UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 6 Secondary Activities (द्वितीयक क्रियाएँ)
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 6 Secondary Activities (द्वितीयक क्रियाएँ)
UP Board Class 12 Geography Chapter 6 Text Book Questions
UP Board Class 12 Geography Chapter 6 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए
(i) निम्न में से कौन-सा कथन असत्य है
(क) हुगली के सहारे जूट के कारखाने सस्ती जल यातायात की सुविधा के कारण स्थापित हुए
(ख) चीनी, सूती वस्त्र एवं वनस्पति तेल उद्योग स्वच्छन्द उद्योग हैं
(ग) खनिज तेल एवं जलविद्युत शक्ति के विकास ने उद्योगों की अवस्थिति कारक के रूप में कोयला शक्ति के महत्त्व को कम किया है
(घ) पत्तन नगरों ने भारत में उद्योगों को आकर्षित किया है।
उत्तर:
(ग) खनिज तेल एवं जलविद्युत शक्ति के विकास ने उद्योगों की अवस्थिति कारक के रूप में कोयला शक्ति के महत्त्व को कम किया है।
(ii) निम्न में से कौन-सी एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन का स्वामित्व व्यक्तिगत होता है
(क) पूँजीवाद
(ख) मिश्रित
(ग) समाजवाद
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर:
(क) पूँजीवाद।
(iii) निम्न में से कौन-सा एक प्रकार का उद्योग अन्य उद्योगों के लिए कच्चे माल का उत्पादन करता है
(क) कुटीर उद्योग
(ख) छोटे पैमाने के उद्योग
(ग) आधारभूत उद्योग
(घ) स्वच्छन्द उद्योग।
उत्तर:
(ग) आधारभूत उद्योग।
(iv) निम्न में से कौन-सा एक जोड़ा सही मेल खाता है
(क) स्वचालित वाहन उद्योग – लॉस एंजिल्स
(ख) पोत निर्माण उद्योग – लूसाका
(ग) वायुयान निर्माण उद्योग – फ्लोरेंस
(घ) लौह-इस्पात उद्योग – पिट्सबर्ग
उत्तर:
(घ) लौह-इस्पात उद्योग – पिट्सबर्ग।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर लगभग 30 शब्दों में टिप्पणी लिखिए-:
(i) उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग
उत्तर:
उच्च तकनीक विनिर्माण में सबसे नवीन विधि है। गहन खोज और विकास के द्वारा अग्रिम वैज्ञानिक इंजीनियरिंग को समझा जाता है। व्यावसायिक (सफेद कालर) कामगार कुल कार्यशक्ति का एक बड़ा भाग है। ये उच्च विशेषज्ञ वास्तविक उत्पादक हैं। रोबोटिक, कम्प्यूटर जीवन आकृति और विनिर्माण शोधन प्रक्रिया का इलेक्ट्रॉनिक्स नियन्त्रणमय रासायनिक और फार्मास्युटिकल उत्पाद उच्च तकनीक उद्योग के उदाहरण हैं।
(ii) विनिर्माण
उत्तर:
वे क्रियाएँ जिनमें प्राथमिक व्यवसाय जैसे कृषि, पशुपालन, खनन आदि के उत्पादों को तकनीकों का प्रयोग करके संसाधित किया जाता है और अधिक उपयोगी वस्तुओं में बदला जाता है। ऐसी प्रक्रियाएँ विनिर्माण उद्योग कहलाती हैं। उदाहरण के लिए, कपास को कच्चे माल के रूप में सूती वस्त्र उद्योग में प्रयोग करके वस्त्र उत्पादन किया जाता है।
(iii) स्वच्छन्द उद्योग
उत्तर:
स्वच्छन्द उद्योग व्यापक विविधता वाले स्थानों पर लगाए जा सकते हैं। वे किसी विशेष प्रकार के कच्चे माल पर निर्भर नहीं होते जिनके भार का ह्रास होता हो अथवा नहीं। ये उद्योग अधिकतर संघटक पुों पर निर्भर करते हैं जिन्हें कहीं से भी प्राप्त किया जा सकता है। इनमें उत्पादन की मात्रा व श्रमिक कम होते हैं। आमतौर पर ये उद्योग प्रदूषण नहीं फैलाते। इनकी अवस्थिति में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक सड़क मार्गों द्वारा ‘पहुँच’ है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों का 150 शब्दों में उत्तर दीजिए :
(i) प्राथमिक एवं द्वितीयक गतिविधियों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
प्राथमिक एवं द्वितीयक गतिविधियों में अन्तर
(ii) विश्व के विकसित देशों के उद्योगों के सन्दर्भ में आधुनिक औद्योगिक क्रियाओं की मुख्य प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
विकसित औद्योगिक देशों में आधुनिक औद्योगिक क्रियाकलापों में परिवर्तनशील प्रवृत्तियाँ देखी गई हैं। ये परिवर्तनशील प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं
- उद्योगों की अवस्थिति के लिए उत्तरदायी कारकों के महत्त्व में निरन्तर कमी आती जा रही है।
- विकसित अर्थव्यवस्था में विकास तथा वैज्ञानिक तकनीक की उन्नति के परिणामस्वरूप उद्योगों की संरचना एवं स्वरूप में परिवर्तन आया है। निरौद्योगीकरण की प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
- आधुनिक औद्योगिक क्रियाकलापों में भी कई प्रकार के परिवर्तन हुए हैं। उद्योगों के उत्पादन के लिए उच्च तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है।
- कारखानों के स्थान पर छोटी इकाइयों का बिखराव बहुत बड़े क्षेत्रों में देखा जा रहा है।
- अवशिष्ट पदार्थों में कमी की वजह से पुन:चक्रण प्रतिस्थापन तथा विकल्पों का योगदान अधिक है।
- श्रम गहन उद्योग विकासशील देशों में विकसित हो रहे हैं।
- बड़े-बड़े कारखानों का स्थान छोटे कारखाने ले रहे हैं।
- डिजाइन तथा उत्पादन में बहुत ही तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं।
