UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 2 गृह-व्यवस्था : परिवार के सन्दर्भ में
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 2 गृह-व्यवस्था : परिवार के सन्दर्भ में
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
गृह-व्यवस्था से आप क्या समझती हैं?
या
इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए।
उत्तर:
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिए कार्य का व्यवस्थित होना अनिवार्य होता है। व्यवस्था के अभाव में कोई भी कार्य उचित रूप से नहीं हो सकता। इसके विपरीत, यदि कार्य को व्यवस्थित रूप में किया जाता है, तो कार्य शीघ्रता तथा सरलता से पूरा हो जाता है। व्यवस्था के अनुसार किया गया कार्य उत्तम होता है। घर तथा परिवार के क्षेत्र में भी अनेक कार्य किए जाते हैं। इन कार्यों को सरलतापूर्वक तथा अधिक सुचारु रूप में पूरा करने के लिए गृह-व्यवस्था को लागू किया जाता है। गृह-व्यवस्था का अध्ययन गृह विज्ञान का एक मुख्य विषय है। गृह-व्यवस्था का अर्थ एवं परिभाषा का विवरण निम्नवर्णित है
व्यवस्था तथा गृह-व्यवस्था का अर्थ एवं परिभाषा
गृह-व्यवस्था का शाब्दिक अर्थ है ‘घर की व्यवस्था’ या ‘घर का प्रबन्ध’। इस स्थिति में ‘गृह-व्यवस्था के प्रत्यय को स्पष्ट करने के लिए व्यवस्था के वास्तविक अर्थ का ज्ञान प्रासंगिक है। व्यवस्था या प्रबन्ध की अवधारणा पर्याप्त विस्तृत है। जीवन के समस्त क्षेत्रों में व्यवस्था को अपनाया जाता है। व्यवस्था अपने आप में वह कला है जिसके द्वारा किसी भी संस्था (उद्योग, संस्थान या परिवार आदि) के सदस्यों, वस्तुओं तथा क्रियाओं को नियन्त्रित किया जाता है तथा इसके लिए विभिन्न पूर्वनिर्धारित सिद्धान्तों को व्यवहार में लाया जाता है। व्यवस्था के विषय में ओलिवर शेल्डन का यह कथन उल्लेखनीय है, “सामान्य रूप से नीति-निर्धारण, उसको कार्यान्वित करना, संगठन निर्माण तथा उसका उपयोग व्यवस्था या प्रबन्ध के अन्तर्गत आ जाते हैं।” स्पष्ट है कि किसी भी क्षेत्र में कार्य करने के लिए पहले उससे सम्बन्धित नीति को निर्धारित किया जाता है। फिर निर्धारित नीति को कार्य रूप में लागू किया जाता है। इसी प्रकार डेविस महोदय ने व्यवस्था के अर्थ को इन शब्दों में स्पष्ट किया है, ”व्यवस्था कार्यकारी नेतृत्व का कार्य है। यह मुख्यतः एक मानसिक क्रिया है। यह कार्य के नियोजन, संगठन तथा सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों के कार्यों के नियन्त्रण से सम्बन्धित है।”
व्यवस्था के अर्थ को समझ लेने के उपरान्त ‘गृह-व्यवस्था के अर्थ को भी स्पष्ट किया जा सकती है। हम कह सकते हैं कि घर से समस्त कार्यों को उत्तम ढंग से करने तथा निश्चित (उपलब्ध) साधनों से अधिक-से-अधिक सफलता प्राप्त करने की कला ही “गृह-व्यवस्था” है। गृह-व्यवस्था के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रतिपादित कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
(1) ग्रोस तथा क्रेण्डल के विचार:
आधुनिक परिवारों के संगठन को ध्यान में रखते हुए ग्रोस तथा क्रेण्डल ने गृह-व्यवस्था को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “गृह-व्यवस्था निर्णयों की ऐसी श्रृंखला है जो पारिवारिक साधनों को पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयोग करने की प्रक्रिया प्रस्तुत करती है। इस प्रक्रिया में न्यूनाधिक तीन सतत् पग हैं
(i) नियोजन,
(ii) नियोजन को क्रियान्वित करते समय इसके विभिन्न तत्त्वों का नियन्त्रण चाहे कार्य स्वयं किए गए हों अथवा दूसरों के द्वारा और
(iii) परिणामों का मूल्यांकन जो भावी नियोजन के लिए प्रारम्भिक कदम होगा।” इस प्रकार परिवार के लिए जो भी साधन उपलब्ध हों उनका सदुपयोग करने के लिए निर्णय लेना तथा वास्तव में इनका सदुपयोग करना गृह-प्रबन्ध के ही अन्तर्गत आता है। वैसे भी कहा जा सकता है कि गृह-प्रबन्ध वह योजना है, जिसे परिवार के उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखकर अधिकतम लाभ के लिए सूक्ष्मता एवं कुशलता से बनाया एवं लागू किया जाता है। गृह-व्यवस्था के अन्तर्गत व्यवस्थित ज्ञान द्वारा परिवार की समस्याओं के समाधान तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपलब्ध साधनों द्वारा प्रयास किया जाता है।
(2) निकिल तथा डारसी का मत:
निकिल तथा डारसी ने गृह-व्यवस्था का अर्थ इन शब्दों में प्रस्तुत किया है, “गृह-व्यवस्था के अन्तर्गत परिवार के साधनों का नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन आता है जिनके द्वारा पारिवारिक उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।” गृह-प्रबन्ध समिति ने अपनी एक विज्ञप्ति में गृह-व्यवस्था का अर्थ इन शब्दों में प्रस्तुत किया है, गृह-व्यवस्था निर्णय करने की क्रियाओं की एक ऐसी श्रृंखला है, जिसमें पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए साधनों के प्रयोग की प्रक्रिया आती हैं। यह एक मुख्य साधन है जिसके द्वारा परिवार अपने सम्पूर्ण पारिवारिक जीवन-चक्र में जो कुछ चाहते हैं, पारिवारिक साधनों का प्रयोग करके प्राप्त करते हैं। गृह-व्यवस्था पारिवारिक जीवन के सूत्र का एक अंग है। इसके सूत्र अन्त:सम्बन्धित होते हैं, क्योंकि साधनों के प्रयोग का निर्णय लिया जाता है, चाहे परिवार कार्य में संलग्न हो अथवा खेल में।” प्रस्तुत कथन द्वारा स्पष्ट है कि परिवार के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समय-समय पर उचित निर्णय लेना तथा उनके अनुसार कार्य करना गृह-व्यवस्था के अन्तर्गत आता है। एक अच्छे गृह-प्रबन्धक या गृह-व्यवस्थापक में यह योग्यता होती है कि वह घर-परिवार से सम्बन्धित कोई भी समस्या आ जाने पर उसका कुशलतापूर्वक समाधान कर लेता है।
उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि गृह-व्यवस्था के तीन मुख्य अंग हैं। ये अंग या मूल तत्त्वे हैं
- (i) नियोजन (Planning),
- (ii) नियन्त्रण (Controlling) तथा
- (iii) मूल्यांकन (Evaluating)
इन तीनों तत्त्वों के सुन्दर समन्वय से गृह-व्यवस्था की प्रक्रिया सुचारु रूप से चलती है। ये तीनों तत्त्व आपस में सम्बद्ध होते हैं। इन तीनों तत्त्वों द्वारा ही परिवार के मुख्य उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है। अब प्रश्न उठता है कि गृह-व्यवस्था के मूल उद्देश्य क्या हैं? साधारण रूप से चले आ रहे पारम्परिक जीवन में अनुकूल परिवर्तन लाना ही गृह-व्यवस्था या गृह-प्रबन्ध का मूल उद्देश्य है। इसके लिए वर्तमान परिस्थितियों पर नियन्त्रण रखना अनिवार्य है; परन्तु वास्तविकता यह है कि परिस्थितियाँ निरन्तर बदलती रहती हैं तथा व्यक्ति की आवश्यकताओं में वृद्धि होती रहती है। ऐसी गतिशील परिस्थितियों में सामंजस्य स्थापित करना एवं उद्देश्यों को पूरा करना ही गृह-व्यवस्था है। गृह-व्यवस्था के लिए स्पष्ट योजना बनानी होती है तथा इस योजना को नियन्त्रित रूप से लागू करना भी अनिवार्य है। नियन्त्रित रूप से योजना को परिचालित करने के साथ-साथ मूल्यांकन अर्थात् योजना के परिणामों का ज्ञान भी अनिवार्य है। इस प्रकार इन तीनों प्रक्रियाओं अर्थात् नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन द्वारा गृह-व्यवस्था को सफल बनाया जा सकता है।
प्रश्न 2:
गृह-व्यवस्था के अनिवार्य तत्त्व कौन-कौन से हैं ? उनको समुचित परिचय दीजिए।
या
गृह-व्यवस्था के अनिवार्य तत्त्वों के रूप में नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इनके आपसी सम्बन्ध को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था के तत्त्व
गृह-व्यवस्था के मुख्य रूप से तीन तत्त्व हैं। ये तत्त्व हैं–क्रमशः नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन। ये तीनों तत्त्व परस्पर सम्बद्ध रूप में रहते हैं तथा इन तीनों तत्त्वों के सही रहने पर गृह-व्यवस्था उत्तम रहती है। गृह-व्यवस्था के इन तीनों अनिवार्य तत्त्वों का संक्षिप्त परिचय निम्नवर्णित है
(1) नियोजन:
गृह-व्यवस्था का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रथम चरण नियोजन (Planning) है। नियोजन का महत्त्व जीवन के सभी क्षेत्रों में है। वास्तव में किसी भी कार्य को करने से पूर्व की जाने वाली तैयारी नियोजन ही है। नियोजन के अर्थ को निकिल तथा डारसी ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, ”इच्छित लक्ष्य तक पहुँचने के विभिन्न सम्भावित मार्गों के सम्बन्ध में सोचना, कल्पना में प्रत्येक योजना के पूर्ण होने तक इसका अनुगमन करना और सर्वाधिक आशावादी योजना का चुनाव करना ही नियोजन है। इस प्रकार स्पष्ट है कि नियोजन के अन्तर्गत यह पूर्व-निश्चित कर लिया जाता है कि भविष्य में क्या करना है। इस प्रकार से भविष्य के कार्यक्रम को निश्चित कर लेने से कार्य सरल हो जाता है तथा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना सम्भव हो जाता है। नियोजन की प्रक्रिया के अन्तर्गत चिन्तन-शक्ति, स्मरण-शक्ति, अवलोकन, तर्क-शक्ति तथा कल्पना-शक्ति का उपयोग किया जाता है।
(2) नियन्त्रण:
गृह-व्यवस्था की प्रक्रिया का द्वितीय तत्त्व नियन्त्रण (Control) है। केवल उचित नियोजन द्वारा गृह-व्यवस्था की प्रक्रिया हमें लक्ष्य तक नहीं पहुंचा सकती। नियन्त्रण के द्वारा अपनाई गई योजना को पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अथवा सम्बन्धित परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित करके कार्य-रूप में लागू किया जाता है। गृह-व्यवस्था के तत्त्व के रूप में नियन्त्रण के अर्थ को डगलस एस० शेरविन ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, ”नियन्त्रण का मूल तत्त्व क्रियान्वयनं है, जिसके द्वारा पूर्व-निर्धारित स्तरों के अनुसार क्रियाओं को समायोजित किया जाता है तथा इसके नियन्त्रण का आधार व्यवस्थापक के पास की सूचनाएँ होती हैं।” यह कहा जा सकता है कि नियन्त्रण के अन्तर्गत चालू योजना की कार्यप्रणाली का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त पूर्व-निर्धारित कार्य-प्रणाली से वर्तमान कार्य-प्रणाली के विचलनों का सूक्ष्म निरीक्षण किया जाता है। नियन्त्रण के ही अन्तर्गत समय एवं परिस्थितियों के अनुसार पूर्व-निर्धारित योजना में किये जाने वाले परिवर्तनों का निर्णय किया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यवस्था की प्रक्रिया में नियन्त्रण के तत्त्व का भी विशेष महत्त्व है। यदि किसी व्यवस्थित कार्य में नियोजनकर्ता तथा योजना को कार्यरूप देने वाले व्यक्ति अलग-अलग होते हैं, तो उस स्थिति में नियन्त्रण का महत्त्व और भी अधिक हो जाता है।
(3) मूल्यांकन:
गृह-व्यवस्था का तीसरा तत्त्व मूल्यांकन (Evaluation) है। पूर्व-नियोजन के अनुसार किए गए कार्यों की सफलता-असफलता तथा उचित-अनुचित प्रकृति का निर्णय करने के कार्य को मूल्यांकन कहा जाता है। मूल्यांकन द्वारा पहले हो चुकी त्रुटियों की जानकारी प्राप्त हो जाती है तथा भविष्य में उसी प्रकार की त्रुटियों को पुनः दोहराने की चेतावनी मिल जाती है। इस प्रकार मूल्यांकन को भावी योजनाओं के लिए भी विशेष महत्त्व होता है। गृह-व्यवस्था के दौरान किसी-न-किसी स्तर पर अवश्य ही मूल्यांकन किया जाता है। मूल्यांकन दो प्रकार का होता है–सापेक्ष मूल्यांकन तथा निरपेक्ष मूल्यांकन। मूल्यांकन से विभिन्न लाभ होते हैं। इससे अनेक उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है। मूल्यांकन से ही हमें ज्ञात होता है कि हमने क्या प्राप्त किया है। इसके द्वारा ही आगामी योजना के लिए तथा सम्पूर्ण योजना को संशोधित करने के लिए आधार प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त कार्यों के उचित मूल्यांकन द्वारा हमारी अन्तर्दृष्टि (insight) में भी वृद्धि होती है।
नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन का सम्बन्ध:
यह कहा गया है कि व्यवस्था या प्रबन्ध के तीन तत्त्व हैं–नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन। इन तीनों तत्त्वों का हमने अलग-अलग परिचय प्रस्तुत किया है, परन्तु यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि व्यवस्था के सन्दर्भ में ये तीनों तत्त्व अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि घनिष्ठ रूप से परस्पर सम्बद्ध हैं। व्यवस्था की प्रक्रिया में इन तीनों तत्त्वों का एक निश्चित क्रम होता है। व्यवस्था में प्रथम स्थान नियोजन को होता है। नियोजन के उपरान्त नियन्त्रण तथा उसके बाद मूल्यांकन का स्थान होती है। एक निश्चित क्रम के अतिरिक्त, एक-दूसरे पर निर्भरता के रूप में भी तीनों तत्त्व आपस में सम्बद्ध हैं। नियोजन के अभाव में नियन्त्रण का कोई अर्थ ही नहीं। इसी प्रकार समुचित नियन्त्रण के अभाव में नियोजन से लाभ प्राप्त नहीं किया जा सकता। मूल्यांकन का भी विशेष लाभ एवं महत्त्व है। मूल्यांकन के द्वारा नियोजन की उपयुक्तता की जाँच होती है। कोई योजना कितनी सफल रही, यह मूल्यांकन द्वारा ही ज्ञात होता है। इसके अतिरिक्त नियोजन के कार्यान्वयन के बीच-बीच में होने वाले मूल्यांकन के नियन्त्रण को उचित रूप से लागू करने में भी सहायता मिलती है। मूल्यांकन द्वारा आगामी योजनाओं के स्वरूप को निर्धारित करने में भी सहायता मिलती है।
प्रश्न 3:
गृह-व्यवस्था को लागू करने अथवा उसका पालन करने के मुख्य उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था का अध्ययन करते समय यह जानना भी आवश्यक है कि गृह-व्यवस्था को क्यों लागू किया जाना चाहिए? प्रत्येक परिवार के कुछ लक्ष्य होते हैं, जिन्हें सूझ-बूझकर तथा अपने साधनों को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाता है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए गृह-व्यवस्था अनिवार्य है। गृह-व्यवस्था द्वारा परिवार के निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है तथा इन्हें ही गृह-व्यवस्था का उद्देश्य कहा जा सकता है
गृह-व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य
(1) परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति:
प्रत्येक परिवार के सभी सदस्यों की अपनी-अपनी कुछ महत्त्वपूर्ण आवश्यकताएँ होती हैं। ये आवश्यकताएँ सामान्य भी हो सकती हैं तथा विशिष्ट भी। उदाहरण के लिए–रोटी, कपड़ा तथा मकान की आवश्यकता प्रत्येक सदस्य की सामान् आवश्यकताएँ हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षा, चिकित्सा तथा विशेष प्रकार का आहार आदि भिन्न-भिन्न रूप में भिन्न-भिन्न सदस्यों की विशिष्ट आवश्यकताएँ हैं। व्यवस्थित गृह में इन सभी सामान्य तथा विशिष्ट आवश्यकताओं की समुचित रूप में पूर्ति होती रहनी चाहिए। गृह-व्यवस्था का यह एक मुख्य तथा महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
(2) पारिवारिक आय को उचित प्रकार से खर्च करना:
सभी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। प्रत्येक परिवार की आय सीमित होती है; अतः ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे सीमित आय में ही सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। इसके लिए पारिवारिक बजट बनाना तथा उसके अनुसार आय-व्यय में सन्तुलन बनाए रखना अनिवार्य है। आय-व्यय के सन्तुलित बजट को बनाकर, कुछ बचत भी की जा सकती है। परिवार के कल्याण एवं समृद्धि के लिए कुछ-न-कुछ बचत का होना अनिवार्य होता है। पारिवारिक आय-व्यय का नियोजन भी गृह-व्यवस्था के ही अन्तर्गत आता है। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि गृह-व्यवस्था का एक उद्देश्य पारिवारिक आय को उचित प्रकार से एवं नियोजित रूप से उपभोग में लाना भी है।
(3) पारिवारिक वातावरण को अच्छा बनाना:
गृह-व्यवस्था का उद्देश्य न केवल भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना ही है, बल्कि पारिवारिक वातावरण को भी सौहार्दपूर्ण बनाना है। इसके लिए परिवार के सदस्यों के आपसी सम्बन्धों, अनुशासन एवं पारिवारिक मूल्यों को स्थापित करना भी गृह-व्यवस्था का ही उद्देश्य है। भारतीय समाज में पारिवारिक वातावरण को उत्तम बनाने में गृहिणी की विशेष महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। गृहिणी के विभिन्न कर्तव्य होते हैं, जिनके पालन से परिवार का वातावरण अच्छा बना रहता है तथा सभी सदस्य सन्तुष्ट रहते हैं।
(4) परिवार के सदस्यों का नैतिक विकास:
गृह-व्यवस्था का एक उल्लेखनीय उद्देश्य परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से बच्चों एवं किशोरों का समुचित नैतिक विकास करना भी है। वास्तव में, नैतिक विकास के अभाव में गृह-व्यवस्था को सुचारु एवं उत्तम नहीं माना जा सकता। नैतिक विकास के लिए माता-पिता को नियोजित ढंग से प्रयास करने चाहिए तथा स्वयं आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को नैतिक मूल्यों की नियोजित रूप से शिक्षा प्रदान करें।
(5) पारिवारिक स्तर को उन्नत बनाए रखना:
प्रत्येक परिवार के रहन-सहन का एक स्तर होता है, जिसका निर्धारण परिवार के साधनों के आधार पर होता है। गृह-व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है-सब प्रकार से परिवार का एक समुचित स्तर बनाए रखना। इसके लिए रहन-सहन के एवं धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा दार्शनिक मूल्यों को ध्यान में रखना अत्यन्त आवश्यक है। | गृह-व्यवस्था के उपर्युक्त वर्णित उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि गृहस्थ जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए तथा परिवार के समस्त सदस्यों के सुख एवं समृद्धि में वृद्धि के लिए गृह-व्यवस्था का विशेष योगदान तथा महत्त्व होता है।
प्रश्न 4:
गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले गृह-सम्बन्धी कारकों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।.
या
‘गृह-सम्बन्धी विभिन्न कारक निश्चित रूप में गृह-व्यवस्था को प्रभावित करते हैं।” इस कथन को ध्यान में रखते हुए गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले गृह-सम्बन्धी कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था अपने आप में एक विस्तृत एवं बहु-पक्षीय व्यवस्था है, जिसे अनेक कारक प्रभावित करते हैं। गृह-व्यवस्था में जहाँ एक ओर घर के रख-रखाव आदि का ध्यान रखा जाता है, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक सम्बन्धों एवं स्तर आदि को भी उत्तम बनाने के उपाय किए जाते हैं। इस स्थिति में गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों को भी दो वर्गों में बाँटा जाता है अर्थात् गृह-सम्बन्धी कारक तथा परिवार सम्बन्धी कारक। गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले गृह-सम्बन्धी मुख्य कारकों का विवरण निम्नलिखित है
गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले गृह-सम्बन्धी कारक
(1) घर की सुविधाजनक होना:
घर का निर्माण करते समय अथवा किराए पर लेते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि विभिन्न कक्षों की नियोजन सुविधाजनक हो। उदाहरण के लिए-डाइनिंग रूम और रसोई निकट होने से शक्ति एवं समय की बचत होती है। स्टोर और रसोई भी निकट होनी चाहिए। अध्ययन-कक्ष एवं शयन-कक्ष का ड्राइंग रूम से अन्तर होना चाहिए जिससे विश्राम एवं अध्ययन में बाधा न पड़े। शौचालय और गुसलखाने निकट होने चाहिए। इसी प्रकार ड्राइंग रूम की व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए कि मेहमान घर के आन्तरिक हिस्सों में, कम-से-कम प्रवेश करते हुए ड्राइंग रूम तक पहुँच जाएँ। गृह-सम्बन्धी इस विशेषता या तत्त्व को परस्परानुकूलता कंहा जाता है। आवासीय भवन में इस विशेषता के होने पर, गृह-व्यवस्था सरलता से लागू की जा सकती है।
(2) जल, वायु और प्रकाश की उचित व्यवस्था:
शुद्ध वायु, शुद्ध जल एवं प्रकाश की घर में उचित व्यवस्था होनी चाहिए। सभी कमरों में पर्याप्त खिड़कियाँ, दरवाजे और रोशनदान होने चाहिए जिससे स्वच्छ वायु और प्रकाश का प्रवेश हो सके। घर में धूप का आना भी आवश्यक होता है। जिन घरों में सूर्य का प्रकाश नहीं आता, वहाँ सीलन और अनेक कीटाणुओं का साम्राज्य हो जाता है, जो परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अध्ययन-कक्ष में प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। शौचालय, स्नानघर और रसोई में जल की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। यदि घर में ये समस्त कारक ठीक हैं, तो निश्चित रूप से उत्तम गृह-व्यवस्था के अनुपालन में सरलता होती है।
(3) सफाई की समुचित व्यवस्था:
परिवार का लक्ष्य परिवार के सदस्यों को स्वस्थ रखना है और यह तब तक सम्भव नहीं है, जब तक कि घर की सफाई की व्यवस्था न की जाए। व्यवस्थित और आकर्षक घर के लिए भी सफाई अनिवार्य है। यदि घर में सफाई नहीं है, तो मक्खी , मच्छर, मकड़ियाँ आदि जन्म लेंगे और बीमारियाँ फैलेगी। रसोईघर की सफाई स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। ड्राइंग रूम की सफाई से गृहिणी की सुरुचि का आभास होता है। बच्चों को काफी समय अध्ययन-कक्ष में बीतता है। यदि अध्ययन-कक्ष साफ-सुथरा है; किताबें करीने से सजी हैं, मेज-कुर्सियों पर धूल नहीं है, तो बच्चे पढ़ने में अधिक रुचि लेंगे। इस प्रकार स्पष्ट है कि गृह-व्यवस्था के लिए घर की हर प्रकार की सफाई भी एक महत्त्वपूर्ण तथा अति आवश्यक तत्त्व एवं कारक है।
(4) भोज्य-सामग्री की व्यवस्था:
समय पर उचित और सन्तुलित भोजन परिवार के सदस्यों को उपलब्ध होना चाहिए। भोजन, अल्पाहार व अतिथि-सत्कार के लिए भोज्य-सामग्री की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। अतिथियों के आने पर चाय या कॉफी से उनका सत्कार होना चाहिए। यदि समय पर घर में दूध या चाय की पत्ती आदि उपलब्ध नहीं हैं, तो उससे गृहिणी की अकुशलता और अव्यवस्था का पता चलता है। भोज्य-सामग्री की व्यवस्था के अन्तर्गत घर में शुद्ध और पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री रहनी चाहिए। समय-समय पर खाद्य पदार्थों की सफाई की जानी चाहिए। खाद्य पदार्थों का संरक्षण भी इसी में सम्मिलित है। खाद्य पदार्थों का अपव्यय नहीं होना चाहिए।
(5) घर की सामग्री की व्यवस्था:
घर की सामग्री अथवा वस्तुओं से तात्पर्य है दैनिक प्रयोग की वस्तुएँ; जैसे – बर्तन, वस्त्र, पुस्तकें, बिस्तर, फर्नीचर आदि। आधुनिक परिवारों में रेडियो, टू-इन-वन, टेलीविजन, फ्रिज, पंखे, कूलर, सिलाई की मशीन, कपड़े धोने की मशीन, रसोई में प्रेशर कुकर, टोस्टर, ओवन, मिक्सर तथा ग्राइण्डर आदि का प्रयोग किया जाता है। इन सबको सुविधाजनक और उचित स्थान पर रखना आवश्यक है। इनके प्रयोग की सही विधि ज्ञात होनी चाहिए जिससे इन उपकरणों की टूट-फूट कम-से-कम हो। आवश्यकतानुसार सफाई की व्यवस्था होनी चाहिए। यदि कोई उपकरण या वस्तु टूट जाती है या खराब हो जाती है, तो उसको ठीक कराने का प्रबन्ध होना चाहिए।
प्रश्न 5:
गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले परिवार सम्बन्धी कारकों का वर्णन कीजिए। या परिवार के सदस्यों से सम्बन्धित वैयक्तिक कारक भी गृह-व्यवस्था को प्रभावित करते हैं।” इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले परिवार सम्बन्धी कारकों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
परिवार के सन्दर्भ में व्यवस्था का लक्ष्य आदर्श परिवार का निर्माण करना है। आदर्श परिवार का अर्थ है-परिवार के सब सदस्यों में परस्पर प्रेम, सहयोग और सन्तोष की भावना का व्याप्त होना। परिवार का वातावरण ऐसा होना चाहिए जिसमें परिवार का प्रत्येक सदस्य अर्थात् माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन, सन्तान, सास-ससुर अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति समान रूप से सजग रहें। प्रत्येक सदस्य सन्तोष का अनुभव कर सके और प्रत्येक सदस्य को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक सुविधाएँ मिल सकें। गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले परिवार सम्बन्धी कारकों के विवरण निम्नलिखित हैं
(1) परिवार के सदस्यों में सौहार्द एवं समन्वय:
पारिवारिक व्यवस्था में परिवार के सदस्यों की शारीरिक व मानसिक आवश्यकताओं, संवेगों, भावनाओं, विश्वासों, विचारों और मूल्यों का समन्वय होना चाहिए। परिवार में विभिन्न आयु, व्यवसाय, लिंग और रुचियों के सदस्य होते हैं। उनकी मनोविज्ञान, विचारधारा एवं आवश्यकताएँ भी काफी भिन्न होती हैं। उदाहरण के लिए-परिवार के वृद्ध व्यक्तियों की विचारधारा और युवा वर्ग की विचारधारा में स्पष्ट अन्तर होता है। युवकों को अपने विचारों के अनुरूप कार्य करने के लिए वृद्धों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए वरन् समन्वयात्मक प्रवृत्ति का परिचय देना चाहिए। धैर्य और सूझ-बूझ से समयानुसार उनके विचारों में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करना चाहिए और जहाँ आवश्यकता हो स्वयं को भी उदार बना लेना चाहिए। पारिवारिक सम्बन्धों में त्याग, उदारता और सहिष्णुता की आवश्यकता होती है। परिवार में भी संघर्ष होता है जो बहुत स्वाभाविक है, लेकिन यह संघर्ष इतना उग्र नहीं होना चाहिए जो पारिवारिक सम्बन्धों में दरार पैदा कर दे। माता-पिता और सन्तान में भी एक पीढ़ी का अन्तर होता है; इसलिए उनके विचारों व कार्य-पद्धति में अन्तर होगा ही। इसी अन्तर को कम करना समन्वय और सौहार्द्र व्यवस्था है।
(2) अच्छा आचरण, व्यवहार तथा आदतें:
बच्चे का मन और मस्तिष्क एक कोरी स्लेट के समान होता है। उसको अच्छी-बुरी आदतें, आचरण और व्यवहार के नियम परिवार में ही सिखाए जाते हैं। बच्चों के आचरण और व्यवहार से उसके परिवार के वातावरण और परिवेश की जानकारी सरलती से ज्ञात की जा सकती है। अच्छा परिवार ही अच्छा व्यवहार और अच्छी आदतें सिखाता है। व्यवस्थित परिवार की पहचान, सदस्यों की व्यवस्थित और अच्छी आदतें हैं। बड़ों का आदर करना चाहिए, बातचीत के समय मधुर वाणी और कोमल शब्दों का प्रयोग होना चाहिए जिससे किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचे। परिवार में सीखी आदतें ही स्कूल और समाज में काम आती हैं। अपनी बात कहना लेकिन धैर्यपूवर्क दूसरे की बात भी सुनना आपस में अच्छे सम्बन्ध बनाता है।
(3) आवश्यकतानुसार अनुकूलन:
विवाह से पूर्व लड़की माता-पिता के लाड़-प्यार में बहुत स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करती है तथा प्राय: अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों से भी अनभिज्ञ होती है, किन्तु विवाह के पश्चात् उसे आवश्यकतानुसार और ससुराल के सम्बन्धों के अनुसार त्याग करना होता है, धैर्य और सहनशीलता से काम करना होता है। पति-पत्नी के स्वभाव और रुचियों में अन्तर या विरोध भी हो सकता है, लेकिन आदर्श परिवार के लिए दोनों ही अपने स्वभाव में परिवर्तन करते हैं, एक-दूसरे के अनुकूल बनने का प्रयत्न करते हैं। माता-पिता बच्चों के हितों के अनुरूप अपने स्वतन्त्र और स्वच्छन्द जीवन को नियन्त्रित कर लेते हैं। यह अनुकूलन स्वाभाविक, स्वतन्त्र, स्वेच्छापूर्ण और सन्तोषजनक होता है। इस असन्तुलन के लिए बाहरी प्रयासों की आवश्यकता नहीं होती, यह स्वतः ही होता है। इस प्रकार आवश्यकतानुसार अनुकूलन भी गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
(4) सुरक्षा की भावना:
परिवार में प्रत्येक व्यक्ति अपने को सुरक्षित अनुभव करता है। यदि परिवार के सदस्य अपने को असुरक्षित और असहाय अनुभव करते हैं, तो उनमें कुण्ठा और हीन भावना पैदा हो जाती है तथा उनका आत्मविश्वास धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि परिवार में उत्तम व्यवस्था बनाए रखने के लिए परिवार के सभी सदस्यों में सुरक्षा की समुचित भावना अवश्य होनी चाहिए।
(5) सामर्थ्य का ज्ञान:
व्यवस्थित परिवार में प्रत्येक सदस्य को उसकी सामर्थ्य और शक्ति का ज्ञान कराया जाता है। छोटा या असहाय समझने से व्यक्ति के आत्म-सम्मान को चोट पहुँचती है, उसका समुचित विकास नहीं हो पाता। धनी परिवारों में या अधिक लाड़-प्यार वश कुछ माता-पिता बच्चों को कोई भी काम नहीं करने देते हैं। अतः न तो बच्चे किसी कार्य के लिए परिश्रम करते हैं, न प्रयत्न। माँगने पर उन्हें हर चीज मिल जाती है। उनके लिए जीवन बड़ा सरल होता है। दूसरी ओर, जिन बच्चों को प्रारम्भ से ही उनकी सामर्थ्य और शक्ति के अनुरूप काम करना सिखाया जाता है, वे अधिक उत्तरदायी होते हैं। संघर्षों का मुकाबला वे अधिक साहस और हिम्मत के साथ करते हैं।
(6) उन्नति:
यदि परिवार में व्यवस्था है, विचारों का समन्वय है, एक-दूसरे के अनुसार अनुकूलन है, सुरक्षा और सामर्थ्य का ज्ञान है, तो उसके परिणामस्वरूप परिवार प्रगति करता है। व्यवस्थित परिवार में पति-पत्नी एक-दूसरे के दुःख-सुख में सहभागी होते हैं, बच्चे माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं, उनके कार्य में हाथ बंटाते हैं, परीक्षा में अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण होते हैं। घर में सुख, शान्ति और सन्तोष होने से पुरुष पदोन्नति करता है और आय के नए विकल्प खोजता है, जिससे परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक रहता है तथा परस्पर स्नेह बन्धन मजबूत होते हैं। ऐसे परिवारों को समाज में भी आदर और उचित सम्मान मिलता है तथा अन्य परिवार भी उनकी उन्नति से प्रेरणा लेकर उनका अनुसरण करते हैं। अतः शीघ्रता से बदलते हुए परिवेश से समायोजन के लिए गृह-व्यवस्था बहुत आवश्यक है। जैसे-जैसे वातावरण जटिल बन रहा है, आवश्यकताएँ बढ़ रही हैं और साधनों में वृद्धि हो रही वैसे-वैसे गृह-व्यवस्था का महत्त्व भी बढ़ रहा है।
प्रश्न 6:
गृह-व्यवस्था से सम्बन्धित उपयोगी साधनों का उल्लेख कीजिए।
या
गृह-व्यवस्था के लिए आवश्यक साधनों का उचित वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक गृह में अनेक कार्य (जैसे–भोजन बनाना, घर की सफाई करना, बच्चों की देखभाल करना, वस्त्रों की सिलाई-धुलाई करना, आर्थिक लेन-देन आदि) होते हैं। इन कार्यों के लिए अनेक साधनों एवं उपकरणों की आवश्यकता होती है। गृह-व्यवस्था के साधनों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है
(1) भौतिक साधन:
भौतिक साधनों के अन्तर्गत धन, विभिन्न पदार्थ एवं यन्त्र अथवा मशीनें आती हैं। धन सबसे अधिक प्रभावकारी साधन है, क्योंकि धन के द्वारा ही अधिकतर पदार्थ एवं उपकरण उपलब्ध होते हैं। उदाहरण के लिए, भोजन बनाने में खाद्य सामग्री, बर्तन एवं ईंधन आदि साधनों की तथा कपड़ा तैयार करने के लिए वस्त्र, बटन, धागा, सुई व सिलाई की मशीन आदि की आवश्यकता होती है। ये सभी साधन धन द्वारा ही प्राप्त किए जाते हैं। भौतिक साधनों के उपयोग से अधिकांश कार्य श्रम एवं समय की बचत के साथ-साथ अधिक कुशलतापूर्वक किए जा सकते हैं। अतः कहने का तात्पर्य यह है। कि भौतिक साधन वे सभी पदार्थ हैं, जो किसी कार्य को सम्पन्न करने के लिए आवश्यक होते हैं।
(2) मानवीय साधन:
गृह-व्यवस्था के लिए मानवीय साधन भी अति आवश्यक होते हैं। मानवीय साधनों से आशय है-परिवार के सदस्यों से सम्बन्धित साधन। वास्तव में प्रत्येक कार्य को करने के लिए व्यक्तियों (पारिवारिक कार्यों में परिवार के सदस्यों) की आवश्यकता होती है। यदि परिवार के सदस्य योग्य एवं कार्य-कुशल हों, तो निश्चित रूप से गृह-व्यवस्था उत्तम हो सकती है। इसके अतिरिक्त परिवार के सदस्यों की अभिवृत्ति यदि गृह-व्यवस्था के अनुकूल हो तथा उन्हें गृह-व्यवस्था सम्बन्धी समुचित ज्ञान भी हो, तो भी गृह-व्यवस्था सुचारु रूप से चल सकती है।
(3) सार्वजनिक साधन:
प्रत्येक स्थान पर प्रायः सामाजिक एवं सार्वजनिक संस्थाएँ होती हैं। राजकीय अस्पताल, राशन केन्द्र, डाकखाना, बैंक, जीवन बीमा निगम एवं शिक्षण संस्थाएँ इत्यादि इनके उदाहरण हैं। प्रत्येक परिवार को इन संस्थाओं के विषय में पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। राजकीय अस्पताल एवं अन्य स्वास्थ्य संगठन हमारी रोग एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। डाकखाना एवं बैंक हमें न केवल आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं, वरन् भविष्य के लिए की गई बचत पर उचित ब्याज भी देते हैं। जीवन बीमा निगम परिवार को आकस्मिक दुर्घटनाओं से होने वाली आर्थिक क्षति से सुरक्षित रखता है तो शैक्षिक संस्थाएँ शिक्षित समाज का आधार हैं। अतः उत्तम गृह-व्यवस्था के लिए सार्वजनिक साधनों का अधिकतम उपलब्ध होना भी आवश्यक है।
प्रश्न 7:
घर की अव्यवस्था या व्यवस्था के अभाव से होने वाली हानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था हर प्रकार से लाभदायक एवं महत्त्वपूर्ण होती है। इसके विपरीत यदि घर में अव्यवस्था या व्यवस्था का अभाव हो, तो विभिन्न प्रकार की हानियाँ हो सकती हैं। घर की अव्यवस्था से होने वाली मुख्य हानियाँ निम्नलिखित हैं
(1) कुशलता की कमी हो जाती है:
यदि घर में समुचित व्यवस्था का अभाव हो, तो परिवार का कोई भी सदस्य अपने कार्य को कुशलतापूर्वक नहीं कर पाता। इस स्थिति में पारिवारिक कार्य सुचारु रूप से नहीं हो पाते तथा परिवार की सुख-समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है।
(2) सामाजिक प्रतिष्ठा की हानि:
कार्यकुशलता का अभाव अथवा फूहड़पने समाज में परिवार की प्रतिष्ठा को गिराता है। फूहड़ स्त्री न तो समाज में सम्मान प्राप्त कर पाती है और न ही स्वयं अपने घर में। फूहड़पन से परिवार में कलह का वातावरण उत्पन्न होता है।
(3) धन एवं अन्य साधनों की बर्बादी:
अव्यवस्थित गृहिणियाँ पारिवारिक साधनों का अनुचित व अनावश्यक उपयोग करती हैं। ये आवश्यकता से अधिक भोजन बनाती हैं, जिससे इसकी बर्बादी होती है। इसी प्रकार अव्यवस्थित घर में अन्य खाद्य पदार्थों, वस्त्रों, सौन्दर्य प्रसाधन की सामग्रियों आदि की बर्बादी होती है। अव्यवस्थित गृहिणियाँ पारिवारिक बजट नहीं बनातीं, जिसके फलस्वरूप धन का अपव्यय होता है तथा परिवार कभी भी आर्थिक सुदृढ़ता नहीं प्राप्त कर पाता है।
(4) स्वास्थ्य की हानि:
गृह-व्यवस्था के अभाव में कुछ गृहिणियाँ भोजन एवं पोषण का आवश्यक ध्यान नहीं रखतीं, जिसके फलस्वरूप परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। स्वच्छता के अभाव में अव्यवस्थित घर में विभिन्न प्रकार के रोगाणु पनपते रहते हैं जो कि विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं।
(5) दुर्घटनाएँ:
आजकल घरों में विद्युत-चलित विभिन्न उपकरण, कुकिंग गैस व विभिन्न प्रकार की जटिल मशीनों एवं यन्त्रों का उपयोग किया जाता है। सुचारु गृह-व्यवस्था के अभाव में गृहिणी की थोड़ी-सी असावधानी किसी भी छोटी अथवा बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है। एक अव्यवस्थित घर में इस प्रकार की घटनाएँ प्रायः होती रहती हैं।
(6) पारिवारिक समन्वय व अनुशासन का अभाव:
एक अव्यवस्थित परिवार के सदस्यों में पारस्परिक समन्वय का सदैव अभाव रहता है। सभी सदस्य नियोजन व नियन्त्रण के सिद्धान्तों को महत्त्व न देकर अपनी इच्छानुसार कार्य करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कार्यकुशलता का अभाव रहता है तथा पारिवारिक कलह का वातावरण बना रहता है।
प्रश्न 8:
गृह-व्यवस्था के कुशल संचालन में किन-किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है? समझाइए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था के कुशल संचालन में बाधाएँ
निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि घर-परिवार की सुख-समृद्धि तथा उत्तम जीवन के लिए गृह-व्यवस्था आवश्यक है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक परिवार चाहता है कि सुचारू गृह-व्यवस्था को लागू किया जाए, परन्तु चाहते हुए भी अनेक बार व्यवहार में उत्तम गृह-व्यवस्था को लागू कर पाना सम्भव नहीं हो पाता। इसका मुख्य कारण है-गृह-व्यवस्था को लागू करने के मार्ग में उत्पन्न होने वाली विभिन्न बाधाएँ। इस प्रकार की मुख्य बाधाओं का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है|
(1) साधनों के ज्ञान का अभाव:
परिवार के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के साधनों की आवश्यकता होती है। अतः गृहिणी को विभिन्न साधनों तथा उनकी उपयोगिता का ज्ञान होना चाहिए। इस ज्ञान के अभाव में गृहिणी गृह-व्यवस्था का कुशल संचालन नहीं कर सकती।
(2) लक्ष्यों के ज्ञान का अभाव:
गृह-व्यवस्था का कुशल संचालन करने के लिए गृहिणी को परिवार के लक्ष्यों की पूरी जानकारी नहीं होती है। फलतः ऐसे परिवार गृह-व्यवस्था लागू करने में असमर्थ होते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि गृहिणी को गृह-व्यवस्था का कुशल संचालन करने के लिए लक्ष्यों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।
(3) कार्य-कुशलता का निम्न स्तर:
उत्तम गृह-व्यवस्था के लिए एक निश्चित स्तर की कार्य-कुशलता भी आवश्यक होती है। वास्तव में, पर्याप्त मात्रा में साधन उपलब्ध होने पर भी समुचित कार्य-कुशलता के अभाव में, गृह-व्यवस्था को बनाए रखना सम्भव नहीं होता। उदाहरण के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्य-सामग्री उपलब्ध होने पर भी यदि गृहिणी पाक-क्रिया में कुशल नहीं है, तो वह अपने परिवार को स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन प्रदान नहीं कर सकती। स्पष्ट है कि कार्य-कुशलता का निम्न स्तर भी गृह-व्यवस्था के मार्ग में एक मुख्य बाधक सिद्ध होता है।
(4) विभिन्न घरेलू समस्याएँ:
विभिन्न घरेलू समस्याएँ भी गृह-व्यवस्था के मार्ग में बाधक सिद्ध होती हैं। यदि परिवार की समस्याएँ विकराल एवं गम्भीर रूप धारण कर लें, तो स्थिति बिगड़ जाती है। ऐसे में समस्याओं का समाधान भी मुश्किल हो जाता है तथा गृह-व्यवस्था बनाए रखना भी कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए-निरन्तर रहने वाली पारिवारिक कलह, पति-पत्नी का गम्भीर मन-मुटाव या संयुक्त परिवार के सदस्यों में संघर्ष आदि कुछ ऐसे कारक होते हैं, जो उत्तम गृह-व्यवस्था के मार्ग में बाधक सिद्ध होते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
गृह-व्यवस्था का मनुष्य के जीवन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
व्यक्ति एवं परिवार के जीवन में सर्वाधिक महत्त्व व्यवस्था का है। व्यवस्थित जीवन ही प्रगति एवं सफलता की कुंजी है। पारिवारिक जीवन में व्यवस्था अति आवश्यक है। व्यवस्था द्वारा ही उपलब्ध साधनों का सदुपयोग किया जाता है तथा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है। यदि गृह-व्यवस्था का अभाव हो, तो सभी साधन उपलब्ध होते हुए भी लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो पाती। परिवार के सदस्यों की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यवस्था अति आवश्यक होती है अन्यथा आवश्यकताओं में आन्तरिक विरोध एवं असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। गृह-व्यवस्था की स्थिति में परिवार के सभी सदस्य परस्पर सहयोग से कार्य करते हैं तथा परिवार में अनुशासन का वातावरण बना रहता है। इसके विपरीत गृह-व्यवस्था के अभाव में परिवार के सदस्यों में न तो आपसी सहयोग रह पाता है और न ही अनुशासन ही बना रहता है। गृह-व्यवस्था का अच्छा प्रभाव परिवार के बच्चों के विकास पर भी पड़ता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि गृह-व्यवस्था परिवार के सभी पक्षों के लिए महत्त्वपूर्ण है। गृह-व्यवस्था के परिणामस्वरूप घर अथवा परिवार प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है तथा किसी भी प्रकार के आकस्मिक संकट का सामना भी सरलता से कर लेता है।
प्रश्न 2:
गृह-व्यवस्था में पति-पत्नी की भूमिका भी स्पष्ट कीजिए।
या
स्पष्ट कीजिए कि गृह-व्यवस्था का दायित्व केवल गृहिणी का नहीं बल्कि पति-पत्नी दोनों का होता है।
उत्तर:
सामान्य रूप से माना जाता है कि गृह-व्यवस्था का दायित्व गृहिणी या पत्नी का है, परन्तु यह धारणा भ्रामक एवं त्रुटिपूर्ण है। वास्तव में, उत्तम गृह-व्यवस्था के लिए पति तथा पत्नी दोनों को पूर्ण सहयोगपूर्वक कार्य करना चाहिए। इस सन्दर्भ में पति-पत्नी प्रायः पूरक की भूमिका निभाते हैं।
आधुनिक एकाकी परिवारों में गृह-व्यवस्था को उत्तम बनाने के लिए पुरुष अर्थात् पति को भी घरेलू कार्यों में यथासम्भव सहयोग प्रदान करना चाहिए। उदाहरण के लिए-पति को अनिवार्य रूप से बच्चों की देख-रेख में पत्नी को सहयोग प्रदान करना चाहिए। बाजार से आवश्यक वस्तुएँ खरीदने तथा घर के विभिन्न बिल आदि जमा करने के कार्य पुरुषों को ही करने चाहिए। इसी प्रकार परिवार की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए पत्नी को भी आर्थिक गतिविधियों में यथासम्भव योगदान देना चाहिए। अब बहुत-सी महिलाएँ नौकरी करती हैं अथवा किसी अन्य व्यवसाय में संलग्न होती हैं। ऐसे परिवारों में पति-पत्नी दोनों ही गृह-व्यवस्था में समान रूप से योगदान देते हैं। ऐसे परिवारों में पति को भी गृह-व्यवस्था में समान रूप से योगदान प्रदान करना चाहिए। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि गृह-व्यवस्था में स्त्री-पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वास्तव में, गृह-व्यवस्था की नीति को निर्धारित करते समय पति-पत्नी को परस्पर विचार-विमर्श अवश्य करना चाहिए। एक-दूसरे के सुझावों को समुचित महत्त्व प्रदान करना चाहिए तथा कोई भी अन्तिम निर्णय लेते समय उनमें मतैक्य होना चाहिए।
प्रश्न 3:
टिप्पणी लिखिए-परिवार में नैतिक मूल्यों की शिक्षा।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था का एक उल्लेखनीय उद्देश्य परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से बच्चों एवं किशोरों का नैतिक विकास करना भी है। वास्तव में, नैतिक-विकास के अभाव में गृह-व्यवस्था को सुचारु एवं उत्तम नहीं माना जा सकता। नैतिक विकास के लिए माता-पिता को नियोजित ढंग से प्रयास करने चाहिए तथा स्वयं नैतिक आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा नियोजित रूप से प्रदान करें।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
गृह-व्यवस्था को अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था को अर्थ–घर-परिवार में उपलब्ध साधनों के सदुपयोग के लिए उचित निर्णय लेना तथा लिए गए निर्णय के आधार पर परिवार के स्वीकृत लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपलब्ध साधनों का सदुपयोग करना।
प्रश्न 2:
गृह-व्यवस्था की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था के अन्तर्गत परिवार के साधनों का नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन’ आता है। -निकिल तथा डारसी
प्रश्न 3:
गृह-व्यवस्था के दो मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(i) परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा
(ii) पारिवारिक आय को उचित प्रकार से खर्च करना।
प्रश्न 4:
गृह-व्यवस्था के मूल तत्त्व क्या हैं?
उत्तर:
गृह-व्यवस्था के मूल तत्त्व हैं-नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन।
प्रश्न 5:
सुचारू गृह-व्यवस्था से प्राप्त होने वाले तीन मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:
- परिवार के सदस्यों की आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं,
- परिवार के आय-व्यय का नियोजन हो जाता है तथा
- रहन-सहन का स्तर उन्नत हो सकता है।
प्रश्न 6:
गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले गृह-सम्बन्धी कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- घर का सुविधाजनक होना,
- सफाई,
- जल, वायु तथा प्रकाश की उचित व्यवस्था,
- भोज्य सामग्री की व्यवस्था तथा
- घर की सामग्री की व्यवस्था।
प्रश्न 7:
गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले परिवार सम्बन्धी कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- पारिवारिक सौहार्द और समन्वय,
- आवश्यकतानुसार अनुकूलन,
- अच्छा आचरण, व्यवहार तथा आदतें,
- सुरक्षा की भावना,
- सामर्थ्य को ज्ञान तथा
- उन्नति
प्रश्न 8:
किसी गृहिणी को कुशल गृह-संचालन के लिए सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
उत्तर:
गृहिणी को परिवार में किए जाने वाले कार्यों की उपयुक्त योजना बनानी चाहिए।
प्रश्न 9:
पारस्परिक सहयोग से क्या लाभ होता है?
उत्तर:
श्रम का विभाजन होता है, कार्य सुगमतापूर्वक हो जाता है तथा घर का वातावरण सुखमय व शान्तिमय रहती है।
प्रश्न 10:
गृह-व्यवस्था के साधनों को कितने वर्गों में बाँटा जाता है?
उत्तर:
गृह-व्यवस्था के साधनों को तीन वर्गों में बाँटा जाता है
- भौतिक साधन,
- मानवीय साधन तथा
- सार्वजनिक साधन।
प्रश्न 11:
योजनानुसार कार्य करने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
योजनानुसार कार्य करने से धन, श्रम एवं समय की बचत होती है।
प्रश्न 12:
किसी गृहिणी को गृह-व्यवस्था के संचालन में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ हो सकती
उत्तर:
- लक्ष्य एवं साधनों का ज्ञान न होना,
- पारिवारिक समन्वय का अभाव तथा
- समस्याओं के निराकरण की अयोग्यता।
प्रश्न 13:
किस गृहिणी को कुशल गृहिणी कहेंगे?
उत्तर:
वहे गृहिणी कुशल गृहिणी कहलाएगी जो पारिवारिक आवश्यकताओं को व्यवस्थित ढंग से पूरा कर सके तथा परिवार के सभी सदस्यों का उचित सहयोग भी प्राप्त कर सके।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए
(1) गृह-व्यवस्था का वास्तविक उद्देश्य है
(क) कार्यों को कुशलतापूर्वक करना,
(ख) भविष्य के लिए बचत करना,
(ग) भोजन एवं पोषण का ध्यान रखना,
(घ) परिवार के सदस्यों को सुखी एवं सन्तुष्ट रखना।
(2) गृह-व्यवस्था का अर्थ है
(क) घर के सभी कार्यों को योजना बनाकर करना,
(ख) घर की आय-व्यय का लेखा-जोखा रखना,
(ग) पारिवारिक साधनों का उपयोग करना,
(घ) पारिवारिक जीवन को व्यवस्थित ढंग से चलाना।
(3) एक कुशल गृहिणी के लिए आवश्यक है
(क) पाक विज्ञान का उचित ज्ञान,
(ख) बच्चों के पालन-पोषण का ज्ञान,
(ग) समस्त गृह-कार्यों का ज्ञान,
(घ) प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान।
(4) गृह-व्यवस्था से सम्बन्धित साधन हैं
(क) भौतिक साधन,
(ख) मानवीय साधन,
(ग) सार्वजनिक साधन,
(घ) ये सभी साधन
(5) निम्नलिखित में से कौन-सा साधन भौतिक साधनों से सम्बन्धित नहीं है?
(क) धन,
(ख) कुकिंग गैस,
(ग) कूलर,
(घ) नौकर
(6) उत्तम गृह-व्यवस्था के लिए आवश्यक है
(क) पारिवारिक आय का अधिक होना,
(ख) परिवार के सदस्यों का अधिक होना,
(ग) विलासिता के साधन उपलब्ध होना ,
(घ) गृह-व्यवस्था का व्यावहारिक ज्ञान होना
(7) गृह-व्यवस्था के मार्ग में बाधा है
(क) उत्तम नियोजन,
(ख) समुचित ज्ञान का अभाव,
(ग) उपकरणों का अधिक उपयोग,
(घ) मकान का अधिक बड़ा होना।
उत्तर:
(1). (घ) परिवार के सदस्यों को सुखी एवं सन्तुष्ट रखना,
(2). (घ) पारिवारिक जीवन को व्यवस्थित ढंग से चलाना,
(3). (ग) समस्त गृह-कार्यों का ज्ञान,
(4). (घ) ये सभी साधन,
(5). (घ) नौकर,
(6). (घ) गृहव्यवस्था का व्यावहारिक ज्ञान होना,
(7). (ख) समुचित ज्ञान का अभाव।
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