UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 7 सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास

By | May 24, 2022

UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 7 सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास

UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 7 सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास

 

इकाई-7    सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास
अभ्यास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर पर सही (✔) का निशान लगाइए (निशान लगाकर)
उत्तर :

  1. सरसों की सिंचाई किस विधि से की जाती है
    (क) नाली विधि
    (ख) थाला विधि  (✔)
    (ग) क्यरी विधि
    (घ) जल-वन विधि
  2. आलू की फसल की सिंचाई किस विधि से की जाती है
    (क) क्यारी विधि
    (ख) छिड़काव विधि
    (ग) थाला विधि
    (घ) कँड़ विधि (✔)
  3. ऊँची-नीची भूमि की सिंचाई किस विधि से करते हैं
    (क) क्यारी विधि
    (ख) थाला विधि
    (ग) छिड़काव विधि (✔)
    (घ) कँड़ विधि
  4. खेत में जल भराव से मृदा ताप
    (क) घटता है (✔)
    (ख) बढ़ता है
    (ग) स्थिर रहता है
    (घ) उपरोक्त में कोई नहीं

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके)
उत्तर :

  1. क्यारी विधि सिंचाई की उत्तम विधि है। (क्यारी/थाला)
  2. नमी की कमी के कारण अंकुरण अच्छा नहीं होता। (नमी/सूखा)
  3. कैंड़ विधि से आलू के खेत की सिंचाई की जाती है। (कूड़/थाला)
  4.  ड्रिप विधि में अधिक धन तथा कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। (ड्रिप/प्रवाह)

प्रश्न 3.
निम्नलिखित कथनों में सही के सामने (✔)  तथा गलत के सामने (✘) का निशान लगाए (निशान लगाकर)

उत्तर :

  1. प्रवाह विधि से आलू की सिंचाई की जाती है।                          (✘)
  2. प्रवाह विधि में कम श्रम की आवश्यकता होती है।               (✔)
  3. क्यारी विधि से गेहूं की सिंचाई नहीं की जाती।                     (✘)
  4. कॅड़ विधि से गन्ने की सिंचाई की जाती है।                            (✘)
  5. थाला विधि से पपीते के बाग की सिंचाई की जाती है।          (✔)

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में स्तम्भ ‘क’ का स्तम्भ ‘ख’ से सुमेल कीजिए (सुमेल करके)

उत्तर :

प्रश्न 5.
सिंचाई देर से करने पर फसलों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर :
सिंचाई देर से करने पर फसलों पर कुप्रभाव पड़ता है और पौधों का समुचित विकास नहीं हो पाता, जिससे उत्पादन पूरा नहीं मिल पाता।

प्रश्न 6.
जल भराव से पौधों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर :
जड़ों की वृद्धि पर बुरा प्रभाव पड़ता है, पौधे मुरझाने लगते हैं। जड़ों द्वारा भूमि से पोषक तत्वों के अवशोषण की क्रिया रुक जाती है। रासायनिक पदार्थ विषैले पदार्थों में बदल जाते हैं। जिससे फसलों की वृद्धि तथा विकास प्रभावित होता है।

प्रश्न 7.
छिड़काव विधि क्या है? भारत में यह विधि अभी तक अधिक लोकप्रिय क्यों नहीं हुई?

उत्तर :
छिड़काव विधि में पानी को पाइपों के द्वारा खेत तक लाया जाता है और स्वचालित यन्त्रों द्वारा छिड़काव करके सिंचाई की जाती है। कृषि कार्य में छिड़काव विधि सिंचाई की उत्तम विधि मानी जाती है। इस विधि में महँगे यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। भारतीय किसान इन महँगे यन्त्रों को खरीद पाने में समर्थ नहीं है, इसलिए यह विधि भारत में लोकप्रिय नहीं हो सकी।

प्रश्न 8.
थाला विधि से सिंचाई के दो लाभ बताइए।

उत्तर :
थाला विधि के दो लाभ

  1. इस विधि से सिंचाई करने पर जल की बचत होती है क्योंकि पानी पूरे क्षेत्र में देने के बजाय प्रत्येक पौधे की जड़ के पास बने थालों में दिया जाता है।
  2. पौधे की जड़-तना सीधे जल सम्पर्क में नहीं आते, जिससे पौधे को कोई हानि नहीं होती।

प्रश्न 9.
जल जमाव से होने वाली दो हानियाँ बताइए।
उत्तर :
जल जमाव से होने वाली दो हानियाँ निम्नलिखित हैं

  1. मृदा वायु संचार और मृदा ताप में कमी होना।
  2. भूमि का दलदली होना और हानिकारक लवण इकट्ठे होना।

प्रश्न 10.
उचित जल-निकास का मिट्टी पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :

  1. भूमि का ताप सन्तुलित हो जाता है, जिससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है।
  2. हानिकारक लवण बह जाते हैं। मृदा संरचना में सुधार हो जाता है।
  3. मृदा में जीवाणु क्रियाशीलता बढ़ जाती है, जिससे भूमि की उर्वरता बढ़ जाती है।

प्रश्न 11.
थाला विधि की सिंचाई का चित्र बनाइए।
उत्तर :

प्रश्न 12.
आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से फसल पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से फसल पीली पड़ कर नष्ट होने लगती है। जड़ों द्वारा जल का अवशोषण कम हो जाता है और पौधे मुरझाने लगते हैं।

प्रश्न 13.
सिंचाई का अर्थ समझाइए। सिंचाई की कितनी विधियाँ हैं? किन्हीं दो विधियों सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर :
फसलों और बागों में पानी देने की प्रक्रिया को सिंचाई करना कहा जाता है। सिंचाई की निम्नलिखित विधियाँ हैं

  1. जल-प्लवन या प्रवाह विधि
  2. क्यरी विधि
  3. कॅड़ विधि
  4. थाला विधि
  5. छिड़काव विधि
  6. ड्रिप (टपक) विधि

प्रवाह विधि : खेत में पलेवा करने व धान में सिंचाई हेतु काम में लाई जाती है। इस विधि में सिंचाई आसानी से होती है। समय की बचत होती है। गन्ना, धान जैसी फसलों को पर्याप्त पानी मिल जाता है।
हानि : इसमें पानी बहुत बेकार में खर्च होता है। जल का असमान वितरण होता है, ढालू खेतों के लिए अनुपयुक्त है।
ड्रिप (टपक) विधि : इसमें जल को पौधों की जड़ में बूंद-बूंद करके दिया जाता है। यह विधि ऊसर, बलुई तथा बाग के लिए उपयुक्त है। पी0वी0सी0 पाइप लाइन खेत में बिछाकर जगह-जगह नोजिल लगाए जाते हैं। इन पाइपों में 2.5 किग्रा वर्ग सेमी दबाव से जल छोड़ा जाता है जो धीरे-धीरे भूमि को नम करता है।
लाभ : कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कम पानी से ज्यादा क्षेत्रफल में सिंचाई हो जाती है। जलहानि न्यूनतम होती है। भूमि समतलीकरण जरूरी नहीं।
हानि : शुरू में अधिक लागत आती है। स्वच्छ जल व तकनीकी ज्ञान की जरूरत होती है।

प्रश्न 14.
प्रवाह तथा ड्रिप विधि के गुण और दोष लिखिए।

उत्तर :
प्रश्न 13 का उत्तर देखिए।

प्रश्न 15.
फलदार वृक्षों के लिए आप सिंचाई की किस विधि को अपनाएँगे और क्यों? वर्णन कीजिए।

उत्तर :
फलदार वृक्षों की सिंचाई के लिए थाला विधि अपनाई जाती है। इस विधि से सिंचाई करने पर जल की बचत होती है और पौधे पानी का समुचित उपयोग करते हैं, क्योंकि पानी जड़ों के पास थाला में दिया जाता है।

प्रश्न 16.
जल निकास का अर्थ समझाइए। जल जमाव से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर :
जल निकास का अर्थ :
खेतों से अतिरिक्त पानी निकालकर बहा देना जल निकास कहा जाता है। कृषि विज्ञान में इसका विशेष अर्थ है। जल निकास की निम्न विशेषताएँ हैं

  1. खेत में आवश्यकता से अधिक पानी भरने से रोकना ।
  2. खेत के अतिरिक्त पानी को बाहर निकालना।

जल जमाव से हानियाँ :
जल की अधिकता से निम्न हानियाँ होती हैं

  1. मृदा वायु संचार में नमी।
  2. मृदा ताप में कमी।
  3. मिट्टी में हानिकारक लवणों का इकट्ठा होना।
  4. भूमि का दलदली होना।
  5. लाभदायक मृदा जीवाणुओं के कार्यों में बाधा।

प्रश्न 17.
मृदा से जल निकास कितने प्रकार से किया जाता है? जल निकास की एक विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर :
जल निकास की दो विधियाँ हैं

  1. सतही खुली नालियों द्वारा।
  2. भूमिगत बन्द नालियों द्वारा

खुली निकास नालियों में खेत सतह से 30 सेमी गहरी तथा लगभग 75 सेमी ऊँची और सीधी नालियाँ बनाई जाती । हैं। इन्हें आगे बड़ी नाली में मिलाया जाता है। बड़ी नानी को प्राकृतिक नाले या नदी में डाला जाता है।

भूमिगत बन्द नालियाँ : ये वहाँ बनाई जाती हैं,जहाँ भूजल स्तर ऊँचा होता है। ये नालियाँ तीन प्रकार की होती हैं

  1. पोल जल निकास नालियाँ : लकड़ी के टुकड़ों को तिकोने आकार में रखकर ये जल निकास नालियाँ 80 से 90 सेमी गहरी, 30 सेमी चौड़ी बनाई जाती हैं।
  2. स्टोन जल निकास नाली : इनमें पत्थरों का प्रयोग किया जाता है।
  3. टाइल डेन्स : टाइल्स से बनी नालियाँ सर्वोत्तम होती हैं।

प्रोजेक्ट कार्य :
नोट : विद्यार्थी स्वयं करें।

We hope the UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 7 सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास help you.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *