UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi नाटक Chapter 2 आन का मान
UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi नाटक Chapter 2 आन का मान (हरिकृष्ण ‘प्रेमी’)
प्रश्न 1:
‘आन का मान’ नाटक की कथावस्तु संक्षेप (सारांश) में लिखिए।
या
‘आन का मान’ नाटक की कथावस्तु पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के मार्मिक स्थलों का वर्णन कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के प्रथम अंक की कथा संक्षेप में लिखिए।
या
‘आन का मान नाटक के द्वितीय अंक की कथा का सार अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के तीसरे अंक की घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के किसी एक अंक की कथावस्तु लिखिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के सर्वाधिक प्रिय अंक का कथासार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
‘आन का मान’ नाटक का सारांश
प्रथम अंक – श्री हरिकृष्ण प्रेमी कृत ‘आने का मान’ नाटक का आरम्भ रेगिस्तान के एक मैदान से हुआ है। यह काल भारत में औरंगजेब की सत्ता का है। इस समय जोधपुर में महाराज जसवन्त सिंह का राज्य था। वीर दुर्गादास उन्हीं के कर्तव्यनिष्ठ सेवक हैं जो कि महाराज की मृत्यु के उपरान्त उनके अवयस्क पुत्र अजीत के संरक्षक बनते हैं। नाटक का कथानक दुर्गादास के चारों ओर घूमता है। अकबर द्वितीय के पुत्र बुलन्द अख्तर और पुत्री सफीयतुन्निसा हैं। दोनों भाई-बहन औरंगजेब की राष्ट्र-विरोधी नीतियों का विरोध करते हैं। उनकी बातों से यह भी आभास होता है कि अकबर द्वितीय ने औरंगजेब के अत्याचारों के विरोध में वीर दुर्गादास से मित्रता कर ली थी। दुर्गादास ने अकबर द्वितीय को बादशाह घोषित कर दिया था, परन्तु औरंगजेब की एक चालवश उसे ईरान भाग जाना पड़ा।
सफीयत और बुलन्द दुर्गादास के पास ही रह जाते हैं। अजीतसिंह युवक होकर जोधपुर का शासन सँभाल लेता है। अजीतसिंह सफीयत से प्रेम करता है। सफीयत जानती है कि हिन्दू युवक और मुसलमान युवती का विवाह कठिन होगा। दुर्गादास भी अजीत को राजपूत धर्म की मर्यादा का ध्यान दिलाता है-“मान रखना राजपूत की आन होती है और इस आन को मान रखना उसके जीवन का व्रत होता है।”
द्वितीय अंक – इस नाटक के सर्वाधिक मार्मिक स्थलों से सम्बन्धित कथा दूसरे अंक की है। कथा का प्रारम्भ भीमनदी के तट पर स्थित ब्रह्मपुरी से प्रारम्भ होता है। औरंगजेब ने इस नगरी का नाम ‘इस्लामपुरी’ रख दिया है। औरंगजेब की भी दो पुत्रियाँ हैं-मेहरुन्निसा तथा जीनतुन्निसा। मेहरुन्निसा औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर किये जा रहे अत्याचारों का विरोध करती है। जीनत पिता की समर्थक है। औरंगजेब अपनी पुत्रियों की बात सुनता है। तथा मेहरुन्निसा द्वारा बताये गये अत्याचारों के लिए पश्चात्ताप करता है। औरंगजेब अपने पुत्रों को जनता के साथ उदार व्यवहार करने के लिए कहता है। औरंगजेब अपने अन्तिम समय में अपनी वसीयत करता है कि उसका अन्तिम संस्कार सादगी से किया जाए। इस समय ईश्वरदास; दुर्गादास को बन्दी बनाकर औरंगजेब के. पास लाता है। औरंगजेब अपने पौत्र-पौत्री बुलन्द तथा सफीयत को पाने के लिए दुर्गादास से सौदेबाजी करता है, परन्तु दुर्गादास इसके लिए तैयार, नहीं होते।
तृतीय अंक – नाटक के तीसरे और अन्तिम अंक में अजीतसिंह पुनः सफीयत से जीवन-साथी बनने का निवेदन करता है, परन्तु सफीयत अजीत को लोकहित के लिए स्वहित के त्याग करने का परामर्श देती है। वह कहती है-”महाराज ! प्रेम केवल भोग की ही माँग नहीं करता, वह त्याग और बलिदान भी चाहता है।” बुलन्द तथा दुर्गादास के विरोध की अजीत परवाह नहीं करता तथा सफीयत को अपने साथ चलने के लिए कहता है। दुर्गादास पालकी में सफीयत को ले जाना चाहते हैं। अजीत नाराज होकर पालकी को रोककर कहते हैं-“दुर्गादास जी ! मारवाड़ में आप रहेंगे या मैं रहूँगा ………..“।” दुर्गादास मातृभूमि को अन्तिम प्रणाम करके चले जाते हैं। नाटक की कथा यहीं समाप्त हो जाती है।
उपर्युक्त कथा, कथा-संघटन की दृष्टि से सुगठित और व्यवस्थित है। ऐतिहासिक घटना को कल्पना के सतरंगी रंगों में रँगकर रोचक और प्रभावपूर्ण बना दिया गया है। प्रथम अंक में कथा की प्रस्तावना या आरम्भ है। द्वितीय अंक में अजीत व दुर्गादास के टकराव के समय विकास की अवस्था के उपरान्त कथा अपनी चरमसीमा पर आ जाती है। राज्य-निष्कासन के आदेश और सफीयत के पालकी में बैठने के साथ ही कथा का उतार आ जाता है। सफीयत की विदा के साथ ही कथानक समाप्त हो जाता है। राज्य-निष्कासन को हँसकर स्वीकार कर ‘आन का मान’ रखने वाले दुर्गादास से सम्बन्धित यह कथा अत्यन्त संक्षिप्त है।
प्रश्न 2:
नाटकीय तत्त्वों (नाट्यकला) के आधार पर ‘आन का मान’ नाटक की समीक्षा कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के देश-काल चित्रण की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या
‘आन का मान नाटक की भाषा-शैली पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
या
‘नाटक की अभिनेयता’ (रंगमंचीयता) पर प्रकाश डालिए।
या
संवाद-योजना और भाषा-शैली की दृष्टि से ‘आन का मान’ नाटक की समीक्षा कीजिए।
या
‘संवाद-योजना की दृष्टि से ‘आन का मान’ नाटक की समीक्षा कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
‘आन का मान की पात्र-योजना तथा चरित्र-निर्माण की दृष्टि से समीक्षा कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक में वातावरण पर प्रकाश डालिए।
या
‘आन का मान’ नाटक की भाषा पर प्रकाश डालिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के संवाद-सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
या
‘आन को मान’ नाटक के कथानक का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
‘आन का मान’ नाटक की तात्विक समीक्षा
नाटकीय तत्त्वों के आधार पर श्री हरिकृष्ण प्रेमी कृत ‘आन को मान’ नाटक की समीक्षा निम्नलिखित प्रकार से
की जा सकती है
(1) कथानक – इस नाटक का कथानक ऐतिहासिक है। एक छोटी-सी ऐतिहासिक कथा में यथार्थ और कल्पना का सुन्दर समन्वय किया गया है। कथा में एकसूत्रता, सजीवता, घटना-प्रवाह आदि का निर्वाह भली-भाँति हुआ है। नाटक का शीर्षक आकर्षक है। कथानक की दृष्टि से प्रस्तुत नाटक एक सफल रचना है। नाटक के कथानक में औरंगजेब के समय का वर्णन है तथा औरंगजेब के अत्याचारों को प्रस्तुत किया गया है। उसके पुत्र अकबर द्वितीय की दुर्गादास सहायता करते हैं तथा उसे बादशाह घोषित कर देते हैं। औरंगजेब द्वारा उत्पन्न की गयी परिस्थितियोंवश अकबर द्वितीय ईरान भाग जाता है तथा उसके पुत्र और पुत्री दुर्गादास के पास ही रह जाते हैं। अकबर द्वितीय की पुत्री सफीयत से अजीतसिंह प्रेम करता है, परन्तु दुर्गादास इसका विरोध करते हैं और सफीयत के साथ मारवाड़ को ही छोड़ देते हैं। कथानक का मुख्य स्वर राजपूती आन और दुर्गादास का शौर्य है।
(2) पात्र तथा चरित्र-चित्रण – पात्रों की कुल संख्या ग्यारह है, जिनमें तीन स्त्री पात्र हैं। नाटक का नायक दुर्गादास है। पात्र कथानक के विकास में पूर्ण रूप से सहायक हुए हैं। दुर्गादास के चरित्र को आदर्श रूप में प्रस्तुत करना नाटककार का प्रमुख लक्ष्य रहा है। दुर्गादास के सामने अन्य पात्र धूमिल-से प्रतीत होते हैं। दुर्गादास के बाद सफीयतुन्निसा के चरित्र को विशेष रूप से उभारा गया है। सफीयत समझदार मुस्लिम युवती है। औरंगजेब को धर्मान्ध और अत्याचारी शासक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अजीत मारवाड़ का शासक है। तथा उसे सामान्य युवक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। चरित्र-चित्रण की दृष्टि से प्रस्तुत नाटक एक सफल नाटक है।
(3) संवाद-योजना – नाटक के संवादं छोटे, वीरत्व और ओज से पूर्ण, तीखे तथा कहीं-कहीं माधुर्य में डूबे हैं। अधिकांश संवाद मर्मस्पर्शी एवं गतिमात्र हैं। संवाद-योजना ने नाटक की कथा को प्रवहमान किया है; यथा
जीनतुन्निसा – तू चौंकी क्यों?
मेहरुन्निसा – मैं समझी जिन्दा पीर आ गये।
जीनतुन्निसा – हँसी उड़ाती है अब्बाजान की।
उनके सामने तो भीगी बिल्ली बन जाती है। मेहरुन्निसा-बनना ही पड़ता है। उनकी आँखें सिंह की भाँति चमकती हैं – खाने को दौड़ती हैं।
इस प्रकार संवाद की दृष्टि से यह एक सफल नाटक है।
(4) भाषा-शैली – ‘आन का मान’ नाटक की भाषा सरल, सुबोध, प्रवाहपूर्ण तथा प्रसाद-गुणयुक्त है। ओज और माधुर्य गुण भाषा के सौन्दर्यवर्द्धन में सफल रहे हैं। वाक्य आवश्यकतानुसार छोटे और बड़े होते गये हैं। नाटक के मुस्लिम पात्र भी शुद्ध हिन्दी का प्रयोग करते हुए दिखाये गये हैं। कहीं-कहीं उर्दू के शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। नाटक में लोकोक्तियों, मुहावरों, सूक्तियों तथा गीतों का बड़ा सटीक प्रयोग किया गया है; जैसे-‘दूध का जला छाछ को फूक मारकर पीता है’, ‘सिर पर कफन बाँधे फिरना’, ‘बद अच्छा बदनाम बुरा इत्यादि। नाटक में तीन गीत हैं। नाटक में वर्णनात्मक तथा संवाद शैली का प्रयोग किया गया है। नाटक में प्रयुक्त स्वाभाविक भाषा का एक उदाहरण द्रष्टव्य है – ”इसलिए कि औरंगजेब हत्यारा होते हुए भी हिसाबी है। वह व्यापारी की भाँति गणित लगाता है। दुर्गादास जानता है कि जहाँपनाह मुझे मारकर भी अपना मनोरथ पूरा नहीं कर सकते। जीवित दुर्गादास की अपेक्षा मृत दुर्गादास मुगल साम्राज्य के लिए अधिक खतरनाक है।”
(5) देश-काल तथा वातावरण – नाटककार ने नाटक की रचना में देश-काल तथा वातावरण का पूर्ण ध्यान रखा है। नाटक में मध्यकालीन मुस्लिम तथा हिन्दू संस्कृतियों का समन्वय हुआ है। नाटक के पात्र ऐसे राजघरानों से सम्बन्धित हैं, जिनमें परस्पर संघर्ष चलता रहता था। पात्रों की वेशभूषा, रहन-सहन आदि समय के अनुरूप ही हैं। औरंगजेब सादगी-पसन्द बादशाह था, अतः उसके राजभवन का प्रदर्शन सामान्य रूप में ही किया गया है। देश-काल एवं वातावरण के चित्रण में नाटककार ऐतिहासिकता की रक्षा करने में पूर्णतया सफल रहा है।
(6) उद्देश्य – प्रेमी जी ने प्रस्तुत नाटक के द्वारा आदर्श मानव-मूल्यों की स्थापना का सुन्दर प्रयास किया है। नाटक को उद्देश्य सत्यता, विश्वबन्धुत्व, राष्ट्रीय एकता, धार्मिक सहिष्णुता, कर्तव्यपरायणता जैसे उदात्त गुणों का चित्रण करना है। नाटक के उद्देश्यों की पूर्ति दुर्गादास के चरित्र-चित्रण से होती है। दुर्गादास कर्त्तव्यपरायण और देशप्रेमी है तथा विश्व-बन्धुत्व में विश्वास रखता है। दुर्गादास को आदर्श मूल्यों को स्थापित करने वाला उदात्त नायक कहा जा सकता है। वह कर्म की सफलता में ही फल के आनन्द का अनुभव करने वाला कर्मयोगी है। अन्य पात्र भी नाटककार के सन्देश को प्रसारित व प्रचारित करने में सहयोग देते हैं।
(7) अभिनेयता – प्रस्तुत नाटक रंगमंच की दृष्टि से एक सफल रचना है। कुशल रंगकर्मी द्वारा रेतीले मैदान, फैली हुई चाँदनी, बहती हुई नदी आदि को प्रवाह चित्रों, प्रकाश व ध्वनि के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है। औरंगजेब के कक्ष की साधारण सजावट ऐतिहासिक सत्य के अनुरूप है। पहले अंक तथा तीसरे अंक का सेट एक ही है। नाटक के प्रस्तुतीकरण में केवल तीन बार परदा गिराने की आवश्यकता होती है। नाटककार ने वेशभूषा तथा अन्य नाटकीय आवश्यकताओं के लिए उचित संकेत दिये हैं। गतिशील कथानक, कम पात्र, सरल भाषा, अंकों तथा सामान्य मंच-विधान की दृष्टि से यह एक सफल नाटक है।
प्रश्न 3:
‘आन का मान के आधार पर वीर दुर्गादास का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के आधार पर दुर्गादास की चारित्रिक विशेषताएँ निरूपित करते हुए उसमें निहित भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता प्रतिपादित कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के प्रमुख पात्र (नायक) का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘आन का मान’ का कौन पुरुष पात्र आपको सबसे प्रभावशाली प्रतीत होता है। सकारण उत्तर दीजिए।
या
“मानवतावादी दृष्टि मनुष्य को श्रेष्ठ मनुष्य बनाती है।” दुर्गादास के चरित्र के आधार पर इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के नायक की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
दुर्गादास का चरित्र-चित्रण
श्री हरिकृष्ण प्रेमी कृत“आन का माननाटक के नायक बीर दुर्गादास राठौर हैं। दुर्गादास उच्च मानवीय गुणों से युक्त वीर पुरुष हैं। नाटक का सम्पूर्ण घटनाक्रम इनके चारों ओर ही घूमता है। इनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) मानवतावादी दृष्टिकोण – दुर्गादास एक सच्चा व उच्च श्रेणी का मानव है। वह ऐसे किसी भी सिद्धान्त को आदर्श नहीं मानता, जो मानवता के विरुद्ध हो। औरंगजेब के बेटे को मुसलमान होते हुए भी वह अपना मित्र मानता है तथा प्राणों की बाजी लगाकर वह अकबर की बेटी सफीयत की रक्षा करता है। दुर्गादास कहता है-”मानवता का मानव के साथ जो नाता है, वह स्वार्थ का नाता नहीं, शाहजादा हुजूर!”
(2) हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति को समन्वयवादी – दुर्गादास धार्मिक भेदभाव को नहीं मानता। वह हिन्दू और मुस्लिम एकता का प्रबल पोषक है। वह इन संस्कृतियों की पारस्परिक भेदभाव की दीवार को तोड़ना चाहता है। उसकी दृष्टि में मानवता ही श्रेष्ठ धर्म है। वह कहती है “न केवल मुसलमान ही भारत है, और न केवल हिन्दू ही। दोनों को यहीं जीना है, यहीं मरना है।”
(3) आन को पक्का राजपूत – दुर्गादास अपने वचनों के प्रति निष्ठावान् है। उसका मत है-”मान रखना राजपूत की आन होती है और इस आन का मान रखना उसके जीवन का व्रत होता है।”
(4) सत्य, न्याय व देश का प्रेमी – दुर्गादास सत्य का प्रतीक है, न्याय में विश्वास रखता है तथा सच्चा देशभक्त है। वह कहता है-“राजपूतों की तलवार सदा सत्य, न्याय, स्वाभिमान और स्वदेश की रक्षक होकर रही है।”
(5) स्वामिभक्त और निश्छल – वह स्वामिभक्त और निश्छल है। अपने गुणों को दाँव पर लगाकर वह कुँवर अजीतसिंह की रक्षा करता है तथा उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचा देता है। कासिम उसके विषय में कहता है-”संसार भर में हाथ में दीपक लेकर घूम आएँगे, तब भी दुर्गादास जैसा शुभचिन्तक, वीर, स्वामिभक्त और निश्छल व्यक्ति न पाएँगे।”
(6) कर्त्तव्यपरायण – दुर्गादास कर्तव्यपरायण व्यक्ति है। वह सदैव अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देता है। औरंगजेब भी वीर दुर्गादास के कर्तव्यपरायण होने की बात ईश्वरदास से कहता है।
(7) सच्चा मित्र – वीरवर दुर्गादास एक सच्चा मित्र है। औरंगजेब का पुत्र अकबर द्वितीय उसका मित्र है। वह मित्रता का ईमानदारी व सच्चाई के साथ पालन करता है। अकबर द्वितीय के सभी साथी उसका साथ छोड़ देते हैं, परन्तु दुर्गादास सच्चे मित्र की तरह उसका साथ देता है। वह अकबर द्वितीय को औरंगजेब के हाथों से बचाने के लिए उसे ईरान भेज देता है।
(8) राष्ट्रीयता – दुर्गादास के हृदय में राष्ट्रीयता कूट-कूटकर भरी है। वह भारत को न मुसलमानों का देश मानता है, न हिन्दुओं का। वह हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की खाई को पाटकर नये समाज का निर्माण करना चाहता है।
(9) सुशासन का समर्थक – दुर्गादास सदैव अच्छे शासन एवं सुव्यवस्था का समर्थक रहा है। वह कहता है-
”सुशासन को प्रजा; राजा का प्यार और भगवान का वरदान मानती है।”
इस प्रकार वीर दुर्गादास उच्च आदर्शों वाला मानव है। वह स्वामिभक्त, कर्तव्यपरायण, मानवता में विश्वास रखने वाला, सच्चा मित्र तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता का समर्थक है। उसके ये सभी मानवीय गुण उसके उदात्त चरित्र के प्रमाण हैं। वही इस नाटक का नायक अर्थात् प्रमुख पात्र है।
