राष्ट्रीय जीवन में इनका सक्रिय सहभाग अर्थात् योगदान बढ़ रहा है और इनमें राजनीतिक चेतना तेजी से बढ़ रही है। वर्तमान में लोकसभा में अनुसूचित जातियों के 79 एवं जनजातियों के 41 स्थान तथा राज्यों की विधानसभाओं में क्रमशः 557 तथा 527 सीटें आरक्षित की गयी हैं। पंचायतों एवं स्थानीय निकायों में जनसंख्या के अनुपात में इनकी सीटें आरक्षित की गयी हैं।
2. राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं में वृद्धि – अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आरक्षण एवं संवैधानिक रियायतें प्राप्त हैं जिनका एक परिणाम यह सामने आया है कि इनके नेताओं की महत्त्वाकांक्षाओं में वृद्धि हुई है। अब वे राजनीतिक और प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर ऊँची जातियों के लोगों से प्रतिस्पर्धा करने एवं आगे बढ़ने की आकांक्षा रखते हैं।
3. दबाव समूहों के रूप में संगठित होने की प्रवृत्ति – आरक्षण के परिणामस्वरूप जाति का राजनीति में प्रभाव बढ़ा है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद बनने वाले जातीय समुदायों में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों द्वारा निर्मित दबाव गुटों का विशेष महत्त्व है। जिला स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक इन जातियों एवं जनजातियों के संगठन पाये जाते हैं। इन्हीं संगठनों की माँग एवं संगठित प्रयासों के फलस्वरूप आरक्षण की अवधि सन् 2020 तक के लिए बढ़ा दी गयी थी।
4. निर्वाचनों में संगठित भूमिका – यह माना जाता है कि विभिन्न आम चुनावों में कांग्रेस दल के विजयी होने और सत्ता में आने का मुख्य कारण इन्हें हरिजनों, अन्य अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को मिलने वाला समर्थन है। इन जातियों ने अपनी संख्या की शक्ति को पहचाना है और राजनीति में संगठित रूप में भूमिका निभाते हैं। इससे राष्ट्रीय जीवन में इनकी भूमिका बढ़ी है। आज तो सभी राजनीतिक दल यह महसूस करने लगे हैं कि सत्ता में आने के लिए इन जातियों का समर्थन प्राप्त करना आवश्यक है।
5. भारतीय राजनीति में सन्तुलनकर्ता की भूमिका – अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की देश में कुल जनसंख्या 25 करोड़ है, जो देश की कुल जनसंख्या का 24.35 प्रतिशत है। इस संख्या के बल पर ही ये जातियाँ भारतीय राजनीति में शक्ति-सन्तुलन की स्थिति में हैं। जिस राजनीतिक दल को इनका समर्थन प्राप्त हो जाता है, उसकी राजनीतिक स्थिति काफी मजबूत हो जाती है।
6. अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के कई लोगों ने स्वतन्त्रता – आन्दोलन में भाग लिया। उन्होंने महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में योग दिया। इससे उनमें राजनीतिक चेतना बढ़ी है। अनेक नेताओं ने अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की स्थिति को उन्नत करने और उन्हें राष्ट्रीय जीवन-धारा में सम्मिलित करने हेतु प्रयास किये हैं।
7. देश के आर्थिक विकास में भी अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का काफी योगदान रहा है। खेतों, कारखानों, चाय-बागानों एवं खानों में इन जातियों के लोग ही उत्पादन के कार्य में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं। हाथ से काम करने वाले या मेहनतकश लोगों में अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों का योगदान ही सर्वाधिक रहा है। वर्तमान में अनेक अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लोग व्यापारी एवं उद्यमी के रूप में आगे बढ़ने लगे हैं।
प्रश्न 2:
अनुसूचित जाति व जनजाति की भारतीय राजनीति में सन्तुलनकर्ता के नाते क्या भूमिका है ?
उत्तर:
अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की देश में कुल जनसंख्या वर्तमान में 25 करोड़ है, जो देश की कुल जनसंख्या का 24.35 प्रतिशत है। इस संख्या के बल पर ही ये जातियाँ भारतीय राजनीति में शक्ति-सन्तुलन की स्थिति में हैं। जिस राजनीतिक दल को इनका समर्थन प्राप्त हो जाता है, उसकी राजनीतिक स्थिति पर्याप्त मजबूत हो जाती है। इन जातियों ने अपने हितों को ध्यान में रखकर पहले कांग्रेस दल को समर्थन दिया था। वर्तमान में कांग्रेस के अलावा अन्य राजनीतिक दलों ने भी अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों में अपना नाम बढ़ाया है और अपने जनाधार को मजबूत किया है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है वर्तमान समय में भारतीय राजनीति में अनुसूचित जाति और जनजाति की सन्तुलनकर्ता के रूप में एक प्रभावशाली भूमिका है, जिसके महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता।
प्रश्न 3:
सीमाप्रान्त जनजातियों की समस्याएँ बताइए।
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी सीमाप्रान्तों में निवास करने वाली जनजातियों की समस्याएँ देश के विभिन्न भागों की समस्याओं से कुछ भिन्न हैं। देश के उत्तर-पूर्वी प्रान्तों के नजदीक चीन, म्याँमार एवं बाँग्लादेश हैं। चीन से हमारे सम्बन्ध पिछले कुछ वर्षों से मधुर नहीं रहे हैं। बाँग्लादेश, जो पहले पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था, भारत का कट्टर शत्रु रहा है। चीन एवं पाकिस्तान ने सीमाप्रान्तों की जनजातियों में विद्रोह की भावना को भड़काया है, उन्हें अस्त्र-शस्त्रों से सहायता दी है एवं विद्रोही नागा और अन्य जनजातियों के नेताओं को भूमिगत होने के लिए अपने यहाँ शरण दी है। शिक्षा एवं राजनीतिक जागृति के कारण इस क्षेत्र की जनजातियों ने स्वायत्त राज्य की माँग की है। इसके लिए उन्होंने आन्दोलन एवं संघर्ष किये हैं। आज सबसे बड़ी समस्या सीमावर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातियों की स्वायत्तता की माँग से निपटना है। ।
प्रश्न 4
जनज़ातियों की प्रगति के लिए प्रमुख उपायों का सुझाव दीजिए। [2009, 13]
उत्तर:
जनजातियों की प्रगति के लिए निम्नलिखित प्रमुख उपाय किये जा सकते हैं
1. जनजातियों के पेशे गन्दे होते हैं। इनको पेशों से मुक्त होने का अवसर दिया जाए।
2. विभिन्न क्षेत्रों में काम करने के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
3. कुटीर उद्योग लगाने के लिए ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जाए।
4. भूमिहीन किसानों को भूमि उपलब्ध करायी जाए तथा फसल को बोने के लिए उत्तम बीज व खाद उपलब्ध करायी जाए।
5. इन्हें सवर्णो के साथ बस्तियों में मकान बनाने की सुविधा उपलब्ध करायी जाए।
6. अन्य जातियों के साथ उत्पन्न होने वाले मतभेदों को दूर किया जाए।
7. जनजातियों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाया जाए।
8. इन्हें शिक्षित बनाने के लिए मुफ्त शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा व्यवस्था को कारगर बनाया जाए।
9. सरकारी सेवाओं में इनके लिए कुछ स्थान सुरक्षित किये जाएँ।
10. जनजातियों की प्रगति के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना चलाने की भी आवश्यकता है।
प्रश्न 5
अनुसूचित जनजातियों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए किये गये उपायों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों पर अत्याचार रोकने के प्रभावी उपाय के लिए, भारत सरकार ने अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989′ 30 जनवरी, 1990 से लागू किया। इसमें अत्याचार की श्रेणी में आने वाले अपराधों के उल्लेख के साथ-साथ उनके लिए कड़े दण्ड की भी व्यवस्था की गयी। वर्ष 1995 में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अन्तर्गत व्यापक नियम भी बनाये गये, जिनमें अन्य बातों के अतिरिक्त प्रभावित लोगों के लिए राहत और पुनर्वास की भी व्यवस्था है।
