UP Board Class 10 Economics | उपभोक्ता अधिकार

By | April 29, 2021

UP Board Class 10 Economics | उपभोक्ता अधिकार

UP Board Solutions for Class 10 sst Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

अध्याय 5.                    उपभोक्ता अधिकार
                       अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
 
(क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1. बाजार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? कुछ उदाहरणों के द्वारा
समझाएँ।
उत्तर― नियम एवं विनियम अनुशासन बनाने का कार्य करते हैं, अत: बाजार में अनुशासन बनाए रखने
के लिए इनको लागू करना जरूरी है। बाजार में अनुशासन के अंतर्गत निम्नलिखित स्थितियाँ आती हैं―
1. उपभोक्ता की कमजोर स्थिति―उपभोक्ता इकट्ठे नहीं होते हैं, उनका कोई संगठन नहीं होता।
अत: उनकी स्थिति कमजोर होती है और विक्रेता को जब कोई शिकायत की जाती है, तो वह कई
तरह के बहाने बनाकर पूरा-का-पूरा उत्तरदायित्व खरीददार पर ही डालने का प्रयत्न करता है।
ऐसी स्थिति से बचने के लिए नियमों तथा विनियमों की जरूरत है।
2. बाजार में शोषण―विक्रेता बाजार में उपभोक्ता का कई तरह से शोषण करने की कोशिश करता
है; जैसे–कम तोलना, ज्यादा कीमत लगाना, नकली व मिलावटी वस्तु बेचना और बिक्री के बाद
सेवा प्रदान न करना।
3. बड़ी कम्पनियों द्वारा बाजार को गलत साधनों से प्रभावित करना―कभी-कभी बड़ी
कम्पनियाँ, जो अधिक शक्तिशाली होती हैं, गलत प्रचार द्वारा उपभोक्ताओं को आकर्षित कर लेती
हैं जिसके फलस्वरूप उपभोक्ता गलत वस्तुएँ खरीद लेते हैं और बाद में उनको नुकसान उठाना
पड़ता है। उदाहरणार्थ―एक कम्पनी ने यह दावा किया था कि उनका उत्पाद अन्य सभी उत्पादों से
बेहतर है परन्तु बाद में उनको मानना पड़ा कि यह दावा गलत है, किन्तु यह साबित करने के लिए
एक लंबा संघर्ष करना पड़ा जो कि एक साधारण खरीददार अथवा उपभोक्ता नहीं कर सकता।
अतः उपर्युक्त परिस्थितियों में उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए नियमों और विनियमों अर्थात्
अनुशासन की जरूरत है।
 
प्रश्न 2. भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई? इसके विकास के बारे में
पता लगाएँ।
उत्तर― उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत उपभोक्ताओं के असंतोष के कारण हुई क्योंकि विक्रेता कई
अनुचित व्यवसायों में शामिल होते थे। बाज़ार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी
व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। यह माना जाता था कि एक उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि वह एक वस्तु या सेवा
को खरीदते समय सावधानी बरते। संस्थाओं को लोगों में जागरूकता लाने में भारत और पूरे विश्व में कई
वर्ष लग गए। इन्होंने वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी विक्रेताओं पर भी
डाल दी।
भारत में सामाजिक बल के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों में
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के फलस्वरूप हुआ। अत्यधिक
खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक
में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ। 1970 तक उपभोक्ता संस्थाएँ बड़े पैमाने पर
उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शन का आयोजन करने लगी। इसके लिए
उपभोक्ता दल बनाए गए। भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई।
इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप यह आंदोलन वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और
अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में
सफल हुआ।
 
प्रश्न 3. दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत का वर्णन कीजिए।
उत्तर―उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-
1. एक कम्पनी ने यह दावा करते हुए कहा कि सभी उत्पादों से बेहतर मेरा उत्पाद है। कम्पनी ने
सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक उत्पाद के रूप में शिशुओं हेतु अपना उत्पाद पूरे विश्व में कई वर्षों तक बेचा,
लेकिन एक लम्बे संघर्ष के बाद कम्पनी ने माना कि उसका दावा गलत था।
2. शराब उत्पाद कम्पनियों ने काफी कठिनता से यह माना कि उनका उत्पाद स्वस्थ्य के लिए
नुकसानदायक हो सकता है। उपर्युक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि गलत प्रचार के द्वारा
कम्पनियाँ अपने उत्पाद बेचती हैं लेकिन अगर उपभोक्ता जागरूक हैं तो वह इस प्रकार के बहकावे
में नहीं आता। उपभोक्ता को अपने अधिकारों के बारे में पता होगा तो कोई व्यवसायी उसका शोषण
नहीं कर सकेगा। अत: उपभोक्ता जागरूकता की अत्यधिक जरूरत है।
 
प्रश्न 4. कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
उत्तर― व्यापारी, दुकानदार और उत्पादक कई तरीकों से उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं। इनमें से
कुछ प्रमुख तरीके निम्नलिखित हैं―
1. घटिया सामान―कुछ बेईमान उत्पादक जल्दी धन एकत्र करने के उद्देश्य से घटिया किस्म का
माल बाजार में बेचने लगते हैं। दुकानदार भी ग्राहक को घटिया माल दे देता है क्योंकि ऐसा करने
से उसे अधिक लाभ होता है।
2. कम तोलना या मापना―बहुत-से चालाक व लालची दुकानदार ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की
चीजें कम तोलकर या कम मापकर उनको ठगने का प्रयत्न करते हैं।
3. अधिक मूल्य―जिन चीजों के ऊपर विक्रय मूल्य नहीं लिखा होता, वहाँ कुछ दुकानदारों का यह
प्रयत्न होता है कि ऊंचे दामों पर चीजों को बेचकर अपने लाभ को बढ़ा लें।
4. मिलावट करना―लालची उत्पादक अपने लाभ को बढ़ाने के लिए खाने-पीने की चीजों;
जैसे–घी, तेल, मक्खन, मसालों आदि में मिलावट करने से बाज नहीं आते। ऐसे में उपभोक्ताओं
को दोहरा नुकसान होता है। एक तो उन्हें घटिया माल की अधिक कीमत देनी पड़ती है दूसरे, उनके
स्वास्थ्य को भी नुकसान होता है।
5. सुरक्षा उपायों की अवहेलना―कुछ उत्पादक विभिन्न वस्तुओं को बनाते समय सुरक्षा नियमों का
पालन नहीं करते। बहुत-सी चीजें हैं जिन्हें सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है;
जैसे―प्रेशर-कुकर में खराब सेफ्टी वॉल्व के होने से भयंकर दुर्घटना हो सकती है। ऐसे में
उत्पादक थोड़े-से लालच के कारण जानलेवा उपकरणों को बेचते हैं।
6. अधूरी या गलत जानकारी―बहुत-से उत्पादक अपने सामान की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर
पैकेट के ऊपर लिख देते हैं जिससे उपभोक्ता धोखा खाते हैं। जब वे ऐसी चीजों का प्रयोग करते हैं
तो उल्टा ही पाते हैं और अपने-आपको ठगा हुआ महसूस करते हैं।
7. असंतोषजनक सेवा―बहुत-सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें खरीदने के बाद एक लंबे समय तक
सेवाओं की आवश्यकता होती है; जैसे-कूलर, फ्रिज, वाशिंग मशीन, स्कूटर और कार आदि।
परंतु खरीदते समय जो वादे उपभोक्ता से किए जाते हैं, वे खरीदने के बाद पूरे नहीं किए जाते।
विक्रेता और उत्पादक एक-दूसरे पर इसकी जिम्मेदारी डालकर उपभोक्ताओं को परेशान करते हैं।
8. कृत्रिम अभाव-लालच में आकर विक्रेता बहुत-सी चीजें होने पर भी उन्हें दबा लेते हैं। इसकी
वजह से बाजार में वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा हो जाता है। बाद में इसी सामान को ऊँचे दाम
पर बेचकर दुकानदार लाभ कमाते हैं। इस प्रकार विभिन्न तरीकों द्वारा उत्पादक, विक्रेता और
व्यापारी उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं।
 
