UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 त्याग एवं परो धर्मः (कथा – नाटक कौमुदी)
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 त्याग एवं परो धर्मः (कथा – नाटक कौमुदी)
परिचय-हमारे देश की रत्नगर्भा वसुन्धरा में स्थित राजस्थान की धरती सदा से ही वीर-प्रसविणी रही है। विदेशी आक्रमणों के झंझावात को मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश ने जिस अदम्य साहस एवं वीरता से झेला है उसकी मिसाल विश्व-इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। महाराणा प्रताप इसी राजवंश रूपी गनन के प्रचण्ड मार्तण्ड हैं, जिनकी प्रखर किरणों के समक्ष मुगल सम्राट् अकबर का कान्ति-मण्डल भी निस्तेज प्रतीत होता है। मातृभूमि की रक्षा हेतु राणा प्रताप को अकबर के साथ अनेक युद्ध करने पड़ते हैं, जिसमें उनका सारा राज्य छिन जाता है और उनको पर्वत-कन्दराओं और निर्जन वनों में रहकर कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़ता है। अकस्मात् घटित एक घटना से राणा प्रताप विचलित तो होते हैं, परन्तु उनका स्वाभिमान उन्हें अकबर से सन्धि करने से रोकता है। अकबर से निरन्तर युद्ध करते रहने के कारण महाराणा प्रताप सेना और कोष के अभाव से चिन्ताकुल रहते हैं। तब ही उनका वंशानुगत मन्त्री भामाशाह उन्हें अपने जीवन की अर्जित समस्त सम्पत्ति समर्पित क़र देता है। प्रस्तुत पाठ में भामाशाह और प्रताप के त्यागमय जीवन-वृत्तान्त का वर्णन है।
पाठ सारांश
प्रताप की विपन्न दशा- अरावली पर्वत के ऊपर की भूमि पर विपन्नावस्था में बैठे हुए महाराणा प्रताप मन्त्रियों के साथ भावी योजना पर विचार-विमर्श कर रहे हैं। उसी समय उन्हें अपने पुत्र के रोने का करुण स्वर सुनाई देता है। महाराणा प्रताप उसका आलिंगन करके उसे चुप कराते हुए उससे रोने का कारण पूछते हैं। बालक अपने रोने का कारण अपना भूखा होना बताता है। उसी समय राजमहिषी घास की रोटी का एक टुकड़ा लेकर आती है। बालक रोटी का टुकड़ा लेकर दूर चला जाता है। उसी समय उसकी रोटी का टुकड़ा एक वन-बिलाव लेकर भाग जाता है और बालक फिर रोने लगता है। प्रताप के पूछने पर राजमहिषी बताती है कि और रोटी नहीं है तथा बालक को चुप कराने के लिए वह उसे एक गुफा के भीतर ले जाती है।’
प्रताप की चिन्ता- महाराणा प्रताप एक शिला पर बैठकर अपनी दशा पर दुःखी हो रहे हैं और स्वयं से कह रहे हैं कि मुझे धिक्कार है, जो मेरे जीवित रहते हुए भी मेरा पुत्र भूखा रह जाता है। उनके लिए यह कष्ट असह्य हो जाता है। वे मातृभूमि की रक्षा का व्रत छोड़कर दिल्ली नरेश से सन्धि करने का विचार करने लगते हैं। अचानक नेपथ्य से आने वाली किसी ध्वनि को सुनकर वे विचार-विरत हो जाते हैं। पुनः चिन्ताकुल होकर सोचते हैं कि मेरे पास मातृभूमि की रक्षा के लिए न तो धन है और न ही पर्याप्त सेना।
भामाशाह का अपूर्व त्याग- उसी समय अपने सेवकों के साथ भामाशाह वहाँ पहुँचता है और महाराणा प्रताप को विपन्न और चिन्तित अवस्था में देखता है। प्रताप मातृभूमि की स्वतन्त्रता की चिन्ता से व्याकुल हैं, इस बात को वह पहले से ही जानता है। भामाशाह देश की रक्षा के लिए अपनी सारी पूँजी प्रताप के चरणों में अर्पित कर देता है। महाराणा प्रताप भामाशाह का आलिंगन करके उसकी प्रशंसा करते हैं। दोनों की जय-जयकार होती है।
