UP Board Class 9 Social Science Civics | संस्थाओं का कामकाज

By | April 14, 2021

UP Board Class 9 Social Science Civics | संस्थाओं का कामकाज

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज

अध्याय 4.                               संस्थाओं का कामकाज
                                                        अभ्यास
NCERT प्रश्न
प्रश्न 1. अगर आपको भारत का राष्ट्रपति चुना जाए तो आप निम्नलिखित में से कौन-सा
फैसला खुद कर सकते हैं?
(क) अपनी पसन्द के व्यक्ति को प्रधानमन्त्री चुन सकते हैं।
(ख) लोकसभा में बहुमत वाले प्रधानमन्त्री को उसके पद से हटा सकते हैं।
(ग) दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं।
(घ) मन्त्रिपरिषद् में अपनी पसन्द के नेताओं का चयन कर सकते हैं।
उत्तर― (ग) दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं।
 
प्रश्न 2. निम्नलिखित में कौन राजनैतिक कार्यपालिका का हिस्सा होता है?
(क) जिलाधीश
(ख) गृह मन्त्रालय का सचिव
(ग) गृह मन्त्री
(घ) पुलिस महानिदेशक
उत्तर― (ग) गृह मन्त्री।
 
प्रश्न 3. न्यायपालिका के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा बयान गलत है?
(क) संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मन्जूरी की जरूरत होती
है।
(ख) अगर कोई कानून संविधान की भावना के खिलाफ है तो न्यायपालिका उसे अमान्य
घोषित कर सकती है।
(ग) न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतन्त्र होती है।
(घ) अगर किसी नागरिक के अधिकारों का हनन होता है तो वह अदालत में जा सकता है।
उत्तर― (क) संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मन्जूरी की जरूरत होती है।
 
प्रश्न 4. निम्नलिखित राजनैतिक संस्थाओं में से कौन-सी संस्था देश के मौजूदा कानून में
संशोधन कर सकती है?
(क) सर्वोच्च न्यायालय 
(ख) राष्ट्रपति 
(ग) प्रधानमन्त्री 
(घ) संसद
               उत्तर― (घ) संसद।
 
प्रश्न 5. उस मन्त्रालय की पहचान करें जिसने निम्नलिखित समाचार जारी किया होगा―
(क) देश से जूट का निर्यात बढ़ाने के लिए       1. रक्षा मन्त्रालय
नई नीति बनाई जा रही है।
(ख) ग्रामीण इलाकों में टेलीफोन सेवाएँ         2. कृषि, खाद्यान्न और सार्वजनिक वितरण
      सुलभ करायी जाएंँगी।                                  मन्त्रालय
(ग) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत       3. स्वास्थ्य मन्त्रालय
बिकने वाले चावल और गेहूँ की कीमतें
कम की जाएंँगी।
(घ) पल्स पोलियो अभियान शुरू किया        4. वाणिज्य और उद्योग मन्त्रालय
     जाएगा।  
(ङ) ऊँची पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के     5. संचार और सूचना-प्रौद्योगिकी मन्त्रालय
      भत्ते बढ़ाए जाएंँगे।  
उत्तर― (क) →4; (ख) →5; (ग) →3; (घ) → 2; (ङ) → 1.
 
प्रश्न 6. देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में से उस राजनैतिक संस्था
का नाम बताइए जो निम्नलिखित मामलों में अधिकारों का इस्तेमाल करती है।
(क) सड़क, सिंचाई जैसे बुनियादी ढाँचों के विकास और नागरिकों की विभिन्न
कल्याणकारी गतिविधियों पर कितना पैसा खर्च किया जाएगा।
(ख) स्टॉक एक्सचेंज को नियमित करने सम्बन्धी कानून बनाने की कमेटी के सुझाव पर
विचार-विमर्श करती है।
(ग) दो राज्य सरकारों के बीच कानूनी विवाद पर निर्णय लेती है।
(घ) भूकम्प पीड़ितों की राहत के प्रयासों के बारे में सूचना माँगती है।
उत्तर― (क) कार्यपालिका।
           (ख) विधायिका।
            (ग) न्यायपालिका।
            (घ) कार्यपालिका।
 
प्रश्न 7. भारत का प्रधानमन्त्री सीधे जनता द्वारा क्यों नहीं चुना जाता? निम्नलिखित चार
जवाबों में सबसे सही को चुनकर अपनी पसन्द के पक्ष में कारण दीजिए―
(क) संसदीय लोकतन्त्र में लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी का नेता ही प्रधानमन्त्री बन
सकता है।
(ख) लोकसभा, प्रधानमन्त्री और मन्त्रिपरिषद् का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें हटा
सकती है।
(ग) चूँकि प्रधानमन्त्री को राष्ट्रपति नियुक्त करता है, लिहाजा उसे जनता द्वारा चुने जाने की
जरूरत ही नहीं है।
(घ) प्रधानमन्त्री के सीधे चुनाव में बहुत ज्यादा खर्च आएगा।
उत्तर― (क) संसदीय लोकतन्त्र में लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी का नेता ही प्रधानमन्त्री बन सकता है।
वह सीधे जनता द्वारा नहीं चुना जाता, इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं―
(i) संसदीय लोकतन्त्र में संसद ही प्रधान होती है। यदि भारतीय प्रधानमन्त्री यू०एस०ए० के
राष्ट्रपति की भाँति सीधे जनता द्वारा चुना हुआ होता तो वह संसद के सामने कभी भी न
झुकता क्योंकि वह सीधे जनता द्वारा चुना हुआ होता है और सभी जनता उसके पीछे होती
है।
 
(ii) संसदीय लोकतन्त्र में प्रधानमन्त्री संसद का ही एक अंग होता है और उसका अपना अस्तित्व
संसद पर ही निर्भर करता है। जिस समय संसद का बहुमत उसके साथ नहीं रहता उसे
त्यागपत्र देना पड़ता है इसलिए उसका कार्यकाल इतना कोई निश्चित नहीं होता।
इसलिए संसदीय लोकतन्त्र में सीधे जनता द्वारा चुना गया प्रधानमन्त्री फिट नहीं बैठता।
 
प्रश्न 8. तीन दोस्त एक ऐसी फिल्म देखने गए जिसमें हीरो एक दिन के लिए मुख्यमन्त्री
बनता है और राज्य में बहुत-से बदलाव लाता है। इमरान ने कहा कि देश को इस
चीज की जरूरत है। रिजवान ने कहा कि इस तरह का, बिना संस्थाओं वाला एक
व्यक्ति का राज खतरनाक है। शंकर ने कहा कि यह तो एक कल्पना है। कोई भी
मन्त्री एक दिन में कुछ भी नहीं कर सकता। ऐसी फिल्मों के बारे में आपकी क्या
राय है?
उत्तर― रिजवान और शंकर के विचार सच्चाई के अधिक निकट हैं। शंकर ने ठीक ही कहा है कि
कोई भी मन्त्री एक दिन में कुछ भी नहीं कर सकता, यह तो एक कल्पना है। कोई भी मुख्यमन्त्री एक
दिन में सरकार की मशीनरी को ही नहीं समझ सकता वह काम क्या करेगा। ऐसे मुख्यमन्त्री से गलत
काम होने की अधिक सम्भावना हो सकती है। ऐसे ही कुछ विचार रिजवान के हैं। इस तरह का बिना
संस्थाओं वाला एक व्यक्ति का राज खतरनाक है।
एक दिन के लिए मुख्यमन्त्री से किसी अच्छे कार्य की सम्भावना करना केवल फिल्मों में ही सम्भव है।
वैसे यह एक कल्पना मात्र है।
 
प्रश्न 9. एक शिक्षिका छात्रों की संसद के आयोजन की तैयारी कर रही थी। उसने दो
छात्राओं से अलग-अलग पार्टियों के नेताओं की भूमिका करने को कहा। उसने
उन्हें विकल्प भी दिया। यदि वे चाहें तो राज्यसभा में बहुमत प्राप्त दल की नेता हो
सकती थीं और अगर चाहें तो लोकसभा के बहुमत प्राप्त दल की। अगर आपको
यह विकल्प दिया गया तो आप क्या चुनेंगे और क्यों?
उत्तर― यदि मुझे यह विकल्प दिया जाए तो मैं लोकसभा में बहुमत प्राप्त करना पसन्द करूँगा।
क्योंकि―
(i) सर्वप्रथम भारतीय लोकसभा, राज्यसभा की तुलना में काफी शक्तिशाली है।
(ii) सभी धन सम्बन्धी बिल केवल लोकसभा में ही पेश हो सकते हैं, राज्यसभा में नहीं।
(iii) यह लोकसभा ही है जो मन्त्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास करके उसे हटा भी
सकती है, राज्यसभा नहीं।
(iv) यदि किसी बात पर लोकसभा और राज्यसभा में मतभेद हो जाए तो दोनों की एक सम्मिलित
मीटिंग होती है क्योंकि वहाँ फैसला बहुमत से होता है, इसलिए लोकसभा की ही बात मानी
जाती है क्योंकि उसके सदस्य राज्यसभा से कहीं अधिक लगभग दो गुने होते हैं।
 
प्रश्न 10. आरक्षण पर आदेश का उदाहरण पढ़कर तीन विद्यार्थियों की न्यायपालिका की
भूमिका पर अलग-अलग प्रतिक्रिया थी। इनमें से कौन-सी प्रतिक्रिया,
न्यायपालिका की भूमिका को सही तरह से समझती है?
(क) श्रीनिवास का तर्क है कि चूंकि सर्वोच्च न्यायालय सरकार के साथ सहमत हो गई है,
लिहाजा वह स्वतन्त्र नहीं है।
(ख) अंजैया का कहना है कि न्यायपालिका स्वतन्त्र है क्योंकि वह सरकार के आदेश के
खिलाफ फैसला सुना सकती थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उसमें संशोधन की
निर्देश दिया।
(ग) विजया का मानना है कि न्यायपालिका न तो स्वतन्त्र है न ही किसी के अनुसार चलने
ने इस आदेश के समर्थकों और विरोधियों के बीच बढ़िया संतुलन बनाया।
वाली है बल्कि वह विरोधी समूहों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाती है। न्यायालय
आपकी राय में कौन-सा विचार सबसे सही है?
उत्तर― न्यायपालिका की भूमिका के विषय में अंजैया (Anjaiah) के विचार सही हैं। भारत में
न्यायपालिका बिलकुल स्वतन्त्र है। वह सरकार के खिलाफ भी अनेक फैसले सुनाती है और यदि
सरकार ठीक होती है तो वह उसके पक्ष में फैसला सुना देती है। जहाँ तक आरक्षण का प्रश्न है सर्वोच्च
न्यायालय की सरकार के विरुद्ध फैसला सुना सकती थी। उसने सरकार को संशोधन का आदेश तो
दिया जो न्यायालय की स्वतन्त्रता और निष्पक्षता को प्रतिबिम्बित करता है।
श्रीनिवास के तर्क से हम सहमत नहीं हो सकते क्योंकि “न्यायालय सरकार के साथ सहमत हो गई है इसलिए वह स्वतन्त्र नहीं है।”
हम विजया के विचार से भी सहमत नहीं हो सकते कि न्यायपालिका दो विरोधी गुटों के बीच केवल
बढ़िया सन्तुलन बनाने का काम करती है। सर्वोच्च न्यायालय तथ्यों के आधार पर अपना फैसला सुनाती
है, चाहे वह सरकार के पक्ष में जाए या उसके विरुद्ध। भारत न्यायपालिका अपने फैसले बिलकुल
स्वतन्त्र रूप से सुनाती है।
 
                                   अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
 
                                     बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग हेतु कितना आरक्षण किया गया?
(क) 22%
(ख) 24% 
(ग) 25% 
(घ) 27%
           उत्तर―(घ) 27%
 
प्रश्न 2. भारत में द्वितीय पिछड़ी जाति आयोग का गठन बी०पी० मण्डल की अध्यक्षता में
कब किया गया?
(क) 1979 
(ख) 1980 
(ग) 1981 
(घ) 1982
              उत्तर―(क) 1979
 
प्रश्न 3. आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण कब से मिलना शुरू हुआ?
(क) 1990 
(ख) 1991 
(ग) 1992 
(घ) 1993
               उत्तर―(घ) 1993
 
प्रश्न 4. लोकसभा की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है?
(क)551
(ख)552 
(ग) 553
(घ) 554
            उत्तर―(ख) 552
 
प्रश्न 5. राज्यसभा की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है?
(क) 247
(ख) 249 
(ग) 250
(घ) 251
           उत्तर―(ग) 250
 
प्रश्न 6. राज्यसभा वित्त विधेयक को कितने दिन रोक सकती है?
(क) 13
(ख) 14 
(ग) 15
(घ) 16
         उत्तर―(ख) 14
 
प्रश्न 7.संसद के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता कौन करता है?
(क) राज्यसभा का सभापति
(ख) लोकसभा–अध्यक्ष
(ग) वित्त मंत्री
(घ) प्रधानमंत्री
                  उत्तर―(ख) लोकसभा अध्यक्ष
 
