UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 5 Family (परिवार)
UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 5 Family (परिवार)
विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1
परिवार की परिभाषा दीजिए तथा परिवार के कार्यों की विवेचना कीजिए। [2013, 15, 16]
या
परिवार से क्या तात्पर्य है? इसके विभिन्न कार्यों को समझाइए। [2015, 16]
उत्तर:
परिवार का अर्थ एवं परिभाषा
‘Family’ शब्द का उद्गम लैटिन शब्द ‘Famulus’ से हुआ है, जो एक ऐसे समूह के लिए। प्रयुक्त हुआ है जिसमें माता-पिता, बच्चे, नौकर और दास हों। साधारण अर्थों में विवाहित जोड़े को परिवार की संज्ञा दी जाती है, किन्तु समाजशास्त्रीय दृष्टि से यह परिवार शब्द का सही उपयोग नहीं है। परिवार में पति-पत्नी एवं बच्चों का होना आवश्यक है। विभिन्न विद्वानों ने परिवार को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है
मैकाइवर एवं पेज के अनुसार, “परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्ध द्वारा परिभाषित एक ऐसा समूह है जो बच्चों के जनन एवं लालन-पालन की व्यवस्था करता है।”
डॉ० दुबे के अनुसार, “परिवार में स्त्री और पुरुष दोनों को सदस्यता प्राप्त रहती है, उनमें कम-से-कम दो विपरीत लिंग के व्यक्तियों को यौनसम्बन्धों की सामाजिक स्वीकृति रहती है और उनके संसर्ग से उत्पन्न सन्तान मिलकर परिवार का निर्माण करते हैं।”
मरडॉक के अनुसार, “परिवार एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसके लक्षण सामान्य निवास, आर्थिक सहयोग और जनन हैं। इसमें दो विषम लिंगों के वयस्क शामिल होते हैं, जिनमें कम-से-कम दो व्यक्तियों में स्वीकृत यौन सम्बन्ध होता है और जिन वयस्क व्यक्तियों में यौन-सम्बन्ध होता है, उनके अपने या गोद लिये हुए एक या अधिक बच्चे होते हैं।”
लूसी मेयर ने लिखा है, “परिवार एक गार्हस्थ्य समूह है, जिसमें माता-पिता और सन्तान साथसाथ रहते हैं। इनके मूल रूप में दम्पती और उनकी सन्तान रहती हैं।” । संक्षेप में, हम परिवार को जैविकीय सम्बन्धों पर आधारित एक सामाजिक समूह के रूप में परिभाषित कर सकते हैं, जिसमें माता-पिता और बच्चे होते हैं तथा जिसका उद्देश्य अपने सदस्यों के लिए सामान्य निवास, आर्थिक सहयोग, यौन-सन्तुष्टि, प्रजनन, समाजीकरण, शिक्षण आदि की सुविधाएँ जुटाना है।
परिवार के कार्य
परिवार समाज की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है। परिवार में बच्चा जन्म लेता है और विकसित होकर एक आदर्श नागरिक बनता है। परिवार वह कार्यशाला है जिसमें आदर्श नागरिक गढ़े जाते हैं। रूसेक के शब्दों में, “परिवार व्यक्तित्व को पालना है।” परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जो मानव-जीवन के विकास में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह बालक को सीख देने वाली प्राथमिक पाठशाला है। परिवार एक ऐसा छोटा सामाजिक समूह है जो बालक में सामाजिक मूल्यों एवं रीति-रिवाजों के प्रति लगाव उत्पन्न करता है। समाज उच्छृखल बालक को नियन्त्रित और सामाजिक बनाकर अपनी भूमिका निभाता है। परिवार के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
1. प्राणिशास्त्रीय कार्य-एक परिवार के द्वारा निम्नलिखित प्राणिशास्त्रीय कार्य सम्पादित किये जाते हैं
- यौन-इच्छाओं की पूर्ति-परिवार विवाह संस्था के माध्यम से युवक और युवतियों को दाम्पत्य सूत्र में बाँधकर यौन-इच्छाओं की सन्तुष्टि करने का अवसर जुटाता है। बिना वैवाहिक सूत्र में बंधे समाज यौन-सम्बन्धों को मान्यता नहीं देता। इस प्रकार यौन आवश्यकताओं की पूर्ति कराने के रूप में परिवार का कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण होता है।
- सन्तानोत्पत्ति-सन्तान को जन्म देना परिवार का दूसरा महत्त्वपूर्ण प्राणिशास्त्रीय कार्य है। वैवाहिक जीवन में बँधकर दम्पती यौन-क्रियाओं के माध्यम से सन्तान को जन्म देते हैं। इस प्रकार उत्पन्न सन्तानों को समाज वैध मानता है।
- प्रजाति की निरन्तरता बनाये रखना-परिवार और समाज प्रजाति की निरन्तरता को बनाये रखता है। वैवाहिक दम्पती सन्तानों को जन्म देकर अपनी प्रजाति के प्रभाव को प्रवाहित रखते हैं। इस कृत्य से प्रजाति की निरन्तरता बनी रहती है।
2. शारीरिक कार्य-परिवार के द्वारा निम्नलिखित शारीरिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं
- शारीरिक सुरक्षा परिवार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य सदस्यों को शारीरिक सुरक्षा प्रदान करना है। परिवार सदस्यों के चोटग्रस्त होने, दुर्घटना में अंग-भंग होने व गम्भीर रूप से बीमार होने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा करता है।
- बच्चों का पालन-पोषण शारीरिक कार्य के निमित्त बच्चों के पालन-पोषण के रूप में परिवार का कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। परिवार उसका लालन पालन कर उसे समाज का आवश्यक और उपयोगी अंग बनाता है।
- आवास, भोजन एवं वस्त्रों की व्यवस्था–आवास, भोजन और वस्त्र मानवे की प्राथमिक आवश्यकताएँ हैं। परिवार अपने सदस्यों के लिए आवास, पुष्टिकारक भोजन तथा आरामदायक स्वच्छ वस्त्रों की व्यवस्था करता है। ये तीनों वस्तुएँ मानव के जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
3. आर्थिक कार्य-परिवार के द्वारा निम्नलिखित आर्थिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं
- उत्तरधिकारी का निर्धारण-परिवार की पुरानी पीढ़ी नयी पीढ़ी को सम्पत्ति और पदों का हस्तान्तरण करती है। प्रत्येक परिवार में वंशगत सम्पत्ति को आदान-प्रदान होता है। पितृसत्तात्मक परिवार में पिता की सम्पत्ति पर पुत्र का तथा मातृसत्तात्मक परिवार में सम्पत्ति पर अधिकार माता के सम्बन्ध से निर्धारित होता है।
- उत्पादक इकाई-उत्पादक इकाई के रूप में परिवार का कार्य महत्त्वपूर्ण माना जाता है। परिवार में कुटीर उद्योग चलाये जाते हैं। परिवार के सदस्य एक साथ मिलकर वंशानुगत व्यवसाय कर परिवार के लिए आजीविका जुटाते हैं। इस प्रकार उत्पादक इकाई के रूप में परिवार का कार्य महत्त्वपूर्ण है।
- श्रम-विभाजन-परिवार श्रम-विभाजन का सरल रूप है। परिवार में स्त्री, पुरुष, बच्चों और वृद्धों के मध्य कार्यों का स्पष्ट विभाजन कर दिया जाता है। परिवार में बालकों के पालन-पोषण से लेकर बाह्य कार्य पुरुषों को सौंपे गये हैं। बच्चे पठन पाठन का कार्य करते हैं तथा घर के कार्यों में हाथ बंटाते हैं।
4. धार्मिक कार्य-परिवार अपने सदस्यों के लिए धार्मिक कार्य भी करता है। परिवार बच्चों को धर्म, आचरण, नैतिकता और परम्पराओं की शिक्षा देकर इस कार्य का निर्वाहन करता है। परिवार में रहकर ही बच्चा पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, सदाचार और दुराचार में भेद करना सीखती है।
5. शिक्षण कार्य-परिवार को नागरिकता की प्रथम पाठशाला कहा जाता है। वह नवजात शिशु को विभिन्न सीखों द्वारा आदर्श नागरिक बनाता है। परिवार द्वारा प्रदत्त शिक्षाएँ व्यक्ति का जीवनभर मार्गदर्शन करती रहती हैं। परिवार बालक को प्रेम, त्याग, सहानुभूति, बलिदान और कर्तव्यपरायणता का पाठ पढ़ाकर उसे भावी जीवन के लिए प्रशिक्षित करता है। बच्चे के चरित्र-निर्माण में पारिवारिक शिक्षण की प्रमुख भूमिका रहती है।
6. मनोरंजनात्मक कार्य-परिवार अपने सदस्यों को स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने का भी कार्य करता है। परिवार के सदस्य गप्पें लड़ाकर, बच्चों से खेलकर, चुटकुले सुनाकर व खेलकूद द्वारा मनोरंजन कर लेते हैं। समय-समय पर सम्पन्न होने वाले त्योहार और उत्सव भी परिवार में मनोरंजन प्रदान करते हैं। गीत, संगीत व लोकगीत आदि के द्वारा भी परिवार में भरपूर मनोरंजन किया जाता है।
7. मनोवैज्ञानिक कार्य-परिवार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य अपने सदस्यों को मनोवैज्ञानिक सन्तुष्टि और सुरक्षा प्रदान करना है। परिवार में बच्चों को माँ की ममता, पिता का स्नेह और भाई-बहनों का प्यार मनोवैज्ञानिक सन्तोष प्रदान करता है। परिवार के मनोवैज्ञानिक कार्य बच्चे के मानसिक विकास और मस्तिष्क को विशाल बनाने में अभूतपूर्व सहयोग प्रदान करते हैं।
8. समाजीकरण का कार्य-परिवार समाजीकरण के अभिकरण के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार बच्चे का समाजीकरण करके उसे समाज के अनुकूल बनाता है। बच्चा सांस्कृतिक परम्पराओं, रूढ़ियों, रीति-रिवाजों और समाज के अनुरूप व्यवहार करने का ज्ञान परिवार से ही ग्रहण करता है।
9. मानव अनुभवों का हस्तान्तरण-परिवार में नयी पीढ़ी के सदस्य अपने पूर्वजों द्वारा मापदण्ड और अनुभवों का लाभ उठाते हैं। परिवार की प्रत्येक पीढ़ी इन अनुभवों को अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित करती है। नयी पीढ़ी परिस्थितियों के अनुकूल पुरानी मान्यताओं और मूल्यों में परिवर्तन लाती है व नये-नये आविष्कार द्वारा उन्हें सुधारकर नयी पीढ़ी तक पहुँचाती है। परिवार सामाजिक सभ्यता और संस्कृति के विकास में अभूतपूर्व योगदान देता है।