चरित्र चित्रण
महाराणा प्रताप
परिचय– मेवाड़ केसरी महाराणा प्रताप सिसोदिया कुल के भूषण थे। उन्होंने वीरप्रसविणी भारतभूमि के राजस्थान प्रान्त में जन्म लिया था। वे अदम्य साहसी, शक्तिसम्पन्न और स्वाभिमानी थे। अकबर से निरन्तर युद्ध करते-करते वे अपना सब कुछ आँवा बैठते हैं और पर्वत-कन्दराओं-वनों में रहकरे जीवन-यापन के लिए विवश हो जाते हैं। उनके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं ।
(1) अदम्य साहसी एवं वीर- महाराणा प्रताप में अद्भुत साहस एवं अतुल पराक्रम था। वे शत्रु-पक्ष से सदा निर्भीक रहे और निरन्तर युद्ध करते रहे। दिल्ली के सम्राट् अकबर से इस वीर ने ही लोहा लिया और उसकी दासता कभी स्वीकार नहीं की। वे अपने सीमित साधनों और सीमित सेना से ही अकबर से लोह्म लेते रहे। वे विपत्ति में कभी नहीं घबराये। अत्याचार, अन्याय और परतन्त्रता को सहन करना ही सबसे बड़ा पाप है और सबसे बड़ा पुण्य है, इनके निराकरण के लिए संघर्षरत रहना; इसी को इन्होंने अपने जीवन का सिद्धान्त बना लिया था। इन्होंने मातृभूमि के समक्ष अपनी और अपने परिवार की कभी चिन्ता नहीं की। वे विपन्नता में भी मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए प्रयास करते रहे। |
(2) सहृदय- महाराणा प्रताप सहृदय व्यक्ति थे। पुत्र को भूख से बिलखते देखकर उनको हृदय विचलित हो जाता है। संसार में लोग पुत्र के लिए क्या-क्या उचित-अनुचित नहीं करते, परन्तु पुत्र को दु:खी नहीं देख सकते; लेकिन महाराणा प्रताप का पुत्र भूख से बिलख रहा है। वे पुत्र की इस वेदना से विचलित हो जाते हैं और अकबर से सन्धि करने का विचार करने लगते हैं।
(3) असाधारण स्वाभिमानी- महाराणा प्रताप का स्वाभिमान उन्हें अकबर से सन्धि करने से रोकता है। उन्होंने स्वाभिमान की रक्षा के लिए घास की रोटियाँ खाकर जीवनयापन करना अधिक पसन्द किया, परन्तु स्वाभिमान को नहीं छोड़ा। उन्होंने अकबर की दासता कभी स्वीकार नहीं की, सदा अपना सिर ऊँचा रखा। उन्होंने टूटना सीखा था, मगर झुकना नहीं।
(4) त्याग की जीवन्त मूर्ति- महाराणा प्रताप त्याग की जीवन्त प्रतिमा थे। उनके जीवन का व्रत ‘था कि या तो मेवाड़ को स्वतन्त्र बनाऊँगा अन्यथा शरीर का त्याग कर दूंगा।’ उनकी यह दृढ़ प्रतिज्ञा उनके त्याग की मूर्तिमान कहानी है। वे जीवनपर्यन्त भूमि पर-शयन करते रहे और पत्तल पर भोजन करते रहे; क्योंकि उनका मेवाड़ उनके जीवन-काल में स्वतन्त्र नहीं हो पाया था।
(5) देश-प्रेमी– महाराणा प्रताप मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए अनवरत संघर्ष करते रहे। उन्हें केवल चिन्ता थी तो देश की स्वतन्त्रता की। उन्होंने मेवाड़ की स्वतन्त्रता के लिए अनेक कष्ट सहे। भामाशाह से अतुल धनराशि प्राप्त कर सेना को पुनः एकत्र करके देश को स्वतन्त्र करने हेतु लड़ाई लड़ी। आज भी मेवाड़ के कण-कण में महाराणा प्रताप की देशभक्ति और उनका मातृभूमि के प्रति प्रेम समाया हुआ है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि महाराणा प्रताप मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए शहीद होने वाले वीरों की पंक्ति में अग्रिम स्थान के अधिकारी हैं। वे असाधारण वीर, अप्रतिम साहसी, स्वाभिमानी, कष्ट-सहिष्णु, मातृभूमि के अनन्य सेवक तथा त्याग की जीवन्त मूर्ति थे।