प्रश्न 5. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के निर्माण की ज़रूरत क्यों पड़ी?
उत्तर―बाज़ार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लंबे
समय तक उपभोक्ताओं का शोषण उत्पादकों तथा विक्रेताओं के द्वारा किया जाता रहा। इस शोषण से
उपभोक्ताओं को बचाने के लिए सरकार पर उपभोक्ता आंदोलनों के द्वारा दबाव डाला गया। यह वृहत् स्तर
पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक
कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम
उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 कानून बनाया गया, जो कोपरा (COPRA) के नाम से
प्रसिद्ध है।
 
प्रश्न 6. अपने क्षेत्र के बाजार में जाने पर उपभोक्ता के रूप में अपने कुछ कर्तव्यों का वर्णन करें।
बाजार में उपभोक्ताओं के निम्न कर्त्तव्य हैं―
1. चीजें खरीदते समय मानक चिह्न आई०एस०आई०, एगमार्क या हॉलमार्क जरूर देखें।
2. क्रय की गई चीजों के मूल्य की रसीद अवश्य लें।
3. चीज के ऊपर लिखे गये मूल्य से ज्यादा कभी न दें, बल्कि अधिकतम मूल्य पर भाव-तोल करके
उसमें कमी कराएँ।
4. गारंटी आदि के बारे में पता कर लें ताकि बाद में खराब होने पर उसको ठीक करवाया जा सके
अथवा बदला जा सके या दुकानदार द्वारा ऐसा करने से मना करने पर उसके खिलाफ कार्यवाही
की जा सके।
 
प्रश्न 7. मान लीजिए, आप शहद की एक बोतल और बिस्किट का एक पैकेट खरीदते हैं। खरीदते
समय आप कौन-सा लोगो या शब्दचिह देखेंगे और क्यों?
उत्तर―शहद की बोतल और बिस्किट पर एगमार्क का लोगों देखा जाता है क्योंकि यह खाद्य पदार्थों के
लिए निर्धारित सरकारी मानक चिह्न होता है।
 
प्रश्न 8. भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा किन कानूनी मापदंडों को लागू
करना चाहिए?
उत्तर― भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा कानूनी मापदंडों को लागू किया
जाना चाहिए। 1986 के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम द्वारा उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए
कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए। राष्ट्रीय, राज्य तथा जिला स्तर पर तीन स्तरीय उपभोक्ता अदालतों का
निर्माण किया गया। सरकार के लिए जरूरी है कि वह इन अदालतों में आए मुकदमों की शीघ्र सुनवाई करे
और दोषी उत्पादक या व्यापारी के खिलाफ कार्यवाही करे। पीड़ित उपभोक्ता को उचित मुआवजा दिलवाया
जाए। उपभोक्ताओं की शिकायतों का शीघ्र निपटारा करवाने के लिए इन कानूनों को सख्ती से लागू किया
जाना जरूरी है। सरकार कोशिश करे कि भारत में बनने वाली विभिन्न चीजों की गुणवत्ता की जाँच की जाए
और उन्हें आई०एस०आई० या एगमार्क की मोहर लगाकर ही बाजार में बिकने के लिए भेजा जाए। सरकार
बाजार में बिकने वाली विभिन्न चीजों की जाँच करे कि वे सुरक्षा के मापदंड पूरे करती हैं या नहीं। ऐसी
चीजों की बिक्री पर रोक लगा दी जाए जो सुरक्षा के मापदंड पूरे न करती हो। सरकार को कानून बनाकर
जमाखोरी, कालाबाजारी आदि पर रोक लगाकर उपभोक्ताओं को शोषण से बचाना होगा। गरीब वर्ग के
लोगों को कम कीमत पर आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इन विभिन्न कानूनी मापदंडों का
प्रयोग करके सरकार उपभोक्ताओं को अधिकारों को प्राप्त कराने में समर्थ बना सकती है।
 
