UP Board Class 9 Social Science Civics | लोकतंत्र लोकतन्त्र क्या? लोकतंत्र क्यों?

By | April 10, 2021

UP Board Class 9 Social Science Civics | समकालीन विश्व में

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 1 लोकतंत्र लोकतन्त्र क्या? लोकतंत्र क्यों?

इकाई-3:लोकतान्त्रिक राजनीति-1
                                     नागरिकशास्त्र
                                     लोकतन्त्र क्या?
                                     लोकतन्त्र क्यों?
अध्याय 1.                           अभ्यास
NCERT प्रश्न
प्रश्न 1. यहाँ चार देशों के बारे में कुछ सूचनाएँ हैं। इन सूचनाओं के आधार पर आप इन
देशों का वर्गीकरण किस तरह करेंगे? इनके सामने ‘लोकतान्त्रिक,
‘अलोकतान्त्रिक’ और ‘पक्का नहीं लिखें।
(क) देश क : जो लोग देश के आधिकारिक धर्म को नहीं मानते उन्हें वोट डालने का
       अधिकार नहीं है।
(ख) देश ख : एक ही पार्टी बीते बीस वर्षों से चुनाव जीतती आ रही है।
(ग) देश ग : पिछले तीन चुनावों में शासक दल को पराजय का मुँह देखना पड़ा।
(घ) देश घ : यहाँ स्वतन्त्र चुनाव आयोग नहीं है।
उत्तर― (क) अलोकतान्त्रिक।
           (ख) पक्का नहीं।
            (ग) लोकतान्त्रिक।
            (घ) अलोकतान्त्रिक।
 
प्रश्न 2. यहाँ चार अन्य देशों के बारे में कुछ सूचनाएँ दी गई हैं। इन सूचनाओं के आधार
पर इन देशों का वर्गीकरण आप किस तरह करेंगे? इनके आगे ‘लोकतान्त्रिक’,
‘अलोकतान्त्रिक’ और ‘पक्का नहीं लिखें।
(क) देश च : संसद सेना प्रमुख की मंजूरी के बिना सेना के बारे में कोई कानून नहीं बना
       सकती।
(ख) देश छ : संसद न्यायपालिका के अधिकारों में कटौती का कानून नहीं बना सकती।
(ग) देश ज : देश के नेता बिना पड़ोसी देश की अनुमति के किसी और देश से संधि नहीं
      कर सकते।
(घ) देश झ : देश के सारे आर्थिक फैसले केन्द्रीय बैंक के अधिकारी करते हैं जो मन्त्री भी
      नहीं बदल सकते।
उत्तर― (क) अलोकतान्त्रिक।
          (ख) अलोकतान्त्रिक।
           (ग) अलोकतान्त्रिक।
           (घ) अलोकतान्त्रिक।
 
प्रश्न 3. इनमें से कौन-सा तर्क लोकतन्त्र के पक्ष में अच्छा नहीं है और क्यों?
(क) लोकतन्त्र में लोग खुद को स्वतन्त्र और समान मानते हैं।
(ख) लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएँ दूसरों की तुलना में टकरावों को ज्यादा अच्छी तरह सुलझाती हैं।
(ग) लोकतान्त्रिक सरकारें लोगों के प्रति ज्यादा उत्तरदायी होती हैं।
(घ) लोकतान्त्रिक देश दूसरों की तुलना में ज्यादा समृद्ध होते हैं।
उत्तर― (घ) लोकतान्त्रिक देश दूसरों की तुलना में ज्यादा समृद्ध होते हैं, यह तर्क लोकतन्त्र के पक्ष
में अच्छा नहीं क्योकि कई बार एक राजा अपनी सूझ-बूझ और अच्छे कार्यों से अपने देश को अनेक
लोकतान्त्रिक सरकारों से अधिक समृद्ध बना सकते हैं, जबकि कुछ लोकतान्त्रिक देशों में विभिन्न
राजनीतिक दल अपने लड़ाई-झगड़ों के कारण अपने देश की आर्थिक दशा को खराब भी कर सकते हैं।
 
प्रश्न 4. इन सभी कथनों में कुछ चीजें लोकतान्त्रिक हैं तो कुछ अलोकतान्त्रिक। हर कथन
          में इन चीजों को अलग-अलग करके लिखें।
(क) एक मन्त्री ने कहा कि संसद को कुछ कानून पास करने होंगे जिससे विश्व व्यापार
संगठन (WTO) द्वारा तय नियमों की पुष्टि हो सके।
(ख) चुनाव आयोग ने एक चुनाव क्षेत्र के सभी मतदान केन्द्रों पर दोबारा मतदान का
आदेश दिया जहाँ बड़े पैमाने पर मतदान में गड़बड़ की गई थी।
(ग) संसद में औरतों का प्रतिनिधित्व कभी भी 10 प्रतिशत तक नहीं पहुंचा है। इसी कारण
महिला संगठनों ने संसद में एक-तिहाई आरक्षण की मांग की है।
उत्तर― (क) अलोकतान्त्रिक।
           (ख) लोकतान्त्रिक।
            (ग) लोकतान्त्रिक।
 
प्रश्न 5. लोकतन्त्र में अकाल और भुखमरी की सम्भावना कम होती है। यह तर्क देने का
           इनमें से कौन-सा कारण सही नहीं है?
(क) विपक्षी दल भूख और भुखमरी की ओर सरकार का ध्यान दिला सकते हैं।
(ख) स्वतन्त्र अखबार देश के विभिन्न हिस्सों में अकाल की स्थिति के बारे में खबरें दे
       सकते हैं।
(ग) सरकार को चुनाव में अपनी पराजय का डर होता है।
(घ) लोगों को कोई भी तर्क मानने और उस पर आचरण करने की स्वतन्त्रता है।
उत्तर― (घ) लोगों को कोई भी धर्म मानने और उस पर आचरण करने की स्वतन्त्रता है’ का तर्क
अकाल और भुखमरी की सम्भावना को कम करने के प्रति सही कारण नहीं है।
 
प्रश्न 6. किसी जिले में 40 ऐसे गाँव हैं जहाँ सरकार ने पेयजल उपलब्ध कराने का कोई
इंतजाम नहीं किया है। इन गांवों के लोगों ने एक बैठक की और अपनी जरूरतों
की ओर सरकार का ध्यान दिलाने के लिए कई तरीकों पर विचार किया। इनमें से
कौन-सा तरीका लोकतान्त्रिक नहीं है?
(क) अदालत में पानी को अपने जीवन के अधिकार का हिस्सा बताते हुए मुकदमा दायर
       करना।
(ख) अगले चुनाव का बहिष्कार करके सभी पार्टियों को संदेश देना।
(ग) सरकारी नीतियों के खिलाफ जन सभाएं करना।
(घ) सरकारी अधिकारियों को पानी के लिए रिश्वत देना।
उत्तर―(घ) सरकारी अधिकारियों को पानी के लिए रिश्वत देना, कोई लोकतान्त्रिक तरीका नहीं है।
 
प्रश्न 7. लोकतन्त्र के खिलाफ दिए जाने वाले इन तर्कों का जवाब दीजिए―
(क) सेना देश का सबसे अनुशासित और भ्रष्टाचार मुक्त संगठन है। इसलिए सेना को देश
का शासन करना चाहिए।
(ख) बहुमत के शासन का मतलब है मूरों और अशिक्षितों का राज। हमें तो होशियारों के
शासन की जरूरत है, भले ही उनकी संख्या कम क्यों न हो।
(ग) अगर आध्यात्मिक मामलों में मार्गदर्शन के लिए हमें धर्म-गुरुओं की जरूरत होती है
तो उन्हीं को राजनैतिक मामलों में मार्गदर्शन का काम क्यों नहीं सौंपा जाए। देश पर
धर्म-गुरुओं का शासन होना चाहिए।
उत्तर―(क) सेना देश का सबसे अनुशासित और भ्रष्टाचार मुक्त संगठन है। इसलिए सेना को देश
का शासन करना चाहिए सही नहीं है। सेना के अधीन नागरिकों के मौलिक अधिकारों
का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। म्यांमार की भाँति सरकार के विरुद्ध बोलने वालों को
दलदल में ठूँस दिया जाएगा।
 
(ख) “जो लोग यह कहते हैं कि बहुमत के शासन का मतलब है मूों और अशिक्षितों का राज।
हमें तो होशियारों के शासन की जरूरत है, भले ही उनकी संख्या कम क्यों न हो” भी अपने
मत में सही नहीं है। ऐसी विचारधारा लोकतन्त्र के मुख्य सिद्धान्त की सभी वयस्क नागरिकों
को बिना किसी भेदभाव के वोट का अधिकार होना चाहिए के विरुद्ध जाती है। लोकतन्त्र
शिक्षितों और अशिक्षितों में कोई भेदभाव नहीं रखता क्योंकि दोनों ने देश की स्वतन्त्रता के
लिए बराबर का भाग लिया है। प्रायः होशियार लोग सदा अच्छे नहीं होते। वे उद्दण्डी,
लालची और धोखेबाज भी हो सकते हैं, जबकि अकबर और रणजीत सिंह की भाँति
अशिक्षित लोग भी महान शासक हो सकते हैं।
 
(ग) कुछ लोग जो यह कहते हैं― “अगर आध्यात्मिक मामलों में मार्गदर्शन के लिए हमें
धर्म-गुरुओं की जरूरत होती है तो उन्हीं को राजनैतिक मामलों में मार्गदर्शन का काम क्यों
नहीं सौंपा जाए। देश पर धर्म-गुरुओं का शासन होना चाहिए” भी अपनी ऐसी धारणा में
गलत है। जिस देश में अनेक धर्म के लोग रहते हैं वहाँ ये धर्म-गुरु आपस में लड़-झगड़कर
देश को बर्बादी के कुएँ में धकेल देंगे। विश्व-इतिहास में एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलता
जहाँ इन धर्म-गुरुओं ने किसी देश के शासन को ठीक ढंग से चलाया हो। उन्हें अपने धर्म के
क्षेत्र तक ही सीमित रहना चाहिए और राजनीतिज्ञ बनकर देश का विनाश नहीं करना चाहिए।
 
प्रश्न 8. इनमें से किन कथनों को आप लोकतान्त्रिक समझते हैं? क्यों?
(क) बेटी से बाप : मैं शादी के बारे में तुम्हारी राय सुनना नहीं चाहता। हमारे परिवार में
बच्चे वहीं शादी करते हैं जहाँ माँ-बाप तय कर देते हैं।
(ख) छात्र से शिक्षक : कक्षा में सवाल पूछकर मेरा ध्यान मत बँटाओ।
(ग) अधिकारियों से कर्मचारी : हमारे काम करने के घण्टे कानून के अनुसार कम किए
जाने चाहिए।
उत्तर― (क) यह कथन लोकतान्त्रिक विचारधारा के अनुकूल नहीं है क्योंकि बेटी को उसकी इच्छा
के विरुद्ध विवाह करने पर मजबूर नहीं करना चाहिए क्योंकि उसने ही अपने जीवन
साथी के साथ सारा जीवन व्यतीत करना है इसलिए शादी-विवाह के मामले में उसे
अपना साथी चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। यह स्वतन्त्रता ही तो प्रजातन्त्र का
मूलमन्त्र है।
 
(ख) यदि कोई शिक्षक अपने छात्र से यह कहता है कि कक्षा में सवाल पूछकर मेरा ध्यान मत
बँटाओ तो ऐसा कहना भी लोकतन्त्र विचारधारा से मेल नहीं खाता। अध्यापक अपने छात्रों
से यह कह सकता है कि जब उसका लैक्चर खत्म हो जाए तो वे उससे कोई भी प्रश्न पूछ
सकते हैं, उत्तम होगा। परन्तु उनकी कठिनाइयों को दूर करना प्रत्येक शिक्षक का कर्त्तव्य है।
 
(ग) यदि कोई कर्मचारी अपने अधिकारियों से यह कहता है कि उससे काम करने के घण्टे
कानून के अनुसार कम करने चाहिए तो इसमें कोई गलत बात नहीं। अपने सही अधिकारों
के लिए माँग करना एक लोकतान्त्रिक ढंग है।
 
प्रश्न 9. एक देश के बारे में निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करें और फैसला करें कि आप इसे
लोकतन्त्र कहेंगे या नहीं। अपने फैसले के पीछे के तर्क भी बताएँ।
(क) देश के सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार है और चुनाव नियमित रूप से होते हैं।
(ख) देश ने अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसियों से ऋण लिया। ऋण के साथ यह एक शर्त जुड़ी थी कि
सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य पर अपने खर्चों में कमी करेगी।
(ग) लोग सात से ज्यादा भाषाएँ बोलते हैं पर शिक्षा का माध्यम सिर्फ एक भाषा है, जिसे
देश के 52 फीसदी लोग बोलते हैं।
(घ) सरकारी नीतियों का विरोध करने के लिए अनेक संगठनों ने संयुक्त रूप से प्रदर्शन
करने और देश भर में हड़ताल करने का आह्वान किया है। सरकार ने उनके नेताओं
को गिरफ्तार कर लिया है।
(ङ) देश के रेडियो और टेलीविजन चैनल सरकारी हैं। सरकारी नीतियों और विरोध के
बारे में खबर छापने के लिए अखबारों को सरकार से अनुमति लेनी होती है।
उत्तर―(क) देश के सभी नागरिकों को वोट का अधिकार है और चुनाव नियमित रूप से होते हैं,
ऐसे देश को हम लोकतन्त्र कहेंगे।
 
(ख) देश ने अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसियों से ऋण लिया। ऋण के साथ यह एक शर्त जुड़ी थी कि
सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य पर अपने खर्चों में कमी करेगी। ऐसे देश को लोकतन्त्र नहीं
कहा जा सकता क्योंकि कोई भी लोकतन्त्र शिक्षा और स्वास्थ्य पर कम खर्च करने की बात
को कभी भी नहीं मान सकता।
 
(ग) यदि लोग एक देश में सात से ज्यादा भाषाएँ बोलते हैं परन्तु शिक्षा का माध्यम सिर्फ एक
भाषा है, जिसे देश के 52 फीसदी लोग बोलते हैं तो ऐसे देश को हम लोकतन्त्र कहेंगे
क्योंकि सारे देश को इकट्ठा रखने के लिए एक राष्ट्रीय भाषा का अपनाना अति आवश्यक
है नहीं तो वह राष्ट्र बिखर सकता है। इतना अवश्य है कि बाकी भाषाओं को भी प्रगति करने
के पूर्ण अवसर दिए जाने चाहिए।
 
(घ) सरकारी नीतियों का विरोध करने के कारण यदि किसी देश की सरकार ने विरोध करने
वालों को पकड़ लिया है तो ऐसा देश लोकतन्त्र नहीं कहा जा सकता क्योकि सरकार की
नीतियों के विरुद्ध हड़ताल करना लोकतन्त्र में कोई अनुचित कार्य नहीं है।
 
(ङ) यदि किसी देश के सभी रेडियो और टेलीविजन चैनल सरकार के विरुद्ध खबर देने या
छापने में समाचार-पत्रों को सरकार की अनुमति लेनी पड़े तो ऐसा देश कभी भी लोकतन्त्र
नहीं कहा जा सकता। लोकतन्त्र में सबको अपना विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।
 
प्रश्न10. अमेरिका के बारे में 2004 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार वहाँ के समाज में
असमानता बढ़ती जा रही है। आमदनी की असमानता लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में
विभिन्न वर्गों की भागीदारी घटने-बढ़ने के रूप में भी सामने आई। इन समूहों की
सरकार के फैसलों पर असर डालने की क्षमता भी इससे प्रभावित हुई है। इस
रिपोर्ट की मुख्य बातें थीं―
* सन् 2004 में एक औसत अश्वेत परिवार की आमदनी 100 डॉलर थी जबकि गोरे परिवार
की आमदनी 162 डॉलर। औसत गोरे परिवार के पास अश्वेत परिवार से 12 गुना ज्यादा
सम्पत्ति थी।
 
* राष्ट्रपति चुनाव में 75,000 डॉलर से ज्यादा आमदनी वाले परिवारों के प्रत्येक 10 में से 9
लोगों ने वोट डाले थे। यही लोग आमदनी के हिसाब से समाज के ऊपरी 20 फीसदी में
आते हैं। दूसरी ओर 15,000 डॉलर से कम आमदनी वाले परिवारों के प्रत्येक 10 में से
सिर्फ 5 लोगों ने ही वोट डाले। आमदनी के हिसाब से ये लोग सबसे निचले 20 फीसदी हिस्से
में आते हैं।
• राजनैतिक दलों का करीब 95 फीसदी चंदा अमीर परिवारों से ही आता है। इससे उन्हें
अपनी राय और चिंताओं से नेताओं को अवगत कराने का अवसर मिलता है। यह सुविधा
देश के अधिकांश नागरिकों को उपलब्ध नहीं है।
• जब गरीब लोग राजनीति में कम भागीदारी करते हैं तो सरकार भी उनकी चिन्ताओं पर कम
ध्यान देती है―गरीबी दूर करना, रोजगार देना, उनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास
की व्यवस्था करने पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना दिया जाना चाहिए। राजनेता
अकसर अमीरों और व्यापारियों की चिन्ताओं पर ही नियमित रूप से गौर करते हैं।
इस रिपोर्ट की सूचनाओं को आधार बनाकर और भारत के उदाहरण देते हुए ‘लोकतन्त्र और
गरीबी’ पर एक लेख लिखें।
उत्तर― लोकतन्त्र तथा गरीबी―सामान्य लोगों के हित के लिए लोकतन्त्र बहुमत का शासन है।
किन्तु, आजकल इसका उपयोग उन मुट्ठी भर लोगों के फायदे के लिए हो रहा है जिनके पास धन,
संसाधन तथा शिक्षा है। भारत में अमीरों तथा गरीबों के बीच का अन्तर और तेजी से बढ़ता जा रहा है।
गरीब और गरीब हुए हैं जबकि अमीरों की अमीरी में तेजी से वृद्धि हुई है। येन-केन प्रकारेण सक्षम
लोगों द्वारा सभी प्रकार की सरकारी सुविधाओं का फायदा उठाया जा रहा है तथा गरीब इनसे वंचित रह
जा रहे हैं।
हमारे देश में लोकतान्त्रिक मूल्यों में तेजी से ह्रास होता दिख रहा है। लोगों ने राजनीति को व्यवसाय
बना लिया है। लोग अब जनता की समस्याओं का हल निकालने के लिए राजनीति में नहीं जाना चाहते,
बल्कि अपने व्यक्तिगत तथा वर्गीय फायदे के लिए इसे पेशा बना रहे हैं।
राजनीति में धन तथा बल के उपयोग ने इसके लोकतान्त्रिक स्वरूप को नुकसान पहुंचाया है। यह ऊपर
से लोकतान्त्रिक दिखते हुए भी व्यवहार में स्वेच्छारी है। भारत की आबादी गाँवों में बसती है। उनके
लिए कागज पर बड़-बड़ी योजनाएँ बनाई जाती हैं तथा आए दिन होने वाले घोटालों के द्वारा विकास
की राशि को नेताओं, व्यापारियों, ठेकेदारों तथा अन्य सक्षम वर्गों द्वारा आपस में बाँट लिया जाता है।
फलतः गरीबी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है।
दरअसल जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाने की जरूरत है। जनता के पास यह शक्ति होनी चाहिए कि
वह जब चाहे अपने प्रतिनिधि को वापस बुला सकती है। यह उन्हें जवाबदेह बना देगा। साथ ही चुनावों
में धन के प्रयोग पर रोक लगानी चाहिए। तभी लोकतन्त्र का सही रूप सामने आएगा तथा आम जनता
की समस्या की ओर ध्यान दिया जा सकेगा।
 
                                     अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
 
                                       बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. लोकतंत्र में सम्प्रभुता किसमें निहित रहती है?
(क) संसद
(ख) जनता 
(ग) प्रधानमंत्री 
(घ) राष्ट्रपति
               उत्तर―(ख) जनता
 
प्रश्न 2. किस देश के लोकतंत्र को सर्वाधिक प्राचीन और परिपक्व लोकतंत्र कह सकते हैं?
(ग) अमेरिका
(घ) स्पेन
(क) भारत
(ख) ब्रिटेन
उत्तर―(ख) ब्रिटेन
 
प्रश्न 3. पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ ने कब सैनिक तख्तापलट की कार्यवाही की?
(क) 1997 में
(ख) 1998 में
(ग) 1999 में 
(घ) 2000 में
                  उत्तर―(ग) 1999 में
 
प्रश्न 4. लोकतंत्र की कौन-सी व्यवस्था सही नहीं है?
(क) अधिकार प्रदान करता है
(ख) जनता की भागीदारी
(ग) भ्रष्टाचार नहीं होता
(घ) दलगत बुराइयाँ होती हैं
                                     उत्तर―(ग) भ्रष्टाचार नहीं होता
 
प्रश्न 5. लोकतंत्र किसको प्रोत्साहन देता है?
(क) निजी सम्पत्ति को
(ख) भ्रष्टाचार को
(ग) जनता के धन के अपव्यय को
(घ) ये सभी
                उत्तर―(घ) ये सभी
 
प्रश्न 6. सऊदी अरब में औरतों को वोट देने का अधिकार कब तक नहीं था?
(क) 1913 
(ख) 1914 
(ग) 2015 
(घ) 1916
               उत्तर―(ग) 2015
 
प्रश्न 7. जिम्बाब्वे को अल्पसंख्यक गोरों के शासन से मुक्ति कब मिली?
(क) 1979 
(ख) 1980 
(ग) 1981 
(घ) 1982
               उत्तर―(ख) 1980
 
प्रश्न 8. मुगाबे को राष्ट्रपति पद से कब हटा दिया गया?
(क) 2017
(ख) 2018 
(ग) 2019 
(घ) 2000
              उत्तर―(क) 2017
 
प्रश्न 9. चीन में 1958-61 के दौरान विश्व का सबसे भयावह अकाल पड़ा, इसमें कितने
लोग मारे गये?
(क) 1 करोड़ 
(ख) 2 करोड़ 
(ग) 3 करोड़ 
(घ) 4 करोड़
                उत्तर―(ग) 3 करोड़
 
प्रश्न 10.2018 में पाक में कौन प्रधानमंत्री बना?
(क) नवाज शरीफ 
(ख) इमरान खान 
(ग) मुशर्रफ 
(घ) याकूब खान
                     उत्तर―(ख) इमरान खान
 
                          अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. कब मुशर्रफ ने जनमत संग्रह कराया और अपना कार्यकाल पाँच साल बढ़वा
लिया?
उत्तर― मुशर्रफ ने वर्ष 2002 में जनमत संग्रह कराया और अपना कार्यकाल पाँच साल बढ़वा लिया।
 
प्रश्न 2. कब मुशर्रफ ने लीगल फ्रेमवर्क ऑर्डर के द्वारा पाकिस्तान के संविधान को बदल
डाला?
उत्तर― वर्ष 2002 में।
 
प्रश्न 3. लोकतंत्र में अंतिम निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होनी चाहिए?
उत्तर―लोकतंत्र में अंतिम निर्णय लेने की शक्ति जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास रहती है।
 
प्रश्न 4. चीन की संसद क्या कहलाती है?
उत्तर― राष्ट्रीय जन संसद।
 
प्रश्न 5. चीन की संसद के चुनाव कितने वर्ष पश्चात होते हैं?
उत्तर― पाँच वर्ष पश्चात्।
 
प्रश्न 6. 1930 में आजाद होने के बाद से मैक्सिको में सन 2000 तक किस पार्टी की सत्ता
रही?
उत्तर― पी०आर०आई० (इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी) की।
 
प्रश्न 7. मैक्सिको में कितने वर्ष पश्चात् राष्ट्रपति के चुनाव कराये जाते हैं?
उत्तर― 6 वर्ष पश्चात्।
 
प्रश्न 8. किस देश में वहाँ के मूल निवासियों के वोट का महत्त्व भारतीय मूल के नागरिक के
वोट से ज्यादा है?
उत्तर― फिजी में।
 
प्रश्न 9. किस सोवियत संघ से विघटित राज्य में रूसी अल्पसंख्यक समाज के लोगों को
मतदान का अधिकार हासिल करने में मुश्किल होती है?
उत्तर― एस्टोनिया में।
 
