UP Board Class 10 Social Science Geography | कृषि

By | April 22, 2021

UP Board Class 10 Social Science Geography | कृषि

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 4 कृषि

अध्याय 4.                                  कृषि
 
                             अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
 
(क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
                                 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. (i) निम्नलिखित में से कौन-सा उस कृषि प्रणाली को दर्शाता है जिसमें एक ही फसल
लंबे-चौड़े क्षेत्र में उगायी जाती है?
(क) स्थानांतरी कृषि
(ख) रोपण कृषि
(ग) बागवानी
(घ) गहन कृषि
                    उत्तर―(ख) रोपण कृषि
 
(ii) इनमें से कौन-सी रबी फसल है?
(क) चावल
(ख) मोटे अनाज
(ग) चना
(घ) कपास
               उत्तर―(ग) चना
 
(iii) इनमें से कौन-सी एक फलीदार फसल है?
(क) दालें 
(ख) मोटे अनाज 
(ग) ज्वार
(घ) तिल
            उत्तर―(क) दालें
 
(iv) सरकार निम्नलिखित में से कौन-सी घोषणा फसलों को सहायता देने के लिए करती
है?
(क) अधिकतम सहायता मूल्य 
(ख) न्यूनतम सहायता मूल्य
(ग) मध्यम सहायता मूल्य
(घ) प्रभावी सहायता मूल्य
                                   उत्तर―(घ) प्रभावी सहायता मूल्य
 
प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए―
(i) एक पेय फसल का नाम बताएँ तथा उसको उगाने के लिए अनुकूल भौगोलिक
परिस्थितियों का विवरण दीजिए।
उत्तर―चाय एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ की फसल है। चाय का पौधा उष्ण और उपोष्ण
कटिबंधीय जलवायु, ह्यूमस और जीवांशयुक्त गहरी मिट्टी तथा सुगम जल निकास वाले
ढलवाँ क्षेत्रों में उगाया जाता है। चाय की खेती के लिए वर्ष भर कोष्ण, नम और पालारहित
जलवायु की आवश्यकता होती है। वर्ष भर समान रूप से होने वाली वर्षा इसकी कोमल
पत्तियों के विकास में सहायक होती है। भारत विश्व का अग्रणी चाय उत्पादक देश है।
 
(ii) भारत की एक खाद्य फसल का नाम बताएँ और जहाँ यह पैदा की जाती है उन क्षेत्रों
का विवरण दीजिए।
उत्तर―गेहूँ भारत की एक प्रमुख खाद्य फसल है। यह देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी
भागों में पैदा की जाती है। देश में गेहूँ उगाने वाले दो मुख्य क्षेत्र हैं―उत्तर-पश्चिम में
गंगा-सतलुज का मैदान और दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश। पंजाब, हरियाणा, उत्तर
प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ भाग गेहूँ पैदा करने वाले प्रमुख राज्य हैं।
 
(iii) सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाएँ।
उत्तर―सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची
निम्नलिखित है―
1. जोतों की चकबंदी।
2. जमींदारी प्रथा की समाप्ति।
3. अधिक उपज देने वाले बीजों के द्वारा हरित क्रांति।
4. पशुओं की नस्ल में सुधार कर दुग्ध उत्पादन में श्वेत क्रांति।
5. बाढ़, चक्रवात, आग तथा बीमारी के लिए फसल बीमा के प्रावधान।
6. किसानों को कम दर पर ऋण दिलाने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और
बैंकों की स्थापना की गई।
7. किसानों के लाभ के लिए किसान क्रेडिट कार्ड और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना
शुरू की गई।
8. आकाशवाणी और दूरदर्शन पर विशेष किसान कार्यक्रम प्रसारित किए गए।
9. किसानों को दलालों के शोषण से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य की घोषणा
सरकार करती है।
10. कुछ महत्त्वपूर्ण फसलों के लाभदायक खरीद मूल्यों की घोषणा भी सरकार करती है।
 
(iv) दिन-प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम हो रही है। क्या आप इसके परिणामों की
कल्पना कर सकते हैं?
उत्तर― भारत में लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि भूमि में कमी आई है। भूमि के
आवासन इत्यादि गैर-कृषि उपयोगों तथा कृषि के बीच बढ़ती भूमि की प्रतिस्पर्धा के कारण
कृषि भूमि में कमी आई है। भारत की बढ़ती जनसंख्या के साथ घटता खाद्य उत्पादन देश की
भविष्य की खाद्य सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लगाता है। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि बढ़ती
जनसंख्या के कारण घटते आकार की जोतों पर यदि खाद्यान्नों की खेती ही होती रही तो
भारतीय किसानों का भविष्य अंधकारमय है। भारत में 60 करोड़ लोग लगभग 25 करोड़
हेक्टेयर भूमि पर निर्भर हैं। इस प्रकार एक व्यक्ति के हिस्से में औसतन आधा हेक्टेयर से
भी कम कृषि भूमि आती है। इसलिए जनसंख्या नियंत्रित करने की कोशिश करनी होगी नहीं
तो खाद्य संकट उत्पन्न हो जाएगा तथा किसानों की स्थिति दयनीय हो जाएगी।
 
प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए―
(i) कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय सुझाइए।
उत्तर―भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश के 60 प्रतिशत से भी अधिक लोगों को
आजीविका प्रदान करने वाली कृषि में कुछ संस्थागत तथा प्रौद्योगिक सुधार किए गए हैं जो
निम्नलिखित हैं―
1. जमींदारी प्रथा का उन्मूलन―किसानों के लिए जमींदारी प्रथा एक अभिशाप थी।
इसलिए सरकार ने जमींदारी प्रथा को समाप्त करके भूमिहीन काश्तकारों को जमीन का
मालिकाना हक दे दिया तथा जोतों की अधिकतम सीमा निश्चित कर दी गई।
2. खेतों की चकबंदी―पहले किसानों के पास छोटे-छोटे खेत थे जो आर्थिक रूप से
गैर-लाभकारी होते थे इसलिए छोटे खेतों की चकबंदी कर दी गई।
3. हरित क्रांति―सरकार ने किसानों को अधिक उपज देने वाले बीज उपलब्ध करवाये
जिससे कृषि विशेषकर गेहूँ की कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। हरित क्रांति का
नाम दिया गया।
4. प्रमुख सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण― किसानों को पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ
उपलब्ध कराने के लिए कई छोटी-बड़ी सिंचाई परियोजनाएं शुरू की गई।
5. फसल बीमा―फसलें प्राय: सूखा, बाढ़, आग आदि के कारण नष्ट हो जाती थीं
जिससे किसानों को बहुत हानि उठानी पड़ती थी। इन आपदाओं से बचने के लिए
फसल बीमा योजना शुरू की गई। इसके द्वारा फसल नष्ट हो जाने पर किसानों को पूरा
मुआवजा मिलने लगा जिससे उसे सुरक्षा प्राप्त हुई।
6. सरकारी संस्थाएँ―किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए
ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना की गई। ये संस्थाएँ किसानों
को महाजनों के चुंगल से बचाती हैं। रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा मौसम की जानकारी
तथा कृषि संबंधी कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।
7. किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड’ और व्यक्तिगत
दुर्घटना बीमा योजना शुरू की है।
8. किसानों को बिचौलियों के शोषण से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य और कुछ
महत्त्वपूर्ण फसलों के लाभदायक खरीद मूल्यों की सरकार घोषणा करती है।
9. खेती में आधुनिक उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया जाने लगा। इससे उत्पादन में वृद्धि
हुई।
10. भारतीय कृषि में सुधार के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् व कृषि
विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिससे कृषि के उत्पादन में वृद्धि हो सके।
 
