UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 9 ज्योति-जवाहर (खण्डकाव्य)
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प्रश्न 1
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक, कथासार) संक्षेप में लिखिए। [2010, 11, 12, 13, 14, 15, 17, 18]
था
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य का कथानक राष्ट्रीय एकता के परिवेश में देश की विभिन्नताओं के बीच अभिन्नता की एक शाश्वत कड़ी के रूप में उभरकर सामने आता है।” इस कथन के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त कीजिए। [2009]
था
‘ज्योति-जवाहर’ के नायक के व्यक्तित्व के निर्माण में पूरे भारत का योगदान रहा। कथानक के आधार पर इस तथ्य को स्पष्ट कीजिए।
था
‘ज्योति-जवाहर’ की कथावस्तु (कथासार) अपने शब्दों में लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 16]
उत्तर
श्री देवीप्रसाद शुक्ल ‘राही’ द्वारा रचित ‘ज्योति-जवाहर’ नामक खण्डकाव्य की कथावस्तु घटनाप्रधान न होकर भावप्रधान है। इस खण्डकाव्य में भारत के निर्माता युगावतार पं० जवाहरलाल नेहरू का विराट लोकनायक का रूप चित्रित हुआ है। कवि ने सम्पूर्ण कथानक को एक ही सर्ग ‘प्रवेश’ में रचा है। कथावस्तु का सारांश निम्नवत् है–
कथानक का प्रारम्भ नायक में देवत्व और मनुजत्व के सम्मिश्रण से हुआ है। विधाता ने जवाहरलाल नेहरू के अलौकिक व्यक्तित्व का निर्माण अपनी रचना का समस्त कौशल लगाकर किया है। कवि की भव्य कल्पना है कि विधाता ने इन्हें सूर्य से ज्योति, चन्द्रमा से सुघड़ता, हिमालय से स्वाभिमान, सागर से मन की गहराई, वायु से गति और धरती से धैर्य लेकर दिव्य पुरुष के रूप में रचा है। कवि के अनुसार नेहरू जी के व्यक्तित्व में अनेक राज्यों के महान् पुरुषों के गुणों के साथ-साथ राज्यों के सामाजिक-सांस्कृतिक गुणों का भी समावेश निम्नलिखित रूप में हुआ है
गुजरात प्रान्त में जन्मे महात्मा गाँधी से ये कर्मयोग के सिद्धान्त की प्रेरणा पाकर जीवन के संघर्ष की प्रेरणा लेते हैं। इन्हें गाँधीजी का शुभाशीष, सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, समानता, ममता आदि के रूप में उसी प्रकार प्राप्त हुआ है, जैसे राम को वशिष्ठ का शुभाशीष प्राप्त हुआ था।
महाराष्ट्र ने उन्हें वीर शिवाजी की तलवार के रूप में शक्ति प्रदान की, जिससे वे विदेशी शक्तियों से उसी प्रकार लोहा लेते रहे; जिस प्रकार वीर शिवाजी ने औरंगजेब से लोहा लिया था।
नेहरू जी ने राजस्थान से संघर्षों में जीना सीखा तथा यहाँ के महापुरुषों से संकटों में अपने पथ से किसी भी प्रकार से विचलित न होने की शिक्षा ली। हल्दीघाटी की माटी वीर जवाहर को स्वतन्त्रता पर मिटने की भावनी देती है।
राजस्थान उन्हें भारत की सम्पूर्ण सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पवित्र कला, जौहर-व्रत, स्वामिभक्ति और त्याग सौंपता है। वह राणा साँगा, कुम्भा, जयमल और महाराणा प्रताप का शौर्य तथा त्याग उनको प्रदान करता है।
सतपुड़ा राज्य भारत की अखण्डता की घोषणा करता है।
कालिदास की भावुकता, कुमारिल की विलक्षण प्रतिभा, अंगारों की भाषा वाला फकीर मोहन तथा अकबर से लड़ने वाली चाँदबीबी’ जैसी महान् विभूतियों को सतपुड़ा अपने हृदय में धारण किये हुए है। इन विभूतियों की समस्त विशेषताओं को वह नेहरू जी को समर्पित कर देता है।
बंगाल भी जवाहर पर अपना वैभवे न्योछावर करने में पीछे नहीं है। विवेकानन्द तथा दीनबन्धु ऐण्डूज की कर्मठता ने नेहरू जी को बहुत अधिक प्रभावित किया है। बंगाल प्रदेश तो नेहरू जी को बंकिम चन्द्र का राष्ट्र-प्रेम, टैगोर तथा शरत् की अमर कला, सुभाषचन्द्र बोस की देशभक्ति आदि सभी कुछ समर्पित कर गौरव का अनुभव कर रहा है।
असम अपने जंगलों, पर्वतों और नदियों की प्राकृतिक सुषमा को नेहरू जी पर वारता हुआ धन्य हो रहा है। रामायण के अनुवादक माधव कन्दली तथा मनसा नामक भक्त-कवि के गीतों ने नेहरू जी के मन को शुद्धता प्रदान की है।
बिहार गौतम बुद्ध की तपोभूमि है। यह सत्य, दया, अहिंसा, क्षमा, त्याग आदि का नन्दन वन है। महावीर स्वामी की विभूति वैशाली नेहरू जी को मानवीय गुणों के मोती अर्पित करती है।
समुद्रगुप्त की यशोगाथा आज भी विद्यमान है। समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त ने भी अपनी वीरता से भारत का मस्तक कभी झुकने नहीं दिया। कलिंग को जीतने के बाद अशोक वैराग्य-भावना से ओत-प्रोत हो गये। इस प्रदेश की ये सभी घटनाएँ नेहरू जी के व्यक्तित्व पर विशेष प्रभाव डालती हैं।
उत्तर प्रदेश अपनी कोख में वीर जवाहर को जन्म देकर धन्य है। मथुरा, वृन्दावन और अयोध्या की गली-गली में चर्चा है कि आज राम और कृष्ण ने प्रयाग में जन्म लिया है। उत्तर प्रदेश तुलसी की राममयी वाणी, सारनाथ में बुद्ध के उपदेश, कबीर की आडम्बरहीनता एवं साम्प्रदायिक सौहार्द, सूर के गीतों का उपहार लिये इस महामानव का अभिनन्दन करता है।
पंजाब भी अपनी गौरवमयी परम्परा को सौंपते हुए जननायक जवाहर के व्यक्तित्व की अभिवृद्धि में योग दे रहा है। सिकन्दर को स्वाभिमान का पाठ पढ़ाने वाले राजा पोरस का पौरुष, गुरु नानक की वाणी आदि सब कुछ पंजाब वीर जवाहर को सौंप देता है।
कश्मीर का सौन्दर्य नेहरू जी को आकर्षित करता है तथा उन पर फूलों की वर्षा करता है।
कुरुक्षेत्र नेहरू जी को अर्जुन की संज्ञा से विभूषित करता है तथा अर्जुन से गाण्डीव उठवाकर दुर्योधन जैसे अत्याचारी व्यक्तियों को समाप्त करने का आदेश देता है।
पराधीनता के पाश में जकड़ी दिल्ली अकबर की हिन्दू-मुस्लिम एकता की ज्योति को सौंपते हुए गौरवान्वित है। वह उन्हें जहाँगीर का न्याय तथा शाहजहाँ की कलात्मक सौगात को अर्पित करती है।
वास्तव में सम्पूर्ण भारत ने नेहरू जी को अपनी सभी निधियाँ अर्पित की हैं। यमुना अपने संगम के राजा के अभिनन्दन के लिए अपनी निधियों को न्यौछावर करने संगम तक गयी है। अत: यह कथन भी पूर्ण रूप से उपयुक्त ही है कि ज्योति-जवाहर’ के नायक के व्यक्तित्व के निर्माण में सम्पूर्ण भारतवर्ष का योगदान रहा है। कवि नायक के व्यक्तित्व में सम्पूर्ण राष्ट्र की चेतना की झलक देखते हुए कहता है
