UP Board Solutions for Class 8 Hindi निबन्ध रचना

By | May 25, 2022

UP Board Solutions for Class 8 Hindi निबन्ध रचना

UP Board Solutions for Class 8 Hindi निबन्ध रचना

दीपावली

रूपरेखा-हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में दीपावली का महत्त्व, त्योहार को मनाने का ढंग, मकानों, दुकानों और बाजारों की स्वच्छता तथा प्रकाश आदि का वर्णन, उपयोगिता, दोष, उपसंहार।

हिन्दुओं के चार प्रमुख त्योहार हैं– दशहरा, रक्षाबन्धन, दीपावली तथा होली किन्तु इन चारों में दीपावली का विशेष महत्त्व है। यह त्याहार सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जैसा कि दीपावली शब्द से ही स्पष्ट है कि इस दिन घरों, बाजारों और सड़कों को दीपकों की पंक्तियों से प्रकाशित किया जाता है। यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। कई सप्ताह पूर्व से ही घरों की सफाई की जाती है तथा चूने से पोता जाता है। मुख्य त्योहार से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। अमावस्या के दिन प्रात:काल से ही विशेष चहल-पहल प्रारम्भ हो जाती है। स्त्रियाँ घरों में भाँति-भंति के पकवान तैयार करती हैं। दुकानदार अपनी दुकानों को विशेष रूप से सजाते हैं। इस दिन मिठाई की तो विशेष बक्री होती है। हलवाई अपनी दुकानों को मिठाइयों तथा चित्रों से अच्छी प्रकार सजाते हैं। इस दिन बच्चों को तो विशेष आनन्द प्राप्त होता है। कोई फुलझड़ी लाता है तो कोई बल्ब, खिलौना, बताशे और कंडील लाता है।।

रात्रि को श्रीगणेश-लक्ष्मीजी का पूजन होता है और प्रकाश किया जाता है। स्वच्छ लिपे-पुते मकानों में जब दीपमालिका जगमगाती है तो उनकी शोभा बहुत बढ़ जाती है। कोई रंग-बिरंगे कंडीलों में दीपक जलाता है, तो कोई रंग-बिरंगे विद्युत बल्बों द्वारा प्रकाश करता है। इस दिन सारे नगर की शोभा दर्शनीय होती है। | इस त्योहार के सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि भगवान श्री राम रावण को मारकर अयोध्या वापस लौटे, तो लोगों ने उनके स्वागत में दीपक जलाए थे। तब से अब तक यह त्योहार मनाया जाता है। कुछ लोगों का मत है कि वामन भगवान ने इस दिन राजा बलि को पाताल भेजा था, उन्हीं की स्मृति में दीपक जलाकर दीपावली मनाई जाती है। वास्तव में यह त्योहार प्रसन्नता और नया उत्साह प्रदान करता है।

दीपावली के दिन गोवर्धन का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गौवंश की उन्नति के लिए उनकी सेवा की जाती है तथा मन्दिरों में भगवान को भोग लगाया जाता है। इसके अगले दिन ‘भैया दूज’ का त्योहार मनाया जाता है। बहन-भाई के माथे पर मंगल-कामना के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। इस प्रकार लगातार पाँच दिन तक चारों ओर आनन्द छाया रहता है।

दीपावली भारत का एक विशेष त्योहार है। इस त्योहार के बहाने घर के प्रत्येक भाग की सफाई हो जाती है। वर्षा ऋतु में जो छोटे-छोटे कीड़े उत्पन्न हो जाते हैं वे लिपाई-पुताई में नष्ट हो जाते हैं। दीपकों का प्रकाश अनेक बीमारियों के कीटाणुओं को नष्ट कर देता है। इसके अतिरिक्त पाँच दिन तक व्यक्ति अपनी सभी चिन्ताओं को भूल जाता है तथा आनन्द से दिन व्यतीत करता है। इस दिन बहुत से लोग जुआ भी खेलते हैं। इस कुप्रथा को रोकना अत्यन्त आवश्यक है। इसके अतिरिक्त कुछ लोग फुलझड़ी तथा पटाखे आदि भी छोड़ते हैं। इससे धन का तो अपव्यय होता ही है, किन्तु कभी-कभी आग भी लग जाती है। कभी-कभी बच्चे पटाखों से जल भी जाते हैं। अतः इसे रोकना भी अत्यन्त आवश्यक है।

हमें अपने इस त्योहार के वास्तविक महत्त्व को समझना चाहिए तथा उसे उचित रीति से मनाना चाहिए। दीपावली का वास्तविक महत्त्व जुआ खेलने तथा पटाखे छुटाने से स्पष्ट नहीं होता है अपितु हमें चाहिए कि इस दिन प्रेमपूर्वक रहने की प्रतिज्ञा करें तथा सभी प्रसन्नतापूर्वक रहें।

दशहरा (विजयादशमी)

रूपरेखा-भूमिका, लंका पर विजय, धर्म की विजय का प्रतीक, शस्त्र पूजन, झाँकियाँ, उपसंहार।

हमारे प्रत्येक त्योहार को किसी-न-किसी ऋतु के साथ सम्बन्ध रहता है। विजयादशमी शरद् ऋतु के प्रधान त्योहारों में एक है। यह आश्विन मास की शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्री राम ने लंकापति रावण पर विजय पाई थी। इसलिए इसको विजयादशमी कहते हैं।

भगवान श्री राम के वनवास के समय में रावण छल से सती जी को हर कर ले गया था। राम ने हनुमान सुग्रीव आदि मित्रों की सहायता से लंका पर आक्रमण किया तथा रावण को मारकर लंका पर विजय पाई। तभी से यह दिन इस त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

वस्तुतः विजयादशमी का त्योहार पाप पर पुण्य की, अधर्म पर धर्म की, असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। भगवान श्री राम ने अत्याचारी और दुराचारी रावण का विध्वंस कर भारतीय और उसकी महान परम्पराओं की पुनः प्रतिष्ठा स्थापित की थी।

इसके अतिरिक्त इस दिन को और भी महत्त्व है। वर्षा ऋतु के कारण क्षत्रिय राजा तथा व्यापारी अपनी यात्रा स्थगित कर देते थे। क्षत्रिय अपने-अपने शस्त्रों को बन्द करके रख देते थे और शरद् ऋतु के आने पर निकालते थे। शस्त्रों की पूजा करते थे और उन्हें तेज करते थे। व्यापारी माल खरीदते हैं और वर्षा ऋतु के अन्त . में बेचने को चल पड़ते थे। उपदेशक तथा साधु-महात्मा धर्म प्रचार के लिए अपनी यात्री को निकल पड़ते है।

दशहरा श्रीरामलीला का अन्तिम दिन होता है। भिन्न-भिन्न स्थानों में अलग-अगल प्रकार से यह दिन मनाया जात है। बड़े-बड़े नगरो में रामायण के पात्रों की झाँकियाँ निकाली जाती हैं। दिल्ली तथा कुल्लू का दशहरा प्रसिद्ध है। दशहरे के दिन रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाद के कागज के पुतले बनाए जाते हैं। सायंकाल राम और रावण के दलों में कृत्रिम लड़ाई होती है। श्रीराम रावण को मार देते हैं। रावण आदि के पुतले जलाए जाते हैं। लोग मिठाइयाँ तथा खिलौने लेकर घरों को लौटते हैं।

यदि उचित ढंग से इस त्योहार को मनाया जाए तो आशातीत लाभ हो सकता है। श्री राम के जीवन पर प्रकाश डालें तथा उस समय का इतिहास याद रखें। इस प्रकार दशहरा हमें उन गुणों को धारण करने का उपदेश देता है जो श्री राम में विद्यमान थे।

यात्रा का वर्णन

रूपरेखा- यात्रा की तैयारियाँ और आरम्भ, स्टेशन के टिकटघर और प्लेटफार्म का दृश्य, गाड़ी का आगमन, मार्ग के दृश्यों का वर्णन, स्टेशनों का आना में भीड़ को उतरना-चढ़ना, दिल्ली के स्टेशन का वर्णन, मेरे अनुभव, उपसंहार।

इस वर्ष 10 मई को हमारे विद्यालय की वार्षिक परीक्षाएँ समाप्त हुई। 14 मई को मेरे मामा जी का दिल्ली से पत्र आया। उन्होंने मेरे लिए लिखा था कि परीक्षा समाप्त होते ही तुम दिल्ली आ जाओ। मुझे पत्र पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई। मैंने पिता जी से दिल्ली चलने का आग्रह किया, वे भी राजी हो गए और हमने 21 मई को दिल्ली चलने का निश्चय कर लिया। 18 मई से ही मैंने तो अपने कपड़े और सामान इकट्ठा करना प्रारम्भ कर दिया और 21 मई को सुबह 8 बजे हम लोग अपने नगर हापुड़ के रेलवे स्टेशन पर जा पहुँचे।

रेलवे स्टेशन के बाहर ही टिकट घर बना हुआ था। वहाँ पर टिकट खरीदने वाले यात्रियों की लम्बी पंक्ति बनी हुई थी। मेरे पिता जी उस पंक्ति में पीछे जा खड़े हुए। थोड़ी देर में उन्हें भी टिकट मिल गया और हम लोग प्लेटफॉर्म पर आ गए, यहाँ पर बड़ी भीड़ थी। कुछ लोग इधर से उधर घूम रहे थे। कुछ अपने सामान के साथ बैठे हुए थे और कुछ चाट-पकौड़ी खा रहे थे। खौंमचे वाले, पापड़ वाले, बर्फ वाले और सिगरेट-पान वाले इधर-से-उधर आ जा रहे थे। इतने में टन-टन की घण्टी बजी और थोड़ी देर बाद धड़-धड़ाती हुई ट्रेन स्टेशन पर आकर रुक गई। ट्रेन में पहले ही हजारों यात्री बैठे हुए थे। ट्रेन के रुकते ही सैकड़ों यात्री उतर पड़े और सैकड़ों ही उसमें बैठ गए। हम भी एक डिब्बे में जाकर बैठ गए।

