UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
सन्तुलित आहार (balanced food) से आप क्या समझती हैं? विस्तृत स्पष्टीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
प्राणीमात्र के जीवित रहने के लिए वायु के बाद सर्वाधिक आवश्यक वस्तु भोजन या आहार है। आहार का हमारे जीवन में बहुपक्षीय महत्त्व है। आहार की आवश्यकता एक नैसर्गिक आवश्यकता है; जिसको आभास भूख लगने से होता है। सामान्य रूप से समझा जाता है कि आहार का केवल यही एक कार्य है। वास्तव में इसके अतिरिक्त भी अन्य विभिन्न कार्य आहार द्वारा सम्पन्न होते हैं। स्वास्थ्य विज्ञान एवं आहार-शास्त्र के विस्तृत अध्ययनों के परिणामस्वरूप निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि आहार के सभी कार्यों को पूरा करने के लिए तथा शरीर की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आहार को सन्तुलित (balanced) होना चाहिए।
सन्तुलित आहार का अर्थ
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि जिस आहार द्वारा शरीर की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताएँ पूर्ण हो जाएँ, वह आहार सन्तुलित आहार है।” अब प्रश्न उठता है कि शरीर को आहार की आवश्यकता क्यों और किसलिए होती है? वास्तव में शरीर की वृद्धि, तन्तुओं के निर्माण तथा टूट-फूट की मरम्मत आदि शारीरिक कार्यों हेतु आवश्यक ऊर्जा प्राप्त करने तथा रोगों से बचने के लिए हमें आहार की आवश्यकता होती है। अतः जो आहार इन सब आवश्यकताओं को सन्तुलित रूप से पूरा करता है, वह आहार सन्तुलित आहार (balanced food) कहलाता है। शरीर-विज्ञान के अनुसार हमारे आहार में कार्बोज़, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण तथा जल की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। इन्हें आहार का अनिवार्य तत्त्व कहा जाता है। सन्तुलित आहार में आहार के ये अनिवार्य तत्त्व पर्याप्त मात्रा एवं सही अनुपात में होते हैं।
सन्तुलित आहार सम्बन्धी स्पष्टीकरण
सन्तुलित आहार का अर्थ जानने के उपरान्त इसके विषय में कुछ प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जैसे कि-क्या भरपेट आहार ही सन्तुलित आहार है? क्या सन्तुलित आहार काफी महँगा होता है? क्या स्वादिष्ट आहार सन्तुलित होता है? क्या ऊर्जादायक एवं वृद्धिकारक आहार ही सन्तुलित होता है? इन प्रश्नों का समुचित स्पष्टीकरण निम्नवर्णित है ।
(1) क्या भरपेट आहार सन्तुलित आहार है?
सामान्य रूप से गरीब देशों में लोगों के सामने भरपेट आहार प्राप्त करने की विकट समस्या रहा करती है। ऐसी स्थिति में यदि व्यक्ति को भरपेट आहार मिल जाए, तो वह सन्तुष्ट हो जाएगा तथा भ्रमवश अपने आहार को सन्तुलित आहार समझने लगेगा, परन्तु वास्तव में यह अनिवार्य नहीं है कि भरपेट या मात्रा में अधिक आहार सन्तुलित भी हो। यदि आहार में अनिवार्य तत्त्व, उचित मात्रा तथा उचित अनुपात में नहीं होते, तो कितनी भी अधिक मात्रा में आहार ग्रहण कर लेने से आहार सन्तुलित आहार नहीं कहला सकता; ऐसा आहार पेट भर सकता है अर्थात् भूख को शान्त कर सकता है, परन्तु अनिवार्य रूप से स्वास्थ्यवर्द्धक एवं शक्तिदायक नहीं हो सकता; उदाहरण के लिए–पर्याप्त मात्रा में चावल तथा मीट खा लेने से पेट तो भर जाएगा, परन्तु शरीर की अन्य आवश्यकताएँ जैसे कि विटामिन, लवण आदि का तो अभाव बना ही रहेगा। साथ ही यह भी सम्भव है कि शरीर में विभिन्न रोग पैदा हो जाए। सन्तुलित आहार सदैव स्वास्थ्यवर्द्धक तथा शरीर को नीरोग रखने में सहायक होता है।
(2) क्या महँगा आहार सन्तुलित आहार है?
भ्रमवश अनेक लोग महँगे एवं दुर्लभ आहार को अच्छा, सन्तुलित एवं उपयोगी आहार मान लेते हैं। परन्तु वास्तव में आहार की कीमत तथा उसके गुणों और उपयोगिता में कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। महँगे से महँगा आहार भी असन्तुलित आहार हो सकता है, यदि उसमें आहार के अनिवार्य तत्त्व सही मात्रा एवं अनुपात में न हों। इसके विपरीत सस्ते से सस्ता आहार भी सन्तुलित आहार हो सकता है, यदि उसमें सभी आवश्यक तत्त्व अभीष्ट मात्रा में उपस्थित हों; उदाहरण के लिए—हमारे देश में मेवे एवं मीट महँगे खाद्य-पदार्थ हैं, परन्तु यदि हमारे आहार में केवल इन्हीं पदार्थों को ही ग्रहण किया जाए और शाक-सब्जियों, ताजे फलों, अनाज, दूध आदि की अवहेलना की जाए, तो हमारा आहार अधिक महँगा होने पर भी सन्तुलित आहार की श्रेणी में नहीं आ सकता। इस तथ्य को जान लेने के उपरान्त यह समझ लेना चाहिए कि कम आय एवं सीमित आर्थिक साधनों वाले व्यक्ति भी सन्तुलित आहार ग्रहण कर सकते हैं। सन्तुलित आहार प्राप्त करने के लिए सन्तुलित आहार के अनिवार्य तत्त्वों एवं उसके संगठन को जानना आवश्यक है, न कि अधिक धन व्यय करने की आवश्यकता है। गरीब व्यक्ति भी सन्तुलित आहार ग्रहण कर सकता है।
(3) क्या स्वादिष्ट आहार सन्तुलित आहार है?
आहार का एक उद्देश्य विभिन्न वस्तुओं का स्वाद ग्रहण करके आनन्द प्राप्त करना भी है। कुछ खाद्य-पदार्थ अपने आप में काफी स्वादिष्ट एवं रुचिकर होते हैं। कुछ व्यक्ति इन स्वादिष्ट पदार्थों को अधिक-से-अधिक मात्रा में खाना चाहते हैं। ऐसे व्यक्ति भ्रमवश स्वादिष्ट आहार को ही सन्तुलित आहार मान सकते हैं, परन्तु यह धारणा बिल्कुल गलत है। यह उचित है कि हमारे आहार को स्वादिष्ट भी होना चाहिए, परन्तु स्वादिष्ट आहार तथा सन्तुलित आहार में कोई प्रत्यक्ष एवं अनिवार्य सम्बन्ध नहीं है। स्वादिष्ट आहार के लिए अनिवार्य रूप से सन्तुलित होना आवश्यक नहीं तथा इसके विपरीत यह भी आवश्यक नहीं है कि सन्तुलित आहार अस्वादिष्ट ही हो; उदाहरण के लिए—कुछ लड़कियों को चटपटे तथा मसालेदार व्यंजन बहुत रुचिकर प्रतीत होते हैं, परन्तु इन व्यंजनों को सन्तुलित आहार की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता।
(4) क्या वृद्धिकारक आहार सन्तुलित आहार है?
शारीरिक वृद्धि के लिए भी आहार ग्रहण किया जाता है। हमारे आहार में कुछ तत्त्व ऐसे होते हैं। जो शरीर की वृद्धि में सहायक होते हैं, परन्तु शरीर की वृद्धि करने वाले आहार को हम सन्तुलित आहार नहीं कह सकते, यदि उसमें अन्य आवश्यक तत्त्वों की कमी या अभाव हो। ऐसे आहार को ग्रहण करने से व्यक्ति के शरीर की तो वृद्धि हो जाती है, परन्तु शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति तथा चुस्ती एवं मानसिक-शक्ति का पर्याप्त विकास नहीं हो पाता तथा व्यक्ति विभिन्न रोगों का शिकार हो जाता है; उदाहरण के लिए केवल प्रोटीनयुक्त खाद्य-सामग्री को ही ग्रहण करने से हमारा शरीर सुचारु रूप से न तो विकसित हो सकता है और न ही कार्य कर सकता है; अतः हम कह सकते हैं कि शारीरिक वृद्धिकारक आहार अपने आप में सन्तुलित आहार नहीं होता। सन्तुलित आहार शरीर की वृद्धि के साथ-साथं अन्य सभी आवश्यकताओं को भी पूरा करने में सहायक होता है।
(5) क्या ऊर्जादायक आहार सन्तुलित आहार है?
हम ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अर्थात् शारीरिक परिश्रम करने के लिए आवश्यक शक्ति प्राप्त करने हेतु भी आहार ग्रहण करते हैं। कुछ खाद्य-पदार्थ शरीर को भरपूर ऊर्जा प्रदान करते हैं, परन्तु इन ऊर्जा प्रदान करने वाले भोज्य पदार्थों को हम सन्तुलित आहार नहीं कह सकते। वास्तव में ऊर्जा प्रदान करने के अतिरिक्त अन्य उद्देश्य भी आहार द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे कि रोगों से लड़ने की क्षमता, शरीर की वृद्धि तथा चुस्ती आदि प्राप्त करना। ये सब बातें ऊर्जादायक आहार से पूरी नहीं हो सकतीं।
स्पष्टीकरण पर आधारित निष्कर्ष
उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि सन्तुलित आहार की धारणा वास्तव में बहुपक्षीय धारणा है। सन्तुलित आहार से विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति होती है। वास्तव में उसी आहार को सन्तुलित आहार कहा जाएगा, जिससे व्यक्ति की आहार या आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताएँ पूरी हो जाएँ। सन्तुलित आहार की मात्रा पर्याप्त होती है, जिससे कि हमारी भूख शान्त हो जाती है। सन्तुलित आहार ऊर्जादायक होती है, ताकि हम पर्याप्त शारीरिक परिश्रम कर सकें तथा हमें थकान या कमजोरी महसूस न हो। सन्तुलित आहार शारीरिक वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है तथा इससे शरीर की कोशिकाओं में होने नरन्तर टूट-फूट की मरम्मत होती रहती है। सन्तुलित आहार हमारे शरीर को सम्भावित रोगों से लड़ने के लिए शक्ति प्रदान करता है तथा व्यक्ति में समुचित उत्साह एवं उल्लास बनाए रखता है। इन सबके अतिरिक्त सन्तुलित आहार शरीर में कुछ अतिरिक्त शक्ति . भी संचित करता है जो कि आपातकाल में काम आती है। सन्तुलित आहार ग्रहण करने वाला व्यक्ति सदैव स्वस्थ एवं नीरोग रहता
प्रश्न 2:
सन्तुलित आहार के निर्धारक कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हम जानते हैं कि सन्तुलित आहार सापेक्ष होता है अर्थात् भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न प्रकार एवं मात्रा वाला आहार सन्तुलित आहार कहलाता है। सन्तुलित आहार के निर्धारक कारक निम्नवर्णित हैं
(1) आयु:
भिन्न-भिन्न आयु वाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार का आहार सन्तुलित आहार माना जाता है। बच्चों के लिए निर्धारित सन्तुलित आहार में वृद्धिकारक पोषक तत्वों का अनुपात अधिक होता है। प्रौढ़ व्यक्तियों के आहार में ऊर्जादायक तथा रख-रखाव में सहायक पोषक तत्वों की अधिकता होनी चाहिए। वृद्ध व्यक्तियों के आहार में सुपाच्य तत्त्वों को प्राथमिकता दी जाती है।
(2) लिंग भेद:
