up board class 9th hindi | गिल्लू

By | May 8, 2021

up board class 9th hindi | गिल्लू

                                        (महादेवी वर्मा)
 
                                जीवन-परिचय एवं कृतियाँ
 
प्रश्न  श्रीमती महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय देकर उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
या    महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
या    महादेवी वर्मा के जीवन-परिचय एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर― जीवन-परिचय―श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद में सन् 1907 ई० में एक
सम्पन्न कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री गोविन्दप्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में
प्रधानाचार्य थे तथा माता विदुषी और धार्मिक स्वभाव की महिला थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में और
उच्च शिक्षा प्रयाग के क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज में हुई थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम० ए०
उत्तीर्ण करने के बाद ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या हो गयीं। इनका विवाह 9 वर्ष की छोटी आयु में ही
हो गया था। इनके पति श्री स्वरूपनारायण वर्मा एक डॉक्टर थे, परन्तु इनका दाम्पत्य जीवन सफल नहीं था।
ये उनसे अलग रहने लगी थी। कुछ समय तक इन्होंने ‘चाँद’ पत्रिका का सम्पादन किया। इनके जीवन पर
महात्मा गाँधी का तथा साहित्य-साधना पर रवीन्द्रनाथ का विशेष प्रभाव पड़ा। कुछ वर्षों तक ये उत्तर प्रदेश
विधान परिषद् की मनोनीत सदस्या रहीं। ये प्रयाग में ही रहकर जीवनपर्यन्त साहित्य-साधना करती रहीं और
11 सितम्बर, 1987 ई० को इस संसार से विदा हो गयीं।
कृतियाँ―महादेवी जी की गद्य एवं काव्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं―
(1) निबन्ध-संग्रह―‘श्रृंखला की कड़ियाँ,’ ‘साहित्यकार की आस्था’ तथा अन्य निबन्ध,
‘क्षणदा,’ ‘अबला’ और ‘सबला’―इन निबन्ध-संग्रहों में इनके विचारात्मक और साहित्यिक निबन्ध
संकलित हैं।
(2) संस्मरण और रेखाचित्र―‘अतीत के चलचित्र,’ ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘मेरा परिवार,’ ‘पथ के
साथी’।
(3) सम्पादन―‘चाँद’ पत्रिका और ‘आधुनिक कवि’ नामक काव्य-संग्रह।
(4) आलोचना―‘यामा’ और ‘दीपशिखा’ की भूमिकाएँ तथा ‘हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य’।
(5) काव्य-रचनाएँ―‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सान्ध्यगीत’, ‘दीपशिखा’ और ‘यामा’। इन काव्यों
में कवयित्री की पीड़ा और रहस्यवादी भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है।
साहित्य में स्थान―महादेवी जी भावुक कवयित्री, समर्थ लेखिका और कुशल सम्पादिका हैं। उनकी
गद्य शैली के विषय में साहित्यकार गुलाबराय ने कहा है―“मैं गद्य में महादेवी का लोहा मानता हूँ।”
गद्य के क्षेत्र में संस्मरण और रेखाचित्र विधाओं में तो उनका सर्वोपरि स्थान है।
 
                                    गद्यांशों पर आधारित प्रश्न
 
प्रश्न  निम्नलिखित गद्यांशों के आधार पर उनके साथ दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए―
(1) सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। उसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण
हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर
कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राणी की खोज है।
के बहाने वही मुझे चौंकाने ऊपर आ गया हो।
परन्तु वह तो अब तक इस सोनजुही की जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा। कौन जाने स्वर्णिम कली
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखिका का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) 1. लेखिका को अनायास किस लघु जीव की याद आ गयी?
2. कौन लेखिका को चौंकाने के लिए ऊपर आ गया था?
3. प्रस्तुत गद्यांश में लेखिका किसकी बात कर रही है? इस गद्यांश में वे किसे खोज रही है?
[अनायास = अचानक। हरीतिमा = हरियाली। स्वर्णिम = सुनहली।]
उत्तर―(अ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य खण्ड’ के अन्तर्गत हिन्दी की
मूर्धन्य लेखिका श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘गिल्लू’ शीर्षक रेखाचित्र से अवतरित है।
अथवा निम्नवत् लिखिए―
पाठ का नाम―गिल्लू। लेखिका का नाम―श्रीमती महादेवी वर्मा।
[संकेत―इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए प्रश्न ‘अ’ का यही उत्तर इसी रूप में लिखा जाएगा।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या―महादेवी जी ने गिलहरी के एक घायल बच्चे के प्राण बचाये।
वह दो वर्ष तक महादेवी जी के पास रह कर उन्हें अपने क्रिया-कलाप से चौंकाता रहता था। जब वह मर
गया तो महादेवी जी ने सोनजुही की लता के नीचे उसे समाधि दे दी। एक दिन सोनजुही की लता में एक
पीली कली को देखकर महादेवी जी को उस छोटे जीव गिल्लू की याद आ गयी, जो इस लता की हरियाली में
छिपकर बैठा करता था और जब महादेवी जी उस लता के पास पहुँचती थीं तो वह (गिल्लू) उनके कन्धे पर
कूद जाया करता था जिससे लेखिका चौंक जाती थीं। उन दिनों महादेवी जी अपनी सोनजुही की लता में
किसी कली को ढूँढ़ती थीं। पर इसके विपरीत आज वे कली को नहीं, अपितु उस छोटे-से जीव को ढूँढ़ती हैं,
जो इसमें छिपा रहता था और उनके कन्धे पर कूदकर उन्हें चौंकाया करता था।
(स) 1. लेखिका को अचानक उस छोटे जीव गिल्लू (एक गिलहरी) की याद आ गयी, जो घायल
था और जिसकी परिचर्या करके लेखिका ने उसका जीवन बचाया था।
2. गिल्लू लेखिका के कन्धे पर कूदकर उन्हें चौंका दिया करता था। सोनजुही में जब एक पीली कली
लगी तो लेखिका को यह प्रतीत हुआ कि गिल्लू ही उन्हें चौंकाने के लिए कली के रूप में ऊपर आ गया था।
3. प्रस्तुत गद्यांश में लेखिका गिल्लू नाम की एक गिलहरी की बात कर रही हैं। लेखिका पहले
सोनजुही के पौधे में एक कली को खोजा करती थीं, लेकिन अब वे गिल्लू को खोज रही हैं, जो उसके पत्तों में
छिपा करता था।
 
(2) यह कागभुशुण्डि भी विचित्र पक्षी है―एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति
अवमानित।
हमारे बेचारे पुरखे न गरुड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हंस के। उन्हें पितरपक्ष में हमसे
कुछ पाने के लिए काक बनकर ही अवतीर्ण होना पड़ता है। इतना ही नहीं, हमारे दूरस्थ प्रियजनों को भी
अपने आने का मधु संदेश इनके कर्कश स्वर में ही दे देना पड़ता है। दूसरी ओर हम कौआ की काँव-कॉव
करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखिका का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) 1. कागभुशुण्डि कौन-सा पक्षी है? यह विचित्र कैसे है?
2. हमारे पूर्वज कब और किन पक्षियों के रूप में नहीं आ सकते? वे किस पक्षी के रूप में
अवतरित होते हैं?
3. कौवे के समादरित, अनादरित, अति सम्मानित और अति अवमानित होने को स्पष्ट रूप से
समझाइए।
(कागभुशुण्डि = कौवा। समादरित = सम्मानित, आदर प्राप्त। अनादरित = अपमानित। 
अवतीर्ण = प्रकट होना। अवमानित = अनादरित। मधु सन्देश = प्रिय समाचार।]
उत्तर―(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-महादेवी जी का कहना है कि उनको कौओं के प्रति
भारतीय अवधारणाओं की विचित्रता पर बड़ा आश्चर्य होता है। वे सोचती हैं कि यद्यपि कौओं से कई गुना
सुन्दर पक्षी हमारे देश में हैं; जैसे—गरुड़, हंस और मोर; फिर भी भारतीय हिन्दुओं का ऐसा विश्वास है कि
उनके पूर्वजों की आत्माएँ पितृपक्ष (श्राद्धपक्ष) में अपने वंशजों से कुछ प्राप्त करने के लिए काक बनकर
पृथ्वी पर अवतीर्ण होती हैं। जब कौआ घर के छज्जे पर बैठकर काँव-काँव करता है तो व्यक्ति समझते हैं
कि वह हमारे प्रियजनों के शुभ आगमन का मधुर-सन्देश हमें दे रहा है। महादेवी जी को कौवे जैसे पक्षी के
साथ ही इस प्रकार की मान्यताओं के जुड़े रहने पर आश्चर्य होता है।
(स) 1. कागभुशुण्डि सामान्य बोलचाल की भाषा में कौवे के नाम से जाना जाता है। यह विचित्र
पक्षी इसलिए है कि यह मनुष्यों के द्वारा अत्यधिक सम्मानित होता है और अत्यधिक अपमानित भी।
2. हमारे पूर्वज पितृपक्ष में गरुड़, मोर और हंस के रूप में नहीं आ सकते। वे पितृपक्ष में कौवे के रूप
में ही अवतरित होते हैं।
3. पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए कौवे को भोजन देकर अत्यधिक सम्मानित किया जाता
है। जब वह प्रियजनों के आने का सन्देश देता है, हम उसे आदर देते हैं। जब वह काँव-काँव की कर्कश
ध्वनि करता है तब हम पत्थर मारकर उसका अपमान करते हैं। जब किसी के लगातार बोलने पर उससे कौवे
जैसी काँव-काँव बन्द करने के लिए कहा जाता है तो कौवे को ही अप्रत्यक्ष रूप से अनादरित किया जाता है।
 
(3) मेरी अस्वस्थता में वह तकिये पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हें-नन्हें पंजों से मेरे सिर और बालों
को इतने हौले-हौले सहलाता रहता कि उसका हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता।
गर्मियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता, न अपने झूले में बैठता। उसने
मेरे निकट रहने के साथ गर्मी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय खोज निकाला था। वह मेरे पास रखी
सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठंडक में भी रहता।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखिका का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) गर्मियों की दोपहरी में गिल्लू की क्या चर्या थी? स्पष्ट कीजिए।
[अस्वस्थता = बीमारी की दशा। सिरहाने = सिर की ओर। हौले-हौले = धीरे-धीरे। परिचारिका =
सेविका, नर्स।]
उत्तर― (ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखिका महादेवी वर्मा का कथन है कि जब कभी वे
अस्वस्थ होकर लेटी रहती थीं, तब गिल्लू उनके सिरहाने की ओर तकिये पर बैठ जाता था। वह अपने
छोटे-छोटे पंजों (हाथों) से लेखिका के सिर एवं बालों को प्यार के साथ धीरे-धीरे सहलाता रहता
था। उस समय लेखिका को ऐसा अनुभव होता था, जैसे कोई नर्स उनकी सेवा कर रही हो। जब गिल्लू
वहा से हट जाता था, उस समय लेखिका को सेवा करने वाली परिचारिका के चले जाने जैसा अनुभव होता
था।
(स) गर्मियों की दोपहरी में गिल्लू घर के बाहर नहीं जाता था। वह अपने झूले में बैठा रहता था। वह
लेखिका के पास रखी सुराही पर लेट जाता था। इस प्रकार वह लेखिका के समीप भी रहता था और ठण्डक
में भी रहता था।
 
(4) गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती; अतः गिल्लू की जीवन-यात्रा का
अन्त आ ही गया। दिनभर उसने न कुछ खाया और न बाहर गया। रात में अन्त की यातना में भी वह अपने
झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आया और ठंडे पंजों से मेरी बड़ी उँगली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे
उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखिका का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) लेखिका ने कैसे समझा कि गिल्लू का अन्त समय आ गया था?
उत्तर―(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या―महादेवी जी का कहना है कि गिल्लू को भी इस बात का
अनुभव हो गया था कि उसका अन्तिम समय अब समीप आ चुका है। इसीलिए वह लेखिका द्वारा निर्मित
झूला; जिस पर वह अपने जीवन-काल में झूलता रहता था; से उतरकर उनकी शय्या पर आ गया और अपने
ठण्डे; जीवन-रहित होते जा रहे; हाथों से लेखिका की बड़ी अँगुली को पकड़कर उसके हाथ से चिपक गया,
जैसे कि वह लेखिका से कह रहा हो कि अब मुझे पुनः वैसे ही बचा लो जैसे कि मुझे बचपन में मरणासन
स्थिति से बचाया था।
(स) लेखिका अपने गहन अध्ययन-अनुभव के आधार पर यह जानती थीं कि गिलहरियों का
जीवन-काल दो वर्ष से अधिक का नहीं होता। गिल्लू को भी लेखिका के पास लगभग दो वर्ष हो चुके होंगे।
इसी आधार पर उन्होंने समझ लिया कि उसका अन्त समय आ गया था।
 
(5) उसका झूला उतारकर रख दिया है और खिड़की की जाली बन्द कर दी गयी है, परन्तु
गिलहरियों की नयी पीढ़ी जाली के उस पार चिक-चिक करती ही रहती है और सोनजुही पर 
वसन्त आता ही
सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गयी इसलिए भी कि उसे वह लता सबसे अधिक
प्रिय थी― इसलिए भी कि लघुगात का, किसी वासन्ती दिन, जुही के पीलाभ छोटे फूल में खिल जाने का
विश्वास मुझे संतोष देता है।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखिका का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) 1. गिल्लू के न रहने पर लेखिका ने क्या किया?
2. गिल्लू को कहाँ समाधि दी गयी थी और क्यों?
3. गिल्लू के न रहने के बाद भी क्या होता रहता है?
[सोनजुही = ‘जूही’ नामक पौधे की एक किस्म जो पीली होती है। समाधि = जमीन के अन्दर दबाना।
लघुगात = छोटा-सा शरीर। पीलाभ = पीली आभा वाले।]
उत्तर― (ब) रेखांकित अंश की व्याख्या― लेखिका का कहना है कि सोनजुही की लता के नीचे
गिल्लू को समाधि दी गयी थी। ऐसा इसलिए किया गया था कि गिल्लू को सोनजुही की वह लता सबसे
अधिक प्रिय थी। लेखिका को विश्वास है कि एक-न-एक दिन गिल्लू का वह छोटा-सा शरीर किसी वसन्त
में अवश्य ही सोनजुही का सुन्दर पीला फूल बनकर खिलेगा और अपने होने का आभास कराएगा। उनका
यही विश्वास उन्हें गिल्लू की स्मृतियों के प्रति अत्यधिक सन्तोष प्रदान करता है।
(स) 1. गिल्लू के न रहने पर लेखिका ने गिल्लू के प्रिय झूले को उतारकर रख दिया और खिड़की
की उस जाली को भी बन्द कर दिया, जिससे गिल्लू खिड़की के बाहर आता जाता रहता था।
2. गिल्लू को सोनजुही की लता के नीचे समाधि दी गयी थी; क्योंकि एक तो गिल्लू को वह लता
सबसे अधिक प्रिय थी और दूसरे लेखिका को यह विश्वास था कि गिल्लू का शरीर किसी न किसी वसन्त में
अवश्य ही पीले फूल के रूप में खिल उठेगा और अपने होने का आभास करा देगा।
3. गिल्लू के न रहने के बाद भी गिलहरियाँ लेखिका की खिड़की की जाली के बाहर चिक-चिक
करती रहती हैं और सोनजुही पर वसन्त आता रहता है।

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