जब लगा देखने मानचित्र, भारत न मिला तुमको पाया।
जब तुझको देखा नयनों में, भारत का चित्र उभर आया ।
प्रश्न 2
‘ज्योति-जवाहर’ का कथानक घटनाप्रधान न होकर भावप्रधान है।” इस कथन का क्या अभिप्राय है ? [2009]
था
नेहरू के व्यक्तित्व के निर्माण में किन शक्तियों का योगदान ‘ज्योति-जवाहर खण्डकाव्य के आधार पर संक्षेप में वर्णन कीजिए।
था
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य में कवि ने पंजाब के व्यक्तित्व का चित्रण किस प्रकार किया है? विस्तार से लिखिए। ‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य के आधार पर मेवाड़ के गौरव का वर्णन कीजिए।
था
‘ज्योति-जवाहर’ के आधार पर बताइए कि नेहरू के व्यक्तित्व को किन-किन व्यक्तियों ने किस रूप में प्रभावित किया? [2009, 10]
उत्तर
नेहरू जी के महान् व्यक्तित्व में भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। कवि के अनुसार नेहरू जी के व्यक्तित्व में अनेक राज्यों के महान् पुरुषों के गुणों के साथ-साथ राज्यों के सामाजिक-सांस्कृतिक गुणों का भी समावेश निम्नलिखित रूप में हुआ है–
गुजरात प्रान्त में जन्मे महात्मा गाँधी से ये कर्मयोग के सिद्धान्त की प्रेरणा पाकर जीवन के संघर्ष की प्रेरणा लेते हैं। इन्हें गाँधीजी का शुभाशीष, सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, समानती, ममता आदि के रूप में उसी प्रकार प्राप्त हुआ है, जैसे राम को वशिष्ठ का शुभाशीष प्राप्त हुआ था। नरसी मेहता की भक्तिमयी वाणी से इन्होंने हृदय की पवित्रता को समझा। गुजरात के ही वीर रस के कवि पद्मनाभ तथा महर्षि दयानन्द की चारित्रिक विशेषताओं का भी नेहरू जी पर विशेष प्रभाव पड़ा।
महाराष्ट्र ने उन्हें वीर शिवाजी की तलवार के रूप में शक्ति प्रदान की, जिससे वे विदेशी शक्तियों से उसी प्रकार लोहा लेते रहे; जिस प्रकार वीर शिवाजी ने औरंगजेब से लोहा लिया था। कवि रामदास की राष्ट्रीय भावना, सन्त ज्ञानेश्वर का कर्मयोग, तुकाराम और लोकनाथ के गीत तथा तिलक के ‘करो या मरो’ का उपदेश जवाहरलाल के जीवन में मूर्तिमान हो उठता है। केशवगुप्त के ओजस्वी गीत उनके हृदय में नव-चेतना को जाग्रत करते हैं।
नेहरू जी ने राजस्थान से संघर्षों में जीना सीखा तथा यहाँ के महापुरुषों से संकटों में अपने पथ से किसी भी प्रकार से विचलित न होने की शिक्षा ली। हल्दीघाटी की माटी वीर जवाहर को स्वतन्त्रता पर मिटने की भावना दे रही है
माथे पर टीका लगा दिया, हल्दीघाटी की माटी ने।
यों मन्त्र दिया मर मिटने का, आजादी की परिपाटी ने ॥
राजस्थान उन्हें भारत की सम्पूर्ण सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहर के रूप में आबू की पवित्र कला, वीर क्षत्राणियों का जौहर-व्रत, पन्ना धाय की स्वामिभक्ति और त्याग तथा मीरा का प्रेम में दीवानापन सौंपता है। वह राणा साँगा, कुम्भा, जयमल और महाराणा प्रताप का शौर्य तथा त्याग उनको प्रदान करता है।
राजस्थान की इस वीर भावना को देखकर सतपुड़ा राज्य भारत की अखण्डता की घोषणा करता हुआ कहता है
बूढ़ा सतपुड़ा लगा कहने, हूँ दूर मगर अलगाव नहीं।
कम हुआ आज तक उत्तर से, दक्षिण का कभी लगाव नहीं ॥
नेहरू जी के दर्शन के लिए नर्मदा, ताप्ती, महानदी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियाँ भी पूरब से पश्चिम की ओर फैली हुई थीं। महावीर और गौतम के उपदेशों से ही इन्होंने महान्-धर्म को सीखा। कम्बन की ‘रामायण’ से इन्होंने ‘हिन्दू धर्म का ज्ञान प्राप्त किया तथा रामानुजाचार्य और शंकराचार्य के दार्शनिक तत्त्वों से आत्म-ज्ञान प्राप्त किया। सतपुड़ा के सन्त अय्यर से इन्होंने सत्याग्रह का महामन्त्र प्राप्त किया है। कालिदास की भावुकता, कुमारिल की विलक्षण प्रतिभा, अंगारों की भाषा वाला फकीर मोहन तथा अकबर से लड़ने वाली चाँदबीबी’ जैसी महान् विभूतियों को सतपुड़ा अपने हृदय में धारण किये हुए है। इन विभूतियों की समस्त विशेषताओं को वह नेहरू जी को समर्पित कर देता है। यहाँ की प्रतिमाओं में भारतीय संस्कृति अपने जीवन्त रूप में विद्यमान है। भुवनेश्वर और तंजौर की प्रतिमाएँ नेहरू जी को विशेष रूप से आकर्षित करती हैं।
बंगाल भी जवाहर पर अपना वैभव न्योछावर करने में पीछे नहीं है। जहाँ बंगाल का वैभवशाली अतीत चण्डीदास तथा गोविन्ददास के मधुर गीतों को सँजोये है वहीं दूसरी ओर राधा की ममता जयदेव के गीतों में झलकती है। इनके छन्दों में गोपियों की व्याकुलता के भी दर्शन होते हैं। कृतिवास के द्वारा अनूदित रामायण व महाभारत तथा महाप्रभु चैतन्य की भक्तिपूर्ण वाणी नेहरू जी के चारित्रिक विकास में सहायक बने हैं। दौलत काजी तथा शाह जफर की गजलें नेहरू जी की वाणी में गुंजित हो रही हैं। विवेकानन्द तथा दीनबन्धु ऐण्डूज की कर्मठता ने नेहरू जी को बहुत अधिक प्रभावित किया है। बंगाल प्रदेश तो नेहरू जी को बंकिम चन्द्र का राष्ट्र-प्रेम, टैगोर तथा शरत् की अमर कला, सुभाषचन्द्र बोस की देशभक्ति आदि सभी कुछ समर्पित कर गौरव का अनुभव कर रही है। वह कहता है
अब जो कुछ है सब अर्पित है; आँसू अंगारे औ फनी।
जीवन की लाज बचा लेना, गंगा यमुना के वरदानी।
असम अपने जंगलों, पर्वतों और नदियों की प्राकृतिक सुषमा को नेहरू जी पर वारता हुआ धन्य हो रहा है। रामायण के अनुवादक माधव कन्दली तथा मनसा नामक भक्त-कवि के गीतों ने नेहरू जी के मन को शुद्धता प्रदान की है। वैष्णव मठ की दीवारों पर निर्मित चरित-पुथी ने जन-जन को मानवता के मन्त्र का पाठ पढ़ाया है। असम की घाटियों में संगीत गूंज रहा है तथा वहाँ की हरियाली नेहरू जी का स्वागत करने के लिए मानो छलकी पड़ रही है। असम नेहरू जी का स्वागत करना चाहता है; वह कहता है
मेरी हर धड़कन प्यासी है, तेरे चरणों के चुम्बन को ।
होती तैयार खड़ी है रे, जन-मन के स्नेह समर्पण को ।
