UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 3 Liberty and Equality (स्वतन्त्रता और समानता)
UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 3 Liberty and Equality (स्वतन्त्रता और समानता)
विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसके विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए। [2010, 14, 16]
या
स्वतन्त्रता क्यों आवश्यक है? सकारात्मक स्वतन्त्रता तथा नकारात्मक स्वतन्त्रता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। [2012]
या
स्वतन्त्रता से आप क्या समझते हैं? नागरिकों को प्राप्त विभिन्न स्वतन्त्रताओं का उल्लेख कीजिए। [2014]
या
स्वतन्त्रता के विभिन्न प्रकारों का सविस्तार वर्णन कीजिए। [2007]
उत्तर
स्वतन्त्रता जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार है। बर्स के अनुसार- “स्वतन्त्रता न केवल सभ्य जीवन का आधार है, वरन् सभ्यता का विकास भी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर ही निर्भर करता है। स्वतन्त्रता मानव की सर्वप्रिय वस्तु है। व्यक्ति स्वभाव से स्वतन्त्रता चाहता है क्योंकि व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए स्वतन्त्रता सबसे आवश्यक तत्त्व है। मानव के समस्त अधिकारों में स्वतन्त्रता का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके अभाव में अन्य अधिकारों का उपयोग नहीं हो सकता है।
स्वतन्त्रता का अर्थ
स्वतन्त्रता का अर्थ निम्न दो रूपों में स्पष्ट किया जाता है-
1. स्वतन्त्रता का नकारात्मक अर्थ
‘स्वतन्त्रता’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘लिबर्टी’ (Liberty) शब्द का हिन्दी अनुवाद है। ‘लिबर्टी’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के लिबर’ (Liber) शब्द से हुई। ‘लिबर’ का अर्थ ‘बन्धनों का न होना होता है। अतः स्वतन्त्रता का शाब्दिक अर्थ ‘बन्धनों से मुक्ति’ है अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी बन्धन के अपनी इच्छानुसार सभी कार्यों को करने की सुविधा प्राप्त होना ही ‘स्वतन्त्रता है।
वस्तुतः स्वतन्त्रता का यह अर्थ अनुचित है क्योंकि यदि हम कहें कि कोई भी व्यक्ति किसी की हत्या करने के लिए स्वतन्त्र है, तो यह स्वतन्त्रता न होकर अराजकता है। इस दृष्टि से मैकेंजी ने ठीक ही लिखा है, “पूर्ण स्वतन्त्रता जंगली गधे की आवारागर्दी की स्वतन्त्रता है।”
इस सम्बन्ध में बार्कर (Barker) का मत है- “कुरूपता के अभाव को सौन्दर्य नहीं कहते, इसी प्रकार बन्धनों के अभाव को स्वतन्त्रता नहीं कहते, अपितु अवसरों की प्राप्ति को स्वतन्त्रता कहते हैं।”
2. स्वतन्त्रता का सकारात्मक अर्थ
स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ मनुष्य के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा तथा ऐसे बन्धनों का अभाव है, जो मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में बाधक हों। स्वतन्त्रता के सकारात्मक पक्ष को स्पष्ट करते हुए ग्रीन ने लिखा है, “योग्य कार्य करने अथवा उसके उपयोग करने की सकारात्मक शक्ति को स्वतन्त्रता कहते हैं। इसी प्रकार सकारात्मक पक्ष के सम्बन्ध में लॉस्की का कथन है,
स्वतन्त्रता से अभिप्राय ऐसे वातावरण को बनाए रखना है, जिसमें कि व्यक्ति को अपना पूर्ण विकास करने का अवसर मिले। स्वतन्त्रता का उदय अधिकारों से होता है। स्वतन्त्रता पर विवेकपूर्ण प्रतिबन्ध आरोपित करने का पक्षधर है।
स्वतन्त्रता की परिभाषाएँ
स्वतन्त्रता की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाओं का विवेचन निम्नलिखित है-
- लॉस्की के अनुसार – “स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ राज्य की ओर से ऐसे वातावरण का निर्माण करना है, जिसमें कि व्यक्ति आदर्श नागरिक जीवन व्यतीत करने योग्य बन सके तथा अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सके।
- मैकेंजी के अनुसार – “स्वतन्त्रता सब प्रकार के बन्धनों का अभाव नहीं, अपितु तर्करहित प्रतिबन्धों के स्थान पर तर्कसंगत प्रतिबन्धों की स्थापना है।”
- बार्कर के अनुसार – “स्वतन्त्रता प्रतिबन्धों का अभाव नहीं, परन्तु वह ऐसे नियन्त्रणों का अभाव है, जो मनुष्य के विकास में बाधक हो।”
- हरबर्ट स्पेंसर के अनुसार – “प्रत्येक व्यक्ति जो चाहता है, वह करने के लिए स्वतन्त्र है, बशर्ते कि वह किसी अन्य व्यक्ति की समान स्वतन्त्रता का अतिक्रमण न करे।”
- रूसो के अनुसार – “उन कानूनों का पालन करना जिन्हें हम अपने लिए निर्धारित करते हैं, स्वतन्त्रता है।”
- मॉण्टेस्क्यू के अनुसार – “स्वतन्त्रता उन सब कार्यों को करने का अधिकार है जिनकी स्वीकृति कानून देता है।”
- ग्रीन के अनुसार- “स्वतन्त्रता उन कार्यों को करने अथवा उन वस्तुओं के उपभोग करने की शक्ति है जो करने या उपभोग के योग्य हैं।”
उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि स्वतन्त्रता स्वेच्छाचारिता का नाम नहीं है। आप वहीं तक स्वतन्त्र हैं जहाँ तक दूसरे की स्वतन्त्रता बाधित नहीं होती। ऐसी स्थिति में सामान्य मापदण्डों का ध्यान रखना पड़ता है।
स्वतन्त्रता के प्रकार (रूप)
स्वतन्त्रता के विभिन्न रूप तथा उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
1. प्राकृतिक स्वतन्त्रता – इस प्रकार की स्वतन्त्रता के तीन अर्थ लगाए जाते हैं। पहला अर्थ यह है कि स्वतन्त्रता प्राकृतिक होती है। वह प्रकृति की देन है तथा मनुष्य जन्म से ही स्वतन्त्र होता है। इसी विचार को व्यक्त करते हुए रूसो ने लिखा है, “मनुष्य स्वतन्त्र उत्पन्न होता है; किन्तु वह सर्वत्र बन्धनों में जकड़ा हुआ है।” (Man is born free but everywhere he is in chains.) इस प्रकार प्राकृतिक स्वतन्त्रता का अर्थ मनुष्यों की अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता है। दूसरे अर्थ के अनुसार, मनुष्य को वही स्वतन्त्रता प्राप्त हो, जो उसे प्राकृतिक अवस्था में प्राप्त थी। तीसरे अर्थ के अनुसार, प्रत्येक मनुष्य स्वभावत: यह अनुभव करता है कि स्वतन्त्रता का विचार इस रूप में मान्य है कि सभी समान हैं और उन्हें व्यक्तित्व के विकास हेतु समान सुविधाएँ प्राप्त होनी चाहिए।