थोड़ी देर बाद गाड़ी चल दी। गर्मी के दिन थे। सुबह की ठण्डी-ठण्डी हवा बड़ी अच्छी लग रही थी। दूर तक चारों ओर खेत साफ दिखाई देने लगे थे। जगह-जगह पर कटे हुए अन्न के ढेर लगे हुए थे। कहीं-कहीं किसान अनाज को काटते भी मिले। कोई बीस मिनट के बाद ही गाड़ी पिलखुआ के स्टेशन पर आकर रुक गई। यहाँ पर अनेक यात्री उतरे और चढे। पिलखुआ एक छोटा-सा स्टेशन है। यहाँ तीन मिनट रुकने के बाद गाड़ी फिर छुक-छुक करती हुई आगे चली। यहाँ से एक सामान नीलाम करने वाला व्यक्ति भी हमारे डिब्बे में आ गया। उसने नए-नए ताले, टार्च, कैंची आदि नीलामी की और खूब सामान बेचा। इतने में ही गाजियाबाद आ गया। यहाँ का स्टेशन बहुत बड़ा था। गाड़ी रुकते ही पान, बीड़ी, सिगरेट, हलवा, पूड़ी आइसक्रीम और चाय बेचने वाले आ गए। यहाँ स्टेशन पर यात्रियों की बड़ी भीड़ थी। दिल्ली को जाने वाले हजारों यात्री खड़े हुए थे। ट्रेन के रुकते ही यात्री डिब्बे की ओर झपट पड़े, बड़ी धक्का-मुक्की हुई। हमारे डिब्बे में तो एक साथ इतने यात्री आ गए कि उसमें पाँव रखने की भी जगह नहीं रही। कोई पाँच मिनट बाद गाड़ी यहाँ से चल दी और हम सबने चैन की साँस ली।

धीरे-धीरे हम दिल्ली की ओर बढ़े। शाहदरा आया और हमारी गांड़ी आगे बढ़ती गई। यमुना जी के पुल के आते ही सभी का ध्यान उस ओर चला गया। यह पुल बहुत ही बड़ा है। नीचे यमुना-जल बह रहा था। उसके बीच में मोटर, ताँगे और पैदल चलने वालों के लिए पुल बना था तथा उसके ऊपर से हमारी ट्रेन धड़-धड़ाती हुई चली आ रही थी।

इस समय लगभग 10 बज चुके थे, गर्मी काफी हो गई थी। उधर डिब्बे में यात्रियों की भीड़ बहुत थी। मेरा मन दिल्ली देखने के लिए उतावला हो रहा था कि पिता जी कहने लगे कि सामान सँभालो, स्टेशन आने वाला है। हमने अपना सामान सँभाला और गाड़ी स्टेशन पर आकर रुक गई। यात्रियों की भीड़ गाड़ी में से उतर पड़ी। पिता जी ने तुरन्त ही कुली को आवाज दी। शीघ्र ही एक कुली आ गया। उसने हमारा सभी सामान डिब्बे से उतारा और स्टेशन के बाहर तक पहुँचा दिया। वहाँ जाकर हमने एक ताँगा किराए पर लिया और मार्ग के दृश्यों को देखते हुए अपने मामा जी के घर पहुँच गए यह मेरी प्रथम रेल यात्रा थी जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता।।

होली

रूपरेखा-हिन्दुओं के चार प्रमुख त्योहार, होली के त्योहार का समय, त्योहार के मनाने का ढंग, होली का महत्त्व, होली के मनाने में सुधारों की आवश्यकता, हमारा कर्तव्य, उपसंहार।

हिन्दुओं के चार प्रमुख त्योहार माने जाते हैं- दशहरा, होली, दीपावली और रक्षाबन्धन। इसमें होली मस्ती और प्रसन्नता का त्योहार है। यह त्योहार सारे देश में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। सभी जातियों के लोग इसे बड़ी प्रसन्नतापूर्वक मनाते हैं। | होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन किसी बड़े चौक में ईंधन का ढेर लगा दिया जाता है। रात्रि में इसका पूजन होता है और इसमें आग लगा दी जाती है। सभी लोग इस आग में जौ की बालिया भूनते हैं और एक दूसरे से गले मिलते है। होली जलने के दूसरे दिन होली खेली जाती है। सुबह से ही चारों ओर रंग की फुहारें उड़ने लगती है। लाल गुलाल से सबके मुँह सँग दिए जाते हैं। सुबह से ही चारों ओर व्यक्ति एक-दूसरे पर रंग डालते हैं और प्रेम से एक-दूसरे से गले मिलते हैं। दोपहर को लगभग दो बजे तक यही कार्यक्रम चलता रहता है। इसके बाद लोग नहा-धोकर नए कपड़े पहनकर बाहर निकलते हैं और सारा दिन बड़ी हँसी-खुशी के साथ व्यतीत करते हैं।

होली के त्योहार के सम्बन्ध में अनेक कहानियाँ कही जाती हैं। कुछ लोग कहते हैं कि संवत् के बदलने की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है। कुछ लोगों के अनुसार इसी दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, भक्त प्रहलाद को लेकर आग में बैठ गई थी किन्तु भगवान की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका जल गई। इसी स्मृति में आज भी होली जलाई जाती है। कुछ भी हो, यह त्योहार हँसी-खुशी में भरपूर होता है।
होली का त्योहार आज जिस ढंग से मनाया जाता है, उसमें सुधारों की भी आवश्यकता है। हमें होली इस प्रकार खेलनी चाहिए जिससे दूसरों को भी प्रसन्नता हो। किसी को भी दुःख नहीं होना चाहिए। होली में ईंधन के लिए किसी के भी साथ हठ नहीं करनी चाहिए। बहुत से व्यक्ति रंग के स्थान पर कीचड़ मिट्टी आदि का प्रयोग करते है, इससे हानि होती है, ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। अतः इनसे बचना चाहिए तथा अपने इस त्योहार को हँसी-खुशी के साथ मनाना चाहिए।

वास्तव में होली के त्योहार का बहुत महत्त्व है। यह त्योहार एकता और भाई-चारे को बढ़ाने वाला है। अतः हमें इसे इसी रूप में मनाना चाहिए तथा प्रेमपूर्वक एक दूसरे से मिलना चाहिए।

मेले का वर्णन

रूपरेखा- मेलों का मानव के लिए महत्त्व, प्रदर्शनी का स्थान व समय, चहल-पहल का वर्णन, मुख्य द्वार तथा बाजारों की सजावट का वर्णन, मेले की प्रमुख विशेषताएँ, धार्मिक तथा आर्थिक महत्त्व, लाभ, उपसंहार।।

प्रत्येक देश में मेले अति प्राचीनकाल से लगते आए हैं। प्राचीनकाल में मनुष्यों ने आपस में मिलने-जुलने और प्रसन्न होने के लिए मेलों की योजना बनाई थी। मेलों में दूर-दूर से मनुष्य आते हैं। कोई तमाशा देखने आता है तो कोई सामान खरीदने आता है। कोई पैसा कमाने आता है तो कोई खर्च करने आता है। प्रायः प्रत्येक मेले में खूब भीड़ इकट्ठी हो जाती है।

हमारे नगरों में भी प्रतिवर्ष प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। इस प्रदर्शनी का आयोजन नगर के सभी बड़े अधिकारी मिलकर करते हैं। इस प्रदर्शनी में चौबीस घण्टे बड़ी चहल-पहल रहती है। जब हम प्रदर्शनी देखने पहुँचे तो देखते हैं कि मेले के मुख्य द्वार से पहले ही काफी दूर तक दुकानें सजी हुई थीं। सड़क के किनारे-किनारे खिलौने वाले तथा तमाशे वाले बैठे हुए थे। छोटे-छोटे बच्चे बाहर इधर-से-उधर आ-जा रहे थे। कोई खिलौने खरीद रहा था तो कोई पकौड़ियाँ ले रहा था। धीरे-धीरे हम भी आगे बढ़े। जैसे-जैसे हम मेले की ओर बढ़ते जाते थे, वैसे-वैसे भीड़ भी बढ़ती जा रही थी। धीरे-धीरे हम लोग प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर पहुँच गए। मुख्य द्वार को हजारों बर; से सजाया गया था। भीड़ के कारण बड़ी कठिनाई से हम लोग मुख्य द्वार के अन्दर प्रवेश कर मेले के मुख्य बाजार में पहुँचे। वहाँ पर भी अपार भीड़ थी। दोनों ओर खिलौने वाले तथा अनेक छोटे बड़े दुकानर अपनी दुकानें सजाए बैठे थे।

थोड़ी दूर आगे चलकर यह मुख्य बाजार चार भागों में विभाजित हो गया। यहं जाकर भीड़ भी कुछ कम हो गई थी। अतः यहाँ हमने भली प्रकार दुकानें देखीं। एक बाजार । चूड़ियों की बड़ी दुकानें थी जिसमें विद्युत् के बड़े बड़े बल्ब चकाचौंध पैदा कर रहे थे। दूसरे बाजार में सन्दूक व र इ के सामान वाली दुकानें थीं तो तीसरे बाजार में कपड़े के व्यापारी थे। इन चारों बाजारों को मिलाकर एक शाल मुख्य बाजार बनाया गया था, जो सारी प्रदर्शनी का मुख्य आकर्षण केन्द्र था। इस बाजार की शोभः का तो कहना ही क्या। इसमें असंख्य बल्ब जगमगाते दिखाई दे रहे थे। सारे बाजार के बीच-बीच में चौव सजे थे, जिनमें फौव्वारे और त्रिमूर्ति आदि बने हुए थे।

इस प्रकार घूमते हुए हम लोग प्रदर्शनी के मुर। पंडाल में जा पहुँचे। वहाँ पर उस दिन कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया था। टिकट लेकर हमने की शोभा भी देखी। वहाँ पर प्रत्येक श्रेणी के टिकट वालों के लिए बैठने के अलग-अलग स्थान नियत थे। रात्रि के दस बजे कवि सम्मेलन प्रारम्भ हुआ। सभी कवियों ने अपनी सरस कविताएँ सुनाईं। अधिकतर कविताएँ देश-प्रेम तथा समाज सुधार से सम्बन्धित थीं। रात्रि के डेढ़ बजे के लगभग कवि सम्मेलन समाप्त हुआ। हम लोग उस समय काफी थक चुके थे। अतः वापस घर की ओर चल पड़े। ठीक डेढ़ बज चुका था। फिर भी लागे मेले में आ-जा रहे थे। सभी बाजारों को धीरे-धीरे पार करते हम अपने स्थान को लौट आए। यह प्रदर्शनी जहाँ सबका मनोरंजन करती है, वहाँ इसका व्यापारिक तथा सामाजिक महत्त्व भी है। यहाँ पर दूर-दूर के व्यापारी अपनी-अपनी वस्तुएँ लेकर आते हैं। बच्चों के लिए तो यह मेला विशेष आकर्षक का केन्द्र बना रहता है। खोमचे वाले, तमाशे वाले, झूले वाले तथा सैकड़ों प्रकार के खेल-तमाशे वाले बच्चों की भीड़ को आकर्षित किए रहते हैं। इस प्रकार मेलों का मानव जीवन में निजी महत्त्व है। बच्चे, युवक तथा बूढ़े सभी को अपनी मनोनुकूल वस्तुएँ यहाँ मिल जाती हैं। इसीलिए सभी इसमें प्रसन्नतापूर्वक भाग लेते हैं।

फुटबॉल मैच का वर्णन

रूपरेखा-जीवन में खेलों का महत्त्व, खेल का वर्णन, अवकाश के पश्चात के दृश्य का वर्णन, दर्शकों की दशा का वर्णन, उपसंहार।

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खेलना भी अत्यन्त आवश्यक है। इस सम्बन्ध में एक कहावत भी प्रसिद्ध है-“स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करती है।” छात्रों को स्वस्थ और बलवान बनाने के लिए ही विद्यालयों में अनेक प्रकार के खेल-खिलाए जाते हैं। इन मैचों से आपस में मिलकर काम करने की भावना तथा खेलों के प्रति रुचि जाग्रत् हो जाती है।

हमारे विद्यालय में 11 मई, 2002 को एक फुटबॉल मैच हुआ था। यह मैच हमारे विद्यालय की टीम और राजकीय माध्यमिक विद्यालय की टीम के बीच खेला गया। इस मैच को देखने के लिए सैकड़ों छात्र दूर-दूर से आए थे। मैच चार बजे शुरू होने वाला था। समय से पहले ही हजारों दर्शक मैदान के चारों ओर इकट्ठा हो गए थे। आज तो खेल का मैदान भी बड़ा साफ दिखाई दे रहा था।

लगभग चार बजे दोनों दल मैदान में उतर पड़े। दोनों दलों के खिलाड़ियों ने अलग-अलग रंग की कमीजें पहन रखी थीं। दोनों दलों के कप्तानों ने अपने-अपने खिलाड़ियों को ठीक-ठीक स्थान पर खड़ा कर दिया। एक-एक खिलाड़ी गोल के पास भी खड़ा कर दिया गया। ठीक चार बजे रेफरी ने सीटी बजाई और खेल आरम्भ हो गया। पूरे मैदान में दौड़-सी लग गई। जिधर भी गेंद जाती थी, उधर से ही धम-धम की आवाजें आने लगती थीं। गेंद बड़ी तेजी से कभी इधर जाती थी तो कभी उधर जाती थी। दोनों ओर के गोल रक्षक बड़े ही फुर्तीले थे। यदि कोई खिलाड़ी गोल को गोल के पास ले भी जाता था तो गोल रक्षक बड़े कौशल से उसे वापस लौटा देता था। दर्शक ताली बजा-बजाकर खिलाड़ियों को उत्साह बढ़ा रहे थे। सबकी दृष्टि राजकीय माध्यमिक विद्यालय के कप्तान पर जमी हुई थी। उसमें तो बिजली जैसी फुर्ती थी। जब वह गेंद को लेकर आगे बढ़ता था तो दर्शक उछल पड़ते थे। एक बार हमारे विद्यालय का होनहार खिलाड़ी राजेन्द्र सिंह गेंद को लेकर आगे बढ़ा। वह गोल के पास तक जा पहुँचा। दूसरे दल के खिलाड़ियों के तो छक्के छूटे गए किन्तु उसी समय रेफरी ने लम्बी सीटी बजाकर अल्पावकाश की सूचना दी। खेल थोड़ी देर के लिए रोक दिया गया।

सभी खिलाड़ियों को जलपान कराया गया। खिलाड़ियों ने खेल के बारे में नई योजनाएँ बनाईं और कोई दस मिनट बाद फिर खेल शुरू हो गया। अबकी बार खिलाड़ी बड़े उत्साह से खेल रहे थे। हमारी टीम के कप्तान ने दूसरे दल के गोल के पास गेंद ले जाकर गोल करना चाही किन्तु गोल रक्षक ने गेंद को रोक दिया। गोल होते-होते बच गया। उसी समय एक खिलाड़ी के पैर की एक ही चोट से गेंद मैदान के दूसरे किनारे पर आ पहुँची और उधर एकदम हलचल सी मच गई। विपक्षी तो अवसर की तलाश में थे ही। एक खिलाड़ी ने ‘चक्र’ में जाकर ऐसा ‘किक’ मारा कि बेचारा गोल रक्षक भी देखता ही रह गया। चारों ओर से ‘गोल-गोल’ की आवाजें आने लगीं। सभी दर्शक प्रसन्नता से उछल पड़े।

तुरन्त ही गेंद को फिर बीच में लाया गया और खेल फिर शुरू हो गया। दर्शक चारों ओर से खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ा रहे थे और खेल की प्रशंसा कर रहे थे। हमारे विद्यालय के खिलाड़ी गेंद को उतारने के लिए जी जान से प्रयत्न कर रहे थे किन्तु विपक्षी तो लोहे की दीवार बने हुए थे। फुटबॉल तेजी से नाचने लगी किन्तु गोल न हो सका। ठीक साढे पाँच बजे रेफरी ने सीटी बजाई और मैच समाप्त हो गया।

विजयी टीम के खिलाड़ियों को दर्शकों ने गोदी में उठा लिया। दोनों टीमों के खिलाड़ियों को एक-एक टी-शर्ट इनाम में दी गई और विजयी टीम को ‘टी-सेट व मेडल’ प्रदान किया गया। विद्यालय के प्रधानाचार्य महोदय ने दोनों ओर के खिलाड़ियों को धन्यवाद दिया और सभी प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने घरों को लौट गए।

भारतीय किसान

रूपरेखा-

1. जन-जीवन के लिए कृषि और उसका महत्त्व।
2. भारतीय कृषक के सुख और दुःख का वर्णन-

  • स्वतन्त्रता से पूर्व सुख और दुःख।
  • स्वतन्त्र भारत में किसान की स्थिति एवं अवस्था।

3. वर्तमान समय में कृषक की समस्याएँ।
4. समस्याओं को हल करने के उपाय।
5. सरकार के प्रयास।
6. कृषक के प्रति हमारा कर्तव्य।।

हमारे दैनिक जीवन में काम आनेवाली वस्तुओं का मूलाधार कृषि ही है। हमारा भोजन, वस्त्र तथा फल-फूल आदि हमें सभी कुछ कृषि से ही प्राप्त होता है। हमारे देश की जनसख्या का 70% भाग कृषि-कार्य करके अपनी आजीविका कमाता है। कृषि-कार्य में जुटे हुए ये लोग ही किसान कहलाते हैं। ये भारतीय सभ्यता, संस्कृति और आचार-विचार के प्रतीक होते हैं। इन्हीं के बल तथा सेवा कार्य पर समाजका ढाँचा खड़ा रहता है। शहर की चमक-दमक, नारियों के फैशन तथा नेताओं के सैर-सपाटे सबके सब किसानों के कन्धों पर ही टिके हैं। यह सबका अन्नदाता, वस्त्रदाता और जीवनदाता है। सारा समाज उसी के बल पर पनपता है। अतः जन-जीवन के लिए उसका विशेष महत्त्व है।

किसान का जीवन सादा और सरल होता है। वास्तव में भारतीय किसान ‘सादा जीवन उच्च विचार’ का प्रतीक होता है। उसका प्रकृति से सीधा सम्बन्ध होता है। प्रकृति के निकट रहने से उसका स्वास्थ्य उत्तम हो जाता है। किसान का स्वभाव भी सरल होता है। छल-कपट, ईर्ष्या और द्वेष तो वह जानता ही नहीं। यदि उसके खेत से कोई कुछ ले भी जाता है तो वह इसकी कोई चिन्ता नहीं करता और न बदले की भावना रखता है। इस प्रकार भारतीय किसान का जीवन सादा, सरल और स्वास्थ्य से पूर्ण होता है।

कृषक जीवन में जहाँ कुछ सुख हैं, वहाँ अनेक दुःख भी हैं। अतिवृष्टि, आँधी, जंगल पशु, चोर और फसल की बीमारी का भय उसे सदैव आतंकित रखता है। घोर गर्मी, शीत और वर्षा में भी वह अपने खेत में काम करता है, तब जाकर कहीं उसकी फसल तैयार होती है और सफल सकुशल घर आ जाए तो यह उसकी सबसे बड़ी विजय होती है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व भारतीय किसान की दशा बहुत शोचनीय थी। उसका उचित मान भी न था और उसके परिश्रम का उसे बहुत कम मूल्य मिलता था। साहूकारों और जमींदारों के कारण उसका सारा जीवन ब्याज चुकाते-चुकाते ही बीतता था। पहले जमींदार भी किसानों का खूब शोषण करते थे। इसीलिए भारत सरकार ने सर्वप्रथम जमींदारी और साहूकारी प्रथा को ही समाप्त किया। इसके अतिरिक्त आज भी ग्रामों में सफाई, शिक्षा और मनोरंजन के साधनों का अभाव रहता है। इसीलिए किसानों का सारा सुख, दुख में बदल जाता है। वर्षा ऋतु में तो ग्रामों में कीचड़, गन्दगी और मच्छरों का राज हो जाता है। इससे भी किसान का जीवन दुर्लभ हो जाता है। अच्छे हल, बैल, बीज, खाद, कृषि-यन्त्र तथा उचित सिंचाई के अभाव से उसे अपने परिश्रम का उचित फल नहीं मिलता है, जिससे कि वह सदैव दुखी रहता है।

