UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 2 Forms and Nature of Education (शिक्षा के स्वरूप एवं प्रकृति)
UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 2 Forms and Nature of Education (शिक्षा के स्वरूप एवं प्रकृति)
वस्तुत उतरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
औपचारिक शिक्षा तथा अनौपचारिक शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इन दोनों का अन्तर : स्पष्ट कीजिए।
या
शिक्षा के औपचारिक स्वरूप का वर्णन कीजिए।
या
औपचारिक शिक्षा से क्या आशय है?
या
शिक्षा के औपचारिक एवं अनौपचारिक स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
या
निरौपचारिक (अनौपचारिक) शिक्षा क्या है? उदाहरण दीजिए।
उतर:
व्यक्ति एवं समाज दोनों ही के लिए शिक्षा का विशेष महत्त्व है। शिक्षा एक व्यापक प्रक्रिया है। शिक्षा के अनेक प्रकार अथवा स्वरूप देखे जा सकते हैं। शिक्षा के प्रकारों का निर्धारण भिन्न-भिन्न आधारों पर किया जा सकता है। जब हम शिक्षा के नियमों एवं उसकी व्यवस्था को आधार मानकर शिक्षा के प्रकारों का निर्धारण करते हैं, तब हमारे सम्मुख शिक्षा के मुख्य रूप से दो स्वरूप या प्रकार प्रस्तुत होते हैं, जिन्हें क्रमश: औपचारिक शिक्षा (Formal Education) तथा अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education) कहा जाता है। शिक्षा के इन दोनों प्रकारों के अर्थ, साधनों एवं अन्तर आदि का विवरण निम्नवत् है
औपचारिक शिक्षा
(Formal Education)
औपचारिक शिक्षा, जिसे नियमित या सांविधिक शिक्षा भी कहते हैं, बालकों को विचारपूर्ण तथा सुव्यवस्थित ढग से दी जाने वाली शिक्षा है। औपचारिक शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए जे० मोहन्नी ने लिखा है, “इस प्रकार की शिक्षा की योजना सोच-विचारकर और जान-बूझकर बनाई जाती है। इसके पाठ्यक्रम की रूपरेखा पहले से ही तैयार कर ली जाती है और इसके उद्देश्य भी पहले से ही निश्चित कर लिए जाते हैं।” स्पष्ट है इस शिक्षा की योजना पहले ही तैयार कर ली जाती है और इसका ध्येय भी निश्चित कर लिया जाता है। औपचारिक शिक्षा में पूर्व-निर्धारित रूपरेखा के अन्तर्गत बालकों को निश्चित समय पर निश्चित ज्ञान प्रदान किया जाता है। विशेष प्रकार की संस्थाओं में निश्चित व्यक्ति (शिक्षक) निश्चित विधियों के माध्यम से औपचारिक शिक्षा देते हैं। शिक्षा के इस स्वरूप में पाठ्यक्रम, समय-सारणी तथा पुस्तकें अत्यन्त आवश्यक समझी जाती हैं। शिक्षा के इस प्रकार के अन्तर्गत नियमित परीक्षाओं की व्यवस्था होती है तथा परीक्षाओं के आधार पर योग्यता का प्रमाण-पत्र भी प्रदान किया जाता है। वर्तमान समाज में औपचारिक शिक्षा के मुख्यतम अभिकरण विद्यालय या स्कूल-कॉलेज हैं। इनके अतिरिक्त पुस्तकालय, वाचनालय तथा संग्रहालय एवं कलावीथियाँ आदि भी औपचारिक शिक्षा के अभिकरण हैं। औपचारिक शिक्षा केवल एक निश्चित अवधि तक ही चलती है।
अनौपचारिक शिक्षा
(Informal Education)
अनौपचारिक शिक्षा को अनियमित या अविधिक या निरौपचारिक शिक्षा भी कहा जाता है। यह शिक्षा बालक को अनायास तथा आकस्मिक रूप से प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में जन्म से अन्त तक चलती रहती है। अनौपचारिक शिक्षा का कोई विचार, पूर्व-योजना, सुव्यवस्थित ढंग, सुनिश्चित स्थान, निश्चित समय और कोई निश्चित नियम नहीं होता। यह तो हर समय और हर स्थान पर किसी-न-किसी रूप में चलती रहती है। मुख्य रूप से अनौपचारिक शिक्षा अनुभवों पर आधारित शिक्षा है; अत: इसे अनुभव द्वारा प्राप्त की गई शिक्षा भी कहते हैं। यह शिक्षा किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी व्यक्ति को प्रदान की जा सकती है। परिवार, धर्म, राज्य, समाज, युवकों का समूह, खेल का मैदान, रेडियो, टेलीविजन, समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ–अनौपचारिक शिक्षा के मुख्य साधन या अभिकरण हैं।
प्रश्न 2.
शिक्षाशास्त्र एक विज्ञान है या कला अथवा दोनों ही? अपने मत के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
या
शिक्षाशास्त्र की प्रकृति पर प्रकाश डालते हुए बताइए कि यह एक विज्ञान है या कला।
या
“शिक्षाशास्त्र न तो शुद्ध विज्ञनि है और न ही शुद्ध कला।” आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
या
“शिक्षा कलाा है।” स्पष्टतया समझाइए।
उतर:
शिक्षाशास्त्र की प्रकृति : विज्ञान अथवा कला
(Nature of Education : Science or Art)
शिक्षाशास्त्र की प्रकृति के सम्बन्ध में वैचारिक मतभेद दृष्टिगोचर होते हैं। शिक्षाशास्त्र एक विज्ञान है या कला?-आज यह एक विवादास्पद प्रश्न है, जिसके सम्बन्ध में शिक्षाविदों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार शिक्षाशास्त्र एक विज्ञान है तो दूसरे विद्वानों के अनुसार यह एक कला है। अधिकांश विद्वानों की दृष्टि में शिक्षाशास्त्र न तो विशुद्ध विज्ञान है और न ही विशुद्ध कला, बल्कि शिक्षाशास्त्र अपने वैज्ञानिक और कलात्मक या व्यावहारिक पक्षों के कारण विज्ञान तथा कला दोनों है। शिक्षाशास्त्र की प्रकृति के विषय में सही निर्णय लेने से पहले आवश्यक है कि विज्ञान एवं कला की विशेषताओं से परिचय प्राप्त किया जाए। इसके साथ ही उन मौलिक सिद्धान्तों तथा मानदण्डों से परिचित भी होना चाहिए जिनके आधार पर ज्ञान की किसी शाखा को विज्ञान या कला की श्रेणी में रखा जाता है।
शिक्षाशास्त्र का वैज्ञानिक पक्ष
(Scientific Aspect of Education)
विज्ञान क्या है?- प्रसिद्ध विचारक ग्रीन के अनुसार, “विज्ञान अन्वेषण का तरीका है।” विज्ञान सत्य या सच्चे ज्ञान का अन्वेषण (खोज) करता है, फिर उस ज्ञान को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध करके कुछ नियम या सिद्धान्त बनाता है, जो निश्चित एवं सर्वमान्य होते हैं और समान परिस्थितियों में समान रूप से लागू होते हैं। बर्नेट का कथन है, “विज्ञान सामान्यतः जाँचा गया अनुभव है, प्रदत्तों-निष्कर्षों तथा सामान्य नियमों का एक संगठन है, जो अनुभवों से प्राप्त होता है, जिसके आधार पर घटनाओं तथा परिस्थितियों की सर्वोत्तम ढंग से व्याख्या या आलोचना की जाती है। वस्तुत: विज्ञान स्वयं में कोई विषय-सामग्री नहीं, अपितु वैज्ञानिक पद्धति से प्राप्त किया गया व्यवस्थित ज्ञान है।
क्या शिक्षाशास्त्र विज्ञान है?- विज्ञान की भाँति शिक्षा के कुछ निश्चित नियम, सिद्धान्त एवं कार्य होते हैं। इन सभी को विज्ञान की तरह से निर्धारित किया जाता है, इनके परिणाम निकाले जाते हैं तथा मूल्यांकन किया जाता है। आजकल शिक्षा से सम्बन्धित प्रत्येक क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धति को ही अपनाया जा रहा है। शैक्षिक अध्ययनों में भी वैज्ञानिक अध्ययनों की तरह से प्रदत्तों का संग्रह, विश्लेषण, वर्गीकरण, प्रायोगीकरण, सत्य का निर्धारण तथा नियमीकरण किया जाता है। सैद्धान्तिक स्तर पर शिक्षा-शिक्षण के लक्ष्यों, उद्देश्यों, . विधियों तथा नियमों का निर्धारण करती है, जिसमें वैज्ञानिक विधियों का आश्रय लिया जाता है। शिक्षा के पाठ्यक्रम से जुड़े अनेक अध्ययनों; जैसे-शैक्षिक मूल्यांकन, पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त, कक्षा-शिक्षण, सीखने के नियम, स्मरण की विधियों, अवधान तथा थकान आदि के अन्तर्गत भी वैज्ञानिक सिद्धान्तों तथा नियमों का ही प्रयोग होता है।
क्या शिक्षाशास्त्र विशुद्ध विज्ञान है?- यद्यपि शिक्षाशास्त्र एक विज्ञान है तथापि भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और गणित की भाँति इसे विशुद्ध विज्ञान नहीं कहा जा सकता। वस्तुत: विशुद्ध विज्ञानों का सम्बन्ध पदार्थों (Matter) से है, जब कि शिक्षाशास्त्र एक मानवीय विषय (Human Subject) है जिसका सम्बन्ध मनुष्य मात्र से होता है। इस प्रकार इसे सामाजिक विज्ञानों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त, विशुद्ध विज्ञान की तरह से शिक्षा के नियम तथा सिद्धान्त अपरिवर्तनशील, निश्चित एवं सार्वभौमिक नहीं होते। इनमें देश-काल, पात्र तथा व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। सत्य तो यह है कि शिक्षा का मानव के मन और आचरण से सीधा सम्बन्ध है जिसके विषय में निश्चित नियमों का प्रतिपादन नहीं किया जा सकता। शिक्षा से सम्बन्धित नियमों एवं सिद्धान्तों को सामान्य परिस्थितियों में ही लागू किया जा सकता है। यही कारण है कि शिक्षा को ‘विशुद्ध विज्ञान के स्थान पर ‘व्यावहारिक विज्ञान’ कहना अधिक उचित होगा।
शिक्षाशास्त्र कला के रूप में
(Education as an Art)
कला क्या है?- कला ‘निर्माण’ या ‘उत्पादन’ की एक प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य का कौशल निहित है। कला का उद्देश्य कुछ जानना (अर्थात् ज्ञान) न होकर कुछ ‘सृजन करना है। इस प्रकार विज्ञान एवं कला में उपयोगिता की दृष्टि से मौलिक भेद है। नृत्य, संगीत, मूर्तिकला, चित्रकारी तथा काष्ठकला आदि में निर्माण या सृजन का ही दृष्टिकोण प्रमुख होता है।
क्या शिक्षाशास्त्र कला है?- कला को एक ऐसी व्यावहारिक कुशलता कहा गया है जिसका प्रधान उद्देश्य रचना, निर्माण तथा सृजन है। शिक्षक एक कुशल कलाकार है और उसका शिक्षण-कार्य एक कला है। दूसरे शब्दों में, शिक्षक एक दक्ष कलाकार की तरह कक्षा में शिक्षण-कार्य करता है और बालकों के व्यक्तित्व का निर्माण करता है। उसके लिए विद्यालय एक कला-मन्दिर है, जिसमें अपने आदर्शों के अनुसार वह बालकों के मानस-पटल पर सुन्दर चित्र बनाता है। बालक के व्यवहार में वांछित परिवर्तन शिक्षक की शिक्षण-कला, पर निर्भर करता है। जो शिक्षक अपनी शिक्षण-कला में जितना अधिक पारंगत होता है, वह उतना ही अपने छात्रों का हित कर सकता है। इस दृष्टि से विचार करने पर शिक्षा को कला की संज्ञा दी जा सकती है।
क्या शिक्षाशास्त्र विशुद्ध कला है?- शिक्षा एक ‘कला और शिक्षक ‘कलाकार’ अवश्य है, किन्तु शिक्षक-चित्रकार, शिल्पी या संगीतज्ञ की तरह अपनी शिक्षण-कला को विशुद्ध एवं स्वतन्त्र प्रदर्शन नहीं कर सकता। वह किन्हीं सीमाओं के भीतर रहकर ही शिक्षण कार्य करता है। उसके शिक्षण की पद्धति बालकों की व्यक्तिगत भिन्नताओं; जैसे-शारीरिक-मानसिक-बौद्धिक शक्तियों, रुचियों, अभिरुचियों तथा क्षमताओं आदि; पर आधारित होती है और तदनुसार परिवर्तित भी होती रहती है। हाँ, यदि शिक्षक एक स्वतन्त्र कलाकार की भाँति स्वेच्छा से शिक्षण-कार्य कर पाता तो शिक्षा को विशुद्ध कला कहा जा सकता था, किन्तु उपर्युक्त तर्कों के अन्तर्गत उसे विशुद्ध कला’ क़ा नाम नहीं दिया जा सकता।
शिक्षाशास्त्र विज्ञान और कला दोनों ही है।
(Education is both a Science and an Art)
शिक्षा के वैज्ञानिक तथा कलात्मकं पक्षों की समीक्षा के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शिक्षाशास्त्र को न तो विशुद्ध विज्ञान की श्रेणी में रखा जा सकता है और न ही विशुद्ध कला की श्रेणी में। जहाँ तक शिक्षा की पद्धति, विधि, पाठ्यक्रम, समय-चक्र तथा कार्य-प्रणाली का प्रश्न है-इन्हें निर्मित करते समय शिक्षा की वैज्ञानिक प्रकृति लाभकारी सिद्ध होती है, किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से शिक्षण-कार्य के सन्दर्भ में शिक्षा की कलात्मक प्रकृति का ही महत्त्व है। नि:सन्देह और सर्वमान्य रूप से, ‘शिक्षाशास्त्र, विज्ञान और कला दोनों ही हैं।
लघु उतरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सामान्य शिक्षा तथा विशिष्ट शिक्षा से क्या आशय है? या विशिष्ट शिक्षा क्या है।
उतर:
समान्य तथा विशिष्ट शिक्षा
(General and Specific Education)
शिक्षा के उद्देश्य के आधार पर शिक्षा के दो प्रकारों का निर्धारण किया गया है, जिन्हें क्रमश: सामान्य शिक्षा तथा विशिष्ट शिक्षा के रूप में जाना जाता है। शिक्षा के इन दोनों प्रकारों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित
1. सामान्य शिक्षा- यह शिक्षा बालकों को सामान्य जीवन के लिए तैयार करती है। इस शिक्षा का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। इसके अन्तर्गत बालक को किसी व्यवसाय के लिए तैयार नहीं किया जाता, अपितु उसमें तत्परता लाने की दृष्टि से उसकी सामान्य बुद्धि को तीव्र करने का प्रयास किया जाता है। सामान्य शिक्षा को उदार शिक्षा भी कहा जाता है। भारत के माध्यमिक स्कूलों में इसी प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाती है।
2. विशिष्ट शिक्षा- यह शिक्षा किसी विशेष उद्देश्य को ध्यान में रखकर प्रदान की जाती है। यह विशेष उद्देश्य बालक को किसी विशेष दिशा में अपरिहार्य गुणों, कार्य-कुशलताओं तथा क्षमताओं से परिपूर्ण कर देता है। इस शिक्षा को प्राप्त करने के उपरान्त बालक जीवन के एक विशेष या निश्चित क्षेत्र; जैसे-डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, चित्रकार या एकाउण्टेण्ट आदि; में कार्य करने के लिए कुशलता एवं योग्यता प्राप्त कर लेता है। वर्तमान युग में जीविका उपार्जन के लिए तथा किसी भी क्षेत्र में विशेषज्ञ का स्थान अर्जित करने के लिए विशिष्ट शिक्षा को ही आवश्यक माना जाता है।
प्रश्न 2.
वैयक्तिक शिक्षा तथा सामूहिक शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट कीजिट।
उतर:
वैयक्तिक तथा सामूहिक शिक्षा
(Individual and Collective Education)
शिक्षक तथा विद्यार्थी या छात्र के आपसी सम्बन्धों के आधार पर शिक्षा के दो प्रकारों का निर्धारण किया गया है, जिन्हें क्रमश: वैयक्तिक शिक्षा तथा सामूहिक शिक्षा के रूप में जाना जाता है। शिक्षा के इन दोनों प्रकारों का संक्षिप्त विवरण अग्रलिखित है–
1. वैयक्तिक शिक्षा- यह शिक्षा सिर्फ एक बालक से सम्बन्धित शिक्षा है, जिसके अन्तर्गत बालक को व्यक्तिगत रूप से तथा अकेले सिखाया जाता है। शिक्षा देते समय बालक की प्रकृति, योग्यता, रुचि, अभिरुचि तथा व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखा जाता है और शिक्षण की समस्त क्रियाओं का प्रभाव भी उसी बालक पर केन्द्रित किया जाता है। इस शिक्षा में शिक्षक प्रचलित नवीन शिक्षण-विधियों का प्रयोग करता है। आधुनिक समय में वैयक्तिक शिक्षा पर काफी जोर दिया जा रहा है, परन्तु गरीब देशों में इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था कर पाना बहुत कठिन है।
2. सामूहिक शिक्षा- सामूहिक शिक्षा बालकों के समूह से सम्बन्धित है, जिसके अन्तर्गत बहुत-से बालक कक्षा में एक साथ बैठकर एक ही प्रकार की शिक्षा प्राप्त करते हैं। सामूहिक शिक्षा में सभी बालकों को समान स्तर पर समान शिक्षण-विधियों द्वारा शिक्षा दी जाती है और उनकी व्यक्तिगत योग्यताओं, प्रवृत्तियों, रुचियों, अभिरुचियों तथा विभिन्नताओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। वर्तमान में विश्वभर के सभी स्कूलों में सामूहिक शिक्षा का ही प्रचलन है। सामूहिक शिक्षा से केवल औसत क्षमताओं वाले छात्र ही लाभान्वित होते हैं। इस प्रकार की शिक्षा औसत से निम्न तथा औसत से उच्च-स्तर के छात्रों के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध नहीं होती है।
प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष शिक्षा तथा परोक्ष शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उतर:
प्रत्यक्ष शिक्षा तथा परोक्ष (अप्रत्यक्ष) शिक्षा
(Direct and Indirect Education)
शिष्य या विद्यार्थी पर शिक्षक के पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर भी शिक्षा के प्रकारों का निर्धारण किया गया हैं, जिन्हें क्रमश: प्रत्यक्ष शिक्षा तथा परोक्ष शिक्षा के रूप में जाना जाता है। शिक्षा के इन दोनों प्रकारों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है–
1. प्रत्यक्ष शिक्षा- अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा को अध्यापक तथा शिक्षार्थी के बीच एक द्विमुखी प्रक्रिया माना है। अध्यापक एक परिपक्व व्यक्तित्व होने के नाते अपने ज्ञान, आदर्श एवं चरित्र से बालक को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप बालक अध्यापक का अनुसरण करता है। जब अध्यापक और बालक पूर्व निश्चित उद्देश्य के अनुसार सुनियोजित रूप से एक-दूसरे के सम्मुख बैठकर ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं, तो उसे प्रत्यक्ष शिक्षा कहा जाता है।
2. परोक्ष शिक्षा- परोक्ष शिक्षा में अध्यापक के व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष (सीधा) प्रभाव बालक पर नहीं पड़ता। वह परोक्ष साधनों द्वारा प्रभावित होता है। इस शिक्षा का कोई उद्देश्य या योजना पहले से तय नहीं होती। इसके अन्तर्गत शिक्षा कार्यक्रमों के विषय में अधिकांश निर्देश परोक्ष रूप में दिए जाते हैं तथा बालक स्वतन्त्र वातावरण में परोक्ष साधनों द्वारा इच्छानुसार शिक्षा ग्रहण करता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से परोक्ष शिक्षा को उत्तम माना जाता है।
अतिलघु उतरीय प्रण
प्रश्न 1.
औपचारिक शिक्षा के महत्व का उल्लेख कीजिए।
उतर:
विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में व्यवस्थित रूप से प्रदान की जाने वाली शिक्षा को औपचारिक शिक्षा कहा जाता है। औपचारिक शिक्षा के महत्त्व का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
- किसी विशेष क्षेत्र में व्यवस्थित ज्ञान अर्जित करने के लिए औपचारिक शिक्षा ही आवश्यक होती है। औपचारिक शिक्षा के अभाव में विशेष ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता।
- भले ही औपचारिक शिक्षा का क्षेत्र संकुचित है, किन्तु आज का समाज उसी व्यक्ति को सुशिक्षित मानता है जिसने औपचारिक ढंग से किसी मान्यता प्राप्त शिक्षा-संस्थान या विश्वविद्यालय से प्रमाण-पत्र अर्जित किया है।
- वर्तमान परिस्थितियों में जीविका उपार्जन के दृष्टिकोण से भी औपचारिक शिक्षा को ही अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। किसी सरकारी अथवा गैर-सरकारी प्रतिष्ठान में नौकरी पाने के लिए औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के प्रमाण-पत्र के आधार पर ही अनिवार्य योग्यता निर्धारित की जाती है।
प्रश्न 2.
अनौपचारिक शिक्षा के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
उतर:
किसी भी स्रोत से ज्ञान प्राप्त करना ही अनौपचारिक शिक्षा है। अनौपचारिक शिक्षा का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्त्व है। अनौपचारिक शिक्षा के महत्त्व का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
- अनौपचारिक शिक्षा बालक के भावी जीवन की आधारशिला है। बालक अपने प्रारम्भिक जीवन में अनौपचारिक ढंग से ही शिक्षा प्राप्त करता है। शिक्षा मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में प्रारम्भ के पाँच वर्षों में बालक का व्यक्तित्व अनौपचारिक शिक्षा द्वारा ही निर्मित होता है।
- अनौपचारिक शिक्षा व्यापक है। यह मानव-जीवन के सभी पक्षों से सम्बन्ध रखती है और व्यक्ति को जीवन की यथार्थ परिस्थितियों के साथ सामंजस्य सिखाती है।
- अनौपचारिक शिक्षा द्वारा बालक का सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकसित होता है। बालक सद्-आचरण, व्यवहार, नैतिक-शिक्षा, सभ्यता एवं संस्कृति का अधिकाधिक ज्ञान इसी शिक्षा द्वारा प्राप्त करता है।
प्रश्न 3.
लोकतन्त्रात्मक राज्य में समाचार-पत्र और पत्रिकाओं की शैक्षिक भूमिका पर टिप्पणी कीजिए।
उतर:
वर्तमान लोकतन्त्रात्मक राज्य एवं समाज में शिक्षा की अवधारणा अत्यधिक विस्तृत हो गयी है। तथा इस प्रक्रिया के लिए विभिन्न प्रकार के अभिकरण उपलब्ध हैं। समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ शिक्षा के निरौपचारिक अभिकरण हैं। समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ अनेक प्रकार की सूचनाएँ, जानकारी तथा ज्ञान प्रदान करने वाले स्रोत हैं। अत: इनका विशेष शैक्षिक महत्त्व एवं भूमिका है। शिक्षा के ये अभिकरण प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण हैं। सामान्य शिक्षा, दूरस्थ शिक्षा तथा प्रौढ़ या सामाजिक-शिक्षा के दृष्टिकोण से पत्र-पत्रिकाओं का विशेष महत्त्व है।
प्रश्न 4.
सकारात्मक शिक्षा (Positive Education) से क्या आशय है?
उतर:
सकारात्मक या निश्चयात्मक शिक्षा को उद्देश्य बालक को कुछ निश्चित तथ्यों, आदर्शों तथा मूल्यों (जैसे—सूर्य पूरब दिशा से निकलता है, पत्तियों का रंग हरा होता है, सदा सत्य बोलना चाहिए, निर्धनों की सहायता करनी चाहिए आदि) का ज्ञानं प्रदान करना है। यहाँ ज्ञान के हस्तान्तरण में शिक्षक की भूमिका प्रधान है। शिक्षा के इस स्वरूप के अन्तर्गत बालक बिना किसी तर्क-वितर्क के ही ज्ञान को स्वीकार कर लेता है। सकारात्मक शिक्षा को आदर्शवादी विचारधारा को समर्थन प्राप्त है।
प्रश्न 5.
नकारात्मक शिक्षा (Negative Education) के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
या
निषेधात्मक शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
उतर:
नकारात्मक या निषेधात्मक या अनिश्चयात्मक शिक्षा में बालक स्वयं अपने अनुभव तथा क्रियाओं द्वारा ज्ञान अर्जित करता है। अपने आदर्शों का निर्माता भी वह स्वयं है। अध्यापक की भूमिका एक मार्गदर्शक से अधिक नहीं होती जो उचित वातावरण तैयार करने में सहायता करता है। इस शिक्षा के अन्तर्गत बालक अपनी रुचियों, इच्छाओं तथा स्वाभाविक प्रवृत्तियों के अनुसार अपना शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास करता है। नकारात्मक शिक्षा का समर्थन प्रयोगवादी तथा प्रकृतिवादी विचारधारा के पक्षधर करते हैं।
निश्चित उतरीय प्रश्न,
प्रश्न 1.
शिक्षा के नियमों एवं व्यवस्था के आधार पर शिक्षा के कौन-कौन-से प्रकार या स्वरूप
निर्धारित किए गए हैं?
उतर:
शिक्षा के नियमों एवं व्यवस्था के आधार पर शिक्षा के दो प्रकार या स्वरूप निर्धारित किए गए। हैं–
- औपचारिक शिक्षा तथा
- अनौपचारिक शिक्षा।
प्रश्न 2.
प्रवेश और प्रस्थान के निश्चित बिन्दु किस प्रकार की शिक्षा के लक्षण हैं?
उतर:
प्रवेश और प्रस्थान के निश्चित बिन्दु औपचारिक शिक्षा के लक्षण हैं।
प्रश्न 3.
औपचारिक शिक्षा प्रदान करने वाले मुख्य अभिकरणों को क्या कहते हैं?
उतर:
औपचारिक शिक्षा प्रदान करने वाले मुख्य अभिकरणों को विद्यालय अथवा स्कूल कहते हैं।
प्रश्न 4.
शिक्षा के उस स्वरूप को क्या कहते हैं, जो बिना निर्धारित पाठ्यक्रम, पुस्तकों एवं नियमों के …। ही आजीवन चलती रहती है?
उतर:
अनौपचारिक शिक्षा।।
प्रश्न 5.
किसी व्यवस्थित संस्थान में कार्यरत होने के लिए किस प्रकार की शिक्षा को अनिवार्य योग्यता के रूप में स्वीकार किया जाता है?
उतर:
औपचारिक शिक्षा को।।
प्रश्न 6.
जीवन में व्यावहारिक कुशलता अर्जित करने के लिए शिक्षा के किस स्वरूप को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है?
उतर:
जीवन में व्यावहारिक कुशलता अर्जित करने के लिए अनौपचारिक शिक्षा को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
प्रश्न 7.
कुशल व्यवसायी अर्थात् डॉक्टर, इन्जीनियर तथा वकील आदि बनने के लिए दी जाने वाली शिक्षा को क्या कहते हैं?
उतर:
कुशल व्यवसायी बनने के लिए दी जाने वाली शिक्षा को विशिष्ट शिक्षा कहते हैं।
प्रश्न 8.
व्यक्ति की व्यक्तिगत योग्यताओं, रुचियों, अभिरुचियों एवं क्षमताओं आदि को ध्यान में रखकर दी जाने वाली शिक्षा को क्या कहते हैं?
उतर:
इस प्रकार की शिक्षा को वैयक्तिक शिक्षा कहते हैं।
प्रश्न 9.
भिन्न-भिन्न योग्यताओं एवं अंमताओं वाले अनेक बालकों को एक ही प्रकार की एक साथ दी जाने वाली शिक्षा को क्या कहते हैं?
उतर:
सामूहिक शिक्षा।
प्रश्न 10.
जब शिक्षक अपने विचारों, आदर्शों एवं मूल्यों आदि को शिक्षा के रूप में छात्रों पर थोपने का प्रयास करता है तब उस शिक्षा को क्या कहते हैं?
उतर:
इस प्रकार की शिक्षा कों, प्रत्यक्ष शिक्षा कहते हैं।
प्रश्न 11.
आप शिक्षा को किस प्रकार के विज्ञानों की श्रेणी में रखते हैं।
उतर:
हम शिक्षा को व्यावहारिक विज्ञानों की श्रेणी में रखते हैं।
प्रश्न 12.
शिक्षा की मूल प्रकृति को स्पष्ट कीजिए।
या
शिक्षा विज्ञान है अथवा कला या दोनों?
उतर:
शिक्षा को हम न तो शुद्ध विज्ञान मान सकते हैं और न ही शुद्ध कला। यह विज्ञान तथा कला दोनों ही है।
प्रश्न 13.
किस शिक्षा-व्यवस्था में ‘निषेधात्मक शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया गया है।
उतर:
प्रकृतिवादी शिक्षा-व्यवस्था में ‘निषेधात्मक शिक्षा’ को विशेष महत्त्व दिया गया है।
प्रश्न 14.
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य
- औपचारिक शिक्षा का मुख्य अभिकरण परिवार है।
- अनौपचारिक शिक्षा की उत्तम व्यवस्था विद्यालय द्वारा की जाती है।
- परिवार, समाज, खेल का मैदान, समाचार-पत्र आदि अनौपचारिक शिक्षा के मुख्य अभिकरण हैं।
- बालक के व्यक्तित्व के सुचारु विकास के लिए वैयक्तिक शिक्षा की व्यवस्था ही लाभदायक होती है।
- सकारात्मक शिक्षा को आदर्शवादी विचारधारा का समर्थन प्राप्त है।
- शिक्षा मूल रूप से एक विशुद्ध विज्ञान है।
- शिक्षा विज्ञान एवं कला दोनों ही है।
उतर:
- असत्य,
- असत्य,
- सत्य,
- सत्य,
- सत्य,
- असत्य,
- सत्य।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए
प्रश्न 1.
औपचारिक शिक्षा की प्रमुख विशेषता है
(क) नियमितता
(ख) व्यापकता
(ग) संकीर्णता
(घ) वैज्ञानिकता
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता औपचारिक शिक्षा पर लागू नहीं होती?
(क) पूर्व निर्धारित नियमों पर आधारित
(ख) योग्यता का प्रमाण-पत्र देने की व्यवस्था
(ग) सीमित अवधि तक चलती है।
(घ) जीवन-पर्यन्त चलती है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता अनौपचारिक शिक्षा पर लागू नहीं होती?
(क) स्पष्ट रूप से निर्धारित पाठ्यक्रम का अभाव
(ख) नियमित रूप से परीक्षाओं का आयोजन
(ग) क्षेत्र की व्यापकता
(घ) आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है
प्रश्न 4.
अनौपचारिक शिक्षा का अभिकरण नहीं है|
(क) परिवार
(ख) खेल समूह
(ग) तकनीकी शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान
(घ) आर्य समाज मन्दिर
प्रश्न 5.
औपचारिक शिक्षा का अभिकरण है
(क) गृह
(ख) विद्यालय
(ग) राज्य
(घ) समाज
प्रश्न 6.
हमारे देश की अधिकांश शिक्षण-संस्थाओं द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का स्वरूप है|
(क) वैयक्तिक शिक्षा
(ख) सामूहिक शिक्षा
(ग) अति आवश्यक शिक्षा
(घ) अनावश्यक शिक्षा
प्रश्न 7.
शिक्षा किस प्रकार का विज्ञान है?
(क) यथार्थ विज्ञान
(ख) आदर्शात्मक विज्ञान
(ग) व्यावहारिक विज्ञान
(घ) विज्ञान है ही नहीं
प्रश्न 8.
शिक्षा की प्रकृति को स्पष्ट करने वाला कथन है–
(क) शिक्षा मूल रूप से एक शुद्ध कला है
(ख) शिक्षा मूल रूप से एक शुद्ध विज्ञान है।
(ग) शिक्षा न तो शुद्ध विज्ञान है और न ही शुद्ध कला
(घ) शिक्षा की प्रकृति अस्पष्ट है।
उतर:
1. (क) नियमितता,
2. (घ) जीवन-पर्यन्त चलती है,
3. (ख) नियमित रूप से परीक्षाओं का आयोजन,
4. (ग) तकनीकी शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान,
5. (ख) विद्यालय,
6. (ख) सामूहिक शिक्षा,
7. (ग) व्यावहारिक विज्ञान,
8. (ग) शिक्षा न तो शुद्ध विज्ञान है और न ही शुद्ध कला।।
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