UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 3 कार्य-व्यवस्था

By | May 23, 2022

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 3 कार्य-व्यवस्था

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 3 कार्य-व्यवस्था

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
कार्य-व्यवस्था से क्या आशय है? गृह-कार्य-व्यवस्था के महत्व को भी स्पष्ट कीजिए। या घर तथा परिवार के सन्दर्भ में कार्य-व्यवस्था के अर्थ को स्पष्ट कीजिए। सुचारू रूप से गृह-कार्य व्यवस्था का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कार्य-व्यवस्था का अर्थ

घर तथा परिवार के सन्दर्भ में कार्य-व्यवस्था से आशय है कि घर तथा परिवार से सम्बन्धित समस्त कार्यों को सुनियोजित ढंग से पूरा किया जाए। गृह-कार्य व्यवस्था के लिए समस्त कार्यों की योजना तैयार की जानी चाहिए और योजना के अनुसार कार्य किए जाने चाहिए। कार्य-प्रक्रिया पर समुचित नियन्त्रण रहना चाहिए तथा समय-समय पर कार्यों को समुचित मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए। यह कार्य-व्यवस्था का सैद्धान्तिक विवेचन है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी कार्य-व्यवस्था का अर्थ स्पष्ट करना आवश्यक है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से आवश्यक है कि सर्वप्रथम परिवार के समस्त कार्यों को निर्धारित कर लिया जाए तथा प्राथमिकता के अनुसार कार्यों का वर्गीकरण कर लिया जाए।

इसके उपरान्त समस्त कार्यों के किए जाने का समय भी निर्धारित कर लेना चाहिए। इतनी व्यवस्था हो जाने के उपरान्त विशेष सूझ-बूझ द्वारा समस्त कार्यों को करने के उत्तरदायित्व का विभाजन परिवार के सभी सदस्यों में करना चाहिए। परिवार के सदस्यों को पारिवारिक कार्य सौंपते समय उनकी योग्यता, क्षमता तथा समय सम्बन्धी सुविधाओं को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। उदाहरण के लिए-यदि परिवार में अवकाश प्राप्त वृद्ध पिता हों, जो प्रातः घूमने जाते हैं, तो उन्हें दूध लाने का कार्य सौंपा जा सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि घर-परिवार में समस्त कार्यों को अधिक-से-अधिक अच्छे, नियमित तथा सरल ढंग से पूरा करने की व्यवस्था ही गृह-कार्य-व्यवस्था है।

गृह-कार्य-व्यवस्था का महत्त्व

निःसन्देह रूप से कहा जा सकता है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यवस्था का विशेष महत्त्व है। व्यवस्था से सरलता, सुचारूता तथा उत्तमता के लक्ष्यों को सरलता से प्राप्त किया जा सकता है। व्यवस्थित ढंग से कोई भी कार्य करने से सामान्य रूप से कार्य में सफलता की प्राप्ति निश्चित हो जाती हैं तथा उत्तम परिणाम ही प्राप्त होते हैं। यही तथ्य घर-परिवार के सन्दर्भ में भी सत्य है। घर-परिवार के सन्दर्भ में कार्य-व्यवस्था के महत्त्व का सामान्य विवरण निम्नवर्णित है

(1) आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक:
परिवार के सभी सदस्यों की अनेक आवश्यकताएँ हुआ करती हैं। प्रत्येक आवश्यकता को पूरा करने के लिए कुछ-न-कुछ प्रयास या कार्य करने पड़ते हैं। इस स्थिति में यदि समस्त गृह-कार्यों को सुव्यवस्थित ढंग से किया जाता है, तो निश्चित रूप से निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति सरल हो जाती है। इस प्रकार हम  कह सकते हैं कि गृह-कार्य-व्यवस्था को अपनाकर ही हम परिवार के सभी सदस्यों की विभिन्न आवश्यकताओं की सुचारू ढंग से पूर्ति कर सकते हैं।

(2) उत्तम पारिवारिक वातावरण बनाए रखने में सहायक:
यदि किसी परिवार द्वारा उत्तम गृह-कार्य-व्यवस्था को व्यवहार में लागू कर लिया जाता है, तो उस स्थिति में परिवार के सभी सदस्यों में कार्यात्मक सामंजस्य बना रहता है। ऐसे में इनके आपसी सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण तथा सहयोगात्मक बने रहते हैं तथा सामान्य रूप से तनाव या परस्पर विरोध के अवसर नहीं आते। उत्तम गृह-कार्य-व्यवस्था की स्थिति में पारिवारिक कलह की भी प्रायः आशंका नहीं रहती।

(3) श्रम-विभाजन में सहायक:
परिवार के सदस्यों द्वारा उत्तम कार्य-व्यवस्था को लागू करने से श्रम-विभाजन की उत्तम व्यवस्था प्राप्त हो जाती है। इस स्थिति में परिवार के सभी सदस्यों को अपनी योग्यता, क्षमता तथा अभिरुचि के अनुसार कार्य उपलब्ध हो जाता है। यह व्यवस्था परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए विशेष रूप से सन्तोषदायक होती है।

(4) उत्तम गृह-अर्थव्यवस्था में सहायक:
परिवार की सुख-शान्ति एवं समृद्धि के लिए उत्तम गृह-अर्थव्यवस्था अति आवश्यक होती है। उत्तम गृह-कार्य-व्यवस्था परिवार की अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण होती है। उत्तम कार्य-व्यवस्था की स्थिति में परिवार के सभी कार्य सही समय पर तथा अच्छे ढंग से पूरे हो जाते हैं। इससे परिवार की अर्थव्यवस्था भी सही बनी रहती है तथा सामान्य रूप से किसी गम्भीर आर्थिक संकट को भी सामना नहीं करना पड़ता।

(5) परिवार के सदस्यों के उत्तम स्वास्थ्य में सहायक:
परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी गृह-कार्य-व्यवस्था लाभदायक सिद्ध होती है। उत्तम गृह-कार्य-व्यवस्था लागू होने की स्थिति में परिवार के किसी एक सदस्य को अधिक तथा अनावश्यक कार्य-भार नहीं सँभालना पड़ता। इसके अतिरिक्त कार्यों के छूट जाने की चिन्ता तथा  हानि को भी नहीं सहना पड़ता। इस प्रकार की व्यवस्था उपलब्ध होने पर परिवार के सदस्य स्वस्थ एवं सुखी जीवन व्यतीत करते हैं।

(6) रहन-सहन के स्तर को उन्नत बनाने में सहायक:
आज प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसका तथा उसके परिवार के रहन-सहन का स्तर उन्नत हो। उत्तम गृह-कार्य-व्यवस्था इसमें भी सहायक होती है। उत्तम कार्य-व्यवस्था होने की स्थिति में परिवार के सभी कार्य सही समय पर पूर्ण हो जाते हैं। ऐसी । स्थिति में परिवार के सदस्य अधिक धनोपार्जन कर सकते हैं तथा उसका उत्तम उपभोग भी कर सकते हैं। इससे परिवार के रहन-सहन का स्तर उन्नत होता है तथा परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होती हैं।

प्रश्न 2:
गृह-कार्य-व्यवस्था के मुख्य सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह-कार्य-व्यवस्था के सिद्धान्त

पारिवारिक सुख-शान्ति, प्रगति एवं समृद्धि के दृष्टिकोण से गृह-कार्य-व्यवस्था का विशेष महत्त्व है। गृह-कार्य-व्यवस्था को सफल व सुचारू बनाए रखने के लिए गृह-कार्य-व्यवस्था का सैद्धान्तिक ज्ञान होना आवश्यक होता है। गृह-कार्य-व्यवस्था के मुख्य सिद्धान्तों का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है

(1) गृह-कार्य-सुनियोजन:
गृह-कार्य-व्यवस्था को सुचारू रूप से लागू करने के लिए आवश्यक है कि समस्त कार्यों का पूर्व नियोजन किया जाए। इसके लिए आवश्यक है कि समस्त कार्यों को ध्यान में रखकर उनका विभाजन परिवार के सभी सदस्यों में कर देना चाहिए। कार्यों को सौंपते समय परिवार के सभी सदस्यों की योग्यता, क्षमता तथा सुविधा को ध्यान में रखना आवश्यक है। कार्यों का व्यवस्थित बँटवारा करने के साथ-ही-साथ कार्यों को करने का समय भी निर्धारित कर देना चाहिए। इस प्रकार गृह-कार्यों की जितनी अच्छी तथा व्यावहारिक योजना तैयार कर ली जाएगी, उतनी ही गृह-कार्य-व्यवस्था में सफलता प्राप्ति की सम्भावना बढ़ जाएगी।

(2) निर्धारित कार्य-योजना का नियन्त्रण:
गृह-कार्य-व्यवस्था का दूसरा सिद्धान्त सूझ-बूझ द्वारा तैयार की गई योजना को व्यावहारिक रूप से लागू करना है। इस सिद्धान्त को कार्य-योजना का नियन्त्रण कहा जाता है। कार्य-योजना के नियन्त्रण के अन्तर्गत यह देखना आवश्यक होता है कि परिवार , के विभिन्न सदस्यों को सौंपे गए कार्य ठीक ढंग से तथा ठीक समय पर किए जा रहे हैं या नहीं। परिवार के सदस्यों को समय-समय पर अपने-अपने कार्य करने के लिए निर्देश देना कार्य-योजना का नियन्त्रण ही है। कार्य-योजना के नियन्त्रण का दायित्व भी परिवार के मुखिया या गृहिणी को ही होता है। नियन्त्रित ढंग से गृह-कार्य होने पर अव्यवस्था की सम्भावना प्रायः नहीं रहती।

(3) कार्य-मूल्यांकन:
निर्धारित योजना के अनुसार सौंपे गए कार्यों को समय-समय पर मूल्यांकन भी किया जाना आवश्यक होता है। यह देखना होता है कि कौन-कौन से गृह-कार्य पूरे किए जा रहे हैं और कौन-कौन से कार्य समय पर नहीं हो पा रहे हैं? कार्य ठीक ढंग से हो रहे हैं या नहीं? गृह-कार्य-व्यवस्था में कार्य-मूल्यांकन का विशेष महत्त्व है। लेविन के अनुसार, मूल्यांकन के मुख्य रूप से चार उद्देश्य हैं

  1.  उपलब्धियों की जाँच,
  2. आगामी योजना के लिए आधार प्राप्त करना,
  3. निर्धारित योजना में यदि कुछ कमी है, तो उसमें सुधार के लिए आधार प्रस्तुत करना तथा
  4.  नए उपाय सुझाना।

(4) कुशलता:
गृह-कार्य-व्यवस्था के लिए आवश्यक है कि समस्त कार्य कुशलतापूर्वक किए जाएँ। कुशलता से आशय यह है कि समस्त गृह-कार्य सही ढंग से तथा सही समय पर पूरे किए जाएँ। कुशलतापूर्वक कार्य करना ही कार्य-व्यवस्था की मुख्य कसौटी है। भले ही योजना कितनी भी अच्छी क्यों न हो, यदि निर्धारित कार्य कुशलतापूर्वक न किए जाएं तो कार्य व्यवस्था दोषपूर्ण ही कहलाएगी। उदाहरण के लिए-बच्चे के जन्म-दिवस के अवसर पर योजना के अनुसार परिवार के सभी सदस्यों को भिन्न-भिन्न कार्य सौंप दिए जाते हैं। यदि निर्धारित समय तक सजावट पूरी नहीं हो पाती या मेहमानों के आ जाने के उपरान्त भी केक नहीं आता तो कहा जाएगा कि कार्य-कुशलता का अभाव है। यदि केक भी आ गया हो तथा मेज पर रख दिया गया हो परन्तु उस पर लगाने वाली मोमबत्तियाँ उपलब्ध न हों, तो भी कहा जाएगा कि कार्य-कुशलता का अभाव है। इस प्रकार कार्य-कुशलता का सर्वाधिक महत्त्व है। कुशलतापूर्वक किया गया प्रत्येक कार्य सन्तोष, आनन्द तथा प्रशंसा प्रदान करता है। यही गृह-कार्य-व्यवस्था का अन्तिम लक्ष्य है।

प्रश्न 3:
गृह-कार्य-व्यवस्था में सहायक कारकों का उल्लेख कीजिए।
या
उत्तम गृह-कार्य-व्यवस्था को लागू करने के लिए किन-किन कारकों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गृह-कार्य-व्यवस्था में सहायक कारक

यह सत्य है कि प्रत्येक परिवार चाहता है कि उसकी कार्य-व्यवस्था उत्तम हो। कार्य-व्यवस्था के उत्तम होने के लिए आवश्यक है कि कार्य-व्यवस्था के लिए अनुकूल कारकों का प्रभावपूर्ण ढंग से उपयोग किया जाए तथा कार्य-व्यवस्था के लिए प्रतिकूल कारकों को उन्मूलन किया जाए। कार्य-व्यवस्था के लिए अनुकूल कारक उन कारकों को कहा जाता है जो कार्य-व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक होते हैं। गृह-कार्य-व्यवस्था सुचारू रूप बनाए रखने में सहायक मुख्य कारकों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं

(1) उचित योजना का निर्धारण:
गृह-कार्य-व्यवस्था की सफलता के लिए आवश्यक है कि घर-परिवार से सम्बन्धित समस्त कार्यों को सम्पन्न करने के लिए उचित योजना का पूर्व-निर्धारण कर लिया जाए। इस कारक के अन्तर्गत व्यावहारिक दृष्टिकोण से निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना
आवश्यक होता है

  1. सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों की सूची बना लेनी चाहिए और उनका व्यवस्थित वर्गीकरण कर लेना चाहिए। दैनिक कार्यों, साप्ताहिक कार्यों, मासिक कायों तथा वार्षिक कार्यों की अलग-अलग सूची बना लेनी चाहिए। इसके अतिरिक्त आकस्मिक कार्यों के लिए भी अलग से प्रावधान होना चाहिए।
  2. प्रत्येक कार्य को करने का समय निश्चित कर लेना चाहिए। प्रत्येक कार्य में लगने वाला समय भी निर्धारित कर लेना चाहिए।
  3. परिवार के समस्त कार्यों को व्यवस्थित रीति से परिवार के सभी सदस्यों में बाँट देना चाहिए। कार्यों के इस बँटवारे के समय परिवार के सभी सदस्यों से विचार-विमर्श भी करना चाहिए तथा उनकी योग्यताओं, क्षमताओं, रुचियों आदि को भी ध्यान में रखना चाहिए।
  4.  कार्यों को करने में कार्यों के महत्त्व एवं अनिवार्यता को ध्यान में रखकर उनको प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  5. गृह-कार्यों की योजना लचीली होनी चाहिए अर्थात् परिस्थितियों के परिवर्तित होने की दशा में कार्यों के क्रम, प्राथमिकता आदि में परिवर्तन किया जा सकता है।

(2) कार्य-व्यवस्था में परिवार के सभी सदस्यों का सहयोग:
गृह-कार्य-व्यवस्था की सफलता के लिए अति आवश्यक कारक है-कार्य-व्यवस्था में परिवार के सभी सदस्यों का सहयोग प्राप्त करना। यदि परिवार के सभी सदस्य गृह-कार्यों की व्यवस्था में अपना-अपना सहयोग प्रदान करते हैं, तो सभी कार्य ठीक समय पर तथा सही ढंग से पूरे हो जाते हैं। इससे न तो गृह-कार्य अधूरे ही रह पाते हैं और न ही परिवार के किसी एक या दो सदस्यों पर अतिरिक्त बोझ ही पड़ता है। परिवार के सभी सदस्यों में यदि गृह-कार्यों का उचित बँटवारा कर दिया जाए, तो गृहिणी को भी लाभ होता है तथा परिवार के सदस्य भी पारिवारिक कार्यों में सहयोग देकर सन्तोष का अनुभव करते हैं। बिना विचार-विमर्श किए अथवा क्षमता और रुचि के विपरीत सौंपे गए कार्य थोपे गए लगते हैं, उन्हें पूर्ण करना भार महसूस होता है, घर का कार्य प्रत्येक व्यक्ति को सौंपने से उन्हें परिवार में अपने महत्त्व का अनुमान हो जाता है तथा वह अपने को उपेक्षित अनुभव नहीं करते परिवार में बड़ी-बूढ़ी स्त्रियाँ या पुरुष भी गृह-कार्यों में महत्वपूर्ण सहयोग दे सकते हैं।