बिहार गौतम बुद्ध की तपोभूमि है। यह सत्य, दया, अहिंसा, क्षमा, त्याग आदि का नन्दन वन है। महावीर स्वामी की विभूति वैशाली नेहरू जी को मानवीय गुणों के मोती अर्पित करती हुई कहती है–
फिर भी दर्शन के कुछ मोती, इस आशा से ले आयी हूँ।
मोती की लाज न जाएगी, मोती के द्वारे आयी हूँ।
समुद्रगुप्त की यशोगाथा आज भी विद्यमान है। समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त ने भी अपनी वीरता से भारत का मस्तक कभी झुकने नहीं दिया। कलिंग को जीतने के बाद अशोक वैराग्य-भावना से ओत-प्रोत हो गये। इस प्रदेश की ये सभी घटनाएँ नेहरू जी के व्यक्तित्व पर विशेष प्रभाव डालती हैं। वैदिक संस्कृति के विकास में यहाँ के पुष्यमित्र शुंग का विशेष योगदान रहा है। पतंजलि के चिन्तन, बौद्धिक संस्कृति, साहित्य आदि को बिहार नेहरू जी के अभिनन्दन में अर्पित करना चाहता है।
उत्तर प्रदेश अपनी कोख में वीर जवाहर को जन्म देकर धन्य है। मथुरा, वृन्दावन और अयोध्या की गली-गली में चर्चा है कि आज राम और कृष्ण ने प्रयाग में जन्म लिया है। उत्तर प्रदेश तुलसी की राममयी वाणी, सारनाथ में बुद्ध के उपदेश, कबीर की आडम्बरहीनता एवं साम्प्रदायिक सौहार्द, सूर के गीतों का उपहार लिये इस महामानव का अभिनन्दन करता है। स्वतन्त्रता-प्राप्त करने का नाना साहब का स्वप्न वीर जवाहर को पाकर साकार हो गया। झाँसी और बिठूर को जननायक की कार्यक्षमता पर अटल विश्वास है, मानो तात्या टोपे, जीनत महल, मोहम्मद शाह आदि के बलिदान से वीर जवाहर का आविर्भाव हुआ हो।
पंजाब भी अपनी गौरवमयी परम्परा को सौंपते हुए जननायक जवाहर के व्यक्तित्व की अभिवृद्धि में योग दे रहा है। सिकन्दर को स्वाभिमान का पाठ पढ़ाने वाले राजा पोरस का पौरुष, गुरु नानक की वाणी आदि सब कुछ पंजाब वीर जवाहर को सौंप देता है। जलियाँवाला बाग अपनी करुणा-कथा कहता हुआ नेहरू जी के हृदय में नव-चेतना का संचार करता है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की सभ्यता का इतिहास लिये हुए पंजाब नेहरू जी के सामने श्रद्धा के सुमन अर्पित करता है।
कश्मीर का सौन्दर्य नेहरू जी को आकर्षित करता है तथा उन पर फूलों की वर्षा करता है।
कुरुक्षेत्र नेहरू जी को अर्जुन की संज्ञा से विभूषित करता है तथा अर्जुन से गाण्डीव उठवाकर दुर्योधन जैसे अत्याचारी व्यक्तियों को समाप्त करने का आदेश देता है।
पराधीनता के पाश में जकड़ी दिल्ली मुहम्मद गोरी, चंगेज खाँ, तैमूरलंग की खूनी बरबादी की स्मृतियों को नायक को सौंपने की कल्पना में ही कम्पित हो जाती है, किन्तु अकबर की हिन्दू-मुस्लिम एकता की ज्योति को सौंपते हुए वह गौरवान्वित है। दिल्ली उन्हें जहाँगीर का न्याय तथा शाहजहाँ की कलात्मक सौगात को अर्पित करती है।
वास्तव में सम्पूर्ण भारत ने नेहरू जी को अपनी सभी निधियाँ अर्पित की हैं। यमुंना अपने संगम के राजा के अभिनन्दन के लिए अपनी निधियों को न्योछावर करने संगम तक गयी है। अतः यह कथन भी पूर्ण रूप से उपयुक्त ही है कि ‘ज्योति-जवाहर’ के नायक के व्यक्तित्व के निर्माण में सम्पूर्ण भारतवर्ष का योगदान रहा है। कवि नायक के व्यक्तित्व में सम्पूर्ण राष्ट्र की चेतना की झलक देखते हुए कहता है
जब लगा देखने मानचित्र, भारत न मिला तुमको पाया।
जब तुझको देखा नयनों में, भारत का चित्र उभर आया।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि कवि श्री देवीप्रसाद राही जी ने ‘ज्योति-जवाहर’ के कथानक के प्रतीकों के माध्यम से लाक्षणिक परिवेश में चित्रित करके, कथानक के आदि; मध्य और अन्त को एकात्मकता के सूत्र में पिरोकर, घटनाप्रधान कथानकों की घिसी-पिटी परिपाटी से हटकर, मनोवैज्ञानिक एवं भावात्मक पृष्ठभूमि के आधार पर, संवेदनशील अनुभूतियों के ताने-बाने से प्रस्तुत खण्डकाव्य के कलेवर को मौलिक स्वरूप प्रदान किया है। इसके विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रनायक पं० नेहरू का उद्भव ही एक महान घटना है, जिससे प्रेरित होकर इस कृति का सृजन हुआ है।
प्रश्न 3
‘ज्योति-जवाहर’ के आधार पर खण्डकाव्य के नायक पं० जवाहरलाल नेहरू का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2010, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
था
“‘ज्योति-जवाहर’ में नेहरू का विराट् व्यक्तित्व ही भारतीय राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है।” उक्त कथन की पुष्टि कीजिए। [2009, 10]
था
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य में व्यक्त राष्ट्रीय भावना पर प्रकाश डालिए। [2018]
था
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य के आधार पर पं० जवाहरलाल नेहरू का चरित्र-चित्रण आधुनिक भारत के निर्माता एवं देशप्रेमी के रूप में कीजिए।
था
‘ज्योति-जवाहर’ के नायक के विविध गुणों और उसकी प्रधान चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। [2009, 10, 11, 13,14, 16]
था
‘ज्योति-जवाहर’ के नायक की किन्हीं तीन/चार व्यक्तिगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2014]
था
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2016, 18]
था
‘ज्योति-जवाहर’ के नायक के प्रेरक चरित्र का वर्णन कीजिए। [2011]
था
“ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य के नायक में देश-प्रेम, विश्व-बन्धुत्व, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तथा राष्ट्रीय भावनात्मक एकता के समन्वित दर्शन होते हैं।” इस कथन की पुष्टि संक्षेप में कीजिए।
था
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य कें जिस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया हो, उसका चरित्र-चित्रण कीजिए। [2013, 14, 15]
उत्तर
श्री देवीप्रसाद शुक्ल ‘राही’ द्वारा रचित ‘ज्योति-जवाहर’ नामक खण्डकाव्य के नायक पंडित जवाहरलाल नेहरू हैं। प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि ने नायक के व्यक्तित्व को भारत की सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, साहित्यिक, धार्मिक और ऐतिहासिक विशिष्टताओं से समाहित करके नायक जवाहर के व्यक्तित्व में निम्नलिखित विशिष्टताओं को देखा है
