UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 4 Animal Kingdom (प्राणि जगत)

By | June 4, 2022

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 4 Animal Kingdom (प्राणि जगत)

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 4 Animal Kingdom (प्राणि जगत)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
यदि मूलभूत लक्षण ज्ञात न हों तो प्राणियों के वर्गीकरण में आप क्या परेशानियाँ महसूस करेंगे?
उत्तर :

  1. यदि मूलभूत लक्षण ज्ञात नहीं हैं तब सभी जीवों का पृथक रूप से अध्ययन करना सम्भव नहीं होगा।
  2. जीवों के मध्य परस्पर सम्बन्ध स्थापित करना कठिन होगा।
  3. एक वर्ग के सभी जन्तुओं की केवल एक या दो जीवों के अध्ययन से जानकारी प्राप्त करना सम्भव नहीं होगा।
  4. अन्य जन्तु जातियों का विकास नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 2.
यदि आपको एक नमूना (specimen) दे दिया जाये तो वर्गीकरण हेतु आप क्या कदम अपनाएँगे?
उत्तर :

  1. संगठन के स्तर (levels or grades of organisation)
  2.  संगठन का पैटर्न (patterns in organisation)
  3. सममिति (symmetry)
  4. द्विकोरिक तथा त्रिकोरिक संगठन (diploblastic and triploblastic organisation)
  5. देहगुहा (body cavity) तथा प्रगुहा (coelom) 6. खण्डीभवन (segmentation)

प्रश्न 3.
देहगुहा एवं प्रगुहा का अध्ययन प्राणियों के वर्गीकरण में किस प्रकार सहायक होता है?
उत्तर :
देहभित्ति एवं कूटगुहा (pseudocoelom) के बीच प्रगुहा की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति वर्गीकरण के लिए विशेष प्रयोजनीय है। देहगुहा जब मीसोडर्म से स्तरित रहता है तब इसे सीलोम (coelom) कहते हैं। जिन जन्तुओं में सीलोम उपस्थित रहता है उन्हें सीलोमेटा (coelomata) कहते हैं, जैसे एनेलिडा, मोलस्का, आर्थोपोडा, इकाइनोडर्मेटा , हेमीकॉडेंटा तथा कॉडेंटा। कुछ जन्तुओं में देहगुहा मीसोडर्म द्वारा स्तरित नहीं होती, लेकिन एक्टोडर्म एवं एण्डोडर्म के बीच छोटी-छोटी गोलाकार आकृति में छितरा रहता है। इस तरह की देहगुहा को आहारनाल कहते हैं एवं उन जन्तुओं को स्यूडोसीलोमेटा (pseudocoelomata) कहते हैं, जैसे-एस्केल्मिंथीज (Aschelminthes)। जिन जन्तुओं में देहगुहा अनुपस्थित रहती है उन्हें एसीलोमेट्स (acoelomates) कहते हैं, जैसे-प्लेटीहेल्मिंथीज (Platyhelminthes)।

प्रश्न 4.
अन्तः कोशिकीय एवं बाह्य कोशिकीय पाचन में विभेद करें।
उत्तर :
अन्तः कोशिकीय एवं बाह्य कोशिकीय पाचन में निम्नलिखित अन्तर है
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प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष परिवर्धन में क्या अन्तर है?
उत्तर :
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष परिवर्धन में निम्नलिखित अन्तर हैं

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प्रश्न 6.
परजीवी प्लेटीहेल्मिंथीज के विशेष लक्षण बताइए।
उत्तर :

  1. टेगुमेन्ट (tegument) का मोटा स्तर उपस्थित।
  2. पोषक (host) के शरीर में ऊतकों से चिपकने के लिये चूषक (suckers) और प्रायः कंटक या अंकुश (spines or hooks) उपस्थित।
  3. चलन अंग (locomotory organs) अनुपस्थित।
  4.  कुछ चपटे कृमि खाद्य पदार्थ को परपोषी से सीधे अपने शरीर की सतह से अवशोषित करते हैं।
  5. जनन तन्त्र (reproductive system) पूर्ण विकसित होता है।
  6. प्रायः अवायवीय श्वसन (anaerobic respiration) पाया जाता है।

प्रश्न 7.
आर्थोपोडा प्राणी समूह का सबसे बड़ा वर्ग है। इस कथन के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर :

  1. सुरक्षा के लिए क्युटिकल (cuticle) की उपस्थिति।
  2. विकसित पेशी तन्त्र गमन में सहायक।
  3. कीटों में श्वसनलियों द्वारा श्वसन (tracheal respiration) से सीधे ऑक्सीजन प्राप्त होती है।
  4. संधियुक्त उपांगों (jointed appendages) द्वारा विभिन्न कार्य सम्भव होते हैं।
  5. तन्त्रिका तन्त्र (nervous system) तथा संवेदी अंग (sense organs) विकसित होते हैं।
  6.  संचार हेतु फेरोमोन्स (pheromones) पाये जाते हैं।

प्रश्न 8.
जल संवहन तन्त्र किस वर्ग का मुख्य लक्षण है
(a) पोरीफेरा
(b) टीनोफोरा
(e) इकाइनोडर्मेटा
(d) कॉडेंटा
उत्तर :
(c) इकाइनोडर्मेटा

प्रश्न 9.
सभी कशेरुकी (vertebrates) रज्जुकी (chordates) हैं लेकिन सभी रज्जुकी कशेरुकी नहीं हैं इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
सभी कॉडेंट्स (chordates) में पृष्ठ रज्जु (notochord) पायी जाती है। कॉडेंट्स के अन्तर्गत यूरोकॉडेंटा तथा सेफैलोकॉडेंटा (दोनों को प्रोटोकॉडेंटा कहा जाता है) तथा वर्टीब्रेटा सम्मिलित हैं। कशेरुकियों (vertebrates) में पृष्ठ रज्जु (notochord) भ्रूणीय अवस्था में पायी जाती है। वयस्क अवस्था में पृष्ठ रज्जु अस्थिल अथवा उपास्थिल मेरुदंड (backbone) में परिवर्तित हो जाती है। यद्यपि प्रोटोकॉडेंटस में वर्टिब्रल कॉलम (vertibral column) नहीं पायी जाती है। अतः कशेरुकी (vertebrates) रज्जुकी (chordates) भी हैं, परन्तु सभी रज्जुकी, कशेरुकी नहीं हैं।

प्रश्न 10.
मछलियों में वायु-आशय (air bladders) की उपस्थिति का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
मछलियों में वायु कोष/आशय (air bladders) उत्प्लावन (buoyancy) में सहायक होते हैं। इनकी सहायता से मछलियाँ जल में तैरती हैं। वायु कोष इन्हें जेल में डूबने से बचाते हैं। वायु कोष वर्ग ओस्टिक्थीज (osteichthyes) में पाये जाते हैं जबकि वर्ग कॉन्ड्रीक्थीज (chondrichthyes) में अनुपस्थित होते हैं। जिन मछलियों में वायु कोष नहीं होते हैं उन्हें जल में डूबने से बचने के लिये लगातार तैरना पड़ता है।

प्रश्न 11.
पक्षियों में उड़ने हेतु क्या-क्या रूपान्तरण हैं?
उत्तर :

  1. अग्रपाद (forelimbs) रूपान्तरित होकर पंख बनाते हैं।
  2. अन्त: कंकाल की लम्बी अस्थियाँ खोखली तथा वायुकोष युक्त होती हैं, जिससे शरीर हल्का रहता है।
  3.  मूत्राशय (urinary bladder) अनुपस्थित होता है।
  4.  उड़ने में सहायक पेशियाँ (flight muscles) विकसित होती हैं।

प्रश्न 12.
क्या अण्डजनक तथा जरायुज द्वारा उत्पन्न अण्डे या बच्चे संख्या में बराबर होते हैं? यदि हाँ तो क्यों? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर :
नहीं, अण्डजनक (oviparous) जन्तुओं में अण्डे से बच्चा मादा शरीर के बाहर अर्थात् बाह्य वातावरण में विकसित होता है। अत: बहुत से अण्डों के नष्ट होने की संभावना होती है। इसलिए ये जन्तु अधिक संख्या में अण्डे देते हैं। जरायुज (viviparous) जन्तुओं में भ्रूण का विकास मादा शरीर के अन्दर होता है। अतः केवल 1 या कुछ बच्चे ही उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से शारीरिक खण्डीभवन किसमें पहले देखा गया?
(a) प्लेटीहेल्मिंथीज
(b) एस्केल्मिंथीज
(c) एनेलिडा
(d) आर्थोपोडा
उत्तर :
(c) एनेलिडा

प्रश्न 14.
निम्न का मिलान कीजिए
(a) प्रच्छद (Operculum)  –  (I) टीनोफोरा (Ctenophora)
(b) पाश्र्वपाद (Parapodia)   – (II) मोलस्का (Mollusca)
(c) शल्क (Scales)  – (III) पोरीफेरा (Porifera)
(d) कंकत पट्टिका(Comb plates)  – (IV) रेप्टीलिया (Reptillia)
(e) रेडूला (Radula)  – (V) एनेलिडा (Annelida)
(f) बाल (Hairs)  – (VI) साइक्लोस्टोमेटा एवं कॉन्ड्रीक्थीज (Cyclostomata and Chondrichthyes)
(g) कीपकोशिका (Choanocytes)  – (VII) मैमेलिया (Mammalia)
(h) क्लोम छिद्र (Gill slits)  –  (VIII) ऑस्टिक्थीज (Osteichthyes)
उत्तर :
(a) (VIII)
(b) (V)
(c) (IV)
(d) (I)
(e) (II)
(f) (VII)
(g) (III)
(h) (VI)

प्रश्न 15.
मनुष्यों पर पाये जाने वाले कुछ परजीवियों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  1. टीनिया (फीताकृमि)
  2. एस्केरिस (गोलकृमि)
  3. वुचेरेरिया (फाइलेरिया कृमि)
  4. एनसाइकोस्टोमा (अंकुश कृमि)
  5. ट्राइचुरिस (व्हीप कृमि)
  6. ड्रेकुनकुलस (गुइनिया कृमि)
  7. पेडीकूलस (जू)

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐसे जीव जो पानी की सतह पर उतराते रहते हैं, वे क्या कहलाते हैं?
(क) नितलस्थ
(ख) पिलैजिक
(ग) प्लवकीय
(घ) उभयचरी
उत्तर :
(ग) प्लवकीय

प्रश्न 2.
संघ पोरीफेरा का वर्गीकरण किस पर आधारित है ?
(क) नालतंत्र
(ख) कंटिकाएँ
(ग) कोएनोसाइट्स का आकार
(घ) एस्कोसाइट्स
उत्तर :
(ख) कंटिकाएँ

प्रश्न 3.
स्पंजों में ‘टोटीपोटेन्ट’ कोशिकाएँ होती हैं।
(क) थीजोसाइट्स
(ख) ट्रोफोसाइट्स
(ग) आर्किओसाइट्स
(घ) कोएनोसाइट्स
उत्तर :
(ग) आर्किओसाइट्स

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन स्वतंत्रजीवी है?
(क) फैसिओला
(ख) टीनिया
(ग) प्लैनेरिया
(घ) सिस्टोसोमा
उत्तर :
(ग) प्लैनेरिया

प्रश्न 5.
क्लाइटेलम केंचुए के किन खण्डों में होता है?
(क) 19, 20 तथा 21
(ख) 14, 15 तथा 16
(ग) प्रथम तीन खण्ड
(घ) अन्तिम तीन खण्ड
उत्तर :
(ख) 14, 15 तथा 16

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
(क) दोमुँहा सर्प (इरिक्स जोनाई) में मुँह आगे तथा पीछे दोनों ओर होते हैं।
(ख) बड़ों की अपेक्षा छोटे स्तनधारी प्राणियों की आधारी उपापचय दर (बी०एम०आर०) प्रायः अधिक होती है
(ग) फैसिओला हिपेटिका में गुदा द्वार तथा वास्तविक सीलोम नहीं पाया जाता
(घ) एड्रीनल ग्रन्थि से स्रावित हॉर्मोन्स को ‘जीवन-रक्षक’ हॉर्मोन्स भी कहते हैं।
उत्तर :
(क) दोमुँहा सर्प (इरिक्स जोनाई) में मुँह आगे तथा पीछे दोनों ओर होते हैं।

प्रश्न 7.
पक्षियों के वायु-कोष सहायक होते हैं।
(क) रुधिर परिसंचरण में
(ख) ताप नियन्त्रण में
(ग) शरीर भार को कम करने में
(घ) शरीर को गर्म रखने में
उत्तर :
(ग) शरीर भार को कम करने में

प्रश्न 8.
निम्न में से किसकी अनुपस्थिति में चिड़िया चमगादड़ से भिन्न होती है ?
(क) समशीतोष्णता (समतापता)
(ख) चतुर्वेश्मी हृदय
(ग) श्वासनली
(घ) डायफ्राम
उत्तर :
(घ) डायफ्राम

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्पंज के व्यक्तित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
यह बहुकोशिकीय जन्तु होता है जिसका शरीर ऊतकों में विभाजित नहीं होता है। यह जन्तु जलीय होता है तथा अधिकांशतः समुद्रों में, पत्थरों पर, शिलाओं पर, लकड़ी के लट्ठों, अन्य जन्तुओं के खोलों आदि पर चिपका रहता है। इसके शरीर की रचना अति सरल होती है। इसकी देहभित्ति में असंख्य सूक्ष्मछिद्र होते हैं जिससे बाहरी जल से लगातार इसका सम्पर्क रहता है। यह जल छिद्रों से अन्दर स्पंजगुहा में आता है तथा ऑस्कुलम से बाहर निकल जाता है।

प्रश्न 2.
प्रोटोस्टोमिया तथा ड्यूटेरोस्टोमिया में दो अन्तर बताइए।
उत्तर :

  1. प्रोटोस्टोमिया जन्तुओं का एक समूह है जिसके अन्तर्गत आर्थोपोडा, मोलस्का,ऐनेलिडा तथा अन्य समूह आते हैं। ड्यूटेरोस्टोमिया भी जन्तुओं का एक समूह है, परन्तु इसके अन्तर्गत इकाइनोडर्मेटा, कॉडेंटा, एग्नेथा तथा बैंकिओपोडा समूह आते हैं।
  2. प्रोटोस्टोमिया में पहले मुख को निर्माण होता  है जबकि ड्यूटेरोस्टोमिया में पहले गुदा का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
केंचुआ तथा तिलचट्टे के उत्सर्जन अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  1. केंचुआ के उत्सर्जी अंग – वृक्कक
  2. तिलचट्टे के उत्सर्जी अंग – मैल्पीघियन नलिकाएँ

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित जन्तुओं का वर्गीकरण कीजिए
(i) मकड़ी
(ii) टिड्डी
(iii) तारामीन या सितारा मछली
(iv) घोंघा (पाइला)/सेब घोंघा
(V) कटल फिश
(vi) केंचुआ
(vii) हाइड्रा
(viii) घरेलू मक्खी
(ix) फीताकृमि
(x) लिवर फ्लूक
(xi) यूग्लीना
(xii) पैरामीशियम
(xiii) जोंक
(xiv) समुद्री अर्चिन
(xv) पुर्तगीज मैन ऑफ वार

उत्तर :


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प्रश्न 2.
हाइड्रा में श्रम विभाजन पर टिप्पणी लिखिए। या ऊतकीय विभेदीकरण की परिभाषा दीजिए। हाइड्रा के शरीर की संरचना के सन्दर्भ में इसे संक्षेप में समझाइए।
उत्तर :
ऊतकीय विभेदन तथा शरीर क्रियात्मक श्रम विभाजन प्रत्येक जीवधारी गमन, श्वसन, पोषण, उत्सर्जन, वृद्धि, जनन आदि जैविक क्रियाएँ करने में सक्षम होता है। प्रोटोजोआ संघ के सदस्य एककोशिकीय (unicellular) होने पर भी उपर्युक्त क्रियाएँ सम्पन्न कर पाते हैं, जबकि उच्च श्रेणी के जन्तु बहुकोशिकीय होते हैं तथा विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्रियाओं के लिए उनके अनुसार विशिष्ट ऊतक तन्त्रों एवं अंगों का निर्माण कर लेते हैं। हेनरी मिल्नी एडवर्ड (Henry Milne Edward,1800-1885) के अनुसार, जिस प्रकार मानव समाज में कार्यों का विभाजन (जैसे—अध्यापक, चिकित्सक, इन्जीनियर, कृषक, बढ़ई, लुहार, अन्य मजदूर आदि) होता है, उसी प्रकार प्राणियों के शरीर में जैविक क्रियाओं के लिए कोशिकाओं के बीच क्रियात्मक श्रम विभाजन होता है। प्राणी जगत् में हाइड्रा से ही वास्तविक संरचनात्मक विभेदीकरण तथा इससे सम्बन्धित क्रियात्मक श्रम विभाजन प्रारम्भ हुआ है। हाइड्रो एक द्विस्तरीय (diploblastic) प्राणी है और इसकी देहभित्ति के एक्टोडर्म व एण्डोडर्म स्तर विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से बने होते हैं। ये कोशिकाएँ विभिन्न कार्यों के लिए उपयोजित होती हैं।

एक्टोडर्म की उपकला-पेशी कोशिकाएँ मुख्यत: रक्षात्मक होती हैं तथा शरीर के फैलने व सिकुड़ने में सहायता प्रदान करती हैं। अन्तराली कोशिकाएँ रूपान्तरित होकर अन्य प्रकार की कोशिकाओं को जन्म देती हैं। जनन कोशिकाएँ केवल जनन में योगदान देती हैं। दंश कोशिकाएँ सुरक्षा, आक्रमण, चिपकने एवं शिकार पकड़ने का कार्य करती हैं। ग्रन्थिम-पेशी कोशिकाएँ हाइड्रा को आधार से चिपकने एवं गमन में सहायता करती हैं। एण्डोडर्म की पोषक-पेशी कोशिकाएँ अमीबा के समान हाइड्रा को भोजन के प्राणिसम अन्तर्ग्रहण (holozoic ingestion) में सहायता करती हैं। हाइड्रा में कोई विशिष्ट संवहन व उत्सर्जन तन्त्र नहीं पाया जाता है। इस प्रकार, हाइड्रा एक सरल द्विस्तरीय प्राणी है, जिसमें संरचनात्मक विभेदीकरण के क्रियात्मक श्रम विभाजन से सम्बन्धित होने के कारण जैविक क्रियाएँ सुविधापूर्वक सम्पन्न होती हैं।

प्रश्न 3.
पोरीफेरा संघ में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के नाल तन्त्रों का उल्लेख कीजिए। या नाल तन्त्र क्या है ? साइकॉननाल तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए तथा ल संवहन पथ को  तीरों द्वारा प्रदर्शित कीजिए। नाल तन्त्र के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। या निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए-स्पंज में नाल तन्त्र।
उत्तर :
संघ-पोरीफेरा (स्पंजों) में नाल तन्त्र स्पंजों के शरीर की भित्ति में अनेक छिद्रों एवं नलियों का जाल बना होता है, जिसके माध्यम से कीप कोशिकाओं (choanocytes) के कशाभिकों (flagella) की निरन्तर गति होते रहने से स्पंज गुहा (Spongocoel) में जल प्रवाह की धारा अविरल बनी रहती है। इसे नाल तन्त्र या नाल प्रणाली (canal system) कहते हैं। नाल तन्त्र स्पंजों के शरीर का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तन्त्र होता है। स्पंजों की सम्पूर्ण कार्यिकी; जैसे-श्वसन, उत्सर्जन, पोषण आदि नाल तन्त्र में प्रवाहित होने वाले जल द्वारा ही पूरी होती है।

नाल तन्त्रों के प्रकार

स्पंजों में शारीरिक संगठन की जटिलता के आधार पर निम्नलिखित प्रकार के नाल तन्त्र पाये जाते हैं।

1. एस्कॉन प्रकार का नाल तन्त्र :
स्पंजों में पाया जाने वाला यह सबसे सरल प्रकार का नाल तन्त्र है। इस प्रकार के नाल तन्त्र में स्पंज गुहा (spongoceal) के अन्दर उपस्थित कीप कोशिकाओं की कशाभिकाओं की निरन्तर गति के कारण बाहरी जल की अविरल धारा असंख्य ऑस्टिया (रन्ध्रों) से होकर सीधे स्पंज गुहा में प्रवेश करती है और ऑस्कुलम से होकर बाहर निकलती है। इस प्रकार स्पंज का पूरा शरीर एक नाले तन्त्र का कार्य करता है। ल्यूकोसोलेनिया Leucosolenia) नामक सरल स्पंज में इसी प्रकार का नाल तन्त्र पाया जाता है।
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2. साइकॉन प्रकार की नाल तन्त्र :
इस प्रकार का नाल तन्त्र साइकॉन (स्काइफा) एवं कुछ अन्य स्पंजों में पाया जाता है। यह मूलतः एस्कॉन प्रकार के नाल तन्त्र की भित्ति में अनुप्रस्थ वलन (transverse folds) हो जाने से बनता है। इससे स्पंज की देहभित्ति, पास-पास सटी व शरीर के अक्ष के समकोण पर स्थित अनेक महीन नलिकाओं का रूप ले लेती है, जिन्हें अरीय नाल (radial canals) कहते हैं। प्रत्येक अरीय नाल बाहर की ओर बन्द होती है और भीतर की ओर एक बड़े छिद्र द्वारा स्पंज गुहा में खुलती है जिसे निर्गम छिद्र या अपद्वार या एपोपाइल (apopyle) कहते हैं। इस प्रकार के नाल तन्त्र में ऑस्टिया अरीय नलिकाओं की भित्ति में होते हैं जिन्हें आगामी द्वार या प्रोसोपाइल (prosopyle) कहते हैं। कीप कोशिकाएँ केवल अरीय नालों को स्तरित करती हैं। स्पंज गुहा का भीतरी स्तर पिनैकोसाइट कोशिकाओं का होता है। अरीय नालों की भित्ति के बीच के स्थान अन्तर्वाही नालों (incurrent canals) का रूप ले लेते हैं। ये स्पंज गुहा की ओर बन्द किन्तु शरीर की बाहरी सतह पर खुलती हैं। बाहरी जल पहले अन्तर्वाही नालों में आता है और आगामी द्वार या प्रोसोपाइल (prosopyle) में होकर अरीय नलिकाओं (जिन्हें कशाभीनलिकाएँ भी कहते हैं) में और फिर एपोपाइल्स द्वारा स्पंज गुहा में आता है। स्पंज गुहा में आया हुआ ल ऑस्कुलम से होकर बाहर निकल जाता है।

