UP Board Class 10 Social Science History | भारत में राष्ट्रवाद
UP Board Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद
अध्याय 2. भारत में राष्ट्रवाद
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
(क) एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्य-पुस्तक
संक्षेप में लिखें
प्रश्न 1. व्याख्या करें―
(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद की प्रक्रियाः उपनिवेशवाद-विरोधी आन्दोलन से जुड़ी हुई क्यों
थी?
(ख) पहले विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास में किस प्रकार योगदान
दिया
(ग) भारत के लोग रॉलट ऐक्ट के विरोध में क्यों थे?
(घ) गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन को वापिस लेने का फैसला क्यों लिया?
उत्तर― (क) यूरोप के देशों में राष्ट्रवाद के विकास के साथ ही ‘राष्ट्र-राज्यों’ का भी उदय हुआ। इससे
लोगों की स्वयं को समझने और अपनी पहचान के बारे में जो भावना थी, उसमें परिवर्तन हुआ और साथ ही
उनमें अपने राष्ट्र के प्रति लगाव भी उत्पन्न हुआ। साथ ही उपनिवेशों में राष्ट्रवाद की यह प्रक्रिया;
उपनिवेशवाद-विरोधी आन्दोलन से जुड़ी हुई थी। इस तथ्य को हम निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट कर सकते है―
1. विश्व के सभी उपनिवेशों में राष्ट्रवाद का उदय; उपनिवेशवादी विरोध से उत्पन्न परिस्थितियों का
ही परिणाम था। भारत में भी राष्ट्रवाद का उदय एवं विकास; औपनिवेशिक परिस्थितियों में ही
हुआ। उपनिवेशों के शासकों का विरोध करते समय ही हमारे देश के लोगों के आपसी
एकता-भावना के महत्त्व को पहचान सके।
2. संसार के विभिन्न उपनिवेशों में विदेशी शासकों अथवा साम्राज्यवादी शक्तियों के द्वारा जो उत्पीड़न
हुआ; उसके साझा भाव ने देश के लोगों को एक-दूसरे से बाँध दिया। उपनिवेशवाद-विरोधी
आन्दोलन के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों के कारण उनमें अपने देश, अपनी संस्कृति और
अपने देश के लोगों के प्रति अपनेपन के भाव का विकास हुआ। इसी कारण वे अपने-अपने देशों को
स्वाधीन कराने के लिए संयुक्त रूप से संघर्ष करने और सामूहिक रूप में स्वाधीनता की लड़ाई
लड़ने के लिए तत्पर हो गए।
3. विश्व के विभिन्न देशों; चीन, बर्मा, भारत, वियतनाम तथा लैटिन व अफ्रीकी देशों में जो भी राष्ट्रीय
आन्दोलन हुए, वे उनके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक शोषण के कारण शुरू हुए। अपने शोषण
से त्रस्त होकर उनमें राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ और निरन्तर संघर्ष करते हुए उन्होंने
अपने-अपने देशों से उपनिवेशवाद का अन्त कर दिया।
उपर्युक्त समस्त दृष्टियों से यह कथन उपयुक्त ही है कि उपनिवेशों में राष्ट्रवाद की प्रक्रिया;
उपनिवेशवाद-विरोधी आन्दोलन से जुड़ी हुई थी।
(ख) 1919 ई० के बाद के वर्षों में भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन देश के अनेक नए क्षेत्रों में भी फैल गया
था। इसमें कई नए सामाजिक समूह भी सम्मिलित हो गए थे और साथ ही संघर्ष के नए तरीके भी सामने आ
रहे थे। इसी समय प्रथम विश्वयुद्ध का भी भारतीयों के जन-जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव हुआ और उनमें
राष्ट्रवाद की भावना को और अधिक सशक्त बना दिया। संक्षेप में प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रीय
आन्दोलन के विकास में निम्नलिखित दृष्टियों से अपना योगदान दिया―
1. भारतीयों की आर्थिक स्थिति खराब होना―प्रथम विश्वयुद्ध का भारतीय जन-जीवन पर व्यापक
रूप से प्रभाव हुआ। इस समय देश में एक नई संकटपूर्ण राजनीतिक, आर्थिक स्थिति उत्पन्न हो
गयी। देश के रक्षा-बजट में बहुत अधिक वृद्धि करनी पड़ी। रक्षा-बजट में खर्च हुए धन की भरपाई
करने के लिए युद्ध के नाम पर बाहरी देशों से कर्ज लिए गए और देश के लोगों से लिए जाने वाले
करों में भी वृद्धि की गयी। उधर युद्ध के कारण वस्तुओं की कीमतों में भी तेजी से वृद्धि हो रही थी।
यहाँ तक कि कीमतें दुगनी हो चुकी थीं। इस प्रकार की आर्थिक स्थिति के कारण लोगों की
कठिनाइयाँ निरन्तर बढ़ रहीं थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय जनता पर बहुत अधिक
आर्थिक दबाव बढ़ गया। इस स्थिति में वे अंग्रेजी शासन से रुष्ट होकर स्वाधीनता आन्दोलन में पूरे
जोश के साथ सक्रिय हो गए।
2. प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत में प्राकृतिक संकट―1918-1919 और 1920-1921 की
अवधियों में देश के अधिकांश भागों में फसलें खराब हो गयीं, जिसके कारण देश में खाद्य-पदार्थों
का भारी अभाव हो गया। इसके अतिरिक्त मध्य भारत में सूखा, बाढ़ जैसी अनेक प्राकृतिक आपदाएँ
भी आ गयीं। इन्हीं विकट स्थितियों में देश के अधिकांश भागों में फ्लू की बीमारी भी फैल गयी।
भोजन-सामग्री के अकाल और इस महामारी के कारण कितने ही लाख लोग मारे गए। इस प्रकार
की संकटपूर्ण स्थिति में भारतीयों के अंग्रेज सरकार का रवैया असहयोगपूर्ण ही बना रहा।
सरकार ने उनकी सहायता के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय
अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट हो गए।
3. डिफेंस ऑफ इण्डिया ऐक्ट―1915 ई० में अंग्रेज सरकार ने देश में हो रहे क्रांतिकारी आन्दोलनों
की गतिविधियों को रोकने के लिए ‘डिफेंस ऑफ इण्डिया ऐक्ट’ परित किया। इस एक्ट में दमनकारी
धाराओं का प्रावधान किया गया था। इसके परिणामस्वरूप देश के क्रांतिकारी आन्दोलनों की गति
और भी अधिक तीव्र हो गयी, जिससे देश की आम जनता में भी राष्ट्रवादी भावनाओं का विकास
हुआ।
4. देश में साम्प्रदायिक एकता की भावना का विकास―तुर्की के खलीफा के प्रश्न पर देश के सभी
मुसलमान अंग्रेज सरकार के विरुद्ध हो गए। इसी समय जब महात्मा गांधी ने अली बंधुओं के
सहयोग के लिए खिलाफत आन्दोलन शुरू किया तो इससे हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल मिला।
उधर 1916 ई० में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच ‘लखनऊ समझौता’ भी हो गया। इन समस्त
कारणों के परिणामस्वरूप देश में साम्प्रदायिक एकता को सुदृढ़ आधार प्राप्त हुआ और राष्ट्रीय
आन्दोलन में लोगों की सहभागिता में भी बहुत अधिक वृद्धि हो गयी।
5. भारतीयों का विश्व के लोगों से सम्पर्क और उनका प्रभाव―प्रथम विश्वयुद्ध में सैनिक
का आवश्यकता को देखते हुए बड़ी संख्या में भारतीय नौजवानों को सेना में भर्ती किया गया। ये नौजवान
सैनिक के रूप में बाहर के देशों के युद्ध-क्षेत्रों में गए, जहाँ उन्हें बाहर के लोगों से अनेक अनुभव
प्राप्त हुए। उन्हें यह पता लगा कि स्वतन्त्र वातावरण और लोकतन्त्रीय संगठन क्या होते हैं? इसके
फलस्वरूप उनके आत्मविश्वास में वृद्धि हुई और वे भारत में आकर यहाँ भी इसी प्रकार की स्थिति
को लाने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट हो गए।
देश के लोगों को यह आशा थी कि प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के उपरान्त उनकी कठिनाइयों में
कमी आएगी, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। काफी समय तक लोगों की कठिनाइयाँ इसी प्रकार बनी रहीं।
देश की इन्हीं संकटपूर्ण स्थितियों में एक ऐसे नए नेता का उदय हुआ, जिसने स्वाधीनता आन्दोलन में
संघर्ष हेतु लोगों को संघर्ष का एक नया तरीका सिखाया और भारतीय अपने इस महान नेता महात्मा
गांधी के नेतृत्व में पूरे जोश के साथ अंग्रेजी शासन की नींव हिलाने के लिए तत्पर हो गए।
इस प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में अत्यधिक योगदान दिया।
(ग) 1918 ई० में अंग्रेज सरकार ने ‘रॉलट’ की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। इस समिति का
उद्देश्य भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए कानून बनाना था। भारतीय सदस्यों के प्रबल
विरोध के उपरान्त भी लेजिस्लेटिव काउंसिल ने बहुत शीघ्रता के साथ इस कानून को पारित कर दिया था।
इस कानून के माध्यम से सरकार देश के आन्दोलनकारियों की राजनीतिक गतिविधियों का दमन करना
चाहती थी। साथ ही इस कानून के अन्तर्गत यह प्रावधान भी था कि किसी भी राजनीतिक कैदी को उस पर
बिना मुकदमा चलाए ही दो साल तक जेल में रखा जा सकता था।
देश के लोगों ने रॉलट ऐक्ट को ‘काला कानून’ कहा और वे इसके विरोध में हड़ताल और प्रदर्शन करने के
लिए तैयार हो गए। देशवासियों के जनाक्रोष को देखते हुए महात्मा गांधी ने 1919 ई० में प्रस्तावित रॉलट
ऐक्ट के विरुद्ध एक देशव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन संचालित करने का निर्णय लिया। इस प्रकार के
अन्यायपूर्ण कानून के विरुद्ध महात्मा गांधी अहिंसक तरीके से नागरिक अवज्ञा चाहते थे।
जब रॉलट ऐक्ट के विरोध में सत्याग्रह आन्दोलन शुरू हुआ तो देश के विभिन्न नगरों में रैलियों और जुलूसों
का आयोजन किया गया। दुकानदारों ने अपनी दुकानें बन्द कर दी और रेलवे वर्क्सशॉप में काम करने वालों
ने हड़ताल कर दी। इस व्यापक जन-आन्दोलन से चिंतित और रेलवे, टेलीग्राफ आदि सुविधाओं के प्रभावित
हो जाने की आशंका से सरकार भयभीत हो गयी। फलस्वरूप अंग्रेजों ने आन्दोलनकारियों का दमन शुरू कर
दिया। पंजाब के अमृतसर में अनेक नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। दिल्ली में गांधीजी के प्रवेश पर
पाबंदी लगा दी गयी। इसके बाद 10 अप्रैल को पुलिस के द्वारा अमृतसर के एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली
चला दी गयी। इससे आक्रोषित लोग बैंकों, डाकखानों और रेलवे स्टेशनों पर हमला करने लगे। परिणामतः
सरकार ने मार्शल लॉ घोषित कर दिया। इसके बाद जनरल डायर ने कमान सम्भाल ली।
(घ) 5 फरवरी, 1922 ई० में असहयोग आन्दोलन के अनन्तर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित
चौरी-चौरा नामक स्थान के एक बाजार से भारतीय आन्दोलनकारियों का एक जुलूस शांति के साथ गुजर
रहा था। कुछ ही समय में इस जुलूस के आन्दोलनकारियों का पुलिस के साथ हिंसक टकराव हो गया।
आन्दोलनकारियों ने कुछ चौरी-चौरा के थाने के कुछ पुलिस-सिपाहियों को थाने में ही बन्द कर दिया और
थाने में आग लगा दी। पुलिस के वे सिपाही थाने में जलकर भस्म हो गए। जब महात्मा गांधी ने इस घटना के
बारे में सुना तो वे बहुत अधिक दुःखी हुए। उन्हें लगा कि अब आन्दोलन हिंसक होता जा रहा है। अत: 12
फरवरी, 1922 ई० को उन्होंने असहयोग आन्दोलन वापिस लेने का फैसला किया।
प्रश्न 2. सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?
उत्तर― सत्याग्रह के विचार का मूल आधार सत्य की शक्ति पर आग्रह तथा सत्य की खोज करना है।
महात्मा गांधी इसके प्रबल समर्थक थे। उनके अनुसार, ‘सत्याग्रह’ का आशय इस प्रकार था―
1. यदि आपका उद्देश्य सच्चा है और आपका संघर्ष अन्याय के विरुद्ध है तो आपको अपने उत्पीड़क
का मुकाबला करने के लिए किसी भी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। इसके अतिरिक्त
किसी भी प्रकार के प्रतिशोध की भावना अथवा आक्रामकता का सहारा लिए बिना एक सत्याग्रही
केवल अहिंसा के माध्यम से ही अपने संघर्ष में सफल हो सकता है। इसके लिए अहिंसा के मार्ग से
अपने शत्रु की चेतना को झिंझोड़ना चाहिए। न केवल शत्रु को, अपितु सभी लोगों को हिंसा के
माध्यम से सत्य को स्वीकार करने के स्थान पर सत्य को देखने और उसे सहज भाव से स्वीकार
करने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए।
2. गांधीजी के अनुसार सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपनाकर किए गए संघर्ष में सत्य की ही जीत
होती है। उनका यह अटूट विश्वास था अहिंसा का धर्म सभी भारतवासियों को एकता के सूत्र में
बाँध सकता है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखें―
(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
(ख) साइमन कमीशन
उत्तर― (क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड-
सम्पादक,
टाइम्स ऑफ इण्डिया,
दिल्ली।
महोदय,
आज 13 अप्रैल, 1919 ई० की शाम को पंजाब में एक बहुत ही दिल दहलाने वाली घटना घटित हुई।
इस दिन पंजाब के अमृतसर शहर में जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ। इस दिन अमृतसर में बहुत सारे गाँव
के लोग सालाना वैसाखी के मेले को देखने के लिए जलियाँवाला बाग में पहुंचे थे। इसके अतिरिक्त काफी
लोग ऐसे भी पहुंँचे, जो यहाँ सरकार द्वारा पारित दमनकारी रॉलट ऐक्ट का विरोध प्रकट करने के लिए यहाँ
एकत्रित हुए थे। यह मैदान चारों तरफ से बन्द था और शहर से बाहर होने के कारण वहाँ एकत्रित लोगों को
यह पता नहीं था कि सरकार मार्शल लॉ लगा चुकी है।
इसी समय जनरल डायर अपने हथियारबन्द सैनिकों के साथ पहुंचा। इसके बाद उसने बाग से बाहर
निकलने के सारे रास्तों को बन्द करा दिया और अपने सिपाहियों को भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया।
सिपाहियों ने जलियाँवाला बाग में एकत्रित भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलाई। उनकी गोलियों से सैकड़ों लोग
मारे गए।
अत: मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि इस समाचार को अपने समाचार-पत्र के मुख्य पृष्ठ पर छापें,
जिससे समस्त देशवासियों और विश्व के सभी लोगों को अंग्रेज सरकार के इस वीभत्स नरसंहार की
जानकारी प्राप्त हो जाए। साथ ही ब्रिटिश सरकार के इस अमानवीय कृत्य के विरुद्ध विश्व-जनमत एकजुट
हो सके।
जयहिंद
भवदीय
क, ख, ग
(ख) साइमन कमीशन―
सम्पादक,
नवजागरण,
कलकत्ता
महोदय,
03 फरवरी, 1928 ई० को ब्रिटिश सरकार ने सर-जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग भारत
भेजा। इस आयोग का प्रमुख उद्देश्य भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन करना और
अपने अध्ययन के आधार पर ब्रिटिश सरकार को सुझाव देना है। इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं
है, सभी अंग्रेज हैं।
जब साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो प्रदर्शनकारियों ने उसके विरोधस्वरूप ‘साइमन कमीशन
वापिस जाओ’ (साइमन कमीशन गो बैक) के नारे लगाए गए। इस प्रदर्शन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग
सहित सभी पार्टियों ने भाग लिया। इस प्रदर्शन का नेतृत्व लाला लाजपतराय कर रहे हैं। इस आयोग में
जहाँ एक ओर कोई भी भारतीय सदस्य नहीं है, वहीं इसकी रिपोर्ट भी अपूर्ण और अव्यावहारिक है। इस
रिपोर्ट में औपनिवेशिक साम्राज्य का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। अधिराज्य की स्थिति को भी इसमें
स्पष्ट नहीं किया गया है। इसके केन्द्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना के सन्दर्भ में भी इस रिपोर्ट में कोई
उल्लेख नहीं किया गया है।
इस आयोग ने वयस्क मताधिकार की माँग को भी अव्यावहारिक बताकर उसे ठुकरा दिया है। इन
समस्त कारणों से यह रिपोर्ट भारतीयों को किसी भी प्रकार से सन्तुष्ट नहीं कर पा रही है और देश के सभी
देशवासी इसका सर्वत्र विरोध कर रहे हैं। इस रिपोर्ट के माध्यम से भारत में साम्प्रदायिकता को जो बढ़ावा
दिया गया है, वह भारत के प्रति अंग्रेज सरकार के गलत इरादों का संकेत देता है।
अत: मेरा आपसे हार्दिक एवं विनम्र निवेदन है कि आप इस रिपोर्ट को अपने समाचार-पत्र के मुख्य
पृष्ठ पर छापें, जिससे भारतीयों के साथ अन्याय करने वाली इस रिपोर्ट और अंग्रेज सरकार की सर्वत्र निंदा हो
सके। साथ ही इससे आन्दोलन में भाग ले रहे भारतीयों का मनोबल ऊँचा हो सके।
जयहिंद
भवदीय
क,ख,ग
प्रश्न 4. इस अध्याय में दी गयी भारत माता की छवि और अध्याय-1 में दी गयी जर्मेनिया की छवि की
तुलना कीजिए।
उत्तर― इस अध्याय में दी गयी भारत माता की छवियों और अध्याय-1 में दी गयी जर्मेनिया की छवि
की तुलना निम्नलिखित आधारों पर की जा सकती है―
चर्चा करें
प्रश्न 1. 1921 ई० में असहयोग आन्दोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची
बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुनकर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में
लिखते हुए ये दर्शाइए कि वे आन्दोलन में शामिल क्यों हुए?