प्रश्न 8.मंत्रिपरिषद में कितने प्रकार के मंत्री होते हैं?
(क) 2
(ख) 3
 (ग) 4
 (घ) 5
         उत्तर―(ख) 3
 
प्रश्न 9. मंत्रिपरिषद् किसके प्रति उत्तरदायी होती है?
(क) राज्यसभा
(ख) प्रधानमंत्री
(ग) लोकसभा
(घ) राष्ट्रपति
                    उत्तर―(ग) लोकसभा
 
प्रश्न 10. राष्ट्रपति को शपथ कौन दिलाता है?
(क) प्रधानमंत्री
(ख) भारत का मुख्य न्यायाधीश
(ग) उपराष्ट्रपति
(घ) वित्त मंत्री
                 उत्तर―(ख) भारत का मुख्य न्यायाधीश
 
                              अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. किस संविधान संशोधन द्वारा यह व्यवस्था है कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह
मानने को बाध्य है?
उत्तर― संविधान के 42वें संशोधन में।
 
प्रश्न 2. अमेरिका में कौन-सी राजनीतिक प्रणाली है?
उत्तर― राष्ट्रपति प्रणाली।
 
प्रश्न 3. राष्ट्रपति कब अध्यादेश जारी कर सकता है?
उत्तर― राष्ट्रपति अध्यादेश तब जारी कर सकता है जब संसद सत्र न चल रहा हो। राष्ट्रपति को यह
शक्ति संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत प्राप्त है।
 
प्रश्न 4. राष्ट्रपति किस अनुच्छेद के तहत वित्तीय आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है?
उत्तर― अनुच्छेद 360 के तहत।
 
प्रश्न 5. आखिरी बार राष्ट्रीय आपातकाल कब लगाया गया?
उत्तर― जून, 1975 में।
 
प्रश्न 6. प्रधानमंत्री कौन चुना जाता है?
उत्तर― लोकसभा में बहुमत प्राप्त करने वाले दल अथवा गठबंधन का नेता।
 
प्रश्न 7. कैबिनेट क्या होती है?
उत्तर― कैबिनेट प्रधानमंत्री तथा उसके मंत्रियों का समूह होता है।
 
प्रश्न 8. स्थायी कार्यपालिका किसे कहते हैं?
उत्तर― प्रशासनिक अधिकारियों के वर्ग को स्थायी कार्यपालिका कहा जाता है।
 
प्रश्न 9. मण्डल आयोग ने कब अपनी सिफारिश पेश की?
उत्तर― वर्ष 1980 में।
 
प्रश्न 10.सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर― 26 जनवरी, 1950 को।
 
                              लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मण्डल कमीशन से आप क्या समझते हो?
उत्तर― सन् 1979 में तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार ने सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़ो
की पहचान कराने हेतु एक आयोग का गठन किया। बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री बिन्देश्वरी प्रसाद
मण्डल (B.P. Mandal) को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। यह आयोग ही मण्डल आयोग
(कमीशन) के नाम से जाना गया। इसने पिछड़ी जातियों को परिभाषित किया तथा इने पिछड़े वर्गों एवं
जातियों के निर्धारण के लिए सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक मानदण्डों का प्रयोग किया। इस अयोग ने
1980 में राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
इस रिपोर्ट में आयोग ने पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थाओं के प्रवेशों में 27
फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की। आयोग ने इस सिफारिश के समर्थन में कहा कि यदि 22.5
फीसदी जनसंख्या वाले हरिजनों एवं जनजातियों के लिए उतने ही आरक्षण की व्यवस्था हो सकती है
तो 52 फीसदी जातियों के लिए 27 फीसदी क्यों नहीं की जा सकती।
 
प्रश्न 2. मण्डल कमीशन की सिफारिशों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर― मण्डल आयोग (आधिकारिक रूप से इसे ‘दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग’ कहा गया।) ने 27
प्रतिशत आरक्षण की निम्नलिखित योजना प्रस्तुत की―
(i) अन्य पिछड़े वर्गों के उन सदस्यों को जो खुली प्रतियोगिता द्वारा नियुक्त किए गए हैं,27%
आरक्षण के अंतर्गत न मानें।
 
(ii) आरक्षण की यह व्यवस्था पदोन्नति के लिए भी सभी स्तरों पर लागू मानी जाएगी।
 
(iii) आरक्षित पद यदि रिक्त हैं तो उन्हें तीन वर्ष आरक्षित रखा जाए। इसके बाद उन्हें अनारक्षित
कर दिया जाए।
 
