up board class 9th hindi | स्मृति

By | May 8, 2021

up board class 9th hindi | स्मृति

                                          (श्रीराम शर्मा)
 
                                  जीवन-परिचय एवं कृतियाँ
 
प्रश्न श्रीराम शर्मा के जीवन-परिचय और कृतियों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर― जीवन-परिचय―भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के कर्मठ सेनानी, पं० श्रीराम शर्मा
शिकार-साहित्य के सर्वाधिक प्रसिद्ध लेखक हैं। इनका जन्म मैनपुरी जिले के किरथरा (मक्खनपुर के
निकट) नामक ग्राम में 23 मार्च, सन् 1892 ई० को हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा निकटस्थ ग्राम
मक्खनपुर में हुई थी। ये बचपन से ही साहसी और निर्भीक थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी० ए०
की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् देशप्रेम से प्रेरित होकर ये गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में
सम्मिलित हो गये। कुछ समय तक ये ‘प्रताप’ के सह-सम्पादक, गढ़वाल के एक हाईस्कूल में
प्रधानाध्यापक तथा सहायक ग्राम-सुधार अधिकारी भी रहे। बाद में ‘विशाल भारत’ के सम्पादक हो गये।
इनका घर राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के क्रान्तिकारियों की योजना का केन्द्र था। देश की सेवा के
फलस्वरूप इनको जेल-यातनाएँ भी भोगनी पड़ी। सन् 1967 ई० में लम्बी बीमारी के बाद इनका देहान्त हो
गया।
कृतियाँ―श्रीराम शर्मा ने संस्मरण, जीवनी और शिकार-साहित्य सम्बन्धी निबन्ध लिखे हैं। इनकी
मुख्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं―
(1) शिकार-साहित्य―‘शिकार’, ‘प्राणों का सौदा’, ‘बोलती प्रतिमा’, ‘जंगल के जीव’। इनमें
रोमांचक घटनाओं और पशु-मनोविज्ञान का अच्छा परिचय मिलता है।
(2) संस्मरण-साहित्य―‘सन् बयालीस के संस्मरण’, ‘सेवाग्राम की डायरी’-ये आत्मकथा शैली
में लिखी गयी संस्मरणात्मक रचनाएँ हैं। इनमें राष्ट्रीय आन्दोलन और परतन्त्र भारत का सजीव वर्णन है।
(3) सम्पादन―‘प्रताप’ और ‘विशाल भारत’।
(4) जीवनी―‘गंगा मैया’ और ‘नेताजी’।
उपर्युक्त के अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित फुटकर निबन्ध भी आपकी
साहित्य-साधना के ही अंग हैं।
साहित्य में स्थान―शर्मा जी स्वतन्त्रता-संग्राम के समर्थ सेनानी थे। इन्होंने अपनी सबल लेखनी से
शिकार-साहित्य और संस्मरण-विधा पर उत्तम कृतियाँ लिखकर हिन्दी-साहित्य की महान् सेवा की है।
एक सफल पत्रकार के रूप में ये सदैव स्मरण किये जाएंगे। हिन्दी-साहित्य में इनका विशिष्ट स्थान है।
 
                                        गद्यांशों पर आधारित प्रश्न
 
प्रश्न निम्नलिखित गद्यांशों के आधार पर उनके साथ दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए―
(1) दृढ़ संकल्प से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं। मेरी दुविधा भी दूर हो गयी। कुएँ में घुसकर
चिट्ठियों को निकालने का निश्चय किया। कितना भयंकर निर्णय था। पर जो मरने को तैयार हो, उसे क्या?
मूर्खता अथवा बुद्धिमत्ता से किसी काम को करने के लिए कोई मौत का मार्ग ही स्वीकार कर ले और वह भी
जान-बूझकर, तो फिर वह अकेला संसार से भिड़ने को तैयार हो जाता है। और फल? उसे फल की क्या
चिन्ता? फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है। उस समय चिट्ठियाँ निकालने के लिए मैं विषधर से भिड़ने
को तैयार हो गया। पासा फेंक दिया था। मौत का आलिंगन हो अथवा सॉप से बचकर दूसरा जन्म, इसकी
कोई चिन्ता न थी। पर विश्वास यह था कि डंडे से साँप को पहले मार दूंगा, तब फिर चिट्ठियाँ उठा लूँगा।
बस इसी दृढ़ विश्वास के बूते पर मैंने कुएँ में घुसने की ठानी।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) 1. लेखक ने कुएँ में उतरने का निश्चय क्यों किया?
2. लेखक की दुविधा कैसे दूर हो गयी और उसने क्या किया?
3. लेखक के अनुसार किसी कार्य का फल किस पर निर्भर है? इससे सम्बन्धित एक श्लोक
लिखिए।
[दृढ़ संकल्प = पक्का निश्चय। दुविधा = अनिश्चय, सन्देह। बेड़ियाँ = शृंखलाएँ।।
उत्तर―(अ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य खण्ड’ के अन्तर्गत श्रीराम शर्मा
द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा निम्नवत् लिखिए―
पाठ का नाम―स्मृति। लेखक का नाम―श्रीराम शर्मा।
(संकेत-इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए प्रश्न ‘अ’ का यही उत्तर इसी रूप में लिखा जाएगा।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या―लेखक का कथन है कि जब मनुष्य के सामने कोई कठिन
काम आ पड़ता है तब उसका मन इस सन्देह में पड़ जाता है कि यह कार्य करना उचित है या अनुचित। ऐसी
अवस्था में जब हम कार्य करने का पक्का निश्चय कर लेते हैं, तो मन की दुविधा समाप्त हो जाती है। ऐसी
ही स्थिति लेखक के सामने उस समय आयी, जब उसकी चिट्ठियाँ उस कुएं में गिर गयीं, जिसमें भयंकर साँप
था। यदि वह चिट्ठियाँ निकालता है तो साँप से प्राण-रक्षा कठिन थी और चिट्ठियाँ न निकाले तो बड़े भाई के
द्वारा पीटे जाने का भय था। ऐसी स्थिति में वह कुएँ में उतरकर चिट्ठियाँ निकालने का दृढ़ निश्चय कर लेता
है। यह निश्चय करते ही उसकी दुविधा समाप्त हो जाती है। पर यह निश्चय एक भयंकर निर्णय था। उसका
यह कार्य मूर्खतापूर्ण हो या बुद्धिमत्तापूर्ण, परन्तु उसने तो जान-बूझकर मौत का मार्ग स्वीकार कर लिया था।
कार्य के लिए मौत का मार्ग स्वीकार करने वाले ऐसे दृढ़ निश्चयी व्यक्ति अकेले ही संसार से संघर्ष करने को
तैयार रहते हैं। ऐसे लोग फल की चिन्ता नहीं करते।
(स) 1. लेखक के बड़े भाई ने लेखक को डाक में डालने के लिए कुछ चिट्ठियाँ दी थीं। साँप को
का निश्चय किया।
ढेला मारते समय वे चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। उन चिट्ठियों को निकालने के लिए लेखक ने कुएँ में उतरने
2. जब लेखक ने इस बात का दृढ़ निश्चय कर लिया कि चिट्ठियाँ निकालनी हैं तो साँप से लड़कर
मृत्यु मिले या बचकर दूसरा जन्म इसकी कोई चिन्ता न थी। इसी दृढ़ विश्वास के बल पर उसने कुएँ में उतरने
का निश्चय किया।
3. लेखक जानता है कि कार्य का फल उसके अधीन नहीं है। कार्य का फल देने वाली एक अज्ञात
शक्ति है। फल देना या न देना उसी के हाथ में है। इससे सम्बन्धित श्लोक निम्नवत् है-
                               कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन ।
                             मा कर्मफलहेतुर्भूः मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥
 
(2) छोटा भाई रोता था और उसके रोने का तात्पर्य था कि मेरी मौत मझे नीचे बुला रही है, यद्यपि वह
शब्दों से न कहता था। वास्तव में मौत सजीव और नग्न रूप में कुएँ में बैठी थी, पर उस नग्न मौत से मुठभेड़
के लिए मुझे भी नग्न होना पड़ा।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) “नग्न मौत से मुठभेड़ के लिए नग्न होना पड़ा।” से क्या आशय है?
[सजीव = साक्षात् स्वरूप में। मुठभेड़ = लड़ाई।]
उत्तर―(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या―लेखक ने जब कुएँ के भीतर प्रवेश कर साँप के पास से
चिट्ठियाँ निकालने का निश्चय कर लिया तब उसका छोटा भाई यह सोचकर रोने लगा कि बड़े भाई को साँप
डस लेगा और उसकी मृत्यु हो जाएगी। यद्यपि उसने यह बात शब्दों से व्यक्त नहीं की, किन्तु उसके रोने का
अभिप्राय यही था। लेखक के छोटे भाई का रोना भी बिल्कुल ठीक था; क्योंकि साँप के रूप में साक्षात् मौत
नग्न रूप में कुएँ में बैठी थी। उस साँपरूपी मौत से लड़ने के लिए लेखक को भी नग्न होना पड़ा; अर्थात् कुएँ
में उतरने के लिए उसे अपनी धोती उतारनी पड़ी।
(स) प्रश्न में उल्लिखित अंश का आशय है कि समस्या का सामना करने के लिए व्यक्ति को भी
उसी रूप में तैयारी करनी चाहिए जिस रूप में समस्या सम्मुख हो।
 
