UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 8 वायु : शुद्ध वायु का महत्त्व एवं संवातन

By | May 23, 2022

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 8 वायु : शुद्ध वायु का महत्त्व एवं संवातन

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 8 वायु : शुद्ध वायु का महत्त्व एवं संवातन

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
वायु क्या है? इसमें सम्मिलित तत्त्वों का वर्णन कीजिए। शुद्ध वायु स्वास्थ्य के लिए क्यों आवश्यक है?
या
वायु के प्राकृतिक संगठन का विस्तार से वर्णन कीजिए।शुद्ध वायु के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वायु से प्रत्येक व्यक्ति भली-भाँति परिचित है। भले ही वायु को हम देख नहीं सकते परन्तु प्रत्येक व्यक्ति वायु का अनुभव एवं सेवन करता रहता है। प्राणी-मात्र के जीवन का आधार वायु ही है। वायु के अभाव में किसी प्रकार के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अब प्रश्न उठता है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से वायु क्या है? वायु वास्तव में कुछ गैसों का मिश्रण है। गैसों का यह मिश्रण रंगहीन, स्वादहीन तथा गन्धहीन होता है। वायु में भार होता है तथा यह दबाव डालती है। वायु फैल सकती है तथा संकुचित हो सकती है। इसमें विसरण का गुण भी पाया जाता है। वायु हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक व्यापक क्षेत्र में हर समय रहती है। इस क्षेत्र को वायुमण्डल कहा जाता है।

वायू का संगठन

एक समय था जब वायु को एक तत्त्व समझा जाता था। उस समय वायु की गिनती पाँच मुख्य तत्त्वों में की जाती थी, परन्तु विभिन्न वैज्ञानिक खोजों के परिणामस्वरूप इस धारणा को बदलना पड़ा। वर्तमान ज्ञान के अनुसार वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण मात्र है। वायु में विद्यमान मुख्य गैसें हैं-ऑक्सीजन  तथा नाइट्रोजन। इन दो मुख्य गैसों के अतिरिक्त वायु में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, हाइड्रोजन, ऑर्गन तथा जलवाष्प भी विद्यमान रहती है। वायु में लगभग पाँचवा भाग ऑक्सीजन होता है। वायु में विद्यमान गैसों का संगठन निम्नवर्णित तालिका द्वारा स्पष्ट हो जाएगा।

वायु के इस संगठन को चित्र द्वारा भी दर्शाया गया है। वायु में विद्यमान विभिन्न गैसों का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है

ऑक्सीजन:
वायु में ऑक्सीजन का आयतन लगभग 21% होता है। ऑक्सीजन जीवन के लिए . अति आवश्यक है। इसे प्राण-वायु भी कहते हैं। ऑक्सीजन प्रायः सभी जीवधारियों की श्वसन क्रिया के लिए आवश्यक है। प्राणी हों अथवा पौधे, सभी श्वसन क्रिया के लिए ऑक्सीजन लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन करते हैं। श्वसन क्रिया में नासिका द्वारा शुद्ध वायु हमारे फेफड़ों में पहुँचती है। फेफड़ों की रुधिर कोशिकाओं में ऑक्सीजन का अवशोषण होता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड वायु में छोड़ दी जाती है ताकि बाह्य-श्वसन  द्वारा वायुमण्डल में मुक्त हो जाए। रुधिर द्वारा ऑक्सीजन विभिन्न ऊतकों एवं केशिकाओं में पहुँचती है। यहाँ यह खाद्य के ज्वलन अथवा ऑक्सीकरण में सहायता करती है। इस क्रिया में ऊर्जा उत्पन्न होती है जोकि हमारे शरीर की विभिन्न जैविक क्रियाओं का मूल आधार है। इसके अतिरिक्त वायुमण्डल में उपस्थित ऑक्सीजन अन्य ज्वलन क्रियाओं में भी सहायता करती है। कोयला, लकड़ी, तेल, कपड़ा, कागज आदि सभी पदार्थ ऑक्सीजन की उपस्थिति में ही जलते हैं। इन क्रियाओं में ऑक्सीजन प्रयोग में आती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनती है। आग के धुएँ में प्राय: कार्बन डाइऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड गैसें होती हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड:
वायु में कार्बन डाइऑक्साइड का आयतन लगभग 0.03% होता है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पौधों एवं प्राणियों की श्वसन क्रिया द्वारा तथा वस्तुओं के जलने के फलस्वरूप बढ़ती रहती है। अन्तः श्वसन (प्रश्वसित वायु) तथा बाह्य श्वसन (उच्छ्वसित वायु) क्रिया में वायु की प्रतिशत मात्रा में परिवर्तन निम्न प्रकार से होता है| इस प्रकार हम देखते हैं कि जैसे-जैसे वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होती है उसी अनुपात में ऑक्सीजन की मात्रा घटती है। यह स्थिति जीवधारियों के लिए घातक हो सकती है।  इससे बचाव करते हैं हरे पौधे। हरे पौधे सूर्य के प्रकाश में कार्बन डाइऑक्साइड व जल को प्रयोग कर अपने भोजन का निर्माण करते हैं। इस क्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड प्रयुक्त होती है तथा ऑक्सीजन बाहर निकलती है। इस प्रकार हरे पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा वायुमण्डल में ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड गैसों की मात्रा में सन्तुलन बनाए रखते हैं।