उत्तर―1921 ई० में असहयोग आन्दोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची व
उनमें से तीन सामाजिक समूहों की आशाओं और संघर्षों का संक्षिप्त उल्लेख निम्नवत् है―
(क) 1921 ई० में असहयोग आन्दोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की
सूची-असहयोग आन्दोलन में निम्नलिखित सामाजिक समूह शामिल हुए―
1. शिक्षित मध्यम वर्ग (विद्यार्थी, शिक्षक, वकील आदि)
2. भारतीय दस्तकार
3. जमींदार वर्ग
4. व्यापारी वर्ग और व्यवसायी
5. असम के बागान मजदूर
6. आन्ध्र प्रदेश के आदिवासी
7. अवध के किसान
8. विभिन्न राजनीतिक दल
9.पूँजीपति वर्ग
(ख) उपर्युक्त सामाजिक समूहों में से तीन सामाजिक समूहों की आशाओं और संघर्षों का संक्षिप्त
उल्लेख निम्न प्रकार है―
(1) अवध के किसान―अवध में बाबा रामचन्द्र के नेतृत्व में किसानों का आन्दोलन हो रहा था। बाबा
रामचन्द्र किसानों के आन्दोलन का नेतृत्व करने से पूर्व फिजी में एक ‘गिरमिटिया मजदूर’ के रूप में काम
कर चुके थे। अवध में उनका आन्दोलन ताल्लुकेदारों और जमीदारों के विरूद्ध था। ये ताल्लुकेदार और
जमींदार अवध के किसानों से बहुत अधिक लगान और कई प्रकार के कर वसूल कर रहे थे। इसके
अतिरिक्त किसानों को उनकी बेगार करनी पड़ती थी। यही नहीं पट्टेदारों के रूप में उनके पट्टे भी निश्चित
नहीं होते थे। उन्हें बार-बार पट्टे की जमीन से हटा दिया जाता था, जिससे जमीन पर उनका स्थायी रूप से
और कानूनन अधिकार न हो सके। इस प्रकार के अन्यायों के विरोध में अवध के किसानों की माँग थी कि
उनका लगान समाप्त कर दिया जाए, उनसे बेगार लेना बन्द किया जाए और जो जमींदार दमन का मार्ग
अपनाते हैं, उनका सामाजिक रूप से बहिष्कार किया जाए। विरोधस्वरूप किसानों ने जमींदारों को सुविधाओं
से वंचित करने के लिए अपनी पंचायतों में ‘नाई-धोबी बन्द’ का फैसला भी लिया।
अक्टूबर, 1920 ई० तक नेहरू, बाबा रामचन्द्र और कुछ अन्य नेताओं द्वारा ‘अवध किसान सभा’ का गठन
भी कर लिया गया। एक माह में ही अवध के ग्रामीण क्षेत्रों में इस संगठन की 300 से भी अधिक शाखाएँ बन
गयीं। जब असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ तो कांग्रेस ने अवध के किसान आन्दोलन को भी असहयोग
आन्दोलन में शामिल करने का प्रयास किया, परन्तु किसानों के आन्दोलन का रूप और उसके तरीके कुछ
इस प्रकार के हो गए थे, जिनसे कांग्रेस का नेतृत्व प्रसन्न नहीं था। जब 1921 ई० में असहयोग आन्दोलन का
प्रसार हुआ तो गाँवों के किसानों ने ताल्लुकेदारों और व्यापारियों के मकानों पर हमले शुरू कर दिए, उनके
द्वारा बाजारों में लूटपाट होने लगी और अनाज के गोदामों को लूट लिया गया। इस स्थिति में बहुत से स्थानीय
नेताओं ने किसानों को समझाने का प्रयास किया कि गांधीजी के द्वारा यह ऐलान कर दिया गया है कि अब
किसी को भी लगान नहीं भरना पड़ेगा और जमीन गरीबों में बाँट दी जाएगी। फिर भी महात्मा गांधी का नाम
लेकर लोग अपनी सारी हिंसक कारवाइयों और आकांक्षाओं को उचित सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे।
(2) आन्ध्र-प्रदेश के आदिवासी―देश के आदिवासी क्षेत्रों में भी असहयोग आन्दोलन का प्रसार हो रहा
था। उदाहरण के लिए, आन्ध्र प्रदेश की गूडेम पहाड़ियों में 1921 ई० के दशक के शुरू में ही एक उग्र
‘गुरिल्ला आन्दोलन’ फैल गया। अन्य वन-क्षेत्रों के समान यहाँ भी अंग्रेज सरकार ने बड़े-बड़े जंगलों में
प्रवेश करने की पाबन्दी लगा दी थी। इन जंगलों में आदिवासी लोग न तो अपने मवेशियों को चरा सकते थे
और न ही जलाने के लिए लकड़ी या फलों को ले सकते थे।
अंग्रेज सरकार की इन अन्यायपूर्ण कारवाइयों के विरुद्ध पहाड़ के लोगों की परेशानियाँ बढ़ गयीं और वे बहुत
अधिक गुस्सा हो गए। इससे उनकी रोजी-रोटी पर तो असर पड़ा ही, उन्हें लगा कि उनके परम्परागत
अधिकारों को भी जबरन छीना जा रहा है। इस सबका परिणाम यह हुआ कि जब सरकार ने उन्हें
सड़क-निर्माण हेतु जबरन बेगार करने के लिए विवश किया तो उन्होंने सरकार के विरुद्ध बगावत कर दी।
उनका नेतृत्व अल्लूरी सीताराम के द्वारा किया जा रहा था। अल्लूरी सीताराम राजू ने लोगों को खादी का
प्रयोग करने और शराब का परित्याग करने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही उन्होंने यह दावा भी किया
कि भारत अहिंसा के रास्ते से नहीं, बल्कि बल-प्रयोग के द्वारा ही स्वाधीन हो सकता है। गजू से प्रेरित आन्
प्रदेश के गूडेम विद्रोहियों ने पुलिस थानों पर हमले किए, ब्रिटिश अधिकारियों को मारने के प्रयास किए और
स्वराज की प्राप्ति हेतु अपना गुरिल्ला युद्ध चलाते रहे।
(3) असम के बागान मजदूर―महात्मा गांधी के विचारों और स्वराज के बारे में मजदूर की अपनी अलग
सोच थी। असम के बागानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए आजादी का आशय यह था कि वे उन
चाहरदीवारियों से जब भी चाहें, बाहर आ-जा सकते हैं, जिनमें उन्हें बन्द करके रखा गया था। उनके लिए
आजादी का आशय यह भी था कि वे अपने गाँवों से सम्पर्क रख पाएँगे। 1859 ई० ‘इनलैड इमिग्रेशन एक्ट’
के माध्यम से बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बिना अनुमति प्राप्त किए बिना बागानों से बाहर जाने
की छूट नहीं थी और यह अनुमति उन्हें विरले ही कभी प्राप्त हो पाती थी। जब उन्होंने असहयोग आन्दोलन
के बारे में हजारों मजदूरों ने अपने अधिकारियों की अवेहलना शुरू कर दी। इसके बाद वे बागानों को
छोड़कर अपने घरों की ओर चल दिए। उन्हें ऐसा लगा कि अब तो गांधी-राज आ रहा है और उनमें से हरेक
को गाँव में जमीन मिल जाएगी। दुर्भाग्य से वे अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच पाए। रेल और स्टीमरों की
हड़ताल के कारण वे बीच रास्ते में ही फंसे रह गए। इसके बाद उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और उनकी बुरी
तरह पिटाई की गयी।
प्रश्न 2. नमक-यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक
असरदार प्रतीक था।
उत्तर―गांधीजी की नमक-यात्रा और यह नमक-यात्रा; उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक
असरदार प्रतीक किस प्रकार सिद्ध हुई, इसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है―
(क) गांधीजी की नमक-यात्रा―भारत के लोगों को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए महात्मा गांधी को
नमक एक शक्तिशाली उपाय अथवा प्रतीक के रूप में उचित लगा। को ध्यान में रखकर 11 जनवरी
1930 को उन्होंने उस समय के वायसराय इरविन को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी 11 माँगों का
उल्लेख किया। इन माँगों में कुछ सामान्य मांगें थीं। अन्य कुछ माँगें उद्योगपतियों, किसानों आदि विभिन्न
सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित थीं। अपनी इन मांगों के आधार पर महात्मा गांधी समाज के सभी वर्गों को अपने
आन्दोलनों में जोड़ना चाहते थे। इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण माँग ‘नमक-कर’ को समाप्त करने से
सम्बन्धित थी। नमक एक ऐसा पदार्थ था, जिसे सभी प्रयोग में लाते थे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए
गांधीजी ने नमक पर कर लगाना और उसके उत्पादन पर सरकारी इजारेदारी को सरकार का सबसे अधिक
दमनकारी कदम बताया।
वायसराय के नाम लिखा गया गांधीजी का पत्र एक चेतावनी अथवा अल्टीमेटम के रूप में था। अपने इस
पत्र में गांधीजी ने यह भी लिखा था कि यदि ब्रिटिश सरकार 11 मार्च तक उनकी मांगों को स्वीकार नहीं
कर पाई तो कांग्रेस सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर देगी। उधर गांधीजी का पत्र प्राप्त करने के
उपरान्त भी लॉर्ड इरविन झुकने के लिए तैयार नहीं हुए। इसका परिणाम यह हुआ कि महात्मा गांधी ने
अपने 76 वॉलंटियरों के साथ नमक-यात्रा का शुभारम्भ कर दिया। यह गांधीजी के साबरमती आश्रम से
240 किलोमीटर दूर गुजरात के दांडी नामक एक कस्बे में जाकर समाप्त होनी थी। यह यात्रा लगभग 24
दिन तक चली और प्रत्येक दिन महात्मा गांधी ने अपनी टोली के साथ 10 मील की यात्रा पूरी की। वे
जिस भी स्थान पर रुकते, वहीं हजारों लोग उन्हें सुनने के लिए पहुँच जाते। अपनी इन सभाओं में गांधीजी
लोगों के सामने स्वराज का वास्तविक अर्थ स्पष्ट करते और लोगों से आह्वान करते कि वे अंग्रेज सरकार
की शांतिपूर्वक ही अवज्ञा करें; अर्थात् अंग्रेजों की आज्ञा को न मानें। अपनी यात्रा पूरी करने के उपरान्त
अन्तत: महात्मा गांधी दांडी पहुंच गए और सत्याग्रहियों के साथ समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना
शुरू कर दिया। इस प्रकार से सविनय अवज्ञा आन्दोलन के पहले चरण के रूप में अंग्रेज सरकार के
कानूनों की अवज्ञा शुरू हो गयी।
(ख) नमक-यात्रा; उपनिवेशवाद के खिलाफ एक असरदार प्रतीक के रूप में―असहयोग आन्दोलन
की तुलना में यह आन्दोलन इस दृष्टि से भिन्न था कि लोगों को इस बात के लिए आह्वान किया गया था कि वे
अंग्रेज सरकार के साथ केवल असहयोग ही न करें, अपितु अंग्रेज सरकार के द्वारा बनाए गए कानूनों का
उल्लंघन भी करें। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय हजारों लोगों ने नमक कानून का उल्लंघन किया। साथ
ही नमक बनाने वाले सरकारी कारखानों के सामने जाकर प्रदर्शन किए। जब यह आन्दोलन फैला तो लोगों
ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया और शराब की दुकानों की पिकेटिंग की जाने लगी।
देशभर के किसानों ने लगान और चौकीदारी-कर को चुकाने से इनकार कर दिया। जो लोग गाँवों में सरकारी
विभागों में कर्मचारियों के रूप में नियुक्त थे, उन्होंने सरकार को अपने त्यागपत्र देने शुरू कर दिए। अनेक
स्थानों पर जंगलों में रहने वालों ने वन-कानूनों का उल्लंघन करना शुरू कर दिया। वे सरकारी पाबन्दी के
उपरान्त भी वनों से जलाने हेतु लकड़ियों को बीनने लगे और अपने मवेशियों को चराने के लिए आरक्षित
वनों में प्रवेश करने लगे। देशभर में लोगों की इन अवज्ञाकारी कार्यवाहियों से अंग्रेज सरकार चिंतित हो उठी
और उसने निर्मम तरीके से आन्दोलनकारियों का दमन करना आरम्भ कर दिया। यहाँ तक कि शांतिपूर्ण
सत्याग्रहियों पर भी हमले किए गए और महिलाओं और बच्चों तक की पिटाई की गयी। सारे देश में लगभग
1 लाख लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
वस्तुत: उपनिवेशवाद के विरुद्ध भारतीयों को संगठित करने और उन्हें राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत करने की
दृष्टि से महात्मा गांधी जी की नमक-यात्रा; उपनिवेशवाद के विरुद्ध एक बहुत ही प्रभावपूर्ण मार्ग सिद्ध
हुआ। इस यात्रा के उपरान्त गांधीजी के द्वारा जिस सविनय अवज्ञा आन्दोलन का संचालन किया गया,
उसमें सारे देश ने किसी न किसी रूप में अपनी भागीदारी की। वे पूरे जोश के साथ सविनय अवज्ञा
आन्दोलन में सक्रिय रहे। गांधीजी की नमक-यात्रा का उद्देश्य भी यही था। वे ऐसे तरीके की खोज में लगे
हुए थे, जो स्वाधीनता आन्दोलन को अधिक व्यापक बना सके तथा जिसमें पूरे देश के लोग भाग लें। यह
गांधीजी की नमक-यात्रा का ही परिणाम था कि सविनय अवज्ञा आन्दोलन का इतने अधिक व्यापक स्तर
पर प्रसार हुआ और देश के सभी वर्गों के लोगों ने इसमें भाग लेकर अंग्रेज सरकार को भयभीत कर दिया।
प्रश्न 3. कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफरमानी आन्दोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं।
बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता?
उत्तर― सिविल नाफरमानी आन्दोलन में हिस्सा लेने वाली एक महिला के रूप में इस अनुभव का मेरे
जीवन में क्या अर्थ होता, इसका संक्षिप्त विवरण मैं निम्नलिखित पंक्तियों में स्पष्ट कर रही हूँ―
मैं कई दिनों से यह देख रही हूँ कि सिविल नाफरमानी आन्दोलन या सविनय अवज्ञा आन्दोलन (सिविल
नाफरमानी आन्दोलन) में देशभर की महिलाओं ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया है। जब से गांधीजी ने
नमक-सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ किया है, हजारों महिलाएँ उनकी बातों को सुनने के लिए दूर-दूर से
पहुँचती हैं। इन महिलाओं ने सत्याग्रह आन्दोलन के समय जुलूसों में भाग लेकर नमक बनाया, विदेशी
कपड़ों की होली जलाई और शराब की दुकानों की पिकेटिंग की है। अनेक महिलाएँ जेल भी जा चुकी
हैं। इस आन्दोलन में भाग लेने वाली अधिकांश महिलाएँ या तो शहरी क्षेत्रों की ऊँची जातियों की महिलाएँ
हैं अथवा ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पन्न किसान परिवारों की महिलाएँ हैं।
आज जब मैं स्वयं भी अपने पड़ोस की कई महिलाओं के साथ इस आन्दोलन में शामिल होने जा रही हूँ तो
यह मेरे लिए बड़े गर्व की बात है। इसमें सन्देह नहीं कि शहर के जुलूस में इतनी बड़ी भीड़ के साथ
सम्मिलित होने का यह मेरा पहला अनुभव होगा, क्योंकि इससे पूर्व मुझे ऐसा कोई अवसर ही प्राप्त नहीं
हुआ। फिर भी जुलूस में शामिल अन्य आन्दोलनकारी बहनों को देखकर मुझे संतोष और प्रसन्नता होगी और
मेरी हिम्मत बनी रहेगी, क्योंकि वे सब महिलाएँ भी मेरे समान ही हैं।
वस्तुतः सविनय अवज्ञा आन्दोलन में महिलाओं के भाग लेने से उनका समाज में स्तर ऊँचा होगा और
केवल परिवार, पड़ोस या नगर में, वरन् राष्ट्रीय स्तर पर उनके सम्मान में वृद्धि होगी। यही नहीं, उन्हें भारतीय
समाज में पुरुषों के साथ ही बराबरी का दर्जा प्राप्त होगा।
मैं जानती हूँ कि इस आन्दोलन में महिलाओं की भागीदारी से घरेलू जीवन में उनकी स्थिति में कोई भी
परिवर्तन इतनी जल्दी आने वाला नहीं है। फिर भी यह देश का प्रश्न है और इस समय हमें राष्ट्र के अस्तित्व,
इसकी स्वाधीनता और इसकी रक्षा व मान के लिए हर सम्भव कुर्बानी के लिए तैयार रहना होगा।
प्रश्न 4. राजनीतिक नेता पृथक् निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे?