(1) अलौकिक पुरुष–कवि ने जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तित्व में अलौकिकता का समावेश किया है तथा कहा है कि वे दिव्य तत्त्वों से निर्मित अलौकिक पुरुष हैं। विधाता ने अपने रचना-कौशल से सूर्य से तेज, चन्द्रमा से सुघड़ता, हिमालय से स्वाभिमान, सागर से गम्भीरता, वायु से गति और धरती से धैर्य लेकर उनके व्यक्तित्व का निर्माण किया है–
सूरज से लेकर ज्योति, चाँद से लेकर सुघराई तन की ।
हिमगिरि से लेकर स्वाभिमान, सागर से गहराई मन की॥
लेकर मारुत से गति अबाध, धरती से ले धीरज सम्बले।।
विधि ने तुझको ही सौंप दिया, अपनी रचना का पुण्य सकल ॥
कवि ने उनके व्यक्तित्व को राम-कृष्ण के गुणों से सम्पन्न मानकर युगावतार का स्वरूप प्रदान । किया है।
(2) गाँधीजी से प्रभावित–जवाहरलाल नेहरू महात्मा गाँधी के सच्चे अनुयायी एवं शिष्य थे। उन्हें गाँधी से सत्य, अहिंसा, उदारता, मानव-प्रेम, करुणा का आशीर्वाद उसी प्रकार प्राप्त हुआ था, जैसे राम को वशिष्ठ का शुभाशीष प्राप्त हुआ था। उन्होंने गाँधीजी के कर्म-सिद्धान्त से प्रेरणा पाकर अपने जीवन को कर्ममय बनाया है।
(3) समन्वयकारी लोकनायक-ज्योति-जवाहर’ काव्य में कवि ने उन्हें ‘संगम का राजा’ कहकर सम्बोधित किया है। उनके विराट् व्यक्तित्व में भारत के सम्पूर्ण धर्मों, संस्कृति, दर्शन, कला, साहित्य, राजनीति आदि के सभी रूपों का अपूर्व संगम मिलता है। वे जननायक, लोकनायक एवं युगपुरुष के रूप में चित्रित किये गये हैं। भारतवर्ष के प्रत्येक प्रान्त ने अपना कुछ-न-कुछ उन पर न्योछावर किया है। नेहरू जी को युगावतार मानते हुए कवि ने इस प्रकार कहा है
मथुरा वृन्दावन अवधपुरी की, गली-गली में बात चली।
फिर नया रूप धरकर उतरा, द्वापर त्रेता का महाबली ॥
(4) राष्ट्रीय भावों के प्रेरक–जवाहरलाल नेहरू का व्यक्तित्व भारतीयों को राष्ट्रीय भावनाओं की प्रेरणा देने वाला है। उनके व्यक्तित्व में अशोक की युद्ध–विरक्ति, बुद्ध की करुणा, महावीर की अहिंसा, प्रताप का स्वाभिमान, शिवाजीं की देशभक्ति और विवेकानन्द के आत्मदर्शन की झलक दिखाई पड़ती है। भारत का कण-कण उन्हें त्याग और बलिदान से अभिमण्डित कर रहा है। इसी भाव को व्यक्त करते हुए राही जी कहते हैं
आजादी की मुमताज जिसे, अपने प्राणों से प्यारी है।
उस पर अपनी मुमताजसहित, यह शाहजहाँ बलिहारी है ॥
उनके व्यक्तित्व में राष्ट्रीय चेतना और भावात्मक एकता के दर्शन होते हैं।
(5) स्वाधीनता-सेनानी–प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि ने वीर जवाहर को एक उत्कृष्ट देशभक्त और अजेय स्वाधीनता-सेनानी के रूप में चित्रित किया है। महाराष्ट्र इस युगपुरुष को शिवाजी की तलवार के रूप में शक्ति सौंपता है, जिससे वे विदेशी शक्तियों से लोहा ले सकें। झाँसी और बिठूर को नेहरू की कार्यक्षमता पर अटल विश्वास है; क्योंकि उनका आविर्भाव तात्या टोपे और मुहम्मद शाह के बलिदान से हुआ है। राजस्थान इस वीर सेनानी को आन पर मिटने की अदा और संघर्षों से जूझने की मस्ती प्रदान करता है।
(6) दृढ़ पुरुष—नायक जवाहरलाल में कठिनाइयों में धैर्य धारण करने की अद्भुत क्षमता है। उन्हें यह गुण असम की मिट्टी से प्राप्त हुआ है
काँटों की नोकों पर खिलना, मेरे जीवन की शैली है।
मेरी दिनचर्या पर्वत से, लेकर जंगल तक फैली है ॥
जिस प्रकार नारियल का फल ऊपर से कठोर और अन्दर से कोमल होता है उसी प्रकार श्री नेहरू ऊपर से सैनिक के शरीर के समाने कठोर और अन्दर से सन्त के मन के समान कोमल हैं। इसीलिए खण्डकाव्य में राही जी ने स्वयं उनके मुख से कहलवाया है-
मुझमें कोमलता है लेकिन, कायरता मेरा मर्म नहीं ।
बैरी के सम्मुख झुक जाना, मेरे जीवन का धर्म नहीं ॥
(7) नीतिज्ञ एवं स्वाभिमानी-नेहरू जी महान् राजनीतिज्ञ हैं। यह गुण उन्हें चाणक्य से प्राप्त हुआ था, जिसके सम्मुख सिकन्दर जैसा विश्व-विजेता भी मात खा गया था। उन्होंने राजा पोरस से स्वाभिमान का पाठ पढ़ा, जिसने सिकन्दर को स्वाभिमान का पाठ सिखाया था।
(8) नवराष्ट्र के निर्माता–भारत को स्वतन्त्र कराने के पश्चात् नये राष्ट्र का निर्माण करने वालों में जवाहरलाल नेहरू का नाम अग्रगण्य है। देश का सर्वाधिक उत्थान और विकास करने के लिए उन्होंने पंचवर्षीय योजनाओं का आरम्भ किया। गुट-निरपेक्षता, निरस्त्रीकरण, विश्व शान्ति की स्थापना आदि कार्यों के परिणामस्वरूप भारत विश्व के समक्ष प्रतिष्ठित हुआ। वे भारत को जाति-पॉति के बन्धनों से मुक्त देखना चाहते थे तथा सभी धर्मों की एकता में विश्वास रखकर देश को निरन्तर प्रगति-पथ पर अग्रसर रखना चाहते
(9) विश्व-शान्ति के अग्रदूत-नेहरू जी का व्यक्तित्व महान् था। भारत के राष्ट्र-भक्तों की श्रृंखला में उनका नाम अग्रगण्य है। भारत के भाग्य-विधाता के रूप में वे भारत की धरती पर अवतरित हुए। विश्वविख्यात धीरोदात्त नायक हैं, जिन्हें देश के प्रत्येक अंचल से स्नेहाशीष प्राप्त होता है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि जवाहरलाल लोकनायक एवं युगावतार हैं, जिनमें अहिंसा, सत्य, मानव-प्रेम, करुणा, विश्व-बन्धुत्व, शौर्य, स्वाभिमान, क्षमा आदि सभी गुण विद्यमान हैं। राष्ट्रीय भावात्मक एकता के प्रतीक के रूप में इनका व्यक्तित्व स्फटिक जैसी स्वच्छता, स्वदेशाभिमान, देश-प्रेम, विश्वबन्धुत्व एवं महान् मानवीय चेतना से ओत-प्रोत है। वस्तुतः वे भारत की आत्मा ही हैं।
प्रश्न 4
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य के आधार पर कलिंग युद्ध (मर्मस्पर्शी प्रसंग) का वर्णन कीजिए तथा उसके परिणाम का उल्लेख कीजिए।
था
‘ज्योति-जवाहर’ में वर्णित कलिंग युद्ध की घटना और सम्राट् अशोक पर उसके प्रभाव का वर्णन कीजिए। यह भी बताइए कि इस खण्डकाव्य की कथा में इसका क्या महत्त्व है ?
