UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 11 Concept of Reservation: Necessity, Scope, and Results (आरक्षण की अवधारणा-आवश्यकता, क्षेत्र तथा परिणाम)

By | May 29, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 11 Concept of Reservation: Necessity, Scope, and Results (आरक्षण की अवधारणा-आवश्यकता, क्षेत्र तथा परिणाम)

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 11 Concept of Reservation: Necessity, Scope, and Results (आरक्षण की अवधारणा-आवश्यकता, क्षेत्र तथा परिणाम)

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
आरक्षण से आप क्या समझते हैं? भारत में आरक्षण व्यवस्था की आवश्यकता तथा प्रभाव पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए। [2016]
या
भारत में आरक्षण की आवश्यकता तथा प्रभाव का परीक्षण कीजिए। [2007]
या
आरक्षण क्या है? आरक्षण के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए। [2011]
या
भारत में आरक्षण नीति तथा आरक्षण के परिणामों का परीक्षण कीजिए। [2008]
उत्तर
आरक्षण का अर्थ
यदि किसी राजव्यवस्था और राजव्यवस्था से जुड़े समाज में समानता को न केवल सिद्धान्त, वरन् व्यवहार में भी लगभग सम्पूर्ण अंशों में मान्यता प्राप्त हो, तो आरक्षण की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन व्यवहार में स्थिति यह है कि लोकतान्त्रिक राजव्यवस्थाओं में भी समानता को केवल सिद्धान्त में ही स्वीकार किया गया है, व्यवहार में अधिकांश अंशों में असमानता की स्थिति विद्यमान है। व्यवहार में विद्यमान यह स्थिति ही आरक्षण की आवश्यकता को जन्म देती है।

आरक्षण शब्द अंग्रेजी शब्द ‘रिजर्वेशन’ (Reservation) का हिन्दी रूपान्तर है। इसका शाब्दिक अर्थ है-स्थिर रखना, सुरक्षित करना। लेकिन राजनीतिक सन्दर्भ में इस शब्द का अर्थ है-समाज के आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान तथा कल्याण के लिए सरकार के द्वारा ऐसी नीतियों, कानूनों तथा कार्यक्रमों को प्रारम्भ करना जिससे वे समाज तथा राष्ट्र की मुख्य धारा से अपने आपको सम्बद्ध कर सकें। आरक्षण के द्वारा इन वर्गों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, जिससे कि वे समाज के अन्य वर्गों की बराबरी कर सकें।

भारतीय राजनीति में आरक्षण’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड मिण्टो ने 1909 ई० में किया था। सन् 1909 ई० में भारतीय शासन अधिनियम पारित किया गया था, जिसे मार्ले-मिण्टो सुधार के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार ‘आरक्षण व्यवस्था अंग्रेजों की कूटनीतिक देन है, जिसका एकमात्र उद्देश्य भारत में अंग्रेजी राजे को दीर्घकाल तक बनाए रखना था। वर्तमान समय में आरक्षण व्यवस्था भारतीय राजनीति का एक अभिन्न अंग बन गई है। भारत में आरक्षण की व्यवस्था को स्वतन्त्रता की प्राप्ति से पहले ब्रिटिश सरकार ने कुछ निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए लागू किया था। उसके पश्चात् धीरे-धीरे आरक्षण की माँग का निरन्तर विस्तार होता गया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जाति के आधार पर समाज की अन्य पिछड़ी जातियों (27%), अनुसूचित जातियों (15%) तथा जनजातियों (7.5%) को सरकारी सेवाओं, शिक्षण संस्थाओं, केन्द्रीय विधायिका, राज्य विधानमण्डलों तथा स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में भी सीटों का आरक्षण दिया गया है। भारत में प्रथम बार लिंग के आधार पर भी स्थान सुरक्षित किए गए हैं।

आरक्षण की आवश्यकता
1. सामाजिक और क्षेत्रीय विषमताओं के कारण आरक्षण आवश्यक – एक देश के अन्तर्गत जब कुछ वर्ग और क्षेत्र विकास की दृष्टि से बहुत अधिक पिछड़े हुए होते हैं, तब ये वर्ग और क्षेत्र अपना विकास तभी कर पाते हैं, समाज के अन्य वर्गों के समान स्तर पर तभी आ पाते हैं, जब उन्हें प्रतिनिधित्व और सेवाओं के क्षेत्र में विशेष सुविधाएँ, विशेष अवसर दिए जाएँ। इस प्रकार की विशेष सुविधाएँ और विशेष अवसर ही आरक्षण है। भारत में कुछ वर्ग (दलित जातियाँ) और कुछ क्षेत्र (जनजाति क्षेत्र) बहुत ही अधिक पिछड़े हुए हैं, अतः उनके लिए आरक्षण आवश्यक हो जाता है।

2. आरक्षण लोकतन्त्र और समानता के अनुकूल – लोकतन्त्र की माँग है कि समाज के सभी वर्गों को विकास के समुचित अवसर प्रदान किए जाएँ, लेकिन यह लोकतान्त्रिक समानता तभी वास्तविकता का रूप ले पाती है, जब पिछड़े हुए वर्गों को अपने जीवन और समाज में आगे बढ़ने के लिए विशेष अवसर दिए जाएँ। आरक्षण यही कार्य करता है तथा इस दृष्टि से आरक्षण लोकतन्त्र और समानता के अनुकूल है, प्रतिकूल नहीं। आरक्षण वह साधन है जो लोकतान्त्रिक समानता को मात्र कागजी नहीं, वरन् वास्तविकता का रूप देने का प्रयत्न करता है।

3. सामाजिक न्याय के लक्ष्य की प्राप्ति का साधन – सामाजिक न्याय लोकतन्त्र का एक आवश्यक अंग है और सामाजिक न्याय की माँग है कि राज्य के दुर्बल वर्गों को, अन्य व्यक्तियों की तुलना में कुछ विशेष अवसर और सुविधाएँ प्राप्त हों। यह आरक्षण के आधार पर ही सम्भव हो सकता है। इस दृष्टि से आरक्षण सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाता है। इस बात को दृष्टि में रखते हुए ही भारत सहित विश्व के कुछ अन्य देशों में आरक्षण की व्यवस्था को अपनाया गया है।

4. भारत की परम्परागत सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि से आरक्षण आवश्यक – भारत में हिन्दू वर्ग के अनुयायी परम्परागत रूप में दो वर्गों में विभाजित रहे हैं। प्रथम, सवर्ण हिन्दू अर्थात् उच्च जातियाँ और द्वितीय, निम्न जातियाँ। सवर्ण हिन्दुओं द्वारा तथाकथित निम्न जातियों का सैकड़ों वर्षों से शोषण किया जाता रहा है, उन्हें अपवित्र मानते हुए उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता रहा है। इस पृष्ठभूमि में हिन्दू समाज की निम्न जातियों के पिछड़ेपन का दायित्व समाज पर आता है और समाज के इन वर्गों को विशेष सुविधाएँ और अवसर प्रदान करने का औचित्य है।