(iv) एस०सी० और एस०टी० की तरह पिछड़े वर्गों के उम्मीदवारों को भी सीधी नियुक्ति
(Appointment) के मामले में आयु सीमा में छूट हो।
 
(v) संबंधित अधिकारियों द्वारा उसी प्रकार प्रत्येक श्रेणी के पदों के लिए रोस्टर प्रणाली
(Roaster System) का प्रयोग किया जाना चाहिए, जिस प्रकार अनुसूचित जाति (SC)
और अनुसूचित जन-जाति (ST) के संबंध में किया जाता है।
मंडल आयोग ने सिफारिश की थी कि पिछड़े वर्गों से संबंधित 27% आरक्षण की यह व्यवस्था सभी
सार्वजनिक उद्यमों, सरकारी सहायता प्राप्त निजी उद्यमों, विश्वविद्यालयों और उनसे संबद्ध कॉलेजों में
लागू की जानी चाहिए।
 
प्रश्न 3. लोकसभा और राज्यसभा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर―                     लोकसभा और राज्यसभा
 
प्रश्न 4. लोकसभा राज्यसभा की अपेक्षा क्यों शक्तिशाली है?
उत्तर― लोकसभा के राज्यसभा की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होने मुख्य कारण निम्नवत् हैं―
(i) साधारण विधेयक―किसी भी साधारण विधेयक का दोनों सदनों द्वारा पारित होना
आवश्यक होता है। यदि दोनों सदनों में कोई मतभेद हो तो अंतिम निर्णय संयुक्त सत्र में
लिया जाता है, जिसमें दोनों सदनों के सदस्य बैठते हैं। सदस्यों की अधिकतम संख्या होने के
कारण, इस मीटिंग में लोकसभा के विचारों को मान्यता मिलती है।
 
(ii) धन विधेयक―वित्तीय मामलों में लोकसभा के पास अधिक शक्ति होती है। एक बार यदि
लोकसभा सरकार का बजट अथवा धन सम्बन्धी कोई अन्य कानून पारित करती है, तो
राज्यसभा उसे अस्वीकार नहीं कर सकती। राज्यसभा उसे अपने पास 14 दिन तक के लिए
रख सकती है अथवा उसमें परिवर्तन का सुझाव दे सकती है। लोकसभा इन परिवर्तनों को
स्वीकार कर भी सकती है अथवा नहीं।
 
(iii) अविश्वास प्रस्ताव―लोकसभा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य, मंत्रियों की परिषद् को नियंत्रित
करना है। वह व्यक्ति, जिसे लोकसभा के बहुसंख्यक सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो,
प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त होता है। यदि लोकसभा के बहुसंख्य सदस्य कहें कि उन्हें
मंत्रियों की परिषद् पर विश्वास नहीं है तो प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्रियों को त्यागपत्र देना
होगा। राज्यसभा के पास यह शक्ति नहीं है।
 
प्रश्न 5. नौकरशाही क्या होती है?
उत्तर― लोक सेवाओं में काम करने वाले लोगों को सिविल सर्वेट या नौकरशाह कहते हैं। ये
सत्ताधारी पार्टी के बदलने के बाद भी पदों बने रहते हैं। इनकी कार्य-प्रणाली ही नौकरशाही
कहलाती है। राजनैतिक लोग नौकरशाहों की सलाह पर ही अपने कार्यों को सही तरह से अंजाम देते हैं।
वास्तव में नौकरशाही ही असली कार्यपालिका होती है। नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं―
(i) अधिकारियों के प्रकार्य―नौकरशाही के अंतर्गत प्रत्येक अधिकारी के प्रकार्य (काम)
सुस्पष्ट होते हैं जिनका संचालन नियमों, कानूनों तथा प्रशासनिक विधानों द्वारा होता है। उच्च
अधिकारियों द्वारा अधीनस्थ वर्गों के कार्यों पर नियंत्रण रखा जाता है। नौकरशाही में नौकरी
के अनुकूल योग्यता वाले व्यक्तियों की ही भरती की जाती है। नौकरशाही में सरकारी पद
पदधारी से स्वतंत्र होते हैं क्योंकि वे उनके कार्यकाल के पश्चात् भी बने रहते हैं।
 