भामाशाह
परिचय– देशभक्तों में जहाँ महाराणा प्रताप का नाम अग्रगण्य है, वहीं भामाशाह का नाम भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। भामाशाह एक देशभक्त श्रेष्ठ । वे महाराणा प्रताप के वंशानुगत मन्त्री हैं। उनके पास स्वयं की और पूर्वजों की अर्जित अपार सम्पत्ति है। उनके चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं|
(1) महान् देशभक्त- मातृभूमि की रक्षा करते युद्ध में वीरगति प्राप्त करने वालों की गणना ही देशभक्तों में नहीं की जाती, वरन् देश की रक्षा के लिए संसाधन जुटाने वाले लोगों की गणना भी देशभक्तों में ही का जाती है। ऐसे ही एक देशभक्त वीर थे–भामाशाह। वे मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन की सम्पत्ति महाराणा के श्रीचरणों में समर्पित करके निराश राणा को पुनः मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी देशभक्ति को देखकर राणा स्वयं कह उठते हैं–‘यस्या मातृभूमेः त्वादृक् पुत्ररत्नम् विद्यते, न ताम् कश्चिदपि आक्रान्ता पराधीनां कत्तुं शक्तः ।
(2) स्पष्टवक्ता एवं आदर्श मन्त्री- भामाशाह एक आदर्श मन्त्री हैं। उन्हें छल-कपट अथवा मिथ्यालाप नहीं आता। उनका यह कथन है ‘महाराज! निधिरयं मन्त्रिरूपेण अस्माभिः कुलपरम्परया श्रीमद्भ्यः एवोपार्जितः’ उनके इस गुण को स्पष्ट कर देता है। उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि यह विपुल धनराशि मेरे कुल द्वारा आप ही से एकत्रित की गयी है।
(3) त्यागी- देशभक्त होने से पहले त्यागी होना अत्यावश्यक है। भामाशाह में यह गुण विद्यमान है। देश के लिए अपने द्वारा अर्जित की गयी सम्पूर्ण सम्पत्ति का त्याग कर देना उनके त्यागी होने का स्पष्ट प्रमाण है। अपने घर आये हुए याचक को दान देते हुए दानियों को तो सहज की देखा जा सकता है किन्तु ऐसे दानी जो दानार्थी को उसके स्थान पर पहुँचकर सर्वस्व दे दें, विश्व-इतिहास में भामाशाह के अतिरिक्त गिने-चुने ही होंगे।
(4) दूरदर्शी- भामाशाह दूरद्रष्टा हैं। वे सोचते हैं कि यदि देश परतन्त्र हो गया तो उनके द्वारा अर्जित समस्त सम्पत्ति को आक्रान्ता लूट ही ले जाएँगे और वे खाली हाथ रह जाएँगे। अब यदि बिना। सम्पत्ति के रहना ही है तो क्यों न वह सम्पूर्ण सम्पत्ति देश की रक्षा के लिए अर्पित कर दी जाये। इससे उनकी यश:-कीर्ति ही बढ़ेगी। कदाचित् यही सोचकर वे अपनी सम्पूर्ण धनराशि देशहित में दे देते हैं। उनकी इस दूरदर्शिता में मातृभूमि की हित-कामना निहित है। |
(5) वीर पुरुष– युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर–वीर पुरुष के चार प्रकार होते हैं। भामाशाह को युद्धवीर नहीं कहा जा सकता; किन्तु वे दानवीर अवश्य हैं। दानवीर व्यक्ति में धर्म और दया तो निहित होती ही है; क्योंकि इन दोनों गुणों के अभाव में कोई भी व्यक्ति दानी नहीं हो सकता। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भामाशाह जहाँ देशभक्त व आदर्श मन्त्री हैं, वहीं वे दयालु, परम धार्मिक, राजवंश प्रेमी, वीर पुरुष और भारतीय सन्तान हैं। ऐसे ही महापुरुषों पर देश की स्वाधीनता निर्भर करती है।
लघु उत्तरीय संस्कृत प्रश्नोत्तर
अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए
प्रश्न 1
कुत्र अवसत्?
उत्तर
प्रतापः अर्बुदपर्वतस्य अधित्यकायाम् अवसत्।
प्रश्न 2
प्रतापः बालकाय भक्षणार्थम् किमददात्?
उत्तर
प्रतापः बालकाय भक्षणार्थं घासकरपट्टिकायाः खण्डम् अददात्।
प्रश्न 3
बालकस्य करपट्टिका केनापहृता? ।
उत्तर
बालकस्य करपट्टिका वनमार्जारण अपहृता।
प्रश्न 4
वनमार्जारेणापहृते करपट्टिकाशकले राजमहिषी प्रतापं किम् अवोचत्?
उत्तर
वनमाजरेण अपहृते करपट्टिकाशकले राजमहिषी प्रतापम् अवोचत् यत्-नाथ! एतदेव करपट्टिकाकाशकलम् आसीत्। इदानीं नास्ति किमपि अन्यभक्षणाय।।
प्रश्न 5
राजमहिषीवचः निशम्य वीक्ष्य च क्रन्दन्तं बालकं प्रतापः किमचिन्तयत्?
उत्तर
राजमहिषीवच: निशम्य वीक्ष्य च क्रन्दन्तं बालकं प्रताप: स्व परिवारस्य दीनां दशाम्। अचिन्तयत्। ।
प्रश्न 6
केन नेपथ्यध्वनिना प्रतापः विरमति?
उत्तर
‘त्वयि सन्धौ गते राजन्! कुत्र गता स्वतन्त्रता।’ इत्यनेन नेपथ्यध्वनिना प्रतापः विरमति।
प्रश्न 7
नेपथ्यभाषितं श्रुत्वा प्रतापः किं चिन्तयामास?
उत्तर
नेपथ्यभाषितं श्रुत्वा प्रतापः चिन्तयामास यत् मम पाश्वें वराटिकापि नास्ति, अपेक्षिता सेना न विद्यते, कथं करोमि मातृभूमि रक्षाविधानम्।
प्रश्न 8
भामाशाहः कः आसीत्?
उत्तर
भामाशाह: प्रतापस्य कुलक्रमागत: मन्त्री आसीत्।
प्रश्न 9
चिन्तामग्नं प्रतापं दृष्ट्वा भामाशाहः किम् अकथयत्?
उत्तर
चिन्तामग्नं प्रतापं दृष्ट्वा भामाशाहः अकथयत् यत् कथं श्रीमन्तः चिन्ताहुताशनपरीताः इव आलक्ष्यन्ते।
प्रश्न 10
भामाशाहः प्रतापाय किमददात्? उत्तर-भामाशाहः प्रतापाय प्रभूतं धनम् अददात्।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए
1. ‘त्याग एव परो धर्मः’पाठ वर्तमान भारत के किस राज्य से सम्बन्धित है?
(क) राजस्थान से
(ख) उत्तर प्रदेश से
(ग) गुजरात से
(घ) मध्यप्रदेश से
2. ‘त्याग एव परो धर्मः पाठ में किनके त्याग का वर्णन किया गया है?
(क) महाराणा प्रताप और भामाशाह के
(ख) महाराणा प्रताप और अकबर के
(ग) भामाशाह और अकबर के
(घ) इनमें से किसी के नहीं।
3. महाराणा प्रताप का युद्ध किससे और कहाँ हुआ था?
(क) बाबर से, पानीपत में।
(ख) हुमायूँ से, दिल्ली में ।
(ग) अकबर से, हल्दीघाटी में
(घ) औरंगजेब से, पानीपत में।
4.अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य हुए युद्धों का अन्ततः क्या परिणाम हुआ?
(क) प्रताप का सम्पूर्ण धन और सेना नष्ट हो गयी |
(ख) प्रताप ने आत्म-समर्पण कर दिया।
(ग) अकबर का कोष खाली हो गया
(घ) अकबर ने हार मान ली
5. राज्य के हाथ से चले जाने पर महाराणा प्रताप ने किन पहाड़ियों में शरण ली?
(क) सतपुड़ा की पहाड़ियों मे
(ख) अरावली की पहाड़ियों में
(ग) हिमालय की पहाड़ियों में
(घ) विन्ध्य की पहाड़ियों में .
6.महाराणा के पुत्र के रोने का क्या कारण था?
(क) भूख
(ख) प्यास
(ग) वनमार्जारम्
(घ) युद्ध .
7. पुत्र को भूख से व्याकुल देखकर प्रताप ने क्या निश्चय किया?
(क) वहाँ से चले जाने का ।
(ख) भोजन सामग्री लाने का
(ग) अकबर से सन्धि करने का |
(घ) बच्चे को चुप कराने का
8. वनबिलाव बालक के हाथ से क्या छीन ले गया?
(क) रोटी का टुकड़ा
(ख) लड्डू
(ग) खिलौना
(घ) कपड़ा
9. महाराणा प्रताप भामाशाह को अपनी चिन्ता का क्या कारण बताते हैं? |
(क) पत्नी की दीनदशी को
(ख) मातृभूमि की स्वतन्त्रता को
(ग) अपने कुटुम्ब को ।
(घ) अपने पुत्र की भूख को
10. भामाशाह ने प्रताप को धन क्यों दिया?
(क) क्योंकि भामाशाह को उस धन के चोरी जाने का भय था
(ख) भामाशाह के पास धन रखने को स्थान नहीं था।
(ग) क्योंकि भामाशाह मातृभूमि की सेवा करना चाहते थे
(घ) क्योंकि प्रताप ने वह धन मँगाया था ।
11. ‘वत्स! किमर्थम् ………………. ।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी–
(क) ‘रोदिहि’ से
(ख) ‘रोदते’ से
(ग) ‘रोदति’ से
(घ) “रोदिषि’ से
12. ‘त्वया वीरप्रसू गोत्रा त्वयि धर्मः प्रतिष्ठितः।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) महाराणा प्रताप
(ख) अकबर ।
(ग) मानसिंह
(घ) कश्चित् नास्ति
13. ‘बुभुक्षय मे प्राणाः उत्क्रामन्ति।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) महाराणा प्रतापः।
(ख) प्रतापस्य बालकः
(ग) प्रतापस्य राजमहिषी
(घ) भामाशाहः
14. ‘क्वेदानीं श्रूयते फेरूणाम् •••••••••• ध्वनिः।’ में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क) “तीव्रतरो’ से
(ख) ‘कर्णकटुको’ से
(ग) ‘मधुरो’ से
(घ) “कोलाहलो’ से
15. मयि जीवत्येव ममात्मजः क्षुधार्तः तिष्ठति।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) महाराणा प्रतापः
(ख) प्रतापस्य बालकः
(ग) प्रतापस्य राजमहिषी
(घ) कश्चित् नास्ति ।
16. ‘ …… रक्षणार्थमपेक्षिता सेनापि न विद्यते।’ में वाक्य-पूर्ति होगी
(क) मातृभूमि’ से ।
(ख) ‘आत्मसम्मान’ से
(ग) “प्रजा’ से ।
(घ) ‘सिंहासन’ से ।
17.’…….. अयं मन्त्रिरूपेण अस्माभिः कुलपरम्परया श्रीमद्भ्यः एवोपार्जितः।’ में रिक्त-पद | की पूर्ति होगी ।
(क) “सम्पत्ति’ से
(ख) ‘धनम्’ से
(ग) “निधि’ से
(घ) “वराटिका’ से
We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 त्याग एवं परो धर्मः (कथा – नाटक कौमुदी) help you.