(3) साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं। मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। अन्य इन्द्रियों ने मानो सहानुभूति से
अपनी शक्ति आँखों को दे दी हो। साँप के फन की ओर मेरी आँखें लगी हुई थीं कि वह कब किस ओर को
आक्रमण करता है, साँप ने मोहनी-सी डाल दी थी। शायद वह मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था, पर जिस
विचार और आशा को लेकर मैंने कुएँ में घुसने की ठानी थी, वह तो आकाश-कुसुम था। मनुष्य का अनुमान
और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं। मुझे साँप का साक्षात् होते ही अपनी
योजना और आशा की असंभवता प्रतीत हो गयी।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) 1. लेखक की दृष्टि कुएँ में कहाँ लगी हुई थी और क्यों?
2. कुएँ में उतरने पर लेखक को क्या अनुभव हुआ?
[चक्षुःश्रवा = आँखों से सुनने वाला, अर्थात् साँप। आकाश-कुसुम = असम्भव कार्य। मिथ्या = असत्य।
साक्षात् = प्रत्यक्ष रूप से देखना।]
उत्तर― (ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या―लेखक का कहना है कि साँप की दृष्टि बहुत तेज
होती है, इसलिए उसे चक्षुःश्रवा कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि जिसकी आँखें, कानों के बदले स्वयं सुनने
का काम भी कर लेती हैं। साँप लेखक को और लेखक साँप को एकटक दृष्टि से देख रहे थे। लेखक स्वयं को
चक्षुःश्रवा इसलिए कहता है क्योंकि उस समय उसकी दृष्टि भी उतनी ही तीव्र थी, जितनी साँप की; क्योंकि
दोनों को ही एक-दूसरे से प्राणों का खतरा था, इसलिए अत्यधिक सावधानी जरूरी थी। लेखक लगातार साँप
के फन पर दृष्टि गड़ाये हुए था कि न जाने कब और किस ओर से वह आक्रमण कर दे। ऐसा लग रहा था
जैसे साँप ने कोई मोहनी मन्त्र मार कर लेखक का सारा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया हो।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या―लेखक का कहना है कि वह जिस विचार और आशा को
लेकर कुएँ में उतरा था कि साँप को मारकर वह चिट्ठियाँ निकाल लेगा, साँप की आक्रामक मुद्रा को
देखकर उसका विश्वास और आशा दोनों ही धूल-धूसरित हो गये थे। उसे अपनी योजना असम्भव और
निरर्थक दिखाई दे रही थी। उस समय वह सोचने लगा कि मनुष्य सोचता तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें है और
बड़ी-बड़ी योजनाओं को क्रियान्वित करने की बात करता है, किन्तु समय पड़ने पर उसे अपनी सभी
योजनाएँ और उन्हें पूरी करने की आशा और विश्वास झूठे प्रतीत होने लगते हैं; क्योंकि जिस परिस्थिति
को सोचकर व्यक्ति योजना बनाता है, उस समय वह उसके विपरीत हो गयी होती है। ठीक वैसी ही
स्थिति लेखक के सामने भी थी। साँप का सामना होते ही उसे अपनी योजना और आशा का पूरा होना
असम्भव प्रतीत हुआ। उसे महसूस होने लगा कि वह साँप को मारकर उसके समीप पड़ी चिट्ठियाँ नहीं उठा
सकता।
(स) 1. लेखक की दृष्टि कुएँ में साँप के फन पर लगी हुई थी, क्योंकि वह जानना चाहता था कि
साँप किस ओर से उसके ऊपर आक्रमण करता है।
2. कुएँ में उतरने पर लेखक को अनुभव हुआ कि किसी कार्य के क्रियान्वयन के सन्दर्भ में मनुष्य जो
पूर्व योजना बनाता है और अनुमान लगाता है, वह वास्तविक क्रियान्वयन के समय लगभग असत्य और
विपरीत निकलती है।

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