UP Board Solutions for Class 7 Hindi निबन्ध रचना

By | May 26, 2022

UP Board Solutions for Class 7 Hindi निबन्ध रचना

UP Board Solutions for Class 7 Hindi निबन्ध रचना

गाय

गाय एक चौपाया और पालतू पशु है जो हर प्रकार से उपयोगी होती है। भिन्न-भिन्न देशों की जलवायु की विभिन्नता के कारण गाय के आकार और गठन में कुछ विभिन्नता स्वाभाविक है। गाय का मुख लम्बा, दो सींग और चार टाँगें होती हैं। अपने फटे हुए खुरों के कारण इसे ऊँची-नीची पहाड़ियों पर चढ़ने-उतरने में सहायता मिलती है। इसके शरीर में एक पूँछ होती है, जो मक्खी उड़ाने में इसकी सहायता करती है। सामान्यतया गाय का आकार चार-पाँच हाथ की लम्बाई का होता है। इसके शरीर पर अनेक छोटे-छोटे रोम होते हैं, जो शीत, वर्षा तथा गर्मी से इसकी रक्षा करते हैं। गाय सफेद, चितकबरी, काली तथा भूरे रंग की  होती हैं। गाय की अनेक जातियाँ हैं- देशी, विलायती, पहाड़ी आदि। विश्व में स्विटजरलैंड की गाय अधिक दूध देती है और हमारे देश में हरियाणा राज्य की गाय को अच्छा समझा जाता है।

गाय का मुख्य भोजन घास है, क्योंकि यह शाकाहारी पशु है। भूसा, चारा, खली तथा अन्य हरे चारे इसके मुख्य भोजन हैं। यदि इनको पौष्टिक भोजन दिया जाए, तो इनका दूध कुछ गाढ़ा हो जाता है। गाय के बच्चे को बछड़ा या बछिया कहते हैं। यह लगभग आठ महीने दूध देती है। कुछ गाएँ एक वर्ष बाद या दो वर्ष के बाद या कुछ और अधिक समय के बाद बच्चा देती हैं। यद्यपि गाय एक सीधा पशु है किन्तु प्रसव के समय और उसके एक महीने बाद तक यह किसी को अपने बच्चे के पास नहीं आने देती। जिन गायों को हम अपने घरों में रखते हैं, उन्हें पालतू गाय कहते हैं। वन में विचरने वाली गाय को नीलगाय कहते हैं, जिसका आकार घोड़े से कुछ मिलता-जुलता होता है।

गाय का दूध बहुत हल्का, पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होता है। दूध से मट्ठा, क्रीम, घी, पनीर आदि चीजें तैयार होती हैं। गोबर से बने उपले घर में जलाने के काम आते हैं। इसके बछड़े बड़े होकर हमारे खेतों में काम आते हैं। हमारे धर्म-शास्त्रों में गाय का मूत्र भी बड़ा गुणकारी और शुद्ध माना गया है। जनेऊ संस्कार के समय इस मंत्र का आचमन भी लिया जाता है। गाय को गौ माता भी कहते हैं। अतः मानव मात्र का धर्म है कि गाय की  सेवा माता समझकर ही करें। सन्त विनोबा भावे ने सम्पूर्ण देश में गौ वंश के वध पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए अनशन किए थे।

विज्ञान के चमत्कार

वर्तमान युग विज्ञान का युग नहीं है, यह कहना अनुचित है क्योंकि वर्तमान युग में जो भी परिवर्तन आया है, वह विज्ञान की ही तो देन है। अतः वर्तमान युग को वैज्ञानिक युग ही कहना उचित होगा। विज्ञान का प्रभाव हमारे ऊपर इतना बढ़ गया है कि विज्ञान की देन को अगर हमसे छीन लिया जाए, तो हमारे सामने अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ उपस्थित हो जाएँगी। अतः वर्तमान युग को विज्ञान ने जो भी दिया है, हम उसका जितना भी वर्णन करें, उतना ही कम है।

विज्ञान ने हमारे जीवन को बहुत सरल बना दिया है। विज्ञान के चमत्कारों से व्यक्ति का मनोबल इतना उठ गया है कि वह कुछ भी करने को हमेशा तत्पर है। एक प्राचीन समय भी था, जिसमें एक व्यक्ति दस-बीस मील पैदल चलने से घबराता था, किन्तु आज तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए भी तत्पर रहता है। विज्ञान ने हमारे लिए ऐसे साधन जुटाए हैं, जिनसे एक व्यक्ति पूरी पृथ्वी का चक्कर कुछ ही घण्टों में लगा देता है।

आज विज्ञान ने हमारे लिए रेलगाड़ी, वायुयान, मोटरगाड़ी आदि ऐसे  साधन जुटाए हैं, जिनसे हम थोड़े से समय में एक लम्बी यात्रा सरलता के साथ तय कर लेते हैं। इसी कारण मानव आज मंगल ग्रह पर जाने की तैयारी कर रहा है।

विज्ञान ने हमें टेलीफोन, रेडियो, बेतार का तार आदि साधन दिए हैं, जिनके द्वारा हम घर में बैठे-बैठे ही अपनी बात दूर देश में रहनेवाले व्यक्ति से कह सकते हैं और उनकी बात को सुन सकते हैं। इतना ही नहीं विडियो कॉलिंग द्वारा हम उस व्यक्ति से आमने-सामने बात कर सकते हैं। टेलीविजन, रेडियो आदि से हम घर में बैठे-बैठे ही अन्य देशों तथा प्रदेशों की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ देख व सुन सकते हैं।

ज्ञान ने युद्ध, भूमि में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्राचीन समय में तो राजा घोड़ों या हाथियों पर चढ़कर युद्ध, भूमि में तीर-तलवार का प्रयोग किया करते थे। लेकिन इस वैज्ञानिक युग में वैज्ञानिक ढंग से ही युद्ध किए जाते हैं। इस युग में सेना को तीन भागों में विभाजित किया गया है और तीनों प्रकार की सेनाओं को अलग-अलग युद्ध का प्रशिक्षण दिया जाता है। विज्ञान के द्वारा दिए गए अनेक प्रकार के बम, बन्दूक, एटम बम, लड़ाकू विमान एवं दूरमारक शस्त्रों का प्रयोग युद्ध-क्षेत्र में किया जाता है। ऐसे उपकरणों से एक देश को एक मिनट में नष्ट किया जा सकता है।