नाइट्रोजन:
वायुमण्डल में इसकी मात्रा सर्वाधिक (लगभग 78.08%) होती है। प्रत्यक्ष रूप में यह गैस अधिक उपयोगी नहीं है। न तो यह गैस स्वयं जलती है और न ही वस्तुओं के जलने में सहायता करती है। अतः यह एक प्रकार से निष्क्रिय गैस है, परन्तु परोक्ष रूप से यह एक अति महत्त्वपूर्ण गैस है। यह ऑक्सीजन की ऑक्सीकरण अथवा ज्वलनशील प्रक्रिया की तीव्रता पर अंकुश लगाती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वायुमण्डल में यदि नाइट्रोजन न हो, तो ऑक्सीजन की उपस्थिति में संसार की सभी वस्तुएँ जलकर राख हो जाएँगी।

ओजोन:
यह अन्य गैसों (हाइड्रोजन, ऑर्गन, जलवाष्प आदि) के साथ मिलकर वायु का लगभग 0.94% भाग होती है। यह गैस सूर्य की हानिकारक किरणों का अधिकांश भाग सोखकर पृथ्वी तक नहीं पहुँचने देती है। यह फलों एवं सब्जियों को सड़ने से बचाती है। कुछ रोगों में भी यह लाभकारी पाई गई है। कुल मिलाकर यह गैस मानव जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध हुई है।

जलवाष्प:
यह वायु को नम एवं ठण्डा बनाती है। वायुमण्डल में इसकी प्रतिशत मात्रा स्थान विशेष के तापक्रम पर निर्भर करती है। कम ताप पर इसकी मात्रा अधिक व अधिक ताप पर इसकी मात्रा कम होती है। इसकी वायुमण्डल में प्रतिशत मात्रा को आपेक्षिक आर्द्रता कहते हैं। अधिक आर्द्रता वातावरण को भारी व सीलनयुक्त बनाती है। ऐसा वातावरण (जैसे कि वर्षा ऋतु) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है, क्योंकि  इसमें मक्खी, मच्छर व अनेक रोगाणु आसानी से पनपते हैं। समुद्रतल से ऊँचाई की ओर (जैसे कि ऊँची पर्वत-श्रृंखलाएँ) बढ़ने पर वायु की संरचना बदलने लगती है। अधिक ऊँचाई पर वायुमण्डल में ऑक्सीजन की प्रतिशत मात्रा घट जाती है। यही कारण है कि ऊँचाई पर पहुँचकर साँस लेने में कठिनाई अनुभव होती है। उपर्युक्त गैसों के अतिरिक्त वायुमण्डल में धूल के कण, रेडियोधर्मी तत्त्वे व अनेक प्रकार के कीटाणु भी पाए जाते हैं।

शुद्ध वायु का महत्त्व

शुद्ध वायु संसार के सभी प्राणियों एवं पेड़-पौधों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। सभी जीवधारी शुद्ध वायु की उपस्थिति में ही जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण श्वसन क्रिया सम्पादित करते हैं। इसके अतिरिक्त भी शुद्ध वायु से अनेक लाभ हैं, जिनका विस्तृत विवरण अग्रलिखित है

मनुष्यों के लिए उपयोगिता

हमारे जीवन में शुद्ध वायु अनेक रूप में उपयोगी है; जैसे कि

(1) श्वसन क्रिया:
प्रश्वसन क्रिया में हम शुद्ध वायु को नासिका छिद्रों द्वारा फेफड़ों तक खींचते हैं। फेफड़ों में रक्त-केशिकाओं का जाल बिछा होता है। केशिकाओं में उपस्थित रक्त द्वारा वायु से ऑक्सीजन का अवशोषण होता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन होता है जो कि नि:घसन द्वारा वायुमण्डल में पहुँच जाती है। रक्त संचरण के द्वारा ऑक्सीजन विभिन्न कोशिकाओं तथा ऊतकों तक पहुँचती है तथा खाद्य के ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा मुक्त करती है। यह मुक्त ऊर्जा मानव शरीर में होने वाली विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक है।

(2) शरीर के ताप को नियमन:
स्वस्थ शरीर का तापमान प्राय: 37° से० के लगभग होता है, जबकि कमरे का तापमान 15°-20° से० तक होता है। अत: कम तापमान वाली वायु जब शरीर को स्पर्श करती है, तो शरीर से कुछ गर्मी लेकर जाती है। इस प्रकार लगातार शरीर की गर्मी अथवा ऊष्मा कम होती रहती है। इसी प्रकार शरीर की त्वचा से पसीने का जब वाष्पीकरण होता है, तो भी शरीर के तापमान में कमी आती है।

प्रश्न 2:
संवातन से क्या तात्पर्य है? प्राकृतिक साधनों पर आधारित संवातन के विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संवातन का अर्थ घर के वायुमण्डल में उत्पन्न हो जाने वाली गर्मी, नमी तथा स्थिरता को समाप्त अथवा कम कर देने की प्रक्रिया को संवातन कहते हैं। इस क्रिया के अन्तर्गत घर के कमरों से गर्म, नम व अशुद्ध स्थिर वायु का निष्कासन तथा शुद्ध, शुष्क व शीतल वायु का प्रवेश होता है। इस  प्रकार हम कह सकते हैं कि किसी आवासीय स्थल से अशुद्ध वायु के निष्कासन तथा बाहर से शुद्ध वायु के आगमन की समुचित व्यवस्था ही संवातन है। संवातन के परिणामस्वरूप ही किसी आवासीय स्थल में निरन्तर शुद्ध वायु उपलब्ध होती रहती है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से संवातन की समुचित व्यवस्था अति आवश्यक है।

प्राकृतिक साधनों पर आधारित संवतन

प्रकृति ने हमारे वातावरण में संवतन की समुचित व्यवस्था की है। प्राकृतिक संवातन मुख्य रूप से वायुमण्डल में होने वाली चूषण, संनयन तथा विसरण नामक क्रियाओं द्वारा सम्पन्न होता है। इन तीनों क्रियाओं का सामान्य विवरण निम्नवर्णित है।

(1) चूषण–प्रायः
सभी गैसों का संवहन सिद्धान्त रूप से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर होता है। इसे चूषण क्रिया कहते हैं। फुटबॉल का उदाहरण देखें। हवा भरने वाले पम्प से दबाव के साथ फुटबॉल में हवा भरी जाती है। पूरी हवा भर जाने पर फुटबॉल के अन्दर वायु का दबाव वायुमण्डल में उपस्थित वायु के दबाव से अधिक हो जाता है। अब फुटबॉल का वाल्व ढीला करने पर इसके भीतर की वायु कम दबाव वाले वायुमण्डल  में तेजी से संवहन करती है और तब तक करती रहती है जब तक कि फुटबॉल के भीतर की वायु का दबाव वायुमण्डल के दबाव के समान नहीं हो जाता। इस सिद्धान्त का उपयोग घर की संवातन व्यवस्था में किया जाता है।

