up board class 9th hindi | तोता

By | May 8, 2021

up board class 9th hindi | तोता

                                        (रवीन्द्रनाथ टैगोर)
 
                                  जीवन-परिचय एवं कृतियाँ
 
प्रश्न  रवीन्द्रनाथ टैगोर का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर―जीवन-परिचय रवीन्द्रनाथ ठाकुर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे
विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबेल पुरस्कार विजेता हैं।
बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूंकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के
प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान
बनीं― भारत का राष्ट्रगान जन गण मन और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बांग्ला गुरुदेव की
ही रचनाएँ हैं।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म देवेन्द्रनाथ ठाकुर और शारदा देवी की सन्तान के रूप में 7 मई, 1861 को
कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी आरम्भिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई।
उन्होंने बैरिस्टर बनने की इच्छा से 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया। फिर
लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया, लेकिन 1880 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश वापस
लौट आए। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ।
टैगोर की माता का निधन उनके बचपन में हो गया था और उनके पिता व्यापक रूप से यात्रा करने
वाले व्यक्ति थे, अतः उनका लालन-पालन अधिकांशतः नौकरों द्वारा ही किया गया था। टैगोर परिवार
बंगाल पुनर्जागरण के समय अग्रणी था। उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया। बंगाली और
पश्चिमी शास्त्रीय संगीत एवं रंगमंच और पटकथाएँ वहाँ नियमित रूप से प्रदर्शित हुई थीं। टैगोर के पिता ने
कई पेशेवर ध्रुपद संगीतकारों को घर में रहने और बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत पढ़ाने के लिए
आमन्त्रित किया था। टैगोर के सबसे बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ एक दार्शनिक और कवि थे एवं दूसरे भाई
सत्येंद्रनाथ कुलीन और पूर्व में सभी यूरोपीय सिविल सेवा के लिए नियुक्त पहले भारतीय व्यक्ति थे। एक
भाई ज्योतिरिंद्रनाथ संगीतकार और नाटककार थे एवं इनकी बहन स्वर्णकुमारी उपन्यासकार थीं।
ज्योतिरिंद्रनाथ की पत्नी कादम्बरी देवी सम्भवतः टैगोर से थोड़ी बड़ी थीं व उनकी प्रिय मित्र और
शक्तिशाली प्रभाव वाली स्त्री थीं, जिन्होंने 1884 में अचानक आत्महत्या कर ली। इस कारण टैगोर और
इनका शेष परिवार कुछ समय तक काफी समस्याओं से घिरा रहा।
इसके बाद टैगोर ने बड़े पैमाने पर विद्यालयी कक्षा की पढ़ाई से परहेज किया और मैरर या पास के
बोलपुर और पनिहती में घूमने को प्राथमिकता दी और फिर परिवार के साथ कई जगहों का दौरा किया।
उनके भाई हेमेन्द्रनाथ ने उन्हें पढ़ाया और शारीरिक रूप से उन्हें वातानुकूलित किया―गंगा में तैरते हुए या
पहाड़ियों के माध्यम से, जिमनास्टिक्स द्वारा एवं जूड़ो और कुश्ती अभ्यास करना उनके भाई ने सिखाया था।
टैगोर ने ड्राइंग, शरीर विज्ञान, भूगोल और इतिहास, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी को अपने सबसे
पसंदीदा विषय का अध्ययन बताया था। हालाँकि टैगोर ने औपचारिक शिक्षा से नाराजगी व्यक्त की। कई
वर्षों बाद उन्होंने कहा कि उचित शिक्षण चीजों की व्याख्या नहीं करता है, उनके अनुसार उचित शिक्षण
जिज्ञासा है।
ग्यारह वर्ष की उम्र में उनके उपनयन (आने वाला आजीवन) संस्कार के बाद, टैगोर और उनके पिता
कई महीनों के लिए भारत का दौरा करने के लिए फरवरी, 1873 में कलकत्ता (अब कोलकाता) छोड़कर
आश्रम की स्थापना करने के लिए शांतिनिकेतन आए थे और अमृतसर से डेलाहौसी के हिमालयी (पर्वतीय)
स्थल तक निकल गए थे। वहाँ टैगोर ने जीवनी, इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान और संस्कृत का
अध्ययन किया था और कालिदास की शास्त्रीय कविताओं के बारे में भी पढ़ाई की थी। 1873 में अमृतसर में
अपने एक महीने के प्रवास के दौरान वह सुप्रभात, गुरबाणी और नानक बाणी से बहुत प्रभावित हुए थे, जिन्हें
स्वर्ण मंदिर में गाया जाता था, जिसके लिए दोनों पिता और पुत्र नियमित रूप से आगंतुक थे। उन्होंने इसके
बारे में अपनी पुस्तक मेरी यादें में उल्लेख किया जो 1912 में प्रकाशित हुई थी।
बचपन से ही उनकी कविता, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा
था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और 1877 में केवल सोलह साल की उम्र में
उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई थी। भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले युगदृष्टा टैगोर के
सृजन संसार में गीताजंलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका
शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि शामिल हैं। देश और विदेश के
सारे साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि उन्होंने आहरण करके अपने अन्दर समेट लिए थे। पिता के ब्रह्म-समाज
होने के कारण वे भी ब्रह्म-समाजी थे। पर अपनी रचनाओं व कर्म के द्वारा उन्होंने सनातन धर्म को भी आगे
बढ़ाया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ज्यादातर अपनी पद्य कविताओं के लिए जाने जाते हैं। टैगोर ने अपने जीवनकाल में
कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएँ, यात्रावृन्त, नाटक और हजारों गाने भी लिखे हैं। टैगोर की गद्य में लिखी
उनकी छोटी कहानियों को शायद सबसे अधिक लोकप्रिय माना जाता है। इस प्रकार इन्हें वास्तव में बंगाली
भाषा के संस्करण की उत्पत्ति का श्रेय दिया जाता है। उनके काम अक्सर उनके लयबद्ध, आशावादी और
गीतात्मक प्रकृति के लिए काफी उल्लेखनीय हैं। टैगोर ने इतिहास, भाषा विज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी
कई किताबें लिखी थीं। टैगोर के यात्रावृन्त, निबंध और व्याख्यान कई खण्डों में संकलित किए गए थे, जिनमें
यूरोप के जटरिर पत्रों (यूरोप से पत्र) और मनुशर धरमो (द रिजिन ऑफ मैन) शामिल थे। अल्बर्ट
आइंस्टीन के साथ उनकी संक्षिप्त बातचीत, “वास्तविकता की प्रकृति पर नोट” को बाद के उत्तराधों के एक
परिशिष्ट के रूप में शामिल किया गया है।
टैगोर के 150वें जन्मदिन के अवसर पर उनके कार्यों का एक कालनुक्रोमिक रबीन्द्र रचनावली
नामक एक संकलन वर्तमान में बंगाली कालानुक्रमिक क्रम में प्रकाशित किया गया है। इसमें प्रत्येक कार्य के
सभी संस्करण शामिल हैं और लगभग अस्सी संस्करण हैं। 2011 में, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने विश्व-भारती
विश्वविद्यालय के साथ अंग्रेजी में उपलब्ध टैगोर के कार्यों का सबसे बड़ा संकलन द एसंटियल टैगोर को
प्रकाशित करने के लिए सहयोग किया है। यह फकराल आलम और राधा चक्रवर्ती द्वारा संपादित की गयी थी
और टैगोर के जन्म की 150वीं वर्षगाँठ की निशानी है।
 
                                    गद्यांशों पर आधारित प्रश्न
 
प्रश्न  निम्नलिखित गद्यांशों के आधार पर उनके साथ दिये हुए प्रश्नों के उत्तर लिखिए―
(1) दामी पिंजरे की देख-रेख में राजा के भानजे बहुत व्यस्त रहने लगे। इतने व्यस्त कि व्यस्तता की
कोई सीमा न रही। मरम्मत के काम भी लगे ही रहते। फिर झाडू-पोंछ और पालिश की धूम भी मची ही रहती
थी। जो भी देखता, यही कहता कि “उन्नति हो रही है।” इन कामों पर अनेक-अनेक लोग लगाये गये और
उनके अनेक कामों की देख-रेख करने पर और भी अनेक लोग लगे। सब महीने-महीने मोटे-मोटे वेतन
ले-लेकर बड़े-बड़े सन्दूक भरने लगे।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) पिंजरे की देख-रेख में कौन व्यस्त रहते थे?
व्यस्त = कार्मादि लगे लगे हुए। घूम = चहल-पहल। उन्नति = प्रगति]
उत्तर―(अ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी के गद्य-खण्ड अन्तर्गत हिन्दी के सर्व
श्रेष्ठ लोकप्रिय लेखक रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित कहानी तोता’ शीर्षक से उद्धृत है।
अथवा निम्नवत् लिखिए―
पाठ का नाम―तोता।
लेखक का नाम―रवीन्द्रनाथ टैगोर।
[संकेत―इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए प्रश्न ‘अ’ का यही उत्तर इसी रूप में लिखा जाएगा।]
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या―लेखक कहते हैं कि तोते की देख-रेख इतनी बढ़ गई कि दामी
यानी राजा के भानजे अब पूरी तरह उसी (तोते) की सेवा में उलझे रहने लगे। इतने उलझे रहने लगे जिसकी
कोई सीमा नहीं। चारों ओर काम-ही-काम नजर आता। फिर साफ-सफाई जैसे झाडू लगाना, कहीं पोंछा
लगाना या किसी चीज में पालिस करना आदि-आदि कामों की तो चहल-पहल-सी मची रहती। जो भी
देखता तो यही कहता कि कार्य प्रगति पर है यानी काम पूरे जोर-शोर के साथ चल रहा है। किसी को
शिकायत का कोई मौका नहीं है।
लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि देश की स्थिति को लेकर उसके सुधार की चारों ओर धूम मची
हुई है। देश के राजनेताओं द्वारा सुधार के लिए पूरी तरह तत्परता दर्शायी जा रही है। समाचार-पत्र, रेडियो
तथा टेलीविजन की यही हेड-लाइन्स बनी हुई है कि “देश का विकाश हो रहा है।”
(स) पिंजरे की देख-रेख में राजा के भानजे दामी व्यस्त रहते थे।
 
(2) राजा का मन हुआ कि एक बार चलकर अपनी आँखों से यह देखें कि शिक्षा कैसे
घूमधड़ाके से और कैसी बगटुट तेजी के साथ चल रही है। सो, एक दिन वह अपने मुसाहबों, मुँहलगों, मित्रों
और मन्त्रियों के साथ आप ही शिक्षा-शाला में आ धमके। उनके पहुँचते ही ड्योढी के पास शंख, घड़ियाल,
ढोल, तासे, खुरदक, नगाड़े, तुरहियाँ, भेरियाँ, दमामें काँसे, बाँसुरिया, झाल, करताल, मृदंग, जगझम्प
आदि-आदि आप-ही-आप बज उठे। पण्डित गले फाड़-फाड़कर और बूटियों फड़का-फड़काकर
मन्त्र-पाठ करने लगे। मिस्त्री, मजदूर, सुनार, नकलनवीस, देखभाल करने वाले और उन सभी के ममेरे,
फुफेरे, चचेरे, मौसेरे भाई जय-जयकार करने लगे।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) राजा को देखकर पण्डित क्या करने लगे?
[धूमधड़ाका = चहल-पहल । बगटुट = बेतहासा। मुसाहब = राजा का दिल बहलाने वाला।
ड्योढ़ी = दरवाजा।
उत्तर― (ब) रेखांकित अंश की व्याख्या―राजा ने सोचा कि चलकर अपनी आँखों से देखें कि जो
कार्य कार्यकर्ताओं को सौंपा गया है उसकी क्या स्थिति है। वह किस तरह जोर-शोर और तेजी पकड़े हुए है।
इसलिए एक दिन वे अपने साथ अपना दिल बहलाने वाले लोगों, अपने साथियों और मन्त्रियों को लेकर वहाँ
पहुँच गए जहाँ पर तोते को शिक्षा देने का कार्य चल रहा था। राजा के शिक्षाशाला पहुँचने के पहले ही चारों
ओर शंख, घड़ियाल, ढोल, तासे आदि-आदि वाद्ययन्त्र स्वयं ही बजने लगे यानी जब राजा वहाँ पहँचे तो
उनके पहुँचने के पहले ही वहाँ ऐसी तैयारियाँ कर दी गयीं कि राजा का ध्यान तोते पर न जाकर वहाँ के
माहौल से ही संतुष्ट हो गया।
आज देश में कमजोर और शोषित वर्ग को लेकर जो भी सुधार के कार्यों के रूप में दिखाग हो रहा है
उसकी जाँच या स्थिति का जो मौका-मुआयना किया जाता है वह सब दिखावा ही है यानी राजनीतिक दलों
द्वारा ऐसा जाल बिछा दिया जाता है कि यदि किसी कार्य की, यह सोचकर कि यह कार्य हो भी रहा है या नहीं
की जाँच भी होती है तो उसे इस तरह भ्रमित कर दिया जाता है कि जाँचकर्ता मुख्य विषय को नजर अंदाज
कर देता है और हाल जैसा था उससे भी बदतर हो जाता है।
(स) राजा को देखकर पंडित गला फाड़-फाड़कर और बूटियाँ फड़का-फड़काकर
मन्त्र-पाठ करने लगे।
 
(3) तोता दिन पर दिन भद्र रीति के अनुसार अधमरा होता गया। अभिभावकों ने समझा कि प्रगति
काफी आशाजनक हो रही है। फिर भी पक्षी-स्वभाव के एक स्वाभाविक दोष से तोते का पिंड अब भी छूट
नहीं पाया था। सुबह होते ही वह उजाले की ओर टुकुर-टुकुर निहारने लगता था और बड़ी ही अन्याय भरी
रीति से अपने डैने फड़फड़ने लगता था। इतना ही नहीं किसी-किसी दिन तो ऐसा भी देखा गया कि वह
अपनी रोगी चोंचों से पिंजरे की सलाखें काटने में जुटा हुआ है।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) सुबह होते ही तोता क्या करने लगता था?
[भद्र = मंगलकारी। प्रगति = उन्नति। पिण्ड = देह-शरीर। डैने = पंख। सलाखें = लोहे की
छड़ें।
उत्तर― (ब) रेखांकित अंश की व्याख्या―जिस तरह का मंगलकारी कार्य तोते के लिए चल रहा
था उसके अनुसार वह अधमरा हो लिया यानी विकास के स्थान पर दिनोदिन उसका पतन होना शुरू हो गया।
तोते के शुभचिन्तकों ने सोचा कि जब इतना जोर-शोर से कार्य हो रहा है तो इससे उम्मीद की जा सकती है
कि परिणाम अच्छा ही होगा यानी तोते को अब शिक्षित करके ही छोड़ा जाएगा। लेकिन पक्षियों में एक दोष
होता है उसका वह दोष अभी भी इतना शिक्षित करने के बाद में नहीं जाता है। अर्थात् उक्त रेखांकित पंक्तियों
के द्वारा लेखक कह रहे हैं कि शोषित-वर्ग के उत्थान के लिए सरकार द्वारा जो भी योजनाएँ लायी गयी थीं
उनके द्वारा शोषित-वर्ग का उत्थान तो दूर की बात रही, बल्कि उससे उसका और भी शोषण कर लिया गया।
समाज के शुभचिन्तक यही सोच रहे हैं कि यदि इतनी अच्छी योजनाएँ आई हैं तो अब अवश्य ही शोषित-वर्ग
का उत्थान हो जाएगा, लेकिन अफसोस, उनका शोषण ही हुआ। बार-बार शोषण होने के बावजूद भी
शोषित-वर्ग अंतिम साँस तक सरकार से यही उम्मीद लगाए रहता है कि शायद यह सरकार अब उनकी
सुनवायी कर लेगी और उनके मुसीबतों से छुटकारा मिल जाएगा, पर ऐसा होना तो दूर की बात रही बल्कि
ऐसी सोच रखना भी उनने लिए गलत है।
(स) सुबह होते ही तोता उजाले की ओर टुकुर-टुकुर निहारने लगता था।

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