UP Board Class 10 Social Science History | यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

By | April 16, 2021

UP Board Class 10 Social Science History | यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

UP Board Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

इकाई-1:भारत और समकालीन विश्व-2              इतिहास
 
                          खण्ड-I : घटनाएँ एवं प्रक्रियाएँ
 
अध्याय 1.                         यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
 
                          अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
                (क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
 
संक्षेप में लिखें
प्रश्न 1. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-
(क) ज्युसेपे मेत्सिनी
(ख) काउंट कैमिलोद कादूर
(ग) यूनानी स्वतन्त्रता युद्ध
(घ) फ्रैंकफर्ट संसद
(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका
उत्तर― (क)ज्युसेपे मेत्सिनी―ज्युसेपे मेत्सिनी एक युवा क्रांतिकारी था। उसका जन्म 1807 ई० में
जेनोआ में हुआ था। वह कार्बोनारी के गुप्त संगठन का सदस्य बन गया था। चौबीस वर्ष की आयु में लिगुरिया
में क्रांति कराने के कारण उसे बहिष्कृत कर दिया गया था। इसके बाद ही दो प्रमुख भूमिगत संगठनों का
गठन किया। इनमें पहला था―’यंग-इटली’ और दूसरा था―’यंग-यूरोप’। ‘यंग-यूरोप’ के सदस्य पोलैंड,
फ्रांस, इटली और जर्मन राज्य में समान विचार रखने वाले युवा सदस्य थे।
मेत्सिनी का विचार एवं विश्वास था कि ईश्वर की इच्छानुसार ‘राष्ट्र’ ही मनुष्यों की एक प्राकृतिक इकाई है।
इसलिए इटली के छोटे राज्यों और प्रदेशों को जोड़कर इटली का एकीकरण करना अत्यन्त आवश्यक है।
अपने इस विचार के आधार पर ही उसने इटली के एकीकरण हेतु प्रयास किए। अपने प्रयासों से अन्तत: वह
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुआ और उसने राजतन्त्रीय शक्तियों व रूढ़िवादी शक्तियों को हरा
दिया। मैटरनिख ने मेत्सिनी को ‘हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन’ बताया। उसके
प्रयासों को देखकर ही जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैण्ड और पोलैण्ड में भी मेत्सिनी के अनुरूप क्रांतिकारियों ने
अपने देशों में राष्ट्र-राज्यों और एकीकरण के प्रयास किए।
 
(ख) काउंट कैमिलो द कावूर―कावूर सार्डीनिया-पीडमॉण्ट राज्य के राजा विक्टर इमेनुएल द्वितीय का
प्रमुख मंत्री था। कावूर ने इटली के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने इतालवी एकीकरण के
आन्दोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया, यद्यपि वह न तो एक क्रांतिकारी था और न ही उसकी जनतन्त्र में
कोई आस्था थी। इतालवी अभिजात वर्ग के समस्त अमीर और शिक्षित सदस्यों की तरह वह इतालवी भाषा से
कहीं अधिक फ्रेंच भाषा बोलता फ्रांस से सार्जीनिया पीडमॉण्ट की एक कूटनीतिक संधि हुई थी, जिसमें
कावूर का ही हाथ था। 1859 ई० में वह ऑस्ट्रिया को हराने में भी सफल रहा था।
 
(ग) यूनानी स्वतन्त्रता युद्ध―1830 से 1848 के मध्य यूनान के स्वतन्त्रता संग्राम ने भी यूरोप के शिक्षित
वर्ग को प्रभावित किया और उसमें राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया। यूनानियों का आजादी का यह संघर्ष
1821 ई० से ही आरम्भ हो गया था। पन्द्रहवीं शताब्दी से यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा बना हुआ था।
यूनानियों के आजादी के इस संघर्ष में उन्हें पश्चिमी यूरोप में निर्वासन में रह रहे यूनानियों का भी समर्थन
प्राप्त हुआ। ये लोग प्राचीन यूनानी संस्क्रति (Hellenism) में विश्वास रखते थे। इस समय यूरोप के कवियों
और कलाकारों ने यूनान को ‘यूरोपीय सभ्यता का पालना’ बताकर उसकी प्रशंसा की और इस मुस्लिम
साम्राज्य के लिए जनमत जुटाने में भी अपना सहयोग दिया। सुप्रसिद्ध अंग्रेज कवि लॉर्ड बायरन ने यूनान के
लिए धन एकत्रित किया और स्वयं भी इस युद्ध में शामिल हुए, जहाँ बुखार होने के कारण 1824 ई० में
उनकी मृत्यु हो गयी। यूनानियों के स्वतन्त्रता संग्राम के मध्य अन्ततः 1832 ई० की कुस्तुनतुनिया की संधि के
बाद यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
 
(घ) फ्रैंकफर्ट संसद―यूरोप के देशों―फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैंड और आस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य के
उदारवादी मध्यवर्गों द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण हेतु निरन्तर क्रांतिकारी प्रयास किए जा रहे थे। इन दशों में जर्मनी
में सर्व-नेशनल एसेंबली की जीत हुई। जर्मन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में राजनीतिक संगठनों ने मिलकर फ्रैंकफर्ट
शहर में हुए मतदान में नेशनल एसेंबली पक्ष में मतदान किया। सर्व-नेशनल एसेंबली की जीत के उपरान्त
सेंट पॉल चर्च में 18 मई, 1848 ई० को फ्रैंकफर्ट संसद में जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों ने अपना स्थान
ग्रहण किया। उनके द्वारा एक जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया। इस नए राष्ट्र-राज्य
की अध्यक्षता एक ऐसे राजा को सौंपने का निश्चय किया गया, जिसे संसद के अधीन रहना था। इसके लिए
सेंट पॉल चर्च में आयोजित फ्रैंकफर्ट संसद की अध्यक्षता हेतु प्रशा के राजा फ्रेडरीख विल्हेम’ को न्योता
दिया गया और उन्हें ताज पहनाने की पेशकश की गयी, परन्तु उसके द्वारा यह पेशकश अस्वीकार कर दी
गयी। इससे कुलीन वर्ग और सेना का विरोध बढ़ गया, सेना को बुलाया गया और एसेंबली भंग कर दी गयी।
 
(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका―राष्ट्रवादी संघर्षों में बड़ी संख्या में महिलाओं ने
सक्रिय रूप से भाग लिया था। उनके द्वारा अपने राजनीतिक संगठनों की स्थापना की गयी तथा अपने
समाचार-पत्र प्रकाशित किए गए। इसके अतिरिक्त उन्होंने निरन्तर सभी राजनीतिक बैठकों और प्रदर्शनों में
भी पूरे उत्साह से भाग लिया। इसके उपरान्त भी यूरोप के फ्रांस आदि अनेक देशों में महिलाओं को मत देने
का अधिकार नहीं दिया गया था। यही नहीं उन्हें सभी राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया था। केवल
कुछ समय के लिए जैकोबिन शासन के समय सभी वयस्क पुरुषों को मत देने का अधिकार अवश्य दिया
गया था। नेपोलियन के शासनकाल में पुनः मताधिकार को सीमित कर दिया गया। उसने महिलाओं को
अवयस्क का दर्जा देते हुए उन्हें पिताओं और पतियों के अधीन कर दिया। इसके विरुद्ध उन्नीसवीं शताब्दी
तथा बीसवीं शताब्दी के आरम्भ के वर्षों में सम्पत्तिविहीन पुरुषों और महिलाओं ने समान राजनीतिक
अधिकारों की माँग की और इसके लिए आन्दोलन किए। इसी प्रकार जब जर्मनी में एसेंबली का चुनाव हुआ
तो वहाँ भी उन्हें मताधिकार से वंचित रखा गया। फ्रैंकफर्ट संसद में भी उन्हें केवल प्रेक्षकों की हैसियत से
दर्शक-दीर्घा में ही बैठाया गया।
 
प्रश्न 2. फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों
ने क्या कदम उठाए?
उत्तर― राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत बनाने के लिए फ्रांस के क्रांतिकारियों ने क्रांति से पूर्व और
क्रांति के बाद भी राष्ट्रीय भावना के विकास हेतु इस प्रकार के ऐसे अनेक कदम उठाए, जिनके आधार पर
फ्रांसीसी लोगों में एक ‘सामूहिक पहचान’ की भावना उत्पन्न हो सकती थी। इस प्रकार के कुछ कदम इस
प्रकार थे―
1. ‘पितृभूमि’ (la patrie) और ‘नागरिक’ (le citoyen) जैसे विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के
विचार पर बल दिया, जिसे एक संविधान के अन्तर्गत समान अधिकार प्राप्त थे।
2. पहले के राष्ट्रध्वज के स्थान पर एक नया फ्रांसीसी झंडा चुना गया।
3. स्टेट जनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा और उसका नाम
बदलकर ‘नेशनल एसेम्बली’ कर दिया गया।
4. नई स्तुतियाँ रची गयीं, शपथें ली गईं, शहीदों का गुणगान हुआ और यह सब राष्ट्र के नाम पर
हुआ।
5. एक केन्द्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गयी, जिसमें अपने भू-भाग पर रहने वाले सभी
नागरिकों के लिए समान कानून बनाए।
6. आन्तरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार तथा नापने की एकसमान
व्यवस्था लागू की गयी।
7. क्षेत्रीय बोलियों को हतोत्साहित किया गया और पेरिस में फ्रेंच भाषा जैसे बोली और लिखी
जाती थी, वही राष्ट्र की साझा भाषा बन गयी।
 
प्रश्न 3. मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें चित्रित किया गया, उसका क्या महत्त्व
था?
उत्तर― फ्रांसीसी क्रांति के समय वहाँ के कलाकारों ने स्वतन्त्रता, न्याय, गणतन्त्र आदि का
मानवीयकरण करके जिन नारी-प्रतीकों को माध्यम बनाया, उनमें ‘मारीआन’ तथा ‘जर्मेनिया’ विशेष रूप से
प्रसिद्ध हैं। इनका संक्षिप्त परिचय एवं महत्त्व निम्नलिखित है―
● मारीआन―‘मारीआन’ एक लोकप्रिय ईसाई नाम है। फ्रांस ने अपने स्वतन्त्रता के नारी-प्रतीक को यही
नाम दिया। यह छवि जन-राष्ट्र के विचार का प्रतीक थी। इसके चिह्न-स्वतन्त्रता व गणतन्त्र के प्रतीक
लाल टोपी, तिरंगा और कलगी थे। मारीआन की प्रतिमों; सार्वजनिक चौराहों और फ्रांस के अन्य
महत्त्वपूर्ण स्थानों पर लगाई गयीं, जिससे जनता को राष्ट्रीय एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे
और वह उससे अपना तादात्म्य अथवा आन्तरिक सम्बन्ध स्थापित कर सके। फ्रांस में मारीआन की यह
छवि; वहाँ के डाक-टिकटों और सिक्कों पर भी अंकित की गयी थी।
 
जर्मेनिया―’जर्मेनिया’; जर्मन राष्ट्र का नारी-रूपक थी। वह बलूत के वृक्ष की पत्तियों का मुकुट पहने
हुए दर्शायी गयी है। जर्मनी में बलूत के वृक्ष को वीरता का प्रतीक माना जाता है। जर्मेनिया ने अपने हाथ में
जो तलवार ली हुई है, उस पर यह लिखा हुआ है―”जर्मन तलवार जर्मन राइन की रक्षा करती है।” इस
प्रकार जर्मेनिया; जर्मनी में स्वतन्त्रता,न्याय और गणतन्त्र की प्रतीक बनकर उभरी एक नारी की छवि थी।
 
प्रश्न 4. जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।
उत्तर― 1848 ई० में जर्मन संघ के उदारवादी और मध्यवर्ग के राष्ट्रवादी फ्रैंकफर्ट संसद में मिले।
उनका उद्देश्य जर्मन महासंघ के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र-राज्य
बनाने का प्रयास करना था, परन्तु उनके इस प्रयास को राजशाही और सेना के द्वारा मिलकर विफल कर
दिया गया। इसके साथ ही नेशनल एसेम्बली को भी भंग कर दिया गया। नेशनल एसेम्बली भंग होने के बाद
जर्मनी में प्रशा के ऑटो वॉन बिस्मार्क द्वारा जर्मनी के एकीकरण का नेतृत्व सम्भाला गया। बिस्मार्क के नेतृत्व
में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से हुए युद्धों में प्रशा की जीत हुई और जर्मनी का एकीकरण पूरा हुआ।
इसके बाद 1871 ई० में वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट
घोषित किया गया। 18 जनवरी, 1871 ई० को वर्साय के महल के अत्यधिक ठंडे शीशमहल (हॉल ऑफ
मिरर्स) में जर्मन राज्यों के राजकुमारों, सेना के प्रतिनिधियों और प्रमुख मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क सहित
प्रवक्ता के महत्त्वपूर्ण मंत्रियों की एक बैठक हुई। इस सभा में प्रशा के काइजर विलियम प्रथम के नेतृत्व में नए
जर्मन साम्राज्य की घोषणा की गयी।
 
प्रश्न 5. अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन-व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने
क्या बदलाव किए?
उत्तर― नेपोलियन के नियंत्रण में जो विशाल क्षेत्र आया, वहाँ उसने अनेक सुधारों का आरम्भ किया।
यद्यपि उसके द्वारा फ्रांस में राजतन्त्र को पुन: वापिस लाया गया और इस प्रकार उसने वहाँ प्रजातन्त्र को
समाप्त कर दिया, परन्तु प्रशासनिक दृष्टि से उसने अनेक क्रांतिकारी और प्रशंसनीय कदम उठाए। उसने
1804 ई० में एक नागरिक संहिता’ बनाई, जिसे ‘नेपोलियन की संहिता’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके
आधार पर प्रशासनिक दृष्टि से अनेक उल्लेखनीय कार्य किए गए। इनका संक्षिप्त उल्लेख निम्नवत् है―
1. जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए।
2. कानून की दृष्टि से सभी की समानता का ध्यान रखा गया।
3. सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया गया।
4. डच गणतन्त्र, स्विट्जरलैंड, इटली और जर्मनी में प्रशासनिक विभाजन को सरल बनाया गया।
5. सामंती व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।
6. किसानों को भूदासत्व और जागीरदारी-शुल्कों से मुक्त कर दिया गया।
7. नगरों में कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रण को हटा दिया गया।
8. यातायात और संचार-सुविधाओं में सुधार किया गया।
 
चर्चा करें
प्रश्न 1. उदारवादियों की 1848 की क्रांति का क्या अर्थ लगाया जाता है? उदारवादियों ने किन
राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया?
उत्तर― उदारवादी राष्ट्रवाद अथवा उदारवादियों की 1848 ई० की क्रांति का अर्थ―यूरोप में 1848
ई० का वर्ष उदारवादियों की क्रांति का वर्ष कहलाता है। 1848 ई० में जब यूरोपीय देशों में किसान और
मजदूर विद्रोह कर रहे थे, तब वहाँ पढ़े-लिखे मध्य वर्गों की एक क्रांति भी हो रही थी। इस क्रांति से राजा को
गद्दी छोड़नी पड़ी थी और एक गणतंत्र की घोषणा की गई थी, जो सभी पुरुषों के सार्विक मताधिकार पर
आधारित थी।
उन्नीसवीं शताब्दी के शुरुआत में यूरोप में उदारवादी विचारधारा का विकास हुआ। उदारवाद और राष्ट्रीय
एकता पर आधारित विचारों में काफी समानता थी। ‘उदारवाद’ (liberalism) शब्द; लैटिन भाषा के
‘liber’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है―’आजाद’। यह विचारधारा स्वतन्त्रता और समान न्याय पर विशेष
बल देती थी।
 
                  उदारवादियों के राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचार
 
उदारवादियों ने जिन राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया, उनका संक्षिप्त
विवरण इस प्रकार है―
(क) उदारवादियों के राजनीतिक विचार
1. उदारवाद एक ऐसी सरकार पर बल देता था, जो सबकी सहमति से बनी हो।
 
2. वे संसद द्वारा संचालित एक संवैधानिक प्रतिनिधि सरकार के पक्षधर थे।
 
3. उदारवाद निरंकुश शासक और पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति करना चाहता था। यह
संविधान तथा संसदीय प्रतिनिधि सरकार का पक्षधर था।
 
4. यूरोप के अन्य भागों में, जहाँ अभी तक स्वतन्त्र राष्ट्र अस्तित्व में नहीं आए थे; जैसे-जर्मनी,
इटली, पोलैंड आदि वहाँ के उदारवादी मध्यम वर्गों ने संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय
एकीकरण की माँग से जोड़ दिया। उन्होंने बढ़ते जन-असन्तोष का लाभ उठाया और एक
राष्ट्र-राज्य के निर्माण की माँग को आगे बढ़ाया। उनका यह राष्ट्र-राज्य; संविधान, प्रेस की
स्वतन्त्रता और संगठन बनाने की आजादी जैसे संसदीय सिद्धान्तों पर आधारित था।
 
5. वे सम्पत्ति का सभी के लिए समान एवं अनुल्लंघनीय अधिकार के समर्थक थे। इस प्रकार वे
19वीं सदी के उदारवादी निजी सम्पत्ति के स्वामित्व की अनिवार्यता पर भी बल देते थे।
 
