UP Board Class 10 Social Science Geography | जल संसाधन

By | April 22, 2021

UP Board Class 10 Social Science Geography | जल संसाधन

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 3 जल संसाधन

अध्याय 3.                     जल संसाधन
 
                     अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
 
(क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
                                  बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.(i) नीचे दी गई सूचना के आधार पर स्थितियों को जल की कमी से प्रभावित’ या जल
की कमी से अप्रभावित’ में वर्गीकृत कीजिए-
(क) अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र
(ख) अधिक वर्षा और अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र
(ग) अधिक वर्षा वाले परंतु अत्यधिक प्रदूषित जल क्षेत्र
(घ) कम वर्षा और कम जनसंख्या वाले क्षेत्र
       उत्तर―(क) जल की कमी से अप्रभावित; (ख) (ग), (घ) जल की कमी से प्रभावित।
 
(ii) निम्नलिखित में से कौन-सा वक्तव्य बहु-उद्देशीय नदी परियोजनाओं के पक्ष में दिया
गया तर्क नहीं है?
(क) बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ उन क्षेत्रों में जल लाती हैं जहाँ जल की कमी होती है।
(ख) बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ जल बहाव को नियंत्रित करके बाढ़ पर काबू पाती हैं।
(ग) बहु-उद्देशीय परियोजनाओं से बृहत् स्तर पर विस्थापन होता है और आजीविका खत्म
होती है।
(घ) बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ हमारे उद्योग और घरों के लिए विद्युत पैदा करती हैं।
         उत्तर―(ग) बहु-उद्देशीय परियोजनाओं से बृहत् स्तर पर विस्थापन होता है और
                         आजीविका खत्म होती है।
 
(iii) यहाँ कुछ गलत वक्तव्य दिए गए हैं। इनमें गलती पहचानें और दोबारा लिखें―
(क) शहरों की बढ़ती संख्या, उनकी विशालता और सघन जनसंख्या तथा शहरी
जीवन-शैली ने जल संसाधनों के सही उपयोग में मदद की है।
(ख) नदियों पर बाँध बनाने और उनको नियंत्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव और
तलछट बहाव प्रभावित नहीं होता।
(ग) गुजरात में साबरमती बेसिन में सूखे के दौरान शहरी क्षेत्रों में अधिक जल आपूर्ति
करने पर भी किसान नहीं भड़के।
(घ) आज राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर से उपलब्ध पेयजल के बावजूद छत वर्षाजल
संग्रहण लोकप्रिय हो रहा है।
उत्तर―(क) शहरों की बढ़ती जनसंख्या, उनकी विशालता और सघन जनसंख्या तथा
शहरी जीवन-शैली से जल संसाधनों का अतिशोषण हो रहा है और इनकी कमी होती जा
रही है।
(ख) नदियों पर बाँध बनाने और उनको नियंत्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव और
तलछट बहाव अवरुद्ध हो जाता है।
(ग) गुजरात में साबरमती बेसिन में सूखे के दौरान शहरी क्षेत्रों में अधिक जल आपूर्ति देने
पर परेशान किसान उपद्रव करने पर उतारू हो गए।
(घ) आज राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर से उपलब्ध पेयजल के कारण छत वर्षाजल
संग्रहण की रीति कम होती जा रही है।
 
प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए―
(i) व्याख्या कीजिए कि जल किस प्रकार नवीकरण योग्य संसाधन है?
उत्तर―जल एक नवीकरण योग्य संसाधन है क्योंकि जल एक बार प्रयोग करने पर
समाप्त नहीं होता। हम इसका बार-बार प्रयोग कर सकते हैं अर्थात् इसकी पुनः पूर्ति संभव
है; जैसे―जल का प्रयोग यदि उद्योगों में या घरेलू कामकाज में किया जाता है तो इससे जल
दूषित हो जाता है किंतु समाप्त नहीं होता। इस जल को साफ करके फिर से इस्तेमाल करने
योग्य बनाया जा सकता है।
 
(ii) जल दुर्लभता क्या है और इसके मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर―जल के विशाल भंडार तथा नवीकरणीय गुणों के होते हुए भी यदि जल की कमी
महसूस की जाए तो उसे जल दुर्लभता कहते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में जल की कमी या दुर्लभता
के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हो सकते हैं―
1. बढ़ती जनसंख्या―जल अधिक जनसंख्या के घरेलू उपयोग में ही नहीं बल्कि
अधिक अनाज उगाने के लिए भी चाहिए। अतः अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए
जल संसाधनों का अतिशोषण करके सिंचित क्षेत्र को बढ़ा दिया जाता है।
2. जल का असमान वितरण―भारत में बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ सूखा पड़ता है। वर्षा
बहुत कम होती है। ऐसे क्षेत्रों में भी जल दुर्लभता या जल की कमी देखी जा सकती है।
3. निजी कुएँ या नलकूप―बहुत से किसान अपने खेतों में निजी कुएँ व नलकूपों से
सिंचाई करके उत्पादन बढ़ा रहे हैं किंतु इसके कारण लगातार भू-जल का स्तर नीचे
गिर रहा है और लोगों के लिए जल की उपलब्धता में कमी हो सकती है।
4. औद्योगीकरण―स्वतंत्रता के बाद हुए औद्योगीकरण के कारण भारत में अलवणीय
जल संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है। उद्योगों को ऊर्जा की आवश्यकता होती है
जिसकी पूर्ति जल विद्युत से की जाती है। इस कारण भी जल की कमी का सामना
करना पड़ता है।
(a) बहुउद्देशीय परियोजनाओं से होने वाले लाभ और हानियों की तुलना कीजिए।
उत्तर―नदियों पर बाँध बनाकर एक साथ कई उद्देश्यों को पूरा किया जाता है;
जैसे―बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, विद्युत उत्पादन तथा मत्स्य पालन। ऐसी योजनाओं को
बहु-उद्देशीय योजनाएँ कहा जाता है। इस परियोजना से कुछ लाभ होते हैं तो कुछ हानियाँ
भी होती हैं।
लाभ―नदियों पर बाँध बनाकर केवल सिंचाई ही नहीं की जाती अपितु इनका उद्देश्य
विद्युत उत्पादन, घरेलू और औद्योगिक उत्पादन, जल आपूर्ति, बाढ़ नियंत्रण, मनोरंजन,
आंतरिक नौचालन और मछली पालन भी है। इसलिए बाँधों को बहु-उद्देशीय परियोजनाएं
भी कहा जाता है। यहाँ एकत्रित जल के अनेक उपयोग समन्वित होते हैं।
हानियाँ―नदियों पर बाँध बनाने और उनका बहाव नियंत्रित करने से उनका प्राकृतिक
बहाव अवरुद्ध हो जाता है जिसके कारण तलछट बहाव कम हो जाता है। अत्यधिक तलछट
जलाशय के तलों पर जमा होता रहता है जिससे नदी का तल अधिक चट्टानी हो जाता है।
नदी जलीय जीव आवासों में भोजन की कमी हो जाती है। बाँध नदियों को टुकड़ों में बाँट
देते हैं जिससे जलीय जीवों का नदियों में स्थानांतरण अवरुद्ध हो जाता है। बाढ़ के मैदान में
बने जलाशयों से वहाँ मौजूद वनस्पति और मिट्टियाँ जल में डूब जाती हैं। इन परियोजनाओं
के कारण स्थानीय लोगों को अपनी जमीन, आजीविका और संसाधनों से लगाव व नियंत्रण
आदि को कुर्बान करना पड़ता है।
 
प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए―
(i) राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल संग्रहण किस प्रकार किया जाता है?
व्याख्या कीजिए।
उत्तर―राजस्थान के अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में विशेषकर बीकानेर, फलोदी और
बाड़मेर में पीने का जल एकत्र करने के लिए छत वर्षाजल संग्रहण का तरीका आमतौर पर
अपनाया जाता है। इस तकनीक में हर घर में पीने का पानी संगृहीत करने के लिए भूमिगत
टैंक अथवा ‘टाँका’ हुआ करते हैं। इनका आकार एक बड़े कमरे जितना हो सकता है। इसे
मुख्य घर या आँगन में बनाया जाता है। ये घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जुड़े होते हैं।
छत से वर्षा का पानी इन पाइपों से होकर भूमिगत टाँका तक पहुँचता था जहाँ इसे एकत्रित
किया जाता था। वर्षा का पहला जल छत और पाइपों को साफ करने में प्रयोग होता था और
उसे संगृहीत नहीं किया जाता था। इसके बाद होने वाली वर्षा का जल संग्रह किया जाता था।
ढाँका में वर्षाजल अगली वर्षा ऋतु तक संगृहीत किया जा सकता है। यह इसे जल की कमी
वाली ग्रीष्म ऋतु तक पीने का जल उपलब्ध करवाने वाला स्रोत बनाता है। वर्षाजल को
प्राकृतिक जल का शुद्धतम रूप माना जाता है। कुछ घरों में तो टाँकों के साथ-साथ भूमिगत
कमरे भी बनाए जाते हैं क्योकि जल का यह स्रोत इन कमरों को भी ठंडा रखता था जिससे
ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से राहत मिलती है।
आज राजस्थान में छत वर्षाजल संग्रहण की रीति इंदिरा गांधी नहर से उपलब्ध बारहमासी
पेयजल के कारण कम होती जा रही है। हालाँकि कुछ घरों में टाँकों की सुविधा अभी भी है
क्योकि उन्हें नल के पानी का स्वाद पसन्द नहीं है।
 