प्रश्न 10. किस देश में अखबार स्वतंत्र थे परन्तु सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों
को परेशान किया जाता था?
उत्तर― जिम्बाब्वे में।
 
                                    लघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. लोकतंत्र कैसे जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है?
उत्तर― लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है। इसे लोकतन्त्र की निम्नलिखित
विशेषताओं द्वारा सरलता से समझा जा सकता है―
(i) लोकतान्त्रिक देशों में शासकों का चयन जनता करती है जो सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय लेते हैं।
 
(ii) इसमें स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव होते हैं। चुनाव लोगों के सामने वर्तमान शासकों को बदलने
का एक विकल्प एवं अच्छा अवसर प्रदान करते हैं।
 
(iii) चुनाव के पहले और बाद में भी विपक्षी दलों को स्वतंत्र रूप से काम करते रहने की
अनुमति है।
 
(iv) इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है और लोग मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते हैं।
 
(v) ऐसी सरकारें राजनैतिक समानता के मौलिक सिद्धांतों पर आधारित होती हैं।
 
(vi) एक लोकतान्त्रिक देश में प्रत्येक वयस्क नागरिक को एक वोट देने का अधिकार है और
प्रत्येक वोट का समान महत्त्व है। कोई भी नागरिक किसी भी जाति, धर्म, सामाजिक,
आर्थिक और शैक्षणिक पृष्ठभूमि का हो, वह किसी भी पद के लिए चुनाव लड़ सकता है।
जिसका अर्थ यह है कि सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार प्राप्त है।
 
(vii) एक लोकतान्त्रिक सरकार संवैधानिक कानूनों एवं नागरिक अधिकारों के दायरे में रहते हुए
शासन करती है।
 
प्रश्न 2. लोकतंत्र के गुण बताइये।
उत्तर― लोकतंत्र के प्रमुख गुण निम्नवत् है―
(i) जनमत पर आधृत शासन―जनमत पर आधृत शासन का अर्थ यह होता है कि इसमें
शासन जनता की सामान्य इच्छा के अनुसार चलाया जाता है एवं इसमें प्रत्येक व्यक्ति
की
इच्छा को ध्यान में रखा जाता है।
 
(ii) लोकप्रिय एवं स्थायी शासन―लोकतंत्र विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय है क्योंकि यह आम
जनता की भागीदारी से बनती है। यह स्थायी शासन का साधन भी है; क्योंकि इसमें जनता ही
शासन का संचालन करती है।
 
(iii) समानता और स्वतन्त्रता का पोषक―लोकतन्त्र के अन्तर्गत जाति, वंश, रंग, धर्म, लिंग
आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। कानून के समक्ष सभी नागरिक समान माने
जाते हैं। इसके अतिरिक्त लोकतन्त्र स्वतन्त्रता का भी पोषक है जिसके अन्तर्गत विचार,
भाषण, सभा आदि की स्वतन्त्रताएँ दी जाती हैं। भारत का संविधान और दक्षिण अफ्रीका के
संविधान इसके उत्तम उदाहरण हैं।
 
(iv) जनकल्याण का पोषक―लोकतन्त्र का उद्देश्य सभी लोगों का कल्याण करना है।
लोकतंत्र में लोक-कल्याणकारी राज्य की अवधारणा सदैव आदर्श रूप में रहती है, यह
राज्य पर निर्भर है वह इसे कितना पूरा कर पाता है।
 
(v) राजनीतिक जागृति―लोकतन्त्र जनता में राजनीतिक जागृति उत्पन्न कराने में भी सहायक
सिद्ध होता है। इस प्रकार निर्वाचन एवं शासन कार्य में भाग लेने के कारण जनता में
राजनीतिक चेतना आती है।
 
(vi) राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना का विकास―जनता ही देश की वास्तविक शासक
होती है; अत: लोकतन्त्र में नागरिकों में देशभक्ति का विकास स्वाभाविक है। इस प्रकार
जनता को देश के लिए काम करने का मौका मिलता है। वंचित वर्ग की अशिक्षित, कम
शिक्षित जनता भी विधायक, सांसद या अन्य संवैधानिक पदों पर पहुंँचने की क्षमता रखती
है। यही कारण है कि उसमें राष्ट्रीयता की भावना भी विकसित होती रहती है।
 
(vii) राजनीतिक और सामाजिक क्रान्ति का भय नहीं―इस शासन प्रणाली को जनता का
सहयोग प्राप्त रहता है; अत: जनता के सन्तुष्ट रहने के कारण राजनीतिक और सामाजिक
क्रान्ति का भी भय नहीं रहता। जनता के हाथ में ब्रह्मास्त्र रहता है। वह सामान्यत: 4 या 5
वर्ष बाद सत्ता बदल सकती है।
 
प्रश्न 3. लोकतंत्र के दोष समझाइये।
उत्तर― लोकतंत्र के प्रमुख दोष निम्नवत् हैं―
(i) अयोग्यों की पूजा―प्लेटो और अरस्तू ने लोकतन्त्र को मूों की सरकार कहा है। प्रजातन्त्र
में मूर्ख तथा विद्वान, सच्चे और झूठे, चरित्रवान एवं चरित्रभ्रष्ट सबको समान रूप से शासन
करने का अवसर मिलता है। राजनीति में शिक्षित व्यक्तियों की कमी के कारण अन्ततः
अयोग्यों के हाथ में ही शासन चला जाता है; अतः अयोग्यों की ही पूजा होने लगती है।
 
(ii) साहित्य, कला एवं संस्कृति का विरोधी―लोकतन्त्र में उसी कार्यक्रम में धन खर्च किया जाता
है जिससे अधिक मत प्राप्त किए जा सकें। साहित्य, कला एवं संस्कृति के विकास पर जितना
ध्यान दिया जाना चाहिए, उतना नहीं दिया जाता है।
 
