UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 3 धैर्यधनाः हि साधवः (कथा – नाटक कौमुदी)

By | May 21, 2022

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 3 धैर्यधनाः हि साधवः (कथा – नाटक कौमुदी)

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 3 धैर्यधनाः हि साधवः (कथा – नाटक कौमुदी)

 

परिचय

प्रस्तुत पाठ एक जातक-कथा है। जातक-कथाओं का सम्बन्ध सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) के पूर्वजन्म से है। बौद्ध विद्वानों का मानना है कि सिद्धार्थ को एक ही जन्म में बोधि प्राप्त नहीं हुई थी अनेक पूर्व जन्मों में दया, करुणा, परोपकार आदि का अभ्यास करके उन्होंने बोधि प्राप्त की। पिछले जन्मों में उनकी संज्ञा बोधिसत्त्व रूप में उल्लिखित है। जातक-कथाओं की रचना पालि-भाषा में हुई है, जिनका बाद में संस्कृत में अनुवाद किया गया। इनकी संख्या 500 के लगभग है और ये चीनी भाषा में भी अनूदित हो चुकी हैं। प्रस्तुत कथा “जातकमाला’ से ली गयी है, जिसका संकलन आर्यशूर नामक विद्वान् द्वारा किया गया है। प्रस्तुत कथा के अन्तर्गत बोधित्त्व एक नाविक के रूप में जन्म लेते हैं, जिनकी विशेषताएँ धर्म-पालन और विपत्तियों में धैर्य धारण करना है।

पाठ-सारांश

बोधिसत्त्व का जन्म – किसी समय बोधिसत्त्व (महात्मा बुद्ध का पूर्व जन्म) ने नाविक के रूप में जन्म लिया। वे इतने प्रतिभासम्पन्न थे कि जिन-जिन विषयों को जानना चाहते थे, उन्हें सहज ही जान लेते थे। वे तीक्ष्ण बुद्धि वाले, अनेक कलाओं के ज्ञाता, दिशा सम्बन्धी ज्ञान वाले, समुद्र-ज्ञाता और भावी संकटों के ज्ञाता थे। उनका नाम सुपारग और उनके नगर का नाम ‘सुपारगम्’ था। वृद्ध होते हुए भी व्यापारी उनका बहुत सम्मान करते थे तथा उन्हें अपने साथ लेकर समुद्री यात्रा करना शुभ मानते थे। उन्होंने अपने नाविक जीवन में समुद्री यात्राएँ करते-करते मछलियों और नाना रत्नों से परिपूर्ण अगाध जल वाले सागरों का अवगाहन कर उनके रहस्य को जान लिया था।

सुपारग का समुद्रयात्रा पर जाना – किसी समय भरुकच्छ से आये हुए कुछ व्यापारियों ने सुपारग से नाव पर बैठकर साथ चलने की प्रार्थना की। अत्यधिक वृद्ध होते हुए भी महात्मा सुपारग ने उनके साथ चलना स्वीकार कर लिया। व्यापारी प्रसन्न होकर अनेक समुद्रों को पार करते हुए उनके साथ यात्रा करते रहे।