(ii) भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर―वैश्वीकरण से हमारा तात्पर्य है–विश्व के अनेक देशों का आर्थिक, राजनीतिक,
सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में एक-दूसरे के निकट आ जाना। वैश्वीकरण के कारण
विभिन्न चीजें एक देश से दूसरे देश में आने-जाने लगी जिससे उच्चकोटि की चीजें ही
बाजार में टिक सकी हैं। वैश्वीकरण के कृषि पर कुछ अच्छे प्रभाव पड़े, जो निम्नलिखित
हैं―
1. भारत दूसरे देशों को अन्न का निर्यात कर अपनी जरूरत का अन्य सामान खरीदने
लगा।
2. विभिन्न फसलों की मांग बढ़ने से भारत में इन चीजों का अधिक उत्पादन होने लगा।
3. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में टिकने के लिए भारतीय किसानों ने अपने उत्पादन की गुणवत्ता व
उसका स्तर बढ़ाने की कोशिश की।
4. वैश्वीकरण के कारण अधिक उत्पादित होने वाली चीजों को दूसरे देशों को बेचकर
अच्छे दाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
5. कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से बहुत-से देशों में नई-नई चीजों की पैदावार होने लगी
जो पहले सम्भव नहीं था।
वैश्वीकरण के कृषि पर कुछ बुरे प्रभाव भी पड़े, जो निम्नलिखित हैं―
1. विश्व के धनी देशों ने विभिन्न विकासशील देशों में अपना सस्ता अनाज और अन्य
कृषि से प्राप्त वस्तुएँ बड़ी मात्रा में भरनी शुरू कर दी जिससे विकासशील देशों के
किसान उनका मुकाबला न कर सकें तथा कृषि का काम छोड़ने पर मजबूर हो गए।
2. विश्व के धनी देश निर्धन देशों से सस्ती दरों पर अनाज खरीदने की कोशिश करते हैं।
3. कृषि के वैश्वीकरण के कारण छोटे किसानों को कृषि कार्य को छोड़ना पड़ा क्योंकि वे
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाए।
4. कृषि के वैश्वीकरण ने व्यापारिक कृषि को बढ़ावा दिया। किसानों ने वही वस्तु पैदा की
 जिसकी बाजार में माँग थी, न कि जनता की आवश्यकता पूरी करने वाली चीजों का
उत्पादन किया।
5. कृषि के वैश्वीकरण के कारण ही भारत को लंबे समय तक ब्रिटेन का उपनिवेश
बनकर कृषि पर अतिरिक्त बोझ को वहन करना पड़ा।
 
(iii) चावल की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें।
उत्तर― भारत में अधिकांश लोगों का खाद्यान्न चावल है। हमारा देश चीन के बाद दूसरा
सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। यह एक खरीफ फसल है जिसे उगाने के लिए उच्च
तापमान (25° सेल्सियस से ऊपर) और अधिक आर्द्रता (100 सेमी से अधिक वर्षा) की
आवश्यकता होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे सिंचाई करके उगाया जाता है। चावल
उत्तर और उत्तर-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है। नदी
घाटियों और डेल्टा प्रदेशों में पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी चावल के लिए आदर्श होती है।
नहरों के जाल और नलकूपों की सघनता के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश
और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है।
चावल जून-जुलाई में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के शुरू होने पर उगाया जाता है और
पतझड़ की ऋतु में काटा जाता है।
 
                             परियोजना कार्य
 
प्रश्न 1. किसानों की साक्षरता विषय पर एक सामूहिक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन
करें।
उत्तर―[निर्देश: विद्यार्थी अपने भूगोल विषय के शिक्षक की देख-रेख में दो
समूह बनाएँ
तथा किसानों के बीच साक्षरता के विभिन्न आयामों, उसके तरीके, उसके खर्चे तथा साक्षरता
के फायदों तथा अन्य प्रभावों पर आपस में चर्चा करें।]
 
प्रश्न 2. भारत के मानचित्र में गेहूँ उत्पादन क्षेत्र दर्शाइए।
उत्तर―                  भारत में गेहूँ का वितरण
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क्रियाकलाप
ऊपर-नीचे और दायें-बायें चलते हुए वर्ग पहेली को सुलझाएँ और छिपे उत्तर ढूँढ़ें।
उत्तर―नोट–पहेली के उत्तर अंग्रेजी के शब्दों में हैं।
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(i) भारत की दो खाद्य फसलें।                                 
                                        ―WHEAT, RICE
 
(ii) यह भारत की ग्रीष्म फसल ऋतु है।                     
                                                   ―KHARIF
 
(iii) अरहर, मूंग, चना, उड़द जैसी दलों से… मिलता है। 
                                                                    ―PROTEIN
 
(iv) यह एक मोटा अनाज है।                                   
                                       ―JOWER
 
(v) भारत की दो महत्त्वपूर्ण पेय फसल है….               
                                                        ―COFFEE, TEA
 
(vi) काली मिट्टी पर उगाई उन वाली चार रेशेदार फसलों में से एक। 
                                                                          ―COTTON
 
(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
                                  बहुविकल्पीय प्रश्न
1. ब्राजील में स्थानांतरित कृषि को क्या कहा जाता है?
(क) कोनुको
(ख) रोका
(ग) दीपा
(घ) मसोले
              उत्तर―(ख) रोका
 
2. निम्नलिखित में से कौन रोपण फसल नहीं है?
(क) चाय
(ख) गन्ना
(ग) रबड़
(घ) गेहूँ
           उत्तर―(घ) गेहूँ
 
3. चावल के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
(क) पहला
(ख) दूसरा
(ग) तीसरा
(घ) चौथा
            उत्तर―(क) पहला
 
4. रागी का उत्पादन किस राज्य में नहीं किया जाता है?
(क) कर्नाटक
(ख) उत्तराखण्ड
(ग) अरुणाचल प्रदेश 
(घ) पश्चिम बंगाल
                       उत्तर―(घ) पश्चिम बंगाल
 
5. ‘मलबरी’ का संबंध किससे है?
(क) कपास
(ख) जूट
(ग) रेशम
(घ) रबड़
             उत्तर―(ग) रेशम
 
                       अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. भारत में रबड़ का शीर्ष उत्पादन राज्य कौन-सा है?
उत्तर―भारत में रबड़ का शीर्ष उत्पादन राज्य केरल है और तमिलनाडु, कर्नाटक, 
अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह तथा मेघालय रबड़ के अन्य उत्पादक प्रमुख क्षेत्र हैं।
 
प्रश्न 2. किस फसल को ‘सुनहरा रेशा’ भी कहा जाता है?
उत्तर―जूट की फसल को ‘सुनहरा रेशा’ भी कहा जाता है।
 
प्रश्न 3. कपास की खेती के लिए किस प्रकार की मृदा सर्वाधिक उपयुक्त है?
उत्तर―कपास की खेती के लिए काली मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है।
 
प्रश्न 4. “सेरी कल्चर’ का संबंध किसके उत्पादन से है?
उत्तर― सेरी कल्चर का संबंध रेशम के उत्पादन से है।
 
प्रश्न 5. ‘भूदान’ आन्दोलन किसने आरम्भ किया?
उत्तर―भूदान आन्दोलन विनोबा भावे द्वारा आरम्भ किया गया।
 
                   लघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. ‘खाद्य सुरक्षा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― भोजन शरीर के लिए अनिवार्य है। इससे हमें आधारभूत पोषक तत्त्व प्राप्त होते हैं। देश के हर
नागरिक को न्यूनतम पोषण स्तर’ का भोजन उपलब्ध होना ही खाद्य सुरक्षा है। जनसंख्या के जिस हिस्से को
यह प्राप्त नहीं होता उसे ‘खाद्य सुरक्षा से वंचित माना जाता है।
 
प्रश्न 2. “हरित क्रांति की असफलता का क्या कारण था?
उत्तर― हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना दिया है। भारत दूसरे देश को अनाज
का निर्यात भी करता है, मगर हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव भी पड़े हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश
जैसे जो कभी हरित क्रांति के सूत्रधार थे, प्रति हेक्टेयर अनाज की पैदावार कम होती जा रही है, अधिक
कीटनाशक (Fertiliser) के प्रयोग से जमीन की उर्वरक शक्ति कम होती जा रही है।
हरित क्रांति भारत को पूर्ण रूप से तथा स्थायी ढंग से खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं बना पाई है। 1979
तथा 1987 में भारत ने कम वर्षा के कारण घोर अकाल की स्थिति का सामना किया। इस स्थिति ने यह पूछने
के लिए मजबूर कर दिया कि क्या हरित क्रांति वास्तव में दीर्घकालीन उपलब्धि है? 1998 में भारत को
अनाज का आयात करना पड़ा था। आज भी प्याज (2007) की स्थिति यही बनी हुई है।
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब जैसे राज्य में गन्ने की बंपर फसल होती है, लेकिन फिर भी 2004 में भारत को
चीनी का आयात करना पड़ा। भारत आज भी सब्जी, दालें, तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है।
हरित क्रांति का प्रभाव केवल पंजाब, हरियाणा में देखा गया है, ओडिशा में कालाहांडी जैसे क्षेत्र में लोग
मुखमरी के शिकार हो रहे हैं। हरित क्रांति उत्पादन बढ़ाने में अवश्य सफल हुई है, मगर अपने सामाजिक
उद्देश्य की प्राप्ति में असफल रही है।
अब भारत सरकार द्वितीय हरित क्रांति चलाने की योजना बना रही है, मगर द्वितीय हरित क्रांति का उद्देश्य
खाद्यान्न में उत्पादन बढ़ाना नहीं है, बल्कि फूलों, औषधीय पौधों, फल, तिलहन आदि के क्षेत्र में देश को
आत्मनिर्भर बनाना है।
 
प्रश्न 3. रबड़ की उत्पादक जलवायवीय दशाओं का विवरण दीजिए।
उत्तर―रबड़ भूमध्यरेखीय (विषुवतीय) वनों में पाया जाता है। यह विशेष परिस्थितियों में उष्ण तथा
उपोष्ण क्षेत्रों में भी उगायी जाती है। रबड़ की खेती 200 सेमी से अधिक वर्षा तथा 25°C से अधिक तापमान
वाली नमीयुक्त आर्द्र जलवायु में होती है। रबड़ एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है जो उद्योगों में प्रयुक्त होता है।
इसे मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह और मेघालय में गारों पहाड़ियों
में उगाया जाता है। प्राकृतिक रबड़ के उत्पादन में भारत को विश्व में पाँचवाँ स्थान प्राप्त है।
 
प्रश्न 4. भारत में उत्पादित होने वाली दलहनी फसलों के नाम बताइए।
उत्तर― भारत में उत्पादित होने वाली प्रमुख दलहनी फसलों के नाम इस प्रकार हैं-तूर (अरहर),
उड़द, मूंग, मसूर, मटर तथा चना।
 
प्रश्न 5. “कार्बनिक कृषि’ किसे कहते हैं?
उत्तर― कार्बनिक कृषि (जैव उर्वरक-आधारित कृषि) अथवा ‘आर्गेनिक कल्टीवेशन’ आजकल
प्रचलन में है। यह कृषि कारखानों में बनने वाले रासायनिक उर्वरकों के बिना की जाती है। 
पर्यावरण पर इस कृषि का नकारात्मक असर नहीं होता है।
 
                            दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. भारतीय कृषि की प्रमुख चुनौतियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―                 भारतीय कृषि की चुनौतियाँ
कृषि भारतीय अर्थतन्त्र की धुरी होने के बावजूद पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था में है। इस वैज्ञानिक युग में भी
भारतीय कृषि रूढ़िवादी है। भारतीय किसान अशिक्षित तथा निर्धन है, वह कृषि को जीविका निर्वाह के लिए
अपनाता है, व्यवसाय मानकर नहीं। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत
कृषि क्षेत्र में सुधार के अनेक कार्यक्रम अपनाये, किन्तु वे पर्याप्त सिद्ध नहीं हुए। आज भी भारतीय कृषि की
दशा शोचनीय ही है। इस हीन दशा के कारण निम्नलिखित हैं―
1. कृषि जोतों(खेतों) का छोटा आकार तथा भूमि का असन्तुलित वितरण―भारत में तीव्र दर से
जनसंख्या वृद्धि के कारण भूमि संसाधनों की कमी है। 1951 ई० में जहाँ प्रति व्यक्ति 0.75 हेक्टेयर
कृषि भूमि उपलब्ध थी, वह 2011 ई० में घटकर 0.13 हेक्टेयर मात्र रह गयी है। भारत में खेतों का
औसत आकार 6 हेक्टेयर से भी कम है जो संयुक्त राज्य अमेरिका (58 हे०), न्यूजीलैण्ड (184
हे०) आदि की तुलना में बहुत कम है, यही नहीं देश के 1% धनी किसान 20% कृषि भूमि के स्वामी
हैं, 10% किसानों के पास 50% कृषि भूमि है तथा शेष 89% किसानों के पास केवल 30% भूमि है।
औसत रूप से एक किसान के हिस्से में केवल 0.1 हेक्टेयर भूमि है। छोटे खेतों में आधुनिक कृषि
उपकरणों तथा मशीनरी का प्रयोग कठिन है।
 