(iii) अधिकतर देशों में उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग प्रमुख महानगरों के परिधि क्षेत्रों में ही क्यों विकसित हो रहे हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उच्च प्रौद्योगिक उद्योग औद्योगिक क्षेत्र अथवा प्रौद्योगिक पार्कों के रूप में महानगरों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। लन्दन, पेरिस, मिलान, टोकियो आदि इसके उदाहरण हैं।
महानगरों के परिधीय क्षेत्र में उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग के विकसित होने के निम्नलिखित कारण हैं
- महानगरों के मध्यवर्ती क्षेत्रों की तुलना में परिधि क्षेत्रों में भूमि सस्ती और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है।
- यह क्षेत्र मानवीय आवास से दूर होता है, इस कारण मानवीय आवास औद्योगिक प्रदूषण से अधिक प्रभावित नहीं होते।
- महानगरों के परिधीय भागों में यातायात साधनों का पर्याप्त विकास पाया जाता है। यहाँ सड़क मार्ग एवं रेलों का सघन जाल पाया जाता है और यातायात बाधित नहीं होता।
- उत्पाद की खपत के लिए बाजार महानगरों के समीप ही उपलब्ध हो जाते हैं।
- इस भाग में खुला क्षेत्र अधिक होने के कारण पर्यावरण साफ व स्वच्छ रहता है।
- समीपवर्ती आवासीय क्षेत्रों में आने-जाने वाले लोगों से श्रम की आपूर्ति आसानी से हो जाती है जो सस्ता भी होता है।
- सरकार की औद्योगिक नीति के कारण ही यह उद्योग मानवीय आवासों से दूर महानगर की परिधि क्षेत्र में स्थापित किए जाते हैं।
(iv) अफ्रीका में अपरिमित प्राकृतिक संसाधन हैं फिर भी औद्योगिक दृष्टि से यह बहुत पिछड़ा . महाद्वीप है। समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि अफ्रीका प्राकृतिक संसाधन में धनी है लेकिन औद्योगिक दृष्टि से वह पिछडा महाद्वीप है, जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
1. विषम जलवायु – अफ्रीका महाद्वीप के अधिकांश भाग में विषम जलवायु पायी जाती है। सहारा मरुस्थलीय जलवायु में आने वाले देश अधिक तापमान व गर्म पवनों के कारण पिछड़े हुए हैं। इसी तरह जिन भागों में भूमध्यरेखीय जलवायु पायी जाती है उन क्षेत्रों में विषम परिस्थितियों के कारण उद्योग विकसित नहीं हो पाए।
2. उच्च प्रौद्योगिकी की अनुपलब्धता – उच्च प्रौद्योगिकी की अनुपलब्धता के कारण भी अफ्रीका के देशों में उद्योग विकसित नहीं हो पाए।
3. परिवहन साधनों का अभाव – अफ्रीका महाद्वीप के देशों में विषम जलवायु; उच्चावच आदि के कारण परिवहन साधनों का विकास नहीं हो पाया है।
4. कुशल (प्रशिक्षित) श्रम का अभाव – अफ्रीका महाद्वीप के जिन देशों में खनिज पदार्थों की उपलब्धता है उन क्षेत्रों में कुशल श्रम के अभाव के कारण वे देश औद्योगिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं।
5. पूँजी का अभाव – अफ्रीका महाद्वीप में पूँजी का पर्याप्त अभाव है जिसके कारण यहाँ औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है।
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UP Board Class 12 Geography Chapter 6 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए। अथवा विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत विनिर्माण उद्योगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विनिर्माण उद्योग-वे क्रियाएँ जिनमें प्राथमिक क्रियाएँ जैसे कृषि, पशुपालन, खनन आदि के उत्पादों को तकनीक का प्रयोग करके संशोधित किया जाता है और उन्हें अधिक उपयोगी वस्तुओं में बदला . जाता है। ऐसी प्रक्रियाएँ विनिर्माण उद्योग कहलाती हैं।
विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण
विनिर्माण उद्योगों के वर्गीकरण के आधार हैं-आकार, कच्चा माल, उत्पाद एवं स्वामित्व।
- आकार पर आधारित उद्योग – किसी उद्योग के आकार का निश्चय उसमें लगाई गई पूँजी की मात्रा, कार्यरत श्रमिकों की संख्या तथा उत्पादन की मात्रा के आधार पर किया जाता है। इस आधार पर उद्योग तीन प्रकार के होते हैं
- कुटीर उद्योग
- छोटे पैमाने के उद्योग
- बड़े पैमाने के उद्योग।
- कच्चे माल पर आधारित उद्योग – कच्चे माल पर आधारित उद्योगों के वर्गीकरण के आधार निम्नलिखित हैं- ..
- कृषि आधारित उद्योग
- खनिज आधारित उद्योग
- रसायन आधारित उद्योग
- वन आधारित उद्योग
- पशु आधारित उद्योग।
- उत्पाद आधारित उद्योग – ऐसे उत्पाद जो अन्य उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान करते हैं, उत्पाद आधारित उद्योग कहलाते हैं। उत्पाद आधारित उद्योगों के दो प्रकार निम्नलिखित हैं
- आधारभूत उद्योग (मूलभूत उद्योग) – जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग।
- उपभोक्ता वस्तु उद्योग-जैसे – ब्रेड, बिस्कुट, चाय, साबुन आदि उद्योग।
- स्वामित्व के आधार पर उद्योग – स्वामित्व / अधिकार के आधार पर उद्योग के तीन प्रकार निम्न हैं
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग-ये उद्योग सरकार के अधीन होते हैं।
- निजी क्षेत्र के उद्योग-ये उद्योग व्यक्ति विशेष के अधीन होते हैं।
- संयुक्त क्षेत्र के उद्योग-इन उद्योगों का संचालन संयुक्त कम्पनी के द्वारा अथवा किसी निजी एवं . सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी के संयुक्त प्रयासों से होता है।
प्रश्न 2.
आकार के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
आकार के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण
आकार के आधार पर उद्योगों के वर्गीकरण के आधार हैं-निवेशित पूँजी, कार्यरत श्रमिकों की संख्या एवं उत्पादन की मात्रा।
आकार के आधार पर उद्योगों के तीन प्रकार निम्नलिखित हैं
1. कुटीर उद्योग – यह विनिर्माण की सबसे छोटी इकाई है। इसे ‘शिल्प उद्योग’ भी कहा जाता है। इसमें दस्तकार अपनी पैतृक दक्षता के आधार पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर स्थानीय कच्चे माल का प्रयोग करते हुए सरल विधियों से अपने घर पर ही छोटी-छोटी वस्तुओं का निर्माण करते हैं। तैयार माल का या तो वह स्वयं उपभोग करता है अथवा उसे स्थानीय बाजार में बेच देता है। कभी-कभी वह वस्तु-विनिमय भी करता है। ये उद्योग पूँजी व परिवहन से प्रभावित नहीं होते हैं। इन उद्योगों में दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं जैसे खाद्य पदार्थ, कपड़ा, बर्तन, औजार, फर्नीचर, जूते एवं लघु मूर्तियाँ आदि बनाई जाती हैं।
2. छोटे पैमाने के उद्योग (लघु उद्योग) – यह उद्योग कुटीर उद्योग का विस्तृत एवं संशोधित रूप है। इसमें स्थानीय कच्चे माल का उपयोग किया जाता है। इस उद्योग में अर्द्धकुशल श्रमिक व शक्तिचालित यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। रोजगार के अवसर इस उद्योग में अधिक होते हैं।
3. बड़े पैमाने के उद्योग – बड़े पैमाने के उद्योग की विशेषताएँ हैं—विशाल बाजार, विभिन्न प्रकार का कच्चा माल, शक्ति साधन, कुशल श्रमिक, विकसित प्रौद्योगिकी, अधिक उत्पादन एवं अधिक पूँजी। वर्तमान में इन उद्योगों का विस्तार विश्व के सभी क्षेत्रों में है।
बड़े पैमाने पर हुए विनिर्माण की प्रणाली के आधार पर विश्व के प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों को दो बड़े समूहों में विभक्त किया जा सकता है
- बड़े पैमाने के परम्परागत औद्योगिक प्रदेश, एवं
- उच्च प्रौद्योगिकी वाले बड़े पैमाने के औद्योगिक प्रदेश।
प्रश्न 3.
विश्व में सूती वस्त्र उद्योग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग सूती वस्त्र उद्योग संसार के प्राचीनतम उद्योगों में से एक हैं। भारत में हड़प्पा संस्कृति और मिस्त्र में वस्त्र निर्माण के प्रमाण मिले हैं। यह उद्योग कृषि आधारित है। इस उद्योग में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करोड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इस उद्योग की प्रमुख क्रियाएँ हैं
(1) कताई, (2) बुनाई एवं (3) वस्त्र निर्माण।
सूती वस्त्र उद्योग की अवस्थिति के कारक
(1) जलवायु, (2) कच्चे माल की उपलब्धता, (3) स्वच्छ जल की आपूर्ति, (4) कुशल कारीगर, (5) सस्ती जलविद्युत, (6) बाजार की समीपता आदि।
सूती वस्त्र निर्माण के सेक्टर – इस उद्योग में सूती वस्त्रों का निर्माण तीन सेक्टरों में किया जाता है
1. हथकरघा सेक्टर – यह श्रम सघन क्षेत्र है जिसमें अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है। यह सेक्टर अर्द्धकुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है। इस सेक्टर में पूँजी निवेश भी कम होता है। इसमें सूत की कताई, बुनाई आदि का काम किया जाता है।
2. बिजली करघा सेक्टर – बिजली करघों से कपड़ा बनाने में मशीनों का प्रयोग किया जाता है। परिणामस्वरूप इसमें श्रमिकों की कम आवश्यकता होती है। इस सेक्टर का उत्पादन हथकरघा सेक्टर की अपेक्षा अधिक होता है।
3. मिल सेक्टर – मिलों में कपड़ा बनाने के लिए अधिक पूँजी का निवेश किया जाता है, परन्तु उसमें कपड़ा अच्छा बनता है और अधिक मात्रा में बनता है।
सूती वस्त्र उद्योग का वितरण – सूती वस्त्र बनाने वाले प्रमुख देश भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान एवं मिस्र हैं। विश्व की 50 प्रतिशत से अधिक कपास का उत्पादन यही देश करते हैं। ग्रेट-ब्रिटेन, उत्तर-पश्चिमी यूरोप के देश एवं जापान आयातित धागे से सूती कपड़े का उत्पादन करते हैं। अकेला यूरोप विश्व की लगभग आधी कपास का आयात करता है।
प्रतिस्पर्धा और संकट – वर्तमान में सूती वस्त्र उद्योग को संश्लेषित रेशे से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। . परिणामस्वरूप अनेक देशों में यह उद्योग नकारात्मक प्रवृत्ति दिखा रहा है।
अर्थव्यवस्था में विकास तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी उन्नति के फलस्वरूप उद्योगों की संरचना और स्वरूप में बदलाव लाया जा सकता है। उदाहरणत: दूसरे विश्वयुद्ध से लेकर सन् 1980 तक वस्त्र निर्माण में जर्मनी ने खूब तरक्की की, लेकिन बाद में यह उद्योग कम श्रम लागत के कारण जब अल्पविकसित देशों में स्थानान्तरित हो गया तो जर्मनी में वस्त्र उद्योग का ह्रास हो गया।
प्रश्न 4.
कच्चे माल पर आधारित उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए। अथवा कच्चे माल पर आधारित उद्योगों के वर्गीकरण के आधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कच्चे माल पर आधारित उद्योगों का वर्गीकरण
कच्चे माल पर आधारित उद्योगों के वर्गीकरण के पाँच आधार निम्नलिखित हैं
1. कृषि आधारित उद्योग – ये वे उद्योग हैं जो कृषि उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं तथा इन्हें विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा तैयार माल में बदलकर बिक्री हेतु ग्रामीण और नगरीय बाजारों में भेजते हैं। प्रमुख कृषि आधारित उद्योग हैं— भोजन प्रसंस्करण, शक्कर, अचार, फलों के रस, पेय पदार्थ (चाय, कॉफी, कोको), मसाले, तेल एवं वस्त्र एवं रबड़ उद्योग आदि।
2. खनिज आधारित उद्योग – खनिज आधारित उद्योगों में खनिजों का कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। ये उद्योग दो प्रकार के होते हैं
- लौह-धातु उद्योग – ये उद्योग ऐसी धातुओं पर आधारित होते हैं जिनमें लौहांश की मात्रा होती है। लौह-इस्पात उद्योग, मशीन व औजार उद्योग, तेल इंजन, मोटरकार तथा कृषि औजार उद्योग इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
- अलौह-धातु उद्योग – ये उद्योग ऐसी धातुओं पर आधारित होते हैं जिनमें लौहांश नहीं होता; जैसेताँबा, ऐलुमिनियम एवं जवाहरातों पर आधारित उद्योग।
3. रसायन आधारित उद्योग – रसायन आधारित उद्योगों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रासायनिक खनिजों का उपयोग होता है, जैसे- पेट्रो रसायन उद्योग में खनिज तेल का उपयोग होता है। नमक, गन्धक एवं पोटाश उद्योगों में भी प्राकृतिक खनिजों को काम में लेते हैं।
4. वन आधारित उद्योग – वन आधारित उद्योगों में वनों से प्राप्त मुख्य एवं गौण उपजों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं। उदाहरणतः फर्नीचर उद्योग के लिए लकड़ी, कागज उद्योग के लिए लकड़ी, बाँस एवं घास तथा लाख उद्योग के लिए लाख वनों से ही प्राप्त होती है। .