राज्यों से कहा गया कि वे इस तरह के अत्याचारों की रोकथाम के उपाय करें और पीड़ितों के आर्थिक तथा सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था करें। अरुणाचल प्रदेश और नागालैण्ड को छोड़कर अन्य सभी राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों में इस तरह के मामलों में इस कानून के तहत मुकदमा चलाने के लिए विशेष अदालतें बनायी गयी हैं। अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लोगों पर अत्याचारों की रोकथाम के कानून के तहत आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में विशेष अदालतें गठित की जा चुकी हैं।
केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजना के अन्तर्गत इस कानून को लागू करने पर आने वाले खर्च का आधा राज्य सरकारें और आधा केन्द्र सरकार वहन करेंगी। केन्द्रशासित प्रदेशों को इसके लिए शत-प्रतिशत केन्द्रीय सहायता दी जाती है।
प्रश्न 6
अनुसूचित जातियों की प्रगति हेतु अपने सुझाव लिखिए। [2016]
उत्तर:
अनुसूचित जातियों की प्रगति हेतु निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं ।
अनुसूचित जातियों की प्रगति हेतु सुझाव
अनुसूचित जातियों की प्रगति हेतु निम्न कदम उठाए जा सकते हैं।
- अनुसूचित जातियों में शिक्षा के स्तर में सुधार करके उनके दृष्टिकोण व आर्थिक स्थिति को सुधारा जाना चाहिए।
- इनके जीवन स्तर को उठाना चाहिए जिससे इन्हें बेहतर अवसरों की प्राप्ति हो सके।
- अस्पृश्यता निवारण के लिए विभिन्न माध्यमों का प्रयोग कर जनमत का निर्माण किया जाना चाहिए।
- समाज में इनके विरुद्ध असमान नीति अपनाने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए।
- सरकार द्वारा विभिन्न नीतियों के माध्यम से अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
- इन्हें अन्य जातियों के समान धार्मिक व सामाजिक स्वतन्त्रता और समानता व्यावहारिक रूप में प्रदान करनी चाहिए।
- सभी जाति के बच्चों को एक समान व्यवहार व शिक्षा प्रदान कर उनमें आपसी सद्भाव की भावना का विकास किया जाना चाहिए।
- राजनीतिक स्तर पर सरकार द्वारा इनको प्रोत्साहन प्रदान करना इनकी राजनीतिक निम्न स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 7
अनुसूचित जातियों की चार समस्याएँ बताइए। [2007, 09, 11]
या
अनुसूचित जातियों की दो समस्याएँ बताइए। [2009, 16]
उत्तर:
अनुसूचित जातियों की चार समस्याएँ निम्नवत् हैं
- अस्पृश्यता की समस्या – अनुसूचित जातियों के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या अस्पृश्यता कीरही है। उच्च जाति के कुछ व्यक्ति कुछ व्यवसायों; जैसे-चमड़े का काम, सफाई का काम, कपड़े धोने का काम आदि करने वालों को आज भी अपवित्र मानते हैं।
- अशिक्षा की समस्या – अनुसूचित जाति के अधिकांश लोग अशिक्षित तथा अज्ञानी हैं। इस कारणे अनेक बुराइयों ने इन लोगों में घर कर लिया है। निर्धनता के कारण इनके बालक भी शिक्षा शुरू कर पाने में असमर्थ होते हैं।
- रहन-सहन का नीचा स्तर – इनका जीवन स्तर निम्न होता है तथा वे आधा पेट खाकर तथा अर्द्धनग्न रहकर जीवन व्यतीत करते हैं। निर्धनता तथा बेरोजगारी इनके रहन-सहन के निम्न स्तर के लिए उत्तरदायी हैं।
- आवास की समस्या – इनके आवास की दशा भी शोचनीय होती है। ये ऐसे स्थानों में रहते हैं जहाँ सफाई का नामोनिशान भी नहीं होता। बरसात में इनकी दशा दयनीय हो जाती है। ये लोग बहुधा झोंपड़ी या कच्चे मकानों में रहते हैं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
प्रश्न 1
संविधान के अनुच्छेद 46 में समाज के दलित, दुर्बल और कमजोर वर्गों के लोगों के सम्बन्ध में क्या कहा गया है ?