विज्ञान ने अनेक प्रकार की मशीनों का आविष्कार करके हमारे जीवन को अति सुखमय बना दिया है। हम अनेक प्रकार के सुन्दर वस्त्रों को धारण करते हैं और अति आनन्द का अनुभव करते हैं।  चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान का महत्त्वपर्ण योगदान रहा है। विज्ञान ने हमको अनेक प्रकार की उपयोगी औषधियाँ प्रदान की हैं, जिनसे हम व्यक्ति के जीवन को बचा सकते हैं।विज्ञान मनुष्य के हाथों में एक अनुपम शक्ति है। इसमें दैवी और दानवी  दोनों शक्तियाँ छिपी हैं। विज्ञान के दुरुपयोग से विनाश और सदुपयोग से विश्वकल्याण हो सकता है। विज्ञान के सदुपयोग में ही मानव का कल्याण है।।

मेले का वर्णन

हमारे देश में मेले प्राचीनकाल से लगते आए हैं। प्राचीनकाल में मनुष्यों ने आपस में । मिलने-जुलने और प्रसन्न होने के लिए मेलों की योजना बनाई थी। मेलों में दूर-दूर से मनुष्य आते हैं, जिससे प्रत्येक मेले में खूब भीड़ एकत्र हो जाती है।

मेले का प्रबन्ध नगर के समस्त अधिकारी मिलकर करते हैं परन्तु मेले के अध्यक्ष जिला अधिकारी होते हैं, जिनकी देख-रेख में यह आयोजित होता है। मेले में पुलिस व्यवस्था होती है, जिससे जनता को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो और सारे मेले को अनेक भागों में बाँट दिया जाता है, जिससे प्रबन्ध में कोई परेशानी न हो।

मेले के मुख्य द्वार से पहले ही काफी दूर तक भीड़ थी। सड़क पर भी अनेक प्रकारे की दुकानें सजी हुई थीं। छोटे-छोटे बच्चे इधर-उधर आ रहे थे, क्योंकि कोई तमाशा देखने जा रहा था, तो कोई खिलौना खरीद रहा था। जैसे ही हम मुख्य द्वार पर पहुँचे तो देखा मुख्य द्वार बिजली की रोशनी से जगमगा रहा था। मख्य द्वार में प्रवेश करते ही बाजारों की सन्दरतो. को देखा। बाजार अनेक भागों में विभाजित था। दोनों ओर दुकानें सजी हुई थीं। दोनों ओर खिलौनेवाले, चूड़ीवाले तथा कपड़ेवाले अपनी-अपनी दुकानें सजाकर बैठे हुए थे। व्यक्ति इन दुकानों से सामान खरीद रहे थे। इन बाजारों को मिलाकर एक विशाल मुख्य बाजार बनाया गया था, जो सारे मेले का मुख्य आकर्षण केन्द्र था। सारा बाजार बिजली की रोशनी से जगमगा रहा था। सभी बाजारों, में बीच-बीच में चौक सजे थे जिनमें फौआरे और  त्रिमूर्ति आदि बने हुए थे। मेले में अनेक प्रकार के खेल-तमाशे मेले की अत्यधिक शोभा बढ़ा रहे। थे। नौटंकी, सिनेमा, सर्कस और झूला आदि को देखकर व्यक्ति आनन्द प्राप्त कर रहे थे। मेले में कवि-सम्मेलन, कृषि प्रदर्शनी और अनेक प्रकार के प्रदर्शन होते हैं। बच्चे, युवक तथा बूढे सभी को अपनी मनोनुकूल बातें यहाँ मिल जाती हैं, जिससे सब प्रसन्न होते हैं।

हमारे देश में मेलों का बहुत महत्व है। यहाँ अनेक प्रकार के मेले गंगास्नान का मेला, नौचन्दी का मेला तथा जिला प्रदर्शनी आदि लगते हैं। सबका अलग-अलग महत्त्व होता है। मेला अमीर-गरीब सभी व्यक्ति आसानी से देख लेते हैं, क्योंकि यदि किसी  के पास बाहर मेले में जाने के लिए धन नहीं होता, तो वह जिले में प्रदर्शनी को देखकर आनन्द प्राप्त कर लेता है। मेले में व्यक्ति को अनेक प्रकार की नई-नई वस्तुएँ देखने को मिलती हैं जिससे व्यक्ति के ज्ञान का विकास होता है।

मेले के माध्यम से एक-दूसरे से मधुर सम्बन्ध बने रहते हैं। मेले को देखकर अनेक प्रकार की वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त होता है। मेला बच्चों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। मेलों का व्यापारिक और सामाजिक महत्त्व होता है क्योंकि व्यापारी मेले के माध्यम से परिवार का पालन-पोषण करते हैं। अमीर-गरीब सबको मेले में कार्य मिल जाता है। अतः मेलों का समाज के लिए बड़ा ही महत्त्व है।

विजयदशमी (दशहरा)

हमारे प्रत्येक त्योहार का किसी-न-किसी ऋतु के साथ सम्बन्ध रहता है। विजयदशमी शरद ऋतु के प्रधान त्योहारों में एक है। यह आश्विन मास की शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्री राम ने लंकापति रावण पर विजय पाई थी। इसलिए इसको विजयदशमी कहते हैं। बड़े त्योहारों की 2खला के एक लम्बे एवं नीरस अन्तराल के पश्चात् यह त्योहार आता है। अतः इसका अधिक महत्त्व है। यह भारत का एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है। सभी इसको बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। लगभग एक सप्ताह पहले क्षत्रिय अपने जंग लगे हथियारों का पूजन करने के लिए उनकी सफाई करना प्रारम्भ कर देते हैं। एक  पखवाड़े पहले ही भगवान राम के चरित्र की झाँकियाँ रामलीला के रूप में दिखाई जाती है। घर-घर में रामचरितमानस का पाठ चलता है।

हजारों वर्ष पूर्व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। यह राक्षसों पर देवताओं की जीत थी। अत: इस महान हर्ष के उपलक्ष्य में यह उत्सव आश्विन शुल्क पक्ष की दशमी को मनाया जाता है।

इस दिन घर की सफाई करके घर के चौक को लीपकर चौक में दशहरे का पूजन किया जाता है। घर में इस दिन पकवान आदि बनाते हैं तथा सभी लोग प्रसन्नतापूर्वक पकवान व मिठाइयाँ खाते हैं। शाम को नगरों और गाँवों में मेले लगते हैं। रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं। हजारों नर, नारी एवं बच्चे इस दिन रामलीला मैदान में एकत्रित हो जाते हैं। वे अपने आराध्य देव भगवान राम की भक्ति में भाव-विभोर हो जाते हैं। इससे राष्ट्र को देशभक्ति एवं वीरता की प्रेरणा मिलती है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

विद्यालय का वार्षिकोत्सव

प्रत्येक संस्था अपना वार्षिकोत्सव मनाती है। यह उत्सव उसकी वर्षगाँठ के दिन मनाया जाता है। उत्सव ही किसी भी संस्था तथा समाज की जागृति के सूचक होते हैं। सभी समुदायों में उत्सव अपने-अपने ढंग पर बहुत उत्साह से मनाए जाते हैं। कुछ  उत्सव घरेलू होते हैं, जिन्हें केवल पारिवारिक सदस्य ही मिलकर मनाते हैं। कुछ सार्वजनिक उत्सव होते हैं, जिनमें समाज का प्रत्येक व्यक्ति भाग ले सकता है। इन सार्वजनिक उत्सवों में कुछ धार्मिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय तथा शिक्षा सम्बन्धी उत्सव भी होते हैं।

विद्यालय में शिक्षा सम्बन्धी उत्सवों की प्रधानता होती है। प्रत्येक वर्ष कुछ अन्य उत्सवों के अतिरिक्त विद्यालय का वार्षिकोत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है। दिसम्बर के महीने में प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी विद्यालय में वार्षिकोत्सव बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया गया। महीनों पहले से वार्षिक रिपोर्ट, भाषण, निमन्त्रण-पत्र और विद्यालय की सजावट का कार्य शुरू हो गया। सर्वमान्य सज्जनों को निमन्त्रण भेजे गए। षट्मासिक परीक्षा के समाप्त होते ही सभी अध्यापक एवं छात्र उत्सव की तैयारी में जुट गए।

आज विद्यालय के उत्सव का प्रथम दिवस है। बाहर के कुछ सज्जन कल शाम से आए हुए हैं। सभा मंडप की शोभा निराली ही है। कहीं सुन्दर अक्षरों में लिखे आदर्श वाक्य टॅगे हैं, कहीं रंग-बिरंगी झण्डियाँ बँधी हैं। निमंत्रित सज्जनों एवं नेताओं के बैठने के स्थान को ऊँचा करके श्वेत चाँदनी से ढक दिया गया है। ठीक 8 बजे यज्ञ-हवन किया गया। यज्ञ-हवन के पश्चात् खेल-कूद का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। खेल में अध्यापकों तथा छात्रों ने समान रूप से भाग लिया। प्रत्येक खेल में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को क्रमशः प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय पुरस्कार मिले। इन खेलों का कार्यक्रम 12 बजे तक चला। दोपहर 2 बजे से भाषण आदि का कार्य आरम्भ हो गया। पंडाल में बने मंच पर ही हारमोनियम बाजा बजने लगा। सभी लोग पंडाल की ओर आने शुरू हो गए। सभापति महोदय का चुनाव हुआ और उन्होंने अपना स्थान सुशोभित किया। छात्र और  अन्य महानुभावों के भाषण प्रारम्भ हो गए। सभी स्त्री-पुरुष क्रम से होने वाले भाषण और भजनों को तत्परता से सुन रहे थे। चारों ओर सुप्रबन्ध के लिए विद्यार्थी एवं स्वयंसेवक खड़े थे। भाषण समाप्त होने पर दान की अपील की गई। फिर क्या था, कोई 100 रु० कोई 500 रु० नगद दे रहा था। कोई कमरा बनवा देने का वचन दे रहा था। इस प्रकार यह कार्यक्रम सायं चार बजे तक चलता रहा।

रात्रि में वाक् प्रतियोगिता और कवि सम्मेलन का संक्षिप्त कार्यक्रम चला। दूसरे दिन प्रातः से ही पहले दिन की भाँति ही व्यस्त कार्यक्रम रहा। आज छात्रों को विविध पुरस्कार भी वितरित किए जाने वाले थे। इस कार्यक्रम के लिए माननीय जिलाधीश महोदय को आमन्त्रित किया गया था। दोपहर बाद मन्त्री महोदय ने वार्षिक रिपोर्ट पढ़कर सुनाई। जनता में रिपोर्ट की पुस्तकें भी बाँटी गईं। इसके बाद फिर दाने की अपील की गई। पहले दिन की भाँति आज भी पर्याप्त दान आया। इसी बीच में तीन बजे जिलाधीश महोदय भी आ पहुँचे। मैनेजर तथा प्रधानाचार्य महोदय ने अन्य अनेक प्रतिष्ठित  व्यक्तियों के साथ जिलाधीश महोदय का भव्य स्वागत किया। जिलाधीश महोदय ने अपना संक्षिप्त भाषण देकर प्रधानाचार्य जी के आग्रह करने पर
पुरस्कार वितरण का कार्य प्रारम्भ किया। पुरस्कार वितरण की समाप्ति पर सभापति ने भाषण । दिया। उन्होंने स्कूल की प्रगति पर प्रसन्नता प्रकट की और भविष्य में और अधिक उन्नति
के लिए कामना की।
इसके पश्चात् प्रधानाचार्य महोदय ने आगंतुक महानुभावों को धन्यवाद दिया तथा सभापति महोदय इस उत्सव की खुशी में विद्यार्थियों को दो दिन की छुट्टी भी दी।
ऐसे उत्सव प्रत्येक संस्था के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। स्कूलों का वार्षिकोत्सव मनाने का उद्देश्य यह भी है कि इससे जनता तथा विद्यालय का घनिष्ठ सम्बन्ध हो जाता है। विद्यार्थियों को पुरस्कार मिलने पर प्रोत्साहन मिलता है। उनमें मिल-जुलकर कार्य करने की भावना एवं  क्षमता आती है।

रक्षाबन्धन

रक्षाबन्धन हिन्दुओं का बड़ा पवित्र त्योहार है। यह श्रावण मास की अन्तिम पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसको सलूनो और श्रावणी भी कहते हैं। इस दिन सभी बहनें भाइयों को राखी बाँधती हैं तथा बदले में उपहार पाती हैं। कन्याएँ ही नहीं, विवाहित स्त्रियाँ भी अपने भाइयों को राखी बाँधती हैं। पुरुष इस दिन अपने यज्ञोपवीत बदलते हैं। अच्छे-अच्छे मिष्ठान्न बनते हैं और सभी घरों में आनन्द मनाया जाता है।

जब भारत में यवनों का बोलबाला था, ब्राह्मण और कन्याओं की रक्षा कठिन हो गई थी, तब कन्याएँ अपने भाइयों को और ब्राह्मण यजमानों को रक्षा-सूत्र बाँधते थे। इस प्रकार बहनों का भाइयों पर और ब्राहमणों का यजमानों पर रक्षा का उत्तरदायित्व  आ जाता था। उसी काल से रक्षाबन्धन का पर्व चला आ रहा है, तभी से बहन भाई के हाथ में राखी बाँधने लगी हैं।

इस पर्व को मनाने के कई लाभ हैं। एक तो बहन और भाई को प्रेम स्थिर रहता है, दूसरे यजमान और पुरोहित को अपना-अपना कर्तव्य स्मरण रहता है, तीसरे वेद आदि के माध्यम से उत्तम ग्रन्थों की रक्षा होती है। इस पर्व को सब अपने-अपने ढंग से मनाते हैं। वास्तव में मनाने का ढंग यह है कि प्रातः स्नानादि करके सम्मिलित रूप से सभी हवन यज्ञ करें। पुनः बहन- भाइयों को और ब्राह्मण-यजमानों को राखी बाँधे। फिर सब मिल-जुलकर मिठाई खाएँ। ।

रक्षाबन्धन का यह शुभ पर्व भाई-बहन के सम्बन्ध को दृढ़ बनाने वाला है। साथ ही नि:स्वार्थ भाव से सेवा और निर्बलों की सहायता करना भी सिखलाता है। भाई यह प्रतिज्ञा करता है कि वह तन, मन और धन से बहन की रक्षा करेगा। इससे बहन में भाई के  प्रति विश्वास, उत्साह,
आशा और प्रेम जाग्रत् होता है।
रक्षाबन्धन के त्योहार को मनाते समय हमें अपनी विशुद्ध स्फूर्तिदायक पुरानी कथाओं को नहीं भूल जाना चाहिए। हमें निष्काम भाव से दूसरे की सहायता करनी चाहिए। प्राण रहने तक भाई को बहन की रक्षा करनी चाहिए तभी हमारा भारत परम वैभव प्राप्त कर सकेगा।

दीपावली

यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को होता है। इस त्योहार पर रात में विशेष रूप से दीपक जलाकर प्रकाश किया जाता है। इसलिए इसे दीपावली या दीपमालिका के नाम से पुकारते हैं। दीपावली का त्योहार किस कारण मनाया जाता है, इस बारे  में अनेक मत प्रचलित हैं।

कुछ लोग मानते हैं कि जब श्रीरामचन्द्र जी रावण का विनाश करके, सीता जी को साथ लेकर 14 वर्ष के बाद अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावासियों ने अपनी खुशी प्रकट करने के लिए अयोध्या को दीपकों से सजाया था। बस तभी से दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा।

दूसरे अन्य लोग मानते हैं कि इस दिन धन की देवी लक्ष्मी जी भूमि पर यह देखने के लिए आती हैं कि मेरी मान्यता कहाँ, किसके यहाँ कैसी है और कौन मेरा सम्मान व पूजा करता है। इसीलिए सभी मनुष्य अपने घर को लक्ष्मी जी के आगमन की सम्भावना से सजाते हैं और लक्ष्मी जी की कृपा की आशा करते हैं।
इस त्योहार की तैयारी कई दिन पूर्व से की जाने लगती है। प्रत्येक व्यक्ति घर को, मकान को तथा दुकान को अच्छी तरह से सजाता है। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस होती है। इस दिन बाजार से नए बर्तन खरीदकर लाने का प्रचलन है।

अगले दिन छोटी दीपावली होती है, इस दिन को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। अगले दिन दीपावली का मुख्य त्योहार होता है। इस दिन नर-नारी बालक-बच्चे सभी प्रसन्न व व्यस्त दिखाई पड़ते हैं। सायंकाल श्रीगणेश-लक्ष्मी का पूजन दीप जलाकर चावल,  खील-बताशे, मिठाई व फल-फूलों से किया जाता है।

इसके बाद लोग अपने घरों, दुकानों व अन्य भवनों को दीपों, मोमबत्तियों व बिजली के बल्बों से सजाते हैं और कण्डील टाँगते हैं। इन दिन बाजारों में भी बहुत अधिक रोशनी एवं सजावट की जाती है।

दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है तथा उससे अगले दिन भैयादूज का पर्व मनाया जाता है। इस त्योहार की प्रतीक्षा सभी नर-नारी किया करते हैं। बच्चों के लिए तो यह मिठाई का त्योहार माना जाता है। यह खुशी और उमंग का त्योहार है। इस पर्व के बहाने घरों की सफाई हो जाती है।

वर्षा के दिनों में जो गन्दगी, सीलन हो जाती है, वह सब लिपाई-पुताई के कारण दूर ” हो जाती है। कुछ लोग इस अवसर पर जुआ भी खेलते हैं। बहुत-से मनुष्य तो इस जुए की लत में अपना सब कुछ गवाँ बैठते हैं और उनकी खुशी गम में बदल जाती है।  जुआ खेलना पर्व की पवित्रता एवं समाज के सुखद वातावरण को दूषित कर देता है।

सार रूप में कहा जाता है कि यह पर्व स्वास्थ्य, धार्मिक एवं मनोरंजन की दृष्टि से बहुत ही अच्छा और महत्त्वपूर्ण है। इस पर्व का बहुत अधिक सामाजिक महत्त्व भी है। इस अवसर पर हमें बुरे काम नहीं करने चाहिए। दीपावली वास्तव में एक अनोखा पर्व है।

होली

होली हमारे देश का बड़ा व प्रसिद्ध त्योहार है। यह प्रत्येक वर्ष फाल्गुन के महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्रत्येक हिन्दू इस त्योहार के आने की प्रतीक्षा करता है।

पुराणों में एक कथा है कि इस दिन भक्त प्रहलाद की बुआ होलिका अपने भाई के आदेशानुसार प्रहलाद को गोदी में लेकर आग में बैठ गई। भगवान की कृपा से भक्त प्रहलाद बच गया और होलिका जलकर राख हो गई। इस खुशी में हिन्दू लोग इस दिन को होली के रूप में मनाते हैं। फाल्गुन आने से पूर्व माघ मास की बसन्त पंचमी से ही इस त्योहार का श्रीगणेश हो ज़ाता है। बसन्त पंचमी के दिन किसी सार्वजनिक स्थल, चौराहे पर होली के लिए बच्चे ईंधन, लकड़ी, उपले आदि एकत्र करना शुरू कर देते हैं। होली के दिन तक यह बहुत बड़े ढेर (होली) के रूप में बदल जाता है। कुछ प्रमुख व्यक्ति शुभ मुहूर्त में होली को आग लगाते हैं। सभी व्यक्ति आनन्द से जौ की बालियाँ भूनकर अपने मित्रों, सम्बन्धियों को देते हैं और गले मिलते हैं।

अगले दिन प्रातः से ही मस्ती का वातावरण बन जाता है। छोटे-बड़े, बच्चे, जवान, बूढे, नर-नारी सभी में रंग, गुलाल, पिचकारी से एक-दूसरे को रंग में रंग देने की होड़ लग जाती हैं। इस त्योहार पर कोई छोटा-बड़ा, ऊँच-नीचा नहीं रहता। सभी गले मिलते हैं और प्रेमपूर्ण व्यवहार करते हैं। इस त्योहार पर बहुत से व्यक्ति रंग गुलाल की जगह गन्दगी फेंक देते हैं, जो अच्छा नहीं होता। हमें इन बुराइयों को दूर करना चाहिए।

दोपहर बाद सभी नहा-धोकर एक स्थान पर अथवा एक-दूसरे के घर  जाकर जैसी जिसकी सुविधा हो, एक-दूसरे से गले मिलते हैं। वास्तव में होली मित्रता, प्रेम, मिलन एवं सद्भाव का त्योहार है।

स्वतन्त्रता दिवस : 15 अगस्त

भारत के इतिहास में 15 अगस्त, 1947 का दिन सदैव सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। इस दिन यह देश अँग्रेजों के चंगुल से स्वतन्त्र हुआ था। भारतीय समाज के लिए दुखों की कालरात्रि समाप्त हो गई थी। एक स्वर्णिम प्रभात आ गया था। सभी ने शान्ति एवं सुख की साँस ली थी। स्वतन्त्रता दिवस हमारा सबसे महत्त्वपूर्ण तथा प्रसन्नता का त्योहार है। अतः यह दिवस सम्पूर्ण देश में बड़े हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है।

भारतवासियों के हृदय में स्वतन्त्रता प्राप्त करने की भावना जागती रहती थी। इसलिए यहाँ के व्यक्तियों के असीम त्याग एवं बलिदान से 15 अगस्त, 1947 को अँग्रेज भारत से चले गए और हमारे देश को स्वतन्त्र कर गए। तभी से हम इस दिवस को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं।

स्वतन्त्रता दिवस का हमारे देश में विशेष महत्त्व है, क्योंकि देश को स्वतन्त्र कराने के लिए अनेक वीरों ने अपने को बलिदान कर दिया। इस दिवस के साथ गूंथी हुई बलिदानियों की अनेक गाथाएँ हमारे हृदय में स्फूर्ति और उत्साह भर देती हैं। लोकमान्य  तिलक का यह उद्घोष “स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” हमारे हृदय में हिलोरें, उत्पन्न कर देता है।

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने अपने खून से स्वतन्त्रता की देवी को तिलक किया था। “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा लगाने वाले नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की याद इसी स्वतन्त्रता दिवस पर सजीव हो उठती है।

महात्मा गांधी जी के बलिदान का तो एक अलग ही अध्याय है। उन्होंने विदेशियों अर्थात् अँग्रेजों के साथ अहिंसा के शस्त्र से मुकाबला किया और देश में बिना खून बहाए क्रांति उत्पन्न कर दी। महात्मा गांधी के अहिंसा, सत्य एवं त्याग के सामने अत्याचारी अँग्रेजों को पराजय का मुंह देखना पड़ा। वर्षों तक निरन्तर प्रयत्न करते-करते 15 अगस्त का शुभ दिन आया। अतः स्वतन्त्रता दिवस का एक विशेष महत्त्व है।

15 अगस्त को समारोह बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। नर-नारी, बाल-वृद्ध सभी के हृदय में उमंग की लहर दौड़ पड़ती है। प्रभात होते ही बालक और युवकों की टोलियाँ तिरंगे झण्डे लेकर प्रभात फेरी के लिए निकल पड़ते हैं। भारतमाता की जय, सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गांधी आदि की जय के गगनभेदी नारों से आकाश गूंज उठता है। सूर्योदय के समय में राजकीय तथा व्यक्तिगत संस्थाओं पर राष्ट्रीय नेताओं द्वारा ध्वजारोहण होता है।  जुलूस निकलते । हैं और सार्वजनिक सभाएँ होती हैं।

विद्यालयों में यह दिवस प्रतिवर्ष धूमधाम के साथ मनाया जाता है। ध्वजारोहण किया जाता है। तत्पश्चात खेल-कूद का आयोजन होता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से उन शहीदों को स्मरण किया जाता है, जिन्होंने देश पर अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। रेडियो तथा टेलीविजन पर राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।

सचमुच 15 अगस्त हमारे लिए गौरव का दिवस है। बड़ी कठिन साधना से पश्चात् ही हमें यह दिन देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हमारा यह पुनीत कर्तव्य है कि हम अपनी इस स्वतन्त्रता की रक्षा करें। इस स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए न जाने कितनी माताओं की गोद सूनी हुई, न जाने कितनी ललनाओं (महिलाओं) का सुहाग लुटी। देश के सहस्रों नवयुवकों ने हँसते-हँसते फाँसी के तख्ते को चूम लिया। अतः जिन लोगों ने स्वतन्त्रता रूपी पौधे का बीजारोपण किया,  उनके लगाए गए इस वृक्ष को हरा-भरा बनाए रखना हमारा कर्तव्य है।

सिनेमा (चलचित्र)

आजकल सिनेमा इतना लोकप्रिय हो गया है कि इसके सामने आज का मनुष्य प्रत्येक चीज को तुच्छ समझता है। जब लोग सिनेमा देखकर वापस आते हैं, तो उनका दिल खुशी से झूमता रहती है। हम कह सकते हैं कि आज का सिनेमा मानव समाज के मनोरंजन के ‘ लिए विज्ञान की देन है। । चलचित्र का आविष्कार काफी वर्षों पहले हो गया था। सन 1890 में अमेरिका के एक वैज्ञानिक केलसर द्वारा यन्त्र बनाया गया, जिससे बड़े-बड़े चित्र दिखाई देने लगे। प्रारम्भ में चलचित्र मूक होते थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, विज्ञान जगत् की उन्नति हुई, वैसे-वैसे सिनेमा जगत् में भी उन्नति हुई। चलचित्रों ने बोलना आरम्भ  कर दिया। अब तो स्थिति यह है कि रंगीन चलचित्र देखने पर कुछ ऐसा लगता है कि जैसे वास्तव में ही रंगमंच पर कोई अभिनय या नाटक कर रहा हो।

चलचित्र प्रदर्शन से मनुष्य को बहुत से लाभ होते हैं। चलचित्र मनोरंजन के लिए सबसे बड़ा साधन है। जब आदमी दिन भर के परिश्रम और चिन्ता से थककर सिनेमा में बैठता है। तो दिमाग की थकान दूर हो जाती है।

शिक्षाप्रद चलचित्रों को देखने से मनुष्य को अच्छी शिक्षा मिलती है और उसके ज्ञान में वृद्धि होती है। समाज में फैली कुरीतियों के प्रति वह सावधान हो जाता है। इस प्रकार सिनेमा शिक्षा, ज्ञान-वृद्धि और समाज-सुधार में सहायक होता है। भिन्न-भिन्न स्थानों के दृश्य देखकरे देश की भौगोलिक स्थिति से हम परिचित होते हैं। देश की भिन्न-भिन्न जगहों के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। आज का व्यापारी वर्ग, सिनेमा में अपने विज्ञापन निकलवाकर अपने व्यापार में वृद्धि करता है।

सिनेमा समाज को तभी लाभान्वित कर सकता है, जब समाजिक हित के उद्देश्य को लेकर फ़िल्में बनाई जाएँ। आज के समय में बहुत-सी ऐसी भी फिल्में बनती हैं, जिनका प्रभाव दर्शकों पर अच्छा न पड़कर बुरा पड़ता है। चलचित्रों में आजकल सुधार की बहुत बड़ी आवश्यकता है। आज की युवा पीढ़ी को चलचित्रों से बहुत लाभ हो सकता है।

हमारा विद्यालय

विद्यालय शब्द दो शब्दों के योग से बना है। विद्या + आलय अर्थात् विद्या का घर। प्रत्येक बालक घर की चहारदीवारी से निकलकर अपने सर्वांगीण विकास हेतु विद्यालय में प्रवेश लेता है और विभिन्न प्रकार की शिक्षा ग्रहण कर अपना चहुंमुखी विकास करता है।

हमारे विद्यालय का नाम डी०ए०वी० इंटर कॉलेज है। हमारे विद्यालय का भवन अत्यधिक सुन्दर है। इसमें कुल 55 कक्ष हैं, जिनमें सभी छात्रों को एक पारी में ही पढ़ाया जाता है। इसके अतिरिक्त छह प्रयोगशालाएँ हैं। पुस्तकालय, वाचनालय, कैंटीन, चिकित्सालय, कार्यालय, डाकखाना, बैंक की सुविधा, छात्रों व अध्यापकों की सुविधा हेतु साइकिल स्टैंड की व्यवस्था भी विद्यालय में उपलब्ध है। हमारे प्रधानाचार्य जी का नाम श्रीकष्ण कमार है, जो एक एक योग्य, अनुभवी एवं कर्मठ व्यक्ति हैं। प्रधानाचार्य जी के अतिरिक्त 80 अध्यापक हैं, जो विषयों के अनुसार शिक्षा देते हैं। छात्रों की संख्या लगभग दो हजार है। सभी छात्र  नीली कमीज तथा खाकी पैंट या नेकर पहनकर प्रतिदिन विद्यालय में आते हैं। सर्दियों में गहरे नीले रंग का स्वेटर या कोट यूनिफार्म में है।

हमारे विद्यालय के पीछे ही खेल का एक विशाल मैदान है। मध्यावकाश में, रिक्त समय में अथवी पूर्णावकाश के पश्चात् छात्र वहाँ इच्छानुसार खेल खेलते हैं। विद्यालय में खेल-सामग्री भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। हॉकी, फुटबॉल, टेबिल टेनिस, बैडमिंटन आदि खेलों की सामग्री छात्रों के खेलने के लिए दी जाती है। किन्तु विद्यालय समय के पश्चात् । उसे सामग्री को लौटाना आवश्यक है। छात्रों के मनोरंजन हेतु समय-समय पर सांस्कृतिक र्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। छात्रों के ज्ञानवर्धन हेतु वाद-विवाद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है।

खेल-शिक्षा व राष्ट्र-सेवा के उद्देश्य से यहाँ स्काउट व एन०सी०सी० की शिक्षा भी दी जाती है। व्यावसायिक दृष्टिकोण से यहाँ सिलाई, पुस्तक कला और कृषि आदि की भी शिक्षा दी जाती है। विद्यालय में प्रवेश करते ही दोनों ओर की मनमोहक क्यारियाँ, विभिन्न  रंग एवं गन्ध युक्त फूल-पौधे चित्त को प्रसन्न कर देते हैं। सम्पूर्ण विद्यालय में उद्यान एवं वाटिकाएँ हैं, जिससे विद्यालय का वातावरण शुद्ध एवं सुरम्य बना रहता है।

अन्त में सभी दृष्टिकोणों से मुझे अपना यह विद्यालय बहुत अच्छा लगता है। इसके बारे में जितना भी वर्णन किया जाए, वह कम है। यहाँ पर मेरे शरीर और मस्तिष्क दोनों का व्यायाम हो जाता है। जहाँ एक ओर मुझे अच्छी शिक्षा मिलती है, वहीं दूसरी ओर अच्छे साथी एवं शिक्षक भी मिलते हैं, जिनसे मुझे सद्प्रेरणा मिलती है।

रेलयात्रा का वर्णन

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज के प्राणियों के साथ मिल-जुलकर रहना अधिक पसन्द करता है। कभी-कभी वह दूर बसे हुए मित्रों, सम्बन्धियों तथा अन्य परिचितों से मिलने के लिए यात्राएँ भी किया करता है। कुछ यात्राएँ- मनोरंजन के दृष्टिकोण से की जाती हैं। यात्रा के द्वारा लोग एक-दूसरे स्थान की संस्कृति, सभ्यता और प्राकृतिक शोभा से परिचित हो जाते हैं।

पिछले वर्ष मैंने गर्मियों की छुट्टियों में मित्रों के साथ दिल्ली की यात्रा करने का कार्यक्रम बनाया। आवश्यक सामान बाँधकर हम संध्या समय तक तैयार हो गए। दिल्ली जाने की खुशी में हमारा हृदय उछल रहा था। आज सुबह की सुनहरी किरणें निकलने भी  नहीं पाई थीं कि हम बिस्तरों पर से उठ खड़े हुए, क्योंकि गाड़ी प्रात: छह बजे प्रस्थान करती
थी। हम, शीघ्र ही स्टेशन पहुँच गए।

जब हम स्टेशन पर पहुँचे, तो वहाँ स्त्री-पुरुषों व बच्चों की एक विशाल प्रदर्शनी-सी लगी हुई थी। लोग प्लेटफार्म की जगह पर अधिकार जमाए हुए थे। वातावरण कोलाहले से परिपूर्ण था। चारों ओर अस्पष्ट वातावरण गूंज रहा था। सब गाड़ी की प्रतीक्षा में थे। प्लेटफार्म का दृश्य किसी मेले से कम न था। गाड़ी के आने पर जैसे-तैसे हम डिब्बे में चढ़ गए। कुछ देर बाद गाड़ी धीरे-धीरे चलने लगी और प्लेटफार्म का वह मनोरंजक दृश्य भी हमारी आँखों से ओझल होता गया।

गाड़ी एक्सप्रेस थी, इसलिए मुख्य-मुख्य स्टेशनों पर रुकती थी। रास्ते में हरे-भरे खेत तथा बीहड़ जंगल दिखाई देते थे। कहीं-कहीं पर नदियाँ बहती दिखाई देती थीं। गाड़ी के डिब्बों में आकर भिखमंगे यहाँ तक कि छोटे-छोटे बच्चे भी मधुर तान में गीत सुनाकर  पैसे माँगते थे। कहीं पर डिब्बे में बीड़ी, सिगरेट और पूरी बेचने वाले नजर आते थे। इस प्रकार दृश्यों का आनन्द लेते हुए हम दिल्ली पहुँच गए। दिल्ली पहुँचकर हमने मुख्य-मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। सर्वप्रथम हमने लालकिले में प्रवेश करके वहाँ की प्रदर्शनी को देखा, जो बहुत ही मनमोहक थी। लालकिले से लौटकर हमने जन्तर-मन्तर, संसद भवन, कुतुबमीनार आदि को देखा। भ्रमण करने के बाद हमने चाँदनी चौक से कुछ सामान भी खरीदा। इस प्रकार हमने तीन दिन तक लगातार भ्रमण करके आनन्द लिया।

यात्रा समाप्त करके हम पुनः घर वापस आ गए। यात्रा में यद्यपि हमें अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ सहन करनी पड़ीं, फिर भी यात्रा से हमारे आत्मविश्वास में और वृद्धि हुई। यात्रा द्वारा कठिनाइयों को सहने की शक्ति मिलती है। हमें एक-दूसरे के साथ उचित व्यवहार करने का ढंग आता है। इस प्रकार यात्रा से हमको काफी लाभ होता है।

यात्रा से अनेक लाभ हैं। भिन्न-भिन्न मनुष्यों के पारस्परिक परिचय से हमारे व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि होती है। नई-नई वस्तुएँ देखने को मिलती हैं। हम जगत के खुले वातावरण में प्रवेश करते हैं। भ्रमण से हमारा ज्ञान बढ़ता है। मार्ग-दृश्य हमारी आँखों तथा  हृदय के लिए बहुत सुखदायी होते हैं। सच तो यह है कि आज कोई भी मनुष्य बिना यात्रा के वास्तविक मनुष्य नहीं बन सकता है।

महात्मा गांधी

भारतभूमि को महान आत्माएँ सदा पवित्र करती रही हैं। श्रीराम, श्रीकृष्ण, महात्मा बुद्ध, गुरु नानक और गांधी जी जैसे अनेक महापुरुष यहाँ जन्म ले चुके हैं। आधुनिक युग के महापुरुषों में गांधी जी बहुत प्रसिद्ध हैं। विश्व बन्धु राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लोग ‘बापू’ कहकर पुकारते हैं। वे अहिंसा के अवतार, सत्य के देवता, अछूतों के मसीहा और राष्ट्र के पिता थे।

इस महान पुरुष का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबन्दर स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम करमचन्द गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। बालक मोहनदास पर माता के धार्मिक  स्वभाव का गहरा प्रभाव था। गांधी जी का विवाह तेरह वर्ष की आयु में कस्तूरबा के साथ हुआ था। कस्तूरबा शिक्षित नहीं थीं, फिर भी उन्होंने गांधी जी को जीवन भर सहयोग दिया।

गांधी जी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके कानून का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए। वहाँ उन्होंने सदाचारपूर्ण तथा नियमबद्ध जीवन व्यतीत किया। जब वे बैरिस्टर होकर भारत लौटे, तो उनकी माता का देहान्त हो चुका था। सर्वप्रथम उन्होंने मुम्बई में वकालत की। वे सच्चे मुकदमे लड़ते थे और गरीबों के मुकदमों की पैरवी नि:शुल्क करते थे।

गांधी जी को सन् 1893 ई० में एक गुजराती व्यापारी के मुकदमे की पैरवी करने के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा, वहाँ भारतीयों को काला आदमी कहकर अपमानित किया जाता था। गांधी जी को स्वयं वहाँ अपमान सहन करना पड़ा। भारतीयों की दयनीय दशा को देखकर गांधी जी की आत्मा में विद्रोह की आग भड़क गई। वहाँ उन्होंने भारतीयों की दशा सुधारने के लिए सत्याग्रह आन्दोलन किया। उन्हें अनेक कष्ट दिए गए, लेकिन अन्त में अफ्रीकी सरकार को झुकना पड़ा और गांधी-स्मट्स समझौते के अनुसार भारतीयों को सम्मानपूर्ण जीवन प्राप्त हुआ।

सन् 1915 में गांधी भारत वापस आए। यहाँ आकर उन्होंने भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए आन्दोलन छेड़ दिया। अँग्रेजी सरकार ने उनको अनेक बार जेल भेजा, किन्तु उन्होंने
अपनी हठ नहीं छोड़ी। सन् 1942 में उन्होंने ‘अँग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा  लगाया। उनको फिर जेल की सजा हुई, किन्तु अन्त में अंग्रेजों को उनकी बात माननी पड़ी और 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हो गया।

गांधी जी एक राजनैतिक नेता होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। उन्होंने हरिजनों का उत्थान किया, नारियों को समाज में सम्मानपूर्ण स्थान दिलाया। उन्होंने ग्रामों की उन्नति की; ग्रामोद्योग को प्रोत्साहन दिया; बेसिक शिक्षा, कुटीर उद्योग एवं समाज सुधार मूलक आन्दोलनों का नेतृत्व किया।

गांधी जी का व्यक्तित्व महान था। उनकी कथनी और करनी में अन्तर न था। सादा जीवन उच्च विचार, सत्य, अहिंसा, प्रेम और शांति उनके सन्देश थे। वे रामराज्य और हिन्दू-मुस्लिम एकता के कट्टर समर्थक थे। देश के स्वतन्त्र होने पर गांधी जी ने देश को सुखी बनाने के लिए अनेक प्रकार की योजनाएँ बनानी प्रारम्भ कर दीं, किन्तु दुष्ट तो सभी स्थानों पर होते हैं। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोड्से नामक एक व्यक्ति ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। उनकी हत्या का समाचार सुनकर भारत बिलख पड़ा और विश्वभर में शोक छा गया। वास्तव में गांधी जी विश्व के महापुरुषों में एक थे। वे श्रेष्ठ संत, परम धर्मात्मा, समाज सुधारक और राष्ट्र के पिता और मानवता के पोषक थे।

मनोरंजन के साधन

मानव जीवन संघर्षों की कहानी है। जब मानव संघर्ष करते-करते ऊब जाता है, तो वह मनोरंजन के माध्यम से मन को प्रसन्न करता है। मनोरंजन से मानव की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। अतः मनोरंजन उसके लिए औषधि के समान है।

मनुष्य के लिए मनोरंजन अति आवश्यक है, क्योंकि जब मनुष्य कार्य करते-करते थक जाता है, तो उसे मनोरंजन की अति आवश्यकता होती है। थोड़ी देर मनोरंजन करने से उसका हृदय प्रसन्न हो जाता है और वह फिर कार्य करना प्रारम्भ कर देता है। मनोरंजन के साधन मनुष्य को नई शक्ति देते हैं। अत: मानव-जीवन में मनोरंजन का अत्यधिक महत्त्व है।

मनुष्य अपने मन को बहलाने के लिए अलग-अलग ढंग के मनोरंजन के साधन अपनाती है। प्राचीनकाल में मनुष्य शिकार खेलकर, तीर चलाकर, कुश्ती आदि लड़कर, नाटक, नृत्य, नौटंकी, रामलीला, चौपड़, कठपुतली के खेल तथा बाजीगर के खेल आदि के द्वारा अपना मनोरंजन किया करता था, परन्तु धीरे-धीरे सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनोरंजन के साधनों में भी परिवर्तन होते चले गए। अत: आज प्राचीन काल के मनोरंजन के साधन बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हैं और आज बहुत कम व्यक्ति ही प्राचीनकाल के साधनों द्वारा अपना मनोरंजन करते हैं।

आज का युग विज्ञान का युग है। मानव को विज्ञान ने मनोरंजन के लिए  बड़े सस्ते और अच्छे साधन उपलब्ध कराए हैं। आधुनिक युग के मनोरंजन के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं

आज मानव को मनोरंजन के ऐसे साधन प्राप्त हैं, जिनसे वह घर बैठे ही मनोरंजन कर सकता है। मनोरंजन के घरेलू साधनों में शतरंज, ताश, कैरम आदि हैं, जो आसानी से सुलभ हो जाते हैं। इनमें मनुष्य को अधिक खर्च नहीं करना पड़ता। घरेलू साधनों में पत्र-पत्रिकाओं, कहानी-संग्रह और उपन्यासों की भी गणना की जाती है। मनोरंजन के घरेलू साधनों में रेडियो और टेलीविजन का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। टेलीविजन और रेडियो आज घर-घर में प्राप्त हो जाते हैं। अतः रेडियो और टेलीविजन आज के युग में मनोरंजन के घरेलू साधनों में प्रमुख स्थान रखते हैं।

जिन साधनों द्वारा मनुष्य घर से बाहर जाकर मनोरंजन प्राप्त करता है, वे मनोरंजन के बाहरी साधन कहलाते हैं। इनमें सिनेमा, प्रदर्शनियाँ (नुमाइशें), सर्कस आदि महत्त्वपूर्ण हैं।

मनोरंजन के साधनों की कोई सीमा नहीं है। जिसका जिससे मन बहल जाए, उसके लिए वही मनोरंजन का साधन है। लाखों व्यक्ति हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, कबड्डी तथा खेलकूद द्वारा भी अपना मनोरंजन करते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ व्यक्ति कवि सम्मेलन,  नृत्य, संगीत, भ्रमण, यात्रा करके, नाव चलाकर आदि के माध्यम से मनोरंजन करते हैं।

अतः मानवे जिस माध्यम से चाहे मनोरंजन कर सकता है। घर बैठकर और बाहर जाकर भी मनोरंजन के माध्यम से आनन्द प्राप्त कर सकता है।
कभी-कभी मनुष्य नशा या जुआ खेलकर मनोरंजन करते हैं, किन्तु इन माध्यमों से मनोरंजन नहीं करना चाहिए। इनसे धन की बर्बादी तथा स्वास्थ्य की हानि होती है। जो साधन हानिकारक हैं, उनको कभी नहीं अपनाना चाहिए। अत: मानव को उन्हीं मनोरंजन के साधनों को अपनाना चाहिए, जिनसे उसका कल्याण हो सके।

मेरा प्रिय खेल: कबड्डी

मनुष्य का जीवन संघर्षमय है। वह मनोरंजन के लिए खेल खेलता है। वैसे भी मनुष्य को खेल बहुत प्रिय हैं। कार्य समाप्त करने पर वह खेल खेलने के लिए लालायित हो उठता है। कोई कैरम खेलता है, कोई वॉलीबॉल खेलता है, कोई बैडमिंटन खेलता है, किन्तु मेरा प्रिय खेल कबड्डी है।

मानव जीवन में खेल का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इसके द्वारा शारीरिक व  मानसिक थकान दूर हो जाती है और खेल से मानव स्फूर्ति का अनुभव करता है। भारत में अनेक खेल खेले जाते हैं, परन्तु मेरे जीवन में कबड्डी का विशेष महत्त्व है।

प्रत्येक खेल को खेलने का एक तरीका होता है। कबड्डी के खेल को खेलने के लिए मैदान की लम्बाई-चौड़ाई निश्चित कर ली जाती है। अधिक खिलाड़ी होने पर मैदान
की लम्बाई-चौड़ाई बढ़ा दी जाती है। इस खेल में साधारण रूप से आठ से दस तक खिलाड़ी खेल खेलते हैं। इस खेल में मैदान के मध्य में एक रेखा खींच दी जाती है। सारे खिलाड़ियों को दो भागों में बाँट दिया जाता है। एक टोली मैदान के एक ओर तथा दूसरी टोली दूसरी ओर हो जाती है। एक टोली का एक खिलाड़ी दूसरी टोली के भाग में ‘कबड्डी-कबड्डी’ कहता हुआ जाता है और उसमें से किसी एक खिलाड़ी को छूने की कोशिश करती है। दूसरी टोली के खिलाड़ी उसे पकड़ने की कोशिश करते हैं। यदि वह किसी को छूकर एक साँस में ही वापस रेखा को छू लेता है या अपने भाग में आ जाता है, तो उसे एक अंक मिल जाता है। इसी प्रकार खेल का क्रम चलता रहता है। खेल का समय निश्चित होता है। निश्चित समय में जिस टोली के अधिक अंक होते हैं, उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है और यदि अंक बराबर होता है, तो किसी भी टोली को विजयी घोषित न करके खेल बराबरी पर समाप्त कर दिया जाता है।

कबड्डी का खेल-स्वास्थ्य के लिए बड़ा ही लाभकारी है। इसमें काफी भाग-दौड़ होती। है, जिससे मनुष्य स्वस्थ और बलवान होता है। इस खेल से खिलाड़ियों की साँस रोकने की शक्ति बढ़ जाती है। इससे खिलाड़ियों के फेफड़े शक्तिशाली हो जाते हैं और खिलाड़ियों में रोग नहीं होता है। अतः यह खेल स्वास्थ्यवर्धक है।

इस खेल से कभी-कभी लाभ के स्थान पर हानि भी हो जाती है। इस भागदौड़  और खिलाड़ी को पकड़ने में कभी-कभी चोट भी लग जाती है, परन्तु ऐसा प्रायः बहुत कम होता है। यदि शान्तिपूर्वक खेल-खेला जाए, तो हानि के स्थान पर बहुत लाभ प्राप्त होता है।

वास्तव में कबड्डी का खेल सारे भारत में खेला जाता है, क्योंकि यह खेल सबसे सस्ता और स्वास्थ्यवर्धक है। इस खेल में किसी प्रकार का कोई अपव्यय नहीं होता। इस खेल में प्रेम और सहयोग की भावना भी उत्पन्न होती है। अतः हमें इस खेल को अवश्य खेलना चाहिए।

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