उत्तर― ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में निम्नलिखित दृष्टियों से भिन्न
था-राजनीतिक नेता पृथक् निर्वाचिका के सवाल पर निम्नलिखित कारणों से आपस में बँटे हुए थे―
1. राजनीतिक नेता भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों एवं समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे।
2. डॉ० अम्बेडकर दलित वर्ग का नेतृत्व करते थे और उनका यह मानना था कि दलितों का वास्तविक
उद्धार; केवल राजनीतिक दृष्टि से उनके सशक्त होने के परिणामस्वरूप ही सम्भव है। इसी प्रकार
मोहम्मद अली जिन्ना भारत के मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करते थे और वे भी अल्पसंख्यक
मुस्लिमों को प्रत्येक दशा में राजनीतिक दृष्टि से सशक्त बनाना चाहते थे।
3. ये सभी राजनीतिक नेता; अपने-अपने समुदायों या वर्गों के लिए विशिष्ट राजनीतिक अधिकार एवं
पृथक् निर्वाचन क्षेत्र माँगकर अपने अनुयायियों को तुष्ट करना चाहते थे और उनका जीवन-स्तर
ऊँचा उठाना चाहते थे।
4. दूसरी ओर कांग्रेस और विशेष रूप से गांधीजी का यह मानना था कि पृथक् निर्वाचन क्षेत्र का भारत
की एकता पर सुनिश्चित रूप से प्रतिकूल प्रभाव होगा।
5. गांधीजी डॉ० अम्बेडकर और मुस्लिमों द्वारा की जा रही इस प्रकार की माँगों से विरुद्ध थे। यही नहीं
उन्होंने इसके लिए एक बार आमरण अनशन भी किया था।
परियोजना-कार्य
प्रश्न कीनिया के उपनिवेशवाद-विरोधी आन्दोलन का अध्ययन करें। भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन
की तुलना कीनिया के स्वतन्त्रता संघर्ष से करें।
उत्तर― कीनिया के उपनिवेशवाद-विरोधी आन्दोलन और भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन की कीनिया के
स्वतन्त्रता संघर्ष से तुलना का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है―
(क) कीनिया का उपनिवेशवाद-विरोधी आन्दोलन―1952 ई० से 1959 ई. तक कीनिया
आपात्कालीन स्थिति के दौर से गुजरा। इस समय यहाँ अंग्रेज साम्राज्यवादियों के विरुद्ध ‘माऊ-माऊ’ विद्रोह
चल रहा था। यूरोप के लोगों को अपनी गोरी चमड़ी पर बहुत अधिक अभिमान था। वे कीनिया के अश्वेत
लोगों को निम्नकोटि का मानते थे। उनकी इस सोच के विरुद्ध कीनिया में तीव्र प्रतिक्रिया हुई और वहाँ
राष्ट्रवादी भावनाओं का तेजी से प्रसार होने लगा। कीनिया के निवासियों को राष्ट्रवादी भावनाओं के प्रसार की
प्रेरणा; जातीय समानता के सिद्धान्त के आधार पर प्राप्त हुई। पाश्चात्य देशों के साहित्य और सम्पर्क ने भी
उनमें राष्ट्रवादी भावनाओं के विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। विशेष रूप से कीनिया
के बुद्धिजीवी वर्ग के लोग राष्ट्रवाद के विचारों से बहुत अधिक प्रभावित हुए। उन्होंने लोगों में भी राष्ट्रीय
भावनाओं को जाग्रत करने के लिए अपने अनेक प्रकार के प्रयास किए। फिर भी 1956 ई० तक कीनिया का
‘माऊ-माऊ’ विद्रोह; उपनिवेशवादी शक्तियों के द्वारा पूरी तरह से कुचल दिया गया।
‘माऊ-माऊ’ विद्रोह के दौरान कीनियावासियों की गतिविधियों से यह तो पूरी तरह से सिद्ध हो ही चुका था
कि वे राष्ट्रवाद की भावनाओं से पूरी तरह ओतप्रोत हो चुके हैं। इस आधार पर यह भी स्पष्ट था कि अब उन्हें
अधिक समय तक पराधीन रख पाना सम्भव नहीं होगा। जब द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ तो उपनिवेशवादी और
साम्राज्यवादी शक्तियाँ कमजोर पड़ गयीं। इसी कारण कई अफ्रीकी देश उपनिवेशवादी शक्तियों के कब्जे से
आजाद हो गए। उधर कीनिया में अंग्रेज उपनिवेशवादियों ने कुछ अनुमान लगाकर 1957 ई० में चुनाव
कराने की घोषणा की। उनका यह अनुमान था कि चुनाव में जनता के द्वारा उदारवादियों को सत्ता सौंप दी
जाएगी। परन्तु उनका अनुमान गलत सिद्ध हुआ। वहाँ जीमो केनियाटा के नेतृत्व वाली ‘कीनिया अफ्रीकन
नेशनल यूनियन’ की पार्टी को सर्वाधिक मत प्राप्त हुए और उनकी सरकार बन गयी। इसके बाद 12
दिसम्बर, 1963 ई० को कीनिया आजाद हो गया।
(ख) भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन की कीनिया के स्वतन्त्रता संघर्ष से तुलना―
दोनों आन्दोलनों में समानताएँ
1. दोनों ही देशों का कई शताब्दियों तक उपनिवेशवादी शक्तियों के द्वारा शोषण हुआ। इसी कारण दोनों
ही देश आर्थिक दृष्टि से काफी पीछे रह गए और उनकी सामाजिक दशा भी दयनीय हो गयी। इन
दोनों देशों की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक दुर्बलता का लाभ उठाकर साम्राज्यवादी शक्तियों ने
इन देशों में उपनिवेशवाद और ‘नव-उपनिवेशवाद’ का प्रसार किया। उन्हें अपने साम्राज्यवादी प्रसार
और इन देशों के आर्थिक शोषण की दृष्टि से सफलता प्राप्त हुई।
2. काफी समय तक शोषण और अन्याय सहने के उपरान्त दोनों ही देशों में यूरोप के देशों के समान
राष्ट्रवाद की लहर फैली। ये दोनों ही देश; उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के कट्टर शत्रु हो गए। इन
दोनों ही देशों ने उपनिवेशवादी शक्तियों का पूरी शक्ति से विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप
अन्तत: दोनों ही देशों को स्वाधीनता प्राप्त हुई।
3. स्वाधीन होने के उपरान्त इन दोनों देशों को अपने विकास हेतु आर्थिक सहायता की आवश्यकता हुई
और इन्होंने विश्व के देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की। इसका परिणाम यह हुआ कि इन्हें आर्थिक
सहायता प्रदान करने वाले देशों को इन देशों में अपना राजनीतिक प्रभाव स्थापित करने में सहायता
प्राप्त होती रहती है।
दोनों आन्दोलनों में असमानताएँ
1. कीनिया में राष्ट्रीय आन्दोलनों का संचालन केवल स्थानीय जन-जातियों के द्वारा ही किया गया। जब
इन स्थानीय जन-जातियों को अपनी रोजी-रोटी छिनती दिखाई दी तो इन्होंने उपनिवेशवादी शक्तियों
के विरुद्ध विद्रोह किया। फिर भी इनके विद्रोह या आन्दोलन में वह राष्ट्रीय एकता परिलक्षित नहीं हुई,
जो भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में दिखाई देती थी। इस दृष्टि से भारत का राष्ट्रवाद कीनिया की
तुलना में अधिक परिपक्व एवं दृढ़ दिखाई देता था। यहाँ संचालित सभी राष्ट्रीय आन्दोलनों में देश के
सभी वर्गों ने अपनी सहभागिता दिखाई। जाति, भाषा या सम्प्रदाय की दृष्टि से आपसी भिन्नता होते हुए
भी देश के सभी वर्गों ने राष्ट्रीयता के प्रश्न पर अपनी एकता की भावना को दर्शाया और समवेत रूप
में आन्दोलनों में भाग लिया।
2. कुछ स्थितियों को छोड़कर भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन अधिकांशत: अहिंसक ही रहा। इसका एक
प्रमुख कारण यहाँ के नेताओं के द्वारा सुनियोजित कार्यक्रमों के आधार पर आन्दोलनों का संचालन
करना था। उनके द्वारा संचालित आन्दोलन में राष्ट्रवाद की एक दीर्घकालिक परम्परा थी। इसके
विपरीत, कीनिया का आन्दोलन काफी उग्र था। कीनिया के नेता भी भारतीय नेताओं की तुलना में
अधिक उग्रवादी थे।
3. भारत में शिक्षित मध्यवर्ग के द्वारा राष्ट्रीय चेतना का प्रसार करने के कारण राष्ट्रीय स्तर पर स्वाधीनता
आन्दोलन हुए। यहाँ के मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों ने फ्रांसीसी क्रांति, रूसी क्रांति आदि के स्वतन्त्रता,
समानता, न्याय आदि पर आधारित विचारों का जन-जन में प्रसार किया। यहाँ शिक्षा का प्रसार भी
कीनिया की तुलना में अधिक था, जबकि कीनिया में शिक्षा का अधिक प्रसार नहीं हुआ था और वहाँ
राष्ट्रवाद पर आधारित विचारों का प्रसार भी काफी देर से हुआ।
(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. दक्षिणी अफ्रीका से भारत आने पर गांधीजी ने अपना सबसे पहला सत्याग्रह आन्दोलन
कौन-सा किया?
(क) बारडोली सत्याग्रह आन्दोलन
(ख) खेड़ा सत्याग्रह आन्दोलन
(ग) चम्पारन सत्याग्रह आन्दोलन
(घ) अहमदाबाद आन्दोलन
उत्तर―(ग) चम्पारन सत्याग्रह आन्दोलन
2. दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौटने पर गांधीजी ने किस स्थान पर सत्याग्रह आन्दोलन का
संचालन किया?
(क) बिहार के चम्पारन जिले में
(ख) गुजरात के खेड़ा में
(ग) अहमदाबाद के मजदूरों के लिए
(घ) इन सभी स्थानों पर
उत्तर―(घ) इन सभी स्थानों पर
3. गुजरात के खेड़ा जिले में गांधीजी के द्वारा सत्याग्रह आन्दोलन का आरम्भ क्यों किया गया?
(क) किसानों का लगान कम कराने हेतु
(ख) किसानों को अधिक कर्ज दिलाने हेतु
(ग) किसानों को भूमि दिलाने हेतु
(घ) किसानों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध
उत्तर―(क) किसानों का लगान कम कराने हेतु
4. राजनीतिक कैदियों को उन पर बिना मुकदमा चलाए दो साल तक जेल में रखने का सम्बन्ध
किससे था?
(क) 1919 का अधिनियम
(ख) रॉलट ऐक्ट
(ग) साइमन कमीशन
(घ) पूना पैक्ट
उत्तर―(ख) रॉलट ऐक्ट
5. 13 अप्रैल, 1919 किस घटना से सम्बन्धित है?
(क) सत्याग्रह आन्दोलन की शुरुआत
(ख) साइमन कमीशन का भारत आगमन
(ग) असहयोग आन्दोलन की शुरुआत
(घ) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
उत्तर―(घ) जलियाँवाला बाग हत्याकांड।
6. 1920 ई० में कांग्रेस के किस अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन शुरू करने का निर्णय लिया
गया?
(क) बम्बई अधिवेशन में
(ख) लाहौर अधिवेशन में
(ग) मद्रास अधिवेशन में
(घ) नागपुर अधिवेशन में
उत्तर―(घ) नागपुर अधिवेशन में
7. मोहम्मद अली और शौकत अली किस आन्दोलन के नेता थे―
(क) खिलाफत आन्दोलन
(ख) असहयोग आन्दोलन
(ग) खेड़ा सत्याग्रह आन्दोलन
(घ) चम्पारन सत्याग्रह आन्दोलन
उत्तर―(क) खिलाफत आन्दोलन
8. बम्बई में खिलाफत समिति का गठन कब किया गया था?
(क) 1917 ई० में
(ख) 1918 ई० में
(ग) 1919 ई० में
(घ) 1921 ई० में
उत्तर―(ग) 1919 ई० में
9. असहयोग-खिलाफत आन्दोलन कब शुरू हुआ?
(क) 1911 ई० में
(ख) 1913 ई० में
(ग) 1920 ई० में
(घ) 1921 ई० में
उत्तर―(घ) 1921 ई० में
10. पूना पैक्ट किन दो नेताओं के बीच हुआ?
(क) गांधीजी और डॉ० अम्बेडकर
(ख) गांधीजी और नेहरू
(ग) गांधीजी और सरदार पटेल
(घ) नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस
उत्तर―(क) गांधीजी और डॉ० अम्बेडकर
11. ‘अवध किसान सभा का गठन किसके नेतृत्व में हुआ?
(क) गांधीजी और बाबा रामचन्द्र
(ख) जवाहरलाल नेहरू और बाबा रामचन्द्र
(ग) गांधीजी और सीताराम अल्लूरी
(घ) सरदार पटेल और बाबा रामचन्द्र
उत्तर―(ख) जवाहरलाल नेहरू और बाबा रामचन्द्र
12. मजदूरों को ‘इनलैंड इमिग्रेशन ऐक्ट के तहत बिना अनुमति कहाँ से बाहर जाने की इजाजत
नहीं थी?
(क) खेतों से
(ख) कारखानों से
(ग) गोदामों से
(घ) बागानों से
उत्तर―(घ) बागानों से
13. भावी विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व को लेकर किसमें मतभेद था ?
(क) कांग्रेस और किसान सभा में
(ख) कांग्रेस और अंग्रेजों में
(ग) कांग्रेस और मुस्लिम लीग में
(घ) कांग्रेस और स्वराज पार्टी में
उत्तर―(ग) कांग्रेस और मुस्लिम लीग में
14. लाहौर अधिवेशन में किसकी माँग की गयी?
(क) किसानों का लगान माफ करने की
(ख) बागानों के मजदूरो को मुक्त करने की
(ग) 1919 ई० के अधिनियम में परिवर्तन की
(घ) पूर्ण स्वराज की
उत्तर―(घ) पूर्ण स्वराज की
15. भारत के लिए डोमेनियन स्टेट्स का ऐलान किसके द्वारा किया गया?
(क) लॉर्ड लिटन द्वारा
(ख) लॉर्ड इरविन द्वारा
(ग) लॉर्ड कर्जन द्वारा
(घ) लॉर्ड रिपन द्वारा
उत्तर―(ख) लॉर्ड इरविन द्वारा
16. 1930 को महात्मा गांधी द्वारा लॉर्ड इरविन को लिखे गए पत्र में उनकी 11 माँगों में से
कौन-सी माँग प्रमुख थी?
(क) नमक-कर को समाप्त करने की
(ख) पूर्ण स्वराज की
(ग) व्यापार-कर समाप्त करने की
(घ) भाषण की स्वतन्त्रता की
उत्तर―(क) नमक-कर को समाप्त करने की
17. सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत किस महत्त्वपूर्ण घटना के साथ किया गया?
(क) रॉलट ऐक्ट की घोषणा
(ख) नमक-कानून तोड़कर
(ग) साइमन कमीशन के आगमन
(घ) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
उत्तर―(ख) नमक-कानून तोड़कर
18. डॉ० भीमराव अम्बेडकर द्वारा दलितों के लिए ‘दलित वर्ग एसोसिएशन’ की स्थापना कब की
गयी?
(क) 1921 ई० में
(ख) 1922 ई० में
(ग) 1929 ई० में
(घ) 1930 ई० में
उत्तर―(घ) 1930 ई० में
19. गांधी-इरविन समझौता कब हुआ?
(क) 1931 ई० में
(ख) 1932 ई० में
(ग) 1937 ई० में
(घ) 1938 ई० में
उत्तर―(क) 1931 ई० में
20. अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ में किसने लिखा था? “भारत में ब्रिटिश शासन;
भारतीयों के सहयोग से स्थापित हुआ था और यह शासन इसी सहयोग के कारण चल
रहा है?”
(क) पं० जवाहरलाल नेहरू
(ख) गोपालकृष्ण गोखले
(ग) लाला लाजपत राय
(घ) महात्मा गांधी
उत्तर―(घ) महात्मा गांधी
21. प्रदर्शन अथवा विरोध का ऐसा रास्ता जिसमें लोग किसी दुकान, फैक्ट्री या ऑफिस के
अन्दर जाने का रास्ता रोक लेते हैं, कहलाता है―
(क) सत्याग्रह
(ख) असहयोग
(ग) पिकेटिंग
(घ) आन्दोलन
उत्तर―(ग) पिकेटिंग
22. “अस्पृश्यता को समाप्त किए बिना सौ साल तक भी स्वराज की स्थापना नहीं की जा
सकती।” ये शब्द किसने कहे?
