UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 26 संगठन
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 26 संगठन
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1.
“उत्पादन के विभिन्न साधनों को एकत्र करना तथा उन्हें संगठित एवं नियन्त्रित करने को ही संगठन कहते हैं।” परिभाषा है।
(a) प्रो. हैने की
(b) प्रो. वाटसन की
(c) प्रो. मार्शल की।
(d) प्रो. चैपमैन की
उत्तर:
(b) प्रो. वाटसन की.
प्रश्न 2.
बड़े कारखानों में श्रमिकों का प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है,
(a) उद्यमी से।
(b) संगठनकर्ता से
(c) पूँजीपति से
(d) इन सभी से।
उत्तर:
(b) संगठनकर्ता से
प्रश्न 3.
संगठनकर्ता उद्योग का ” कहलाता है।
(a) सैनिक
(b) सेनापति
(c) श्रमिक :
(d) ये सभी
उत्तर:
(b) सेनापति
प्रश्न 4.
संगठनकर्ता के गुण हैं।
(a) साहसी
(b) चरित्रवान
(c) शिक्षित
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी
निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1.
संगठन उत्पादन का एक साधन है/साधन नहीं है।
उत्तर:
साधन है।
प्रश्न 2.
संगठन उत्पादन का एक गतिशील/अगतिशील उपादान है।
उत्तर:
गतिशील उपादान है।
प्रश्न 3.
संगठनकर्ता व्यवसाय का जोखिम उठाता है/नहीं उठाता है।
उत्तर:
नहीं उठाता है।
प्रश्न 4.
तैयार माल की बिक्री का प्रबन्ध श्रमिक/संगठनकर्ता करता है।
उत्तर:
संगठनकर्ता करता है।
प्रश्न 5.
संगठनकर्ता का प्रतिफल ब्याज/वेतन होता है।
उत्तर:
वेतन होता है।
प्रश्न 6.
लघु स्तर के उद्योगों में संगठनकर्ता कम/अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
उत्तर:
कम महत्त्वपूर्ण होता है।
प्रश्न 7.
श्रमिकों के कार्य का निरीक्षण संगठनकर्ता द्वारा किया जाता है। (सत्य/असत्य) (2012, 10)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 8.
संगठनकर्ता का कार्य मुख्यतः मानसिक/शारीरिक होता है।
उत्तर:
मानसिक होता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
प्रश्न 1.
संगठन का अर्थ स्पष्ट कीजिए। (2012)
उत्तर:
संगठन उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित करके उन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला और विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन के विभिन्न साधनों; जैसे-श्रम, पूँजी एवं भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम समन्वय स्थापित करता है, उनके कार्यों का निरीक्षण करता है तथा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।
प्रश्न 2.
संगठन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
प्रो. वाटसन के अनुसार, “उत्पादन के विभिन्न साधनों को एकत्र करना तथा उन्हें संगठित एवं नियन्त्रित करने को ही संगठन कहते हैं।’ प्रो. होने के अनुसार, “संगठन उत्पादन का ऐसा साधन है, जो भूमि, श्रम और पूँजी को उचित मात्रा और अनुपात में एकत्रित करके उत्पादन कार्य करवाता है।”
प्रश्न 3.
संगठन के कोई दो उद्देश्य बताइए। (2012)
उत्तर:
संगठन के दो उद्देश्य निम्नलिखित हैं
- उत्पादन के विभिन्न साधनों; जैसे-भूमि, श्रम व पूँजी, आदि की व्यवस्था करना।
- देश में उपलब्ध विभिन्न साधनों का सर्वोत्तम उपयोग करना।
लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)
प्रश्न 1.
संगठन से क्या आशय है? उत्पादन में इसका क्या महत्त्व है? वर्णन कीजिए। (2009)
अथवा
संगठन के महत्त्व की विवेचना कीजिए। (2007)
अथवा
उत्पादन के साधन के रूप में संगठन की भूमिका बताइए।
उत्तर:
संगठन से आशय संगठन उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित करके उन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला और विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन के विभिन्न साधनों; जैसे-श्रम, पूँजी एवं भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम समन्वय स्थापित करता है, उनके कार्यों का निरीक्षण करता है तथा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है। संगठन का महत्त्व संगठन बड़े पैमाने पर किए जाने वाले उद्योगों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। कम लागत पर अधिकतम उत्पादन करने के लिए उत्पादन के विभिन्न साधनों को एक उचित अनुपात में मिलाकर उत्पादन कार्य किया जाता है, जिससे उत्पादन के साधनों में सहयोग व सामंजस्य बना रहे। यह सब कार्य संगठनकर्ता द्वारा ही किया जाता है।
आधुनिक उत्पादन व्यवस्था में संगठन के अत्यधिक महत्त्व को ध्यान में रखकर ही टॉमस ने संगठनकर्ता को ‘उद्योग का सेनापति’ कहा है। संगठन के महत्त्व को प्रसिद्ध प्रबन्ध विशेषज्ञ पी. एफ. डुकर ने बड़े ही सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है। उनके अनुसार, “प्रबन्धक प्रत्येक व्यवसाय का गतिशील एवं जीवनदायक तत्त्व होता है। उसके नेतृत्व के अभाव में उत्पादन के अन्य साधन केवल साधन ही रह
जाते हैं, कभी उत्पादक नहीं बन पाते।’
प्रश्न 2.
संगठनकर्ता की कार्यकुशलता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संगठनकर्ता की कार्यकुशलता निम्नलिखित गुणों पर निर्भर करती है-
- संगठने योग्यता संगठनकर्ता में विभिन्न साधनों को एक आदर्श व उचित अनुपात में मिलाकर उनको परस्पर संगठित करने की योग्यता होनी चाहिए।
- व्यवसाय का विशिष्ट ज्ञान संगठनकर्ता को अपने व्यवसाय के बारे में विशेष ज्ञान होना चाहिए। इससे व्यवसाय में किसी प्रकार का धोखा होने की सम्भावना नहीं रहती है।
- उच्च शिक्षा प्रबन्धक को सभी विषयों; जैसे—अर्थशास्त्र, सांख्यिकी व वाणिज्य, आदि का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।
- साहस और आत्मविश्वास संगठनकर्ता में साहस व आत्मविश्वास का गुण होना चाहिए, जिससे वह संकटों व अनिश्चितताओं का सामना सरलता से कर सके।
- चरित्रवान एक संगठनकर्ता में नैतिकता के सभी गुण होने चाहिए, जिससे वह श्रमिकों में अपने प्रति विश्वास उत्पन्न कर सके।
- व्यवहारकुशलता संगठनकर्ता को सभी श्रमिकों व अधिकारियों के प्रति उचित व्यवहार करना चाहिए।
- दूरदर्शिता संगठनकर्ता में भविष्य में होने वाले गुणात्मक व संख्यात्मक परिवर्तनों का अनुमान लगाने की योग्यता होनी चाहिए।
- साख बनाए रखने की योग्यता आज का युग साख का युग है। बड़े पैमाने पर उत्पादन कार्य करने के लिए उधार लेन-देन की आवश्यकता होती है, इसलिए संगठनकर्ता में अपनी फर्म के प्रति साख बनाए रखने की योग्यता का होना अत्यन्त आवश्यक है।
- श्रम-विभाजन व श्रम संगठन की योग्यता श्रमिकों को उनके कार्य के अनुसार नियुक्ति प्रदान करके उनसे अधिकतम कार्य करवाना भी संगठनकर्ता का ही कार्य होता है।
प्रश्न 3.
संगठनकर्ता की कार्यक्षमता किन-किन तत्त्वों से प्रभावित होती है? (2007)
उत्तर:
संगठनकर्ता की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले घटक/तत्त्व एक संगठनकर्ता की कार्यक्षमता को निम्नलिखित दो घटक/तत्त्व प्रभावित करते हैं या एक संगठनकर्ता में निम्न गुणों का होना आवश्यक है
- संगठनकर्ता की व्यक्तिगत (निजी) कुशलता एक संगठनकर्ता के उपरोक्त वर्णित व्यक्तिगत गुण उसकी कार्यक्षमता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। यदि किसी संगठनकर्ता द्वारा उत्पादन के साधनों का प्रबन्ध ठीक प्रकार से नहीं किया जाता है, तो कम लागत पर अधिक उत्पादन सम्भव नहीं है।
- उत्पादन के अन्य साधनों (उपादानों) की कुशलता एक संगठनकर्ता की कार्यकशलता उसके व्यक्तिगत गुणों के अतिरिक्त उत्पादन के अन्य साधनों पर भी निर्भर करती है, क्योकि यदि भूमि, श्रम व पूँजी अपर्याप्त या अकुशल होंगे, तो एक संगठनकर्ता योग्य होने के बाद भी कम लागत पर अधिक उत्पादन नहीं कर पाएगा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)
प्रश्न 1. संगठनकर्ता या प्रबन्धक के कार्यों एवं आवश्यक गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संगठनकर्ता या प्रबन्धक के कार्य संगठनकर्ता या प्रबन्धक के कार्य निम्नलिखित हैं-
- नई तकनीक का प्रयोग उत्पादन की नई तकनीक को खोजकर उसे प्रयोग में लाना संगठनकर्ता का ही कार्य होता है, जिससे उत्पादन की कुशलता में निरन्तर वृद्धि होती रहती है।
- मूल्य नीति का निर्धारण संगठनकर्ता माँग व पूर्ति के अनुसार तैयार माल का मूल्य निर्धारण करते हैं।
- उत्पादन की योजना तैयार करना संगठनकर्ता द्वारा ही यह निर्णय लिया जाता है कि किस प्रकार के उत्पादन से लाभ होगा व उत्पादन कितनी मात्रा में करना है। इस प्रकार के निर्णय संगठनकर्ता अपनी कुशलता एवं देश-विदेश की परिस्थितियों के आधार पर करता है।
- बिक्री की व्यवस्था करना संगठनकर्ता माल की बिक्री के लिए विज्ञापन, नए बाजार की खोज, आदि तकनीकें अपनाता है। उत्पादित माल की बिक्री की व्यवस्था करना भी संगठनकर्ता का ही दायित्व है। माल को मण्डियों तक भेजने हेतु सस्ते व शीघ्रगामी यातायात के साधनों की व्यवस्था करना भी संगठनकर्ता का ही कार्य होता है।
- कच्चे माल, यन्त्र व औजारों का प्रबन्ध करना संगठनकर्ता ही उत्पादन के लिए कच्चे माल, यन्त्र, औजारों, आदि की व्यवस्था करता है। मशीनों को क्रय करते समय लागत, मॉडल व चलाने में श्रमिकों की योग्यता का ध्यान रखना भी संगठनकर्ता का ही कार्य होता है।
- श्रमिकों को उनकी योग्यतानुसार कार्य सौंपना संगठनकर्ता श्रमिकों को उनकी रुचि व योग्यता के अनुसार ही कार्य सौंपता है।
- निरीक्षण कार्य संगठनकर्ता उद्योग के सभी कार्यों का समय-समय पर निरीक्षण करता है। इससे अव्यवस्था व अनुशासनहीनता पर उचित रूप से नियन्त्रण किया जा सकता
- श्रमिकों को संगठित करने की योग्यता संगठनकर्ता ही श्रमिकों की योग्यता के अनुसार कार्य विभाजित करके उन्हें संगठित करता है।
संगठनकर्ता या प्रबन्धक के गुण
संगठनकर्ता की कार्यकुशलता निम्नलिखित गुणों पर निर्भर करती है-
- संगठने योग्यता संगठनकर्ता में विभिन्न साधनों को एक आदर्श व उचित अनुपात में मिलाकर उनको परस्पर संगठित करने की योग्यता होनी चाहिए।
- व्यवसाय का विशिष्ट ज्ञान संगठनकर्ता को अपने व्यवसाय के बारे में विशेष ज्ञान होना चाहिए। इससे व्यवसाय में किसी प्रकार का धोखा होने की सम्भावना नहीं रहती है।
- उच्च शिक्षा प्रबन्धक को सभी विषयों; जैसे—अर्थशास्त्र, सांख्यिकी व वाणिज्य, आदि का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।
- साहस और आत्मविश्वास संगठनकर्ता में साहस व आत्मविश्वास का गुण होना चाहिए, जिससे वह संकटों व अनिश्चितताओं का सामना सरलता से कर सके।
- चरित्रवान एक संगठनकर्ता में नैतिकता के सभी गुण होने चाहिए, जिससे वह श्रमिकों में अपने प्रति विश्वास उत्पन्न कर सके।
- व्यवहारकुशलता संगठनकर्ता को सभी श्रमिकों व अधिकारियों के प्रति उचित व्यवहार करना चाहिए।
- दूरदर्शिता संगठनकर्ता में भविष्य में होने वाले गुणात्मक व संख्यात्मक परिवर्तनों का अनुमान लगाने की योग्यता होनी चाहिए।
- साख बनाए रखने की योग्यता आज का युग साख का युग है। बड़े पैमाने पर उत्पादन कार्य करने के लिए उधार लेन-देन की आवश्यकता होती है, इसलिए संगठनकर्ता में अपनी फर्म के प्रति साख बनाए रखने की योग्यता का होना अत्यन्त आवश्यक है।
- श्रम-विभाजन व श्रम संगठन की योग्यता श्रमिकों को उनके कार्य के अनुसार नियुक्ति प्रदान करके उनसे अधिकतम कार्य करवाना भी संगठनकर्ता का ही कार्य होता है।