स्वतन्त्र भारत की लोकप्रिय सरकार ने किसानों की दशा को सुधारने के लिए अनेक प्रयास किए हैं। सरकार ने जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया, चकबन्दी योजना चलाई, पंचायतों को नए अधिकार दिए, ग्रामों में विद्यालय खोले तथा सरकारी समितियों की स्थापना की। इन सुविधाओं के मिलने से भारतीय किसान अब जमींदार, व्यापारी और साहूकार के चंगुल से मुक्त हो गए हैं। आज उसे सरकार की ओर से आर्थिक सहायता भी दी जा रही है, जिससे कि वह अच्छे बीज, खाद और कृषि-यन्त्र खरीद सके। किसान को अन्न का उचित मूल्य दिलाने के उद्देश्य से भारत सरकार प्रत्येक वर्ष गेहूँ का एक न्यूनतम मूल्य निश्चित कर देती है तथा उस मूल्य पर किसान से स्वयं गेहूं खरीदती है, जिससे किसान को अन्न का उचित मूल्य मिल जाता है और इस प्रकार वह अब थोक व्यापारियों के चंगुल से मुक्त हो गया है। सन् 1988 में भारत सरकार ने अपने वार्षिक बजट में कृषि एवं कृषकों को अनेकानेक सुविधाएँ दी हैं। अब इन सुविधाओं के मिलने से किसान के जीवन में पर्याप्त परिवर्तन होता जा रहा है।

यद्यपि भारतीय किसान साहूकारों, जमींदारों और व्यापारियों से मुक्ति पा चुका है किन्तु प्रायः अब भ्रष्ट सरकारी अधिकारी उसे परेशान करते हैं, आज भी उसकी अशिक्षा, दुर्बलता और पिछड़ेपन का लाभ अधिकारी, क्लर्क और चपरासी तक उठाते हैं। सरकार से मिलने वाली सुविधा का लाभ भी गिने-चुने किसानों को ही मिल पाता है। इसलिए फरवरी 1988 में किसानों ने अपनी माँगों को मनवाने के लिए मेरठ में विशाल प्रदर्शन किया था।

आजकल भारत सरकार अपनी पंचवर्षीय योजनाओं पर अरबों रुपये व्यय कर रही है। इन योजनाओं को कृषि पर केन्द्रीभूत कर दिया है। सरकार ने गन्ने तथा अनाज के मूल्यों को ऊँचा बनाकर किसानों को उसके परिश्रम का उचित मूल्य दिलवाया है। इससे भारतीय किसान का जीवन बदल गया है। आज अधिकतर किसान कच्चे झोंपड़ों के स्थान पर पक्के मकान बनवा चुके हैं। उनके बच्चे नगरों में उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं तथा आधुनिक कृषि-यन्त्रों के प्रयोग से उनकी उपज दिन-दुनी-रात चौगुनी बढ़ती जा रही है।

वास्तव में किसान का जीवन त्याग, तपस्या, सेवा और सरलता का प्रतीक है। उन्होंने देश की खाद्य समस्या को हल करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके महत्त्व को समझकर स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री ने देश को “जय जवान जय किसान” का नारा दिया था। हमें भी किसानों के प्रति सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए तथा उनकी उन्नति के लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहना चाहिए। वह सुखी हैं, तो जग सुखी है।

गणतन्त्र दिवस 26 जनवरी

रूपरेखा-स्वतन्त्रता का महत्त्व, 26 जनवरी को महत्त्व, गणतन्त्र दिवस के समारोहों का वर्णन, छात्रों, सैनिकों व पुलिस के सम्मिलित जूलूसों का वर्णन, संध्या समय की सभा का वर्णन, रात्रि को घरों व बाजारों में हुए प्रकाश का वर्णन, उपसंहार।

छब्बीस जनवरी हमारे देश का एक राष्ट्रीय पर्व है। इसी दिन सबसे पहले सन् 1929 को भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की महासभा ने लाहौर में रावी नदी के तट पर पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने की घोषणा की थी। तब ये निरन्तर देश के सपूत स्वराज्य प्राप्त करने के लिए सचेष्ट रहे तथा 26 जनवरी को एक पवित्र पर्व के रूप में मनाते रहे। महान त्याग और बलिदानों के बाद 15 अगस्त सन् 1947 को भारत देश स्वतन्त्र हुआ तथा देश के नेताओं ने अपने देश के लिए अपने संविधान का निर्माण किया। यह संविधान 26 जनवरी, सन् 1950 को लागू हुआ और उसी दिन भारत देश एक प्रभुता सम्पन्न गणराज्य घोषित हुआ। इसीलिए 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाते है।

गणतन्त्र दिवस सारे भारतवर्ष में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। यह हमारा एक राष्ट्रीय पर्व है तथा इस दिन सभी कार्यालय तथा विद्यालय आदि बन्द रहते हैं, जिससे सभी लोग गणतन्त्र दिवस को धूम-धाम से मना सकें। अन्य वर्षों की भाँति इस वर्ष भी यह पर्व हमारे नगर में बड़ी धूम-धाम से मनाया गया। प्रात:काल प्रभात फेरियाँ निकाली गईं- ‘उठ जाग मुसाफिर भोर’ के मधुर गान से नगर गूंज उठा। चारों ओर ” भारत माता की जय” के नारे सुनाई दे रहे थे। प्रात: आठ बजे नगर के अनेक स्थानों पर झण्डा फहराया गया। हमारे विद्यालय में ठीक 8 बजे झण्डा फहराया गया था। विद्यार्थियों और अध्यापकों ने भाषण दिए और कविताएँ सुनाईं। इस दिन पढ़ाई नहीं हुई। भाषणों के बाद मिठाई बाँटी गईं और खेल के मैदान में खेल-कूद शुरू हो गए। विद्यालय में लगभग दो बजे तक यह कार्यक्रम चलता रहा। दोपहर बाद नगर में एक विशाल जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में नगर के चुने हुए पुलिस जवान, होमगार्ड और एन०सी०सी० के छात्र-सैनिक शामिल हुए। बाजे की धुन के साथ कदम से कदम मिलाता हुआ यह जुलूस शहर के मुख्य बाजारों से होकर निकला। जिस सड़क से होकर यह जुलूस जाता था, उसी सड़क पर नर-नारी उसका स्वागत करते थे। सारे नगर से प्रसन्नता छा गई थी। सभी को स्वराज्य का सुख मिल रहा था।

सन्ध्या समय साहित्य परिषद् के मैदान में एक विशाल सभा हुई। इस सभा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया था। हमारे विद्यालय के छात्रों ने एक समूहगान प्रस्तुत किया। कन्या पाठशाला की छात्राओं ने एक लोकनृत्य प्रस्तुत किया। नगर के प्रमुख समाज-सेवी और कार्यकर्ताओं ने स्वतन्त्रता, पर बलिदान हो जाने वालों के प्रति अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलियाँ अर्पित कीं।

रात्रि को नगर में अनेक स्थानों पर प्रकाश किया गया। विद्यालयों में कवि-सम्मेलनों का आयोजन किया गया। इस प्रकार 26 जनवरी का पूरा दिन बड़ी प्रसन्नता के साथ व्यतीत हुआ। वास्तव में गणतन्त्र दिवस एक ओर तो हमें देश पर बलिदान हुए युवकों की याद दिलाता है तथा दूसरी ओर मेल से रहने की शिक्षा देता है। हमें एकता, प्रेम और पारस्परिक सहयोग के साथ शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिए, तभी हमारी स्वतन्त्रता दृढ़ रह सकती है। हमें इस दिन अपने देश की उन्नति और विकास में सहयोग देने के लिए शपथ लेनी चाहिए। यही गणतन्त्र दिवस को मनाने का उचित ढंग हो सकता है।

विज्ञान के चमत्कार

रूपरेखा- वर्तमान युग तथा विज्ञान, इस युग को विज्ञान की देन, विज्ञान के चमत्कारों का वर्णन-

  • मोटर, रेल, वायुयान आदि।
  • टेलीफोन, रेडियो, समाचार-पत्र, बेतार का तार आदि।
  • चलचित्र ग्रामोफोन, टेलीविजन आदि।
  • बन्दूक, तोप, बम, लड़ाकू विमान, दूरमारक अस्त्र-शस्त्र आदि।
  • विद्युत, नए वस्त्र, अच्छी खाद, उत्तम दवाइयाँ आदि। विज्ञान के चमत्कारों का उपयोग तथा दुरुपयोग, उपसंहार।

वर्तमान युग को वैज्ञानिक युग कहा जाता है। आज हमारे सारे जीवन पर विज्ञान का प्रभाव दिखाई पड़ता है। यदि विज्ञान की देन को आज हमसे छीन लिया जाए तो हम सभी कठिनाइयों में फंस जाएँगे। विज्ञान ने आज हमको जो सुख-सुविधाएँ प्रदान की हैं, वे सब विज्ञान के चमत्कार कहलाते हैं। हमारे शरीर के सुकोमल वस्त्र, घड़ी, ट्रांजिस्टर, पेन आदि सभी विज्ञान की देन हैं। वायुयान, एटम बम, इंजेक्शन, ट्रेन, रेडियो, चलचित्र, टेलीविजन तथा एक्सरे आदि सभी विज्ञान ने ही दिए हैं। विज्ञान के चमत्कारों ने आने-जाने के साधनों में बहुत बड़ा परिवर्तन कर दिया है। प्राचीन काल में मनुष्य अपने घर से दस-बीस मील तक जाने में भी घबराता था किन्तु आज तो वह पृथ्वी का चक्कर लगाने में भी नहीं घबराता। हजारों व्यक्ति विश्व का चक्कर लगा चुके हैं और अब मानव मंगल, ग्रह पर जाने की तैयारी कर रही है। यह सब विज्ञान के ही कारण सम्भव हो सका है। आज जन-साधारण की सेवा के लिए साइकिल, मोटर साइकिल, मोटर कार, ट्रेन, वायुयान आदि हर समय तैयार रहते हैं।

आजकल समाचार भेजने में भी विज्ञान मानव की बड़ी सहायता कर रहा है। टेलीफोन, बेतार का तार, समाचार-पत्र और रेडियो ये सब विज्ञान ने ही दिए हैं। आज कुछ ही सेकंडों में एक समाचार सारे संसार में फैल सकता है। हजारों मील बैठा हुआ एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से इस प्रकार बातचीत कर सकता है मानो वह उसके सामने ही बैठा हो। ये सब कुछ सुविधाएँ विज्ञान ने ही तो दी हैं।

विज्ञान में मन बहलाने के लिए चलचित्र, रेडियो, ग्रामोफोन और टेलीविजन आदि भी प्रदान किए हैं। अपने काम से थककर कोई रेडियो सुनता है तो कोई चलचित्र देखने चला जाता है। बन्दूक, तोप, एटम बम, लड़ाकू विमान तथा दूरमारक शस्त्र विज्ञान के अद्भुत चमत्कार हैं। आज एक देश को मिनट में नष्ट किया जा सकता है। आज संसार का बड़े से बड़ा देश भी विज्ञान के इन विनाशकारी चमत्कारों से काँपता है। आज विज्ञान के बल से एक सैनिक पूरी सेना का नाश कर सकता है।

वास्तव में आज हमारा जीवन विज्ञान के सहारे व्यतीत हो रहा है। विद्युत् तो ‘विज्ञान का महान चमत्कार है। इससे आज हमें प्रकाश मिलता है, मशीनें चलती हैं, पंखे चलते हैं, गेहूं पिसती है तथा खाना तैयार होता है। हमारे दैनिक जीवन में काम आने वाली सभी वस्तुएँ विज्ञान ने दी हैं। हमारे शरीर के लिए उत्तम वस्त्र, पढ़ने को उत्तम पुस्तकें, खेतों को अच्छी खाद, रोगों के लिए उत्तम दवाइयाँ, फोटो खींचने के लिए कैमरा और लिखने के लिए कागज विज्ञान ने ही दिए हैं। आज विज्ञान के चमत्कारों के कारण चेचक, हैजा, पोलियो तथा मलेरिया आदि घातक बीमारियों पर पूरी तरह विजय प्राप्त कर ली गई है। वास्तव में विज्ञान के ये चमत्कार समाज के लिए वरदान ही हैं।

मनुष्य प्रत्येक वस्तु को अपने मनमाने ढंग से प्रयोग में लाता है। तेज ब्लेड से साफ हजामत भी बनती है और जेब भी काटी जा सकती है। विज्ञान के इन चमत्कारों का मानव ने अनेक स्थानों पर दुरुपयोग भी किया है। महाविनाशके अणु-शक्ति का मानव-कल्याण के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।

अतः हमारे वैज्ञानिकों को चाहिए कि वे इन चमत्कारों का प्रयोग केवल मानव-कल्याण के लिए ही करें।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि विज्ञान के चमत्कारों ने मानव जाति को बहुत सुख-सुविधाएँ प्रदान की हैं।

आज भी समझदार लोग इस बात के लिए प्रयत्ल कर रहे हैं कि विज्ञान के ये चमत्कार मानव की सेवा करते रहें, उसे हानि न पहुँचाने पाएँ। आशा है कि मानव इनसे पूरा लाभ उठाता रहेगा तथा जीवन और अधिक सुखमय हो जाएगा।

मनोरंजन के साधन

रूपरेखा-मनोरंजन की आवश्यकता, प्राचीन समय में मनोरंजन के साधन, आधुनिक समय में मनोरंजन के साधन, उपसंहार।

जब मनुष्य काम करते-करते थक जाता है तो उसे मनोरंजन की आवश्यकता होती है। थोड़ी देर मनोरंजन करने से उसका मन प्रसन्न हो जाता है, वह फिर अपने काम में जुट जाता है। विद्यार्थियों से लेकर बड़े अधिकारी तक अपनी थकान दूर करने के लिए मनोरंजन करते हैं। वास्तव में मनोरंजन के साधन मनुष्य को शक्ति देते हैं। थकावट दूर करते हैं और जीवन में स्फूर्ति लाते हैं। अतः मानव जीवन में इनकी बड़ी आवश्यकता है।

मनुष्य अपने मन को बहलाने के लिए अलग-अलग ढंग से मनोरंजन के साधन अपनाता आया है। प्राचीनकाल में चौपड़, बाजीगर के खेल, कठपुतली के खेल, रामलीला, पशुओं की लड़ाई शिकार खेलना आदि मनोरंजन के साधन थे किन्तु आज बहुत कम लोग इनके द्वारा अपना मनोरंजन करते हैं। विज्ञान ने मनुष्य को मनोरंजन के लिए बड़े सस्ते और अच्छे साधन दिए हैं। आधनिक समय में मनोरंजन के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं

आधुनिक युग में मनोरंजन का सबसे सस्ता और अच्छा साधन रेडियो है। अपने कार्यों से थका हुआ मनुष्य रेडियो सुनकर अपना मन बहला लेता है। रेडियो पर तरह-तरह के गाने, कहानी तथा नाटक सुनकर आज करोड़ों मनुष्य अपनी मनोरंजन करते हैं। अब तो टेलीविजन पर गाने वाले या बोलने वाले का चित्र भी साथ-साथ दिखाया जाने लगा है। रंगीन टेलीविजन ने इस क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। इससे उत्तम मनोरंजन के साथ-साथ उत्तम शिक्षाप्रद कार्यक्रम भी देखने को मिलते हैं।

सिनेमा भी मनोरंजन का प्रमुख साधन हैं। जब से सिनेमा का प्रचार हुआ है तब से सर्कस, थियेटर और नाटक के खेल बहुत कम हो गए हैं। सिनेमा करोड़ों व्यक्तियों का प्रतिदिन मनोरंजन करते हैं। यह भी मनोरंजन का बड़ा सस्ता और अच्छा साधन है।

आज लाखों लोग खेल-कूद द्वारा अपना मनोरंजन करते हैं। विद्यार्थियों के लिए खेल-कूद ही मनोरंजन का सर्वश्रेष्ठ साधन है। हॉकी, फुटबॉल तथा बैडमिंटन खेलना, दौड़ना, कूदना आदि मनोरंजन के उत्तम साधन माने गए हैं। दिन भर के कार्य से थका हुआ मनुष्य इन खेलों से प्रसन्न हो जाता है, वह फिर अपने काम में जुट जाता है।

कुछ लोग घर के बाहर जाना अधिक पसन्द नहीं करते हैं। वे घर पर ही रहकर अपना मनोरंजन कर लेते हैं। कोई कहानी और उपन्यास पढ़कर प्रसन्न होता है, तो कोई सितार, बाँसुरी या पियानो बजाकर अपना मन प्रसन्न कर लेता है। कोई मित्रों के साथ बैठकर ताश खेलना पसन्द करता है तो कोई ग्रामोफोन और रेडियो पर गाने सुनता है। जिसकी जैसी रुचि होती है, वह वैसा ही साधन अपना लेता है।

मनोरंजन के साधनों की कोई सीमा नहीं है। जिसका जिससे मन बहल जाए, उसके लिए वही मनोरंजन का साधन है। घूमना, फोटो खींचना, चित्रकारी, नदी की सैर या शतरंज खेलनी, नाव चलाना, कैरम खेलना, समाचार-पत्र पढ़ना, काढ़ना-बुनना, गाना आदि सभी मनोरंजन के साधन हैं।

कभी-कभी लोग नशा करके भी अपना मनोरंजन किया करते हैं किन्तु नशा करना या जुआ खेलना मनोरंजन का उत्तम साधन नहीं है, इनसे तो धन की बर्बादी होती है और स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है। अत; जो साधन हानिकारक हैं, उनको कभी भी नहीं अपनाना चाहिए। वास्तव में जो लोग शारीरिक कार्य करते हैं, उनको घरेलू मनोरंजन के साधन अपनाने चाहिए और जो लोग मानसिक कार्य करते हैं, उन्हें भाग-दौड़ साधन अपनाने चाहिए। इसी से मानव का अधिक कल्याण हो सकता है।

चलचित्र

रूपरेखा-चलचित्र विज्ञान की देन है। चलचित्र का इतिहास और दिखाने के ढंग का वर्णन, लाभ हानियाँ, उपसंहार।

आधुनिक युग में चलचित्र विज्ञान की एक बड़ी देन है। आज यह मनोरंजन का लोकप्रिय साधन हो गया है। आज देश का कोई भी ऐसा नगर नहीं है जहाँ दो-चार सिनेमाघर न हों।

चलचित्र का आविष्कार सन् 1870 ई० में अमेरिका के एक वैज्ञानिक एडीसन ने किया था। उस समय केवल मूक चित्र ही दिखाए जाते थे। धीरे-धीरे बोलते हुए चित्र भी दिखाए जाने लगे और अब तो रंगीन चित्र इस प्रकार दिखाए जाते हैं कि ऐसा लगता है मानो सचमुच का नाटक ही देख रहे हों। चलचित्र तैयार करने वाले लोग मूवी कैमरे की सहायता से अभिनेताओं के चित्र खींचते हैं और उसी रील पर उनकी

ध्वनि भी अंकित कर ली जाती है। सिनेमा हाल में प्रोजेक्टर की सहायता से इसी रील को दिखाया जाता , है। भारतवर्ष में मुम्बई, मद्रास और कलकत्ता में अनेक फिल्मी कम्पनियाँ आजकल फिल्में तैयार कर रही हैं।
चलचित्र से निम्नलिखित लाभ हैं

आज सिनेमा मनोरंजन का सर्वश्रेष्ठ साधन माना जाता है। मनुष्य चाहे कितना ही थका क्यों न हो, सिनेमा, देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। यही कारण है कि आज संसार के करोड़ों व्यक्ति प्रतिदिन सिनेमा देखने जाते हैं।

सिनेमा देखने से दर्शकों को नई-नई बातों का पता लगता है। शिक्षा और समाज-सुधार के क्षेत्र में तो सिनेमा बहुत कार्य कर रहे हैं। आजकल तो भूगोल, इतिहास तथा नागरिक शास्त्र आदि अनेक विषयों की शिक्षा भी सिनेमा के द्वारा दी जाने लगी है। यदि अच्छी फिल्में छात्रों को दिखाई जाएँ तो इनसे बहुत लाभ हो सकता है। चलचित्र के द्वारा व्यापारी अपनी वस्तुओं का प्रचार भी करते हैं। साबुन, दवाइयाँ, तेल, कपड़ा तथा अन्य वस्तुओं के विज्ञापन जब चित्रपट पर दिखाए जाते हैं तो उनका व्यापार पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। आज इस व्यवसाय से लाखों व्यक्ति धन कमा रहे हैं।

सिनेमा से आजकल लाभ के स्थान पर हानि अधिक हो रही है। मारधाड़ की फिल्में छात्रों को मारधाड़ करने के लिए प्रेरित करती हैं। आज अनेक विद्यार्थी तो स्कूल से पढ़ाई के घण्टे छोड़-छोड़कर सिनेमा देखने जाते हैं और अपना सब कुछ चौपट कर डालते हैं। अधिक सिनेमा देखने में उनके स्वास्थ्य और चरित्र दोनों का नाश होता है। इस प्रकार चलचित्र से समाज को लाभ के स्थान पर हानि भी हो रही है।