2. उत्तम बीजों की कमी―निर्धन किसान उत्तम बीज नहीं खरीद पाते हैं। वे घटिया व सस्ते बीजों का
प्रयोग करते हैं, जिससे उत्पादन कम होता है।
 
3. खाद तथा उर्वरकों का कम प्रयोग―भारत में खाद तथा उर्वरकों का प्रयोग बहुत कम होता है,
जिससे भूमि का उर्वरता या उत्पादन शक्ति घटती जाती है। देश की मिट्टियों में नाइट्रोजन की विशेष
कमी है। फॉस्फोरस तथा पोटैशियम की भी कमी है। पशुओं की संख्या अधिक होने के बावजूद
गोबर का प्रयोग ईंधन के रूप में करने से गोबर की खाद का प्रयोग कम ही हो पाता है। रासायनिक
उर्वरकों का उत्पादन भी कम ही होता है।
 
4. सिंचाई की सुविधाओं की कमी―1987 ई० में शताब्दी का सबसे बड़ा सूखा (drought) पड़ा
था जिसने यह सिद्ध कर दिया कि आज भी भारतीय कृषि मानसून से ही नियन्त्रित है। देश की 40%
कृषित भूमि पर सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध है, शेष 60% कृषित भूमि वर्षा द्वारा ही सिंचित होती है।
 
5. भूमि अपरदन―देश की लगभग 8 करोड़ हेक्टेयर भूमि अपरदन से प्रभावित है। वर्षा की तीव्रता
(बाढ़ें), तेज आँधियाँ, अनियन्त्रित पशुचारण, वनों की कटाई तथा कृषि के गलत तरीके
(स्थानान्तरी कृषि) भूमि अपरदन के प्रमुख कारण हैं।
 
6. कृषि रोग―फसलो में अनेक प्रकार के रोग लगने से फसलों को भारी नुकसान होता है।
उदाहरणार्थ―गेहूँ में करंजवा रोग होने से दाने बेकार हो जाते हैं। गन्ने, कपास, कहवा आदि में भी
विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं। खरपतवारों से भी फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता
है।
 
7. पूँजी की कमी―भारतीय किसान निर्धन है। वे कृषिकार्य के लिए आज भी गाँव के साहूकारों से
भारी ब्याज पर ऋण लेते हैं, जिसकी अदायगी में उनकी फसल का अधिकांश भाग चला जाता है।
परिणामत: वे ऋणग्रस्त होते चले जाते हैं। सहकारी समितियों तथा ग्रामीण बैंकों से अब उन्हें ऋण
उपलब्ध कराये जा रहे हैं।
 
8. कृषि शिक्षा, प्राविधिकी तथा अनुसन्धान (शोध) की कमी―ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की बहुत
कमी है। भारतीय किसान अब भी परम्परागत ढंग से कृषि करते हैं। आधुनिकतम कृषि ज्ञान से वे
वंचित ही रह जाते हैं। उन्नत प्राविधिकी का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता है।
 
9. अन्न भण्डारण एवं वितरण की दोषपूर्ण व्यवस्था―भारतीय कृषि की एक प्रमुख समस्या
खाद्यान्न भण्डारण एवं वितरण की दोषपूर्ण प्रणाली है। प्रायः धनी व्यापारी तथा दलाल किसानों से
सस्ता खाद्यान्न खरीदकर संग्रह कर लेते हैं जिससे किसानों के शोषण के साथ जनता को भी
कठिनाई होती है। भारतीय खाद्य निगम द्वारा खाद्यान्नों का सुरक्षित भण्डार रखने की व्यवस्था भी
अनेक दोषों से ग्रस्त है। खाद्यान्नों का समुचित वितरण न हो पाने से प्राय: बहुत-सा अनाज गोदामों
में ही नष्ट हो जाता है।
 
