UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 षड्रिपुविजय (कथा – नाटक कौमुदी)

By | May 23, 2022

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 षड्रिपुविजय (कथा – नाटक कौमुदी)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 14 षड्रिपुविजय  (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय– प्रस्तुत पाठ ‘प्रबोधचन्द्रोदयम्’ नामक नाटक से उद्धृत है। यह एक रूपकात्मक नाटक है और श्रीकृष्ण मिश्र के द्वारा प्रणीत है। कृष्ण मिश्र चन्देल राजा कीर्तिवर्मा के शासनकाल में हुए थे। इनका समय 1050 ईसवी के लगभग माना जाता है। नाटक की प्रस्तावना में यह उल्लिखित है कि राजा कीर्तिवर्मा की उपस्थिति में इसका मंचन किया गया था। इस नाटक में अत्यन्त सरल किन्तु प्रभावपूर्ण ढंग से यह बताया गया है कि विवेक, श्रद्धा, मति, उपनिषद् आदि के सहयोग से पुरुष अविद्याजन्य अन्धकार को पार करके विष्णु-भक्ति की कृपा से अपने वास्तविक विष्णु पद को प्राप्त होता है। इस नाटक में वेदान्त के ब्रह्मवाद के साथ वैष्णव-भक्ति का सुन्दर समन्वय परिलक्षित होता है।

पाठ सारांश 

प्रस्तुत नाटक में विवेक, श्रद्धा, मति, उपनिषद्, क्षमा, सन्तोष, वैराग्य, विष्णुभक्ति, महामोह आदि अमूर्त पात्रों के द्वारा दार्शनिक विषयों का अत्यन्त प्रभावोत्पादक एवं सरल शैली में सरसे वर्णन किया गया है। प्रस्तुत पाठ का सारांश इस प्रकार है

सर्वप्रथम मैत्री रंगमंच पर प्रवेश करती है और विष्णुभक्ति के द्वारा महाभैरवी के बन्धन से मुक्त हुई श्रद्धा को देखना चाहती है। उसी समय श्रद्धा प्रवेश करती है। मैत्री उसे गले लगाती है। श्रद्धा विष्णुभक्ति के आदेश से काम, क्रोध आदि छः शत्रुओं पर विजय पाने का प्रयास करने के लिए राजा विवेक के पास जाती है। मैत्री भी विष्णुभक्ति की आज्ञा से विवेक की सफलता के लिए महात्माओं के हृदय में जाकर निवास करती है। इसके बाद प्रतीहारी के साथ राजा विवेक मंच पर आते हैं। वह विष्णुभक्ति की आज्ञा से काम आदि छ: रिपुओं को जीतने का प्रयास करते हैं। वह सर्वप्रथम वस्तु-विचार को बुलाकर उसे काम को जीतने का आदेश देते हैं। इसके बाद क्षमा को बुलाकर उसे क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिए कहते हैं। क्षमा कहती है कि मैं तो महामोह को भी जीत सकती हूँ और क्रोध तो उसका अनुचरमात्र है। क्रोध को जीत लेने पर हिंसा, कठोरता, मान, ईष्र्या आदि पर स्वतः विजय प्राप्त हो जाएगी।

इसके बाद राजा विवेक लोभ को जीतने के लिए सन्तोष को वाराणसी भेजते हैं। इसके बाद वह शुभ मुहूर्त में सेनापति को सेना के प्रस्थान के लिए आदेश देते हैं और स्वयं रथ पर सवार होकर वाराणसी के लिए प्रस्थान करते हैं। काम, क्रोध, लोभ आदि राजा विवेक के दर्शनमात्र से दूर भाग जाते हैं। राजा विवेक भगवान् शिव को प्रणाम करके वहीं अपनी सेना का पड़ाव डाल देते हैं।

विष्णुभक्ति हिंसाप्रधान युद्ध को देखने में स्वयं को असमर्थ पाकर वाराणसी से शक्तिग्राम चली जाती है और श्रद्धा को युद्ध का सारा वृत्तान्त अवगत कराने के लिए कह जाती है। श्रद्धा विष्णुभक्ति के पास जाती है। विष्णुभक्ति उस समय शान्ति से कुछ मन्त्रणा कर रही होती है। श्रद्धा उसे युद्ध का वृत्तान्त विस्तार से बताती है कि वस्तु-विचार ने काम को मार डाला। क्षमा ने क्रोध, कठोरता, हिंसा

आदि को धराशायी कर दिया। सन्तोष ने लोभ, तृष्णा, दीनता, असत्य, निन्दा, चोरी, असत्परिग्रह आदि को बन्दी बना लिया। अनुसूया ने मात्सर्य को जीत लिया। परोत्कर्ष की सम्भावना ने मद को दबा दिया। दूसरों के गुणों की अधिकता ने मान को नष्ट कर दिया और महामोह भी योग के विघ्नों के साथ डरकर कहीं छिप गया है।