देश के स्वतन्त्र होने पर नेताओं, समाज-सुधारकों और फिल्म तैयार करने वालों का ध्यान इस ओर गया है और अब तक अनेक शिक्षाप्रद फिल्में तैयार हो चुकी हैं। देश-प्रेम और समाज-सुधार सम्बन्धी फिल्मों को सरकार सहायता भी देने लगी है किन्तु अभी तक इस ओर विशेष सुधार नहीं हुआ है। यदि चलचित्र द्वारा चरित्र गठन और देश-प्रेम की शिक्षा दी जाए तो इससे देश का बहुत उपकार हो सकता है।

पुस्तकालय से लाभ

रूपरेखा-पुस्तकालय किसे कहते हैं? पुस्तकालयों के प्रकार, पुस्तकालयों से लाभ, पुस्तकालय के प्रति हमारा कर्तव्य।

पुस्तकालय शब्द का अर्थ है ‘पुस्तकों का संग्रहालय’। पुस्तकालय से पढ़ने वालों को पढ़ने के लिए पुस्तकें दी जाती हैं। वे उन्हें पढ़कर फिर वापस लौटा देते हैं।

पुस्तकालये कई प्रकार के होते हैं। प्रथम प्रकार के वे पुस्तकालय हैं, जो विद्यालयों में होते हैं। इनमें छात्रों और अध्यापकों को पुस्तकें पढ़ने के लिए दी जाती हैं। दूसरे प्रकार के वे पुस्तकालय हैं, जिन्हें धनवान लोग अपने घर पर ही बना लेते हैं। तीसरे प्रकार के राज्य पुस्तकालय होते हैं जहाँ से जनता को वहीं पर पुस्तकें पढ़ने के लिए दी जाती हैं। पुस्तकालय से निम्नलिखित लाभ हैं
पुस्तकों को पढ़ने से पढ़ने वाले का ज्ञान बढ़ता है। जब कोई व्यक्ति पुस्तकालय जाता है तो वहाँ तरह-तरह की पुस्तकें दिखाई देती हैं। वह उनमें से कोई एक पुस्तक पढ़ने के लिए ले आता है। इस प्रकार व्यक्ति को पुस्तकें पढ़ने की आदत पड़ जाती है और इससे उसका ज्ञान बढ़ता है।

पुस्तकालय मनोरंजन का भी श्रेष्ठ साधन है। आजकल पुस्तकालयों में कहानी और उपन्यास आदि की पुस्तकों के ढेर लगे रहते हैं। इन पुस्तकों के पढ़ने से व्यक्ति का मनोरंजन होता है। आज सैकड़ों नागरिक अपने व्यस्त जीवन से फुर्सत पाते ही पुस्तकालय पहुँच जाते हैं और अपनी मनपसन्द पुस्तकें पढ़कर अपना मन बहलाते हैं।

पुस्तकालय से खाली समय का सदुपयोग होता है। अपने कामों से फुर्सत पाकर खाली समय को यूँ ही बरबाद करना अच्छा नहीं होता। कहा भी हैं “काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम्।” अतः सबसे अच्छा तो यही है कि पुस्तकालय से पुस्तकें लेकर पढ़ी जाएँ और अपने समय का सदुपयोग किया जाए।

अध्ययन को प्रोत्साहन-पुस्तकालयों से अध्ययन करने का बल मिलता है। वहाँ की नई-नई पुस्तकें देखकर उन्हें पढ़ने को मन करता है। छात्रों के लिए तो पुस्तकालयों को होना बहुत ही आवश्यक है। इसलिए आजकल प्रत्येक विद्यालय में एक पुस्तकालय अवश्य होता है। वहाँ से छात्र एक-दूसरे की । देखा-देखी पुस्तकें लाते हैं और पढ़ते हैं।

पुस्तकालय से धन की बचत भी होती है। पुस्तकालय का चन्दा बहुत ही कम होता है किन्तु उससे सैकड़ों रुपये की पुस्तकें लेकर पढ़ी जा सकती हैं। बहुमूल्य पुस्तकें तो प्रायः पुस्तकालय से ही लेकर पढ़ी जाती हैं। इस प्रकार अनेक पुस्तकें भी पढ़ने को मिल जाती हैं और धन भी अधिक खर्च नहीं होने पाता है।

वास्तव में पुस्तकालयों से समाज को बहुत लाभ होता है। हमें इनसे पूरा-पूरा लाभ तो उठाना ही चाहिए किन्तु उनके प्रति जो हमारे कर्तव्य हैं, उनका भी पालन करना चाहिए। हमें पुस्तकें समय पर लौटा देनी चाहिए। पुस्तकें किसी भी तरह से खराब नहीं करनी चाहिए। पुस्तकों पर चिह्न लगाना, चित्र या पृष्ठ फाड़ना बहुत बुरा है। हमें पुस्तकालय की पुस्तकों की मन से रक्षा करनी चाहिए।

वास्तव में पुस्तकालय हमारे सच्चे मित्र हैं। सरकार भी पुस्तकालयों को उत्तम बनाने तथा उनकी संख्या बढ़ाने के लिए प्रयत्न कर रही है। फिर भी हमारे देश में पुस्तकालयों की कमी है। आशा है यह कमी शीघ्र ही पूरी हो जाएगी।

देशाटन

रूपरेखा-देशाटन का अर्थ, देशाटन के प्राचीन साधन देशाटन के आधुनिक साधन, देशाटन के लाभ, देशाटन में आने वाली बाधाएँ, हमारा कर्तव्य, उपसंहार।

‘देशाटन’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- देश + अटन। ‘अटन’ शब्द का अर्थ ‘घूमना’ है। इस प्रकार देशाटन शब्द का अर्थ ‘देश-विदेश में भ्रमण करना है।’

प्राचीनकाल से ही लोग देशाटन करते आ रहे हैं। प्राचीन काल में लोग पैदल, घोड़ों पर या रथों पर यात्राएँ किया करते थे। उस समय देशाटन करना बड़ा कठिन था। पचास या सौ मील दूर जाने में कई दिन लग जाते थे और मार्ग में लुट जाने का भी डर रहता था। इसीलिए पहले समय में लोग देशाटन के लिए बहुत कम जाया करते थे।

आधुनिक काल में देशाटन के नए-नए साधन उपलब्ध हो गए हैं। आज तो मोटर, रेलगाड़ी, हवाई जहाज आदि अनेक आने-जाने के साधन उपलब्ध हो गए हैं। इन सबके कारण देशाटन करना बड़ा सरल हो गया है। अब तो हजारों मील तक की यात्रा एक दिन में पूरी हो सकती है और मार्ग में लुट जाने का भय भी नहीं रहा है। इसीलिए आजकल लोग देशाटन को बहुत जाते है।

देशाटन का सबसे बड़ा लाभ ज्ञान-वृद्धि है। जब कोई यात्री किसी दूसरे देश की यात्रा करता है तो वहाँ जाकर नई-नई बातें देखता है और उन्हें सीखता है, इस प्रकार उसका ज्ञान बढ़ता है। देशाटन का एक प्रमुख लाभ मनोरंजन भी है। बहुत से लोग तो केवल मन को प्रसन्न करने के लिए ही देशाटन किया करते हैं। नई-नई वस्तुएँ तथा स्थानों को देखकर जहाँ ज्ञान बढ़ता है, वहाँ मनोरंजन भी होता है।

देशाटन का एक लाभ यह भी है कि देशाटन का स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। गर्मियों में लोग प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों की यात्राएँ किया करते हैं। जिन देशों में बहुत अधिक ठण्ड पड़ती है, उन देशों के लोग ठण्ड के दिनों में गर्म देशों में आ जाते हैं। इसका उनके स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

देशाटन में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मिलता है। इससे उनमें व्यवहार कुशलता आती है। वह दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना भी सीख जाता है। इस प्रकार देशाटन से व्यक्ति को अनेक लाभ होते हैं।

आज भी देशाटन के मार्ग में अनेक बाधाएँ आती हैं। सबसे पहली बाधा धन की है। यदि पास में धन की कमी हो तो देशाटन का पूरा-पूरा लाभ नहीं उठाया जा सकता। परिवार और व्यापार की चिन्ताएँ भी देशाटन के मार्ग में बाधक बन जाती हैं। अतः इन सब बाधाओं को पार करके ही देशाटन करना उचित है। इसके अतिरिक्त जिस देश की यात्रा करनी हो, वहाँ की भाषा का भी ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए अन्यथा बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है।

अन्त में कहा जा सकता है कि देशाटन करना बहुत ही लाभदायक और आवश्यक है। विश्व के अनेक महापुरुष देशाटन के कारण ही महान बन सके हैं। राहुल सांकृत्यायन तथा मोहन राकेश हिन्दी के ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने बहुत देशाटन किया है। महात्मा गांधी, पं० नेहरू, आचार्य विनोवा भावे, टाटा और बिरला जो देश की इतनी सेवा कर रहे हैं, उसका कारण उनका देशाटन ही है। वास्तक में देशाटन करना बहुत ही उपयोगी है।

वसन्त ऋतु

रूपरेखा-भारत की प्रमुख ऋतुओं का वर्णन, वसन्त ऋतु सबसे श्रेष्ठ, वसन्त में प्रकृति की शोभा का वर्णन, वसन्त के प्रमुख उत्सव, वसन्त ऋतु के लाभ, कवियों द्वारा वसन्त का वर्णन उपसंहार।

भारतवर्ष में तीन ऋतुएँ प्रमुख हैं-जाड़ा, गर्मी और वर्षा। जहाँ जाड़े में बहुत जाड़ा पड़ता है, गर्मी में बहुत गर्मी पड़ती हैं और वर्षा ऋतु में चारों ओर जल ही जल हो जाता है। इन तीनों ऋतुओं के बीच में वसन्त ऋतु भी आती है, जो चैत्र और बैसाख में मनायी जाती है। यह ऋतु अन्य सब ऋतुओं में श्रेष्ठ होती है। इनमें न अधिक ठण्ड पड़ती है और न अधिक गर्मी। चारों ओर हरियाली ही हरियाली छा जाती है और सुगन्धित वायु सबको प्रसन्न कर देती है। वसन्त में सभी को सुख मिलना है। इसीलिए इसे ऋतुराजे भी कहा जाता है।

वसन्त ऋतु में खेतों में चारों ओर हरियाली दिखाई पड़ने लगती है। कहीं दूर तक पीली सरसों के खेत दिखाई देते हैं तो कहीं मटर, गेहूँ और चने के खेत भरे दिखाई देते हैं। वसन्त ऋतु में गुलाब, गेंदा, गुलमेंहदी आदि सैकड़ों प्रकार के फूल खिल उठते हैं और अपनी सुगन्ध से हवा को भी सुगन्धित कर देते हैं।

वसन्त पंचमी और होली इस ऋतु के प्रमुख उत्सव हैं। वसन्त पंचमी को लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। और हँसी-खुशी से हवन करते हैं। होली तो मस्ती और प्रसन्नता का त्योहार है। इस ऋतु में स्थान-स्थान पर फाग के गीत गाए जाते हैं। प्राचीन काल में तो राजा लोग अपने राज्य का भ्रमण करने के लिए इसी ऋतु में यात्राएँ किया करते थे।

वसन्त ऋतु का स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस ऋतु में प्रात:काल का टहलना तो बहुत ही लाभदायक होता है। इससे शरीर का रक्त शुद्ध हो जाता है। व्यायाम करने के लिए तो यह ऋतु बहुत

ही उपयोगी है। शीतल और मन्द-सुगन्धित वायु इसी ऋतु में मिलती है जो सबके मन को हर लेती है। अनेक कवियों ने वसन्त को ऋतुराज के रूप में चित्रित किया है। । वास्तव में वसन्त ऋतुराज सब ऋतुओं में महत्त्वपूर्ण है। तितलियों, भौरों और शहद की मक्खियों . को तो इस ऋतु में बहुत ही सुख मिलता है। रंग-बिरंगे फूलों पर भौंरे तथा तितलियाँ  मँडराती हुई बड़ी । भली मालूम होती हैं। स्वास्थ्य, प्रसन्नता और प्राकृतिक सुन्दरता की दृष्टि से तो यह बड़ी महत्त्वपूर्ण ऋतु है। मनुष्य जितना प्रसन्न इस ऋतु में रहता है उतना वह किसी अन्य ऋतु में नहीं रहता।

वर्षा ऋतु

रूपरेखा-भारत की प्रमुख ऋतुएँ, वर्षा ऋतु का समय और महत्त्व, वर्षा ऋतु का वर्णन, पेड़-पौधे तथा पशुओं का वर्णन, आकाश की शोभा का वर्णन। कवियों द्वारा वर्षा का वर्णन, वर्षा से लाभ, वर्षा ऋत की कठिनाइयाँ-मकानों का गिरना, विषैले कीडे, मच्छर आदि का फैलना, मार्गों का रुकना, बाढ़ की आशंका, रोगों का फैलना, उपसंहार।

हमारे देश को प्रकृति का अनुपम वरदान प्राप्त है। बारह महीनों में छह ऋतुएँ बारी-बारी से इस
करती हैं। कभी वसन्त अपनी शोभा से प्रकति का श्रृंगार करती है तो कभी ग्रीष्म उसे तप्त कर देता है। कभी शरद उसे शीतल वाय से सिहरा देता है तो कभी वर्षा जल से स्नान कराती है। वैसे तो इन सभी ऋतओं का निजी महत्त्व है किन्त वर्षा न हो तो वसन्त, शरद तथा हेमन्त आदि सभी ऋतुएँ शोभाहीन हो जाती हैं। वर्षा के जल से सींचे हुए वृक्ष ही ग्रीष्म ऋतु में घनी छाया प्रदान करते हैं तथा वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है। अतः सब ऋतुओं में वर्षा को विशेष महत्त्व मिला है।

वर्षा ऋतु का आरम्भ प्रायः आषाढ़ मास से माना जाता है। इसके पश्चात धीरे-धीरे वर्षा बढ़ने लगती है तथा भादों में जोर की वर्षा होने लगती है। वर्षा आरम्भ होते ही चारों ओर हरियाली ही हरियाली छा जाती है। वृक्ष, घास तथा छोटे-बड़े पौधे सब हरे-भरे हो जाते हैं। आम और जामुन के वृक्षों पर तो वर्षा ऋतु में विशेष बहार आ जाती है। पशु तथा पक्षियों को इस ऋतु में बड़ा सुख मिलता है। ग्रीष्म में तपे पशु-पक्षी शीतल जल की फुहार से प्रसन्न हो जाते हैं। मेंढक टर्र-टर्र की ध्वनि से आकाश को सिर पर उठा लेते हैं। कहीं तोते आम पर झपटते दिखाई देते हैं तो कहीं नीलकण्ठ उड़ते दिखाई देते हैं। चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छा जाता है।

वर्षा ऋतु में आकाश की शोभा का तो कहना ही क्या? कभी काले बादल उमड़कर आते हैं तो कभी पूरे। इन सबके बीच में आकाश की शोभा बहुत बढ़ जाती है।

बादलों से भरपूर आकाश के बीच में जब सतरंगी इन्द्रधनुष दिखाई पड़ता है तो आकाश की शोभा द्विगुणित हो जाती है। कविवर ‘दिनकर’ ने तो इसे ऋतुओं की रानी बताते हुए कहा है- “है वसन्त ऋतुओं का राजा, वर्षा ऋतु की रानी।”

वर्षा ऋतु मानव समाज के लिए अत्यन्त ही लाभदायक है। इसी के कारण उसकी खेती सम्भव होती है। यद्यपि सिंचाई के कृत्रिम साधन वर्षा की कमी में थोड़ी बहुत सहायता कर देते हैं किन्तु बिना भादो के बरसे धरती का पेट नहीं भरता। वर्षा की झड़ी लगने पर ही किसान खेत बोना आरम्भ कर देते हैं। इसके अतिरिक्त ग्रीष्म ऋतु में जो तालाब, कुएँ अथवा नदियाँ आदि सूख जाती है, वर्षा में वे फिर जलयुक्त हो जाती हैं। इस प्रकार वर्षा मानव के लिए अत्यन्त उपयोगी है।

वर्षा ऋतु में निर्धन समाज को विशेष रूप से बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अधिक वर्षा से उनके मकान गिरने लगते हैं। विषैले कीड़े जैसे साँप, बिच्छू आदि इसी ऋतु में अधिक निकलते हैं। वर्षा के कारण कच्चे मार्ग कीचड़ से भर जाते हैं। किसी-किसी गाँव को तो पानी चारों ओर से घेर . लेता है और आने-जाने के मार्ग बिल्कुल ही बन्द हो जाते हैं। अत्यधिक वर्षा से जब नदियों में बाढ़ आ जाती है तो प्रलयंकारी दृश्य उपस्थित हो जाता है। बाढ़ से धन-जन की अपार हानि होती है। वर्षा ऋतु में जल इधर-उधर रुक भी जाता है। रुके हुए इस जल में अनेक रोगों को फैलाने वाले मच्छर जन्म लेते हैं और इसके कारण अनेक व्यक्तियों को जान से हाथ धोना पड़ जाता है। इस प्रकार मानव समाज को वर्षा ऋतु में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

इतनी कठिनाइयाँ होने पर भी मानव प्रतिवर्ष वर्षा की प्रतीक्षा करता है क्योंकि इससे उसे अनन्त लाभ है। ठीक समय पर हुई वर्षा से जितना लाभ होता है, उतना अन्य किसी से भी नहीं हो सकता। इसीलिए तो भारतीय ऋषियों ने कहा है- “काले वर्षतु पर्जन्यः, पृथ्वी शस्य शालिनी।” वास्तव में किसान की खेती और देश की उन्नति ठीक समय की वर्षा पर ही निर्भर है।

विद्यार्थी जीवन

रूपरेखा-विद्यार्थी जीवन का महत्त्व, विद्यार्थी जीवन का मुख्य उद्देश्य- विद्याध्ययन और स्वास्थ्यनिर्माण, विद्यार्थी जीवन के सुख और कष्ट, आज के विद्यार्थी की कुछ कमियाँ, सुझाव, उपसंहार।

भारतवर्ष में मानव-जीवन को चार भागों में बाँटा गया है-

  • ब्रह्मचर्य,
  • गृहस्थ,
  • वानप्रस्थ,
  • संन्यास।

इनमें 5 वर्ष से 25 वर्ष तक की आयु का समय ब्रह्मचर्य कहलाता है। यह काले विद्या अध्ययन का काल होता है। इस काल में जो जितना परिश्रम कर लेता है, उसका जीवन आगे चलकर उतना ही सुखी रहता है। अतः मानव जीवन में विद्यार्थी जीवन का बहुत महत्त्व है।

विद्यार्थी को अपने जीवन को मुख्य उद्देश्य विद्या अध्ययन बनाना चाहिए। जो विद्यार्थी पढ़ने के स्थान पर इधर-उधर घूमते हैं; वे जीवन में दुख उठाते हैं। उन्हें सब बातों को छोड़कर केवल पढ़ने में मन लगाना चाहिए। प्रत्येक विद्यार्थी को अपने स्वास्थ्य को भी पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। यदि इस आयु में स्वास्थ्य बिगड़ जाता है तो फिर जीवनभर पछताना पड़ता है। उसे बुरी बातें नहीं अपनानी चाहिए। इस प्रकार जो विद्यार्थी चरित्र-निर्माण, अध्ययन और शारीरिक स्वास्थ्य को अपना उद्देश्य बना लेते हैं, वे जीवन में सफलता प्राप्त कर लेते हैं।

विद्यार्थी जीवन मानव-जीवन का स्वर्णकाल माना जाता है। इस काल में उसे न कमाने की चिन्ता होती है. और न घर-गृहस्थी की। उसके माता-पिता उसकी प्रत्येक बात को पूरा करने को तैयार रहते हैं। उसे अच्छे से अच्छा भोजन और वस्त्र दिए जाते हैं। जितना आनन्द व्यक्ति को विद्यार्थी जीवन में मिल जाता है, उतना फिर आगे कभी नहीं मिल पाता। भारत सरकार भी उसकी उन्नति के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है। विद्यार्थियों के भविष्य को अधिक उज्ज्वल बनाने के उद्देश्य से सन् 1985 में राजीव गांधी ने नई शिक्षा नीति की घोषणा की जिससे भारतीय विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण हो सकेगा।

विद्यार्थी जीवन में अनेक कष्ट भी होते हैं। जो विद्यार्थी समझदार हैं वे अपना समय सैर-सपाटों या खेल-तमाशों में बरबाद नहीं करते हैं, अपितु वे रात-दिन पढ़ने में ही लगे रहते हैं। जाड़ों की ठण्डी रातों में जब सारा घर आराम से सोता है तो उसे पढ़ना पड़ता है। वह रात को देर से सोता है और प्रातः जल्दी उठ जाता है। पढ़ने की चिन्ता में उसे खाना-पीना कुछ भी अच्छा नहीं लगता। परीक्षा के दिनों में तो छात्रों को घोर परिश्रम करना पड़ता है। इस प्रकार विद्यार्थी जीवन बड़ा ही कष्टमय है।

अधिकांश विद्यार्थी अपने जीवन के उद्देश्य को भूल चुके हैं; वे सैर-सपाटे, फैशन और सिनेमा देखने में ही समय नष्ट कर देते हैं। आज का विद्यार्थी विद्यालय से भागने की कोशिश करता है; वह पढ़ाई को तो बिल्कुल छोड़ बैठा है और किसी-न-किसी तरह परीक्षा पास करने की युक्ति सोचता रहता है। आज विद्यार्थी अनुशासन में रहना पसन्द नहीं करता। इन सब बातों के कारण ही आज का विद्यार्थी उन्नति नहीं कर रहा है।

आज छात्रों को विद्याध्ययन का महत्त्व समझाना आवश्यक है। विद्यार्थी के माता-पिता को भी उनकी चाल-ढाल पर हर समये दृष्टि रखनी चाहिए, उनको अध्यापकों से मिलते रहना चाहिए। दूसरी ओर विद्यार्थी को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए जो उसके जीवन को सफल बना सके। वास्तव में आज के छात्र ही कल के नागरिक हैं। उनकी उन्नति पर ही राष्ट्र की उन्नति आधारित है।

बालचर

रूपरेखा-प्रस्तावना, बालचर संस्था का परिचय, बालचर की शिक्षा वेशभूषा और कर्तव्य, उपयोगिता, उपसंहार।

सारे समाज की नि:स्वार्थ सेवा करने वाले बालचर (Boy Scout) को आज कौन नहीं जानता? वे अपनी सेवा, सहानुभूति, देश-प्रेम और कर्तव्यनिष्ठा से ही सबको मोह लेते हैं। बालचर संस्था का जन्म आज से लगभग 85 वर्ष पूर्व हुआ। दक्षिण अफ्रीका के बोयर युद्ध में हजारों सैनिक घायल हुए थे, उनके उपचार को कोई उचित साधन भी नहीं था। सर राबर्ट बेडेन पावेल यह सब न देख सके। उन्होंने ही सबसे पहले ‘बालचर संगठन’ बनाकर घायलों की सेवा की। भारतवर्ष में इस संस्था की स्थापना श्रीमती एनी बेसेण्ट ने की थी।

आठ वर्ष की आयु का या उससे अधिक आयु का प्रत्येक बालक इसका सदस्य हो सकता है। आयु के अनुसार ही उन्हें शेरबच्चा, ‘बालचर’ या ‘रोबर्स’ के नाम से पुकारते है।स्काउट कहलाने में । उसे विशेष गौरव का अनुभव होता है। बालचरों को उनके कर्तव्य का ठीक-ठीक ज्ञान कराया जाता है। इसके नेता को पेट्रोल लीडर’ कहते हैं। चार या उससे अधिक पेट्रोल मिलाकर एक ‘टुप’ कहलाता है। इसके नेता को ‘टुप लीडर’ कहते हैं। उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए बालचर शिक्षक होता है। जिले के सभी टुप जिला स्काउट कमिश्नर के अधीन कार्य करते हैं। इस प्रकार एक बालचर से लेकर पूरे टुप तक को सुसंगठित करके रखा जाता है।

समस्त बालचरों की वेशभूषा भी एक समान होती है। उनके सिर पर पगड़ी टोपी या हैट होता है तथा वे खाकी कमीज, नेकर तथा कपड़े के जूते पहनते हैं उनके गले में एक तिकोना रूमाल (स्कार्फ) भी बँधा होता है। वे एक सीटी, झण्डी, रस्सी तथा चाकू भी साथ रखते हैं, जिससे संकट के समय में वे सहायता कर सकें।

मानव समाज की तन, मन और धन से सहायता करने को तैयार रहना प्रत्येक बालचर का प्रथम कर्तव्य होता है। वह उदार, आज्ञाकारी, नम्र, दयालु, परोपकारी, धैर्यवान तथा परिश्रमी होता है। बालचरों को दी जाने वाली प्रमुख शिक्षाएँ इस प्रकार हैं-भोजन बनाना, तैरना, नदी पर पुल बनाना, घायल को पट्टी बाँधना, प्रारम्भिक चिकित्सा करना, घायल को अस्पताल पहुँचाना, गाँठ लगाना, मार्ग ढूँढ़ना, संकेतों द्वारा संदेश भेजना, सामयिक घर और सड़क बनाना आदि। प्रत्येक बालचर अपने साथ एक डायरी रखता है, जिसमें वह अपने दिनभर के कार्यों को मुख्य रूप से लिखता है। वह कठिनाइयों को हँसते-हँसते पार कर लेता है। गर्मी, शीत, वर्षा या अग्नि आदि बालचर को उसके कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं कर सकते।

बालचर संस्था समाज के लिए बड़ी ही उपयोगी है। बड़े-बड़े मेलों, रामलीला तथा बड़ी-बड़ी सभाओं आदि में बालचर अनुशासन और प्रबन्ध को बनाए रखने में बड़े सहायक सिद्ध होते हैं। खोए बच्चों को उनके माता-पिता के पास पहुँचाना, डूबते को बचाना, आग से जान तथा माल की रक्षा करना आदि बालचरों के प्रशंसनीय कार्य हैं।

वास्तव में यह संस्था समाज के लिए बड़ी ही उपयोगी है। इसके द्वारा चरित्र, स्वास्थ्य तथा सेवा की उच्च शिक्षा प्राप्त होती है। अतः इसका प्रसार तथा प्रचार होना अत्यन्त आवश्यक है। प्रत्येक विद्यालय में अनिवार्य रूप से बालचर संस्था होनी चाहिए तथा उनके प्रशिक्षण का उचित प्रबन्ध होना चाहिए, जिससे हमारे बालक देश के सुयोग्य नागरिक बन सकें।

रक्षाबंधन

रूपरेखा- प्रस्तावना, हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में रक्षाबन्धन का महत्त्व, रक्षाबन्धन को मनाने की विधि, त्योहार से सम्बन्धित कहानी और घटनाओं का वर्णन, उपसंहार।

हिन्दुओं के चार प्रमुख त्योहार हैं- दशहरा, दीपावली, रक्षाबन्धन और होली। इनमें रक्षाबन्धन भाई और बहन के असीन स्नेह को प्रकट करने वाला त्योहार है। यह प्राचीनकाल से भारतवर्ष में मनाया जाता है। इस त्योहार को ‘सलूनो’ भी कहा जाता है।

रक्षाबन्धन के दिन बहनें भाइयों के हाथों पर राखी बाँधती हैं। पुराने समय में चावल की पोटली को लाल कलावे में बाँधकर राखी बनाई जाती थीं। किन्तु आजकल तो बाजारों में बड़ी सुन्दर राखियाँ बिकती हैं। राखी के त्योहार से कई दिन पहले से ही राखियों की बिक्री आरम्भ हो जाती है। राखी बेचने वालों की दुकानें रंग-बिरंगी राखियों से जगमगा उठती हैं और वहाँ ग्राहकों की भीड़ दिखाई देने लगती है। इस दिन घरों में मीठे जवे, सेवई तथा खीर आदि बनाई जाती हैं। दीवारों पर चित्र बनाए जाते हैं और पूजा होती है। पूजा के बाद बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बाँधती हैं। यह राखी उनके अटूट बन्धन को प्रकट करती है। भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देते हैं और बहन को रुपये आदि देकर प्रसन्न करते हैं। इसी दिन ब्राह्मण भी व्यक्तियों की कलाई पर राखी बाँधकर उनके सुख की कामना करते हैं तथा दक्षिणा पाते हैं।

प्राचीनकाल से इस त्योहार के बारे में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। इनमें से एक कहानी तो बहुत प्रसिद्ध हैं- कहते है कि एक बार देवताओं और राक्षसों में भयंकर युद्ध छिड़ गया। धीरे-धीरे देवताओं का बल घटने लगा और ऐसा लगने लगा; जैसे देवता हार जाएँगे। देवताओं के राजा इन्द्र को इससे बड़ी चिन्ता हुई। इन्द्र के गुरु ने विजय के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन इन्द्र के हाथ पर रक्षा-कवच बाँधा और इसके प्रभाव से राक्षस हार गए। कहा जाता है। कि तभी से रक्षाबन्धन का यह त्योहार आज तक मनाया जाता है।

भारतीय इतिहास में भी राखी से सम्बन्धित एक कथा प्रचलित है। एक बार चित्तौड़ की महारानी कर्मवती पर गुजरात के बहादुर शाह ने आक्रमण कर दिया। कर्मक्ती ने रक्षाबन्धन के दिन सम्राट हुमायूँ के पास राखी भेजी और उसे अपना धर्म, भाई माना। कर्मवती ने भाई के नाते हुमायूँ को चित्तौड़ की रक्षा के लिए भी बुलाया। हुमायूँ उस समय एक युद्ध में फैसा हुआ था। किन्तु वह राखी के महत्त्व को भली प्रकार समझता था। इसलिए । वह तुरन्त चित्तौड़ की रक्षा के लिए चल पड़ा। इस प्रकार राखी बहन और भाई के पवित्र प्रेम को प्रकट करती है। सूत के इन धागों में बहन और भाई के सम्बन्ध को अधिकाधिक दृढ़ बनाने की शक्ति होती है।

रक्षाबन्धन हमारा पवित्र और महत्त्वपूर्ण त्योहार है। हमें धन और लेन-देन के लोभ को त्यागकर इसकी पवित्रता का आदर करना चाहिए। वास्तव में यह त्योहार सभी को स्नेह और कर्तव्यपालन का संदेश प्रदान करता है। वास्तव में हमारे प्राचीन ऋषियों ने त्योहारों की जो योजना प्राचीन युग में बनाई थी, उसका महत्त्व आज भी ज्यों का त्यों बना है। हमें अपने इस त्योहार के प्राचीन गौरव को सदैव ही स्मरण रखना चाहिए तथा इसे बड़े ही उल्लास और पवित्र भाव से मनाना चाहिए।

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