UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 18 Public Services in India: Public Service Commission (भारत में सार्वजनिक सेवाएँ-लोक सेवा आयोग)
UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 18 Public Services in India: Public Service Commission (भारत में सार्वजनिक सेवाएँ-लोक सेवा आयोग)
विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1.
संघीय लोक सेवा आयोग के गठन और कार्यों पर प्रकाश डालिए। [2008, 09, 10, 11, 12, 14, 15]
या
संघ लोक सेवा आयोग के कार्यों पर प्रकाश डालिए। [2009]
या
भारत में सार्वजनिक सेवाओं की कार्यप्रणाली का उल्लेख कीजिए। [2013]
या
संघ लोक सेवा आयोग के गठन और कार्यों को स्पष्ट कीजिए। [2016]
उत्तर :
संविधान के अनुच्छेद 315 (1) के अनुसार, भारत में अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के पदाधिकारियों की नियुक्ति को व्यवस्थित करने तथा तविषयक नियुक्तियों के निमित्त प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं को संचालित करने हेतु संघ लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गयी है।
सदस्यों की संख्या एवं नियुक्ति – संघ लोक सेवा आयोग, अखिल भारतीय सेवाओं तथा संघ लोक सेवाओं के सदस्यों की भर्ती, पदोन्नति एवं अनुशासन की कार्यवाही इत्यादि के सम्बन्ध में सरकार को परामर्श देता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 (1) से धारा 323 तक, संघ लोक सेवा आयोग के संगठन तथा कार्यों इत्यादि का विस्तृत वर्णन किया गया है। वर्तमान में संघीय लोक सेवा आयोग में 1 अध्यक्ष तथा 10 सदस्यों की व्यवस्था की गयी है। सदस्यों की संख्या राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करती है तथा अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है।
योग्यताएँ – किसी भी योग्य नागरिक को संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य नियुक्त किया जा सकता है। आयोग का सदस्य नियुक्त होने के लिए सामान्य योग्यताओं के अतिरिक्त निम्नलिखित योग्यताएं होनी आवश्यक हैं –
- वह 65 वर्ष से कम आयु का हो।
- दिवालिया, पागल अथवा विवेकहीन न हो।
- संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से कम-से-कम आधे सदस्य ऐसे व्यक्ति होने चाहिए जो कम-से-कम दस वर्ष तक भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन किसी पद पर कार्य कर चुके हों।
सदस्यों की कार्यावधि – संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति 6 वर्ष के लिए होती है। लेकिन यदि कोई सदस्य इससे पूर्व ही 65 वर्ष का हो जाता है तो उसे अपना पद त्यागना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय के परामर्श पर राष्ट्रपति इन्हें पदच्युत भी कर सकता
पद-मुक्ति – संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यगण अपनी इच्छानुसार राष्ट्रपति को त्याग-पत्र देकर अपने पद से मुक्त भी हो सकते हैं। इसके साथ ही भारत का राष्ट्रपति निम्नलिखित परिस्थितियों में उन्हें अपदस्थ भी कर सकता है –
- उन पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया जाए और वह उच्चतम न्यायालय में सत्य सिद्ध हो जाए।
- यदि वे वेतन प्राप्त करने वाली अन्य कोई सेवा करने लगे।
- यदि वे न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित कर दिये जाएँ।।
- यदि वे शारीरिक अथवा मानसिक रूप से कः पालन के अयोग्य सिद्ध हो जाएँ।
वेतन, भत्ते एवं सेवा-शर्ते – आयोग के सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं सेवा-शर्तों को निर्धारित करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्रदान किया गया है। किसी सदस्य के वेतन, भत्ते एवं सेवा-शर्ते को उसकी पदावधि में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
संघ लोक सेवा आयोग के कार्य
डॉ० मुतालिब ने आयोग के कार्यों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया है – (1) कार्यकारी, (2) नियामक तथा (3) अर्धन्यायिक। परीक्षाओं के माध्यम से लोक महत्त्व के पदों पर प्रत्याशियों का चयन करना आयोग का कार्यकारी कर्तव्य है। भर्ती की पद्धतियों तथा नियुक्ति, पदोन्नति एवं विभिन्न सेवाओं में स्थानान्तरण आदि आयोग के नियामक प्रकृति के कार्य हैं। लोक सेवाओं से सम्बन्धित अनुशासन के मामलों पर सलाह देना आयोग को न्यायिक कार्य है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 320 के अनुसार लोक सेवा आयोग को निम्नांकित कार्य सौंपे गये हैं –
