UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 11 बुद्धिर्यस्य बलं तस्य (कथा – नाटक कौमुदी)

By | May 23, 2022

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 11 बुद्धिर्यस्य बलं तस्य (कथा – नाटक कौमुदी)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 11 बुद्धिर्यस्य बलं तस्य (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय– संस्कृत-साहित्य में कथाओं के माध्यम से न केवल मानव अपितु पशु-पक्षियों की सहज प्रकृति पर भी पर्याप्त सामग्री प्राप्त होती है। ये कथाएँ प्रायः नीतिपरक, उपदेशात्मक और मनोरंजक होती हैं। इस प्रकार के कथा-ग्रन्थों में शुक-सप्तति’ का उल्लेखनीय स्थान है। इसमें 70 कथाओं का संग्रह किया गया है। ये कथाएँ एक तोते के मुख से हरिदत्तं सेठ के पुत्र मदनविनोद की पत्नी के लिए कही गयी हैं। इस ग्रन्थ के लेखक और इसके रचना-काल के विषय में विश्वस्त सामग्री का अभाव है। इसका परिष्कृत और विस्तृत संस्करण श्री चिन्तामणि भट्ट की रचना प्रतीत होती है तथा संक्षिप्त संस्करण किसी श्वेताम्बर जैन लेखक की। हेमचन्द्र (1088-1172 ई०) ने शुक-सप्तति’ का उल्लेख किया है तथा ‘तूतिनामह’ नाम से यह ग्रन्थ चौदहवीं शताब्दी में फारसी में अनूदित हुआ था। अतः इस ग्रन्थ की रचना काल 1000-1200 ई० के मध्य जाना चाहिए। इस ग्रन्थ की सभी कथाएँ कौतूहलवर्द्धक तथा मनोरंजन हैं। भाषा सरल, सुबोध तथा प्रवाहमयी है। । प्रस्तुत कहानी ‘शुक-सप्तति’ नामक कथा-ग्रन्थ से संगृहीत है। इस कथा में व्याघ्रमारी बुद्धि के प्रभाव से वन में बाघ और शृगाल जैसे हिंसक जीवों से अपनी और अपने पुत्रों की रक्षा करती है।

पाठ सारांश  

व्याघ्रमारी का परिचय– देउल नाम के किसी गाँव में राजसिंह नाम का एक राजपूत रहता था। उसकी पत्नी बहुत झगड़ालू थी, इसीलिए उसका नाम कलहप्रिया था। वह एक दिन अपने पति से झगड़कर अपने दोनों पुत्रों को साथ लेकर अपने पिता के घर की ओर चल दी। वह ग्राम, नगरों और वनों को पार करती हुई मलय पर्वत के पास उसकी तलहटी में स्थित एक महावन में पहुँची।

व्याघ्र का मिलना- उस वन में उस कलहप्रिया ने एक व्याघ्र को देखा। उसे तथा उसके पुत्रों को देखकर व्याघ्र उनकी ओर झपटा। उस स्त्री ने व्याघ्र को अपनी ओर आता देखकर अपने पुत्रों को चाँटा मारकर कहा कि तुम दोनों क्यों एक-एक व्याघ्र के लिए झगड़ते हो। लो, एक व्याघ्र आ गया है। अभी इसे ही आधा-आधा बाँटकर खा लो। बाद में कोई दूसरा देखेंगे।

भागते हुए व्याघ्र को सियार का मिलना- ऐसा समझकर कि ‘यह कोई व्याघ्रमारी है’, व्याघ्र डरकर भाग गया। उसे भय से भागता हुआ देखकर एक सियार ने हँसकर कहा-“अरे व्याघ्र! किससे डरकर भागे जा रहे हो।’ व्याघ्र ने उससे कहा कि जिस व्याघ्रमारी के बारे में मैंने शास्त्रज्ञों से सुन रखा था, आज उसे स्वयं देख लिया। इसी डर से भागा जा रहा हूँ। तुम भी घने वन में जाकर छिप जाओ। सियार ने कहा कि आप उस धूर्त स्त्री के पास पुनः चलिए। वह आपकी ओर देखेगी भी नहीं। यदि उसने ऐसा किया तो आप मुझे जान से मार दीजिएगा।

व्याघ्र का सियारसहित व्याघमारी के पास पुनः आना- व्याघ्र ने गीदड़ से कहा कि यदि तुम मुझे उसके पास छोड़कर भाग आये तो। सियार ने कहा कि यदि ऐसी बात है तो आप मुझे अपने गले में बाँध लीजिए। व्याघ्र सियार को अपने गले में बाँधकर पुनः ले गया। व्याघ्रमारी सियार को देखते ही समझ गयी कि यही व्याघ्र को लेकर वापस आया है। अत: वह सियार को ही फटकारती हुई बोली कि तूने मुझे पहले तीन बाघ देने को कहा था और अब एक ही लेकर आ रहा है। ऐसा कहकर व्याघ्रमारी तेजी से उसकी ओर दौड़ी। उसे अपनी ओर आता हुआ देखकर गले में सियार को बाँधा हुआ व्याघ्र वैसे ही फिर भाग खड़ा हुआ। ।

व्याघ्र और सियार का अलग होना– व्याघ्र के गले में बँधा हुआ सियार उसके बेतहाशा भागने के कारण भूमि पर रगड़ खा-खाकर लहू-लुहान हो गया। बहुत दूर जाकर वह अपने को छुड़ाने की इच्छा से वह जोर से हँसा। व्याघ्र ने जब उससे हँसने का कारण पूछा तब उसने कहा कि आपकी कृपा से ही मैं भी सकुशल इतनी दूर आ गया। अब वह पापिनी यदि हमारे खून के निशानों का पीछा करती हुई आ गयी तो हम जीवित न बचेंगे। इसीलिए मैं हँस रहा था। उसकी बात को ठीक मानकर व्याघ्र सियार को छोड़कर अज्ञात स्थान की ओर भाग खड़ा हुआ। सियार ने भी जीवन के शेष दिन सुख से व्यतीत किये।

चरित्र-चित्रण

व्याघ्रमारी

परिचय– व्याघ्रमारी देउल ग्राम के राजसिंह की झगड़ालू पत्नी है। झगड़ालू प्रवृत्ति की होने के कारण ही लेखक ने उसका नाम कलहप्रिया रखा है। उसकी चरित्रगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) क्रोधी स्वभाव- व्याघ्रमारी क्रोधी स्वभाव की स्त्री है। यही कारण है कि वह अत्यधिक झगड़ालू है। क्रोध में आकर वह गृह-त्याग जैसा त्रुटिपूर्ण कदम उठाने में भी नहीं हिचकिचाती है। क्रोधान्धता के वशीभूत होकर ही वह पिता के घर पहुँचने के स्थान पर वन में पहुँच जाती है।

(2) यथा नाम तथा गुण- कलहप्रिया पर ‘यथा नाम तथा गुण वाली कहावत अक्षरश: चरितार्थ होती है। वह किसी से भी कलह करने में संकोच नहीं करती है। घर पर वह अपने पति से कलह करती है तो जंगल में व्याघ्र और सियार में भी कलह करा देती है। उसका व्याघ्रमारी नाम भी सार्थक-सा प्रतीत होता है; क्योंकि वह व्याघ्र जैसे शक्तिशाली पशु को भी अपने बुद्धि-चातुर्य से भयभीत कर मैदान छोड़कर भाग जाने के लिए विवश कर देती है।

(3) निर्भीक- निर्भीकता उसके रोम-रोम में समायी प्रतीत होती है। पति से झगड़ा करके अपने दोनों पुत्रों को साथ लेकर वन-मार्ग से होते हुए अपने पिता के घर जाने का उसका निर्णय तथा जंगल में व्याघ्र एवं सियार जैसे हिंसक पशुओं को देखकर भी न घबराना, उसकी निर्भीकता का स्पष्ट प्रमाण  है। यदि वह तनिक भी डर जाती तो उसकी और उसके पुत्रों की जान अवश्य चली जाती; जब कि उसकी निर्भीकता के कारण व्याघ्र स्वयं ही अपनी जान बचाकर भाग खड़ा हुआ।

(4) बुद्धिमती- उसका असाधारण बुद्धिमती होना भी उसके चरित्र का मुख्य गुण है। अपने बुद्धि-चातुर्य से वह व्याघ्र जैसे हिंसक पशु को भयभीत करके उन्हें भाग जाने के लिए विवश करती है। और अपनी तथा अपने पुत्रों की प्राणरक्षा करती है।

निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि व्याघ्रमारी (कलहप्रिया) जहाँ एक लड़ाकू और कलह- कारिणी स्त्री है वहीं वह एक निर्भीक, क्रोधी, शीघ्र निर्णय लेने वाली और विपत्ति में भी धैर्य धारण करने वाली वीरांगना है।

शृगाल

परिचय- शृगाल जंगल का छोटा-सा हिंसक जीव है। वह भय से भागते व्याघ्र को मार्ग में मिलता है और व्याघ्र से उसके भय का कारण पूछता है। अपनी धूर्तता से वह स्वयं अपने प्राण भी संकट में डाल लेता है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) महाधूर्त- जंगल के जीवों में शृगाल को सबसे धूर्त जीव माना जाता है। प्रस्तुत पाठ का पात्र शृगाल भी इस अवधारणा पर खरा उतरता है। भय से भागते व्याघ्र को देखकर उसकी हँसी से उसकी धूर्तता का बोध होता है। उसकी धूर्तता तब चरम सीमा पर पहुँच जाती है, जब वह व्याघ्र को अपनी बातों में फंसाकर पुनः कलहप्रिया के निकट ले जाता है। व्याघ्र के डर जाने और कलहप्रिया की निर्भीकता क़ा दण्ड उसे स्वयं भी घायल होकर भुगतना पड़ता है।

(2) निर्भीक एवं साहसी- धूर्त होने के साथ-साथ उसमें निर्भीकता एवं साहस जैसे गुण भी विद्यमान हैं। अपने से कई गुना शक्तिशाली व्याघ्र पर हँसना, व्याघ्र को पुनः कलहप्रिया के पास लेकर आना उसकी निर्भीकता एवं साहस की पुष्टि के लिए पर्याप्त हैं।

(3) बुद्धिमान्- बुद्धिमानी उसका विशिष्ट गुण है। अपनी बुद्धि के द्वारा ही वह व्याघ्र को पुनः कलहप्रिया के पास लाने में सफल हो जाता है और व्याघ्र के गले में बँधा हुआ भी व्याघ्र से अपने प्राणों की रक्षा कर लेता है, यह उसके बुद्धिमान् होने को दर्शाता है।

(4) धैर्यशाली–विपत्ति के समय में भी शृगाल धैर्य को नहीं त्यागता है। व्याघ्र के गले में बँधा हुआ लहूलुहान होने पर भी वह घबराता नहीं है। धैर्यपूर्वक वह अपनी मुक्ति का उपाय सोचता है और अन्ततः अपने प्राणों की रक्षा करने में सफल हो जाता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि शृगाल में उपर्युक्त गुणों के अतिरिक्त वाक्पटु, शीघ्र निर्णय लेना इत्यादि गुण विद्यमान हैं।

व्याघ्र

परिचय–प्रस्तुत पाठे के पात्रों में कलहप्रिया के पश्चात् व्याघ्र ही दूसरा प्रमुख पात्र है। वह जंगल का हिंसक, किन्तु मूर्ख जीव है। उसके चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं|

(1) मूर्ख- शक्तिशाली जीव होते हुए भी व्याघ्र मूर्ख है। उसकी मूर्खता का उद्घाटन उस समय होता है, जब वह व्याघ्रमारी द्वारा अपने बेटों को उसे खा लेने का आदेश देते सुनकर ही भाग खड़ा होता है। वह यह भी नहीं सोच पाता कि दो छोटे निहत्थे बालक और एक स्त्री कैसे उसे मारकर खा जाएँगे। ..

(2) भीरु– व्याघ्र बलशाली अवश्य है, किन्तु अत्यधिक भीरु. भी है। कलहप्रिया द्वारा उसको मारकर खा जाने के कथनमात्र से ही वह घबरा जाता है। अपने भीरु स्वभाव के कारण वह अपनी शक्ति को भी भूल जाता है। शृगाल से जंगल में कहीं छिपकर जान बचाने के उसके कथन से भी उसकी भीरुता का बोध होता है।

(3) शक्ति के मद में चूर– व्याघ्र को अपनी शक्ति पर गर्व है। कलहप्रिया को दो बच्चोंसहित देखकर वह फूला नहीं समाता। उन्हें खाने के लिए वह बड़ी वीरता के साथ अपनी पूँछ को भूमि पर पटकता है और तत्पश्चात् उनकी ओर झपटता है। धरती पर पूँछ को पटकना ही उसके शक्ति-मद को इंगित करता है।

(4) अविवेकी- अपने ऊपर उल्लिखित दुर्गुणों के साथ-साथ वह अविवेकी भी है। उसका कोई भी कार्य विवेक से पूर्ण नहीं लगता, चाहे कलहप्रिया को खाने के लिए झपटने का उसका निर्णय हो अथवा शृगाल को गले में बाँधकर पुनः कलहप्रिया के पास आने का निर्णय। मात्र अविवेकी होने के कारण ही वह दोनों बार भय को प्राप्त होता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि व्याघ्र झूठी मान-प्रतिष्ठा का प्रदर्शन करने वाला अविवेकी, शक्ति के मद में चूर, भीरु और मूर्ख जीव है।।

लघु उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्‍नो के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्‍न 1
राजसिंहो नाम राजपुत्रः कुत्र अवसत्?
उत्तर
राजसिंहो नाम राजपुत्र: देउलाख्ये ग्रामे अवसत्।

प्रश्‍न 2
व्याघ्रः कलहप्रियां दृष्ट्वा किम् अकरोत्?
उतर
व्याघ्रः कलहप्रियां दृष्ट्वा पुच्छेन भूमिमाहत्य धावितः।

प्रश्‍न 3
व्याघ्रो जम्बुकं किं कर्तुम् अकथयत्?
उत्तर
व्याघ्रः जम्बुकं किञ्चिद् गूढप्रदेशं गन्तुम् अकथयत्।

प्रश्‍न 4
व्याघमारी जम्बुकं प्रति किं चिन्तितवती?
उत्तर
व्याघ्रमारी चिन्तितवती यदयं व्याघ्रः मृगधूत्तेन आनीतः।

प्रश्‍न 5
व्याघमारी शृगालं किम् अकथयत्?
उत्तर
व्याघ्रमारी शृगालम् अकथयत् यत् त्वया पुरा मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्, अद्य त्वम् एकमेव कथम् आनीतवान्।।

प्रश्‍न 6
जम्बुकेन स्वप्राणान्त्रातुं किं कृतम्?
उत्तर
जम्बुकेन स्वप्राणान् त्रातुं उच्चैः हसितम् उक्तञ्च यदि साऽस्मद्रक्तस्रावसंलग्ना पापिनी पृष्टत: समेति तदा कथं जीवितव्यम्।।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।

1. ‘बुद्धिर्यस्य बलं तस्य’ पाठ किस ग्रन्थ से उधृत है?
(क) कथासरित्सागर’ से
(ख) “शुक-सप्तति’ से।
(ग) ‘पञ्चतन्त्रम्’ से
(घ) “हितोपदेशः’ से ।

2. शुकसप्तति में कुल कितनी कथाएँ संगृहीत हैं और यह किसके मुख से कही गयी हैं?
(क) सत्रह, कबूतर के मुख से ।
(ख) संतासी, मैना के मुख से
(ग) सत्ताइस, शृगाल के मुख से ।
(घ) सत्तर, शुक के मुख से ।

3. राजसिंह किस गाँव का निवासी था?
(क) रामपुर ग्राम का
(ख) शिवपुर ग्राम का
(ग) देउलाख्य ग्राम का ।
(घ) कुसुमपुर ग्राम का

4. कलहप्रिया किसके साथ अपने पिता के घर की ओर चली?
(क) अपने पति के साथ
(ख) अपने सेवक के साथ
(ग) अपने पिता के साथ
(घ) अपने दो पुत्रों के साथ

5. कलहप्रिया ने महाकानन में व्याघ्र को देखकर अपने पुत्रों को चपत लगाकर क्या कहा?
(क) तुम खाना खाने के लिए क्यों लड़ रहे हो।
(ख) तुम बिना बात के क्यों लड़ रहे हो ।
(ग) तुम मार खाने के लिए क्यों लड़ रहे हो।
(घ) तुम एक-एक व्याघ्र को खाने के लिए क्यों लड़ रहे हो

6. व्याघ्र ने कलहप्रिया को क्या समझा?
(क) अश्वमारी
(ख) गजमारी
(ग) व्याघ्रमारी
(घ) शृगालमारी

7. बाघ को भागता हुआ देखकर शृगाल ने क्या किया?
(क) वह हँसने लगा।
(ख) वह रोने लगा
(ग) उसने बाघ को धैर्य बँधाया
(घ) उसने क्रोध किया

8. कथाकार ने व्याघ्र पर हँसते हुए जम्बुक( सियार) को क्या कहा है?
(क) बुद्धिमान्
(ख), धूर्त
(ग) मृगधूर्त
(घ) शृगाल

9. दुबारा कलहप्रिया के पास जाते हुए बाघ ने क्या किया?
(क) शृगाल को अपने आगे कर लिया
(ख) शृगाल को अपनी पूंछ से बाँध लिया
(ग) शृगाले को अपने गले में बाँध लिया।
(घ) शृगाल की गर्दन पकड़ ली

10. दौड़ते हुए बाघ के गले से छूटने के लिए सियार ने क्या किया?
(क) वह जोर से रोने लगा
(ख) उसने बाघ से निवेदन किया
(ग) वह हँसने लगा।
(घ) उसने मरने का ढोंग किया

11.’•••••••••••••राजसिंहस्य भार्या आसीत्?’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क) “कलहप्रिया’ से
(ख) “शान्तिप्रिया’ से
(ग) “भानुप्रिया’ से
(घ) “माधुर्य प्रिया’ से

12. ‘यदि त्वं मां मुक्त्या यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) व्याघ्रः
(ख) शृगालः
(ग) व्याघ्रमारी
(घ) कश्चित् नास्ति

13. ‘तर्हि मां निज ……………… बद्ध्वा चल शीघ्रम्।’ वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी
(क) ‘हस्ते से
(ख) “पृष्ठे’ से
(ग) “गले’ से
(घ) “पादे’ से

14. ‘तदा मम त्वदीया वेला स्मरणीया।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) जम्बुकः
(ख) व्याघ्रः
(ग) व्याघ्रमारी
(घ) कश्चित् नास्ति

15. ‘यतो हि व्याघमारीति या ………………भूयते।’ में वाक्य-पूर्ति होगी
(क) “शास्ये’ से
(ख) ‘लोके से
(ग) ‘पुराणे’ से
(घ) “जना’ से

16. ‘रे रे धूर्त ••••••••••••दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा।’ में वाक्य-पूर्ति का पद है–
(क) त्वम्
ख) मया
(ग) त्वया ।
(घ) अहम् ।

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