5. पशु आधारित उद्योग – चमड़ा उद्योग के लिए चमड़ा एवं ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए ऊन पशुओं से प्राप्त होती है। चमड़ा उद्योग, ऊनी वस्त्र उद्योग, हाथीदाँत उद्योग आदि पशु आधारित उद्योग हैं।
प्रश्न 5.
उद्योगों की अवस्थिति के आधुनिक कारकों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों की अवस्थिति के आधुनिक कारकों की विशेषताएँ
उद्योगों की अवस्थिति के आधुनिक कारकों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- उद्योगों की अवस्थिति के आधुनिक कारकों का अलग-अलग प्रभाव नहीं होता।
- ये कारक उद्योगों की अवस्थिति को सामूहिक रूप से प्रभावित करते हैं।
- इन कारकों का आपस में जटिल सम्बन्ध होता है।
- इन कारकों का सापेक्षिक महत्त्व कभी स्थायी नहीं होता बल्कि वह समय, स्थान, उद्योगों के प्रकार व अर्थव्यवस्था के अनुसार बदलता रहता है।
- किसी निश्चित समय पर उद्योगों की स्थापना के सभी कारक अनुकूल हों, आवश्यक नहीं।
- हर जगह कुछ कारक अनुकूल होते हैं व कुछ प्रतिकूला उद्योगों के लिए अच्छे स्थान वे माने जाते हैं जहाँ अनुकूल कारक अधिक प्रभावशाली हों व प्रतिकूल कारक कम प्रभावशाली हो ।
- उद्योगों की अनुकूलतम (Optimum) अवस्थिति वह होती है जहाँ सभी अनुकूल कारकों में सन्तुलन बैठ रहा हो। वैसे अनुकूलतम अवस्थिति एक सापेक्षिक (Relative) शब्द है।
प्रश्न 6.
आधुनिक बड़े पैमाने पर होने वाले विनिर्माण की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक बड़े पैमाने पर होने वाले विनिर्माण की विशेषताएँ
आधुनिक युग में बड़े पैमाने पर होने वाले विनिर्माण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. कौशल अथवा उत्पादन की विधियों का विशिष्टीकरण – शिल्प पद्धति में केवल थोड़ी वस्तुओं का ही उत्पादन किया जाता है जिनका पहले से ऑर्डर प्राप्त होता है। परिणामस्वरूप वस्तुओं की उत्पादन लागत अधिक आती है। बड़े पैमाने पर होने वाले उत्पादन में प्रत्येक कर्मचारी बड़ी संख्या में एक जैसे सामान (वस्तु). को बार-बार बनाता रहता है। इससे वस्तु की लागत भी कम आती है और वस्तुओं का मानक भी समान रहता है।
2. मशीनीकरण – मशीनीकरण से अभिप्राय ऐसी युक्तियों के उपयोग से है जिनसे कार्य सम्पन्न होता है। विनिर्माण में स्वचालित मशीनों का उपयोग मशीनीकरण की विकसित अवस्था को प्रदर्शित करता है। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में ऐसे स्वचालित कारखाने दिखने लगे हैं जो कि कम्प्यूटर द्वारा नियन्त्रित हैं और जिनमें मशीनों को ‘सोचने’ के लिए विकसित किया गया है।
3. प्रौद्योगिक नवाचार – बड़े पैमाने के आधुनिक विनिर्माण की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि वे सतत शोध एवं विकास के बल पर ऐसे प्रौद्योगिक नवाचार का उपयोग करते हैं जिनसे गुणवत्ता का नियन्त्रण, अपशिष्टों का निस्तारण, अदक्षता की समाप्ति और प्रदूषण में कमी प्रभावी ढंग से हो सकती है।
4.संगठनात्मक ढाँचा एवं स्तरीकरण – आधुनिक विनिर्माण उद्योग एक संगठन की तरह कार्य करता है जिसमें सभी विभाग अपना-अपना दायित्व निभाते हैं। इस वृहद् प्रणाली के प्रमुख लक्षण हैं
- एक जटिल प्रौद्योगिकी यन्त्र
- अत्यधिक विशिष्टीकरण व श्रम विभाजन के द्वारा कम लागत पर उत्पादन
- अधिक पूँजी
- बड़े संगठन एवं
- प्रशासकीय अधिकारी वर्ग।
5. अनियमित भौगोलिक वितरण – आधुनिक विनिर्माण के प्रमुख संकेन्द्रण विश्व में बहुत ही थोड़े स्थानों पर विकसित हो पाए हैं। विनिर्माण उद्योगों से सम्पन्न देश आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति के केन्द्र बन गए हैं।
प्रश्न 7.
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्योग हर जगह पर विकसित नहीं हो पाते। उनकी स्थापना ऐसे स्थानों पर की जाती है जहाँ उत्पाद के निर्माण और विक्रय पर लागत कम-से-कम आए और अधिक-से-अधिक लाभ हो। ऐसी अवस्थिति का चयन काफी सोच-विचार के उपरान्त किया जाता है। किसी भी उद्योग की अवस्थिति अनेक प्रकार के कारकों द्वारा नियन्त्रित होती है।
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1. बाजार – उद्योगों की स्थापना में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक उसके द्वारा उत्पादित माल के लिए उपलब्ध बाजार का होना है। बाजार से अभिप्राय उस क्षेत्र से होता है जहाँ तैयार माल की माँग हो और वहाँ के निवासियों में उन वस्तुओं को खरीदने की क्षमता भी हो।
2. कच्चे माल की प्राप्ति – उद्योग के लिए कच्चा माल अपेक्षाकृत सस्ता एवं आसानी से परिवहन योग्य होना चाहिए। कच्चे माल के स्रोत के समीप स्थित होने वाले उद्योग हैं
- ह्रासमान भार वाले कच्चे माल का प्रयोग करने वाले उद्योग, जैसे-चीनी उद्योग।
- भारी कच्चा माल प्रयोग करने वाले उद्योग, जैसे-लौह-इस्पात उद्योग।
- कच्चे माल का भार कम होने वाले उद्योग, जैसे-ताँबा उद्योग।
- शीघ्र नष्ट होने वाले कच्चे माल पर आधारित उद्योग, जैसे-दुग्ध पदार्थ, डिब्बाबन्द फल आदि।
3. शक्ति के साधन – वे उद्योग जिन्हें अधिक शक्ति की आवश्यकता है, शक्ति स्रोतों के समीप ही लगाए जाते हैं, जैसे-ऐलुमिनियम उद्योग।
4.श्रम आपूर्ति – कम्प्यूटरों के बढ़ते उपयोग, यन्त्रीकरण, स्वचालन एवं औद्योगिक प्रक्रिया के लचीलेपन के कारण उद्योगों की श्रमिकों पर निर्भरता थोड़ी कम हुई है। फिर भी औद्योगिक विकास के लिए उचित वेतन पर सही श्रमिकों का महत्त्व आज भी बना हुआ है।
5. परिवहन एवं संचार की सुविधा – कच्चे माल को कारखाने तक लाने के लिए और उत्पादित माल को खपत केन्द्रों तक पहुँचाने के लिए तीव्र और सक्षम परिवहन सुविधाएँ उद्योगों की अवस्थिति के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक हैं। उद्योगों के लिए सूचनाओं के आदान-प्रदान एवं प्रबन्धन के लिए संचार की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता होती है।
6. सरकारी नीति – सरकारी नीति में उद्योगों के अवस्थितिकरण को प्रभावित करने वाली महत्त्वपूर्ण कारक है।
उपर्युक्त सभी कारक सम्मिलित रूप से किसी उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित व नियन्त्रित करते हैं।
प्रश्न 8.
उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों की विशेषताएँ
उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों के उन्नत, वैज्ञानिक एवं इंजीनियरिंग उत्पाद अत्यन्त परिष्कृत होते हैं जिनका निर्माण गहन वैज्ञानिक शोध एवं विकास पर आधारित होता है।
(2) इन उद्योगों में उच्च कुशलता वाले दक्ष एवं विशिष्ट व्यावसायिक श्रमिकों (सफेद कॉलर) को नौकरी पर रखा जाता है। इनकी संख्या वास्तविक उत्पादन करने वाले श्रमिकों (नीला कॉलर) से अधिक होती है।
(3) उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों के कुछ प्रमुख उत्पाद-रोबोट (यन्त्र मानव), कम्प्यूटर आधारित डिजाइन (CAD) तथा निर्माण, धातु पिघलाने एवं शोधन करने के इलैक्ट्रॉनिक नियन्त्रण और रसायन व औषधियाँ होते हैं।
(4) इस नए औद्योगिक भू-दृश्य में धुआँ उगलती चिमनियों, बड़े-बड़े बदसूरत विशाल भवन, कारखाने, भण्डार और कूड़े के ढेर नहीं होते बल्कि उसके स्थान पर आधुनिक, साफ-सुथरे, स्मार्ट व डिजाइनर भवन, यत्र-तत्र स्थित कार्यालय तथा शोध एवं विकास की प्रयोगशालाएँ देखने को मिलती हैं।
(5) ये उद्योग बाजार की बदलती माँग के अनुसार अपने उत्पादों में तेजी से सुधार करते हैं। इसी कारण इसके उत्पाद अल्पजीवी होते हैं।
(6) इन उद्योगों में श्रम की गतिशीलता बहुत अधिक होती है, क्योंकि योग्यता और अनुभव अधिक आय उन्नत सुविधाओं व सामाजिक स्तर के प्रति संवेदनशील होते हैं।
(7) आज भी उपभोक्ता संस्कृति में एक बार तो इनके उत्पाद खूब बिकते हैं। उदाहरणत: कम्प्यूटरों की बिक्री तेजी से बढ़ रही है।
प्रश्न 9.
उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों की अवस्थिति के कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उच्च प्रौद्योगिकी विनिर्माण क्रियाकलापों में नवीनतम पीढ़ी है। पिछले दो दशकों से उच्च प्रौद्योगिकी पर आधारित उद्योग तेजी से विकसित हो रहे हैं।
उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों की अवस्थिति के कारक
इन स्वच्छन्द उद्योगों पर पारम्परिक कारकों का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता। इनके स्थानीयकरण (अवस्थिति) में कुछ नए कारकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है
(1) ये हल्के उद्योग होते हैं जो अधिकतर कच्चे माल की जगह उत्पादन के लिए अर्द्धनिर्मित तथा संसाधित वस्तुओं का उपयोग करते हैं।
(2) वैज्ञानिक और तकनीकी दक्षता पर निर्भर रहने के कारण ये उद्योग प्रायः विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थाओं के समीप स्थापित किए जाते हैं।
(3) इन उद्योगों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति बिजली द्वारा होती है जो मुख्यत: राष्ट्रीय ग्रिड से प्राप्त होती है।
(4) इन उद्योगों के लिए अनुकूल जलवायु वाले महानगरीय क्षेत्र अधिक अनुकूल साबित होते हैं। महानगरों की सामाजिक, सांस्कृतिक व वैज्ञानिक गतिविधियाँ इन उद्योगों को अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देती हैं। .
(5) इन उद्योगों का अन्तिम उत्पाद छोटा किन्तु परिष्कृत होता है। अत: इन्हें सड़क मार्गों के निकट प्रदूषण रहित आवासीय क्षेत्रों से लगाया जा सकता है।
(6) ज्यादा-से-ज्यादा सफलता प्राप्त करने की अतृप्त भूख तथा प्रतिस्पर्धी कम्पनियों को पटकनी देकर सदा आगे रहने की मानसिकता के कारण नए उद्योगों के वैज्ञानिक, शोधार्थी प्रबन्धक, वित्त विशेषज्ञ तथा प्रशासक सदा तनावग्रस्त रहते हैं। उनके तनावरहित सन्तुलित व्यवहार को बनाए रखने के लिए कम्पनियों का पर्यावरण हरा-भरा, आकर्षक व सुखद होना आवश्यक है। अत: ऐसे उद्योग मनभावन जगहों पर विकसित होते हैं।
(7) परिवहन और संचार के अत्याधुनिक साधनों के बिना ये उद्योग जीवित ही नहीं रह सकते। उपभोक्ताओं, वित्तीय संस्थाओं, सरकारी विभागों, आपूर्तिदाताओं से तत्काल सम्पर्क बनाने तथा शोध के विभिन्न चरणों की सफलता के लिए उच्च कोटि के संचार व परिवहन के साधन आवश्यक हैं।
लघ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
द्वितीयक क्रियाकलाप से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
द्वितीयक क्रियाकलाप-प्रकृति में पाए जाने वाले कच्चे पदार्थों यथा-गेहूँ, चावल, कपास, लकड़ी, धातुएँ आदि में से बहुत कम का ही प्रत्यक्ष रूप से उपभोग किया जा सकता है। अत: आवश्यक है कि कच्चे माल का हाथ अथवा मशीनों की सहायता से रूप बदला जाए और उन्हें पहले से अधिक उपयोगी बनाया जाए। उदाहरणत: कपास को सूत में परिवर्तित करने पर उसका मूल्य बढ़ जाता है, क्योंकि इसका उपयोग वस्त्र बनाने में किया जा सकता है। स्पष्ट है कि जब प्राथमिक उत्पादों का प्रसंस्करण करके नई, उपयोगी और मूल्यवान वस्तुओं की रचना की जाती है तो इन्हें ‘द्वितीयक क्रियाकलाप’ कहते हैं। इस तरह द्वितीयक क्रियाकलापों का सम्बन्ध तीन चीजों से होता है- .
- विनिर्माण
- प्रसंस्करण, एवं
- निर्माण।
प्रश्न 2.
विनिर्माण के अर्थ को समझाइए।
उत्तर:
विनिर्माण का अर्थ-विनिर्माण का शाब्दिक अर्थ है-‘हाथ से बनाना’, लेकिन अब इसमें मशीनों से बनी वस्तुओं को भी शामिल किया जाने लगा है। मूल रूप से विनिर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कच्चे अथवा अर्द्धनिर्मित माल को ऐसे ऊँचे मूल्य के तैयार उपयोगी माल में बदल दिया जाता है जिसे स्थानीय अथवा दूर स्थित बाजार में बेचा जा सकता है। विनिर्माण का अभिप्राय किसी भी वस्तु के उत्पादन से है। इसमें हस्तशिल्प कार्य से लेकर लोहे व इस्पात को गढ़ना, प्लास्टिक के खिलौने बनाने से लेकर कम्प्यूटर के अति सूक्ष्म घटकों को जोड़ना और अन्तरिक्षयान निर्माण आदि सभी प्रकार का उत्पादन शामिल होता है।
प्रश्न 3.
स्वच्छन्द उद्योग की विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर:
स्वच्छन्द उद्योग की विशेषताएँ स्वच्छन्द उद्योग की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- स्वच्छन्द उद्योग हल्के उद्योग होते हैं।
- ये उद्योग कच्चे माल के स्थान पर पुों का उपयोग करते हैं।
- शक्ति के साधनों द्वारा प्रायः राष्ट्रीय ग्रिड से प्राप्त बिजली का उपयोग करते हैं।
- इस उद्योग के उत्पाद छोटे तथा आसानी से परिवहन के योग्य होते हैं।
- इन उद्योगों में कम लोग कार्य करते हैं।
- ये उद्योग स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त होते हैं।
- ये उद्योग संसाधन और बाजार उन्मुख नहीं होते।
प्रश्न 4.
कुटीर उद्योग की विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर:
कुटीर उद्योग की विशेषताएँ कुटीर उद्योग की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- कुटीर उद्योग विनिर्माण की सबसे छोटी इकाई है।
- इस उद्योग में दस्तकार/कलाकार अपनी पैतृक दक्षता के आधार पर घर में ही छोटी-छोटी वस्तुओं का निर्माण करते हैं।
- इस उद्योग में दस्तकार परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर स्थानीय कच्चे माल का प्रयोग करते हुए वस्तुओं का निर्माण करते हैं।
- इन उद्योगों का व्यापारिक महत्त्व बहुत ही कम है।
- इन उद्योगों में खाद्य पदार्थ, बर्तन, आभूषण, दरियाँ, चटाइयाँ, थैले, टोकरियाँ इत्यादि बनाने का काम होता है।
प्रश्न 5.
लघु उद्योग की विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर:
लघु उद्योग की विशेषताएँ लघु उद्योग की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- लघु उद्योगों को उत्पादन की तकनीक एवं निर्माण स्थल (घर से बाहर कारखाना) दोनों के आधार पर कुटीर उद्योगों से अलग किया जाता है।
- इस उद्योग में स्थानीय कच्चे माल का उपयोग होता है।
- इस उद्योग में अर्द्धकुशल श्रमिक व शक्ति के साधनों से चलने वाले यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है।
- रोजगार के अवसर इस उद्योग में अधिक होते हैं।
- इस उद्योग से स्थानीय निवासियों की क्रयशक्ति में वृद्धि होती है।
प्रश्न 6.
कृषि व्यापार पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कृषि व्यापार-कृषि व्यापार औद्योगिक पैमाने पर व्यापारिक कृषि है। इसमें प्राय: बड़े-बड़े उद्योगपति पैसा लगाते हैं जैसे-टाटा अनेक प्रकार के उद्योग चलाता है तथा चाय के बागान के क्षेत्र में भी अपनी पूँजी लगाई है। कृषि व्यापार के फार्मों की विशेषताएँ हैं-यन्त्रीकरण, बड़ा आकार, साधनों का उपयोग तथा प्रबन्धन की आधुनिक प्रणाली। इन्हें कृषि कारखाने भी कहा जाता है।
प्रश्न 7.
भोजन प्रसंस्करण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भोजन प्रसंस्करण-भोजन प्रसंस्करण उद्योग वर्तमान गतिशील जीवन में तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसमें डिब्बाबन्द भोजन, क्रीम उत्पादन, फल प्रसंस्करण एवं मिठाई बनाना आदि शामिल किए जाते हैं। भोजन को सुरक्षित रखने की अनेक विधियों का ज्ञान मनुष्य को प्राचीनकाल से है; जैसे-उसे सुखाकर रखना, उसका अचार बनाना, उसे किण्वित करना यानि खमीर उठाना इत्यादि। हालाँकि इन विधियों से औद्योगिक क्रान्ति से पहले की माँगों को सीमित मात्रा में ही पूरा किया जाता था।
प्रश्न 8.
नगरों के आन्तरिक भागों की तुलना में सीमान्त क्षेत्रों में औद्योगिक संकुल व प्रौद्योगिक पार्कों के लाभों को समझाइए।
उत्तर:
नगरों के आन्तरिक भागों की तुलना में सीमान्त क्षेत्रों में औद्योगिक संकुल व प्रौद्योगिक पाकों के लाभ
- जमीन की कीमतें अपेक्षाकृत सस्ती होने के कारण एकमंजिले कारखाने बनाए जा सकते हैं।
- ऐसे स्थानों पर भविष्य में भी विस्तार के लिए जगह उपलब्ध हो जाती है।
- प्रमुख सड़कों व रेलमार्गों तक पहुँचने की सुविधा होती है।
- समीपवर्ती बस्तियों से प्रतिदिन शहर की तरफ जाने वाले लोगों द्वारा श्रम की आपूर्ति हो जाती है।
- उद्योगों के स्थापित होने से पहले ही वहाँ भूमि विकसित हो जाती है तथा सभी प्रकार की संचार, परिवहन व नागरिक सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती हैं।
प्रश्न 9.
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण
1.सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग – ये उद्योग सरकार के नियन्त्रण में होते हैं। भारत में कई उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के नियन्त्रण में हैं। समाजवादी देशों में कई उद्योग सरकारी नियन्त्रण में होते हैं।
2. निजी क्षेत्र के उद्योग – इन उद्योगों पर व्यक्तिगत निवेशकों का स्वामित्व होता है। ये उद्योग निजी संगठनों द्वारा संचालित होते हैं। पूँजीवादी देशों में अधिकांश उद्योग निजी क्षेत्र में होते हैं।
3. संयुक्त क्षेत्र के उद्योग – इन उद्योगों का संचालन संयुक्त कम्पनी के द्वारा अथवा किसी निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी के संयुक्त प्रयासों द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 10.
कुटीर उद्योग एवं लघु उद्योग में अन्तर को समझाइए।
उत्तर:
कुटीर उद्योग एवं लघु उद्योग में अन्तर
प्रश्न 11.
लघु उद्योग एवं बड़े पैमाने के उद्योग में अन्तर को समझाइए।
उत्तर:
लघु उद्योग एवं बड़े पैमाने के उद्योग में अन्तर
प्रश्न 12.
निजी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्योग में अन्तर को समझाइए।
उत्तर:
निजी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्योग में अन्तर
प्रश्न 13.
उपभोक्ता वस्तु उद्योग एवं उत्पादक वस्तु उद्योग में अन्तर को समझाइए।
उत्तर:
उपभोक्ता वस्तु उद्योग एवं उत्पादक वस्तु उद्योग में अन्तर
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
प्राथमिक उत्पाद क्या है?
उत्तर:
कृषि, पशुपालन, वानिकी, खनन, मत्स्य ग्रहण इत्यादि मानव की प्राथमिक क्रियाएँ हैं और इनसे प्राप्त उत्पाद ‘प्राथमिक उत्पाद’ कहलाते हैं।
प्रश्न 2.
द्वितीयक क्रियाकलाप किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब प्राथमिक उत्पादों का प्रसंस्करण करके नई, उपयोगी और मूल्यवान वस्तुओं की रचना की जाती है तो इन्हें ‘द्वितीयक क्रियाकलाप’ कहते हैं।
प्रश्न 3.
विनिर्माण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, “विनिर्माण जैविक अथवा अजैविक पदार्थों का एक नए उत्पाद के रूप में यान्त्रिक तथा रासायनिक परिवर्तन है, चाहे यह कार्य शक्तिचालित मशीन द्वारा सम्पन्न होता है अथवा हाथ द्वारा, चाहे यह कार्य कारखाने में किया जाता है अथवा कामगारों के घर में और उत्पाद चाहे थोक में बेचे जाएँ अथवा फुटकर में।”
प्रश्न 4.
विनिर्माण उद्योगों की सामान्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
विनिर्माण उद्योगों की सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- जटिल किन्तु स्मार्ट संगठन
- विशिष्टीकृत श्रम
- मशीनों का उपयोग
- ऊर्जा के साधनों का उपयोग
- पूँजी का भारी निवेश
- बड़े पैमाने पर उत्पादन
- परिष्कृत उत्पाद
- अनुसन्धान एवं विकास
- एक जैसी वस्तुओं का उत्पादन।
प्रश्न 5.
भोजन प्रसंस्करण के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
भोजन प्रसंस्करण के उदाहरण हैं—डिब्बाबन्द भोजन, क्रीम उत्पादन, फल प्रसंस्करण एवं मिठाई बनाना आदि।
प्रश्न 6.
द्वितीयक क्रियाओं के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
द्वितीयक क्रियाओं के उदाहरण हैं
- कपास द्वारा सूती वस्त्र बनाना
- लौह-अयस्क से मशीनों का निर्माण।
प्रश्न 7.
कुटीर उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
कुटीर उद्योग विनिर्माण की सबसे छोटी इकाई है। इसे ‘शिल्प उद्योग’ भी कहा जाता है।
प्रश्न 8.
बड़े पैमाने के उद्योग की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बड़े पैमाने के उद्योग की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- उत्पादन ऊर्जा चालित बड़ी-बड़ी मशीनों से होता है।
- एक ही इकाई में बहुत बड़ी संख्या (हजारों) में श्रमिक कार्य करते हैं।
प्रश्न 9.
कृषि आधारित उद्योग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कृषि आधारित उद्योग वे उद्योग हैं जो कृषि उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं व इन्हें विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा तैयार माल में बदलकर बिक्री हेतु ग्रामीण और नगरीय बाजारों में बेचते हैं।
प्रश्न 10.
आधारभूत या मूलभूत उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन उद्योगों का निर्मित माल अथवा उत्पाद अन्य अनेक उद्योगों का आधार बनता है उन्हें आधारभूत या मूलभूत उद्योग कहा जाता है; जैसे-लौह-इस्पात उद्योग, विद्युत उत्पादन उद्योग एवं भारी मशीन निर्माण उद्योग आदि।
प्रश्न 11.
उपभोक्ता उद्योग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उपभोक्ता उद्योग वे उद्योग हैं जिनके उत्पाद का प्रयोग प्राय: अधिकतर लोग दैनिक जीवन में करते हैं। इन्हें गैर-आधारभूत उद्योग भी कहा जाता है; जैसे-कागज, पैन, वस्त्र व खाद्य पदार्थ आदि के उद्योग।
प्रश्न 12.
संसार में द्वितीयक क्रियाओं का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
संसार में द्वितीयक क्रियाओं का महत्त्व इसलिए है क्योंकि इस क्रिया द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है। वे अधिक मूल्यवान हो जाते हैं।
प्रश्न 13.
लोहा-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
लोहा-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस उद्योग पर अन्य सभी उद्योग निर्भर हैं।
प्रश्न 14.
आधारभूत तथा उपभोक्ता उद्योग के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
आधारभूत उद्योग
- लोहा एवं इस्पात उद्योग, एवं
- मशीनी उपकरण उद्योग।
उपभोक्ता उद्योग
- साबुन उद्योग, एवं
- चाय उद्योग।
प्रश्न 15.
धातु उद्योग से क्या तात्पर्य है? ‘
उत्तर:
जिन उद्योगों में विभिन्न प्रकार की धातुओं को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है, ‘धातु उद्योग’ कहलाते हैं। ये उद्योग दो प्रकार के होते हैं
- लौह धातु, एवं
- अलौह धातु उद्योग।
प्रश्न 16.
अधातु उद्योग से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऐसे उद्योग जो अधात्विक खनिजों पर आधारित होते हैं उन्हें ‘अधातु उद्योग’ कहते हैं। कोयला, पेट्रोलियम, गन्धक आदि इसके उदाहरण हैं।
प्रश्न 17.
आकार के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
आकार के आधार पर उद्योगों के तीन वर्ग होते हैं
- कुटीर उद्योग
- छोटे पैमाने के उद्योग एवं
- बड़े पैमाने के उद्योग।
बहविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
द्वितीयक क्रियाकलाप सम्बन्धित हैं
(a) विनिर्माण से
(b) प्रसंस्करण से
(c) निर्माण से
(d) इन सभी से।
उत्तर:
(d) इन सभी से।
प्रश्न 2.
प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है
(a) प्राथमिक क्रियाओं द्वारा
(b) द्वितीयक क्रियाओं द्वारा
(c) तृतीयक क्रियाओं द्वारा
(d) चतुर्थक क्रियाओं द्वारा।
उत्तर:
(b) द्वितीयक क्रियाओं द्वारा।
प्रश्न 3.
निर्माण के अन्तर्गत माना जाता है
(a) लोहे व इस्पात को गढ़ना
(b) प्लास्टिक के खिलौने बनाना
(c) प्लास्टिक के अति सूक्ष्म घटकों को जोड़ना
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 4.
आधुनिक बड़े पैमाने पर होने वाले विनिर्माण की विशेषता है
(a) कौशल का विशिष्टीकरण
(b) यन्त्रीकरण
(c) प्रौद्योगिकीय नवाचार
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 5.
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाला कारक है
(a) बाजार
(b) कच्चा माल
(c) श्रम आपूर्ति
(d) ये सभी।
उत्तर:
(d) ये सभी।
प्रश्न 6.
उद्योगों के वर्गीकरण का आधार है
(a) आकार
(b) उत्पाद
(c) कच्चा माल
(d) ये सभी।
उत्तर:
(d) ये सभी।
प्रश्न 7.
विनिर्माण का शाब्दिक अर्थ है
(a) हाथ से बनाना
(b) मशीनों से बनाना
(c) (a) व (b) दोनों
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) (a) व (b) दोनों।
प्रश्न 8.
उपभोक्ता वस्तु उद्योग का उदाहरण है
(a) ब्रेड उद्योग
(b) चाय उद्योग
(c) कॉफी उद्योग
(d) ये सभी।
उत्तर:
(d) ये सभी।
प्रश्न 9.
स्वच्छन्द उद्योग की एक प्रमुख विशेषता है
(a) कुशलता
(b) निम्न पूँजी की आवश्यकता
(c) अधिक उत्पादन
(d) कहीं भी स्थापना।
उत्तर:
(d) कहीं भी स्थापना।
प्रश्न 10.
वन आधारित उद्योग हैं
(a) फर्नीचर उद्योग
(b) कागज उद्योग
(c) लाख उद्योग
(d) ये सभी।
उत्तर:
(d) ये सभी।
प्रश्न 11.
रूहर क्षेत्र का सम्बन्ध किस देश से है
(a) जर्मनी
(b) जापान
(c) चीन
(d) फ्रांस।
उत्तर:
(a) जर्मनी।
प्रश्न 12.
संयुक्त राज्य अमेरिका में लौह-इस्पात के उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र है
(a) उत्तर अप्लेशियन प्रदेश
(b) महान झील क्षेत्र
(c) अटलाण्टिक तट
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 13.
भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का प्रमुख केन्द्र है
(a) जमशेदपुर
(b) दुर्गापुर
(c) राउरकेला
(d) ये सभी।
उत्तर:
(d) ये सभी।
प्रश्न 14.
सिलीकॉन घाटी किस उद्योग के लिए प्रसिद्ध है
(a) सॉफ्टवेयर
(b) इस्पात उद्योग
(c) वस्त्र उद्योग
(d) रासायनिक उद्योग।
उत्तर:
(a) सॉफ्टवेयर।
प्रश्न 15.
हथकरघा क्षेत्र की विशेषता है
(a) अधिक श्रमिकों की आवश्यकता
(b) अर्द्धकुशल श्रमिकों को रोजगार
(c) कम पूँजी की आवश्यकता
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।