(ii) परंपरागत वर्षाजल संग्रहण की पद्धतियों को आधुनिक काल में अपनाकर जल
संरक्षण एवं भंडारण किस प्रकार किया जा रहा है?
उत्तर―प्राचीन भारत में उत्कृष्ट जलीय निर्माणों के साथ-साथ जल संग्रहण ढाँचे भी पाए
जाते थे। लोगों को वर्षा पद्धति और मृदा के गुणों के बारे में गहरा ज्ञान था। उन्होंने स्थानीय
पारिस्थितिकीय परिस्थितियों और अपनी जल आवश्यकतानुसार वर्षाजल, भौमजल,
नदीजल और बाढ़ जल संग्रहण के अनेक तरीके विकसित कर लिए थे। आधुनिक काल में
भी भारत के कई राज्यों में इन परंपरागत विधियों को अपनाकर जल संरक्षण किया जा रहा
है; जैसे-राजस्थान के बहुत-से घरों में छत वर्षाजल संग्रहण के लिए भूमिगत ‘ढाँचों का
निर्माण किया जाता है। इसमें वर्षा के जल को संगृहीत करके उपयोग में लाया जाता है। इसी
प्रकार कर्नाटक के मैसूर जिले में स्थित एक गाँव में ग्रामीणों ने अपने घरों में जल
आवश्यकता की पूर्ति छत वर्षाजल संग्रहण की व्यवस्था से की हुई है। मेघालय में नदियों व
झरनों के जल को बाँस द्वारा बने पाइप द्वारा एकत्रित करने की 200 वर्ष पुरानी विधि
प्रचलित है। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में खेतों में वर्षाजल एकत्रित करने के लिए गड्ढे
बनाए जाते थे ताकि मृदा को सिंचित किया जा सके। राजस्थान के जैसलमेर जिले में
‘खादीन’ और अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’ इसके उदाहरण हैं। पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों
ने ‘गुल’ अथवा ‘कुल’ जैसी वाहिकाएँ, नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के
लिए बनाई हैं। पश्चिम बंगाल में बाढ़ के मैदान में लोग अपने खेतों की सिंचाई के लिए बाद
जल वाहिकाएँ बनाते थे। यही तरीका आधुनिक समय में भी अपनाया जाता है।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिक काल में भी परंपरागत वर्षाजल संग्रहण की
पद्धतियों को अपनाकर जल संरक्षण एवं भंडारण किया जा रहा है
 
(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
                                   बहुविकल्पीय प्रश्न
1. भारत विश्व वृष्टि मात्रा का कितना प्रतिशत प्राप्त करता है?
(क) 4%
(ख) 6%
(ग) 8%
(घ) 10%
              उत्तर―(क) 4%
 
2. विश्व में सर्वाधिक वर्षा किस स्थान पर होती है?
(क) मॉसिनराम
(ख) चेन्नई
(ग) ब्लादिवोस्तक
(घ) न्यूयॉर्क
                उत्तर―(क) मॉसिनराम
 
3. भारत की पहली नदी घाटी परियोजना किस नदी पर बनायी गई?
(क) दामोदर 
(ख) नर्मदा
(ग) कोसी
(घ) चिनाब
               उत्तर―(क) दामोदर
 
4. बहु-उद्देशीय परियोजनाओं को किसने ‘आधुनिक भारत का मंदिर कहा?
(क) महात्मा गांधी
(ख) जवाहरलाल नेहरू
(ग) विनोबा भावे 
(घ) अन्ना हजारे
                       उत्तर―(ख) जवाहरलाल नेहरू
 
5. टिहरी बाँध परियोजना किस राज्य में स्थित है?
(क) पंजाब
(ख) गुजरात
(ग) उत्तराखण्ड 
(घ) मध्य प्रदेश
                     उत्तर―(ग) उत्तराखण्ड
 
                अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. जल दुर्लभता किसे कहते हैं?
उत्तर―जल के विशाल भण्डार तथा नवीकरणीय गुणों के होते हुए की यदि जल भी कमी महसूस की
जाए तो उसे जल दुर्लभता कहते हैं।
 
प्रश्न 2. जल संसाधनों का संरक्षण क्यों जरूरी है?
उत्तर― जल संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन करना इसलिए जरूरी है कि जिससे हम स्वयं को
स्वास्थ्य संबंधी खतरों से बचा सकें एवं खाद्यान्न सुरक्षा, अपनी अजीविका और उत्पादन क्रियाओं की
निरंतरता को सुनिश्चित कर सकें।
 
प्रश्न 3. ‘नर्मदा बचाओ’ आंदोलन क्यों चलाया जा रहा था?
उत्तर― नर्मदा बचाओ आंदोलन व्यापक रूप में किसानों, जनजातीय समुदायों, सामाजिक कार्यकर्ताओं
तथा पर्यावरणविदों को लामबंद करने के लिए चलाया जा रहा था। इन्होंने गुजरात में नर्मदा नदी पर बन रही
‘सरदार सरोवर बाँध परियोजना का विरोध किया।
 
प्रश्न 4. “पालर पानी’ किसे कहा जाता है?
उत्तर― वर्षाजल अथवा ‘पालर पानी’ जैसा कि इसे राजस्थान के क्षेत्रों में कहा जाता है, इसे प्राकृतिक
जल का शुद्धतम रूप समझा जाता है।
 
प्रश्न 5. ‘बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली’ भारत के किस राज्य में प्रचालित सिंचाई पद्धति है?
उत्तर―बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली भारत के मेघालय राज्य में प्रचलित है।
 
प्रश्न 6. भारत के किस राज्य में छत वर्षाजल संग्रहण’ को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाया गया है?
उत्तर―भारत के तमिलनाडु राज्य में ‘छत वर्षाजल संग्रहण’ को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाया गया
है।
 
                              लघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. जल संरक्षण प्रबंधन क्यों जरूरी है?
उत्तर― जल सम्पूर्ण जीव-जगत के लिए ऐसा प्राकृतिक संसाधन है, जिसके बिना जीवधारी जीवित
नहीं रह सकता है। यह समस्त प्राणी के जीवन, रहन-सहन, भोजन, कृषि व्यवसाय, जलवायु के निर्माण
आदि के लिए अत्यन्त आवश्यक है। वर्तमान में मानवीय क्रियाकलापों के कारण अथवा औद्योगिक विकास
के कारण जल में तीव्र गति से प्रदूषण हो रहा है, जो जल की गम्भीर समस्या को पैदा कर रहा है। अत: जल
के इन्हीं गम्भीर संकटों से निपटने के लिए जल संरक्षण आवश्यक है।
 
प्रश्न 2. जल की खराब गुणवत्ता के कारणों की चर्चा कीजिए।
उत्तर― विगत कई वर्षों में जल की प्रचुर उपलब्धता के बावजूद यह उपयोग के उपयुक्त नहीं है।
औद्योगिक तथा घरेलू अपशिष्टों, रसायनों, कीटनाशकों और कृषि कार्यों में प्रयुक्त उर्वरकों के कारण जल
प्रदूषित हो रहा है, जो मनुष्य के उपयोग के लिए खतरनाक है।
 
प्रश्न 3. जल संसाधनों के अतिशोषण और कुप्रबंधन का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर― आपने यह समझ लिया होगा कि जल संसाधनों की संरक्षण और प्रबंधन समय की मांग है।
इसके संरक्षण से स्वास्थ्य पर आने वाले खतरों से बचा जा सकता है। खाद्यान्न सुरक्षा के साथ आजीविका
और उत्पादन क्रियाओं की निरंतरता को बनाए रखा जा सकता है। इससे प्राकृतिक पारितंत्रों को निम्नीकृत
होने से बचाया जा सकता है। जल संधाधनों के अतिशोषण और प्रबंधन के कारण ही इसका हास हो रहा है,
जो पारिस्थितिकीय संकट की समस्या पैदा हो रही है। इसका प्रभाव हमारे जीवन पर अधिक गहरा होगा।
 
प्रश्न 4. ‘खादीन’ और ‘जोहड़ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में खेतों के वर्षाजल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाए जाते थे
ताकि मृदा को सिंचित किया जा सके और संरक्षित जल को खेती के लिए उपयोग में लाया जा सके।
राजस्थान के जैसलमेर तथा बीकानेर जिलों में ‘खादीन’ और अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’ द्वारा खेती के लिए जल
के संग्रहण की संरचना विकसित की जाती रही है।
 
प्रश्न 5. वर्षाजल संग्रहण की दो परम्परागत प्रणालियों की चर्चा कीजिए।
उत्तर― खण्ड (क) के प्रश्न 3(ii) का उत्तर देखें।
 
                              दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. नदी परियोजनाओं पर आपत्ति क्यों दर्ज की जाती रही है? इससे होने वाले प्रतिकूल प्रभावों
को समझाइए।
उत्तर―नदी घाटी परियोजनाओं पर उठी आपत्तियों में अधिकांश परियोजना के उद्देश्यों के असंगत तथा
विफल होने को लेकर हैं। यह चिंता का विषय है कि जिस बाँध का निर्माण बाढ़ नियंत्रण के उद्देश्य से किया
गया वही जलाशयों में तलछट जमा होने पर बाढ़ का कारण बनते हैं। अत्यधिक वर्षा की दशा में बड़े बाँध
भी बाढ़ नियंत्रण में असफल हो जाते हैं। बाँधों से छोड़ा गया जल बाढ़ की स्थिति को और अधिक
विनाशकारी बना देता है। इन बाढ़ों से जान-माल की क्षति के साथ वृहद् स्तर पर मृदा अपरदन भी होता है।
बाँध के जलाशय में जमा तलछट प्राकृतिक उर्वरक के रूप में काम करते हैं। यह बाँध के कारण बाढ़ के
मैदान तक नहीं पहुँचती, जिससे भूमि निम्नीकरण की समस्या भी सामने आती है। यह भी एक तथ्य है कि
बहु-उद्देशीय परियोजनाओं के कारण ‘भूकम्प’ की संभावना में वृद्धि होती है। जल के अत्यधिक प्रयोग से
जल-जनित बीमारियों, फसलों की बीमारियों तथा मृदा प्रदूषण में वृद्धि होती है।
 
प्रश्न 2. मृदा के लवणीकरण का क्या कारण है? इसके प्रभावों की चर्चा कीजिए।
उत्तर―सिंचाई ने कई क्षेत्रों में फसल प्रारूप परिवर्तित कर दिया है, जहाँ किसान जल-गहनतायुक्त
फसलों, विशेषकर वाणिज्यिक फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह मृदा के लवणीकरण के प्रति
उत्तदायी है तथा इससे गंभीर पारिस्थितिकीय दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। इसने अमीर भूस्वामियों तथा गरीब
भूमिहीनों के बीच की सामाजिक-आर्थिक दूरी को बढ़ा दिया है।
 
प्रश्न 3. प्राचीन भारत में निर्मित जल संग्रहण ढाँचों पर एक संक्षिप्त लेख कीजिए।
उत्तर― प्राचीन भारत में उत्कृष्ट जलीय निर्माणों के साथ-साथ जल संग्रहण ढाँचे भी पाए जाते थे।
लोगों ने पारिस्थितिकीय परिस्थितियों और आवश्यकतानुसार वर्षाजल, भोमजल, नदीजल और बाढ़जल
संग्रहण के अनेक तरीके विकसित कर लिए थे। पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में ‘गुल’ अथवा ‘कुल’ जैसी
वाहिकाएँ, नदी की धारा का मार्ग बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए बनाई गई थीं। राजस्थान में पीने का जल
एकत्रित करने के लिए ‘छत वर्षाजल संग्रहण’ का तरीका आम था। पश्चित बंगाल में बाढ़ के मैदान में लोग
अपने खेतों की सिंचाई के लिए बाढ़ जल वाहिकाएँ बनाते थे। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में खेतों में वर्षा
जल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाए जाते थे ताकि मृदा को सिंचित किया जा सके और संरक्षित जल को
खेती के लिए उपयोग में लाया जा सके।

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