UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 19 रामकृष्ण परमहंस (महान व्यक्तित्व)
UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 19 रामकृष्ण परमहंस (महान व्यक्तित्व)
पाठ का सारांश
रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी, 1836 को बंगाल प्रांत के एक छोटे से गाँव कामरपुकुर में एक निर्धन परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम खुदीराम तथा माता का नाम चंद्रमणि था। इनके बचपन का नाम गदाधर था। इनमें बचपन से ईश्वर के प्रति अटूट आस्था, अपार श्रद्धा एवं प्रबल प्रेम था। सत्रह वर्ष की आयु में ये कोलकाता आ गए। कोलकाता आने के बाद इन्होंने मन ही मने संकल्प किया कि वे अपना जीवन केवल आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में लगाएँगे। कोलकाता आने के थोड़े समय बाद ही ये कोलकाता के दक्षिणेश्वर स्थित मशहूर काली मंदिर के पुजारी बन गए। ये दिन-रात साधना में लीन रहते। दूर-दूर से लोग उनके दर्शन को आने लगे। इसी समय मुरु के रूप में इनको एक महान संत तोता राम जी मिले, जिनके सानिध्य में इन्हें देवी दर्शन एवं ज्ञान की प्राप्ति हुई। एक महान विचारक व उपदेशक के रूप में इन्होंने बहुत से लोगों को प्रेरित किया। रामकृष्ण परमहंस का महाप्रयाग 16 अगस्त 1866 को हुआ। इनके परम शिष्य परम तेजस्वी स्वामी विवेकानंद ने ‘राम कृष्ण मिशन’ की स्थापना की। विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस के संदेशों का भारत तथा विश्व में अन्य देशों में प्रचार-प्रसार किया तथा विश्व पटल पर भारत को गौरवान्वित किया।
अभ्यास-प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर :
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी, 1836 को बंगाल प्रांत के एक छोटे से गाँव कामारपुकुर में हुआ था।
प्रश्न 2.
सत्रह वर्ष की आयु में कोलकाता आने पर रामकृष्ण ने क्या अनुभव किया?
उत्तर :
सत्रह वर्ष की आयु में कोलकाता आने पर रामकृष्ण ने अनुभव किया कि सभी प्रकार के सांसारिक ज्ञान का लक्ष्य केवल भौतिक उन्नति ही है।।
प्रश्न 3.
रामकृष्ण की भक्ति देखकर लोग क्यों आश्चर्य करते थे?
उत्तर :
रामकृष्ण दिन-रात साधना में लीन रहते थे। अतः लोग राम कृष्ण की भक्ति देखकर आश्चर्य करते थे।
प्रश्न 4.
रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख उपदेशों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख उपदेश निम्नलिखित हैं
- कर्म के लिए भक्ति का आधार होना आवश्यक है।
- उसका जन्म वृथा है जो दुर्लभ मानव जनम पाकर भी इसी जीवन में भगवान को पाने की चेष्टा नहीं करता।
- जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया, उस पर काम और लाभ का विष नहीं चढ़ता।
- जब हवा चलने लगे तो पंखा छोड़ देना चाहिए परन्तु ईश्वर की कृपा जब होने लगे तो प्रार्थना तपस्या नहीं छोड़नी चाहिए।
- यदि तुम ईश्वर की दी गई शक्तियों को सदुपयोग नहीं करोगे तो वह अधिक नहीं देगा अर्थात ईश-कृपा के योग्य बनने के लिए भी पुरुषार्थ चाहिए।
- पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है।
- मैले शीशे से सूर्य की किरणों का प्रतिबिंब नही पड़ता, उसी प्रकार जिनका अंत:करण मलिन और अपवित्र है उनके हृदय में ईश्वर के प्रकाशं का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता।
- मैं भौतिक सुखों को प्रदान करने वाली विद्या नहीं चाहता हूँ। मैं उस विद्या का चाहता हूँ। जिससे हृदय में ज्ञान का उदय होता है।
प्रश्न 5.
रामकृष्ण परमहंस के व्यक्तित्व की विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
रामकृष्ण परमहंस बहुत ही सरल इंसान थे। सत्रह वर्ष की आयु में वे अपने गाँव से कोलकाता आ गए। कोलकाता आने के कुछ दिनों बाद वे कोलकाता के नजदीक दक्षिणेश्वर स्थित काली मंदिर के पुजारी बन गए। वहाँ वे दिन रात साधना में लीन रहते थे। इसी समय एक महान संत तोताराम उन्हें गुरु के रूप में मिले, जिनके सानिध्य में इन्हें देवी दर्शन एवं ज्ञान की प्राप्ति हुई। रामकृष्ण जी ने अपनी आध्यात्मिक साधना के बल पर अनेक सिधियों को प्राप्त किया। एक महान विचारक एवं उपदेशक के रूप में उन्होंने बहुत से लोगों को प्रेरित किया। उनके परम शिष्य परम तेजस्वी स्वामी विवेकानंद थे। विवेकानंद जी ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की एवं इनके. उपदेशों की भारत सहित विश्व के अनेक देशों में प्रचारित किया।
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