(ii) पदों का सोपानिक क्रम―नौकरशाही में सभी पद श्रेणीगत सोपान पर आधारित होते हैं।
इसीलिए जहाँ एक ओर उच्च अधिकारी निम्न अधिकारी को निर्देश देते हैं वहीं दूसरी ओर
निम्न अधिकारी अपनी शिकायत उच्च अधिकारी को कर सकते हैं।
 
(iii) लिखित दस्तावेजों की विश्वसनीयता―नौकरशाही का कार्य लिखित दस्तावेजों के
आधार पर होता है तथा फाइलों को रिकॉर्ड के रूप में सँभालकर रखा जाता है।
 
(iv) कार्यालय का प्रबंधन―कार्यालय का प्रबंधन विशिष्ट तथा आधुनिक क्रिया है। इसीलिए
इसमें कार्य के लिए प्रशिक्षित और कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।
 
(v) कार्यालयी आचरण―प्रत्येक कार्यालय में कर्मचारियों का आचरण नियमों तथा कानूनों
द्वारा नियंत्रित होता है। इन्हीं के कारण उनका सार्वजनिक आचरण उनके निजी व्यवहार से
अलग होता है। अपने आचरण हेतु प्रत्येक कर्मचारी जिम्मेदार होता है।
 
                                 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद् के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर― प्रधानमंत्री लोकसभा में प्राय: बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है। प्रधानमंत्री अपने पद पर तब
तक कार्य करता है जब तक कि उसे लोकसभा में विश्वास प्राप्त है अर्थात् लोकसभा में उसका बहुमत है।
प्रधानमन्त्री को नियुक्त करने के बाद राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह पर अन्य मन्त्रियों को नियुक्त
करते हैं। मन्त्री साधारणतया उसी पार्टी या गठबंधन के होते हैं जिसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है।
प्रधानमन्त्री मन्त्रियों के चयन के लिए स्वतन्त्र होता है, बशर्ते वे संसद के सदस्य हों। कभी-कभी ऐसे
व्यक्ति को भी मन्त्री बनाया जा सकता है जो संसद का सदस्य नहीं होता है, परन्तु उस व्यक्ति का मन्त्री
बनने के छह महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों में से किसी एक का सदस्य चुना जाना आवश्यक
होता है। साधारणतया मंत्री तब तक अपने पद पर रहते हैं जब तक प्रधानमंत्री की इच्छा होती है,
प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति उन्हें हटा सकता है।
मन्त्रिपरिषद् उस निकाय का सरकारी नाम है जिसमें निम्नलिखित मन्त्री शामिल होते हैं एवं इसमें
साधारणतया विभिन्न स्तरों के 60 से 80 मन्त्री होते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं―
● ‘कैबिनेट मन्त्री’ साधारणत: सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन की पार्टियों के वरिष्ठ नेता होते हैं। ये
अनुभवी एवं योग्य होते है। कैबिनेट मन्त्री मन्त्रिपरिषद् के नाम पर फैसले करने के लिए बैठक
करते हैं। इस प्रकार कैबिनेट मन्त्रिपरिषद् का शीर्ष समूह होता है, जिसमें लगभग 20 मन्त्री शामिल
होते हैं।
● ‘स्वतन्त्र प्रभार वाले राज्यमन्त्री’ साधारणतः छोटे मन्त्रालयों के प्रभारी होते हैं। ये विशेष रूप से
आमन्त्रित किए जाने पर ही कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते हैं।
● ‘राज्यमन्त्री’ अपने विभाग के कैबिनेट मन्त्रियों से जुड़े होते हैं एवं उनकी सहायता करते हैं। नए
और कम अनुभवी नेता इसमें रखे जाते हैं।
सभी मन्त्रियों के लिए नियमित रूप से मिलकर प्रत्येक मामले पर चर्चा करना व्यावहारिक नहीं है,
इसलिए फैसले कैबिनेट बैठकों में ही किए जाते हैं। इसी कारण अधिकांश देशों में संसदीय लोकतन्त्र
को सरकार का कैबिनेट रूप कहा जाता है। कैबिनेट मन्त्रियों की राय और विचार अलग हो सकते हैं,
लेकिन सबको कैबिनेट के फैसले की जिम्मेदारी लेनी होती है। इस प्रकार भले ही कोई फैसला किसी
दूसरे मन्त्रालय या विभाग का हो, लेकिन कोई भी मन्त्री सरकार के फैसले की खुलेआम आलोचना
नहीं कर सकता। मंत्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इनके अतिरिक्त प्रत्येक मन्त्रालय में
सचिव होते हैं, जो नौकरशाह होते हैं और ये फैसला करने के लिए मन्त्री को आवश्यक सूचना उपलब्ध
कराते हैं। टीम के रूप में कैबिनेट की सहायता कैबिनेट सचिवालय करता है जिसमें कई वरिष्ठ
नौकरशाह सम्मिलित होते हैं, जो विभिन्न मन्त्रालयों के मध्य समन्वय स्थापित करने का कार्य करते हैं।
 
प्रश्न 2. राष्ट्रपति के निर्वाचन व उसकी शक्तियों को समझाइये।
उत्तर― राष्ट्रपति संघीय कार्यपालिका का प्रधान होता है, साथ ही वह राष्ट्र का भी प्रधान होता है।
चूंँकि भारत एक गणराज्य है; अत: इसका प्रधान राष्ट्रपति ही है जो एक निर्वाचित व्यक्ति होता है।
साधारणतया प्रधानमंत्री की सलाह से मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय के राष्ट्रपति शपथ दिलाते हैं।
योग्यता―वही व्यक्ति भारत का राष्ट्रपति चुना जा सकता है, जो
(i) भारत का नागरिक हो,
(ii) 35 वर्ष या इससे अधिक आयु का हो,
(iii) लोकसभा का सदस्य होने की योग्यता रखता हो एवं
(iv) किसी लाभ के पद पर न हो।
निर्वाचन―राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से होता है, इसमें भाग लेते हैं―
(i) लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य,
(ii) राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
राष्ट्रपति का निर्वाचन एकल संक्रमणीय मतविधि द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर होता है।
इसका अर्थ यह होता है कि निर्वाचक मंडल के दोनों प्रकार के सदस्यों के मत देने की संख्या लगभग
बराबर होती है।
कार्यकाल―राष्ट्रपति की नियुक्ति पाँच वर्षों के लिए होती है। यद्यपि राष्ट्रपति चाहे तो पाँच वर्ष पूरा
होने से पहले भी त्यागपत्र देकर पद से हट सकता है, इसके अतिरिक्त उसे संसद महाभियोग द्वारा भी
हटा सकती है। यदि किसी राष्ट्रपति की अपने कार्यकाल के बीच मृत्यु हो जाए तो उपराष्ट्रपति ही
राष्ट्रपति का पद ग्रहण करता है, लेकिन छह महीने के अन्दर ही नए राष्ट्रपति का चुनाव कराया जाना
आवश्यक होता है।
विशेषाधिकार―राष्ट्रपति को कुछ विशेषाधिकार भी प्राप्त हैं; जैसे-उसे कार्यकाल के अन्दर बंदी
नहीं बनाया जा सकता एवं उसके विरुद्ध कोई फौजदारी की कार्यवाही नहीं की जा सकती।
राष्ट्रपति के अधिकार (शक्तियाँ) एवं कार्य
राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रधान होता है एवं उसका पद गौरव का पद होता है। उसके कार्य तथा अधिकार
निम्नलिखित हैं―
1. कार्यपालिका के क्षेत्र में― राष्ट्रपति कार्यपालिका का प्रधान होता है। राष्ट्र का शासन उसी
के नाम से चलाया जाता है। कार्यपालिका के क्षेत्र में उसे निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं―
(i) राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करता है। प्रधानमन्त्री की सलाह से वह अन्य मन्त्रियों
की नियुक्ति करता है। वह मन्त्रियों को हटा भी सकता है।
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को शपथ
‘दिलाते हुए।
(ii) राष्ट्रपति को राज्यपालों, सर्वोच्च न्यायालय और राज्य के उच्च न्यायालयों के
न्यायाधीशों, निर्वाचन आयुक्तों, संघलोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, भारत के
महान्यायवादी, कम्पाइलर जनरल ऑफ इंडिया आदि की नियुक्ति का अधिकार है।
(iii) वह देश की सेना का सर्वोच्च कमांडर होता है। अत: उसे युद्ध की घोषणा करने, बंद
करने तथा संधि करने का अधिकार है।
(iv) विदेशी राजदूत अपना परिचय-पत्र राष्ट्रपति के सामने ही पेश करते हैं।
2. व्यवस्थापिका के क्षेत्र में―राष्ट्रपति संघीय व्यवस्थापिका, अर्थात् संसद का एक अंग है।
इस सम्बन्ध में उसके अधिकार और कार्य निम्नलिखित है―
(i) राष्ट्रपति को संसद की बैठक बुलाने, स्थगित करने एवं लोकसभा को भंग करने का
अधिकार है।
(ii) राष्ट्रपति राज्यसभा के 12 सदस्यों को मनोनीत कर सकता है।
(iii) संसद से पारित होने के बाद प्रत्येक विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है एवं उसके
हस्ताक्षर के बाद ही वह कानून बन पाता है।
(iv) धन-विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना लोकसभा के सामने पेश नहीं किया जा
सकता।
(v) संसद की बैठक नहीं होने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी
करने का अधिकार है।
(vi) राष्ट्रपति को संसद में अपना संदेश भेजने का अधिकार है।
 