2. नागरिक स्वतन्त्रता – नागरिक स्वतन्त्रता का अभिप्राय व्यक्ति की उन स्वतन्त्रताओं से है। जिनको एक व्यक्ति समाज या राज्य का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है। गैटिल के शब्दों में, “नागरिक स्वतन्त्रता उन अधिकारों एवं विशेषाधिकारों को कहते हैं, जिनकी सृष्टि राज्यं अपने नागरिकों के लिए करता है।” सम्पत्ति अर्जित करने और उसे सुरक्षित रखने की स्वतन्त्रता, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता तथा कानून के समक्ष समानता आदि स्वतन्त्रताएँ नागरिक स्वतन्त्रता के अन्तर्गत ही सम्मिलित की जाती हैं।
3. राजनीतिक स्वतन्त्रता – इस स्वतन्त्रता के अनुसार प्रत्येक नागरिक बिना किसी वर्णगत, लिंगगत, वंशगत, जातिगत, धर्मगत भेदभाव के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शासन-कार्यों में भाग ले सकता है। इस स्वतन्त्रता की व्याख्या करते हुए लॉस्की ने लिखा है, “राज्य के कार्यों में सक्रिय भाग लेने की शक्ति ही राजनीतिक स्वतन्त्रता है।” राजनीतिक स्वतन्त्रता के अन्तर्गत मताधिकार, निर्वाचित होने का अधिकार तथा सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार, राजनीतिक दलों तथा दबाव-समूहों के निर्माण आदि सम्मिलित किए जाते हैं। शान्तिपूर्ण साधनों के आधार पर सरकार का विरोध करने का अधिकार भी राजनीतिक स्वतन्त्रता में सम्मिलित किया जाता है।
4. आर्थिक स्वतन्त्रता – आर्थिक स्वतन्त्रता का अर्थ प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार अथवी अपने श्रम के अनुसार पारिश्रमिक प्राप्त करने की स्वतन्त्रता है। आर्थिक स्वतन्त्रता की परिभाषा देते हुए लॉस्की ने लिखा है, “आर्थिक स्वतन्त्रता से मेरा अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिदिन की जीविका उपार्जित करने की स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए। वस्तुतः यह स्वतन्त्रता रोजगार प्राप्त करने की स्वतन्त्रता है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार या अपने श्रम के अनुसार पारिश्रमिक प्राप्त करने की स्वतन्त्रता प्राप्त हो तथा किसी प्रकार भी उसके.श्रम का दूसरे के द्वारा शोषण न किया जा सके।
5. धार्मिक स्वतन्त्रता – प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने की सुविधा ही धार्मिक स्वतन्त्रता कहलाती है। इस प्रकार की स्वतन्त्रता के लिए यह आवश्यक है कि राज्य किसी धर्म-विशेष के साथ पक्षपात न करके सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करे। साथ ही किसी व्यक्ति को बलपूर्वक धर्म परिवर्तन हेतु प्रेरित न किया जाए और न ही उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाए।
6. नैतिक स्वतन्त्रता – व्यक्ति को अपनी अन्तरात्मा के अनुसार व्यवहार करने की पूरी सुविधा प्राप्त होना ही नैतिक स्वतन्त्रता है। काण्ट, हीगल, ग्रीन आदि विद्वानों ने नैतिक स्वतन्त्रता का प्रबल समर्थन किया है।
7. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता – व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अर्थ है कि व्यक्ति के उन कार्यों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए, जिनका सम्बन्ध केवल उसके व्यक्तित्व से ही हो। इस प्रकार के कार्यों में भोजन, वस्त्र, धर्म तथा पारिवारिक जीवन को सम्मिलित किया जा सकता है।
8. सामाजिक स्वतन्त्रता – सभी व्यक्तियों को समाज में अपना विकास करने की सुविधा प्राप्त होना ही सामाजिक स्वतन्त्रता है। समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक, क्रिया-कलापों आदि में बिना किसी भेदभाव के सम्मिलित होने के लिए स्वतन्त्र है।
9. राष्ट्रीय स्वतन्त्रता – राष्ट्रीय स्वतन्त्रता; राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा आत्म-निर्णय के अधिकार से सम्बन्धित है। इस प्रकार की स्वतन्त्रता के अन्तर्गत राष्ट्र को भी स्वतन्त्र होने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता की परिभाषा दीजिए तथा उसका कानून के साथ सम्बन्ध स्थापित कीजिए। [2011, 15]
या
कानून और स्वतन्त्रता के मध्य सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। [2015]
उत्तर
स्वतन्त्रता की परिभाषा
[संकेत–स्वतन्त्रता की परिभाषा हेतु विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 का अध्ययन करें]
स्वतन्त्रता और कानून का सम्बन्ध
स्वतन्त्रता और कानून के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय पर राजनीतिक विचारकों में बहुत अधिक मतभेद है और इस सम्बन्ध में प्रमुख रूप से निम्नलिखित दो विचारधाराओं का प्रतिपादन किया गया है-
1. अराजकतावादियों और व्यक्तिवादियों के विचार – प्रथम विचारधारा को प्रतिपादन, अराजकतावादी और व्यक्तिवादी विचारकों द्वारा किया गया है। अराजकतावादियों के अनुसार, स्वतन्त्रता का तात्पर्य व्यक्तियों की अपनी इच्छानुसार कार्य करने की शक्ति का नाम है और राज्य के कानून शक्ति पर आधारित होने के कारण व्यक्तियों की इच्छानुसार कार्य करने में बाधक होते हैं, अतः स्वतन्त्रता और कानून परस्पर विरोधी हैं। अराजकतावादी ‘विलियम गॉडविन’ के शब्दों में, “कानून सबसे अधिक घातक प्रकृति की संस्था है। व्यक्तिवादी भी राज्य को एक आवश्यक बुराई मानते हुए कानून और स्वतन्त्रता को परस्पर विरोधी बताते हैं। उनका कथन है कि “एक की मात्रा जितनी अधिक होगी, दूसरे की मात्रा उतनी ही कम | हो जायेगी।
2. आदर्शवादियों के विचार – अराजकतावादी और व्यक्तिवादी धारणा के नितान्त विपरीत आदर्शवादी विचारकों और राजनीति विज्ञान के वर्तमान विद्वानों ने इस विचार का प्रतिपादन किया है कि कानून स्वतन्त्रता को सीमित नहीं करते वरन् स्वतन्त्रता की रक्षा और उसमें वृद्धि करते हैं। विलोबी के अनुसार, “जहाँ नियन्त्रण होते हैं, वहीं स्वतन्त्रता का अस्तित्व होता है।’ लॉक और रिची के द्वारा भी यही मत व्यक्त किया गया है और हॉकिन्स ने तो यहाँ तक कहा है कि “व्यक्ति जितनी अधिक स्वतन्त्रता चाहता है उतनी ही अधिक सीमा तक उसे शासन की अधीनता स्वीकार कर लेनी चाहिए।’
इन आदर्शवादी विद्वानों का दृष्टिकोण बहुत कुछ सीमा तक सही है और कानून निम्नलिखित तीन प्रकार से व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा करते और उसमें वृद्धि करते हैं-
1. कानून व्यक्ति की स्वतन्त्रता की अन्य व्यक्तियों के हस्तक्षेप से रक्षा करते हैं- यदि समाज के अन्तर्गत किसी भी प्रकार के कानून न हों तो समाज के शक्तिशाली व्यक्ति निर्बल व्यक्तियों पर अत्याचार करेंगे और संघर्ष की इस अनवरत प्रक्रिया में किसी भी व्यक्ति की स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रहेगी।