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3. ल्यूकॉन प्रकार का नाल तन्त्र :
यह सबसे जटिल प्रकार का नाल तन्त्र है। इस प्रकार का नालतन्त्र स्पॉन्जिला (Spongilla) आदि स्पंजों में पाया जाता है। इसका निर्माण कशाभिकी लिकाओं की दीवार के वलन से होता है। वलन के कारण इन नलिकाओं की दीवार में छोटे-छोटे गोले कक्ष बन जाते हैं। इन कक्षों को कशाभिकी कक्ष flagellated chambers) कहते हैं। कीप कोशिकाएँ इन कक्षों की दीवार पर ही सीमित रह जाती हैं। अरीय नलिकाओं की गुहाओं के चारों ओर पिनैकोसाइट्स का स्तर होता है। इन्हें अपवाही नलिकाएँ (excurrent canals) कहते हैं। इसमें बाहरी जल पहले अन्तर्वाही नलिकाओं (incurrent canals) में, फिर प्रोसोपाइल्स से कशाभी कक्षों में और एपोपाइल्स से अपवाही नलिकाओं में से होता हुआ स्पंज गुहा में आकर ऑस्कुलम से बाहर निकल जाता है।

प्रश्न 4.
दंश कोशिकाओं की संरचना एवं कार्य समझाइए। या हाइड्रा में पायी जाने वाली दो प्रकार की दंश कोशिकाओं का सचित्र वर्णन कीजिए। , या हाइड्रा की दंश कोशिका की स्खलित अवस्था का एक नामांकित चित्र बनाइए (वर्णन की । आवश्यकता नहीं है)। या हाइड्रा में पायी जाने वाली पेनीट्रैण्ट प्रकार की दंश कोशिकाओं का सचित्र वर्णन कीजिए। या टिप्पणी लिखिए-दंश कोशिका।
उत्तर :

दंशिका की संरचना

दंश कोशिका की इस थैलीनुमा रचना का मुख्य भाग सम्पुट (capsule) कहलाता है। सम्पुट के अग्र सिरे पर भित्ति अन्दर की ओर धंसकर एक गड्डा बनाती है, जो झिल्ली द्वारा ढका रहता है। इस गड्ढे में पायी जाने वाली सूक्ष्म कणिकाओं में एक विशिष्ट पदार्थ भरा रहता है। यह सम्पुट के ढक्कन (lid of operculum) का कार्य करता है। भीतर की ओर धंसने वाली भित्ति एक लम्बे, कुण्डलित वे काँटेदार सूत्र (thread) में रूपान्तरित होती है।

दंशिकाओं के प्रकार

संध निडेरिया के विभिन्न सदस्यों में पायी जाने वाली दंश कोशिकाओं में लगभग 30 प्रकार की दंशिकाएँ होती हैं। हाइड्रा में कुल चार प्रकार की दंशिकाएँ पायी जाती हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।

1. स्टीनोटील्स अथवा पेनीटैण्ट्स (Stenoteles or Penetrants) :
ये सबसे बड़ी व जटिल रचना वाली दंशिका हैं। इनके बड़े कुन्दे पर स्टाइलेट्स व शूल (stylets and spines) पाये जाते हैं। इनके सूत्रों पर भी शूलों (spines) की तीन सर्पिल पंक्तियाँ होती हैं।

2. होलोट्राइकस आइसोराइजाज (Holotrichous Isorhizas) :
ये कुछ लम्बी, अण्डाकार तथा कुन्दविहीन होती हैं। इनका सूत्र लम्बा व सिरे पर खुला होता है। इन पर स्पाइन्स की केवल एक ही सर्पिल पंक्ति होती है।

3. एट्राइकस आइसोराइजाज (Atrichous Isorhizas) :
ये कुछ छोटी होती हैं तथा इनके सूत्रों पर स्पाइन्स नहीं पाये जाते हैं।

4. डेस्मोनीम या वॉलवेण्ट (Desmoneme Or Volvent) :
सबसे छोटी, 9 μ व्यास की, नाशपाती के आकार की, गोल व अण्डाकार इन दंशिकाओं को सूत्र छोटा, मोटा, सिरे पर बन्द व कुन्दविहीन होता है। ये एक ही बार कुण्डलित होती हैं तथा इन पर केवल कुछ ही स्पाइन्स पाये जाते हैं।

5.दंशिकाओं का दगना या स्खलन (Dscharge of Nematocysts)
उत्तेजित होने पर दंश कोशिकाओं के सूत्र तुरन्त झटके के साथ ऑपरकुलम को धकेल कर बाहर निकल आते हैं। इस प्रकार भीतरी पदार्थ एवं काँटे सूत्र के साथ दंशिका की बाहरी सतह पर आ जाते हैं। इवान्जोफ (Iwanzoff, 1895) के मतानुसार दंशिका में जब भी द्रव्य का दबाव बढ़ता है तो यह स्खलित हो जाती है।

दंशिकाओं के कार्य

  1.  स्टीनोटील्स या पेनीट्रैण्ट्रेस का सूत्रे भोजन योग्य शिकार के सम्पर्क में आने पर तेजी से दगकर  शिकार के शरीर में चुभ जाता है। यह हिप्नोटॉक्सिन (hypnotoxin) नामक विषैले पदार्थ द्वारा शिकार को अचेत कर मार देता है।
  2.  डेस्मोनीम्स जब शिकार के सम्पर्क में आती हैं तो इनके सूत्र शिकार को चारों ओर से लपेटकर जकड़ लेते हैं।
  3. होलोट्राइकस आइसोराइजाज के सूत्रों के स्पाइन्स शत्रु के शरीर में घुसकर हाइड्रा को उससे बचाने में सहायता करते हैं।
  4. एट्राइकस आइसोराइजाज के सूत्र चिपचिपे होते हैं। ये उपयुक्त आधार पर स्पर्शकों को चिपकने में सहायता करते हैं। इस प्रकार ये हाइड्रा को गमन में सहयोग देते हैं।

प्रश्न 5.
ज्वाला कोशिका किसे कहते हैं? यह किस जन्तु में पायी जाती हैं? इसके कार्य लिखिए। या ज्वाला कोशिकाओं की संरचना एवं कार्य समझाइए।
उत्तर :
ज्वाला कोशिकाएँ या शिखा कोशिकाएँ ये विशेष प्रकार की उत्सर्जी (excretory) कोशिकाएँ हैं जिनमें प्रमुखतः दो भाग होते हैं।

  1.  कोशिका का प्रमुख अण्डाकार भाग कोशिका काय (cell body) कहलाता है। इसको शिखा कन्द (flame bulb) भी कहते हैं। इसी भाग में केन्द्रक (nucleus) होता है। इसकी सतह से लगभग सभी ओर शाखित प्रवर्द्ध (cytoplasmic processes) निकले रहते हैं जो पैरेन्काइमा में इधर-उधर फैले रहते हैं।
  2. शिखा कन्द से एक ओर एक लम्बा सँकरा तथा नाल के समान भाग होता है जिसका अन्दर का खोखला भाग कन्द के अन्दर उपस्थित गुहा से सम्बन्धित होता है। यह गुहा काफी चौड़ी होती है। इसके चौरस भाग के जीवद्रव्य में छोटे-छोटे कई आधार कण (basal granules) होते हैं। जिनसे कशाभिकाएँ (flagella) निकलकर गुहा में लटकी रहती हैं तथा एक लौ के समान हर समय काँपती रहती हैं। ये आपस में गुच्छा बनाती हैं। यह गुहा सँकरी होकर एक महीने नलिका के रूप में अन्य नलिकाओं से सम्बन्धित रहती है।

ज्वाला कोशिकाएँ प्लेटीहेल्मिन्थीज समूह की उत्सर्जन इकाइयाँ होती हैं। टीनिया जैसे अन्त:परजीवी जन्तुओं में इनका कार्य स्पष्ट नहीं है।

प्रश्न 6.
नर तथा मादा ऐस्कैरिस में अन्तर स्पष्ट कीजिए। या मनुष्य के शरीर में पाये जाने वाले गोलकृमि का वैज्ञानिक नाम व वासस्थान (अंग) लिखिए तथा उनके नर व मादा के एक-एक पहचान के लक्षण बताइए।
उत्तर :
मनुष्य में पाया जाने वाला गोलकृमि-ऐस्कैरिस लम्ब्रीकॉयडिस (Ascaris lumbricoides)। इसका वासस्थान (अंग)-मनुष्य की आँत।

नर तथा मादा ऐस्कैरिस में अन्तर

प्रश्न 7.
निम्नलिखित के नामांकित चित्र बनाइए

(क) मादा ऐस्कैरिस के मध्य भाग की अनुप्रस्थ काट।
(ख) नर ऐस्कैरिस के मध्य भाग की अनुप्रस्थ काट।

उत्तर :

(क)
मादा ऐस्कैरिस के मध्य भाग की अनुप्रस्थ काट

(ख)
नर ऐस्कैरिस के मध्य भाग की अनुप्रस्थ काट

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 4 Animal Kingdom 19

प्रश्न 8.
केंचुए के आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए या “केंचुए किसानों के परम मित्र हैं?” संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। या केंचुए की जैव पारिस्थितिकी एवं आर्थिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
केंचुए का आर्थिक महत्त्व केंचुए ‘किसान के मित्र’ कहे जाते हैं, क्योंकि वे खेतों की मिट्टी को सुरंगें बनाकर पोली कर देते हैं तथा नीचे की मिट्टी को ऊपर पलट देते हैं, जिससे भूमि अधिक उपजाऊ बनती है। इसके साथ ही केंचुए कार्बनिक पदार्थों को सुरंगों में ले जाते हैं जो खाद के रूप में सहायक होते हैं तथा केंचुए स्वयं भी मरकर सुरंगों के अन्दर खाद के रूप में बदल जाते हैं। केंचुए से मनुष्य को खेती के लिए उपजाऊ भूमि प्राप्त करने के अतिरिक्त अन्य लाभ भी हैं; जैसे

  1. ऑस्ट्रेलिया की आदिम जातियाँ केंचुए को भोजन के रूप में ग्रहण करती हैं।
  2.  काँटों में लगाकर मछलियों को पकड़ने हेतु इसे चारे के रूप में प्रयोग करते हैं।
  3. अपने देश में गठिया रोग के लिए यह औषधि बनाने के काम में आता है।
  4. प्रयोगशाला में अध्ययन सामग्री के रूप में प्रयोग किया जाता है। केंचुओं से होने वाली हानियाँ कोई विशेष महत्त्व नहीं रखती हैं। कई बार वर्षा ऋतु में इनके द्वारा बनायी गयी सुरंगों के ढेर मृदा अपरदन का कारण बन जाते हैं। केंचुओं की कुछ जातियाँ पान, इलायची, धान आदि के पौधों के लिए हानिकारक होती हैं।

प्रश्नु 9.
किन्हीं दो ऐसे लक्षणों को लिखिए जो नॉन-कॉडेंट्स को कॉडेंट्स से पूर्णतः विभेदित करते हैं?
उत्तर :

कॉडेंट एवं नॉन-कॉडेंट में अन्तर


UP Board Solutions for Class 11 Bio logy Chapter 4 Animal Kingdom image 20

प्रश्न 10.
निम्नलिखित के संघ सहित जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए

(क) जेली फिश (jelly fish)
(ख) सिल्वर फिश (silver fish)
(ग) स्टार फिश (star fish)
(घ) डॉग फिश (dog fish)
(ङ) कबूतर (pigeon)
(च) खरगोश (rabbit)
(छ) जोंक (leech)

उत्तर :
सामान्य नाम :

प्रश्न 11.
चमगादड़ का वर्गीकरण वर्ग तक कीजिए तथा इसके दो लक्षण लिखिए।या चमगादड़ चिड़ियों के समान उड़ता है फिर भी इसे स्तनी वर्ग में क्यों रखा गया है ?
उत्तर :
लक्षण :

  1. शरीर पर बाल (hair) तथा बाह्य कर्ण (pinna) होते हैं।
  2.  मादा बच्चे उत्पन्न करती है तथा अपनी स्तन ग्रन्थियों से बच्चों को दूध पिलाती है। उपर्युक्त दोनों ही लक्षण स्तनियों के मूल लक्षण हैं। इनके शरीर पर अथवा विकास में पक्षियों के कोई लक्षण; जैसे शरीर पर परों (feathers) की उपस्थिति आदि नहीं होते हैं अतः इन्हें स्तनी वर्ग में ही रखा जाता है।


प्रश्न 12.
कारण बताइए

(अ) हेल मछली नहीं, स्तनधारी है। क्यों?
(ब) एकिडना अण्डे देता है, फिर भी स्तनधारी वर्ग का सदस्य है। क्यों?
उत्तर :
ह्वेल मछली तथा एकिडना दोनों को ही संघ कॉडेंटा वर्ग-स्तनधारी में रखा गया है, क्योंकि इनमें बाल तथा स्तन ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। दाँत, विषमदन्ती एवं गर्तदन्ती होते हैं। ग्रीवा कशेरुकाओं की संख्या सात होती है। मध्य कर्ण में तीन छोटी अस्थियाँ पाई जाती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित जन्तुओं का वर्गीकरण कीजिए

(i) जेली फिश (jelly fish)
(ii) मेंढक (frog)
(iii) गौरेया (sparrow)
(iv) कुत्ता मछली (स्कोलिओडॉन) (dog fish)
(v) समुद्री घोड़ा (sea horse)
(vi) घरेलू छिपकली (wall lizard)
(vii) नाग(cobra)
(viii) कबूतर (pigeon)
(ix) आधुनिक मनुष्य (modern man)
(x) झींगा मछली (prawn)
(xi) तिलचट्टा (cockroach)
(xii) टोड  (toad)
(xiii) ड्रैको (Draco)
(xiv) खरगोश (rabbit)

प्रश्न 2.
कॉडेटा संघ के प्राणियों के मूल लक्षणों का सविस्तार वर्णन कीजिए। स्तनी वर्ग के प्राणियों को उपवर्ग तक प्रमुख लक्षणों एवं उदाहरण सहित वर्गीकृत कीजिए। या स्तनी वर्ग के प्राणियों के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए तथा प्रोटोथेरिया, मेटाथेरिया एवं यूथेरिया में उदाहरणों सहित अन्तर बताइए। या पृष्ठवंशी के चार मूल लक्षणों को लिखिए।
उत्तर :

संघ-कॉडेंटा के प्रमुख लक्षण

  1. कॉडेटा संघ के प्राणियों का शरीर द्विपार्श्व सममित (bilaterally symmetrical), देहगुहीय (coelomate) तथा त्रिजनस्तरीय (triploblastic) होता है।
  2.  इनके जीवन में किसी-न-किसी अवस्था में शरीर के मध्य पृष्ठ भाग में मेरुदण्ड अथवा नोटोकॉर्ड (notochord) अवश्य ही पाया जाता है।
  3.  इनमें जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में ग्रसनी (pharynx) की दीवार में एक जोड़ा गिल दरारों (gills clefts) को अवश्य बनती है।
  4.  इनमें शरीर के पृष्ठ मध्य तल में मस्तिष्क से लेकर शरीर के पिछले सिरे तक विस्तृत एक खोखली केन्द्रीय तन्त्रिका नाल (central neural tube) पायी जाती है।
  5.  इनमें हृदय देहगुहा में अधर तल पर स्थित होता है तथा रुधिर परिसंचारी तन्त्र बन्द (closed) प्रकार का होता है।
  6. इनमें रुधिर में लाल रुधिर कणिकाएँ (red blood corpuscles) पायी जाती हैं जिनमें ऑक्सीजन ग्राही हीमोग्लोबिन (haemoglobin) नामक लाल वर्णक पाया जाता है