(क) महात्मा गांधी
(ख) लाला लाजपत राय
(ग) भीमराव अम्बेडकर
(घ) जवाहरलाल नेहरू
उत्तर―(क) महात्मा गांधी
23. ‘गिरमिटिया मजदूर’ किन्हें कहा जाता था?
(क) बंधुआ मजदूरों को
(ख) खेतों में काम करने वाले मजदूरों को
(ग) कोयला खदानों के मजदूरों को
(घ) खानों में काम करने वालों को
उत्तर―(क) बंधुआ मजदूरों को
24. ‘वन्दे मातरम’ गीत किसके द्वारा लिखा गया था?
(क) बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा
(ख) रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा
(ग) अबनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा
(घ) महात्मा गांधी द्वारा
उत्तर―(क) बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा
25. गांधीजी द्वारा 1921 ई० में बनाए गए ‘स्वराज-ध्वज के बीच में कौन-सा प्रतीक बनाया गया
था
(क) चक्र
(ख) शेर की आकृति
(ग) भारत माता का चित्र
(घ) चरखा
उत्तर―(घ) चरखा
26. अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी पेंटिंग में किसका चित्र बनाया था?
(क) भारत माता का
(ख) भारत का
(ग) आन्दोलनकारियों का
(घ) महात्मा गांधी का
उत्तर―(क) भारत माता का
27. मद्रास के नटेसा शास्त्री ने ‘द फोकलोर्स ऑफ सदर्न इंडिया’ नामक संकलन में किसे
प्रकाशित किया था?
(क) अपने प्रसिद्ध गीतों को
(ख) अपनी विख्यात कहानियों को
(ग) लोक-कथाओं को
(घ) अपने लेखों को
उत्तर―(ग) लोक-कथाओं को
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत आने के बाद गांधीजी के द्वारा सबसे पहले कौन-सा आन्दोलन संचालित किया गया?
उत्तर― भारत आने के बाद गांधीजी के द्वारा सबसे पहले 1916 ई० में चम्पारन सत्याग्रह पर आधारित
आन्दोलन का संचालन किया गया।
प्रश्न 2. ‘रॉलट ऐक्ट किसलिए बनाया गया था?
उत्तर―1919 ई० में ब्रिटिश सरकार के द्वारा ‘रॉलट ऐक्ट’ के नाम से एक कानून पारित किया गया।
इस ऐक्ट के आधार पर अंग्रेजी प्रशासन को आन्दोलनकारियों की राजनीतिक गतिविधियों का दमन करने
और राजनीतिक कैदियों को उन पर बिना मुकदमा चलाए ही दो साल तक कैद में रखने का अधिकार प्राप्त
हो गया। भारतीयों ने इसे ‘काला कानून’ के नाम से सम्बोधित किया।
प्रश्न 3. भारतीयों ने ‘रॉलट ऐक्ट का विरोध किस प्रकार किया?
उत्तर― महात्मा गांधी ने रॉलट एक्ट के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन चलाने का निर्णय
किया। उनके आह्वान पर यह आन्दोलन व्यापक रूप से सारे देश में फैल गया। देश के विभिन्न नगरों में
रैलियों और जुलूसों का आयोजन किया गया। दुकानदारों ने अपनी दुकानें बन्द कर दी और रेलवे वर्कशॉप्स
में काम करने वालों ने हड़ताल कर दी। 10 अप्रैल, 1919 ई० में अंग्रेजों द्वारा एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली
चलाए जाने के बाद आक्रोशित आन्दोलनकारियों ने बैंकों, रेलवे और डाकखानों पर भी हमले किए। इस
आन्दोलन के समय अंग्रेज सरकार ने कई स्थानों पर अपनी निर्ममता का परिचय देते हुए हिंसक कार्यवाहियाँ
की।
प्रश्न 4. खिलाफत आन्दोलन किसके द्वारा शुरू किया गया?
उत्तर― प्रथम विश्वयुद्ध में ऑटोमन तुर्की की हार के उपरान्त यह अफवाह फैली कि इस्लामिक विश्व
के आध्यात्मिक नेता (खलीफा) ऑटोमन सम्राट को एक बहुत ही सख्त संधि को स्वीकार करने के लिए
विवश किया जाएगा। 1919 ई० में बंबई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया और मौहम्मद अली
व शौकत अली के नेतृत्व में खिलाफत आन्दोलन शुरू किया गया।
प्रश्न 5. खिलाफत आन्दोलन का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर― खिलाफत आन्दोलन का नेतृत्व मौहम्मद अली व शौकत अली के द्वारा किया गया।
प्रश्न 6. असहयोग आन्दोलन में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का विदेशी वस्तुओं पर क्या प्रभाव
पड़ा?
उत्तर― असहयोग आन्दोलन के समय विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और स्थान-स्थान पर
विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गयी। इसका प्रभाव यह हुआ कि 1921 ई० से 1922 ई० की अवधि में विदेशी
कपड़ों का आयात घटकर आधा रह गया। साथ ही उसकी कीमत भी ₹ 102 करोड़ से घटकर ₹ 57 करोड़
ही रह गयी। देश के अनेक स्थानों पर व्यापारियों ने विदेशी वस्तुओं का व्यापार करने और विदेशी व्यापार में
अपनी पूँजी लगाने से इनकार कर दिया।
प्रश्न 7. अवध में असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व किसके द्वारा किया जा रहा था? यह आन्दोलन
किस रूप में विकसित हुआ?’s
उत्तर― अवध में असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व बाबा रामचन्द्र के द्वारा किया जा रहा था। 1921 ई०
में जब असहयोग आन्दोलन का व्यापक रूप से प्रसार हुआ तो ताल्लुकेदारों और व्यापारियों के मकानों पर
हमले होने लगे, बाजारों में लूटपाट हुई और अनाज के गोदामों पर आन्दोलनकारियों द्वारा कब्जा कर लिया
गया। किसानों द्वारा इस प्रकार से किए जा रहे आन्दोलन से कांग्रेस सहमत नहीं थी।
प्रश्न 8. साइमन कमीशन का गठन क्यों किया गया? भारतीयों द्वारा इसका विरोध क्यों किया
गया?
उत्तर― सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया। राष्ट्रवादी आन्दोलन
के प्रतिक्रियास्वरूप गठित किए गए इस आयोग का उद्देश्य भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्य-शैली का
अध्ययन करना और इसके सम्बन्ध में ब्रिटिश सरकार को अपने सुझाव देना था। इस आयोग के सभी सदस्य
अंग्रेज थे, एक भी भारतीय सदस्य को इसमें स्थान नहीं दिया गया था। इसीलिए इस आयोग का भारतीयों द्वारा
सारे देश में विरोध किया गया।
प्रश्न 9. साइमन कमीशन का विरोध किस नारे के साथ किया गया?
उत्तर― 1928 ई० साइमन कमीशन भारत आया। भारतीय आन्दोलनकारियों ने ‘साइमन कमीशन
वापिस जाओ’ (साइमन कमीशन गो बैक) के नारे के साथ साइमन कमीशन का विरोध किया।
प्रश्न 10.गांधीजी ने दांडी-यात्रा किसलिए की?
उत्तर― 1930 ई० में महात्मा गांधी ने वायसराय लॉर्ड इरविन को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने
अपनी 11 माँगों का उल्लेख किया। उन्होंने यह भी लिखा कि यदि 11 मार्च तक उनकी 11 मांगें नहीं मानी
गयीं तो कांग्रेस के द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर दिया जाएगा। इरविन झुकने को तैयार नहीं हुए।
परिणामत: महात्मा गांधी ने अपने 78 विश्वसनीय वालंटियरों के साथ दांडी-यात्रा शुरू कर दी और इसी के
साथ सविनय अवज्ञा आन्दोलन भी शुरू हो गया।
प्रश्न 11. सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू होने के समय किन समुदायों के बीच संदेह और अविश्वास
का माहौल था?
उत्तर― जब सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हुआ तो उस समय कुछ मुस्लिम समुदायों के बीच संदेह
और अविश्वास का वातावरण बना हुआ था। कांग्रेस से अलग हुए मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस के
साथ किसी संयुक्त संघर्ष के लिए तैयार नहीं था। अनेक मुस्लिम नेता और बुद्धिजीवी भारत में अल्पसंख्यकों
के रूप में मुस्लिमों के अस्तित्व या हैसियत को लेकर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे थे। उनको इस बात का
भय बना हुआ था कि हिंदू बहुसंख्यक के वर्चस्व की स्थिति में अल्पसंख्यकों की अपनी पहचान और
संस्कृति लुप्त हो जाएगी।
प्रश्न 12. गांधी-इरविन समझौता कब हुआ? इस समझौते की किसी एक शर्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर― गांधी-इरविन समझौता; 5 मार्च, 1931 ई० को महात्मा गांधी और लॉर्ड इरविन के बीच हुआ।
इस समझौते की एक शर्त के अनुसार, अंग्रेज सरकार ने यह वचन दिया कि जो लोग हिंसा के आरोप
गिरफ्तार हुए हैं, उनके अतिरिक्त शेष सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दिया जाएगा।
प्रश्न 13.दूसरा गोलमेज सम्मेलन कहाँ आयोजित किया गया? इसमें किसने भाग लिया?
उत्तर― दूसरा गोलमेज सम्मेलन दिसम्बर, 1931 में लन्दन में आयोजित किया गया। इस गोलमेज
सम्मेलन में महात्मा गांधी ने भाग लिया।
प्रश्न 14.1859 ई० के इमिग्रेशन ऐक्ट की किसी एक विशेषता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर― 1859 ई० के इमिग्रेशन ऐक्ट की एक धारा के अनुसार, बागानों में काम करने वाले मजदूरों को
बिना अनुमति के बागानों से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी।
प्रश्न 15. महात्मा गांधी के द्वारा असहयोग आन्दोलन को ही क्यों चुना गया?
उत्तर― महात्मा गांधी के द्वारा यह कहा गया था कि भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना; भारतीयों के
सहयोग के परिणामस्वरूप ही हुई है और इसी कारण भारत में अंग्रेजों का शासन चल भी रहा है। यदि भारत
के लोग अंग्रेजों से अपना सहयोग वापिस ले लें तो सालभर में ही ब्रिटिश शासन ढह जाएगा। अपनी इसी
सोच और कथन के आधार पर ही महात्मा गांधी ने अंग्रेजों का विरोध करने के लिए असहयोग आन्दोलन को
चुना।
प्रश्न 16.असहयोग आन्दोलन की स्वीकृति कांग्रेस के किस अधिवेशन में दी गयी?
उत्तर― 1920 ई० में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में एक समझौता हुआ और असहयोग आन्दोलन के
कार्यक्रम की स्वीकृति पर मोहर लगा दी गयी। जनवरी, 1921 ई० में यह असहयोग-खिलाफत आन्दोलन
आरम्भ कर दिया गया।
प्रश्न 17.चौरी-चौरा कांड कब और कहाँ हुआ?
उत्तर― चौरी-चौरा कांड; 1922 ई० में गोरखपुर के चौरी-चौरा नामक स्थान पर हुआ।
प्रश्न 18. गुजरात के बारडोली किसान आन्दोलन का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर―1928 ई० में गुजरात के बारडोली तालुका में अंग्रेजों द्वारा भूमि-राजस्व बढ़ाने के विरुद्ध एक
आन्दोलन किया। इस आन्दोलन को ‘बारडोली सत्याग्रह’ के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन का नेतृत्व
सरदार वल्लभ भाई पटेल के द्वारा किया गया और उनके प्रयासों से अन्तत: यह आन्दोलन सफल रहा।
प्रश्न 19.डॉ० अम्बेडकर के द्वारा किस संगठन की स्थापना की गयी?
उत्तर―1930 ई० में डॉ. अम्बेडकर ने ‘दलित वर्ग एसोसिएशन’ की स्थापना की।
प्रश्न 20.जलियाँवाला बाग हत्याकांड कहाँ और किसके आदेश पर किया गया?
उत्तर― जलियाँवाला बाग हत्याकांड अमृतसर के जलियाँवाला बाग में हुआ। अंग्रेज पुलिस सिपाहियों
के द्वारा यह हत्याकांड जनरल डायर के आदेश पर किया गया।
प्रश्न 21.पाकिस्तान की माँग किस पार्टी के द्वारा की गयी?
उत्तर― पाकिस्तान की माँग 1940 ई० में मुस्लिम लीग के द्वारा की गयी।
प्रश्न 22. स्वाधीनता आन्दोलन के समय लोगों को एकजुट करने में झंडे के योगदान का उल्लेख
कीजिए।
उत्तर―राष्ट्रवादी नेताओं के आह्वान पर भारतीयों को एकजुट करने की दृष्टि से बंगाल के स्वदेशी
आन्दोलन के समय एक तिरंगा (हरा, पीला, लाल) झंडा तैयार किया गया था। इसमें ब्रिटिशकालीन भारत
के आठ प्रान्तों का प्रतिनिधित्व करते हुए कमल के आठ पुष्प और हिंदू-मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करता
हुआ एक अर्धचन्द्र दर्शाया गया था। 1921 ई० तक महात्मा गांधी ने भी एक तिरंगा तैयार कर लिया था। यह
तिरंगा; सफेद, हरे और लाल रंग का था। इसके मध्य में एक चरखा दर्शाया गया था। जुलूसों में इस झंडे को
हाथों में लेकर चलना; ब्रिटिश शासन के प्रति अवज्ञा का संकेत था।
प्रश्न 23.स्वदेशी आन्दोलन की प्रेरणा से रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भारतमाता की छवि को किस प्रकार
चित्रित किया?
उत्तर― स्वदेशी आन्दोलन की प्रेरणा से रवीन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा भारतमाता की एक विख्यात पेंटिंग
बनाई गई। इस पेंटिंग में भारतमाता को एक संयासिनी के रूप में दर्शाया गया है। वे शांत, गम्भीर तथा दैविक
एवं आध्यात्मिक गुणों से युक्त दिखाई देती हैं। भारतमाता की इस छवि के प्रति श्रद्धा को; राष्ट्रवाद में आस्था
का प्रतीक माना जाता है।
प्रश्न 24. भारत छोड़ो आन्दोलन’ कब और किसलिए शुरू हुआ?
उत्तर― क्रिप्स मिशन की असफलता और द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रभावस्वरूप भारत में व्यापक रूप से
असंतोष उत्पन्न हुआ। इसीलिए 1942 ई० में महात्मा गांधी के द्वारा ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ शुरू कर दिया
गया। इस आन्दोलन में अंग्रेजों को पूरी तरह भारत को छोड़कर जाने और भारत को पूर्ण रूप से मुक्त करके
उन्हें आजादी देने की मांग की गयी थी।
प्रश्न 25. ‘हिंद-स्वराज’ नामक पुस्तक किसके द्वारा लिखी गयी?
उत्तर― ‘हिंद-स्वराज’ नामक पुस्तक महात्मा गांधी के द्वारा लिखी गयी थी।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध के भारतीय समाज और इसकी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव हुए?
उत्तर―प्रथम विश्वयुद्ध के भारतीय समाज और इसकी अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव हुए―
1. प्रथम विश्वयुद्ध के कारण देश में एक नई संकटपूर्ण राजनीतिक, आर्थिक स्थिति उत्पन्न हो गयी।
2. इसके फलस्वरूप देश के रक्षा-बजट में बहुत अधिक वृद्धि करनी पड़ी। रक्षा-बजट में खर्च हुए धन
की भरपाई करने के लिए युद्ध के नाम पर बाहरी देशों से कर्ज लिए गए और देश के लोगों से
जाने वाले करों में भी वृद्धि की गयी।
3. उधर युद्ध के कारण वस्तुओं की कीमतों में भी तेजी से वृद्धि हो रही थी। यहाँ तक कि कीमतें दुगनी
हो चुकी थीं।
4. इस प्रकार की आर्थिक स्थिति के कारण लोगों की कठिनाइयाँ निरन्तर बढ़ रही थीं।
5. देश के ग्रामीण क्षेत्रों के नौजवानों को सिपाहियों के रूप में जबरन भर्ती किया जा रहा था, जिसके
कारण ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में भारी गुस्सा था।
6. 1918-1919 और 1920-1921 की अवधियों में देश के अधिकांश भागों में फसलें खराब हो गयीं,
जिसके कारण देश में खाद्य-पदार्थों का भारी अभाव हो गया।
7. इस प्रकार की विकट स्थितियों में ही देश के अधिकांश भागों में फ्लू की बीमारी भी फैल गयी।
8. भोजन-सामग्री के अकाल और फ्लू की महामारी के कारण कितने ही लाख लोग मारे गए।
9. देश के लोगों को यह आशा थी कि प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के उपरान्त उनकी कठिनाइयों में
कमी आएगी, परन्तु ऐसा नहीं हुआ तथा काफी समय तक लोगों की कठिनाइयाँ इसी प्रकार बनी रहीं।
10. देश की इन्हीं संकटपूर्ण स्थितियों में एक ऐसे नए नेता का उदय हुआ, जिसने स्वाधीनता आन्दोलन में
संघर्ष हेतु लोगों को संघर्ष का एक नया तरीका सिखाया।
प्रश्न 2. भारत में लोगों ने रॉलट ऐक्ट का विरोध किस प्रकार किया?
