UP Board Solutions for Class 7 Hindi प्रमुख अन्तर्कथाएँ
UP Board Solutions for Class 7 Hindi प्रमुख अन्तर्कथाएँ
साहित्य का अध्ययन करते समय बीच-बीच में कुछ ऐसे प्रसंग आ जाते हैं, जिन्हें जाने बिना अर्थ स्पष्ट नहीं हो सकता है। उदाहरण- “छुअत शिला भई नारि सुहाई।”
इस पंक्ति का अर्थ उस समय तक स्पष्ट नहीं होता जब तक विद्यार्थियों को ‘अहिल्या’ के बारे में न बताया जाय, इसे ही अन्तर्कथा कहते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है- (अन्तः । कथा) अर्थात् कविता के अन्दर की कथा। नीचे कुछ ऐसी ही प्रमुख अन्तर्कथाएँ दी जा रही हैं, छात्र इन्हें ध्यान से पढ़ें
1. एकलव्य:
यह एक वनवासी सरदार का पुत्र था। यह द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखना चाहता था परन्तु द्रोणाचार्य ने इसे नीच समझकर अपना शिष्य नहीं बनाया किन्तु एकलव्य बड़ा लगनशील था। इसने गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसी के सामने वन में धनुर्विद्या सीखने लगा। धीरे-धीरे यह इस विद्या में बड़ा कुशल हो गया। जब द्रोणाचार्य को इसका पता चला तो उन्होंने गुरु-दक्षिणा में इसके दाएँ हाथ का अँगूठा माँग लिया। एकलव्य ने सहर्ष अपने दाएँ हाथ का अँगूठा काटकर अपने गुरु को अर्पण कर दिया।
2. वामनावतार:
प्राचीनकाल में राजा बलि नामक बड़े दानी राजा थे। इनके दान से भयभीत होकर इन्द्र ने विष्णु से इसकी परीक्षा लेने को कहा। विष्णु भगवान 52 अंगुल के शरीर वाला बौना बनकर भिक्षुक के रूप में राजा बलि के सामने आ पहुँचे और उससे तीन डग भूमि का दान माँगा। राजा ने इसे स्वीकार कर लिया। भगवान ने अब अपना विराट रूप दिखाकर केवले ढाई डग में ही सारी पृथ्वी को नाप लिया। अब आधे डग के लिए राजा बलि ने उन्हें अपना शरीर दे डाला। इस तरह भगवान के तीनों डगों में पृथ्वी थोड़ी पड़ गई थी।
3. अजामिल:
यह बड़ा पापी ब्राह्मण था। यह दूसरों को सताता था, हत्याएँ करता था और डाका, भी डालता था। इसके पुत्र का नाम नारायण था। जब अजामिल का अन्त समय आया तो यमदूत उसे भयंकर दुख देने लगे। दुखी होकर अजामिल ने अपने पुत्र नारायण को पुकारा। उसके मुख से नारायण नाम सुनकर यमदूत भाग गए और अन्त समय में ‘नारायण’ कहने के कारण उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।
4. गज:
ग्राह-ऋषि के शाप द्वारा एक राजा हाथी तथा एक गंधर्व ग्रह (मगर) बन गया था। ग्राह नदी में रहता था। एक दिन हाथी उसी नदी में स्नान कर रहा था, ग्राह ने उसका पैर पकड़ लिया और गहरे जल में खींचने लगा। जब हाथी की जौ भर सँड पानी से बाहर रही, तो उसने विष्णु भगवान को पुकारा। हाथी की पुकार सुनकर विष्णु भगवान ने नंगे पैर आकर सुदर्शन चक्र से ग्राह को मारकर हाथी को मुक्ति दिलाई।
5. अहल्या:
अहल्या गौतम मुनि की पत्नी थी। एक दिन जब मुनि स्नान को गए थे, तो इन्द्र चन्द्रमा की सहायता से गौतम मुनि का रूप धारण करके अहल्या के पास गए और उसके साथ दुराचार किया। इस बीच में गौतम मुनि लौट आए और उन्होंने अपने योग बेल से सब कुछ जान लिया। उन्होंने इन्द्र को श्राप दिया और अहल्या को भी श्राप देकर शिला बना दिया। भगवान श्रीराम
के चरणों की धूल से उसका उद्धार हुआ और उसने फिर से स्त्री रूप पाया।
6. अम्बरीष:
राजा अंबरीष वैष्णव भक्त थे। एक बार उन्होंने दुर्वासा ऋषि को भोजन पर बुलाया। दुर्वासा ऋषि जब देर तक नहीं आए, तो अंबरीष ने उनसे पहले ही प्रसाद ग्रहण कर लिया। ऋषि दुर्वासा को जब यह पता लगा, तो वे बहुत क्रोधित हुए तथा एक राक्षसी द्वारा राजा का वध करने के लिए उतारू हो गए। विष्णु भगवान ने अपने भक्त की स्वयं रक्षा कर राक्षसी का वध किया
और उन्हें दुर्वासा के श्राप से बचाया।
7. शबरी:
यह मतंग ऋषि की सेविका थी और भगवान राम की भक्त थी। सीता की खोज करते हुए जब रामचन्द्र जी शबरी के आश्रम में पहुँचे, तब उसने उनका बड़ा सत्कार किया। भगवान ने इसके जूठे बेर खाए और शबरी को राम भक्ति का उपदेश दिया और शबरी ने श्रीराम को बताया कि वे पंपापुर में जाकर सुग्रीव से मित्रता करें। भगवान की कृपा से शबरी को सद्गति प्राप्त हुई।
8. नरसिंह:
भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक नरसिंह का अवतार माना जाता है। इस अवतार में भगवान का सिर सिंह का था तथा शेष शरीर मनुष्य का था। भगवान ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए यह रूप धारण किया था। प्रहलाद का पिता बड़ा अत्याचारी थी। उसे वरदान मिला था कि वह किसी भी देवता, राक्षस, मनुष्य, पशु या अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारा जा सकेगा। वह न जमीन पर मर सकेगा और न आसमान में। भगवान ने यह अद्भुत रूप धारण कर अपने घुटनों पर रखकरे अपने नाखूनों से उसका पेट फाड़ दिया था और इस प्रकार अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी।
9. नल और नील:
ये दोनों भाई कपि विश्वकर्मा के पुत्र थे। इनको वरदान प्राप्त था कि इनके हाथ को छुआ पत्थर पानी पर तैरता रहेगा। श्रीराम ने जब लंका पर चढ़ाई की तब इन्होंने श्रीराम चन्द्र जी की लंका पर चढ़ाई करने हेतु समुद्र पर पुल बनाने में सहायता की थी।
10. त्रिशंकु:
राजा त्रिशंकु बड़े बलवान राजा थे। किन्तु बड़े अहंकारी थे। एक बार उन्होंने इसी शरीर से स्वर्ग जाने के लिए एक यज्ञ करना चाहा। इनके गुरु वशिष्ठ ने इन्हें ऐसा करने से रोका। उनसे नाराज होकर इन्होंने विश्वामित्र से यज्ञ करने की प्रार्थना की। विश्वामित्र की शक्ति से ये इसी शरीर से स्वर्ग की ओर बढ़ चले किन्तु इन्द्र ने इन्हें वहाँ से धकेल दिया। विश्वामित्र ने इन्हें नीचे ने आने दिया और ये आकाश में ही लटके रह गए।
11. काकभुशुडि:
ये पूर्व जन्म में ब्राह्मण कुमार थे। अभिमान के कारण एक बार ये अपने गुरु । से ही शास्त्रार्थ कर बैठे। इनके गुरु ने नाराज होकर इन्हें कौआ बन जाने का शाप दे डाला। दुःखी होकर ये कौए के रूप में नीलांचल पर्वत पर रहने लगे। वहीं एक बार गरुड़ को इन्होंने राम-नाम की महिमा का ज्ञान कराया। स्वयं शंकर भगवान ने भी राजहंस का रूप धारण कर इनसे रामकथा सुनी थी। गोस्वामी तुलसीदास ने भी इनकी पूरी कथा रामचरितमानस में लिखी है।
12. दुर्वासा:
ये बड़े क्रोधी ऋषि थे। ये महर्षि अत्रि के पुत्र थे। इन्होंने अम्बरीष तथा शकुन्तला आदि को भी शाप दे दिया था। अम्बरीष राजा ने इन्हें एकादशी के दिन भोजन का निमन्त्रण दिया। जब ये न आए और पुण्यकाल बीतने लगा तो अम्बरीष ने इन्हें बिना भोजन कराए ही प्रसाद ग्रहण कर लिया। इससे रुष्ट होकर उन्होंने राजा अम्बरीष को शाप दे दिया। भगवान विष्णु ने अपने भक्त अम्बरीष की रक्षार्थ दुर्वासा पर अपना सुदर्शन चक्र छोड़ दिया, जिससे दुर्वासा घबराए परन्तु तीनों लोकों में उन्हें कहीं शरण न मिली। अन्त में उन्होंने राजा अम्बरीष से क्षमा माँगी और राजा अम्बरीष ने उन्हें क्षमा कर दिया।
13. अगस्त्य ऋषि:
एक बार अगस्त्य मुनि के पिता मित्रावरण की दृष्टि आकाश में जाती हुई उर्वशी नामक एक अप्सरा पर पड़ी। इससे उनका वीर्य स्खलित हो गया। उन्होंने उसे एक घड़े में रख दिया जिससे अगस्त्य की उत्पत्ति हुई। घड़े से उत्पन्न होने के कारण ये कुम्भज भी कहलाते हैं। एक बार उन्होंने टिटहरी के अण्डों की रक्षा के लिए संपूर्ण समुद्र का पानी पी लिया। बाद में समुद्र के प्रार्थना करने पर मूत्र के रूप में जल को निकाल दिया। कहा जाता है कि समुद्र का पानी तभी से खारा है।
14. प्रहलाद:
एक अत्याचारी राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र था। यह भगवान का परम भक्त था। पिता के अनेक कष्ट देने पर भी उसने ईश्वर भक्ति नहीं छोड़ी। एक समय उसके पिता ने प्रहलाद को खम्भे में बाँधकर मारना चाहा तो विष्णु भगवान ने नरसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप को मार डाला और प्रहलाद को अटल भक्ति का वरदान दिया।
15. भस्मासुर:
यह राक्षस था किन्तु शिव का बड़ा भक्त था। इसने शिवजी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि यह जिसके मस्तक पर हाथ रख देगा वही भस्म हो जाएगा। इस वरदान की परीक्षा हेतु इसने शंकरजी के सिर पर हाथ रखना चाहा, शंकरजी भागे। विष्णु भगवान ने सुन्दरी का रूप धारण कर इस राक्षस को ही मोहित कर लिया और उसके मस्तक पर उसी का हाथ रखवा दिया। इससे यह भस्म हो गया।
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