प्रश्न 4:
‘आन का मान’ नाटक के आधार पर औरंगजेब का चरित्र-चित्रण संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
औरंगजेब का चरित्र-चित्रण
श्री हरिकृष्ण प्रेमी कृत ‘आन का मान’ नाटक में औरंगजेब; वीर दुर्गादास का प्रतिद्वन्द्वी है तथा उसे खलनायक के रूप में चित्रित किया गया है। वह पूरे भारत पर एकछत्र राज्य की कामना करने वाला मुगल सम्राट् है। वह जीवन भर हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के अस्तित्व को खत्म करने के लिए कुचक्र रचता रहता है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) कट्टर धार्मिक और संकीर्ण हृदय व्यक्ति – औरंगजेब संकीर्ण हृदय वाला कट्टर सुन्नी-मुसलमान है। इस्लाम के आगे सभी धर्म उसकी दृष्टि में हेय हैं। मानव-मात्र के लिए वह इस्लाम को ही श्रेयस्कर मानता है। वह जोधपुर के कुमार अजीतसिंह को भी मुसलमान बनाना चाहता है।
(2) नृशंस और निर्दयी-औरंगजेब सत्ता – प्राप्ति के लिए सब-कुछ करने को तैयार हो जाता है। वह अपने भाई दारा और शुजा की हत्या तक कर देता है तथा अपने पिता शाहजहाँ, पुत्र कामबख्श और पुत्री जेबुन्निसा को बन्दी बना लेता है। उसे किसी पर भी दया नहीं आती।
(3) सादा जीवन – औरंगजेब विलासिता से दूर रहकर सादा जीवन व्यतीत करने का पक्षपाती है। वह अपना निजी व्यय सरकारी खजाने से नहीं, वरन् टोपी सिलकर और कुरान की आयतें लिखकर उनकी बिक्री से प्राप्त आय से चलाता है।
(4) आत्मग्लानि से युक्त – औरंगजेब को अपने द्वारा किये गये नृशंस कार्यों के प्रति वृद्धावस्था में ग्लानि होती है। उन्हें सोचकर वह दु:खी होता है। अपनी वसीयत में वह अपने पुत्रों से स्वयं को क्षमा करने की बात लिखता है तथा पुत्र-स्नेह से विह्वल होकर वह अपने पुत्र अकबर को छाती से लगाने के लिए आतुर हो जाता है। मेहरुन्निसा से वह कहता है कि “औरंगजेब बातों के जहर से मरने वाला नहीं है।” मेहर के दण्ड देने की बात सुनकर वह कहता है-“हाथ थक गये हैं बेटी! सिर काटते-काटते।”
(5) स्नेहसिक्त पिता – औरंगजेब जवानी में अपने पिता और सन्तान दोनों के प्रति क्रूरता का व्यवहार करता है, किन्तु बुढ़ापे में आकर उसके हृदय में वात्सल्य का संचार होता है। वह अपने पुत्र अकबर द्वितीय, जो ईरान चला गया है, को हृदय से लगाने के लिए बेचैन है तथा अन्य स्वजनों से मिलने के लिए भी व्याकुल है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि औरंगजेब एक कठोर शासक के रूप में चित्रित किया गया है। अन्तिम समय में उसके चरित्र में परिवर्तन आता है और वह दयालु एवं स्नेही व्यक्ति के रूप में बदल जाता है।
प्रश्न 5:
सफीयतुन्निसा का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक की नायिका या किसी प्रमुख स्त्री पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
सफीयतुन्निसा का चरित्र-चित्रण
सफीयतुन्निसा; श्री हरिकृष्ण प्रेमी द्वारा रचित ‘आन का मान’ नाटक की प्रमुख नारी-पात्र है। वह औरंगजेब के पुत्र अकबर द्वितीय की पुत्री है। अकबर द्वितीय अपने पिता की राष्ट्रविरोधी नीतियों का विरोधी है। दुर्गादास राठौर द्वारा उसे ही सम्राट घोषित कर दिया जाता है, परन्तु औरंगजेब की एक चाल से उसे ईरान भागना पड़ता है। इस स्थिति में दुर्गादास ही उसके पुत्र बुलन्द अख्तर और सफीयतुन्निसा का पालन-पोषण करता है। सफीयतुन्निसा का चरित्र-चित्रण निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर किया जा सकता है
(1) अत्यन्त रूपवती – सफीयतुन्निसा की आयु 17 वर्ष है और वह अत्यन्त आकर्षक रूप वाली है। नाटक के सभी पात्र उसके रूप-सौंन्दर्य पर मुग्ध हैं।
(2) वाक्-पटु – सफीयतुन्निसा विभिन्न परिस्थितियों में अपनी वाक्-पटुता का प्रभावपूर्ण प्रदर्शन करती है। उसके व्यंग्यपूर्ण कथन तर्क पर आधारित और मर्मभेदी हैं।
(3) संगीत में रचि – वह एक उच्चकोटि की संगीत-साधिका है। उसका मधुर स्वर सहज ही दूसरों का हृदय जीत लेता है।
(4) त्याग एवं देशप्रेम की भावना – उसमें त्याग एवं बलिदान की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। राष्ट्रहित में वह अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तत्पर दिखाई देती है।
(5) कर्तव्यनिष्ठ – सफीयतुन्निसा देश के प्रति अपनी अनुकरणीय कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देती है। राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करने के उद्देश्य से ही वह अपने भाई के हाथ में राखी बाँधकर उसे युद्धभूमि में प्राणोत्सर्ग के लिए भेज देती है।
(6) शान्तिप्रिय एवं हिंसा – विरोधी – सफीयत की कामना है कि उसके देश में सर्वत्र शान्ति का वातावरण रहे। तथा सभी देशवासी सुखी और समृद्ध हों। किसी भी प्रकार के हिंसापूर्ण कार्यों को वह प्रबल विरोध करती है।
(7) आदर्श प्रेमिका – सफीयत जोधपुर के युवा शासक अजीतसिंह से सच्चा प्रेम करती है, किन्तु प्रेम की। उद्वेगपूर्ण स्थिति में भी वह अपना सन्तुलन बनाये रखती है। वह अजीतसिंह को भी धीरज बँधाती है और उसे लोकहित के लिए आत्महित का त्याग करने की सलाह देती हुई कहती है-”महाराज ! प्रेम केवल भोग की ही माँग नहीं करता, वह त्याग और बलिदान भी चाहता है।”
इस प्रकार सफीयतुन्निसा ‘आन का मान’ नाटक की एक आदर्श नारी-पात्र है। नाटक में उसके चरित्र को विशेष रूप से इस दृष्टि से उभारा गया है कि वह अजीतसिंह से प्रेम करते हुए भी राज्य व अजीतसिंह के कल्याणार्थ विवाह के लिए तैयार नहीं होती।।
प्रश्न 6:
” ‘आन को मान’ नाटक में ऐतिहासिकता के साथ-साथ नाटकीयता का सफल एवं सुन्दर समन्वय हुआ है।” अपने विचार व्यक्त कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक की ऐतिहासिकता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
‘आन का मान’ की ऐतिहासिकता
श्री हरिकृष्ण प्रेमी द्वारा रचित ‘आन का मान’ एक ऐतिहासिक नाटक है, जिसमें इतिहास और कल्पना का मणिकांचने संयोग हुआ है। नाटक के पात्र और उसकी घटनाएँ भारत के मध्यकालीन इतिहास से सम्बद्ध हैं। नाटक के पात्र औरंगजेब, उसका पुत्र अकबर द्वितीय, पुत्रियाँ जीनतुन्निसा व मेहरुन्निसा, पौत्र बुलन्द अख्तर, पौत्री सफीयतुन्निसा, शुजाअत खाँ तथा राजपूतों में दुर्गादास, अजीतसिंह, मुकुन्दीदास आदि प्रसिद्ध ऐतिहासिक व्यक्ति हैं। जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह की अफगानिस्तान से लौटते समय मृत्यु होना, मार्ग में उनकी दोनों रानियों द्वारा दो पुत्रों को जन्म देना, औरंगजेब के द्वारा महाराजा के परिवार को इस्लाम धर्म अपनाने पर दबाव डालना, दुर्गादास राठौर के नेतृत्व में राजकुमार अजीतसिंह का निकल भागना, प्रतिशोध में औरंगजेब का जोधपुर पर आक्रमण करना, अकबर द्वितीय की ईरान भाग जाना और उसके पुत्र-पुत्रियों की देख-रेख दुर्गादास द्वारा किया जाना आदि प्रमुख ऐतिहासिक घटनाएँ हैं। साथ ही औरंगजेब की धर्मान्धता, राज्य–विस्तार नीति, साम्प्रदायिक वैमनस्य, व्यापार व कला का ह्रास आदि ऐतिहासिक तत्त्वों को भी प्रस्तुत नाटक में सफलतापूर्वक दर्शाया गया है।
उपर्युक्त ऐतिहासिक तथ्यों के अतिरिक्त प्रस्तुत नाटक में अनेक काल्पनिक घटनाओं का भी समावेश किया गया है। शिलाखण्ड पर बैठी सफीयत और अजीत का प्रणय-प्रसंग, दुर्गादास का पालकी में कन्धा देना तथा प्रमुख पात्रों के चरित्रांकन में भी कल्पना की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, जिससे नाटक रोचक और सफल बन पड़ा है। इसमें एक सफल नाटक के सभी गुण—-सुगठित कथानक, सीमित और सशक्त पात्र, जीवम कथोपकथन, सटीक देश-काल और वातावरण, उच्च उद्देश्य एवं श्रेष्ठ अभिनेयता विद्यमान हैं। इस प्रकार ‘आन का मान’ एक सफल ऐतिहासिक नाटक है।
प्रश्न 7:
‘आन का मान के आधार पर नाटक के उद्देश्य अथवा सन्देश पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
या
” ‘आन का मान नाटक में राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय नव-निर्माण के लक्ष्य की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
“आन का मान’ में देशभक्ति एवं राष्ट्रीय एकता का विलक्षण आदर्श प्रस्तुत किया गया है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक की रचना में नाटककार को अपने उद्देश्य को पूर्ण करने में कहाँ तक सफलता मिली है ? संक्षेप में लिखिए।
या
“विश्व-बन्धुत्व और मानवतावाद ‘आन का मान’ नाटक का मूल स्वर है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए। विश्वव्यापी मानव-प्रेम की भावना का वर्णन कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक में मान, मर्यादा और देशभक्ति का अदभुत समन्वय देखने को मिलता है। सप्रमाण उत्तर दीजिए।
या
उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए कि ‘आन का मान’ नाटक गांधीवाद से ओत-प्रोत है।
या
‘आन का मान’ नाटक की मूल भावना का प्रकाश डालिए।
या
” ‘आन का मान’ नाटक में भारतीय चिन्तन परम्परा के अनुरूप मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा है।” उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘आन का मान’ का सन्देश अथवा उद्देश्य
प्रस्तुत ऐतिहासिक नाटक ‘आन को मान’ हरिकृष्ण प्रेमी जी की एक सफल रचना है। इसमें प्रेमी जी ने आदर्श मानवीय गुणों को चित्रित किया है तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता का सन्देश दिया है। वीर दुर्गादास को भारतीय संस्कृति के आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सदाचार, सद्भाव, सत्य, स्वाभिमान, शौर्य, राष्ट्रीय भावना, साम्प्रदायिक एकता, जनतन्त्र का समर्थन, अत्याचार का विरोध आदि गुणों से अनुप्राणित करके दुर्गादास का चरित्रांकन नाटककार ने इस उद्देश्य से किया है कि आधुनिक भारत के युवक इन गुणों से युक्त होकर नायक दुर्गादास के आदर्श का पालन करते हुए आदर्श देश-प्रेमी तथा सच्चे मनुष्य बनें। इस प्रकार नाटक के बहुमुखी उद्देश्य हैं।
(1) एकता का सन्देश – साम्प्रदायिक एकता का सन्देश भी नाटक का प्रमुख उद्देश्य है। राष्ट्र का उद्बोधन एवं जागरण ही इस नाटक का सन्देश है। दुर्गादास राजपूती गौरव का ज्वलन्त प्रतीक है। उसके अनुसार “राजपूतों की तलवार सदैब सत्य, न्याय, स्वाभिमान और स्वदेश की संरक्षक होकर रही है। भारत ने कभी सीमा से बाहर जाकर साम्राज्य विस्तार के लिए तलवार नहीं उठायी। अगर वह बाहर गया तो ज्ञान का दीपक लेकर।”
(2) लोकहित का महत्त्व – प्रस्तुत नाटक के द्वारा प्रेमी जी ने लोकहित के महत्त्व को भी स्थापित किया है। राष्ट्रीय एकता और नव-निर्माण के लक्ष्य की ओर ध्यान दिया गया है। राष्ट्र-निर्माण का कार्य तभी पूरा हो सकेगा, जब जातीयता और साम्प्रदायिकता का समूल नाश हो जाएगा। आज का सामान्य मनुष्य व्यक्तिवादी हो गया है। ऐसे लोगों को ‘सफीयत’ के द्वारा सन्देश दिया गया है कि लोकहित के लिए आत्महित का त्याग कर देना चाहिए। आज के भौतिकवादी और केवल मांसल प्रेम के लिए इच्छुक युवकों को सन्देश देती हुई ‘सफीयत’ कहती है-“प्रेम केवल भोग की ही माँग नहीं करता, वह त्याग और बलिदान भी चाहता है।”
(3) देश प्रेम या देशभक्ति – नाटककार का उद्देश्य है कि भारतीय युवक देश के प्रति गहन अपनत्व की भावना से परिपूर्ण हो जाएँ और सच्चे देशप्रेमी बनें। इस नाटक में दुर्गादास के चरित्र के माध्यम से देशभक्ति एवं स्वामिभक्ति का विलक्षण आदर्श प्रस्तुत किया गया है। वह कहता है-”दुर्गादास जाता है, और मारवाड़ को यदि दुर्गादास के प्राणों की आवश्यकता हुई तो वह लौटकर आएगा। मैं अपनी जन्मभूमि को अन्तिम प्रणाम करता हूँ।”
(4) प्रलोभन का त्याग – दुर्गादास सच्चा राजपूत उसे ही स्वीकार करता है जो बड़े से बड़ा प्रलोभन मिलने पर भी अपने स्वामी और देश से द्रोह न करे तथा यश-अपयश की परवाह न कर अपना धर्म निभाता रहे।
(5) संगठन में शक्ति – नाटक में प्राय: सभी पात्रों को राष्ट्रीय एकता की दिशा में प्रयत्नशील चित्रित किया गया है। प्रेमी जी मानते हैं कि भारत को शक्तिशाली बनाने के लिए जातीय एकता अनिवार्य है। भावात्मक समन्वय का आदर्श नाटक में कहीं भी धूमिल नहीं हो पाया है।
(6) विश्वबन्धुत्व की भावना – नाटक में विश्व-बन्धुत्व और मानवतावाद, विश्व-शान्ति और अन्तर्राष्ट्रीय समन्वय का सन्देश दिया गया है। दुर्गादास बुलन्द अख्तर से कहता है- “ पिता और पुत्र के नाते से भी बड़ा नाता मानवता का है। मानव को मानव के साथ जो नाता है, वह स्वार्थ का नाता नहीं है, वह पवित्र नाता है।” इस नाटक में अन्तर्राष्ट्रीय एकता और विश्वबन्धुत्व का आदर्श प्राप्त करने के लिए युद्ध विरोधी संस्कारों को अनिवार्य बताया गया है। इस प्रकार प्राचीन ऐतिहासिक कथानक के माध्यम से नाटककार ने आधुनिक समाज को कुछ सन्देश दिये हैं। ये सन्देश हैं-आदर्श मानवीय चरित्र का पालन, क्रूर राजनीति से घृणा, राष्ट्रीय प्रेम का सन्देश, साम्प्रदायिक एकता का सन्देश; कर्तव्यनिष्ठा की प्रेरणा। इन सन्देशों को नाटक के माध्यम से समाज को सम्प्रेषित करना ही नाटककार का उद्देश्य है, जिसमें वह पूर्ण रूप से सफल रहा है।
प्रश्न 8:
‘आन का मान’ नाटक के शीर्षक अथवा नामकरण की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
या
‘आन का मान’ नाटक के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
या
‘आन का मान’ नाटक का शीर्षक किस पात्र के माध्यम से रखा गया है ? स्पष्ट कीजिए।
या
‘आन का मान में किसके आन के मान की चर्चा की गयी है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शीर्षक की सार्थकता
श्री हरिकृष्ण प्रेमी कृत ‘आन का मान’ नाटक में सर्वत्र राजपूतों द्वारा अपनी ‘आन’ अर्थात् अपने व्रत या परम्परा का निर्वाह प्रदर्शित हुआ है। दुर्गादास द्वारा राजपूतों को संगठित करके राजपूती आन एवं सम्मान की रक्षा हेतु प्रयासरत रहना इसी तथ्य का परिचायक है। दुर्गादास द्वारा अपने स्वामी जसवन्तसिंह के पुत्र अजीतसिंह को राजपूती आन की रक्षार्थ बड़े-से-बड़े संकट से जूझने के लिए तैयार करना, अजीतसिंह में राजपूती परम्परा पर आधारित गुणों का विकास करना तथा अन्तिम समय तक औरंगजेब के पुत्र अकबर द्वितीय के साथ अपनी मित्रता का निर्वाह करना भी, शीर्षक की सार्थकता की ओर ही संकेत करते हैं। दुर्गादास नारी के सम्मान की रक्षा हेतु सदैव तैयार रहता है। वह अपने मित्र अकबर द्वितीय के ईरान चले जाने पर उसके पुत्र-पुत्री का पालन-पोषण स्वयं करता है और इस्लाम धर्म के अनुरूप ही उनकी शिक्षा की व्यवस्था करता है। अपनी आन के अनुरूप वह उन बच्चों की प्रत्येक स्थिति में रक्षा करता है और अन्त में उन बच्चों को अकबर द्वितीय के पिता औरंगजेब को सौंप देता है। अजीतसिंह का विरोध करके भी दुर्गादास; सफीयतुन्निसा की इज्जत की रक्षा करना अपना राजपूती धर्म समझता है।
इस प्रकार ‘आन का मान’ नाटक में राजपूती ‘आन-मान’ के अनुरूप नारी के सम्मान की रक्षा, मित्र के प्रति अपनी वचनबद्धता का निर्वाह, कर्तव्य-पालन को सर्वोपरि मानना, राजपूत जाति के प्रति गौरव की भावना का प्रदर्शन करना आदि ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि प्रस्तुत नाटक अपने शीर्षक अथवा नामकरण की दृष्टि से पूर्णतः सफल नाक है।
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