(2) संनयन-यह प्रक्रिया प्रायः
द्रव पदार्थों व गैसों में होती है। हल्के पदार्थों में यह प्रक्रिया तीव्र होती है। उदाहरण के लिए किसी द्रव पदार्थ को गर्म करने पर इसका प्रथम कण अथवा अणु गर्म होते ही फैलकर व हल्का होकर ऊपर की ओर प्रसारित हो जाता है तथा इसका स्थान अपेक्षाकृत ठण्डा कण ले लेता है। फिर यह भी गर्म होकर प्रसारित हो जाता है। यह क्रम लगातार चलता रहता है। इसी सिद्धान्त के अनुसार गर्म होने पर कमरे की वायु हल्की होकर ऊपर उठ जाती है तथा इसके द्वारा रिक्त किए गए स्थान की पूर्ति शीतल वायु द्वारी (कमरे के बाहर से) होती है। इस प्रकार संनयन प्रक्रिया द्वारा कमरे में लगातार शीतल एवं शुद्ध वायु का प्रवेश होता रहता है।

(3) विसरण:
इस प्रक्रिया में पदार्थ अधिक सान्द्रता अथवा मात्रा वाले स्थान से कम सान्द्रता अथवा मात्रा वाले स्थान की ओर विसरित करते हैं; उदाहरणार्थ-एक सेण्ट अथवा इत्र की शीशी कमरे के एक कोने में खोलने पर धीरे-धीरे इत्र की सुगन्ध पूरे कमरे में फैल जाती है। इसी प्रकार एक गिलास पानी में स्याही की एक बूंद डालकर हिलाने पर पूरा पानी ही रंगीन हो जाता है। ठोस, द्रव तथा गैस तीनों ही प्रकार के पदार्थों में विसरण  की यह प्रक्रिया पाई जाती है। विसरण की प्रक्रिया संवातन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। कमरे की वायु नमी व बाह्य श्वसन की – कार्बन डाइऑक्साइड गैस के कारण सान्द्र हो जाती है; अत: यह बाहर (कम सान्द्र वायु) की ओर विसरण करती है तथा कम सान्द्रता वाली शुद्ध व शीतल वायु कमरे में अन्दर की ओर विसरण करती है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि कमरे के अन्दर व बाहर की वायु की सान्द्रता समान नहीं हो जाती।

संवातन की प्राकृतिक व्यवस्था के लिए उपयोगी उपाय

व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए उपयुक्तं संवातन व्यवस्था का होना आवश्यक है।
अतः संवातन की उपयुक्त व्यवस्था के लिए निम्नलिखित उपायों को प्रयोग में लाना विवेकपूर्ण है

(1) मकान की व्यवस्था:
नियोजित बस्तियों में आवास-गृहों का निर्माण परस्पर पर्याप्त दूरी पर होना चाहिए, एक-दूसरे से मिले हुए मकानों में वायु का प्रवेश स्वतन्त्र रूप से नहीं हो पाता, जबकि दूर-दूर बने मकानों में वायु का संवातन भली प्रकार से होता है।

(2) दरवाजे एवं खिड़कियाँ:
मकान में दरवाजे एवं खिड़कियाँ पर्याप्त संख्या में होनी आवश्यक हैं। कमरों में दरवाजों एवं खिड़कियों की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि जिससे वायु आमने-सामने
आर-पार सरलता से आ-जा सके।

(3) रोशनदान:
गर्म होने से वायु हल्की हो जाती है तथा ऊपर की ओर उठती है। अतः गर्म एवं अशुद्ध वायु के निष्कासन के लिए कमरे में रोशनदान का होना अनिवार्य है। रोशनदान का एक लाभ यह भी है कि सूर्य की किरणें इससे कमरे में प्रवेश पाकर हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करती रहती हैं।

(4) चिमनी:
यह प्राय: रसोई-गृह में निर्मित की जाती हैं। ईंधन के जलने से उत्पन्न धुआँ चिमनी द्वारा ही रसोई-गृह से निष्कासित होता है। इसका लाभ यह है कि गृहिणी न तो घुटन महसूस करती है। और न ही उसके नेत्रों पर धुएँ का कुप्रभाव पड़ता है। आधुनिक युग में धुआँ उत्पन्न करने वाले ईंधन का प्रयोग धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है तथा इसके स्थान पर कुकिंग गैस व विद्युत चूल्हों का उपयोग होने लगा है। अतः अब रसोई-गृह में चिमनी के निर्माण की आवश्यकता लगभग नगण्य हो गई है।