5. क्षेत्रीय विषमताओं के कारण आरक्षण की आवश्यकता – क्षेत्र और जनसंख्या की दृष्टि से विशाल और विविधताओं से भरे इस देश में जातीय विषमताओं के समान ही क्षेत्रीय विषमताओं की स्थिति भी रही है। भारतीय संघ के विविध राज्यों में ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जहाँ स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय तक शहरी जीवन की सुविधाओं ने भी प्रवेश नहीं किया था। स्वाभाविक रूप से इन क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्ति घोर पिछड़ेपन में रहते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। इन क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों को आदिवासी, वनवासी, गिरिजन एवं जनजाति आदि नामों से पुकारा जाता रहा है। इन क्षेत्रों के घोर पिछड़ेपन का दायित्व भी सम्पूर्ण समाज और राजव्यवस्था पर आता है। अत: संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजातियों का नाम दिया गया तथा इन्हें प्रतिनिधि संस्थाओं और सेवाओं में आरक्षण की सुविधा तथा विकास के लिए अन्य कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान की गईं।

अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान के भाग 16 ‘कुछ वर्गों के सम्बन्ध में विशेष उपबन्ध’ के अन्तर्गत की गई है तथा संविधान के इस भाग 16 का आधार संविधान का अनुच्छेद 46 है। अनुच्छेद 46 में कहा गया है-
“राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के विशिष्टतया अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के शिक्षा तथा अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा।’ संविधान जनता के दुर्बल वर्गों के शिक्षा तथा अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि और सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा की बात करता है और जनता के दुर्बल वर्गों में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों का उल्लेख करता है।

इस प्रकार संविधान जाति के आधार पर आरक्षण की अनुमति प्रदान करता है, लेकिन धर्म के आधार पर आरक्षण की कोई अनुमति प्रदान नहीं करता। भारतीय समाज के हिन्दू वर्ग में परम्परागत रूप से जाति व्यवस्था की जो स्थिति रही है, उसमें वर्ग के साथ जाति के जुड़ने और जातिगत आधार पर आरक्षण का औचित्य है।

सामाजिक न्याय लोकतान्त्रिक व्यवस्था का एक आवश्यक अंग है और सामाजिक न्याय की माँग है कि समाज के दुर्बल वर्गों को अन्य व्यक्तियों की तुलना में विकास के लिए कुछ विशेष अवसर और सुविधाएँ प्राप्त हों। यह आरक्षण के आधार पर सम्भव हो सकता है, इस दृष्टि से आरक्षण सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाता है। आरक्षण के कुछ प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं-

1. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की स्थिति में कुछ सुधार, लेकिन अपेक्षित सुधार नहीं – आरक्षण की इस व्यवस्था से अनुसूचित जातियों और जनजातियों की स्थिति में कुछ सुधार अवश्य ही हुआ है। आज भारत की लोकसभा में अनुसूचित जातियों के 79 से अधिक और जनजातियों के 42 प्रतिनिधि हैं। यह स्थिति इन जातियों के लिए अच्छी है, लोकसभा या संसद के लिए भी उचित स्थिति है। यदि आरक्षण की व्यवस्था नहीं होती, तो इन जातियों के कुल मिलाकर इसके आधी संख्या के प्रतिनिधि भी लोकसभा के लिए निर्वाचित नहीं होते और ऐसी स्थिति में भारत की संसद या लोकसभा को भारत की समस्त जनता को प्रतिनिधि कह पाना बहुत कठिन हो जाता। लोक-सेवाओं, केन्द्रीय तथा राज्य सरकार के अधीन उच्च स्तर की लोक-सेवाओं में भी इन जातियों के सदस्यों ने पर्याप्त संख्या में प्रवेश पाया है। इसी प्रकार पिछड़ी जातियों को जो आरक्षण प्रदान किया गया है, उससे सेवाओं में इन जातियों के सदस्यों की संख्या में वृद्धि हुई है। प्रतिनिधि संस्थाओं और सेवाओं में यह स्थिति लोकतान्त्रिक व्यवस्था की दृष्टि से शुभ है।

2. इन जातियों में चेतना का उदय – आरक्षण की व्यवस्था और इस व्यवस्था से प्राप्त लाभों के परिणामस्वरूप अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों में चेतना का उदय हुआ है, जहाँ चेतना पहले से कुछ अंशों में विद्यमान थी, वहाँ चेतना में वृद्धि हुई है।

3. आरक्षण जातियों के आपसी मेल-मिलाप और समतावादी समाज की स्थापना में बाधक – अनुसूचित जातियों और जनजातियों को प्रदान की गयी विशेष सुविधाओं का मूल उद्देश्य इन जातियों को विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाकर उन्हें राष्ट्र और समाज की मुख्य धारा में मिलाना था, परन्तु आरक्षण की यह व्यवस्था सभी जातियों के आपसी मेल-मिलाप में बाधा बनती जा रही है। हिन्दू समाज की तथाकथित उच्च जातियों में अनुसूचित जातियों के प्रति नवीन द्वेष की भावना उत्पन्न होती जा रही है और अनुसूचित जातियाँ सामाजिक मेल-मिलाप की चिन्ता न कर अपने इन विशेष अधिकारों को बनाये रखना चाहती हैं।

4. अन्य जातियों में आरक्षण का लाभ पाने की होड़ – अब तक जो जातियाँ आरक्षण के लाभ से वंचित हैं, इस सदी के अन्तिम दशक में वे आरक्षण का लाभ प्राप्त करने के प्रबल प्रयत्नों में जुट गयी हैं। इन जातियों के लिए अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों में प्रवेश पाना सरल नहीं है, लेकिन पिछड़े वर्ग या पिछड़ी जातियों की कोई निश्चित परिभाषा कर पाना सम्भव नहीं है; अतः वे अपने आपको विकास और शिक्षा की दृष्टि से पिछड़ी बतलाते हुए माँग कर रही हैं कि उन्हें भी पिछड़े वर्गों में शामिल किया जाना चाहिए। उत्तर भारत के जाट, महाराष्ट्र के मराठा, मध्य प्रदेश के कुर्मी, उत्तर प्रदेश के मुसलमान, गूजर, हरियाणा के सैनी, राजस्थान के मेव, कायमखानी और विश्नोई, आन्ध्र प्रदेश के रेड्डी और कर्नाटक के वोक्कालिंगा पिछड़े वर्गों में शामिल होने की माँग कर रहे हैं तथा सांसदों का एक वर्ग उनकी मॉग का समर्थन कर रहा है।