प्रश्न 9. उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को बताएँ और प्रत्येक अधिकार पर कुछ पंक्तियाँ लिखें।
उत्तर―उपभोक्ताओं को ‘उपभोक्ता अधिनियम, 1986’ के अनुसार निम्न अधिकार प्राप्त हैं―
1. सुरक्षा का अधिकार―उपभोक्ता को ऐसे उपकरणों, जिनसे व्यक्ति को हानि पहुँचने का खतरा
हो, से सुरक्षा का अधिकार है। उदाहरणार्थ―बिजली के उपकरणों से करेंट नहीं लगना चाहिए
अथवा उनमें आग नहीं लगनी चाहिए। यदि कोई कम्पनी सुरक्षा नियमों का पालन नहीं कर रही है
तो उसके विरुद्ध खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
2. चयन या चुनने का अधिकार―चयन के अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ता के सामने खरीदारी
करते समय कई विकल्प होने चाहिए ताकि वह अपनी इच्छा के अनुसार अपनी पसंद और जरूरत
के मुताबिक वस्तु अथवा उपकरण खरीद सके। उदाहरणार्थ-गैस कनेक्शन लेते समय उपभोक्ता
अपनी पसंद का गैस चूल्हा कहीं से भी खरीद सकता है। दुकानदार उसको उसी दुकान से चूल्हा
खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
3. सूचना पाने का अधिकार―उपभोक्ता को उत्पाद से सम्बन्धित उत्पादन की तारीख, प्रयोग करने
का तरीका, वस्तु के अवयवों, मूल्य, बैच संख्या आदि के बारे में पता करने का पूर्ण अधिकार है।
ऐसा इसलिए जरूरी है कि ताकि वस्तु के खराब होने की स्थिति में उसको बदला जा सके या
अधिक मूल्य लेने पर विक्रेता के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।
4. क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार―अगर उपभोक्ता को किसी वस्तु, उपकरण अथवा सेवा से कोई
हानि हुई है, तो उसे हानि की मात्रा के आधार पर क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार है।
 
प्रश्न 10. उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं?
उत्तर― उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन उपभोक्ता दलों की स्थापना करके कर सकते हैं।
उपभोक्ता की राशि चाहे कितनी ही कम क्यों न हो उसे अन्याय के शोषण के प्रति आवाज उठाना चाहिए
और उपभोक्ता न्यायालय में जाने से पीछे नहीं हटना चाहिए।
 
प्रश्न 11. भारत में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति की समीक्षा करें।
उत्तर―भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप से शुरू हुआ। 1970 के दशक
तक उपभोक्ता संस्थाओं द्वारा बड़े स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से सम्बन्धित आलेखों के लेखन और
प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, उपभोक्ता दल निर्मित किए गए। यद्यपि उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी
वृद्धि हुई है, जिसके निम्न कारण हैं―
1. उपभोक्ता शिकायत निवारण प्रक्रिया जटिल और खर्चीली है। कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों
की शरण लेनी पड़ती है।
2. अधिकतर उपभोक्ता खरीदारी करते समय रसीद नहीं लेते। कई बाद विक्रेता भी रसीद नहीं देते
क्योंकि अधिकतर जरूरत की वस्तुएँ छोटे और फुटकर दुकानदारों से क्रय की जाती हैं।
3. उपभोक्ता के ज्ञान का प्रसार बहुत कम है, अतः उपभोक्ता को अपने अधिकारों की और उनकी
सुरक्षा के उपाय के विषय में कुछ जानकारी नहीं होती।
4. दोषयुक्त उत्पादों से पीड़ित उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति के मुद्दे पर वर्तमान कानून स्पष्ट नहीं है।
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि भारत में उपभोक्ता आंदोलन अभी भी कमजोर है। बाजार में
उपभोक्ताओं का शोषण सामान्य बात है। व्यापारी और दुकानदार न केवल ज्यादा कीमत पर वस्तुएँ बेचते हैं,
बल्कि नकली सामान भी बेचते हैं। साधारण उपभोक्ता के पास इतना समय नहीं होता कि वह उपभोक्ता
न्यायालय में जाकर प्रार्थना-पत्र भी दे सके क्योकि हर उपभोक्ता या उसका परिवार प्रतिदिन कई वस्तुएँ या
सेवाएँ प्राप्त करता है।
 
प्रश्न 12. निम्नलिखित को सुमेलित करें―
(1) एक उत्पाद के घटकों का विवरण                 (क) सुरक्षा का अधिकार
(2) एगमार्क                                                   (ख) उपभोक्ता मामलों में सम्बन्ध
(3) स्कूटर में खराब इंजन के कारण हुई दुर्घटना    (ग) अनाजों और खाद्य तेल का प्रमाण
(4) जिला उपभोक्ता अदालत विकसित करने       (घ) उपभोक्ता कल्याण संगठनों की
वाली एजेंसी                                                        अंतर्राष्ट्रीय संस्था
(5) उपभोक्ता इंटरनेशनल                                 (ङ) सूचना का अधिकार
(6) भारतीय मानक बयूरो                                 (च) वस्तुओं और सेवाओं के लिए
                    उत्तर―1. (ङ), 2. (ग), 3. (क), 4. (ख), 5. (घ), 6. (च)।
 
प्रश्न 13.सही या गलत बताएँ―
(क) कोपरा (COPRA) केवल सामानों पर लागू होता है।
(ख) भारत विश्व के उन देशों में से एक है, जिसके पास उपभोक्ताओं की समस्याओं के निवारण
के लिए विशिष्ट अदालतें हैं।
(ग) जब उपभोक्ता को ऐसा लगे कि उसका शोषण हुआ है, तो उसे जिला उपभोक्ता अदालत में
निश्चित रूप से मुकद्दमा दायर करना चाहिए।
(घ) जब अधिक मूल्य का नुकसान हो, तभी उपभोक्ता अदालत में जाना लाभप्रद होता है।
(ड) हॉलमार्क, आभूषणों की गुणवत्ता बनाए रखने वाला प्रमाण है।
(च) उपभोक्ता समस्याओं के निवारण की प्रक्रिया अत्यंत सरल और शीघ्र होती है।
(छ) उपभोक्ता को मुआवजा पाने का अधिकार है, जो क्षति की मात्रा पर निर्भर करती है।
उत्तर― (क) गलत, (ख) सही, (ग) सही, (घ) गलत, (ङ) सही, (च) गलत, (छ) सही।
 
(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
                                  बहुविकल्पीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. भारत में उपभोक्ता आंदोलन किस रूप में हुआ?
(क) उपभोक्ता जागरूकता
(ख) सामाजिक बल
(ग) अनैतिक व अनुचित व्यवसाय
(घ) ये सभी
                उत्तर― (क) उपभोक्ता जागरूकता
 
प्रश्न 2. वर्तमान में भारत में कितने उपभोक्ता संगठन हैं?
(क) 689
(ख) 500 से अधिक
(ग) 700 से अधिक
(घ) 603
              उत्तर― (ग) 700 से अधिक
 
प्रश्न 3. ‘सूचना पाने का अधिकार अधिनियम कब पारित हुआ?
(क) अक्टूबर, 2005 से
(ख) मार्च, 2005 में
(ग) जनवरी, 2006 में
(घ) अप्रैल, 2007 में
                           उत्तर―(क) अक्टूबर, 2005 से
 
प्रश्न 4. एगमार्क किन वस्तुओं के लिए प्रामाणिक चिह है?
(क) उत्पादित सामान
(ख) स्वर्ण व चाँदी
(ग) उत्पादित मशीन
(घ) खाद्य-पदार्थों का
                           उत्तर― (घ) खाद्य-पदार्थों का
 
                                    अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस’ कब और क्यों मनाया जाता है?
उत्तर―भारतीय संसद ने 24 दिसम्बर, 1986 को ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम’ पारित किया था। इस
कारण भारत में प्रतिवर्ष 24 दिसम्बर को ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
 
प्रश्न 2. मानकीकरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर―मानवीकरण वस्तुओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है।
 
प्रश्न 3. उपभोक्ता इंटरनेशनल क्या है?
उत्तर― वर्ष 1985 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के दिशा-निर्देशों
को अपनाया और उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए उपभोक्ता इंटरनेशनल का गठन किया गया।
 
प्रश्न 4. COPRA कानून क्या है?
उत्तर― भारत सरकार ने “उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986” कानून बनाया, जिसे COPRA के
नाम से भी जाना जाता है।
 
                                   लघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. आप कैसे एक कुशल उपभोक्ता बन सकते हैं?
उत्तर― विविध वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीदते समय उपभोक्ता के रूप में अपने सुरक्षित अधिकारों के प्रति
सचेत रहेंगे तब ही अच्छे-बुरे उत्पाद में अंतर करने तथा श्रेष्ठ उत्पाद का चुनाव करने में सक्षम हो सकते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति इससे संबंधित पूर्ण जानकारी प्राप्त कर एक कुशल, जागरूक उपभोक्ता बन सकता है।
 
प्रश्न 2. भारत में उपभोक्ता क्षतिपूर्ति प्रक्रिया के दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर― भारत में उपभोक्ताओं को अनुचित सौदेबाजी तथा शोषण के विरद्ध क्षतिपूर्ति निवारण का
अधिकार प्राप्त है। किंतु यह प्रक्रिया जटिल, खर्चीली तथा समयसाध्य सिद्ध हो रही है। अधिकतर
खरीददारियों के समय कोई रसीद नहीं दी जाती। दोषपूर्ण उत्पादों से पीड़ित उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति के
संबंध में वर्तमान कानून भी अधिक स्पष्ट नहीं है। कभी-कभी तो वकीलों का सहारा भी लिया जाता है, किंतु
उपभोक्ता क्षतिपूर्ति निवारण सरल नहीं होता।
 
प्रश्न 3. “उपभोक्ता सुरक्षा परिषद्” से क्या अभिप्राय है?
उत्तर―उपभोक्ता आंदोलन द्वारा भारत में विभिन्न संगठनों के निर्माण में पहल की गई है, जिन्हें
“उपभोक्ता सुरक्षा परिषद्’ के नाम से जाना जाता है। ये संगठन उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन करते हैं कि
किस प्रकार उपभोक्ता अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं।
 
प्रश्न 4. कोपरा (COPRA) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर― कोपरा (COPRA) के अंतर्गत उपभोक्ता संबंधी विवादों के निपटारे के लिए राष्ट्रीय, राज्य
तथा जिला स्तर पर “त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र” की स्थापना की गई है। जिलास्तरीय न्यायालय 20 लाख तक
के दावों से संबंधित मुकदमों तथा राज्यस्तरीय न्यायालय जो कि 20 लाख से 1 करोड़ तक के मुकदमों तथा
राष्ट्रीय स्तरीय न्यायालय 1 करोड़ से अधिक दावेदारी संबंधित मामलों को देखता है। इस त्रिस्तरीय न्यायिक
तंत्र को क्रमशः जिला आयोग, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग कहते हैं। इस प्रकार, COPRA अधिनियम
द्वारा उपभोक्ता को उपभोक्ता न्यायालय से “प्रतिनिधित्व का अधिकार” प्राप्त है।
 