2. कानून व्यक्ति की स्वतन्त्रता की राज्य के हस्तक्षेप से रक्षा करते हैं- साधारणतया वर्तमान समय के राज्यों में दो प्रकार के कानून होते हैं—साधारण कानून और संवैधानिक कानून। इन दोनों प्रकार के कानूनों में से संवैधानिक कानूनों द्वारा राज्य के हस्तक्षेप से व्यक्ति की स्वतन्त्रता को रक्षित करने का कार्य किया जाता है। भारत और अमेरिका आदि राज्यों के संविधानों में मौलिक अधिकारों की जो व्यवस्था है, वह इस सम्बन्ध में श्रेष्ठ उदाहरण है। यदि राज्य इन मौलिक अधिकारों (संवैधानिक कानूनों) के विरुद्ध कोई कार्य करता है तो व्यक्ति न्यायालय की शरण लेकर राज्य के हस्तक्षेप से अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा कर सकता है।
3. स्वतन्त्रता के नकारात्मक स्वरूप के अतिरिक्त इसका एक सकारात्मक स्वरूप भी होता है- स्वतन्त्रता के सकारात्मक स्वरूप का तात्पर्य है व्यक्ति को व्यक्तित्व के विकास हेतु आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना। कानून व्यक्तियों के व्यक्तित्व के विकास की सुविधाएँ प्रदान करते हुए उन्हें वास्तविक स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं। वर्तमान समय में लगभग सभी राज्यों द्वारा जनकल्याणकारी राज्य के विचार को अपना लिया गया है और राज्य कानूनों के : माध्यम से एक ऐसे वातावरण के निर्माण में संलग्न हैं जिनके अन्तर्गत व्यक्ति अपने व्यक्तित्व : का पूर्ण विकास कर सकें। राज्य के द्वारा की गयी अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था, अधिकतम श्रम और न्यूनतम वेतन के सम्बन्ध में कानूनी व्यवस्था, जनस्वास्थ्य का प्रबन्ध आदि कार्यों द्वारा नागरिकों को व्यक्तित्व के विकास की सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं और इस प्रकार राज्य नागरिकों को वास्तविक स्वतन्त्रता प्रदान कर रहा है।
यदि राज्य सड़क पर चलने के सम्बन्ध में किसी प्रकार के नियमों का निर्माण करता है, मद्यपान पर रोक लगाता है या टीके की व्यवस्था करता है तो राज्य के इन कार्यों से व्यक्तियों की स्वतन्त्रता सीमित नहीं होती, वरन् उसमें वृद्धि ही होती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि साधारण रूप से राज्य के कानून व्यक्तियों की स्वतन्त्रता की रक्षा और उसमें वृद्धि करते हैं।
स्वतन्त्रता और कानून के इस घनिष्ठ सम्बन्ध के कारण ही रैम्जे म्योर ने लिखा है कि “कानून और स्वतन्त्रता इस प्रकार अन्योन्याश्रित और एक-दूसरे के पूरक हैं।”
सभी कानून स्वतन्त्रता के साधक नहीं लेकिन राज्य द्वारा निर्मित सभी कानूनों के सम्बन्ध में इस प्रकार की बात नहीं कही जा सकती है कि वे मानवीय स्वतन्त्रता में वृद्धि करते हैं। यदि शासन अपने ही स्वार्थों को दृष्टि में रखकर कानूनों का निर्माण करता है, जनसाधारण के हितों की अवहेलना करता है और बिना किसी विशेष कारण के नागरिकों की स्वतन्त्रताएँ सीमित करता है। तो राज्य के इन कानूनों से व्यक्तियों की स्वतन्त्रता सीमित ही होती है। उदाहरणार्थ, हिटलर और मुसोलिनी द्वारा निर्मित अनेक कानून स्वतन्त्रता के विरुद्ध थे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि सभी कानून नागरिकों की स्वतन्त्रता में वृद्धि नहीं करते, वरन्। ऐसा केवल उन्हीं कानूनों के सम्बन्ध में कहा जा सकता है जिनके सम्बन्ध में, लॉस्की के शब्दों में व्यक्ति यह अनुभव करते हैं कि मैं इन्हें स्वीकार कर सकता और इनका पालन कर सकता हूँ।”
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि यदि राज्य का कानून जनता की इच्छा पर आधारित है तो वह स्वतन्त्रता का पोषक होगा और यदि वह निरंकुश शासन की इच्छा का परिणाम है तो स्वतन्त्रता का विरोधी हो सकता है।
प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता एवं समानता का सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए। [2007, 12, 14]
या
“स्वतन्त्रता की समस्या का केवल एक ही हल है और वह हल समानता में निहित है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। [2010, 14]
या
समानता को परिभाषित कीजिए तथा स्वतन्त्रता के साथ इसके सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए। [2009]
या
स्वतन्त्रता और समानता के पारस्परिक सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। [2007, 11, 12, 14]
या
“स्वतन्त्रता और समानता एक-दूसरे के पूरक हैं।” इस कथन की विवेचना कीजिए। [2011, 15, 16]
उत्तर
समानता का अर्थ साधारण रूप से समानता का अर्थ यह लगाया जाता है कि सभी व्यक्तियों को ईश्वर ने बनाया है; अतः सभी समान हैं और इसी कारण सभी को समान सुविधाएँ व आय का समान अधिकार होना चाहिए। इस प्रकार का मत व्यक्त करने वाले व्यक्ति प्राकृतिक समानता में विश्वास व्यक्त करते हैं, किन्तु यह विचार भ्रमपूर्ण है, क्योंकि प्रकृति ने ही मनुष्यों को बुद्धि, बल तथा प्रतिभा के आधार पर समान नहीं बनाया है। अप्पादोराय के शब्दों में, “यह स्वीकार करना कि सभी मनुष्य समान हैं, उतना ही भ्रमपूर्ण है जितना कि यह कहना कि भूमण्डल समतल है।”
मनुष्यों में असमानता के दो कारण हैं- प्रथम, प्राकृतिक और द्वितीय, सामाजिक या समाज द्वारा उत्पन्न। अनेक बार यह देखने में आता है कि प्राकृतिक रूप से समान होते हुए भी व्यक्ति असमान हो जाते हैं, क्योंकि आर्थिक समानता के अभाव में सभी को अपने व्यक्तित्व का विकास करने के समान अवसर उपलब्ध नहीं हो पाते। इस प्रकार समाज द्वारा उत्पन्न परिस्थितियाँ मनुष्य के बीच असमानता उत्पन्न कर देती हैं।
नागरिकशास्त्र की अवधारणा के रूप में समानता से हमारा तात्पर्य समाज द्वारा उत्पन्न इस असमानता का अन्त करने से होता है। दूसरे शब्दों में, समानता का तात्पर्य अवसर की समानता से है। सभी व्यक्तियों को अपने विकास के लिए समान सुविधाएँ व समान अवसर प्राप्त हों, ताकि किसी भी व्यक्ति को यह कहने का अवसर न मिले कि यदि उसे यथेष्ट सुविधाएँ प्राप्त होतीं तो वह अपने जीवन का विकास कर सकता था। इस प्रकार समाज में जाति, धर्म व भाषा के आधार पर व्यक्तियों में किसी प्रकार का भेद न किया जाना अथवा इन आधारों पर उत्पन्न विषमता का अन्त करना ही समानता है। समानता की परिभाषा व्यक्त करते हुए लॉस्की ने लिखा है कि “समानता मूल रूप से समतल करने की प्रक्रिया है। इसीलिए समानता का प्रथम अर्थ विशेषाधिकारों का अभाव और द्वितीय अर्थ अवसरों की समानता से है।”