चरित्र चित्रण

राजा
प्रस्तुत रूपक में बताया गया है कि व्यक्ति किस प्रकार से अत्यन्त सरल एवं प्रभावपूर्ण ढंग से विवेक, श्रद्धा, मति, उपनिषद् आदि के सहयोग से अविद्याजन्य अन्धकार को पार करके विष्णुभक्ति की कृपा से अपने वास्तविक स्वरूप विष्णुपद को प्राप्त होता है। ब्रह्मवाद के साथ वैष्णवभक्ति का सुन्दर समन्वय परिलक्षित होता है। राजा की चारित्रिक विशेषताएँ अग्र प्रकार हैं

(1) सुयोग्य राजा- राजा को अत्यन्त योग्य दर्शाया गया है। वह अच्छे-बुरे सभी कार्यों का मता है। उसे इस बात का पता है कि किस बुराई को किस तरह दूर किया जा सकता है।

(2) ज्ञानी- राजा अत्यन्त ज्ञानी है। वह महामोह को धिक्कारता है कि तुम्हारा मूल ही अज्ञान है। , तत्त्व ज्ञान से ही अविद्यादि विकारों से छुटकारा पाया जा सकता है। वह काम के विजय हेतु वस्तु-विचार को, क्रोध के विजय हेतु क्षमा को, लोभ के विजय हेतु सन्तोष आदि को आदेश देता है।

(3) रणनीतिज्ञ- राजा एक कुशल रणनीतिज्ञ है। युद्ध-भूमि की भाँति ही वह समस्त विकारों को जीतने में समर्थ योद्धाओं-वस्तु-विचार, क्षमा, सन्तोष आदि–को लगाकर ही अन्त में सम्पूर्ण सेना को युद्ध के लिए भेजता है। | (4) स्नेही-राजा को अत्यन्त स्नेही रूप में चित्रित किया गया है। वह सभी  लोगोंवस्तु-विचार, क्षमा, सन्तोष आदि–से परामर्श करने के बाद ही युद्ध की पूर्ण तैयारी करता है। शत्रुओं पर विजय पाने के लिए वह सर्वप्रथम अपने पक्ष के महान् योद्धाओं को यथोचित स्थानों पर लगाता है।

(5) विद्वान्- राजा अत्यन्त विद्वान् है। उसे मांगलिक समयों का सही पता है। ज्योतिषी द्वारा प्रस्थान का समय बताने पर वह आदरपूर्वक उसे स्वीकार कर लेता है तथा मांगलिक कार्य सम्पन्न करके ही वह रथ पर चढ़ने का अभिनय करता है। |

(6) आस्तिक- राजा अत्यन्त आस्तिक स्वभाव का है। वह षड्-विकारों को जीतने अर्थात् अभीष्ट की सिद्धि के लिए भगवान् को भी प्रणाम करता है और भगवन्मय नगरी वाराणसी में निवास करने का विचार व्यक्त करके वहीं सेना को पड़ाव डालता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राजा जो एक योग्य, ज्ञानी एवं संकल्पवान् व्यक्ति है, जटिल दार्शनिक विषयों का सरलता से प्रतिपादन करता है।

 लघु उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित  प्रश्नों के संस्कृत में उत्तर लिखिए

प्रश्‍न 1

कामः केन हतः?
उत्तर
वस्तुविचारेण कामः हतः।

प्रश्‍न 2
लोभस्य जेता कः?
उत्तर
सन्तोष: लोभस्य जेता आसीत्।

प्रश्‍न 3
राजा क्रोधस्य विजयाय किम् आदिशति?
उत्तर
राजा क्रोधस्य विजयाय क्षमाम् आदिशति।

प्ररन 4
देव्या विष्णुभक्त्या राजानं किं सन्दिष्टम्?
उत्तर
कामक्रोधादीनां निर्जयाय उद्योगं कर्तुं विष्णुभक्त्या राजानं सन्दिष्टम्।

प्रश्‍न 5
महामोहेन सह विवेकस्य सङ्ग्रामे जाते कस्य विजयः जातः।
उत्तर
महामोहेन सह विवेकस्य सङ्ग्रामे जाते विवेकस्य विजयः जातः।

प्रश्‍न 6
मैत्री देव्याः प्रिय सखी का आसीत्?
उत्तर
मैत्री देव्याः प्रिय सखी श्रद्धा आसीत्।।

प्रश्‍न 7
राजा रथमारुह्य क्व गतवान्?
उत्तर
राजा रथमारुह्य वाराणसी गतवान्।

प्रश्‍न 8
निलीनः कः तिष्ठति?
उत्तर
महामोह: योगविघ्नैः सह क्वापि निलीनः तिष्ठति।

प्रश्‍न 9
कामादिभिः सङ्ग्रामे कस्य विजयः जातः?
उत्तर
कामादिभिः सङ्ग्रामे राजा विवेकस्य विजयः जातः।

प्रश्‍न 10
विष्णुभक्तिः कस्य माता आसीत्? ।
उत्तर
विष्णुभक्तिः राजा विवेकस्य माता आसीत्।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नोत्तर

अग्रलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए|

1. षड्पुिविजयः’ नामक पाठ किस ग्रन्थ से उधृत है?
(क) उत्तर रामचरितम्’ से।
(ख) ‘प्रबोधचन्द्रोदयम्’ से
(ग) “वेणीसंहारम्’ से ।
(घ) “विक्रमोर्वशीयम्’ से

2. ‘प्रबोधचन्द्रोदयम्’ के रचनाकार कौन हैं? 
(क) महाकवि भास
(ख) भट्टनारायण
(ग) विष्णु शर्मा
(घ) कृष्ण मिश्र

3. ‘पड्रिपुविजयः’ नामक नाट्यांश के पात्र किस प्रकार के हैं?
(क) वास्तविक
(ख) पुरातन
(ग) आधुनिक
(घ) काल्पनिक

4. ‘अये, मे प्रियसखी मैत्री।’ में ‘मे’ पद से किसे संकेतित किया गया है?
(क) ‘महाभैरवी’ को
(ख) ‘श्रद्धा’ को
(ग) ‘विष्णुभक्ति’ को
(घ) ‘मैत्री’ को

5. राजा लोभ को जीतने हेतु सन्तोष को कहाँ जाने के लिए कहता है?
(क) प्रयाग
(ख) देवप्रयाग
(ग) कर्णप्रयाग
(घ) वाराणसी

6. राजा जिस रथ पर बैठकर वाराणसी के लिए चला, वह रथ कैसा था?
(क) सुखप्रद
(ख) सांग्रामिक
(ग) शोभन ।
(घ) स्वर्ण-निर्मित

7. ‘सुरसरित्’ शब्द से नदी का बोध होता है?
(क) वेत्रवती :
(ख) सरस्वती
(ग) गंगा
(घ) यमुना

8. ‘वत्से देव्या विष्णुभक्तेः प्रसादान्मुनिजनचेतः पदं प्राप्नुहि।’ कथन किसका है?
(क) ‘श्रद्धा’ का
(ख) प्रतीहारी’ का
(ग) “क्षमा’ का
(घ) “शान्ति’ का ।

9. निवृत्ति किससे होती है?
(क) ‘भक्ति-भाव से
(ख) “यज्ञ करने से
(ग) “तत्त्व-ज्ञान’ से
(घ) “तीर्थयात्रा’ से

10. ‘मया दृष्टा क्रुद्धशार्दूलमुखद्विभ्रष्टा •••••••••••• क्षेमेण सञ्जीविता प्रियसखी।’ में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क) ‘मृगीव’ से
(ख) ‘गजेव’ से
(ग) “शृगालीव’ से
(घ) “कोकिलेव’ से

11. ‘लोभं जेतुं वाराणसी प्रति प्रतिष्ठीयताम्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) राजा
(ख) सन्तोषः ।
(ग) सूर्तः
(घ) सेनापतिः

12. ‘अत्र “”””””समुत्सृज्य पुण्यभाजो विशन्ति यम्।’ श्लोक की चरण-पूर्ति होगी
(क) “अहङ्कारम्’ से
(ख) मोहम्’ से
(ग) “देहम्’ से
(घ) “धनम्’ से

13. ‘यत्रासौ संसारसागरोत्तारतरणिकर्णधारो भगवान् हरिः स्वयं प्रतिवसति।’ वाक्यस्य वक्ता 
कः अस्ति?
(क) श्रद्धा

(ख) शान्तिः
(ग) विष्णुभक्तिः
(घ) सन्तोषः ।

14. क्षमा-‘देवस्याज्ञया महामोहमपि •••••••••••• पर्याप्तास्मि।’ वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी- .
(क) ‘पलायितुम्’ से
(ख) “नष्टुम्’ से
(ग) “जेतुम्’ से
(घ) “हन्तुम्’ से

15. ‘तत्र कामः तावत्प्रथमो वीरो वस्तुविचारेणैव जीयते।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) सन्तोषः
(ख) प्रतीहारिः
(ग) सूतः
(घ) राजा

16. ‘ततो वस्तुविचारेण कामो ………………।’ वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी
(क) निषूदित:’ से
(ख) ‘निगृहीताः’ से
(ग) “हत:’ से ।
(घ) ‘खण्डितः’ से |

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