(ख) उदारवादियों के सामाजिक विचार
1. किसी राज्य के समस्त नागरिकों को सामाजिक समानता का अधिकार प्रदान करना
उदारवादियों की महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता थी।
2. वे महिलाओं को भी समान दर्जा देने और सभी क्षेत्रों में उनकी भागीदारी की माँग कर रहे थे।
3. उदारवादी मध्यम वर्ग की सभी क्षेत्रों में समान रूप से भागीदारी चाहते
4. वे कुलीन वर्ग को प्राथमिकता देने के स्थान पर सभी के साथ न्याय और समानता का व्यवहार
चाहते थे।
 
(ग) उदारवादियों के आर्थिक विचार
1. आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद; बाजारों की मुक्ति और वस्तुओं तथा पूँजी के आवागमन पर राज्य
द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को समाप्त करने के पक्ष में था।
2. उदारवाद एक ऐसे एकीकृत आर्थिक क्षेत्र के निर्माण के पक्ष में था, जहाँ वस्तुओं, लोगों और
पूँजी का आवागमन बाधारहित हो।
3. इस व्यवस्था ने समान नाप-तौल प्रणाली का भी समर्थन किया। यह एक ऐसे एकीकृत आर्थिक
क्षेत्र के निर्माण के पक्ष में था, जहाँ वस्तुओं, लोगों और पूँजी का आवागमन बाधारहित हो। इसी
आधार पर फ्रांस में क्रांति के बाद नेपोलियन ने अपने प्रशासनिक प्रयासों के अन्तर्गत 39 राज्यों
का एक महासंघ बनाया था। इसमें नाप-तौल की मैट्रिक प्रणाली शुरू की गई।
उदारवादियों के द्वारा इस प्रकार के आर्थिक विचारों को बढ़ावा देने के परिणामस्वरूप प्रशा की पहल
पर 1834 ई० में यूरोप में ‘जॉलवेराइन’ नामक शुल्क-संघ का गठन किया गया, जिसने सभी
शुल्क-अवरोधों को समाप्त कर दिया तथा मुद्राओं की संख्या 30 से घटाकर 2 कर दी। ‘जॉलवेराइन’
शुल्क-संघ को कहा जाता था। इसके अतिरिक्त नए वाणिज्यिक वर्गों और प्रंशा की पहल पर भी आर्थिक
व्यवस्था में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए। उदारवादियों के आर्थिक राष्ट्रवाद पर आधारित इन विचारों
और परिवर्तनों ने भी राष्ट्रवादी भावनाओं को मजबूत बनाया।
 
प्रश्न 2. यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण दें।
उत्तर― राष्ट्रवाद के विकास में केवल युद्धों और क्षेत्रीय विस्तार से ही सफलता प्राप्त नहीं हुई, बल्कि
संस्कृति ने भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। भाषा, कला, काव्य, कहानियों, लोक-परम्पराओं
और संगीत ने भी राष्ट्रवादी भावनाओं के विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनके माध्यम से
राष्ट्रवादी भावनाओं को विकसित करने और व्यक्त करने में सहायता प्राप्त हुई।
यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए निम्नलिखित तीन उदाहरणों का
अवलोकन किया जा सकता है―
1. फ्रांसीसी कलाकार फ्रेडरिक सॉरयू का यूटोपिया―यूरोप में कुलीन वर्ग, अत्याचारी
राजाओं और साम्राज्यवादी देशों से छुटकारा पाने के लिए वहाँ के लोगों में एक ऐसे समाज और
राष्ट्र की इच्छा उत्पन्न होने लगी थी, जिसमें सभी सुखी रह सकें। यहाँ तक कि इस प्रकार की
आदर्श कल्पनाओं का भी उदय हुआ, जिनका साकार होना लगभग असम्भव था। फिर भी इन
कल्पनाओं का अपना विशेष महत्त्व था। इन कल्पनाओं से ही लोगों को एक राष्ट्र, संघर्ष,
विद्रोह, स्वतन्त्रता और आजादी की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त हुई। ऐसा ही एक
काल्पनिक चित्र फ्रांसीसी कलाकार फ्रेडरिक सॉरयू ने बनाया। उसका यह चित्र चार चित्रों की
एक श्रृंखला थी। इसमें उसके कल्पनादर्श (यूटोपिया) को दर्शाया गया था। इन चित्रों में जनता,
गणतन्त्र, स्वतन्त्रता, उदारवाद और विभिन्न राष्ट्रों के मध्य भाईचारे की भावना को दिखाने का
प्रयास किया गया था।
 
2. राष्ट्रवाद के विकास हेतु जर्मनी के ग्रिम-बंधुओं द्वारा लोक-कथाओं का प्रयोग―जर्मनी
के ग्रिम-बंधुओं द्वारा लोक-कथा के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण की दिशा में प्रयास किया गया।
इन दोनों भाइयों में जैकब ग्रिम और विल्हेल्म का जन्म जर्मनी के हनाऊ शहर में 1785 ई० और
1786 ई० में हुआ था। उनकी कहानियाँ बच्चों और बड़ों को समान रूप से पसन्द आती थीं।
सच्ची जर्मन भावना की अभिव्यक्ति हेतु उन्होंने अनेक लोक-कथाओं को एकत्र किया था।
 
3. इस दृष्टि से रूमानीवाद भी एक ऐसा ही एक सांस्कृतिक आन्दोलन था। उनका प्रयास एक
साझा सांस्कृतिक अतीत और एक साझा सामूहिक विरासत को राष्ट्रवाद का आधार बनाना था,
जिसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो। रूमानीवाद पर आधारित आन्दोलन ने भावनाओं,
अन्तर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर बल दिया। यह एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन था,
जो एक विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था।
 
प्रश्न 3. किन्हीं दो देशों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए बताएँ कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार
विकसित हुए?
उत्तर― उन्नीसवीं शताब्दी में समस्त यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। इसके
परिणामस्वरूप वहाँ राष्ट्र-राज्यों का उदय हुआ। इनमें बेल्जियम और पोलैंड भी इसी प्रकार के देश थे।
1815 ई० की वियना संधि के आधार पर बेल्जियम और पोलैंड को मनमाने तरीके से अन्य देशों के साथ
जोड़ दिया गया। इसका इन देशों ने प्रबल विरोध किया और अपने को स्वतन्त्र राज्यों के रूप में स्थापित करने
हेतु प्रयास आरम्भ कर दिए। इस दृष्टि से इन दो देशों के सम्बन्ध में उदाहरणस्वरूप निम्नलिखित विवरण
प्रस्तुत किया जा रहा है―
1. बेल्जियम―वियना कांग्रेस में हुई वियना संधि के आधार पर बेल्जियम को हॉलैंड के साथ
मिला दिया गया था। इन दोनों देशों में ईसाई धर्म के अलग-अलग सम्प्रदायों के लोगों का
निवास था। बेल्जियम में कैथोलिक और हालैंड में प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म के मतावलम्बियों की ही
अधिकता थी। ये दोनों आपस में अनेक दृष्टियों से विरोध-भाव रखते थे। दूसरी ओर हॉलैंड का
शासक भी हॉलैंड के निवासियों को बेल्जियम के निवासियों से अधिक श्रेष्ठ मानता था। अपनी
और अपने देश के निवासियों की इसी श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए उसने अपने देश के
समस्त स्कूलों में प्रोटेस्टेंट धर्म की शिक्षा प्रदान करने की राजाज्ञा जारी कर दी। उसकी इस
राजाज्ञा का बेल्जियम के लोगों ने प्रबल विरोध किया। उनके इस विरोध का इंग्लैंड ने भी साथ
दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि हॉलैंड को 1830 ई० में बेल्जियम को स्वतन्त्र करना पड़ा।
कुछ समय के उपरान्त यहाँ इंग्लैंड के समान ही संवैधानिक व्यवस्था लागू हुई।
 
2. पोलैंड―वियना संधि के आधार पर पोलैंड का भी दो भागों में विभाजन कर दिया गया था।
इसका एक बड़ा भाग रूस को इनाम के रूप में दे दिया गया। जब पोलैंड के लोगों में राष्ट्रीय
भावना का विकास हुआ तो 1848 ई० में पोलैंड में वारसा में एक क्रांति हुई। इस क्रांति को रूसी
सेनाओं के द्वारा कठोरता से दबा दिया गया। इसके उपरान्त भी पोलैंड के राष्ट्रवादियों ने अपनी
हार नहीं मानी और एक बार फिर से विद्रोह किया, जिसमें उन्हें सफलता प्राप्त हुई।
 
प्रश्न 4. ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर― ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में निम्नलिखित दृष्टियों से भिन्न था―
1. यूरोप के देशों में राष्ट्रवाद का विकास; क्रांतियों, युद्धों और सैन्य-अभियानों के परिणामस्वरूप
विकसित हुआ। जर्मनी और इटली का एकीकरण इसका प्रमुख उदाहरण है। इसके विपरीत
ब्रिटेन इसका अपवाद था। ब्रिटिश राष्ट्र-राज्यों का निर्माण, अन्य राष्ट्र-राज्यों से भिन्न और
अचानक हुए किसी परिवर्तन का परिणाम नहीं था। ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण किसी
क्रांति या अचानक हुए किसी परिवर्तन का भी परिणाम नहीं था। वहाँ यह काफी समय से
धीरे-धीरे चलने वाली प्रक्रिया का परिणाम था।
 
2. 18वीं सदी के पूर्व जिसे हम ब्रिटेन कहते थे, वह था ही नहीं। ब्रितानी द्वीपसमूह अनेक नस्ली
 और जनजातियों का समूह था। इनमें अंग्रेज, वेल्श, स्कॉट या आयरिश आदि सम्मिलित थे।
इनकी मुख्य पहचान नृजातीय (Ethinic) थी। ‘नृजातीय’ का अर्थ है―एक साझा नस्ली,
जनजातीय या सांस्कृतिक उद्गम या पृष्ठभूमि, जिसे कोई समुदाय अपनी पहचान मानता है। इन
सभी जातीय समूहों की अपनी राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परम्पराएँ थीं।
 
3. इन समस्त जातीय समूहों में अंग्रेज धीरे-धीरे अधिक शक्तिशाली होते चले गए और उन्होंने
दूसरे जातीय समूहों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार,
आंग्ल-राष्ट्र ने अपनी धन-दौलत, अपने वर्चस्व और सत्ता के बल पर अन्य द्वीप समूहों के
राष्ट्रों पर अपना कब्जा कर लिया।
 
4. 1688 ई० में एक लम्बे संघर्ष के उपरान्त राजतन्त्र की समस्त शक्ति आंग्ल-संसद के अधीन
हो गयी और एक राष्ट्र का निर्माण किया गया, जिसका केन्द्र इंग्लैंड था।
 
5. इसके उपरान्त इंग्लैंड ने स्कॉटिश लोगों को अपने देश में शामिल किया और इसके उपरान्त
स्कॉटलैंड पर अपना अधिकार कर लिया।
 
6. स्कॉटलैंड पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के बाद इंग्लैंड ने आयरलैंड के धर्मावलम्बियों
के बीच मतभेदों को प्रोत्साहित करके धीरे-धीरे आयरलैंड पर भी अपना आधिपत्य स्थापित
कर लिया।
 
7. ब्रितानी राष्ट्र का निर्माण करने के पश्चात् ब्रिटेन ने अपने राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में ‘यूनियन
जैक’ ब्रिटेन का ध्वज और ‘गॉड सेव आवर नोबल किंग’ (राष्ट्रीय गान) को प्रचारित व
प्रसारित किया गया।
इस प्रकार, बिना किसी रक्तपात के ही यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का निर्माण हो गया।
 
प्रश्न 5. बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा?
उत्तर― 1871 ई० के बाद यूरोप में गम्भीर राष्ट्रवादी तनाव का क्षेत्र बाल्कन क्षेत्र और वहाँ के निवासी
‘स्लाव’ बने। इस क्षेत्र में तनाव के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे―
1. इस क्षेत्र में भौगोलिक एवं जातीय दृष्टि से काफी भिन्नता थी।
 
2. इसके अन्तर्गत आधुनिक रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्बेनिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया,
बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सक्ऱ्याि और मॉन्टिनिग्रो शामिल थे। इस क्षेत्र के निवासियों
को सामान्यत: ‘स्लाव’ कहा जाता था। ये सभी लोग तुर्कों से भिन्न थे।
 
3. तुर्को और ईसाई प्रजातीय के बीच अनेक प्रकार के मतभेद थे, जिसके कारण बाल्कन क्षेत्रों की
स्थिति काफी भयंकर हो गयी।
 
4. जब बाल्कन क्षेत्र के स्लाव राष्ट्रीय समूहों में राष्ट्रवाद और स्वतन्त्रता की भावना का विकास
हुआ तो तनाव और भी अधिक बढ़ गया।
 
5. बाल्कन क्षेत्र के इन स्लाव और तुर्क क्षेत्रों में आपसी प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक बढ़ गयी और
हथियारों के भण्डार जमा करने की होड़ लग गयी। इसके परिणामस्वरूप बाल्कन क्षेत्र की
स्थिति अत्यधिक विस्फोटक हो गयी।
 
6. कई यूरोपीय साम्राज्यवादी देश, जिनमें रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, हंगरी आदि शामिल थे,
इन क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे, जिससे काला सागर से होने वाला व्यापार
और व्यापारिक मार्गों पर उनका नियंत्रण स्थापित हो जाए।
 
7. बाल्कन क्षेत्र में रूमानी राष्ट्रवाद के विचारों के प्रसार और ऑटोमन साम्राज्यों के विघटन के
परिणामस्वरूप स्थिति काफी गंभीर हो गयी। एक-के-बाद एक उसके अधीन देश, उसके
नियंत्रण से निकलकर अपनी आजादी की घोषणा करने लगे। बाल्कन क्षेत्र के लोगों ने
राष्ट्रीयता की भावना के आधार पर अपनी आजादी पुनः पाने का निर्णय किया।
 
8. बाल्कन क्षेत्र के अधिकांश क्षेत्र ऑटोमन साम्राज्य के अधीन थे। इसके अतिरिक्त यहाँ के
बाल्कन क्षेत्र के स्लाव-समूहों में आपस में प्रायः टकराव होता रहता था।
 
                                         परियोजना कार्य
प्रश्न यूरोप से बाहर के देशों में राष्ट्रवादी प्रतीकों के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें। एक
या दो देशों के विषय में ऐसी तस्वीरें, पोस्टर्स और संगीत इकट्ठा करें, जो राष्ट्रवाद के
प्रतीक थे। वे यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रतीकों से भिन्न कैसे हैं?
उत्तर― उपर्युक्त परियोजना के सन्दर्भ में कुछ राष्ट्रवादी प्रतीकों, चित्रों आदि को इस प्रकार दर्शाया जा
सकता है―
(क) यूरोप से बाहर के देशों के कुछ राष्ट्रवादी प्रतीक―ये राष्ट्रवादी प्रतीक निम्नलिखित हैं―
IMG_20210415_220341~2.jpg
(ख) राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन से सम्बन्धित कुछ
चित्र―अगले पृष्ठ पर चार चित्र दिए गए हैं। इन चित्रों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है―
1. चित्र-1 में बालगंगाधर तिलक को विभिन्न धर्मों के पवित्र धार्मिक स्थानों के मध्य खड़ा हुआ
दर्शाया गया है। इस चित्र के आधार पर स्वाधीनता आन्दोलन के समय भारत की धार्मिक एकता
को दर्शाने का प्रयास किया गया है।
 
2. चित्र-2 में भारतमाता को अन्नपूर्णा के रूप में दर्शाया गया है।
 
3. चित्र-3 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारतमाता और भारत के मानचित्र के बीच में दिखाया
गया है। यह इस बात का प्रतीक है कि इनके माध्यम से लोगों में राष्ट्रीय भावनाओं को ही जाग्रत
न किया जाए, अपितु उन्हें इन भावनाओं को हृदय से स्वीकार करना और अपने देश के लिए
हृदय से बलिदान देना सिखाया जाए।
 
4. चित्र-1 और चित्र-3 में भारत के लोकप्रिय राष्ट्रीय नेताओं को राष्ट्रीय प्रतीकों से जोड़ा गया
है, जिससे अधिक-से-अधिक देशवासी राष्ट्रीय आन्दोलन हेतु इनकी ओर आकर्षित हों तथा
उनमें राष्ट्रवाद की भावना का उदय हो।
 
5. चित्र-4 में भारतमाता को लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती के रूप में दर्शाया गया है। इस चित्र में दुर्गा
के रूप को विशेष रूप से दर्शाने का प्रयास किया गया है। उनके हाथ में एक त्रिशूल है, जिस
पर तिरंगा लहरा रहा है। वे स्वयं एक शेर और हाथी के मध्य खड़ी हैं, जो शक्ति और सत्ता का
प्रतीक है।
IMG_20210415_221348~2.jpg
(ग) ये प्रतीक व चित्र आदि यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रतीकों से किस प्रकार भिन्न हैं―उपर्युक्त
चित्र एवं प्रतीकों आदि को यूरोपीय राष्ट्रवाद से निम्नलिखित दृष्टियों से भिन्न दर्शाया जा सकता है―
1. चित्र-2 में भारतमाता को जर्मेनिका के समान केवल वीरता के प्रतीक के रूप में ही नहीं, बल्कि
अन्नपूर्णा के रूप में भी दर्शाया गया है।
 
2. चित्र-4 भी यूरोपीय प्रतीकों से भिन्न है, क्योंकि इस चित्र के माध्यम से आध्यात्मिक गुणों को
आधार बनाकर विजय प्राप्त करने अथवा स्वाधीनता को प्राप्त करने की कामना की गयी है।
 
3. ये समस्त राष्ट्रवादी प्रतीक एवं चित्र; यूरोपीय देशों के राष्ट्रवादी प्रतीकों से इस आधार पर भी
भिन्न हैं कि ये अपने-अपने देशों की राष्ट्रीय भावनाओं को ही दर्शाते हैं।
 
                  (ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
 
                          बहुविकल्पीय प्रश्न
1. निम्नलिखित में से किस फ्रांसीसी कलाकार ने 1848 ई० में चार चित्रों की एक श्रृंखला बनाई
थी, जो उसके सपनों का संसार था तथा उसके शब्दों में जनतांत्रिक और सामाजिक गणतंत्रों
से मिलकर बना था?
(क) अर्स्ट रेनन
(ख) फ्रेडरिक सॉरयू
(ग) कार्ल कैस्पर फ्रिट्ज
(घ) ज्यूसेपे मेत्सिनी
                        उत्तर―(ख) फ्रेडरिक सॉरयू
 
2. इनमें से किस वर्ष फ्रांस में राज्य-क्रांति हुई थी?
(क) 1789 ई० में
(ख) 1830 ई० में
(ग) 1845 ई० में
(घ) 1850 ई० में
                      उत्तर―(क) 1789 ई० में
 
3. इनमें से किस वर्ष में फ्रांस में नागरिक संहिता, जिसे नेपोलियन की संहिता के नाम से भी
जाना जाता है, का उदय हुआ?
(क) 1800 ई०
(ख) 1802 ई०
(ग) 1804 ई०
(घ) 1806 ई०
                  उत्तर―(ग) 1804 ई०
 
4. इनमें से कौन-सा सामाजिक वर्ग, 18वीं शताब्दी में यूरोप में सर्वाधिक प्रभुत्वशाली था?
(क) कुलीन वर्ग
(ख) सामान्त वर्ग
(ग) कृषक वर्ग
(घ) श्रमिक वर्ग
                   उत्तर―(क) कुलीन वर्ग
 
5. वियना संधि हुई―
(क) 1815 ई० में
(ख) 1789 ई० में
(ग) 1830 ई० में
(घ) 1848 ई० में
                       उत्तर―(क) 1815 ई० में
 
6. वियना कांग्रेस के सम्मेलन की मेजबानी किसने की?
(क) मैटरनिख ने
(ख) कावूर ने
(ग) ज्यूसेपे मेत्सिनी ने
(घ) गैरीबाल्डी ने
                      उत्तर―(क) मैटरनिख ने
 
7. ड्यूक मैटरनिख ने किसे हमारी सभ्यता का सबसे खतरनाक दुश्मन’ बताया?
(क) कावूर को
(ख) गैरीबाल्डी को
(ग) ज्युसेपे मेत्सिनी को
(घ) नेपोलियन को
                        उत्तर―(ग) ज्युसेपे मेत्सिनी को
 
8. निम्न में से किस संधि के फलस्वरूप यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मान्यता मिली?
(क) पेरिस की संधि
(ख) वर्साय की संधि
(ग) वियना की संधि
(घ) कुस्तुनतुनिया की संधि
                                   उत्तर―(घ) कुस्तुनतुनिया की संधि
 
9. निम्न में से यह किसका कथन है―”जब फ्रांस छींकता है, तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम
हो जाता है।”
(क) मैटरनिख
(ख) कावूर
(ग) बिस्मार्क
(घ) मेत्सिनी
                उत्तर―(क) मैटरनिख
 
10. किस आन्दोलन ने भावनाओं, अन्तर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर बल दिया?
(क) उदारवाद
(ख) समाजवाद
(ग) रूमानीवाद
(घ) रहस्यवाद
                 उत्तर―(ग) रूमानीवाद
 
11. 18वीं शताब्दी में ऑस्ट्रिया-हंगरी पर इनमें से किस साम्राज्य का शासन था?
(क) ऑटोमन
(ख) हैब्सबर्ग
(ग) ब्रिटिश
(घ) न्यूरेम्बर्ग
                उत्तर―(ख) हैब्सबर्ग
 
12. निम्न में से किस वर्ष में सेंट पॉल चर्च में फ्रैंकफर्ट संसद का आयोजन किया गया था?
(क) 1815 ई०
(ख) 1848 ई०
(ग) 1850 ई०
(घ) 1865 ई०
                 उत्तर―(ख) 1848 ई०
 
13. जर्मनी का राष्ट्र-रूपक था―
(क) मारीआन
(ख) जर्मन तिरंगा
(ग) जर्मेनिया
(घ) जर्मेन
             उत्तर―(ग) जर्मेनिया
 
14. इनमें से किस वर्ष जर्मनी को एक स्वतन्त्र राज्य घोषित किया गया?
(क) 1871 ई०
(ख) 1872 ई०
(ग) 1876 ई०
(घ) 1880 ई०
                 उत्तर―(क) 1871 ई०
 
15. जर्मनी का एकीकरण का श्रेय इनमें से किसे दिया जाता है?
(क) ऑटो वॉन बिस्मार्क
(ख) काइजर विलियम प्रथम
(ग) हिटलर
(घ) मेत्सिनी
                उत्तर―(क) ऑटो वॉन बिस्मार्क
 
16. कैदूर, मैजनी और गैरीबाल्डी का किस देश के एकीकरण में योगदान था-
(क) इटली
(ख) जर्मनी
(ग) फ्रांस
(घ) रूस
            उत्तर―(क) इटली
 
17. इनमें से किस वर्ष इंग्लैण्ड तथा स्कॉटलैण्ड के बीच ‘ऐक्ट ऑफ यूनियन’ नामक एक
समझौता हुआ था, जिसके फलस्वरूप ‘यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन हुआ?
(क) 1707 ई०
(ख) 1708 ई०
(ग) 1739 ई०
(घ) 1742 ई०
                 उत्तर―(क) 1707 ई०
 
18. निम्न में से किस देश को बलपूर्वक 1801 ई० में यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन में
शामिल कर लिया गया था?
(क) स्कॉटलैण्ड
(ख) नीदरलैण्ड
(ग) आयरलैण्ड
(घ) इंग्लैण्ड
                उत्तर―(ग) आयरलैण्ड
 
19. फ्रांसीसी क्रांति के दौरान कलाकारों ने स्वतन्त्रता, न्याय और गणतन्त्र जैसे विचारों को
व्यक्त करने के लिए नारी-रूपक का प्रयोग किया। इस नारी-रूपक का नाम था―
(क) जर्मेनिया
(ख) कोरियान
(ग) लिबर्टी
(घ) मॉरीआन
                  उत्तर―(घ) मॉरीआन
 
 
20. निम्न में से कौन ब्रिटेन का राष्ट्रीय प्रतीक है?
(क) उगता हुआ सूर्य
(ख) तलवार
(ग) यूनियन जैक
(घ) काला, लाल और सुनहरा तिरंगा
                                                उत्तर―(ग) यूनियन जैक
 
21. निम्न में से किस स्थान पर मेत्सिनी ने ‘यंग-इटली’ नामक संगठन की स्थापना की थी?
(क) पेरिस में
(ख) बर्न में
(ग) वर्साय में
(घ) माई में
              उत्तर―(घ) मार्सेई में
 
                                      अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. फ्रेडरिक सॉरयू कौन था?
उत्तर― फ्रेडरिक सॉरयू फ्रांस का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। उसने चार चित्रों की एक श्रृंखला बनाई थी,
जिसमें एक ऐसे सपनों के संसार को दर्शाया गया था, जो जनतांत्रिक एवं सामाजिक गणतंत्रों से मिलकर बना
था।
 
प्रश्न 2. ‘कल्पनादर्श’ (यूटोपिया) का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर― ‘कल्पनादर्श’ (यूटोपिया) का शाब्दिक अर्थ उस समाज की कल्पना से है, जो इतना अधिक
आदर्श है कि उसका साकार होना लगभग असम्भव है।
 
प्रश्न 3. सामूहिक पहचान की भावना उत्पन्न करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने कौन-कौन से 
कदम उठाए?
उत्तर― सामूहिक पहचान की भावना को उत्पन्न करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने एक केन्द्रीय
प्रशासनिक व्यवस्था को लागू किया और और एक नया फ्रांसीसी ध्वज चुना।
 
प्रश्न 4. फ्रांसीसी क्रांति किस वर्ष हुई?
उत्तर― फ्रांसीसी क्रांति 1789 ई० में हुई।
 
प्रश्न 5. फ्रांसीसी क्रांतिकारियों द्वारा उठाए गए किन्हीं दो कदमों का उल्लेख करें, जिन्हें फ्रांस के
लोगों ने एक सामूहिक पहचान की भावना बनाए रखने के लिए आरम्भ किया था।
उत्तर― सामूहिक पहचान की भावना को बनाए रखने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों द्वारा उठाए गए दो
कदमों का उल्लेख निम्नवत् है―
1. उनके द्वारा एक नया फ्रांसीसी तिरंगा झंडा चुना गया, जिसने पहले के ध्वज का स्थान ले लिया।
2. उनके द्वारा एक केन्द्रीय प्रशासनिक व्यवस्था को लागू किया गया।
 
प्रश्न 6. ‘नेपोलियन संहिता क्या थी?
उत्तर―1804 की नागरिक संहिता नेपोलियन द्वारा बनाई गयी थी, जिसे ‘नेपोलियन की संहिता’ के
नाम से भी जाना जाता है। इस संहिता के माध्यम से जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया
गया था। इसमें कानून के समक्ष सभी को समान माना गया था। इसके अतिरिक्त इसके द्वारा सम्पत्ति के
अधिकार को सुरक्षित बनाने की व्यवस्था भी की गयी थी।
 
प्रश्न 7. उन्नीसवीं सदी के उदारवाद की विचारधारा की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर― उन्नीसवीं सदी के उदारवाद की विचारधारा की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. उदारवादी विचारधारा की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि इसके अनुसार सभी को कानून
के
समक्ष सक्षम माना गया था। साथ ही सभी के लिए आजादी आवश्यक मानी गयी थी।
 
2. राजनीतिक दृष्टि से उदारवाद एक ऐसी सरकार पर बल देता था, जो सबकी सहमति से बनी
हो।
 
प्रश्न 8. वियना की संधि क्या थी?
उत्तर― 1815 ई० में ब्रिटेन, रूस, प्रशा एवं ऑस्ट्रिया जैसी यूरोपीय शक्तियों, जिन्होंने एक साथ
मिलकर नेपोलियन को परास्त किया था, के प्रतिनिधि वियना कांग्रेस में एकत्रित हुए। इनका उद्देष्य समस्त
यूरोप के लिए समन्वित रूप से एक समझौता करना था। इस सम्मेलन की अध्यक्षता आस्ट्रिया के चांसलर
ड्यूक मैटरनिख ने की। वियना सम्मेलन में भाग लेने वाले दशों के प्रतिनिधियों ने 1815 ई. में एक संधि पर
हस्ताक्षर किए। इस संधि को ही ‘वियना की संधि’ के नाम से जाना जाता है। इस संधि का एक प्रमुख लक्ष्य
उन सभी बदलावों को समाप्त करना था, जो नेपोलियन के साथ हुए युद्धों के समय किए गए थे।
 
प्रश्न 9. 1815 ई० की वियना कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किसने किया था?
उत्तर― 1815 ई० की वियना कांग्रेस का प्रतिनिधित्व ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख के द्वारा
किया गया था।
 
प्रश्न 10.1832 ई० की कुस्तुनतुनिया की संधि क्या थी?
उत्तर― 1832 ई० की कुस्तुनतुनिया की संधि में यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान
की गयी। इससे पूर्व यूनान ऑटोमन साम्राज्य का एक हिस्सा था।
 
प्रश्न 11. किसने कहा था, “जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है ?
उत्तर― “जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है”―यह कथन मैटरनिख
का है।
 
प्रश्न 12.1832 ई० की संधि का नाम बताएँ, जिसने यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र की मान्यता दी।
उत्तर― ‘कुस्तुनतुनिया की संधि’ ही वह संधि थी, जिसने यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मान्यता
प्रदान की।
 
प्रश्न 13.उस घटना का नाम बताएँ, जिसने 1830-1848 में यूरोप के पूरे शिक्षित अभिजात वर्ग में
राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया।
उत्तर― ‘यूनान का स्वतन्त्रता संग्राम’ वह घटना थी, जिसने 1830-1848 में यूरोप के पूरे शिक्षित
अभिजात वर्ग में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया।
 
प्रश्न 14.’रूमानीवाद’ क्या था?
उत्तर― ‘रूमानीवाद’ एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन था, जिसका उद्देश्य यूरोप की जनता में एक विषेष
प्रकार की राष्ट्रीय भावनाओं का विकास करना था। रूमानीवाद’ की कई विशेषताएँ थीं, जिनमें से दो प्रमुख
विशेषताएँ निम्नलिखित हैं―
1. इस आन्दोलन के माध्यम से लोक-कला एवं मातृभाषा के गौरव में वृद्धि हुई।
2. 18वीं शताब्दी में विकसित यह साहित्यिक, कलात्मक एवं बुद्धिजीवियों का एक ऐसा आन्दोलन था,
जिसके माध्यम से विशेष रूप से राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रसार हुआ।
 
प्रश्न 15.योहान गॉटफ्रीड कौन था?
उत्तर― योहान गॉटफ्रीड एक सुप्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक था। उसके द्वारा यह दावा किया गया था कि
सच्ची जर्मन संस्कृति, जर्मनी के आम लोगों में निहित है।
 
प्रश्न 16.प्रशा के राजा फ्रेडरीख विल्हेम चतुर्थने फ्रैंकफर्ट संसद को अस्वीकार क्यों कर दिया था?
उत्तर― प्रशा के राजा फ्रेडरीख विल्हेम चतुर्थ ने फ्रैंकफर्ट संसद को इसलिए अस्वीकार कर दिया था
क्योंकि इस संसद के सदस्यों ने एक ऐसे संविधान का प्रारूप तैयार किया, जिसकी अध्यक्षता एक ऐसे राजा
को सौंपी गयी, जिसे संसद के अधीन रहना था।
 
प्रश्न 17.उस प्रमुख मंत्री का नाम बताएँ, जो जर्मनी के एकीकरण का निर्माता था?
उत्तर― वह प्रमुख मंत्री, जो जर्मनी के एकीकरण का निर्माता था; ऑटो वॉन बिस्मार्क था।
 
प्रश्न 18.1871 ई० में जर्मनी का सम्राट किसे घोषित किया गया था?
उत्तर― 1871 ई० में जर्मनी का सम्राट प्रशा के राजा विलियम प्रथम को घोषित किया गया था?
 
प्रश्न 19.’यंग-इटली’ क्या था?
उत्तर― ‘यंग-इटली’ एक ऐसा गुप्त संगठन था, जिसका गठन ज्सुसेपे मेत्सिनी के द्वारा इटली के
एकीकरण हेतु किया गया था।
 
प्रश्न 20.इटली के एकीकरण के प्रमुख निर्माता कौन थे?
उत्तर― इटली के एकीकरण के प्रमुख निर्माता ज्युसेपे मेत्सिनी, कावूर और इटली का शासक विक्टर
इमेनुएल था।
 
प्रश्न 21.’ऐक्ट ऑफ यूनियन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर― 1707 ई० में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के मध्य ऐक्ट ऑफ यूनियन’ का गठन हुआ। इस ऐक्ट के
परिणामस्वरूप यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन का गठन हुआ। इसके परिणामस्वरूप इंग्लैंड ने
व्यावहारिक रूप में स्कॉटलैंड पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
 
प्रश्न 22.जर्मन राष्ट्र का रूपक क्या था? यह किस बात का प्रतीक था?
उत्तर― जर्मन राष्ट्र का रूपक ‘जर्मेनिया’ थी। उसे बलूत के वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहने दिखाया गया
था। जर्मनी में बलूत के वृक्ष को बहादुरी का प्रतीक माना जाता है।
 
प्रश्न 23.’मारीआन से आपका क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर― ‘मारीआन’ एक ऐसा नारी-रूप था, जिसने फ्रांसीसी लोगों के राष्ट्र का प्रतीकात्मक रूप से
प्रतिनिधित्व किया। ‘मारीआन’ की प्रतिमाएं फ्रांस के सार्वजनिक चौराहों पर स्थापित की गयी थी, जिससे
फ्रांस के लोगों को इस प्रतीक के माध्यम से राष्ट्रीय एकता का स्मरण होता रहे।
 
प्रश्न 24. जर्मेनिया’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― ‘जर्मेनिया’ जर्मनी में जर्मन राष्ट्र का रूपक बन गयी थी। उसे चित्रों एवं प्रतिमाओं में बलूत वृक्ष
के पत्तों का मुकुट पहने हुए दिखाया गया है। जर्मनी में बलूत को वीरता का प्रतीक माना जाता है।
 
प्रश्न 25.यूरोप का कौन-सा क्षेत्र ‘बाल्कन’ के रूप में जाना जाता है?
उत्तर― काला सागर और एडरिएटिक सागर के बीच में आने वाला विस्तृत क्षेत्र जिसमें रोमानिया,
अल्बेनिया, ग्रीस, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मॉन्टिनिग्रो सम्मिलित हैं;
‘बाल्कन’ क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। ये समस्त राज्य किसी समय ऑटोमन साम्राज्य के ही भाग थे तथा
यहाँ निवास करने वाले लोगों को ‘स्लाव’ कहा जाता था।
 
प्रश्न 26.बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवादी तनाव के क्या कारण थे?
उत्तर- बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवादी तनाव के प्रमुख कारण निम्नवत् थे―
1. रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, आस्ट्रो-हंगरी जैसे देश बाल्कन पर अन्य शक्तियों के आधिपत्य को
कमजोर करके बाल्कन क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते थे।
2. बाल्कन क्षेत्र में सर्व-स्लाव’ आन्दोलन का आरम्भ हो गया था। इस आन्दोलन का ऑस्ट्रिया
पूरी तरह से दमन करना चाहता था। इसके विपरीत, रूस इस आन्दोलन को अपना समर्थन दे
रहा था। इसके परिणामस्वरूप रूस और ऑस्ट्रिया के मध्य तनाव बढ़ गया।
 
प्रश्न 27.’स्लाव कौन थे?
उत्तर― ‘स्लाव’ बाल्कन क्षेत्र के निवासी थे। उस समय बाल्कन क्षेत्र में आधुनिक रोमानिया, बुल्गेरिया,
अल्बेनिया, ग्रीस, मेसिडोनिया, क्रोएशिया आदि देश सम्मिलित थे।
 
                                          लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. फ्रेडरिक सॉरयू के विश्वव्यापी जनतांत्रिक और सामाजिक गणतन्त्रों के स्वप्न की अपने
शब्दों में व्याख्या करें।
उत्तर― यूरोप में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य कुलीन वर्ग, अत्याचारी राजाओं और साम्राज्यवादी देशों से
छुटकारा पाने के लिए वहाँ के लोगों में एक ऐसे समाज और राष्ट्र की इच्छा उत्पन्न होने लगी थी, जिसमें
सभी सुखी रह सकें। यहाँ तक कि इस प्रकार की आदर्श कल्पनाओं का भी उदय हुआ, जिनका साकार होना
लगभग असम्भव था। फिर भी इन कल्पनाओं का अपना विशेष महत्त्व था। इन कल्पनाओं से ही लोगों को
एक राष्ट्र, संघर्ष, विद्रोह, स्वतन्त्रता और आजादी की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त हुई। ऐसा ही एक
काल्पनिक चित्र फ्रांसीसी कलाकार फ्रेडरिक सॉरयू ने बनाया। उसका यह चित्र चार चित्रों की एक श्रृंखला
थी। इसमें उसके कल्पनादर्श (यूटोपिया) को दर्शाया गया था। इन चित्रों में जनतन्त्र, गणतन्त्र, स्वतन्त्रता,
उदारवाद और विभिन्न राष्ट्रों के मध्य भाईचारे की भावना को दिखाने का प्रयास किया गया था।
सॉरयू के चित्रों की श्रृंखला के पहले चित्र में यूरोप और अमेरिका के लोग अलग-अलग राष्ट्रों के समूह में
बँटे हुए हैं। उनकी पहचान उनकी वेशभूषा, उनके प्रतीकों और कपड़ों को देखकर हो सकती है। इन देशों के
लोग एक लम्बी कतार में चित्र में दिखाई गयी स्वतन्त्रता की प्रतिमा की वंदना करते हुए दिखाए गए हैं।
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस के कलाकार स्वतन्त्रता को एक महिला के रूप में ही चित्रित करते थे।
स्वतन्त्रता की एक प्रतिमा के एक हाथ में ज्ञानोदय की मशाल है और दूसरे हाथ में मनुष्यों के अधिकारों का
घोषणा-पत्र। इस चित्र में विभिन्न देशों के जुलूस का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका और स्विट्जरलैण्ड कर
रहे हैं, क्योंकि वे तब तक राष्ट्र-राज्य बन चुके थे। इस चित्र में संसार के राष्ट्रों के बीच भाईचारे को दर्शाने
के लिए ऊपर स्वप्न से ईसामसीह, सन्त और फरिश्तों को दिखाया गया हैं। इस प्रकार यह सॉरयू का
कल्पनादर्श स्वप्न (यूटोपिया) अथवा उसकी कल्पना पर आधारित आदर्श स्वप्न था। फ्रेडरिक सॉरयू के
‘कल्पनादर्श’ (यूटोपिया) का शाब्दिक अर्थ है-ऐसे आदर्श समाज की कल्पना, जिसका साकार होना
लगभग असम्भव हो।
 
प्रश्न 2. आधुनिक राज्य और राष्ट्र-राज्य के अंतर को स्पष्ट कीजिए। यूरोप में ‘साझा पहचान की
भावना का विकास कैसे हुआ?
उत्तर― आधुनिक राज्य और राष्ट्र-राज्य के अंतर तथा यूरोप में ‘साझा पहचान’ की भावना के विकास
को निम्नलिखित विवरण के आधार पर स्पष्ट किया गया है―
1. आधुनिक राज्य और राष्ट्र-राज्य में अंतर―यूरोप के राष्ट्र-राज्य आधुनिक राज्यों की उस
विचारधारा से भिन्न थे, जो यूरोप में काफी समय से चली आ रही थी। आधुनिक राज्यों की
विचारधारा में केवल एक केन्द्रीय शक्ति का ही अधिकार था। इसके विपरीत, राष्ट्र-राज्यों में
जनता और शासकों के अपने-अपने अधिकार और शक्तियाँ थी। जनता को अपने प्रतिनिधियों
को चुनने का अधिकार था।
 
2. यूरोप में ‘साझा पहचान’ की भावना का विकास―उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप के
राष्ट्र-राज्यों के शासकों और नागरिकों में एक ‘साझेपन की भावना’ का विकास भी हुआ।
जनता और शासकों ने अपने-अपने अधिकारों और सीमाओं को समझा और एक राष्ट्र के लिए
जो आवश्यक है, उसे ही स्वीकारना शुरू किया।
 
प्रश्न 3. अर्स्ट रेनन के अनुसार किसी राष्ट्र का वास्तविक स्वरूप क्या है?
उत्तर― फ्रांसीसी दार्शनिक अर्ट रेनन ने 1882 ई० में सॉबॉन में विश्वविद्यालय में दिए गए अपने एक
व्याख्यान में ‘राष्ट्र’ के स्वरूप और उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उनके अनुसार स्पष्ट किए गए राष्ट्र
के स्वरूप को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है―
1. रेनन ने राष्ट्र का स्वरूप और इसकी विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि कोई राष्ट्र काफी
समय से चले आ रहे प्रयासों, त्याग और निष्ठा का सर्वोपरि परिणाम होता है। शौर्य, वीरता,
महान पुरुषों के योगदान और गौरव पर आधारित यह वह सामाजिक पूँजी है, जिस पर एक
राष्ट्रीय विचार आधारित होता है।
 
2. रेनन के अनुसार यह कहना ठीक नहीं है कि राष्ट्र एकसमान भाषा, नस्ल, धर्म या क्षेत्र से बनता
है। उनके अनुसार लोगों के लम्बे प्रयासों और निष्ठा से ही राष्ट्र का निर्माण होता है। इसके लिए
अतीत में समान गौरव का होना, साथ मिलकर महान काम करना, एकसमान इच्छा का संकल्प
होना आवश्यक शर्ते हैं।
 
3. उनके अनुसार राष्ट्र एक बड़ी और व्यापक एकता है। इसका अस्तित्व प्रतिदिन होने वाला
जनमत-संग्रह हैं। प्रांत राष्ट्र के निवासी हैं और राष्ट्र के सम्बन्ध में उनसे ही सलाह ली जानी
चाहिए।
 
4. किसी राष्ट्र की दूसरे देश का अपने देश में विलय करने या उस पर अपना कब्जा करने की
कोई रुचि नहीं होती। राष्ट्र का अस्तित्व बने रहना अत्यन्त आवश्यक है। उसका होना स्वतन्त्रता
की गारंटी है, क्योंकि यदि संसार में केवल एक कानून और उसका एक मालिक ही होगा तो
स्वतन्त्रता का लोप हो जाएगा।
 
प्रश्न 4. “नेपोलियन ने निःसन्देह फ्रांस में लोकतन्त्र को नष्ट किया था, परन्तु प्रशासनिक क्षेत्र में
उसने क्रांतिकारी सिद्धान्तों का समावेश किया था, ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत
और कुशल बन सके।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर― नेपोलियन के नियंत्रण में जो विशाल क्षेत्र आया, वहाँ उसने अनेक सुधारों का आरम्भ किया।
यद्यपि उसके द्वारा फ्रांस में राजतन्त्र को पुन: वापिस लाया गया और इस प्रकार उसने वहाँ प्रजातन्त्र को
समाप्त कर दिया, परन्तु प्रशासनिक दृष्टि से उसने अनेक क्रांतिकारी और प्रशंस कदम उठाए। उसने
1804 में एक नागरिक संहिता’ बनाई, जिसे ‘नेपोलियन की संहिता’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके
आधार पर प्रशासनिक दृष्टि से अनेक उल्लेखनीय कार्य किए गए। इनका संक्षिप्त उल्लेख निम्नवत् है―
1. जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए।
2. कानून की दृष्टि से सभी की समानता का ध्यान रखा गया।
3. सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया गया।
4. डच गणतन्त्र, स्विट्जरलैंड, इटली और जर्मनी में प्रशासनिक विभाजन को सरल बनाया गया।
5. सामंती व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।
6. किसानों को भूदासत्व और जागीरदारी-शुल्कों से मुक्त कर दिया गया।
7. नगरों में कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रण को हटा दिया गया।
8. यातायात और संचार-सुविधाओं में सुधार किया गया।
नेपोलियन द्वारा किए गए उपर्युक्त समस्त प्रशासनिक कार्यों के आधार पर यह सहज ही स्पष्ट हो जाता है कि
नेपोलियन ने निःसन्देह फ्रांस में लोकतन्त्र को नष्ट किया था, परन्तु प्रशासनिक क्षेत्र में उसने क्रांतिकारी
सिद्धान्तों का समावेश किया था, ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और कुशल बन सके।
 
प्रश्न 5. यूरोप में औद्योगीकरण से किन नए सामाजिक वर्गों का जन्म हुआ?
उत्तर― पश्चिमी और मध्य यूरोप, फ्रांस और जर्मनी में औद्योगीकरण के फलस्वरूप नए सामाजिक
वर्गों-वाणिज्यिक वर्ग, श्रमिक वर्ग और मध्यमवर्ग का उदय हुआ। श्रमिक वर्ग और मध्यम वर्ग की विद्रोह
और क्रांतियों में विशेष भूमिका रही। यूरोप में राष्ट्रीय एकता का विचार मध्यम वर्ग में ही सर्वाधिक लोकप्रिय
हुआ। इसके अतिरिक्त औद्योगीकरण के फलस्वरूप यूरोप में मध्यम वर्ग का उदय भी हुआ। यह वेतन पर
कार्य करने वाला वर्ग था। यह वर्ग तर्क एवं वैज्ञानिक सोच के आधार पर विचार करने वाला और समाज का
शिक्षित वर्ग था। 19वीं शताब्दी में यूरोप में उदित मध्यम वर्ग में उद्योगपति, व्यापारी व सेवा-क्षेत्र के लोग
आते थे। मध्यम वर्ग ने राष्ट्रवाद के विकास में अपना विशेष योगदान दिया।
 
प्रश्न 6. यूरोप में मध्यम वर्ग का उदय क्यों हुआ?
उत्तर― यूरोप में जिस मध्यम वर्ग का उदय हुआ, वह वेतन पर कार्य करने वाला वर्ग था। यह वर्ग तर्क
एवं वैज्ञानिक सोच के आधार पर विचार करने वाला और समाज का शिक्षित वर्ग था। इसी में सर्वाधिक
राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्रीय भावना का उदय हुआ। राष्ट्रवाद के विकास के दौरान इसी वर्ग ने अपनी राष्ट्रीय
भावना के आधार पर समाज के अन्य वर्गों को संगठित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इस मध्यम वर्ग के
यूरोप में उदय के प्रमुख कारण निम्नवत् थे―
1. औद्योगीकरण के फलस्वरूप जब अनेक छोटे-बड़े उद्योगों की स्थापना हुई, तब वेतन पर कार्य
करने वाले कई प्रकार के वाणिज्यिक वर्गों का उदय हुआ। इसी को बाद में मध्यम वर्ग के नाम
से जाना गया।
 
2. शिक्षा के विकास के परिणामस्वरूप भी मध्यम वर्ग का उदय सम्भव हुआ। जब कार्यालयों में
काम करने हेतु विभिन्न योग्यताओं वाले कर्मचारियों और अधिकारियों की आवश्यकता हुई,
तब मध्यम वर्ग के शिक्षित लोगों ने ही इन कार्यों हेतु अपनी भूमिका का निर्वाह किया।
 
3. औद्योगीकरण के कारण शहरों का तेजी से विकास हुआ। साथ ही इन शहरों में अनेक प्रकार के
निर्माण कार्य आरम्भ हुए। इन शहरों की आवश्यकताएँ भी ग्रामीण समाज की तुलना में अधिक
थीं। इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी अनेक पढ़े-लिखे, विभिन्न प्रकार की
योग्यताओं और कौशलों वाले लोगों की आवश्यकता हुई। इनमें से अधिकांश लोग ही मध्यम
से वर्ग के लोग कहलाए।
 
प्रश्न 7. उदारवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर― उन्नीसवीं शताब्दी के शुरुआत में यूरोप में उदारवादी विचारधारा का विकास हुआ। उदारवाद
और राष्ट्रीय एकता पर आधारित विचारों में काफी समानता थी। ‘उदारवाद’ (liberalism) शब्द; लैटिन
भाषा के ‘liber’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है-‘आजाद’। यह विचारधारा स्वतन्त्रता और समान न्याय
पर विशेष बल देती थी। संक्षेप में उदारवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं―
1. उदारवाद एक ऐसी सरकार पर बल देता था, जो सबकी सहमति से बनी हो।
2. उदारवाद निरंकुश शासक और पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति करना चाहता था। यह
संविधान तथा संसदीय प्रतिनिधि सरकार का पक्षधर था।
3. 19वीं सदी के उदारवादी निजी सम्पत्ति के स्वामित्व की अनिवार्यता पर भी बल देते थे।
4. आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद; बाजारों की मुक्ति और वस्तुओं तथा पूँजी के आवागमन पर राज्य
द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को समाप्त करने के पक्ष में था। वह एक ऐसे एकीकृत आर्थिक क्षेत्र
के निर्माण के पक्ष में था, जहाँ वस्तुओं, लोगों और पूँजी का आवागमन बाधारहित हो।
 
प्रश्न 8. 1815 ई० के बाद विकसित एक नए रूढ़िवाद और रूढ़िवादी शासन-व्यवस्थाओं पर संक्षिप्त
प्रकाश डालिए।
उत्तर― 1815 ई० के बाद यूरोप में एक नया रूढ़िवाद सामने आया। इस समय यूरोपीय सरकारें
रूढ़िवादी भावना से प्रेरित थीं। उनका मानना था कि राजतन्त्र, चर्च, सामाजिक ऊँच-नीच की परम्परा आदि
को बनाए रखना चाहिए। फिर भी वे यह स्वीकार करने लगे थे कि आधुनिकीकरण के द्वारा राजतन्त्र को
अधिक मजबूत बनाया जा सकता है। अत: एक आधुनिक सेना, कुशल नौकरशाही, गतिशील अर्थव्यवस्था
की दिशा में प्रयास तथा सामन्तवाद और भूदासत्व की समाप्ति उनके राजतन्त्र को शक्ति प्रदान कर सकते थे।
1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन-व्यवस्थों पूर्णत: निरंकुश थीं। उन्होंने जनता और क्रांतिकारियों के उन
सभी क्रियाकलापों को नियंत्रित करने का प्रयास किया, जो उनकी निरंकुश सरकार के लिए खतरा थीं। उनके
द्वारा इस प्रकार के सेंसरशिप के नियम बनाए गए, जो फ्रांसीसी क्रांति में व्यक्त किए गए स्वतन्त्रता और
मुक्ति के विचार को नियंत्रित करते थे। इसके उपरान्त भी यूरोप के उदारवादी राष्ट्रवादी फ्रांसीसी क्रांति के
दौरान सामने आए विचारों को नहीं भूले थे। वे रूढ़िवादी व्यवस्था की आलोचना करते हुए निरन्तर अपनी
मुक्ति और प्रेस की आजादी आदि की माँग कर रहे थे। इस प्रकार उनके राष्ट्रवादी प्रयास अभी भी जारी थे।
 
प्रश्न 9. क्रांतिकारी कौन थे? उनकी राजनीतिक अवधारणा क्या थी?
उत्तर― वियना कांग्रेस के बाद स्थापित राजतन्त्रीय व्यवस्थाओं में अनेक क्रांतिकारी सामने आए। उनका
उद्देश्य अपने देशों में राष्ट्रवादी भावना का विकास करना और अपने देशों को पूर्ण रूप से स्वाधीन कराना था।
इसके अतिरिक्त उनका प्रमुख उद्देश्य उन राजतन्त्रीय व्यवस्थाओं का विरोध करना था, जो वियना कांग्रेस के
बाद सामने आई थीं। इस समय अनेक क्रांतिकारी दमन के भय से भूमिगत हो गए थे और उन्होंने अनेक गुप्त
संगठन बना लिए थे। इसके अतिरिक्त स्वतन्त्रता और मुक्ति के लिए संकल्पबद्ध होना और संघर्ष करना
किसी भी क्रांतिकारी के लिए आवश्यक था। अधिकांश क्रांतिकारी राष्ट्र राज्यों की स्थापना को आजादी के
इस संघर्ष का एक अनिवार्य हिस्सा मानते थे।
 
प्रश्न 10. उन परिस्थितियों का उल्लेख करें, जिनके कारण 1830 की जुलाई क्रांति हुई। यूरोप में इन
क्रांतियों का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर― वे परिस्थितियाँ, जिनके परिणामस्वरूप 1830 ई० की जुलाई क्रांति हुई, इस प्रकार थीं―
1. गुप्त संगठनों का गठन―1815 ई० के उपरान्त के वर्षों में राजतन्त्रीय शासकों द्वारा किए जाने
वाले दमन के भय ने अनेक उदारवादी राष्ट्रवादियों को भूमिगत कर दिया। इसके अतिरिक्त
अनेक यूरोपीय राज्यों में क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने, राष्ट्रवादी विचारों का प्रसार करने और
राजतन्त्रीय व्यवस्थाओं के विरोध हेतु अनेक क्रांतिकारी गुप्त संगठनों का गठन हुआ।
 
2. यूनान का स्वतन्त्रता संग्राम―एक घटना, जिसने सम्पूर्ण यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में
राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया, वह थी-यूनान का स्वतन्त्रता संग्राम। पन्द्रहवीं शताब्दी से
यूनान ऑटोमन साम्राज्य का एक हिस्सा था। यूरोप में हुए क्रांतिकारी राष्ट्रवाद के प्रसार के
परिणामस्वरूप यूनान में भी 1821 ई० से यूनानियों ने अपनी आजादी के लिए संघर्ष आरम्भ
कर दिया। काफी लम्बे समय तक चले संघर्ष के उपरान्त 1832 ई० में कुस्तुनतुनिया की एक
संधि हुई। इस संधि के फलस्वरूप ही यूनान को एक स्वाधीन राष्ट्र घोषित कर दिया गया।
 
3. रूढ़िवादी व्यवस्था के विरुद्ध उदारवादी राष्ट्रवादियों के नेतृत्व में क्रांतिकारी
प्रयास―जब रूढ़िवादी और निरंकुश शक्तियों ने अपनी शक्ति को और अधिक मजबूत बनाने
की कोशिश की तो इस राजतन्त्रीय रूढ़िवाद के विरुद्ध उदारवादी राष्ट्रवादियों के नेतृत्व में
इटली, जर्मनी, ऑटोमन साम्राज्य, आयरलैण्ड और पोलैण्ड जैसे देशों में क्रांति की दिशा में
प्रयास आरम्भ हो गए। क्रांतियों का नेतृत्व करने वाले लोग शिक्षित मध्यम वर्ग के विशिष्ट लोगों
में से थे। इनमें प्रोफेसर, विद्यालयों के अध्यापक, क्लर्क और वाणिज्य-व्यापार में लगे मध्यम
वर्ग के लोग शामिल थे।
इस प्रकार राजतन्त्रीय रूढ़िवाद के विरुद्ध होने वाली यूरोपीय क्रांतियों का नेतृत्व उदारवादी 
राष्ट्रवादियों के द्वारा किया गया।
 
प्रश्न 11. राष्ट्रवाद के विकास में रूमानीवाद का क्या योगदान है?
उत्तर― रूमानीवाद भी एक सांस्कृतिक आन्दोलन था। रूमानीवाद के समर्थकों का प्रयास एक साझा
सांस्कृतिक अतीत और एक साझा सामूहिक विरासत को राष्ट्रवाद का आधार बनाना था, जिसमें किसी भी
प्रकार का भेदभाव न हो। रूमानीवाद पर आधारित आन्दोलन ने भावनाओं, अन्तर्दृष्टि और रहस्यवादी
भावनाओं पर बल दिया। यह एक ऐसा आन्दोलन था, जो एक विषेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास
करना चाहता था। रूमानीवाद के सन्दर्भ में जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड का नाम उल्लेखनीय
है। उनका विचार था कि सच्ची जर्मन संस्कृति उसके आम लोगों (das volk) में निहित है और राष्ट्र की
सच्ची आत्मा; लोकगीतों, जन-काव्यों और लोकनृत्यों के माध्यम से प्रकट होती है। रूमानीवाद की
विचारधारा के अनुसार लोक-संस्कृति के विभिन्न स्वरूपों को एकत्र करना और उन्हें दर्शाना; राष्ट्र-निर्माण
की योजना हेतु आवश्यक है। इसके अन्तर्गत रूमानीवादी आन्दोलन में स्थानीय बोलियों और स्थानीय
साहित्य को भी इस दृष्टि से आधार बनाया गया, जिससे राष्ट्रीय संदेशों को आम लोगों तक सरलता से
पहुँचाया जा सके।
 
रूमानीवाद विचारधारा के प्रयोग की दृष्टि से यूरोप का पोलैंड देश एक प्रमुख उदाहरण था। वहाँ संगीत और
भाषा के माध्यम से राष्ट्रीय भावनाओं को जीवित रखा गया। भाषा ने भी राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में
अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी प्रकार ग्रिम बंधुओं की कहानी-लोक-कथाएँ और
राष्ट्र-निर्माण―रूमानीवाद से प्रभावित अन्य यूरोपीय लेखकों आदि के समान जर्मनी के ग्रिम बंधुओं द्वारा
भी लोक-कथा और माध्यम से राष्ट्र-निर्माण की दिशा में प्रयास किया गया।
 
प्रश्न 12.सिलेसियाई बुनकरों के विद्रोह के कारणों का वर्णन करें। पत्रकार के नजरिए पर टिप्पणी
करें।
उत्तर― 4 जून, 1845 ई० को सिलेसिया के बुनकरों ने सिलेसिया में ठेकेदारों के विरुद्ध एक व्यापक
विद्रोह किया था। सिलेसियाई बुनकरों के विद्रोह के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे―
1. 1830 के दशक में यूरोप में भुखमरी, विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों और जन-विद्रोह की
स्थिति उत्पन्न हो गयी। यह जनसंख्या वृद्धि, रोजगार की समस्या और निर्धनता का परिणाम था।
यूरोपीय देशों में गरीबी, बेरोजगारी तथा भुखमरी से तंग आकर वहाँ के किसानों और मजदूरों ने
विद्रोह प्रारम्भ कर दिए थे। सिलेसिया के निर्धन लोगों और श्रमिकों की भी यही स्थिति थी और
उनमें लगातार विद्रोह की भावना का विकास हो रहा था।
 
2. सिलेसिया के बुनकरों का यह विद्रोह ठेकेदारों के खिलाफ शुरू हुआ था, जो उन्हें कच्चा माल
देकर उनके द्वारा बना हुआ कपड़ा लेता था, परन्तु उन्हें बहुत कम दाम देता था। इस प्रकार इन
ठेकेदारों के कारण सिलेसिया के श्रमिकों की दशा अत्यन्त दयनीय होती जा रही थी। इससे
बुनकरों में घोर असन्तोष की भावना उत्पन्न हो गयी और उन्होंने सिलेसिया में व्यापक स्तर पर
विद्रोह किया।
 
प्रश्न 13.1848 ई० की उदारवादियों की क्रांति में किन विचारों को आगे बढ़ाया गया?
उत्तर― 1848 ई० में जब यूरोपीय देशों में किसान और मजदूर विद्रोह कर रहे थे, तब वहाँ पढ़े-लिखे
मध्यम वर्गों की एक क्रांति भी हो रही थी। इस क्रांति से राजा को गद्दी छोड़नी पड़ी थी ओर एक गणतंत्र की
घोषणा की गई थी, जो सभी पुरुषों के सार्विक मताधिकार पर आधारित थी। यूरोप के अन्य भागों में, जहाँ
अभी तक स्वतन्त्र राष्ट्र अस्तित्व में नहीं आए थे; जैसे-जर्मनी, इटली, पोलैंड आदि वहाँ के उदारवादी
मध्यम वर्गों ने संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड़ दिया। उन्होंने बढ़ते
जन-असन्तोष का लाभ उठाया और एक राष्ट्र-राज्य के निर्माण की माँग को आगे बढ़ाया। यह उनका
राष्ट्र-राज्य; संविधान, प्रेस की स्वतन्त्रता और संगठन बनाने की आजादी जैसे संसदीय सिद्धान्तों पर
आधारित था।
 
प्रश्न 14.1848 ई० की उदारवादी क्रांति का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर― 1848 ई० की उदारवादी क्रांति का यह परिणाम हुआ कि रूढ़िवादी ताकतें 1848 ई० के जर्मनी
में उदारवादी आन्दोलन को दबाने में सफल हुईं, परन्तु क्रांति की भावना को समाप्त करने के लिए अब वे
पहली जैसी राजतन्त्रीय व्यवस्थाओं को नहीं ला पाईं। राजाओं को अब यह समझ में आना शुरू हो गया कि
उदारवादी व राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों को सुविधाएँ देकर ही इस क्रांति को समाप्त किया जा सकता है।
इसीलिए 1848 ई० के बाद के वर्षों में मध्य और पूर्वी यूरोप की निरंकुश राजशाहियों ने उन परिवर्तनों को
आरम्भ किया, जो पश्चिमी यूरोप में 1815 ई० से पहले हो चुके थे। इस प्रकार हैब्सबर्ग अधिकार वाले क्षेत्रों
और रूस से भूदासत्व व बंधुआ मजदूरी समाप्त कर दी गयी। इसके अतिरिक्त हैब्सबर्ग शासकों ने हंगरी के
लोगों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की, यह बात अन्यथा है कि इससे निरंकुश मैग्यारों के प्रभुत्व का रास्ता
और अधिक सुगम हो गया।
 
प्रश्न 15.ऑटो वॉन बिस्मार्क कौन था? जर्मनी के एकीकरण में उसकी भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर― ऑटो वॉन बिस्मार्क प्रशा का प्रमुख मंत्री था। नेशनल एसेम्बली भंग होने के बाद जर्मनी में प्रशा
के ऑटो वॉन बिस्मार्क द्वारा जर्मनी के एकीकरण का नेतृत्व सम्भाला गया। बिस्मार्क के नेतृत्व में ऑस्ट्रिया,
डेनमार्क और फ्रांस से हुए युद्धों में प्रशा की जीत हुई और जर्मनी का एकीकरण पूरा हुआ। इसके बाद 1871
ई० में वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
18 जनवरी, 1871 ई० को वर्साय के महल के अत्यधिक ठंडे शीशमहल (हॉल ऑफ मिरर्स) में जर्मन राज्यों
के राजकुमारों, सेना के प्रतिनिधियों और प्रमुख मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क सहित प्रशा के महत्त्वपूर्ण मंत्रियों
की एक बैठक हुई। इस सभा में प्रशा के काइजर विलियम प्रथम के नेतृत्व में नए जर्मन साम्राज्य की घोषणा
की गयी।
इस प्रकार, बिस्मार्क के नेतृत्व में प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आन्दोलन का नेतृत्व सम्भाल लिया और
अन्ततः जर्मनी का एकीकरण करने में सफलता प्राप्त की। वस्तुत: बिस्मार्क ही जर्मनी में एकीकरण की
प्रक्रिया का जनक था। उसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की सहायता से अपने एकीकरण के लक्ष्य को
प्राप्त किया।
 
प्रश्न 16.काउंट कैमिलो द कातूर कौन था? उसके किन्हीं दो योगदानों का उल्लेख करें।
उत्तर― काउंट कैमिलो द कावूर―1831 ई० से 1848 ई. के मध्य ज्युसेपे मेसिनी के नेतृत्व में
इटली के एकीकरण की दिशा में जो प्रयास हुए, उनमें क्रांतिकारी विद्रोहियों को असफलता ही प्राप्त हुई।
इसके बाद कावूर ने इटली के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कावूर सार्डीनिया पीडमॉण्ट के राजा
विक्टर इमेनुएल द्वितीय का प्रमुख मंत्री था।
कावूर के दो प्रमुख योगदान―कावूर ने अपने देश इटली के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। इस दृष्टि
से उसके दो योगदानों का उल्लेख निम्नवत् है―
1. कावूर ने इतालवी एकीकरण के आन्दोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। 1861 ई० में इटली
का एकीकरण पूरा हो गया और इमेनुएल द्वितीय संयुक्त इटली का शासक घोषित किया गया।
इस प्रकार 1859-1870 की अवधि में इटली के एकीकरण की दृष्टि से कावूर का विशेष
योगदान था।
 
2. 1859 ई० में वह ऑस्ट्रिया को हराने में भी सफल रहा था। ऑस्ट्रिया से हुए इस युद्ध में सेना के
अतिरिक्त ज्युसेपे गैरीबाल्डी के नेतृत्व में सशस्त्र स्वयंसेवकों ने भी भाग लिया था। अन्ततः
कावूर और गैरीबाल्डी को अपने संयुक्त प्रयासों द्वारा अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता
प्राप्त हुई।
 
प्रश्न 17.”ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण, अचानक हुई कोई उथल-पुथल अथवा क्रांति का परिणाम
नहीं था।” उपयुक्त उदाहरण की सहायता से वर्णन करें।
उत्तर― “ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण, अचानक हुई कोई उथल-पुथल अथवा क्रांति का परिणाम
नहीं था।” इस कथन को निम्नलिखित उदाहरणों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है―
1. ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण किसी क्रांति या अचानक हुए किसी परिवर्तन का परिणाम नहीं
था। वहाँ यह काफी समय से धीरे-धीरे चलने वाली प्रक्रिया का परिणाम था। 18वीं सदी के पूर्व
जिसे हम ब्रिटेन कहते थे, वह था ही नहीं। ब्रितानी द्वीपसमूह अनेक नस्ली और जनजातियों का
समूह था।
 
2. आंग्ल-संसद एक ऐसा माध्यम था, जिसके आधार पर राष्ट्र-राज्य का निर्माण सम्भव हो सका
और इसके केन्द्र में इंग्लैंड था।
 
3. 1707 ई० में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के मध्य ‘ऐक्ट ऑफ यूनियन’ के आधार पर यूनाइटेड
किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन हुआ।
 
4. 1801 ई० में आयरलैंड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में शामिल कर लिया गया। इसके
उपरान्त एक नए ब्रितानी राष्ट्र का निर्माण किया गया तथा इसमें आंग्ल-संस्कृति का
प्रचार-प्रसार किया गया।
 
प्रश्न 18. राष्ट्रवादी आन्दोलनों के दौरान प्रयोग होने वाले विभिन्न प्रतीकों का वर्णन करें।
उत्तर―यूरोप में राष्ट्रवादी आन्दोलनों और क्रांतियों के दौरान लोगों में राष्ट्रीय भावना जाग्रत करने के
लिए जिन प्रतीकों अथवा रूपकों का प्रयोग किया गया, उनमें से कुछ प्रतीक इस प्रकार हैं―
1. टूटी हुई बेड़ियाँ                          ―       आजादी मिलना
2. बाज-छाप कवच                        ―       जर्मन साम्राज्य का प्रतीक―शक्ति
3. बलूत की पत्तियों का मुकुट           ―       बहादुरी
4. तलवार                                     ―       मुकाबले की तैयारी
5. तलवार में लिपटी जैतून की डाली  ―    शांति की चाह
6. काला, लाल, सुनहरा तिरंगा           ―   1848 ई० में उदारवादी राष्ट्रवादियों का
                                                           झण्डा, जिसे जर्मन राज्यों के ड्यूक्स
                                                           ने प्रतिबंधित घोषित कर दिया था।
7. उगते सूर्य की किरणें                    ―     एक नए युग का सूत्रपात
 
