UP Board Class 9 Social Science Economics | पालमपुर गाँव की कहानी

By | April 14, 2021

UP Board Class 9 Social Science Economics | पालमपुर गाँव की कहानी

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

इकाई-4: अर्थव्यवस्था                अर्थशास्त्र
                                  पालमपुर गाँव की कहानी
अध्याय 1.
                                               अभ्यास
NCERT प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में जनगणना के दौरान दस वर्ष में एक बार प्रत्येक गाँव का सर्वेक्षण किया
जाता है। पालमपुर से सम्बन्धित सूचनाओं के आधार पर निम्न तालिका को
भरिए―
(क) अवस्थिति क्षेत्र
(ख) गाँव का कुल क्षेत्र
(ग) भूमि का उपयोग (हेक्टेयर में)
(घ) सुविधाएँ
उत्तर― (क) अवस्थिति क्षेत्र-रायगंज गाँव और शाहपुर नगर के पास।
(ख) गाँव का कुल क्षेत्र―300 हेक्टेयर।
(ग) भूमि का उपयोग (हेक्टेयर में)―300 हेक्टेयर।
(घ) सुविधाएँ―
प्रश्न 2. खेती की आधुनिक विधियों के लिए ऐसी अधिक आगतों की आवश्यकता होती है,
जिन्हें उद्योगों में विनिर्मित किया जाता है, क्या आप सहमत हैं?
उत्तर― निःसंदेह आधुनिक कृषि ढंग-जैसे उर्वरकों का प्रयोग, बीज की उत्तम नस्लें, नलकूप
द्वारा सिंचाई, कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग और खेती के नए उपकरण; जैसे-ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर
आदि बहुत कुछ उद्योगों पर आधारित हैं। यदि उद्योग कृषि के इन नए साधनों का निर्माण न करता तो
हमारा कृषि का उत्पादन इतना नहीं बढ़ सकता था।
कृषि और उद्योगों में इतना गहरा सम्बन्ध है कि दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
कृषि, उद्योगों के विकास के लिए अनेक प्रकार के कच्चे माल का उत्पादन करती है और औद्योगिक
उन्नति के लिए एक ठोस आधार का निर्माण करती है। दूसरी ओर उद्योगों के कारण ही कृषि के
उत्पादन में वृद्धि सम्भव हो पाई है। उद्योगों की विविधता तथा इनके विकास के फलस्वरूप ही कृषि का
आधुनिकीकरण सम्भव हो सका है। उर्वरकों, कीटनाशक दवाइयों, प्लास्टिक, बिजली, डीजल आदि
का कृषि में प्रयोग उद्योगों पर निर्भर करता है। कृषि की अनेक शाखाएँ अपने आपको उद्योग मानने लगी
हैं; जैसे―डेरी उद्योग, वृक्षारोपण उद्योग आदि। नए-नए उपकरणों, विभिन्न प्रकार के उर्वरकों और
मशीनों का प्रयोग करके आधुनिक कृषि के अधीन बड़े पैमाने पर उत्पादन किया सका है। विविध
प्रकार के उद्योगों; जैसे―लोहा-इस्पात उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग तथा रासायनिक उद्योग आदि के
विकास से कृषि का आधुनिकीकरण सम्भव हो सका है। नि:संदेह संसार की बड़ी-बड़ी घास भूमियों को
बड़े-बड़े फार्मों में बदलकर विशाल धान्यागारों का रूप देना मशीनों के कारण ही सम्भव हो सका है।
 
प्रश्न 3. पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की किस तरह मदद की?
उत्तर― पालमपुर गाँव में बिजली के विस्तार का किसानों को अनेक प्रकार से लाभ रहा―
(i) बिजली ने सिंचाई की पद्धति ही बदल डाली। पहले किसान कुओं से रहट द्वारा पानी
निकालकर अपने छोटे-छोटे खेतों की सिंचाई किया करते थे। अब उन्होंने बिजली का प्रयोग
करके नलकूपों द्वारा अधिक प्रभावशाली ढंग से एक बड़े क्षेत्र की सिंचाई करनी शुरू कर
दी।
 
(ii) अच्छी सिंचाई की सुविधाओं से किसान लोग अब पूरे वर्ष भिन्न-भिन्न फसलों की खेती
करने लगे।
 
(iii) अब उन्हें सिंचाई के लिए मानसून वर्षा पर निर्भर रहने की कोई आवश्यकता नहीं थी, जो
अनिश्चित ही नहीं थी वरन् विश्वसनीय भी नहीं थी। अब उन्हें कभी सूखे और कभी बाढ़ों
का कोई डर न रहा।
 
(iv) अब उन्हें नहरी पानी के लिए होने वाले नित्यप्रति के झगड़ों से भी छूट मिल गई, जो कभी
जानलेवा भी हो जाते थे।
 
प्रश्न 4. क्या सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है? क्यों?
उत्तर― सिंचाई के अधीन अधिक क्षेत्र का लाना बड़ा आवश्यक है क्योंकि मानसून वर्षा पर निर्भर
रहना खतरनाक है जबकि मानसून पवनों पर विश्वास नहीं किया जा सकता जो न कभी स्थायी, निरन्तर
और विश्वसनीय हैं। कभी वे सूखे का कारण बनती हैं तो कभी बाढ़ों का।
 
प्रश्न 5. पालमपुर के 380 परिवारों में भूमि के वितरण की एक सारणी बनाइए।
उत्तर―                   
                 सारणी : पालमपुर गाँव में भूमि का वितरण
 
प्रश्न 6. पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों की मजदूरी न्यूनतम मजदूरी से कम क्यों है?
उत्तर― खेतों पर काम करने वाले पालमपुर के बहुत-से किसान ऐसे हैं जिनके पास या तो कोई भी
भूमि नहीं या उनके पास इतने छोटे खेत हैं कि उन पर उनका निर्वाह नहीं होता। ऐसे भूमिहीन श्रमिकों में
डाला (Dala) की भी गिनती है। सरकार ने ऐसे भूमिहीन श्रमिकों के लिए एक दिन का न्यूनतम वेतन र
115 निश्चित कर रखा है परन्तु डाला को केवल ₹ 80 प्रतिदिन ही मिलते हैं। यह इसलिए है कि
पालमपुर के खेतिहर श्रमिकों के काम के लिए बहुत अधिक स्पर्धा है या दूसरे शब्दों में वहाँ काम कम
है परन्तु, मजदूर अधिक हैं इसलिए वे थोड़े दामों पर भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे में
यह खेतिहर मजदूर पालमपुर गाँव के सबसे निर्धन नागरिक बनकर रह जाते हैं। इसी कारण वे कई बार
अच्छे वेतन के लिए आस-पास के नगरों में जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
 
प्रश्न 7. अपने क्षेत्र में दो श्रमिकों से बात कीजिए। खेतों में काम करने वाले या विनिर्माण
कार्य में लगे मजदूरों में से किसी को चुनें। उन्हें कितनी मजदूरी मिलती है? क्या
उन्हें नकद पैसा मिलता है या वस्तु-रूप में? क्या उन्हें नियमित रूप से काम
मिलता है? क्या वे कर्ज में हैं?
उत्तर― इस कार्य-विशेष (Assignment) को विद्यार्थी स्वयं करें फिर भी उनकी सहायता के लिए
निम्नलिखित निर्देशन दिया जा रहा है जिसका वे लाभ उठा सकते हैं―
निर्देशन (Guideline)―यदि हम खेती में काम करने वाले व भवन-निर्माण में काम करने वाले
पालमपुर जैसे किसी गाँव में रहने वाले दो मजदूरों से बात करेंगे तो हमें यही पता चलेगा कि दोनों
प्रकार के ग्रामीण मजदूरों को सरकार द्वारा प्रतिदिन के लिए निश्चित राशि अर्थात् र 115 प्रतिदिन से
बहुत कम धन मिलता है। ऐसी राशि र 80 या फिर इससे थोड़ी-बहुत कम या अधिक हो सकती है।
परन्तु सरकार द्वारा निश्चित की गई मजदूरी से वह हर हालत में कम ही होगी।
उनसे पूछने से पता चला कि कभी उन्हें प्रतिदिन का वेतन नकदी में दे दिया जाता है और कभी चावल,
गेहूँ जैसे किसी अनाज के रूप में।
उनसे बात करने से पता चला कि उन्हें काम निरन्तर नहीं मिलता, ऐसे में उनके भूखों मरने की नौबत
आ जाती है इसीलिए बहुत-से मजदूरों ने बताया कि या तो खेती में काम करने के लिए वे अपने
विकास-निर्माण का कार्य करने के लिए दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई जैसे बड़े नगरों में चले
जाएँगे जहाँ उन्हें मजदूरी भी अच्छी मिल जाएगी और भूख से भी निजात मिल जाती है।
 
प्रश्न 8. एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के अलग-अलग कौन-से तरीके हैं? समझाने के
लिए उदाहरणों का प्रयोग कीजिए।
उत्तर― पालमपुर गाँव में लोग तीन प्रकार की विभिन्न फसलें पैदा कर लेते हैं। वर्षा ऋतु में वे पहले
ज्वार-बाजरा जैसी फसलें पैदा कर लेते हैं जो पशुओं के चारा के रूप में काम आ जाती है।
अक्टूबर-दिसम्बर के महीनों में वे आलू की पैदावार कर लेते हैं। शरद (या रबी) ऋतु में वे गेहूँ की
खेती कर लेते हैं जिसमें से कुछ अपने परिवार की आवश्यकता की पूर्ति के लिए रख लेते हैं और शेष
को वे बेच देते हैं।
वर्ष में पालमपुर के किसान तीन फसलें क्यों पैदा कर लेते हैं, इसके अनेक कारण हैं, जिनमें से कुछ
मुख्य निम्नलिखित हैं―
(i) पालमपुर में बिजली के आ जाने से लोगों ने अपनी सिंचाई की व्यवस्था में बहुत सुधार कर
लिया है। अब वे अधिक भूमि की सिंचाई कर सकते हैं और विभिन्न फसलों के उगाने में भी
दक्ष हो गए हैं।
 
(ii) शुरू-शुरू में सरकार ने नलकूपों की व्यवस्था की परन्तु बाद में लोगों ने अपने नलकूप
(Tubewells) लगा लिए।
 
(iii) पालमपुर गाँव के लोग अब मानसूनी वर्षा पर निर्भर नहीं हैं जो अनियमित और अनिश्चित
रहती है और कभी सूखे और कभी बाढ़ों का कारण बनती है।
 