उत्तर―भारतीय सदस्यों के प्रबल विरोध के उपरान्त भी लेजिस्लेटिव काउंसिल ने बहुत शीघ्रता के
साथ रॉलट ऐक्ट को पारित कर दिया था। इस कानून के माध्यम से सरकार देश के आन्दोलनकारियों की
राजनीतिक गतिविधियों का दमन करना चाहती थी। साथ ही इस कानून के अन्तर्गत यह प्रावधान भी था कि
किसी भी राजनीतिक कैदी को उस पर बिना मुकदमा चलाए ही दो साल तक जेल में रखा जा सकता था। इस
प्रकार के अन्यायपूर्ण कानून के विरुद्ध महात्मा गांधी अहिंसक तरीके से नागरिक अवज्ञा चाहते थे।
चम्पारन, खेड़ा और अहमदाबाद में अपनी सफलता से प्रेरित होकर महात्मा गांधी ने 1919 ई० में प्रस्तावित
रॉलट ऐक्ट के विरुद्ध एक देशव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन संचालित करने का निर्णय लिया। जब रॉलट ऐक्ट
के विरोध में सत्याग्रह आन्दोलन शुरू हुआ तो देश के विभिन्न नगरों में रैलियों और जुलूसों का आयोजन
किया गया। दुकानदारों ने अपनी दुकानें बन्द कर दी और रेलवे वर्कशॉप्स में काम करने वालों ने हड़ताल
कर दी। आन्दोलनकारियों के इन कार्यों से उत्तेजित अंग्रेज सरकार ने पंजाब के अमृतसर में अनेक नेताओं
को हिरासत में ले लिया। दिल्ली में गांधीजी के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गयी। इसके बाद 10 अप्रैल को
पुलिस के द्वारा अमृतसर के एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चला दी गयी। इससे आक्रोषित लोग बैंकों,
डाकखानों और रेलवे– स्टेशनों पर हमला करने लगे। परिणामतः सरकार ने मार्शल लॉ घोषित कर दिया।
इसके बाद जनरल डायर ने कमान सम्भाल ली।
प्रश्न 3. रॉलट ऐक्ट के विरोध में हुए आन्दोलन का अंग्रेजों ने किस प्रकार दमन किया?
उत्तर― जब रॉलट ऐक्ट के विरोध में सत्याग्रह आन्दोलन शुरू हुआ तो आन्दोलनकारियों ने सारे देश में
व्यापक स्तर पर आंदोलन किए। सारे देश में रैलियों और जुलूसों का आयोजन किया गया, दुकानें बन्द हो
गयीं और सरकारी, गैर-सरकारी कारखानों आदि में हड़ताल घोषित कर दी गयी। आन्दोलनकारियों के इन
कार्यों से अंग्रेज सरकार अत्यधिक चिंतित और भयभीत हो गयी। यहाँ तक कि सरकार अत्यन्त उग्र हो गयी
और पंजाब में अमृतसर शहर के कई लोकप्रिय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। दिल्ली में गांधीजी के प्रवेश
पर पाबन्दी लगा दी गयी। स्थान-स्थान पर आन्दोलनकारियों का दमन किया जाने लगा।
10 अप्रैल, को पुलिस के द्वारा अमृतसर के एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चला दी गयी। इसके
परिणामस्वरूप आन्दोलनकारी बहुत अधिक आक्रोषित हो गए और उन्होंने सरकारी सम्पत्ति को अपना
निशाना बनाना शुरू कर दिया। सरकारी बैंकों, डाकखानों और रेलवे स्टेशनों पर हमले किए जाने लगे। यह
सब देखते हुए अंग्रेज सरकार ने मार्शल-लॉ घोषित कर दिया और जनरल डायर को आन्दोलनकारियों से
सख्ती निपटने हेतु उसके हाथ में कमान सौंप दी। इसी डायर के आदेश के फलस्वरूप 13 अप्रैल को
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ।
प्रश्न 4. सत्याग्रह का वह कौन-सा सिद्धान्त है,जो आज भी संसार के संघर्षों का समाधान करने की
दृष्टि से प्रासंगिक है?
उत्तर― महात्मा गांधी का ‘सत्याग्रह’; अहिंसा के सिद्धान्त पर आधारित है। यह एक ऐसा सिद्धान्त है;
जो आज भी संसार के संघर्षों का समाधान करने की दृष्टि से सहायक और प्रासंगिक है। इसे निम्नलिखित
बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता है―
1. अहिंसा के मार्ग पर अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग ने नागरिक अधिकार आन्दोलन तथा दक्षिणी
अफ्रीका में नेल्सन मंडेला ने भी रंगभेद नीति के विरुद्ध अहिंसा के मार्ग पर चलकर अपना
आन्दोलन संचालित किया।
2. कई देशों में आज भी लोग अपनी मांगों के लिए धरना, प्रदर्शन और अनशन के माध्यम से संघर्ष
करते हैं और सरकार पर अपनी बात को स्वीकारने के लिए दबाव बनाने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न 5. महात्मा गांधी ने राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेने से पूर्व किन स्थानों पर सत्याग्रह
आन्दोलन किए?
उत्तर― दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौटने के उपरान्त गांधीजी ने अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण
गोखले के कहने पर सारे भारत का भ्रमण किया। इस भ्रमण के समय उन्होंने देश के कई स्थानों पर अपने
सत्याग्रह आन्दोलन संचालित किए। महात्मा गांधी ने राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेने से पूर्व ही इन
सत्याग्रह आन्दोलनों का नेतृत्व किया था। इनमें तीन सत्याग्रह आन्दोलनों का भारतीय इतिहास में विशेष
महत्त्व है, जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है―
(क) चंपारन आन्दोलन―1916 ई० में उन्होंने बिहार के चम्पारन क्षेत्र का दौरा किया और वहाँ के
किसानों को दमनकारी बागान व्यवस्था के विरुद्ध सत्याग्रह करने के लिए प्रेरित किया।
(ख) गुजरात के खेड़ा में सत्याग्रह―1917 ई० में गांधीजी ने गुजरात के खेड़ा नामक स्थान के किसानों
की सहायता के लिए सत्याग्रह आन्दोलन किया। वहाँ प्लेग की महामारी के कारण किसान लगान नहीं चुका
पा रहे थे, जबकि सरकार उनसे जबरन लगान वसूल कर रही थी।
(ग) अहमदाबाद में सत्याग्रह―1918 ई० में अहमदाबाद के सूती कपड़ों के कारखानों में काम करने
वाले मजदूरों के हितों के लिए भी गांधीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन का संचालन किया।
प्रश्न 6. किन्हीं तीन कारणों के आधार पर यह स्पष्ट कीजिए कि शहरों में असहयोग आन्दोलन की
गति धीमी क्यों हुई?
उत्तर―असहयोग आन्दोलन का सारे देश में काफी व्यापक रूप में प्रसार हुआ, परन्तु धीरे-धीरे इस
आन्दोलन की गति धीमी होती चली गई। इसके कई कारण थे, जिनमें तीन प्रमुख कारणों का संक्षिप्त उल्लेख
निम्नवत् है―
1. इन कारणों में सर्वप्रमुख कारण यह था कि खादी का कपड़ा; मिलों में विशाल स्तर पर निर्मित होने
वाले कपड़े की तुलना में अधिक महँगा था। इस महँगे कपड़े को निर्धन लोग नहीं खरीद सकते थे।
उनके लिए मिलों में बनने वाले विदेशी कपड़े का अधिक समय तक बहिष्कार कर पाना सम्भव नहीं
था।
2. इस आन्दोलन के धीमा होने का एक कारण यह भी था कि ब्रिटिश संस्थानों के अधिक समय तक
बहिष्कार से भी लोगों के सामने कई समस्याएँ सामने आ सकती थीं।
3. असहयोग आन्दोलन की सफलता के लिए यह आवश्यक था कि वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की भी
स्थापना की जाए, जिससे ब्रिटिश संस्थानों के स्थानों पर उनमें प्रवेश लिया जा सके। परन्तु इन
वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की स्थापना की प्रक्रिया बहुत अधिक धीमी थी। इसका परिणाम यह
हुआ कि विद्यार्थी और अध्यापक पुनः अपने सरकारी विद्यालयों में वापिस लौटने लगे। इसी प्रकार
अन्य व्यवसायों के लोग भी अपने कार्यालयों में पहुंँचने लगे।
प्रश्न 7. अल्लूरी सीताराम कौन थे? आन्दोलनकारी विद्रोहियों को गांधीजी के विचारों से परिचित
करने में उनकी क्या भूमिका थी?
उत्तर― अल्लूरी सीताराम के संक्षिप्त परिचय और आन्दोलनकारी विद्रोहियों को गांधीजी के विचारों से
परिचित कराने में उनकी भूमिका का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है―
(क) अल्लूरी सीताराम का संक्षिप्त परिचय―अंग्रेज सरकार की अन्यायपूर्ण कार्यवाहियों के विरूद्ध
पहाड़ों के लोगों की परेशानियाँ बढ़ गयीं और वे बहुत अधिक गुस्सा हो गए। इससे उनकी रोजी-रोटी पर तो
असर पड़ा ही, उन्हें लगा कि उनके परम्परागत अधिकारों को भी जबरन छीना जा रहा है। इस सबका
परिणाम यह हुआ कि जब सरकार ने उन्हें सड़क-निर्माण हेतु जबरन बेगार करने के लिए विवश किया तो
उन्होंने सरकार के विरुद्ध बगावत कर दी। उनका नेतृत्व अल्लूरी सीताराम के द्वारा किया जा रहा था, जो
एक बहुत ही दिलचस्प व्यक्ति थे। सीताराम का यह दावा था कि उनके पास बहुत सारी विशेष शक्तियाँ हैं।
उदाहरण के लिए, वे बहुत ही सही खगोलीय अनुमान लगा सकते हैं, लोगों को उनकी बीमारियाँ दूर करके
स्वस्थ कर सकते हैं और गोलियाँ भी उनको नहीं मार सकतीं। राजू के व्यक्तित्व से विद्रोही आदिवासी बहुत
प्रभावित थे और उनका यह विश्वास था कि राजू ईश्वर का अवतार हैं।
(ख) आन्दोलनकारी विद्रोहियों को गांधीजी के विचारों से परिचित करने में अल्लूरी सीताराम की
भूमिका―राजू महात्मा गांधी की महानता का गुणगान करते थे और लोगों से यह कहते थे कि वे महात्मा
गांधी द्वारा संचालित असहयोग आन्दोलन से प्रेरित हैं। अल्लूरी सीताराम राजू ने लोगों को खादी का प्रयोग
करने और शराब का परित्याग करने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही उन्होंने यह दावा भी किया कि
भारत अहिंसा के रास्ते से नहीं, बल्कि बल-प्रयोग के द्वारा ही स्वाधीन हो सकता है। राजू से प्रेरित आन्ध्र
प्रदेश के गूडेम विद्रोहियों ने पुलिस थानों पर हमले किए, ब्रिटिश अधिकारियों को मारने के प्रयास किए और
स्वराज की प्राप्ति हेतु अपना गुरिल्ला युद्ध चलाते रहे। 1924 ई० में सीताराम राजू को अंग्रेज सरकार ने
पकड़ लिया और उन्हें फाँसी दे दी गयी। इस समय तक राजू अपने क्षेत्र के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो
चुके थे और एक लोकनायक बन चुके थे।
प्रश्न 8. खिलाफत आन्दोलन क्यों शुरू हुआ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― इसमें सन्देह नहीं कि रॉलट ऐक्ट के विरोध में किया गया सत्याग्रह आन्दोलन एक व्यापक
आन्दोलन था, परन्तु फिर भी अभी वह मुख्य रूप से नगरों और कस्बों तक ही सीमित था। महात्मा गांधी की
इच्छा थी कि देश में और भी अधिक व्यापक रूप से जनाधार वाला आन्दोलन संचालित किया जाए। इसके
लिए उनका मानना था कि यह तभी सम्भव है, जब हिन्दुओं और मुसलमानों को एक साथ लाया जाए, तभी
यह आन्दोन सफल हो सकता है। इस समय खिलाफत का मुद्दा भी एक समस्या थी। गांधीजी को लगा कि
मुसलमानों के समर्थन में इस खिलाफत के मुद्दे को उठाकर और इसका समर्थन करके हिन्दू एवं मुसलमानों
को एक-साथ ला सकते हैं।
उधर प्रथम विश्वयुद्ध में ऑटोमन तुर्की पराजित हो चुका था। साथ ही यह अफवाह भी फैली हुई थी कि
इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक गुरु (खलीफा) ऑटोमन सम्राट को एक बहुत ही कठोर शांति-संधि को
स्वीकार करने के लिए विवश किया जाएगा। खलीफा की शक्तियों की रक्षा के लिए ही मार्च, 1919 ई० में
बम्बई में एक ‘खिलाफत समिति’ का गठन किया गया। साथ ही मुहम्मद अली और शौकत अली बंधुओं के
साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेता इस मुद्दे पर संयुक्त जन-कारवाई की सम्भावनाओं को तलाशने के लिए
महात्मा गांधी से मिले और इस सम्बन्ध में उनसे चर्चा शुरू कर दी। इसके उपरान्त सितम्बर, 1920 ई० में
महात्मा गांधी ने कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में कांग्रेस के दूसरे नेताओं को इस बात के लिए तैयार कर
लिया कि खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया जाए और साथ ही स्वराज हेतु एक व्यापक असहयोग
आन्दोलन शुरू किया जाए।
प्रश्न 9. “सविनय अवज्ञा आन्दोलन में दलितों की भागीदारी बहुत सीमित थी।” इस कथन का
मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर― देश के सभी सामाजिक समूह स्वराज की धारणा अथवा विचारधारा से समान रूप से प्रभावित
नहीं हुए। इनमें इसी प्रकार का एक समूह ‘अछूतो’ अथवा दलितों का था। ‘अछूत’ कहे जाने वाले ये भारतीय
1930 ई० के उपरान्त स्वयं को ‘दलित’ अथवा ‘उत्पीड़ित’ कहने लगे थे। कांग्रेस ने काफी समय तक दलितों
पर ध्यान नहीं दिया। इसका कारण यह था कि कांग्रेस रूढ़िवादी सनातनी हिंदुओं से डरी हुई थी। इसके
उपरान्त भी बाद में महात्मा गांधी ने यह घोषणा की कि अस्पृश्यता (छुआछूत) को यदि समाप्त करने की
दिशा में ध्यान नहीं दिया जाएगा तो कांग्रेस सौ साल तक भी देश में स्वराज की स्थापना करने में सफल नहीं
होगी। उन्होंने ही अछूतों को सर्वप्रथम ‘हरिजन’; अर्थात ईश्वर की संतान कहा। उन्होंने हरिजनों को
सार्वजनिक तालाबों, सड़कों और कुओं पर समान अधिकार प्राप्त कराने हेतु सत्याग्रह किया।
गांधीजी के द्वारा दलितों के लिए किए जाने वाले इन प्रयासों के उपरान्त भी अनेक दलित नेता अपने समुदाय
की समस्याओं का अलग से राजनीतिक समाधान खोजना चाहते थे। इसी उद्देश्य से वे स्वयं को संगठित करने
लगे। उन्होंने शिक्षा संस्थानों में आरक्षण की आवाज उठाई और अलग निर्वाचन क्षेत्रों की बात कही, जिससे
वहाँ से केवल दलितों को ही चुनकर भेजा जा सके। उनकी यह प्रबल मान्यता थी कि उनकी सामाजिक रूप
से कमजोरी अथवा अपंगता केवल राजनीतिक रूप से सशक्त होने के उपरान्त ही दूर हो सकेगी। इन्हीं सब
कारणों से सविनय अवज्ञा आन्दोलन में दलितों की भागीदारी बहुत सीमित ही रही। विशेष रूप से महाराष्ट्र
और नागपुर के क्षेत्रों में ऐसा ही देखने में आया, जहाँ उनके दलित-संगठन काफी सशक्त थे।
प्रश्न 10. वे कौन-सी परिस्थितियाँ थीं, जिनके कारण गांधीजी ने 1931 ई० में सविनय अवज्ञा
आन्दोलन वापिस लेने का निर्णय किया?
उत्तर― नमक-कानून का दांडी में उल्लंघन करने के साथ ही महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा
आन्दोलन की शुरुआत हो गयी। असहयोग आन्दोलन की तुलना में यह आन्दोलन इस दृष्टि से भिन्न था कि
लोगों को इस बात के लिए आह्वान किया गया था कि वे अंग्रेज सरकार के साथ केवल असहयोग ही न करें,
अपितु अंग्रेज सरकार के द्वारा बनाए गए कानूनों का उल्लंघन भी करें। इस आन्दोलन के व्यापक रूप से
फैलने के उपरान्त कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हुईं, जिनके परिणामस्वरूप महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा
आन्दोलन को वापिस ले लिया। इन परिस्थितियों का संक्षिप्त उल्लेख निम्नलिखित है―
1. देशभर में लोगों की इन अवज्ञाकारी कार्यवाहियों से अंग्रेज सरकार चिंतित हो उठी और उसने
कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी करनी शुरू कर दी। अनेक स्थानों पर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के
बीच हिंसक टकराव हुए।
2. अप्रैल, 1930 ई० महात्मा गांधी के प्रति समर्पित खान अब्दुल गफार खाँ को भी अंग्रेज सरकार ने
गिरफ्तार कर लिया। इस घटना से उग्र होकर शोलापुर के औद्योगिक मजदूरों ने अंग्रेज सरकार की
पुलिस चौकियों, नगरपालिका की इमारतों, अदालतों और रेलवे स्टेशनों पर हमले शुरू कर दिए।
3. इन सब उग्र कार्रवाइयों को देखकर अंग्रेज सरकार भयभीत हो गयी और उसने निर्मम तरीके से
आन्दोलनकारियों का दमन करना आरम्भ कर दिया। यहाँ तक कि शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों पर भी
हमले किए गए और महिलाओं और बच्चों तक की पिटाई की गयी। सारे देश में लगभग 1 लाख
लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
4. 5 मार्च, 1931 ई० को महात्मा गांधी ने लॉर्ड इरविन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
भारतीय इतिहास में यह समझौता ‘गांधी-इरविन समझौता’ के नाम से जाना जाता है। इस समझौते में
गांधीजी ने लन्दन में आयोजित होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने हेतु अपनी सहमति
व्यक्त कर दी। (इससे पूर्व कांग्रेस के द्वारा पहले गोलमेज सम्मेलन का बहिष्कार किया जा चुका
था।)। इसके साथ ही ही उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापिस ले लिया।
5. इस समझौते के बदले सरकार देश के राजनीतिक कैदियों को रिहा करने के लिए मान गयी।
दिसम्बर, 1931 ई० में गांधीजी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन पहुँचे, परन्तु वहाँ उनके साथ
हुई वार्ता बीच में ही टूट गयी और गांधीजी निराश होकर भारत वापिस लौट आए।
प्रश्न 11. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रति लोगों और औपनिवेशिक सरकार ने किस प्रकार
प्रतिक्रिया व्यक्त की?
उत्तर― नमक-कानून का दांडी में उल्लंघन करने के साथ ही सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत
हो गयी। असहयोग आन्दोलन की तुलना में यह आन्दोलन इस दृष्टि से भिन्न था कि लोगों को इस बात के
लिए आह्वान किया गया था कि वे अंग्रेज सरकार के साथ केवल असहयोग ही न करें, अपितु अंग्रेज सरकार
के द्वारा बनाए गए कानूनों का उल्लंघन भी करें।
(क) सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया―सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय
हजारों लोगों ने नमक कानून का उल्लंघन किया। साथ ही नमक बनाने वाले सरकारी कारखानों के सामने
जाकर प्रदर्शन किए। जब यह आन्दोलन फैला तो लोगों ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया
और शराब की दुकानों की पिकेटिंग की जाने लगी। देशभर के किसानों ने लगान और चौकीदारी-कर को
चुकाने से इनकार कर दिया। जो लोग गाँवों में सरकारी विभागों में कर्मचारियों के रूप में नियुक्त थे, उन्होंने
सरकार को अपने त्यागपत्र देने शुरू कर दिए। अनेक स्थानों पर जंगलों में रहने वालो ने वन-कानूनों का
उल्लंघन करना शुरू कर दिया। वे सरकारी पाबन्दी के उपरान्त भी वनों से जलाने हेतु लकड़ियों को बीनने
लगे और अपने मवेशियों को चराने के लिए आरक्षित वनों में प्रवेश करने लगे।
(ख) सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रति सरकार की हिंसक प्रतिक्रिया―देशभर में लोगों की इन
अवज्ञाकारी कार्यवाहियों से अंग्रेज सरकार चिंतित हो उठी और उसने कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी करनी
शुरू कर दी। अनेक स्थानों पर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक टकराव हुए। अप्रैल, 1930 ई०
महात्मा गांधी के प्रति समर्पित खान अब्दुल गफार खाँ को भी अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। इस
घटना से उग्र होकर शोलापुर के औद्योगिक मजदूरों ने अंग्रेज सरकार की पुलिस चौकियों, नगरपालिका की
इमारतों, अदालतों और रेलवे स्टेशनों पर हमले शुरू कर दिए। अब अंग्रेज सरकार ने निर्मम तरीके से
आन्दोलनकारियों का दमन करना आरम्भ कर दिया। यहाँ तक कि शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों पर भी हमले किए
गए और महिलाओं और बच्चों तक की पिटाई की गयी। सारे देश में लगभग 1 लाख लोगों को गिरफ्तार कर
लिया गया।
प्रश्न 12. सविनय अवज्ञा आन्दोलन में देश के विभिन्न वर्गों और समूहों ने क्यों भाग लिया?
उत्तर― सविनय अवज्ञा आन्दोलन में देश के किसानों, श्रमिकों, व्यापारियों, उद्योगपतियों, बुद्धिजीवियों
एवं महिलाओं आदि सभी ने सक्रिय रूप से भाग लिया। गाँवों के सम्पन्न किसानों; जैसे गुजरात के पट्टीदार
और उत्तर प्रदेश के छोटे किसान भी इस आन्दोलन में पूरे जोश के साथ भाग ले रहे थे। वे अधिकांशतः
व्यावसायिक फसलों की खेती करते थे, परन्तु बाजार की मंदी और कीमतों के गिरने से बहुत अधिक परेशान
थे। यहाँ कि जब उनकी नकद आय समाप्त होने लगी तो उनके लिए लगान चुकाना भी असम्भव हो
गया। उधर सरकार किसी भी दशा में लगान कम करने के लिए तैयार नहीं थी। इसी कारण उनमें बहुत
अधिक असंतोष था।
छोटे किसान जो अपने जमींदारों को भाड़ा चुकाते थे, वे भी उसमें माफी चाहते थे, परन्तु उनकी कोई सुनवाई
नहीं हुई। इसी कारण उन्होंने भी इस आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस आन्दोलन से पूर्व भी वे कई
रैडिकल आन्दोलनों में भाग ले चुके थे। देश के व्यापारी और उद्योगपति भी ब्रिटिश सरकार की नीतियों से
असन्तुष्ट थे। इसलिए उन्होंने भी सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेकर ब्रिटिश सरकार की उन अन्यायपूर्ण
नीतियों का विरोध किया, जिनके कारण उनकी व्यावसायिक गतिविधियों में अवरोध उत्पन्न होता था।
औद्योगिक श्रमिकों ने भी इस आन्दोलन में भाग लिया, फिर भी उनकी भागीदारी कम ही रही। इसका एक
कारण उनका यह मानना था कि कांग्रेस; पूँजीपतियों के अधिक निकट है। दूसरी ओर सविनय अवज्ञा
आन्दोलन देशभर की महिलाओं ने व्यापक स्तर पर भाग लिया। वे ब्रिटिश सरकार और भारत में अंग्रेजी
सरकार को दमनकारी और शोषण करने वाली सरकार मानती थीं और देश को आजाद कराने के लिए पुरुषों
के साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर चलने के लिए तैयार थीं।
प्रश्न 13.इतिहास की पुनर्व्याख्याः राष्ट्रवाद के विकास में किस प्रकार सहायक हुई?
उत्तर― राष्ट्रवाद की भावना के विकास में जहाँ अन्य साधन बहुत अधिक सहायक हुए, वहीं इतिहास
की पुनर्व्याख्या भी इस दृष्टि से बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक आते-आते
अनेक भारतीय यह अनुभव करने लगे थे कि भारतीयों में अपने देश के प्रति गर्व का भाव उत्पन्न करने हेतु
इतिहास को अलग ढंग से पढ़ाया जाना आवश्यक है। अंग्रेजों की भारतीय के प्रति यह सोच थी कि वे अत्यन्त
पिछड़े हुए और आदिम लोग हैं, जो अपना शासन संचालित करने के योग्य नहीं हैं।
अंग्रेजों की इसी धारणा के प्रतिक्रियास्वरूप अपने अतीत की ओर मुड़े और उसमें अपनी महान उपलब्धियों
को खोजना आरम्भ किया। उन्होंने अपने उस प्राचीन गौरवशाली अतीत के बारे में अपनी पुस्तकों और लेखों
में लिखना आरम्भ किया, जब हमारे देश की कला, वास्तुकला, विज्ञान, गणित, धर्म, संस्कृति, कानून, दर्शन,
हस्तकला और व्यापार उत्कर्ष की ओर थे। उनका कथन था कि इस प्राचीन गौरवशाली और महान युग के
उपरान्त ही पतन का युग आया और भारत को विदेशियों ने गुलाम बना लिया।
इस प्रकार के राष्ट्रवादी इतिहास को लिखते समय उसे पढ़ने वाले पाठकों से यह आह्वान किया जाता था कि वे
भारत की प्राचीन महानता और उपलब्धियों पर गर्व करें और साथ ही ब्रिटिश शासन के द्वारा भारतीयों की जी
दुर्दशा की जा रही है, उससे मुक्ति हेतु संघर्ष के मार्ग पर चलकर अपना योगदान दें।
प्रश्न 14.राष्ट्रवाद के विकास का विश्व पर क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर- राष्ट्रवाद के विकास का विश्व पर निम्नलिखित दृष्टियों से प्रभाव हुआ―
1. विश्व के अनेक देशों की जनता ने राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत होकर साम्राज्यवादी शक्तियों के
विरुद्ध आन्दोलन किए। अन्ततः वे अपने देशों में राष्ट्र-राज्यों की स्थापना करने में सफल हुए। इस
प्रकार राष्ट्रवाद के परिणामस्वरूप संसार के अनेक देशों को स्वाधीनता प्राप्त हुई।
2. यह राष्ट्रवाद का ही परिणाम था कि सम्पूर्ण विश्व के देशों के लोग अब यह विचार करने लगे कि वे
कौन हैं तथा उनकी पहचान किन आधारों पर परिभाषित होती है। इसके उपरान्त ही वे स्वयं को
किसी देश के नागरिक के रूप में परिभाषित करने लगे। उनमें अपने राष्ट्र के प्रति लगाव उत्पन्न होने
लगा।
3. इस प्रकार की पहचान, अपनेपन के भाव और अपने राष्ट्र के साथ लगाव की दृष्टि से नए प्रतीकों,
चिह्नों, गीतों, छवियों आदि को आधार बनाया गया। इनके प्रभावस्वरूप संसार के लोगों में राष्ट्रवाद
का भाव और भी अधिक गहरा हो गया और वे अपने देशवासियों और अपने राष्ट्र से और भी अधिक
निकटता व गहराई से जुड़ गए।
4. राष्ट्रवाद के विकास के परिणामस्वरूप ही विश्व में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का भावी
अस्तित्व खतरे में पड़ गया। साम्राज्यवादी गतिविधियों में लिप्त रहने वाले देशों की सर्वत्र निन्दा होने
लगी और धीरे-धीरे विश्व के देशों में साम्राज्यवाद का लगभग अन्त हो गया।
प्रश्न 15.राष्ट्रवाद के विकास में लोक-साहित्य का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― राष्ट्रवाद की भावना के विकास में भारत के लोक-साहित्य का भी बहुत अधिक योगदान रहा।
लोक-साहित्य के इस योगदान को निम्नलिखित दृष्टियों से समझा जा सकता है―
1. उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में भारत के राष्ट्रवादियों ने भाटों व चारणों की लोक-कथाओं को
लिखना आरम्भ किया। इसका कारण यह था कि ये लोक-कथाएँ ही भारत की सांस्कृतिक परम्परा
को यथार्थ रूप में दर्शाती हैं।
2. हमारे देश में बंगाल के महान साहित्यकार और कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विभिन्न लोक-गाथाओं,
गीतों, बाल-गीतों और मिथकों का संग्रह किया। यही नहीं, उन्होंने लोक-परम्पराओं को पुनर्जीवित
करने हेतु आन्दोलन भी किया।
3. मद्रास के नटेसा शास्त्री ने ‘द फोकलोर्स ऑफ सदर्न इंडिया’ के नाम से इसमें संकलित तमिल
लोक-कथाओं को चार खंडों में प्रकाशित किया। उनकी मान्यता थी कि लोक-कथाएँ: राष्ट्रीय
साहित्य होती हैं और यही देश के लोगों के वास्तविक विचारों की सबसे विश्वसनीय अभिव्यक्ति
होती हैं।
इस प्रकार लोक-साहित्य का लोगों का उनके राष्ट्र की पहचान से अवगत कराने में विशेष योगदान रहा। इसी
के परिणामस्वरूप देशवासियों में आत्मगौरव का भाव उत्पन्न हुआ।
प्रश्न 16. अपनेपन का भाव विकसित करने में कौन-कौन-से प्रतीक और साधन सहायक हुए? किसी
एक को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― अपनेपन का भाव विकसित करने में सहायक प्रतीकों और साधनों तथा एक प्रतीक के रूप में
भारतमाता की छवि का संक्षिप्त परिचय निम्नवत् है―
(क)अपनेपन का भाव विकसित करने में सहायक प्रतीक और साधन―भारत के स्वाधीनता आन्दोलन
में सामूहिक अपनेपन का जो भाव उत्पन्न हुआ, उसी के कारण देश के लोगों में राष्ट्रीय एकता का भाव जाग्रत
हुआ और उन्होंने इस आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। सामूहिक अपनेपन के भाव का विकास करने
में देश की संस्कृति का भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। इनमें भारतमाता
की छवि, एक राष्ट्रीय तिरंगा, लोक-साहित्य, इतिहास को नवीन रूप में प्रस्तुत किया जाना अथवा इतिहास
की पुनर्व्याख्या आदि अनेक ऐसे प्रतीक और साधन थे, जिन्होंने अनेक प्रकार की विभिन्नता वाले इस देश के
लोगों को एकता के सूत्र में बाँध दिया और उन्हें सामूहिक रूप से देश के लिए त्याग और कुर्बानी देने हेतु
प्रेरित किया।
(ख) एक प्रतीक के रूप में भारतमाता की छवि―इसमें सन्देह नहीं कि किसी भी राष्ट्र की पहचान सबसे
अधिक किसी चित्र में ही दर्शाई जा सकती है। इस चित्र में प्रदर्शित छवि के माध्यम से राष्ट्र के लोग अपने
राष्ट्र को सरलता से पहचान सकते हैं। बीसवीं शताब्दी में जैसे-जैसे राष्ट्रवाद की भावना का विकास हुआ
वैसे-वैसे ही भारत की पहचान; भारतमाता की छवि के रूप में होने लगी। हमारे देश में सर्वप्रथम भारतमाता
का चित्र बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के द्वारा बनाया गया था। इसी प्रकार स्वदेशी आन्दोलन से प्रेरणा प्राप्त
करके बंगाल के प्रसिद्ध कलाकार अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारतमाता की एक विख्यात पेंटिंग बनाई। इस पेंटिंग
में भारतमाता को एक संन्यासिन के रूप में दर्शाया गया है, जो शांत, गम्भीर, दैवीय और आध्यात्मिक गुणों से
सम्पन्न दिखाई देती है। बाद में अबनीन्द्रनाथ द्वारा बनाई गयी भारतमाता की इस छवि को व्यापक स्तर पर
तस्वीरों में दर्शाया जाने लगा। जब विभिन्न कलाकार भारतमाता की तस्वीर बनाने लगे तो उनके द्वारा
भारतमाता की छवि भी अनेक प्रकार के रूप धारण करती गयी। अब भारतमाता की इस छवि के प्रति लोगों
की आस्था को राष्ट्र अथवा राष्ट्रवाद में आस्था का प्रतीक माना जाने लगा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. असहयोग आन्दोलन के समय समाज के विभिन्न वर्गों और समूहों की भागीदारी पर संक्षिप्त
प्रकाश डालिए।
उत्तर― यह असहयोग-खिलाफत आन्दोलन जनवरी, 1921 में शुरू हुआ। विभिन्न सामाजिक समूहों
ने इसमें भाग लिया, परन्तु इनमें से प्रत्येक की अपनी-अपनी अपेक्षाएँ और आकांक्षाएँ थीं। स्वराज के आह्वान
को भी यद्यपि सभी ने स्वीकार किया, परन्तु इन सभी के लिए इस स्वराज का आशय भिन्न-भिन्न था। संक्षेप
में असहयोग आन्दोलन के समय समाज के विभिन्न वर्गों और समूहों की भागीदारी को निम्नलिखित बिन्दुओं
के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है―
1. शहरों के मध्यवर्ग के लोगों के द्वारा इस आन्दोलन की शुरुआत और इस आन्दोलन में उनकी
भागीदारी―असहयोग आन्दोलन का आरम्भ शहरों के मध्यवर्ग की भागीदारी से हुआ। इस
आन्दोलन के शुरू होते ही हजारों विद्यार्थियों ने अपने स्कूल-कॉलिज छोड़ दिए। स्कूलों के
हेडमास्टरों और अध्यापकों ने अपनी नौकरियों से त्यागपत्र दे दिए। वकीलों ने अदालतों में मुकदमे
लड़ना बन्द कर दिया। मद्रास के अतिरिक्त अधिकतर प्रान्तों में परिषद्-चुनावों का बहिष्कार किया
गया। परन्तु मद्रास में गैर-ब्राह्मणों द्वारा बनाई गयी ‘जस्टिस पार्टी का मानना था कि काउंसिल में
प्रवेश के माध्यम से उन्हें वे सभी अधिकार प्राप्त हो सकते हैं, जो अधिकांशत: केवल ब्राह्मणों को
प्राप्त हो पाते हैं। यही कारण है कि इस पार्टी ने चुनावों का बहिष्कार नहीं किया।
2. ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की भागीदारी―धीरे-धीरे शहरों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी
असहयोग आन्दोलन फैलता गया। यहाँ तक कि प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त किसानों और
आदिवासियों के जो आन्दोलन हो रहे थे, वे भी असहयोग आन्दोलन में ही समाहित हो गए। इस
समय अवध में बाबा रामचन्द्र के नेतृत्व में किसानों का आन्दोलन हो रहा था। अवध में उनका
आन्दोलन ताल्लुकेदारों और जमींदारों के विरुद्ध था। ये ताल्लुकेदार और जमींदार अवध के
किसानों से बहुत अधिक लगान और कई प्रकार के कर वसूल कर रहे थे। इसके अतिरिक्त
किसानों को उनकी बेगार करनी पड़ती थी। इस प्रकार के अन्यायों के विरोध में अवध के किसानों
की माँग थी कि उनका लगान समाप्त कर दिया जाए, उनसे बेगार लेना बन्द किया जाए और जो
जमींदार दमन का मार्ग अपनाते हैं, उनका सामाजिक रूप से बहिष्कार किया जाए। विरोधस्वरूप
किसानों ने जमींदारों को सुविधाओं से वंचित करने के लिए अपनी पंचायतों में ‘नाई-धोबी बन्द’
का फैसला भी लिया। इसके बाद अक्टूबर, 1920 ई० तक नेहरू, बाबा रामचन्द्र और कुछ अन्य
नेताओं ‘अवध किसान सभा का गठन भी कर लिया गया। एक माह में ही अवध के ग्रामीण क्षेत्रों
में इस संगठन की 300 से भी अधिक शाखाएँ बन गयीं। जब 1921 ई० में असहयोग आन्दोलन
का प्रसार हुआ तो गाँवों के किसानों ने ताल्लुकेदारों और व्यापारियों के मकानों पर हमले शुरू
कर दिए, उनके द्वारा बाजारों में लूटपाट होने लगी और अनाज के गोदामों को लूट लिया गया।
3. बारदोली आन्दोलन और वल्लभभाई पटेल―1928 ई० में सरदार वल्लभभाई पटेल ने गुजरात
प्रान्त के बारदोली तालुका में किसानों के आन्दोलन का नेतृत्व किया। यह आन्दोलन भू-राजस्व में
वृद्धि के विरुद्ध था। इस आन्दोलन को ‘बारदोली सत्याग्रह’ के नाम से भी जाना जाता है। सरदार
पटेल के सक्षम नेतृत्व में अन्तत: इस आन्दोलन को सफलता प्राप्त हुई। बारदोली में हुए इस किसान
आन्दोलन का व्यापक रूप से प्रचार हुआ था और देश के कई भागों में इस आन्दोलन को काफी
सहानुभूति प्राप्त हुई।
4. आदिवासी किसानों की इस आन्दोलन में भागीदारी और उनका गुरिल्ला-आन्दोलन―देश के
आदिवासी क्षेत्रों में भी असहयोग आन्दोलन का प्रसार हो रहा था। उदाहरण के लिए, आन्ध्र प्रदेश
की गूडेम पहाड़ियों में 1921 ई० के दशक के शुरू में ही एक उग्र ‘गुरिल्ला आन्दोलन’ फैल गया।
अंग्रेज सरकार की अन्यायपूर्ण कार्रवाइयों के विरुद्ध पहाड़ों के लोगों की परेशानियाँ बढ़ गयीं और वे
बहुत अधिक गुस्सा हो गए। जब सरकार ने उन्हें सड़क-निर्माण हेतु जबरन बेगार करने के लिए
विवश किया तो उन्होंने सरकार के विरुद्ध बगावत कर दी। उनका नेतृत्व अल्लूरी सीताराम के द्वारा
किया जा रहा था। उनका यह दावा था कि भारत अहिंसा के रास्ते से नहीं, बल्कि बल-प्रयोग के द्वारा
ही स्वाधीन हो सकता है। राजू से प्रेरित आन्ध्र प्रदेश के गूडेम विद्रोहियों ने पुलिस थानों पर हमले
किए, ब्रिटिश अधिकारियों को मारने के प्रयास किए और स्वराज की प्राप्ति हेतु अपना गुरिल्ला युद्ध
चलाते रहे।
5. बागानों के मजदूरों की दयनीय दशा और उनका इस आन्दोलन के समय सरकार के प्रति
विरोध―1859 ई० ‘इनलैंड इमिग्रेशन ऐक्ट’ के माध्यम से बागानों में काम करने वाले मजदूरों को
बिना अनुमति प्राप्त किए बागानों से बाहर जाने की छूट नहीं थी और यह अनुमति उन्हें विरले ही
कभी प्राप्त हो पाती थी। जब उन्होंने असहयोग आन्दोलन के बारे में हजारों मजदूरों ने अपने
अधिकारियों की अवेहलना शुरू कर दी। इसके बाद वे बागानों को छोड़कर अपने घरों की ओर चल
दिए। उन्हें ऐसा लगा कि अब तो गांधी-राज आ रहा है और उनमें से हरेक को गाँव में जमीन मिल
जाएगी। दुर्भाग्य से वे अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच पाए। रेलवे और स्टीमरों की हड़ताल के कारण वे
बीच रास्ते में ही फंसे रह गए। इसके बाद उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और उनकी बुरी तरह पिटाई
की गयी।
प्रश्न 2. बारदोली सत्याग्रह और इसमें सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― 1928 ई० में सरदार वल्लभभाई पटेल ने गुजरात प्रान्त के बारदोली तालुका में किसानों के
आन्दोलन का नेतृत्व किया। यह एक प्रसिद्ध किसान-आन्दोलन था। इस आन्दोलन में भाग लेने वाले
किसान पूर्ण राजस्व को बढ़ाने के विरुद्ध थे। इस समय प्रान्तीय सरकार ने किसानों के लगान में लगभग
तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। इस प्रकार यह आन्दोलन भू-राजस्व में वृद्धि के विरुद्ध था। इस
आन्दोलन को ‘बारदोली सत्याग्रह’ के नाम से भी जाना जाता है।
अंग्रेज सरकार ने किसानों के इस आन्दोलन को कुचलने के लिए अत्यधिक क्रूरता से अपना दमन-चक्र
चलाया और किसानों पर अनेक अत्याचार किए। इसके उपरान्त भी सरदार पटेल के सक्षम नेतृत्व में अन्ततः
इस आन्दोलन को सफलता प्राप्त हुई। यह आन्दोलन सरदार पटेल के नेतृत्व के कारण ही सफल हुआ था,
इसलिए इस आन्दोलन के उपरान्त उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की गयी। बारदोली में हुए इस किसान
आन्दोलन का व्यापक रूप से प्रचार हुआ था और देश के कई भागों में इस आन्दोलन को काफी सहानुभूति
प्राप्त हुई। बारदोली सत्याग्रह आन्दोलन के सम्बन्ध में महात्मा गांधी ने कहा था कि इस प्रकार का प्रत्येक
संघर्ष, प्रत्येक प्रयास हमें स्वराज के करीब पहुंचा रहा है।
प्रश्न 3. भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का क्या महत्त्व है? संक्षेप में
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― 11 जनवरी, 1930 को महात्मा गांधी ने उस समय के वायसराय इरविन को एक पत्र लिखा,
जिसमें उन्होंने अपनी 11 माँगों का उल्लेख किया। वायसराय के नाम लिखा गया गांधीजी का पत्र एक
चेतावनी अथवा अल्टीमेटम के रूप में था। उधर गांधीजी का पत्र प्राप्त करने के उपरान्त भी लॉर्ड इरविन
झुकने के लिए तैयार नहीं हुए। इसका परिणाम यह हुआ कि महात्मा गांधी ने अनेक वॉलंटियर्स के साथ दांडी
यात्रा करके नमक-कानून को तोड़ा नमक-कानून का दांडी में उल्लंघन करने के साथ ही सविनय अवज्ञा
आन्दोलन की शुरुआत हो गयी। इस आन्दोलन में लोगों के द्वारा सरकार द्वारा बनाए कानूनों का उल्लंघन
किया जाने लगा। कई अवसरों पर जनता ने उग्र होकर अंग्रेज सरकार की पुलिस चौकियों, नगरपालिका की
इमारतों, अदालतों और रेलवे स्टेशनों पर हमले शुरू कर दिए।
इन सब उग्र कार्रवाइयों को देखकर अंग्रेज सरकार भयभीत हो गयी और उसने निर्मम तरीके से
आन्दोलनकारियों का दमन करना आरम्भ कर दिया। यहाँ तक कि शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों पर भी हमले किए
गए और महिलाओं और बच्चों तक की पिटाई की गयी। सारे देश में लगभग 1 लाख लोगों को गिरफ्तार कर
लिया गया। यह सब देखकर महात्मा गांधी ने एक बार पुनः सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापिस ले लिया।
इसके उपरान्त गांधीजी को यह आन्दोलन पुनः शुरू करना पड़ा। लगभग सालभर तक यह आन्दोलन चलता
रहा, परन्तु 1934 ई० तक आते-आते सविनय अवज्ञा आन्दोलन की गति धीमी पड़ने लगी। इसके उपरान्त
भी इस आन्दोलन का भारतीयों के स्वाधीनता आन्दोलन में अनेक दृष्टियों से महत्त्व
जिसका उल्लेख
निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है―
1. देश के लोग अंगेजों के विरुद्ध एकजुट हुए―सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान अंग्रेज सरकार
के द्वारा कई ऐसे कार्य किए गए, जिनके परिणामस्वरूप देश के लोगों और नेताओं का सरकार पर से
विश्वास उठ गया। इसी कारण वे ब्रिटिश सरकार के पूरी तरह से विरुद्ध हो गए और अंग्रेजों के
विरुद्ध संघर्ष करने के लिए एकजुट होने लगे।
2. क्रांतिकारियों की उग्र कार्यवाहियाँ―जिस समय भारत में सविनय आन्दोलन चल रहा था, उस
समय भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन भी फिर से शुरू हो गया था। देश के कई भागों में क्रांतिकारी
अपनी गुप्त बैठकें कर रहे थे और अंग्रेजों के विरुद्ध हिंसक कार्यवाहियाँ कर रहे थे। इसी दौरान
भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त जैसे महान देशभक्त क्रांतिकारी नेताओं ने दिल्ली में एसेम्बली के
दौरान दो बम फेंके थे।
3. इस आन्दोलन में प्राप्त अनुभव भावी आन्दोलनों में सहायक हुए―सविनय अवज्ञा आन्दोलन के
समय भारतीयों को अंग्रेज सरकार द्वारा अनेक प्रकार की कठोर एवं निर्मम यातनाओं को सहन
करना पड़ा। फिर भी इस संघर्ष से उन्हें जो अनुभव प्राप्त हुआ, वह आगे चलकर अनेक दृष्टियों से
महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। भावी स्वाधीनता आन्दोलमों में इस अनुभव ने उनका मार्गदर्शन किया और
यह भली-भाँति समझा दिया कि अंग्रेजों के विरुद्ध किस प्रकार सफलता प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न 4. महात्मा गांधी की नमक-यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर― 31 जनवरी, 1930 को गांधी जी ने वायसराय इरविन को एक खत लिखा। इस खत में उन्होंने
11 माँगों का उल्लेख किया था। इन मांगों के जरिए वे समाज के सभी वर्गों को जोड़ना चाहते थे। इनमें सबसे
महत्त्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने के बारे में थी। नमक का अमीर-गरीब सभी इस्तेमाल करते थे।
यह भोजन का एक अभिन्न हिस्सा था। इसलिए नमक पर कर और उसके उत्पादन पर सरकारी इजारेदारी
को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार का सबसे दमनात्मक पहलू बताया था।
महात्मा गांधी का ये पत्र चेतावनी की तरह था। उन्होंने लिखा था कि यदि 11 मार्च तक इन मांगों को नहीं
माना गया तो कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर देगी। इरविन झुकने को तैयार नहीं थे। महात्मा गांधी
ने अपने 78 विश्वस्त वॉलंटियरों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी। यह यात्रा साबरमती में गांधी जी के
आश्रम से 240 किलोमीटर दूर दांडी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी। गांधी जी की
टोली ने 24 दिन तक हर रोज लगभग 10 मील का सफर तय किया। गांधी जी जहाँ भी रुकते हजारों लोग
उन्हें सुनने आते। इन सभाओं में गांधी जी ने स्वराज का अर्थ स्पष्ट किया और आह्वान किया कि लोग
शांतिपूर्वक अंग्रेजों की अवज्ञा करें। 6 अप्रैल को वे दांडी पहुंचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालकर नमक
बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था।
हजारों लोगों ने नमक कानून तोड़ा और सरकारी नमक कारखाने के सामने प्रदर्शन किए। आंदोलन फैला तो
विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया जाने लगा। शराब की दुकानों की पिकेटिंग होने लगी। किसानों ने लगान
और चौकीदारी कर चुकाने से इनकार कर दिया। गाँवों में तैनात कर्मचारी इस्तीफे देने लगे।
इन घटनाओं से चिंतित औपनिवेशिक सरकार कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करने लगी। सरकार ने दमन चक्र
चलाया तो गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया।
प्रश्न 5. सविनय अवज्ञा आंदोलन में सम्मिलित सामाजिक समूह एवं वर्ग कौन-से थे? उन्होंने इस
आंदोलन में क्यों भाग लिया?
