up board class 9th hindi | जीवन-परिचय एवं कृतियाँ
(प्रेमचन्द)
जीवन-परिचय एवं कृतियाँ
प्रश्न प्रेमचन्द का संक्षिप्त जीवन-परिचय देकर उनकी कृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर―जीवन-परिचय―उपन्यास-सम्रा ट् एवं महान् कहानीकार प्रेमचन्द का जन्म वाराणसी जिले
के लमही नामक ग्राम में सन् 1880 ई० में हुआ था। इनके बचपन का नाम धनपतराय था। इनके पिता का
नाम अजायबराय एवं माता का नाम आनन्दी देवी था। अल्पायु में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण इन्हें
बचपन से ही संघर्षमय जीवन व्यतीत करना पड़ा। जब ये हाईस्कूल में पढ़ते थे, तब ट्यूशन करके अपने
परिवार का व्यय-भार भी सँभालते थे। साहस और परिश्रम से इन्होंने अपनी शिक्षा का क्रम जारी रखा। आगे
चलकर ये एक स्कूल में अध्यापक हो गये और इसी कार्य को करते हुए इन्होंने बी० ए० की परीक्षा भी
उत्तीर्ण की। बाद में ये शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर हो गये, किन्तु गाँधी जी के सत्याग्रह के राष्ट्रीय आन्दोलन से
प्रभावित होकर इन्होंने नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया और देश-सेवा के कार्य में जुट गये। कुछ दिनों तक
इन्होंने ‘काशी विद्यापीठ’ में अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद इन्होंने ‘मर्यादा’,’माधुरी’, ‘हंस’ और
‘जागरण’ पत्रों का सम्पादन किया। इस कार्य में इन्हें अत्यधिक आर्थिक क्षति उठानी पड़ी। इसलिए इन्होंने
बम्बई (मुम्बई) में एक फिल्म निर्माण कम्पनी में नौकरी कर ली। बाद में ये काशी आकर अपने गाँव में ही
रहने लगे और निरन्तर साहित्य-सेवा करते रहे।
कठोर जीवन-संघर्ष और धनाभाव से जूझता हुआ यह ‘कलम का सिपाही’ स्वास्थ्य के निरन्तर पतन
से रोगग्रस्त होकर सन् 1936 ई० में गोलोकवासी हो गया।
प्रमुख कृतियाँ―प्रेमचन्द मुख्य रूप से कहानी और उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध है, परन्तु इन्होंने
नाटक और निबन्ध को भी अपनी समर्थ लेखनी का विषय बनाया। इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित है―
(1) उपन्यास―प्रेमचन्द जी ने ‘गोदान,’ ‘सेवासदन, ‘कर्मभूमि, ‘रंगभूमि,’ ‘गबन,’ ‘प्रेमाश्रम’,
‘निर्मला, ‘वरदान’, ‘प्रतिज्ञा’ और ‘कायाकल्प’ नामक श्रेष्ठ उपन्यास लिखे। इनके उपन्यासों में मानव-जीवन
के विविध पक्षों और समस्याओं का यथार्थ चित्रण हुआ है।
(2) कहानी-संग्रह―प्रेमचन्द ने लगभग 300 कहानियाँ लिखीं। इनके कहानी-संग्रहों में
‘सप्तसुमन,’ ‘नवनिधि’, ‘प्रेम पचीसी’, ‘प्रेम-प्रसून,’ ‘मानसरोवर’ (आठ भाग), ‘ग्राम्य जीवन की
कहानियाँ’, ‘प्रेरणा’, ‘कफन’, ‘कुत्ते की कहानी’, ‘प्रेम-चतुर्थी’, ‘मनमोदक’, ‘समर-यात्रा’, ‘सप्त-सरोज’,
‘अग्नि-समाधि’ और ‘प्रेम गंगा’ प्रमुख हैं। इनकी कहानियों में बाल-विवाह, दहेज-प्रथा, रिश्वत, भ्रष्टाचार
आदि विविध समस्याओं का यथार्थ चित्रण कर इनका समाधान प्रस्तुत किया गया है।
(3) नाटक―संग्राम’, ‘प्रेम की वेदी’, ‘कर्बला’ और ‘रूठी रानी’। इन नाटकों में राष्ट्रप्रेम और
विश्व-बन्धुत्व का सन्देश निहित है।
(4) निबन्ध―‘कुछ विचार’ और ‘साहित्य का उद्देश्य’ में प्रेमचन्द जी के निबन्धों का संग्रह है।
(5) सम्पादन―माधुरी, मर्यादा, हंस, जागरण आदि।
(6) सम्पादित रचनाएँ―‘गल्परत्न’ और ‘गल्प समुच्चय’।
(3) अनूदित रचनाएँ―‘अहंकार’, ‘सुखदास’, ‘आजाद-कथा’, ‘चाँदी की डिबिया’, ‘टॉल्स्टॉय की
कहानियाँ’ और ‘सृष्टि का आरम्भ’।
इनके अतिरिक्त इन्होंने ‘तलवार और त्याग’, ‘दुर्गादास’, ‘कलम’, ‘महात्मा शेखसादी’, ‘रामचर्चा’
आदि जीवनी, बालोपयोगी साहित्य द्वारा हिन्दी-साहित्य के भण्डार की अभिवृद्धि की है।
साहित्य में स्थान―प्रेमचन्द जी भारतीय जनता के सच्चे प्रतिनिधि साहित्यकार हैं। उन्होंने अपने
साहित्य में यथार्थ का चित्रण कर उसे आदर्श की ओर प्रेरित किया है। ये निर्धन, दलित, पतित, अशिक्षित एवं
शोषित जनता के सच्चे वकील थे। वास्तव में ये सच्चे गाँधीवादी साहित्यकार और समाज के सजग प्रहरी थे।
कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में इनका स्थान सर्वोपरि है। ये सच्चे अर्थ में हिन्दी-साहित्याकाश के चन्द
(चन्द्रमा) हैं।
गद्यांशों पर आधारित प्रश्न
प्रश्न निम्नलिखित गद्यांशों के आधार पर उनके साथ दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए―
(1) संसार में ऐसे मनुष्य भी होते हैं, जो अपने आमोद-प्रमोद के आगे किसी की जान की भी परवाह
नहीं करते, शायद इसका उसे अब भी विश्वास न आता था। सभ्य संसार इतना निर्मम, इतना कठोर है, इसका
ऐसा मर्मभेदी अनुभव अब तक न हुआ था। वह उन पुराने जमाने के जीवों में था, जो लगी हुई आग को
बुझाने, मुर्दे को कंधा देने, किसी के छप्पर को उठाने और किसी कलह को शान्त करने के लिए सदैव तैयार
रहते थे।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) 1. मनुष्य का क्या धर्म है?
2. बूढ़े भगत को किस प्रकार के मनुष्यों का अनुभव न हुआ था ?
[आमोद-प्रमोद = मनोरंजन। निर्मम = ममतारहित, निष्ठुर। मर्मभेदी = अति दुःखद, हृदय को भेदने
वाली। कलह = झगड़ा।]]
उत्तर― (अ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित एवं सुप्रसिद्ध
कहानीकार प्रेमचन्द द्वारा लिखित ‘मन्त्र’ कहानी से अवतरित है।
अथवा निम्नवत् लिखिए―
पाठ का नाम―मन्त्र। लेखक का नाम―प्रेमचन्द।
[संकेत―इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए प्रश्न ‘अ’ का यही उत्तर इसी रूप में लिखा जाएगा।
उत्तर― (ब)रेखांकित अंश की व्याख्या―प्रेमचन्द जी बूढ़े भगत की मानसिक अवस्था का चित्रण
करते हुए कहते हैं कि उसे अपने साथ हो चुके उस अमानवीय व्यवहार पर विश्वास ही न होता था। कारण,
वह उन लोगों में से था जो जीवनभर दूसरों की नि:स्वार्थ सेवा करते रहते हैं; अतः सभ्य समाज से उसकी
ऐसी ही अपेक्षाएँ थीं। सभ्य समाज की ऐसी निर्ममता का अनुभव तो उसे पहली बार हो रहा था। वह तो ऐसे
लोगों में से था, जो दूसरों के घर में लगी आग को बुझाते हैं, पास-पड़ोस में किसी की मृत्यु होने पर उसे कंधा
देते हैं, पड़ोसी के घर का छप्पर उठवाते हैं और दूसरों के झगड़ों को समाप्त कराने के लिए सदैव तत्पर
रहते हैं।
(स) 1. मनुष्य का धर्म लोगों की सहायता करना है। जो मनुष्य दूसरे लोगों की सेवा, सहायता या
सहयोग न करे, वह मनुष्य कहलाने के योग्य नहीं है।
2. बूढ़े भगत को इस प्रकार के मनुष्यों का अनुभव न हुआ था जो अपने आमोद-प्रमोद अर्थात्
मनोरंजन के आगे किसी की जान की भी परवाह नहीं करते।
(2) ‘अरे मूर्ख, यह क्यों नहीं कहता कि जो कुछ न होना था, हो चुका। जो कुछ होना था, वह कहाँ
हुआ? माँ-बाप ने बेटे का सेहरा कहाँ देखा? मृणालिनी का कामना-तरु क्या पल्लव और पुष्प से रंजित हो
उठा? मन के वह स्वर्ण-स्वप्न जिनसे जीवन आनन्द का स्रोत बना हुआ था, क्या पूरे हो गये? जीवन के
नृत्यमय तारिका-मंडित सागर में आमोद की बहार लूटते हुए क्या उसकी नौका जलमग्न नहीं हो गयी? जो न
होना था, वह हो गया!’
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) “यह क्यों नहीं कहता कि जो कुछ न होना था, हो चुका।” वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।
[सेहरा = विवाह के अवसर पर दूल्हे के सिर पर बाँधा जाने वाला वस्त्र। कामना-तरु = इच्छारूपी वृक्षा
पल्लव = पत्ते। रंजित = प्रसन्न, रँगा हुआ। स्वर्ण-स्वप्न = सुनहरी कल्पनाएँ। तारिकामंडित = तारों से
सुशोभित। आमोद = आनन्द।]
उत्तर― (ब) रेखांकित अंश की व्याख्या―झाड़ने वाले की बात सुनकर डॉक्टर चट्ठा का मित्र
उसकी बात को मूर्खतापूर्ण बताते हुए कहता है कि जो होना चाहिए था, वह तो हुआ नहीं। हुआ वह है, जो
नहीं होना चाहिए था। होना तो यह चाहिए था कि कैलाश के माँ-बाप उसका विवाह देखते। कैलाश तथा
उसकी प्रेमिका मृणालिनी की सुन्दर, कोमल और रंगीन कल्पनाएँ पूर्ण होतीं तथा उनका जीवन आनन्दमय
होता, पर ऐसा तो कुछ भी हो ही नहीं सका। उसके जीवन की समस्त इच्छाएँ तो पूरी हुए बिना ही समाप्त हो
गयीं। जब वह तारों की जगमगाहट से शोभित जीवन रूपी सागर की नाचती लहरों पर जब नौका-विहार का
आनन्द ले रही थी, तब क्या उसकी नौका डूब नहीं गयी। भाव यह है कि ऐसा नहीं होना चाहिए था, पर ऐसा
ही हो गया।
(स) कैलाश की गम्भीर स्थिति देखकर मन्त्र से झाड़ने वाला निराश होकर कहता है, जो कुछ होना
था हो चुका’, अर्थात् अब कुछ भी सम्भव नहीं। यह सुनकर डॉ० चड्ढा का मित्र आक्रोशपूर्वक प्रश्न में
उल्लिखित वाक्यांश कहता है। इसका आशय यह है कि ऐसा युवक जिसे अभी जीवन का सुख भोगने के
लिए जीना चाहिए था, वह अनहोनी का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया।
(3) वही हरा-भरा मैदान था, वही सुनहरी चाँदनी, एक नि:शब्द संगीत की भाँति प्रकृति पर छायी हुई
थी, वही मित्र-समाज था। वही मनोरंजन के सामान थे। मगर जहाँ हास्य की ध्वनि थी, वहाँ अब
करुण-क्रंदन और अश्रु-प्रवाह था।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) वहाँ चाँदनी कहाँ और कैसी छायी हुई थी?
[निःशब्द = ध्वनिरहित, शान्त। करुण क्रन्दन = रुदन की दुःखपूर्ण आवाज। अश्रु-प्रवाह = आँसुओं की
धारा।]
उत्तर―(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या―प्रेमचन्द का कहना है कि डॉक्टर चड्ढा के पुत्र की
वर्षगाँठ जिस हरे-भरे मैदान में बड़ी धूमधाम से मनायी जा रही थी, वह मैदान अब भी वैसा ही हरा-भरा
दीख पड़ता था। वही स्वच्छ चाँदनी अब भी प्रकृति पर बिछी हुई थी, जो कुछ समय पहले बिछी थी, जब
मधुर संगीत के साथ जन्म-दिन का उत्सव मनाया जा रहा था। वही मित्रों की मण्डली और वही मनोरंजन का
सामान भी पहले की तरह वहाँ था, किन्तु पहले जैसा हँसी-खुशी का वातावरण अब वहाँ नहीं था। अब तो
वहाँ हँसी के बदले रोने की करुण ध्वनियाँ और आँसुओं का उमड़ता हुआ सैलाब था।
(स) सुनहरी चाँदनी उसी हरे भरे मैदान पर शब्दरहित संगीत के सदृश प्रकृति पर छायी हुई थी।
(4) ‘भगवान् बड़ा कारसाज है। उस बखत मेरी आँखों से आंसू निकल पड़े थे, पर उन्हें तनिक भी
दया न आयी थी। मैं तो उनके द्वार पर होता तो भी बात न पूछता।’
‘तो न जाओगे? हमने जो सुना था, सो कह दिया।’
‘अच्छा किया―अच्छा किया। कलेजा ठंडा हो गया, आँखें ठंडी हो गयीं। लड़का भी ठंडा हो
गया होगा। तुम जाओ। आज चैन की नींद सोऊँगा। (बुढ़िया से) जरा तमाखू दे दे। एक चिलम और
पीऊंँगा।’
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) ‘कलेजा ठंडा होना’, ‘आँखें ठंडी होना’, ‘लड़के का ठंडा होना’ में ठंडा होना का विभिन्न अयो
में प्रयोग हुआ है, स्पष्ट कीजिए।
[कारसाज = काम बना देने वाला। उस बखत = उस समय।]
उत्तर―(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या―बूढ़ा भगत उस डॉक्टर के पुत्र को साँप द्वारा डस लिए
जाने की प्रतिक्रियास्वरूप कहता है कि भगवान बड़ा न्यायी है। वह सभी का काम बनाने वाला है। जब मेरा
बेटा मृत्यु से संघर्ष कर रहा था तो इसी डॉक्टर को जरा-सी भी दया नहीं आयी थी। वह रोगी को देखने के
स्थान पर खेलने के लिए चला गया था। आज मैं वहाँ होता तो भी मैं उसके लड़के की जीवन-रक्षा हेतु कुछ
भी न करता।
(स) कलेजा ठंडा होना―इच्छा पूरी होने के कारण शान्ति प्राप्त होना।
आँखें ठंडी होना―किसी को देखने से परम प्रसन्नता या सन्तोष होना।
लड़के का ठंडा होना―लड़के की मृत्यु होना।
(5) पर उसके मन की कुछ ऐसी दशा थी, जो बाजे की आवाज कान में पड़ते ही उपदेश सुनने वालों
की होती है। आँखें चाहे उपदेशक की ओर हों, पर कान बाजे ही की ओर होते हैं। दिल में भी बाजे की ध्वनि
गूंँजती रहती है। शर्म के मारे जगह से नहीं उठता। निर्दयी प्रतिघात का भाव भगत के लिए उपदेशक था, पर
हृदय उस अभागे युवक की ओर था, जो इस समय मर रहा था, जिसके लिए एक-एक पल का विलम्ब
घातक था।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स) शर्म के कारण कौन-सा व्यक्ति अपने स्थान से नहीं उठता?
[प्रतिघात = बदले की हिंसक भावना। घातक = मारने वाला।]
उत्तर― (ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या―भगत के मन की द्वन्द्वपूर्ण स्थिति पर प्रकाश
डालते हुए लेखक कहता है कि भगत ने डॉ० चड्ढा के घर न जाने का निश्चय कर तो लिया था, पर वह चैन
से न सो सका। उस समय उसके मन की स्थिति उस उपदेश सुनने वाले के जैसी हो रही थी, जिसके कानों में
बाजे की मधुर ध्वनि सुनायी पड़ रही हो और उसका मन उपदेश सुनना छोड़कर बाजा सुनने को लालायित
हो रहा हो। उसका मन बाजे की ध्वनि सुनते ही उचट तो जाता है, परन्तु संकोच के कारण उपदेश सुनना
छोड़कर बाजे की ध्वनि सुनने नहीं जाता है। उसके हृदय में बाजे की ध्वनि गूंजती रहती है। यही दशा उस
समय भगत की भी हो रही थी।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या―लेखक कहता है कि डॉ० चड्ढा के निदयी और कठोर
व्यवहार के प्रति बदले की भावना भगत के लिए उपदेशक के समान थी। कभी वह सोचता कि जिस प्रकार
डॉक्टर की कठोरता के कारण उसका पुत्र मर गया, उसी प्रकार डॉक्टर के पुत्र को भी मरने दिया जाये,
परन्तु उसका हृदय उस अभागे निर्दोष युवक की ओर था, जो सर्पदंश से मरने ही वाला था। भगत की आत्मा
उसका उपचार कर उसके प्राण बचाने के लिए उसे प्रेरित कर रही थी: जो कि मृत्यु के निकट चला जा रहा
था और जिसके लिए एक-एक क्षण का विलम्ब भी अत्यधिक घातक था अर्थात् प्राण-लेवा था।
(स) शर्म के कारण वह व्यक्ति अपने स्थान से नहीं उठता, जिसके नेत्र तो उपदेशक की ओर होते
हैं, लेकिन कान किसी वाद्य की मधुर ध्वनि सुनते रहते हैं और उसका दिल भी वाद्य की मधुर ध्वनि की ओर
ही लगा रहता है।
(6) जैसे नशे में आदमी की देह अपने काबू में नहीं रहती, पैर कहीं रखता है, पड़ता कहीं है, कहता
कुछ है, जबान से निकलता कुछ है। वही हाल इस समय भगत का था। मन में प्रतिकार था, पर कर्म मन के
अधीन न था। जिसने कभी तलवार नहीं चलायी, वह इरादा करने पर भी तलवार नहीं चला सकता। उसके
हाथ कांपते हैं, उठते ही नहीं।
भगत लाठी खट-खट करता लपका चला जाता था। चेतना रोकती थी, पर उपचेतना ठेलती थी। सेवक
स्वामी पर हावी था।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स) 1. भगत का हाल कैसा हो रहा था?
2. कौन सेवक था और कौन स्वामी? सेवक स्वामी पर हावी कैसे था?
[देह = शरीर। काबू = नियन्त्रण। जबान = जीभ । प्रतिकार = बदला। चेतना = बुद्धि । उपचेतना
अन्तर्मन ।]
उत्तर―(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या―चौकीदार के द्वारा कैलाश की मरणासन्न स्थिति
की बात सुनकर भगत की स्थिति ऐसी हो गयी, जैसे वह नशे में हो। जिस प्रकार नशे में डूबे हुए व्यक्ति का
अपने शरीर पर कोई नियन्त्रण नहीं रह जाता। वह चलना किसी ओर चाहता है और उसके पैर पड़ते कहीं
और हैं। वह कहना कुछ चाहता है किन्तु उसकी जिह्वा से निकलता कुछ और ही है। यही दशा इस समय साँप
का विष उतारने में सिद्धहस्त बूढ़े भगत की हो रही थी। उसके मन में डॉ० चड्ढा से बदला लेने की भावना
प्रबल थी। वह चाहता था कि वह कैलाश का विष उतारने डॉ० चड्डा के घर न जाये, पर दूसरी ओर उसके
कर्म पर उसके मन का अधिकार नहीं था।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या―लेखक कहता है कि जिसने कभी तलवार न चलायी हो, वह
अवसर आने पर निश्चय करके भी तलवार नहीं चला सकता। तलवार हाथ में लेते ही उसके हाथ काँपने
लगते हैं। भगत भी ऐसे ही व्यक्तियों में से था, जिसने कभी बदला लेने की भावना से कोई कार्य किया ही नहीं
था। यही कारण था कि अपनी कर्त्तव्य-भावना से प्रेरित बूढ़ा भगत अपने हाथ की लाठी से खट-खट करता,
तीव्र गति से डॉ० चड्ढा के घर की ओर बढ़ा चला जा रहा था। यद्यपि एक ओर उसकी बुद्धि अर्थात् चेतना
उसको आगे बढ़ने से रोकती थी, तथापि उसका अन्तर्मन अर्थात् उपचेतना उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित
करती थी। भगत की अन्तरात्मा अर्थात् उपचेतना (सेवक) उसकी बुद्धि अर्थात् चेतना (स्वामी) पर हावी थी।
(स) 1. भगत का हाल नशे में लिप्त उस व्यक्ति के जैसा हो रहा था, जिसकी देह उसके नियन्त्रण में
नहीं थी। वह चलना किसी ओर चाहता था और उसके पैर किसी दूसरी ओर पड़ते थे।
2. प्रस्तुत अंश में सेवक से आशय ‘अवचेतन मन’ से है और स्वामी से आशय ‘चेतन मन’ से।
सामान्यतया चैतन मन का नियन्त्रण अवचेतन मन पर होता है। लेकिन भगत की स्थिति इसके विपरीत थी।
उसका चेतन मन उसे डॉ० चड्ढा के यहाँ जाने से रोकता था लेकिन अवचेतन मन प्रेरित करता था। इसीलिए
यहाँ कहा गया है कि सेवक स्वामी पर हावी था।
(7) आज उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। मैं
उसे खोज निकालूँगा और पैरों पर गिरकर अपना अपराध क्षमा कराऊँगा। वह कुछ लेगा नहीं, यह जानता हूँ,
उसका जन्म यश की वर्षा करने ही के लिए हुआ है। उसकी सज्जनता ने मुझे ऐसा आदर्श दिखा दिया है, जो
अब से जीवनपर्यन्त मेरे सामने रहेगा।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) डॉ० चड्ढा को कौन-सी बात याद करके ग्लानि हो रही है?
ग्लिानि = पश्चात्ताप। जीवनपर्यन्त = जीवन भर।]
उत्तर― (ब)रेखांकित अंश की व्याख्या―डॉ० चड्डा अपनी पत्नी नारायणी से कह रहे हैं कि यद्यपि
मैं जानता हूँ कि वह बूढ़ा कुछ नहीं लेगा, तथापि मैं उसके प्रति किये गये अपने अपराध को क्षमा कराने के
लिए उसे अवश्य खोजूंगा, वह अवश्य ही मेरे अपराध को क्षमा कर देगा; क्योंकि इस संसार में कुछ लोग
दूसरों की भलाई के लिए ही जन्म लेते हैं, अपने लिए नहीं। वह बूढ़ा उन्हीं लोगों में से एक है। लगता है कि
भगवान् ने उसको यश की वर्षा करने के लिए ही भेजा है। अपनी निःस्वार्थ सेवा-भावना से उसने मुझे
सज्जनता और नि:स्वार्थ-सेवा का ऐसा आदर्श दिखा दिया है, जिसे मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक याद
रखूँगा।
(स) डॉक्टर चड्ढा को उस घटना का स्मरण हो आता है, जब वह बूढ़ा अपने इकलौते पुत्र को
मृतप्राय अवस्था में उनके पास लेकर आया था और वह उसे देखे बिना गोल्फ खेलने के लिए चले गये
थे। आज बूढ़े के द्वारा अपने ऊपर किये गये उपकार के कारण उन्हें अपने उस दिन के व्यवहार पर अपार
दुःख हो रहा है।
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