उत्तर:
संवैधानिक दृष्टि से कमजोर, दुर्बल या दलित वर्ग के अन्तर्गत अनुसूचित जातियाँ, अनुसूचित जनजातियाँ तथा कुछ अन्य पिछड़े हुए समूह आते हैं। इसमें समाज के साधन-हीन वर्ग को सम्मिलित किया गया है। भारतीय संविधान भ्रातृत्व एवं समानता पर जोर देता है। अतः संविधाननिर्माताओं ने सोचा कि यदि समानता को एक वास्तविक रूप प्रदान करना है, तो समाज के इन दलित, दुर्बल और कमजोर वर्गों को ऊँचा उठाना होगा और उन्हें विकास की सुविधाएँ प्रदान करनी होंगी। संविधान के अनुच्छेद 46 में इस सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि राज्य जनता के दुर्बलतर अंगों के, विशेषतः अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के, शिक्षा तथा अर्थ सम्बन्धी (आर्थिक) हितों की विशेष सावधानी से रक्षा करेगा और सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा।
प्रश्न 2
अनुसूचित जाति से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान में अछूत, दलित, बाहरी जातियों, हरिजन आदि लोगों को कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान करने की दृष्टि से एक अनुसूची तैयार की गयी जिसमें विभिन्न अस्पृश्य जातियों को सम्मिलित किया गया। इस अनुसूची के आधार पर वैधानिक दृष्टिकोण से इन जातियों के लिए अनुसूचित जाति (Schedule Caste) शब्द को काम में लिया गया। वर्तमान में सरकारी प्रयोग में इनके लिए ‘अनुसूचित जाति’ शब्द को ही काम में लिया जाता है। इनके लिए तैयार की गयी सूची में जिन अस्पृश्य जातियों को रखा गया उन्हें अनुसूचित जातियाँ कहा गया।
प्रश्न 3
अस्पृश्यता को दूर करने एवं अनुसूचित जातियों के कल्याण की दृष्टि से कार्य कर रहे चार ऐच्छिक संगठनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
अस्पृश्यता को दूर करने एवं अनुसूचित जातियों के कल्याण की दृष्टि से अनेक ऐच्छिक संगठन कार्य कर रहे हैं, जिनमें प्रमुख हैं
- अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ, दिल्ली;
- भारतीय दलित वर्ग लीग, दिल्ली;
- ईश्वर सरन आश्रम, इलाहाबाद तथा
- भारतीय रेडक्रॉस सोसाइटी, दिल्ली।।
प्रश्न 4
अनुसूचित जातियों के लोगों को कौन-सी शिक्षा सम्बन्धी सुविधाएँ दी गयी हैं ?
उत्तर:
अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लोगों को अन्य लोगों के समान स्तर पर लाने और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने में सहायता करने के उद्देश्य से शिक्षा का विशेष प्रबन्ध किया गया। देश की सभी सरकारी शिक्षण संस्थाओं में इन जातियों के विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गयी है। वर्ष 1944-45 से अस्पृश्य जातियों के छात्रों को छात्रवृत्तियाँ देने की योजना प्रारम्भ की गयी तथा इनके लिए पृथक् छात्रावासों की व्यवस्था भी की गयी है। बुक बैंक के माध्यम से इनके छात्रों के लिए पाठ्य-पुस्तकें भी उपलब्ध करायी जाती हैं।
प्रश्न 5
अनुसूचित जातियों की मुख्य आर्थिक समस्याएँ बताइए।
उत्तर:
गरीबी, बेरोजगारी, स्थानान्तरित खेती, ऋणग्रस्तता तथा आधारभूत संरचना का अभाव आदि अनुसूचित जातियों की मुख्य आर्थिक समस्याएँ हैं।।
प्रश्न 6
अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लोगों को सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व कैसे दिया गया है ?
उत्तर:
अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने, अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करने तथा उच्च जाति के लोगों के सम्पर्क में आने को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान सुरक्षित रखे गये हैं। खुली प्रतियोगिता द्वारा अखिल भारतीय आधार पर की जाने वाली नियुक्तियों में इनके लिए क्रमश: 15 एवं 7.5 प्रतिशत स्थान सुरक्षित रखे गये हैं।
प्रश्न 7
डॉ० अम्बेडकर ने अनुसूचित जाति परिसंघ की स्थापना क्यों की तथा इसका क्या लक्ष्य था ?