उत्तर― सविनय अवज्ञा आंदोलन में निम्नलिखित सामाजिक समूहों एवं वर्गों ने हिस्सा लिया-
संपन्न किसान―गाँवों में व्यवसायी वर्ग की तरह संपन्न किसानों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का पूर्णरूपेन
समर्थन किया। उन्होंने अपने समुदायों को एकजुट किया और कई बार अनिच्छुक सदस्यों को बहिष्कार के
लिए मजबूर किया। उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ लड़ाई थी। लेकिन जब 1931 में
लगानों के घटे बिना आंदोलन वापस ले लिया गया तो उन्हें बड़ी निराशा हुई। गरीब किसान केवल लगान में
ही कमी नहीं चाहते थे, वे चाहते थे कि उन्हें जमींदारों को जो भाड़ा चुकाना था उसे माफ कर दिया जाए।
इसके लिए उन्होंने कई रेडिकल आंदोलनों में हिस्सा लिया, जिनका नेतृत्व अक्सर समाजवादियों और
कम्युनिस्टों के हाथों में होता था।
व्यवसायी वर्ग―व्यवसायी वर्ग ने अपने कारोबार को फैलाने के लिए ऐसी औपनिवेशिक नीतियों का
विरोध किया जिनके कारण उनकी व्यावसायिक गतिविधियों में रुकावट आती थी। वे विदेशी वस्तुओं के
आयात से सुरक्षा चाहते थे। इसके लिए इन्होंने पहले सविनय अवज्ञा आंदोलन का समर्थन किया।
मजदूरवर्ग―जैसे-जैसे उद्योगपति कांग्रेस के निकट आने लगे मजदूर कांग्रेस से दूर होते गए। फिर भी कुछ
मजदूरों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार जैसे कुछ
गांधीवादी विचारों को कम वेतन व खराब कार्य स्थितियों के खिलाफ अपनी लड़ाई से जोड़ लिया था। 1930
में रेलवे कामगारों की और 1932 में गोदी कामगारों की हड़ताल हुई। 1930 में छोटानागपुर के टीन खानों के
हजारों मजदूरों ने गांधी टोपी पहनकर रैलियों और बहिष्कार अभियानों में हिस्सा लिया।
महिलाएँ―सविनय अवज्ञा आंदोलन में औरतों ने बड़े पैमाने पर भाग लिया। गांधी जी ने नमक सत्याग्रह के
दौरान हजारों औरतें उनकी बात सुनने के लिए घर से बाहर आ जाती थीं। उन्होंने जुलूसों में हिस्सा लिया,
नमक बनाया, विदेशी कपड़ों की होली जलाई। बहुत सारी महिलाएँ जेल भी गईं। गांधी जी ने आह्वान के बाद
औरतों ने बड़ी संख्या में इस आंदोलन में भाग लिया।
प्रश्न 6. गांधी जी के अनुसार, ‘सत्याग्रह के विचार को स्पष्ट करते हुए गांधी जी द्वारा संचालित
कुछ सत्याग्रह आन्दोलनों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर― सक्रिय राजनीति में भाग लेने से पहले गांधी जी ने अपनी गोपालकृष्ण गोखले के कहने पर
‘भारत भ्रमण किया। इस दौरान उन्होंने कई स्थानों पर सत्याग्रह आंदोलन चलाए, जिनमें प्रमुख हैं―
1. चंपारन सत्याग्रह―1916 ई० में उन्होंने बिहार के चंपारन क्षेत्र का दौरा किया और वहाँ के
किसानों को दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ सत्याग्रह करने के लिए प्रेरित किया।
2. गुजरात सत्याग्रह―1917 ई० में गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह
किया क्योंकि फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण किसान लगान नहीं चुका पा
रहे थे जबकि सरकार उनसे जबरन लगान वसूल कर रही थी।
3. अहमदाबाद सत्याग्रह―1918 ई० में अहमदाबाद के सूती कपड़ा कारखानों में कार्य करने वाले
मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन किया।
उपरोक्त आंदोलनों में उन्हें सफलता भी मिली जिस कारण आम आदमी में उनकी अलग पहचान
स्थापित हुई।
प्रश्न 7. खिलाफत और असहयोग आन्दोलन शुरू करने के पीछे कौन-सी परिस्थितियाँ थीं? संक्षेप
में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―खिलाफत और असहयोग आन्दोलन की शुरुआत के पीछे निम्न परिस्थितियाँ थीं―
1. पहले विश्वयुद्ध में ऑटोमन तुर्की की हार हो चुकी थी।
2. इस आशय की अफवाहें फैली हुई थीं कि इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक नेता (खलीफा)
ऑटोमन सम्राट पर एक बहुत सख्त शांति संधि थोपी जाएगी।
3. खलीफा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च, 1919 में बंबई में एक खिलाफत समिति
का गठन किया गया था।
4. मोहम्मद अली और शौकत अली बंधुओं के साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर
संयुक्त जन कार्यवाई की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू कर दी थी।
5. सितंबर, 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भी दूसरे नेताओं को इस बात
पर मना लिया कि खिलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन
शुरू किया जाना चाहिए।
6. लोगों को सरकार द्वारा दी गई पदवियाँ लौटा देनी चाहिए और सरकारी नौकरियों, सेना, पुलिस,
अदालतों, विधायी परिषदों, स्कूलों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए असहयोग
आन्दोलन शुरू हुआ।
7. भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था। अगर भारत के लोग अपना
सहयोग वापस ले लें तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन समाप्त हो जाएगा और स्वराज की
स्थापना हो जाएगी। अत: जलियाँवाला बाग की घटना के बाद असहयोग आन्दोलन शुरू करने की
जरूरत हुई।
8. भेदभावपूर्ण नीति को समाप्त करने के लिए असहयोग आन्दोलन की शुरूआत हुई।
9. भारत की आम जनता अंग्रेजों के अत्याचारों से दुःखी हो चुकी थी इसलिए उसने बढ़-चढ़कर
असहयोग आन्दोलन में भाग लिया।
प्रश्न 8. भारत के गाँवों में असहयोग आन्दोलन का क्या प्रभाव हुआ? संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर― धीरे-धीरे शहरों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी असहयोग आन्दोलन फैलता गया। यहाँ तक कि
प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त किसानों और आदिवासियों के जो आन्दोलन हो रहे थे, वे भी असहयोग
आन्दोलन में ही समाहित हो गए। संक्षेप में ग्रामीण क्षेत्रों में हुए किसानों और आदिवासियों के विद्रोह को
निम्नलिखित विवरण के आधार पर समझा जा सकता है―
अवध में किसान आन्दोलन का बाबा रामचन्द्र द्वारा नेतृत्व
अवध में बाबा रामचन्द्र के नेतृत्व में किसानों का आन्दोलन हो रहा था। बाबा रामचन्द्र किसानों के आन्दोलन
का नेतृत्व करने से पूर्व फिजी में एक ‘गिरमिटिया मजदूर’ के रूप में काम कर चुके थे। अवध में उनका
आन्दोलन ताल्लुकेदारों और जमींदारों के विरुद्ध था। ये ताल्लुकेदार और जमींदार अवध के किसानों से
बहुत अधिक लगान और कई प्रकार के कर वसूल कर रहे थे। इसके अतिरिक्त किसानों को उनकी बेगार
करनी पड़ती थी। यही नहीं पट्टेदारों के रूप में उनके पट्टे भी निश्चित नहीं होते थे। उन्हें बार-बार पट्टे की
जमीन से हटा दिया जाता था, जिससे जमीन पर उनका स्थायी रूप से और कानूनन अधिकार न हो सके। इस
प्रकार के अन्यायों के विरोध में अवध के किसानों की मांग थी कि उनका लगान समाप्त कर दिया जाए,
उनसे बेगार लेना बन्द किया जाए और जो जमींदार दमन का मार्ग अपनाते हैं, उनका सामाजिक रूप से
बहिष्कार किया जाए। विरोधस्वरूप किसानों ने जमींदारों को सुविधाओं से वंचित करने के लिए अपनी
पंचायतों में ‘नाई-धोबी बन्द’ का फैसला भी लिया।
किसानों के इसी विरोध और बहिष्कार के बीच जून, 1920 ई० में पं० जवाहरलाल नेहरू ने अवध के गाँवों का
दौरा किया, गाँव के निवासियों से बातचीत की और उनके कष्टों को समझने का प्रयास किया। इसके बाद
अक्टूबर, 1920 ई० तक नेहरू, बाबा रामचन्द्र और कुछ अन्य नेताओं द्वारा ‘अवध किसान सभा’ का गठन भी
कर लिया गया। एक माह में ही अवध के ग्रामीण क्षेत्रों में इस संगठन की 300 से भी अधिक शाखाएँ बन गयीं।
1921 ई० में असहयोग आन्दोलन के शुरू होने पर किसानों की उग्र कार्रवाई और कांग्रेस
की इस सम्बन्ध में प्रतिक्रिया
अगले वर्ष जब असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ तो कांग्रेस ने अवध के किसान आन्दोलन को भी असहयोग
आन्दोलन में शामिल करने का प्रयास किया, परन्तु किसानों के आन्दोलन का रूप और उसके तरीके कुछ इस
प्रकार के हो गए थे, जिनसे कांग्रेस का नेतृत्व प्रसन्न नहीं था। जब 1921 ई० में असहयोग आन्दोलन का प्रसार
हुआ तो गाँवों के किसानों ने ताल्लुकेदारों और व्यापारियों के मकानों पर हमले शुरू कर दिए, उनके द्वारा
बाजारों में लूटपाट होने लगी और अनाज के गोदामों को लूट लिया गया। इस स्थिति में बहुत-से स्थानीय नेताओं
ने किसानों को समझाने का प्रयास किया कि गांधीजी के द्वारा यह ऐलान कर दिया गया है कि अब किसी को भी
लगान नहीं भरना पड़ेगा और जमीन गरीबों में बाँट दी जाएगी। फिर भी महात्मा गांधी का नाम लेकर लोग अपनी
सारी हिंसक कार्रवाइयों और आकांक्षाओं को उचित सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे।
आदिवासी किसानों का विरोध और गुरिल्ला आन्दोलन
देश के आदिवासी क्षेत्रों में भी असहयोग आन्दोलन का प्रसार हो रहा था, फिर भी आदिवासी किसानों ने
गांधीजी के संदेश और स्वराज शब्द का कुछ और ही अर्थ समझा। उदाहरण के लिए, आन्ध्र प्रदेश की गूडेम
पहाड़ियों में 1921 ई० के दशक के शुरू में ही एक उग्र ‘गुरिल्ला आन्दोलन’ फैल गया। इस प्रकार के
आन्दोलन अथवा संघर्ष कांग्रेस की विचारधारा के विरुद्ध थे। वह ऐसे संघर्षों को कभी भी स्वीकार नहीं कर
सकती थी। अन्य वन-क्षेत्रों के समान यहाँ भी अंग्रेज सरकार ने बड़े-बड़े जंगलों में प्रवेश करने की पाबन्दी
लगा दी थी। इन जंगलों में आदिवासी लोग न तो अपने मवेशियों को चरा सकते थे और न ही जलाने के लिए
लकड़ी या फलों को ले सकते थे।
प्रश्न 9. भारतीयों में राष्ट्रवादी भावना के विकास में लोक-साहित्य, ध्वज और इतिहास की
पुनर्व्याख्या का क्या योगदान था? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― मुख्य सांस्कृतिक प्रकिया―
1. सामूहिक अपनेपन की भावना से अभिप्राय इस संस्कृति से है जिसमें किसी एक को अभीष्ट मानकर
सभी भेदभावों से ऊपर उठकर उसके प्रति समर्पित रहने से है। भारत में बीसवीं सदी के विकास के
साथ भारत की पहचान भी भारत माता की छवि का रूप लेने लगी। यह तस्वीर पहली बार बंकिमचंद्र
चट्टोपाध्याय ने बनाई थी।
2. स्वदेशी आंदोलन की प्रेरणा से अबनींद्रनाथ टैगोर ने भारत माता की विख्यात छवि को चित्रित किया।
भारत माता की इस छवि को राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में माना गया।
भारतीय लोग-साहित्य―
1. राष्ट्रवाद का विचार भारतीय लोक कथाओं को पुनर्जीवित करने के आंदोलन से भी मजबूत हुआ।
उन्नीसवीं सदी के आखिर में राष्ट्रवादियों ने भाटों व चारणों द्वारा गाई-सुनाई जाने वाली लोक
कथाओं को दर्ज करना शुरू कर दिया।
2. उनका मानना था कि यही कहानियाँ हमारी उस परंपरागत संस्कृति की सही तसवीर पेश करती हैं जो
बाहरी ताकतों के प्रभाव से भ्रष्ट और दूषित हो चुकी हैं।
3. बंगाल में खुद रबीन्द्रनाथ टैगोर भी लोक-गाथा गीत, बाल गीत और मिथकों को इकट्ठा करने निकल
पड़े। उन्होंने लोक परंपराओं को पुनर्जीवित करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया।
4. मद्रास में नटेसा शास्त्री ने द फोकलोर्स ऑफ सदर्न इंडिया के नाम से तमिल लोक कथाओं का
विशाल संकलन चार खंडों में प्रकाशित किया।
चिह्न और प्रतीक : (झंडा)―
1. बंगाल में स्वदेशी आंदोलन के समय एक तिरंगा झंडा (हरा, पीला, लाल) तैयार किया गया।
2. इसमें ब्रिटिश भारत के आठ प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते कमल के आठ फूल और हिन्दुओं व
मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता एक अर्धचंद्र दर्शाया गया था।
3. 1921 तक गांधीजी ने भी स्वराज का झंडा तैयार कर लिया था। यह भी तिरंगा (सफेद, हरा और
लाल) था।
4. इसके मध्य में गांधीवादी प्रतीक चरखे को जगह दी गई थी जो स्वावलंबन का प्रतीक था। जुलूसों में
यह झंडा थामे चलना शासन के प्रति अवज्ञा का संकेत थे।
इतिहास की पुनर्व्याख्याः
अंग्रेजों की दृष्टि में भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे जो अपना शासन स्वयं नहीं सँभाल सकते।
इसके जवाब में भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे। उन्होंने उस
गौरवमयी प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू कर दिया जब कला और वास्तुशिल्प, विज्ञान और गणित, धर्म
और संस्कृति, कानून और दर्शन, हस्तकला और व्यापार फल-फूल रहे थे।
प्रश्न 10.भारत में अपनेपन का भाव विकसित करके राष्ट्रवाद की भावना के विकास में किन-किन
कारकों का योगदान था?
उत्तर― राष्ट्रवाद की भावना तब पनपती है जब लोग ये महसूस करने लगते हैं कि वे एक ही राष्ट्र के
अंग हैं। तब वे एक-दूसरे को एकता के सूत्र में बाँधने वाली कोई साझा बात ढूँढ लेते हैं। सामूहिक अपनेपन
की यह भावना आंशिक रूप से संयुक्त संघर्षों से पैदा हुई थी। इतिहास व साहित्य, लोक-कथाएँ व गीत,
चित्र व प्रतीक सभी ने राष्ट्रवाद को साकार करने में अपना योगदान दिया था।
1. 20वीं सदी में राष्ट्रवाद के विकास के साथ भारत की पहचान भी भारत माता की छवि का रूप लेने
लगी। यह तस्वीर पहली बार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने बनाई थी। 1870 के दशक में उन्होंने
मातृभूमि की स्तुति के रूप में ‘वंदे-मातरम्’ गीत लिखा था। बाद में इसे उन्होंने अपने उपन्यास
‘आनंदमठ’ में शामिल कर लिया। यह गीत बंगाल में स्वदेशी आंदोलन में खूब गाया गया। स्वदेशी
आंदोलन की प्रेरणा से अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता की विख्यात छवि को चित्रित किया। इस
पेंटिंग में भारत माता को एक संन्यासिनी के रूप में दर्शाया गया है। इस मातृ छवि के प्रति श्रद्धा को
राष्ट्रवाद में आस्था का प्रतीक माना जाने लगा।
2. राष्ट्रवाद का विचार भारतीय लोक कथाओं को पुनर्जीवित करने के आंदोलन से भी मजबूत हुआ।
19वीं सदी के अंत में राष्ट्रवादियों ने भाटों व चारणों द्वारा गाई-सुनाई जाने वाली लोक कथाओं को दर्ज
करना शुरू कर दिया। उनका मानना था कि यही कहानियाँ हमारी परंपरागत संस्कृति की तस्वीर पेश
करती हैं जो बाहरी ताकतों के प्रभाव से भ्रष्ट और दूषित हो चुकी हैं। अपनी राष्ट्रीय पहचान को ढूँढ़ने
और अपने अतीत में गौरव का भाव पैदा करने के लिए लोक परंपरा को बचाकर रखना जरूरी था।
3. राष्ट्रवादी नेता लोगों में राष्ट्रवाद की भावना भरने के लिए चिह्ननों और प्रतीकों के बारे में जागरूक
होते गए। 1921 तक गांधी जी ने भी स्वराज का झंडा तैयार कर लिया था। यह तिरंगा था (सफेद,
हरा और लाल)। इसके मध्य में गांधीवाद प्रतीक चरखे को जगह दी गई तो आत्मसहायता का प्रतीक
था। जुलूसों में यह झंडा थामे चलना शासन के प्रति अवज्ञा का संकेत था।
4. इतिहास की पुर्नव्याख्या राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने का एक और साधन था। अंग्रेजों की नजर में
भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे जो अपना शासन खुद नहीं सँभाल सकते। इसके जवाब में
भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे। उन्होंने इस
गौरवमयी प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू किया जब कला और वास्तुशिल्प, विज्ञान और गणित,
धर्म और संस्कृति, कानून और दर्शन, हस्तकला और व्यापार फल-फूल रहे थे। इस राष्ट्रवादी
इतिहास में पाठकों को अतीत में भारत की महानता व उपलब्धियों पर गर्व करने और ब्रिटिश शासन
के तहत दुर्दशा से मुक्ति के लिए संघर्ष का मार्ग अपनाने का आह्वान किया जाता था।
इस प्रकार राष्ट्रवाद की भावना फैलाने में विभिन्न तत्त्वों ने योगदान दिया।
प्रश्न 11.भारत छोड़ो आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर― ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है―
क्रिप्स मिशन की असफलता एवं द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रभावों के फलस्वरूप भारत के लोगों में व्यापक रूप
से असंतोष का भाव उत्पन्न हुआ। इसी कारण महात्मा गांधी ने एक आन्दोलन शुरू किया, जिसमें उन्होंने
अंग्रेजों को पूरी तरह से भारत को छोड़ देने पर बल दिया। 14 जुलाई, 1942 ई० को वर्धा में कांग्रेस
कार्यसमिति ने अपनी कार्यकारिणी में अपना ऐतिहासिक ‘भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव
में यह माँग की गयी कि अंग्रेज भारतीयों को सत्ता का हस्तान्तरण कर दें और तत्काल भारत छोड़ दें।8
अगस्त, 1942 ई० को बम्बई (मुम्बई) में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया
और पूरे देश में देशवासियों से एक व्यापक स्तर पर अहिंसक जन-संघर्ष का आह्वान किया। इसी अवसर पर
गांधीजी ने अपने भाषण में ‘करो या मरो’ का नारा दिया। ‘भारत छोड़ो के इस आह्वान ने देश के अधिकांश
भागों में अपने राज्यों की शासन-व्यवस्था को ठप्प कर दिया और लोग स्वयं ही भारत छोड़ो आन्दोलन में
कूद पड़े। स्थान-स्थान पर लोगों ने हड़ताले की, राष्ट्रीय गीतों और नारों के साथ प्रदर्शन किए तथा जुलूस
निकाले। भारत छोड़ो आन्दोलन वस्तुत: एक ऐसा जन-आन्दोलन था, जिसमें छात्र, मजदूर और किसान
जैसे हजारों सामान्य लोगों ने भाग लिया। इस आन्दोलन में नेताओं ने भी अपनी सक्रिय भागीदारी दिखाई।
जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली और राममनोहर लोहिया जैसे नेताओं ने इस आन्दोलन में पूरे
उत्साह से भाग लिया। देश की अनेक महिलाओं; जैसे-बंगाल की मातांगिनी हाजरा, असम की कनकलता,
बरुआ और उड़ीसा (ओडिशा) की रमा देवी ने भी भारत छोड़ो आन्दोलन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका
निभाई। इस आन्दोलन में अंग्रेज सरकार ने आन्दोलनकारियों पर बहुत अधिक बल प्रयोग किया। इसके
उपरान्त भी अंग्रेज सरकार को इस आन्दोलन को दबाने में एक वर्ष से भी अधिक का समय लग गया।