प्रश्न 2. सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्यों जरूरी है? अपना मत दीजिए।
उत्तर― हमारे देश के कई अविकसित राज्यों में व्यापक निर्धनता है। यहाँ वैसी जनसंख्या अधिक
निवास करती है जो ‘खाद्य सुरक्षा से वंचित हैं। देश के कई भाग प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित रहते हैं
तथा कई क्षेत्रों में अनिश्चित खाद्य आपूर्ति की अधिक संभावना बनी रहती है। सरकार ने देश के सभी वर्गों के
लिए खाद्य उपलब्धता’ को प्रभावी बनाने हेतु ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा प्रणाली’ की संरचना की है। इसके तहत
‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) तथा ‘बफर स्टॉक’ निर्मित किया गया है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में सस्ती दरों पर खाद्य पदार्थ तथा अन्य आवश्यक
वस्तुएंँ उपलब्ध कराने की प्रक्रिया है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा नीति का मुख्य लक्ष्य सामान्य तथा आम लोगों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न की
उपलब्धता सुनिश्चित कराना है। इससे निर्धन-से-निर्धन व्यक्ति भी अपने लिए जरूरी खाद्यान्न प्राप्त कर
सकता है। इस नीति का उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि तथा भण्डारों को बनाए रखना है। इसके लिए खाद्यान्नों
पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जारी किया जाता है, जिससे उनका भण्डारण किया जा सके। भारतीय
खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा खाद्यान्नों के भण्डारण तथा परिवहन का कार्य किया जाता है जिससे वितरण
की सार्वजनिक प्रणाली को सुनिश्चित किया जा सके।
भारतीय खाद्य निगम किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पाद खरीद कर उसे संरक्षित करती है।
देश भर में निगम गोदाम बने हुए हैं। सरकार
ऊर्जा इत्यादि पर किसानों को सब्सिडी प्रदान करती है।
अब सब्सिडी का बोझ भारतीय अर्थव्यवस्था तथा राजस्व पर प्रतिकूल असर डाल रहा है। इस सहायिकी
राशियों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग चिंता का विषय है। कृषि में जल और उर्वरकों के अविवेकपूर्ण प्रयोग से
कई समस्याएँ सामने आई हैं। जलाक्रांतता, लवणता तथा सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की लगातार कमी आई है।
 
प्रश्न 3. जेनेटिक इंजीनियरिंग क्या है? इसका भारतीय कृषि पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर― ‘जीन क्रांति’ एक सांकेतिक शब्द है, जिसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग शामिल है। जेनेटिक
इंजीनियरिंग बीजों की नई संकर किस्मों के निर्माण की प्रक्रिया है जो एक सशक्त पूरक के रूप में 
उत्पादकता वृद्धि को संबल प्रदान कर रहा है।
1. संकर तथा हाइब्रिड पादपों का निर्माण प्रोटोप्लास्म संलयन (protoplasm fusion) तकनीक से
संभव हो सका है।
 
2. सोमाक्लोनेल विविधताएँ, रोग प्रतिरोधक पौधे, शाकनाशी प्रतिरोधी पौधे आदि के निर्माण में
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी का विशेष योगदान है।
 
3. माइक्रोप्रोपेगेशन व कवकमूल पर कार्य हो रहा है।
 
4. जैव उर्वरकों का कृत्रिम उर्वरकों के स्थान पर प्रयोग दिन-प्रतिदिन होने लगा है। जैव उर्वरक
हानिकारक नहीं होते हैं।
 
5. पर्यावरण की रक्षा के लिये, प्रदूषण नियन्त्रण के लिये, वाहित मल के उपचार के लिये भी जैव
तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के जीवाणु, जीवाणुभोजी तथा
नील-हरित शैवालों का प्रयोग किया जाता है।
 
6. जैव तकनीक का प्रयोग औद्योगीकरण में, जैसे-एल्कोहल, अम्ल, प्रतिजैविक, विकर, सिंगल सेल
प्रोटीन आदि बनाने के लिये सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
 
7. औषधि के लिये महत्त्वपूर्ण सूक्ष्मजीवों के आनुवंशिक गुणों में सुधार करना।

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