(iii) दलगत बुराइयाँ ―दलीय व्यवस्था होने के कारण देश से ज्यादा अपने दलीय हित और
स्वयं के हित पर अधिक ध्यान देता है। एक बार पैसा खर्च करके जीता जाता है और जनता
के लिए आये धन में बंदरबाँट में साझेदार बनता है। लोकतंत्र का लोग मजाक उड़ाते हुए
कहते मिल जाते हैं, ‘अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता’ नेता प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार
को बढ़ावा देते हैं। विदेशी सौदों में भी कमीशन लिया जाता है।
 
(iv) समय तथा धन का अपव्यय―लोकतन्त्र में चुनावों पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। चुनाव
की प्रत्याशा में ही जनता बढ़ने वाली महंगाई से भयभीत हो जाती है। इसके अलावा जनता
के प्रतिनिधियों के वेतन और भत्ते के रूप में राष्ट्रीय आय का एक बहुत बड़ा भाग
अनावश्यक रूप से खर्च हो जाता है।
 
(v) धनवानों की प्रबलता―चुनाव प्रणाली खर्चीली और जनबल पर आधारित होती है। अत:
साधारण आम जनता विधानसभा और लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ पाती है। धनवान ही
चुनाव लड़ते हैं। निर्वाचन पद्धति के कारण अमीर धन के बल पर गरीब मतदाताओं का मत
खरीदकर चुनाव जीत जाते हैं। निर्वाचन में चुने जाने के बाद वे धनवानों के हितों की ही रक्षा
करने लगते हैं।
 
(vi) अनुत्तरदायी शासन―लोकतंत्र में व्यावहारिक रूप में उत्तरदायी शासन का अभाव होता
है। ऊपर से नीचे भ्रष्टाचार की जड़े जम जाती हैं। ‘चोर-चोर मौसेरे भईया’ की कहावत
चरितार्थ हो जाती है और आम जनता पिसकर रह जाती है। नौकरशाही भ्रष्ट होकर पूरे तंत्र
को खोखला कर देती है, चुनी हुई सरकार उस पर अंकुश नहीं लगा पाती हैं। पूँजीपतियों के
द्वारा ही सरकारें बनायी और गिरायी जाती हैं।
 
(vii) कोरा आदर्शवाद―लोकतन्त्र कोरे आदर्शवाद पर आधारित है। क्योंकि इसमें व्यावहारिक
पक्ष पर ध्यान नहीं दिया जाता है। यह समानता और स्वतन्त्रता जैसे सिद्धान्तों पर अवश्य
आधारित है, परन्तु व्यवहार में समानता और स्वतन्त्रता कहीं दिखाई नहीं देती।
 
(viii) अन्ध भक्ति―लोकतन्त्र में जनता अपनी मूर्खता के कारण एक नेता की पूजा करने लग
जाती है। इसका लाभ उठाकर वह नेता तानाशाह भी बन सकता है। राजनीतिक विचारधारा का
स्थान गौण हो जाता है। मीडिया और बुद्धिजीवी उसी नेता का गुणगान करने लगते हैं जो उच्च
वर्ग का हिमायती होता है।
 
प्रश्न 4. पाक के जनरल मुशर्रफ के शासन के विषय में आपकी क्या राय है?
उत्तर― पाक के जनरल मुशर्रफ के शासन को लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता है क्योंकि उस
दौरान कोई भी अंतिम निर्णय लेने का अधिकार जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथों में न होकर
जनरल मुशर्रफ के हाथों में ही था। पाक में अप्रत्यक्ष रूप में सैन्य शासन ही था। जनरल मुशर्रफ के
शासन का संक्षेप में घटनाक्रम निम्नवत् है―
(i) परवेज मुशर्रफ ने अक्टूबर, 1999 में पाकिस्तान में एक फौजी तख्तापलट का नेतृत्व किया।
 
(ii) उसने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंका और स्वयं को देश का
 ‘मुख्य कार्यकारी’ घोषित कर दिया।
 
(iii) बाद में वह देश का राष्ट्रपति बन गया और 2002 में उसने देश में एक जनमत संग्रह कराया
जिसने उसके शासनकाल को पाँच वर्ष का अतिरिक्त समय दे दिया।
 
(iv) पाकिस्तानी मीडिया, मानवाधिकार संगठनों एवं लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं के अनुसार यह
जनमत संग्रह गड़बड़ियों एवं धोखाधड़ी पर आधारित था।
 
(v) अगस्त, 2002 में परवेज मुशर्रफ ने ‘लीगल फ्रेमवर्क ऑर्डर’ जारी किया जिसने उसे राष्ट्रीय
अथवा प्रांतीय असेंबलियों को भंग करने की शक्ति प्रदान की। असैनिक मंत्रिमंडल के कार्य
की निगरानी करना एक सुरक्षा परिषद द्वारा की जाती थी जिसमें फौजी अधिकारियों के
आधिपत्य था। इस कानून को पारित करने के बाद पाकिस्तान में चुनाव हुए किन्तु सभा
प्रमुख शक्तियाँ जनरल मुशर्रफ के हाथ में थीं इसलिए मुशर्रफ के अधीन पाकिस्तान को एक
लोकतांत्रिक देश नहीं कहा जा सकता क्योंकि निर्वाचित प्रतिनिधि वास्तविक शासक नहीं थे।
एक लोकतंत्र में अंतिम निर्णय लेने की शक्ति लोगों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथों में।
होनी चाहिए।
 