प्रश्न 3:
संवातन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली कृत्रिम विधियों का वर्णन कीजिए।
या
सामान्य विद्युत पंखों, निर्वातक पंखों एवं वातानुकूलन संयन्त्रों का संवातन के लिए उपयोग किन-किन पद्धतियों के आधार पर किया जाता है?
उत्तर:
संवातन के प्राकृतिक साधनों के अनुसार मकान में कमरे पर्याप्त लम्बे, चौड़े व ऊँचे होने चाहिए तथा कमरों में पारगमन संवातन के लिए दरवाजे व खिड़कियाँ अधिक संख्या में तथा उपयुक्त स्थानों पर बनी होनी चाहिए, परन्तु इसमें प्रायः निम्नलिखित दो कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है

  1.  स्थान के अभाव के कारण प्राय: पर्याप्त लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई वाले कमरों के मकानों का निर्माण करना सम्भव नहीं हो पाता है।
  2. वर्ष में अनेक बार (जैसे कि ग्रीष्म ऋतु में) वायु अत्यन्त मन्द गति से संचरण करती है, जिसके फलस्वरूप मकानों में शुद्ध एवं शीतल वायु का उपयुक्त संवातन नहीं हो पाता है; अतः मकानों में घुटन भरा गर्म वातावरण रहता है।
    उपर्युक्त कठिनाइयों से निपटने के लिए आज के आधुनिक युग में अनेक प्रकार के विद्युत उपकरणों (संवातन के कृत्रिम साधन) का उपयोग किया जाता है। मकानों एवं सार्वजनिक भवनों में संवातन की उत्तम व्यवस्था के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले प्रमुख विद्युत संयन्त्र निम्नलिखित हैं

(1) सामान्य विद्युत पंखे:
सामान्य पंखे प्लीनम पद्धति पर आधारित होते हैं। इनके द्वारा वायु की गति अधिक संवहनशील हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप दूषित वायु की निकासी शीघ्र होती रहती है।

(2) निर्वातक पंखे (एक्जॉस्ट फैन):
ये पंखे निर्वात पद्धति पर आधारित होते हैं। इस पद्धति में कमरे की अशुद्ध गर्म वायु को पंखों द्वारा बाहर धकेल दिया जाता है, जिसका स्थान शुद्ध एवं शीतल वायु लेती रहती है, परिणामस्वरूप कमरे में संवतन की व्यवस्था ठीक बनी रहती है। निर्वातक पंखे प्रायः प्रयोगशालाओं, अस्पतालों, छविगृहों व घुटन भरे कमरों में लगाए जाते हैं।

(3) सामान्य व निर्वातक पंखों का मिश्रित उपयोग:
इन दोनों प्रकार के पंखों का एक साथ उपयोग मिश्रित अथवा मिली-जुली पद्धति पर आधारित है। इस पद्धति का उपयोग विशाल भवनों, छविगृहों एवं अस्पतालों आदि में किया जाता है। इसके अनुसार निर्वातक पंखे अशुद्ध एवं गर्म वायु को बाहर फेंकते हैं तथा सामान्य पंखे अन्दर की वायु को गति प्रदान करते हैं। इस प्रकार यह पद्धति संवात्नन व्यवस्था को अत्यन्त प्रभावी बना देती है।

(4) वातानुकूलन:
आदर्श संवातन की यह आधुनिकतम पद्धति है। इस पद्धति में वायु को उचित तापमान, वांछित स्वच्छता तथा उपयुक्त आर्द्रता प्रदान की जाती है। कमरे में श्वसन क्रिया के कारण उत्पन्न हुई अशुद्ध वायु वातानुकूलन संयन्त्र के शुद्धिकरण भाग में पहुँचकर शुद्ध हो जाती है। बाहर से आने वाली वायु भी सर्वप्रथम शुद्धिकरण भाग में प्रवेश करती है, जिससे यह धूल के कणों एवं कीटाणुओं से मुक्त हो जाती है।

संयन्त्र के शीतलीकरण भाग द्वारा कमरे में वांछित तापमान बनाए रखा जाता है। इस प्रकार इस विधि द्वारा कमरे की संवातन व्यवस्था अत्यन्त प्रभावी बनी रहती है। इस विधि की एकमात्र कमी यह है कि अत्यधिक महँगी होने के कारण यह जनसाधारण की पहुँच से बाहर है। वातानुकूलन यन्त्रों का उपयोग प्रायः धनी परिवारों, छविगृहों, बड़े-बड़े राजकीय अस्पतालों, सार्वजनिक व राजकीय भवनों तथा उच्च श्रेणी के रेल के डिब्बों इत्यादि में किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
वायु के कौन-कौन से चार प्रमुख कार्य हैं?
उत्तर:
वायु के महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं

  1.  समस्त जीवधारियों की श्वसन क्रियों का मूल आधार होना,
  2.  प्राणियों में शारीरिक तापमान का नियमन करना,
  3. जल की उत्पत्ति करना तथा
  4.  हरे पौधों में भोजन-निर्माण की प्रक्रिया का मूल आधार होना।

प्रश्न 2:
वर्षा ऋतु की नमी से हमें क्या हानियाँ हैं?
उत्तर:
वर्षा ऋतु में नमी होने के कारण वायु में जलवाष्प (आर्द्रता) की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार के वातावरण में फफूदी, कीटाणु व कीट-पतंगे अधिक पनपते हैं। इसके हानिकारक परिणाम निम्नलिखित हैं

  1. फफूदी के कारण भोज्य पदार्थ शीघ्र ही सड़ने लगते हैं तथा खाने योग्य नहीं रहते।
  2. चमड़े, लकड़ी व कागज की वस्तुएँ फफूदी के पनपने के कारण अपनी गुणवत्ता खो देती हैं।
  3.  कीटाणुओं के वातावरण में पनपने के कारण विभिन्न रोगों के होने की सम्भावनाएँ बन जाती हैं।
  4. वस्तुओं पर फफूदी व अन्य सूक्ष्मजीवियों के पनपने के कारण वातावरण में सड़न की दुर्गन्ध उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 3:
प्रकृति वायुमण्डल में प्राण-वायु( ऑक्सीजन) की मात्रा का सन्तुलन किस प्रकार कर पाती है?
या
वायु को शुद्ध करने में प्रकृति किस प्रकार सहायता करती है?
उत्तर:
वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा लगभग 21 प्रतिशत होती है। ऑक्सीजन समस्त प्राणियों को उनकी श्वसन क्रिया के लिए आवश्यक है। श्वसन क्रिया में प्राणी वायु से ऑक्सीजन लेते हैं। तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैसे निष्कासित करते हैं। इसके अतिरिक्त लगभग सभी वस्तुएँ; जैसे लकड़ी, कोयला, कागज आदि ऑक्सीजन की उपस्थिति में ही जलती हैं तथा धुएँ के रूप में कार्बन मोनोऑक्साइड व कार्बन डाइऑक्साइड गैसों को वायुमण्डल में निष्कासित करती हैं। परिणाम यह होता है कि वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा घटने  लगती है। प्रकृति इस स्थिति से निपटने के लिए पूर्णरूप से सक्षम है। हरे पेड़-पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड व पानी का उपयोग कर अपने लिए भोजन का निर्माण करते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा घटती है तथा इसे क्रिया में ऑक्सीजन गैस उत्पन्न होती है। इस प्रकार हरे पौधे वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस निष्कासित कर इसकी मात्रा का सन्तुलन बनाए रखते हैं।

प्रश्न 4:
अच्छे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आप अपने मकान में किस प्रकार के कमरे बनवाएँगी?
उत्तर:
सामान्यतः मनुष्य एक घण्टे में लगभग 100 घन मीटर वायु ग्रहण करता है। यदि उस वायु का एक घण्टे में तीन बार भी परिवर्तन हो, तो एक मनुष्य के लिए लगभग 33 घन मीटर स्थान की आवश्यकता पड़ेगी। अतः मकान में लम्बे, चौड़े व ऊँचे कमरों का होना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद रहता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए घर के अन्दर व बाहर उत्तम संवातन व्यवस्था का होना भी आवश्यक है। अतः कमरों में दरवाजे व खिड़कियाँ इस प्रकार से होनी चाहिए कि वायु का पारगमन सरलतापूर्वक हो सके।

प्रश्न 5:
घर से बाहर की संवातन व्यवस्था के सम्भावित उपायों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
घर के अन्दर वायु का प्रवेश सदैव बाहर से ही होता है। अत: घर की अच्छी-से-अच्छी आन्तरिक संवातन व्यवस्था भी तब तक अप्रभावी ही रहेगी जब तक कि बाहर की संवातन व्यवस्था ठीक प्रकार की न हो। बाहर की. संवातन व्यवस्था को उत्तम बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