                                   दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. फ्रेडरिक सॉरयू के चित्रों के भावों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर― सॉरयू का कल्पनादर्श स्वप्न (यूटोपिया) अथवा उसकी कल्पना पर आधारित आदर्श स्वप्न
था। फ्रेडरिक सॉरयू के ‘कल्पनादर्श’ (यूटोपिया) का शाब्दिक अर्थ है-ऐसे आदर्श समाज की कल्पना,
जिसका साकार होना लगभग असम्भव हो। इसी प्रकार की कल्पना पर आधारित एक चित्र-शृंखला फ्रांसीसी
कलाकार फ्रेडरिक सॉरयू के द्वारा बनायी गयी थी। उसके इन चित्रों के भावों की समीक्षा इस प्रकार की जा
सकती है―
1. सॉरयू द्वारा बनाए गए पहले चित्र में जनतन्त्र, गणतन्त्र, स्वतन्त्रता, उदारवाद और विभिन्न राष्ट्रों
के मध्य भाईचारे की भावना को दिखाने का प्रयास किया गया है।
 
2. इस श्रृंखला के पहले चित्र में यूरोप और अमेरिका के लोग अलग-अलग राष्ट्रों के समूह में बँटे
हुए हैं। उनकी पहचान उनकी वेशभूषा, उनके प्रतीकों और कपड़ों को देखकर हो सकती है।
जिन देशों को इस चित्र में दिखाया गया है, वे देश हैं-अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी,
ऑस्ट्रिया, लम्बाडों, पोलैंड, इंग्लैंड, आयरलैंड, हंगरी और रूस। इन देशों के लोग एक लम्बी
कतार में चित्र में दिखाई गयी स्वतन्त्रता की प्रतिमा की वंदना करते हुए दिखाए गए हैं।
 
3. फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस के कलाकार स्वतन्त्रता को एक महिला के रूप में ही चित्रित
करते थे। इसीलिए यहाँ इस चित्र में भी स्वतन्त्रता की एक प्रतिमा के एक हाथ में ज्ञानोदय की
मशाल है और दूसरे हाथ में मनुष्यों के अधिकारों का घोषणा-पत्र।
 
4. इस प्रतिमा के सामने जमीन पर निरंकुश संस्थानों के ध्वस्त अवशेष दिखाए गए हैं।
 
5. सॉरयू के कल्पनादर्श में संसार के लोग अलग-अलग राष्ट्रों के समूहों में बँटे हुए दिखाए गए
हैं। इनकी पहचान उनके ध्वजों और राष्ट्रीय पोशाकों के आधार पर होती है।
 
6. इस चित्र में संसार के राष्ट्रों के बीच भाईचारे को दर्शाने के लिए ऊपर स्वर्ग से ईसा मसीह, सन्त
और फरिश्तों को दिखाया गया है। वे इस सम्पूर्ण दृश्य पर अपनी दृष्टि रखे हुए हैं।
 
प्रश्न 2. 1789 की फ्रांसीसी क्रांति का फ्रांस व यूरोप पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर― 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति का फ्रांस पर व्यापक रूप से प्रभाव हुआ। वहाँ राजतन्त्र के स्थान
पर अनेक नवीन परिवर्तन हुए। एस्टेट जनरल के स्थान पर नेशनल एसेम्बली का गठन हुआ तथा जनता के
हित में अनेक नवीन सुधार हुए। लोगों की स्वतन्त्रता को महत्त्व दिया गया और समानता पर आधारित न्याय
व्यवस्था की स्थापना हुई। इसके अतिरिक्त फ्रांस में क्रांति की सफलता से प्रेरित होकर वहाँ के क्रांतिकारियों
ने यूरोप के अन्य देशों के लोगों को भी निरंकुश शासकों से मुक्त कराने का लक्ष्य निर्धारित किया। इस प्रकार
संक्षेप में 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति के फ्रांस और यूरोप पर हुए प्रभावों का उल्लेख निम्नवत् किया जा
सकता है―
(क) फ्रांसीसी क्रांति का फ्रांस पर प्रभाव
1789 ई० में फ्रांस में होने वाली राज्य-क्रांति के फ्रांस पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख निम्नलिखित
बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है―
1. इस क्रांति के फलस्वरूप लुई सोलहवें के शासन के अन्त के साथ ही फ्रांस में लुई वंश के
शासन का अन्त हो गया और फ्रांस में लोकतन्त्रीय शासन का आरम्भ हुआ।
 
2. इस क्रांति के उपरान्त फ्रांस में अनेक लोक-कल्याणकारी कार्य आरम्भ हुए। वहाँ सड़कों,
पुलों, नहरों, चिकित्सालयों, स्कूलों आदि का निर्माण कराया गया।
 
3. फ्रांस में स्वतन्त्रता, समानता, भ्रातृत्व और न्याय पर आधारित समाज हेतु प्रयास किए गए।
 
4. न्याय-व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किए गए और देश के लिए नवीन कानून-संहिता लागू
की गई।
 
5. फ्रांस की प्रभुसत्ता अब राजतन्त्र के स्थान पर वहाँ के नागरिकों के हाथों में आ गई।
 
6. एस्टेट जनरल के स्थान पर नागरिकों द्वारा चुनी गयी नेशनल एसेम्बली का गठन किया गया।
 
7. फ्रेंच भाषा का राष्ट्रभाषा और तिरंगे को वहाँ का ध्वज घोषित किया गया।
 
8. समस्त आयात-निर्यात शुल्क हटा दिए गए और भार व नाप की एकसमान व्यवस्था लागू की
गयी।
 
9. फ्रांस के पादरियों और शासक वर्ग के विशेषाधिकारों का अन्त कर दिया गया। कानून की दृष्टि
से सभी को समान माना गया और सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया गया।
 
(ख) फ्रांसीसी क्रांति का यूरोप पर प्रभाव
1789 ई० में फ्रांस में होने वाली राज्य-क्रांति का यूरोप के विभिन्न देशों पर जो प्रभाव पड़ा, उसका संक्षिप्त
उल्लेख इस प्रकार है―
1. यूरोप के विभिन्न देशों में राष्ट्रवाद का तेजी से विकास हुआ और विद्रोहों व क्रांतियों के माध्यम
से एक-एक करके वहाँ राष्ट्र-राज्यों की स्थापना में सफलता प्राप्त होने लगी।
 
2. लोकतन्त्र के इस विचार को सभी यूरोपीय देशों में बल मिला कि सरकार जनता द्वारा और
जनता के लिए होती है।
 
3. यूरोप में समाजवादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार हुआ। इसके फलस्वरूप वहाँ सामाजिक,
राजनैतिक, आर्थिक समानता के सिद्धान्तों पर बल दिया जाने लगा।
 
4. यूरोप के लोगों में एक नवीन चेतना का उदय हुआ और उन्होंने अपने अधिकारों के लिए
आन्दोलन प्रारम्भ कर दिए।
 
5. यूरोप के निरंकुश शासकों ने क्रांतिकारियों का दमन करना शुरू कर दिया।
 
प्रश्न 3. “नेपोलियन ने फ्रांस में प्रजातन्त्र को नष्ट किया था, परन्तु प्रशासनिक क्षेत्र में उसने
क्रांतिकारी सिद्धान्तों का समावेश किया था, ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और
कुशल बन सके।” तर्क देकर इस कथन की समीक्षा करें।
उत्तर― नेपोलियन के नियंत्रण में जो विशाल क्षेत्र आया, वहाँ उसने अनेक सुधारों का आरम्भ किया।
यद्यपि उसके द्वारा फ्रांस में राजतन्त्र को पुन: वापस लाया गया और इस प्रकार उसने वहाँ प्रजातन्त्र को
समाप्त कर दिया, परन्तु प्रशासनिक दृष्टि से उसने अनेक क्रांतिकारी और प्रशंसनीय कदम उठाए। उसने
1804 में एक नागरिक संहिता’ बनाई, जिसे ‘नेपोलियन की संहिता’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके
आधार पर प्रशासनिक दृष्टि से अनेक उल्लेखनीय कार्य किए गए। इनका संक्षिप्त उल्लेख निम्नवत है―
1. जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए।
2. कानून की दृष्टि से सभी की समानता का ध्यान रखा गया।
3. सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया गया।
4. डच गणतन्त्र, स्विट्जरलैंड, इटली और जर्मनी में प्रशासनिक विभाजन को सरल बनाया गया।
5. सामंती व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।
6. किसानों को भूदासत्व और जागीरदारी-शुल्कों से मुक्त कर दिया गया।
7. नगरों में कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रण को हटा दिया गया।
8. यातायात और संचार-सुविधाओं में सुधार किया गया।
 
प्रश्न 4. यूरोप में राष्ट्रवाद के उत्थान के लिए कौन-से कारण उत्तरदायी थे? विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर― 18वीं शताब्दी के मध्य तक यूरोप के देशों में राष्ट्रवाद का उत्थान नहीं हुआ था। परिणामतः
वहाँ राष्ट्र-राज्यों का निर्माण भी सम्भव नहीं हो सका था। यूरोप के विभिन्न देश अलग-अलग क्षेत्रों,
भाषाओं, कैटनों और जातियों में बँटे हुए थे। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ से यूरोप में भी राष्ट्रवादी भावनाओं
का प्रसार होने लगा। इसके फलस्वरूप वहाँ भी राष्ट्र-राज्यों का निर्माण हुआ। संक्षेप में यूरोप में राष्ट्रवाद के
उत्थान के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे―
1. मध्यम वर्ग का उदय―यूरोप में जिस मध्यम वर्ग का उदय हुआ, वह वेतन पर कार्य करने
वाला वर्ग था। यह वर्ग तर्क एवं वैज्ञानिक सोच के आधार पर विचार करने वाला और समाज का
शिक्षित वर्ग था। इसी में सर्वाधिक राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्रीय भावना का उदय हुआ। राष्ट्रवाद
की विकास के दौरान इसी वर्ग ने अपनी राष्ट्रीय भावना के आधार समाज के वर्गों को
संगठित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
 
2. उदारवादी विचारधारा का प्रारम्भ―1848 ई० में जब यूरोपीय देशों में किसान और मजदूर
विद्रोह कर रहे थे, तब वहाँ पढ़े-लिखे मध्य वर्गों की एक क्रांति भी हो रही थी। इस क्रांति से
राजा को गद्दी छोड़नी पड़ी थी ओर एक गणतंत्र की घोषणा की गई थी, जो सभी पुरुषों के
सार्विक मताधिकार पर आधारित थी। यूरोप के अन्य भागों में, जहाँ अभी तक स्वतन्त्र राष्ट्र
अस्तित्व में नहीं आए थे; जैसे-जर्मनी, इटली, पोलैंड आदि। वहाँ के उदारवादी मध्यम वर्गों ने
संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड़ दिया। उन्होंने बढ़ते
जन-असन्तोष का लाभ उठाया ओर एक राष्ट्र-राज्य के निर्माण की माँग को आगे बढ़ाया। यह
उनका राष्ट्र-राज्य; संविधान, प्रेस की स्वतन्त्रता और संगठन बनाने की आजादी जैसे संसदीय
सिद्धान्तों पर आधारित था।
 
3. यूनान का स्वतन्त्रता संग्राम―1830 से 1848 के मध्य यूनान के स्वतन्त्रता संग्राम ने भी
यूरोप के शिक्षित वर्ग को प्रभावित किया और उसमें राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया।
यूनानियों का आजादी का यह संघर्ष 1821 ई० से ही आरम्भ हो गया था। पन्द्रहवीं शताब्दी से
यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा बना हुआ था। यूनानियों के आजादी के इस संघर्ष में उन्हें
पश्चिमी यूरोप में निर्वासन में रह रहे यूनानियों का भी समर्थन प्राप्त हुआ। इस समय यूरोप के
कवियों और कलाकारों ने यूनान को ‘यूरोपीय सभ्यता का पालना’ बताकर उसकी प्रशंसा की
और इस मुस्लिम साम्राज्य के लिए जनमत जुटाने में भी अपना सहयोग दिया। सुप्रसिद्ध अंग्रेज
कवि लॉर्ड बायरन ने यूनान के लिए धन एकत्रित किया और स्वयं भी इस युद्ध में शामिल हुए।
यूनानियों के स्वतन्त्रता संग्राम के मध्य अन्तत: 1832 ई० की कुस्तुनतुनिया की संधि के बाद
यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
 
4. संस्कृति की भूमिका―राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति ने भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का
निर्वाह किया। भाषा, कला, काव्य, कहानियों, लोक-परम्पराओं और संगीत ने भी राष्ट्रवादी
भावनाओं के विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनके माध्यम से राष्ट्रवादी भावनाओं
को विकसित करने और व्यक्त करने में सहायता प्राप्त हुई। इस दृष्टि से फ्रांसीसी कलाकार
फ्रेडरिक सॉरयू के द्वारा बनायी गयी चार चित्रों की श्रृंखला भी इसी प्रकार का एक उदाहरण है।
इस चित्र-श्रृंखला के माध्यम से लोगों को एक राष्ट्र, संघर्ष, विद्रोह, स्वतन्त्रता और आजादी की
दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त हुई। सॉरयू के चित्रों में जनतन्त्र, गणतन्त्र, स्वतन्त्रता,
उदारवाद और विभिन्न राष्ट्रों के मध्य भाईचारे की भावना को दिखाने का प्रयास किया गया था।
इसी प्रकार जर्मनी के ग्रिम बंधुओं द्वारा लोक-कथा और माध्यम से राष्ट्र-निर्माण की दिशा में
प्रयास किया गया। इस दृष्टि से रूमानीवाद भी एक ऐसा ही एक सांस्कृतिक आन्दोलन था। यह
एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन था, जो एक विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना
चाहता था।
 
5. भाषा―भाषा ने भी राष्ट्रवाद के उत्थान में अपना विशिष्ट योगदान दिया। जब पोलैंड पर रूस
ने जबरन अपनी रूसी भाषा को लादने का प्रयास किया तो पोलैंड के राष्ट्रवादियों ने भाषा को
ही राष्ट्रवादी आन्दोलन को आगे बढ़ाने हेतु एक हथियार के रूप में प्रयोग किया। वहाँ चर्च
सम्बन्धी विभिन्न आयोजनों में भी पोलिश भाषा को ही प्रयोग में लाया गया। पोलिश भाषा को
रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के एक प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा।
 
6. जन-विद्रोह―1830 ई० के दशक में यूरोप के देशों में जनसंख्या की तेजी से वृद्धि हुई। वहाँ
अभी भी कुलीन वर्ग ही सत्ता में था और कृषक कर्ज के बोझ से दबे हुए थे। शहरों और गाँवों में
अनेक कारणों से निर्धनता का साम्राज्य था। बेरोजगारी और खाद्यान्न की कमी के कारण यूरोप
के लोगों ने विद्रोह करने शुरू कर दिए थे। इन विद्रोहों के कारण यूरापीय दशों की रूढ़िवादी
सरकारें धराशायी होने लगी और वहाँ राष्ट्रवाद की भावना का तेजी से विकास होने लगा।
 
प्रश्न 5. 1815 ई० में नेपोलियन की हार के बाद यूरोप में स्थापित रूढ़िवादी शासन की कोई तीन
विशेषताएँ लिखें।
उत्तर― 1815 ई० में नेपोलियन की हार के बाद यूरोप में स्थापित रूढ़िवादी शासन की तीन प्रमुख
विशेषताएँ निम्नलिखित हैं―
1. 1815 ई० के बाद यूरोप में एक नया रूढ़िवाद सामने आया। इस समय यूरोपीय सरकारें
रूढ़िवादी भावना से प्रेरित थीं। उनका मानना था कि राजतन्त्र, चर्च, सामाजिक ऊँच-नीच की
परम्परा आदि को बनाए रखना चाहिए।
 
2. फिर भी रूढ़िवादी यह स्वीकार करने लगे थे कि आधुनिकीकरण के द्वारा राजतन्त्र को अधिक
मजबूत बनाया जा सकता है। अतः एक आधुनिक सेना, कुशल नौकरशाही, गतिशील
अर्थव्यवस्था की दिशा में प्रयास तथा सामन्तवाद और भूदासत्व की समाप्ति उनके राजतन्त्र को
शक्ति प्रदान कर सकते थे।
 
 
3. 1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन-व्यवस्थाएँ पूर्णत: निरंकश थीं। उन्होंने जनता और
पा क्रांतिकारियों के उन सभी क्रियाकलापों को नियंत्रित करने का प्रयास किया, जो उनकी निरंकुश
सरकार के लिए खतरा थीं। उनके द्वारा इस प्रकार के सेंसरशिप के नियम बनाए गए,
जो फ्रांसीसी क्रांति में व्यक्त किए गए स्वतन्त्रता और मुक्ति के विचार को नियंत्रित करते थे।
 
प्रश्न 6. वियना सम्मेलन के मुख्य प्रस्ताव क्या थे?
अथवा  1815 ई० की वियना संधि की किन्हीं चार विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर―1815 ई० में ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रिया और प्रशा जैसी वे शक्तियाँ, जिन्होंने नेपोलियन को हराया
था, उनके प्रतिनिधि यूरोपं के लिए एक समझौता तैयार करने हेतु वियना में मिले। 1815 ई० में आयोजित
वियना शांति-संधि की अध्यक्षता ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख ने की। वियना कांग्रेस में हुई वियना
संधि में फ्रांस को कमजोर करके तथा रूस, प्रशा, ऑस्ट्रिया आदि को शक्तिशाली बनाकर नेपोलियन द्वारा
समाप्त किए गए राजतन्त्रों को बहाल करने का प्रयास किया गया था। इसका उद्देश्य नेपोलियन द्वारा युद्धों के
दौरान किए गए बदलावों को समाप्त करना था। संक्षेप में वियना कांग्रेस के मुख्य प्रस्तावों या उसकी
विशेषताओं का उल्लेख निम्नवत् है―
1. फ्रांस ने उन इलाकों को खो दिया, जिन पर उसने नेपोलियन के समय कब्जा किया था।
 