समानता के दो पक्ष: नकारात्मक और सकारात्मक – समानता की परिभाषा का विश्लेषण करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि समानता के दो पक्ष हैं- (1) नकारात्मक तथा (2) सकारात्मक। नकारात्मक पक्ष से तात्पर्य है कि सामाजिक क्षेत्र में किसी के साथ किसी प्रकार का भेदभाव न हो तथा सकारात्मक पक्ष का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकाधिक विकास के लिए समान अवसर प्राप्त हों। उदाहरणार्थ-शिक्षा की आवश्यकता सबके लिए होती है; अतः राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने सब नागरिकों को शिक्षा प्राप्त करने का समान अवसर प्रदान करे।
समानता के विविध रूप
समानता के विविध रूपों में नागरिक समानता, सामाजिक समानता, राजनीतिक समानता, आर्थिक समानता, प्राकृतिक समानता, धार्मिक समानता एवं सांस्कृतिक और शिक्षा सम्बन्धी समानता प्रमुख हैं।
स्वतन्त्रता और समानता का सम्बन्ध
स्वतन्त्रता और समानता के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय पर राजनीतिशास्त्रियों में पर्याप्त मतभेद हैं और इस सम्बन्ध में प्रमुख रूप से दो विचारधाराओं का प्रतिपादन किया गया है, जो इस प्रकार हैं-
1. स्वतन्त्रता और समानता परस्पर विरोधी हैं- कुछ व्यक्तियों द्वारा स्वतन्त्रता और समानता के जन-प्रचलित अर्थों के आधार पर इन्हें परस्पर विरोधी बताया गया है। उनके अनुसार स्वतन्त्रता अपनी इच्छानुसार कार्य करने की शक्ति का नाम है, जब कि समानता का तात्पर्य प्रत्येक प्रकार से सभी व्यक्तियों को समान समझने से है। इस आधार पर सामान्य व्यक्ति ही नहीं, वरन् डी० टॉकविले और एक्टन जैसे विद्वानों द्वारा भी इन्हें परस्पर विरोधी माना गया है। लॉर्ड एक्टन एक स्थान पर लिखते हैं कि समानता की उत्कृष्ट अभिलाषा के कारण स्वतन्त्रता की आशा ही व्यर्थ हो गयी है।
2. स्वतन्त्रता और समानता परस्पर पूरक हैं- उपर्युक्त प्रकार की विचारधारा के नितान्त विपरीत दूसरी ओर विद्वानों का एक बड़ा समूह है, जो स्वतन्त्रता और समानता को परस्पर विरोधी नहीं वरन् पूरक़ मानते हैं। रूसो, टॉनी, लॉस्की और मैकाइवर इस मत के प्रमुख समर्थक हैं और अपने मत की पुष्टि में इन विद्वानों ने निम्नलिखित तर्क दिये हैं-
स्वतन्त्रता और समानता को परस्पर विरोधी बताने वाले विद्वानों द्वारा स्वतन्त्रता और समानता की गलत धारणा को अपनाया गया है। स्वतन्त्रता का तात्पर्य ‘प्रतिबन्धों के अभाव’ या स्वच्छन्दता से नहीं है, वरन् इसका तात्पर्य केवल यह है कि अनुचित प्रतिबन्धों के स्थान पर उचित प्रतिबन्धों की व्यवस्था की जानी चाहिए और उन्हें अधिकतम सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए, जिससे उनके द्वारा अपने व्यक्तित्व का विकास किया जा सके। इसी प्रकार पूर्ण समानता एक काल्पनिक वस्तु है और समानता का तात्पर्य पूर्ण समानता जैसी किसी काल्पनिक वस्तु से नहीं, वरन् व्यक्तित्व के विकास हेतु आवश्यक और पर्याप्त सुविधाओं से है, जिससे सभी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें और इस प्रकार उस असमानता का अन्त हो सके, जिसका मूल कारण सामाजिक परिस्थितियों का भेद है। इस प्रकार स्वतन्त्रता और समानता दोनों ही व्यक्तित्व के विकास हेतु नितान्त आवश्यक हैं।
प्रश्न 4.
समता (समानता) का अर्थ स्पष्ट कीजिए। इसके कितने प्रकार होते हैं? उनका वर्णन कीजिए। [2009, 14, 16]
या
समानता का अर्थ स्पष्ट कीजिए। समानता के विविध रूपों का वर्णन कीजिए। [2008, 10, 16]
(संकेत-समानता के अर्थ हेतु विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 3 का अध्ययन करें)
उत्तर
समानता के भेद अथवा प्रकार समानता के विभिन्न भेदों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
1. प्राकृतिक समानता – प्लेटो के अनुसार, “प्राकृतिक समानता से अभिप्राय यह है कि सब मनुष्य जन्म से समान होते हैं। स्वाभाविक रूप से सभी व्यक्ति समान हैं, हम सबका निर्माण एक ही विश्वकर्मा ने एक ही मिट्टी से किया है। हम चाहे अपने को कितना ही धोखा दें, ईश्वर को निर्धन, किसान और शक्तिशाली राजकुमार सभी समान रूप से प्रिंय हैं।” आधुनिक युग में प्राकृतिक समानता को कोरी कल्पना माना जाता है। कोल के अनुसार, “मनुष्य शारीरिक बल, पराक्रम, मानसिक योग्यता, सृजनात्मक शक्ति, समाज-सेवा की भावना और सम्भवतः सबसे अधिक कल्पना-शक्ति में एक-दूसरे से मूलतः भिन्न हैं।” संक्षेप में, वर्तमान युग में प्राकृतिक समानता का आशय यह है कि प्राकृतिक रूप से नैतिक आधार पर ही सभी व्यक्ति समान हैं तथा समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की असमानताएँ कृत्रिम हैं।
2. सामाजिक समानता – सामाजिक समानता का अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान अधिकार प्राप्त हों और सबको समान सुविधाएँ मिलें। जिस समाज में जन्म, जाति, धर्म, लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता, वहाँ सामाजिक समानता होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा जो मानव-अधिकारों की घोषणा की गयी है, उसमें सामाजिक समानता पर विशेष बल दिया गया है।
3. नागरिक या कानूनी समानता – नागरिक समानता का अर्थ नागरिकता के समान अधिकारों से होता है। नागरिक समानता के लिए यह आवश्यक है कि सब नागरिकों के मूलाधिकार सुरक्षित हों तथा सभी नागरिकों को समान रूप से कानून का संरक्षण प्राप्त हो। नागरिक समानता की पहली अनिवार्यता यह है कि समस्त नागरिक कानून के समक्ष समान हों। यदि कानून धन, पद, जाति अथवा अन्य किसी आधार पर भेद करता है तो उससे नागरिक समानता समाप्त हो जाती है और नागरिकों में असमानता का उदय होता है।
4. राजनीतिक समानता – जब राज्य के सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त हो तो वहाँ के लोगों को राजनीतिक समानता प्राप्त रहती है। राजनीतिक समानता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को मत देने, निर्वाचन में खड़े होने तथा सरकारी नौकरी प्राप्त करने का समान अधिकार होता है। उनके साथ जाति, धर्म यो अन्य किसी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। राजनीतिक समानता लोकतन्त्र की आधारशिला होती है।
5. धार्मिक समानता – धार्मिक समानता का अर्थ यह है कि धार्मिक मामलों में राज्य तटस्थ हो और सब नागरिकों को अपनी इच्छा से धर्म मानने की स्वतन्त्रता हो। राज्य धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न करे। प्राचीन और मध्यकाल में इस प्रकार की धार्मिक समानता का अभाव था, परन्तु आज धर्म और राजनीति एक-दूसरे से अलग हो गये हैं और सामान्यतः राज्य नागरिकों के धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता।
