UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 5 निजभाषा उन्नति (मंजरी)

By | May 26, 2022

UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 5 निजभाषा उन्नति (मंजरी)

UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 5 निजभाषा उन्नति (मंजरी)

समस्त पद्यांशों की व्याख्या

निज भाषा………………………. को शूल।

संदर्भ:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के  ‘निजभाषा उन्नति’ नामक कविता से ली गई है। इसके रचयिता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हैं।

प्रसंग:
कवि ने अपनी भाषा की उन्नति के लिए कहा है।

व्याख्या:
कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कहते हैं, कि सब प्रकार की उन्नति का आधार अपनी भाषा (हिन्दी) की उन्नति करना है। अपनी भाषा हिन्दी के ज्ञान के बिना हृदय का दुख (शूल) दूर नहीं हो सकता है।

करहू विलम्ब न ……………..मुल

संदर्भ:
पूर्ववत्। प्रसंग- कवि ने अपनी भाषा हिन्दी की उन्नति के लिए प्रयत्न करने को कहा है।

व्याख्या:
हे भाइयो! अब उठो और देर मत करो। अपना काँटा दूर करो। सबसे पहले अपनी भाषा की उन्नति करो। यह सब चीजों की उन्नति की जड़ है।

प्रचलित करहु ………………………… रत्न।

संदर्भ:
पूर्ववत्।

प्रसंग:
कवि ने सरकारी काम-काज में हिन्दी का प्रयोग करने के लिए कहा है।

व्याख्या:
यत्न करके सारे संसार में अपनी भाषा का प्रयोग  प्रचलित कर दो। यह रत्न (निज भाषा) सरकारी कामकाज, कोर्ट (अदालत) आदि में फैला दो।

सुत सो ……………………………….. बहु बात।
संदर्भ:
पूर्ववत्।

प्रसंग:
कवि ने घरेलू व्यवहार में बातचीत हिन्दी में ही करने के लिए कहा है।

व्याख्या:
अपने मन की अनेक बातों को रात-दिन पुत्र,  पत्नी, मित्र और नौकर आदि के साथ अपनी भाषा के माध्यम से ही करो।

निजभाषा …………………………………….. पुकार। संदर्भ- पूर्ववत्।
प्रसंग:
कवि ने अपनी भाषा, धर्म, मान-सम्मान और कार्य-व्यवहार को मिलाकर उन्नति करने । के लिए कहा है। |

व्याख्या:
अपनी भाषा, अपना धर्म, अपना मान-सम्मान, अपने कार्य और व्यवहार, इन सबसे मिलकर प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है।

पढ़ो लिखो कोउ ………………………. अनुसार। संदर्भ- पूर्ववत्।
प्रसंग:
अनेक भाषाएँ जान लेने पर भी, सोच-विचार  करने के लिए कवि ने हिन्दी का प्रयोग करने को कहा है।

व्याख्या:
चाहे अनेक प्रकार से पढ़ाई-लिखाई की जाए, अनेक भाषाएँ सीखी जाएँ, परन्तु जब भी कोई सोच-विचार  किया जाए, वह अपनी भाषा में ही किया जाना चाहिए।

अंग्रेजी ……………………………..हीन।

संदर्भ:
पूर्ववत्।

प्रसंग:
अँग्रेजी पढ़कर सर्वगुण होकर, कवि ने हिन्दी (निज भाषा) के ज्ञान बिना मनुष्य को हीन बताया है।

व्याख्या:
यद्यपि अँग्रेजी भाषा के पढ़ने से मनुष्य सब गुणों में चतुर हो जाता है, फिर भी अँग्रेजी के साथ हिन्दी भाषा का ज्ञान जरूरी है।

घर की फूट बुरी

जगत में ………………………………….जनि कोय।
संदर्भ:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के निजभाषा उन्नति’  नामक पाठ ‘घर की फूट बुरी’ नामक कविता से ली गई है। इसके रचयिता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हैं।

प्रसंग:
कवि ने अनेक उदाहरण देते हुए घर की फूट को बुरा बताया है। धन, मान और शक्ति की चाह करने वालों को घर में फूट नहीं पड़ने देना चाहिए।

व्याख्या:
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कहते हैं कि संसार में घर की फूट बहुत बुरी है। सोने की लंका घर की फूट से ही नष्ट हो गई। फूट के कारण ही सौ कौरव मारे गए और महाभारत का युद्ध हुआ। उससे जो हानि हुई, उसकी पूर्ति भारत में अब तक नहीं हो पाई। फूट के कारण ही जयचन्द ने भारत में अफगानों को बुलाया। उसका फल आर्य लोग गुलाम होकर अब तक भोग रहे हैं। फूट के कारण ही महापद्मनन्द ने मगध के राज्य का नाश कर लिया। उसने चन्द्रगुप्त मौर्य का विनाश करना चाहा था लेकिन वह राज्य सहित स्वयं ही नष्ट हो गया। अत: यदि संसार में अपने धन, मान और बल की रक्षा करनी है, तो अपने घर में भूल से भी फूट मत डालो।

प्रश्न-अभ्यास

कुछ करने को

प्रश्न 1:
निम्नांकित स्थितियों पर छोटे समूहों में चर्चा कीजिए और निष्कर्ष को पाँच-सात  पंक्तियों में लिखिए

(क) ऐसा घर जिसमें सब मिलकर कार्य करते हैं।
उत्तर:
विद्यार्थी चर्चा स्वयं करें।
निस्कर्षत :
हमें घर के सभी कार्य मिलजुलकर करने चाहिए। इससे आपसी प्रेम बना रहेगा। काम भी जल्दी निपट जाएगा और सबके पास आराम के लिए बराबर-बराबर समय बचेगा। घर के बड़ों को लगेगा कि बच्चे उनकी फिक्र करते हैं।  बच्चों को भी यह महसूस होगा कि बड़े उनका ख्याल रखते हैं। फलतः घर में हँसी-खुशी का माहौल बना रहेगा।

(ख) ऐसा घर जिसमें फूट है।
उत्तर:
विद्यार्थी चर्चा स्वयं करें।

निस्कर्षत :
यह कहा जा सकता है कि जिस घर में आपस में फूट हो, वह घर कभी उन्नति नहीं कर सकता। ऐसे घर में शांति तो दूर की बात है, हँसी-खुशी का कोई पल भी नहीं ठहरेगा। घर के सभी सदस्य अनमने से रहेंगे। बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित होगा।  बड़े-बुजुर्गों की सेवा नहीं होगी और बाहरवाले उनका मजाक उड़ाएँगे।

प्रश्न 2:
कवि ने फूट के कारण होने वाले विनाश के अनेक उदाहरण दिए हैं, यथा
(क) रावण और विभीषण की फूट के  कारण लंका का नाश।
(ख) कौरव और पाण्डवों की फूट के फलस्वरूप महाभारत युद्ध।
(ग) पृथ्वीराज और जयचन्द की आपसी फूट के कारण यवनों को भारत आगमन।
इन विषयों पर शिक्षक/शिक्षिका के साथ चर्चा करके फूट के कारण और उनके दुष्परिणामों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
(क) रावण और विभीषण के बीच फूट का कारण था, उनके विचारों और संस्कारों में अंतर होना। रावण को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। उसने सीता का धोखे से अपहरण कर लिया था, अतः रावण को व्यभिचारी भी कहा जा सकता है। परंतु इसके विपरीत विभीषण धार्मिक प्रवृत्ति का चरित्रवान व्यक्ति था। रावण द्वारा सीता के अपहरण करने पर उसने आपत्ति जताई क्योंकि उसके अनुसार यह कार्य नीति एवं मर्यादा के विरुद्ध था।  इसलिए उसने रावण से अनुरोध किया कि वह सीता को वापस राम के पास भेज दे, परंतु रावण ने उसे कायर कहकर दुत्कार दिया। रावण द्वारा दुत्कारे जाने और अपमानित. किए जाने से आहत विभीषण राम के पास पहुँच जाता है और उन्हें रावण और लंका से जुड़े सारे रहस्य बता देता है, जिसके फलस्वरूप रावण युद्ध में राम द्वारा मारा जाता है। रावण का सर्वनाश ही दोनों भाइयों के बीच के फूट का दुष्परिणाम था।

(ख) कौरव पाण्डवों से ईर्ष्या करते थे। उन्होंने उनके हिस्से का राज्य हड़प लिया, उन्हें तरह-तरह
की तकलीफें दीं। उनका बार-बार अपमान किया। कौरवों के अन्याय की हद तब हो गई जब उनके द्वारा परिश्रम से स्थापित किया गया राज्य भी उन्होंने जुए में धोखे से पांडवों हो हराकर प्राप्त कर लिया और भरे दरबार में द्रौपदी का अपमान किया। फलस्वरूप पांडवों-कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध लड़ा गया, जिससे दोनों तरफ के अनेकों शूरवीर मारे गए। अंततः दुर्योधन भी मारा गया। उसके सारे सगे-संबंधी और भाई पहले ही मारे जा चके थे। धृतराष्ट्र और गांधारी के अलावा कुरू-वंश में कोई भी न बचा। कौरवों का सर्वनाश तो इस युद्ध का दुष्परिणाम था ही, पाण्डवों के पुत्रों का भी  कम उम्र में मारा जाना और विश्व के अनेक शूरवीरों को मारा जाना एक और भयावह परिणाम था।