उत्तर:
राजनीति में अनुसूचित जातियों के हितों की रक्षा के लिए डॉ० अम्बेडकर ने अनुसूचित जाति परिसंघ’ की स्थापना की थी। इसका लक्ष्य अनुसूचित जातियों के राजनीतिक आन्दोलन को आगे बढ़ाना था। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद अम्बेडकर के नेतृत्व में इस दल का उद्देश्य यह देखना रह गया था कि संविधान में वर्णित आरक्षण के प्रावधानों का समुचित रूप से क्रियान्वयन किया जा रहा है या नहीं।
प्रश्न 8
जनजाति क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनजाति एक ऐसा क्षेत्रीय मानव समूह है जिसकी एक सामान्य संस्कृति, भाषा, राजनीतिक संगठन एवं व्यवसाय होता है तथा जो सामान्यतः अन्तर्विवाह विवाह के नियमों का पालन करता है। गिलिन और गिलिन के अनुसार, “स्थानीय आदिम समूहों के किसी भी संग्रह को जोकि एक सामान्य क्षेत्र में रहता हो, एक सामान्य भाषा बोलता हो और एक सामान्य संस्कृति का अनुसारण करता हो, एक जनजाति कहते हैं।”
प्रश्न 9
जनजातियों की दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
जनजातियों की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- अन्तर्विवाही – एक जनजाति के सदस्य केवल अपनी ही जनजाति में विवाह करते हैं, जनजाति के बाहर नहीं।
- सामान्य संस्कृति – एक जनजाति में सभी सदस्यों की सामान्य संस्कृति होती है, जिससे उनके रीति-रिवाजों, खान-पान, प्रथाओं, नियमों, लोकाचारों, धर्म, कला, नृत्य, जादू, संगीत, भाषा, रहन-सहन, विश्वासों, विचारों, मूल्यों आदि में समानता पायी जाती है।
प्रश्न 10
जनजातीय परिवार की दो मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
जनजातीय परिवार की दो मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- जनजातीय परिवार में बाल-विवाह का प्रचलन होता है तथा कन्या-मूल्य की प्रथा भी है। विवाह के समय वर-पक्ष कन्या-पक्ष को कन्या-मूल्य देता है।
- जनजातीय परिवारों में वेश्यावृत्ति आम बात है। जनजातीय परिवार निर्धन होने के कारण अपनी स्त्रियों को अनुचित यौनसम्बन्ध स्थापित करने की प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 11
अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा सम्बन्धी क्या समस्याएँ हैं ?
उत्तर:
जनजातियों में शिक्षा का अभाव है और वे अज्ञानता के अन्धकार में पल रही हैं। अशिक्षा के कारण वे अनेक अन्धविश्वासों, कुरीतियों एवं कुसंस्कारों से घिरी हुई हैं। आदिवासी लोग वर्तमान शिक्षा के प्रति उदासीन हैं, क्योंकि यह शिक्षा उनके लिए अनुत्पादक है। जो लोग आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर लेते हैं, वे अपनी जनजातीय संस्कृति से दूर हो जाते हैं और अपनी मूल संस्कृति को घृणा की दृष्टि से देखते हैं। आज की शिक्षा जीवन-निर्वाह का निश्चित साधन प्रदान नहीं करती; अतः शिक्षित व्यक्तियों को बेकारी को सामना करना पड़ता है।
प्रश्न 12
दुर्गम निवासस्थान में रहने के कारण अनुसूचित जनजातियों को क्या हानि है ?
या
जनजातियों में ‘दुर्गम निवास स्थल : एक समस्या विषय पर प्रकाश डालिए।[2007]
उत्तर:
लगभग सभी जनजातियाँ पहाड़ी भागों, जंगलों, दलदल-भूमि और ऐसे स्थानों में निवास करती हैं, जहाँ सड़कों का अभाव है और वर्तमान यातायात एवं संचार के साधन अभी वहाँ उपलब्ध नहीं हो पाये हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि उनसे सम्पर्क करना एक कठिन कार्य हो गया है। यही कारण है कि वैज्ञानिक आविष्कारों के मधुर फल से वे अभी अपरिचित ही हैं और उनकी आर्थिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी एवं राजनीतिक समस्याओं का निवारण नहीं हो पाया है।
प्रश्न 13
पर-संस्कृतिग्रहण के परिणामस्वरूप जनजातियों के सामने कौन-सी समस्या उत्पन्न हुई है ?
उत्तर:
पर-संस्कृतिग्रहण के परिणामस्वरूप जनजातियों के सामने निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं
भाषा की समस्या, सांस्कृतिक विभेद, तनाव और दूरी की समस्या, जनजातीय ललित कलाओं का ह्रास, बाल-विवाह, वेश्यावृत्ति एवं गुप्त रोग की समस्या, स्थानान्तरित खेती सम्बन्धी समस्या, खान-पान व वस्त्रों की समस्या, धार्मिक समस्याएँ आदि।
प्रश्न 14
अनुसूचित जाति विकास निगम क्यों बनाये गये ?