  1.  सड़कें तथा गलियाँ चौड़ी होनी चाहिए।
  2.  बस्ती अथवा मौहल्ले में मकानों के बीच पर्याप्त दूरी होनी चाहिए।
  3.  सड़कों व नालियों की सफाई की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  4. मकानों के आस-पास पार्क व क्रीड़ास्थल होने चाहिए।
  5.  मकानों के आस-पास व सड़कों के दोनों ओर हरे पेड़-पौधे लगे होने चाहिए।

प्रश्न 6:
घर के अन्दर संवातन के मुख्य साधन कौन-कौन से हैं?

प्रश्न 7:
संवातन का क्या महत्त्व है? समझाइए।
उत्तर:
संवातन वह व्यवस्था है जिसके माध्यम से किसी आवासीय स्थल पर निरन्तर वायु का आवागमन होता रहता है। संवातन की व्यवस्था का विशेष महत्त्व है। इस व्यवस्था के परिणामस्वरूप सम्बन्धित स्थल पर शुद्ध एवं स्वच्छ वायु उपलब्ध होती रहती है। इस स्थिति में कमरे की दूषित, गर्म एवं दुर्गन्धयुक्त वायु बाहर निकल जाती है तथा उसके स्थान पर शीतल, शुद्ध वायु प्रवेश कर जाती है। अवासीय स्थल पर संवातन की  उचित व्यवस्था होने की दशा में विभिन्न रोगों के जीवाणुओं को पनपने का अवसर उपलब्ध नहीं होता, कमरे में नमी या घुटन नहीं होती तथा वहाँ का तापमान भी सामान्य बना रहता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संवतन की व्यवस्था सम्बन्धित व्यक्तियों के सामान्य स्वास्थ्य में सहायक होती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
वायु अपने आप में क्या है?
उत्तर:
वायु अपने आप में विभिन्न गैसों की एक मिश्रण है।

प्रश्न 2:
वायु-रूपी गैसीय मिश्रण में विद्यमान मुख्य गैसों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वायु-रूपी गैसीय मिश्रण में विद्यमान मुख्य गैसें हैं ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन, ओजोन तथा ऑर्गन आदि।

प्रश्न 3:
वायु जीवन के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वायु निम्नलिखित दो रूपों में जीवन के लिए आवश्यक है
(1) जीवधारियों में श्वसन क्रिया वायु की उपस्थिति में ही होती है।
(2) यह हमारे शरीर के ताप को नियन्त्रित करने में सहायता करती है।

प्रश्न 4:
वस्तुओं के जलने से कौन-सी गैस बनती है?
उत्तर:
वस्तुओं के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनती है।

प्रश्न 5:
संवातन क्या है?
उत्तर:
किसी आवासीय स्थान पर शुद्ध वायु के प्रवेश एवं अशुद्ध वायु के बाहर जाने की व्यवस्था को संवातन कहते हैं।

प्रश्न 6:
रोशनदानों का संवातन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
अशुद्ध वायु गर्म होकर हल्की हो जाती है तथा ऊपर उठकर कमरे में बने रोशनदानों से बाहर निकल जाती है।

प्रश्न 7:
कृत्रिम संवतन के मुख्य साधन क्या हैं?
उत्तर:
कृत्रिम संवातन के मुख्य साधन है

  1.  सामान्य विद्युत पंखे,
  2.  निर्वातक पंखे,
  3.  वातानुकूलन संयन्त्र।

प्रश्न 8:
पारगाम संवातन को प्रभावी बनाने का क्या उपाय है?
उत्तर:
इसके लिए दरवाजों एवं खिड़कियों को ठीक आमने-सामने स्थित होना चाहिए।

प्रश्न 9:
रात्रि में पेड़ के नीचे सोना क्यों हानिकारक है?
उत्तर:
रात्रि में पेड़-पौधों में श्वसन क्रिया अधिक होती है जिसके फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन भी अधिक होता है।
अतः रात्रि में पेड़ के नीचे सोना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

प्रश्न 10:
पृथ्वी पर वायुमण्डल का क्षेत्र कितना विस्तृत है?
उत्तर:
पृथ्वी पर लगभग 400 किलोमीटर ऊपर तक वायु पाई जाती है।