अनाज तथा दालें साफ करना, साग बीनना या सब्जी काटने का कार्य बड़ी-बूढ़ी औरतें बड़े चाव से करती हैं तथा अच्छे ढंग से भी करती हैं। यदि परिवार में कोई वृद्ध पुरुष हो, तो वह निकट के पार्क या बागे में बच्चों को घुमाने ले जा सकते हैं। किशोर बच्चों को घर की वस्तुएँ; जैसे कि कपड़े, किताबें आदि समेटकर यथास्थान रखने का कार्य सौंपा जा सकता है। ये बच्चे ही जूतों को साफ करने, बिस्तर बिछाने तथा झाड़-पोंछ करने का कार्य भी कर सकते हैं। परिवार की कार्य-व्यवस्था को सुचारू एवं सरल बनाने के लिए पति को भी गृह-कार्यों में यथासम्भव सहयोग देना चाहिए।

(3) गृह-कार्य करने की सही विधियों का ज्ञान:
गृह-कार्यों की व्यवस्था में सहायक कारकों में कार्य करने की सही विधियों का ज्ञान भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वास्तव में, कार्य करने के परम्परागत ढंग एवं विधियाँ आज के वैज्ञानिक युग के लिए उपयुक्त नहीं रहीं। अब सभी कार्यों को अच्छे ढंग से करने के लिए नई-नई विधियों को अपनाया जा रहा है। कम समय तथा कम श्रम द्वारा कार्यों को पूरा करना ही अभीष्ट समझा जाता है। कार्य करने की यान्त्रिक विधियों को अपनाना चाहिए। सही विधियों को अपनाकर कार्य करने से जहाँ एक ओर समय तथा श्रम की बचत होती है, वहीं कार्य अच्छे ढंग से पूरा होता है तथा घर की वस्तुएँ भी नष्ट होने से बच जाती हैं। उदाहरण के लिए यदि घर पर सही विधि को अपनाकर खाना पकाया जाए तो निश्चित रूप से श्रम तथा समय की बचत होती है तथा पकाए गए भोजन के पोषक तत्त्वों को भी नष्ट होने से बचाया जा सकता है।

(4) अच्छे तथा पर्याप्त भौतिक साधन उपलब्ध होना:
गृह-कार्यों को व्यवस्थित रूप में पूरा करने के लिए अनिवार्य है कि कार्य करने में सहायक अच्छे तथा पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। अच्छे साधनों द्वारा कार्य करने से कार्य-कुशलता बढ़ती है तथा समय एवं श्रम की बचत होती है। उदाहरण के लिए-सब्जी काटने तथा छीलने के लिए अच्छा तेज चाकू तथा पिलर आदि का होना आवश्यक है। पर्याप्त संख्या में आवश्यक बर्तन होने भी आवश्यक हैं। यदि घर में एक से अधिक प्रेशर-कुकर हों तो एक के बाद दूसरा व्यंजन बनाने के लिए कुकर को धोना नहीं पड़ता तथा एक साथ ही गैस के दोनों चूल्हों पर दो कुकर चढ़ाए जा सकते हैं। इससे काम शीघ्र पूरा हो जाएगा तथा कुकर को तुरन्त नहीं धोनी पड़ेगा। इसी प्रकार कपड़े धोने की मशीन, मिक्सर-ग्राइण्डर, ओवन, टोस्टर आदि यन्त्रों के उपलब्ध होने पर सभी कार्य शीघ्र, उत्तम तथा सरलता से पूरे हो जाते हैं तथा गृह-कार्य-व्यवस्था बनी रहती है।

(5) अनुभव एवं ज्ञान:
गृह-कार्य-व्यवस्था को सुचारू बनाने में सहायक कारक कार्य-अनुभव भी है। वास्तव में, किसी भी कार्य को स्वयं करने से अनेक बातों की जानकारी प्राप्त हो जाती है। जैसे-जैसे कार्य का अनुभव होता है, वैसे-वैसे उसे करने की त्रुटियाँ कम होती हैं तथा कार्य सही समय पर पूरा होने लगता है।
अनुभव के साथ-ही-साथ ज्ञान का भी विशेष महत्त्व होता है। गृह-कार्यों को समुचित ज्ञान माता-पिता या अन्य अनुभवी व्यक्तियों से भी प्राप्त हो सकता है तथा पुस्तकों से भी आवश्यक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 4:
गृह-कार्य-व्यवस्था को कुप्रभावित करने वाले अर्थात् प्रतिकूल कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गह-कार्य-व्यवस्था को कपभावित करने वाले कारक यह सत्य है कि कुछ कारक गृह-कार्य-व्यवस्था में सहायक होते हैं। परन्तु इसके साथ-साथ यह भी सत्य है कि कुछ कारक ऐसे भी होते हैं जो गृह-कार्य-व्यवस्था पर बुरा प्रभाव डालते हैं। गृह-कार्य-व्यवस्था पर बुरा प्रभाव डालने वाले कारकों को, कार्य-व्यवस्था को कुप्रभावित करने वाले कारक कहा जाता है। इस प्रकार के कारकों के प्रबल हो जाने की दशा में गृह-कार्य-व्यवस्था बिगड़ जाती है तथा घरेलू कार्य सुचारू रूप से नहीं हो पाते। कार्य-व्यवस्था को कुप्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का संक्षिप्त परिचय निम्नवर्णित हैं

(1) सूझ-बूझ की न्यूनता:
यदि गृहिणी तथा परिवार के अन्य मुख्य सदस्यों में गृह-कार्य सम्बन्धी आवश्यक सूझ-बूझ की कमी हो तो अधिक-से-अधिक साधन सम्पन्न होने पर भी गृह-कार्य-व्यवस्था सुचारू रूप से नहीं चल सकती। सूझ-बूझ की न्यूनता या अभाव गृह-कार्य-व्यवस्था को गम्भीर रूप से प्रभावित करती है।

(2) आवश्यक साधनों का अभाव:
गृह-कार्य-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ साधनों की भी आवश्यकता होती है। इन साधनों को ही सूझ-बूझ से इस्तेमाल करके सफलतापूर्वक गृह-कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। यदि परिवार में आवश्यक साधनों का अभाव हो, तो सूझ-बूझ होते हुए भी गृह-कार्य-व्यवस्था को उत्तम नहीं बनाए रखा जा सकता। पारिवारिक साधनों में सर्वाधिक महत्त्व आर्थिक साधनों का होता है। इस स्थिति में कहा जा सकता  है कि आवश्यक साधनों का अभाव भी पारिवारिक कार्य-व्यवस्था को कुप्रभावित करने वाला एक उल्लेखनीय कारक है। उदाहरण के लिए—भले ही गृहिणी कितनी भी कार्यकुशल एवं गृह-कार्यों में दक्ष क्यों न हो, यदि उसके भण्डार-गृह में कच्ची खाद्य सामग्री न हो, ईंधन एवं अन्य उपकरण उपलब्ध न हों, तो वह परिवार के सदस्यों के लिए भोजन तैयार नहीं कर सकती।

(3) पारिवारिक-कलह:
गृह-कार्यों को करने की सूझ-बूझ तथा समस्त आवश्यक साधनों के उपलब्ध होने पर भी यदि परिवार में सौहार्दपूर्ण वातावरण न हो, तो गृह-कार्य-व्यवस्था सुचारू रूप से लागू नहीं की जा सकती। परिवार में कलह एवं तनाव का वातावरण होने की स्थिति में न तो गृहिणी स्वयं ही रुचिपूर्वक गृह-कार्यों को कर पाती है और न ही उसे परिवार के अन्य सदस्यों का सहयोग ही प्राप्त हो पाता है। ऐसी स्थिति में गृह-कार्य-व्यवस्था कैसे सुचारू रूप से चल सकती है? इस प्रकार कहा जा सकता है कि पारिवारिक कलह भी गृह-कार्य-व्यवस्था को कुप्रभावित करने वाला एक प्रबल कारक है।
प्रत्येक गृहिणी तथा परिवार के अन्य वरिष्ठ सदस्यों का दायित्व है कि वे गृह-कार्य-व्यवस्था को कुप्रभावित करने वाले कारकों के प्रति सजग रहें तथा इन कारकों को प्रबल न होने दें।

प्रश्न 5:
कार्य-व्यवस्था के विभिन्न साधनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कार्य-व्यवस्था के निम्नलिखित दो साधन हैं
(1) मानवीय अथवा अमूर्त साधन।
(2) अमानवीय अथवा भौतिक साधन।

(1) मानवीय अथवा अमूर्त साधन:
इन साधनों के अन्तर्गत मनुष्यों में पाए जाने वाले गुण, कौशल एवं विशेषताओं को सम्मिलित किया जाता है। ये निम्नलिखित हैं
(i) रुचि:
रुचि मनुष्य की एक मनोवैज्ञानिक विशेषता है। कुछ रुचियाँ मनुष्यों में जन्म से होती हैं। तो कुछ समय के साथ-साथ विकसित होती हैं। इन मनोवैज्ञानिक साधनों का प्रयोग कर लड़कों को व्यायाम, खेल-कूद तथा अन्य साहसिक कार्यों के लिए तथा लड़कियों को ललित कलाओं के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

(ii) ज्ञान:
शिक्षित गृहिणी को कार्य-व्यवस्था का अधिक ज्ञान होता है। वह उत्तम कार्य-व्यवस्था का सरलता से पालन करती है। अच्छी सन्तान के विकास के लिए भी माता का शिक्षित होना आवश्यक है।

(iii) शक्ति:
गृहिणियों में शारीरिक शक्ति शारीरिक कार्यों के लिए तथा मानसिक शक्ति मानसिक कार्यों के लिए कुशलता का साधन है।

(iv) योग्यता एवं प्रवीणता:
प्रायः सभी लड़कियाँ गृह-कार्य (खाना बनाना, सिलाई, कढ़ाई, गृह-परिचर्या आदि) करने की योग्यता रखती हैं, परन्तु उनका इन कार्यों में प्रवीण या दक्ष होना आवश्यक नहीं है। प्रवीणता का गृह-प्रबन्ध में अत्यधिक महत्त्व है। इसका विकास निरन्तर अभ्यास एवं अनुभव द्वारा किया जा सकता है।

(v) समय:
यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण साधन है, क्योंकि इसके अभाव में कार्य योजनाओं का क्रियान्वयन लगभग असम्भव ही है। अतः समय का सदुपयोग करना चाहिए।

(2) अमानवीय अथवा भौतिक साधन
ये निम्नलिखित हैं

(i) धन:
धन का अर्थ विनिमय मूल्य है। हमारे देश में रुपया विनिमय का माध्यम है। धन से लगभग सभी भौतिक साधन प्राप्त किए जा सकते हैं। धन के अन्तर्गत वेतन एवं ब्याज द्वारा अर्जित आय इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है।

(ii) भौतिक वस्तुएँ:
मकान, फर्नीचर, गृह-सज्जा की वस्तुएँ, खाद्य पदार्थ, बर्तन, वस्त्र, मशीनें वाहन आदि प्रमुख भौतिक वस्तुएँ हैं। इनका अपना अलग-अलग महत्त्व है। किसी परिवार में इनका . आपेक्षित मात्रा में होना उस परिवार के आर्थिक स्तर पर निर्भर करता है।

(iii) सार्वजनिक गएँ:
ये सुविधाएँ किसी समय केवल बड़े नगरों तक ही सीमित थीं। आज इन सुविधाओं को गाँवों तक पहुँचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। स्वास्थ्य केन्द्र, राजकीय अस्पताल व शिक्षा संस्थाएँ, बाजार, जीवन बीमा निगम, डाकखाने, बैंक, यातायात व मनोरंजन के साधन आदि अनेक सार्वजनिक सुविधाएँ हैं, जिनके उपलब्ध होने से परिवार के साधन बढ़ जाते हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रायः मानवीय व भौतिक  साधनों का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा इन दोनों प्रकार के साधनों के सन्तुलन, उपलब्धि एवं समायोजन पर ही परिवार एवं समाज की प्रगति निर्भर करती है। उत्तम एवं सुचारू गृह कार्य-व्यवस्था के लिए सभी साधन उपलब्ध होना आवश्यक माना जाता है।

प्रश्न 6:
एक गृहिणी को दैनिक जीवन से समय, अर्थ एवं श्रम की बचत के लिए किन उपायों एवं उपकरणों की सहायता लेनी चाहिए? समझाइए।
या
गृह-संचालन में धन, श्रम और समय की बचत आप किस प्रकार करेंगी?
या
गृह के संचालन में समय, अर्थ व श्रम की बचत किन-किन उपायों द्वारा की जा सकती है? विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर:
गृहिणी गृह की संचालिका है। नि:सन्देह उसे गृह के अधिकांश कार्य स्वयं सम्पन्न करने पड़ते हैं, जिससे उसे बहुत श्रम करना पड़ता है। प्रत्येक गृहिणी की शारीरिक शक्ति सीमित होती है। इस स्थिति में यदि कुछ बातों को ध्यान में न रखा जाए तो गृहिणी को गृह- कार्यों से अधिक थकान हो सकती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कुछ ऐसे उपाय किए जाने चाहिए, जो गृहिणी के समय तथा श्रम को बचाने में सहायक हों।

समय व श्रम की बचत के उपाय

निम्नलिखित उपाय एवं उपकरणों की सहायता से समय व श्रम की बचत होती है

  1. कार्य करते समय यह ध्यान रखें कि इसके लिए अनावश्यक क्रियाएँ अथवा श्रम न करना पड़े। उदाहरण के लिए-वस्तुओं को एक व्यवस्थित क्रम में रखने पर कार्य करने के समय उनको ढूंढ़ने में समय अथवा श्रम व्यर्थ नहीं होता।
  2.  खाद्य पदार्थ, मिर्च, मसाले आदि सामग्री, बर्तन इत्यादि का रसोई-गृह में इस क्रम में रखा जाए जिससे कि उनको लेने-रखने में अधिक चलना, झुकनां व उचकना न पड़े।
  3. एक साथ उपयोग में आने वाली आवश्यक वस्तुओं को एक साथ रखें; जैसे–मिर्च, मसाले व नमक आदि को मसालेदानी में रखें। चीनी एवं चाय की पत्ती को पास-पास ही रखें।
  4. श्रम व समय की बचत करने वाले उपकरणों एवं यन्त्रों; जैसे-गैस का चूल्हा, प्रेशर कुकर, वाशिंग मशीन, बिजली की प्रेस आदि का यथासम्भव प्रयोग किया जाना चाहिए।
  5. प्रयोग में आने वाले सभी उपकरण ठीक स्थिति में होने चाहिए तथा इनकी गुणवत्ता भी सन्तोषजनक होनी चाहिए।
  6.  कार्य करते समय गृहिणी की शारीरिक स्थिति अथवा उठने, बैठने व खड़े होने का ढंग इस प्रकार हो कि जिसमें कम-से-कम थकावट हो।
  7.  एक कार्य करते हुए गृहिणी जब थकने लगे, तो उसे कार्य-परिवर्तन करना चाहिए।
  8. मेज-कुर्सी आदि फर्नीचर गृहिणी की ऊँचाई के अनुसार होने चाहिए, जिससे थकावट कम हो।
  9.  सभी दैनिक कार्यों को उपयुक्त योजना बनाकर करना चाहिए।
  10. परिवार के सभी सदस्यों के मध्य उनकी कार्यक्षमता एवं योग्यता के अनुसार कार्यों का विभाजन करना चाहिए।

अर्थ (धन) की बचत के उपाय

परिवार की लगभग सभी आवश्यकताएँ आर्थिक साधनों अर्थात् धन पर निर्भर करती हैं। अतः आर्थिक साधनों का सोच-समझकर व नियन्त्रित ढंग से उपयोग करना चाहिए तथा भविष्य के लिए बचत का प्रावधान अवश्य रखना चाहिए। अग्रलिखित उपायों से यह सम्भव हो सकती है

(1) आय-व्यय में सन्तुलन बनाए रखना:
परिवार के आर्थिक साधन प्रायः सीमित होते हैं, परन्तु आवश्यकताएँ अनन्त होती हैं। अतः आय-व्यय का सन्तुलन प्रमुख आवश्यकताओं की पूर्ति को ही प्राथमिकता देकर किया जा सकता है। आय के साधनों एवं आवश्यकताओं के अनुसार प्रत्येक गृहिणी को बजट बनाना चाहिए तथा उसे सिद्धान्त रूप से बजट में निर्धारित मदों पर निर्धारित धनराशि का ही व्यय करना चाहिए।

(2) मितव्ययिता के उपाय प्रयोग में लाना:
निम्नलिखित उपायों के आधार पर गृहिणी दैवीक जीवन में धन की बचत कर सकती है

  1.  केवल अत्यावश्यक वस्तुओं को ही खरीदना।
  2.  समान पौष्टिक गुणों वाले सस्ते खाद्य पदार्थ खरीदना।
  3. प्रतिकूल ऋतु में सस्ता सामान खरीदना, जैसे कि ग्रीष्म ऋतु में ऊन।
  4.  पानी, ईंधन व बिजली का केवल आवश्यक उपयोग करना।
  5.  खाद्य पदार्थों की बर्बादी न करना।
  6.  कम-से-कम नौकर रखना।
  7. बच्चों को ट्यूटर न रखकर स्वयं पढ़ाना।

प्रश्न 7:
गृह की सुव्यवस्था के लिए गृहिणी में किन गुणों का होना आवश्यक है? लिखिए।
या
एक कुशल गृहिणी अपना घर किस प्रकार सुव्यवस्थित रख सकती है? समझाइए।
या
गृह की सुव्यवस्था के लिए एक आदर्श गृहिणी में किन-किन गुणों का होना आवश्यक है? विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
गृहिणी गृह-संचालन में मुख्य भूमिका निभाती है। वह पत्नी, माता, गुरु व गृह-स्वामिनी के कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने गृह में समृद्धि, सुख एवं सन्तोष का वातावरण बनाए रखती है। गृह
की सुव्यवस्था के लिए प्रत्येक गृहिणी में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है|

(1) कर्तव्यों का ज्ञान:
पति से मधुर व्यवहार करना, सास-ससुर का आदर करना, ननद व देवर से स्नेह रखना, अतिथियों का सत्कार करना, बच्चों से प्रेम करना व उन्हें अच्छी शिक्षा देना आदि ऐसे कर्तव्य हैं, जिनका पालन कर गृहिणी सबका हृदय जीत लेती है।

(2) अनुकूलता:
एक कुशल गृहिणी परिवार के सभी सदस्यों से मधुर सम्बन्ध बनाए रखती है। वह प्रत्येक सदस्य की अभिरुचियों, कार्यक्षमता व भावनाओं का ज्ञान रखती है तथा गृह की सुव्यवस्था में सदस्यों से अपेक्षित सहयोग प्राप्त करती है।

(3) परिश्रमी होना:
गृह-कार्यों को करने के लिए प्रत्येक गृहिणी को परिश्रमी होना चाहिए। इसके लिए गृहिणी को सामान्य स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए।

(4) चरित्रवान होना:
अच्छे चरित्र को बच्चों पर व परिवार के अन्य सदस्यों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। अतः गृहिणी का चरित्रवान होना अनिवार्य है।

(5) कार्य-कुशलता:
गृह की सुयवस्था के लिए गृहिणी का गृह-कार्यों में निपुण होना अत्यन्त आवश्यक है। कुशल गृहिणी के सभी का सही समय पर होते हैं, घर स्वच्छ रहता है तथा परिवार के सभी सदस्य सन्तुष्ट रहते हैं।

(6) भोजन की सुव्यवस्था:
भोजन शरीर के विकास एवं निर्माण का आधार है। रुचिकर एवं पौष्टिक भोजन परिवार के सदस्यों को सन्तुष्ट एवं स्वस्थ रखता है। एक कुशल गृहिणी अपने परिवार के सदस्यों के लिए उनकी आवश्यकता के अनुसार पौष्टिक तथा सन्तुलित आहार की व्यवस्था करती है। परिवार में बच्चों, वृद्धों एवं रोगी सदस्यों के लिए कुछ भिन्न प्रकार के आहार की आवश्यकता हो सकती

(7) गृह-परिचर्या:
प्रत्येक गृहिणी को गृह-परिचर्या का आवश्यक ज्ञान होना चाहिए, जिससे कि वह समय पड़ने पर घर पर परिवार के किसी रोगी सदस्य की उचित देखभाल कर सके।

(8) नियोजन का ज्ञान:
प्रत्येक गृहिणी को सभी गृह-कार्य एक उचित योजना बनाकर करने चाहिए। इससे समय व श्रम की बचत होती है।

(9) आय-व्यय का सन्तुलन:
प्रत्येक गृहिणी को आय-व्यय का सन्तुलन बनाए रखने के लिए बजट बनाना चाहिए। धन को प्रायः आवश्यक कार्यों में ही व्यय करना चाहिए तथा भविष्य के लिए बचत का प्रावधान रखना चाहिए।

(10) परिवार में शान्ति बनाए रखना:
प्रत्येक गृहिणी को महत्त्वपूर्ण कार्य सभी सदस्यों के परामर्श से करने चाहिए। गृहिणी को सभी सदस्यों से यथोक्ति व्यवहार करना चाहिए तथा आपसी मनमुटाव व झगड़ों को हतोत्साहित करना चाहिए। इस दृष्टिकोण को अपनाने से परिवार का वातावरण सौहार्दपूर्ण बना रहता है।

(11) सेवकों के प्रति व्यवहार:
सेवकों को समय पर वेतन देना चाहिए तथा उनके अच्छे कार्यों की प्रशंसा करनी चाहिए। सेवकों के प्रति सन्तुलित व्यवहार रखना चाहिए अर्थात् उनके प्रति न तो अधिक कठोर व्यवहार करना चाहिए और न ही उन्हें आवश्यकता से अधिक ढील ही दी जानी चाहिए।

(12) अतिथि सत्कार:
प्रत्येक गृहिणी को अतिथियों का समुचित आदर-सत्कार करना चाहिए। इससे परिवार को सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।

(13) पति के प्रति कर्तव्य:
पति की सेवा करना व आज्ञा-पालन करना गृहिणी का सबसे महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है। अच्छे-अच्छे कार्यों के लिए पति को उत्साहित करना, मानसिक व आर्थिक कठिनाइयों में  पति का साहस बढ़ाना, गृहस्थी के दायित्वों के प्रति पति को सदैव सजग रखना इत्यादि ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्य हैं, जिनको अपने प्रेमपूर्ण व्यवहार से केवल एक कुशल गृहिणी ही कर सकती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
एक गृहिणी को अपने कार्यों का विभाजन किस प्रकार करना चाहिए? कार्य-विभाजन से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
कार्यों का विभाजन प्रायः निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है –