स्तनधारियों (मैमेलिया) के प्रमुख लक्षण

  1.  इस वर्ग के जन्तु नियततापी होते हैं अर्थात् इनका ताप सदैव एक-सा रहता है।
  2.  इन जन्तुओं की त्वचा रोमयुक्त होती है। अधिकतर जन्तुओं का शरीर बालों (hair) से ढका रहता है।
  3.  इनमें बाह्य कर्ण (external ears) पाये जाते हैं।
  4. मादी में स्तन ग्रन्थियाँ (mammary glands) होती हैं, जिनसे ये नवजात शिशु को दूध पिलाती है।
  5.  गर्दन में केवल सात ग्रीवा कशेरुकाएँ (cervical vertebrae) होती हैं।
  6. त्वचा में तेल ग्रन्थियाँ (oil glands) तथा स्वेद ग्रन्थियाँ (sweat glands) होती हैं।
  7. देहगुहा एक पेशीय मध्यछद या डायफ्राम (diaphragm) द्वारा वक्षीय गुहा तथा उदरगुहा (thoracic and abdominal cavity) में बँटी रहती है।
  8. हृदय में चार कोष्ठ (four chambers) होते हैं तथा यह पूर्ण विकसित होता है। केवल बायाँ दैहिक चाप (left systemic arch) ही उपस्थित होता है।
  9.  मुख गुहिका (buccal cavity) नासामार्ग (nasal passage) से एक उपास्थि-अस्थि की प्लेट से अलग रहती है।
  10. श्वसन केवल फेफड़ों (lungs) के द्वारा होता है।
  11.  कपाल तन्त्रिकाएँ (cranial nerves) बारह जोड़े होती हैं।
  12.  नर स्तनधारियों में शिश्न (penis) के रूप में मैथुन अंग होता है तथा वृषण (testes) उदरगुहा के बाहर वृषण कोषों (scrotal sacs) में पाये जाते हैं।
  13.  योनि एकल (vagina single) होती है तथा दोनों गर्भाशय परस्पर पूर्णतः मिले रहते हैं।
  14. निषेचन मादा के शरीर के अन्दर अण्डवाहिनी (fallopian tube) में होता है।
  15.  बच्चों को जन्म देते हैं जिनका परिवर्द्धन गर्भाशय (uterus) में होता है। (कुछ स्तनधारी; जैसे-एकिडना (echidna) तथा डकबिल प्लेटीपस या ऑर्निथोरिंकस (Ornithorhynchus) अण्डे देते हैं।

स्तनधारियों का वर्गीकरण

पुराने वर्गीकरण में वर्ग मैमेलिया को सीधे तीन उपवर्गों (subclasses) में बाँट दिया करते थे-प्रोटोथेरिया, मेटाथेरिया तथा यूथेरिया किन्तु वर्तमान में वर्ग मैमेलिया को दो उपवर्गो-प्रोटोथेरिया (prototheria) तथा थेरिया (theria) में वर्गीकृत करते हैं।

उपवर्ग 1.
प्रोटोथेरिया :

  1.  चुचुक स्पष्ट नहीं होते, स्तन ग्रन्थियाँ सक्रिय।
  2. अण्डे देते हैं शिशु बाहर ही अण्डे से निकलता है।
  3.  जरायु (placenta) उपस्थित नहीं।
  4.  एक ही छिद्र अवस्कर द्वार (Cloacal aperture) के रूप में।
  5.  मस्तिष्क में कॉर्पस कैलोसम अनुपस्थित।

उदाहरण :

(i) डकबिल प्लेटोपस (Duckbill platypus) या ऑर्निथोरिंकस (Ornithorhynchus),
(ii) एकिडना (echidna) आदि।

उपवर्ग 2.
थेरिया

अधिवर्ग 1 :

पैण्टोथेरिया (Pantotheria) :
सभी जन्तु विलुप्त हो चुके हैं।

अधिवर्ग 2 :

मेटाथेरिया (Metatheria) :
कुछ ही जन्तु जीवित हैं। इनके निम्नलिखित लक्षण हैं।

  1.  मादा के उदर पर चूचुकों को ढके हुए त्वचा की थैली होती है, इसे शिशुधानी या मार्क्सपियम (marsupium) कहते हैं। जन्म के समय शिशु अपरिपक्व होते हैं। ये रेंगकर, शिशुधानी में पहुँचकर, अपने मुख द्वारा चूचुकों से चिपक जाते हैं तथा दुग्धपान करते हैं।
  2.  कपाल गुहा छोटी होती है।
  3. दाँत जीवन में केवल एक ही बार निकलते हैं (monophyodont)
  4.  जरायु (placenta) अल्प विकसित अथवा अनुपस्थित होता है।
  5. गर्भाशय तथा योनि जोड़े में (paired) होते हैं।

उदाहरण :

(i) ऑस्ट्रेलिया का कंगारू (Macropus)
(ii) तस्मानिया का डैसीयूरस (Dasyurus)
(iii) अमेरिका : का ओपोसम (Opossum or Didelphis)

अधिवर्ग 3.

यूथेरिया (Eutheria) :
पूर्ण विकसित स्तनी हैं। इनके निम्नलिखित लक्षण हैं।

  1. मादा के गर्भाशय में भ्रूण एवं शिशु का जरायु (placenta) द्वारा पूर्ण पोषण होने से शिशु जन्म के समय पूर्ण परिपक्व।
  2. मार्क्सपियम अनुपस्थित, चूचुक भली-भाँति विकसित।
  3. कॉर्पस कैलोसम (corpus callosum) तथा मस्तिष्क भली-भाँति विकसित।
  4. गर्भाशय एवं योनि केवल एक-एक (uterus and vagina single) होते हैं।

उदाहरण :

(i) चूहा
(ii) खरगोश
(iii) चमगादड़
(iv) ह्वेल
(v) हाथी
(vi) मनुष्य आदि।

प्रश्न 3.
उभयचर वर्ग के प्राणियों के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए। इस वर्ग को गण तक उनके लक्षणों एवं उदाहरणों सहित वर्गीकृत कीजिए। या उभयचर वर्ग (क्लास एम्फिबिया) के दो प्राणियों के जन्तु-वैज्ञानिक नाम लिखिए तथा उनके चार प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर :

उभयचरों के प्रमुख लक्षण

  1.  ये जीवन चक्र का अधिकांश भाग जल व थल दोनों स्थानों पर पूरा करते हैं। इनके शरीर असमतापी (cold blooded) होते हैं। शरीर सिर, धड़ व पुच्छ में विभाज्य होता है।
  2. त्वचा शल्कविहीन होती है तथा इसमें अनेक श्लेष्म ग्रन्थियाँ (mucous glands) व विष ग्रन्थियाँ (poison glands) होती हैं। इस पर बाल या फर भी नहीं होते। त्वचा अधिकांशतः चिकनी तथा नम होती है। सभी ग्रन्थियाँ बहुकोशिकीय होती हैं।
  3. सभी में कायान्तरण (metamorphosis) पाया जाता है।
  4. अवस्कर वेश्म (cloacal chamber) उपस्थित होता है।
  5. करोटि (skull) में रीढ़ की अस्थि की प्रथम कशेरुका के साथ सन्धियोजन (articulation) के लिए दो पश्चकपाल मुण्डिकाएँ (occipital condyles) होती हैं।
  6. उँगलियों में नख या नखर (claws) आदि नहीं होते हैं।
  7. हृदय त्रिवेश्मी (three-chambered) होता है, दो अलिन्द (auricles) व एक निलय। इनकी लाल रुधिर कणिकाएँ (RBCS) केन्द्रकयुक्त (nucleated) होती हैं।
  8. उत्सर्जन वृक्कों (nephridia) द्वारा। ये यूरिया उत्सर्गी (ureotelic) होते हैं।
  9. ये अंडायुज (oviparous) होते हैं। अण्डे जल में या नम जगहों में दिये जाते हैं। इनके चारों ओर जेली की तरह लसलसे पदार्थ का सुरक्षात्मक आवरण होता है।
  10. एकलिंगी (unisexual) अर्थात् नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं। निषेचन आन्तरिक या पानी में होता है।
  11.  लारवा पूर्ण रूप से जलचारी होता है। इनमें श्वसन क्लोमों (gils) द्वारा होता है, जबकि वयस्क अवस्था में (केवल कुछ अपवादों को छोड़कर) फेफड़ों द्वारा तथा नम और रुधिर वाहिनियों के घने जाल से युक्त त्वचा द्वारा होता है।

उदाहरण :

1. सामान्य मेंढक  :
राना टिग्रीना तथा
2. टोड :
ब्यूफो मिलेनोस्टिक्टस

उभयचरों का वर्गीकरण

विलुप्त तथा जीवित सभी उभयचरों को पाँच उपवर्गों तथा 10 गणों में वर्गीकृत किया गया है।

A.
उपवर्ग लेबरिन्थोडोन्शिया (Labrinthodontia) :

विकास में पहले उभयचर। केवल विलुप्त जातियाँ। तीन गणों (orders) में वर्गीकृत; जैसे – सेमूरिया (Seymouria)

B.
उपवर्ग लीपोस्पोन्डाइली (Lepospondyli) :

सभी विलुप्त पुरातन उभयचर। तीन गंणों में वर्गीकृत; जैसे-डिप्लोकॉलस (Diplocaulus)।

C.
उपवर्ग सैलेन्शिया (Salientia) :

दो गण

  1. प्रोएन्यूरा (proanura) सभी विलुप्त
  2.  एन्यूरा (anura) कुछ विलुप्त और अन्य विद्यमान जातियाँ; जैसे-मेंढक तथा टोड (frogs and toads)

लक्षण :

  1.  वयस्क में पूंछ व क्लोम अनुपस्थित।
  2. धड़ छोटा, करोटि छोटी।
  3.  कशेरुकाएँ कम, अन्तिम कशेरुका छड़नुमा यूरोस्टाइल (urostyle)
  4.  पश्चपाद अग्रपादों से लम्बे, अँगुलियाँ जालयुक्त (webbed)
  5.  अन्त:कंकाल का काफी भाग उपास्थीय।
  6. अण्डनिक्षेपण, संसेचन एवं भ्रूणीय परिवर्धन जल में जीवन-वृत्त में मछली-सदृश भेकशिशु (tadpole) प्रावस्था। अतः कायान्तरण (metamorphosis) महत्त्वपूर्ण; जैसे-टोड (Bufo), हायला (Hyla), मेंढक (Rana)

D.
उपवर्ग यूरोडेला (Urodela) :

विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ, एक ही गण, कॉडेटा (Caudata)

लक्षण :

  1. शरीर सिर, धड़ एवं पूँछ में विभेदित धड़ लम्बा।
  2. दोनों जोड़ी पाद लगभग समान लम्बाई के।
  3.  मेखलाएँ उपास्थीय।
  4. जातियाँ कुछ पूर्णरूपेण जलीय, कुछ मुख्यत: स्थलीय; श्वसनांग जलीय जातियों में क्लोम, स्थलीय में फेफड़े।
  5. भेकशिशु वयस्क के समान अतः कायान्तरण स्पष्ट नहीं। उदाहरण-सैलामैण्डर (Salamender), नेक्ट्यू रस (Necturus) आदि।

E.
उपवर्ग ऐपोडा (Apoda) :

एक गण जिम्नोफियोना (Gymnophiona)

लक्षण :

  1. बिलों में रहने वाले पादविहीन उभयचर।
  2. शरीर लम्बा व सँकरा, देखने में केंचुए जैसा।
  3. पादों की मेखलाएँ नहीं।
  4. सिर सुरंग खोदने के लिए मजबूत, नेत्र अर्धविकसित, पलकरहित व प्रायः त्वचा से ढके।
  5.  त्वचा चिकनी, इस पर अनुप्रस्थ झुर्रियाँ।
  6. पूँछ छोटी या अनुपस्थित।
  7.  क्लोम (gills) केवल शिशु में। वयस्क में श्वसन फेफड़ों द्वारा; जैसे-इक्थियोफिस (Ichithyophis)

प्रश्न 4.
सरीसृप वर्ग के प्राणियों के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए तथा गण तक उदाहरण सहित वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर :

वर्ग रेप्टीलिया (सरीसृप) के प्रमुख
लक्षण :

  1. ये साधारणतः स्थलवासी होते हैं, लेकिन कुछ जलवासी भी होते हैं।
  2. इनमें बाह्य कर्ण छिद्र अनुपस्थित, लेकिन टिम्पैनम कर्ण उपस्थित हैं।
  3.  ये थल पर रेंगकर (repere = crawl) चलते हैं इसलिए, इस वर्ग को रेप्टीलिया कहा जाता है।
  4.  ये असमतापी जन्तु हैं।
  5. त्वचा में एपिडर्मल शृंगी शल्क (epidermal horny scales) पाए जाते हैं।
  6. त्वचा रुखी होती है। इसमें ग्रन्थियाँ (glands) नहीं होती हैं।
  7. अन्त:कंकाल अस्थि (bony) का बना होता है।
  8. खोपड़ी में केवल एक ऑक्सिपिटल कॉण्डाइल, (Occipital condyle) होता है।
  9.  क्लोम (gills) विकास की प्रारम्भिक अवस्था में पाए जाते हैं। वयस्क में श्वसन-क्रिया फेफड़े। (lungs) द्वारा होती है।
  10.  हृदय में दो अलिंद तथा आंशिक रूप से विभाजित एक निलय (ventricle) होता है।
  11. लाल रुधिर कणिकाएँ पाई जाती हैं।
  12. आहारनाल, जनन तथा मूत्रवाहिनियाँ क्लोएका में खुलती हैं, इसलिए पृथक्-पृथक् गुदा एवं जनन छिद्र नहीं होते हैं।
  13. साधारणतः अन्त:निषेचन (internal fertilization) होता है। अण्डे बड़े और चूनेदार (calcareous) कवच (shell) द्वारा आच्छादित रहते हैं।
  14.  इनमें कोई लार्वा अवस्था नहीं होती।

सरीसृपों का वर्गीकरण

सरीसृप वर्ग को निम्नलिखित 6 उपवर्गों में बाँटा गया है।

(क)
उपवर्ग ऎनेप्सिडा (Subclass Anapsida) :

करोटि का पृष्ठ भाग पूर्ण अर्थात् इसके टेम्पोरल क्षेत्र में कोई छिद्र (fossa) नहीं, क्वाड्रेट अस्थि कर्ण अस्थि से समेकित। तीन गण (orders), दो में केवल विलुप्त जातियाँ, केवल एक (किलोनिया) में विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ। गण किलोनिया (Order Chelonia)-विभिन्न प्रकार के कछुए (turtles, tortoises and terrapins)।

  1. जल में, कभी-कभी किनारे की नम भूमि पर आ जाते हैं।
  2.  शरीर चौड़ा, हॉर्न (horm) एवं अस्थि के बने कठोर खोल (shell) में बन्द। खोल का पृष्ठभाग पृष्ठवर्म अर्थात् कैरापेस (carapace) तथा अधर भाग प्लास्ट्रोन (plastron)} खोल पर चिम्मड़ त्वचा ढकी, त्वचा सपाट या षट्भुजीय प्रशल्कों (scutes) द्वारा ढकी।
  3.  सिर, पाद एवं पूँछ शल्कों से ढके। इन्हें खोल में समेटकर जन्तु शत्रुओं से रक्षा करता है।
  4. जबड़े हॉर्न के बने, दन्तविहीन।
  5. क्वाड्रेट हड्डी अचल।
  6.  अवस्कर छिद्र अनुलम्ब दरार के रूप में।
  7. नर में उत्तेजित होकर तनने वाला मैथुन अंग (copulatory organ) अर्थात् शिश्न (penis)
  8. मादा भूमि में गड्ढा बनाकर अण्डे देती और रेत से इन्हें ढक देती है।

उदाहरण :

ट्रायोनिक्स (Trionyx) :

भारतीय नदियों का कछुआ

  1. कीलोन (Chelone)
  2. टेस्टुडो (Testudo)

(ख)
उपवर्ग यूरेऐप्सिडा (Subclass Euryapsida) :

विलुप्त जातियाँ, दो गण।

(ग)
उपवर्ग सिनेप्सिडा (Subclass Synapsida) :

विलुप्त जातियाँ, दो गण।

(घ)
उपवर्ग इथिओप्टेरीजिया (Subclass Ichthyopterygia) :

विलुप्त जातियाँ, एक गण।

(ङ)
उपवर्ग लेपिडोसॉरिया (Subclass Lepidosauria) :

एक विलुप्त तथा दो विलुप्त एवं विद्यमान जातियों के गण।करोटि (skull) के टेम्पोरल क्षेत्र में दो जोड़ी टेम्पोरल छिद्र (temporal fossae)

विलुप्त एवं विद्यमान जातियों के दो गण निम्नलिखित हैं

1.
गण रिकोसिफैलिया (Order Rhynchocephalia) :

इसकी अब एक ही जाति स्फीनोडॉन पंक्टेटस (Sphenodon punctatus)-न्यूजीलैण्ड के निकट छोटे-छोटे द्वीपों में पाई जाती है। इसे स्थानीय लोग टुआटरा (Tuatara) कहते हैं। इसके लक्षण विलुप्त सरीसृपों जैसे हैं। अतः ये “जिन्दा जीवाश्म (living fossils)’ कहलाते हैं। लगभग 55 सेमी लम्बा शरीर छिपकली-जैसा और बहुत सुस्त। बिलों से रात्रि में निकलकर (nocturnal) केंचुओं, घोंघों, कीड़ों आदि को खाते हैं। उपापचय (metabolism) की दर बहुत कम, परन्तु आयु लगभग 100 वर्ष मध्यवर्ती तीसरा नेत्र तथा त्वचा की शल्कें दानों के रूप में। नर में मैथुन अंग नहीं। अण्डे छोटे। अवस्कर छिद्र दरार जैसा।

2.
गण स्क्वै मैटा (Order Squamata) :

छिपकलियाँ (lizards) एवं सर्प (snakes)

  1.  कुछ जलीय; शेष जंगलों, खेतों, घरों, बगीचों आदि में; कुछ बिलों में रहने वाले।
  2. तेजी से रेंगकर शत्रुओं से बचने की क्षमता।
  3.  त्वचा के हॉर्नी शल्कों के आवरण का समय-समय पर टुकड़ों या केंचुल के रूप में त्याग (moulting)
  4.  पूँछ लम्बी।
  5. जबड़े करोटि से दोनों ओर एक-एक चल क्वाड्रेट हड्डी द्वारा इस प्रकार जुड़े कि मुख-ग्रासने गुहिका बहुत चौड़ी खुल सकती है। दाँत जबड़ों की हड्डियों से समेकित (fused)
  6.  कशेरुकाएँ अग्रगर्ती (procoelous)
  7.  नर में दोहरा मैथुन अंग।
  8.  अवस्कर छिद्र अनुप्रस्थ दरार जैसा। दो उपगण

(अ)
उपगण लैसरटिलिया या सॉरिया (Suborder Lacertilia or Sauria) छिपकलियाँ।

  1. पाद प्रायः विकसित और पंजेदार।
  2.  नेत्रों की पलकें प्रायः चल।
  3. अंसमेखला प्रायः विकसित।
  4. निचले जबड़े के अर्धाश आगे परस्पर समेकित।
  5.  स्टर्नम, टिम्पैनम एवं मूत्राशय उपस्थित।
  6.  मस्तिष्क खोल आगे से खुला। उदाहरण-घरेलू छिपकली अर्थात् हेमोडेक्टाइलस (Hemidactylus), गोह अर्थात् वैरेनस (Varunus), साँडा अर्थात् यूरोमेस्टिक्स (Uromastix), विषैली छिपकली-हीलोडर्मा अर्थात् गिला मोन्स्टर (Heloderma-Gila monster) आदि।

(ब)
उपगण ओफीडिया या सर्पेन्टीज (Suborder Ophidia or Serpentes) सर्प।

  1. पाद स्टर्नम, टिम्पैनम, अंसमेखला तथा मूत्राशय प्रायः अनुपस्थित।
  2.  निचले जबड़े के अर्धांश आगे एक लचीले स्नायु (ligament) द्वारा जुड़े। अतः मुख शिकार को समूचा निगलने के लिए काफी फैल सकता है।
  3.  मस्तिष्क खोल आगे से बन्द।
  4. चल पलकों तथा बाह्य कर्णछिद्रों का अभाव।
  5. प्रायः लम्बी और आगे से कटी हुई जीभ संवेदांग का काम करती है।
  6. बायां फेफड़ा छोटा या अनुपस्थित।
  7.  दाँत पतले व नुकीले।
  8. मूत्राशय अनुपस्थित।

उदाहरण :

(i) अजगर (Python)
(ii) काला नाग या कोबरा (Cobra-Ngja)
(iii) करैत (Bungarus)
(iv) वाइपर (Viper)

(च)
उपवर्ग आर्कोसॉरिया (Subclass Archosauria) :

चार विलुप्त जातियों के गण। केवल एक गण, क्रोकोडिलिया, में विद्यमान जातियाँ।

गण क्रोकोडिलिया या लोरीकैटा (Order Crocodilia or Loricata) :

  1. गहरी नदियों, बड़ी झीलों आदि के वासी।
  2. शरीर छिपकलियों जैसा, परन्तु बड़ा व भारी। सबसे बड़े वर्तमान रेप्टाइल्स।
  3. सिर लम्बा एवं तुण्डाकार। इसके सिरे पर नासाद्वार (nostrils)।
  4. नेत्र बड़े व उभरे हुए। नासाद्वार, नेत्र तथा कर्ण एक सीध में।
  5. त्वचा मोटी व चिम्मड़। इस पर मोटी शल्कें (scales)शल्कों के नीचे, दृढ़ता के लिए, हड्डी की प्लेटें।
  6. पूँछ लम्बी, पाश्र्वो में चपटी।
  7.  पाद छोटे। अग्रपादों में 5-5 तथा पश्चपादों में 4-4 पंजेदार अँगुलियाँ। अँगुलियों के बीच जाल (web)। जालयुक्त पाद तथा चपटी पूँछ तैरने में सहायक।
  8. कशेरुकाएँ उभयगर्ती या अग्रवर्ती।
  9. क्वाड्रेट स्थिर।
  10.  मुखद्वार चौड़ा। जबड़े मजबूत। दाँत मजबूत, भीतर की ओर मुड़े और नुकीले। अवस्कर छिद्र अनुलम्बे दरारनुमा।
  11. मादा भूमि पर गड्ढे खोदकर इनमें अण्डे देती है।
  12. श्वसन फेफड़ों द्वारा।
  13.  मूत्राशय अनुपस्थित। इनका चमड़ा कीमती होता है। उदाहरण-भारतीय घड़ियाल या गैवियेलिस (Guvialis), ऐलीगेटर (Alligator), क्रोकोडाइलस (Crocodilus-मगरमच्छ)

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