up board class 9th hindi | सन्त रैदास

By | May 12, 2021

up board class 9th hindi | सन्त रैदास

 
                                  जीवन-परिचय एवं कृतियाँ
 
प्रश्न सन्त रैदास का जीवन-परिचय लिखिए तथा उनके कृतित्व (रचनाएँ) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर―जीवन-परिचय―वैसे तो महान संत गुरु रविदास (जिन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता
है) के जन्म से जुड़ी जानकारी नहीं मिलती है लेकिन साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर महान संत गुरु
रविदास का जन्म 1377 ई० के आसपास माना जाता है। हिन्दू धर्म के महीने के अनुसार महान संत गुरु
रविदास का जन्म माघ महीने की पूर्णिमा के दिन माना जाता है और इसी दिन हमारे देश में महान संत गुरु
रविदास की जयंती को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
महान संत गुरु रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गाँव में हुआ था।
इनके पिता संतोखदास जी जूते बनाने का काम करते थे। इनकी माता का नाम कलसा देवी था। रविदास जी
को बचपन से ही साधु-संतों के प्रभाव में रहना अच्छा लगता था जिसके कारण इनके व्यवहार में भक्ति की
भावना बचपन से ही कूटकूट कर भरी हुई थी, लेकिन रविदास जी भक्ति के साथ अपने काम पर विश्वास
करते थे जिनके कारण इन्हें जूते बनाने का काम अपने पिता से प्राप्त हुआ था और रविदास जी अपने कामों
को बहुत ही मेहनत से पूरी निष्ठा के साथ करते थे और जब भी किसी को किसी सहायता की जरूरत पड़ती
थी, रविदास जी अपने कामों का बिना मूल्य लिए ही लोगों को जूते ऐसे ही दान में दे देते थे।
एक बार की बात है, किसी त्योहार पर इनके गाँववाले सभी लोग गंगास्नान के लिए जा रहे थे, तो
सभी ने रविदास जी से भी गंगास्नान जाने का निवेदन किया, लेकिन रविदास जी ने गंगा स्नान करने जाने से
मना कर दिया, क्योंकि उसी दिन रविदास जी ने किसी व्यक्ति को जूते बनाकर देने का वचन दिया था। फिर
रविदास जी ने कहा कि यदि मान लो मैं गंगा स्नान के लिए चला भी जाता हूँ तो मेरा ध्यान तो अपने दिए हुए
वचन पर लगा रहेगा। फिर यदि मैं वचन तोड़ता हूँ तो गंगास्नान का पुण्य कैसे प्राप्त हो सकता है, जिससे यह
घटना रविदास जी के कर्म के प्रति निष्ठा और वचन पालन को दर्शाता है। इस घटना पर संत रविदास जी ने
कहा कि यदि मेरा मन सच्चा है, मेरी इस जूते धोने वाली कठौती में ही गंगा हैं।
अर्थात् यदि हमारा मन शुद्ध है तो हमारे हृदय में ही ईश्वर निवास करते हैं।
रविदास जी हमेशा से ही जाति-पाँति के भेदभाव के खिलाफ थे और जब भी मौका मिलता, वे हमेशा
सामाजिक कुरूतियों के खिलाफ हमेशा आवाज उठाते रहते थे। रविदास जी के गुरु रामानन्द जी थे जिनके
संत और भक्ति का प्रभाव रविदास जी के ऊपर पड़ा था। इसी कारण रविदास जी को जब भी मौका मिलता
वे भक्ति में तल्लीन हो जाते थे। इसके कारण रविदास जी को बहुत सुनना पड़ता था और शादी के बाद तो
जब रविदास जी अपने बनाए हुए जूते को किसी जरूरतमन्द को बिना मूल्य के ही दान दे देते थे, जिसके
कारण इनका घर चलाना मुश्किल हो जाता था। इसलिए रविदास जी के पिता ने इन्हें अपने परिवार से अलग
कर दिया था फिर भी रविदास जी ने कभी भी भक्तिमार्ग को नहीं छोड़ा।
रविदास जी जाति-व्यवस्था के सबसे बड़े विरोधी थे। उनका मानना था कि मनुष्यों द्वारा जाति-पाँति
के चलते मनुष्य से दूर होता जा रहा है और जिस जाति से मनुष्य-मनुष्य में बँटवारा हो जाये तो फिर जाति
का क्या लाभ?
                    जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात।
                 रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।।
रविदास जी के समय में जाति भेदभाव अपनी चरम अवस्था पर था। जब रविदास जी के पिता की
मृत्यु हुई तो उनके दाह-संस्कार के लिए लोगों की मदद माँगने पर भी नहीं मिलती है। लोगों का मानना था
कि वे शूद्र जाति के हैं और यदि उनका अंतिम संस्कार गंगा में होगा तो इस प्रकार गंगा भी प्रदूषित हो
जायेंगी। इसके कारण कोई भी उनके पिता के दाह-संस्कार के लिए नहीं आता है। फिर रविदास जी ईश्वर से
प्रार्थना करते हैं तो गंगा में तूफान आ जाने से उनका पिता का मृत शरीर गंगा में विलीन हो जाता है और तभी
से माना जाता है कि काशी में गंगा उल्टी दिशा में बहती हैं।
रविदास जी की महानता और भक्ति-भावना की शक्ति के प्रमाण इनके जीवन की अनेक घटनाओं में
मिलते हैं जिसके कारण उस समय का सबसे शक्तिशाली राजा मुगल सम्राट बाबर भी रविदास जी के सामने
नतमस्तक था और जब वह रविदास जी से मिलता है तो रविदास जी बाबर को दण्डित कर देते हैं जिसके
कारण बाबर का हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह फिर सामाजिक कार्यों में लग जाता है।
रविदास जी के जीवन की ऐसी अनेक घटनाएँ हैं जो आज भी हमें जाति-पाँति की भावना से ऊपर
उठकर सच्चे मार्ग पर चलते हुए समाज-कल्याण का मार्ग दिखाती हैं। रविदास जी की मृत्यु 1540 में
वाराणसी में हुई थी। हालाँकि इनके जीवन और मृत्यु के विषय में विद्वानों में काफी मतभेद हैं।
 
              पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या (पठनीय अंश सहित)
 
◆ प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी
            प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥
            प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥
            प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥
            प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
            प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै रैदासा॥
[जाकी = जिसकी। घन = विस्तृत, फैला हुआ। चितवत = देखता है। बाती = दीपक में लौ के
साथ जलने वाली बत्ती। जोति = ज्योति। सोहागा = सुहागा, एक द्रव्य जो सोना गलाने के काम आता है।
दासा = दास, सेवक]
सन्दर्भ―प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी के काव्य-खण्ड में संकलित और संत रैदास
द्वारा रचित ‘प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी’ शीर्षक से उद्धृत हैं।
प्रसंग―प्रस्तुत पंक्तियों में संत रविदास जी ने ईश्वर को स्वयं का अभिन्न अंग माना है।
व्याख्या― प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से संत रविदास जी स्वयं को ईश्वर का अभिन्न अंग बताते हुए
कहते हैं कि हे प्रभु यदि आप चन्दन हैं तो हम पानी हैं और आप की ही सुगंध हम में समाई हुई है। हे प्रभु,
यदि आप मोर के विचरण करने वाले घने वन हैं तो वह विचरण करने वाला मोर मैं ही हूँ। यदि आप चाँद हैं
तो हम चकोर पक्षी हैं, अगर आप दीपक हैं तो उसमें दिन-रात निरन्तर प्रज्वलित होने वाली बत्ती हम हैं। प्रभु
जी, यदि आप माला तैयार करने के लिए उसमें पिरोए जाने वाले मोती हैं तो उस माला का धागा हम हैं। और
यदि प्रभु, आप सोना हैं तो उस पर मिलाया जाने वाला सुहागा हम हैं। हे प्रभु, आप यदि स्वामी हैं तो हम
आपके दास हैं। प्रभु आपका यह दास रैदास आपकी ऐसी भक्ति करता है अर्थात् महान संत रैदास जी ने इन
पंक्तियों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि भक्त और भगवान दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं।
एक के बगैर दूसरा निरर्थक है। उपर्युक्त उदाहरण के द्वारा उन्होंने यह अभेद सिद्ध किया है।
काव्यगत सौन्दर्य―(1) भक्त और भगवान को एक-दूसरे का पूरक सिद्ध करना तथा भक्ति के
प्रति समर्पण का भाव व्यक्त करना। (2) शैली―मुक्तक। (3) भाषा―ब्रज। (4) छन्द―गेयपद।
(5) गुण―माधुर्य। (6) अलंकार―उपमा, अनुप्रास (7) भाव-साम्य―कवि सूरदास जी की निम्न पंक्ति
के माध्यम से भी यही बात सिद्ध होती है―
                                               “हमरे हरि हारिल की लकरी”
 
                       काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध सम्बन्धी प्रश्न
 
प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए तथा उनका स्पष्टीकरण भी
कीजिए―
(क) प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥
(ख) प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै रैदासा॥
उत्तर― (क) उपमा, अनुप्रास अलंकार।
स्पष्टीकरण―भगवान की उपमा दीपक से तथा भक्त की उपमा बाती से दी जाने के कारण
                   उपमा अलंकार तथा ‘जाकी ज्योति’ शब्दों में ‘ज’ शब्द की पुनरावृत्ति होने के
                    कारण अनुप्रास अलंकार।
(ख) उपमा अलंकार।
स्पष्टीकरण―भगवान की स्वामी से तथा भक्त की सेवक (दास) से उपमा दी गयी है
                   इसलिए उपमा अलंकार होगा।
 
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए―
घन, चंद, दीपक, मिलत।
उत्तर― शब्द                    अर्थ
घन                                विस्तृत
चंद                                चन्द्रमा
दीपक                            दीया
मिलत                            मिलता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *