UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 13 खाद्य पदार्थों का संगठन, वर्गीकरण और उनके कार्य
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 13 खाद्य पदार्थों का संगठन, वर्गीकरण और उनके कार्य
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
आहार या भोजन से आप क्या समझती हैं? आहार के आवश्यक पोषक तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
आहार या भोजन का अर्थ एवं पोषक तत्व
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कोई भी जीवित प्राणी आहार या भोजन के अभाव में अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता। वास्तव में सभी जीवित प्राणियों का एक अनिवार्य लक्षण है—नियमित रूप से आहार ग्रहण करना। आहार की आवश्यकता भूख के रूप में अनुभव की जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सामान्य रूप से यह मान लिया जाता है कि जो खाद्य-सामग्री ग्रहण करने से भूख शान्त हो जाए वह व्यक्ति का आहार या भोजन है, परन्तु आहार का यह अर्थ न तो पूर्ण है और न ही सही। वास्तव में मनुष्य के लिए आहार ग्रहण करने के विभिन्न उद्देश्य हैं। भूख को शान्त करने के अतिरिक्त आहार से ही हम शक्ति प्राप्त करते हैं। आहार शरीर की वृद्धि एवं विकास में भी योगदान प्रदान करता है। शरीर के रख-रखाव में भी आहार का ही मुख्य योगदान होता है। आहार से ही हमारा शरीर रोगों से बचने की क्षमता प्राप्त करता है। आहार के इन समस्त उद्देश्यों एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए आहार के अर्थ को हम इन शब्दों में प्रस्तुत कर सकते हैं, ”वह ठोस या तरल सामग्री आहार कहलाती है, जिसे ग्रहण करने से भूख मिटती है, शरीर शक्ति प्राप्त करता है, शरीर की वृद्धि एवं विकास होता है, शरीर के अन्दर होने वाली टूट-फूट की मरम्मत होती है तथा प्राणी रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त करता है।”
आहार का अर्थ जान लेने के उपरान्त यह स्पष्ट कर देना भी आवश्यक है कि वास्तव में आहार के रूप में हम जो खाद्य सामग्री ग्रहण करते हैं उसका विशेष महत्त्व नहीं होता, बल्कि उससे प्राप्त होने वाले पोषक तत्त्वों का मुख्य महत्त्व है। हमारे शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए कुछ पोषक या अनिवार्य तत्त्व
आवश्यक होते हैं। ये पोषक तत्त्व हैं क्रमशः
- प्रोटीन,
- कार्बोहाइड्रेट,
- वसा,
- खनिज,
- विटामिन,
- जल।
प्रश्न 2:
आहार के पोषक तत्त्व के रूप में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
कार्बोहाइड्रेट के संगठन, प्राप्ति के स्रोत, उपयोगिता तथा अधिकता से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
या
प्रोटीन के विषय में आप क्या जानती हैं?प्रोटीन की उपयोगिता, आहार में कमी तथा अधिकती के परिणाम बताइए।
या
‘वसा’ के विषय में आप क्या जानती हैं? वसा की उपयोगिता, आहार में कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(I) कार्बोहाइड्रेट
ये कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से निर्मित यौगिक हैं, जिनमें हाइड्रोजन व ऑक्सीजन सदैव दो-एक के अनुपात (2:1) में होती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार की शर्करा व स्टार्च सम्मिलित किए जाते हैं। शर्करा को मीठे फलों; जैसे अंगूर, खजूर, सेब आदि से प्राप्त किया जा सकता है। बड़े पैमाने पर शर्करा गन्ने एवं चुकन्दर से प्राप्त की जाती है। अंगूरी-शर्करा, ग्लूकोस, अन्य फलों से प्राप्त शर्करा फ्रक्टोज तथा व्यापारिक शर्करा सुक्रोस कहलाती है। स्टार्च प्राय: गेहूं, चावल, आलू, साबूदाना व अरवी इत्यादि
से प्राप्त होता है। स्टार्च प्राय: जल में अविलेय होता है।
उपयोगिता
- ये शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
- ये शरीर का ताप बनाए रखते हैं।
- ये शारीरिक भूख शान्त करने के लिए सर्वोत्तम एवं सस्ते खाद्य पदार्थ हैं।
- कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करके प्रोटीन तथा वसा को अन्य उद्देश्यों के लिए बचाए रखने .. में सहायक होता है।
- बकार्बोहाइड्रेट शरीर में कैल्सियम के शोषण में सहायक होता है।
- सेलुलोस आदि के रूप में कार्बोहाइड्रेट शरीर से मल विसर्जन में सहायक होता है। इसीलिए आहार में रेशेदार भोज्य-पदार्थ सम्मिलित किए जाते हैं।
- कार्बोहाइड्रेट युक्त भोज्य पदार्थ विभिन्न खनिज लवणों तथा विटामिनों के उत्तम स्रोत होते हैं।
कार्बोहाइड्रेट की कमी से हानियाँ:
यदि व्यक्ति के आहार में कार्बोहाइड्रेट की कम मात्रा का समावेश होता है, तो हमारा शरीर आवश्यक ऊर्जा, प्रोटीन तथा वसा से प्राप्त करता हैं इससे शरीर में प्रोटीन-कार्बोहाइड्रेट कुपोषण की स्थिति आ जाती है। इस स्थिति में शरीर का वजन घटने लगता है तथा त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं। त्वचा ढीली पड़ जाने के कारण लटकने लगती है, व्यक्ति दुर्बलता महसूस करने लगता है तथा उसके चेहरे की सामान्य चमक घटने लगती है।
कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से हानियाँ:
कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से हमारे शरीर में कुछ हानियाँ हो सकती हैं; जैसे—इनकी अधिकता से पाचन क्रिया बिगड़ सकती है, दस्त हो सकते हैं तथा शरीर में मोटापा आ सकता है। शर्कराओं के अधिक प्रयोग से मधुमेह का रोग हो सकती है।
(II) प्रोटीन
हमारे आहार को एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व ‘प्रोटीन भी है। ये जटिल रासायनिक अणु होते हैं जो कि कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के बने होते हैं। इन्हें नाइट्रोजीन्स अथवा नाइट्रोजनयुक्त खाद्य पदार्थ भी कहते हैं। कुछ प्रकार की प्रोटीन्स में सल्फर व फॉस्फोरस भी होते हैं। सभी प्रोटीन्स अमीनो अम्ल के संयोग से बने होते हैं। प्राप्ति के आधार पर प्रोटीन्स दो प्रकार के होते हैं
(क) प्राणिजन्य प्रोटीन:
इस वर्ग की प्रोटीन्स मांस, मछली, अण्डे, दूध व दूध से बनी खाद्य सामग्रियों से प्राप्त होती हैं। इससे प्राप्त प्रोटीन का प्रतिशत इस प्रकार है
(1) अण्डा (एल्ब्यूमिन) 13.3%
(2) मछली 21.5%
(3) मांस 20%
(4) दूध 4 %
(5) खोया 20%
सामान्यतः प्राणिजन्य प्रोटीन सुपाच्य एवं सर्वोत्तम होते हैं
(ख) वनस्पतिजन्य प्रोटीन:
इस वर्ग की प्रोटीन मुख्य रूप से दालों (चना, मटर, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन आदि) से प्राप्त होती है। सोयाबीन में प्रोटीन की मात्रा सर्वाधिक होती है। विभिन्न मेवों, गेहूं, चावल आदि से प्रोटीन की प्राप्ति होती है। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन्स की प्रतिशत मात्रा निम्नलिखिते होती है
(1) सोयाबीन 43%
(2) मूंग, मसूर, अरहर, उड़द, मटर आदि 20-24%
(3) मूंग व चावल 12-14%
(4) मूंगफली 26%
(5) काजू 20%
(6) बादाम 21%
उपयोगिता:
- शरीर के तन्तुओं, नाड़ियों तथा आन्तरिक अंगों के निर्माण एवं टूट-फूट की क्षतिपूर्ति में प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहती है।
- शरीर के स्वस्थ एवं समुचित विकास के लिए प्रोटीन की आवश्यकता सर्वोपरि होती है।
- प्रोटीन पाचक रसों, आन्तरिक रसों अथवा हॉर्मोन्स तथा किण्व के निर्माण में सहायता करता है। लगभग सभी किण्व प्रोटीन के बने होते हैं।
- प्रोटीन मानसिक शक्ति में वृद्धि करता है।
- आवश्यकता पड़ने पर कभी-कभी प्रोटीन शरीर को ऊष्मा एवं ऊर्जा प्रदान करते हैं। रोगों के फलस्वरूप उत्पन्न दुर्बलता के निवारण के लिए प्रोटीन बहुत महत्त्वपूर्ण रहते हैं।
- प्रोटीन से रोग-निरोधक क्षमता का भी समुचित विकास होता है।
प्रोटीन की कमी से हानियाँ:
शरीर के भार के अनुसार हमें (1 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से) प्रतिदिन प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इसकी कमी से निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है
- शरीर अस्वस्थ रहता है तथा अनेक रोगों के पनपने का भय रहता है।
- शरीर के विकास की गति रुक जाती है।
- शिशुओं एवं बालकों में समुचित वृद्धि नहीं होती है।
- यकृत के आकार में वृद्धि हो जाती है।
- रक्तचाप निम्न हो जाता है तथा मनुष्य दुर्बलता अनुभव करता है।
- त्वचा पर चित्तियाँ पड़ जाती हैं व बाल झड़ने लगते हैं।
- प्रोटीन की निरन्तर कमी के परिणामस्वरूप क्वाशरकोर, पैलेग्रा तथा यकृत सम्बन्धी कुछ रोग भी हो जाते हैं।
प्रोटीन की अधिकता से हानियाँ:
जिस प्रकार प्रोटीन की कमी से अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं, ठीक उसी प्रकार अधिक एवं अनावश्यक प्रोटीन का उपयोग भी अनेक शारीरिक विषमताओं को जन्म देता है। प्रोटीन की अधिकता से निम्नलिखित शारीरिक हानियाँ सम्भव हैं
- शरीर में गर्मी अधिक उत्पन्न होती है।
- प्रोटीन के आधिक्य को निष्कासित करने के लिए गुर्दो को अधिक कार्य करना पड़ता है; जिससे उनके दुर्बल होने का भय रहता है।
- ठण्डे प्रदेशों में प्रोटीन का अधिक उपयोग कम हानिकारक होता है, परन्तु गर्म देशों (जैसे कि भारतवर्ष) में अधिक प्रोटीन न प्रयोग करना ही हितकर है।
(III) वसा एवं तेल
वसा कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से निर्मित होती है। इनमें ऑक्सीजन की अल्प मात्रा होती है। ये वसीय अम्लों एवं ग्लिसरॉल के संयोग से बनते हैं। वसा प्रायः निम्नलिखित दो प्रकार की होती है
(क) प्राणिजन्य वसा:
पशुओं की चर्बी, अण्डों की जर्दी, मछली का तेल आदि वसा के मुख्य स्रोत हैं। इनके अतिरिक्त पशुओं (गाय व भैंस आदि) का दूध, मक्खन व घी वसा के अधिक सामान्य एवं महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
(ख) वनस्पतिजन्य वसी:
सरसों, नारियल, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी तथा तिल के तेल वसा के सामान्य स्रोत हैं। इनके अतिरिक्त बादाम, काजू व अखरोट आदि मेवों में भी प्रचुर मात्रा में वसा पाई जाती है।
उपयोगिता:
वसा एवं वसायुक्त भोज्य पदार्थों का सेवन करने से हमें लाभ तथा हानियाँ दोनों ही होती हैं। इनका क्रमबद्ध विवरण निम्नलिखित है
लाभ:
- कार्बोहाइड्रेट्स के समान ये भी ऊर्जा के अच्छे स्रोत हैं।
- ये बाह्य गर्मी एवं सर्दी से शरीर की रक्षा करते हैं।
- अधिक मात्रा में लेने पर शरीर में संचित हो जाते हैं तथा आन्तरिक अंगों एवं हड्डियों को बाह्य आघात से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- ये मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं।
- कई विटामिन्स (जैसे ‘ए’, ‘ई’, ‘के’ एवं ‘डी’) के लिए ये विलायक का कार्य करते हैं।
- वसा शरीर के ताप के नियमन में सहायता प्रदान करती है।
- वसा पाचन-संस्थान को चिकना बनाए रखती है तथा उसकी (आँतों एवं आमाशय की) क्रियाशीलता को सुचारु बनाती है।
- वसायुक्त आहार स्वादिष्ट बन जाता है।
- वसा शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करके प्रोटीन की बचत में भी योगदान प्रदान करती है।
- वसा युक्त भोजन ग्रहण करने से व्यक्ति को अधिक समय तक भूख नहीं लगती।
हानियाँ:
- इनकी अधिकता से मोटापा बढ़ता है।
- इनकी अधिकता से रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है। रक्त नलिकाओं को दीवारों में कोलेस्ट्रॉल के जमने के कारण रक्त वाहिनियाँ संकुचित हो जाती हैं; अतः हृदय रोग की सम्भावनाभों में वृद्धि हो जाती है।
- वसा की अधिक मात्रा ग्रहण करने से पाचन-क्रिया बिगड़ जाती है तथा अपच या दस्त होने लगते हैं।
प्रश्न 3:
आहार के आवश्यक तत्त्व के रूप में खनिज लवणों का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
खनिज लवण-शारीरिक स्वास्थ्य तथा सुचारु क्रियाशीलता के लिए खनिज लवण नितान्त आवश्यक हैं। जहाँ एक ओर ये शरीर की विभिन्न रोगों से रक्षा करते हैं, वहीं दूसरी ओर शरीर निर्माण में भी सहायक हैं। शरीर से होने वाली अनेक रासायनिक क्रियाओं, विभिन्न रसों के निर्माण, रक्त का निर्माण, हड्डियों तथा दाँतों के लिए खनिज-लवण विशेष उपयोगी होते हैं। शरीर को सुदृढ़ एवं शक्तिशाली बनाने में भी लवण सहायता प्रदान करते हैं। शरीर का लगभग 1/25वाँ भाग खनिज लवणों का बना होता है। लगभग 20 खनिज तत्त्व जिनसे अनेक खनिज लवण बनते हैं, स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक हैं। इनमें कैल्सियम, फॉस्फोरस, आयोडीन, सोडियम क्लोराइड (सामान्य नमक), लोहा, मैग्नीशियम, ताँबा एवं गन्धक आदि अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
उपयोगिता:
- शरीर के समुचित विकास के लिए आवश्यक है।
- हड्डियों के स्वस्थ, स्वरूप के लिए कैल्सियम व फॉस्फोरस अति महत्त्वपूर्ण हैं।
- रक्त में लाल-रुधिर कोशिकाओं के निर्माण के लिए लौह तत्त्व की आवश्यकता पड़ती है।
- थायरॉइड ग्रन्थियों की क्रियाशीलता एवं विकास के लिए आयोडीन आवश्यक है।
- विभिन्न लवण शरीर के पाचक रसों को उत्प्रेरित करते हैं तथा परिणामस्वरूप पाचन-क्रिया सुचारु बनी रहती है।
- लवण शरीर में अम्ल-क्षार के सन्तुलन को बनाए रखते हैं।
- लवणों के प्रभाव से शरीर में उपस्थित विभिन्न पदार्थ घुलनशील बनते हैं तथा उन्हें शरीर के विभिन्न अवयवों तक जाने में सरलता होती है।
प्रश्न 4:
आहार के आवश्यक तत्त्व के रूप में विटामिनों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
विटामिन्स:
शरीर के स्वस्थ एवं समुचित विकास के लिए सूक्ष्म मात्रा में विटामिन्स की आवश्यकता पड़ती है। विटामिन्स को सुरक्षात्मक तत्त्व (protective nutrients) कहा जाता है। ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’ व ‘के’ आवश्यक विटामिन्स हैं जो कि अनेक प्रकार से हमें लाभान्वित करते
उपयोगिता:
हमारे शरीर तथा स्वास्थ्य के लिए विटामिनों की उपयोगिता का सामान्य विवरण निम्नवर्णित है
- विभिन्न विटामिनों की समुचित मात्रा ग्रहण करने से शरीर में विभिन्न रोगों से मुकाबला करने तथा उनसे बचे रहने की क्षमता प्राप्त होती है। इसके विपरीत विटामिनों की न्यूनता से व्यक्ति विभिन्न प्रकार के रोगों का शिकार हो जाता है।
- विभिन्न विटामिन ग्रहण करने से व्यक्ति चुस्त एवं स्वस्थ बना रहता है। विटामिन मनुष्य को स्वस्थ रहने में सहायता प्रदान करते हैं। इनकी कमी की स्थिति में व्यक्ति के शरीर की चुस्ती-फुर्ती कम हो जाती है।
- समुचित मात्रा में विटामिन ग्रहण करने से व्यक्ति को भूख ठीक प्रकार से लगती है। इसके विपरीत यदि विटामिन की न्यूनता या अभाव हो जाए तो व्यक्ति को भूख कम लगती है, चुस्ती बनी रहती है तथा व्यक्ति को नींद अधिक आने लगती है।
- विटामिन की न्यूनता से शरीर अत्यधिक क्षीण एवं दुर्बल हो जाता है।
प्रश्न 5:
शरीर के लिए जल की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शरीर का लगभग 70% भाग जल होता है। जल को प्रायः सीधे पीकर ग्रहण किया जाता है। इसके अतिरिक्त भोजन, शाक-सब्जियों, फलों एवं पेय पदार्थों के माध्यम से भी जल शरीर में प्रवेश
करता है।
उपयोगिता:
- प्यास शरीर की नैसर्गिक आवश्यकता है। जल द्वारा ही प्यास बुझती है।
- जल शरीर के तापक्रम को सामान्य बनाए रखता है।
- यह सर्वोत्तम विलायक है; अत: अधिकांश पौष्टिक तत्त्व इसमें घुलकर शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचते हैं। उत्सर्जन क्रिया में शरीर से विसर्जित होने वाले पदार्थ भी जल में घुलकर ही शरीर से पसीने व मल-मूत्र आदि के रूप में बाहर निकलते हैं।
- भोजन के पाचन व अवशोषण के लिए जल अति आवश्यक है।
- रक्त में लगभग 90% जल होता है।
- शरीर में विद्यमान विभिन्न ग्रन्थियों से कुछ रसों का स्राव होता है। इन रसों को तरलता प्रदान करने का कार्य जल ही करता है।
- जल हमारे शरीर की त्वचा को कोमल तथा चिकना बनाने में भी सहायकं होता है।
- जल के सेवन से व्यक्ति की सुस्ती, थकाने तथा उदासीनता भी दूर होती है।
- शारीरिक सफाई के लिए जल आवश्यक है। हम जल से ही स्नान करते हैं।
प्रश्न 6:
विटामिन की सामान्य विशेषताओं का उल्लेख करते हुए विभिन्न विटामिनों की । उपयोगिता, स्रोत तथा कमी के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विटामिन क्या हैं विटामिन्स जटिल कार्बनिक यौगिक होते हैं। ये प्राय: जल में (जैसे ‘बी’ व ‘सी’) अथवा वसा में (जैसे ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ व ‘के’) विलेय (घुलनशील) होते हैं। इनकी अन्य विशेषताएँ हैं
- ये शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अति आवश्यक हैं।
- इनकी आवश्यकता सूक्ष्म मात्रा में होती है तथा इनकी आवश्यकता से अधिक मात्रा प्रायः शरीर से विसर्जित हो जाती है।
- ये प्रायः उत्प्रेरक अथवा किण्व के समान कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त इनके विशिष्ट कार्य भी होते हैं।
- ये प्रायः विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों से प्राप्त होते हैं। आजकल इनका निर्माण प्रयोगशालाओं में भी किया जाता है।
- दैनिक भोज्य पदार्थों में इनकी कमी प्रायः अनेक रोगों का कारण बनती है।
उपयोगिता, स्रोत तथा कमी के प्रभाव:
विभिन्न विटामिनों की उपयोगिता प्राप्ति के स्रोतों तथा कमी के प्रभावों को निम्न तालिका द्वारा दर्शाया गया है
सारणी-विटामिन्स : प्रकार, स्रोत, उपयोगिता तथा कमी के प्रभाव विटामिन का नाम व स्रोत | कार्य या उपयोगिता
प्रश्न 7:
हमारे लिए आवश्यक खनिज लवण व उनके प्राप्ति स्रोत कौन-कौन से हैं? शरीर में इनकी कमी से क्या हानि होती है?
उत्तर:
हमारे शरीर के स्वस्थ एवं समुचित विकास के लिए निम्नलिखित खनिज लवणों की आवश्यकता होती है
- कैल्सियम,
- फॉस्फोरस,
- आयोडीन,
- सोडियम,
- मैग्नीशियम,
- गन्धक,
- लोहा,
- ताँबा।
(1) कैल्सियम:
हमें 500 मिली ग्राम से 1 ग्राम कैल्सियम की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। यह :: हमें दूध, दही, पनीर व अण्डे की जर्दी से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो सकता है। मेथी, पालक, गाजर व मूली के पत्तों तथा बन्द गोभी व फूल गोभी में भी पाया जाता है। कैल्सियम दाँतों, हड्डियों व मांसपेशियों ” को स्वस्थ एवं क्रियाशील रखने के लिए अति आवश्यक है।
कैल्सियम की कमी से हानि:
- हड्डियाँ कमजोर व विकृत हो जाती हैं। बच्चों में सूखा रोग व महिलाओं में मृदुलास्थि रोग हो जाते हैं।
- दाँत दुर्बल व बेडौल हो जाते हैं।
- रक्त जमने में अधिक समय लगता है।
(2) फॉस्फोरस:
बढ़ते हुए बालक को 1 ग्राम तथा सामान्य मनुष्य को 500 मिली ग्राम फॉस्फोरस की आवश्यकता होती है। यह हमें पनीर, अण्डा, मांस, मछली, आलू, कच्ची मक्का, पालक और दूध आदि से प्राप्त होता है।
फॉस्फोरस की कमी से हानि:
- अस्थियाँ व स्नायु संस्थान दुर्बल हो जाते हैं।
- रक्त में अम्ल व क्षार का सन्तुलन नहीं रहता।
(3) आयोडीन:
इसकी दैनिक आवश्यकता 60-100 मिली ग्राम है। यह हमें प्याज, समुद्री मछली, मछली का तेल, आयोडाइज्ड नमक व पीने के पानी से प्राप्त होती है। यह थायरॉइड ग्रन्थियों के विकास एवं क्रियाशीलता के लिए आवश्यक खनिज तत्त्व है।
आयोडीन की कमी से हानि:
- बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास रुक जाता है।
- गले में थायरॉइड ग्रन्थि के बढ़ जाने के कारण, गलगण्ड अथवा घेघा (गोइटे) नामक रोग हो। जाता है।
(4) सोडियम:
हमें इसकी आवश्यकता सामान्य नमक (सोडियम क्लोराइड) तथा सोडियम कार्बोनेट के रूप में होती है। ये हमें दूध, मांस, शलजम, प्याज, सेब, केला तथा अमरूद आदि से प्राप्त होते हैं। सामान्य नमक का उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में अनेक प्रकारे से करते हैं।
सोडियम की कमी से हानि:
- सोडियम क्लोराइड की कमी से शरीर में कब्ज उत्पन्न होता है, रुधिर चाप कम हो जाता है तथा रक्त के संगठन में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
- सोडियम कार्बोनेट की कमी से रक्त में अम्ल व क्षार का सन्तुलन नहीं रहता है तथा पाचन-क्रिया ठीक नहीं रहती।
(5) मैग्नीशियम:
यह लगभग सभी प्रकार के भोज्य-पदार्थों विशेष रूप से हरी शाक-सब्जियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह शरीर में उपस्थित किण्वों को तथा स्नायु-तन्त्र को क्रियाशील रखता है।
मैग्नीशियम की कमी से हानि
- पाचन-क्रिया गड़बड़ा जाती है।
- स्नायुमण्डल दुर्बल हो जाता है।
(6) गन्धक:
प्रोटीनयुक्त भोजन करने से गन्धक की आवश्यकता स्वत: ही पूरी हो जाती है। शरीर में होने वाली ऑक्सीकरण क्रियाओं में गन्धक का महत्त्वपूर्ण योगदान रहती है।
गन्धक की कमी से हानि
- बालों की वृद्धि रुक जाती है।
- नाखूनों की वृद्धि में अवरोध उत्पन्न हो जाता है।
- शरीर में होने वाली अनेक जैव-रासायनिक क्रियाएँ कुप्रभावित होती हैं।
(7) लोहा:
यह रक्त के वर्णक तत्त्व हीमोग्लोबिन का आवश्यक अंग है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में लौह तत्त्व की आवश्यकता अधिक होती है; परन्तु 50-55 वर्ष की आयु में मासिक धर्म बन्द हो जाने पर स्त्रियों एवं पुरुषों में इसकी आवश्यकता समान हो जाती है। लोहा प्राप्त करने के लिए मांस, मछली, गाजर, पालक, खीरे (हेरी शाक-सब्जियाँ), प्याज, सेब, मेवे, अनाज इत्यादि का सेवन लाभप्रद रहता है। अधिक कमी होने पर इसे गोलियों, कैप्सूल तथा टॉनिक इत्यादि का सेवन कर प्राप्त किया जा सकता है।
लोहे की कमी से हानि
- रक्ताल्पता (ऐनीमिया) नामक रोग हो जाता है।
- त्वचा का रंग पीला अथवा भूरा हो जाता है।
- हृदय गति बढ़ जाती है तथा श्वसन क्रिया धीमी पड़ जाती है।
- पीड़ित व्यक्ति उदासी, दुर्बलता एवं थकावट का अनुभव करता है।
(8) ताँबा:
ताँबा अथवा कॉपर लोहे के साथ मिलकर रक्त का उपयुक्त संगठन बनाए रखता है। यह अनाजों (गेहूँ, चावल, मक्का, जौ, बाजरा आदि) •का सेवन करके प्राप्त किया जा सकता है। ताँबे
की कमी से होने वाली हानियाँ लगभग लोहे के समान होती हैं।
प्रश्न 8:
निम्नलिखित खाद्य पदार्थों पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
(क) अनाज,
(ख) दालें,
(ग) मेवे,
(घ) सब्जी व फल,
(ङ) मांस। या दालें और मेवों में कौन-सा पौष्टिक तत्त्व होता है?
उत्तर:
(क) अनाज:
अनाजों में प्राय: गेहूं, चावल, मक्का, जौ, ज्वार तथा बाजरे का अधिकतर प्रयोग किया जाता है। ये सभी अनाज विभिन्न पौधों के बीज होते हैं तथा इन्हें विभिन्न प्रकार से आहार में सम्मिलित किया जाता है। इनमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन्स आदि पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। विभिन्न अनाजों के संगठन इस प्रकार हैं
(i) गेहूँ:
यह सर्वोत्तम अनाज है। इसके आटे से चपातियाँ तथा अन्य प्रकार की भोज्य सामग्रियाँ बनाई जाती हैं। 71.2% कार्बोहाइड्रेट्स, 15% वसा तथा लगभग 2% खनिज लवण होते हैं। चोकर में प्रोटीन, सेल्यूलोज तथा लवण प्रचुर मात्रा में होते हैं; अतः आटे से चोकर को अलग नहीं करना चाहिए। चोकर में विटामिन ‘बी’ भी पाया जाता है। अंकुरित गेहँ में विटामिन ‘सी’ तथा ‘ई’ भी पाया जाता है। हम अपने आहार में गेहूं का सर्वाधिक प्रयोग उसके आटे के रूप में करते हैं। वैसे आटे के अतिरिक्त गेहूं से मैदा तथा सूजी भी तैयार किए जाते हैं। गेहूँ से दलिया बना कर भी प्रयोग में लाया जाता है। दलिए में गेहूं के सभी पोषक तत्त्व पूर्णरूप में पाए जाते हैं।
(ii) चावल:
यह भी गेहूं के समान महत्त्वपूर्ण अनाज है। इसमें 78.8% कार्बोहाइड्रेट्स तथा 6% वसा होती है। इसके अतिरिक्त चावल में प्रोटीन, विटामिन ‘बी’ तथा खनिज लवण भी होते हैं जो कि व्यापारिक स्तर पर मशीन से कुटे चावल में प्राय: नष्ट हो जाते हैं। हाथ से कुटे धान से बना चावल अधिक पौष्टिक होता है।
(iii) मक्का:
इसमें कार्बोहाइडेटस अधिक होते हैं, परन्तु प्रोटीन गेहूं व चावल की अपेक्षा कम होती है। विटामिन्स का मक्का में प्राय: अभाव ही होता है। केवल मक्का ही खाने से पेलैग्रा नामक रोग हो जाता है।
(iv) जौ:
जौ अथवा बारले गेहूं की अपेक्षा हल्का अनाज है। इसमें प्रोटीन व लवण की मात्रा अधिक होती है। यह भूख बढ़ाने वाला तथा शीतल प्रभाव का अनाज है। इसमें कार्बोहाइड्रेट्स 69.3%, प्रोटीन 11.5%, वसा 1.3% तथा लवण 3% होते हैं।
(v) ज्वार एवं बाजरा:
इसमें प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट्स प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। विटामिन ‘बी’ इनमें गेहूं के समान होता है, परन्तु खनिज लवण की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।
(ख) दालें
मूंग, अरहर, उड़द, मसूर, मटर, चना, राजमा तथा लोबिया आदि हमारे देश की प्रमुख दालें हैं। शाकाहारी व्यक्तियों के लिए दालें व दूध ही प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोत हैं। विभिन्न दालों में 57-60% कार्बोज तथा प्रोटीन 22-25% तक पाई जाती है। सोयाबीन में प्रोटीन की प्रतिशत मात्रा सबसे अधिक लगभग 43% होती है। दालों में नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ, लोहा व फॉस्फोरस भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। भीगी हुई अंकुरित दालों का प्रयोग करने पर उनसे विटामिन ‘ए’, ‘बी’ व ‘सी’ भी प्राप्त किए जा सकते हैं। अतः दालें प्रायः सभी व्यक्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी आहार हैं।
(ग) मेवे
मेवों में प्रोटीन, वसाएँ तथा कार्बोहाइड्रेट्स काफी मात्रा में मिलते हैं। अनेक मेवों; जैसे बादाम में प्रोटीन की अत्यधिक मात्रा होती है, जबकि शर्कराओं की अधिक मात्रा किशमिश, छुआरा, मुनक्का आदि मेवों में अधिक है। मेवे में खनिज पदार्थों की भी काफी मात्रा होती है। इस प्रकार मेवे अत्यन्त पौष्टिक पदार्थ हैं।
(घ) सब्जी व फल
सब्जियाँ–सब्जियाँ प्राय: दो प्रकार की होती हैं
(i) मूल एवं कन्द:
जैसे-आलू, गाजर, चुकन्दर, मूली, शलजम, प्याज, लहसुन तथा अरवी इत्यादि। इनमें कार्बोज की मात्रा अधिक होती है।
(ii) हरी शाक-सब्जियाँ:
जैसे- गोभी, भिण्डी, बैंगन, मेथी, पालक, लोकी, तोरई, टिण्डे, टमाटर व नींबू इत्यादि। इनमें कार्बोज की मात्रा कम होती है; परन्तु खनिज लवण तथा विटामिन ‘ए’, ‘बी’ एवं ‘सी’ प्रचुर मात्रा में होते हैं। विटामिन हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते हैं, इसलिए हरी शाक-सब्जियों को सुरक्षात्मक भोजन कहते हैं। कुछ प्रमुख सब्जियों में विभिन्न तत्त्व निम्न प्रकार से पाए जाते हैं।
फल:
कुछ फलों (केला, अंगूर, सेब, आम, अंजीर आदि) से हमें शक्तिवर्द्धक शर्करा (ग्लूकोस) प्राप्त होती है। इन्हें भोज्यफल कहते हैं। कुछ फलों (सन्तरा, मौसमी, नींबू आदि) के रस में विटामिन ‘ए, ‘बी’ व ‘सी’ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। इन रोग-प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करने वाले फलों को सुरस फल कहते हैं। कुछ प्रमुख फलों में पोषक तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा निम्नलिखित है
(ङ) मांस:
सामान्यत: भेड़, बकरी, सूअर, हिरन, खरगोश व मुर्गा आदि का मांस उत्तम श्रेणी का माना जाता है।
मांस के प्रमुख पोषक तत्त्व:
मांस में प्रायः 18% प्रोटीन, 20% वसा तथा 60% जल होता है। मांस की प्रोटीन अधिक सुपाच्य तथा उत्तम श्रेणी की होती है। यकृत एवं गुर्दी में न्यूक्लिया प्रोटीन तथा सफेद ऊतकों में, कोलेटन व एलेस्जिन नामक प्रोटीन पाई जाती है। वसा अधिक मात्रा में होने के कारण मांस ऊर्जा-प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम भोजन है। मांस में विटामिन ‘ए’, ‘बी’ व ‘डी’ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। मास में पाए जाने वाले लवणों में फॉस्फोरस व लोहा प्रमुख हैं। इस प्रकार मास एक पौष्टिक भोजन है।
अच्छे मांस की विशेषताएँ
- गुलाबी अथवा हल्के लाल रंग का मांस अच्छा होता है।
- अच्छा मांस छूने पर सख्त एवं लचीला होता है।
- अच्छे मांस की वसा पूर्णरूप से सफेद व सख्त होती है।
- अच्छा मांस पकाने पर संकुचित नहीं होता है।
- यह पानी में गीला नहीं होता।
- मांस सदैव ताजा ही उपयोग में लाना चाहिए।
- कभी भी बीमार पशु-पक्षी का मांस नहीं खाना चाहिए।
- मांस को अच्छी प्रकार से उच्च ताप पर पकाकर ही खाना चाहिए। इससे रोगाणुओं के संक्रमण की आशंका नहीं रहती।
प्रश्न 9:
दूध को ‘सम्पूर्ण आहार’ क्यों माना जाता है? इसके प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
या
‘दूध एक पूर्ण आहार है। इसे सिद्ध कीजिए।
या
सिद्ध कीजिए कि दूध एक उपयोगी एवं पौष्टिक पेय पदार्थ है।
या
दूध से बनाए जाने वाले कुछ मुख्य खाद्य पदार्थों के नाम लिखिए।
या
दूध एक सम्पूर्ण आहार क्यों कहलाता है?
उत्तर:
दूध को एक ऐसा आहार माना जाता है जो प्रायः सभी पोषक तत्वों से परिपूर्ण है। इसमें अन्य सभी खाद्य पदार्थों की अपेक्षा अधिक पोषक तत्त्व उपस्थित रहते हैं। बच्चे के जन्म के समय से ही जीव का प्रमुखं आहार दूध होता है। वह अपने शरीर की वृद्धि के लिए माता के दूध पर पूर्णरूप से निर्भर रहता है। जब वह बड़ा हो जाता है तो उसे गाय, भैंस, बकरी इत्यादि का दूध पिलाया जाता है। आहार सम्बन्धी सभी आवश्यक तत्त्व; जैसे—प्रोटीन, खनिज-लवण इत्यादि दूध में उपस्थित रहते हैं। दूध में प्रोटीन केसीन तथा लैक्टा एल्ब्यूमिन के रूप में पाई जाती है, जिसे प्राप्त करके एक स्वस्थ मनुष्य अपने शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
प्राप्ति स्रोत:
दूध एक महत्त्वपूर्ण पशु प्रदत्त भोज्य पदार्थ है। दूध हमें सामान्यतः गाय, भैंस व बकरी से प्राप्त होता है। हमारे देश में गाय का दूध अधिक सुपाच्य एवं उत्तम माना जाता है।
दूध से बनने वाले पदार्थ:
दूध को उसके प्राकृतिक रूप में प्रयोग क़िए जाने के अतिरिक्त उससे अनेक पदार्थ बनाए जाते हैं। इनका अपना अलग-अलग उपयोग एवं महत्त्व है। दूध से बनने वाले विभिन्न पदार्थ निम्नलिखित हैं
(1) स्किम्ड अथवा सप्रेटा दूध:
यन्त्र द्वारा दूध से क्रीम (वसा) अलग कर देने के पश्चात् स्किम्ड दूध शेष बचता है।
(2) कन्डेन्स्ड दूध:
यन्त्रों की सहायता से दूध का लगभग 2/3 जलांश दूर करके कन्डेन्स्ड दूध बनाया जाता है।
(3) शुष्क दूध:
यान्त्रिक विधि से दूध को पूर्णत: जलरहित कर उसका शुष्क पाउडर बना लिया जाता है।
(4) दही:
दूध से निर्मित एक मुख्य खाद्य पदार्थ ‘दही है। यदि दूध में लैक्टिक अम्ल का समावेश हो जाए, तो उसमें विद्यमान प्रोटीन जम जाती है तथा दूध दही के रूप में परिवर्तित हो जाता है। हाँडी में दही जमाने के लिए सामान्य तापक्रम वाले दूध में जामन लगाई जाती है। इस जामन में लैक्टिक अम्ल तथा लैक्टोबेसीलाई बैक्टीरिया होते हैं जिनके प्रभाव से दूध में विद्यमान लैक्टोस लैक्टिक एसिड के रूप में बदल जाता है तथा दूध की कैनीन नामक प्रोटीन जम जाती है। दही दूध की अपेक्षा सुपाच्य होता है।
(5) मलाई एवं क्रीम:
उबले हुए दूध को ठण्डा करने पर इसकी सतह पर चिकनाईयुक्त मलाई जम जाती है। यान्त्रिक विधि द्वारा दूध को मथकर उससे क्रीम निकाली जाती है।
(6) मक्खन:
दही को मथने पर इसका हल्का भाग मक्खन के रूप में ऊपर तैरने लगता है। इसे ठण्डा करने पर यह जमकर ठोस मक्खन बन जाता है। मक्खन में वसा की मात्रा अत्यधिक होती है। सामान्य रूप से मक्खन में 85% भाग वसा ही होती है।
(7) छाछ अथवा मट्ठा:
मक्खन अलग हो जाने पर शेष दही छाछ अथवा मट्ठा कहलाती है।
(8) घी:
मक्खन को गर्म करके जलांश का वाष्पीकरण करने पर घी शेष बचता है। यह पूर्णरूप से वसा है। घी को बहुत समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है, क्योंकि इसमें जल की बिल्कुल भी मात्रा नहीं होती।
(9) पनीर:
दूध को दही, नींबू अथवा टाटरी से फाड़कर बारीक कपड़े में छानने पर इसका जलांश छन जाता है तथा पनीर शेष बचता है। वास्तव में दूध के फटने के साथ-साथ दूध में विद्यमान प्रोटीन थक्कों के रूप में जम जाती है तथा शेष भाग पानी के रूप में अलग हो जाता है। पनीर में मुख्य रूप से केसीन नामक प्रोटीन होता है।
(10) खोया अथवा मावा:
दूध को धीमी आँच पर वाष्पीकृत किया जाता है। अन्त में सम्पूर्ण जलांश दूर होने पर खोया शेष बचता है। खोया या मावा से विभिन्न मिठाइयाँ तथा अन्य व्यंजन बनाए जाते हैं। मावा एक गरिष्ठ खाद्य पदार्थ है। इसका पाचन मुश्किल से होता है।
दूध के पौष्टिक तत्त्व एवं उनका महत्त्व
- दूध में लगभग 3.5% प्रोटीन होती है, जिसे केसीनोजन कहते हैं। दूध में (विशेषत: माता के दूध में) एक और महत्त्वपूर्ण प्रोटीन (लेक्टो-एल्ब्यूमिन) पाई जाती है। अत: प्रोटीनयुक्त दूध शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
- दूध में 3.5-4% वसा घुलनशील रूप में उपस्थित होती है। यह अधिक सुपाच्य होती है तथा शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
- दूध में कैल्सियम, पोटैशियम तथा फॉस्फोरस आदि तत्त्व पाए जाते हैं। आंशिक रूप से दूध में मैग्नीशियम, सोडियम तथा आयोडीन भी पाए जाते हैं। इनसे अस्थियाँ एवं स्नायु सुदृढ़ होते हैं तथा रक्त का संगठन ठीक बना रहता है।
- दूध में आंशिक रूप से लगभग सभी विटामिन पाए जाते हैं। दूध में विटामिन ‘ए’ एवं ‘डी’ अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इनके कारण दूध नेत्रों के लिए अति उपयोगी रहता है। दूध पीने वाले बच्चों को सूखा रोग एवं पुरुषों तथा महिलाओं को रतौंधी का भय नहीं रहता।
- दूध में 4-6% तक कार्बोज होता है। यह लैक्टोस अथवा दुग्ध-शर्करा के रूप में पाया जाता है। यह शरीर को स्वाभाविक ऊर्जा प्रदान करता है।
- उपयुक्त मात्रा में जल होने के कारण दूध सुपाच्य होता है।
- विभिन्न स्रोतों से प्राप्त दूध में पौष्टिक तत्वों की प्रतिशत मात्रा निम्न प्रकार से होती है
उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि दूध में लगभग सभी पौष्टिक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं, जिसके फलस्वरूप दूध शरीर की लगभग सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है। अतः स्पष्ट है। कि दूध प्रत्येक दृष्टिकोण से एक सम्पूर्ण आहार है। दूध सभी वर्गों के व्यक्तियों के लिए उपयोगी आहार है। शैशवावस्था में तो दूध ही एकमात्र आहार होता है। नवजात शिशु के लिए माता का दूध ही एकमात्र आहार है। बाल्यावस्था में शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए दूध का विशेष महत्त्व स्वीकार किया गया है। किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था में भी दूध का विशेष महत्त्व होता है। दूध एक सम्पूर्ण आहार है, यह सुपाच्य है तथा साथ-ही-साथ स्वादिष्ट भी होता है। दूध का उपयोग अनेक प्रकार से किया जा सकता है।
प्रश्न 10:
विभिन्न दालों का संगठन, वर्गीकरण और कार्य लिखिए।
उत्तर:
सामान्यतः उपयोग में आने वाली दालों में पाए जाने वाले आवश्यक पोषक पदार्थों के लिए अग्रांकित सारणी का अवलोकन करें
दालों के कार्य
- दालें शाकाहारियों के लिए प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। अतः ये शरीर के स्वास्थ्य एवं समुचित विकास तथा आवश्यक ऊर्जा एवं पाचक रसों के निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं।
- दालों से प्रचुर मात्रा में कार्बोज की प्राप्ति होती है।
- दालों से कई आवश्यक खनिज लवण मिलते हैं जो कि स्वस्थ शरीर के लिए बहुत आवश्यक हैं।
- भीगी हुई अंकुरित दालों से विटामिन ‘ए’, ‘बी’ व ‘सी’ प्राप्त होते हैं।
- मूंगफली से 40.1% तथा सोयाबीन से 19.5% खाद्य तेल प्राप्त होता है। इस प्रकार दालों से दैनिक जीवन के लिए आवश्यक खाद्य तेल भी प्राप्त होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
घर में अनाजों की सुरक्षा आप कैसे करेंगी?
उत्तर:
अधिकांश घर-परिवारों में सुविधा एवं बचत के दृष्टिकोण से पूरे वर्ष के व्यय के अनुसार फसल आने के समय अनाज क्रय कर लिया जाता है। अनाज को कीड़ों से सुरक्षित रखने के लिए कुछ उपाय किए जाते हैं। इनमें पारे की गोलियाँ डालना, नीम की सूखी पत्तियाँ रखना, सल्फास की गोलियों को कपड़े में बाँधकर डालना इत्यादि कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय हैं। इस प्रकार अनाज कीड़ों से सुरक्षित रहता है तथा इसे प्रयोग करने में स्वास्थ्य भी कुप्रभावित नहीं होता।
प्रश्न 2:
सब्जियों को रक्षात्मक पदार्थ क्यों कहा जाता है?
या
हरी सब्जियों को खाने के चार लाभ बताइए।
उत्तर:
हरी सब्जियाँ रक्षात्मक भोजन हैं, क्योंकि ये विभिन्न खनिज लवणों तथा विटामिनों की उत्तम स्रोत हैं।
हरी सब्जियों के सेवन से लाभ
- हरी सब्जियाँ सस्ती होने पर भी स्वास्थ्य के लिए गुणकारी हैं।
- इनका रंग एवं स्वाद भोजन को रुचिपूर्ण बनाता है।
- इनका सेवन पाचन क्रिया को उत्प्रेरित करता है।
- इनमें पाए जाने वाले खनिज तत्त्व; जैसे लोहा, फॉस्फोरस तथा विटामिन्स आदि हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते हैं।
- सब्जियों में रेशे की मात्रा अधिक होती है; अतः इनके सेवन से सामान्य रूप से कब्ज की शिकायत नहीं होती।
प्रश्न 3:
टिप्पणी लिखिए-वसा और तेल-बीज।
उत्तर:
यदि हम अपने सम्पूर्ण आहार का विश्लेषण करें तो स्पष्ट हो जाएगा कि हमारे आहार में वसा तथा तेल-बीजों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। तेल-बीजों की प्राप्ति का स्रोत वनस्पति जगत् ही है। तेल प्राप्ति के मुख्य स्रोत हैं—सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन, सूरजमुखी, बिनौला, नारियल तथा अरण्डी आदि। इन विभिन्न पौधों के बीजों से प्राप्त होने वाले तेल मुख्य रूप से वसी ही होते हैं। इन तेलों में वसा के अतिरिक्त कुछ अन्य पोषक तत्त्व भी न्यूनाधिक मात्रा में पाए जाते हैं। हम अपने आहार में तेल-बीजों से प्राप्त होने वाले वसी रूपी तेलों को अनेक प्रकार से सम्मिलित करते हैं। अधिकांश व्यंजन तैयार करने के लिए तेलों को ही माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। तेलों के समावेश से आहार अधिक स्वादिष्ट भी बन जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना भी आवश्यक है कि तेलों के अधिक समावेश से हमारा आहार गरिष्ठ बन जाता है। इस प्रकार का आहार देर से तथा मुश्किल से पचता है, अतः कमजोर पाचन-शक्ति वाले व्यक्तियों को अधिक वसायुक्त तथा तले हुए भोज्य पदार्थों का केवल सीमित मात्रा में ही सेवन करना चाहिए। वसा एवं तेल-बीजों का अधिक सेवन उचित नहीं माना जाता।
प्रश्न 4:
गर्भवती स्त्री के लिए दूध क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
दूध में प्रोटीन, वसा, कार्बोज एवं लवण पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। दूध में विटामिन ‘ए’ एवं ‘डी’ आधिक्य में पाए जाते हैं, जिससे दूध नेत्रों के लिए अधिक उपयोगी रहता है। इससे बच्चों को सूखा रोग तथा पुरुष एवं महिलाओं को रतौंधी का भय नहीं रहता। दूध एक सम्पूर्ण, सन्तुलित एवं सुपाच्य आहार है। अतः गर्भवती स्त्री को स्वयं के एवं होने वाली सन्तान के स्वास्थ्य के लिए दूध का सेवन करना आवश्यक है।
प्रश्न 5:
अण्डे के पोषक तत्त्व बताइए। या अण्डे में मुख्य पौष्टिक तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
अण्डे में मुख्य पौष्टिक तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा निम्न प्रकार से होती है
प्रोटीन 13.50%
वसा 13.70%
खनिज लवण 1.10%
कार्बोज 0.70%
जल 74. 40%
विटामिन ‘ए’ व ‘डी’ पर्याप्त मात्रा में
प्रश्न 6:
मछली के भोजन में कौन-कौन से प्रमुख तत्त्व पाए जाते हैं?
उत्तर:
मछलियों में विभिन्न पौष्टिक तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा निम्न प्रकार से होती है
प्रश्न 7:
विटामिन ‘ए’ की कमी से कौन-कौन से रोग होते हैं?
या
विटामिन ‘ए’ की कमी से होने वाले तीन रोगों के नाम बताइए।
उत्तर:
विटामिन ‘ए’ की कमी से होने वाले रोग हैं
- नेत्र रोग जैसे कि रतौंधी।
- शारीरिक वृद्धि में गतिरोध।
- त्वचा के रोग जैसे कि त्वचा का शुष्क होना अथवा शल्कीभवन।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
आहार से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
वह ठोस या तरल सामग्री आहार कहलाती है, जिसे ग्रहण करने से भूख मिटती है, शरीर शक्ति प्राप्त करता है, शरीर की वृद्धि एवं विकास होता है, शरीर के अन्दर होने वाली टूट-फूट की मरम्मत होती है तथा रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है।
प्रश्न 2:
वनस्पति जगत से प्राप्त होने वाले प्रमुख खाद्य-पदार्थ कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वनस्पति जगत से प्राप्त होने वाले प्रमुख खाद्य-पदार्थ हैं-अनाज, दालें, संब्जियाँ तथा फल।
प्रश्न 3:
प्राणी जगत से प्राप्त होने वाले प्रमुख खाद्य-पदार्थ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
प्राणी जगत से प्राप्त होने वाले प्रमुख खाद्य-पदार्थ हैं दूध, मांस तथा अण्डे।
प्रश्न 4:
आहार के आवश्यक पोषक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आहार के आवश्यक पोषक तत्त्व हैं—प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, विटामिन, खनिज तथा जल।
प्रश्न 5:
ऐसे तीन फलों के नाम लिखिए जिनमें विटामिन ‘सी’ पाया जाता है।
उत्तर:
- सन्तरा,
- मौसमी,
- नींबू।
प्रश्न 6:
दालों का आहार में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
दालों में प्रोटीन अधिक होती है; अतः शाकाहारी व्यक्तियों के लिए ये अति महत्त्वपूर्ण आहार है।
प्रश्न 7:
सोयाबीन स्वास्थ्य के लिए क्यों उपयोगी है?
उत्तर:
सोयाबीन में प्रोटीन की मात्रा सर्वाधिक होती है; अतः इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए अति उपयोगी है।
प्रश्न 8:
स्कर्वी रोग किस विटामिन की कमी से होता है? या विटामिन ‘सी’ की कमी से कौन-सा रोग होता है?
उत्तर:
शरीर में विटामिन ‘सी’ की कमी से स्कर्वी नामक रोग हो जाता है।
प्रश्न 9:
सोयाबीन में कौन-सा तत्त्व प्रमुख रूप से पाया जाता है?
उत्तर:
सोयाबीन में प्रोटीन तत्त्व 43.5% पाया जाता है।
प्रश्न 10:
कार्बोज का क्या संगठन है?
उत्तर:
ये कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से निर्मित यौगिक होते हैं, जिनमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन सदैव 2 : 1 में होते हैं।
प्रश्न 11:
कार्बोहाइड्रेट का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर:
कार्बोहाइड्रेट का मुख्य कार्य शरीर को ऊर्जा प्रदान करना है।
प्रश्न 12:
शरीर में वसा के मुख्य कार्य क्या हैं?
उत्तर:
वसा शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है, सुरक्षा प्रदान करती है, ताप का नियमन करती है तथा शरीर को सुडौल बनाती है।
प्रश्न 13:
वसा की अधिकता से क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
वसा की अधिकता से व्यक्ति मोटापे अथवा ओबेसिटी का शिकार हो जाता है।
प्रश्न 14:
दूध में कौन-कौन से विटामिन पाए जाते हैं?
उत्तर:
दूध में विटामिन ‘ए’ एवं ‘डी’ पाए जाते हैं।
प्रश्न 15:
दूध में किस विटामिन का प्रायः अभाव ही होता है ?
उत्तर:
दूध में विटामिन ‘सी’ का प्रायः अभाव ही होता है।
प्रश्न 16:
फलों का आहार में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
फलों से हमें शक्तिवर्द्धक शर्करा (ग्लूकोस) तथा रोग-प्रतिरोधक विटामिन ‘ए’, ‘बी’ व ‘सी’ तथा विभिन्न खनिज लवण प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 17:
रोग-प्रतिरोधक विटामिन का नाम बताइए।
उत्तर:
विटामिन ‘ए’, ‘बी’ व ‘सी’ हमें रोग-प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करते हैं।
प्रश्न 18:
किस विटामिन की कमी होने पर मनुष्य रतौंध से ग्रस्त होता है?
उत्तर:
विटामिन ‘ए’ की कमी होने पर मनुष्य रतौंधी से ग्रस्त हो जाता है।
प्रश्न 19:
विटामिन ‘बी’ की कमी से कौन-सा रोग होता है?
उत्तर:
विटामिन ‘बी’ की कमी से बेरी-बेरी नामक रोग हो जाता है।
प्रश्न 20:
विटामिन डी की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है?
उत्तर:
विटामिन डी की कमी से ‘रिकेट्स’ या ‘अस्थि-विकृति’ नामक रोग हो जाता है।
प्रश्न 21:
विटामिन ‘डी’ को आहार के अतिरिक्त किस स्रोत से भी प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
विटामिन ‘डी’ को आहार के अतिरिक्त सूर्य के प्रकाश के प्रभाव से भी शरीर द्वारा विकसित किया जा सकता है।
प्रश्न 22:
प्रोटीन का क्या कार्य है?
उत्तर:
शरीर के तन्तुओं, नाड़ियों तथा आन्तरिक अंगों का निर्माण एवं उनकी टूटे-फूट की क्षतिपूर्ति करना प्रोटीन का मुख्य कार्य है।
प्रश्न 23:
प्रोटीन की कमी से बच्चों में कौन-से रोग हो जाते हैं?
उत्तर:
प्रोटीन की कमी से बच्चों में क्वॉशरकार तथा मरास्मस नामक रोग हो जाते हैं।
प्रश्न 24:
हरी पत्ते वाली सब्जियों में कौन-से पोषक तत्त्व मिलते हैं?
उत्तर:
हरी पत्ते वाली सब्जियों में विटामिन (विशेष रूप से ‘सी’) व खनिज लवण भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।
प्रश्न 25:
आयोडीन की कमी से शरीर में क्या हानि होती है?
उत्तर:
आयोडीन की कमी से
- बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास रूक जाता है,
- गले में थायरॉइड ग्रन्थि के बढ़ जाने के कारण गलगण्ड अथवा घेघा नामक रोग हो जाता है।
प्रश्न 26:
दूध को सम्पूर्ण आहार क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
हमारे आहार के लगभग सभी आवश्यक पोषक तत्त्व दूध में समुचित मात्रा तथा अनुपात में विद्यमान होते हैं, अतः इस तथ्य के आधार पर दूध को सम्पूर्ण आहार माना जाता है।
प्रश्न 27:
बच्चों के लिए दूध क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
दूध बच्चों के लिए सुपाच्य आहार होता है तथा उनकी स्वाभाविक वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है, अत: बच्चों के लिए दूध आवश्यक माना जाता है।
प्रश्न 28:
उत्तेजक पेय पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
चाय, कॉफी तथा कोको सामान्य उत्तेजक पेय पदार्थ हैं।
प्रश्न 29:
चाय का अधिक प्रयोग क्यों हानिकारक है?
उत्तर:
चाय के अधिक प्रयोग से हमारी भूख पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, नींद घटती है तथा पेट में गैस एवं जलन की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इन्हीं कारणों से चाय का अधिक प्रयोग हानिकारक माना जाता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न में चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए
(1) विटामिन ‘सी’ की कमी से कौन-सा रोग होता है?
(क) जुकाम,
(ख) स्कर्वी,
(ग) रिकेट्स,
(घ) बेरी-बेरी।
(2) विटामिन ‘ए’ अधिक पाया जाता है
(क) पालक के साग में,
(ख) कहूं में,
(ग) मूली में,
(घ) प्याज में।
(3) आयोडीन लवण की कमी से कौन-सा रोग होता है?
(क) घेघा रोग,
(ख) टिटेनस,
(ग) मलेरिया,
(घ) स्कर्वी।
(4) जल में घुलनशील विटामिन कौन-सा है?
(क) ‘ए’,
(ख) ‘बी’,
(ग) ‘ई’,
(घ) ‘डी’।
(5) अण्डे में भोजन के किस तत्त्व का अभाव होता है?
(क) वसा,
(ख) कार्बोज,
(ग) प्रोटीन,
(घ) विटामिन।
(6) अनाज के अंकुर में कौन-सा तत्त्वे रहता है?
(क) खनिज लवण,
(ख) विटामिन,
(ग) वसा,
(घ) प्रोटीन।
(7) शाक-भाजी किन भोज्य पदार्थों की श्रेणी में आते हैं?
(क) रक्षात्मक,
(ख) शक्तिदायक,
(ग) वृद्धिकारक,
(घ) स्वादिष्ट।
(8) भोजन में ऊर्जा का मुख्य साधन क्या है?
(क) कार्बोज,
(ख) खनिज लवण,
(ग) वसा,
(घ) प्रोटीन।
(9) इनमें से कौन-सा आहार सम्पूर्ण है?
(क) फल,
(ख) दूध,
(ग) दही,
(घ) मांस।
(10) सोयाबीन में सबसे अधिक क्या पाया जाता है?
(क) शक्तिवर्द्धक तत्त्व,
(ख) प्रोटीन,
(ग) कार्बोज,
(घ) विटामिन।
(11) विटामिन ‘डी’ की कमी से कौन-सा रोग होता है?
(क) जुकाम,
(ख) स्कर्वी,
(ग) रिकेट्स,
(घ) बेरी-बेरी।
(12) खट्टे रसदार फलों में कौन-सा विटामिनं पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
(क) विटामिन ‘ए’,
(ख) विटामिन ‘बी’,
(ग) विटामिन सी,
(घ) विटामिन ‘डी’।
(13) विटामिन बी, की कमी से कौन-सा रोग होता है?
(क) घेघा,
(ख) रिकेट्स,
(ग) बेरी-बेरी,
(घ) स्कर्वी।
(14) विटामिन ‘डी’ किसमें पाया जाता है?
(क) फलों में,
(ख) हरी सब्जियों में,
(ग) अल्ट्रावायलेट रेज में,
(घ) मसालों में।
उत्तर:
(1) (ख) स्कर्वी,
(2) (ग) मूली में,
(3) (क) घेघा रोग,
(4) (ख) बी,
(5) (ख) कार्बोज,
(6) (ख) विटामिन,
(7) (क) रक्षात्मक,
(8) (क) कार्बोज,
(9) (ख) दूध,
(10) (ख) प्रोटीन,
(11) (ग) रिकेट्स,
(12) (ग) विटामिन ‘सी’,
(13) (ग) बेरी-बेरी,
(14) (ग) अल्ट्रावायलेट रेज में।
We hope the UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 13 खाद्य पदार्थों का संगठन, वर्गीकरण और उनके कार्य help you.