या
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य की ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जिसने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया हो और क्यों ? (2015)
था
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य के आधार पर कलिंग युद्ध का वर्णन कीजिए।[2016, 17]
उत्तर
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य में कवि श्री देवीप्रसाद शुक्ल ‘राही’ ने आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू को भारतीय संस्कृति और इतिहास के प्रतीक रूप में चित्रित किया है। इसके लिए कवि ने भारतीय इतिहास की अनेक घटनाओं का वर्णन किया है। इस काव्य में वर्णित घटनाओं में कलिंग युद्ध और उसके परिणाम का मेरे हृदय पर विशेष प्रभाव पड़ा है; क्योंकि इसका अति मार्मिक वर्णन किया गया है। संक्षेप में इसका प्रसंग निम्नवत् है|
कलिंग युद्ध की घटना सम्राट अशोक के शासनकाल में हुई। यह घटना हृदय को कँपा देने वाली है। इस विध्वंसकारी युद्ध में रक्त की नदियाँ बह गयी थीं, जिसमें आदमी मछलियों जैसे तैरते दिखाई दे रहे थे। इस युद्ध में अस्त्र-शस्त्रों की भयंकर ध्वनि सुनाई पड़ती थी। हर ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। नरमुण्ड कटकट कर धरती पर गिर रहे थे। न जाने कितनी माताओं की गोद सूनी हो गयी थी, अगणित नारियों की माँग का सिन्दूर पुछ गया था और अनेक बहनें अपने भाइयों की मृत्यु पर बिलख रही थीं। इस प्रकार के भयानक दृश्य को देखकर सभी का हृदय करुण क्रन्दन करने लगा था।
सम्राट अशोक ने जब इतना भयंकर नरसंहार देखा तो उसका हृदय करुणा से द्रवीभूत होने लगा। उसके अन्तस्तल में दया का समुद्र हिलोरें मारने लगा। उसने यह प्रण किया कि वह अब कभी भी हिंसा न करेगा और न ही कोई युद्ध लड़ेगा। वह अपने मन में विचार करने लगा कि मेरे संकेत मात्र से न जाने कितने व्यक्ति काल के मुँह में समा गये हैं। उसका मन विचलित होने लगा। उसके हृदय में वैराग्य भाव जाग्रत हो गया। साम्राज्य विशाल होते हुए भी वह उसे छोटा और सारहीन प्रतीत होने लगा। कवि ने अशोक की मनोदशा का वर्णन करते हुए कहा है
सोने चाँदी का आकर्षण अब उसे घिनौना लगता था।
साम्राज्यवाद का शीशमहल कुटिया से बौना लगता था।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक पूर्णतया अहिंसक और वैरागी बन गया था। इस युद्ध ने उसके हृदय पर गहरा आघात किया था-
जाने कैसी थी कचोट, छिन पहले जिसने जगा दिया।
हिंसा की जगह अहिंसा का, अंकुर अन्तर में जमा दिया।
कलिंग युद्ध से अशोक का हृदय इतना दु:खी हुआ कि उसने सदैव के लिए तलवार फेंक दी तथा महात्मा गौतम बुद्ध का अनुयायी हो बौद्ध भिक्षु बन गया। कवि ने अशोक की इस स्थिति का चित्रण इस प्रकार किया है-
जो कभी न हारा औरों से, वह आज स्वयं से हार गया।
भिक्षुक अशोक, राजा अशोक से, पहले बाजी मार गया ।।।
‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य में अशोक के द्वारा कलिंग युद्ध करना फिर वैराग्य पैदा हो जाना, इस सबका वर्णन खण्डकाव्य के नायक जवाहरलाल नेहरू के विचारों पर वैराग्य के प्रभाव को चित्रित करने के लिए किया गया है।
सचमुच कलिंग युद्ध और उससे प्रभावित अशोक का यह प्रसंग बड़ा ही रोमांचकारी, भावपूर्ण तथा भारतीय इतिहास की अन्यान्य घटनाओं में प्रभावकारी, प्रमुख तथा महत्त्वपूर्ण है।
प्रस्तुत खण्डकाव्य की कथा में कलिंग युद्ध के प्रसंग का बड़ा ही महत्त्व है। इसमें एक ओर तो अशोक को युद्ध में रत दिखाया है और दूसरी ओर युद्ध की अतिशयता तथा भीषण नरसंहार से उसके हृदय को बदलते और हिंसा को छोड़कर अहिंसक बनते दिखाया गया है। अशोक के द्वारा शान्ति और अहिंसा का सन्देश दूर-दूर तक फैलाने का वर्णन किया गया है। जवाहरलाल नेहरू भी शान्ति के अग्रदूत तथा हिंसा के विरोधी थे। अशोक से सम्बन्धित इस प्रसंग का वर्णन करके जवाहरलाल नेहरू के विचारों को अहिंसक बनाने का प्रयास कवि द्वारा किया गया है। प्रस्तुत काव्य का प्रमुख उद्देश्य जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तित्व को उजागर करना है और इसी के लिए इस प्रसंग का वर्णन किया गया है। अत: यह प्रसंग मेरी दृष्टि में अति महत्त्वपूर्ण है।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन प्रणाली तथा प्रायोगिक एवं आन्तरिक मूल्यांकन
प्रतिदर्श प्रश्न-पत्र (हल सहित)
प्रथम मासिक परीक्षा
हिन्दी-x
निर्देश—सभी प्रश्नों के उत्तर लिखने हैं। प्रश्नों के अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।
प्रश्न 1.
वाचन के अन्तर्गत कौन-कौन से विषय सम्मिलित किये जाते हैं ?
उत्तर
वाचन के अन्तर्गत निम्नलिखित नौ विषय मुख्य रूप से सम्मिलित किये जाते हैं-
- भाषण,
- वाद-विवाद,
- सस्वर कविता-वाचन,
- वार्तालाप,
- कार्यक्रम-प्रस्तुति,
- अन्त्याक्षरी,
- कथाकहानी या कोई घटना सुनाना,
- परिचय देना और परिचय प्राप्त करना तथा
- भावानुकूल संवाद वाचन।
प्रश्न 2
अच्छे भाषण की चार प्रमुख विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर
अच्छे भाषण की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
- भाषण रोचके होना चाहिए। उसमें जोश, उमंग और उत्साह भरा होना चाहिए।
- भाषण की भाषा प्रभावशाली व लोगों की समझ में आने वाली होनी चाहिए।
- भाषण के विषय को आज के जीवन से जोड़ते हुए वर्तमान उदाहरणों से पुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे उसमें सजीवता आ जाए।
- भाषण देते समय कविता की पंक्तियाँ या शेर या सूक्तियाँ आदि का जरूरत के मुताबिक प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 3
आपके विद्यालय के वार्षिकोत्सव में आपके विद्यालय की एक छात्रा सुनिधि कत्थक नृत्य प्रस्तुत करेगी। आप उसका परिचय देकर मंच पर बुलाइए तथा प्रस्तुति पश्चात् टिप्पणी भी कीजिए।
उत्तर
नृत्य का नाम सुनते ही हमारा मन झूम उठता है। अंग थिरकने लगते हैं और फिर सामने शास्त्रीय नृत्य हो तो बात ही कुछ और हो जाती है। आज आपके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है–कत्थक नृत्य। इस नृत्य को हमारे ही विद्यालय की नवीं कक्षा की छात्रा सुनिधि प्रस्तुत करेंगी। जैसा सुन्दर नाम, वैसा ही सुन्दर काम! तो देखिए कत्थक नृत्य।।
कार्यक्रम पश्चात् टिप्पणी–मैंने कहा था—जैसा सुन्दर नाम, वैसा ही सुन्दर काम! बहुत ही सुन्दर नृत्य था यह-मनोरम, आकर्षक और अपने-आप में सम्पूर्ण।
प्रश्न 4
निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द का स्वनिर्मित वाक्य में प्रयोग कीजिए विश्वकोश और दूरस्थ
उत्तर
वाक्य-प्रयोग–विश्वकोश को सर्वाधिक प्रामाणिक सन्दर्भ-ग्रन्थ माना जाता है।
या मैं अपने दूरस्थ मित्रों से चलित दूरभाष यन्त्र द्वारा सम्पर्क रखता हूँ।
प्रश्न 5
निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द से उपसर्ग व प्रत्यय अलग करके लिखिए प्रोत्साहित या प्रतिनिधित्व
उत्तर
प्रोत्साहित = प्र (उपसर्ग) + उत्साह (मूल शब्द) + इत (प्रत्यय)
या प्रतिनिधित्व = प्रति (उपसर्ग + निधि (मूल शब्द) + त्व (प्रत्यय)
प्रश्न 6
निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द का सनाम समास-विग्रह दीजिए पदकमल या सुलोचनि
उत्तर
समास-विच्छेदपद-
प्रश्न 7
निम्नलिखित पदों में से किसी एक का नियम-निर्देशपूर्वक सन्धि-विच्छेद कीजिएनिराश्रय और पतनोन्मुख
उत्तर
सन्धि-विच्छेद-
द्वितीय मासिक परीक्षा
हिन्दी-X
निर्देश सभी प्रश्नों के उत्तर लिखने हैं। सभी प्रश्नों के लिए अंक निर्धारित है।
प्रश्न 1
उचित विकल्प का चयन करके अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए
(i) संज्ञा किसे कहते हैं?