                                      दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. उपभोक्ताओं की सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा किए गए उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर―“उपभोक्ता संरक्षण परिषद्” के नाम द्वारा ये संगठन उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन करते हैं।
भारतीय संसद ने 24 दिसंबर, 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम’ पारित किया था। इस कारण भारत
में प्रतिवर्ष 24 दिसम्बर को ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में हुए उपभोक्ता
आंदोलन द्वारा संगठित समूहों की संख्या तथा उनकी कार्य-विधियों से सम्बद्ध मामलों में कुछ विशेष प्रगति
की है। भारत में 700 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं, लेकिन इनमें से मात्र 20-25 संगठन ही पूर्ण संगठित
तथा मान्यताप्राप्त हैं। इसके पश्चात् भी उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया अधिक जटिल, खर्चीली और समयसाठा
सिद्ध होती है। अनेक बार उपभोक्ताओ को बहुत-सी बार तो वकीलों का सहारा भी लेना पड़ता है। प्रायास
मुकदमे न्यायिक कार्यवाहियों में सम्मिलित होने तथा आगे बढ़ने में बहुत समय लेते हैं। अधिकतर
खरीददारियों के समय कोई रसीद अथवा बिल नहीं दिया जाता। दोषपूर्ण उत्पादों से पीड़ित उपभोक्ताओं को
क्षतिपूर्ति के संबंध में वर्तमान कानून भी अधिक स्पष्ट नहीं है। COPRA अधिनियम के 32 वर्षों बाद भी
भारत में आज उपभोक्ता संबंधी ज्ञान का प्रचार-प्रसार धीरे-धीरे हो रहा है। श्रमिकों के हितों की सुरक्षा हेतु
कानूनों के लागू हो जाने के बाद भी असंगठित क्षेत्र में श्रमिक कमजोर स्थिति में हैं। इस तरह, बाजारों के
कार्य करने हेतु नियमों-विनियमों का पालन नहीं होता।
उपभोक्ताओं को अपनी भूमिका और महत्त्व समझने की आवश्यकता है। प्राय: यह कहा जाता है कि
उपभोक्ताओं की सक्रिय भागीदारी द्वारा ही भारत में उपभोक्ता आंदोलन प्रभावी हो सकता है। इसके लिए
देश में स्वैच्छिक प्रयास तथा सभी की साझेदारी से युक्त संघर्ष की आवश्यकता है। अत: उपभोक्ताओं की
सुरक्षा हेतु नियमों व विनियमों की जरूरत है।
 
प्रश्न 2. उपभोक्ता शोषण हेतु उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर― हमारे देश में अनेक प्रकरण अथवा उदाहरण इस प्रकार के हैं जिनसे उपभोक्ताओं के
अधिकारों का हनन किया जाता है। इस प्रकार की घटनाएँ हमारे देश में अक्सर घटती रहती हैं। ऐसी स्थिति
में उपभोक्ताओं को न्याय पाने हेतु कहाँ जाना चाहिए? उपभोक्ताओं को अनुचित सौदेबाजी तथा शोषण के
विरुद्ध क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार प्राप्त है। यदि किसी उपभोक्ता को किसी प्रकार की क्षति पहुँचायी
जाती है अथवा शोषित किया जाता है, तो क्षति की संभावित मात्रा के अनुसार उसे क्षतिपूर्ति प्राप्ति का
अधिकार है। इस प्रकार के कार्यों को पूर्ण करने हेतु एक सरल तथा प्रभावी जन-प्रणाली बनाए जाने की
आवश्यकता है। प्राय: उपभोक्ता, एक सही उपभोक्ता केंद्र में अपनी शिकायत कर सकते हैं अर्थात् वे स्वय
अथवा किसी वकील के साथ अथवा बिना किसी वकालमा कार्य कर सकते हैं। जब आप विविध वस्तुएं
तथा सेवाएँ खरीदते समय उपभोक्ता के रूप में अपने सुरक्षित अधिकारों के प्रति सचेत रहेंगे, तब ही आ
अच्छे-बुरे उत्पाद में अंतर करने तथा वस्तु का श्रेष्ठ चुनाव करने में सक्षम होंगे। प्रत्येक व्यक्ति को एक
सजग, कुशल उपभोक्ता बनने हेतु उपभोक्ता अधिकारों की जानकारी प्राप्त करनी पड़ेगी जिसके अंतर्गत वे
उपभोक्ता न्यायालय तथा उपभोक्ता संरक्षण परिषद् में जा सकते हैं। भारत में COPRA अधिनियम के
अंतर्गत उपभोक्ता संबंधी विवादों के निपटारे हेतु राष्ट्रीय, राज्य तथा जिला-स्तर पर ‘त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र
की स्थापना की गई है जिससे उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो सके।

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