(ग) पृथ्वीराज और जयचंद के आपसी फूट का कारण था, जयचंद की पृथ्वीराज के बढ़ते शौर्य से ईष्र्या का होना। उनके बीच विद्वेष का मुख्य कारण जयचंद की पुत्री संयोगिता को भी माना जाता है। संयोगिता पृथ्वीराज से प्रेम करती थी। परंतु जयचंद ने उसके स्वयंवर में पृथ्वीराज को आमंत्रित नहीं किया था। पृथ्वीराज ने संयोगिता का अपहरण कर उससे विवाह कर लिया। फलस्वरूपं अब तक जयचंद की नफरत पृथ्वीराज के लिए और भी बढ़ गई। इसका प्रतिशोध उसने इस तरह लिया कि मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज पर आक्रमण किया तो जयचंद ने इस आक्रमण में मुहम्मद गौरी का साथ दिया। गौरी पहले भी  पृथ्वीराज से युद्ध करके दो बार पराजित हो चुका था, परंतु जयचंद की सहायता पाकर इस बार वह पृथ्वीराज को हराने में सफल रहा, जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि भारत के कई हिस्सों पर यवनों का साम्राज्य स्थापित हो गया। यहाँ तक कि गौरी ने जयचंद को भी नहीं छोड़ा और उसके राज्य पर भी आक्रमण किया।

प्रश्न 3.
इस कविता के आधार पर आप भी दो सवाल बनाइए।
उत्तर:
प्र०1. सब प्रकार की उन्नति का आधार क्या है?
प्र०2, कवि के अनुसार घर-परिवार के सदस्यों के साथ हमें किस भाषा में बात करनी चाहिए?

प्रश्न 1:
यदि आपको अपनी बात हिन्दी, संस्कृत अथवा अंग्रेजी में से किसी एक भाषा में कहने के लिए कहा जाय, तो आप किस भाषा को चुनेंगे ?
उत्तर:
हिन्दी भाषा को, क्योंकि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है और मुझे इसका ज्ञान है।

कविता से
प्रश्न 1:
निज भाषा की उन्नति से क्या-क्या लाभ होगा ?
उत्तर:
अपनी भाषा उन्नति करने से अपने धर्म,  मान-सम्मान और कार्य-व्यवहार की उन्नति होगी।

प्रश्न 2:
हमें अपनी भाषा का प्रसार कहाँ-कहाँ करना चाहिए ?।
उत्तर:
हमें अपनी भाषा का प्रसार सरकारी काम-काज, अदालत आदि में करना चाहिए। साथ ही यह प्रयास करना चाहिए कि हमारी हिंदी भाषा का विस्तार विदेशों में भी हो सके।

प्रश्न 3:
कवि ने अपनी भाषा के अतिरिक्त किसको-किसको बढ़ाने की बात की है ?
उत्तर:
कवि ने भाषा के अतिरिक्त धर्म, मान-सम्मान, एकता आदि को बढ़ाने की बात की है।

प्रश्न 4:
कवि ने महाभारत के युद्ध का क्या कारण बताया है ?
उत्तर:
कवि ने महाभारत युद्ध का कारण कौरवों और  पांडवों के बीच आपसी फूट को बताया है।

प्रश्न 5:
निम्नांकित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
उत्तर:
कवि का आशय है कि निजभाषा के प्रचार-प्रसार  से अपने धर्म, मान-सम्मान, कार्य व्यवहार आदि में उन्नति होगी।

(ख) जो जग में धान मान और बल अपुनी राखन होय।
तो अपुने घर में भूले हू फूट करौ जनि कोय।
उत्तर:
कवि कहना चाहता है कि यदि संसार में अपने धन, मान और बल की रक्षा करनी है, तो अपने घर में भूल से भी फूट मत डालो।

भाषा की बात

प्रश्न 1:
शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
करम, जदपि, सुबरन, हिय, जल, मीत, धरम।
उत्तर:
करम            –         कर्म
जदपि           –          यद्यपि
सुबरन          –          सुवर्ण
आरज          –          आर्य
हिये              –          हृदय
जल              –           नीर
मीत              –          मित्र
धरम             –           धर्म

प्रश्न 2.
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै नै हिय को शूल॥

उपर्युक्त पंक्तियों में आये हुए ‘मूल’ और ‘शूल’ शब्द तुकान्त शब्द हैं। कविता से ऐसे ही तुकान्त शब्द छाँटकर उन शब्दों के आधार पर कुछ पंक्तियाँ रचिए।
उत्तर:
आ गए वे परदेश से अजब अनोखी बात।
मेरे लिए तो आ गई आज दीवाली रात।।

प्रश्न 3:
इस कविता से मैंने सीखा…………..। – विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 4.
 अब मैं करूंगा/करूंगी………………………..। – विद्यार्थी स्वयं करें।

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