6. आर्थिक समानता – आर्थिक समानता का अभिप्राय यह है कि समाज में धन के वितरण की उचित व्यवस्था हो तथा मनुष्यों की आय में बहुत अधिक असमानता नहीं होनी चाहिए। लॉस्की के अनुसार, “आर्थिक समानता का अभिप्राय यह है कि राज्य में सभी को समान सुविधाएँ तथा अवसर प्राप्त हों।’ इस सन्दर्भ में लॉर्ड ब्राइस का मत है कि “समाज से सम्पत्ति के सभी भेदभाव समाप्त कर दिये जाएँ तथा प्रत्येक स्त्री-पुरुष को भौतिक साधनों एवं सुविधाओं का समान भाग दिया जाए।”
संक्षेप में, आर्थिक समानता से सम्बन्धित प्रमुख बातें इस प्रकार हैं-
- समाज में सभी को समान रूप से व्यवसाय चुनने की स्वतन्त्रता हो।
- प्रत्येक मनुष्य को इतना वेतन या पारिश्रमिक अवश्य प्राप्त हो कि वह अपनी न्यूनतम आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।
- राज्य में उत्पादन और उपभोग के साधनों का वितरण और विभाजन इस प्रकार से हो कि आर्थिक शक्ति कुछ ही व्यक्तियों या वर्गों के हाथों में केन्द्रित न हो सके। सी० ई० एम० जोड के अनुसार, “स्वतन्त्रता का विचार, जो राजनीतिक विचारधारा में बहुत महत्त्वपूर्ण है, जब आर्थिक क्षेत्र में लागू किया गया तो उससे विनाशकारी परिणाम निकले, जिसके फलस्वरूप समाजवादी और साम्यवादी विचारधाराओं का उदय हुआ, जो आर्थिक समानता पर विशेष बल देती हैं और जिनकी यह निश्चित धारणा है कि आर्थिक समानता के अभाव में वास्तविक राज़नीतिक स्वतन्त्रता कदापि प्राप्त नहीं हो सकती।’ वास्तविकता यह है कि आर्थिक समानता सभी प्रकार की स्वतन्त्रताओं का आधार है और आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता केवल एक भ्रम है। प्रो० जोड के अनुसार, “आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता एक भ्रम है।”
- सुदृढ़ राजनीतिक एवं नागरिक समानता की कल्पना अपेक्षित आर्थिक समानता की पृष्ठभूमि पर ही की जा सकती है।
7. शैक्षिक एवं सांस्कृतिक समानता – शैक्षिक समानता का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने तथा अन्य योग्यताएँ विकसित करने का समान अवसर मिलना चाहिए और शिक्षा के क्षेत्र में जाति, धर्म, वर्ण और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। समानता का तात्पर्य यह है कि सांस्कृतिक दृष्टि से बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक सभी वर्गों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति बनाये रखने का अधिकार होना चाहिए। इसका महत्त्व इसी बात से सिद्ध हो जाता है कि इसे भारतीय संविधान में मूल अधिकारों के अन्तर्गत रखा जाता है।
8. नैतिक समानता – इस समानता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने चरित्र का विकास करने के लिए अन्य व्यक्तियों के समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए।
9. राष्ट्रीय समानता – प्रत्येक राष्ट्र समान है, चाहे कोई राष्ट्र छोटा हो या बड़ा। इसलिए प्रत्येक राष्ट्र को विकास करने के समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)
प्रश्न 1.
“आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता एक भ्रम है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। [2011, 13, 16]
उत्तर
लॉस्की, रूसो, मैकाइवर, सी०ई०एम० जोड आदि विचारक स्वतन्त्रता एवं समानता को एक-दूसरे को पूरक मानते हैं। इन विद्वानों का मत है कि आर्थिक समानता के अभाव में स्वतन्त्रता का अस्तित्व निरर्थक है। प्रो०.पोलार्ड के अनुसार, “स्वतन्त्रता की समस्या का केवल एक हल है और वह हल समानता में निहित है।”
सी०ई०एम० जोड के अनुसार, “स्वतन्त्रता का विचार, जो राजनीतिक विचारधारा में बहुत महत्त्वपूर्ण है, जब आर्थिक क्षेत्र में लागू किया गया तो उससे विनाशकारी परिणाम निकले, जिसके फलस्वरूप समाजवादी और साम्यवादी विचारधाराओं का उदय हुआ, जो आर्थिक समानता पर विशेष बल देती है और जिनकी यह निश्चित धारणा है कि आर्थिक समानता के अभाव में वास्तविक राजनीतिक स्वतन्त्रता कदापि प्राप्त नहीं हो सकती।’ वास्तविकता यह है कि आर्थिक समानता सभी प्रकार की स्वतन्त्रताओं का आधार है और आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता केवल एक भ्रम है। प्रो० जोड के अनुसार, “आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता एक भ्रम है।”
विद्वानों का मत है कि जब तक प्रत्येक नागरिक को आर्थिक क्षेत्र में समान अवसर प्रदान किये जाते हैं तब तक राजनीतिक स्वतन्त्रता की अवधारणा केवल एक भ्रम है। उनका मानना है कि यदि समाज में आर्थिक समानता नहीं है तो धनिक वर्ग अन्य वर्गों का शोषण करेगा तथा उनकी राजनीतिक स्वतन्त्रता को भी प्रभावित करेगा। ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी कि राजनीतिक सत्ता पूँजीपतियों में निहित हो जाएगी और राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा समानता केवल शब्दों तक ही सीमित रह जाएगी। इस विचारधारा को मानने वाले विद्वान् निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत करते हैं
- आर्थिक विषमता का फल पूँजीपतियों को ही मिलता है। उनका राजनीतिक क्षेत्र में प्रभुत्व रहता है और परिणामस्वरूप जनसाधारण के लिए राजनीतिक स्वतन्त्रता का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
- निर्धनता आर्थिक विषमता का ही परिणाम होती है। निर्धन वर्ग पूँजीपतियों से धन लेकर उनके पक्ष में मतों को बेच देता है और राजनीतिक स्वतन्त्रता मात्र कहने की बात रह जाती है।
- बहुधा धनिक वर्ग धन के बल पर सरकारी पदों को प्राप्त कर लेता है और योग्य परन्तु निर्धन व्यक्ति यह पद प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। इस प्रकार आर्थिक विषमता राजनीतिक स्वतन्त्रता का हनन करती है।
- आर्थिक विषमता के कारण निर्धन व्यक्ति के अधिकारों तथा उसकी स्वतन्त्रता पर कुठाराघात होता रहता है। निर्धनता के कारण ऐसा व्यक्ति न्यायालय की शरण भी नहीं ले पाता तथा चुपचाप शोषण व उत्पीड़न को सहता रहता है।
- निर्धन व्यक्ति अपनी रोजी-रोटी के चक्कर में ही फंसे रहते हैं। उनको अपनी राजनीतिक स्वतन्त्रता का आभास भी नहीं होता। निर्धन व्यक्तियों में शिक्षा का अभाव होता है। इस कारण धनिक वर्ग प्रेस तथा विचाराभिव्यक्ति के साधनों पर अधिकार होने के कारण निर्धन वर्ग के लोगों को आसानी से अपने प्रभाव में ले लेता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता केवल एक भ्रम है।
प्रश्न 2.
“स्वतन्त्रता व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक है।” विवेचना कीजिए।
या
“स्वतन्त्रता उचित प्रतिबन्धों की व्यवस्था है।” विवेचना कीजिए।
उत्तर
स्वतन्त्रता अमूल्य वस्तु है और उसका मानवीय जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। स्वतन्त्रता का मूल्य व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर समान है। स्वतन्त्रता का महत्त्व न होता तो विभिन्न देशों में लाखों व्यक्तियों द्वारा स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान न दिया जाता। मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए अधिकारों का अस्तित्व नितान्त आवश्यक है।
और इन विविध अधिकारों में स्वतन्त्रता का स्थान निश्चित रूप से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। मनुष्य का सम्पूर्ण भौतिक, मानसिक एवं नैतिक विकास स्वतन्त्रता के वातावरण में ही सम्भव है।
स्वतन्त्रता की व्याख्या करते हुए लॉस्की ने भी कहा है कि “स्वतन्त्रता उस वातावरण को बनाए रखती है जिसमें व्यक्ति को जीवन को सर्वोत्तम विकास करने की सुविधा प्राप्त हो।” इस प्रकार स्वतन्त्रता का तात्पर्य ऐसे वातावरण और परिस्थितियों की विद्यमानता से है जिसमें व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सके। स्वतन्त्रता निम्नलिखित आदर्श दशाएँ प्रस्तुत करती हैं-
- न्यूनतम प्रतिबन्ध – स्वतन्त्रता का प्रथम तत्त्व यह है कि व्यक्ति के जीवन पर शासन और समाज के दूसरे सदस्यों की ओर से न्यूनतम प्रतिबन्ध होने चाहिए, जिससे व्यक्ति अपने विचार और कार्य-व्यवहार में अधिकाधिक स्वतन्त्रता का उपभोग कर सके तथा अपना विकास सुनिश्चित कर सके।
- व्यक्तित्व विकास हेतु सुविधाएँ – स्वतन्त्रता का दूसरा तत्त्व यह है कि समाज और राज्य द्वारा व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व के विकास हेतु अधिकाधिक सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए।
इस प्रकार स्वतन्त्रता जीवन की ऐसी अवस्था का नाम है जिसमें व्यक्ति के जीवन पर न्यूनतम प्रतिबन्ध हों और व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास हेतु अधिकतम सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।
प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता का महत्त्व बताइए।
उत्तर
स्वतन्त्रता का महत्त्व
मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए अधिकारों का अस्तित्व नितान्त आवश्यक है और व्यक्ति के विविध अधिकारों में स्वतन्त्रता का स्थान निश्चित रूप में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। बर्टेण्ड रसैल कहते हैं, “स्वतन्त्रता की इच्छा व्यक्ति की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है और इसी के आधार पर सामाजिक जीवन का निर्माण सम्भव है। मनुष्य का सम्पूर्ण भौतिक, मानसिक एवं नैतिक विकास स्वतन्त्रता के वातावरण में ही सम्भव है।
यदि हम प्रकृति पर दृष्टि डालें तो भी यह बात स्पष्ट हो जाती है कि स्वतन्त्रता के बिना किसी भी वस्तु का विकास सम्भव नहीं है। पेड़-पौधे भी स्वतन्त्रता के वातावरण में ही विकसित हो सकते हैं। जो पौधा या पेड़ किसी विशाल वृक्ष की छाया या दबाव में पड़ जाता है, उसका विकास रुक जाता है। इसी प्रकार पिंजड़े में बन्द पक्षी या सर्कस के क्रठहरे में बन्द शेर सही अर्थों में पक्षी या शेर नहीं रहते वे अपना सारभूत तत्त्व खो देते हैं। सृष्टि के इन प्राणियों के सम्बन्ध में जो बात सत्य है, वह विवेकशील मनुष्य के सम्बन्ध में और भी अधिक सत्य है। मनुष्य का भौतिक, बौद्धिक तथा नैतिक विकास स्वतन्त्रता के बिना सम्भव ही नहीं है। इसी आधार पर जे०एस० मिल द्वारा अपनी पुस्तक ‘On Liberty’ में स्वतन्त्रता को मानव-जीवन का मूल आधार बताया गया है। बर्स ने ठीक ही लिखा है कि स्वतन्त्रता न केवल सभ्य जीवन का आधार है, वरन् सभ्यता का विकास भी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर ही निर्भर करता है। इसी प्रकार महाकवि तुलसीदास ने ‘श्रीरामचरितमानस’ में लिखा है ‘करि विचार देखहुँ मन माहीं, पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं।’
स्वतन्त्रता अमूल्य वस्तु है और उसका मानवीय जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। यह बात व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और राष्ट्रीय स्वतन्त्रता दोनों के ही सम्बन्ध में सत्य है। स्वतन्त्रता का महत्त्व न होता, तो विभिन्न देशों में लाखों व्यक्तियों द्वारा स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान न दिया जाता। इटली के प्रसिद्ध देशभक्त मैजिनी (Mazzini) का कथन है कि “स्वतन्त्रता के अभाव में आप अपना कोई कर्तव्य पूरा नहीं कर सकते। अतएव आपको स्वतन्त्रता का अधिकार दिया जाता है और जो भी शक्ति आपको इस अधिकार से वंचित रखना चाहती हो, उससे जैसे भी बने, अपनी स्वतन्त्रता छीन लेना आपका कर्तव्य है।”
प्रश्न 4.
“स्वतन्त्रता तथा कानून परस्पर विरोधी हैं।” इस विचार को मान्यता प्रदान करने वालों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
कुछ विद्वानों का विचार है कि स्वतन्त्रता तथा कानून परस्पर विरोधी हैं, क्योंकि कानून स्वतन्त्रता पर अनेक प्रकार के बन्धन लगाता है। इस विचार को मान्यता देने वालों में व्यक्तिवाद, अराजकतावादी, श्रम संघवादी तथा कुछ अन्य विद्वान् हैं। इस मत के अलग-अलग विचार अग्रलिखित हैं-
- व्यक्तिवादियों के विचार – व्यक्तिवादी विचारधारा राज्य के कार्यों को सीमित करने के पक्ष में है। व्यक्तिवादियों के अनुसार, “वही शासन-प्रणाली श्रेष्ठ है जो सबसे कम शासन करती है। जितने कम कानून होंगे, उतनी ही अधिक स्वतन्त्रता होगी।
- अराजकतावादियों के विचार – अराजकतावादियों की मान्यता है कि राज्य अपनी शक्ति के प्रयोग से व्यक्ति की स्वतन्त्रता को नष्ट करता है। इसीलिए अराजकतावादी राज्य को समाप्त कर देने के समर्थक हैं। अराजकतावादी विचारक विलियम गॉडविन के मतानुसार, “कानून सर्वाधिक घातक प्रकृति की संस्था है।”……………“राज्य का कानून, दमन तथा उत्पीड़न का | एक नवीन यन्त्र है।
- श्रम संघवादियों के विचार – मजदूर संघवादियों की मान्यता है कि राज्य के कानून व्यक्ति की स्वतन्त्रता को सीमित करते हैं। इन कानूनों का प्रयोग सदैव ही पूँजीपतियों के हितों को बढ़ावा देने हेतु किया गया है। इससे मजदूरों की स्वतन्त्रता नष्ट होती है। चूंकि राज्य के कानून मजदूरों के हितों का विरोध कर पूँजीपतियों का समर्थन करते हैं, इसलिए मजदूर संघवादी भी राज्य को समाप्त करने के पक्षधर हैं।
- बहुलवादियों के विचार – बहुलवादियों की मान्यता है कि राज्य के पास भी जितनी अधिक सत्ता होगी, व्यक्ति को उतनी ही कम स्वतन्त्रता होगी। इसलिए राज्य-सत्ता को अलग-अलग समूहों में विभाजित कर दिया जाना चाहिए।
उपर्युक्त विभिन्न विचारों के अध्ययनोपरान्त हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि कानून एवं स्वतन्त्रता में कोई सम्बन्ध नहीं है, अर्थात् ये परस्पर विरोधी हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)
प्रश्न 1
नागरिक स्वतन्त्रता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
नागरिक स्वतन्त्रता
समाज का सदस्य होने के कारण व्यक्ति को जो स्वतन्त्रता प्राप्त होती है, उसको नागरिक स्वतन्त्रता की उपमा दी जाती है। नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा राज्य करता है। इसमें नागरिकों की निजी स्वतन्त्रता, धार्मिक स्वतन्त्रता, सम्पत्ति का अधिकार, विचार-अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, इकट्टे होने तथा संघ इत्यादि बनाने की स्वतन्त्रता सम्मिलित हैं। गैटिल ने नागरिक स्वतन्त्रता का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा है कि “नागरिक स्वतन्त्रता का तात्पर्य उन अधिकारों एवं विशेषाधिकारों से है जिन्हें राज्य अपनी प्रजा हेतु उत्पन्न करता है तथा उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है।”
नागरिक स्वतन्त्रता विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होती है। जहाँ लोकतन्त्रीय राज्यों में यह स्वतन्त्रता अधिक होती है, वहीं तानाशाही राज्यों में कम। भारत के संविधान में नागरिक स्वतन्त्रता का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 2.
आर्थिक स्वतन्त्रता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
आर्थिक स्वतन्त्रता
आर्थिक स्वतन्त्रता से आशय आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी उस स्थिति से है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए अपना जीवन-यापन कर सके। लॉस्की के शब्दों में, “आर्थिक स्वतन्त्रता का यह अभिप्राय है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका अर्जित करने की समुचित सुरक्षा तथा सुविधा प्राप्त हो।’
जिस राज्य में भूख, गरीबी, दीनता, नग्नता तथा आर्थिक अन्याय होगा वहाँ व्यक्ति कभी भी स्वतन्त्र नहीं होगा। व्यक्ति को पेट की भूख, अपने बच्चों की भूख तथा भविष्य में दिखाई देने वाली आवश्यकताएँ प्रत्येक पल दु:खी करती रहेंगी। व्यक्ति कभी भी स्वयं को स्वतन्त्र अनुभव नहीं करेगा तथा न ही वह नागरिक एवं राजनीतिक स्वतन्त्रता का भली-भाँति उपभोग कर सकेगा। अतः राजनीतिक एवं नागरिक स्वतन्त्रता को हासिल करने के लिए आर्थिक स्वतन्त्रता का होना परमावश्यक है। लेनिन ने उचित ही कहा है कि “आर्थिक स्वतन्त्रता के अभाव में राजनीतिक अथवा नागरिक स्वतन्त्रता अर्थहीन है।’
प्रश्न 3.
क्या स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं?
या
समानता के आवेश ने स्वतन्त्रता की आशा को व्यर्थ कर दिया।” इस कथन का परीक्षण कीजिए।
उत्तर
इंस विचारधारा के समर्थकों में डी० टॉकविले, लॉर्ड एक्टन तथा क्रोचे प्रमुख हैं। इनके अनुसार, स्वतन्त्रता एवं समानता एक-दूसरे के विरोधी हैं। स्वतन्त्रता समानता को नष्ट करती है तथा समानता स्वतन्त्रता का विनाश करती है। इस विचारधारा के अनुसार स्वतन्त्रता का अर्थ व्यक्ति की अपनी इच्छानुसार कार्य करने की शक्ति है। व्यक्ति के ऊपर सभी प्रकार के बन्धनों तथा नियन्त्रणों का अभाव ही स्वतन्त्रता है। समानता का आशय सभी क्षेत्रों में बरोबरी से है। अतः स्वतन्त्रता से समानता का हनन होता है तथा समानता से स्वतन्त्रता का अन्त हो जाता है, क्योंकि पूर्ण समानता राज्य के नियन्त्रण से ही सम्भव है तथा राज्य का नियन्त्रण स्वतन्त्रता को समाप्त कर देता है। ऐसी स्थिति में स्वतन्त्रता एवं समानता में से एक की स्थापना ही सम्भव है; अतः ये दोनों परस्पर विरोधी हैं। लॉर्ड एक्टन के अनुसार, समानता की अभिलाषा ने स्वतन्त्रता की आशा को व्यर्थ कर दिया है।”
प्रश्न 4.
धार्मिक स्वतन्त्रता से क्या आशय है?
उत्तर
व्यक्ति धर्म पर किसी प्रकार का बन्धन स्वीकार नहीं करता। यही कारण है कि आज अनेक राज्यों में व्यक्ति को कोई भी धर्म मानने, प्रचार करने तथा धारण करने की स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है। भारतीय संविधान में भी धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।
धर्मतन्त्र राज्यों में राज्य का एक धर्म होता है तथा उसी धर्म के अनुयायियों को विशेष सुविधाएँ प्राप्त होती हैं; जबकि धर्मनिरपेक्ष राज्य में व्यक्ति को अपनी इच्छा का कोई भी धर्म धारण करने की स्वतन्त्रता होती है तथा सभी धर्म एकसमान होते हैं।
प्रश्न 5.
राष्ट्रीय स्वतन्त्रता से क्या आशय है?
उत्तर
यह स्वतन्त्रता सभी प्रकार की स्वतन्त्रताओं तथा अधिकारों की आधारशिला है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का तात्पर्य राष्ट्र की स्वतन्त्रता से है। जिस प्रकार व्यक्ति को स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए ठीक उसी प्रकार से एक राष्ट्र को भी अपने पूर्ण विकास के लिए स्वतन्त्र होना आवश्यक है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता राज्य की आन्तरिक एवं बाह्य स्वाधीनता है। जो राष्ट्र अपने आन्तरिक प्रशासन तथा बाह्य सम्बन्धों के स्थापन में स्वतन्त्र होता है, किसी दूसरे देश के अधीन नहीं होता; वह स्वतन्त्र और सम्प्रभु राष्ट्र होता है। लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों तथा नियमों के अधीन प्रत्येक राष्ट्र की स्वतन्त्रता पर कुछ प्रतिबन्ध रहता है।
प्रश्न 6.
स्वतन्त्रता नैतिक गुणों के विकास में कैसे सहायक होती है?
उत्तर
स्वतन्त्रता व्यक्ति में प्रेम, दया, सहानुभूति, त्याग, सहयोग इत्यादि नैतिक गुणों को विकसित करके सामाजिक सभ्यता का विकास करती है जो मानवीय मूल्यों के लिए परमावश्यक है।
स्वतन्त्रता के बिना व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो सकता। स्वतन्त्रता के माध्यम से ही वे साधन उपलब्ध कराये जाते हैं जिनसे व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।
प्रश्न 7.
समानता की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
समानता की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
- आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति – समानता की यह विशेषता है कि व्यक्ति कम-से-कम अपनी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके तथा अपने जीवन का निर्वाह कर सके।
- प्रगति के समान अवसर – समानता का एक सकारात्मक पक्ष है जिसका अर्थ यह है कि सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के उनके व्यक्तित्व के विकास हेतु समान अवसर सुलभ होने चाहिए।
- विशेष अधिकारों की अनुपस्थिति – समानता में यह निहित है कि किसी भी वर्ग विशेष के व्यक्ति को लिंग, वंश, जन्म-स्थान, धर्म तथा राजनीतिक पद के आधार पर ऐसे कुछ भी विशेष अधिकार नहीं मिलने चाहिए जिनसे कि अन्य व्यक्ति वंचित हों।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता मनुष्य के लिए किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर
स्वतन्त्रता मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता को परिभाषित करें। [2014]
उत्तर
“स्वतन्त्रता उस वातावरण को बनाये रखना है जिसमें व्यक्ति को अपने जीवन का सर्वोत्तम विकास करने की सुविधा प्राप्त हो।’
प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के दो भेद या प्रकार बताइए। [2009, 10, 14]
उत्तर
- नागरिक स्वतन्त्रता तथा
- राजनीतिक स्वतन्त्रता।
प्रश्न 4.
समानता का वास्तविक अर्थ लिखिए।
उत्तर
समानता प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्तियों के उपयोग करने का यथाशक्ति समान अवसर प्रदान करने का प्रयत्न है।
प्रश्न 5.
समानता के दो प्रकार या भेद बताइए। [2010]
उत्तर
- आर्थिक समानता तथा
- राजनीतिक समानता।
प्रश्न 6.
किन्हीं दो राजनीतिक स्वतन्त्रताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
- राष्ट्र को स्वतन्त्र होने का अधिकार तथा
- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन के कार्यों में भाग लेने का अधिकार।
प्रश्ग 7.
सकारात्मक स्वतन्त्रता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
सकारात्मक स्वतन्त्रता एक पूर्ण मानव के रूप में कार्य करने की स्वतन्त्रता है। यह मानव का विकास करने की शक्ति है।
प्रश्न 8.
प्राकृतिक स्वतन्त्रता से रूसो का क्या अभिप्राय है?
उत्तर
रूसो के शब्दों में, मनुष्य जन्मतः स्वतन्त्र है, परन्तु सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा हुआ है।
प्रश्न 9.
आर्थिक स्वतन्त्रता के विषय में लेनिन ने क्या कहा है?
उत्तर
लेनिन ने कहा है कि आर्थिक स्वतन्त्रता के अभाव में राजनीतिक अथवा नागरिक स्वतन्त्रता अर्थहीन है।
प्रश्न 10.
लॉस्की ने ‘समानता की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर
लॉस्की के अनुसार, समानता प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्तियों का उपयोग करने हेतु यथाशक्ति समान अवसर प्रदान करने का प्रयत्न है।
प्रश्न 11.
कानून के समक्ष समानता का क्या अर्थ है? [2013]
उत्तर
जब सभी के लिए बिना किसी भेदभाव के एक-से कानून तथा एक-से न्यायालय होते हैं, तब नागरिकों को कानूनी समानता प्राप्त हो जाती है।
प्रश्न 12.
राजनीतिक स्वतन्त्रताओं के दो उदाहरण दीजिए। [2013, 16]
उत्तर
- मत देने का अधिकार तथा
- चुनाव लड़ने का अधिकार।
प्रश्न 13.
‘ऑन लिबर्टी’ नामक ग्रन्थ किसने लिखा ? [2010, 11, 14]
उत्तर
जे० एस० मिल ने।
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
1. स्वतन्त्रता के नकारात्मक पहलू का विचारक था-
(क) ग्रीन
(ख) गाँधी जी
(ग) लास्की
(घ) रूसो
2. स्वतन्त्रता के सकारात्मक (वास्तविक) पहलू का विचारक था
(क) हॉब्स
(ख) सीले
(ग) कोल
(घ) मैकेंजी
3. स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं।” इस विचारधारा का समर्थक था-
(क) लॉस्की
(ख) सी० ई० एम० जोड
(ग) क्रोचे
(घ) पोलार्ड
4. “स्वतन्त्रता एवं समानता एक-दूसरे के पूरक हैं।” इस विचारधारा का समर्थक है-
(क) डी० टॉकविले
(ख) लॉर्ड एक्टन
(ग) क्रोचे
(घ) लॉस्की
5. “आर्थिक समानता के बिना राज़नीतिक स्वतन्त्रता एक भ्रम है।” यह कथन किसका है? [2014]
(क) लॉस्की का,
(ख) प्रो० जोड का
(ग) रूसो का
(घ) क्रोचे का
6. नागरिक स्वतन्त्रता निम्नलिखित में से किसे कहते हैं?
(क) रोजगार पाने की स्वतन्त्रता
(ख) कानून के समक्ष समानता
(ग) चुनाव लड़ने की स्वतन्त्रता
(घ) राजकीय सेवा प्राप्त करने की स्वतन्त्रता
7. ‘लिबर्टी (स्वतन्त्रता) की व्युत्पत्ति लिबर’ शब्द से हुई है, जो शब्द है- [2007, 13]
(क) संस्कृत भाषा का
(ख) लैटिन भाषा का
(ग) फ्रांसीसी भाषा का
(घ) हिब्रू भाषा का
8. “स्वतन्त्रता अति-शासन की विरोधी है।” यह कथन किसका है? [2011]
(क) कोल
(ख) सीले
(ग) लॉस्की
(घ) ग्रीन
9. यदि किसी व्यक्ति को आवागमन की स्वतन्त्रता नहीं प्राप्त है, तो उसे निम्नांकित में से किस स्वतन्त्रता से वंचित किया जा सकता है? [2013]
(क) नागरिक स्वतन्त्रता
(ख) प्राकृतिक स्वतन्त्रता
(ग) आर्थिक स्वतन्त्रता
(घ) धार्मिक स्वतन्त्रता
उत्तर
- (घ) रूसो,
- (घ) मैकेंजी,
- (ग) क्रोचे,
- (घ) लॉस्की,
- (ख) प्रो० जोड का,
- (ख) कानून के समक्ष समानता,
- (ख) लैटिन भाषा का,
- (ख) सीले,
- (ख) प्राकृतिक स्वतन्त्रता।