10. सामाजिक नियन्त्रण के कार्य-सामाजिक नियन्त्रण के क्षेत्र में परिवार के कार्य अद्वितीय हैं। परिवार व्यक्ति का समाजीकरण करके सामाजिक नियन्त्रण के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सदस्यों का चरित्र-निर्माण कर उन्हें- आदर्श नागरिक के रूप में ढाल देता है। परिवार सदस्यों को शैक्षिक, मनोरंजनात्मक व विवाह सम्बन्धी सहयोग देकर सामाजिक नियन्त्रण के क्षेत्र में बहुत सहयोग देता है। यह एकता, ,,, भाईचारा, त्याग, सहानुभूति आदि गुणों का विकास कर व्यक्ति की दानवी शक्तियों का दमन कर नियन्त्रण को बढ़ावा देता है। इस प्रकार, परिवार के अभाव में सामाजिक नियन्त्रण करना दूभर कार्य होगा।
प्रश्न 2
भारतीय समाज में संयुक्त परिवार का भविष्य क्या है? इसकी व्याख्या कीजिए। [2013]
उत्तर:
भारतीय समाज में संयुक्त परिवार का भविष्य
संयुक्त परिवार में हो रहे परिवर्तनों के सन्दर्भ में यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि संयुक्त परिवार का क्या भविष्य है? क्या वास्तव में संयुक्त परिवार टूट रहा है? और, क्या संयुक्त परिवारों का स्थान पश्चिमी देशों में पाए जाने वाले एकाकी परिवार लेते जा रहे हैं? अधिकांश विद्वानों ने संयुक्त परिवार पर किए गए अध्ययनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि यद्यपि समकालीन भारत में संयुक्त परिवार छिन्न-भिन्न होकर एकाकी परिवारों का रूप ले रहे हैं और हमारी सामाजिक संरचना में उनका कोई विशेष स्थान नहीं है, तथापि वास्तविकता यह है कि आज भी संयुक्त परिवार हमारे देश में विद्यमान हैं और इनके छिन्न-भिन्न होने के निकट भविष्य में कोई आसार नहीं हैं। कृषि व्यवसाय, हिन्दू आदर्श तथा मनोवृत्तियाँ और विचार अभी भी संयुक्त परिवारों के पक्ष में हैं।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए संयुक्त परिवार के भविष्य के विषय में दो विचारधाराएँ सामने आती हैं—प्रथम, संयुक्त परिवार का भविष्य उज्ज्वल है तथा द्वितीय, संयुक्त परिवार का भविष्य अन्धकारमय है। प्रथम विचारधारा के समर्थक के०एम० कपाडिया हैं। उनके मतानुसार, संयुक्त परिवार ने अभी तक जिस कष्टमय समय को पार किया है, उसका भविष्य बुरा नहीं है।” उन्होंने आगे कहा है, “हिन्दू मनोवृत्तियाँ आज भी संयुक्त परिवार के पक्ष में हैं। इसी कारण विधियों द्वारा संयुक्त परिवार का विनाश अहिन्दू समझा जाता है, क्योंकि वह हिन्दू पारिवारिक मनोवृत्तियों की अवहेलना करता है। इनके द्वारा मुम्बई में किए गए सर्वेक्षण से भी हमें यह पता चलता है।
कि बहुमत (57%) लोग आज भी संयुक्त परिवार के पक्ष में हैं। इस मत को अधिकांश विद्वान् स्वीकार करते हैं। वास्तव में, संयुक्त परिवार परिवर्तित परिस्थितियों के अनुकूल अपने स्वरूप को बदल रहा है और इसका विघटन नहीं हो रहा है। आई०पी० देसाई भी इस विचारधारा के समर्थक हैं। उनका कहना है, “आज भी अधिकतर लोग संयुक्त पारिवारिक व्यवस्था को अच्छा समझते हैं और उसकी उपयोगिता से प्रभावित हैं।
” एम०एन० श्रीनिवास का विचार है। कि आधुनिक युग में भी संयुक्त परिवार की महत्ता बढ़ती जा रही है और संयुक्त परिवार की भावना केवल अलग रहने से समाप्त नहीं हो जाती। दूसरी विचारधारा के समर्थकों का कहना है कि संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है और उसका भविष्य अन्धकारमय है। उदाहरणार्थ कोलण्डा के अनुसार, अधिकांश भारत में संयुक्त परिवारों की संख्या कम होती जा रही है तथा उसमें विघटन हो रहा है। टी०बी० बॉटोमोर ने 1951 ई० की जनगणना रिपोर्ट के आधार पर इस बात को उल्लेख किया है कि संयुक्त परिवार में काफी परिवर्तन आए हैं। संयुक्त परिवार से पृथक् घर बसाने की प्रवृत्ति निरन्तर बढ़ती जा रही है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यद्यपि संयुक्त परिवार का तीव्रता के साथ विघटन हो रहा है तथापि भारत में इसका समूल विनाश हो जाना स्वाभाविक दिखाई नहीं देता। एकाकी परिवारों की बढ़ती संख्या के आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि आने वाले समय में भारतीय समाज में संयुक्त परिवार पूर्णतः विघटित हो जाएँगे।
लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)
प्रश्न 1
परिवार की स्थायी व अस्थायी प्रकृति से आप क्या समझते हैं ? परिवार के महत्त्व को रूसेक ने क्या कहकर समझाया है ?
उत्तर:
परिवार एक समिति भी है और एक संस्था भी। पति-पत्नी और बच्चे मिलकर परिवाररूपी समिति का निर्माण करते हैं। समिति के रूप में परिवार अस्थायी है, क्योंकि तलाक, मृत्युं, पृथक्करण आदि के कारण परिवार की सदस्यता त्यागी जा सकती है, लेकिन एक संस्था के रूप में परिवार अमर है। परिवार के नियम और कार्य-प्रणाली मिलकर परिवाररूपी संस्था का निर्माण करते हैं। परिवार के सदस्यों के मरने या पृथक् हो जाने पर भी परिवार के नियम (अर्थात् संस्था) तो बने ही रहते हैं। इस रूप में परिवार अमर है, स्थायी है। ‘ परिवार के महत्त्व को प्राचीन काल से ही स्वीकार किया गया है। रूसेक कहते हैं, “परिवार व्यक्तित्व का पालना है।”
प्रश्न 2
परिवार के प्राणिशास्त्रीय कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिवार के प्राणिशास्त्रीय कार्य (Biological Functions) निम्नलिखित हैं–
1. यौन-इच्छाओं की पूर्ति-मानव की आधारभूत आवश्यकताओं में यौन-सन्तुष्टि भी महत्त्वपूर्ण है। परिवार ही वह समूह है जहाँ समाज द्वारा स्वीकृत विधि से व्यक्ति अपनी यौन-इच्छाओं की पूर्ति करता है। समाज में ऐसे स्त्री-पुरुषों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता जो परिवार के बाहर अपनी यौन-इच्छाओं की पूर्ति करते हैं।
2. सन्तानोत्पत्ति-मानव-समाज की निरन्तरता बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि मृत्यु को प्राप्त होने वाले सदस्यों का स्थान नवीन सदस्यों द्वारा भरा जाए। परिवार ही समाज के इस महत्त्वपूर्ण कार्य को करता है। परिवार के बाहर भी सन्तानोत्पत्ति हो सकती है, किन्तु कोई भी समाज अवैध सन्तानों को स्वीकार नहीं करता।
3. प्रजाति की निरन्तरता-परिवार ने ही मानव-जाति को अमर बनाया है। यही मृत्यु और अमरत्व का संगम-स्थल है। नयी पीढ़ी को जन्म देकर परिवार ने मानव की स्थिरता एवं निरन्तरता को बनाये रखा है। गुडे लिखते हैं, “यदि परिवार मानव की प्राणिशास्त्रीय आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त व्यवस्था न करे तो समाज समाप्त हो जाएगा।
प्रश्न 3
परिवार नियोजन के प्रसार के लिए दो उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिवार नियोजन का अर्थ है। परिवार को उपलब्ध साधनों के अनुसार नियोजित करना। परिवार नियोजन का अर्थ मात्र जनसंख्या नियन्त्रण ही नहीं है, अपितु भारत में लोगों की आर्थिक दशा तथा देश के संसाधनों के परिप्रेक्ष्य में परिवार नियोजन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या नियन्त्रण से ही लगाया जाना उचित होगा।
देश में फैली निर्धनता, बेकारी, भुखमरी, मूल्यवृद्धि जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए परिवार नियोजन को सर्वोपरि महत्ता देना नितान्त आवश्यक है। इसके दो उपाय निम्नवत् हैं
1. अज्ञानता व अन्धविश्वासों को दूर करना-भारत की अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित (निरक्षर) है, जिसके कारण लोग अनेक अन्धविश्वासों एवं कुसंस्कारों से घिरे हुए हैं। वे समझते हैं कि बच्चे ईश्वरीय देन हैं। इस अज्ञानता के कारण परिवार नियोजन कार्यक्रम वांछित सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहा है। हमें लोगों को शिक्षित करना होगा जिससे कि वे इस कार्यक्रम की महत्ता एवं लाभों को समझ सकें।
2. परिवार नियोजन अपनाने के लिए प्रोत्साहन देना-भारत के अधिकांश लोग निर्धन हैं तथा परिवार नियोजन की उनको अधिक आवश्यकता है। हमें उन्हें यह कार्यक्रम अपनाने के लिए उनके बीच जाकर इस कार्यक्रम की महत्ता बतानी होगी तथा उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित करना होगा। उनको प्रोत्साहित करने के लिए उनके कुछ लाभों की घोषणा भी करनी चाहिए। जैसे–नौकरी में प्राथमिकता, नकद पुरस्कार या उनका सार्वजनिक
अभिनन्दन आदि।
प्रश्न 4
संयुक्त परिवार की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2016]
या
संयुक्त परिवार की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2013, 14, 16]
उत्तर:
‘संयुक्त परिवार की मुख्य विशेषताएँ
संयुक्त परिवार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. अधिक पीढ़ियों के लोग-संयुक्त परिवार में एकाकी परिवार की अपेक्षा सामान्यतः तीन-चार पीढ़ियों के लोग निवास करते हैं; जैसे-दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, भाई-बहनें भाइयों की पत्नियाँ तथा उनके बच्चे।
2. संयुक्त निवास-संयुक्त परिवार की दूसरी विशेषता यह है कि इसके सभी सदस्य एक ही मकान में निवास करते हैं। इरावती कर्वे ने “एक ही छत के नीचे रहना” संयुक्त परिवार का मुख्य लक्षण बताया है। आई०पी० देसाई इस विशेषता को महत्व नहीं देते। वे इस पर बल देते हैं कि अगर सदस्य किसी कारणवश एक ही छत के नीचे नहीं रहते, परन्तु पारस्परिक अधिकारों एवं कर्तव्यों का पालन करते हैं तो उसे संयुक्त परिवार ही कहा जाता है। अधिकांश विद्वान संयुक्त परिवार की मुख्य विशेषता ही संयुक्त निवासस्थान बताते हैं। जब संयुक्त परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक हो जाती है तो कभी-कभी व्यक्तिगत परिवारों के लिए अलग अलग घर ले लिये जाते हैं, परन्तु भोजन इत्यादि की व्यवस्था ‘बड़े घर में ही होती है।
3. संयुक्त भोजन-संयुक्त परिवार का तीसरा लक्षण सदस्यों का सम्मिलित रूप से भोजन करना है, अर्थात् सभी सदस्य एक ही रसोई या चूल्हे का बना खाना खाते हैं। कर्ता की पत्नी की देखरेख में परिवार की सभी महिलाएँ (लड़कियाँ तथा बहुएँ) रसोई का कार्य करती हैं। परम्परागत रूप से संयुक्त परिवारों में पहले पुरुष भोजन करते हैं तथा बाद में महिलाएँ।
4. सामान्य सम्पत्ति-परम्परागत रूप से संयुक्त परिवार का लक्षण सामान्य सम्पत्ति रहा है। संयुक्त परिवार उत्पादन एवं उपभोग दोनों का ही केन्द्र है; अतः न केवल सम्पत्ति पर सबका समान अधिकार होता है, अपितु एक सामान्य कोष में सभी सदस्य अपनी आय जमा करते हैं और इसी कोष से परिवार का खर्च चलता है। सभी सदस्यों पर समान रूप से बिना किसी भेद-भाव के खर्च होता है।
प्रश्न 5
पारिवारिक विघटन के कोई चार कारण बताइए। [2007, 11]
या
संयुक्त परिवार में आधुनिक परिवर्तनों का विश्लेषण कीजिए। [2010]
या
भारत में पारिवारिक विघटन के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए। [2011, 15, 16]
या
परिवार की संरचना एवं प्रकार्य में होने वाले परिवर्तन के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए। [2011]
उत्तर:
पारिवारिक विघटन के चार मुख्य कारण निम्नलिखित हैं—
1. औद्योगीकरण एवं नगरीकरण-औद्योगीकरण के कारण लोग रोजगार की तलाश में औद्योगिक नगरों की ओर पलायन कर रहे हैं। साथ-साथ नगरीय जीवन की चमक-दमक तथा आरामदायक जिन्दगी भी मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। ये दोनों ही पारिवारिक विघटन के मुख्य कारक हैं।
2. आर्थिक आत्मनिर्भरता के प्रति झुकाव-आज का नवयुवक वर्ग संयुक्त परिवार की आर्थिक व्यवस्था सहन नहीं कर पाता है। उसके विचारों की आर्थिक आत्मनिर्भरता तथा आर्थिक स्वतन्त्रता ने प्रमुख स्थान धारण कर लिया है। इस कारण भी पारिवारिक विघटन को बल मिल रही है।
3. द्वेष एवं कलह से मुक्ति-आज संयुक्त परिवारों का वातावरण बड़ा बोझिल हो गया है। सदस्यों के सम्बन्ध औपचारिक होते जा रहे हैं तथा आत्मीयता कम होती जा रही है। इस कारण भी पारिवारिक विघटन बढ़ रहा है।
4. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के प्रति आकर्षण-अधिक सदस्य होने के कारण संयुक्त परिवार में नवविवाहित दम्पती को भी कई बार स्वतन्त्र रूप से मिलना कठिन होता है। फिर यहाँ कर्ता का स्थान इतना अधिक प्रमुख होता है कि प्रत्येक सदस्य अपने को पराधीन अनुभव करता है। तथा स्वतन्त्रता के लिए लालायित रहता है। इस कारण भी पारिवारिक विघटन हो रहा है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
प्रश्न 1
‘परिवार के बदलते स्वरूप में स्त्रियों की स्वतन्त्रता में वृद्धि’ से आप क्या समझते हैं? [2010]
उत्तर:
वर्तमान में परिवार की सम्पत्ति में स्त्रियों के साम्पत्तिक अधिकार बढ़े हैं। अब उन्हें नौकरी या व्यापार करने की भी स्वतन्त्रता है। इससे स्त्रियों की आर्थिक स्वतन्त्रता बढ़ी है। अब वे परिवार पर भार या पुरुषों की कृपा पर आश्रित नहीं हैं। इससे परिवार में स्त्रियों का महत्त्व बढ़ा है। स्त्री-शिक्षा के प्रसार ने सामाजिक चेतना लाने और स्त्रियों को अपने अधिकारों के प्रति सजग बनाने में योगदान दिया है। अब वे सामाजिक जीवन से सम्बन्धित विभिन्न गतिविधियों में भाग लेती हैं। इससे पारिवारिक क्षेत्र में कहीं-कहीं भूमिका-संघर्ष की स्थिति भी पायी जाती है।
प्रश्न 2
परिवार के बदलते स्वरूप में पिता के अधिकारों में क्या कमी आयी है तथा अन्य । सदस्यों का महत्त्व कैसे बढा है ? [2010]
उत्तर:
पिता के अधिकारों में कमी तथा अन्य सदस्यों के महत्त्व का बढ़ना–अब परिवार अधिनायकवादी आदर्शों से प्रजातान्त्रिक आदर्शों की ओर बढ़ रहे हैं। अब पिता परिवार में निरंकुश शासक के रूप में नहीं रहा है। परिवार से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण निर्णय अब केवल पिता के द्वारा नहीं लिये जाते। अब ऐसे निर्णयों में पत्नी और बच्चों का महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है। अब परिवार में स्त्री को भार-स्वरूप नहीं समझा जाता। अब बच्चों के प्रति भी माता-पिता के मनोभावों में परिवर्तन आया है। वे समझने लगे हैं कि बच्चों को मार-पीटकर या उनकी इच्छाओं का दमन करके उन्हें सही रास्ते पर नहीं लाया जा सकता। स्पष्ट है कि परिवार में स्त्री-सदस्यों एवं बच्चों का महत्त्व बढ़ा है।
प्रश्न 3
परिवार के शिक्षात्मक कार्य क्या हैं ?
उत्तर:
परिवार ही बच्चे की प्रथम पाठशाला है, जहाँ उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। परिवार के द्वारा दी गयी शिक्षाएँ जीवन-पर्यन्त उसका मार्गदर्शन करती रहती हैं। महापुरुषों की जीवनियाँ इस बात की साक्षी हैं कि उनके व्यक्तित्व-निर्माण में परिवार की भूमिका प्रमुख रही है। आदिम समय में जब आज की तरहे शिक्षण संस्थाएँ नहीं थीं तो परिवार ही शिक्षा की मुख्य संस्था थी। परिवार में ही बालक दया, स्नेह, प्रेम, सहानुभूति, त्याग, बलिदान, आज्ञापालन एवं कर्तव्यपरायणता का पाठ सीखता है। प्रश्न 4 परिवार के मनोवैज्ञानिक कार्य क्या हैं ? उत्तर: मनोवैज्ञानिक कार्य-परिवार अपने सदस्यों को मानसिक सुरक्षा और सन्तोष प्रदान करता है। परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम, सहानुभूति और सद्भाव पाया जाता है। माता-पिता में से किसी की मृत्यु, तलाक, पृथक्करण, घर से अनुपस्थिति आदि के कारण बच्चों को स्नेह एवं मानसिक सुरक्षा नहीं मिल पाने पर उनके व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता है।
प्रश्न 5
परिवार के ‘समाजीकरण का कार्य से क्या तात्पर्य है ?
या
व्यक्ति के समाजीकरण में परिवार की क्या भूमिका होती है ?
उत्तर:
समाजीकरण का कार्य-परिवार में ही बच्चे का समाजीकरण प्रारम्भ होता है। समाजीकरण की प्रक्रिया से ही मानव जैविक प्राणी से सामाजिक प्राणी बनता है। कॉम्टे (Comte) नामक विख्यात विद्वान् का यह कथन है कि “परिवार सामाजिक जीवन की अमर पाठशाला है।” वास्तव में यह कथन सत्य है, क्योंकि वहीं रहकर उसे परिवार और समाज के रीति-रिवाजों, प्रथाओं, रूढ़ियों और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है। धीरे-धीरे बच्चा समाज की प्रकार्यात्मक इकाई बन जाता है। परिवार ही समाज की संस्कृति को पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित करता है। वास्तव में, परिवार एक ऐसी संस्था है जिसका समाज में अद्वितीय स्थान है। परिवार में ही ज्ञान का संचय, संरक्षण एवं वृद्धि होती है। परिवार ही शिशु की प्रथम पाठशाला है।
प्रश्न 6
परिवार की दो विशेषताएँ लिखिए। [2015]
उत्तर:
परिवार अपनी जिन विशेषताओं के कारण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व प्रभावशाली माना जाता है, वे निम्न हैं
1. छोटा व सीमित आकार-परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति या विवाह सम्बन्धों में बँधे व्यक्ति या नातेदारी सम्बन्धों में आने वाले व्यक्ति ही परिवार के सदस्य माने जाते हैं। यही “कारण है कि परिवार की एक विशेषता उसका छोटा एवं सीमित आकार है।
2. स्थायी व अस्थायी प्रकृति-चूँकि परिवार का निर्माण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है; अत: इसकी प्रकृति समिति की तरह अस्थायी होती है लेकिन परिवार का निर्माण करते हुए कुछ निश्चित नियमों व व्यवहार प्रणालियों का ध्यान रखा जाता है, ‘जिनकी प्रकृति स्थायी होती है; अत: यह एक संस्था भी है।
प्रश्न 7
परिवार के चार कार्य लिखिए। [2016]
उत्तर:
परिवार के चार कार्य निम्नलिखित हैं
- यौन इच्छाओं की पूर्ति-परिवार का पहला प्रमुख कार्य विवाह संख्या के माध्यम से युवक-युवतियों को दाम्पत्य सूत्र में बाँधकर यौन-इच्छाओं की सन्तुष्टि करने का अवसर जुटाना है।
- सन्तानोपत्ति-सन्तान को जन्म देना परिवार का दूसरा प्रमुख कार्य है।
- बच्चों का पालन-पोषण-परिवार बच्चों का पालनपोषण कर उन्हें समाज का आवश्यक और उपयोगी अंग बनाता है।
- शिक्षण कार्य-परिवार को नागरिकता की प्रथम पाठशाला कहा जाता है। वह नवजात शिशु को विभिन्न सीखों द्वारा आदर्श नागरिक बनाता है।
प्रश्न 8
पारिवारिक विघटन से आप क्या समझते हैं? या पारिवारिक विघटन पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए। [2014]
उत्तर:
जब पति-पत्नी और परिवार के अन्य लोगों के सम्बन्धों में तनावे चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो पारिवारिक विघटन आरम्भ हो जाता है। पारिवारिक विघटन में तलाक, अनुशासनहीनता, गृहकलह, पृथक्करण आदि समस्याओं का समावेश होता है। ये समस्याएँ परिवार के स्वरूप एवं गठन को ही बदल देती हैं। इसी स्थिति को पारिवारिक विघटन कहते हैं।
प्रश्न 9
परिवारों में वंशनाम की क्या व्यवस्था होती है ?
उत्तर:
सभी परिवारों में बच्चों का नामकरण करने का कोई-न-कोई आधार होता है। इसे उपनाम या वंशनाम कहते हैं। पितृवंशीय परिवारों में यह नामकरण पिता के वंश के आधार पर तथा मातृवंशीय परिवारों में माता के वंश के आधार पर होता है।
निश्चित उत्तररीय प्रश्न
प्रश्न 1
मैकाइवर एवं पेज ने परिवार की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
मैकाइवर एवं पेज के अनुसार, “परिवार पर्याप्त निश्चित यौन-सम्बन्धों द्वारा परिभाषित एक ऐसा समूह है जो बच्चों के जनन एवं लालन-पालन की व्यवस्था करता है।”
प्रश्न 2
परिवार को मानव स्वभाव की पोषिका किसने कहा है ?
उत्तर:
चार्ल्स कूले ने परिवार को ‘मानव स्वभाव की पोषिका’ कहा है।
प्रश्न 3
परिवार व्यक्तित्व का पालना है।’ यह कथन किसका है ? [2013, 15, 16]
उत्तर:
यह कथन रूसेक नामक विद्वान् का है।
प्रश्न 4
संयुक्त परिवार से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
जिस परिवार में कई पीढ़ियों के सदस्य सामान्य भोजन, आवास और सामान्य कोष से सम्बन्धित रहते हैं, उसे संयुक्त परिवार कहते हैं।
प्रश्न 5
“परिवार सामाजिक नियन्त्रण का साधन है।” क्या यह सत्य है ?
उत्तर:
नहीं, क्योंकि परिवार सामाजिक नियन्त्रण का अभिकरण अथवा माध्यम है।
प्रश्न 6
पितृसत्तात्मक परिवार किसे कहते हैं ?
उत्तर:
ऐसा परिवार जिसमें सत्ता किसी पुरुष सदस्य में निहित होती है, जिसे परिवार का मुखिया या कर्ता कहा जाता है, उसे पितृसत्तात्मक परिवार कहते हैं।
प्रश्न 7
मातृसत्तात्मक परिवार का कर्ता कौन होता है ? [2009]
उत्तर:
मातृसत्तात्मक परिवार का कर्ता माता या बुजुर्ग महिला होती है।
प्रश्न 8
बहुपति-विवाही परिवार किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जिस परिवार में एक स्त्री अनेक पुरुषों की पत्नी होती है, उसे बहुपति-विवाही परिवार कहते हैं।
प्रश्न 9
ऐसा परिवार जिसके सदस्य केवल पति, पत्नी तथा उसके अविवाहित बच्चे होते हैं, उसे ……….. परिवार कहते हैं। [2007]
उत्तर:
एकाकी।
प्रश्न 10
परिवार के सहयोगी आधार में कमी आने का मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर:
परिवार में बढ़ती हुई व्यक्तिवादिता, परिवार के सहयोगी आधार में कमी आने का मुख्य कारण है।
प्रश्न 11
जब विवाह के पश्चात पति, पत्नी के साथ उसके माता-पिता के निवासस्थान पर रहने लगता है, तो ऐसे परिवार को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
ऐसे परिवार को मातृस्थानीय परिवार कहते हैं।
प्रश्न 12
परिवार को शिशु की प्रथम पाठशाला क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
क्योंकि सर्वप्रथम बच्चे का शिक्षण परिवार में होता है, इसीलिए परिवार को शिशु की प्रथम पाठशाला कहते हैं।
प्रश्न 13
नयी पीढी के आ जाने पर भी परिवार के सदस्यों की संख्या निश्चित सीमा तक ही क्यों बनी रहती है ?
उत्तर:
पुरानी पीढ़ी वृद्ध होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाती है; अतः नयी पीढ़ी के आने पर भी सदस्यों की संख्या एक निश्चित सीमा तक बनी रहती है।
प्रश्न 14
आधुनिक परिवार तथा संयुक्त परिवार कैसे भिन्न हैं?
उत्तर:
आधुनिक परिवार का आकार छोटा होता जा रहा है, जबकि संयुक्त परिवार का आकार, अर्थात् सदस्य-संख्या, बड़ा होता है।
प्रश्न 15
परिवार एक समिति है या समुदाय? [2016]
उत्तर:
परिवार एक समिति है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1.
परिवार की विशेषता है [2016]
(क) सार्वभौमिकता
(ख) अकेलापन
(ग) भावात्मक सम्बन्ध
(घ) संघर्ष
प्रश्न 2.
मातृसत्तात्मक परिवार होता है, जिसमें
(क) विवाह के बाद पत्नी पति के घर जाकर रहती है।
(ख) एक स्त्री कई पतियों की पत्नी हो सकती है।
(ग) पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की स्थिति ऊँची होती है।
(घ) माता की पूजा की जाती है।
प्रश्न 3.
जिस परिवार में पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चों के अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति नहीं रहता, उसे कहते हैं [2007]
(क) संयुक्त परिवार
(ख) केन्द्रीय परिवार या नाभिक परिवार
(ग) मातृसत्तात्मक परिवार
(घ) बहुपति-विवाही परिवार
प्रश्न 4.
शास्त्रीय सिद्धान्त के अनुसार, परिवार का प्रारम्भिक स्वरूप था
(क) मातृसत्तात्मक
(ख) संयुक्त
(ग) पितृसत्तात्मक
(घ) मातृवंशीय
प्रश्न 5.
ऐसे परिवार जिनमें सत्ता किसी पुरुष सदस्य में निहित होती है, जिसे परिवार का मुखिया या कर्ता कहा जाता है, को कहते हैं
(क) पितृवंशीय परिवार
(ख) पितृसत्तात्मक परिवार
(ग) पितृस्थानीय परिवार
(घ) संयुक्त परिवार
प्रश्न 6.
किस नियमानुसार परिवार की सम्पत्ति में परिवार के प्रत्येक सदस्य का अधिकार जन्मजात होता है?
(क) दायभाग
(ख) सपिण्ड
(ग) मिताक्षरा
(घ) प्रवर
प्रश्न 7.
दायभाग की प्रथा भारत के किस राज्य में प्रचलित है ?
(क) हरियाणा में
(ख) पंजाब में
(ग) पश्चिम बंगाल में
(घ) बिहार में
प्रश्न 8.
परिवार में परिवर्तन हैं [2011]
(क) संरचनात्मक
(ख) प्रकार्यात्मक
(ग) संरचनात्मक एवं प्रकार्यात्मक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
1. (ग) भावात्मक सम्बन्ध, 2. (ग) पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की स्थिति ऊँची होती है, 3. (ख) केन्द्रीय परिवार या नाभिक परिवार,
4. (ग) पितृसत्तात्मक, 5. (ख) पितृसत्तात्मक परिवार, 6. (ग) मिताक्षरा, 7. (ग) पश्चिम बंगाल में, 8. (घ) इनमें से कोई नहीं।
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