1. परीक्षाओं का आयोजन – संघ लोक सेवा आयोग का प्रमुख कार्य अखिल भारतीय लोक सेवाओं के लिए योग्यतम व्यक्तियों का चयन करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु यह अनेक प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित करता है। इन परीक्षाओं में जो अभ्यर्थी अपनी योग्यता से पर्याप्त अंक पाता है, उसका चयन कर लिया जाता है। इसके बाद इन व्यक्तियों को सरकारी पदों पर नियुक्ति करने के लिए यह आयोग सरकार से सिफारिश करता है। कुछ पदों के लिए आयोग द्वारा मौखिक परीक्षाओं की व्यवस्था भी की गयी है। मौखिक परीक्षाओं में सफल होने पर सफल अभ्यर्थियों को निर्धारित पदों पर नियुक्त कर दिया जाता है।
2. राष्ट्रपति को प्रतिवेदन – संघीय लोक सेवा आयोग को अपने कार्यों से सम्बन्धित एक वार्षिक रिपोर्ट (प्रतिवेदन) राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करनी पड़ती है। यदि सरकार इस आयोग द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट की कोई सिफारिश नहीं मानती है तो राष्ट्रपति इसका कारण रिपोर्ट में लिख देता है और इसके उपरान्त संसद इस पर विचार करती है। इस रिपोर्ट का लाभ यह है। कि इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किन विभागों में इस आयोग ने स्वेच्छा से कितनी नियुक्तियाँ की हैं और सरकार ने कहाँ तक आयोग के कार्यों में हस्तक्षेप किया है।
3. संघ सरकार को परामर्श – संघ लोक सेवा आयोग अखिल भारतीय लोक सेवाओं के कर्मचारियों की नियुक्ति की विधि, पदोन्नति, स्थानान्तरण आदि के विषय में संघ सरकार को परामर्श देता है। यह सरकारी कर्मचारियों की किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक क्षति हो जाने पर संघ सरकार को उनकी क्षतिपूर्ति का परामर्श भी देता है और उससे सिफारिश भी करता है। यद्यपि सरकार आयोग के परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है, किन्तु सामान्यतः आयोग की सिफारिशों तथा उसके परामर्श को स्वीकार कर ही लिया जाता है, क्योकि आयोग के सदस्य बहुत कुशल और अनुभवी होते हैं।
4. विशेष सेवाओं की योजना सम्बन्धी सहायता – उस दशा में जब दो या दो से अधिक राज्य किन्हीं विशेष योग्यता वाली सेवाओं के लिए भर्ती की योजना बनाने या चलाने की प्रार्थना करें तो संघ लोक सेवा आयोग उन्हें ऐसा करने में सहायता करता है।
प्रश्न 2
राज्य लोक सेवा आयोग के गठन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए। [2007]
या
राज्य के लोक सेवा आयोग के गठन की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
राज्य लोक सेवा आयोग या उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग
प्रत्येक राज्य का एक लोक सेवा आयोग होता है। अतः उत्तर प्रदेश राज्य का अपना एक लोक सेवा आयोग है।
रचना या संगठन (सदस्यों की नियुक्ति) – उत्तर प्रदेश अथवा अन्य किसी राज्य के लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति, सदस्यों की संख्या तथा उनकी सेवा-शर्तों का निर्धारण राज्यपाल करता है। उत्तर प्रदेश राज्य के लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या वर्तमान समय में 9 है। इनमें से एक सदस्य अध्यक्ष का कार्य करता है।
योग्यताएँ व कार्यकाल – राज्य लोक सेवा आयोग में भी कम-से-कम आधे सदस्य ऐसे होने आवश्यक हैं जो कम-से-कम 10 वर्ष तक केन्द्र अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पद पर कार्य कर चुके हों। आयोग के सदस्यों की नियुक्ति 6 वर्ष के लिए होती है, परन्तु यदि कोई सदस्य 6 वर्ष पूर्व ही 62 वर्ष का हो जाता है तो उसे अपने पद से सेवानिवृत्त होना होता है। कोई भी सदस्य 6 वर्ष के कार्यकाल अथवा 62 वर्ष की आयु के पूर्व स्वयं भी राज्यपाल को अपना त्याग-पत्र दे सकता है।
पद से हटाना – राज्यपाल आयोग के अध्यक्ष अथवा किसी सदस्य को दुराचार या दुर्व्यवहार के आरोप के आधार पर पदच्युत कर सकता है, परन्तु इसके पूर्व उच्चतम न्यायालय से इन आरोपों की जाँच और पुष्टि आवश्यक है। उच्चतम न्यायालय से जाँच की अवधि में राज्यपाल सम्बन्धित सदस्य को निलम्बित कर सकता है।
इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित परिस्थितियों में भी राज्यपाल को अधिकार होता है कि वह राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को पदच्युत कर सके
- यदि न्यायालय ने उसे दिवालिया घोषित कर दिया हो।
- यदि वह अपने पद के अलावा अन्य कोई नौकरी या वेतनभोगी कार्य करने लगा हो।
- यदि वह किसी शारीरिक या मानसिक असाध्य रोग से पीड़ित हो गया हो।
सदस्यता पर प्रतिबन्ध व छूटें – संविधान द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग के सभापति एवं सदस्य बनने के सम्बन्ध में कुछ प्रतिबन्ध भी लगाये गये हैं, जो निम्नलिखित हैं –