3. वित्त के क्षेत्र में―राष्ट्रपति को वित्त के क्षेत्र में निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं―
(i) संसद के सामने बजट पेश करना
(ii) प्रत्येक पाँच वर्ष पश्चात् वित्त आयोग की नियुक्ति करना
(iii) धन-विधेयक को मंजूरी देना।
4. न्याय के क्षेत्र में― न्याय के क्षेत्र में राष्ट्रपति को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं―
(i) किसी अपराधी की सजा को माफ करना या कम कर देना; वह फाँसी की सजा को भी
माफ कर सकता है या आजीवन कारावास में बदल सकता है।
 
प्रश्न 3. न्यायपालिका के विषय में आप क्या जानते हो?
उत्तर― लोकतन्त्रों के लिए स्वतन्त्र और प्रभावशाली न्यायपालिका को जरूरी माना जाता है। देश के
विभिन्न स्तरों पर मौजूद अदालतों को सामूहिक रूप से न्यायपालिका कहा जाता है। भारत में सर्वोच्च
न्यायालय की स्थापना 26 जनवरी, 1950 को की गई थी। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। इसमें
एक मुख्य न्यायाधीश और 30 अन्य न्यायाधीश हैं। भारतीय न्यायपालिका में पूरे देश के लिए सर्वोच्च
न्यायालय, राज्यों में उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय और स्थानीय स्तर के न्यायालय होते हैं। भारत
में न्यायपालिका एकीकृत है। इसका अर्थ यह है कि सर्वोच्च न्यायालय देश में न्यायिक प्रशासन को
नियन्त्रित करता है। देश की सभी अदालतों को उसका फैसला मानना होता है। वह निम्न में से किसी भी
विवाद की सुनवाई कर सकता है―
                                           प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के तहत
● देश के नागरिकों के बीच,          
● नागरिकों और सरकार के बीच,    
● दो या उससे अधिक राज्य सरकारों के बीच और
● केन्द्र और राज्य सरकार के बीच।
सर्वोच्च न्यायालय फौजदारी और दीवानी मामले में अपील के लिए सर्वोच्च संस्था है, साथ ही यह
उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ सुनवाई हमारे देश में कर सकता है। न्यायपालिका की
स्वतन्त्रता का अर्थ है कि वह विधायिका या कार्यपालिका के नियन्त्रण में नहीं है। न्यायाधीश सरकार के
निर्देश या सत्ताधारी पार्टी के अनुसार काम नहीं करते, इसी कारण सभी आधुनिक लोकतन्त्रों में
अदालतें, विधायिका और कार्यपालिका के अधीन नहीं होतीं। न्यायाधीशों को स्वतंत्र रखने के लिए
उनके वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि से दिये जाते हैं। वित्तीय आपातकाल को छोड़कर उनके
वेतन, भत्तों में किसी भी प्रकार की कमी नहीं की जा सकती है। हमारे देश में राष्ट्रपति, सर्वोच्च
न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को प्रधानमन्त्री की सलाह पर और सर्वोच्च न्यायालय
के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से नियुक्त करता है। व्यावहारिक रूप से इस व्यवस्था में सर्वोच्च
न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के नए न्यायाधीशों को चुनते
हैं। इसमें राजनैतिक कार्यपालिका की दखल की सम्भावना भी अत्यन्त कम होती है। सर्वोच्च न्यायालय
के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को ही साधारणतया मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है। एक बार
किसी व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त करने के बाद उसे
उसके पद से महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा ही हटाया जा सकता है। इस प्रकार, किसी भी न्यायाधीश को
संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग दो-तिहाई बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित करके ही हटाया
जा सकता है, लेकिन भारतीय लोकतन्त्र में ऐसा कभी नहीं हुआ।

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