UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 5 निन्दा रस
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 5 निन्दा रस (हरिशंकर परसाई)
लेखक का साहित्यिक परिचय और कृतियाँ
प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई के जीवन-परिचय का उल्लेख करते हुए उनकी कृतियों (रचनाओं) पर प्रकाश डालिए। [2009, 10, 16]
या
हरिशंकर परसाई का साहित्यिक परिचय दीजिए एवं उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए। [2012, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
जीवन-परिचय-श्री हरिशंकर जी का जन्म मध्य प्रदेश में इटारसी के निकट जमानी नामक स्थान पर 22 अगस्त, 1924 ई० को हुआ था। आरम्भ से लेकर स्नातक स्तर तक इनकी शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई। नागपुर विश्वविद्यालय से इन्होंने हिन्दी में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। परसाई जी ने कुछ वर्षों तक अध्यापन-कार्य किया तथा साथ-साथ साहित्य-सृजन आरम्भ किया। नौकरी को साहित्य-सृजन में बाधक जानकर इन्होंने उसे तिलांजलि दे दी और स्वतन्त्रतापूर्वक साहित्य-सृजन में जुट गये। इन्होंने जबलपुर से ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका का सम्पादन और प्रकाशन आरम्भ किया, परन्तु आर्थिक घाटे के कारण उसे बन्द कर देना पड़ा। इनकी रचनाएँ साप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्मयुग आदि पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहीं। परसाई जी ने मुख्यत: व्यंग्यप्रधान ललित निबन्धों की रचना की है। 10 अगस्त, 1995 ई० को जबलपुर में इनका देहावसान हो गया।
साहित्यिक योगदान–परसाई जी हिन्दी व्यंग्य के आधार-स्तम्भ थे। इन्होंने हिन्दी व्यंग्य को नयी दिशा प्रदान की है और अपनी रचनाओं में व्यक्ति और समाज की विसंगतियों पर से परदा हटाया है। ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ ग्रन्थ पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त ‘उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान’ तथा मध्य प्रदेश कला परिषद् द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया गया। इन्होंने कथाकार, उपन्यासकार, निबन्धकार तथा सम्पादक के रूप में हिन्दी-साहित्य की महान् सेवा की।
रचनाएँ-परसाई जी अपनी कहानियों, उपन्यासों तथा निबन्धों में व्यक्ति और समाज की कमजोरियों, विसंगतियों और आडम्बरपूर्ण जीवन पर गहरी चोट करते हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- कहानी-संग्रह-हँसते हैं, रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे’।।
- उपन्यास–‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’।।
- निबन्ध-संग्रह-तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेईमानी की परत’, ‘पगडण्डियों का जमाना’, ‘सदाचार का तावीज’, ‘शिकायत मुझे भी है, और अन्त में।
इनकी समस्त रचनाओं का संग्रह ‘परसाई ग्रन्थावली’ के नाम से प्रकाशित हो चुका है। साहित्य में स्थान-परसाई जी हिन्दी साहित्य के एक समर्थ व्यंग्यकार थे। इन्होंने हिन्दी निबन्ध साहित्य में हास्य-व्यंग्य प्रधान निबन्धों की रचना करके एक विशेष अभाव की पूर्ति की है। इनकी शैली का प्राण व्यंग्य और विनोद है। अपनी विशिष्ट शैली से परसाई जी ने हिन्दी साहित्य में अपना प्रमुख स्थान बना लिया है।
गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोचर
प्रश्न–दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
प्रश्न 1.
अद्भुत है मेरा यह मित्र। उसके पास दोषों का ‘केटलाग’ है। मैंने सोचा कि जब वह हर परिचित की निन्दा कर रहा है, तो क्यों न मैं लगे हाथ विरोधियों की गत, इसके हाथों करा लें। मैं अपने विरोधियों का नाम लेता गया और वह उन्हें निन्दा की तलवार से काटता चला। जैसे लकड़ी चीरने की आरा मशीन के नीचे मजदूर लकड़ी का लट्ठा खिसकाता जाता है और वह चीरता जाता है, वैसे ही मैंने विरोधियों के नाम एक-एक कर खिसकाये और वह उन्हें काटता गया। कैसा आनन्द था। दुश्मनों को रण-क्षेत्र में एक के बाद एक कटकर गिरते हुए देखकर योद्धा को ऐसा ही सुख होता होगा।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक ने किसका उदाहरण आरा मशीन से दिया है?
(iv) लेखक ने अपने विरोधियों की गत किसके हाथों कराने का विचार किया?
(v) योद्धा को क्या देखकर निन्दक के जैसा ही सुख प्राप्त होता होगा?
उत्तर
(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित तथा हिन्दी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘निन्दा रस’ शीर्षक व्यंग्यात्मक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा
पाठ का नाम- निन्दा रस।
लेखक का नाम-हरिशंकर परसाई।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–लेखक श्री हरिशंकर परसाई जी का कहना है कि उनका निन्दक मित्र बहुत ही अद्भुत और विचित्र है जिसके पास दोषों और बुराइयों को अच्छा-खासा सूची-पत्र है। उनके सम्मुख जिस किसी की भी चर्चा छिड़ जाती वह उसी की निन्दा में चार-छ: वाक्य बोल दिया करता था। लेखक के मन में विचार आया कि क्यों न वह भी अपने कुछ-एक परिचितों की जो उसके विरोधी हैं, की निन्दा उसके माध्यम से करवा ले।
(iii) लेखक ने निन्दक का उदाहरण आरा मशीन से दिया है।
(iv) लेखक ने अपने विरोधियों की गत निन्दक मित्र के हाथों कराने का विचार किया।
(v) दुश्मनों को रण-क्षेत्र में एक के बाद एक कटकर गिरते हुए देखकर योद्धा को निन्दक जैसा ही सुख प्राप्त होता होगा।
प्रश्न 2.
ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा भी होती है। लेकिन इसमें वह मजा नहीं जो मिशनरी भाव से निन्दा करने में आता है। इस प्रकार का निन्दक बड़ा दुखी होता है। ईष्र्या-द्वेष से चौबीसों घंटे जलता है और निन्दा का जल छिड़ककर कुछ शांति अनुभव करता है। ऐसा निन्दक बड़ा दयनीय होता है। अपनी अक्षमता से पीड़ित वह बेचारा दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा भौंकता है। ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा करने वाले को कोई दण्ड देने की जरूरत नहीं है। वह निन्दक बेचारा स्वयं दण्डित होता है। आप चैन से सोइए और वह जलन के कारण सो नहीं पाता। उसे और क्या दण्ड चाहिए?
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) मिशनरी निन्दक शान्ति का अनुभव कब करता है?
(iv) किस प्रकार के निन्दक को दण्ड देने की कोई जरूरत नहीं होती? कारण सहित उत्तर दीजिए।
(v) अपनी अक्षमता से पीड़ित निन्दक दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर कैसा व्यवहार करता है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित तथा हिन्दी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘निन्दा रस’ शीर्षक व्यंग्यात्मक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा
पाठ का नाम– निन्दा रस।
लेखक का नाम-हरिशंकर परसाई।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक ने कहा है कि निन्दा ईष्र्या भाव से प्रेरित होती है और मिशनरी भाव से भी। मिशनरी भाव से की गयी निन्दा बिना किसी द्वेष-भाव के धर्म-प्रचार जैसे पुण्य कार्य की भावना से की जाती है। ईर्ष्या भाव से प्रेरित होकर निन्दा करने में वह आनन्द नहीं आता, जो मिशनरी भाव से प्रेरित होकर निन्दा करने में आता है।
(iii) मिशनरी निन्दक ईष्र्या-द्वेष से चौबीसों घण्टे जलता है और निन्दा का जल छिड़ककर कुछ शान्ति अनुभव करता है।
(iv) मिशनरी निन्दक को दण्ड देने की कोई जरूरत नहीं होती। कारण यह कि ऐसा निन्दक बेचारा स्वयं दण्डित होता है।
(v) अपनी अक्षमता से पीड़ित निन्दक दूसरे की सक्षमता को चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा भौंकता है।
प्रश्न 3.
निन्दा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है। मनुष्य अपनी हीनता से दबता है। वह दूसरों की निन्दा करके ऐसा अनुभव करता है कि वे सब निकृष्ट हैं और वह उनसे अच्छा है। उसके अहं की इससे तुष्टि होती है। बड़ी लकीर को कुछ मिटाकर छोटी लकीर बड़ी बनती है। ज्यों-ज्यों कर्म क्षीण होता जाता है, त्यों-त्यों निन्दा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। कठिन कर्म ही ईष्र्या-द्वेष और इनसे उत्पन्न निन्दा को मारता है। इन्द्र बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता है क्योंकि वह निठल्ला है। स्वर्ग में देवताओं को बिना उगाया अन्न, बे बनायो महल और बिन बोये फल मिलते हैं। अकर्मण्यता में उन्हें अप्रतिष्ठित होने का भय बना रहता है, इसलिए कर्मी मनुष्यों से उन्हें ईष्र्या होती है।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) निन्दा का उद्गम कहाँ से होता है?
(iv) निन्दक व्यक्ति दूसरों की निन्दा करके कैसा अनुभव करता है?
(v) इन्द्र को ईष्र्यालु क्यों माना जाता है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित तथा हिन्दी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘निन्दा रस’ शीर्षक व्यंग्यात्मक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा
पाठ का नाम- निन्दा रस।।
लेखक का नाम-हरिशंकर परसाई।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक कहता है कि इन्द्र को बड़ा ईष्र्यालु माना जाता है; क्योंकि वह निठल्ला रहता है, उसे कुछ नहीं करना पड़ता। उसे खाने के लिए अन्न नहीं उगाना पड़ता, फल पाने के लिए पेड़ नहीं बोने पड़ते तथा रहने के लिए बना-बनाया महल मिल जाता है। स्वर्ग में ये सभी चीजें स्वत: प्राप्त हो जाती हैं, इन्हें प्राप्त करने के लिए कुछ भी श्रम नहीं करना पड़ता। खाली रहने के कारण उसे अपनी अप्रतिष्ठा का डर बना रहता है। इसलिए वह किसी तपस्वी को तपस्या करते देखकर, किसी कर्मठ व्यक्ति को श्रेष्ठ कर्म करते देखकर ही भयभीत हो जाता है कि कहीं यह अपनी कर्मठता से मेरे पद को न छीन ले; अत: वह उससे ईर्ष्या करने लगता है।
(iii) निन्दा का उद्गम हीनता और कमजोरी से होता है।
(iv) निन्दक व्यक्ति दूसरों की निन्दा करके ऐसा अनुभव करता है कि वे सब निकृष्ट हैं और वह उनसे अच्छा है।
(v) निठल्ला होने के कारण इन्द्र को ईर्ष्यालु माना जाता है।
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