प्रश्न 9. एक हेक्टेयर भूमि के मालिक किसान के कार्य का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर― एक हेक्टेयर भूमि के टुकड़े पर खेती करने वाले किसान को अनेक कठिनाइयों का सामना
करना पड़ता है―
(i) भूमि के इतने छोटे टुकड़े पर खेती करने से एक परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के
लिए अनाज पैदा नहीं हो सकता इसलिए ऐसे किसान को दूसरे बड़े जमींदार के खेतों पर
काम करने की आवश्यकता पड़ेगी, जिसके लिए उसे प्रतिदिन ₹ 80 से अधिक वेतन नहीं
मिलेगा।
 
(ii) इतने छोटे भूमि के टुकड़े पर खेती करने के लिए उनके पास आवश्यक साधन नहीं होंगे।
वह उर्वरकों के लिए, नए बीजों के लिए, कीटनाशक दवाइयों के लिए धन अर्जित नहीं कर
पाएगा।
 
(iii) उसके पास न पानी प्राप्त करने के लिए और न ही अपने कृषि-औजारों की मरम्मत के लिए
धन के साधन होंगे।
 
(iv) इन सभी चीजों को प्राप्त करने के लिए उसे विवश होकर कर्ज लेना पड़ेगा। वह यह कर्ज
बड़े जमींदार से ले, किसी सूदखोर से ले या किसी दुकानदार से ले, हर हालत में उसे सूद
की ऊँची दर चुकानी पड़ेगी।
 
प्रश्न 10. मझोले और बड़े किसान कृषि से कैसे पूँजी प्राप्त करते हैं? वे छोटे किसानों से कैसे
भिन्न हैं?
उत्तर― इसमें संदेह नहीं कि छोटे किसानों को, जिनके पास दो हेक्टेयर से कम भूमि होती है, बड़े
और मझोले किसानों की अपेक्षा, पूँजी की व्यवस्था करने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
इनके मुकाबले में मध्यम और बड़े किसान आवश्यक पूँजी की आसानी से व्यवस्था कर लेते हैं।
 
(i) बड़े किसानों के पास काफी भूमि होती है जिसमें काफी उपज होती है। अपने परिवार की
आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद भी उनके पास इतनी उपज बच जाती है कि वे उन्हें
बाजार में बेचकर काफी पूँजी कमा लेते हैं। ऐसे बड़े किसानों को कर्ज लेने की कोई
आवश्यकता नहीं होती।
 
(ii) मध्यम किसानों के पास भी अपनी बचत से कुछ पूँजी अवश्य इकट्ठी हो जाती है जिसे वे
अपनी खेती के सुधार में व्यय कर सकते हैं। यदि कभी उन्हें कुछ पूँजी की आवश्यकता भी
पड़ती है तो भी उन्हें इसमें कोई कठिनाई नहीं होती क्योंकि 50 से 75% तक तो उनकी
अपनी पूँजी होती है, बाकी के लिए व्यवस्था करना कोई कठिन नहीं होता। ऐसे किसान
किसी भी बैंक से शेष पूँजी की व्यवस्था कर सकते हैं। ऐसे अच्छे ग्राहकों के बैंक भी उधार
देने में आनाकानी नहीं करते क्योंकि उन्हें पता होता है कि उन द्वारा उधार दी गई पूँजी डूबेगी
नहीं।
हाँ, ऐसी कठिनाई छोटे किसानों को बैंक से ऋण लेने में अवश्य हो सकती है क्योंकि बैंक को अपनी
पूँजी डूबने का खतरा अधिक होता है।
 
प्रश्न 11.सविता को किन शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला है? क्या ब्याज की कम दर
पर बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती?
उत्तर― जैसा कि पिछले प्रश्न में बताया जा चुका है कि अन्य छोटे किसानों की भाँति सविता को भी
अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। यदि वह अपने छोटे-से खेत में कृषि कार्य करना चाहती है।
उसे नए बीजों के लिए, उर्वरकों और कीटनाशक दवाइयाँ खरीदने के लिए धन की आवश्यकता पड़ेगी।
इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए तेजपाल सिंह जैसे बड़े जमींदार के पास कर्ज लेने के लिए गई।
उसने उसे कर्ज दे तो दिया परन्तु 24% वार्षिक दर से, जो सूद की एक बहुत ऊँची दर है। सविता सूद
की ऊँची दर देने के लिए तैयार हो गई क्योंकि वह जानती थी कि सूद पर धन लेना कोई इतना आसान
कार्य नहीं है। परन्तु सूद की इतनी बड़ी दर देने से उसके लिए अपने तीन बच्चों को पालना कठिन हो
जाएगा। परन्तु यदि वह यह ऋण किसी बैंक से ले ले तो उसकी हालत कुछ बेहतर अवश्य हो सकती
है। ऐसे में एक तो वह अपने बैंक का कर्ज आसानी से उतार लेगी क्योंकि वहाँ सुद की दर काफी कम
है। कम दर देने के कारण वह पहले से कहीं अच्छी तरह अपने तीन बच्चों को भी पाल लेगी और
शोषण से भी बच जाएगी।
 
प्रश्न 12. अपने क्षेत्र के कुछ पुराने निवासियों से बात कीजिए और पिछले 30 वर्षों में सिंचाई
और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तनों पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए
(वैकल्पिक)।
उत्तर― विद्यार्थी इस कार्य-विशेष (Assignment) को स्वयं करें। फिर भी उनकी सहायता के लिए
निम्नलिखित निर्देशन दिया जा रहा
है।
निर्देशन (Guideline)―सिंचाई के साधनों में पिछले 30-40 वर्षों में बहुत परिवर्तन आया है। हमने
अपने क्षेत्र के पुराने निवासियों से इस विषय में जब बातचीत की तो उन्होंने बताया कि पहले वे पशुओं
की सहायता से कुओं से पानी निकालते थे जिसमें बहुत-सा समय लग जाता था और केवल अपने खेतों
के थोड़े-से भाग में ही सिंचाई कर पाते थे। परन्तु अब बिजली आ जाने से उनके रंग नियार हो गए।
अब नलकूपों की सहायता से उन्होंने बताया कि एक तो शीघ्र ही काम हो जाता है और दूसरे, वे एक
लम्बे-चौड़े क्षेत्र में सिंचाई का काम कर सकते हैं।
फिर जब हमने पुराने निवासियों से यह पूछा कि पिछले 30-40 वर्षों में उत्पादन के तरीकों में क्या
परिवर्तन आया तो उन्होंने बताया कि सिंचाई की भाँति उत्पादन के तरीकों में भी बहुत परिवर्तन आया
है। उनके कथन के अनुसार, अब वे साधारण खाद के साथ-साथ उर्वरकों का प्रयोग करके अपनी
उपज में काफी वृद्धि कर रहे हैं। दूसरे, वे अब उत्तम बीजों का प्रयोग करके गेहूं की फसल की मात्रा
को कई गुना बढ़ाने में सफल हुए हैं। तीसरे, उन्होंने बताया कि कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करके वे
अपनी फसल की अच्छी प्रकार से रक्षा कर सकते हैं। अब उन्हें कीड़े-मकौड़ों और टिड्डीदल के
हानिकारक प्रभावों का इतना डर नहीं रहा। चौथे, अब बीज बोने से लेकर फसल काटने तक इतने
आधुनिक उपकरण; जैसे―ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर आदि उपलब्ध हैं कि वे आसानी से अपनी फसल
को काट सकते हैं और उसे सम्भाल सकते हैं। अब उनका काटी हुई फसल पर वर्षा हो जाने से हो जाने
वाली हानि से काफी बचाव हो गया है। अब वे अपने घर और बच्चों की ओर अधिक ध्यान दे सकते हैं
और फुरसत से आनन्दमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
 
प्रश्न 13. आपके क्षेत्र में कौन-से गैर-कृषि उत्पादन कार्य हो रहे हैं? इनकी एक संक्षिप्त
सूची बनाइए।
उत्तर― यह खोज-कार्य विद्यार्थियों को स्वयं करना चाहिए, परन्तु उनके मार्गदर्शन के लिए
निम्नलिखित निर्देशन दिया जा रहा है―
निर्देशन (Guideline)―मुख्य गैर-कृषि उत्पादन क्रियाएँ―
(i) डेयरी का काम
(ii) लघुस्तरीय निर्माण उद्योग
(iii) दुकानदारी
(iv) परिवहन आदि।
 
प्रश्न 14. गाँवों में और अधिक गैर-कृषि कार्य प्रारम्भ करने के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर― हमारे गाँवों में प्रमुख कृषि उत्पादन क्रिया है। गाँव में रहने वाले लोगों का 75% भाग कृषि
पर निर्भर करता है। इनमें अनेक किसान और खेती में काम करने वाले मजदूर शामिल हैं। यह श्रमिक
या खेतिहर मजदूर बड़े किसानों के खेतों में काम करते हैं परन्तु उन्हें सरकार द्वारा निश्चित किए गए
दैनिक वेतन से भी बहुत कम मजदूरी मिलती है। सरकार ने उनको न्यूनतम दैनिक वेतन र 115
निश्चित किया हुआ है परन्तु उन्हें केवल 180 ही मिलते हैं। ऐसे में उनकी हालत बड़ी शोचनीय बनकर
रह जाती है। बहुत बार तो उन्हें खेतों में कोई काम भी नहीं मिलता, ऐसे में उनके लिए भूखों मरने की
नौबत तक आ जाती है। कृषि कार्यों में अब और अधिक मजदूरों को लगाए जाने के और अवसर नहीं
हैं इसलिए गैर-कृषि क्रियाओं को ही बढ़ावा देना होगा। ऐसी कुछ गैर-कृषि क्रियाएँ 
(i) डेयरी उद्योग,(ii) लघुस्तरीय विनिर्माण उद्योग, (iii) दुकानदारी और (iv) परिवहन आदि हो सकते हैं। जब
कृषि-कार्य न हो रहा हो तो गरीब किसान इन व्यवसायों में लगकर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं और
किसी-न-किसी प्रकार से अपना गुजारा चला सकते हैं।
बहुत अच्छा होगा यदि गाँव में ऊपर-लिखित मुख्य गैर-कृषि क्रियाओं के अतिरिक्त कुछ नए व्यवसाय भी
शुरू कर लिए जाएँ ताकि अधिक-से-अधिक मजदूरों को अपने ही गाँव में काम मिल सके
(i) कुछ नए लघु और कुटीर उद्योग भी चलाए जा सकते हैं, जहाँ कुछ श्रमिकों को लगाया जा सकता है। 
(ii) थोड़ी-सी सहायता करके कुछ लोगों को मुर्गी-पालन के काम में लगाया जा सकता है। 
(iii) कुछ अन्य लोगों को मधुमक्खी पालन और शहद तैयार करने में लगाया जा सकता है। 
(iv) कुछ श्रमिक सुअर-पालन के कार्य में भी लगाए जा सकते हैं। 
(v) कुछ श्रमिकों को सिलाई, साइकिल और
स्कूटर मरम्मत, वैल्ड करने के कार्य, कुर्सी बनाने के कार्य आदि में भी लगाया जा सकता है। तनिक
सहनशीलता दिखाकर और सोच-विचार करके अनेक अन्य छोटी-मोटी गैर-कृषि क्रियाओं को भी
शुरू किया जा सकता है ताकि गाँव के श्रमिक बेकार न रहें और किसी-न-किसी उपयोगी कार्य में लग
जाएँ।
 
                                      अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
 
                                       बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. पालमपुर की मुख्य उत्पादन क्रिया क्या है?
(क) मुर्गीपालन
(ख) खेती
(ग) डेयरी
(घ) विनिर्माण
                 उत्तर―(ख) खेती
 
प्रश्न 2. उत्पादन के कारक क्या हैं (उत्पादन के लिए जरूरी स्रोत)?
(क) भूमि
(ख) मजदूर
(ग) भौतिक एवं मानव पूँजी
(घ) ये सभी
              उत्तर―(घ) ये सभी
 
प्रश्न 3. “एच०वाई०वी०” बीजों के प्रयोग से गेहूँ का उत्पादन ……….बढ़ गया।
(क) 1800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 4500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
(ख) 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
(ग) 1000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
(घ) 1100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
       उत्तर―(ख) 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
 
प्रश्न 4. सरकार द्वारा एक खेतीहर मजदूर के लिए निर्धारित मजदूरी कितनी है?
(क)₹35 
(ख)₹40 
(ग)₹55 
(घ)₹60
           उत्तर―(घ)₹60
 
प्रश्न 5. भारत में हरित क्रांति कब आई?
(क) 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में
(ख) 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में
(ग) 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में
(घ) 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में
                                     उत्तर―(ग) 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में
 
प्रश्न 6. पालमपुर के कितने प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं?
(क) 75 प्रतिशत
(ख)80 प्रतिशत
(ग) 85 प्रतिशत
(घ) 90 प्रतिशत
                     उत्तर―(क) 75 प्रतिशत
 
प्रश्न 7. बरसात के मौसम में पालमपुर में इनमें से कौन-सी फसल उगाई जाती है?
(क) गन्ना
(ख) ज्वार व बाजरा
(ग) आलू
(घ) गेहूँ
           उत्तर―(ख) ज्वार व बाजरा
 
प्रश्न 8.1970 के मध्य तक पालमपुर का सारा ……कृषि क्षेत्र सिंचाई के अंतर्गत आ
गया।
(क) 600 हेक्टेयर
(ख) 200 हेक्टेयर
(ग) 300 हेक्टेयर
(घ) 100 हेक्टेयर
                       उत्तर―(ख) 200 हेक्टेयर
 
प्रश्न 9. भारत में कौन-से राज्य में रासायनिक खाद का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता
है ?
(क) पंजाब
(ख) हरियाणा
(ग) उत्तर प्रदेश
(घ) इनमें से कोई नहीं
                           उत्तर―(क) पंजाब
 
प्रश्न 10. निम्नलिखित में से कौन-सी गैर-कृषि क्रिया नहीं है?
(क) डेयरी उद्योग
(ख) दुकानदारी
(ग) दर्जी
(घ) खेतों में काम करना
                               उत्तर―(घ) खेतों में काम करना
 
प्रश्न 11.निम्नलिखित में से कौन स्थायी पूँजी के अंतर्गत नहीं आता?
(क) औजार
(ख) नकद राशि
(ग) मशीनें
(घ) भवन
              उत्तर―(ख) नकद राशि
 
                        अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पालमपुर गाँव के लोग बाजार करने कहाँ जाते हैं?
उत्तर― पालमपुर गाँव के लोग वस्तुओं को खरीदने तथा अपने अनाजों को बेचने के लिए शाहपुर
कस्बे की ओर जाते हैं।
 
प्रश्न 2. हरित क्रांति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर― 1960 के दशक के उपरान्त कुछ क्षेत्रों के किसानों ने आधुनिक ढंग से कृषि करना शुरू कर
दिया जिससे फसलों के उत्पादन में कई गुना वृद्धि हो गई जिसे हरित क्रांति का दर्जा किया गया।
 
प्रश्न 3. कृषि मजदूर किसे कहते हैं?
उत्तर― गाँव के वे लोग जो या तो भूमिहीन परिवारों से संबंध रखते हैं या छोटे भूखंडों पर खेती
करने वाले परिवारों से संबंध रखते हैं, उन्हें नकदी या किसी अन्य रूप में केवल मजदूरी ही मिलती है।
 
प्रश्न 4. बहुविध फसल प्रणाली क्या है?
उत्तर― भूमि के एक ही टुकड़े पर एक ही वर्ष में कई फसलें उगाना बहुविध फसल प्रणाली
कहलाता है।
 
प्रश्न 5. कार्यशील पूँजी किसे कहते हैं?
उत्तर― उत्पादन के दौरान भुगतान करने तथा जरूरी माल खरीदने के लिए कुछ पैसों की भी
आवश्यकता होती है। कच्चा माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूँजी कहते हैं।
 
प्रश्न 6. स्थायी पूँजी किसे कहते हैं?
उत्तर― औजारों तथा मशीनों में अत्यंत साधारण औजार जैसे किसान का हल से लेकर परिष्कृत
मशीनों; जैसे―जेनरेटर, टरबाइन, कंप्यूटर आदि आते हैं। औजारों, मशीनों और भवनों का उत्पादन में
कई वर्षों तक प्रयोग होता है और इन्हें स्थायी पूँजी कहा जाता है।
 
प्रश्न 7. उत्पादन के कारक कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर― प्रत्येक वस्तु के उत्पादन के लिए भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी और मानव पूँजी की आवश्यकता
होती है।
 
प्रश्न 8. पालमपुर गाँव में किन-किन चीजों की दुकानें हैं?
उत्तर― पालमपुर के व्यापारी वे दुकानदार हैं जो शहरों के थोक बाजारों से कई प्रकार की वस्तुएँ
खरीदते हैं और उन्हें गाँव में लाकर बेचते हैं। गाँव में छोटे जनरल स्टोरों में चावल, गेहूँ, चाय, तेल,
बिस्कुट, साबुन, टूथपेस्ट, बैट्री, मोमबत्तियाँ, कॉपियाँ, पैन, पैसिल यहाँ तक कि कुछ कपड़े भी बिकते हैं।
                                      लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भौतिक पूँजी का क्या अर्थ है? उदाहरण दीजिए। इसके अंतर्गत कौन-सी वस्तुएँ
आती हैं?
उत्तर― उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर भौतिक पूँजी के अंतर्गत आने वाले विभिन्न आगत इस प्रकार हैं―
(i) औजार, मशीनें, भवन―औजार व मशीनें एक हल जैसी बहुत साधारण चीज से लेकर
एक बहुत जटिल मशीन जैसे कि जनरेटर, टर्बाइन, कंप्यूटर आदि भी हो सकते हैं।
 
(ii) कच्चा माल एवं नकद पूँजी-उत्पादन में कई प्रकार का कच्चा माल प्रयोग होता है।
उदाहरण के लिए, एक जुलाहे द्वारा प्रयोग किया जाने वाला सूत या कुम्हार के द्वारा प्रयोग
की जाने वाली मिट्टी। किन्तु भुगतान करने एवं आवश्यक सामान खरीदने के लिए कुछ जी
की भी आवश्यकता पड़ती है।
 
प्रश्न 2. आधुनिक कृषि तरीकों को प्रयोग करने के लाभ व हानियाँ क्या हैं?
उत्तर― आधुनिक कृषि तरीकों को प्रयोग करने के लाभ―
(i) जब आधुनिक मशीनों जैसे कि ट्रेक्टर व ग्रैशर का प्रयोग किया जाता है तो वे जुताई एवं
कटाई को तेज कर देते हैं।
 
(ii) एच०वाई०वी० बीजों के प्रयोग से गेहूँ की पैदावार कई गुणा बढ़ जाती है।
 
(iii) अब किसानों के पास अधिक अधिशेष गेहूँ होता है जिसे वे बाजार में बेच सकते हैं जिससे
उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
 
आधुनिक कृषि तरीकों को प्रयोग करने की हानियाँ―
(i) आधुनिक कृषि तरीकों को प्रयोग करने के लिए कारखानों में निर्मित अधिक आगमों का
निवेश करना पड़ता है।
 
(ii) एच०वाई०वी० बीजों के प्रयोग के लिए बहुत अधिक पानी, रासायनिक खाद, कीटनाशक
आदि चाहिए। रासायनिक खाद के अधिक प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति घटी है।
 
(iii) नलकूपों के द्वारा सिंचाई हेतु भूमिगत जल के निंरतर प्रयोग के कारण जमीन के नीचे
जलस्तर कम हो गया।
 
प्रश्न 3. आधुनिक कृषि तरीकों ने प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दोहन किस प्रकार किया
उत्तर― भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है। इसका सावधानीपूर्वक प्रयोग करना आवश्यक है। किन्तु
आधुनिक कृषि तरीकों ने प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दोहन किया है।
• कई स्थानों पर हरित क्रांति रासायनिक खाद के अधिक प्रयोग के कारण मिट्टी की उर्वरता समाप्त
होने से जुड़ी हुई है।
• नलकूपों के द्वारा सिंचाई हेतु भूमिगत जल के निरंतर प्रयोग के कारण जमीन के नीचे जलस्तर कम
हो गया।
• भू-उर्वरता एवं भूमिगत जल जैसे पर्यावरणीय संसाधन बनने में वर्षों लग जाते हैं। एक बार नष्ट
होने के बाद इनकी पुनर्स्थापना कर पाना बहुत कठिन होता है।
 
प्रश्न 4.हरित क्रांति का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर― 1960 के उत्तरार्द्ध में कृषि के क्षेत्र में आई क्रांति को हरित क्रांति कहा जाता है जिसने
उत्पादन बढ़ाने के लिए आधुनिक कृषि तरीकों को अपनाया।
1960 के मध्य तक कृषि के लिए पारंपरिक बीज प्रयोग किए जाते थे जिनसे होने वाली पैदावार अपेक्षाकृत
9960 के उत्तरार्द्ध में आई हरित क्रांति ने भारतीय किसान को गेहूँ एवं चावल की फसल आ उच्च उत्पादन
कम थी। गोबर की खाद एवं अन्य प्राकृतिक उर्वरकों को खाद के रूप में प्रयोग किया जाता था। किन्तु
हने वाले (एचवाईवी) बीजों से परिचित कराया। एचवाईवी बीज पारंपरिक बीजों की अपेक्षा बहुत अधिक
पल का उत्पादन करते थे। परिणामस्वरूप भूमि के उतने ही टुकड़े की पैदावार उल्लेखनीय तरीके से बढ़ गई।
 
प्रश्न 5. रासायनिक खाद के प्रयोग करने से क्या हानियाँ होती हैं?
उत्तर― रासायनिक खाद के अधिक प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा-शक्ति घट जाती है।
रासायनिक खाद के कारण भूमिगत जल, नदियों व झीलों का पानी प्रदूषित हो जाता है। रासायनिक
खाद के निरंतर प्रयोग ने मिट्टी की गुणवत्ता को कम कर दिया है। भू-उर्वरता एवं भूमिगत जल जैसे
पर्यावरणीय संसाधन बनने में वर्षों लग जाते हैं। एक बार नष्ट होने के बाद इनकी पुनर्स्थापना कर पाना
बहुत कठिन होता है। कृषि के भावी विकास को सुनिश्चित करने के लिए हमें पर्यावरण का ध्यान रखना
चाहिए।
 
प्रश्न 6. पालमपुर में कृषि क्रियाओं के लिए श्रमिक कौन उपलब्ध कराता है?
उत्तर― कृषि में बहुत अधिक मेहनत की आवश्यकता होती है। छोटे किसान अपने परिवार सहित
अपने खेतों में काम करते हैं; किन्तु मध्यम या बड़े किस को अपने खेतों में काम कराने के लिए
श्रमिकों को मजदूरी देनी पड़ती है। इन श्रमिकों को कृषि मजदूर कहा जाता है। ये कृषि मजदूर या तो
भूमिहीन परिवारों से होते हैं या छोटे खेतों पर काम करने वाले परिवारों में से। किसानों के विपरीत इन
लोगों का खेत में उगाई गई फसल पर कोई अधिकार नहीं होता। इन्हें किसान द्वारा काम के बदले में
पैसे या किसी अन्य प्रकार से मजदूरी मिलती है जैसे कि फसल। एक कृषि मजदूर दैनिक आधार पर
कार्यरत हो सकता है या खेत में किसी विशेष काम के लिए जैसे कि कटाई या फिर पूरे वर्ष के लिए
भी।
 
प्रश्न 7. पालमपुर में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलें कौन-सी है?
उत्तर― पालमपुर में सारी भूमि जुताई के अंतर्गत है। भूमि का कोई भी टुकड़ा बंजर नहीं छोड़ा गया
पालमपुर के किसान सुविकसित सिंचाई प्रणाली एवं बिजली की सुविधा के कारण वर्ष में 3
अलग-अलग फसलें उगा पाने में सफल हो पाते हैं-
• बरसात के मौसम (खरीफ) के दौरान किसान ज्वार एवं बाजरा उगाते हैं। इन फसलों को पशुओं
के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है।
• इसके बाद अक्टूबर से दिसंबर के बीच आलू की खेती की जाती है।
• सरदी के मौसम (रबी) में खेतों में गेहूँ बोया जाता है। पैदा किया गया गेहूँ किसान के परिवार के
लिए प्रयोग किया जाता है और जो बच जाता है उसे रायगंज के बाजार में बेच दिया जाता है।
• गन्ने की फसल की कटाई वर्ष में एक बार की जाती है। गन्ने को इसके मूल रूप या फिर गुड़
बनाकर इसे शाहपुर के व्यापारियों को बेच दिया जाता है।
 
प्रश्न 8. “उत्पादन के कारकों” से आप क्या समझते हैं? सामान उत्पादन एवं सेवाओं के
लिए चार आवश्यकताएँ कौन-सी हैं?
उत्तर― प्रत्येक उत्पादन भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी एवं मानव पूँजी द्वारा संयोजित होता है जिन्हें
उत्पादन के कारक कहा जाता है।
• भूमि―यह प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाला स्थाई नवीकरणीय संसाधन है और इसमें अन्य
प्राकृतिक संसाधन जैसे पानी, वन एवं खनिज शामिल हैं।
• मजदूर―काम करने वाले लोगों को मजदूर कहा जाता है। काम की जरूरत के अनुसार प्रशिक्षित
एवं अशिक्षित मजदूर होते हैं।
मानव पूँजी―भूमि, मजदूरों एवं भौतिक पूँजी का प्रयोग करके उत्पादन करने के लिए मानवीय
ज्ञान और श्रम की आवश्यकता होती है।
भौतिक पूँजी―इसमें प्रत्येक सोपान पर जरूरी निवेश शामिल हैं। जैसे कि औजार, मशीनें, भवन
(स्थाई पूँजी), कच्चा माल एवं धन (कार्यशील पूँजी)।
 
प्रश्न 9. कृषि श्रमिक किसानों से किस प्रकार अलग हैं?
उत्तर― कृषि श्रमिक किसानों से निम्नलिखित प्रकार से अलग हैं-
प्रश्न 10. स्थायी पूँजी एवं कार्यशील पूँजी में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर― स्थायी पूँजी एवं कार्यशील पूँजी में निम्नलिखित अंतर हैं―
 
प्रश्न 11.कृषि के पारंपरिक तरीकों एवं कृषि के आधुनिक तरीकों में अंतर स्पष्ट करें।
उतर― कृषि के पारंपरिक तरीकों एवं कृषि के आधुनिक तरीकों में निम्नलिखित अंतर है―
                              दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पालमपुर में होने वाली गैर-कृषि क्रियाएँ कौन-कौन सी है?
उत्तर― गैर-कृषि क्रियाएँ वे क्रियाएँ हैं जो खेती के अतिरिक्त हैं; जैसे―डेयरी, विनिर्माण,
दुकानदारी, परिवहन, मुर्गी पालन, सिलाई, शैक्षिक गतिविधियाँ आदि।
(i) डेयरी―पालमपुर के कई परिवारों में डेयरी एक प्रचलित क्रिया है। लोग अपनी भैसों को
कई तरह की घास, बरसात के मौसम में उगने वाली में ज्वार और बाजरा आदि खिलाते हैं।
दूध को पास के बड़े गाँव रायगंज में बेच दिया जाता है।
 
(ii) पालमपुर में लघुस्तरीय विनिर्माण का एक उदाहरण―इस समय पालमपुर में 50 से कम
लोग विनिर्माण कार्य में लगे हुए हैं। इसमें बहुत साधारण उत्पादन क्रियाओं का प्रयोग किया
जाता है और यह छोटे स्तर पर किया जाता है। ये कार्य पारिवारिक श्रम की सहायता से घर
में या खेतों में किया जाता है। मजदूरों को कभी-कभार ही किराए पर लिया जाता है।
 
(iii) दुकानदार―पालमपुर में बहुत कम लोग व्यापार (वस्तु विनिमय) करते हैं। पालमपुर के
व्यापारी दुकानदार हैं जो शहरों के थोक बाजार से कई प्रकार की वस्तुएँ खरीदते हैं और
उन्हें गाँव में बेच देते हैं। उदाहरणतः गाँव के छोटे जनरल स्टोर चावल, गेहूँ, चीनी, चाय,
तेल, बिस्कुट, साबुन, टूथ पेस्ट, बैट्री, मोमबत्ती, कॉपी, पेन, पेन्सिल और यहाँ तक कि
कपड़े भी बेचते हैं।
 
(iv) परिवहन, एक तेजी से विकसित हो रहा क्षेत्र―पालमपुर और रायगंज के बीच की सड़क
पर बहुत-से वाहन चलते हैं जिनमें रिक्शा वाले, ताँगे वाले, जीप, ट्रैक्टर, ट्रक चालक,
पारंपरिक बैलगाड़ी एवं बग्गी (भैंसागाड़ी) शामिल हैं। इस काम में लगे हुए कई लोग अन्य
लोगों को उनके गन्तव्य स्थानों तक पहुँचाने और वहाँ से उन्हें वापस लाने का काम करते है
जिसके लिए उन्हें पैसे मिलते हैं। वे लोगों और वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर
पहुँचाते हैं।
 
प्रश्न 2. पालमपुर में आधारभूत विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर― पालमपुर गाँव एक अच्छी तरह विकसित सड़क प्रणाली, परिवहन, बिजली, सिंचाई, स्कूल
व स्वास्थ्य केन्द्र वाला गाँव है। अधिकतर घरों में बिजली की आपूर्ति होती है। बिजली से खेतों में स्थित
सभी नलकूपों एवं विभिन्न प्रकार के छोटे उद्योगों को विद्युत ऊर्जा मिलती है। बच्चों को शिक्षा देने के
लिए सरकार द्वारा प्राथमिक व उच्च विद्यालय दोनों खोले गए हैं। लोगों का इलाज करने के लिए एक
सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और एक निजी दवाखाना है। गाँव के लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार की
उत्पादन क्रियाएँ की जाती हैं जैसे कि खेती, लघु स्तरीय विनिर्माण, परिवहन, दुकानदारी आदि।
पालमपुर का प्रमुख क्रियाकलाप कृषि है। 75 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है।
बरसात के मौसम (खरीफ) के दौरान किसान ज्वार एवं बाजरा उगाते हैं। इन फसलों को पशुओं के
चारे में प्रयोग किया जाता है। इसके बाद अक्तूबर से दिसंबर के बीच आलू की खेती की जाती है।
सरदी के मौसम (रबी) में खेतों में गेहूँ बोया जाता है। पैदा किया गया गेहूँ किसान के परिवार के लिए
प्रयोग किया जाता है और जो बच जाता है उसे रायगंज के बाजार में बेच दिया जाता है। गन्ने की फसल
की कटाई वर्ष में एक बार की जाती है। गन्ने को इसके मूल रूप या फिर गुड़ बनाकर इसे शाहपुर के
व्यापरियों को बेच दिया जाता है। पालमपुर के किसान सुविकसित सिंचाई प्रणाली एवं बिजली की
सुविधा के कारण वर्ष में तीन अलग-अलग फसलें उगा पाने में सफल हो पाते हैं।
बहुत-से लोग गैर-कृषि क्रियाओं से जुड़े हुए हैं; जैसे कि डेयरी, विनिर्माण, दुकानदारी, परिवहन, मुर्गी
पालन, सिलाई, शैक्षिक गतिविधियाँ आदि। किसान इन कार्यों को उस समय कर सकते हैं जब इन लोगों
के पास खेतों में करने के लिए कोई काम न हो या वे बेरोगजार हों। यह उनकी आर्थिक दशा सुधारने में
सहायता करेगा।

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