प्रश्न 11:
वायु को शुद्ध करने में सूर्य के प्रकाश तथा पेड़-पौधों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया सम्पन्न करते हैं। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत पेड़-पौधे वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड गैस ग्रहण कर लेते हैं तथा
ऑक्सीजन विसर्जित करके वायु को शुद्ध करते हैं।

प्रश्न 12:
वायु में पाई जाने वाली सक्रिय गैस कौन-सी है?
उत्तर:
वायु में पाई जाने वाली मुख्य सक्रिय गैस है-ऑक्सीजन।

प्रश्न 13:
वायु में पाई जाने वाली मुख्य निष्क्रिय गैस कौन-सी है?
उत्तर:
वायु में पाई जाने वाली मुख्य निष्क्रिय गैस है-नाइट्रोजन।

प्रश्न 14:
वर्षा ऋतु में वायु में मुख्य रूप से क्या परिवर्तन होते हैं?
उत्तर:
वर्षा ऋतु में वायु में नमी की दर बढ़ जाती है तथा धूल-कणों एवं अन्य लटकने वाली अशुद्धियाँ घट जाती हैं।

प्रश्न 15:
प्राणवायु अथवा जीवन-रक्षक गैस कौन-सी है?
उत्तर:
ऑक्सीजन गैस, जो कि प्राणियों में श्वसन क्रिया के लिए आवश्यक होती है।

प्रश्न 16:
वायु संगठन में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का प्रतिशत क्या है?
उत्तर:
वायु संगठन में ऑक्सीजन 20.95% तथा कार्बन डाइऑक्साइड 0.03% होती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) प्रकृति में ऑक्सीजन का सन्तुलन बनाए रखते हैं
(क) मनुष्य,
(ख) कीट-पतंगे,
(ग) वन्य जीव-जन्तु,
(घ) पेड़-पौधे।

(2) वायु को दूषित करने वाला कारक है
(क) प्राणियों की श्वसन क्रिया,
(ख) जैविक पदार्थों का विघटन,
(ग) दहन की व्यापक प्रक्रिया,
(घ) ये सभी कारक।

(3) वायु में विद्यमान गैसों में से सर्वाधिक सक्रिय गैस है
(क) नाइट्रोजन,
(ख) हाइड्रोजन,
(ग) कार्बन डाइऑक्साइड,
(घ) ऑक्सीजन।

4. वायु में विद्यमान मुख्य निष्क्रिय गैस है
(क) ऑक्सीजन,
(ख) ओजोन,
(ग) नाइट्रोजन,
(घ) कार्बन मोनोऑक्साइड।

(5) संवातन का मुख्य उद्देश्य है
(क) कमरे से दुर्गन्ध को हटाना,
(ख) कमरे में सुगन्ध को बढ़ाना,
(ग) कमरे में शुद्ध वायु प्राप्त करना,
(घ) कमरे को ठण्डा रखना।

(6) कमरे में उत्तम संवातन व्यवस्था के लिए आवश्यक है
(क) दरवाजे,
(ख) खिड़कियाँ,
(ग) रोशनदान,
(घ) पारगामी व्यवस्था।

(7) विद्युत पंखों द्वारा वायु को प्रदान की जाती है
(क) स्थिरता,
(ख) स्थायित्व,
(ग) गति,
(घ) आर्द्रता।

(8) दीवारों में बनी चिमनियों से कमरे की वायु
(क) बाहर निकलती है,
(ख) बाहर भी जाती है तथा अन्दर भी जाती है,
(ग) बाहर से अन्दर आती है,
(घ) कोई प्रभाव नहीं होता।

(9) श्वसन क्रिया में रक्त का शुद्धिकरण करती है
(क) नाइट्रोजन,
(ख) हाइड्रोजन,
(ग) ऑक्सीजन,
(घ) कार्बन मोनोऑक्साइड।

उत्तर:
(1) (घ) पेड़-पौधे,
(2) (घ) ये सभी कारक,
(3) (घ) ऑक्सीजन,
(4) (ग) नाइट्रोजन,
(5) (ग) कमरे में शुद्ध वायु प्राप्त करना,
(6) (घ) पारगामी व्यवस्था,
(7) (ग) गति,
(8) (क) बाहर निकलती है,
(9) (ग) ऑक्सीजन।

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