स्त्री तथा पुरुष के आहार में भी अन्तर होता है। पुरुषों को सामान्य रूप से शारीरिक श्रम अधिक करना पड़ता है; अतः इनके आहार में ऊर्जादायक तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है। इसी प्रकार गर्भावस्था तथा स्तनपान के काल में स्त्रियों के लिए निर्धारित सन्तुलित आहार सामान्य से भिन्न होता है।
(3) शारीरिक आकार:
सन्तुलित आहार का निर्धारण करते समय व्यक्ति के शारीरिक आकार को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है। बड़े आकार वाले व्यक्ति को अधिक मात्रा में आहार की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार सामान्य से कम वजन वाले व्यक्ति को वृद्धिकारक पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती है।
(4) जलवायु:
सन्तुलित आहार के निर्धारण में जलवायु का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है। ठण्डी जलवायु में गर्म जलवायु की तुलना में अधिक मात्रा में आहार की आवश्यकता होती है। ठण्डी जलवायु में ऊर्जा एवं ऊष्मादायक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। इससे भिन्न गर्म जलवायु में पसीना अधिक आने के कारण आहार में खनिज लवणों एवं जल की मात्रा सामान्य से अधिक होनी चाहिए, क्योंकि पसीने के माध्यम से खनिज लवणों तथा जल का अधिक विसर्जन हो जाता है।
(5) शारीरिक श्रम:
सन्तुलित आहार का एक निर्धारक कारक शारीरिक श्रम भी है। अधिक शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों के आहार में ऊर्जा एवं ऊष्मादायक तत्त्वों की अधिक मात्रा का समावेश होना चाहिए। इस वर्ग के व्यक्तियों के आहार में कार्बोहाइड्रेट की अधिक मात्रा का समावेश होना चाहिए। इससे भिन्न कम शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों के आहार में ऊर्जादायक तत्त्वों की कम मात्रा का ही समावेश होना चाहिए।
प्रश्न 3:
कुपोषण से आप क्या समझती हैं? इससे बचने के उपाय बताइए। या कुपोषण का क्या अर्थ है? कुपोषण का क्या कारण है एवं स्वास्थ्य पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुपोषण-आहार में सभी अनिवार्य तत्त्व सम्मिलित होने पर भी यदि स्वास्थ्य में निरन्तर गिरावट हो रही हो तो इसे दोषपूर्ण पोषण अथवा कुपोषण कहते हैं। अतः कुपोषण का अर्थ है आहार का दोषपूर्ण उपभोग। उदाहरण के लिए-अरुचिपूर्ण आहार चाहे जितना भी पौष्टिक हो, पर्याप्त लाभकारी नहीं होता। इसी प्रकार अनिच्छापूर्वक व अनियमित रूप से आहार का उपयोग करना लाभप्रद न होकर अस्वस्थता को जन्म दे सकती है। कुपोषण को ठीक प्रकार से समझने के लिए सम्बन्धित कारणों को जानना आवश्यक है।
कुपोषण के कारण
कुपोषण की पृष्ठभूमि में अज्ञानता एवं लापरवाही से आहार के उपभोग करने का महत्त्वपूर्ण योगदान है, जिसे निम्नलिखित कारणों का अध्ययन कर भली प्रकार समझा जा सकता है
(1) कार्य की अधिकता:
अनेक बार हम कार्य अधिक करते हैं, परन्तु आहार कम मात्रा में लेते हैं। जिसके फलस्वरूप आहार के पर्याप्त पौष्टिक होने पर भी शरीर में धीरे-धीरे दुर्बलता आने लगती है।
(2) निद्रा में कमी:
उपयुक्त समय तक न सो पाने पर मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार की थकान रहती है। इस प्रकार के व्यक्ति प्रायः कुपोषण से प्रभावित रहते हैं।
(3) अस्वस्थता:
पाचन-क्रिया ठीक न रहने पर अथवा क्षयरोग से ग्रस्त व्यक्ति कुपोषण का शिकार रहते हैं। इसी प्रकार शारीरिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों पर सन्तुलित आहार का स्वास्थ्यवर्द्धक, प्रभाव नहीं पड़ती। पेट में कीड़े होने की दशा में भी व्यक्ति कुपोषण का शिकार हो जाता है।
(4) घर एवं कार्यस्थल पर उपेक्षा:
घर अथवा कार्य करने के स्थान पर उपेक्षित व्यक्ति मानसिक . हीनता का शिकार रहता है। इस स्थिति में भी कुपोषण के लक्षण विकसित हो सकते हैं।
(5) अनुपयुक्त एवं अनियमित आहार:
आयु, लिंग एवं व्यवसाय की दृष्टि से उपयुक्त आहार उपलब्ध न होने से तथा निश्चित समय पर आहार न करने से पोषण दोषपूर्ण हो जाता है।
(6) गरिष्ठ आहार:
अधिक तला हुआ अथवा कब्ज़ उत्पन्न करने वाला आहार शरीर को वांछित शक्ति प्रदान नहीं करती।
कुपोषण के लक्षण (प्रभाव)
कुपोषण के फलस्वरूप शरीर में निम्नलिखित लक्षण (प्रभाव) दिखाई पड़ सकते हैं
- आहार से अरुचि उत्पन्न हो जाती है।
- शारीरिक भार घट जाता है।
- स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तथा निद्रा कम आती है।
- हर समय थकान अनुभव होती है।
- चेहरा पीला हो जाता है तथा रक्त की कमी हो जाती है।
- शरीर पर चर्बी के अभाव में त्वचा में झुर्रियाँ पड़ जाती हैं।
- पाचन-क्रिया में विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
- मनुष्य हीनता से ग्रसित हो जाता है।
कुपोषण से बचने के उपाय
कुपोषण से बचने के लिए पोषण के दोषपूर्ण तरीकों को दूर करने के उपायों पर विचार करना आवश्यक है। कुपोषण का विलोम शब्द है ‘सुपोषण’ अर्थात् अच्छा पोषण आहार के विभिन्न पोषक तत्त्वों, का उपयुक्त मात्रा में शरीर को उपलब्ध होना तथा उनका सही पाचन सुपोषण कहलाता है। सुपोषण के सामान्य नियमों का पालन करना ही कुपोषण से बचने का एकमात्र विकल्प है। सुपोषण के सामान्य नियमों का विवरण निम्नलिखित है
(1) ताजा एवं सुपाच्य आहार:
सदैव ताजा आहार ही उपयोग में लाना चाहिए, क्योंकि रखे हुए आहार में प्रायः जीवाणुओं एवं फफूद के पनपने की सम्भावना रहती है। आहार पौष्टिक तत्त्वों से युक्त होने के साथ-साथ सुपाच्य भी होना चाहिए। सुपाच्य आहार सरलता से शोषित होकर शरीर को
आवश्यक शक्ति एवं ऊर्जा प्रदान करता है।
(2) परोसने की कला:
आहार उपयुक्त स्थान पर स्वच्छ बर्तनों में परोसना चाहिए; इससे आहार ग्रहण करने वालों में आहार के प्रति आकर्षण एवं रुचि उत्पन्न होती है।
(3) पदार्थों एवं रंगों में परिवर्तन:
विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों (मांस, मछली, दाल, तरकारी आदि) को बदल-बदल कर उपयोग करने से शरीर को आहार के सभी तत्त्व वांछित अनुपात में उपलब्ध होते रहते हैं। रंग-बिरंगे भोज्य पदार्थ अच्छे लगने के साथ-साथ पौष्टिक भी होते हैं। जैसे–सफेद भोज्य पदार्थों में प्राय: कार्बोहाइड्रेट्स, भूरे रंग के पदार्थों में प्रोटीन तथा पीले, नारंगी, लाल व हरे पदार्थो । में विटामिन व खनिज लवण पाए जाते हैं।
(4) आहार को नियमित समय:
प्रात:कालीन नाश्ता, दोपहर का आहार तथा रात्रि का आहार इत्यादि यथासम्भव नियमित रूप से निर्धारित समय पर करना चाहिए। ऐसा करने से आहार स्वादिष्ट लगता है तथा पाचन-क्रिया ठीक रहती है।
(5) जल की मात्रा:
आहार के साथ अधिक जल नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इसमें आहार अधिक पतला हो जाने के कारण पाचन क्रिया कुप्रभावित होती है।
(6) आहार पकाने की विधि:
आहार पकाते समय सही विधियों का प्रयोग करना चाहिए। अधिक पकाने अथवा ठीक प्रकार से न पकाने से आहार के पौष्टिक तत्त्वों के नष्ट होने की सम्भावना रहती है।
आवश्यकता से अधिक मसालों का प्रयोग पाचन क्रिया को क्षीण करता है।
(7) यथायोग्य आहार:
आहार देते समय लेने वालों की आयु, लिंग व व्यवसाय का ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए अधिक परिश्रम करने वाले व्यक्ति को अधिक पौष्टिक आहार मिलना चाहिए।
प्रश्न 4:
मानसिक कार्य करने वाले तथा शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए सन्तुलित आहार में क्या अन्तर होगा? स्पष्ट कीजिए।
या
एक विद्यार्थी, मजदूर तथा एक छोटे बच्चे के आहार में आप किन बातों का विशेष ध्यान रखेंगी?
उत्तर:
बच्चों का आहार:
बाल्यावस्था में शारीरिक वृद्धि तीव्र गति से होती है; अत: बच्चों को सदैव अधिक प्रोटीनयुक्त आहार देना चाहिए। बच्चों के आहार में दूध की मात्रा अधिक होनी चाहिए।
विद्यार्थियों एवं मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों का आहार:
इस वर्ग के व्यक्तियों को अपेक्षाकृत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है; अत: इनके आहार में कार्बोहाइड्रेट्स व वसा की मात्रा कम होनी चाहिए। प्रोटीन, विटामिन एवं लवणयुक्त आहार इनके लिए सर्वोत्तम रहता है।
परिश्रमी एवं मजदूर वर्ग के व्यक्तियों का आहार:
इस वर्ग के व्यक्तियों को अधिक श्रम करने के कारण अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा भूख भी अधिक लगती है। इन्हें अधिक आहार मिलना चाहिए तथा इनके आहार में कार्बोहाइड्रेट्स (विशेषतः शक्कर) तथा वसा की मात्रा अधिक होनी चाहिए।
प्रश्न 5:
दोपहर के आहार की योजना बनाते समय गृहिणी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? एक वयस्क पुरुष के दोपहर के आहार की तालिका बनाइए जिसमें पोषण की दृष्टि से सभी तत्त्व उपस्थित हों।
या
एक वयस्क व्यक्ति की आहार तालिका बनाइए।
उत्तर:
दोपहर के आहार हेतु ध्यान देने योग्य बातें
हमारे देश में दोपहर का आहार मुख्य आहार होता है; अत: दोपहर का आहार तैयार करते समय प्रत्येक गृहिणी को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
(1) पौष्टिक तत्त्व युक्त आहार:
आहार में सभी आवश्यक तत्त्वों का समावेश होना चाहिए। उदाहरण के लिए—कार्बोहाइड्रेट्स के लिए कोई अनाज, प्रोटीन के लिए कोई एक दाल या अण्डा-मीट खनिज व विटामिन के लिए हरी सब्जी तथा वसा के लिए दही अथवा मक्खन इत्यादि।
(2) रुचिपूर्ण आहार:
आहार खाने वाले की रुचि के अनुसार होना चाहिए, जैसे कि चपाती खाने वाले के लिए चपातियाँ तथा चावल खाने वाले के लिए दाल-भात इत्यादि।
(3) आयु एवं व्यवसाय:
दोपहर के आहार में ऊर्जा प्रदान करने वाले पदार्थों की इतनी मात्रा होनी चाहिए कि व्यक्ति दिनभर बिना दुर्बलता अनुभव किए कार्य कर सके। इसके लिए सम्बन्धित व्यक्ति की आयु एवं उसके व्यवसाय का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए-वयस्कों को अधेड़ पुरुषों की अपेक्षा अधिक आहार की आवश्यकता होती है तथा श्रमिक वर्ग के मनुष्यों को सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक आहार मिलना चाहिए।
(4) भोज्य पदार्थों का परिवर्तन:
दालों व सब्जियों में परिवर्तन करे, चपातियों के स्थान पर चावल तथा दही के स्थान पर रायता प्रयोग कर दोपहर के आहार को रुचिकर बनाना चाहिए। इस प्रकार के परिवर्तन से आहार के पोषक तत्त्व कम नहीं होते तथा सम्बन्धित व्यक्ति को खाने में मन लगता है।
(5) आर्थिक दृष्टिकोण:
यह आवश्यक नहीं है कि महँगा आहार ही पौष्टिक होता है। गृहिणी को चाहिए कि अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ही आहार की तैयारी करे। उदाहरण के लिए-वसा में घी, दूध के स्थान पर वनस्पति तेल व घी तथा विटामिन के लिए छाछ व हरी पत्तेदार सब्जियाँ प्रयोग में लाई जा सकती हैं।
प्रश्न 6:
दैनिक आहार को पौष्टिक एवं सस्ता बनाने का प्रबन्ध करने में एक कुशल गृहिणी का क्या योगदान है? इस पर विस्तारपूर्वक उत्तर लिखिए।
या
आहार को सन्तुलित बनाने के लिए गृहिणी को किन-किन खाद्य सामग्री का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर:
सन्तुलित आहार के लिए आवश्यक खाद्य सामग्री–सन्तुलित आहार में आहार के सभी आवश्यक तत्त्व उपयुक्त मात्रा में सम्मिलित होते हैं; अत: प्रत्येक गृहिणी को निम्नलिखित बातों की जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है
- आहार के आवश्यक तत्त्व एवं उनके स्रोत।
- यदि किसी और किन्हीं तत्त्वों के स्रोत मौसम, अधिक मूल्य अथवा किसी स्थान विशेष के ” कारणं सहज ही उपलब्ध नहीं हैं, तो उन तत्त्वों के वैकल्पिक स्रोतों की जानकारी होना।
आहार के आवश्यक तत्त्व एवं उनके स्रोत
(1) कार्बोहाइड्रेट्स:
अनाज (गेहूँ, चावल आदि), आलू, शकरकन्द, दालें, गुड़, चीनी, मीठे फल, मेवे इत्यादि में विभिन्न प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स पाए जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स का प्रमुख कार्य शरीर को ऊर्जा प्रदान करना है।
(2) प्रोटीन:
प्रोटीन प्रायः प्राणियों (प्राणिजन्य प्रोटीन) से तथा वनस्पतियों (वनस्पतिजन्य प्रोटीन) से प्राप्त होती है। इसके प्रमुख स्रोत हैं-अण्डा, मांस, मछली, दूध, दही, पनीर तथा दालें। सोयाबीन में सर्वाधिक (43%) प्रोटीन पाई जाती है।
(3) वसा:
इसके सामान्य स्रोत हैं—घी, दूध, मक्खन, मलाई, अण्डा, मांस, मछली, वनस्पति तेल व घी आदि।
(4) विटामिन:
ये हमें दूध, दही, अण्डा, मांस, मछली, अनाज, फलों व हरी सब्जियों से प्राप्त होते हैं।
(5) खनिज लवण:
इन्हें हम अण्डा, मछली, मेवे, दूध, सब्जी व फलों से प्राप्त कर सकते हैं।
सन्तुलित आहार तैयार करना
उपर्युक्त वर्णित खाद्य सामग्रियों को उपयोग कर एवं निम्नलिखित सामान्य नियमों का पालन कर सन्तुलित आहार तैयार किया जा सकता है|
- भिन्न आयु वर्ग के व्यक्तियों के लिए भिन्न प्रकार का सन्तुलित आहार होता है। उदाहरण के लिए–बच्चों में वृद्धि एवं विकास अधिक होता है; अतः इनके आहार में प्रोटीन व विटामिनयुक्त खाद्य सामग्री अधिक होनी चाहिए। इसी प्रकार वयस्क पुरुषों के आहार में परिश्रम अधिक करने के कारण ऊर्जायुक्त खाद्य सामग्री का आधिक्य होना चाहिए।
- लम्बे व शक्तिशाली व्यक्ति को अधिक तथा पतले व छोटे व्यक्ति को कम आहार की आवश्यकता होती है।
- स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा कम आहार की आवश्यकता होती है।
- कार्य एवं व्यवसाय का सन्तुलित आहार पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मजदूर वर्ग के पुरुषों को अधिक ऊर्जायुक्त तथा विद्यार्थियों एवं मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों को प्रोटीन, खनिज लवण एवं विटामिनयुक्त आहार चाहिए।
- शाकाहारी व्यक्तियों को दालें, दूध व दूध से बने पदार्थों की अधिक आवश्यकता होती है, जबकि मांसाहारी व्यक्ति प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ति मांस, मछली व अण्डों से कर सकते हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त नियमों का पालन कर एक सुगृहिणी विभिन्न खाद्य सामग्रियों द्वारा सहज ही सन्तुलित आहार तैयार कर सकती है।
पौष्टिक एवं सस्ता दैनिक सन्तुलित आहार: आहार के आवश्यक तत्त्वों के स्रोत कई बार बड़े महँगे होते हैं। निम्नांकित सारणी का अध्ययन कर आहार को सस्ता एवं पौष्टिक बनाया जा सकता है
प्रश्न 7:
‘आहार की तालिका’या’ मीनू’ बनाने का क्या महत्त्व है? मीनू बनाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? सविस्तार समझाइए।
या
सन्तुलित आहार-तालिका बनाते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
आहार की तालिका बनाने के लाभ-एक समझदार गृहिणी प्रायः आहार की दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक तालिकाएँ बनाती है; क्योंकि
- उसे पारिवारिक आय के अनुसार उपयुक्त आहार योजना बनाने में सुविधा रहती है।
- महँगी भोज्य सामग्री की पूरक सस्ती भोज्य सामग्री की जानकारी रहती है।
- आहार संरक्षण के ज्ञान का उपयोग कर वह फसल के समय सस्ते भोज्य पदार्थों; जैसे अनाज व दालें आदि को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रख पाती है।
- वह सभी सदस्यों की रुचि एवं आवश्यकता के अनुसार आहार उपलब्ध करा पाती है।
- वह सहज ही लगभग सभी पौष्टिक तत्त्वों से युक्त आहार कम-से-कम मूल्य में तैयार करने में सफल रहती है।
मीनू बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें–प्रश्न 5 का उत्तर देखें।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
सन्तुलित आहार तथा पर्याप्त आहार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सन्तुलित आहार’ तथा ‘पर्याप्त आहार’ दो भिन्न-भिन्न धारणाएँ हैं। इनमें स्पष्ट अन्तर है। पर्याप्त आहार से आशय है आहार का मात्रा में पर्याप्त होना अर्थात् इतना आहार उपलब्ध होना, जिससे व्यक्ति का पेट भर जाए तथा भूख मिट जाए। यहाँ यह स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि ‘पर्याप्त आहार अनिवार्य रूप से ‘सन्तुलित आहार नहीं होता। इससे भिन्न ‘सन्तुलित आहार’ की धारणा में इसके गुणात्मक पक्ष की प्रधानता होती है। सन्तुलित आहार मात्रा में पर्याप्त होने के साथ-साथ आहार सम्बन्धी सभी उद्देश्यों की पूर्ति करने वाला भी होता है; उसमें आहार के सभी पोषक तत्त्व उचित मात्रा एवं अनुपात में विद्यमान होते हैं।
प्रश्न 2:
स्पष्ट कीजिए कि सन्तुलित आहार सापेक्ष होता है।
उत्तर:
आहार एवं पोषण विज्ञान की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति को ‘सन्तुलित आहार ग्रहण करना चाहिए। ‘सन्तुलित आहार’ की अवधारणा का विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि सन्तुलित आहार अपने आप में सापेक्ष होता है अर्थात् भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार का एवं भिन्न-भिन्न मात्रा का आहार सन्तुलित आहार होता है। भिन्न-भिन्न प्रकार एवं मात्रा वाला कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न मात्रा एवं अनुपात में आहार ही सन्तुलित आहार कहलाती है। जो आहार एक बच्चे के लिए सन्तुलित होता है, वह एक युवक के लिए सन्तुलित आहार नहीं कहला सकता। इसी प्रकार खेत अथवा कोयले की खान में दिन भर शारीरिक श्रम करने वाले श्रमिक तथा मेज-कुर्सी पर बैठकर पुस्तक लिखने वाले बुद्धिजीवी लेखक का सन्तुलित आहार एकसमान नहीं हो सकता। स्पष्ट है कि सन्तुलित आहार सापेक्ष होता है तथा इसका निर्धारण व्यक्ति के सन्दर्भ में विभिन्न कारकों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है।
प्रश्न 3:
बहुप्रयोजन आहार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
शरीर को स्वस्थ, क्रियाशील, निरोग एवं चुस्त रखने के लिए पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है। पौष्टिक आहार सभी प्रकार के पोषक तत्वों से युक्त होता है। इस प्रकार के आहार के लिए अनेक शोध कार्य किए गए, जिनके परिणामस्वरूप सभी प्रकार के पोषक तत्त्वों से युक्त तथा सस्ता आहार तैयार किया जा सका। इस आहार को बहुप्रयोजन आहार कहते हैं।
बहुप्रयोजन आहार बनाने की विधि-तिलहनों का तेल निकाल लेने के बाद बचा पदार्थ खली कहलाता है। इसमें अनेक पोषक तत्त्व पाए जाते हैं। हमारे देश में बहुप्रयोजन आहार बनाने के लिए मुख्य रूप से सोयाबीन व मूंगफली की खली प्रयोग में लाई जाती है। इसमें चने का आटा तथा कुछ खनिज लवण व विटामिन मिलाए जाते हैं।
बहुप्रयोजन आहार का महत्त्व-यह बच्चों के लिए, गर्भवती तथा शिशु को दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी होता है। इसमें आहार के सामान्य रूप से अनिवार्य सभी तत्त्व समुचित मात्रा में पाए जाते हैं। बच्चों के लिए इसकी दैनिक आवश्यकता लगभग 30 ग्राम तथा बड़ों के लिए 60 ग्राम होती है।
प्रश्न 4:
आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
आहार योजना बनाते समय परिवार की आय को ध्यान में रखा जाता है। इसके अन्तर्गत सभी पौष्टिक तत्त्वों से युक्त आहार कम-से-कम मूल्य में तैयार करने का प्रयास किया जाता है। सभी सदस्यों की रुचि एवं आवश्यकता के अनुसार गृहिणी दैनिक एवं साप्ताहिक मीनू बनाती है। आहार योजना बनाने के लिए गृहिणी को निम्नलिखित बातों की जानकारी होनी चाहिए
- बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों का मूल्य।
- उत्तम भोज्यं सामग्री उचित मूल्य पर मिलने का स्थान।
- महँगी भोज्य सामग्री के गुणों की पूरक सस्ती भोज्य सामग्री।
- भोज्य पदार्थों को पकाने की उचित विधि।
- आहार संरक्षण का ज्ञान जिससे कि भोज्य सामग्री को नष्ट होने से बचाया जा सके।
प्रश्न 5:
18 वर्ष केशाकाहारी लड़के अथवा लड़की के लिए रात्रि आहार की तालिका बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 6:
प्रमुख भोज्य पदार्थों से हमें कितनी ऊर्जा मिलती है?
उत्तर:
प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा प्रमुख भोज्य पदार्थ हैं जो कि हमें ऊर्जा प्रदान करते हैं। इनकी एक ग्राम मात्रा शरीर में जाने के पश्चात् निम्न प्रकार से ऊर्जा उत्पन्न करती है
प्रोटीन 4.1 कैलोरी
कार्बोहाइड्रेट 4.1 कैलोरी
वसा 9.0 कैलोरी
प्रश्न 7:
आयु एवं कार्य के अनुसार कैलोरी सम्बन्धी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आयु एवं कार्य के अनुसार कैलोरी की आवश्यकता
कार्य के अनुसार कैलोरी की आवश्यकता
प्रश्न 8:
बड़ों की अपेक्षा बच्चों को अधिक आहार की क्यों आवश्यकता होती है?
उत्तर:
बढ़ते हुए बच्चों को प्रति किलोभार के अनुसार सभी तत्त्वों की आवश्यकता होती है। 5 वर्ष की आयु के पश्चात् कैलोरी की आवश्यकता घट जाती है। अत: बच्चों को बड़ों की अपेक्षा अधिक कैलोरी वाला आहार देना आवश्यक है। इसका प्रमुख कारण उनके शरीर को होने वाला विकास है। बाद में एक निश्चित समय के बाद शरीर की इस प्रकार की वृद्धि समाप्त हो जाती है। इसलिए बड़ों को केवल टूट-फूट व कार्य शक्ति प्राप्त करने के लिए आहार की आवश्यकता होती है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
सन्तुलित आहार से क्या आशय है?
उत्तर:
व्यक्ति की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने वाला आहार सन्तुलित आहार कहलाता है।
प्रश्न 2:
व्यक्ति के सन्दर्भ में सन्तुलित आहार के निर्धारक कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
व्यक्ति के सन्दर्भ में सन्तुलित आहार के निर्धारक कारक हैं—आयु, लिंग-भेद, शरीर का आकार, शारीरिक श्रम तथा जलवायु।।
प्रश्न 3:
क्या सभी व्यक्तियों के लिए सन्तुलित आहार बिल्कुल समान होता है ?
उत्तर:
सभी व्यक्तियों के लिए सन्तुलित आहार समान नहीं होता। यह सापेक्ष होता है। अर्थात् भिन्न-भिन्न श्रम एवं प्रकृति वाले व्यक्तियों का सन्तुलित आहार भिन्न-भिन्न होता है।
प्रश्न 4:
बाल्यावस्था में सन्तुलित आहर में किन पोषक तत्वों की प्राथमिकता दी जानी चाहिए?
उत्तर:
बाल्यावस्था में सन्तुलित आहर वृद्धिकारक तथा ऊर्जादायक तत्त्वों की प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
प्रश्न 5:
आहार से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की इकाई क्या है?
उत्तर:
आहार से प्राप्त ऊर्जा की इकाई कैलोरी है।
प्रश्न 6:
सामान्य स्थिति में स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा कम आहार की आवश्यकता होती है। क्यों?
उत्तर:
इसके प्रमुख कारण हैं
- अपेक्षाकृत कम लम्बाई,
- कम शारीरिक भार,
- हल्का कार्य।
प्रश्न 7:
एक सामान्य व्यक्ति के दैनिक आहार में कैल्सियम, फॉस्फोरस व लोहे की मात्रा कितनी होनी चाहिए?
उत्तर:
एक सामान्य व्यक्ति के दैनिक आहार में कैल्सियम 2.02 ग्राम, फॉस्फोरस 1.47 ग्राम तथा लोहा 30 से 40 मिलीग्राम तक होना चाहिए।
प्रश्न 8:
कुपोषण के कोई दो कारक बताइए।
उत्तर:
(1) कार्य की अधिकता,
(2) अनियमित आहार।
प्रश्न 9:
शाकाहारी व्यक्तियों के लिए प्रोटीन प्राप्ति के कोई तीन स्रोत बताइए।
उत्तर:
(1) दूध,
(2) दालें,
(3) सोयाबीन।
प्रश्न 10:
विटामिन ‘ए’ एवंडी’ के लिए सरलता से उपलब्ध होने वाला स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
दूध में विटामिन ‘ए’ व ‘डी’ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।
प्रश्न 11:
हरी पत्तेदार सब्जियों की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
हरी पत्तेदार सब्जियाँ रोगों से बचाने में सहायता करती हैं।
प्रश्न 12:
प्रौढ़ावस्था में आहार ग्रहण करने का प्रमुख उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
प्रौढ़ावस्था में मुख्य रूप से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए तथा शरीर के रख-रखाव के लिए आहार ग्रहण किया जाता है।
प्रश्न 13:
एक वृद्ध व्यक्ति की अपेक्षा एक युवक के आहार में क्या अन्तर होना चाहिए?