प्रश्न 5. साम्यवादी शासन और लोकतंत्र में मौलिक अंतर स्पष्ट कीजिए। चीनी प्रणाली पर
भी प्रकाश डालिए।
उत्तर― साम्यवादी शासन और लोकतंत्र में मूल्यों, सिद्धान्तों तथा प्रक्रियाओं का मौलिक अंतर है।
उदाहरणार्थ―लोकतंत्र का निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्वाचन पर आधृत होना इसकी एक प्रमुख विशेषता
है। यद्यपि कई ऐसे देश हैं जहाँ निर्वाचन की प्रणाली तो अपनायी जाती है, परन्तु उसमें आम जन
भागीदारी नहीं होती। केवल साम्यवादी विचारधारा और पार्टी के लोग ही चुनाव लड़ सकते हैं और चुने
जा सकते हैं। इसका उद्देश्य पूँजीवादी खुली अर्थव्यवस्था को लाने से रोकना है। विघटन के पूर्व
सोवियत संघ में भी निर्वाचन वैसा ही होता था, परन्तु साम्यवादी दल के अधिनायकत्व के कारण सिर्फ
साम्यवादी दल के सदस्य अथवा साम्यवादी दल के समर्थक ही निर्वाचन में भाग लेते थे। वर्तमान में
चीन में भी यही व्यवस्था है। यहाँ भी संसद, अर्थात् राष्ट्रीय जन संसद के सदस्यों का निर्वाचन अवश्य
होता है, परन्तु निर्वाचन में भाग लेने के लिए उम्मीदवारों को चीन के साम्यवादी दल से स्वीकृति प्राप्त
करनी पड़ती है। इसके परिणामस्वरूप चीन में साम्यवादी दल के समर्थक उम्मीदवार ही निर्वाचन में
खड़े होते हैं तथा साम्यवादी दल की ही सरकार गठित होती है। इसी प्रकार मैक्सिको में भी सन् 2000
तक यही स्थिति थी और यहाँ भी पी०आर०आई० (इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी) की ही सरकार
बनती थी। निर्वाचन का अर्थ सिर्फ निर्वाचन की व्यवस्था कर देना ही नहीं होता, बल्कि निर्वाचन में
स्वतन्त्रतापूर्वक राजनीतिक विकल्पों के बीच चयन करने का अवसर दिया जाना भी है। इस प्रकार
स्पष्ट है कि एक दल की तानाशाही वाले राज्यों को लोकतान्त्रिक राज्य नहीं कहा जा सकता। क्योकि ये
तानाशाह जनता के सीधे मतों से हटाये नहीं जा सकते।
 
                                      दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. रॉबर्ट मुगाबे इतने वर्ष कैसे जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति बने रहे?
उत्तर― जिम्बाब्वे ने 1980 में अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की। तब से वर्ष 2017 तक देश पर
जानु-पी०एफ० (जिम्बाब्वे अफ्रीकी नेशनल यूनियन देशभक्त मोर्चे) दल का शासन रहा और इसका
नेता रॉबर्ट मुगाबे आजादी-प्राप्ति से ही देश पर शासन करता रहा।
यद्यपि यहाँ पर चुनाव नियमित रूप से कराए जाते रहे हैं और हर बार जानु-पी०एफ० द्वारा जीते गए हैं।
राष्ट्रपति मुगाबे लोकप्रिय थे किन्तु वह चुनाव में अनुचित साधनों का प्रयोग करते थे। राष्ट्रपति की
शक्तियाँ बढ़ाने और उसे कम जवाबदेह बनाने के लिए संविधान में कई बार संशोधन किए गए हैं।
विपक्षी दल के कार्यकर्ताओं को सताया गया और उनकी सभाओं को तितर-बितर किया गया। सरकार
विरोधी प्रदर्शनों एवं आंदोलनों को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। राष्ट्रपति की आलोचना का
अधिकार सीमित है। मीडिया पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में थी और केवल सत्ताधारी दल की
विचारधारा का प्रसार करता रहा। स्वतंत्र अखबारों को सत्ताधारी दल के विरुद्ध कुछ भी लिखने पर
सताया गया। सरकार न्यायालय के ऐसे फैसलों की परवाह नहीं करती थी जो उसके विरुद्ध जा रहे हों
बल्कि जजों पर दबाव डाला था।
यह दर्शाता है कि लोकतंत्र में शासकों का लोकप्रिय अनुमोदन करे, किन्तु यही पर्याप्त नहीं है। लोकप्रिय
सरकारें अलोकतान्त्रिक भी हो सकती हैं और लोकप्रिय नेता स्वेच्छाचारी भी हो सकते हैं।
 
प्रश्न 2. लोकतंत्र के हित में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव क्यों आवश्यक है?
उत्तर― निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्वाचन पर आधृत होना लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताओं में से एक है।
किसी भी लोकतंत्र में नियमित अंतराल में चुनाव होते हैं। चुनाव का सीधा-सा अर्थ है, अपने
मताधिकार का उपयोग करके अपने प्रतिनिधि चुनना और उन्हें सत्ता सौंपना। आज की सभी
लोकतांत्रिक सरकारें, जनता द्वारा चुनाव द्वारा चुनी जाती हैं। मत देने और जनता को अपने कानून बनाने
वाले प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार ही मताधिकार कहलाता है और यह मताधिकार चुनावों द्वारा
ही प्राप्त होता है। इस प्रकार मताधिकार लोकतांत्रिक व्यवस्था का मूल आधार है। हर्नशा ने ठीक हो
कहा है―”राजनैतिक अर्थ में लोकतंत्र केवल सरकार को नियुक्त करने, नियंत्रित करने और पदच्युत
करने की एक प्रणाली है।” चुनाव किसी प्रतिनिधिक लोकतंत्र का सर्वप्रमुख पहलू है। प्रतिनिधिक
लोकतंत्र में शासन निर्वाचित प्रतिनिधि चलाते हैं। उन्हें वैधता इसी बात से प्राप्त होती है कि मतदाताओं
के बहुमत या सर्वाधिक मतदाताओं ने उन्हें चुना है। जो लोग निर्वाचित प्रतिनिधि की विचारधारा या
राजनीति से सहमत नहीं होते, वे यह सोचकर ही उनके शासन को स्वीकार करते हैं कि विजयी
प्रतिनिधि को सबसे ज्यादा मतदाताओं का समर्थन मिला। यानी बहुमत विजेता के साथ है। संदेह नहीं
आधुनिक प्रतिनिधिक लोकतंत्र अनिवार्य रूप से संख्या बल पर आधारित है। अगर यह शक अथवा
धारणा बनने लगे कि निर्वाचित व्यक्ति वास्तव में बहुसंख्या का प्रतिनिधित्व नहीं करता अथवा उसने
अनुचित या अवैध तरीके से अपने पक्ष में बहुमत जुटाया है, तो अल्पमत पक्ष के लिए सहजता से
अपनी पराजय स्वीकार करना कठिन हो जाता है। तब विजयी पक्ष की वैधता को चुनौती दी जाने लगती
है। इन परिस्थितियों में किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था का औचित्य ही संदिग्ध हो सकता है। इसीलिए
चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाए रखना लोकतांत्रिक व्यवस्था की आधारभूत अनिवार्यता है।
 