मार्ग में बइवामुख समुद्र का आना – मार्ग में भयंकर तूफान आने के कारण वे कई दिन तक समुद्र में इधर-उधर भटकते रहे। उन्हें कहीं भी किनारा नहीं मिला। व्यापारी बहुत घबरा गये। सुपारग ने उन्हें समझाया कि घबराने से काम नहीं चलेगा। धीरज से काम लें। यह ‘खुरमाली’ नाम का समुद्र है। वायु के तीव्र झोंकों के कारण आप लोग इसे पार नहीं कर पा रहे हैं। येन-केन-प्रकारेण उसे समुद्र को पार करके वे ‘क्षीरसागर’ में पहुँचे और उसके बाद ‘अग्निमाली’ समुद्र में पहुँचे। इस प्रकार उन्होंने अनेक कष्टों को सहन करते हुए ‘कुशमाली’ और ‘नलमाली’ नामक भयंकर समुद्रों को पार किया। सुपारग बार-बार व्यापारियों को वापस चलने के लिए कहते रहे, लेकिन पर्याप्त प्रयास करने पर भी वे वापस न लौट सके और अत्यन्त भयानक, हृदयविदारक गर्जना करते हुए अन्ततः ‘बड़वामुख’ नामक समुद्र में जा पहुँचे। सुपारग ने उस समुद्र का परिचय दिया कि यह वह समुद्र है जिसमें पहुँचकर कोई भी मृत्यु के मुख से नहीं बच पाया है। व्यापारियों ने जीवन से निराश होकर सुपारग से कोई उपाय बताने के लिए कहा, जिससे वे सुरक्षित लौट सकें।

सुपारग द्वारा प्रार्थना करना – जीवन का अन्त निकट जानकर सभी व्यापारी करुणा से रोने लगे। तब सुपारंग ने नाव पर बैठे हुए ही घुटने टेककर तथागतों को प्रणाम करके कहा-मेरे पुण्य और अहिंसा के बल से यह नाव कल्याण सहित लौट जाये।

सुपारग द्वारा रत्नसहित व्यापारियों की कुशल वापसी – इसके बाद महात्मा सुपारग के पुण्य-बल से वह नाव अनुकूल वायु पाकर लौट पड़ी। नाव को लौटती देखकर सभी व्यापारियों को अत्यन्त प्रसन्नता और आश्चर्य हुआ। लौटते समय सुपारग ने व्यापारियों से कहा कि आप लोग नलमाली समुद्र से बालुका (रेत) और पत्थर नाव में भर लें। ये रेत और पत्थर निश्चय ही आपके लाभ के लिए होंगे। उन व्यापारियों ने सुपारग की बात मानते हुए समुद्री रेत और पत्थर को जहाज में भर लिया। इसके पश्चात् एक ही रात में वह नाव भरुकच्छ पहुँच गयी। प्रात: समय व्यापारियों ने नाव को चाँदी, इन्द्रनील, वैदूर्य, सुवर्ण आदि । से भरी देखकर हर्षित होकर सुपारग की पूजा की। वास्तव में सत्य बोलना और धर्म का आश्रय लेना कभी दुःखदायी नहीं होता-‘तदेवं धर्माश्रयं सत्यवचनमपि आपदं नुदति।’

चरित्र-चित्रण

सुपारग (बोधिसत्त्व) [2006,07,08, 09, 10, 11, 12, 13, 15]

परिचय प्राचीनकाल में बोधिसत्त्व ने एक नाव के सह-संचालक के रूप में जन्म ग्रहण किया। वे अत्यन्त तीक्ष्ण बुद्धि, कलाओं में निपुण, संकटों में धैर्य रखने वाले, दिशाओं के ज्ञाता और समुद्रविषयक रहस्यों के सूक्ष्म जानकार थे। समुद्रविषयक ज्ञान के कारण उनका नाम ‘सुपारग’ पड़ा। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1.समुद्रयात्रा के ज्ञाता – सुपारग को समुद्रविषयक रहस्यों की सूक्ष्म जानकारी थी। वे कुशल नाविक थे और उन्होंने सुदूर देशों तक समुद्र की यात्रा की थी। उन्हें समुद्रयात्रा का गहन अनुभव, जानकारी तथा इस सम्बन्ध में दूर-दूर तक प्रसिद्धि भी थी। यही कारण था कि अशक्त और वृद्ध होते हुए भी वे व्यापारियों के द्वारा यात्रा पर ले जाये जाते थे और प्रत्येक विपत्ति में उनका साथ देते थे।

2. उदार हृदय – सुपारग उदार हृदय वाले व्यक्ति थे। वह प्रार्थना करने वालों की प्रार्थना अवश्य स्वीकार कर लेते थे। इसीलिए अशक्त और वृद्ध होते हुए भी वे भरुकच्छ से आये हुए व्यापारियों की प्रार्थना स्वीकार करके उनके साथ प्रस्थान करते हैं। इससे सुपारग की उदारता प्रकट होती है।

3. साहसी – सुपारग अत्यन्त साहसी व्यक्ति थे। वे भयंकर-से-भयंकर समुद्र की यात्रा करने में भी साहस को नहीं छोड़ते थे। व्यापारी जब अपने जीवन से पूर्णत: निराश हो चुके थे, तब भी वे साहस का परिचय देते हुए भगवान् से सबको सकुशल लौटाने की प्रार्थना करते हैं तथा अपने पुण्यबल व अहिंसाबल से जहाज को भरुकच्छ लौटा लाते हैं।

4. दयावान् – सुपारग उच्चकोटि के दयावान् हैं। वृद्ध होने पर भी वे व्यापारियों की प्रार्थना पर उनके साथ समुद्री यात्रा करना स्वीकार कर लेते हैं तथा उनको जीवन से निराश देखकर जहाज को सकुशल लौटाने की भगवान् से प्रार्थना करते हैं। यह उनकी दयालुता का परिचायक है।

5. अहिंसावादी – सुपारगं अंहिंसा सिद्धान्त को मानने वाले थे। वे प्राणिमात्र की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते थे और उसके लिए प्रयत्नशील रहते थे। वे अपने अहिंसा-बल से ईश्वर से प्रार्थना करकें नाव को वापस ले आते हैं और व्यापारियों के प्राणों की रक्षा करते हैं। इस कथा में उनका यह रूप स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

6. हितैषी और मित्र – ‘सुपारग व्यापारी वर्ग के सच्चे हितैषी और मित्र हैं। नलमाली समुद्र को पार करते समय उसके गुणों से परिचित होने के कारण वे उसकी मिट्टी, बालू एवं पत्थरों को व्यापारियों से नाव में भर लेने के लिए कहते हैं, क्योंकि वे यह जानते थे कि ये रेत और पत्थर अन्त में सुवर्ण और रत्न बन जाएँगे। उनका यह कार्य उनके व्यापारी वर्ग के हितैषी और मित्र होने का परिचायक है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सुपारग समुद्री यात्रा के ज्ञाता, उदार हृदय, साहसी, दयावान्, अहिंसावादी आदि गुणों से युक्त तो थे ही, उनमें परोपकारपरायणता, जनहित-चिन्तन, कोमल-हृदयता, तपस्विता आदि अन्य बहुत-से गुण भी विद्यमान थे। निश्चय ही सुपारग का चरित्र एक आदर्श पुरुष का चरित्र है।

लघु उत्तटीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कोऽयं सुपारगः ? कस्मात् तस्यायं नाम ? [2009, 15]
उत्तर :
सुपारगः बोधिसत्त्वः एव आसीत्। सः समुद्रपारं गत्वा वणिजाम् ईप्सितं देशं प्रापयिता नाविकः आसीत्, अतः जनाः तं सुपारगनाम्ना कथयन्ति स्म।

प्रश्न 2.
सुपारगः वणिग्साहाय्ये कथमसमर्थो जातः ?
उत्तर :
सुपारगः जराशिथिलशरीरत्वात् वणिग्साहाय्ये असमर्थः जातः

प्रश्न 3.
वणिजः कीदृशं समुद्रम् अवजगाहिरे ? [2006]
उत्तर :
वणिज: विविधमीनकुलविचरितं, बहुविधरत्नैर्युतम् अप्रमेयतोयं, महासमुद्रम् अवजगाहिरे।

प्रश्न 4.
वणिज: कान्कान् समुद्रान् ददृशुः ?
उत्तर :
वणिजः खुरमालिनं, क्षीरार्णवम्, अग्निमालिनं, कुशमालिनं, नलमालिनं, बडवामुखं च समुद्रान् ददृशुः।

प्रश्न 5.
सायाह्नसमये वणिजः कीदृशीं समुद्रध्वनिम् अश्रौषुः ?
उत्तर :
सायाह्नसमये वणिजः श्रुतिहृदयविदारणं समुद्रध्वनिम् अश्रौषुः।

प्रश्न 6.
महत्या करुणया उपेतः सुपारगः वणिग्जनान् किमुवाच?
या
सुपारगः वणिग्जनान् किम् उवाच ?
उत्तर :
‘महत्या करुणया उपेतः सुपारगः वणिग्जनान् उवाच-अस्यापि नः कश्चित् प्रतीकारविधिः प्रतिभाति तत्तावत् प्रयोक्ष्ये इति।

प्रश्न 7.
नलमालिसमुद्रेभ्यः प्राप्तबालुकाः पाषाणाश्च प्रभाते कीदृशाः जातः ?
उत्तर :
नलमालिसमुद्रेभ्य: प्राप्तबालुका: पाषाणाश्च प्रभाते रजते, इन्द्रनील, वैदूर्य, हेमरूपाः जाताः।

प्रश्न 8.
धर्माश्रयं सत्यवचनम् आपदं कथं नुदति ?
उत्तर :
धर्माश्रयं सत्यवचनम् आपदम् ईश्वरस्मरणमात्रेणैव नुदति।

प्रश्न 9.
सुपारगः कः आसीत्? [2009,11]
उत्तर :
सुपारगः बोधिसत्त्वः आसीत्।

प्रश्न 10.
कस्य नाम सुपारगः आसीत्?
उत्तर :
बोधिसत्त्वस्य नाम सुपारगः आसीत्?

प्रश्न 11. 
जातकमालायाः रचयिता कः? [2009, 10, 12, 13, 14, 15]
उत्तर :
जातकमालायाः रचयिता ‘आर्यशूर:’।

बहुविकल्पीय प्रश्न

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर-रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए
[संकेत – काले अक्षरों में छपे शब्द शुद्ध विकल्प हैं।]

1. ‘धैर्यधना: हि साधवः’ नामक पाठ किस ग्रन्थ से उधृत है ?

(क) नागानन्दम्’ से
(ख) ‘जातकमाला’ से
(ग) भोजप्रबन्ध’ से
(घ) ‘प्रबोधचन्द्रोदय’ से

2. “धैर्यधनाः हि साधवः’ नामक पाठ किस महान् व्यक्तित्व से सम्बन्धित है ?

(क) ईसा मसीह से
(ख) महावीर स्वामी से
(ग) गौतम बुद्ध से
(घ) भगवान् कृष्ण से

3. ‘जातकमाला’ नामक ग्रन्थ के रचयिता कौन हैं? [2008, 11, 15]

(क) आर्यशूर
(ख) महर्षि वाल्मीकि
(ग) हर्षवर्द्धन
(घ) महर्षि व्यास

4. ‘धैर्यधनाः हि साधवः” नामक पाठ में बोधिसत्त्व का क्या नाम है ?

(क) कुपारग
(ख) अपारग
(ग) सपारग
(घ) सुपारग

5. सुपारग वणिजों की सहायता करने में क्यों असमर्थ हो गये थे ?

(क) मूढ़ाधिक्य के कारण रिण
(ख) गर्वाधिक्य के कारण
(ग) जराधिक्य के कारण
(घ) धनाधिक्य के कारण

6. व्यापारियों ने सबसे पहले कौन-सा समुद्र देखा?

(क) खुरमाली
(ख) क्षीरार्णव
(ग) कुशमाली
(घ) नलमाली

7. भयानक, दुःखदायी और हृदयविदारक गर्जना करने वाला समुद्र कौन-सा था ?

(क) नलमाली
(ख) बड़वामुख
(ग) अग्निमाली
(घ) कुशमाली

8. बड़वामुख समुद्र से नौका को लौटाने के लिए सुपारग ने क्या उपाय किया?

(क) मन्त्रों का प्रयोग किया।
(ख) ईश्वर से प्रार्थना की
(ग) नौका को वापस मोड़ लिया
(घ) नौका को स्वतन्त्र छोड़ दिया

9. सुपारगनाव को किसके बल से लौटाने में समर्थ हुआ ?

(क) बाहुबल से
(ख) अहिंसा बल से
(ग) सत्याधिष्ठान बल से
(घ) सत्याधिष्ठान और अहिंसा के बल से

10. जल-प्रवाह के विपरीत लौटी नौका किस समुद्र में पहुँच गयी ?

(क) अग्निमाली
(ख) नलमाली
(ग) कुशमाली
(घ) क्षीरार्णव

11. किस समुद्र के रेत और पत्थरों को सुपारग ने व्यापारियों से अपनी नौका में भरने को कहा था?

(क) अग्निमाली के
(ख) नलमाली के
(ग) खुरमाली के
(घ) कुशमाली के

12. व्यापारियों ने नौका में भरे रेत और पत्थरों के स्थान पर क्या वस्तु पायी ?

(क) विभिन्न रत्न
(ख) विभिन्न मोती
(ग) विभिन्न मछलियाँ
(घ) विभिन्न ओषधियाँ

13. “बोधिसत्त्वभूतः किल महासत्त्वः परमनिपुणमतिः ………………… बभूव।” में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी –

(क) ‘पोतचालक:’ से
(ख) ‘नौसारथिः’ से
(ग) “सारथिः’ से
(घ) “सांयात्रिकः’ से

14. “यतो न भेतव्यमतः किं तु …………………… अयं समुद्रः तद्यतध्वं निवर्तितुम्।” में रिक्त-स्थान में आएगा –

(क) कुशमाली
(ख) खुरमाली
(ग) अग्निमाली
(घ) नलमाली

15. “अस्माकं काल इवायं नलमाली नाम सागरः।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?

(क) कुशमाली
(ख) सुपारग
(ग) श्रीमाली
(घ) वनमाली

16. …………………… समुपेतास्थ तदेतद् बडवामुखम्।” श्लोक की चरण-पूर्ति होगी –

(क) ‘शिवम्’ से
(ख) ‘सुन्दरम्’ से
(ग) “सत्यम्’ से
(घ)’अशिवम्’ से

17. “मम पुण्यबलेन अहिंसाबलेन चेयं नौः स्वस्तिविनिवर्त्तताम्।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?

(क) सुपारगः
(ख) कुशमाली
(ग) श्रीमाली
(घ) वणिकः

18. “तदेव ………………….. आश्रयं सत्यवचनमपि आपदं नुदतीति।” में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी –

(क) ‘सत्य’ से
(ख) “अहिंसा से
(ग)’धर्म’ से
(घ) “अधर्म’ से

19. सुपारगः ………………. आसीत्।

(क) व्यापारी
(ख) नाविकः
(ग) सैनिक:
(घ) कविः

20. पूर्वजन्मनि सुपारगः …………………… आसीत्। [2006, 10]

(क) ईन्द्रः
(ख) बोधिसत्वः
(ग) नृपः
(घ) अर्जुनः

21. सुपारगः ……………………… ज्ञाता आसीत्। [2007]

(क) वेदानां शास्त्राणां
(ख) रत्नानाम् समुद्राणां
(ग) वनस्पतीनां फलानाम्
(घ) संगीतशास्त्राणाम्

22. सुपारगः ……………….. नाम बभूव। [2008, 10]

(क) वणिजः
(ख) पत्तनस्य
(ग) ग्रामस्य
(घ) नौसारथेः

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