प्रश्न 2.
सरकारी सेवाओं में जातीय आधार पर आरक्षण के औचित्य का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। [2010]
या
आरक्षण पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए। [2011]
या
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार द्वारा आरक्षण व्यवस्था से सम्बन्धित प्रावधानों का विवेचन कीजिए। [2009]
या
वर्तमान आरक्षण नीति का आधार क्या है? विवेचना कीजिए। [2008]
या
सरकारी सेवाओं में जाति के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था में पदोन्नति (प्रोमोशन) को शामिल करने के औचित्य का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। [2013]
उत्तर
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात आरक्षण के सम्बन्ध में उठाए गए कदम।
भारतीय संविधान समानता एवं भ्रातृत्व (Equality and Fraternity) की अवधारणा पर आधारित है। अतः संविधान निर्माताओं ने यह विचार किया कि यदि समानता को वास्तविकता की स्थिति प्रदान करनी है तो समाज के अछूत, दलित तथा पिछड़े वर्गों को विशेष सुविधाएँ प्रदान करनी होंगी। इन विशेष सुविधाओं के आधार पर ही समाज के ये दलित और पिछड़े वर्ग अन्य वर्गों के समान विकास की स्थिति को प्राप्त कर सकेंगे। आरक्षण के सम्बन्ध में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण प्रावधान किए गए

संविधान में आरक्षण की व्यवस्था
सन् 1950 ई० में भारतीय संविधान को लागू किया गया तथा आरक्षण को संविधान में संवैधानिक आधार प्रदान किया गया। मूल अधिकारों से सम्बन्धित संविधान के भाग ३ अनुच्छेद 16 में स्पष्ट रूप से लिखा गया है-“सबै नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के समान अवसर प्राप्त होंगे और इस सम्बन्ध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग अथवा जन्म-स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर सरकारी नौकरी अथवा पद प्रदान करने में भेदभाव नहीं किया जाएगा। इस प्रकार से संविधान का यह अनुच्छेद भारत के समस्त नागरिकों को समान रूप से सरकारी नौकरियों में समान अवसर प्रदान करता है। परन्तु इस स्थिति के होते हुए भी सरकार अनुच्छेद 16(4) के अधीन सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए स्थानों का आरक्षण कर सकती है।

संविधान के अध्याय 16 में 13 अनुच्छेदों (अनुच्छेद 330 से 342 तक) के द्वारा कुछ विशेष वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था अस्थायी है और इसे संविधान के लागू होने के बाद 10 वर्ष तक अर्थात् 1960 ई० तक बनाए रखने की व्यवस्था की गई थी, परन्तु बाद में संवैधानिक संशोधनों के द्वारा इन विशेष व्यवस्थाओं की अवधि बढ़ा गई। 8वें, 23वें और 45वें संवैधानिक संशोधन में से प्रत्येक के द्वारा आरक्षण की अवधि 10 वर्ष बढ़ाई गई तथा बाद में 62वें संविधान संशोधन (1990 ई०) के आधार पर 25 जनवरी, 2000 ई० तक के लिए बढ़ा दी गई। 79वें संवैधानिक संशोधन अक्टूबर (1999 ई०) के अनुसार अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए संसद तथा राज्य विधानमण्डलों के स्थान आरक्षित रखने की व्यवस्था को 26 जनवरी, 2010 ई० तक के लिए बढ़ा दिया गया जिसे अब अगले और दस वर्षों तक के लिए बढ़ाकर 2020 तक के लिए लागू किया गया है।

संविधान के अध्याय 16 को ‘कुछ वर्गों के सम्बन्ध में विशेष उपबन्ध’ का शीर्षक दिया गया है। और इस अध्याय में आंग्ल-भारतीय समुदाय, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़ी जातियों के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। इन विशेष प्रावधानों के उद्देश्य को संविधान के अनुच्छेद 46 में इस प्रकार स्पष्ट किया गया है-“राज्य जनता के दुर्बल वर्गों, विशेषतया अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी सुरक्षा करेगा।”

आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए आरक्षण सम्बन्धी व्यवस्थाएँ
आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए संविधान में दो प्रकार की आरक्षण सम्बन्धी विशेष व्यवस्थाएँ की गई हैं। प्रथम, संसद तथा राज्य विधानमण्डलों में स्थानों का आरक्षण तथा द्वितीय, सरकारी सेवाओं में विशेष सुविधाएँ। इस वर्ग के लिए सरकारी सेवाओं में विशेष सुविधाएँ अब समाप्त हो गई हैं, लेकिन संसद तथा राज्य विधानमण्डलों में स्थानों के आरक्षण की स्थिति इस वर्ग को अभी तक प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 331 के अन्तर्गत राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि यदि लोकसभा में राष्ट्रपति के विचार में आंग्ल-भारतीय वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त न हुआ हो तो वह लोकसभा में अधिक-से-अधिक 2 आंग्ल-भारतीयों को नियुक्त कर सकता है। अनुच्छेद 333 के अन्तर्गत राज्य के राज्यपाल को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि यदि उसके विचार में राज्य की विधानसभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हुआ है तो वह एक प्रतिनिधि को मनोनीत कर सकेगा।

अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की आरक्षण सम्बन्धी व्यवस्थाएँ
अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के सम्बन्ध में प्रमुख रूप से निम्नलिखित व्यवस्थाएं की गई हैं-

1. प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में विशेष व्यवस्था – संविधान में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए जनसंख्या के आधार पर स्थान आरक्षित करने की व्यवस्था की गई है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इन जातियों के उम्मीदवार सुरक्षित स्थानों के अतिरिक्त अन्य निर्वाचन क्षेत्रों से भी चुनाव लड़ सकते हैं। लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए 79 तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए 40 स्थान सुरक्षित किए गए हैं। राज्य के विधानमण्डलों में भी अनुसूचित जाति तथा जनजाति के उम्मीदवारों के लिए स्थान सुरक्षित किए जाने की व्यवस्था है।