प्रश्न 3. लोकतंत्र का आधार समता, स्वतंत्रता और आर्थिक अवसरों तक पहुँच होना
चाहिए। इस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर― ‘लोकतन्त्र’ शब्द अंग्रेजी शब्द ‘डेमोक्रेसी’ का हिन्दी रूपान्तर है। ‘डेमोक्रेसी’ दो यूनानी
शब्दों से बना है―डेमोस (demos) और क्रेशिया (cratia), जिनका अर्थ क्रमश: है―’जनता’ और
‘शासन’। इस प्रकार, व्युत्पत्ति की दृष्टि से लोकतन्त्र का अर्थ ‘जनता का शासन’ हुआ। अर्थात्,
लोकतन्त्र का अर्थ ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें जनता स्वयं भाग लेती है। लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली
में सम्प्रभुता जनता में ही निहित रहती है। लोकतंत्र में जनता ही सरकारों को बनाती और गिराती है।
उसके ही मत से विधायिका के सदस्य चुने जाते हैं। लोकतंत्र में राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता तो
पायी जाती है। लेकिन इसमें अभी आर्थिक लोकतंत्र का अभाव दृष्टिगोचर होता है। यह उसी प्रकार है
जैसे कि किसी भी व्यक्ति को फाइवस्टार होटल में जाने का अधिकार है। लेकिन उसकी जेब में पैसे
नहीं हैं। कई बार ये भी देखने को मिलता है कि प्रत्येक व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार है परन्तु
उसके पास साधन नहीं है। यद्यपि दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के संविधान में जनसुरक्षा के उपाय किये
गये हैं। मौलिक भारत के संविधान में भी नीति निर्देशक तत्त्वों के माध्यम से ऐसा प्रयास किया जा रहा है
जिससे आर्थिक लोकतंत्र बहाल हो सके। लोकतंत्र की सार्थकता तभी है। जब वह समता और अवसर
की बराबरी में निहित हो।
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतन्त्र की परिभाषा देते हुए कहा है, “लोकतन्त्र जनता का,
जनता द्वारा और जनता के लिए शासन है।” प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से एक आदर्श व्यवस्था के रूप में
लोकतन्त्र की लोकप्रियता की लहर फैल गई। प्रथम विश्वयुद्ध के समय स्पष्ट रूप से यह घोषणा की
गई कि विश्व में लोकतन्त्र की रक्षा के लिए ही यह युद्ध लड़ा जा रहा है। सन् 1921 में लॉर्ड ब्राइस
की एक पुस्तक मॉडर्न डेमोक्रेसी प्रकाशित हुई जिसमें ब्राइस ने अपना मत व्यक्त करते हुए लिखा
था― “70 वर्ष पूर्व लोकतन्त्र शब्द नापसंद था और दहशत से भरा था। अब इस शब्द का गुणगान
किया जा रहा है।”
धीरे-धीरे लोकतन्त्र विकास के मार्ग पर आगे बढ़ा और लोकतन्त्र समानता पर आधृत हो गया।
राजनीतिक समानता की स्थापना हुई, परन्तु इससे ही काम नहीं चल सकता था। समानता का प्रवेश
सामाजिक और आर्थिक जीवन में होने से इस सिद्धान्त को प्रोत्साहन मिला कि आर्थिक समानता के
अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता निरर्थक है।
साम्यवादी सरकारों; यथा―जैसे चीन, सोवियत संघ जैसे देशों में नागरिकों को वास्तविक आर्थिक
सुरक्षा रोटी, कपड़ा और मकान के अधिकार दिये गये थे। लोकतंत्रीय व्यवस्था में भी मौलिक अधिकारों
के अन्तर्गत इनका समावेश करके एक सच्चे लोकतंत्र की स्थापना की जा सकती है।
 
प्रश्न 4. लोकतंत्र ही क्यों उपयुक्त व्यवस्था हो सकती है?
उत्तर― एब्सोल्यूट पावर करप्ट्स एब्सोल्यूटली से अभिप्राय यह है कि लोकतंत्र में शक्ति जनता के
हाथों में रहती है, जहाँ वह एक कार्यकाल के पश्चात् अपने शासकों को बदल सकती है। शासकों में भी
इसका भय रहता है। लेकिन जहाँ लोकतंत्रीय व्यवस्था के बावजूद शासक तानाशाह रवैय्या अपना लेते
हैं तो वो एक प्रकार से लोकतंत्र की हत्या कर देते हैं। जैसा पाक के सैनिक तानाशाहों और राबर्ट मुगाबे
ने किया। साम्यवादी शासन में साम्यवादी पार्टी का ही शासन होता है अत: कई बार अत्यधिक अधिकार
पाकर भी तानाशाह बने शासक भ्रष्ट हो जाते हैं जैसा पूर्वी यूरोपीय साम्यवादी शासक हो गये। मानव की
दुर्बलताओं को ना भूलते हुए आज विश्व लोकतंत्रीय व्यवस्था की ओर सर्वाधिक मुखातिब है।
साम्यवादी शासन में जहाँ। जनता को उसके वास्तविक अधिकार और समानता के अवसर प्राप्त होते हैं
यथा काम पाने का अधिकार, सस्ते राशन का अधिकार, सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं और प्रायः मुक्त
शिक्षा, समान खेल अवसर और प्रतिभा को आयाम देने हेतु सरकारी प्रोत्साहन एवं सार्वजनिक परिवहन
व्यवस्था इत्यादि जो कम खर्च में जीवन को स्तरीय बना देती है। लोकतन्त्र में ये अधिकार संविधान में
नीति-निर्देशक तत्त्वों में तो रखे जाते हैं लेकिन वास्तव में मिल नहीं पाते। लोकतंत्र तभी सार्थक हो
सकता है। जब उसमें नागरिकों को सच्चे अधिकार प्राप्त हो। जनता अपनी मर्जी से शासक बदल सके।
न्यायपालिका जनहित में अपना दायित्व संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार निभाये। इस प्रकार लोकतंत्र
ही उपयुक्त व्यवस्था हो सकती है।
 
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TENSE

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