(क) व्यक्तियों, वस्तुओं और स्थानों के गुण, संख्या और परिमाण का बोध कराने वाले शब्दों को
(ख) किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, स्थिति, गुण अथवा भाव का बोध कराने वाले शब्दों को
(ग) किसी व्यक्ति की स्थिति व गुणों को बोध कराने वाले शब्दों को
(घ) किसी वस्तु व स्थान की स्थिति व उसके गुण-दोषों व भाव की स्थिति का बोध कराने वाले शब्दों को
उत्तर
(ख) किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, स्थिति, गुण अथवा भाव का बोध कराने वाले शब्दों को
(ii) विशेषण को उन शब्दों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है-
(क) जो शब्द पुल्लिग की विशेषता बताते हैं।
(ख) जो शब्द स्त्रीलिंग की विशेषता बताते हैं।
(ग) जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं।
(घ) जो शब्द बहुवचन की विशेषता बताते हैं।
उत्तर
(ग) जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं।
(iii) वाच्य को परिभाषित किया जा सकता है-
(क) क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि कर्ता स्वयं कार्य न करके दूसरे से काम करवाता है, उसे वाच्य कहते हैं।
(ख) क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि कर्ता दूसरे से कार्य न करवाकर स्वयं कार्य करता है, उसे वाच्य कहते हैं।
(ग) क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि क्रिया का मुख्य विषय कर्ता है, कर्म है अथवा भाव, उसे वाच्य कहते हैं।
(घ) दो या दो से अधिक धातुओं के योग से बनी क्रियाओं को वाच्य कहते हैं।
उत्तर
(ग) क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि क्रिया का मुख्य विषय कर्ता है, कर्म है अथवा भाव, उसे वाच्य कहते हैं।
(iv) क्रिया-विशेषण की उचित परिभाषा है-
(क) वे संज्ञा शब्द जो विशेषण प्रकट करते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।
(ख) वे सर्वनाम शब्द जो विशेषण की विशेषता प्रकट करते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।
(ग) वे अविकारी शब्द जो क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।
(घ) वे सम्बन्ध बोधक शब्द जो विशेषण की विशेषता प्रकट करते हैं क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।
उत्तर
(ग) वे अविकारी शब्द जो क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।
(v) जो अव्यय शब्द वाक्य में किसी शब्द के बाद लगकर उसके अर्थ पर विशेष प्रकार का बल देते हैं, उन्हें कहते हैं-
(क)निपात
(ख) क्रिया-विशेषण
(ग) संबंधबोधक
(घ) समुच्चयबोधक
उत्तर
(क) निपात।
प्रश्न 2
उचित विकल्प का चयन करके अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए –
1. कौन-से विकल्प में सभी शब्द भाववाचक संज्ञाएँ हैं?
(क) अमीरी, दोस्ती, संस्कार, इंसानियत
(ख) नारीत्व, दोस्त, बूढ़ा, यौवन
(ग) युवक, गुरु, शठ, नेतृत्व
(घ) वक्ता, स्वत्व, प्रयोग, सर्दी
उत्तर
(क) अमीरी, दोस्ती, संस्कार, इंसानियत।
2. कौन-से विकल्प में सभी सर्वनाम अनिश्चयवाचक हैं?
(क) कुछ, किसी का, किन का, मैं
(ख) किसी ने, किसे, क्या, हम ।
(ग) किन्हीं ने, कोई, कुछ, जो
(घ) कोई, कुछ, किसी की, किन्हीं की
उत्तर
(घ) कोई, कुछ, किसी की, किन्हीं की।
3. कौन-से वाक्य में गुणवाचक विशेषण का प्रयोग किया गया है?
(क) मेरे पास एक काला कुत्ता है
(ख) बाज़ार से तीन किलो घी ले आओ |
(ग) उसने परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया
(घ) वह लड़का कहाँ चला गया
उत्तर
(क) मेरे पास एक काला कुत्ता है।
4. अब से ऐसी बात नहीं होगी’ में क्रिया-विशेषण है
(क) ऐसी
(ख) अब से
(ग) नहीं
(घ) ऐसी बात
उत्तर
(घ) ऐसी बात।।
5. निम्नलिखित वाक्यों में सरल वाक्य है
(क) सत्य बोलो और प्रगति प्राप्त करो
(ख) सत्य बोलने वाले की सदा विजय होती है।
(ग) जो सत्य बोलते हैं उनकी सदा जय होती है।
(घ) कभी असत्य मत बोलो क्योंकि सत्य बोलना श्रेष्ठ है।
उत्तर
(ख) सत्य बोलने वाले की सदा विजय होती है।
तृतीय मासिक परीक्षा
हिन्दी-x
निर्देश-सभी प्रश्नों के उत्तर लिखने हैं। प्रश्नों के अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।
प्रश्न 1
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर अति संक्षिप्त (100-150 शब्दों का) निबन्ध लिखिए—
(क) स्वदेश-प्रेम,
(ख) प्रमुख प्राकृतिक आपदाएँ।
उत्तर
स्वदेश-प्रेम
रूपरेखा–
(1) प्रस्तावना,
(2) देश-प्रेम की स्वाभाविकता,
(3) देश-प्रेम का अर्थ,
(4) देश-प्रेम का क्षेत्र,
(5) भारतीयों का देश-प्रेम,
(6) उपसंहार।
प्रस्तावना—ईश्वर द्वारा बनायी गयी सर्वाधिक अद्भुत रचना है ‘जननी’, जो नि:स्वार्थ प्रेम की प्रतीक है, प्रेम का ही पर्याय है, स्नेह की मधुर बयार है, सुरक्षा का अटूट कवच है, संस्कारों के पौधों को ममता के जल से सींचने वाली चतुर उद्यान रक्षिका है, जिसका नाम प्रत्येक शीश को नमन के लिए झुक जाने को प्रेरित कर देता है। यही बात जन्मभूमि के विषय में भी सत्य है। इन दोनों का दुलार जिसने पा लिया, उसे स्वर्ग का पूरा-पूरा अनुभव धरा पर ही हो गया। इसीलिए जननी और जन्मभूमि की महिमा को स्वर्ग से भी बढ़कर बताया गया है।
देश-प्रेम की स्वाभाविकता–प्रत्येक देशवासी को अपने देश से अनुपम प्रेम होता है। अपना देश चाहे बर्फ से ढका हुआ हो, चाहे गर्म रेत से भरा हुआ हो, चाहे ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से घिरा हुआ हो, वह सबके लिए प्रिय होता है।
प्रात:काल के समय पक्षी भोजन-पानी के लिए कलरव करते हुए दूर स्थानों पर चले तो जाते हैं, परन्तु सायंकाल होते ही एक विशेष उमंग और उत्साह के साथ अपने-अपने घोंसलों की ओर लौटने लगते हैं। जब पशु-पक्षियों को अपने घर से, अपनी मातृभूमि से इतना प्यार हो सकता है तो भला मानव को अपनी जन्मभूमि से, अपने देश से क्यों प्यार नहीं होगा? कहा भी गया है कि माता और जन्मभूमि की तुलना में स्वर्ग का सुख भी तुच्छ है-जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।।
देश-प्रेम का अर्थ-देश-प्रेम का तात्पर्य है–देश में रहने वाले जड़-चेतन सभी से प्रेम, देश की सभी झोपड़ियों, महलों तथा संस्थाओं से प्रेम, देश के रहन-सहन, रीति-रिवाज, वेशभूषा से प्रेम, देश के सभी धर्मों, मतों, भूमि, पर्वत, नदी, वन, तृण, लता सभी से प्रेम और अपनत्व रखना, उन सबके प्रति गर्व की अनुभूति करना। सच्चे देश-प्रेमी के लिए देश का कण-कण पावन और पूज्य होता है-सच्चा देश-प्रेमी वही होता है, जो देश के लिए नि:स्वार्थ भावना से बड़े-से-बड़ा त्याग कर सकता है। स्वदेशी वस्तुओं का स्वयं उपयोग करता है और दूसरों को उनके उपयोग के लिए प्रेरित करता है। सच्चा देशभक्त उत्साही, सत्यवादी, महत्त्वाकांक्षी और कर्तव्य की भावना से प्रेरित होता है।