उत्तर:
एक युवक को एक वृद्ध की अपेक्षा अधिक कैलोरी वाले आहार की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 14:
गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में अधिक आहार की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
सर्दियों में शरीर को उचित ताप पर बनाए रखने के लिए अधिक आहार की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 15:
हरी सब्जियाँ क्यों आहार का मुख्य अंग मानी जाती हैं?
उत्तर:
हरी सब्जियाँ रक्षात्मक खाद्य पदार्थों की श्रेणी में आती हैं; क्योंकि इनमें आवश्यक खनिज लवण एवं विटामिन पाए जाते हैं।
प्रश्न 16:
कॉफी के प्रयोग से क्या हानियाँ हैं?
उत्तर:
यह कार्बोज के पाचन में बाधा उत्पन्न करती है, हृदय की धड़कनें बढ़ाना, नींद में कमी तथा स्नायु-तन्त्र में विकार इनकी अन्य हानियाँ हैं।
प्रश्न 17:
अंकुरित मूंग में कौन-सा विटामिन पाया जाता है?
उत्तर:
अंकुरित मूंग में विटामिन ‘सी’ पाया जाता है।
प्रश्न 18:
प्रोटीन प्राप्त करने के लिए कुछ प्रमुख स्रोत बताइए।
उत्तर:
प्रोटीन, दूध, दही, मांस, मछली, अण्डा, दालें व सोयाबीन आदि से प्राप्त किया जा सकता
प्रश्न 19:
मक्खन में आहार का कौन-सा तत्त्व होता है?
उत्तर:
मक्खन में प्रमुखतः वसा, विटामिन ‘ए’ व ‘डी’ होते हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। सही उत्तर का चयन कीजिए
(1) भोज्य पदार्थों को परिवर्तन कर प्रयोग करने से आहार में
(क) पौष्टिक तत्त्वों की कमी हो जाती है,
(ख) रुचि उत्पन्न होती है,
(ग) कोई लाभ नहीं होता है,
(घ) व्यवस्था में कठिनाई होती है।
(2) सन्तुलित आहार में उपयुक्त मात्रा में होते हैं
(क) विटामिन वे खनिज लवण,
(ख) प्रोटीन,
(ग) कार्बोज व वसा,
(घ) ये सभी।
(3) आहार की उपयोगिता अधिक निर्भर करती है उसके
(क) पौष्टिकता के गुण पर ,
(ख) स्वादिष्ट होने पर,
(ग) पचने पर,
(घ) इनमें से कोई नहीं।
(4) शाकाहारी स्त्री के आहार में मात्रा बढ़ा देनी चाहिए
(क) मांस की,
(ख) अण्डों की,
(ग) अनाज की,
(घ) दूध की।
(5) कुपोषण से बचने का उपाय है
(क) सन्तुलित आहार,
(ख) पर्याप्त आहार,
(ग) मांसाहारी आहार,
(घ) शाकाहारी आहार।
(6) 9-12 माह के शिशु को ऊर्जा चाहिए
(क) 1000 कैलोरी,
(ख) 1400 कैलोरी,
(ग) 1500 कैलोरी,
(घ) 1600 कैलोरी।.
(7) हल्का काम करने वाले व्यक्ति को कितनी कैलोरी की आवश्यकता है?
(क) 3000,
(ख) 2500,
(ग) 3500,
(घ) 2200।
(8) किसी भी भोज्य पदार्थ से प्राप्त ऊर्जा को नापने की इकाई है
(क) ग्राम,
(ख) औंस,
(ग) डिग्री,
(घ) कैलोरी।
(9) विटामिन ‘डी’ की प्राप्ति का स्रोत है
(क) फल एवं सब्जियाँ,
(ख) हवा एवं पानी,
(ग) सूर्य का प्रकाश,
(घ) ये सभी।
(10) दूध में प्रोटीन किस रूप में होती है?
(क) केसिन,
(ख) ब्लूटिन,
(ग) मायोसिन,
(घ) एल्ब्यूमिन।
(11) शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स का प्रमुख कार्य है
(क) विटामिन को निर्माण,
(ख) जीवद्रव्य का संगठन,
(ग) ऊर्जा का उत्पादन,
(घ) इनमें से कोई नहीं।
(12) दालों में सबसे अधिक मिलता है
(क) खनिज लवण,
(ख) प्रोटीन,
(ग) ग्लूकोस,
(घ) इनमें से कोई नहीं।.
(13) सलाद में पाया जाता है
(क) कार्बोहाइड्रेट्स,
(ख) खनिज लवण,
(ग) वसा,
(घ) प्रोटीन।
(14) श्रमिक के आहार में अधिक मात्रा होनी चाहिए
(क) फल एवं सब्जियों की,
(ख) दूध एवं दूध से बने भोज्य पदार्थों की,
(ग) ऊर्जादायक भोज्य पदार्थों की,
(घ) मादक पदार्थों की।
उत्तर:
(1) (ख) रुचि उत्पन्न होती है,
(2) (घ) ये सभी,
(3) (ग) पचने पर,
(4) (घ) दूध की,
(5) (क) सन्तुलित आहार,
(6) (क) 1000 कैलोरी,
(7) (ख) 2500,
(8) (घ) कैलोरी,
(9) (ग) सूर्य का प्रकाश,
(10) (क) केसिन,
(11) (ग) ऊर्जा का उत्पादन,
(12) (ख) प्रोटीन,
(13) (ख) खनिज लवण,
(14) (ग) ऊर्जादायक भोज्य पदार्थों की।
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