UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 13 महात्मा बुध्द (गद्य – भारती)

By | May 23, 2022

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 13 महात्मा बुध्द (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 13 महात्मा बुध्द (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

जन्म एवं विवाह–प्राचीनकाल में नेपाल में शाक्य क्षत्रियों के वंश में शुद्धोदन नाम के राजा थे। उन्हीं की मायादेवी नामक रानी ने 2544 वें कलिवर्ष में एक पुत्र को जन्म दिया। जन्म के सातवें दिन इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इनका लालन-पालन इनकी मौसी गौतमी ने किया। इनका नामकरण सिद्धार्थ हुआ। युवावस्था को प्राप्त होने पर इनका विवाह ‘गोपा’ नाम की कन्या के साथ हुआ, जिससे इनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम राहुल रखा गया।

गृहत्याग और बोध-प्राप्ति-मनुष्य और उसके भोगों की नश्वरता को देखकर सिद्धार्थ की राजभोग से विरक्ति हो गयी और एक रात्रि में ये पत्नी और पुत्र को सोता हुआ छोड़कर गृह-त्याग करके चले गये।

पहले ये हिमालय पर्वत की गुफाओं में बसने वाले परिव्राजकों के पास गये, जिन्होंने इनको आर्यमत के तत्त्वों को बताया। वहाँ समाधान प्राप्त न होने पर ये बोधगया आ गये और घोर तपस्या आरम्भ की। यहाँ छ: वर्ष की घोर तपस्या से शरीर दुर्बल हो जाने के कारण इन्हें मूच्छा आ गयी। चेतना-प्राप्त होने पर इन्होंने पुनः तप आरम्भ कर दिया। इसके बाद फल्गुनी नदी के तट पर एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर इन्होंने तप किया, जहाँ इन्हें तत्त्व-ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब ये सिद्धार्थ से बुद्ध हो गये और जिस वट वृक्ष के नीचे इन्होंने तप किया था, वह वट वृक्ष बोधिवृक्ष कहलाया।

शिष्यों को उपदेश-इसके बाद इन्होंने काशी में बहुत-से शिष्यों को उपदेश दिया। जातिगत भेदभाव को ठुकराकर इन्होंने कर्म के आधार पर लोगों को अपने मत में प्रवेश कराया। मगध के राजा बिम्बिसार, अपने पुत्र राहुल तथा पत्नी आदि को इन्होंने अपने मत में प्रवृत्त किया।

निर्वाण-प्राप्ति-कलियुग के 2624वें वर्ष में इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। विष्णु पुराण में विष्णु का अवतार मानकर इनकी कीर्ति गायी गयी है।

ऐहिक सुखों के प्रति वैराग्य, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, शान्ति, समदृष्टि, प्राणियों के प्रति दया, परोपकार, शरणागत की रक्षा, इनके उपदेशों के ये गुण ब्राह्मण मत के समान ही थे, किन्तु प्राणी हिंसा के विषय में इन्होंने इस मत की अत्यधिक निन्दा की।

बौद्धधर्म का प्रसार- कलियुग के 2650वें वर्ष में यह धर्म सम्पूर्ण भारत में फैलता हुआ चीन, जापान एवं श्रीलंका तक जा पहुँचा। बौद्धधर्म मनुष्यमात्र का ही नहीं, वरन् प्राणिमात्र का कल्याण करने वाला धर्म है। उनके बाद अनेक विद्वान् , सन्त, महात्मा, विचारक व महापुरुष उनके धर्म से प्रभावित

पहले हिमालय पर्वत पर घूमते हुए वहाँ की गुफाओं में रहने वाले तपस्वियों के द्वारा आर्यमत के तत्त्वों को भली प्रकार ग्रहण किया। उससे अपनी इच्छित सुख-प्राप्ति को न देखते हुए उन्होंने बुद्धगया में घोर तपस्या औरम्भ की। छ: वर्ष तपस्या करते हुए बीतने पर किसी दिन श्रम की अधिकता से ये मूर्च्छित हो गये। पलभर में पुनः चेतना को प्राप्त हुए फिर से तप करने में लग गये। इसके पश्चात् फल्गुनी नदी के तट पर पहुँचकर किसी बोधिवृक्ष के मूल में जब यह बैठे रहे, तब सभी पूर्व जन्म के वृतान्तों का ज्ञान हो गया और तत्त्व-ज्ञान को प्राप्त करके ये प्रबुद्ध हो गये।

(3) ततो बुद्धः काश्यामुरुबिल्वे च बहून् शिष्यानविन्दत। सशिष्य एष वीतरागो मुनिः परार्थपराण्यवदातानि कर्माण्याचरन्। गुणैकसारैरुपदेशैर्जनान् जातिभेदमनादृत्य तत इतः स्वमते प्रवेशयामास। |

स मगधेषु राज्ञा बिम्बसारेणातिवेलं पूज्यमानश्चिरमुवास। पुनरुत्सुकस्य पितुर्दर्शनाय कपिलवस्तुनगरं गत्वा स्वपुत्रं राहुलं स्वमते प्रावेशयत्। पितृनिर्वाणात् परतो मातृष्वसारं भार्या च काषायं ग्राहयामास।।

अथ मुनिरनपायिनीं कीर्ति जगति प्रतिष्ठाप्य चतुर्विंशत्युत्तरषट्शताधिकद्विसहस्र (2624) तमे कलिवर्षे निर्वाणं प्रपेदे। एनं मुनिं विष्णोरवतारं पुराणानि कीर्त्तयन्ति।।

शब्दार्थ
ततः = इसके बाद।
काश्यां = काशी में।
उरुबिल्व = महान् बेल का वृक्ष।
अविन्दत = प्राप्त किया।
वीतरागः = वैरागी।
परार्थ पराणि= परोपकार सम्बन्धी।
अवदातानि = शुभ, पवित्र।
अनादृत्य = तिरस्कार करके।
अतिवेलं = अधिक समय तक।
प्रवेशयत् = प्रविष्ट किया।
पितृनिर्वाणात् = पिता के मोक्ष (मुक्ति, मृत्यु) से।
परतः = बाद में।
मातृष्वासरम् = मौसी को।
काषायम् = गेरुआ वस्त्र।
मुनिः अनपायिनीं = मुनि ने नष्ट न होने वाली।
जगति = संसार में।
प्रतिष्ठाप्य = प्रतिष्ठित करके।
निर्वाणम्= मुक्ति को।
प्रपेदे = प्राप्त किया।
कीर्तयन्ति = कीर्ति का वर्णन करते हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांशों में ज्ञान-प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध द्वारा अपने पुत्र, मौसी आदि को बौद्ध धर्म में प्रवृत्त करके अक्षय कीर्ति प्राप्त करने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इसके पश्चात् बुद्ध ने काशी में एक विशाल बेल के वृक्ष के नीचे बहुत-से शिष्यों को प्राप्त किया (अर्थात् इन्होंने सर्वप्रथम काशी में उपदेश दिया, जिससे इनके अनेक शिष्य बन गये)। शिष्यों-सहित इस वीतरागी मुनि ने दूसरों के कल्याण के लिए पवित्र कर्मों का आचरण किया। गुणों से सभी मनुष्य एक हैं और उनको बनाने वाला सारतत्त्व भी एक ही है, इस प्रकार से एक गुण और सारतत्त्व के उपदेश द्वारा जाति-भेद का तिरस्कार करके इन्होंने लोगों को अपने मत में प्रवेश दिलाया। | वह बुद्ध मगध राज्य में राजा बिम्बिसार द्वारा अत्यधिक पूजित हुए लम्बे समय तक रहे। फिर पिता के दर्शन के लिए उत्सुक कपिलवस्तु नगर में जाकर अपने पुत्र राहुल को अपने मत में प्रविष्ट किया। पिता के निर्वाण के बाद मौसी और पत्नी को काषाय (गेरुए वस्त्र) ग्रहण कराये; अर्थात् उनको भी बौद्धभिक्षु बना लिया।

इसके पश्चात् इन मुनि ने अपनी अनश्वर कीर्ति को संसार में प्रतिष्ठापित करके 2624 वें कलिवर्ष में निर्वाण प्राप्त किया। इस मुनि के विष्णु-अवतार की पुराणों में कीर्ति है (अर्थात् पुराणों में इनके विष्णु के अवतार के रूप में बड़ी कीर्ति गायी गयी है)।

(4) ऐहिकसुखवैराग्यम् अहिंसा, सत्यम् , अस्तेयम्, शान्तिः , समदृष्टिता, भूतदया, परोपकारः, शरणागतपरित्राणाम् इत्येते गुणा आचाराश्च सारभूता बौद्धमते ब्राह्मणमतवदुपदिष्टाः। किन्तु जन्तुहिंसयेश्वरयजनं यद् ब्राह्मणमतेऽङ्गीकृतं तदस्मिन् मतेऽत्यन्तं निन्दितम्।

शब्दार्थ
ऐहिकसुख = इस लोक से सम्बन्धित सुख।
अस्तेयम् = चोरी न करना।
परित्राणाम् = रक्षा करना।
जन्तुहिंसयेश्वरयजनम् (जन्तुहिंसया + ईश्वरयजनम्) = जीवों की हत्या से ईश्वर का यज्ञ।
अङ्गीकृतं = स्वीकृत। |

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में बौद्धमत के उपदेशों और ब्राह्मणमत से उनके साम्य-वैषम्य को बताया गया है।

अनुवाद
इस संसार से सम्बन्धित सुखों के प्रति वैराग्य, अहिंसा, सत्य-भाषण, चोरी न करना, शान्ति, सबको एक समान दृष्टि से देखना, प्राणियों के प्रति दया, परोपकार, शरणागत की रक्षाये बौद्धमत के सारभूतगुण और आचार ब्राह्मणमत के समान उपदिष्ट हैं, किन्तु जन्तु-हिंसा से ईश्वर की पूजा के विषय में ब्राह्मणमत में स्वीकृत मत की इस मत ने अत्यधिक निन्दा की।

(5) इदं मतं कलिवर्षीयस्य षड्विंशतिशतकस्योत्तरार्धेङ्कुरितं भिक्षुसङ्घस्य महतां राज्ञां च . प्रयत्नाद् भारतमखिलमाक्रम्य चीनेषु जापानदेशे लङ्कायां च प्रचारमलभत।
बौद्धधर्मः मनुष्यमात्रस्य किञ्च प्राणिमात्रस्य कल्याणकृद् धर्मोऽस्ति। अतएव तत्परवर्तिनो विद्वांसः सन्तो महात्मनो विचारकाः महापुरुषाः भगवतो बुद्धस्य सिद्धान्तेनानुप्राणिताः दृश्यन्ते। भिक्षुन् सम्बोध्य लोकमुपादिशत्। सर्वाणि वस्तूनि खल्वनित्यानि, प्रयत्नेनात्मानमुद्धर तस्येयं … भणितिः मनुष्यजातिं तमसः समुद्धरिष्यति।

शब्दार्थ
अखिलम् = सम्पूर्ण
कल्याणकृद् = कल्याण करने वाला।
परिवर्तिनः = बाद के।
दृश्यन्ते = दिखाई देते हैं।
खलु = निश्चित ही।
भणितिः = कथन।
तमसः = अन्धकार से।
समुद्धरिष्यति = उद्धार करेगा।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में बौद्धमत के प्रसार और महत्त्व के विषय में बताया गया है।

अनुवाद
यह मत (बौद्धमत) कलिवर्ष के 2650वें वर्ष में अंकुरित भिक्षुसंघ के और महान् राजाओं के प्रयत्नों से सम्पूर्ण भारत को अपने में व्याप्त करके चीन, जापान और लंका देशों में प्रचार को प्राप्त हुआ।

बौद्धधर्म मनुष्यमात्र का ही नहीं, अपितु प्राणिमात्र का कल्याण करने वाला धर्म है। इसीलिए उनके | बाद के विद्वान् , सन्त, महात्मा, महापुरुष भगवान् बुद्ध के सिद्धान्तों से अनुप्राणित दिखाई देते हैं। भिक्षुओं को सम्बोधित करके, उन्होंने संसार को उपदेश दिया। सारी वस्तुएँ निश्चय ही अनित्य हैं। प्रयत्न से आत्मा का उद्धार करो-उनका यह कथन मनुष्य जाति का अन्धकार से उद्धार करेगा।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
‘महात्मा बुद्ध’ पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। या ‘महात्मा बुद्ध’ पाठ के आधार पर बुद्ध का जीवन-परिचय संक्षेप में लिखिए।
उत्तर
[संकेत-पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक की सामग्री को अपने शब्दों में लिखें।

प्ररन 2
गौतम बुद्ध ने किस प्रकार ज्ञान प्राप्त किया?
उत्तर
गृह-त्याग के पश्चात् सर्वप्रथम बुद्ध हिमालय की गुफाओं में रहने वाले तपस्वियों के पास गये। उनसे इन्होंने आर्यमत का तत्त्व-ज्ञान ग्रहण किया लेकिन इस ज्ञान से उनकी सन्तुष्टि नहीं हुई। तत्पश्चात् इन्होंने बुद्धगया में छः वर्ष तक कठोर तपस्या की। कमजोरी के कारण ये मूच्छित हो गये। चेतना आने पर पुनः तप करने में लग गये। अन्ततः फल्गुनी नदी के तट पर स्थित बोधिवृक्ष के नीचे इन्हें तत्त्व-ज्ञान प्राप्त हुआ और ये बुद्ध हो गये।

प्ररन 3
गौतमी, मगध, राहुल और बोधिद्म का परिचय बताइए।
उत्तर
गौतमी-ये गौतम बुद्ध की मौसी (माता की बहन) थीं। इन्होंने ही गौतम बुद्ध का; उनकी माता की मृत्यु के बाद; लालन-पालन किया था। इन्हें गौतम बुद्ध ने गेरुआ वस्त्र धारण कराया था।

मगध
यह बौद्ध काल में स्थित एक राज्य था। यहाँ का राजा बिम्बिसार था। यहीं पर बुद्ध ने कई वर्षों तक निकास किया था

राहुल
यह गौतम बुद्ध का गोपा नाम की शाक्य कन्या से उत्पन्न पुत्र था। इसे छोड़कर इन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया था और बाद में इसे भी अपने मत में दीक्षित किया था।

बोधिद्म
गया में फल्गुनी नदी के तट पर स्थित एक वट वृक्ष। इसी के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।

प्ररन 3
बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त बताइए। इसकी बाह्मण मत से समानता और भिन्नता बताइए।
उत्तर
संसार के समस्त सुखों से वैराग्य, हिंसा न करना, सत्य बोलना, चोरी न करना, शान्त रहना, समदर्शी होना, प्राणियों परे दया, शरणागत की रक्षा करना आदि बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त हैं। इन सिद्धान्तों की ब्राह्मण मत से समानता है। प्राणी-हिंसा के द्वारा ईश्वर की पूजा (बलि-विधान) को ब्राह्मण मत में तो स्वीकार किया गया है, लेकिन बौद्ध मते इसके पूर्णरूपेण विरुद्ध है।

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