देश-प्रेम का क्षेत्र-देश-प्रेम का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति देशभक्ति की भावना प्रदर्शित कर सकता है। सैनिक युद्ध-भूमि में प्राणों की बाजी लगाकर, राज-नेता राष्ट्र के उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर, समाज-सुधारक समाज का नवनिर्माण करके, धार्मिक नेता मानव-धर्म का उच्च आदर्श प्रस्तुत करके, साहित्यकार राष्ट्रीय चेतना और जन-जागरण का स्वर फेंककर, कर्मचारी, श्रमिक एवं किसान निष्ठापूर्वक अपने दायित्व का निर्वाह करके, व्यापारी मुनाफाखोरी व तस्करी का त्याग कर अपनी देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित कर सकता है। संक्षेप में, सभी को अपना कार्य करते हुए देशहित को सर्वोपरि समझना चाहिए।
भारतीयों को देश-प्रेम–भारत माँ ने ऐसे असंख्य नर-रत्नों को जन्म दिया है, जिन्होंने असीम त्याग- भावना से प्रेरित होकर हँसते-हँसते मातृभूमि पर अपने प्राण अर्पित कर दिये। कितने ही ऋषि-मुनियों ने अपने तप और त्याग से देश की महिमा को मण्डित किया है तथा अनेकानेक वीरों ने अपने अद्भुत शौर्य से शत्रुओं के दाँत खट्टे किये हैं। वन-वन भटकने वाले महाराणा प्रताप ने घास की रोटियाँ खाना स्वीकार किया, परन्तु मातृभूमि के शत्रुओं के सामने कभी मस्तक नहीं झुकाया। शिवाजी ने देश और मातृभूमि की सुरक्षा के लिए गुफाओं में छिपकर शत्रु से टक्कर ली और रानी लक्ष्मीबाई ने महलों के सुखों को त्यागकर शत्रुओं से लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त की। भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, अशफाक उल्ला खाँ आदि न । जाने कितने देशभक्तों ने विदेशियों की अनेक यातनाएँ सहते हुए, मुख से ‘वन्देमातरम्’ कहते हुए हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे को चूम लिया।
उपसंहार-खेद का विषय है कि आज हमारे नागरिकों में देश-प्रेम की भावना अत्यन्त दुर्लभ होती जा रही है। नयी पीढ़ी का विदेशों से आयातित वस्तुओं और संस्कृतियों के प्रति अन्धाधुन्ध मोह, स्वदेश के बजाय विदेश में जाकर सेवाएँ अर्पित करने के सजीले सपने वास्तव में चिन्ताजनक हैं। हमारी पुस्तकें भले ही राष्ट्र-प्रेम की गाथाएँ पाठ्य-सामग्री में सँजोये रहें, परन्तु वास्तव में नागरिकों के हृदय में गहरा व सच्चा राष्ट्र-प्रेम ढूंढ़ने पर भी उपलब्ध नहीं होता। हमारे शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियों को इस प्रश्न का समाधान ढूंढ़ना ही होगा। अब मात्र उपदेश या अतीत के गुणगान से वह प्रेम उत्पन्न नहीं हो सकता। हमें अपने राष्ट्र की दशा व छवि अनिवार्य रूप से सुधारनी होगी।
प्रत्येक देशवासी को यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके देश भारत की देशरूपी बगिया में राज्यरूपी अनेक क्यारियाँ हैं। किसी एक क्यारी की उन्नति एकांगी उन्नति है और सभी क्यारियों की उन्नति देशरूपी उपवन की सर्वांगीण उन्नति है। जिस प्रकार एक माली अपने उपवन की सभी क्यारियों की देखभाल समाने भाव से करता है उसी प्रकार हमें भी देश का सर्वांगीण विकास करना चाहिए। देश-प्रेम मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। इसे संकुचित रूप में ग्रहण न कर व्यापक रूप में ग्रहण करना चाहिए। संकुचित रूप में ग्रहण करने से विश्व-शान्ति को खतरा हो सकता है। हमें स्वदेश-प्रेम की भावना के साथ-साथ समग्र मानवता के कल्याण को भी ध्यान में रखना चाहिए।
प्रश्न 2
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कीजिए-
महात्मा गाँधी अपना काम अपने हाथ से करने पर बल देते थे। वह प्रत्येक आश्रमवासी से आशा करते थे कि वह अपने शरीर से सम्बन्धित प्रत्येक कार्य, सफाई तक स्वयं करेगा। उनका कहना था कि जो श्रम नहीं करता है, वह पाप करता है और पाप का अन्न खाता है। ऋषि-मुनियों ने कहा है बिना श्रम किये जो भोजन करता है, वह वस्तुतः चोर है। महात्मा गाँधी का समस्त जीवन-दर्शन श्रमसापेक्ष था। उनका समस्त अर्थशास्त्र यही बताता था कि प्रत्येक उपभोक्ता को उत्पादनकर्ता होना चाहिए। उनकी नीतियों की उपेक्षा करने के परिणाम हम आज भी भोग रहे हैं। न गरीबी कम होने में आती है, न बेरोजगारी पर नियंत्रण हो पा रहा है और न अपराधों की वृद्धि हमारे वश की बात रही है। दक्षिण कोरियावासियों ने श्रमदान करके ऐसे श्रेष्ठ भवनों का निर्माण किया है, जिनसे किसी को भी ईष्र्या हो सकती है।
(क) महात्मा गाँधी प्रत्येक आश्रमवासी से क्या आशा करते थे?
(i) वह आश्रम के सभी काम स्वयं करें
(ii) वह परिश्रमशील बने ।
(iii) वह अपने शरीर से सम्बन्धित प्रत्येक कार्य स्वयं करें
(iv) वह आश्रम के कार्यों में सहयोग करें।
उत्तर
(iii) वह अपने शरीर से सम्बन्धित प्रत्येक कार्य स्वयं करें।
(ख) ऋषि-मुनियों ने किस प्रकार के व्यक्ति को चोर कहा है?
(i) जो किसी को हानि पहुँचाता है।
(ii) जो चोरी करता है।
(iii) जो बिना श्रम किये भोजन करता है।
(iv) जो असत्य भाषण करता है।
उत्तर
(iii) जो बिना श्रम किये भोजन करता है।
(ग) दक्षिण कोरियावासियों ने श्रमदान करके किस प्रकार की चीजों का निर्माण किया है?
(i) श्रेष्ठ मन्दिरों का
(ii) श्रेष्ठ भवनों का
(iii) श्रेष्ठ पुलों का ।
(iv) श्रेष्ठ बाँधों का
उत्तर
(ii) श्रेष्ठ भवनों का।
प्रश्न 3
नीचे दिये गये चित्रों के आधार पर एक अति संक्षिप्त कहानी लिखिए-
उत्तर
तीन मित्र
एक जंगल में एक हिरन, कौआ और चूहा रहते थे। तीनों आपस में गहरे मित्र थे। तीनों साथ-साथ रहते और खाते-पीते थे। एक दिन जंगल में एक शिकारी आया। उसने अपना जाल फैला दिया। बेचारा हिरन शिकारी के फैलाये उस जाल में फँस गया। उस समय कौआ और चूहा वहाँ नहीं थे। कौआ आया। उसने हिरन को जाल में फंसा हुआ देखा। यह देखकर वह पेड़ पर बैठकर काँव-काँव करने लगा। कौए की आवाज सुनकर चूहा भागा चला आया और उसने अपने तेज दाँतों से जाल काट दिया। इस प्रकार हिरन की जान बच गयो।।
मॉडल पेपर
केवल प्रश्न-पत्र
हिन्दी
कक्षा 10
[ निर्देश-प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।]
1.
(क) निम्नलिखित कथनों में से कोई एक कथन सत्य है, उसे पहचानकर लिखिए-
(i) ‘झूठा सच’ यशपाल का प्रसिद्ध काव्य है।
(ii) डॉ० नगेन्द्र ख्यातिप्राप्त उपन्यासकार हैं।
(iii) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद निबन्धकार थे।
(iv) ‘गबन’ बालकृष्ण भट्ट की प्रसिद्ध कृति है।
(ख) निम्नलिखित कृतियों में से किसी एक कृति के लेखक का नाम लिखिए-
(i) साहित्यालोचन
(ii) सेवासदन
(iii) कलम का सिपाही
(iv) अशोक के फूल
(ग) किसी एक रिपोर्ताज-लेखक का नाम लिखिए।
(घ) किसी एक नाटककार का नाम लिखिए।
(ङ) शुक्लोत्तर युग के किसी एक साहित्यकार का नाम लिखिए।
2.
(क) छायावाद की किन्हीं दो रचनाओं का उल्लेख करते हुए उनके रचनाकारों के नाम लिखिए।
(ख) रामचन्द्रिका’ तथा ‘ललितललाम’ के रचयिताओं के नाम लिखिए।
(ग) भक्तिकाल के किसी एक कवि का नाम लिखिए।
3.