- कोई भी व्यक्ति एक बार सदस्यता की अवधि समाप्त हो जाने पर दुबारा उसी राज्य के लोक सेवा आयोग का सदस्य नहीं बन सकता।
- राज्य लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य अवधि समाप्त होने पर उसी आयोग का सभापति तथा अन्य किसी राज्य के आयोग का सदस्य या सभापति बन सकता है।
- किसी राज्य लोक सेवा आयोग का सभापति (चेयरमैन) अवधि की समाप्ति पर संघीय लोक सेवा आयोग का सदस्य या सभापति अथवा किसी दूसरे राज्य के लोक सेवा आयोग का सभापति बन सकता है।
- राज्य लोक सेवा आयोग की सदस्य या सभापति संघ अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन अथवा उससे बाहर कोई भी नौकरी नहीं कर सकता।
ये प्रतिबन्ध आयोग के सदस्यों की निष्पक्षता को बनाये रखने के लिए लगाये गये हैं।
वेतन, भत्ते व सेवा-शर्ते – राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों को राज्यपाल द्वारा निर्धारित वेतन व भत्ते मिलते हैं। आयोग के सदस्यों व अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्ते आदि राज्य की संचित निधि से दिये जाते हैं और उनके लिए विधानमण्डल की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती। राज्य आयोग के सदस्यों के वेतन, भत्तों, छुट्टी, पेन्शन तथा सेवा की शर्तों में उनके कार्यकाल में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
राज्य लोक सेवा आयोग के कार्य
उत्तर प्रदेश या अन्य किसी राज्य के लोक सेवा आयोग के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं
1. प्रतियोगी परीक्षाओं की व्यवस्था – राज्य लोक सेवा आयोगका प्रमुख कार्य राज्य की सरकारी सेवाओं के पदों पर नियुक्ति के लिए मौखिक या लिखित, अथवा दोनों ही प्रकार की प्रतियोगिता परीक्षाओं की व्यवस्था करना और उनके परिणामों के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करके उनकी नियुक्ति के लिए राज्यपाल से सिफारिश करना है।
2. परामर्श देना – संविधान में की गयी व्यवस्था के अनुसार राज्य लोक सेवा आयोग का कार्य निम्नलिखित विषयों में राज्यपाल को परामर्श देना है –
- असैनिक सेवाओं तथा असैनिक पदों पर भर्ती की प्रणाली के सम्बन्ध में परामर्श।
- असैनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्ति, पदोन्नति, पदावनति तथा स्थानान्तरण के सम्बन्ध में अपनाये जाने वाले नियमों के सम्बन्ध में परामर्श।
- असैनिक सेवाओं में राज्य सरकार के अधीन काम करने वाले कर्मचारियों के अनुशासन के सम्बन्ध में परामर्श।
- राज्य सरकार के किसी कर्मचारी द्वारा सरकारी कार्य को पूरा करते हुए शारीरिक चोट या धन की क्षतिपूर्ति के लिए किये गये दावे के सम्बन्ध में परामर्श।
- राज्य सरकार के किसी कर्मचारी द्वारा पेन्शन या सरकारी मुकदमे में अपनी रक्षा में व्यय किये गये धन की क्षतिपूर्ति के दावे के सम्बन्ध में परामर्श।
- राज्यपाल द्वारा भेजे गये अन्य किसी भी मामले के सम्बन्ध में परामर्श
3. वार्षिक रिपोर्ट देना – राज्य लोक सेवा आयोग को अपने कार्यों की वार्षिक रिपोर्ट राज्यपाल के पास भेजनी होती है। राज्यपाल द्वारा यह रिपोर्ट विधानमण्डल के दोनों सदनों के समक्ष रखी जाती है। रिपोर्ट में आयोग द्वारा अपनी उन सिफारिशों का भी उल्लेख किया जाता है। जो राज्य सरकार द्वारा न मानी गयी हों। सरकार को इस सम्बन्ध में विधानमण्डल के समक्ष अपना स्पष्टीकरण देना होता है।
प्रश्न 3.
भारतीय सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार पर एक निबन्ध लिखिए। [2016]
उत्तर :
भारतीय सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार
शाब्दिक अर्थों में भ्रष्टाचार का आशय भ्रष्ट अथवा बिगड़े हुए आचरण से है। सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार का अभिप्राय ऐसे आचरण से है, जिसकी आशा लोक सेवकों से नहीं की जाती। लोक सेवकों द्वारा प्राप्त शक्ति, सत्ता एवं स्थिति का उपयोग जन-कल्याण की अपेक्षा अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु किया जाना ही ‘भ्रष्ट आचरण’ माना जाता है। किसी व्यक्ति के किसी कार्य को करने के बदले रिश्वत लेना, भेंट स्वीकार करना, बेईमानी, गबन, अपने पुत्र-पुत्रियों एवं सगे-संबंधियों को नौकरी दिलाना, अवैध एवं अनुचित तरीकों से धन प्राप्त करना, अपनी सरकारी स्थिति एवं प्रभाव का दुरुपयोग अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु करना आदि लोक सेवकों के भ्रष्ट आचरण के प्रकार हैं।
सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार के कारण।