उत्तर:
वर्तमान में अनुसूचित जातियों के विकास एवं कल्याण हेतु विभिन्न राज्यों में अनुसूचित जाति विकास निगम’ बनाये गये हैं, जो अनुसूचित जातियों के परिवारों तथा वित्तीय संस्थाओं के बीच सम्बन्ध स्थापित कराने तथा उन्हें आर्थिक साधन उपलब्ध कराने में सहयोग देते हैं।
निश्चित उत्तीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
भारत में अनुसूचित जातियों के लोगों की वर्तमान में कितनी संख्या है ?
उत्तर:
भारत में अनुसूचित जातियों के लोगों की वर्तमान में संख्या अनुमानतः 17 करोड़ हो गयी है।
प्रश्न 2
डॉ० भीमराव अम्बेडकर की जन्मतिथि क्या है ?
उत्तर:
डॉ० भीमराव अम्बेडकर की जन्मतिथि है-14 अप्रैल, 1891।
प्रश्न 3
अनुसूचित जातियों के लोगों के लिए कितने प्रतिशत स्थान नौकरियों में आरक्षित है?
उत्तर:
अनुसूचित जातियों के लोगों के लिए नौकरियों में 22.5 प्रतिशत स्थान आरक्षित है।
प्रश्न 4
‘हरिजन सेवक संघ कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
‘हरिजन सेवक संघ दिल्ली में स्थित है।
प्रश्न 5
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम किस वर्ष पारित किया गया था? [2011]
उत्तर:
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955 ई० में पारित किया गया था।
प्रश्न 6
जनजाति को परिभाषित कीजिए। [2007, 08, 11, 13, 14]
उत्तर:
जनजाति एक ऐसा क्षेत्रीय मानव-समूह है, जिसकी एक सामान्य संस्कृति, भाषा, राजनीतिक संगठन एवं व्यवसाय होता है तथा जो सामान्यत: अन्तर्विवाह के नियमों का पालन करता है।
प्रश्न 7
किन्हीं दो जनजातियों के नाम लिखिए। [2013]
उत्तर:
दो जनजातियों के नाम हैं
(1) मुण्डा (बिहार) तथा
(2) नागा (नागालैण्ड)।
प्रश्न 8
अनुसूचित जनजातियों के लिए नौकरियों में कितने प्रतिशत स्थान सुरक्षित है?
उत्तर:
अनुसूचित जनजातियों के लिए नौकरियों में 7.5 प्रतिशत स्थान सुरक्षित है।
प्रश्न 9
राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए कब तक स्थान सुरक्षित रखे गये हैं ?
उत्तर:
राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए सन् 2020 तक स्थान सुरक्षित रखे गये हैं।
प्रश्न 10
1951 ई० की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या कितनी थी ? [2011]
उत्तर:
लगभग 1 करोड़ 91 लाख।
प्रश्न 11
संविधान के कौन-से अनुच्छेद अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए लोकसभा, विधानसभाओं तथा स्थानीय निकायों में स्थान सुरक्षित करने पर जोर देते हैं ? [2007]
उत्तर:
अनुच्छेद 243, 330 एवं 332 अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए लोकसभा विधानसभाओं तथा स्थानीय निकायों में स्थान सुरक्षित करने पर जोर देते हैं।
प्रश्न 12
जनजातियों की समस्याओं के समाधान हेतु ‘राष्ट्रीय उपवन की अवधारणा किसने दी ? [2007]
उत्तर:
यह अवधारणा रॉय तथा एल्विन ने दी।
प्रश्न 13
जनजातियों में जीवन-साथी चुनने के तरीके का उल्लेख कीजिए। [2007, 13]
उत्तर:
जनजातियों में ‘टोटम बहिर्विवाह’ का प्रचलन है जो कि बहिर्विवाह का ही एक रूप
प्रश्न14
सन 1980 में मण्डल कमीशन की रिपोर्ट पर आधारित अन्य पिछड़े वर्ग को कितने प्रतिशत आरक्षण दिया गया है ? [2007]
उत्तर:
27 प्रतिशत।
प्रश्न 15
क्या केरल के नायर एक जनजाति हैं ? [2007]
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न16
निम्नलिखित पुस्तकों से सम्बन्धित लेखकों/विचारकों के नाम लिखिए
(क) सामाजिक मानवशास्त्र,
(ख) एन इण्ट्रोडक्शन टू सोशल ऐन्थ्रोपोलॉजी,
(ग) मैन इन प्रिमिटिव वर्ल्ड।
उत्तर:
इन पुस्तकों के लेखक के नाम हैं
(क) मजूमदार एवं मदान,
(ख) मजूमदार एवं मदान,
(ग) हॉबेल।
प्रश्न 17
अनुसूचित नामक शब्द किसके द्वारा बनाया गया था ?
उत्तर:
अनुसूचित नामक शब्द साइमन कमीशन द्वारा 1927 ई० में बनाया गया था।
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
‘ओरिजिन ऑफ स्पीसीज’ (Origin of Species) किसके द्वारा लिखी गयी ?
(क) चार्ल्स डार्विन के
(ख) हरबर्ट स्पेन्सर के
(ग) कार्ल मॉनहीन के
(घ) जॉर्ज सिमैल के।
प्रश्न 2
खासी जनजातीय समाज किस प्रकार का कार्य करता है ?
(क) पौध-उत्पादक का
(ख) खेती का
(ग) पशुपालन का
(घ) कुटीर उद्योग का
प्रश्न 3
हिमाचल प्रदेश की किस जनजाति के पुरुष अपनी पत्नियों के वेश में रहते हैं ?
(क) संथाल के
(ख) थारू के
(ग) नागी के
(घ) कोटा के
प्रश्न 4
निम्नलिखित में कौन-सी जनजाति उत्तराखण्ड के गढ़वाल एवं कुमाऊँ क्षेत्र की है ?
(क) लुसाई
(ख) बिरहोर
(ग) भोटिया
(घ) गारो
प्रश्न 5
निम्नलिखित में कौन-सी जनजातीय समाज की एक विशेषता है ?
(क) जटिल सामाजिक सम्बन्ध
(ख) क्षेत्रीय समूह
(ग) औपचारिकता
(घ) व्यक्तिवादिता
प्रश्न 6
निम्नलिखित में से किसको भारतीय संविधान द्वारा एक जनजाति को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट करने का अधिकार है ?
(क) उस राज्य का राज्यपाल जहाँ जनजाति निवास करती है।
(ख) भारत का राष्ट्रपति
(ग) आयुक्त अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति
(घ) समाज कल्याण मन्त्रालय
प्रश्न 7
भारतीय संविधान की कौन-सी धारा किसी भी प्रकार की अस्पृश्यता पर रोक लगाती है ?
(क) धारा 17
(ख) धारा 22
(ग) धारा 45
(घ) धारा 216
प्रश्न 8
‘नागरिक अधिकार संरक्षण कानून’ किस वर्ष में लागू किया गया ?
(क) 1950 ई० में
(ख) 1956 ई० में
(ग) 1970 ई० में
(घ) 1986 ई० में
प्रश्न 9
लोकसभा के कुल 542 स्थानों में से कितने स्थान अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित हैं ?
(क) 30 स्थान
(ग) 50 स्थान
(ख) 40 स्थान
(घ) 60 स्थान
प्रश्न 10
जनजातियों को ‘पिछड़े हिन्दू किसने कहा है ?
(क) जी० एस० घुरिए
(ख) एस० सी० दुबे
(ग) एस० सी० राय
(घ) जे० एच० हट्टन
प्रश्न 11
‘अस्पृश्य वे जातियाँ हैं जो अनेक सामाजिक और राजनीतिक निर्योग्यताओं की शिकार हैं। इसमें से अनेक निर्योग्यताएँ उच्च जातियों द्वारा परम्परात्मक तौर पर निर्धारित और सामाजिक तौर पर लागू की गई हैं।” यह परिभाषा किसने दी है ? [2011]
(क) जी० एस० घुरिये
(ख) डी० एन० मजूमदार
(ग) जे० एन० हट्टन
(घ) एम० एन० श्रीनिवासन
प्रश्न 12
ओ० बी० सी० का अर्थ है [2015]
(क) अन्य पिछड़ा वर्ग
(ख) अन्य पिछड़ी जातियाँ
(ग) सभी पिछड़ी जातियाँ
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
1. (क) चार्ल्स डार्विन के, 2. (क) पौध-उत्पादक का, 3. (ख) थारू के, 4. (ग) भोटिया, 5, (ख) क्षेत्रीय समूह, 6. (ख) भारत का राष्ट्रपति, 7. (क) धारा 178. (ख) 1956 ई० में, 9. (ख) 40 स्थान, 10. (क) जी० एस० घुरिये, 11. (ख) डी० एन० मजूमदार, 12. (क) अन्य पिछड़ा वर्ग। .
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