निम्नांकित गद्यांशों में से किसी एक के नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क) जब एक बार मनुष्य अपना पैर कीचड़ में डाल देता है तब फिर यह नहीं देखता कि वह
कहाँ और कैसी जगह पैर रखता है। धीरे-धीरे उन बुरी बातों में अभ्यस्त होते-होते तुम्हारी घृणा कम हो जाएगी। पीछे तुम्हें उनसे चिढ़ न मालूम होगी क्योंकि तुम यह सोचने लगोगे कि चिढ़ने की बात ही क्या है? तुम्हारा विवेक कुंठित हो जाएगा और तुम्हें भले-बुरे की पहचान न रह जाएगी। अंत में होते-होते तुम भी बुराई के भक्त बन जाओगे। अत: हृदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि बुरी संगत की छूत । से बचो।
(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक ने हृदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का क्या उपाय सुझाया है ?
(ख) एक उपवन को पाकर भगवान् को धन्यवाद देते हुए उसका आनन्द नहीं लेना और बराबर इस चिन्ता में निमग्न रहना किं इससे भी बड़ा उपवन क्यों नहीं मिला, एक ऐसा दोष है, जिससे ईष्र्यालु व्यक्ति को चरित्र भी भयंकर हो उठता है। अपने अभाव परे दिन-रात सोचते-सोचते वह सृष्टि की प्रक्रिया को भूलकर विनाश में लग जाता है और अपनी उन्नति के लिए उद्यम करना छोड़कर वह दूसरों को हानि पहुँचाने को ही अपना श्रेष्ठ कर्तव्ये समझने लगता है।
(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक ने ईर्ष्यालु व्यक्ति के चरित्र के भयंकर होने का क्या कारण बताया है ?
4.
निम्नलिखित पद्यांशों में से किसी एक की सन्दर्भ-सहित व्याख्या कीजिए और काव्यसौन्दर्य भी लिखिए
(क)
निरगुन कौन देस कौ बासी ?
मधुकर कहि समुझाइ सौंह है,
बुझतिं साँच न हाँसी।।
को है जनक, कौन है जननी,
कौन नारि, को दासी ?
कैसे बरन, भेष है कैसो,
किहिं रस को अभिलाषी ?
पावैगो पुनि कियौ आपनौ,
जो रे करैगो गाँसी ?
सुनत मौन है रह्यौ बावरी,
सूर सबै मति नासी।।
(ख)
मेवाड़-केसरी देख रहा,
केवल रण का न तमाशा था।
वह दौड़-दौड़ करता था रण,
वह मान-रक्त का प्यासा था।।
चढ़कर चेतक पर घूम-घूम,
करता सेना रखवाली था।
ले महामृत्यु को साथ-साथ ।
मानो प्रत्यक्ष कपाली था।।
5.
(क) निम्नलिखित लेखकों में से किसी एक का जीवन-परिचय दीजिए एवं लेखक की एक रचना का नाम लिखिए
(i) रामधारी सिंह दिनकर
(ii) जयप्रकाश भारती
(iii) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ख) निम्नलिखित कवियों में से किसी एक का जीवन-परिचय एवं उनकी एक रचना लिखिए–
(i) मैथिलीशरण गुप्त
(ii) रामनरेश त्रिपाठी
(iii) सूरदास
6.
निम्नलिखित का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए-
अधुनाऽपि अत्र संस्कृतवाग्धारा सततं प्रवहति, जनानां ज्ञानं च वर्द्धयति। अत्र अनेके आचार्याः मूर्धन्याः विद्वांसः वैदिकवाङ्मयस्य अध्ययने अध्यापने च इदानीं निरताः। न केवलं भारतीयाः अपितु वैदेशिका: गीर्वाणवाण्याः अध्ययनाय अत्र आगच्छन्ति, नि:शुल्कं च विद्यां गृहणन्ति। अत्र हिन्दू विश्वविद्यालयः, संस्कृत विश्वविद्यालय: काशी विद्यापीठम् इत्येते त्रयः विश्वविद्यालयाः सन्ति, येषु नवीनां प्राचीनानाम् च ज्ञानविज्ञान विषयाणाम् अध्ययनं प्रचलति।
अथवा
स ह द्वादशवर्ष उपेत्य चतुर्विंशतिवर्षः सर्वान्वेदानधीत्य महामना अनूचानमानी स्तब्ध एयाय तं ह पितोवाच
7.
(क) अपनी पाठ्य-पुस्तक से कंठस्थ किया गया कोई एक श्लोक लिखिए जो प्रश्न-पत्र में न आया हो।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए
(i) दाराशिकोहः कस्यां भाषायां उपनिषदाम् अनुवादम् अकारयत् ?
(ii) वातात् शीघ्रतरं किम अस्ति ?
(iii) भारतीय संस्कृतेः मूलं किम् अस्ति ?
(iv) इन्दुदर्शनेन कः वर्धते ?
8.
(क) हास्य रस की परिभाषा लिखकर उसका एक उदाहरण दीजिए।
अथवा
राम-राम कहि राम कहि, राम-राम कहि राम
तन परिहरि रघुपति विरहं राउ गयउ सुरछाम् ।।
उपर्युक्त पद्यांश में प्रयुक्त रस का नाम तथा स्थायी भाव लिखिए।
(ख) “रूपक’ अथवा ‘उपमा अलंकार की परिभाषा उदाहरण-सहित लिखिए।
(ग) रोला’ अथवा ‘सोरठा’ छन्द की परिभाषा उदाहरण-सहित लिखिए।
9.
(क) निम्नलिखित उपसर्गों में से किन्हीं तीन के मेल से एक-एक शब्द बनाइए-
(ख) निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रत्ययों का प्रयोग करके एक-एक शब्द बनाइए-
(i) हट
(ii) पन
(iii) ता
(iv) त्व
(ग) निम्नलिखित में से किन्हीं दो में समास-विग्रह कीजिए तथा समास का नाम लिखिए
(i) स्वर्णकलश
(ii) चौमासा
(iii) जल-थल
(iv) विषधर
(घ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो के तत्सम रूप लिखिए–
(i) आँख
(ii) हाथ ,
(iii) कपूर
(iv) कान
(ङ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-
(i) चाँद
(ii) भ्रमर
(iii) समुद्र
(iv) पर्वत
10.
(क) निम्नलिखित में से किन्हीं दो में सन्धि कीजिए और सन्धि का नाम लिखिए-
(i) प्रति + उत्तरम्
(ii) पितृ + आदेशः
(iii) तथा + एवं
(iv) महा + ओजः
(ख) निम्नलिखित शब्दों के रूप षष्ठी विभक्ति, द्विवचन में लिखिए-
(i) नदी अथवा मधु
(ii) फल अथवा मति
(ग) निम्नलिखित में से किसी एक की धातु, लकार, पुरुष तथा वचन का उल्लेख कीजिए
(i) पचेव
(ii) पश्याम
(iii) अहसाम्
(iv) पठामः
(घ) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं दो का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
(i) मैं प्रतिदिन स्नान करता हूँ।
(ii) तुम वीर हो।
(iii) वे लड़के दिन में कहाँ पढ़ेंगे ?
(iv) हमें देशभक्त होना चाहिए।
11.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए
(i) पर उपदेश कुशल बहुतेरे
(ii) भ्रष्टाचार : कारण और निवारण
(iii) पर्यावरण-प्रदूषण
(iv) विज्ञान के बढ़ते कदम
(v) स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व
12.
अपने पठित खण्डकाव्य के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक को उत्तर लिखिए
(क)
(i) “तुमुल’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
(ii) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
(ख)
(i) कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
(ii) कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के आधार पर भरत का चरित्र-चित्रण कीजिए।
(ग)
(i) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के नायक के चरित्र का चित्रण कीजिए।
(ii) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य की कथा संक्षेप में लिखिए।
(घ)
(i) ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
(ii) ‘अग्रपूजा’ के प्रधान पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
(ङ)
(i) ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
(ii) ‘ज्योति-जवाहर’ खण्डकाव्य के प्रधान पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
(च)
(i) मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
(ii) मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
(छ)
(i) मेवाड़-मुकुट’ के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
(ii) ‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
(ज)
(i) ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
(ii) ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
(झ)
(i) ‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ii) मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य का कथासार प्रस्तुत कीजिए।