2. सेवाओं तथा शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश हेतु विशेष आरक्षण – संविधान के अनुच्छेद 355 के अन्तर्गत अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के उम्मीदवारों के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों की प्रशासनिक सेवाओं में प्रशासनिक कुशलता के अनुरूप स्थान सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गई है। संविधान आरक्षित स्थानों का प्रतिशत एवं समय-सीमा निर्धारित नहीं करता है। इन्हें प्रशासन द्वारा नियमों के अन्तर्गत निर्धारित करने की व्यवस्था की गई है। इन जातियों के लिए शासकीय सेवाओं में प्रतिनिधित्व देने के लिए जो रियायतें प्रदान की गई हैं, उनमें से प्रमुख हैं-आयु सीमा में छूट, योग्यता स्तर में छूट, कार्यकुशलता का निम्नतम स्तर पूरा न करने पर भी उनका चयन, नीचे की श्रेणियों में उनकी नियुक्ति तथा पदोन्नति का विशेष प्रबन्ध। 1950 ई० में गृह मन्त्रालय द्वारा पारित प्रस्ताव के अनुसार इन जातियों के लिए 12.5% से 16% तेक स्थान आरक्षित किए जाने की व्यवस्था थी। परन्तु बाद में यह व्यवस्था की गई कि अनुसूचित जातियों के लिए 15% तथा जनजातियों के लिए 7.5% स्थान आरक्षित किए जाएँगे।

3. विशेष आयोग – इन जातियों के हितों की सुरक्षा के लिए तथा उनसे सम्बन्धित विषयों की जाँच करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 388 में एक विशेष आयोग ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन किए जाने का प्रावधान किया गया है।

4. जाँच आयोग की नियुक्ति – संविधान के अनुच्छेद 340 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति दो आयोगों की नियुक्ति करेगा। प्रथम अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन व अनुसूचित जातियों के कल्याण सम्बन्धी मामलों की जाँच करेगा तथा दूसरा पिछड़ी जातियों की शैक्षणिक तथा सामाजिक स्थिति की जाँच करेगा। इसके अतिरिक्त वे आयोग उनकी उन्नति के उपायों की ओर संघ तथा राज्य सरकारों का ध्यान आकर्षित करेंगे। संविधान के द्वारा केन्द्र सरकार को यह अधिकार है कि वह प्रथम आयोग की सिफारिशों पर अमल करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दे। दूसरे आयोग की सिफारिशों को अपनाने के लिए केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को परामर्श तो दे सकती है, परन्तु निर्देश नहीं। उनका पालन करना राज्य सरकारों की इच्छा तथा साधनों पर निर्भर करता है। आयोगों के द्वारा तैयार किए गए प्रतिवेदन संसद के दोनों सदनों के सम्मुख प्रस्तुत किए जाते हैं।

5. कल्याणकारी योजनाओं को लागू करना – संविधान के अनुच्छेद 275 के अनुसार अनुसूचित जातियों के विकास के उद्देश्य से बनाई गई योजनाओं के लिए राज्य सरकारों को विशेष अनुदान देने की व्यवस्था है। अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियाँ दिए जाने, नि:शुल्क शिक्षा देने तथा प्राविधिक एवं व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों में स्थान सुरक्षित रखने का प्रावधान किया गया है। संविधान में यह भी व्यवस्था की गई है कि झारखण्ड, ओडिशा उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में जनजातियों के कल्याण के लिए एक मन्त्री होगा, जिसे अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए उत्तरदायी बनाया गया है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
(क) 1909 ई० का मॉर्ले-मिण्टो सुधार अधिनियम,
(ख) पूना पैक्ट,
(ग) मण्डल आयोग।
उत्तर
(क) मॉर्ले-मिण्टो सुधार अथवा 1909 ई० के अधिनियम में आरक्षण की व्यवस्था
स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व ब्रिटिश शासन के द्वारा धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी। सर्वप्रथम मॉर्ले-मिण्टो सुधारों (1909 ई०) द्वारा मुसलमानों को निर्वाचनों में आरक्षण प्रदान किया गया था। 1909 ई० के अधिनियम द्वारा पृथक एवं साम्प्रदायिक निर्वाचन-पद्धति अपनाई गयी। सामान्य निर्वाचन तथा क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त को भारत के लिए अनुपयुक्त समझा गया। विभिन्न वर्गों, हितों तथा जातियों के आधार पर मुसलमानों के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था की गयी। इसके अतिरिक्त वाणिज्यिक संघों तथा जमींदारों आदि के लिए भी पृथक् निर्वाचन-क्षेत्रों की व्यवस्था की गयी। मुसलमानों के लिए साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के आधार पर पृथक् निर्वाचन पद्धति के साथ-साथ अधिकार मतों (Weightage Votes) की भी व्यवस्था की गयी। मुसलमानों के पृथक् प्रतिनिधित्व को देखते हुए सिक्ख, हरिजन, आंग्ल-भारतीय आदि वर्ग भी पृथक् प्रतिनिधित्व की माँग करने लगे।

(ख) पूना पैक्ट (1932 ई०)
पूना पैक्ट में साम्प्रदायिक निर्णय की तुलना में अनुसूचित जातियों को अधिक स्थान प्रदान किये गये। पूना पैक्ट के द्वारा अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधियों के लिए 71 से बढ़ाकर 148 स्थानों को सुरक्षित कर दिया गया। इन सुरक्षित स्थानों के लिए चुनाव की द्विस्तरीय व्यवस्था को स्वीकार किया गया। इस व्यवस्था में यह प्रावधान था कि प्रथम चरण में प्रत्येक सुरक्षित स्थानों के लिए हरिजन प्रत्याशियों को चयनित किया जाएगा। अन्त में हिन्दू तथा हरिजन संयुक्त रूप से इन चार प्रत्याशियों में से एक प्रत्याशी को निर्वाचित करेंगे। यह विषय 30 वर्षों तक लागू रहेगा। हरिजनों को सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी मत देने का अधिकार होगा।

(ग) मण्डल आयोग
आयोग ने अपनी रिपोर्ट 31 दिसम्बर, 1980 ई० को सरकार को सौंप दी, जिसे सरकार ने 30 अप्रैल, 1982 ई० को संसद में प्रस्तुत किया। आयोग ने पिछड़ी जातियों को परिभाषित किया तथा उनकी पहचान के लिए मानदण्ड प्रस्तुत करते हुए कुल 3,743 जातियों को पिछड़ी घोषित किया, जबकि प्रथम पिछड़ा आयोग (कालेलकर आयोग) ने केवल 2,399 जातियों को पिछड़ी जाति घोषित किया था। आयोग की रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिशें की गई थीं-

  1. सम्पूर्ण पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 52% है तथा इनके लिए इसी अनुपात में स्थान आरक्षित किया जाना उचित है, परन्तु संविधान के अनुच्छेद 15(4) तथा 16(4) के प्रसंग में उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई व्यवस्था के अनुसार 50% से अधिक स्थान आरक्षित नहीं किया जा सकता है तथा 22.5% स्थान अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए पहले से ही आरक्षित है, अत: पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 52% होने के बावजूद उनके लिए 27% स्थान आरक्षित करने की सिफारिश की जाती है। पिछड़े वर्ग के जो अभ्यर्थी खुली प्रतियोगिता के आधार पर चुन लिए जाते हैं, उन्हें आरक्षण के कोटे में. न माना जाए।
  2. सरकारी नौकरियों में भी पहले से नियोजित पिछड़े वर्ग के लिए पदोन्नति में भी 27% आरक्षण दिया जाए।
  3. यदि 27% आरक्षित स्थानों के लिए पिछड़े वर्ग के लोग किसी वर्ष न मिल पाएँ, तो आरक्षित स्थानों को अगले वर्ष के लिए आरक्षित कर दिया जाए तथा तीन वर्ष तक चालू रखा जाए।
  4. प्रत्यक्ष नियुक्ति में पिछड़े वर्गों के अभ्यर्थियों की आयु सीमा में अनुसूचित जनजातियों को दी जाने वाली छूट के बराबर छूट दी जाए।
  5. जिस प्रकार अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सरकारी सेवाओं के लिए सम्बद्ध अधिकारी रजिस्टर रखता है, उसी प्रकार पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए भी सम्बद्ध अधिकारी द्वारा रजिस्टर रखा जाए।
  6. यह 27% आरक्षण राज्य सरकार, राज्य सरकार के अधीन सार्वजनिक क्षेत्रों, केन्द्र सरकार के अधीन सरकारी क्षेत्रों तथा बैंकों की नियुक्तियों में भी लागू हो।
  7. निजी क्षेत्रों के उन उद्योगों में भी पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया जाए, जो किसी भी प्रकार से सरकारी अनुदान या सहायता प्राप्त करते हैं।
  8. पिछड़े वर्गों के लिए विश्वविद्यालय तथा कॉलेजों में प्रवेश के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था लागू हो।

वी०पी० सिंह सरकार की घोषणा
तत्कालीन प्रधानमन्त्री वी०पी० सिंह ने 7 अगस्त, 1990 ई० को संसद के दोनों सदनों में घोषित किया कि भारत सरकार की सेवाओं और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में पिछड़े वर्गों को 27% आरक्षण : प्राप्त होगा। प्रधानमन्त्री ने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम बताया। 13 अगस्त, 1990 ई० को इस सम्बन्ध में सरकारी अधिसूचना जारी कर दी गई। यद्यपि यह रिपोर्ट श्रीमती इन्दिरा गांधी के कार्यकाल में ही आ गई थी, परन्तु उन्होंने तथा उनके बाद राजीव गांधी ने भी राजनीतिक कारणों से इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया। वी०पी० सिंह ने प्रधानमन्त्री बनने पर दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए सामाजिक न्याय के चक्र को प्रगति पथ पर बढ़ाते हुए इसे तुरन्त लागू कर दिया।

क्रीमी लेयर लाभ से वंचित
विधिक दृष्टि से उच्चतम न्यायालय ने 1 अक्टूबर, 1990 को मण्डल रिपोर्ट के क्रियान्वयन पर स्थगन आदेश जारी कर दिया। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि 13 अगस्त, 1990 ई० को सरकारी अधिसूचना पर रोक लगाई जाती है। लेकिन सरकार इस अधिसूचना के तहत लाभ पाने वाली जातियों को चिह्नित करने का काम जारी रख सकती है।

केन्द्र सरकार द्वारा आयोग की सिफारिश के आधार पर पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था 8 सितम्बर, 1993 ई० से लागू कर दी गई है। भारत सरकार के तत्कालीन कल्याण मन्त्री सीताराम केसरी ने घोषित किया, “केन्द्र सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण 8 सितम्बर, 1993 ई० से लागू हो गया है, लेकिन इन वर्गों के सम्पन्न वर्गों (क्रीमी लेयर) को इसका लाभ नहीं मिलेगा।” केसरी ने स्पष्ट किया कि पहले चरण में उन जातियों को आरक्षण मिलेगा, जिनके नाम मण्डल आयोग की रिपोर्ट तथा राज्य सरकार की सूचियों दोनों में शामिल हैं। ऐसी जातियों की संख्या लगभग 1,200 है।

पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए संसद में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम (1993 ई०) पारित किया गया, जिसके अधीन अगस्त 1993 ई० में न्यायमूर्ति आर० एन० प्रसाद की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की गई।

केन्द्र सरकार के अधीन व केन्द्र सरकार से सहायता प्राप्त उच्च शिक्षण संस्थाओं में पिछड़े वर्गों के विद्यार्थियों के लिए प्रवेश में 27% आरक्षण के लिए दिसम्बर 2006 में यूपीए सरकार द्वारा लाए गए विधेयक को संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया।

लघु उत्तरीय प्रश्ठा (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
पिछड़ी हुई जातियों के प्रसंग में आरक्षण की क्या स्थिति है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षण की तुलना में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था के प्रयत्नों ने समस्त सामाजिक व्यवस्था में अधिक गम्भीर तनावों को जन्म दिया है। पिछड़े हुए वर्गों के लिए आरक्षण के प्रश्न को लेकर संवैधानिक और राजनीतिक विवाद बहुत अधिक तीव्र रूप से सामने आया है।

अन्य पिछड़े वर्गों (OBCs) के सम्बन्ध की स्थिति – संविधान के भाग 16 तथा अन्य कुछ प्रावधानों में पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ अन्य पिछड़े वर्गों शब्द का प्रयोग किया गया है, किन्तु पिछड़े वर्गों का सीमांकन करना कठिन है। इसमें अनेक ऐसी जातियाँ हैं, जो अनुसूचित जातियाँ नहीं हैं, किन्तु समाज की अन्य तथाकथित उच्च जातियों से पिछड़ी हुई हैं; जैसे-नाई, बढ़ई, धोबी, दर्जी, अहीर, कुर्मी आदि। यद्यपि संविधान में इस शब्द समूह का एक-से-अधिक स्थानों पर प्रयोग हुआ है (अनुच्छेद 16(4) तथा अनुच्छेद 340 में, पर इसकी परिभाषा नहीं की गयी हैं। ‘राजनीति कोश’ के अनुसार, “पिछड़े हुए वर्गों का अभिप्राय समाज के उन वर्गों से है, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक नियोग्यताओं के कारण समाज के अन्य वर्गों की तुलना में निचले स्तर पर हों।”

संविधान अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा तथा अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि की बात जितनी स्पष्टता के साथ कहता है, अन्य पिछड़े वर्गों के सम्बन्ध में कोई बात ऐसी स्पष्टता और निश्चितता के साथ नहीं कहता। अनुच्छेद 16 ‘लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता’ का प्रावधान करता है तथा इसी प्रसंग में अनुच्छेद 16 के भाग (4) में कहा गया है कि “इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए व्यवस्था करने से नहीं रोकेगी। इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 340 में कहा गया है कि राष्ट्रपति पिछड़े वर्गों की दशाओं के लिए आयोग की नियुक्ति कर सकेगा। इस अनुच्छेद के अन्तर्गत अब तक प्रमुख रूप से दो आयोग स्थापित किये गये हैं-प्रथम ‘काका कालेलकर आयोग’ और द्वितीय ‘मण्डल आयोग’, जिसकी स्थापना जनता पार्टी के शासन काल (1977-79 ई०) में बिहार के भूतपूर्व मुख्यमन्त्री वी० पी० मण्डल की अध्यक्षता में की गयी।