भारतीय सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार के प्रमुख रूप से निम्नलिखित कारण हैं।
1. अंग्रेजों की धरोहर – स्वाधीनता पूर्व ब्रिटिश भारत में उच्चाधिकारियों में भ्रष्टाचार कितना अधिक व्याप्त था इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन समय में वायसराय अथवा गवर्नर अपने पद से अवकाश ग्रहण करने से पूर्व राजाओं से विदाई लेने के नाम पर देशी रियासतों का दौरा किया करते थे, यद्यपि इनका वास्तविक प्रयोजन उनसे उपहार एवं भेटें प्राप्त करना होता था।
2. युद्धकालीन परिस्थितियाँ – द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप उत्पन्न परिस्थितियों के कारण देश में खाद्यान्नों सहित अन्य वस्तुओं का इतना अधिक अभाव हो गया कि सरकार ने बाध्य होकर व्यापार करने हेतु लाइसेंस एवं परमिट देना आरम्भ कर दिया। इससे भी भ्रष्टाचार को काफी प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। आजादी के पश्चात् देश के त्वरित आर्थिक विकास हेतु उपयुक्त योजनाओं का निर्माण करने तथा उपलब्ध समस्त संसाधनों पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करने और उपभोक्ताओं को समस्त वस्तुओं एवं सामग्री का वितरण राशन प्रणाली के आधार पर सीमित मात्रा में करने के उद्देश्य की पूर्ति हेतु लाइसेंस, परमिट और कोटा की व्यवस्था प्रारम्भ की गई। इस व्यवस्था के अंतर्गत कारखानों से निश्चित मात्रा में वस्तुएँ प्राप्त करने के परमिट एवं अधिकार-पत्र कुछ विशेष व्यक्तियों को ही दिए जाने लगे। इस व्यवस्था का कु-परिणाम देश में व्यापक रूप से कालाबाजारी शुरू होने के रूप में सामने आया।
3. नैतिक मूल्यों में गिरावट – किसी भी विकसित समाज में शहरीकरण और औद्योगीकरण पर निरन्तर बल प्रदान किया जाता है, जिससे सामाजिक एवं वैयक्तिक मूल्यों में तथा आगे भौतिक मूल्यों में गिरावट आती है। विकास एवं समृद्धि बढ़ने के साथ-साथ मनुष्य की भौतिक आवश्यकताएँ बढ़ती जाती हैं और जो वस्तुएँ पूर्ण विलास की वस्तुएँ मानी जाती थीं, वे अब जीवन की आवश्यकताएँ बनती चली जाती हैं। इन समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु धन अनिवार्य रूप से अपेक्षित है। ऐसा माना जाता है कि ईमानदारीपूर्वक धन कमाना काफी दुष्कर हैं अत: इस हेतु अनैतिक उपायों का सहारा लिया जाता है।
4. लालफीताशाही – सरकारी फाइलों को लाल फीते से बाँधे जाने को ही प्रशासनिक शब्दावली में ‘लालफीताशाही’ कहा जाता हैं। भारत में सरकारी कार्यालयों में कार्य सम्पन्न करने की प्रक्रिया अत्यन्त जटिल एवं विलम्बकारी है। इनमें इतने अधिक नियमों एवं उपनियमों का संजाल विस्तृत है कि कोई भी कार्य चाहकर भी शीघ्रतापूर्वक सम्पन्न नहीं किया जा सकता फिर वह चाहे कितना ही महत्त्वपूर्ण जन-कल्याण सम्बन्ध विषय ही क्यों न हो? लाल फीते से बंधी फाइलों को एक अधिकारी की मेज से दूसरे अधिकारी की मेज तक पहुँचाने में काफी अधिक समय लग जाता है। फाइलों की यह स्थिति अधिकारियों के लिए रिश्वत हेतु आधार का सृजन करती है। अपना कार्य यथाशीघ्र कराने हेतु लोग सरकारी अधिकारियों को विभिन्न प्रकार से रिश्वत देने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करते। इस प्रकार की रिश्वतखोरी ऐसे विभागों में अधिक पाई जाती है जहाँ नागरिकों का सरकार के साथ सम्पर्क अधिक रहता है। इस प्रमुख विभाग के विभागों में प्रमुख हैं—व्यापार, उद्योग, सार्वजनिक निर्माण, कर, संचार एवं यातायात।
5. व्यापारी एवं औद्योगिक वर्ग – वर्तमान व्यापारी एवं औद्योगिक वर्ग में भ्रष्ट करने की आकांक्षा और योग्यता दोनों ही पर्याप्त मात्रा में पाई जाती हैं। आज अपना काम निकलवाने हेतु सुरा एवं सुन्दरियाँ भ्रष्टाचार के नए स्वरूप हो गए हैं। व्यावसायिक घरानों द्वारा ‘जन-सम्पर्क अधिकारियों एवं सम्बन्ध कायम रखने वाले व्यक्तियों को बड़ी संख्या में नियुक्त किया जाता है। ये व्यक्ति शासकीय अधिकारियों को अपने निकृष्ट उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता प्रदान करने हेतु धन अथवा अन्य लाभ प्रदान करते हैं।
6. वेतन में असमानता – भारत में कर्मचारियों के वेतन में काफी अधिक असमानता पाई जाती है। अधिक वेतन के कारण जहाँ उच्चाधिकारी आरामदायक जीवन का यापन करते हैं, वहीं निचले स्तरों पर कार्यरत कर्मचारी कम वेतन के कारण ऐसा जीवन यापन नहीं कर पाते। आरामदायक और विलासितापूर्ण जीवन जीने की आकांक्षा उन्हें अनुचित साधनों से धन कमाने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार वेतन में असमानता का प्रशासन पर व्यापक रूप से अनैतिक एवं विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)
प्रश्न 1.
सार्वजनिक सेवाओं का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सार्वजनिक सेवाओं का महत्त्व
किसी भी देश की शासन-व्यवस्था को सही रूप देने के लिए लोक सेवाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये आयोग लोक सेवाओं में योग्यता को एकमात्र मापदण्ड स्वीकार कर लोकतन्त्र के अर्थ व उसके व्यवहार को अभिव्यक्त करते हैं। ये प्रशासन को निष्पक्ष उपकरण प्रदान कर उसे राजनीतिक संस्थाओं के सम्भावित दबावों से बचाते हैं। संघ लोक सेवा आयोग के भूतपूर्व अध्यक्ष ए० आर० किदवई के शब्दों में, “संसदीय लोकतन्त्र में लोक सेवाओं में गुण-दोषों के आधार पर भर्ती की व्यवस्था होना आवश्यक होता है और यह काम लोक सेवा आयोग के माध्यम से ही होता है।” एम० वी० पायली के अनुसार, “किसी भी देश के प्रशासन का स्तर एवं कार्यक्षमता का आधार वहाँ की लोक सेवा के सदस्यों की मानसिक शक्ति प्रशिक्षण एवं सत्यनिष्ठा है।”
संविधान और उसके द्वारा आयोजित सरकार, शरीर एवं मस्तिष्क हैं तथा लोक सेवा आयोग हाथ के समान है। शासन को ही सही ढंग से चलाने के लिए कुशल, सुयोग्य, दक्ष, विद्वान् तथा ईमानदार पदाधिकारियों की उतनी ही आवश्यकता है जितनी मनुष्य को वायु की तथा मछली को पानी की। राज्य के द्वारा मनुष्य अपनी सारी इच्छाएँ पूरी करना चाहता है। यह तभी सम्भव है जब राज्य की शासन नीति को कार्यान्वित करने वाले केवल योग्य ही नहीं, अपितु पूर्ण रूप से सचेत एवं अनुभवशील व्यक्ति हों। लोक सेवा आयोग इसी कार्य को सम्पन्न करता है। ये स्थायी होते हैं। और इनके फलस्वरूप इनमें कार्य करने वाले व्यक्ति राज्य कार्य-प्रणाली के विषय में जन-निर्वाचित प्रतिनिधियों अथवा मन्त्रियों से अधिक व्यावहारिक ज्ञान रखते हैं। किसी भी सरकारी नीति का कुशल संचालन लोक सेवा के अन्तर्गत कार्य करने वाले मनुष्यों की दक्षता एवं कार्यकुशलता पर निर्भर रहता है। विलोबी का मत है कि “सार्वजनिक सेवाओं के प्रशासन के सम्बन्ध में कोई केन्द्रीय व्यवस्था करना बहुत आवश्यक है। सेवकों की नियुक्ति और उनके सामान्य प्रशासन के लिए एक केन्द्रीय निकाय होना चाहिए, जो निरन्तर इस बात को देखे कि जिन सिद्धान्तों पर सेवाओं की नियुक्ति होती है, उन सिद्धान्तों का पालन होता है अथवा नहीं।” इसी उद्देश्य से भारतीय संविधान में अखिल भारतीय सार्वजनिक सेवाओं के लिए एक ‘संघीय लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गयी है। साथ ही प्रत्येक राज्य में भी ‘राज्य लोक सेवा आयोग’ की स्थापना की गयी है। लोक सेवा आयोग का कार्य सरकारी अधिकारियों की नौकरी की दशाएँ, नियुक्ति, पदोन्नति आदि के सन्दर्भ में सरकार को परामर्श देना होता है।
प्रश्न 2.
सरकारी महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के लिए लोक सेवा आयोग अभ्यर्थियों का चयन करता है। यदि यह कार्य कैबिनेट मन्त्रियों को सौंप दिया जाए तो लोकतान्त्रिक सरकार की कार्यप्रणाली पर सम्भवतः क्या प्रभाव पड़ेगा? दो तर्क दीजिए। (2010)
उत्तर :
लोक सेवा आयोग संवैधानिक संस्था है जिसको संविधान से शक्ति व अधिकारों की प्राप्ति होती है। अत: उसके क्रियाकलाप निष्पक्ष होते हैं और समसामयिक आवश्यकताओं के अनुकूल रहते हैं। भारत में लोकतन्त्र अर्थात् भीड़तन्त्र का शासन है जिसमें किसी की जवाबदेही नहीं बनती है। मन्त्री भी विधायिका के हिस्से होते हैं जहाँ वोटों की दूषित राजनीति हावी रहती है। भारतीय प्रजातन्त्र शैशवावस्था में ही रेंग रहा है अतः लोक सेवकों की नियुक्ति के कार्य को लोक सेवा आयोग से लेकर मंत्रियों को आवंटित करने पर बड़े विपरीत परिणाम आएँगे जो देश को नैराश्य के गर्त में आकर डुबो देंगे। मूल रूप से लोकतान्त्रिक सरकार की कार्यप्रणाली पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ सकता है –
1. भर्ती किए गए कर्मचारी संविधान के प्रति निष्ठा न रखकर मन्त्रियों के प्रति भक्ति जाग्रत करने लगेंगे।
2. आज राजनीति में घनघोर भ्रष्टाचार व्याप्त है, ऐसे कुप्रबन्धन के दौर में अभ्यर्थियों के चयन में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला बड़े पैमाने पर होने लगेगा,और भाई-भतीजावाद भी पनपेगा, इसकी आशंका निर्मूल नहीं है।
प्रश्न 3
लोकसेवाओं का महत्त्व बताइए। [2015]
उत्तर :
लोकसेवाओं का महत्त्व
लोकसेवाओं के सदस्य अनुभव एवं ज्ञान की निधि होते हैं। यद्यपि सैद्धान्तिक रूप में कानूननिर्माण का कार्य व्यवस्थापिका द्वारा और इन कानून को कार्य रूप में परिणत करने तथा प्रशासनिक नीति निर्धारित करने का कार्य कार्यपालिका द्वारा किया जाता है, किन्तु वास्तव में कानून-निर्माण तथा प्रशासन का संचालन इन दोनों ही क्षेत्रों में लोक सेवाओं द्वारा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया जाता है। वर्तमान समय के जटिल कानूनों के प्रारूपों का निर्माण सम्बन्धित नीति-निर्धारण और उसका लागू करने का कार्य भी लोक सेवाओं के सदस्य ही करते हैं। वस्तुतः एक राज्य का प्रशासन लोक सेवाओं की कार्यक्षमता पर ही निर्भर करता है। प्रो० लॉस्की ने लिखा, “प्रत्येक राज्य अपने सार्वजनिक अधिकारियों के गुणों पर बहुत अधिक सीमा तक निर्भर करता है।”
यद्यपि व्यवस्थापिका और न्यायपालिका भी सरकार के महत्त्वपूर्ण अंग हैं, किन्तु व्यवहार में सरकार का तात्पर्य कार्यपालिका से ही होता है और कार्यपालिका के भी जो दो अंग होते हैंराजनीतिक कार्यपालिका और स्थायी कार्यपालिका अर्थात् लोक सेवाएँ–उनमें व्यवहार की दृष्टि से राजनीतिक कार्यपालिका की अपेक्षा लोक सेवाएँ अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
चाहे संसदीय शासन हो या अध्यक्षात्मक शासन, शासन कार्य मन्त्रियों और लोक सेवा पदाधिकारियों के पारस्परिक सहयोग से चलता है और इस पारस्परिक सम्बन्ध की विशेषता यह है कि मन्त्रिगण नौसिखिये (amature) होते हैं, लेकिन स्थायी पदाधिकारी अपने कार्य के विशेषज्ञ होते हैं। ऐसी स्थिति में सामान्यतया सभी बातों के सम्बन्ध में मन्त्रिगण लोक सेवा पदाधिकारियों के परामर्श के अनुसार ही कार्य करते हैं।
प्रश्न 4.
संघीय लोक सेवा आयोग के दो कार्य बताइए। [2008, 10, 11, 13, 15,16]
उत्तर :
संविधान के अनुच्छेद 220 के अनुसार संघीय लोक सेवा आयोग के दो कार्य निम्नवत् हैं।
1. नियुक्ति सम्बन्धी कार्य (प्रतियोगिता परीक्षाओं की व्यवस्था) लोक सेवा आयोग का एक प्रमुख कार्य शासन के प्रमुख पदों हेतु चयन कर नियुक्ति की व्यवस्था करना है। विभिन्न विभागों में रिक्त हुए स्थानों की सूचना शासन द्वारा लोक सेवा आयोग को दी जाती है। आयोग इन स्थानों की पूर्ति के लिए लिखित या मौखिक अथवा दोनों प्रकार की परीक्षाएँ आयोजित करता है। आयोग परीक्षा के नियम तथा कार्यक्रम व प्रार्थी की योग्यता के विषय में कुछ बातें निर्धारित करके उनका प्रकाशन समाचार-पत्रों में करता है। वह परीक्षाओं में भाग लेने के लिए सम्पूर्ण भारत या कुछ परिस्थितियों में किन्हीं विशेष क्षेत्रों के निवासियों से प्रार्थना-पत्र आमन्त्रित करता है। इन परीक्षाओं के आधार पर उनके द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति हेतु सुयोग्य व्यक्तियों का चयन किया जाता है। 2011 की परीक्षाओं से आयोग ने परीक्षा प्रणाली में व्यापक फेर बदल किया है। अब प्रारम्भिक परीक्षा में अलग-अलग वैकल्पिक विषयों की व्यवस्था समाप्त कर दी गयी है तथा सभी अभ्यर्थियों को एक ही सामान्य रुझाने परीक्षा (Common Aptitude Test-CAT) में भाग लेना होगा। भविष्य में मुख्य परीक्षा में भी वैकल्पिक विषयों को समाप्त किये जाने की योजना है।
2. राज्य सरकारों की सहायता करना यदि दो या दो से अधिक संघीय लोक सेवा आयोग से किसी ऐसी नौकरी पर नियुक्ति की योजना बनाने में सहायता की प्रार्थना करें, जिसमें विशेष योग्यता सम्पन्न व्यक्तियों की आवश्यकता हों, तो संघीय आयोग इस कार्य में राज्यों की सहायता करेगा।
प्रश्न 5.
राज्य लोक सेवा आयोग के दो प्रमुख कार्य बताइए। [2015, 16]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश या अन्य किसी राज्य के लोक सेवा आयोग के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं।
1. प्रतियोगी परीक्षाओं की व्यवस्था – राज्य लोक सेवा आयोग का प्रमुख कार्य राज्य की सरकारी सेवाओं के पदों पर नियुक्ति के लिए मौखिक या लिखित, अथवा दोनों ही प्रकार की प्रतियोगिता परीक्षाओं की व्यवस्था करना और उनके परिणामों के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करके उनकी नियुक्ति के लिए राज्यपाल से सिफारिश करना है।
2. परामर्श देना – संविधान में की गयी व्यवस्था के अनुसार राज्य लोक सेवा आयोग का कार्य निम्नलिखित विषयों में राज्यपाल को परामर्श देना है।
- असैनिक सेवाओं तथा असैनिक पदों पर भर्ती की प्रणाली के सम्बन्ध में परामर्श।
- असैनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्ति, पदोन्नति, पदावनति तथा स्थानान्तरण के सम्बन्ध में अपनाये जाने वाले नियमों के सम्बन्ध में परामर्श।
- असैनिक सेवाओं में राज्य सरकार के अधीन काम करने वाले कर्मचारियों के अनुशासन के सम्बन्ध में परामर्श।
- राज्य सरकार के किसी कर्मचारी द्वारा सरकारी कार्य को पूरा करते हुए शारीरिक चोट या धन की क्षतिपूर्ति के लिए किये गये दावे के सम्बन्ध में परामर्श।
- राज्य सरकार के किसी कर्मचारी द्वारा पेन्शन या सरकारी मुकदमे में अपनी रक्षा में व्यय किये गये धन की क्षतिपूर्ति के दावे के सम्बन्ध में परामर्श
- राज्यपाल द्वारा भेजे गये अन्य किसी भी मामले के सम्बन्ध में परामर्श।
प्रश्न 6
राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की स्वतन्त्रता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
आयोग के सदस्यों की स्वतन्त्रता। भारत में लोक सेवा आयोगों को संवैधानिक स्थिति एवं संरक्षण प्रदान किया गया है, जबकि ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य अनेक देशों में ऐसा नहीं है। वहाँ इनका गठन और संचालन व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों के आधार पर होती है। इस प्रकार, भारत में लोक सेवा आयोगों की स्थिति अधिक सुदृढ़ तथा स्वतन्त्र है। लोक सेवा आयोग के सदस्यों की स्वतन्त्रता के लिए संविधान में निम्नलिखित व्यवस्थाएँ की गयी हैं –
- सुरक्षित कार्यकाल – आयोग के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु तक निर्धारित कर दिया गया है जिससे कि वे निष्पक्षता और स्वतन्त्रता के साथ कार्य कर सकें। यह भी व्यवस्था कर दी गयी है कि कोई सदस्य दुबारा अपने पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
- पदच्युति कठिन – आयोग के किसी सदस्य को संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही हटाया या निलम्बित किया जा सकता है।
- पर्याप्त और सुरक्षित वेतन – भत्ते-आयोग के सदस्यों के लिए पर्याप्त वेतन और भत्तों की व्यवस्था की गयी है और नियुक्ति के बाद इनकी सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
- व्यय संचित निधि पर भारित – आयोग पर हुआ व्यय संघ अथवा राज्य की संचित निधि पर भारित है। अत: इस व्यय पर संसद या राज्य विधानमण्डल को मतदान करने का अधिकार नहीं है।
- अवकाश प्राप्ति के बाद आवश्यक प्रतिबन्ध – आयोग के अध्यक्ष या सदस्य कार्यकाल की समाप्ति के बाद किसी सरकारी पद पर नियुक्त नहीं किये जा सकते, केवल आयोगों में ही पदोन्नति के रूप में उनकी पुनः नियुक्ति हो सकती है।
संविधान की उपर्युक्त व्यवस्थाओं से स्पष्ट है कि आयोग के सदस्यों को निष्पक्षता से अपना कार्य करने के लिए यथेष्ट स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है। इन व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में संघीय लोक सेवा आयोग के एक भूतपूर्व सदस्य वी० सिंह ने कहा था, “संविधान द्वारा की गयी ये व्यापक व्यवस्थाएँ लोक सेवा आयोग की स्वतन्त्रता की गारण्टी देती हैं और कार्यपालिका के हस्तक्षेप से उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करती हैं।”
प्रश्न 7.
भारत में सार्वजनिक सेवाओं के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
भारत में सार्वजनिक सेवाओं का इतिहास
आधुनिक सार्वजनिक सेवाओं का विकास भारत में ब्रिटिश काल से आरम्भ हुआ। वारेन हेस्टिग्स तथा लॉर्ड कार्नवालिस ने भारत में भू-राजस्व की वसूली के लिए सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति का आरम्भ किया। 1781 ई० में सर्वप्रथम ‘राजस्व मण्डल’ का गठन किया गया, जिसका कार्य राजस्व अधिकारियों की नियुक्ति करना था। 1787 ई० में जिला कलक्टर, मजिस्ट्रेट तथा जजों के पदों को एकीकृत किया गया और इन्हें प्रतिज्ञाबद्ध’ सिविल सर्विस का नाम दिया गया। लॉर्ड वेलेजली ने सर्वप्रथम सरकारी अधिकारियों को प्रशिक्षण हेतु फोर्ट विलियम कॉलेज, कलकत्ता भेजा। 1813 ई० में इंग्लैण्ड के हेलिबरी नामक स्थान पर सिविल सर्विस के अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए एक कॉलेज स्थापित किया गया। यह कॉलेज 1858 ई० तक चलता रहा।
स्वतन्त्र भारत में भारतीय सिविल सेवा (आई०सी०एस०) का स्थान भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई०ए०एस०) ने ले लिया। इसके साथ ही एक नई सेवा भारतीय विदेश सेवा (आई०एफ०एस०) का गठन किया गया। पूर्ववर्ती लोक सेवा आयोग का स्थान संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने ले लिया तथा परीक्षा में सफल उम्मीदवारों के लिए प्रशासनिक प्रशिक्षण की राष्ट्रीय अकादमी’, मसूरी तथा विशेषीकृत प्रशिक्षण अभिकरणों की स्थापना की गई। 27 जून, 1970 को केन्द्रीय सचिवालय में सेवा संवर्ग विभाग भी खोल दिया गया। वर्तमान समय में भारत में तीन अखिल भारतीय सेवाएँ, 59 केन्द्रीय सेवा ग्रुप ‘ए’ तथा अनेक राज्य स्तरीय लोक सेवाएँ हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)
प्रश्न 1.
किन्हीं दो अखिल भारतीय सेवाओं के नाम बताइए। इसकी नियुक्ति में संघ लोक सेवा आयोग की क्या भूमिका है? [2008, 10, 11, 13, 15]
उत्तर :
दो अखिल भारतीय सेवाओं के नाम हैं –
- भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा
- भारतीय पुलिस सेवा।।
संघ लोक सेवा आयोग अखिल भारतीय सेवाओं के लिए योग्यतम व्यक्तियों का चुनाव करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए, आयोग में जो वांछित अंक प्राप्त कर लेते हैं, उसकी मौखिक परीक्षा ली जाती है। मौखिक परीक्षा में सफल होने पर अभ्यर्थी को निर्धारित पदों पर नियुक्त कर दिया जाता है।
प्रश्न 2.
संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की पद-मुक्ति कैसे होती है? [2008, 10, 16]
उत्तर :
संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यगण अपनी इच्छानुसार राष्ट्रपति को त्याग-पत्र देकर अपने पद से मुक्त हो सकते हैं। इसके साथ ही भारत का राष्ट्रपति निम्नलिखित परिस्थितियों में उन्हें अपदस्थ भी कर सकता है –
- उन पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया जाए और वह उच्चतम न्यायालय में सत्य सिद्ध हो जाए।
- यदि वे वेतन प्राप्त करने वाली अन्य कोई सेवा करने लगे।
- यदि वे न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित कर दिये जाएँ।
- यदि वे शारीरिक अथवा मानसिक रूप से कर्तव्यपालन के अयोग्य सिद्ध हो जाएँ।
प्रश्न 3.
सार्वजनिक या लोक सेवा का अर्थ बताइए।
उत्तर :
सार्वजनिक या लोक सेवा का अर्थ
सामान्य अर्थ में सरकारी सेवा को सार्वजनिक या लोक सेवा कहा जाता है। कुछ विद्वानों ने लोक सेवाओं को नौकरशाही’ का नाम दिया है। फाइनर ने इसे ‘मेज का शासन’ कहा है। वास्तव में लोक सेवा का आशय उस संगठन से है जिसमें कार्यकुशल, प्रशिक्षित तथा कर्तव्यपरायण कर्मचारी होते हैं तथा जिसमें आदेश की एकता’ तथा ‘पद सोपान’ के सिद्धान्त का पालन किया जाता है।
स्थायित्व, राजनीतिक रूप से तटस्थता, उच्च अधिकारियों का निचले स्तर के अधिकारियों पर शासन, आदेश की एकता (उच्च अधिकारी के आदेश का पालन सभी कर्मचारियों द्वारा किया जाना) लोक सेवा की प्रमुख विशेषताएँ मानी जाती हैं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1.
संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग व प्रत्येक राज्य के लिए एक लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गयी है?
उत्तर :
संविधान के अनुच्छेद 315 के अन्तर्गत।
प्रश्न 2
संघ लोक सेवा आयोग का व्यय किस पर भारित होता है?
उत्तर :
संघ लोक सेवा आयोग का व्यय भारत सरकार की संचित निधि पर भारित होता है।
प्रश्न 3.
संघ लोक सेवा आयोग का गठन कब किया गया?
उत्तर :
1926 ई० में ली आयोग के द्वारा संघ लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
प्रश्न 4.
भारतीय लोक सेवाओं का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर :
लॉर्ड मैकाले को भारतीय लोक सेवाओं का जनक कहा जाता है।
प्रश्न 5.
संघ लोक सेवा आयोग की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव किसको प्राप्त है?
उत्तर :
संघ लोक सेवा आयोग की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव श्रीमती रोज मिलन मैथ्यू को प्राप्त है।
प्रश्न 6
अखिल भारतीय सेवाओं के नाम लिखिए। या दो अखिल भारतीय सेवाओं के नाम बताइए। [2008, 10, 11, 13]
उत्तर :
अखिल भारतीय सेवाओं के नाम हैं –
- I.A.S. भारतीय प्रशासनिक सेवा
- I.P S. भारतीय पुलिस सेवा तथा
- I.Es. भारतीय विदेश सेवा।
प्रश्न 7.
राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों का कार्यकाल बताइए।
उत्तर :
राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है, परन्तु वे 62 वर्ष की आयु तक ही अपने पद पर रह सकते हैं।
प्रश्न 8.
संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्य लोक सेवा आयोग का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर :
दोनों का मुख्य कार्य प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन कर कर्मचारियों का चयन करना है। प्रश्न 9 राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर राज्यपाल।
प्रश्न 10.
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति कौन करता है? [2016]
उत्तर :
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री के परामर्श से करता है।
प्रश्न 11
संघ लोक सेवा आयोग के किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए। (2008)
उत्तर :
- संघ की सरकार में नियुक्ति के लिए परीक्षा का संचालन करना।
- आयोग को निर्देशित किये गये किसी विषय पर तथा किसी अन्य विषय पर जिसे यथास्थिति राष्ट्रपति समुचित आयोग को निर्देशित करें, परामर्श देना।
प्रश्न 12.
संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति आयु क्या है? [2013]
उत्तर :
संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष है।
प्रश्न 13.
राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति कौन करता है? [2016]
उत्तर
राज्यपाल।
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1.
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है ?
(क) संसद
(ख) राष्ट्रपति
(ग) मन्त्रिपरिषद्
(घ) प्रधानमन्त्री
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सी अखिल भारतीय सेवा नहीं है?
(क) आई० ए० एस०
(ख) आई० पी० एस०
(ग) आई० सी० एस०
(घ) आई० एफ० एस०
प्रश्न 3.
नयी अखिल भारतीय सेवाएँ स्थापित करने का अधिकार किसको है? [2013]
(क) राष्ट्रपति
(ख) लोकसभा
(ग) संघीय लोक सेवा आयोग
(घ) राज्यसभा
प्रश्न 4.
ब्रिटिश भारत के लोक सेवा आयोग के प्रथम सदस्य कौन थे? [2014]
(क) सर रोज बार्कर
(ख) लॉर्ड मैकाले
(ग) लॉर्ड ली।
(घ) वारेन हेस्टिंग्स
प्रश्न 5.
निम्न में से केन्द्रीय लोक सेवा आयोग का कौन-सा कार्य है? [2014]
(क) खाली पदों का विज्ञापन करना।
(ख) परीक्षाओं का प्रबन्ध करना
(ग) (क) और (ख) दोनों
(घ) (क) और (ख) दोनों नहीं
प्रश्न 6.
सर्वप्रथम ‘राजस्व मण्डल’ को गठन कब किया? [2014]
(क) 1750 ई०
(ख) 1781 ई०
(ग) 1805 ई०
(घ) 1820 ई०
उत्तर :
- (ख) राष्ट्रपति
- (ग) आई० सी० एस०
- (ग) संघीय लोक सेवा आयोग
- (क) सर रोज बार्कर
- (ख) परीक्षाओं का प्रबन्ध करना
- (ख) 1781 ई०।