(1) दैनिक कार्य:
 बच्चों को प्रतिदिन स्कूल भेजना, घर की सफाई, दोनों समय भोजन व सुबह नाश्ता तैयार करना इत्यादि दैनिक कार्य कहलाते हैं।
(2) साप्ताहिक कार्य: बाजार से साप्ताहिक सामग्री लाना व धोबी को कपड़े देना व लेना आदि प्रायः प्रत्येक परिवार में साप्ताहिक कार्य होते हैं।
(3) मासिक कार्य: मकान का किराया व बिजली-पानी का बिल देना, दूध वाले व समाचार-पत्र वाले का हिसाब करना तथा आय-व्यय का बजट रखना आदि प्रमुख मासिक कार्य हैं।
(4) वार्षिक कार्य: मकान में रंगाई-पुताई करवाना, जीवन बीमा की वार्षिक किश्त देना व आयकर का भुगतान करना इत्यादि प्रमुख वार्षिक कार्य होते हैं।
(5) आकस्मिक कार्य: परिवार में अतिथियों के आने पर उनका आदर-सत्कार, अचानक यात्रा पर जाना, विवाह, किसी सदस्य की अस्वस्थता सम्बन्धी कार्य आदि आकस्मिक कार्य कहलाते हैं।
कार्य-विभाजन के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं

  1. सभी सदस्यों को कार्य अपनी योग्यता के अनुसार मिल जाते हैं।
  2.  घर में व्यवस्था बनी रहती है।
  3.  गृहिणी के श्रम व समय की बचत होती है।

प्रश्न 2:
टिप्पणी लिखिए-गृह-कार्य-व्यवस्था में सहायक उपकरण।
उत्तर:
वर्तमान नगरीय जीवन विभिन्न कारणों से अत्यधिक व्यस्त हो गया है। प्रत्येक शहरी व्यक्ति समय की कमी से परेशान है। इस तथ्य का गम्भीर प्रभाव गृह-कार्य-व्यवस्था पर भी पड़ा है। अब गृह-कार्यों को करने के लिए सीमित समय ही उपलब्ध हो पाता है। इस स्थिति में स्वाभाविक ही था कि गृह-कार्यों को करने के लिए यथासम्भव अधिक-से-अधिक उपकरणों को खोजा जाता। वैज्ञानिक प्रगति ने इस क्षेत्र में विशेष सहायता प्रदान की तथा अनेक ऐसे उपकरण दिए जो गृह-कार्यों को कम समय तथा कम श्रम द्वारा पूरा करने में सहायक होते हैं। घरेलू कार्यों में दो प्रकार के कार्य नियमित रूप से किए जाते हैं। ये कार्य हैं–रसोई एवं पाक-क्रिया सम्बन्धी कार्य तथा घर  की सफाई सम्बन्धी कार्य। इन दोनों ही वर्गों के कार्यों को करने के लिए विभिन्न ऐसे उपकरण तैयार किए जा चुके हैं जो समय, श्रम तथा धन की बचत में सहायक होते हैं। इनमें से रसोईघर में उपयोग में आने वाले मुख्य उपकरण हैं-कुकर, विद्युत चालित केतली, टोस्टर, मिक्सर ग्राइण्डर, गैस का चूल्हा, ओवन, फ्रिज आदि। इनके अतिरिक्त घर की सफाई के लिए उपयोगी उपकरण हैं-वैक्यूम क्लीनर, कारपेट स्वीपर, बर्तन धोने की मशीन, कपड़े धोने की मशीन आदि। ये सभी उपकरण गृह-कार्यों को कम समय, कम श्रम तथा कम खर्चे में पूरी कर देते हैं। अतः इन सभी उपकरणों को गृह-कार्य-व्यवस्था में सहायक उपकरण माना जाता है।

प्रश्न 3:
गृह-कार्य-व्यवस्था का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
गृह-कार्य-व्यवस्था के महत्त्व को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है

  1.  इससे परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
  2.  पारिवारिक सदस्यों के मध्य कार्यों के विभाजन से उनकी कार्यक्षमता का उचित उपयोग होता है, श्रम का विभाजन होता है तथा सभी सदस्य सन्तोष का अनुभव करते हैं।
  3.  उपयुक्त कार्य-व्यवस्था के फलस्वरूप परिवार में आर्थिक सन्तुलन बना रहता है।
  4.  परिवार के सदस्यों के मध्य सद्भावना बनी रहती है।
  5. रहन-सहन का स्तर सुधरता है तथा परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।

प्रश्न 4:
गृह-कार्यों में परिवार के सदस्यों के सहयोग का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कोई भी गृहिणी घर के सभी कार्यों को अकेले नहीं कर सकती। अपने मधुर व्यवहार एवं कार्य लेने की योग्यता के आधार पर वह परिवार के अन्य सदस्यों का सहयोग प्राप्त करती है। वह सदस्यों के मध्य उनकी योग्यता एवं रुचि के अनुसार कार्यों का विभाजन करती है, जिसके फलस्वरूप कार्य कम समय में व अधिक कुशलतापूर्वक सम्पन्न होते हैं। इस प्रकार सदस्यों के सहयोग से गृह-कार्यों में श्रम व समय की बचत होती है तथा कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 5:
गृह-कार्य-व्यवस्था को पारिवारिक आय किस प्रकार प्रभावित करती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गृह-कार्य-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा प्रबल कारक है-पारिवारिक आय। समुचित पारिवारिक आय के अभाव में गृह-कार्य-व्यवस्था सुचारू हो ही नहीं सकती। वास्तव में गृह-कार्य के लिए विभिन्न भौतिक साधन अनिवार्य होते हैं। भौतिक साधनों को अर्जित करने के लिए धन की आवश्यकता होती है तथा धन की प्राप्ति आय के माध्यम से होती है। आये से आशय है-एक निश्चित  अवधि में अर्जित वह धनराशि जो आर्थिक प्रयासों के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है तथा जिसमें अन्य सुविधाएँ; जैसे-नि:शुल्क मकान, नि:शुल्क चिकित्सा तथा नि:शुल्क शिक्षा आदि भी सम्मिलित रहती हैं।

गृह-कार्य-व्यवस्था के लिए आय के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है कि यदि परिवार की आय अपर्याप्त है, तो पर्याप्त सूझ-बूझ, कार्य-कुशलता तथा परिवार के सदस्यों में सहयोग होने पर भी गृह-कार्य-व्यवस्था सुचारू रूप से नहीं चल सकती, क्योंकि गृह-कार्यों के लिए आवश्यक भौतिक साधनों को अर्जित करने के लिए पारिवारिक आय अनिवार्य है। उदाहरण के लिए यदि परिवार की आय पर्याप्त है, तो गृह-कार्य-व्यवस्था को उत्तम बनाने के लिए श्रम एवं समय की बचत करने वाले विभिन्न उपकरण खरीदे जा सकते  हैं तथा उनके माध्यम से गृह-कार्य सरलतापूर्वक ठीक समय पर पूरे किए जा सकते हैं। इसके विपरीत, यदि परिवार की आय कम है, तो पर्याप्त कार्य-कुशल गृहिणी भी अपने परिवार को अच्छा एवं पौष्टिक आहार तक उपलब्ध नहीं करा सकती, क्योंकि उसके लिए भी पर्याप्त खाद्य-सामग्री चाहिए।

उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि उत्तम गृह-व्यवस्था के लिए पारिवारिक आय पर्याप्त होनी चाहिए, परन्तु पर्याप्त आय होने पर भी सूझ-बूझ, कार्य-कुशलता, लगन तथा परिवार के सदस्यों के पारस्परिक सहयोग का भी विशेष महत्त्व होता है।

प्रश्न 6:
टिप्पणी लिखिए-परिवार कल्याण तथा गृह-कार्य-व्यवस्था।
उत्तर:
गृह-कार्य-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक है-परिवार कल्याण। परिवार कल्याण अपने आपमें एक दृष्टिकोण है, जिसके अन्तर्गत परिवार के सर्वांगीण हितों को ध्यान में रखा जाता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार परिवार के सभी सदस्यों के लिए पर्याप्त तथा सन्तुलित आहार, शिक्षा, चिकित्सा तथा मनोरंजन सम्बन्धी सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए। उत्तम आवास तथा स्वास्थ्य में सहायक रहन-सहन की दशाएँ भी परिवार-कल्याण के लिए आवश्यक मानी जाती हैं। परिवार कल्याण के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ही परिवार को सीमित रखने का सुझाव दिया जाता है। । परिवार कल्याण के दृष्टिकोण को अपना लेने की स्थिति में  गृह-कार्य-व्यवस्था को भी उसी के अनुरूप ढालना पड़ता है। परिवार के सभी सदस्यों को परिवार के कल्याण सम्बन्धी कार्यों के प्रति जागरूक होना पड़ता है। बच्चों की उत्तम शिक्षा के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास करने पड़ते हैं। बच्चों के स्वास्थ्य के विकास के लिए भी समय एवं धन का व्यय करना पड़ता है। इसके साथ-साथ परिवार के सभी सदस्यों के स्वस्थ मनोरंजन के लिए कुछ अतिरिक्त धन की आवश्यकता होती है तथा समय का सूझ-बुझपूर्वक नियोजन भी करना पड़ता है। वैसे यह सत्य है कि परिवार कल्याण के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए ही गृह-कार्य-व्यवस्था का निर्धारण किया जाना चाहिए। गृह-कार्य-व्यवस्था तो अपने आप में साधन है। इस साधन को अपनाकर जिस लक्ष्य को प्राप्त करना है, वह है- परिवार कल्याण।

प्रश्न 7:
परिवार के सदस्यों की संख्या तथा कार्य-व्यवस्था में क्या सम्बन्ध है? या ”परिवार की सदस्य-संख्या गृह-कार्य-व्यवस्था को प्रभावित करती है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समस्त गृह-कार्य मुख्य रूप से परिवार के सदस्यों द्वारा ही किए जाते हैं। इसके साथ यह भी सत्य है कि समस्त गृह-कार्य परिवार के सदस्यों के लिए होते हैं अर्थात् परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही समस्त गृह-कार्य किए जाते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि परिवार के सदस्यों की संख्या तथा गृह-कार्य-व्यवस्था के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। यदि किसी परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होती है अर्थात् परिवार का आकार बड़ा होता है, तो निश्चित रूप से उस परिवार के सदस्यों को अधिक गृह-कार्य करने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए-बड़े आकार के परिवार के लिए गृहिणी को अधिक मात्रा में भोजन तैयार करना पड़ता है तथा अधिक वस्त्रों को धोना पड़ता है तथा अन्य कार्य भी अधिक करने पड़ते हैं। इस स्थिति में यदि परिवार  के सदस्यों के कार्यों का समुचित विभाजन नहीं होता, तो परिवार के कुछ सदस्यों पर कार्य का अधिक बोझा पड़ जाता है तथा ऐसे में गृह-कार्य-व्यवस्था अस्त-व्यस्त भी हो सकती है। इसके विपरीत, यदि समस्त गृह-कार्यों को परिवार के सभी सदस्यों में उचित ढंग से विभाजित कर लिया जाए, तो समस्त कार्य सरलता से तथा शीघ्र ही सम्पन्न हो सकते हैं। यदि परिवार के सदस्यों की संख्या कम हो तो उस स्थिति में समस्त गृह-कार्य निश्चित रूप से उन्हीं सदस्यों को करने पड़ते हैं। इस स्थिति में विशेष सूझ-बूझ की आवश्यकता होती है।

समस्त कार्यों को नियोजित तथा सुव्यवस्थित ढंग से करना पड़ता है। कम सदस्य संख्या वाले परिवार कुछ कार्यों को परिवार के बाहर की संस्थाओं द्वारा भी करवा लेते हैं। उदाहरण के लिए–लाण्ड्री से कपड़े धुलवाना, कुछ डिब्बा बन्द भोज्य सामग्रियाँ इस्तेमाल करना तथा घर की सफाई व्यवस्था के लिए मेहरी रखना आदि। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि कम सदस्य संख्या  वाले परिवारों में कोई भी सदस्य सामान्य रूप से कामचोर नहीं होता। इस स्थिति में गृह-कार्य-व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहती है। इसके विपरीत, अधिक सदस्य संख्या वाले परिवारों में कुछ सदस्य कामचोर भी होते हैं। ऐसे में परिवार में तनाव तथा कटुता का वातावरण बना रहता है तथा गृह-कार्य-व्यवस्था भी उत्तम नहीं बन पाती।

प्रश्न 8:
परिवार के सदस्यों का व्यवहार गृह-कार्य-व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित करता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गृह-कार्य-व्यवस्था पर प्रभाव डालने वाले कारकों में परिवार के सदस्यों का व्यवहार भी महत्त्वपूर्ण कारक है। वास्तव में, परिवार के सदस्यों के व्यवहार से ही कार्य बनते या बिगड़ते हैं। । परिवार में अनेक सदस्य होते हैं तथा परिवार के सभी सदस्य परिवार की कार्य-व्यवस्था में भाग लेते हैं। परिवार के सभी सदस्यों में पारस्परिक सम्बन्ध होते हैं। परिवार के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध इनके पारस्परिक व्यवहारों द्वारा निर्धारित होते हैं। यदि परिवार के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध मधुर, सहयोगात्मक तथा सामंजस्यपूर्ण होते हैं, तो गृह-कार्य-व्यवस्था अच्छी बनी रहती है। इसके विपरीत, यदि परिवार के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध कटु, तनावपूर्ण  तथा असहयोगात्मक हों, तो निश्चित रूप से परिवार की कार्य-व्यवस्था अच्छी नहीं रह सकती। इस प्रकार के पारिवारिक सम्बन्धों की स्थिति में गृह-कार्य-व्यवस्था बिगड़ जाती है तथा कोई भी कार्य सुचारू रूप से नहीं हो पाता। परिवार के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों को सौहार्दपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक है कि परिवार के प्रत्येक सदस्य का व्यवहार उत्तम हो।

परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा इस प्रकार का व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए कि किसी अन्य सदस्य की भावनाओं को ठेस पहुँचे। परिवार के सभी सदस्यों का अन्य सदस्यों के प्रति मधुर व्यवहार होना चाहिए। इस प्रकार के मधुर व्यवहार गृह-कार्य-व्यवस्था को उत्तम बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं। परिवार में कुछ वरिष्ठ सदस्यों द्वारा नियन्त्रणकारी व्यवहार भी किया जाना चाहिए। इस प्रकार का नियन्त्रणकारी व्यवहार भी  गृह-कार्य-व्यवस्था पर अनुकूल प्रभाव डालता है। परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त घर के नौकरों के प्रति भी सन्तुलित व्यवहार होना चाहिए अर्थात् नौकरों के प्रति न तो अधिक कठोर व्यवहार होना चाहिए और न अधिक कोमलता का। नौकरों के प्रति सन्तुलित व्यवहार होने पर ही वे गृह-कार्य-व्यवस्था में समुचित तथा कुशलतापूर्वक योगदान प्रदान करते हैं।

प्रश्न 9:
परिवार के सदस्यों की अभिरुचि का गृह कार्य-व्यवस्था से क्या सम्बन्ध है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परिवार के सदस्यों की अभिरुचियाँ भी गृह-कार्य-व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। अभिरुचि एक व्यक्तिगत गुण या विशेषता होती है। व्यक्ति की किसी कार्य के प्रति रुचि तथा उसे सीखने की क्षमता को सम्मिलित रूप से अभिरुचि कहते हैं। अभिरुचि के लिए कार्य के प्रति रुचि तथा कार्य करने की योग्यता दोनों का ही होना आवश्यक है।
उत्तम गृह-कार्य-व्यवस्था को प्राप्त करने के लिए परिवार के सदस्यों की अभिरुचियों को ध्यान में रखना नितान्त आवश्यक होता है। गृह-कार्यों का विभाजन परिवार के सदस्यों की  अभिरुचियों के अनुसार ही किया जाना चाहिए। परिवार के प्रत्येक सदस्य को गृह-कार्य-व्यवस्था के अन्तर्गत उसकी अभिरुचि के अनुकूल कार्य ही सौंपना चाहिए। अभिरुचि के अनुकूल कार्य सौंपने पर सम्बन्धित कार्य उत्तम एवं शीघ्र हो जाता है तथा साथ-साथ कार्य करने वाला भी प्रसन्न तथा अपने कार्य से सन्तुष्ट रहा करता है। इस स्थिति में गृह-कार्य-व्यवस्था उत्तम रहती है तथा परिवार का वातावरण भी अच्छा एवं उत्साहवर्द्धक रहता है। इसके विपरीत, यदि परिवार के सदस्यों को उनकी अभिरुचि के विरुद्ध कार्य सौंप दिए जाएँ तो वे न तो सम्बन्धित कार्य को ही अच्छे ढंग से कर पाते हैं और न ही उन्हें सम्बन्धित कार्य को करने में किसी प्रकार की प्रसन्नता ही होती है।  ऐसी स्थिति में गृह-कार्य जैसे-तैसे पूरे तो हो सकते हैं। परन्तु न तो गृह-कार्य-व्यवस्था उत्तम रह सकती है और न ही परिवार के सदस्य प्रसन्न रह सकते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सुझाव दिया जाता है कि जहाँ तक हो सके परिवार के प्रत्येक सदस्य को उसकी अभिरुचि के अनुकूल ही गृह-कार्य सौंपने चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
घर-परिवार के सन्दर्भ में कार्य-व्यवस्था से क्या आशय है?
उत्तर:
घर-परिवार के सम्बन्ध में कार्य-व्यवस्था से आशय है-घर तथा परिवार से सम्बन्धित समस्त कार्यों को सुनियोजित ढंग से पूरा करना।

प्रश्न 2:
गृह-कार्य व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
गृह-कार्य व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य हैं-समय, श्रम तथा धन की समुचित बचत करना।

प्रश्न 3:
गृह-कार्य-व्यवस्था के लक्ष्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह-कार्य व्यवस्था का लक्ष्य है-परिवार के रहन-सहन के स्तर को उन्नत बनाना। इसके माध्यम से पारिवारिक जीवन को सुखी एवं सरल बनाया जाता है।

प्रश्न 4:
गृह-कार्य-व्यवस्था को सुचारू एवं उत्तम बनाने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह-कार्य-व्यवस्था को सुचारु एवं उत्तम बनाने के उपाय हैं-परिवार के सभी सदस्यों द्वारा गृह-कार्यों में अपनी शक्ति, क्षमता, बुद्धि एवं रुचि के अनुसार कुशलतापूर्वक यथासम्भवं योगदान देना।

प्रश्न 5:
गृह-कार्य-व्यवस्था में सहायक चार मुख्य कारक बताइए।
उत्तर:
गृह-कार्य-व्यवस्था में सहायक चार मुख्य कारक हैं

  1.  समस्त गृह-कार्यों का समुचित नियोजन,
  2. गृह-कार्यों में परिवार के सभी सदस्यों का यथासम्भव सहयोग प्रदान करना,
  3. उत्तम कार्य-विधियों का ज्ञान तथा
  4.  समस्त आवश्यक साधनों का उपलब्ध होना।

प्रश्न 6:
गृह-कार्य-व्यवस्था में सहायक मुख्य उपकरणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह-कार्य-व्यवस्था में सहायक मुख्य उपकरण हैं-कुकर, मिक्सरे-ग्राइण्डर, टोस्टर, ओवन, फ्रिज, वैक्यूम क्लीनर, बर्तन धोने की मशीन तथा कपड़े धोने की मशीन।।

प्रश्न 7:
अभिरुचि से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी कार्य के प्रति रुचि तथा उसे सीखने की क्षमता को सम्मिलित रूप से अभिरुचि कहते

प्रश्न 8:
परिवार के सदस्यों की अभिरुचि के अनुसार कार्य सौंपने से क्या लाभ होता है?
उत्तर:
परिवार के सदस्यों को अभिरुचि के अनुसार कार्य सौंपने पर सभी कार्य अच्छे ढंग से तथा शीघ्र ही पूरे हो जाते हैं।

प्रश्न 9:
कुछ सार्वजनिक अथवा सामुदायिक सुविधाएँ बताइए।
उत्तर:

  1. डाकघर एवं बैंक,
  2.  शिक्षण संस्थाएँ,
  3. बाजार,
  4. चिकित्सा सुविधा आदि।

प्रश्न 10:
नियोजित परिवार के सुखी रहने के कारण बताइए।
उत्तर:

  1. सदस्यों के शारीरिक व मानसिक विकास के अधिक अवसरों की उपलब्धि।
  2.  बच्चों को शिक्षा के अच्छे अवसर।
  3. आर्थिक क्षमता एवं सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि।

प्रश्न 11:
गृह-कार्य-व्यवस्था को कुप्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह-कार्य-व्यवस्था को कुप्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं

  1.  सूझ-बूझ की न्यूनता,
  2.  आवश्यक साधनों का अभाव,
  3.  पारिवारिक कलह।

प्रश्न 12:
घर पर कार्य करने वाले नौकरों के प्रति कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए?
उत्तर:
घर पर कार्य करने वाले नौकरों के प्रति सन्तुलित व्यवहार करना चाहिए, अर्थात् उनके प्रति न तो कठोर व्यवहार किया जाना चाहिए और न ही उन्हें आवश्यकता से अधिक ढील दी जानी चाहिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) गृह-कार्य-व्यवस्था से आशय है
(क) परिवार के लिए अधिक धन जुटाना,
(ख) घर की सफाई एवं सजावट की व्यवस्था करना,
(ग) घर-परिवार के कार्यों को सुचारू रूप से चलाना,
(घ) घर के कार्य जैसे-तैसे पूरे कर देना।

(2) गृह-कार्य-व्यवस्था को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक है
(क) मधुर व्यवहार,
(ख) पारिवारिक आय का अधिक होना,
(ग) सुनियोजित ढंग से कार्य करना,
(घ) सहयोगपूर्वक कार्य करना।

(3) भौतिक साधनों में सर्वश्रेष्ठ साधन है
(क) खाद्य पदार्थ,
(ख) घरेलू उपकरण,
(ग) वस्त्र,
(घ) धनः

(4) उत्तम कार्य-व्यवस्था के लिए गृहिणी को मिलना चाहिए
(क) पुरस्कार,
(ख) प्रोत्साहन,
(ग) धन,
(घ) कुछ नहीं।

5. कार्यों को कुशलतापूर्वक करने के लिए उपयोग करना चाहिए
(क) धन की,
(ख) उपयोगी यन्त्रों एवं उपकरणों को,
(ग) परिश्रम को,
(घ) समय का।

(6) गृहिणी को पारिवारिक सदस्यों के मध्य कार्य-विभाजन का आधार रखना चाहिए
(क) उनकी कार्यक्षमता,
(ख) उनकी योग्यता,
(ग) उनकी योग्यता एवं कार्यक्षमता,
(घ) उनकी स्वयं की इच्छा।

(7) गृह-कार्य-व्यवस्था का स्तर निर्भर करता है
(क) अधिक आय पर,
(ख) धन की मितव्ययिता पर,
(ग) समय तथा श्रम बचाने वाले साधनों पर,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(8) रसोईघर में श्रम की बचत करने वाला उपकरण है
(क) टोस्टर,
(ख) हीटर,
(ग) प्रेशर कुकर,
(घ) मिक्सर-ग्राइण्डर।

9. बिना पूर्व सूचना के मेहमान आ जाने पर किए जाने वाले अतिरिक्त कार्यों को कहा जाता है
(क) अनावश्यक कार्य,
(ख) थकाने वाला कार्य,
(ग) आकस्मिक कार्य,
(घ) वार्षिक कार्य।

उत्तर:
(1). (ग) घर-परिवार के कार्यों को सुचारू रूप से चलाना,
(2). (ग) सुनियोजित ढंग से कार्य करना,
(3). (घ) धन,
(4). (ख) प्रोत्साहन,
(5). (ख) उपयोगी यन्त्रों एवं उपकरणों का,
(6). (ग) उनकी योग्यता एवं कार्यक्षमता,
(7). (ग) समय तथा श्रम बचाने वाले साधनों पर,
(8). (घ) मिक्सर-ग्राइण्डर,
(9). (ग) आकस्मिक कार्य।

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