द्वितीय, पिछड़ा वर्ग आयोग (मण्डल आयोग) की रिपोर्ट – इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 20 अप्रैल, 1982 को सरकार को प्रस्तुत की। आयोग ने पिछड़ी जातियों के लिए सरकारी, अर्द्धसरकारी एवं सार्वजनिक उद्योगों में 26 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने की सिफारिश की। आयोग ने पिछड़ी जातियों की परिभाषा की है तथा उनकी पहचान के लिए मानदण्ड प्रस्तुत करते हुए कुल 3,743 जातियों को पिछड़ी घोषित किया गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 52 प्रतिशत है और इनके लिए इसी अनुपात में स्थान आरक्षित किया जाना उचित है, परन्तु संविधान की धारा 15 (4) और 16 (4) के प्रसंग में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णयों के अनुसार कुल मिलाकर 50 प्रतिशत से अधिक स्थान आरक्षित नहीं किये जा सकते और 22.5 प्रतिशत स्थान अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए पहले से आरक्षित हैं। इस विवशता के कारण पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 52 प्रतिशत होने के बावजूद उनके लिए केवल 26 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने की सिफारिश की जाती है।

आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि पिछड़ी जातियों की शिक्षा तथा उनके औद्योगिक एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए। आयोग ने यह भी कहा है कि केन्द्र सरकार को विभिन्न पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए राज्य सरकारों को उसी प्रकार वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए, जिस प्रकार से अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए प्रदान की जाती है।

प्रश्न 2.
जाति-आधारित आरक्षण के भारतीय राजनीति पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिए। [2007]
उत्तर
संविधान में आरक्षण का प्रावधान समाज के कमजोर वर्ग के हितों की रक्षा और अभिवृद्धि के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन अब मूल उद्देश्य तो धुंधला हो गया है तथा आरक्षण का प्रश्न दलीय राजनीति और चुनावी राजनीति के साथ जुड़ गया है। जातियाँ यह सोचने लगी हैं। कि उन्हें अपने आप से संगठित कर और दबाव डालकर अपने लिए आरक्षण सुनिश्चित कर लेना चाहिए। वर्तमान गुजर-आन्दोलन इस विचारधारा का द्योतक है। जिन जातियों को आरक्षण प्राप्त है, वे ऐसा सोचती हैं कि राजनीतिक दबाव बनाए रखते हुए आरक्षण की अवधि बढ़ाई जा सकती है। राजनीतिक दल आरक्षण के प्रश्न पर वास्तविक पिछड़ेपन की दृष्टि से नहीं, वरन् वोट बैंक की दृष्टि से विचार करते हैं। अनुसूचित जातियाँ व जनजातियाँ एक लम्बे समय तक कांग्रेस का वोट बैंक रही हैं। अब अन्य राजनीतिक दल इस वोट बैंक को तोड़ने में लगे हैं। ये राजनीतिक दल सोचते हैं कि यदि आरक्षण का विरोध करने का साहस किया तो ये जातियाँ उनसे विमुख हो जाएँगी। उपर्युक्त तथ्य यह सिद्ध करते हैं कि आरक्षण का प्रश्न अब केवल चुनावी राजनीति से जुड़ा रह गया है।

आरक्षण की राजनीति ने आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के समस्त विचारों को पीछे छोड़ दिया है। अगड़ी जाति बनाम पिछड़ी जाति, हिन्दू बनाम मुस्लिम, पुरुष बनाम महिला की राजनीति ने समाज को गहरे रूप में विभाजित कर दिया है। परिणामस्वरूप अपनी जाति विशेष के हितों को साधने के लिए नये-नये स्थानीय राजनीतिक दल जन्म ले रहे हैं। वास्तव में विभाजित समाज विभाजित राजनीति को जन्म दे रहा है।

प्रश्न 3.
अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए दी गई दो सुविधाओं का वर्णन कीजिए। इन वर्गों के सम्पन्न व्यक्तियों को इन लाभों से वंचित रखने के लिए क्या प्रावधान किया गया है ?
उत्तर
अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सरकार ने निम्नलिखित सुविधाएँ दी हैं-

1. अन्य पिछड़ी जातियों को सरकार ने राजकीय और केन्द्रीय सेवाओं में 27% आरक्षण प्रदान किया है जिससे उनका सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्तर उठ सके। इसके अतिरिक्त सरकार में भागीदारी के लिए भी उन्हें चुनावों में हिस्सेदारी के लिए सीटों पर आरक्षण प्रदान किया गया है। इसके अतिरिक्त इन वर्गों को उच्च शिक्षा में भी आरक्षण प्रदान किया है जिसका उदाहरण अप्रैल, 2008 में आई०आई०एम० व आई०आई०टी० जैसी उच्च शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण बहाली की गई तथा इसे इन संस्थाओं ने लागू भी कर दिया

2. पिछड़े वर्गों के आर्थिक उत्थान के लिए स्वरोजगार हेतु कम ब्याज दरों पर सरकार ऋण उपलब्ध कराती है जिससे प्रशिक्षित व अर्द्धकुशल व्यक्ति अपना रोजगार शुरू कर सकें। इन वर्गों को नि:शुल्क प्रशिक्षण की सुविधा भी सरकार प्रदान करती है।
इन वर्गों के उन सम्पन्न व्यक्तियों को उपरोक्त सुविधाओं से वंचित रखा गया है, जो क्रीमीलेयर (जिनकी आय ₹ 3 लाख से अधिक है) में आते हैं।

प्रश्न 4.
विधानसभाओं में महिलाओं के आरक्षण के पक्ष में चार तर्क दीजिए। [2014, 16]
उत्तर
विधायी संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण
सन् 1990 ई० से ही भारतीय राजनीति में कहा जा रहा था कि विधायिकाओं में महिलाओं के लिए 1/3 स्थान आरक्षित किया जाना चाहिए। ग्यारहवीं लोकसभा के चुनाव के समय प्रमुख राजनीतिक दलों ने यह वादा किया था कि यदि उन्हें सत्ता प्राप्त हुई तो वे संवैधानिक व्यवस्था कर महिलाओं के लिए 1/3 स्थान विधायी संस्थाओं में आरक्षित करेंगे।