2. फ्रांस की सीमाओं पर कई राज्य स्थापित कर दिए गए, जिससे भविष्य में फ्रांस अपना
साम्राज्यवादी विस्तार न कर सके। अत: उत्तर में नीदरलैंड राज्य स्थापित किया गया, जिसमें
बेल्जियम सम्मिलित था और दक्षिण पीडमॉण्ट में जेनोआ को जोड़ दिया गया।
 
3. फ्रांस को उसकी पश्चिमी सीमाओं पर नए इलाके दिए गए, जबकि ऑस्ट्रिया को उत्तरी इटली
का नियंत्रण सौंपा गया। फिर भी नेपोलियन ने जिन 39 राज्यों को अपने महासंघ में शामिल
किया था, उन्हें बरकरार रखा गया।
 
4. पूर्व में रूस को पोलैंड का एक हिस्सा दिया गया, जबकि प्रशा को सैक्सनी का एक हिस्सा
प्रदान किया गया।
 
प्रश्न 7. इस कथन की व्याख्या करें कि “जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो
जाता है।”
उत्तर― राजतन्त्रीय रूढ़िवाद के विरुद्ध उदारवादी राष्ट्रवादियों के नेतृत्व में जो क्रांतिकारी प्रयास हुए,
उनमें पहली क्रांति होने का श्रेय फ्रांस को मिला। 1830 ई० में फ्रांस में पहला विद्रोह अथवा राज्य-क्रांति हुई।
इस क्रांति में रूढ़िवादी ताकतों को परास्त कर दिया गया। इसके बाद एक संवैधानिक राजतन्त्र की स्थापना
हुई और लुई फिलिप को इसका अध्यक्ष बनाया गया। इस दृष्टि से फ्रांस के सन्दर्भ में मैटरनिख ने एक बार
कहा था, “जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है।” मैटरनिख के इस कथन का
आशय यही है कि फ्रांस में जब भी कोई घटना घटित होती है तो इसका सम्पूर्ण यूरोप एवं विश्व पर प्रभाव
होता है। उसके इस कथन की पुष्टि निम्नलिखित कारणों के आधार पर भी होती है―
1. फ्रांस की 1789 ई० की क्रांति ने सारे विश्व को प्रभावित किया था और इस क्रांति से प्रभावित
होकर ही विश्व के अनेक देशों में क्रांतिकारी प्रयासों का या तो आरम्भ हुआ अथवा उनमें और
अधिक तेजी आई। विशेष रूप से यूरोपीय देशों के राष्ट्रवादी फ्रांस की क्रांति से बहुत अधिक
प्रभावित हुए।
 
2. विश्व में 1830 ई० से 1848 ई० की समयावधि को ‘क्रांतियों का युग’ कहा जाता है और इस
दृष्टि से भी फ्रांस के द्वारा ही पहल की गयी। वहाँ 1830 ई० में एक व्यापक क्रांति हुई।
 
3. फ्रांस की इस क्रांति से प्रेरित होकर ही ब्रूसेल्स में भी विद्रोह भड़क गया, जिसके फलस्वरूप
यूनाइटेड किंग्डम ऑफ नीदरलैंड से अलग हो गया। साथ ही यूरोप के अन्य भागों में भी
दमनकारी शक्तियों के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी भड़क उठी।
 
प्रश्न 8. “रूमानीवाद’ से आपका क्या अभिप्राय है? यह रूमानीवाद एक विशेष प्रकार की राष्ट्रवादी
भावना के रूप में किस प्रकार विकसित हुआ?
उत्तर― ‘रूमानीवाद’ के आशय और राष्ट्रवादी भावना के रूप में रूमानीवाद के विकास को
निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है―
‘रूमानीवाद’का आशय―रूमानीवाद एक सांस्कृतिक आन्दोलन था। रूमानीवाद के समर्थकों का प्रयास
एक साझा सांस्कृतिक अतीत और एक साझा सामूहिक विरासत को राष्ट्रवाद का आधार बनाना था, जिसमें
किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो। यह एक विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था।
रूमानीवाद की विचारधारा के अनुसार लोक-संस्कृति के विभिन्न स्वरूपों को एकत्र करना और उन्हें दर्शाना;
राष्ट्र-निर्माण की योजना हेतु आवश्यक है। इसके अन्तर्गत रूमानीवादी आन्दोलन में स्थानीय बोलियों और
स्थानीय साहित्य को भी इस दृष्टि से आधार बनाया गया, जिससे राष्ट्रीय संदेशों को आम लोगों तक सरलता
से पहुँचाया जा सके।
 
राष्ट्रवादी भावना के रूप में रूमानीवाद का विकास―रूमानीवाद पर आधारित आन्दोलन ने भावनाओं,
अन्तर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर बल दिया। यह एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन था, जो यह एक
विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था। वस्तुत: रूमानी भावनों पराभौतिक अथवा
कल्पनाशील वातावरण से जुड़ी थीं। इसमें व्यक्ति अपने ही कल्पनालोक में विचरता है और उसी के अनुरूप
अपने आसपास के वातावरण में परिवर्तन लाना चाहता है। वह अपने स्वप्नलोक में रहकर एक नए संसार का
निर्माण करना चाहता है। इस दृष्टि से चाहे ज्वेब्रकेन के ‘स्वतन्त्रता के वृक्ष’ का चित्रण हो अथवा फ्रेडरिक
सॉरयू का ‘विश्वव्यापी प्रजातान्त्रिक व सामाजिक गणराज्यों का स्वप्न, इन सभी में काल्पनिक संसार का ही
सृजन किया गया है। रूमानीवाद के सन्दर्भ में जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड का नाम
उल्लेखनीय है। उनका विचार था कि सच्ची जर्मन संस्कृति उसके आम लोगों (das volk) में निहित है और
राष्ट्र की सच्ची आत्मा; लोकगीतों, जन-काव्यों और लोकनृत्यों के माध्यम से प्रकट होती है।
 
प्रश्न 9. यूरोप में राष्ट्रवादी भावनाओं के विकास में भाषाओं की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर― यूरोप में राष्ट्रवादी भावनाओं के विकास में भाषाओं की विशेष भूमिका रही। निम्नलिखित
बिन्दुओं के आधार पर भाषा की इस भूमिका को स्पष्ट किया जा सकता है―
1. लगभग सारे यूरोपीय देशों में हुई क्रांतियों अथवा विद्रोहों के लिए राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रसार
करने की दृष्टि से किसी-न-किसी रूप में भाषा का प्रभावपूर्ण उपयोग किया गया।
 
2. पोलैंड पर रूसी कब्जे के उपरान्त वहाँ पोलिश भाषा को हटाकर जबरन रूसी भाषा को लादा
गया। पोलैंड के राष्ट्रवादी आन्दोलन की गति तीव्र करने में रूस के इस प्रयास ने आग में घी का
कार्य किया।
 
3. 1831 ई० में पोलैंड में रूस के विरुद्ध हुए सशस्त्र विद्रोह में भाषा को ही राष्ट्रवादी-विरोध के
लिए एक हथियार के रूप में प्रयुक्त किया गया।
 
4. पोलिश भाषा को रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा।
 
5. चर्च के सभी आयोजनों में भी पोलिश भाषा का प्रयोग किया जाने लगा। यह बात अन्यथा है कि
रूसी अधिकारियों ने इसी कारण पादरियों और बिशपों को जेल में डाल दिया और बाद में उन्हें
सजा देते हुए साइबेरिया भेज दिया। इन पादरियों ने रूसी भाषा का प्रयोग करने से इनकार कर
दिया था।
 
प्रश्न 10.1845 ई० में ठेकेदारों के विरुद्ध सिलेसिया के बुनकरों के विद्रोह का वर्णन करें।
उत्तर― 1830 के दशक में यूरोप में भुखमरी, विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों और जन-विद्रोह की
स्थिति उत्पन्न हो गयी। यह जनसंख्या वृद्धि, रोजगार की समस्या और निर्धनता का परिणाम था। 1848 ई० में
यूरोपीय देशों में गरीबी, बेरोजगारी तथा भुखमरी से तंग आकर वहाँ के किसानों और मजदूरों ने विद्रोह
प्रारम्भ कर दिया। 1848 ई० में इन्हीं कारणों से फ्रांस की राजधानी पेरिस के लोग सड़कों पर उतर आए और
उन्होंने विद्रोह कर दिया। स्थान-स्थान पर अवरोध लगा दिए गए और लुई फिलिप को भागने के लिए विवश
होना पड़ा। पेरिस के विद्रोह से पूर्व सिलेसिया में भी वहाँ के बुनकरों ने व्यापक स्तर पर विद्रोह किया। उनका
यह विद्रोह ठेकेदारों के खिलाफ शुरू हुआ था, जो उन्हें कच्चा माल देकर उनके द्वारा बना हुआ कपड़ा लेता
था, परन्तु उन्हें बहुत कम दाम देता था। इस प्रकार, इन ठेकेदारों के कारण सिलेसिया के श्रमिकों की दशा
अत्यन्त दयनीय होती जा रही थी। इसी के विरोध में 4 जून, 1845 ई० को बुनकरों की एक भीड़ अपने घरों
से निकली और एक ठेकेदार की कोठी पर पहुँची। वे अधिक मजदूरी की मांग कर रहे थे। यह भीड़ ठेकेदार
के घर में जबरन घुस गयी और उसके घर की सभी वस्तुओं को तोड़ दिया। ठेकेदार के घर के भंडारगृह में
घुसकर भीड़ के एक समूह ने वहाँ रखे कपड़े के भंडार को लूटकर उसे नष्ट कर दिया। ठेकेदार अपने
परिवार के साथ पास के एक गाँव की ओर भाग गया, यद्यपि उस गाँव के लोगों ने उसे शरण देने से मना कर
दिया। 24 घण्टे बाद वह सेना की सहायता से वापस लौटा। इसके बाद बुनकरों और सैनिकों में जो टकराव
हुआ, उसमें ग्यारह बुनकरों को गोली मार दी गयी।
 
प्रश्न 11. यूरोप में 1848 ई० में उदारवादियों के विद्रोह की प्रमुख माँगों की चर्चा कीजिए। इसके क्या
परिणाम हुए?
उत्तर― यूरोप में 1848 ई० में उदारवादियों के विद्रोह की प्रमुख माँगों और उदारवादियों के विद्रोह के
परिणामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है―
यूरोप में 1848 ई० में उदारवादियों के विद्रोह की प्रमुख माँगें―यूरोप में 1848 ई० का वर्ष उदारवादियों
की क्रांति का वर्ष कहलाता है। 1848 ई० में जब यूरोपीय देशों में किसान और मजदूर विद्रोह कर रहे थे तब
वहाँ पढ़े-लिखे मध्य वर्गों की एक क्रांति भी हो रही थी। इस क्रांति से राजा को गद्दी छोड़नी पड़ी थी और एक
गणतंत्र की घोषणा की गई थी, जो सभी पुरुषों के सार्विक मताधिकार पर आधारित थी। यूरोप के अन्य भागों
में, जहाँ अभी तक स्वतन्त्र राष्ट्र अस्तित्व में नहीं आए थे; जैसे-जर्मनी, इटली, पोलैंड आदि वहाँ के
उदारवादी मध्यम वर्गों ने संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड़ दिया। उन्होंने बढ़ते
जन-असन्तोष का लाभ उठाया और एक राष्ट्र-राज्य के निर्माण की माँग को आगे बढ़ाया। यह उनका यह
राष्ट्र-राज्य; संविधान, प्रेस की स्वतन्त्रता ओर संगठन बनाने की आजादी जैसे संसदीय सिद्धान्तों पर
आधारित था। इस समय फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैंड, आस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य के उदारवादी मध्यमवर्गों
द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण हेतु क्रांतिकारी प्रयास किए गए और जर्मनी में सर्व-नेशनल एसेंबली की जीत हुई।
उदारवादियों के विद्रोह के परिणाम―रूढ़िवादी निरंकुश शक्तियाँ 1848 ई० के उदारवादी मध्यमवर्गों
द्वारा संचालित उदारवादी आन्दोलन को दबाने में सफल हुईं। फिर भी क्रांति की भावना को समाप्त करने के
लिए अब वे पहली जैसी राजतन्त्रीय व्यवस्थाओं को नहीं ला पाईं। राजाओं को अब यह समझ में आना शुरू
हो गया कि उदारवादी व राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों को सुविधाएँ देकर ही इस क्रांति को समाप्त किया जा सकता
है। इसीलिए 1848 ई० के बाद के वर्षों में मध्य और पूर्वी यूरोप की निरंकुश राजशाहियों ने उन परिवर्तनों को
आरम्भ किया, जो पश्चिमी यूरोप में 1815 ई० से पहले हो चुके थे। इस प्रकार हैब्सबर्ग अधिकार वाले क्षेत्रों
और रूस से भूदासत्व व बंधुआ मजदूरी समाप्त कर दी गयी। इसके अतिरिक्त हैब्सबर्ग शासकों ने हंगरी के
लोगों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की, यह बात अन्यथा है कि इससे निरंकुश मैग्यारों के प्रभुत्व का रास्ता
और अधिक सुगम हो गया।
 
प्रश्न 12.जर्मन-एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षिप्त मूल्यांकन करें।
उत्तर― 1848 ई० के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतन्त्र और क्रांति से अलगाव होने लगा। रूढ़िवादी
शक्तियों ने इस स्थिति का अपने हित में प्रयोग किया। जर्मनी में राष्ट्रवादी भावनाओं से ओतप्रोत उदारवादियों
ने 1848 ई० में जर्मन महासंघ के विभिन्न क्षेत्रों को एक करके निर्वासित संसद द्वारा राष्ट्र-राज्य बनाने का
प्रयास किया था, परन्तु अन्त में राजशाही और सेना ने उनकी शक्ति को दबा दिया और नेशनल एसेम्बली को
भंग कर दिया गया था।
नेशनल एसेम्बली भंग होने के बाद जर्मनी में प्रशा के ऑटो वॉन बिस्मार्क द्वारा जर्मनी के एकीकरण का
नेतृत्व सम्भाला गया। बिस्मार्क के नेतृत्व में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से हुए युद्धों में प्रशा की जीत हुई
और जर्मनी का एकीकरण पूरा हुआ। इसके बाद 1871 ई० में वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा
विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
18 जनवरी, 1871 ई० को वर्साय के महल के अत्यधिक ठंडे शीशमहल (हॉल ऑफ मिरर्स) में जर्मन
राज्यों के राजकुमारों, सेना के प्रतिनिधियों और प्रमुख मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क सहित प्रशा के महत्त्वपूर्ण
मंत्रियों की एक बैठक हुई। इस सभा में प्रशा के काइजर विलियम प्रथम के नेतृत्व में नए जर्मन साम्राज्य की
घोषणा की गयी।
 
प्रश्न 13. इटली के एकीकरण की प्रक्रिया पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर― 1830 ई० के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणतन्त्र के लिए एक सुविचारित
कार्यक्रम प्रस्तुत किया। इटली के एकीकरण से सम्बन्धित अपने प्रयासों की दिशा में उसके द्वारा मार्सेई
नामक स्थान पर एक गुप्त संगठन ‘यंग-इटली’ का गठन किया गया। इसी प्रकार इटली में ‘यंग-यूरोप’
नामक संगठन का भी गठन किया गया। मेत्सिनी ने अपने संगठन के सदस्यों और अपने समर्थकों के साथ
इटली के एकीकरण हेतु प्रयास शुरू किए। उसके नेतृत्व में कई बार क्रांतिकारी विद्रोह हुए, परन्तु 1831 ई०
से 1848 ई० के मध्य क्रांतिकारी विद्रोहियों को असफलता ही प्राप्त हुई।
इसके बाद सार्जीनिया पीडमॉण्ट के राजा विक्टर इमेनुएल द्वितीय के प्रमुख मंत्री कावूर ने इटली के
एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने इतालवी एकीकरण के आन्दोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व
किया, यद्यपि वह न तो एक क्रांतिकारी था और न ही उसकी जनतन्त्र में कोई आस्था थी। इतालवी अभिजात
वर्ग के समस्त अमीर और शिक्षित सदस्यों की तरह वह इतालवी भाषा से कहीं अधिक फ्रेंच भाषा बोलता था।
फ्रांस से सार्जीनिया पीडमॉण्ट की एक कूटनीतिक संधि हुई थी, जिसमें कावूर का ही हाथ था। 1859 ई० में
वह ऑस्ट्रिया को हराने में भी सफल रहा था।
ऑस्ट्रिया से हुए इस युद्ध में सेना के अतिरिक्त ज्युसेपे गैरीबाल्डी के नेतृत्व में सशस्त्र स्वयंसेवकों ने भी भाग
लिया था। अन्तत: कावूर और गैरीबाल्डी को अपने संयुक्त प्रयासों द्वारा अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता
प्राप्त हुई। 1861 ई० में इटली का एकीकरण पूरा हो गया और इमेनुएल द्वितीय संयुक्त इटली का शासक
घोषित किया गया। इस प्रकार 1859-1870 की अवधि में इटली का एकीकरण कैवूर, मैजनी और
गैरीबाल्डी के संयुक्त प्रयासों का परिणाम था।
 
प्रश्न 14.इटली के एकीकरण में आने वाली प्रमुख बाधाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर― उपर्युक्त समस्त विवरण का अध्ययन करने से यह सहज ही ज्ञात हो जाता है कि इटली के
एकीकरण में इटली का विभिन्न राज्यों में विखंडन, वहाँ विदेशी शक्तियों का आधिपत्य और इटली के मध्य
भाग के बड़े क्षेत्र पर पोप का शासन; इटली के एकीकरण में आने वाली प्रमुख बाधाएँ थीं। इन समस्त
बाधाओं का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित पंक्तियों में किया गया है―
1. इटली के राजनीतिक विखंडन का दीर्घकालीन इतिहास―जर्मनी के समान ही इटली के
राजनीतिक विखंडन का भी पुराना इतिहास रहा था। इटली अनेक वंशानुगत राज्यों एवं हैब्सबर्ग
साम्राज्य में बिखरा हुआ था। ये सभी विखंडित राज्य अपने-अपने स्वार्थों के कारण एक-दूसरे
के संघर्ष करने में ही लिप्त रहते थे। इनमें राष्ट्रीयता की भावना का सर्वथा अभाव था।
 
2. विदेशी शक्तियों का आधिपत्य―इटली के विभिन्न भागों पर विदेशी शक्तियों ने अपना
आधिपत्य जमा रखा था। इटली का उत्तरी भाग ऑस्ट्रियाई हैब्सबर्गों के अधीन था। मध्य क्षेत्रों
पर पोप का शासन था और इटली के दक्षिणी क्षेत्र स्पेन के बूबों राजाओं के अधीन थे। इस
प्रकार इटली के व्यापक रूप से बिखरे हुए साम्राज्य का एकीकरण करना एक अत्यन्त कठिन
कार्य था।
 
3. पोप का इटली के एकीकरण के पक्ष में न होना―इटली के मध्य क्षेत्र के एक बहुत बड़े क्षेत्र
पर पोप का आधिपत्य था। पोप स्वयं को ईसाई-जगत् का नेता समझता था। वह अपने निजी
हितों के कारण इटली के एकीकरण के पक्ष में नहीं था। उसने बाहर से फ्रांस की सेनाओं को
बुलाकर रोम में तैनात कर रखा था, जिससे इटली की राष्ट्रवादी शक्तियाँ उससे रोम को न छीन
पाएँ।
 
4. वियना कांग्रेस में इटली का पुनः विखंडन―नेपोलियन ने इटली पर विजय प्राप्त करने के
उपरान्त वहाँ एकता का संचार किया था, परन्तु नेपोलियन की हार के बाद होने वाली वियना
कांग्रेस में इटली का पुन: विखंडन कर दिया गया था। इसके अतिरिक्त वहाँ पुन: रूढ़िवादी
शासकों को गद्दी पर बैठा दिया गया था। ये रूढ़िवादी शासक किसी भी दशा में इटली का
एकीकरण नहीं चाहते थे और इस दिशा में प्रयास करने वाले राष्ट्रवादियों को दमन करने का
प्रयास करते थे।
 
5. रूढ़िवादी निरंकुश शासक―इसके अतिरिक्त वहाँ फिर से रूढ़िवादी निरंकुश शासकों को
गद्दी पर बैठा दिया गया था। इसके परिणामस्वरूप भी इटली के एकीकरण में एक बहुत बड़ी
बाधा उत्पन्न हुई। ये रूढ़िवादी शासक अत्यधिक निरंकुश और अनुदार स्वभाव वाले थे। उन्हें
किसी की आलोचना या असहमति बर्दाश्त नहीं थी। इन्होंने राष्ट्रवादी भावनाओं को समाप्त
करने के लिए अपनी सभी प्रयास किए। उनके द्वारा सेंसरशिप के माध्यम से क्रांतिकारी
उदारवादियों की अनेक गतिविधियों को नियंत्रित कर दिया गया। इन शासकों का यह
अनुदारवादी दृष्टिकोण भी इटली के एकीकरण में बहुत अधिक बाधक बना।
 
प्रश्न 15. ब्रिटेन में राष्ट्रवाद के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर― ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण किसी क्रांति या अचानक हुए किसी परिवर्तन का परिणाम नहीं
था। वहाँ यह काफी समय से धीरे-धीरे चलने वाली प्रक्रिया का परिणाम था। संक्षेप में ब्रिटेन में राष्ट्रवाद के
इतिहास को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है―
1. 18वीं सदी के पूर्व जिसे हम ब्रिटेन कहते थे, वह था ही नहीं। यह अनेक नस्लों और जातियों का
समूह और एक द्वीप-समूह था।
 
2. ब्रितानी द्वीपसमूह अनेक नस्ली और जनजातियों का समूह था, जिनमें अंग्रेज, वेल्श, स्कॉट या
आयरिश आदि सम्मिलित थे। इन सभी जातियों या समूहों की अपनी अलग सांस्कृतिक परम्परों
थीं। जैसे-जैसे आंग्ल राष्ट्र की शक्ति में वृद्धि हुई, वह द्वीपसमूह के अन्य राष्ट्रों पर अपना
प्रभुत्व बढ़ाने में सफल हुआ।
 
3. काफी संघर्ष और टकराव के उपरान्त आंग्ल संसद ने 1688 ई० में राजतन्त्र से शक्ति छीन ली
और एक राष्ट्र-राज्य का निर्माण हुआ।
 
4. आंग्ल-संसद एक ऐसा माध्यम था, जिसके आधार पर राष्ट्र-राज्य का निर्माण सम्भव हो सका
और इसके केन्द्र में इंग्लैंड था।
 
5. 1707 ई० में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के मध्य ‘ऐक्ट ऑफ यूनियन’ के आधार पर ‘यूनाइटेड
किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन हुआ। इसके बाद में ब्रिटिश संसद में आंग्ल सदस्यों का ही
दबदबा रहा। स्कॉटलैंड के लोगों को अपनी भाषा बोलने या राष्ट्रीय पोशाक पहनने की मनाही
कर दी गयी। उनकी संस्कृति और राजनीतिक संस्थाओं को योजनाबद्ध तरीकों से दबा दिया
गया। इसी के कारण अनेक स्कॉटिश लोगों को अपना देश छोड़ने पर विवश होना पड़ा।
 
6. स्कॉटलैंड पर अपना प्रभुत्व जमाने के साथ ही 1801 ई० में 1798 ई० में वोल्फ टोन और
उसकी ‘यूनाइटेड आयरिशमेन’ को नेतृत्व में जो विद्रोह हुआ, उसे दबा दिया गया और
आयरलैंड को भी बलपूर्वक यूनाइटेड किंग्डम ऑफ ब्रिटेन में शामिल कर लिया गया।
 
7. इसके उपरान्त एक नए ब्रितानी राष्ट्र का निर्माण किया गया तथा इसमें आंग्ल-संस्कृति का
प्रचार-प्रसार किया गया।
 
8. नए ब्रिटेन के प्रतीकों-ब्रितानी ध्वज (यूनियन जैक) और राष्ट्रीय-गान को बहुत अधिक
बढ़ावा दिया गया। पुराने राष्ट्र; इस संघ में ब्रिटेन के अधीन सहयोगियों के रूप में ही रह पाए।
 
प्रश्न 16.ब्रिटेन के एकीकरण की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।
उत्तर― ब्रिटेन के एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षिप्त उल्लेख निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया
गया है―
1. ब्रिटेन की आर्थिक समृद्धि―18वीं शताब्दी से आज के ब्रिटेन का अस्तित्व था ही नहीं। वह
अनेक जातियों और नस्लों का समूह था। औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप ब्रिटेन की
आर्थिक समृद्धि में वृद्धि हुई। जैसे-जैसे आंग्ल राष्ट्र की शक्ति में वृद्धि हुई, वह द्वीपसमूह के
अन्य राष्ट्रों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने में सफल हुआ।
 
2. संसद की भूमिका―काफी संघर्ष और टकराव के उपरान्त आंग्ल-संसद ने 1688 ई० में
राजतन्त्र से शक्ति छीन ली और इस संसद के माध्यम से एक राष्ट्र-राज्य का निर्माण हुआ,
जिसके केन्द्र में इंग्लैंड था।
 
3. ऐक्ट ऑफ यूनियन ( 1707 ई०)―1707 ई० में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच ‘ऐक्ट
ऑफ यूनियन’ से ‘यूनाइटेड किंगडम ऑफ ब्रिटेन’ का गठन हुआ। इसके बाद से ब्रिटिश संसद
में आंग्ल सदस्यों का ही दबदबा रहा। स्कॉटलैंड के लोगों को अपनी भाषा बोलने या राष्ट्रीय
पोशाक पहनने की मनाही कर दी गयी। उनकी संस्कृति और राजनीतिक संस्थाओं को
योजनाबद्ध तरीकों से दबा दिया गया।
 
4. आयरलैंड का यूनाइटेड किंगडम में विलय―इसके बाद ब्रिटेन ने आयरलैंड के धार्मिक
विवादों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया और वहाँ कैथोलिक व प्रोटेस्टेंट सम्प्रदायों में दरार
डाल दी। वहाँ ब्रिटेन के द्वारा प्रोटेस्टेंटों की सहायता ली गयी, जिससे वे इस कैथोलिक बहुलता
वाले देश पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर सकें। 1798 ई० में वोल्फ टोन और उसकी ‘यूनाइटेड
आयरिशमेन’ के नेतृत्व में आयरलैंड में जो विद्रोह हुआ, उसे दबा दिया गया और आयरलैंड
को भी बलपूर्वक यूनाइटेड किंग्डम ऑफ ब्रिटेन में शामिल कर लिया गया।
 
5. राष्ट्रीय प्रतीक―ब्रिटेन के द्वारा एक नए ‘ब्रितानी राष्ट्र’ का निर्माण करने के उपरान्त वहाँ
केवल अपनी ही आंग्ल-संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया गया। वहाँ ब्रितानी ध्वज (यूनियन
जैक) और बितानी राष्ट्र-गान (गॉड सेव अवर नोबल किंग) को सर्वोपरि मानकर उन्हें ही
बढ़ावा दिया गया। पुराने राष्ट्रों को इस संघ में केवल मातहत सहयोगियों के रूप में ही रखा
गया।
 
प्रश्न 17.”साम्राज्यवाद से जुड़कर राष्ट्रवाद, 1914 में यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया।”
उपयुक्त उदाहरण देकर पुष्टि करें।
उत्तर―उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम चौथाई भाग तक राष्ट्रवाद का वह आदर्शवादी, उदाहरण देकर
पुष्टि करें, जो उन्नीसर्वी शताब्दी के प्रथम भाग में था। यही कारण है कि जब राष्ट्रवाद; साम्राज्यवाद से जुड़
गया तो वह 1914ई० तक आते-आते सम्पूर्ण यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया। इसी के परिणामस्वरूप
1914 ई० में प्रथम विश्वयुद्ध हुआ, जिसमें जन-धन की अपार हानि हुई। संक्षेप में इस कथन की पुष्टि के
सन्दर्भ में निम्नलिखित बिन्दुओं का अवलोकन किया जा सकता है―
1. उन्नीसर्वी सदी के अन्तिम चौथाई तक राष्ट्रवाद का संकीर्ण रूप सामने आया। उसका वह
आदर्शवादी, उदारवादी, जनतांत्रिक स्वरूप अब नहीं रहा, जो उन्नीसर्वी सदी के पहले भाग में
था। इसके विपरीत, राष्ट्रवाद अब सीमित लक्ष्यों वाला एक संकीर्ण सिद्धान्तमात्र ही रह गया
था।
 
2. यूरोपीय देशों के राष्ट्रवादी समूह अब एक-दूसरे से लड़ने लगे और एक-दूसरे के प्रति
अनुदार होते चले गए। उनमें एक राष्ट्र की स्थापना हेतु पहले वाली राष्ट्रीय भावनाओं और
संगठनात्मक एकता का सर्वथा अभाव दिखाई देने लगा।
 
3. राष्ट्रवादी समूहों के इस बिखराव और आपसी फूट का लाभ यूरोप की साम्राज्यवादी शक्तियों
ने उठाया। उन्होंने अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अपने अधीन लोगों की
राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का अपने हित में प्रयोग किया।
 
4. इस समय बाल्कन क्षेत्र में बहुत अधिक तनाव उत्पन्न हो चुका था। अनेक बड़ी शक्तियाँ
बाल्कन क्षेत्र में शामिल थीं। कई यूरोपीय साम्राज्यवादी देश; जिसमें रूस, जर्मनी, इंग्लैंड,
ऑस्ट्रिया, हंगरी आदि शामिल थे, बाल्कन क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे।
 
5. बाल्कन क्षेत्र में यूरोपीय शक्तियों के हस्तक्षेप का एक प्रमुख कारण यह था कि वे वहाँ अपने
उपनिवेश स्थापित करना चाहते थे और साथ ही व्यापारिक उद्देश्यों के लिए भी वे बाल्कन क्षेत्रों
को उपयोग करना चाहते थे। उनका यह प्रयास था कि काला सागर से होने वाले व्यापार और
व्यापारिक मार्गों पर उनका नियंत्रण स्थापित हो जाए। इस प्रकार व्यापार तथा उपनिवेशों के
लिए यूरोपीय शक्तियों के बीच निरन्तर प्रतिस्पर्धा बढ़ रही थी।
 
6. बाल्कन क्षेत्र में उत्पन्न भयावह तनावपूर्ण स्थिति और अन्य अनेक कारणों से रूस, जर्मनी,
इंग्लैंड आदि बड़ी शक्तियों के बीच कई युद्ध हुए और अन्तत: यूरोपीय शक्तियों के बीच
महाविनाशकारी प्रथम विश्वयुद्ध हुआ।
 
प्रश्न 18.यूरोप में 1871 ई० के बाद बाल्कन क्षेत्र में बनी विस्फोटक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर― 1871 ई० के बाद र यूरोप में गम्भीर राष्ट्रवादी तनाव को क्षेत्र बाल्कन क्षेत्र और वहाँ के निवासी
‘स्लाव’ बने। इस क्षेत्र में उत्पन्न हुए तनाव अथवा विस्फोटक परिस्थितियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित
बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया गया है―
1. इस क्षेत्र में भौगोलिक एवं जातीय दृष्टि से काफी भिन्नता थी।
 
2. इसके अन्तर्गत आधुनिक रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्बेनिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया,
बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मॉन्टिनिग्रो शामिल थे। इस क्षेत्र के निवासियों
को सामान्यत: ‘स्लाव’ कहा जाता था। ये सभी लोग तुर्कों से भिन्न थे।
 
3. तुर्कों और ईसाई प्रजातीय के बीच अनेक प्रकार के मतभेद थे, जिसके कारण बाल्कन क्षेत्रों की
स्थिति काफी भयंकर हो गयी।
 
4. जब बाल्कन क्षेत्र के स्लाव राष्ट्रीय समूहों में राष्ट्रवाद और स्वतन्त्रता की भावना का विकास
हुआ तो तनाव और भी अधिक बढ़ गया।
 
5. बाल्कन क्षेत्र के इन स्लाव और तुर्क क्षेत्रों में आपसी प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक बढ़ गयी और
हथियारों के भण्डार जमा करने की होड़ लग गयी। इसके परिणामस्वरूप बाल्कन क्षेत्र की
स्थिति अत्यधिक विस्फोटक हो गयी।
 
6. कई यूरोपीय साम्राज्यवादी देश; जिनमें रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, हंगरी आदि शामिल थे,
इन क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे, जिससे काला सागर से होने वाला व्यापार
और व्यापारिक मार्गों पर उनका नियंत्रण स्थापित हो जाए।
 
7. बाल्कन क्षेत्र में रूमानी राष्ट्रवाद के विचारों के प्रसार और ऑटोमन साम्राज्यों के विघटन के
परिणामस्वरूप स्थिति काफी गंभीर हो गयी। एक के बाद एक उसके अधीन देश, उसके
नियंत्रण से निकलकर अपनी आजादी की घोषणा करने लगे। बाल्कन क्षेत्र के लोगों ने
राष्ट्रीयता की भावना के आधार पर अपनी आजादी पुनः पाने का निर्णय किया।
 
8. बाल्कन क्षेत्र का अधिकांश क्षेत्र ऑटोमन साम्राज्य के अधीन था। इसके अतिरिक्त यहाँ के
बाल्कन क्षेत्र के स्लाव-समूहों में आपस में प्रायः टकराव होता रहता था।
इन समस्त कारणों के फलस्वरूप बाल्कन क्षेत्रों में यूरोपीय देशों और यहाँ के राज्यों में आपस
में कई युद्ध हुए, जिसका अन्तिम परिणाम प्रथम विश्वयुद्ध के रूप में सामने आया।

3 thoughts on “UP Board Class 10 Social Science History | यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

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