14 दिसम्बर, 1998 ई० को केन्द्र सरकार ने विधानसभाओं व लोकसभा में 33% आरक्षण देने से सम्बन्धित विधेयक को लोकसभा में प्रस्तुत किया। मार्च 2010 में राज्यसभा महिला विधेयक को पास कर चुकी है तथा इसे लोकसभा में पारित करने के लिए आम सहमति बनाई जा रही है। महिला आरक्षण विधेयक से यह स्पष्ट हो जाता है कि अब जाति के साथ-साथ लिंग के आधार पर भी आरक्षण की व्यवस्था को लागू करने का प्रयास किया जा रहा है। विधायिकाओं में तो अभी आरक्षण लागू नहीं हो पाया है, परन्तु स्थानीय स्वशासन की इकाइयों (पंचायती राजव्यवस्था) में महिलाओं के लिए 1/3 स्थान सुरक्षित कर दिए गए हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
अनुसूचित जातियों को रोजगार में आरक्षण देने के पक्ष व विपक्ष में एक-एक तर्क दीजिए। [2007, 11, 15]
उत्तर
अनुसूचित जातियाँ समाज का सबसे पिछड़ा वर्ग हैं। आरक्षण दिए जाने और न दिए जाने के सम्बन्ध में तर्क निम्नलिखित रूप में हो सकता है।
अनुसूचित जातियाँ समाज की सर्वाधिक पिछड़ी जातियाँ हैं। ये आर्थिक व शौक्षिक दोनों रूपों में ही पिछड़ी हुई हैं। अतः आरक्षण का सहारा देकर इन्हें समाज के उन्नत वर्ग के समकक्ष लाना आवश्यक है। आरक्षण न दिए जाने के सम्बन्ध में तर्क दिया जा सकता है कि इस वर्ग में कर्मठ व मेहनती जातियाँ हैं जिन्हें आरक्षण की वैसाखी की आवश्यकता नहीं है अपितु सामाजिक रूप से इन्हें सम्मान देकर तथा अच्छी शिक्षा-दीक्षा उपलब्ध कराकर अन्य उच्च वर्गों के समकक्ष लाया जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
आरक्षण के पक्ष में चार तर्क प्रस्तुत कीजिए। [2007, 11]
या
आरक्षण के दो लाभ बताइए।
या
अनुसूचित जातियों के आरक्षण के दो आधार बताइए। [2012]
उत्तर
आरक्षण के पक्ष में निम्नलिखित चार तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं-

  1. आरक्षण से कमजोर वर्गों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक निर्योग्यताओं में आमूल-चूल परिवर्तन होकर उनकी आर्थिक उन्नति सम्भव हुई है।
  2. लोकसेवाओं में आरक्षण द्वारा ही पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व बढ़ा है।
  3. पिछड़े वर्गों की गरीबी के निवारण का मार्ग आरक्षण द्वारा ही प्रशस्त हुआ है।
  4. कमजोर वर्गों को शिक्षा के प्रति जागरूक बनाने में आरक्षण ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। इससे उनमें राजनीतिक चेतना का भी संचार हुआ है।

प्रश्न 3.
आरक्षण का क्षेत्र बताइए।
उत्तर
भारत में अनुसूचित जातियों के निर्धारण का आधार जाति तथा अनुसूचित जनजाति के निर्धारण का आधार क्षेत्र एवं जाति है। 1931 ई० की जनगणना के आधार पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को अन्य जातियों से अलग माना गया। भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि राज्यपाल के परामर्श से राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा ऐसी जातियों का उल्लेख कर सकता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रत्येक राज्य में वहाँ की जातियों के अनुसार इनकी अलग-अलग सूचियाँ निर्मित की गयी हैं।

सामान्यतया अनुसूचित जातियों में आर्थिक दृष्टि से कमजोर एवं सामाजिक दृष्टि से अछुत समझी जाने वाली जातियाँ सम्मिलित हो गयी हैं। ये जातियाँ पीढ़ियों से अप्रिय, अमान्य तथा अत्यधिक खराब समझे जाने वाले कार्य-झाडू देना, मल उठाना, मरे हुए जानवरों को उठाकर उनका चमड़ा उतारना तथा चर्म शोधन इत्यादि करती रही हैं।

प्रश्न 4.
अन्य पिछड़े वर्गों (ओ० बी० सी०) के आरक्षण के दो आधार लिखिए। [2007]
उत्तर
अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के दो आधार निम्नवत् हैं-

1. जाति के आधार पर आरक्षण – संविधान के भाग 16 तथा अन्य कुछ प्रावधानों में पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ अन्य पिछड़े वर्गों’ शब्द का प्रयोग किया गया है, किन्तु पिछड़े वर्गों का सीमांकन करना कठिन है। इसमें अनेक ऐसी जातियाँ हैं, जो अनुसूचित जातियाँ नहीं हैं, किन्तु समाज की अन्य तथाकथित उच्च जातियों से पिछड़ी हुई हैं; जैसे-नाई, बढ़ई, धोबी, दर्जी, अहीर, कुर्मी आदि।

2. सामाजिक व आर्थिक स्तर पर – अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण का एक आधार इन जातियों के सामाजिक व आर्थिक स्तर का निम्न होना है। ‘राजनीति कोश’ के अनुसार, “पिछड़े हुए वर्गों का अभिप्राय समाज के उन वर्गों से है, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक निर्योग्यताओं के कारण समाज के अन्य वर्गों की तुलना में निचले स्तर पर हों।”

प्रश्न 5.
‘आरक्षण’ के सम्बन्ध में भारतीय संविधान में क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर
भारतीय संविधान के अन्तर्गत ‘आरक्षण’ को संवैधानिक आधार प्रदान किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 16 के अनुसार, “समस्त नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के समान अवसर प्राप्त होंगे तथा इस सम्बन्ध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग अथवा जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर सरकारी नौकरी अथवा पद प्राप्त करने में भेदभाव नहीं बरता जाएगा। परन्तु फिर भी सरकार द्वारा अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार सरकार नौकरियों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं पिछड़े वर्गों के लिए स्थानों का आरक्षण किया जा सकता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अक)

प्रश्न 1
आरक्षण के दो उद्देश्यों को लिखिए। [2011]
उत्तर

  1. सामाजिक समानता की स्थापना,
  2. दलित जातियों का उत्थान।

प्रश्न 2.
मण्डल आयोग का गठन कब किया गया?
उत्तर
1 जनवरी, 1979 को।

प्रश्न 3.
मण्डल आयोग का अध्यक्ष कौन था? उत्तर श्री बिन्देश्वरी प्रसाद मण्डल।

प्रश्न 4.
मण्डल आयोग की रिपोर्ट लागू करने वाले प्रधानमन्त्री का नाम बताइए। [2009]
उत्तर
श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह।

प्रश्न 5.
मण्डल आयोग की सिफारिशों के अनुसार पिछड़े वर्गों के लिए भारत सरकार ने कितना आरक्षण करने की घोषणा की?
उत्तर
मण्डल आयोग की सिफारिशों के अनुसार भारत सरकार के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण देने की घोषणा की।

प्रश्न 6.
मण्डल आयोग के फैसले के अन्तर्गत प्रथम नियुक्ति कब और किसकी हुई?
उत्तर
मण्डल आयोग के फैसले के अन्तर्गत प्रथम नियुक्ति 20 फरवरी, 1994 को की गयी। इस दिन तत्कालीन केन्द्रीय कल्याण मन्त्री श्री सीताराम केसरी ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग एवं विकास निगम’ में सहायक प्रबन्धक के पद पर आसूला’ जाति के बी० राज शेखराचारी की नियुक्ति की।

प्रश्न 7.
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार आरक्षण का अधिकतम प्रतिशत कितना निर्धारित किया गया ?
उत्तर
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार आरक्षण का अधिकतम प्रतिशत किसी भी स्थिति में 50% से अधिक नहीं हो सकता।। प्रश्न 8 आरक्षण के सम्बन्ध में जातियों का वर्गीकरण किस प्रकार से किया गया ? उत्तर आरक्षण के सम्बन्ध में जातियों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया—अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ी जाति।

प्रश्न 9.
स्थानीय स्वशासन इकाइयों में महिलाओं को कितने प्रतिशत आरक्षण की सुविधा दी गयी है?
उत्तर
महिलाओं को इन संस्थाओं में 335% आरक्षण की सुविधा दी गयी है।

प्रश्न 10.
लोक सेवाओं में आरक्षण के किसी एक आधार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जाति का आधार–अनुसूचित जाति।

प्रश्न 11.
भारत में अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के पक्ष में एक तर्क दीजिए।
उत्तर
भारत में अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के पक्ष में एक तर्क यह दिया जा सकता है। कि इसके माध्यम से निम्न व पिछड़े वर्गों को प्रदान की जाने वाली विशेष सुविधाओं के कारण वे समाज के अन्य वर्गों की बराबरी कर सकेंगे।

प्रश्न 12.
केन्द्र सरकार की सेवाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण कब से लागू हुआ?
उत्तर
केन्द्र सरकार की सेवाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 8 सितम्बर, 1993 को लागू हुआ।

प्रश्न 13.
आरक्षण का एक लाभ बताइए। [2011]
उत्तर
आरक्षण द्वारा समाज के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से पिछड़े वर्गों को विशेष सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती हैं जिससे वे समाज के अन्य वर्गों की बराबरी कर सकें।

प्रश्न 14.
भारत में आरक्षण की व्यवस्था को कब और किस आधार पर लागू किया गया?
उत्तर
भारत में आरक्षण की व्यवस्था को 1909 ई० में धर्म (सम्प्रदाय) के आधार पर लागू किया गया।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
प्रतिनिधि संस्थाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आरक्षण कब तक प्राप्त है?
(क) 25 जनवरी, 2010 तक
(ख) 26 जनवरी, 2010 तक
(ग) 25 जनवरी, 2015 तक
(घ) 26 जनवरी, 2020 तक

प्रश्न 2.
मण्डल आयोग की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की गयी [2016]
(क) 30 जनवरी, 1983 को
(ख) 26 जनवरी, 1984 को
(ग) 30 अप्रैल, 1982 को
(घ) 8 सितम्बर, 1982 को

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सेवाओं में पिछड़ी जातियों हेतु आरक्षण कब से लागू किया गया?
(क) 31 दिसम्बर, 1980 से
(ख) 7 अगस्त, 1990 से
(ग) 8 सितम्बर, 1993 से
(घ) 14 दिसम्बर, 1998 से।

प्रश्न 4.
हमारे प्रदेश में राज्य सेवाओं में पिछड़ी हुई जातियों हेतु कितने प्रतिशत स्थान आरक्षित हैं?
(क) 33%
(ख) 27%
(ग) 35%
(घ) 17%

प्रश्न 5.
महिला आरक्षण विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया
(क) 1980 ई० को
(ख) 1985 ई० को
(ग) 1990 ई० को
(घ) 1999 ई० को

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किस वर्ग को राजकीय सेवाओं में आरक्षण प्राप्त है?
(क) सिख सम्प्रदाय
(ख) ईसाई सम्प्रदाय
(ग) अन्य पिछड़े वर्ग
(घ) मुस्लिम सम्प्रदाय

प्रश्न 7.
राजकीय सेवाओं में जनजातियों के आरक्षण का प्रतिशत है- [2008, 14]
(क) 7.5%
(ख) 15.5%
(ग) 2%
(घ) 27%

प्रश्न 8.
अनुसूचित जातियों सम्बन्धी आरक्षण नीति के मूल में मुख्य अवधारणा क्या है ? [2008]
(क) समाज की पुरानी परम्पराओं को समाप्त करना
(ख) जाति विशेष को विशेषाधिकार प्रदान करना
(ग) सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास करना
(घ) राजनीतिक दबाव समूहों को तुष्ट करना।

प्रश्न 9.
इनमें से किस वर्ग को राजकीय सेवाओं में आरक्षण प्राप्त नहीं है?
(क) अनुसूचित जातियाँ
(ख) अनुसूचित जनजातियाँ
(ग) अन्य पिछड़े वर्ग
(घ) मुस्लिम सम्प्रदाय

प्रश्न 10.
अनुसूचित जनजाति के निर्धारण का आधार रहा है-
(क) क्षेत्र
(ख) जाति
(ग) ये दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।

प्रश्न 11.
अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के सम्बन्ध में सर्वप्रथम संस्तुति की थी [2010, 16]
(क) वी० पी० सिंह ने
(ख) काका कालेलकर ने
(ग) आर० एन० प्रसाद ने
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 12.
पिछड़ी जातियों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था किस आयोग की सिफारिश पर की गयी थी? [2016]
(क) सरकारिया आयोग
(ख) मण्डल आयोग
(ग) प्रसाद आयोग
(घ) अल्पसंख्यक आयोग

उत्तर

  1. (घ) 26 जनवरी, 2020 तक,
  2. (ग) 30 अप्रैल, 1982 को,
  3. (ग) 8 सितम्बर, 1993 से,
  4. (ख) 27%,
  5. (घ) 1999 ई० को,
  6. (ग) अन्य पिछड़े वर्ग,
  7. (ग) 2%,
  8. (ग) सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास करना,
  9. (घ) मुस्लिम सम्प्रदाय,
  10. (ग) ये दोनों,
  11. (ख) काका कालेलकर ने,
  12. (ख) मण्डल आयोग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *